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मुनि समारंच एवं उनका पपपुराण
सूरज रज उपज्या वयराग । राजरिष सगली ही त्याग ।।
बालि कुमर प्रति सोप्या राज । सुग्रीव ने कियो जुवराज १४७१।। राज्य प्राप्ति
परहितमोह मुनिवर के पास । दिपा सई मुक्ति की प्रास ।। राजा बालि प्रतापी खरा । रामावली प्रस्त्री में बरा ॥४७२।। ताते व्याही सौ और | तात अधिक बिराज ठौर ।। विजया मेघपुर नाम । ता पुत्र परदूषणा नाम ।।४७३।। चन्द्रनषाने बाहै हरथा । निसवासर संका में षडा ।। वसानन कुंभकरण तें हरै । भभीषण का भय चित्त पर ।।४७४।। दसानन गया जात्रा मेर । परदुषण माया तिह बेर ॥ पनिषा हरि पच्चा विमान । लेकार भयो भापती थान ||४७५।।
भकरण भभीषण दो वीर । असी मुनि परजले सरीर ।। मन मांहि ते कर मालोच । अन्नपान छोड़पा मन सोच ।।४७६।। रतनश्रवा पर नरपति घने । कहें कि धार्को गहि कर हने ।। सेन्मां जोडि विजयास चले । दसानन पावतां मारग मिले ।। 6.७७।। सभिलि चन्द्रनषा की बात । कपी देइ पसीना गात ।। इतनी सेन्या का क्या काम | एक ही कर ते करौ संग्रास ।।४३८ छिनमें मारि सब परलय करो । उनपरि कहा षडग बापरों ।। मन्दोदरी सीष इम भनें । केन्या घर राष्या नहि बने ।।४७६।। उत्तम कुल उनके भी षरे । चौदह से षेचर उरण घरे ।। विया सहस है बाके तीर । साहसवत महा बलवीर ।।८०11 जो तुम वाकी डारो मार । तो विधवा होसी बहण तुमार ।। तब बाको दूषण अति होय । तुमने मला न कहसी कोय ॥४८१।। अज जो षिमा करो तो भला । सेवक करि पा चला। जो तुम जुष करण का पाउ । तो अब बालि सुग्रीव परिजाउ ।।४८२।। उनको दिन बीते हैं घने । न करें सेव हुकम तुम तने ।। माग्पा मानं नाहीं बाल । बेग जाहि इह टालो साल ॥४८३।
दसानन सूनी विया सों कहै । जो वे मुझ प्राम्या में रहे ।। . हूं उनकी नहीं मानू संक । वे हम सू कहा करि हैं वंक ||४८४।।