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पद्मपुराण
भई भंडा की रोमावलि खटी। हस्ती के जिस पलभल पड़ी ।। तब गयंद भाज्यो चिधार । दसानन चरण गह्मा तिहबार ।।४३१।।
दर गया पती गम्यः जागिरि गिर गया । पकडि दांत झकझोरा धन्या । बमुष्टि कर ताकूहन्या 11४३२।। निरमद कीया प्रजा समान | सुख पाया कुदेव जन आंन । पोह फाटी र भया परभात । गजपलारण मार कर जात ।।४३३।। तब इक किंकर पहुता प्राइ । सोर्ट धरा सिर पाग बगाय ।। दसानन सिंहां उभा रहा । कहो किंकर तू किण दह्या ॥४३४॥ तासु बचन पूछ बलवीर ! कहो बात चित राखो धीर ।। कोण काज पाया मो पास । तेरा मन की पूरू प्रास ।।४३५।। संखावलो किंकर कों नाम । सेन्यावली का सूत इसा ठाम ।। इन्द्रप्तरणा किकर कही एक । तिए लीधी लंक कर टेक ।।४३६॥ लोग तुम्हारा दिया निकाल । सूरज रज अच्छर रज पाइ मार ।। में तुमारा बल के परताप । वे दोन्यु चहि दोडे माप ।।४३७।। दो सुवोड जुघ मति भया । वानर बंसी दल कटि गया ।। रहे सूरज 'रम प्रच्छर रज । किया जुद्ध राषी तिहां लज्ज ॥४३॥ जम की सेन्यां करी संहार । जम सन्मुख माया तिहबार ।। सूरज रज के मारी गदा । रथ ते पद्धया भूमि पर तदा ।।४३६।। अलंका में ले गये उचाइ । मिल मिल गावाब सिंचाइ ।। अब वाकु कुछ भई उसास । जम दे है लोकां ने पास 11४४०।1
नरक सात सो राया इन्द्र । तहाँ माणस गख्या करि वृन्द ।। संका विजय
तिस कारण आया तुम पास । तुम चल दूर करो दुख त्रास ।।४४१ ।। इतनी सुरिण सब सेन्यां दही हंकार । किषंच पुरे पहुंसा तिण बार ।। बाजे मारू माची रोर 1 किवंदपुर देख्या दक्षिण पोर ||४४२।। बैतरणी अरसाती नर्क । बंदी वान सह उपसर्ग ।। रखवाले वैये तिहां घने । धंभ वांषि करि पिजर हने ।।४४३।। दशानन बंदि छोडि सब दई । संपोट कनें ए बात सब गई। मुणित वात कोप्या संपोट । दशानन में प्रपडू पग रोप ॥४॥४||