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पद्मपुराख
दसानन दोडि ग्रही तसु बांह | संकोचि प्रारि कछु बोली नाँहि ॥ इन सब का भरतार || २६४ ।।
सगलो ही सभी तिहुँ बार
एक महुरत भांवरि फिरी । वासमये भूप्रती सब तिरी ॥ कोक कला सब ही परवीन । किनर देखि होय गुण हीन ॥२६५॥
रखवाले ऐसी सुपाय कही अमर सुंदसु जाय ॥ सुनि करि नृप कोप्यो बहु भांति । सेना भेजी चार्ज दति ।।२६६ ॥ बाकू मारि करो तुम षेत् । दशानन नहीं राषी उस देह ॥ चले सुभट परवत पे गये । छीडे जांण ता सनमुख भए ।। २३७|| दमानन त चढ़ाये मौह । सव सेन्या भागी सिर नौय ॥
दशानन की वीरता
नृग सौं जाय जनाई सार । वा सनमुख न चलें हथियार ||२८||
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पकरो वेग दिखावो नंन ॥
राजा कई अवर ल्यो सैन तब सेवक नरपति सो भनें
प्रभू तुम धाप चलो तो बनें || २६६ ॥
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अमर सुंदर अमर नो वेग षट्सहस्र भूपति इक ठोर
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चढे विमान चले उस यांन पद्मावती आदि जे तिरी
कनक विद्युत प्रभ श्रवर अनेक || सेना का कछू नही भोर || ३००||
राजसुता देखिया निसांन ॥ दसानन सुरु बिनती करी ॥। ३०१ ||
तुम परि चढि माया निश्चै धार । तुम जल मांहि छिपी सवार || जो तुम जल ने तिर नवि सको तो सांतिनाथ मंदिर में सुको ||३०२ ॥
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विद्याल्यो तुम झालोपनी दृष्टि न आबो काढू तरणी ॥ जब से ढूंढ सोष उठि जांय । तब ले चलो आपने ठांव ॥ ३०३ ॥
रावण कहूँ सुनोत्रिय जैन । मैरा बल तुम देखी नयन ||
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मैं तो गरुड़ वे सर्प समान । एको सनमुख भुइँ मान ।। ३०४।।
सिंह एक हस्ती संस्था । भार्ज तुरत मयंगल ठाठ || मैं तो बली सिंघ सौवाधि । मोकु सकै कौन नर साथि ।। ३०५ ।।
सव में पकड करूं दहे बाट । बंध करो सब श्रोधट घाट || पद्मावती प्रमुख हम कहे। पिता आत मुझ जीवत रहे ।। १०६ ।।
अवर निसंध करो सिघाउ उनकों तुम लीजियो बचाउ || दसानन सुणु तुम तिरी । उा मारन की प्रतिमा करी ||३०७ ||