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मुमि समाचन्द एवं उमका पमपुराण
सब दल निकट पहतो भाय । राबरण भी तत सन्मुख जाय ॥ बैसि विमान गगन में गया । बहुत सुभट विद्या के किया ॥३०८।। चन्द्रहास तब खडग संभाल । मुराधावंत किये ततकाल ।। नागपासनी विद्या डारि । बांधे सब नरपति तिहूं बार ॥३०६।। मानभंग सब ही नृप किये । हार मान विनती कर नये ।। क्ष्या प्राण छोडे सब राय 1 कन्यां व्याहों मन घर भाव ।।३१०।। सकल त्रिया ले घर की चले । भान भभीषन सन्मुख मिले ।। मंदिर अंतेवरह संवारि । न्यारी न्यारी राषी नारि ।।३११।। पर नगर सहोदर : प .
ताशी नह पह: i तमित माला ताक सुता । भानकुवर ब्याही शभमता ॥३१२।। कुंभपुर सो सुण्यां जब गीत । कुंभकरण नामैं सु पुनीत ।। धोतपुर विसुष सुकमल नरेश । मदनमाला नारी गुणवेस ॥३१३॥ सरस्वती पुत्री गुणवंत । रूपवत लावण्य बुधियन्त ॥ भभीषण सौ किया विवाह । भोग भुगत में करें उछाह ॥३१४॥ मंदोदरी गर्भ स्थिति करी । इन्द्रजीत जन्म्या शुभ घडी ॥ नाना के ग्रह बर्थ कुमार । देखत मोह करें नरनारि ॥३१५॥
दूजे मेघनाद भवतारि । रूपवंत ससि की उनहारि ।। कुंभकरण द्वारा अपाव
कुमार लंका ढिग जम्य । पास पासि सब लूट से जाय ॥३१६१ बहुत सखी मानी सुदरी । भोग मगन माने मन रली ।।
इसी बात तब वैश्रव सुनी । प्राई लहर क्रोध कंपनी ॥३१७॥ पेश्श्रवण राणा के मूत का सुमाली के बरकार में जाना
लिख्या पट्ट तूस कर दिया । स्वयंप्रभ नगर सुमाली 4 गया । सोभा दूत नगर की देख । देखी स्वर्गपुरी सुविवेक ।।३१८।। जाय पहुंतो राज द्वार । मुमाली सुरत सुणी तिहबार ।। राजा पास कोक वसीठ । लिया लेख वांच्या नृप दीठ ॥३१॥ नमस्कार करि बोले दूत । निरमय जंपै ययण बहुत ।। तुम इन्द्र ते बचे थे भाग । पातालपूरी छिपे थे लाग ||३२०।।