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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
ना मूळ गंवारि ।। ३६ ।।
बोले कुमर रे समझ गंवार हाथी सहित तुझ मारू डारि ॥ कहै महाबत तुझ लाग्या काल । दृष्टि हो सांभल सबब कोप्यो सुकुमार । हत्ती दंत हे तिस वार ॥ लिये उपरि मस्तग सौं हुने । भाग्यो चिलचिलाय राज मनं ।। ३६१।।
एक दई महावत के लात जाएं करी सत्र की घात ॥ निरमंद किया महामयमंत । राजा सुधि लाई बलवंत ॥३६२ ।।
सिंहराज भेजे सब लोग । करो महोछव कंवर संजोग || बहुत करी बिनती मनुहार । भली भांति ल्यावो हम द्वार ।।३१३||
आय कुंवर के लागे पाय प्रभू " य हस्ती ऊपर चढ़यो कुमार । बार्ज प्रतिबाजे सिंह बार ||३९४ ।।
छाप बाजार संवराई गली । घरि घरि काम गावें रलों ॥ सिंह मूय भेटया उर लाय । रूप देषि प्रति हरयो राय ।।३५।
निजपुत्री ब्याही सिंह घरी । ताकी साथि कन्या सौ परी ॥ इक दिन बात निमित्तक भनें । इस कन्यावर हस्ती नैं ||३३६।।
भोग भोग सुख से मकार नागवती चित की कुमार कुंवर भ कब बीतं स्या । चलों बेग नागवती ले || ३६७ । इम चितवन्ता श्राई नींद परयो सेज पर जारि गयंद || बेगवती विद्याधर ग्राम । कुंवर सोत्रतो लियो उठाय || ३६८ ।।
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वर विमान लेवल्या भकास । बेगवती मन करें उल्हास || जाग्यो कुंवर प्रत्रु भय भयो । देख त्रिया कर सों कर गयो ।। ३६ ।।
तू छे कवरण कहो त भाव । किह कारण ते लिया उठाई || बेगवती बोली नहीं बात । कुंवर बिचारं घालु घात ॥। ४०० ।।
बेगवती कंधी तिबार हि गुनें जो डारं मार ॥ बहु करें वीनती श्राप । हुं आई कारज तुम तर्णं || ४०१ ॥
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जो तुम्ही विरासत हो मोय तो सब काररण विरास तोहि ।। सुरज उदयपुर नगर सुभथांन । सचाप राजा जिम भांग ॥४२॥
बंधुमती राणी पट धनी । जं चंद्रा पुत्री ता तणी ॥ लिख दीने
बहु पंड के मू 1 कन्यां निजर न आभ्यां रूप ||४०२
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