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मुनि सभाचंब एवं उनका पद्मपुराण
जीमैं भोजन सब परिवार । बीरा दीनां पान संवार ।। सिंघासन पर बैठे ग्राय | नगर कितोहल देष गप ॥२५६ ॥
दसानन तव पूलं बात । माली का कहै विरतांत ।। दशानन द्वारा लंका राज्य प्राप्ति की इच्छा
किम' छोडना संका का राज 1 न्यौग सवाल कहो प्रभू प्राज ।। १५७।। पिछली कथा कहो समझाय । सुमाली भया मूरछा भाह ।। सबही कंवर करें उपचार । बड़ी बार में मई संभार ।।२५८।। अवर कथां कहीं तिहं दार । फिर कैलासह देवह दार ॥ पूजा करी श्री भगवंत । सोवन मुनी तिहां महंत ॥२५६।। नमसकार करि पूछी वात । लंका राज लहै किह भांत ।। अवधि विचार कहैं मुनिराय । पोते तीन होयगे प्राय ॥२६०11 ने पावंगा लंका राज | मन बांछित का सुधरै काज ॥ बहु परिवार बढे संतान । उन सब बली न दूजा पान ।।२६१।। जे कछ, कहैं मुनीस्वर जैन । तुमने देषि भया सुष चन ।। पुनि सुपाव सुर की रिधि । पुन्य हो विद्या सिद्ध ।।२६२।। पुण्य भोग भूमि सुप करे । पुण्य राज प्रथ्वी कू बरं ।। पुण्य दुःष दालिद्र सव हरे । पुण्यं भव सागर जल तिरै ।।२६३।। पुण्ये पुत्र कलिम परिवार । पुण्य लछमी होय अपार ।। पुण्य विद्या लहे विमान । पून्य पार्व उत्तम थान ।।२६४।। पुन्य दूरिजन लागे पांव । पुन्य थी सदा सुपदाय ।। जल थल बन विहंड सहाय' । नातं पुन्य करौं मन नाय ।।२६५।। सूण पुन्य कीजे सब कोय । मनवांछित फल पादै सोय ।। सुरगति नर नारकी तिरजच । पुण्य बिमा सुप लहें न रंच ।।२६।। इति श्री पद्मपुराणे देशानन उत्पत्ति विधानक
मन्दोवरी की सुन्दरता
सरदंतपुर दक्षिण की मोर । दैतनाथ राजा तिहं ठौर। हेमावती राणी पटधनी । मंदोदरी सब गुण भय भनी ।।२६७।।