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मुनि सभाषद एवं उनका पपपुराण
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विद्याधर पान जई मोहि । मार प्रचुर करे जिय छोहि ।। जो विद्या मोकु फिर देइ । मूल न करू पाए सौं नेह ॥२५॥ धरणेंद्र की तब श्राग्या भई । बारावरस कर तपस्या नई ॥ तवं परमलेर विद्या सुध । फिर मत करं पाप की बुधि ॥२६॥ पूजे धरणेन्द्र मुनिथर सौं बात । इन तुमस्यौं क्यों किया पात ॥ क्यों इनमें तुम कू दुख दिया । कारन कौन उपन्च किया ॥२७॥ ब्योरो सकल कहो समझाब । ज्यू मेरे मन संसा जाय ।।
मुनि बोले पनि ग्यान बिचारि । प्रासी पावै सकल प्रापार ॥२०॥ सत्यापही स्था
संकर ग्राम देस का नाम । सरत जीव सुखसौं विश्राम ।। श्रीवरधन है तहां भूपती । तो पटसणी कुसमावती ॥२६॥ सोम सरमा माह्मण तिहाँ बस । महाकूचील देख सब हंस ॥ उन छोटी जीवन को पास । दिक्षा लई संन्यासी पास ॥३०॥ पंच अगन तप साधे जोग । ताकी सेव करें बह लोग ।। अंतकाल उन छोडी देह । जगज्या जाय देव के गेह ।।३१।। धूमकेतु नाम तिहां धरचा । देखत मन भय उपजै खरा ।। यहां भी प्राव विलीत सब गई। मनुष देह फिर पाई नई ॥३२॥ वाहन सिष्य साह्मन के गेह । भया पुत्र अति सुन्दर देह ।। सत्यघोष बालक का नाम । दिन दिन बढे विराज ठाम ।।३३॥ पाईविरिघ सब विद्या पली । ज्योतिक ग्रंथ अति महा बही ।। च्याकर्ण का लया सब भेद । कहै पुरागर च्याह वेद ।।३४।। दिक मामोद्रिक गुण सार । ग्यांन वाधि बड़ी बुधि अपार ।। गरी कतरनी जनेस रापै । झुठो बयण न मुख थी भाप ।। ३५॥ जो मुख असत्य वचन नीसरें। जीभ तब पर ही करें ।।। वीरति प्रगटि जब सब संमार । एनी रीत मुणी भूगार ।।३६।। सत्पत्रोष प्रति लिया बुलाय । प्रोहित थाप्या प्रापणा राह ।। प्रादर मान देइ सब कोई । दिन दिन कारण चौगुणां होइ ।।७।। नेमिदत्त याणिक जोहरी । लाद पल्या समंद की पुरी ।। भरे लिहाज सौंज मन शेष । मेमियत मन जपण्या सोच ॥३८|| इसनां द्रव्य लिया मैं संग । कुछ घर जा रहे भभंग ।। चार रसन जे परे अमोल । सत्यघोष नै सोंपे तोल ॥३६॥