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सुनि समरचंद एवं उनका पद्मपुराण
विवाह सगर सों जाम | राधापी लम राय ॥ सहस्रनयन सुरखी इह बात पूररपघन किया चाचा धाति ||३३|| कोप्या भूप जुन को घरमा । पूरणधन फिर के सांभला ।। बहुत जुध हुवा दुहु वोर । पढे मार तिहां मांची रोड ||३४|| मेघवाहन पूरणधन पूत । पहुंता तिहां संन संयुक्त ॥
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वर वांग पाठ सम मेह् । सहस्रनयन भाग्या ले देह ||३५|| समोसरण में म्राया भाजि । तिहां भया मनवांछित काज ||
वर भाव सब ही मिट गया। दया प्रणाम सकल मन भया ||३६|| धर देखा इन जुध । चक्र कहीं यह सुध ॥ चाल्यो समोसरण भगवान | पूछें इनका बैर निदान ||३७|| राजा वज्रघर समर ले साथ । श्राये समोसरण जिन नाथ || मानस्तंभ मान की हरं । देखत ही मति निरमल करें ||३८|| लीन प्रदक्षिण करि नमस्कार। डंडवता बहु वारंबार ॥ दो कर जोड़ करें प्रसन्न इन्हें बेर क्यों भया उत्पन्न ॥ ३६ ॥ अजितनाथ जिण बागी सार । गरधर भेद कहें सुविचार || संवनगर तिहां भावन सेष्ठ । प्रति कीरत बहु क्रिया सरेष्ट ||४०| तार्के भरदास सुत भया । पाई बुधि सौं स्याणां धया || आप सेठ चाल्यो व्योपार । पुत्रं सौंप्या बहु दीनार ॥८९॥
चार कोड गिरण सौंपे तांहि । धरम दया राम्रो मनमांहि || सज्जन कुटुंब की करज्यो कांग। जिन पूजा में दोज्यो दान ॥ ४२ ॥ लाद जिहाज दिशांतर चल्या श्रदास ज्वारया संग मिल्या || जुवा हरावं द्रव्य । राति विसन तिन से सर्व ||४३|| वेस्या संगमादिक सों हेत । लघमी बहु गरिएका कुं देव || खोटे कारण कीने घने । बिभचारी बाकी सब भने ||४४|| सर्व द पोया इंग भांति चोरी कुळे निवस्या श्रराति ॥ राज भंडारे क्रिया प्रवेस | वांधि पोट ले चल्या प्रसंस ॥१४५॥ सुरंग महि ते आ जाय । नित प्रति सात विसन सुषाय ॥ प्रण ब्रूडि समद में गए पश्चाताप सेठ बहु कीये ॥४६॥ मेरे घर थी लछमी बहुत । ते में सौंपी भूत कपूत मेरी बुधि हरी करतार । भ्रमता फिरधा देस सार ॥४७॥ जे संतोष सों रहता बंठि । तो क्यों होती सुखसौं बैंठ ।। हुआ दeिst पहुंच्यां गेह रवी न घर में देवी ह ॥४८ |
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