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मुनि सभाषन्द एवं उनका पद्मपुराण
अवलाचला जात हो नीर । शासिने मारमा भर कर तीर ।। देही छोडि सही गति वहल । शशि को मारा सींग सोपल ||६४।। यह तो मरि मूसा अबतार । अबली जीव भया मंजार ।। बिलाव में मूसे कूमारि । यौही भ्रमे तिरजंच मझारि ॥६५|| स्यांम राम की दासी गेह । ताकै गर्भ भई नर देह ॥ राजा पीछ तबै सुनि धर्म । दिक्षा से काटे दुह करम ।।६।। पाया सनल कुमार विमान । ह्वा भी चये आसकी भान |
बैंवंती देस प्ररंजय नगर । सहस्र सूर्य के सेवक अगर ॥६॥ सगर के भव
तप करि गये स्वर्ग विमान | हां ते चई पाया इह थान ।। सगर नरेंन दोई करि जीरि । मेरे भव प्रमु कहो बहोर ||६॥ भोमर देस कुरंग नरेस । मुनिकों दान दिया बहु मेस ।। पाया अंत सुधर्म बिमांन । ह्वां तं चल्या चंद्रपुर प्रान ।।६।। दैत्यराय धारादे नारि । वित्ति कात्ति तमु भयो कुमार ।। आप तात दिक्षा पद लिया । बीत्ति कत्ति को राजा किया ।।७।। तिन भी तप कर मातम ध्यान । पहुंचा स्वर्ग लोफ पुर थान ।। रतनसंचय पुर क्षेत्र विदेह । महाघोष राजा के गेह ॥७१।। चन्द्राननी उरलियो अवतार । अविचल भया सुभट को पार ।। तप करि देव भया सुरलोक । पूरन प्राव भई मन सोक ||७२।। भरत क्षेत्र पृथ्वी पर बसे । जसोधर राजा के मन हस ।। जया नाम ताके घर प्रिया । जयकौलि पुत्र नाम कुल दिया ||३|| राय यशोधर दिक्षा लई । राज रिष जैकीर्त में दई ।। सुख में दिन बीते बहु ताहि । दिक्षा ली मुनिवर किंग जाय ।।७४।। पहुंचा विजय स्वर्ग विमान । ह्रां ते सगर भया तू प्रांनि ।। सकल भवांतर श्री जिन कहै । बारह सभा सुनत सुग्ब बहे ।।७।।
सोरठा सुनि पिछला संबंध, मन संसय सब का गया । सकल जीव प्रानंद । राति दिवस पालो दया ।७६१॥
चौपई समोसरण में सुख निधान । राक्षिस अविपति वें पहुंचे प्रांनि ।। भीम सु भीम बुझुन का नाम । राक्षस कुरिल आए इस ठाम ।।७।।