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नि सभाषद एवं उनका पद्मपुराण
मादितपुर नगरी का नाम । विद्यामंदिर राज तिषांन ॥ वेगवती रागी ता गेह 1 श्रीमाला पुत्री कंचन देह ||४७॥ श्रीमाला का स्वयंवर
अरके निमित्त स्वयंवर रचा। छत्र सिंहासरा बहुते सज्या || देस देस के भूपति श्राम | बैठे अपनी अपनी ठाय ||४|| राग रंग बाजत्र सुने। मंडपतल नरपति सब बने । कन्या ने कर माला लई राव सुमंगला कुंदरि संग भई ॥४६॥ लीन्ही घडी धाइने हाथ सब राजा का कहै वृतान्त || एक एक से घटता भूप । उनका कहां लौं वरनु रूप ||१०| नाभस तिलक मांड कुंडला । विद्यासा सुंदरसन भला ।। वज्रादरज और वा
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भानुकुमार राजा चंद्रान । नूपुरेन्द्र राजहंस बलवान ।। विद्याधर नरपति तिहो बने । नामावली कहां लो गने ।। ५२ ।।
चूहा देखे सब राजा श्राबली, कोई न माया दिष्ट ||
अपणे मन भूपति सकल, मान भंग चित भिष्ट ॥ ५३ ॥ चौपाई
कन्या गई फिर माला लई । भूमि गोचरो राजा में गई ।। राजकुंवर देखे फिरि नैन । विद्धि पास गई माला देन ।। ५४ ।।
माला देई गले में बाल । विजयसिंध कोप्या भुवाल || वानर क्यों आये इस ठांव । मस्यों करचा गर्व का भाव ॥। ५५ ।।
इन कही जाय फिरि गेहू । अबही मारि मिलाउं पेह ॥ राक्षस वंसी किससु कहो । भागों वेग जो जिया चहौ ।। ५६ ।।
जाउ तुरल बन अंतर रही। वनचर पं घर गयो रहौ ।। बोले किकं ग्ररु कुमार । सुकेस कहै कोष के शात्र ॥ ५३॥ सुमपंथी हम लंकापती किमपुर की सोभा भती ।। जैसे कौवा उडे आकास । तैनें तुम पंछी वनवास ||५८ || विजेसिव की प्राशा भई सेनां सकल एकठी यई || कोई छाय रहे श्रसमान । कोई घेर रहे उद्यति ॥५६॥
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