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मुनि समाचं एवं उनका पमपुराण
जे मूरिख कहिए अग्यांन । कुगुरु कुदेवई सेवं जान । मार कर होवे शूकर स्वान । खोटी जोरिण भ्रमै बहु अांन ।।१७।। नीची गति बहु भ्रमता फिरं । कबहुं न ऊंची गति में परं ।। जोनि लाख चौरासी संताप । कबहुँ होह गोह अरु साप ॥१८॥ भून न मिथ्या कीजे कोइ । जैन धरम तें सुरपति होइ । सूक्षम भेद कहें समुझाय । फिर पूछे पिछले परजाय ।।१९।। मुनिबर बोले ग्यांन विचार । बुडत जीव उतार पार ।। कासी देस भील इक रहे । वनमें जाय जीव बहु दहै ।।२०! मावस्थी नगरी का नाम । सुजसदस वारिणक सिंह ठाम ।। सुजसदत्त उपज्या वैराग। छोड़े विषय दोष अस राग ।।२१।। जाण्यों इह संसार असार । दिक्षा लई संयम का भार ।। करि बिहार कासी वन गया । तिहां जाय मुनि जोग जु दियां ।।२२।। नगर लोक आयो सब जात । मुनिवर दीस मैले गात ।। भील चस्या था करण महेर । बनमें मुनि देख्या सिंह वेर ।।२३।। परव भव का बर विशेष । मन मांहि बह प्राण्या क्रोध ।। मुनिवर ने सरसेती हत्या । देही छोडि देवता भया ।।२४॥ मुनिवर भया सौधर्म इन्द्र । सुरग लोक में गया सुरवीन्द्र ।। भुगत प्राय लीया अवतार । तडित केस तू भया कुमार ।।२५।। भील मुत्रा नरक गति लही । वहुरवो तिण खोटी गति सही ।। भ्रम्या जोनि बहला दुख पाय । अब इह वादर हुया प्राय ।।२६।। पूरन भय का इह संबंध 1 रुद्र प्रणाम कुगति का बंध ।। सुरगी बात संसा सब गया । दया भाव अन्तर्गत भया ।।२७।। सुकेस पुत्र को दीया राज । प्रापरिण करचो मुक्ति को साज ।। महोदषि किषलपुर धनी । सुरगपुरी की सोभा बनी ।।२।। धौल अंबर विद्याधर प्राय । महोधर बसौं निचरण कराय ।। विनती करें दोय कर जोडि । सुनौं प्रभुजी कहूं बहोरि ।।२६।। तइतकेस लंका का भूप । दिक्षा लई दिगम्बर रूप ।। तुझ उसमें थी मधिको प्रीति । सुकेस पुत्र वालक भयभीत ।। ३०॥ लंका का भी साधो काज । जब वह चेते तब दीज्यौ राज ॥ राजा सुरिंग घोलेसत भाव । सिंघ पुत्र को कहा उपाय । ३१।।