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फ्यपुरात
चतुर्थ संधि पानर वंश वर्णन
चौपई फिर अंगिक कीयो परसन्न । वानरचंसो की उत्पन्न ।।
श्री जिनजी की पाणी भई । मन संसय सब की मिट गयी ।।१।। विजयारष गिर दक्षिन पोर । सरग लोक सम सोमै ठोर ।। मेघपुरी नगरी इक नांब | अतेंद्र भूपती को तहां ठांच ।।२।। मंदिर सघण वणे सच्चंत । उत्तम सोग बसे गुणवंत ।। प्रत्येंद्र राजा प्रति बली । श्रीपती जग मानें रली ॥३॥ श्रीकंठ ताक गेह । रूपवंत कंचन सम ह ।। विद्या पढी भया उर ग्यांन । ता सम तुल्य न पंडित यांन |V|| चौथी घेवी पुत्री भई । लोयण मृग कति शशि मई॥ सकल रूप जो कहुं समझाइ । सामोद्रिक के जानो भाइ ।।५।। रतनपुरी पुहपोत्तर भूप । जा घर राणी अधिक सरूप ।। पद्मोत्तर सुत वाके गेह । लक्षण करि करि सोभ देह ।।६।। अतेंद्र पास तिरा भेजा दूत । विनती आप लिखी सुबहुत । पनोत्तर सुरमोरा गुनी। कन्या देक चढायो मनी ।।७) प्रत्येंद पूछया श्रीकंठ । करी सगाई लिष दिया संठ ।। प्रोनंद भया दुहुँ भूपती । करै वषाई जागी रती ।। यों ही बीत गये दिन घने । लगन काज सुत सौ नृप भने ।। रची सौज करि दीजे व्याह । पुत्र पिता की मानै नाहि || कहँक यासों प्याई नहीं । पमोत्तर सुनि चिता यही ॥ मोमै कहा लगाई खोर । उन विचारी मनमें और ॥१०॥ पहपीत्तर पद मौत चितवं । निस यासर हा हा योलवै ।।
अन्तर्गत मन राख बर । दाब वन तो मारू घेर ॥११।। कन्या को सुन्दरता
विद्याधर सब गये सुमेर । पूजन चले न नागी देर ।। पुहपोत्तर की तहां पूतरी । सकल कला गुण लादण भरी ॥१२॥ रूपवंत ज्यों पून्यू चंद । घटै बघे यह सदा अनंत ।। दीरष नयन श्रवण सों लगे । देख कुरंग बन मांहि भगे ॥१३|| दंत चिमक ज्यों हीरों की ज्योति । मस्तक कपोल प्रथ्वी उद्योत ।। नासा भौंह बनी छवि धनी । बनी कोर्स न जाये गिनी ॥१४॥