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इन्द्र विचारी यह मन मांहि । ए चारित्र दिखाया ताहि ॥ तात उत्तम दिक्षा पद लह्या वज्रकंठ का संसा गया ||६० || इन्द्रवद को दीया राज । प्रापण किया मुक्ति का साज || इन्द्रप्रभू इन्द्रमति मे । समंद समीर रविप्रभ और ॥ ६१॥
रविप्रभ जोगीस्वर मया । राजभार अमरप्रभ दीया ॥ अमरप्रभ परतापी खरा । या सम तुल्य न कोई नरा ॥३६२॥ त्रिकुट राजा लंकापती । ता घर राणी सौभावती ॥ तां गर्भ कन्या गुणवती । रूप लक्षण सोभा बहुवली ।। ६३ ।। अमरप्रभ भेज्या विप्र । नालिपुंरंग लिख दीया पत्र || गुणवती का मंगलाचार | श्रावो लंका स्यों परिवार ।। ६४ ।।
अमरप्रभु मन भया श्रानंद । वाजित्र बाजें सुख का कंद ॥ रस रली त्याची चोक
|| ६५।।
किये चितेरे बहुत अनूप सकस भांति के मांडे रूप || वन उपजन के रूख बनाय । कनक कलस चोखूंट घराय ।। ६६ ।। सुघट त्रिया मिल प्रधा चौक । कपि के चिह्न किये बहु थोक || आई जान नगर के पास । साज बाज लाग्योणी भास ॥ ६७॥
पचपुराख
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वस्त्र आभ रु मोती लाल । दीये तुरंग हस्ती सुषपाल || टीका करि जनवासा दिया । भोजन वहुत जान को किया ||६| दई ज्योंरणार प्रति करि सनमान फिर प्राये मंडिप तिहि भांन ॥ सकल विभूत देखिए परी । श्रमरप्रभु दृष्टि कपि चिह्न परी ॥ ६६॥ कृषि कु देखि को बहु करचा । सकल हिदय भय बहुत भरया ।। गुणवंती बिग वंठी प्रान । अमरप्रभू बोल्या करि मान ॥७०॥ इह तो मंगलवार की वार । बांनर किम मांडे इस बार || सब के मन में चिता भई दुहुं बिरयां क्या वरा है दई || ७१|| ब्रह्मांन मंत्री था एक | जानें इनकी थापना बिसेष || उन बात कही समझाय । इह कुल कुशल चाहिए राय ||७२ ||
कुन पूजें हैं तुम्हारे कृषि | श्रीकंद ने इनको थपि ॥ तार्तं चित्र किये इस ठाय । इन दर्शनफल है बहु भाय ||७३ ||
इतनी सुरत कोष घट गया। मंगलचार दान बहु दिया ।। पूछी सब ब्योरा सू बात । रोमांचित हुवा सब गात ||७४ ||