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मुनि सभाधव एवं उनका पद्मपुराण
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विजयारच पर्वत उच्चंत । किन्नर गीत नगर निवसंत ।। धीधर जहां रहै सुनरेस । प्रादित्त स्त्री सोमै बहु भेस ।।२०१।। विद्य त पुत्री ताकै भई । रूप लक्षगा गरण सोभे मई ।। अमर राक्षस कुदई विवाह । भोग मगन रस करई उछाह ।।२०२।। गंधर्व गीत नगर शुभ ठोर । सरीसनाभ सम मपन और ।। भारण्या नाम राणी पट पनी । गांधर्ववती पुत्री सोभा बनी ॥२०३।। भानराक्षस कौं कन्या दई । क्रीडा भोग रिति मानै नई ॥ अमर राक्षस के देवराक्षस पुत्र । विजयाद्ध जीते सह सत्र ।।२०४।। भान राक्षस के दस सूत भये। पूषी षटग्यान गुन हीये ।। दसों बसाये दस ही देस । सुरगपुरी सम दीस मेस ।।२०५1। संध्याकार बसाया नगर । सबल मनौ लंकापुर अगर ।। मृनाल हंस हीर पुरिपोर । जोधपुरि समदपुरि की और ।।२०६।। देवराक्षस लंकापति राय । मनोवेग गति सोम ठाइ ।। मुप्रभा विवाही प्रसतरी । नंदीनाक पुत्र भया सुभ घरी ।।२०।। प्रोहनमती बिबाही नारि । भीमप्रभ पुत्र भयो अवतार ।। जोबन समय भयो विवाह । सहन त्रियासौं भोग उछाह भए पुत्र एक सो पाठ । बरणत सकल बढ् बहु पाट ।। ।।२०।।
चूहा भासकर पुजर नाम जित, संप्रति कीर्त्त सुग्रीव । वृहत्कीर्त नंदन सुनंदन, समुद्रसेन हयग्रीव ।।२०६ ।।
चौपई
चंद्रवरत भया महाराव । मेघ घबल ग्रह धवला नाय ।। नक्षत्र दमन मेघनाह भाव । घवल प्रभु बहु चढतं दाव ।।२१०॥ कीतिधवल को सौंप्या राज । प्रापण किया मुक्ति का साज ।। पाले प्रजा प्रभू कीरति धजल । घरमनीत सुरिग वारणी प्रबल ।।२११।। इति श्री पपपुराणे श्री अजित महातम राक्षस संबंधी ।
विधानक ॥३।