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मुनि सभाबन्द एवं उनका पद्मपुराण
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निरभयवंत राज ते करें । भूचर ऐचर सेवा करें । विजयारध पर्वत के पास । किनर गीत नगर का वास ॥१३॥ पतिमयूष तिहां बस नरेस । प्रांनमती निम सोहैं केस ।। सुप्रभा पुत्री तार्क भई । मृगलोचन कमलाननी थई ।।१४।। कीर नासिका सुभ्र कपोल । हीरादंत कोकिला बोल ॥ भुजा कलाई अंगुरी फरी । जंप केल सम काट केहरी ॥५॥ पंकज चरण हंस गति चाल । बेणी सोभा जेम बयाल ॥ टीका मेघवाहन का किया । लिष्या लगन सुभ दिन साथिया ।।६।। रहबरली में दुनिया iसना कीया नहुनर गाड़। हम गय वाहन दीये घने । चमर छत्र सिंघासन वने ||७|| जीत कौज भूपति नइ दई । तो मो नहिं वरण गई। बिदा होय चाले नरनाह । प्राये निजपुर अधिक उथाह ||६|| सुष माही दिन बीते घने । चमर छत्र सिहासन बने ।। भई गर्भ थिति सुप्रभा तने । महाराक्षस भयो उत्पने ।। ६811 महाराक्षस भया उत्पन्न । रूप कला लक्षण सुखन्न । ता पाछ हुमा सुत ओर । ससांक कुमार विराजे ठौर ।। सगर चक्री मेघवाहन भूप । परि पाभर्ण भधिक अनूप ।।१०।।
आए समोसरण जिनभान । देखत उपजे सुख दिनांन ।। 'नमस्कार करि विनती करे । कर जोडि मस्तक भू धरै ॥१०१।। स्वामी कथा कहो समझाय । मन म्हारे का संसय जाय ॥ तुमसे पुरुष भौर भी भए । धर्म तीर्थ कौं उनके कीये ॥१०२।। तुमसा कोई ह है और । असुभ करम को डार तोडि ।। चक्रबत्ति केते व मूष । कामदेव है अधिक स्वरूप ॥ १०३।। नारायण केने बलिभद्र । प्रतिनारायण के ते रुद्र ।। श्री जिनवर भाष ग्रन समझाइ । बारह सभा सुरण मनलाय ।।१०।। उस्सर्पणी अवसपरणी काल । असठ पुरुष व चौथेफाल ॥ चौबीस तीर्थकर कामदेव । बारह चक्री नो बलदेव ।।१०।। नारायण प्रतिनारायण नौ। महारुद्र वे ग्यारह गिनो।। पहली हुमा जुगलिया धर्म । रिषभदेव परकांस्यौ मम ।।१०६॥ चक्री प्रथम भया ते भरत । कामदेव बाइबल समरस्थ ।। पंच कल्याण इंद्रादिक देव । पूजा कर चरण की सेब ।।१०७॥