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पचपुराण
काल तमा बसि सब भये, जोधा सुभट सुजान ।। सकल लोक पण जोतिया, या सम ली न प्रान' ।।१०।।
सोरठा चऋपति सूनि भेद, भोग सोग सब परहरे ।
धरयो ध्यान दिढ जोग, सब संसार मन ते तजा ॥१६१ रामा भागौरय का वर्णन
भागीरथ राजा किया, सगर भीम सह त्याग । दिक्षा ली जिणराय पै, मनमें धरि वैराग ॥१६॥
चौपई पाल प्रजा भागीरथ मूप । मुकट छत्र सिर बने अनूप ।। राज करत दिन बीते' पने । श्रुतसागर मुनि भाये सुने ।।१६३॥ मरपति के मन हरष अपार । घले जहाँ मुनि प्राण अधार ॥ नगरलोक चाले सह साथ । वनमें ध्यान घरचौ मुनिनाथ ॥१६४।। पाए निकट बंदना करी । साठि सहस की पूच्छी घरी ।। किरण कारण एकठे मरे । कहो कथा ज्यों संसप टरे ।।१६५।। मुनि बोले पिछला संबंध । ताथी हुछा करम का बंध ।। समेद शिखर चाल्यो क संघ । दंतपुर गांम देख मनरंग ॥१६६।। देखत लोग संघ को हंस । देखा गवि किसो तह बसे ।। कुभकार वरज तिज़ जात । इण ठां गया जीव नो घात ।।१६७॥ बात कही भीमानी नही । गांव माहि देही गज गही ।। पकड पछारे सगले लोग । मींड मांड सब कीन्हे फोक ॥१६८।। कुंभकार मरि वरिणवर भया । तप करि बहुरि राज सुत भया । तप करि फिरि पायो सुरथान 1 सो तु भयो भगीरथ पान ।।१६६।। साठि हजार सिंघ के जीव । सगर भूप सुत उपजें तीव ।। जात्रा मांहि सब का रया ध्यान । राजपुत्र ते हूये मान ॥१७०|| कारण पाए मुए इकठोर । अशुभ करम की मिटई न पोर ।।
सुनि भागीरथ कीयो नमस्कार | राज छोड ली दीक्षा सार ।।११।। संका का राजा महाराक्षस
महाराक्षस लंका का भूप । बन क्रीडा का देखन रूप ॥ सकल कुटंब लिया नृप संग । वन उपबन गुह गंभीर उतंग ।।१७२।।