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मुम समाचंद एवं उनका पपुलरा
आगई बहु होहिंगे मलेच्छ । वेहु वा मानि कर परोस । महागंगा ने फेरचं तिहाँ । कोइ न जाइ सकेगो वहां ।।१४४॥ विदा मागि गए कैलास । खाई खोदें चिन्न जलास ।। खोदी तिणं झंडी प्रति मही। धम धम बहु घरगेन्द्र सही ।।१४५॥ मनमें कोप्या मुख उठाय । सहलमुखी जिह्वा निकलाय ।। करी कार धूम आकार । अग्निझाल ते हुये वार ।।१४६।। मूए सब तब उबरे दोय । भीम भागीरण चित विसमय होय ।।१४७॥ सगर पास पाए तिण वार । सकल बात को कहों विचार ।। सुरिण वुत्तान्त महादुख भया ! से पीट कूटै हीया ।।१४।। हा हा कार नगर में होय । ऐसा दुखी न दूजो कोय ।। राजा अनुपात बहु करइ 1 ज्या ज्यों दुःख हिये उच्छर ।।१४।। समझा सब मंत्री लोग । इस मंसार संयोग वियोग ।। किस को पुत्र पिता परिवार । इस विभूति जल्ल पटल प्रकार ।।१०।। पुण्य संयोग लई बहु रिख । अशुभ उदय दुख लहैं प्रसिद्ध ।। स्वास्थ रूप सबै संसार । साथी नही पुत्र परिवार ॥१५१।। जब लग जीव तव्य सुखराज । जीव बिना कनु सरह न काज ।। राजा फेरि नगर संचरचा । मनतें दुःख न होने परा ॥१५२॥ माये समोसरण की सीम । राजा मगर साथ से भीम ।। श्री भगवंत का दरसन पाय । बहन भांति सों नवरा कराय ॥१५॥ देख भलीन बहुत मनमांहि । श्री जिनवर समझाव ताहि ॥ भ्रम्या जीव इह प्रादि अनादि । बिना परम नर देही वादि ।।१५४।। सब ऊपर पक फिरा काल । नोतन विश्व न छोडं बाल ।। बंच्या ऊठ्या जागत मैन । रोबत गावत दुचिते वन ॥१५५।। कायर सूर राव ने रंक । काहु को नहीं मरनें मंक ।। मूरिख पंडित तप प्रति जती । कान दया न पावै रती ।।१५६ , पूरण प्राव बीत जब जाय । बालक तमगा वृद्ध ने ग्वाय ।। काल समान बली नहीं कोइ । परि पछारत वार न होय ।।१५७।। स्वर्ग पाताल प्रनै मुवि लोक । मरवारथ सिध ली चोक । प्रागै नहीं काल की दीडि । मुकति थान निरभय है ठौर ।।१५८।।
तीरथंकर अस पक्रवत्ति, कामदेव वलिभद्र ॥ नारायण प्रतिनारायन, तपसी नारद रुद्र ।।१५६।।