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वा संबंध जोग जो श्राय । सुनि बात मन संसा जाय ।। नेमिवत ने दीक्षा धरी धरणेंद्र पववी पांई खरी ॥६६॥
विद्युत भी बिद्या पाइ । फिर कर यात्रा अपनी ठाय ।। राज करत बीते दिन अपने सजा
दिधरपुत्र ने सौंप्या राज । भापन किया मुक्ति का साज ।। स्वधरम प्रस्वध्वज भये । पदमनां पदमासी पये || ७१||
बूहा
पचरथ भी सिद्ध जन, सिंध मंत्र मृग घ ॥ मेसूर सिंघ प्रभू सिंहकेतु मन ह ||७२ ||
चौपई
शशांक चन्द्र श्री चन्द्र शेष 1 इंद्ररथ चक्रवर में विशेष
चका इन्द्र चक्रवत मनगवं । मनांक मनवास मन गुन सर्व ||७३ ||
पद्मपुराण
मनोज समन समेद्र केंद्र । मन सोम विजइ सोट ग्रानंद || लवाल घर रक्त उष्ट भूग । हरिचंद्र पुरचंद्र सरूप ।। ७४ ।। पूरण चंद्रभया काल इंद्र चंद्रमां चंद्र नूरवाचें इन्द्र है। उपन पंक केस वरराय । वृचुर चुर बजरचुर सुभकाय ॥७५॥ भर चुरा टका बाहुन जटी | वाहन ते मन हरष बग वटी || याही वंस भूप अति घने । करि तपु केई स्वर्ग देवता भए । केई मुक्ति रमणि में गए ॥ विद्याधर का करण्यास वरण सुनाये तीन्यु अंम || ७७ || इति श्री पद्मपुरा विद्याधर वंस वर्णन सम्पूर्णम् ॥1 तृतीय संधि चौपई
भ्रष्ट करम सब ने ||७६ ||
इक वंश दर्शन
इष्वाक वंस बरनु बहोरि । सुंनु बात चित मे राबो ठोर || घरनोथर जगधारन धीर । तोंविद संजपुत्र बल वीर ||१|| reater दिक्षा पद धरया । राजा त्रिवसंन को करथा ॥ इन्द्ररेखा बिवाह नारि रूप लछिन शशि की उनहारि || २ || तास गर्भ जितसत्रु भया । बहुत धानंद भूप मन ठया ॥ पोयनपुर सोमसी राय वानेंद्र भूपति तिस प्राय || ३ ||