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जब फिर आउं तव में लेव । इनही तुम राषौ सत देव || सत्यघोष कू सौंपें लाल । विनज निमित्त किया उन चाल ||४०|| ताकू बीत गये दिन घने । यो चित्त वित्र विचारघा मन में खोट खोया धरम लोभ की नोट ॥४१॥
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मंदिर अपने दिया ढहाय । और भांति के फेर बनाय ।। जो कोइ देखे सो भरमाय । च्यारि पौलिको भोरं भाइ ||४२ ॥
नेवित्त के बड़े जिहाज । फिरि श्राये लालों के काल ।। डूबी सब कछु चित न करी । जाती सत्यघोष में धरी ||४३|| लय रतन फिर करू व्योपार । बढ़े लक्ष धन होय अपार ।। सत्यघोष सतघने आबास नेमिवत्त देख्या तट पास ||४४॥ | रूप दलिद्री फाटे चोर । श्राय लग्या सागर के तीर |
सभा में प्राय चलायी बात । मैं सुपनां देव्या इा भांत ||४५ || एक रंक मुझ सों यों कहे। मेरी थापना तो मे रहे ॥ मांगे रतन सुपने में धाय तिसका फल तुम द्यो समझाय ||४६ ।।
सत्यघोष के पास जाना
पद्मपुराण
नमित्त पहुंच्या तिहूं और
देखे मंदिर और ही और ॥
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नेमिवत ग्रावियो बहोरि ||४||
पूछी सत्यघोष की पौरि सभा मांहि नमित गया। सत्यघोष ने वंदत भया । सत्यघोष दे नहि ताहि । नेमिल ताहि रह्यो लोभाइ || ४६ ॥ कहै रतन मेरे तुम देहु । बोले वित्र पंचो सुरिए लेहु ||
मैं सुपना देख्या जह जात । सो तुम देखो अब ही वात ॥४६॥
राय सुहाली बोले सबै । धक्का दिये वणिक कु तबै ॥ नेमिव पहुंचो नृपद्वार । बे कर जोड करी पुकार ॥ ५० ॥ राजा से निवेदन
च्यारि रतन प्रोति कु दोये | कीजे न्याय तीन घरि हिये ।। राय कहे वह गतिलो कोय । सरयघोष थी ए मन होय ।। ५१ ।। दूरि किया धका दिन राय । धावरि मई को करें सहाये || राज सभात भया निरास । बसती छोडि फिर बनवास ||५२ ।।
रात रहे वृक्षन में जाय । च्यारि लाल निस दिन बिललाय |1 एक निस सुणि राणी ए बात बहोत दिन भए याहि विललात २५३॥