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________________ ३६ जब फिर आउं तव में लेव । इनही तुम राषौ सत देव || सत्यघोष कू सौंपें लाल । विनज निमित्त किया उन चाल ||४०|| ताकू बीत गये दिन घने । यो चित्त वित्र विचारघा मन में खोट खोया धरम लोभ की नोट ॥४१॥ I मंदिर अपने दिया ढहाय । और भांति के फेर बनाय ।। जो कोइ देखे सो भरमाय । च्यारि पौलिको भोरं भाइ ||४२ ॥ नेवित्त के बड़े जिहाज । फिरि श्राये लालों के काल ।। डूबी सब कछु चित न करी । जाती सत्यघोष में धरी ||४३|| लय रतन फिर करू व्योपार । बढ़े लक्ष धन होय अपार ।। सत्यघोष सतघने आबास नेमिवत्त देख्या तट पास ||४४॥ | रूप दलिद्री फाटे चोर । श्राय लग्या सागर के तीर | सभा में प्राय चलायी बात । मैं सुपनां देव्या इा भांत ||४५ || एक रंक मुझ सों यों कहे। मेरी थापना तो मे रहे ॥ मांगे रतन सुपने में धाय तिसका फल तुम द्यो समझाय ||४६ ।। सत्यघोष के पास जाना पद्मपुराण नमित्त पहुंच्या तिहूं और देखे मंदिर और ही और ॥ I नेमिवत ग्रावियो बहोरि ||४|| पूछी सत्यघोष की पौरि सभा मांहि नमित गया। सत्यघोष ने वंदत भया । सत्यघोष दे नहि ताहि । नेमिल ताहि रह्यो लोभाइ || ४६ ॥ कहै रतन मेरे तुम देहु । बोले वित्र पंचो सुरिए लेहु || मैं सुपना देख्या जह जात । सो तुम देखो अब ही वात ॥४६॥ राय सुहाली बोले सबै । धक्का दिये वणिक कु तबै ॥ नेमिव पहुंचो नृपद्वार । बे कर जोड करी पुकार ॥ ५० ॥ राजा से निवेदन च्यारि रतन प्रोति कु दोये | कीजे न्याय तीन घरि हिये ।। राय कहे वह गतिलो कोय । सरयघोष थी ए मन होय ।। ५१ ।। दूरि किया धका दिन राय । धावरि मई को करें सहाये || राज सभात भया निरास । बसती छोडि फिर बनवास ||५२ ।। रात रहे वृक्षन में जाय । च्यारि लाल निस दिन बिललाय |1 एक निस सुणि राणी ए बात बहोत दिन भए याहि विललात २५३॥
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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