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पपपुराण
तब वे प्रगटे चंदरभान । प्राश्चर्य भया सब के मन मांनि ॥२१२३ बूझ बचन प्रमान सुवात । अवधि विचार कही बहु भांति ।। पूरब भब देखि विदेहु क्षेत्र । इनका प्रथमई परि उद्योत ।। रवि प्रताप ग्रीषम बहु होई । निशा शीतल शशि ही की लोई ।।२१३॥ तब ते जानौं सूरज चन्द्र । समझया सोग भयो प्रानन्द ।। जसाषी नवमां । यसमा अभिचंद १० एकादश चंद्रान कुलनं। २१४ ।। महदेव १२ प्रसन्न सेनजित व १३। नाभिराय १४ चउदहा कुलदेव ।।
कोई कोई कालप वृक्ष रह्या । नवां नन सहज में भया ।।२१।। अन्तिम कुलकर नाभिराजा
सोबन मिंदर सह रत्ने जड़े । देषत सुषसों गह भरे ।। नाभिराय जगत मूपत्ति । महदेवी राणी सुभमती ।।२१६।। पंकज चरण अरुण छवि घनी । नष की क्रांति चंद्र दुति हूनी। अति कोमस कदलीदल जंघ । मानों मकरध्वज के धंभ ॥२१॥ नेवर सबद हंस की चाल । मोती जडित पदारथ लाल ॥ फुनि कटि पीन सिघ कोहरी । रहै वोह वन में सुधि हरी ॥२१॥ कंचुनो झलकित सोभई ठोर । तिन की पटेतर नाहीं और ।। कंठ कपोल कंकन सुदरी । सुदर निमोलिक मरिण जडी ||२१६।। फुल कर्ण जोति निर्मली । सभा सकल विराज भली ॥ वदन पटतर कोई नहीं चंद । दशम जोति जानू कलिकंद ।।२२०।। अति सुरंग मुख बिना तांबोल । बानी सरस कोकिला बोल ।। कीर नासिका बेसर चुनी। मोतिन की सोभा छबि पनी ॥२२॥ दीर्घ नयन कमल की भांति । तिनको सोभा कहै किस मांति ।। सीस फूल सौभ बहु भाय । बेणी की छबी कही न जाय ।।२२२।। बर्न कबि गुन पार न लेई । सामुद्रक की सोभा दे ।
छह मास प्रगाउ छह भेष । नासन कंप्यो सुरपति देव ।।२२३।। मरदेवी रानी की सेवा
अवधि बिचारि समझियो इंद । ह्र अवतार प्रथम जिरणचंद ।। सोलहै देवि कुमारी टेर । मरुदेवी पे जाऊ इह बेर ||२२४॥ सेवा कीज्यो नाना भाति । गर्भ सोध कीजो दिन राति ।।