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मुनि समाचन्द एवं उनका पमपुराण
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माविनाष का माल्यकाल
दूध दही भ्रत रस की धार । पुजा र बे बारंवार । से पाए जिहां प्रादि जिणंद । कलम दानि मन भयो पानंद ।।२५४।। वन सूई से छेवे करणं । पहिराये बहते पाभरणं ।। कज्जल नयन मुख दिया तांबूल । कुडल रल परा अनमोल ॥२५॥ बाजूबंध माला ताईत । तातं होय दूरि भयभीस ॥ कटि करधनी पाय घुघरा । पहराये पुहपई सेहरा ।।२५६।। करि मारती भसतुति घनी। ते गुण सोभा जाय न गिणी ।। चले देव प्रमु कू सिर लिये । बहुत आनंद प्रेम सुष किये ॥२५७५ ॥ मख्खेवी नष दीया जिरवंद । तिहुँ लोक में भयो आणंद ।। धनुष पंचसय कंचन काय । लक्ष चौरासी पूरन प्राय ।। २५८।। सातिमा जना सामान ! पड़ने समान मापने थान ।। दुतिया शशि क्रांति ज्यों चढ़े 1 यो श्री जिनवर पल पल बहै ।।२५। जननी गोद जव ही लेइ । देष रूप मन सुष घरेइ ।।
लेकर पिता लगावै हियो । बहु प्रानंद उपजत हिये ।। २६०॥ शारीरिक सुन्दरता
कनक वग्न काया प्रतिबनी । नस्ल की जोति क्रांति दुति हनी ।। कोमल चरन केल सम जंय । कटि सोभे जिम के हरि सिघ ॥२६॥ कर पल्लव मुज बने अनूप । हृदं कंठ सोभा अति रूप ॥ वंत होऊ रतन की जोति । सुभ्र कपोल सु अति उद्योत ॥२६२॥ नामा कौर नयन प्रति बढ़े। मस्तक किरण जोति मित चढे ।। कोटि मान जो कर उधोत । तक न सर भर जिन की होत ॥२६३।। स्याम केश लांचे सुष कर्ण । अति सुगंध नीलांजन वर्ग । लक्षण सहस अठोत्तर बने । तो मुष गोचर जाहि न गिने ॥२६४।। बालक रूप देव के पूत । से ले प्रमु ज्यो आये बहुत ॥ रत्न चूर प्ररमजा कपूर । क्रीडा कर उडावं धूरि ॥२६॥ बहुत भांति के फेरै भेष । ते खेले बहु युगति बिसेष ।।
ऐसी जुगति बहुत दिन गए । श्री जिन जोवन पदई भए ।।२६६।। प्रादिनाय का विवाह एवं सन्तान प्राप्ति
नंब सुनंदा व्याही नारि । रूप सुलक्षण पशि उनहार ।। प्रथम पुत्र तातै उत्पन्न । बाझो भई भरत की बहन ॥२६॥