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पपुराण
छह रित सहै परीसहै काय । स्याम भुयंगम देह लपटाय । रही वेद : : सरीर या कोई रहन पार ६१. वर्षा काल वृक्षतल जोग । सीयाल तरनी जल जोग ।। उहाल परवत परि ध्यान । तपं चहुं था उपर भान ।। अंतर चिदानंद स्मु नेह । ममता रत्ती न रापी देह ।। ४१७.।
सोरठा मातम सों ल्यो ल्याइ, घरघो ध्यान चिद्रूप को । असुभ करम मिटाइ, केबलग्यांन पाया निकट ।।४१८॥
धोपई भरत नाही पर मुबरी । ममवरण पहुंचे तिह धरी ।। नमस्कार करि पूछे बात । बाहूबल सह परीसह गात ।। ४१६ अंगुष्ठासिज छाडा तप करइ । प्रसुभ करम कब वाके षपई ।। केवल सब्धि लहैसी कब । मोस्यु प्रगट कहाँ प्रभु अब ।।४२०॥ श्री जिन बोले ग्यांन विचार । उन राष्या सन्न में महंकार ॥ दोनों चरण धरा जब घरं । अहंकार तब दूरै टरै ।।४२१॥ उपजे केवन ग्यान तुरंत । पामें भवसायरना अंत ॥ प्रभू तणा सांभल ए बंग । भ्रात प्रत समभाव अंन ।।४२२॥ मांन गयंद थी उतरों वीर । क्रोध प्रगनि तजि हूजे नौरः ।। किसकी पृथ्वी किसका राज । भोसम बहुत कर गए राज ।।४२३।। केते ए होहि हैं घने । तिनकी गिनती कहां लो लिने । इह संसार सुपन की रिट । जाग्या कछुव न देख्या सिध ।। ४२४।। मन का संसय कीजे दूरि । पांव धरो धरती पर पूर ।। इतनी सुनि मन उपसम किया। पांच धरत ही केवल लिया ।।४२५।। टूटे असुभ करम सिंह बार । पहुंचे बाय सु मोक्ष मझारि ।। जोत जोति मिली तव जाय । अजर अमर पदई सुख पाय ।।४२६॥
वोहा बाहुबलि सब विधि बली, यस प्रगटचा संसार । ग्यांन सरीषी नाव चलि, पहंता भवदधि पार ।।४२७।।
चौपई भरत राज मुगले संसार । परथी भोग भूमि अनुहारि ।। पुत्र पारसे सोमा पनी । सूरवीर ग्यांनी गुन घनी ॥४२६।।