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मुनि सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
मारो देस मुंह मिल गये | अर्ज कुमार मारू कोयें ॥ सुनं सुर नर भए अडोल । सिलहों स भाले खोल || ४०१ || चहुं घांस छोडे श्ररु वान । तुपक गोली भरि मारे तांन ॥ बरछी षांडा लीन्हें हाथ । शुभं सूर पडै घरमांथ ।।४०२ ।। दुहुधा सूर सुभट जो लरई । श्रायुष टूटे धरती परई ।। जो सूर सुभट स्थी जुटं । बाथ बांध आपस में कहूँ ||४०३ || परं सीथ लानो परवंत ||
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जिसके छत्री कुल की लाज ॥४०४||
मैंगल सौं मैंगल संत झूम स्वामि धरम के काज
मैं घायल धरती पडे । गीघ्र लोबर गत में पहुँ । दुहुधा जुध भया बहुभांति हारिन न मानें दोकं आत ४०५ ||
तबहू सोच किया भूपती । कहै प्रजा की यह कुष गती ।।
प्रजा दुख देवे ब्रेकाज | हम तुम सनमुख झुझे आजि ॥ ४०६ ॥ सेनां को दुख काहे देम । हम तुम जुध मनमान करेह ॥ दृष्टि जुष याध्या बहुं ओर लगी दृष्टि ज्यौं चंद्र चकोर ||४०|७|| भरत से बाहुबलि धनुष पक्षीस | ऊंचा घरणां करें को रीस ॥
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हारचा भरत जब जल जुध होय । बाहुबल जीत्या वार दोय || ४०८ ||
मुष्टि जुध वापिया बहोरि । लथ पथ हारे माची गैर ॥
बलि लीया भरथ ऊचांई । भरत मान भंग हुवा राइ ||४०६ ॥
बाहुबलि कर मनौहार हम थे बाल तुम उठाए बहुवार ।। इस कारण तुम लीए उठाय । घूलन लगी तुम्हारी काय || ४१०|| मुष्ट युद्ध फिर थापी बात | पहली भरत करीउ संघात ॥ पार्थ बाहुबली संभारि । मुष्ठि उठाई उतनी बार ।।४११।।
तब मन में आया इह स्पांन। बड़ा और ए पिता समान || जो भाई पर कीजे चोट तो सिर चढ़ पाप को पोट ।।४१२३। बाहुबली द्वारा विजय के पश्चात् राग्य लेना
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कर उठाए जो रीता पई । सूरवरत ग्रब मेरा टरे ॥
भरी मुष्ट कर लुचे केस । बाहुबल भए दिगंबर भेस ।।४१३।। एक अंगूठे के घरि जोग । अचिरज भए देख सब लोग ।। सह परिस्था वाचीस अंग । ग्यान लहर की उठ तरंग || ४१४|| वारह प्रेक्षा नो सोचित । लोक सरूप विश्वारं नित || पंच महाव्रत समति जु पांच । मन बच इंद्री साधी बांचि ।। ४१५ ।।