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मुनि सभापंव एवं उनका पमपुराण
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भरत भूप साधे छह पट । देव दानब 4 कीया दंड ।। प्रापे मजोया देस सक जीत । चक्र न चल भई मन चित ॥३७१।। कवरण देस स्पायौ विन रक्षा । तत्र मंत्री सब व्योस कया ।। निन्याण तुम्हारे वीर । इत्तादेस मगत बलवीर ।। ३७२।। रहई एकाठा बहुत सनेह । रूपवंत कंचन सम देह ।। गों नहीं तुम्हारी कान , पायी चळ मा यांन ।।३७३|| ऐसी सुनिकर भेज्या दूत । उनको वह समझायों बहुत ॥ सेवा करो मान मुझ मान । मंत्री लिष भेज्या फरमान ।।३७४।। गया दूत कागद दे हाथ । मुष सों वचन कहै वह भाति ।। भरत पक्रनत बाइबली । तुम सेवा करी तास की भली ।। ३७५।। प्राग्या मानह लेवरी । तुम निचंत क्यू' बैठे घरी ।। अब तुम चलो हमारे साथ । चलो वेग पगलाबो मरथ ||३७६।। इतनी मरिणते भण कुमार | भरत राज भुगत संसार ।। हमने देस पिता ज दिये । ते भी चुभई भरत के हिये ।।३७७।। जइवह प्रजहुन विपत न भया । तो ए लेष्टु सब एह हम दिया । छाजिरिधि ते गए कनिलास । दिक्षा लई पिता के पास ॥३७८।। फिरया दूत भरत पं गया । सब ब्योरा सेटी करनया ।। भरत सूण्ा वे हुवा जती । क्रिया सोष मन में बह भत्ती ||३७६!! दूत वयण बोलीया कटोर । उनकै मन का बठी मौर।। वार वारि भरत पछताय । तोउं ने चक्र मढ़ भीतर जाय ।।३८।। फिरि मंत्री पूछे सुबुलाय । कह मंत्री सुनि पृथ्वी राय ।। बाइबलि पोवनपुर धनी । ताके संग सन्या है धनी ॥३१॥ बह यामा मानत है नाहि । ताथी पक्रन बलहि ठाम ।।
इतनी सुनि भेजीया वसीठ । सूरा सुभट वचनां दीठ ।।३८२।। पोदनपुर का भय
पत्री लेकर घाल्या कोल । गया पोषणयुर न लाई ढील ।। देष्य' नगर सुषी सब लोग । कीजे पान फूल को भोग ।।३८ ३।। ऊंचे मंदिर सब इकसार । ढूढता पहुंला राजदरबार ।। सौंपा पान पर घर के बीच । पीनातली गलीयां में कीच ॥३४॥ घर घर नारी जारिग प्रपछरा । राजमहल सब सेती षरा ।। पोलयान देष्या दरबार । ते सोमं मूपति अनुहार ॥३८॥