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पपपुराण
बहुरगो दूजी नंद रूप सौं भरी। रूपबंत गुन लावण्य परी ।। गर्भ ताहि पुत्र सौं भए । काहिं करम सो मुकतिहि गये ।।२६८।। प्रथम माहुबलि पाछे और । तार्थ सकल रिद्ध दई जोडि ।।
अवर भई पुत्री सुन्दरी । सील रूप प्रति शोभा भरी ॥२६॥ राज्य प्राप्ति
माभिराय प्रभु प्रायस किया। राजभार रिषभ नै सोपिया ।। कलपवृक्ष सहु गए बिलाय' । सहु लोक की खुध्या न जाय ।।२७०॥ ताका भेद न पाव कोइ । भूष प्यास दुष दूर हो होइ आये नाभिराय के द्वार । हम किम जी- प्रागा अपार ॥२७१। तश्च थे कलप वृक्ष संसार । मनसा भोजन करत आहार ।। अब वे कलपवृक्ष हैं नाहीं । हमरा किम होवै निरवाह ॥२७२।। नाभिराय की धाग्या पाय । स्विमवेव में बिनचे प्राद।। मननी बात कहैं सब लोग । कैसे जीव का मिटै वियोग ।।२७३।। राजा में सब लिये बुलाय । सकल लोक ने पुछ राय ।।
सुनि परजा दुष किया विषार । उदिम बताय किया उपगार ॥२७४।। तीन वरों की स्थापना
महा सुभट ते क्षत्री किया । षडग बंधाय सूर व्रत दिया ।। धरम दया कोज्यो मन लाय । पापी दुष्ट मारो धाय ।।२७५।। रण संग्राम न दीजे पूठि । सनमुख अझज्यो डिगं न दीठ॥ स्वामी कार्य को दीजे प्रांन । ज्यू तुम पायो स्वर्ग विमान ॥२७६।। जे क्षत्री रण मैं से भजे । कुल कलंक लामै अनतजे ।। जे छत्री सहु पुर रक्षा करें । रसा साम्हों जाय के ल ।।२७७॥ निज परजात राई सुषी । दया करै नर देषी दुषी ।। वर्म दया करि यासौं ध्यांन । भक्ष अभक्ष तर्ज धरि ध्यान ।।२७८ जिनक हिये थी दयावी धनी । थापे दइस बनिक बुधि दिनी ।: दया दान किरिया सौं सुधि । पाप कर्म सों करें न मनी ।।२७६।। अवर जे नर थाई उत्सम भाव । जैसी ताहि बतायें ठाम ।। अविवेकी जे अपर प्रयान । लिगने श्राप्पे कर्म किसान ॥२०॥ हल जोति कर खेती करै । उपज साष रासि तब करै ।। होए अन्न भुगत संसार । उनको दिया इसा उपगार ॥२८॥