________________
परपुराण
नगर अजोध्या सवारो जाय । बारह जोजन की लम्बाई ।। चौडी नव जोजन के भाय । कनक भूमि की करियो ताय ॥२४॥ रतनवृष्टि फूलन की गिरेष्ट । बजे दुदुभि महा सिरेष्ट ।। कचन कोट रतनमई सार । मंदिर सस भुमिए संवार ॥२४२॥ ऊंची पतरी चित्र बहु बने । रषवाले तिहां ठाउं घने ।। चिहुं प्रवर वापिका गंभीर । तामें भरचा निरमला नीर ॥२४३।। प्रागें सूत रचे बाजार । चौडी नींव बडे विस्तार ।। सत्तषिया मंदिर सब किये । छत्री कलस रतन के दिये ।।२४४।। करो चितेरे देव कुमार । सुरग लीक की सी उनहार ।।
प्रजा सुषी बस सब ठौर । जे ते किसबदार है और ।।२४५।। प्रथम तीर्थंकर ऋषभवेव का जन्म
चैत्र बदी नौमी सुभ वार । उत्तराषाढ नक्षत्र सु सार ।। भयो जन्म जब जान्यो इन्द्र । मनमें बहोत किया आनंद ॥२४६।। प्रासन छोडि प्रदक्षणा दई । सबने मुकुट मणि नीची नई ।। जअं सबद भया जब षरा । सत्ताईस कोटि चली अपछरा ।।२४७१३ देव विमान छायो आकास 1 वरष पुष्फ सुगंध सुवास ।। नुत्य कर बहु गांव गीत । बाजे पटह दुंदुभी रीत ।।२४८।। ताल मृदंग बजाय बीन । गावं सुर जिन गुण परवीन । भयो कोलाहल सुरणे न कान । पाये नगर अजौंध्या थान ।।२४६।। नृप के द्वार भइ प्रति भीर । इन्द्रानी राज लोक के तीर । माया का बालक रचकर राषि । थी जिन सीमा बीनती भाष ।। २५०।। नीद घाई लीया चुराय । इंद्रानी ने चली उठाय ।।
ह्वां से निकसि इन्न को दिया । देष बदन हर्षित भति हिया ।। २५१।। अन्मोत्सव
सहस नयन करि देषं रूप । तोऊन त्रिपति सुरपति भूप ॥ बइठ गयंद मेरु ले गये । पांडुक सिला महोछव भये ।।२५२।। पीर समुद्र जल कंचन कलस । भरे नीर जे प्रासुक सर्स ।। सहस अठोत्तर इन्द्र जु भरे । प्रवर देव ले कंचन घरे ।।२१३।।