________________
मुनि समाचन्द एवं उनका पद्मपुराण
परजा सुखी बस सब लोग। पान फूल रस गोरस भोग ।। घरि घरि पूजा सुनै पुराण । घरि घरि सुनिए अर्थ बषान ॥५६। श्री जिन मन्दिर बने उतंग । फरहर धुजा गगन के रंग ।। इन्द्र चन्द्र सुर वासा लेहि । सुरगपुरी सम सोभा देइ ।।५।।
सोरठा
बार बार कर सोच करि, विचार राजा श्रेणिक रह ।। हुवैई जनम बहोरी, कथा सुनु रघुधंस की ॥५॥
चौपाई कुलपुर नगर
कुंडलपुर सिद्धारथ राव । महापुनीत जगत में नाउ ।। सोभा नगर न जाद गिनी । सुरगपुरी की शोभा बनी ॥५६॥ दुःली दलिट्री कोई न दीन ' पंडित गनी मालती :: हाट बाजार चौहटे बने । शोभा सकल कहाँ लो भने ।।६०|| वाग बगीचा महल' आवास । दीस सकल पास ही पास ॥ रितु रितु के फल लागे फूल । तातै रहे पथिक जन मूल ॥६१।। उछल जल झरना झरे । निर्मल नीर सुष विस्तरं ॥
बैठे राज सभा तहाँ ठोर । भूपति तहां विराज ओर ३॥६२।। सिद्धार्य एवं त्रिशला रानी
महा सुभट छत्री हू सूर 1 ग्यानी गुनी ग्यान भरपूर ।। नुप की भाग्या सिर पर पर 1 कोई नहीं उपद्रब करै ।। ६३॥ प्रजा सुखी कर बहु भोग । पुन्य वन्त निबस सब लोग ।।। च्यार दान दे वित्त समाज । षट् दर्शन का राखें मान ।।६४ ।। विसला दे राणी गुणवंत । रूप लछिन सोम बहु भांति ॥ पतिव्रता प्राग्या मैं खरी । सील बंत गुन लावण्य भरी ।।६।। वरनन करि गुन पार न लेइ । सामोद्रिक की सोभा देई ।।
सुस्त्र में सुती सेज मंझार । सुपन सिंध पाई एक बार ॥६६॥ माता द्वारा सोलह स्वप्न देखना
सोलह सुपना नाना भौति । एक महतं पाछली रात ।। प्रथम गयंद इक कंची देह । यावत देख्यो अफ्नो गेह ॥६७।। दूजे सिंह गर्जना करे । गज मयमंत देष बल हरे ।। लषमी देखि हषत भाति । अनंत विभूति सोम बहु भाति ।।६।।