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मुनि सभाचंद एवं उनका पयपुराण
काहै इन्द्र ने हम बसि कीया । अागन्यां बांधी अटक मैं दीया। नवग्रह बांधि कराई सेव । स्वर्ग लोक के जीते देव ।।१७१।। इह आश्चर्य मेरे मन घणा । इसा बचन मिथ्याल का सुन्या ।। इंद्रदेव का स्वर्ग निवास । नवग्रह रहैं इन्द्र के पास ।।१७२।। तिहां रांबन पहुंचा किस रीत । इन्द्रजीत ने बांध्या जीत ।। इह पृथ्वीपति भुवि परि रहै । किस विध जाय इन्द्र में ग्रहैं ।।१७।। जो सुरपति को मन मांहि । रावण में भसम करे छिन मांहि ।। जा के बल को त न पार । वास कौन प्रडे झुझार ।।१७४।। जे ते लरं ते सबह मरे । तो इह सत्य वचन जिय धरै । नवग्रह काहै स्वर्ग विधाम । वे केम कर आइ इहां काम ।। १७५।। कुभकरण में कहैं बहु सूर । नींद छमासी सोवै सूर ।। बजे दमामा बल सरणाय । कैस नाद ऊपर व जाइ ॥१७६३॥ तेल भरघा कढाह प्रवटाई । दोहु कान में देहो लुगाय ।। तोउ न जागे एरण उपा६ । जे उह जाग किस है भाम ||१७७।। भूष षट्मासी कहियन जाय । जोकु दृष्टि पडे सो षाय । हाची घीठे ऊंट मिल जाम । तोउ न झुधा उदर की समाह ।।१७।। इह से मेरे मन उचै । काचा मांस वाहि किम रुच ।। काचा मांस न पावै विडाल । केम भप प्रश्वी भूपाल ।।१७६॥ जाग्यो राय विचार एह । श्री जिन ते भाज संदेह ।। वीती निसा उदय भयो भान । बजे बाजिन पुरै निसान ।।१०।। सकल लोग उठे प्रभात । करि सनांन मुमरण बहु भांति ।।
अपने अपने दिम लगे । बाल वृद्ध सब ही जगे ॥११॥ श्रेणिक को राज सभा
भूपति आभूषण सव साजि । पट्ट बैटा तबै थेगिवा राज । देस देस के भूपति पाइ । नमस्कार करि लाग्या पाउ ।। १८२।। राजसभा में भूपति घने । नामावली कहां लग गिने ।
राजा वचन कहै सो प्रमाण | चलो करन दरसन भगवान ।।१३।। समवसरण की मोर प्रस्थान
सह परिवार गमन तब किया | अस्व गयंद बहुत सा लिया। के घोडा के रथ के सुषपाल । हस्ती पर बैठा भूपाल ।।१४।।