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पद्मपुराण
मोती लाल गनां और चुनी । राजद्वार महिमा अन्ति एनी ।। भली यस्तु जो राजा लेई । मुह मागिया दाम गिरण देइ ।। ४२।। कहीं बजाज बजाजी करें। सत्य बचन मुख ते उच्चर। कहीं जरवा फजिरी सिकलात । नरमो नारंग नानां भांति ।।४।। निरमंयंत कर व्यापार । घर वेसुरी पर साहुकार ।। कोठीवाल करै यौहार । जिनके कनिज बडे विस्तार ॥४४॥ हापौ दिए जाय जिहाज । ल्यावं दर्व धर्म के काम ।। जेले किसबदार हैं और । बैठ सकल विरागैठौर ॥४५।। नगरी निकटं उपवन बने । कूप वापिका जलहर घने ।। प्रति रमणीक मनोहर खरे । जान गंगा जल सौं भरे ।।४६१ मंदिर माहि बैठिक बनी । झरणा झर सीतलता पनी ।। मलखलाद सौं जल नीसरं । उचई उछल भूमि पर परं ॥४७।। तिहाँ बाइठा राजकुमार । गुनिजन गा राग संवार । अब ज क पा सुप। बड़े दुरापार पी लहू ।।४।। किंचित् कहू वृक्ष के नाम । गुनि जन समझो नाना भाव ।। सघन रुष बहु फूले फले । जानू गूथ बनाये घने ।।४६।। पत्र बंध सौ सोमै केलि । पाडल चढ़ी चमेली बेलि ।। अब बिजौरा निवू नरिंग । दाडिम दास बेलि बहुचंग ॥५०॥ फल फूल उत्तरै अति घने । पंछी खाय न बरजई जने ।। सकल जाति के सौम रूस्त्र । वास सुगंध लागे भूष ॥५१॥
सोरठा
कमल सरोवर कूल, सबजी जात अनेक विष ।। अमर सुरग सुष मूल, राति दिवस निवस तिहां ॥५२।। पंछी तिहां अनेक, बौल सबद सुहावने ॥ जहां तहां द्रुम बेल, माइ बसेरा लेत हैं ।।५३।।
. चौपई पैसा नगर बस सुभ थान । श्रेणिक राय तपै ज्यो मान ।। चेलणां दे रानी पटपनी । मानु फनक कामती बनी ॥५४॥ सीलवंत गुण लक्षण ईश । भानू इन्द्राणी जीत सनीश ।। सम्यक् दृष्टि कोमल वित्त । देवगुरु शास्त्र सेवई नित्त ।।५।।