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पमपुराण
ले प्राए जहां बीर जिणंद । ढारि कलस मन कीया पानंद ।। चन सूई सौं छेदे कान । काजल नैन सहर्ष मुख पनि ॥१२॥ देव पुनीन बस्त्र सुभ रंग । पहिराये श्री जिनके अंग ।। रत्न जडित कुंडल दोई कान । वाजु बंध ताइत उर आन ॥१०३।। माला और आभूषण बने । बहुत शृगार श्री जिनवर वणे ।। कटि करधनी पाए घुघरा । पहराये फूलों के सेहरा ॥१०४॥ करि पा . दि गई है। दरन खा मन सुष बढे ।। चले देव प्रमु कू घर लीयें। अति प्रानन्द परम सुष किये ।।१०५॥
सोरठा राष्या सबका मान, जो गुन गावं जिन तणे ॥ कीयो जन्म कल्याण, सुरपति सुरथानक गये ।।१०६।।
इन्द्राणी किनर सहित, कीने बहुत प्रानंद । विसला देई गोद में, श्री दीनां वीर जिणंद ॥१०॥
सोरठी वर्ष बहत्तर प्राय, कही जोतिगी समझिक ॥ सप्त हाथ समकाय, श्री जिए सव जग तिलक ||१०८।।
चउपई ज्यों दुतिया शशि चढे कांति । यौं दिन दिन बाढ़ जिननाथ ॥
सेवा करें देवता आइ। बालक रूप धरै बहु भाइ ।।१६।। महावीर द्वारा वैराग्य
अनुक्रम जोवन पद मई । पुन्य विभूति चौगुनी लई ।। बरस तीस बीते बलवीर । सब गुन ब लेइ सरीर ।।११।। मनां सिंघासन कंचन घाम ! व्यापा सकल न व्यापा काम ।। सहज विचारों लोक स्वरूप । भम्यों जीव नाना धरि रूप ॥१११।। अति वैराग चिमक चितकरी । सुर लोकांतिक स्तुति करी ॥ धनि धनि कर वे जजकार । सिवका आन धरी तिण बार ॥११२।। प्रम मारुद्ध भए सुषपाल । छोडि दिया माया बंजाल । सिवका चदि नंदन बन गए । उसरि पालषी ठाठे भए ॥११३॥ सिद्ध नाम से सूखे केस । श्री जिन भए दिगम्बर भेस | माए इंद्र अमरपति घने । नंदै विग्धे जै जै धुनि भने ॥११४।। कीने तप कल्याणक सार । मंगसिर बदि दसमी सुभबार ।। रत्न पिटारी केस उठाय । लए देवनें समंद सिराय ॥११॥