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मुनि सभानन्य एवं उनकी पत्मपुराण
विना जीव जानू बोले बैन । देषत होइ महा सुप चन ।। जा अन्तर पनहर घनघोर । बरस रतन डोढ है कोडि ।।८।। जय जय ध्वनि छायो प्राकास | वरवं पर्प सुगंध सुवास ।। गज पट्टल विजुली उद्योत । अंतर मनिक दिवस सा होत ।।८६।। हरति भूमि जल उपरि तिर । भरे तनाव मंडि करि फिर ।। किनर छपन अंत है पुर आइ । नमसकार कर लागी पाइ ||७|| कोई कर वीमनां बाय । सेवा करें घेरे मनु ल्याय ।।८।। तेल फलेल सबारे केस । कोई सही बनाये भेस II८६ कंचन भारी जल भर ल्याइ । और दांतण करावे प्राय ।। कोई बना घर भरि पान । बीडी करि षुवावं प्रांन ॥६॥ पोर जे सेबग ताकी ठोर । सेवा करि बिराज और ।।। जैसे कमल पत्र पनि नीर । यो विरघई सोही धीर | जांनु भानु बदर झांठयो । जानु सीप स्त्रांति बलदीयो ।। इह विध सो नगरी मैं गए । घर घर रली बधाई भए ।।२।।
पूजा करै देह नित दांन । असे भमा गर्भ कल्याण ॥ महावीर जन्म
चैत्र सुदी तेरसि कौं रली । नक्षत्र चित्रा किरयां भली ।। १३॥ भयो जनम जान्यों जब इद्र । ऐरापति साजियो गयंद || आसण छोरि प्रदिक्षणा दई । चले मुकुटमरिण नीची नई ॥६४।। जं जं सबद कर कर जोर । किनर चले सत्ताइस कोडि ॥ छाम रह्यो अाकास विमारग । नत्य करें गावं गुणगान ||५|| चार्ज पटह ददुभी घोर । करि करना इन फेरी जोर ।। मधुरी घुनि बाजे मृदंग । नृत्य करत मोई बहुमंग ॥९६|| भयो कउलाहल सुनै न कान । पाए कुंडलपुरी मीलांच ॥ नुप की पौरि भीर बहु जुटी । इंद्राणी अंत हैपुर बढ़ी ॥६॥ मांया का करि बालक घा ! श्री जिने व इंद्रानी हर्या ।। नींद उपाई लई चली गोर । बालके तिण डारि तोडि ||८|| हो त निकाल दियो पति गोद | निरखि रूप पाबो मन मोद ।। इंद्राणी पुगी मन रली 1 गावं मंगल विरया मानी RELI बैठ गयंद ले गये मेर । पंक सिला थापि तीड़ बेर ।। षीर सुमुद इंद्र सुर गए । कंचन कलस मीर भर लिए १००| सहस अठोसर इंद्र के हाथ । और भर भर ले पाए मा ।। दूध दही रस चुत की धार । श्री जिन पूज्या बारंबार ॥१०१।।