Book Title: Jain Samaj ka Bruhad Itihas
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान - द्वितीय पुष्प जैन समाज का वृहद् इतिहास प्रथम खण्ड (20 वीं शताब्दी में होने वाले जैनाचायों, मुनियों, विद्वानों, श्रेष्ठियों, अखिल भारतीय संस्थाओं एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों के इतिहास के साथ-साथ पूर्वाञ्चल प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मालवा, उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण भारत के सामाजिक इतिहास एवं 800 से अधिक यशस्वी समाज सेवियों का सचित्र परिचय) . लेखक एवं सम्पादक इतिहासरत्न डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल . प्रकाशक . जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान किसान मार्ग, बरकत नगर टोंक रोड़, जयपुर Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक की ओर से "जैन समाज का वृहद् इतिहास" को पाठकों के हाथों में देते हये हमें अत्यधिक प्रसन्नता है । जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान का यह द्वितीय पुष्प है। इसके तीन वर्ष पूर्व "खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास" संस्थान का प्रथम प्रकाशन था। संस्थान की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक इतिहास को प्रकाशित करने एवं जैन धर्म के प्राचीनतम एवं पाक ऐतिहासिक २९.५ को देश के हजारसज्ञों के सामने प्रस्तुत करने के उद्देश्य से अप्रैल सन् 1985 में जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान की स्थापना करने का मन में एक संकल्प जगा । प्रारंभिक तैयारी के पश्चात सामाजिक इतिहास लेखन का कार्य प्रारंभ किया गया तथा 3-4 वर्ष के सतत परिश्रम के पश्चात् सन् 1989 में खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास प्रकाशित किया गया । इतिहास लेखन के कार्य को आगे बढ़ाया गया और तीन वर्ष तक रात्रि-दिन इसी कार्य में लगकर सम्पूर्ण जैन समाज के इधर-उधर बिखरे इतिहास के पृष्ठों को एकीकृत करके समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। समाज के इतिहास का इस प्रकार का कार्य प्रथम बार हुआ है इसलिये इसमें कुछ कमी रहना स्वाभाविक है। आशा है इतिहास वेत्ता इसे उदार दृष्टि से देखेंगे। प्रकाशन के कार्य में समाज के सभी छोटे बड़े समाजसेवियों में से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा की गई और मुझे लिखते हुये प्रसन्नता होती है कि अधिकांश समाज सेवियों ने इतिहास लेखन के कार्य की प्रशंसा की और अपना आर्थिक सहयोग भी दिया और उसी के आधार पर इतिहास के दो पुष्प प्रकाशित करने का साहस किया जा सका। इतिहास प्रकाशन का कार्य एक-डेढ़ वर्ष पूर्व ही हो जाना चाहिये था लेकिन अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण तथा समाजसेवियो के परिचय को फाइनल करने में तथा उनसे फोटो प्राप्त करने में बहुत समय निकल गया जिसका मुझे दुःख है। भविष्य में प्रति दो वर्ष में इतिहास के आगे के खंड निकल जावें ऐसा प्रयास किया जावेगा। । आभार : इतिहास की सामग्री जुटाने एवं आर्थिक सहयोग प्राप्त करने में सर्वप्रथम गया/डालटनगंज निवासी श्री रामचन्द्र जी रारा का मैं अत्यधिक आभारी हूं जिन्होंने मुझे अपने साथ लेकर बिहार के Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 अधिकांश नगरों में घुमाया और समाज के परिचय के साथ-साथ वहां से आर्थिक सहयोग भी दिलाया। उनके बिना बिहार में अकेले जाना बहुत कठिन था। महासभा के महामंत्री श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी, कोटा ने इतिहास लेखन के कार्य में व्यक्तिगत सहयोग दिया। जैन गजट की पूरी फाइलें देखने के लिये उपलब्ध कराई। उनका सह एवं सहयोग हमारे लिये सम्बल सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त श्री निर्मल कुमार जी सेठी, अध्यक्ष दि. जैन महासभा जिनके कारण मैं आसाम में इतिहास की खोज में भ्रमण कर सका। सेठी जी की सदैव प्रेरणा मिलती रहती है। उनके छोटे भाई कैलाशचन्द जी सेठी ने तिनसुकिया में, डीमापुर में श्री डूंगरमल जी गंगवाल, चैनरूपजी बाकलीवाल एवं सागरमल जी सबलावत का पूरा सहयोग मिला। श्री डूंगरमल जी के घर पर तो करीब 15 दिन तक ठहर कर उनका स्नेह पूर्ण आतिथ्य प्राप्त किया। इसी तरह इम्फाल में श्री मन्नालाल जी बाकलीवाल के घर पर ठहरकर परिचय प्राप्त करने का कार्य किया । डिब्रूगढ़ में हमारे समधी श्री चांदमल जी साहब गंगवाल का आतिथ्य एवं सहयोग प्राप्त हुआ। हैदराबाद में श्री मांगीलाल जी पहाडे, उज्जैन में पं. सत्यन्धर कुमार जी सेठी, इंदौर में श्री प्रकाशचंद जी टोंग्या, आगरा में श्री विमलचंद जी बैनाड़ा, आदि पचासों महानुभावों का जो सहयोग मिला उसके लिये मैं उनका पूर्ण आभारी हूं । हमें इस बात का बड़ा खेद है कि जिन महानुभावों को प्रस्तुत इतिहास को देखने की बड़ी अभिलाषा थी उनका स्वर्गवास हो जाने के कारण इसे प्रकाशित नहीं देख सके। ऐसे महानुभावों में सर्वश्री श्रेयान्स कुमार जी जैन बम्बई, श्री इन्दरचन्द जी पाटनी डीमापुर, श्री सोहनसिंह जी कानूगो नागौर, रामचन्द्र जी भौंसा जयपुर, आदि के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। मैं सभी के प्रति हार्दिक श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं । पुस्तक की साज-सज्जा एवं प्रेस के सारे कार्य को श्री महेशचन्द्र जी जैन चांदवाड़ ने पूर्ण तत्परता के साथ संपन्न किया उसके लिये मैं आपका पूर्ण आभारी हूँ । आपके कारण ही पुस्तक का नयनाभिराम प्रकाशन हो सका है। - डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक की ओर से जैन समाज की वृहद् इतिहास प्रस्तुत करते हुये मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। कुछ वर्षों पूर्व मैंने समाज का इतिहास लिखने का जो स्वप्न संजोया था वह आज साकार हो रहा है। तीन वर्ष पूर्व खण्डेलवाल जैन समाज का इतिहास लिखकर समाज को समर्पित किया था। उस इतिहास का सर्वत्र स्वागत हुआ तथा जातीय इतिहास लिखने की और समाज का ध्यान गया। कुछ इतिहास लिखे भी गये और कुछ लिखे जा रहे हैं। इससे इतिहास लिखने की प्रक्रिया को बल मिला है । इतिहास लेखन की दृष्टि से यह शुभ संकेत है। प्रस्तुत इतिहास उस जैन समाज का है जो देश के प्रत्येक भाग में फैला हुआ हैं। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक जिसका अपना महत्व है। जो देश का मूल समाज है। सारे देश में फैले हुये ऐसे समाज के हजारों वर्षों का सामाजिक इतिहास लिखना बड़ा कठिन है। न जाने कितने महान समाज सेवी प्रत्येक शताब्दी में होते रहे जिन्होंने समाज के लिये अपना सर्वर लिदान कर दिया और शो क्षत विक्षत होने मे तचाया तथा धर्म की अवमानना नहीं होने दी। नगरों में ही नहीं गाँवों तक में ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति हुने जिन्होंने जैनत्व का नाम गौरवान्वित किया। उन सबको इतिहास के पृष्टों में समेटना बड़ा कठिन है इसलिये 20 वीं शताब्दी के काल को ही इतिहास लेखन के लिये चयन किया गया। इस शताब्दी का इतिहास हमारे सामने से गुजरा है उसे हमने देखा है नहीं देखा है तो हमारे पूर्वजों से सुना है। " जैन" नाम से तो जैन समाज एक हो है लेकिन इसमें दिगम्बर क्षेताम्बर के मुख्य विभाजन के अतिरिक्त दिगम्बर समाज भी जातियों एवं उपजातियों में, तेरह पंथ, बोस पंथ, आगए पंथ के साथ ही सोनगढ पंथ में बटा हुआ है। यही नहीं समाज में महासभा, परिषद्, महासमिति, विद्वत परिषद, शास्त्री परिषद, युवा परिषद की विचारधारायें विद्यमान हैं। आचार्य संघों एवं आर्यिका संघों में भी विभिन्न विचारधाराएं हैं। इसलिये समाज का इतिहास चाहे वह सौ पचास वर्ष का ही क्यों न हो क्रमबद्ध लिखना बड़ा कठिन हैं। फिर भी हमने सभी धाराओं को समाहित करते हुये इतिहास के पृष्ठ संजोने का प्रयास किया है। समाज के इतिहास लेखन का मुख्य स्त्रोत जैन पत्र-पत्रिकाएं हैं। जैन गजट, जैन मित्र, जैन संदेश, वीर जैसे पत्र-पत्रिकाओं में समाज का इतिहास बिखरा पड़ा है लेकिन इन पत्र-पत्रिकाओं की व्यवस्थित फाइलें नहीं मिलती हैं। ऐसा कोई एक सेन्टर नहीं है जहाँ इन फाइलों को देखा जा सकता हो। हाँ जैन गजट की फाइलें तो मुझे महासभा कार्यालय कोटा में उपलब्ध हो सकी हैं जो इतिहास लेखन के लिये महत्वपूर्ण स्त्रोत सिद्ध हुई हैं। इसके अतिरिक्त जयपुर, इन्दौर, लश्कर, बंगलौर, कानपुर, कलकत्ता आदि नगरों की डाइरेक्ट्रियाँ भी इतिहास लेखन में सहायक सिद्ध हुई हैं। खण्डेलवाल, पल्लीवाल, खरौ आ जैसवाल आदि जातियों के इतिहास भी समाज के इतिहास लेखन का आवश्यक अंग बनी है। जैन समाज के प्राचीन इतिहास लेखकों में श्री नाथूराम जी प्रेमी बम्बई ने साहित्यिक इतिहास के साथ-साथ समाज के इतिहास पर भी बहुत ध्यान दिया और स्वयं द्वारा संपादित कथानक की प्रस्तावना में सामाजिक इतिहास के कितने ही तथ्यों को उजागर किया । इतिहासवेत्ता एवं अखिल विश्व जैन मिशन के संचालक डॉ. कामताप्रसाद जी भी सामाजिक इतिहास के कितने ही पृष्ठों को खोलने में सहायक सिद्ध हुये। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन तो इतिहासवेत्ता के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भारतीय इतिहास एक दृष्टि, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं जैसी पुस्तकें लिखकर इतिहास के क्षेत्र में अपना अपूर्व योगदान दिया | डॉ. विलास ए. संगवे कोल्हापुर ने दक्षिण भारत के जैन समाज पर अच्छा प्रकाश डाला है। उक्त विद्वानों के अतिरिक्त और भी कुछ विद्वानों ने जैन समाज के सामाजिक इतिहास पर समय-समय पर प्रकाश डाला है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) प्रस्तुत इतिहास मुख्यतः दो खंडों में विभाजित है। इतिहास खंड में इतिहास के स्रोतों पर प्रकाश डाला गया है। महावीर काल में जैन समाज, जातियों की संरचना, मुस्लिम काल में जैन समाज, बिहार एवं उड़ीसा, बंगाल एवं आसाम, गुजरात, दक्षिण भारत, हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर में जैन समाज की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। वर्तमान शताब्दी के इतिहास के अंतर्गत शताब्दी के प्रारंभ में समाज की स्थिति, सामाजिक संगठनों के उदय के साथ अखिल भारतीय स्तर की सामाजिक संस्थाएं जैसे महासभा परिषद,महासमिति शास्त्री परिषद्, विद्वत परिषद.तीर्थ क्षेत्र कमेटी के परिचयात्मक इतिहास के अतिरिक्त उनके कार्यों को समीक्षा की गई है इसके अतिरिक्त 20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में होने वाले समान सेवियों के जीवन एवं उनकी सामाजिक सेवाओं के साथ सामाजिक घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है । इसके आगे सन् 1930 से 1950 तक. सन् 1951 से 1970 तक, सन् 1971 से 1980 तक एवं 1981 से 1100 तक होने वाली सामाजिक घटनाओं. आयोजनों एवं प्रमुख समाज सेवियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को कालक्रमानुसार उजागर किया गया है । इसी के साथ विगत पचास वर्षों में दिबंगत होने वाली सामाजिक विभूतियों का स्मरण किया गया है तथा उनके द्वारा की गई सेवाओं पर प्रकाश डाला गया है। जो इतिहास का महत्त्वपूर्ण अंग है। इसी खंड में वर्तमान समय के प्रमुख बीस आचार्य एवं साधुगण, राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख बीस विद्वज्जन एवं इसी तरह समाज का नेतृत्व करने वाले अष्ठिजनों के जीवन पर प्रकाश इतिहास का प्रमख अंग बन गया है। इसी के साथ सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले जिन साधुओ विद्रजनों एक श्रेष्ठीजनों को विगत पचास वर्षों में अभिनंदन पंथ भेंट किये गये अथवा जिनकी स्मृति में स्मृति पंथ निकाले गये उन सभी का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इन महान आत्माओं द्वारा की गई सामाजिक सेवाओं के कारण ही ये सब हमारे लिये अभिनंदनीय माने जाते हैं। सर सेठ हुकमचंद जी से लेकर अब तक 3) पंथ प्रकाशित हुये हैं। पूर्वाञ्चल प्रदेश का इतिहास इसके पश्चात् शेष इतिहास को पूर्वाञ्चल प्रदेश, राजस्थान, विहार, मालवा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में विभक्त करके एक-एक प्रदेश का सामाजिक इतिहास दिया गया है जिसका प्रारंभ पूर्वाञ्चल प्रदेश के सामाजिक इतिहास से किया गया है। इस प्रदेश में वर्तमान में 41 नगरों एवं गाँवों में जैन समाज के परिवार रहते हैं जिनको संख्या एवं वहाँ पर स्थित जैन मंदिरों का उल्लेख किया गया है साथ ही में गोहाटी, विजयनगर, डिब्रुगढ,नलबाड़ो,तिनसुकिया, सिल्चा,डीयापुर.मनीपुर जैसे बड़े नगरों की समाज का विस्तृत परिचय दिया गया है। यशस्वी समाज सेवियों का इतिहास उक्त ऐतिहासिक परिचय के साथ पूर्वाञ्चल प्रदेश के 13 दिवंगत समाजसेवियों 30 समाज के सजग प्रहरियों एवं 71 यशस्वी समाज सेवियों का सचित्र परिचय दिया गया है। परिचय में समाज सेवियों के राजनेतिक एवं धार्मिक योगदान को विशेष चर्चा की गई है तथा अब तक प्रकाशित होने वाले परिचयों से थोड़ा अलग हटकर इतिहास की दृष्टि से उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है । दिवंगत समाज सेवियों का उनके परिवार वालों से तथा शेष समाज सेवियों से उनसे स्वयं से :नोत्तर के रूप में जानकारी प्राप्त कर परिचय लिखा गया है। राजस्थान में जैन समाज एवं उसके यशस्वी समाज सेवी राजस्थान : इसके पश्चात् राजस्थान खंड प्रारंभ होता है । इसमें सर्वप्रथम रजस्थान प्रदेश के जैन समाज का एक संक्षिप्त सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है साथ ही में राजस्थान में पायी जाने वाली 9 प्रमुख जातियों का संक्षिप्त परिचय के साथ सभी जिलों में प्रमुख जैन नगरों का नामोल्लेख एवं राजस्थान के छैन तीर्थों एवं दस हजार से अधिक जैन समाज की जनसंख्या वाले जिलों का उल्लेख किया गया है। राजस्थान के सर्वेक्षण के बाद ढूंढाड प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय प्रस्तुत किया गया है । जयपुर राज्य का नाम पहिले ढूंढाड प्रदेश था और यह प्रदेश उसी नाम से प्रसिद्ध था । जयपुर नगर का वर्तमान सामाजिक स्वरूप एवं नगर में सापाजिक Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) संस्थाओं के परिचय के साथ यहां के उपनगरों की जनसंख्या पर भी प्रकाश डाला है। जयपुर नगर जैन समाज का प्रमुख केन्द्र रहा है। इसलिये उन सभी 23 दिवंगत समाजसेवियों का संक्षिप्त परिचय दिया है जिन्होंने विगत 50 वर्षों में समाज सेवा के क्षेत्र में अपना कीर्तिमान स्थापित किया। इसके पश्चात् वर्तमान समाजसेवियों के जीवन एवं उनकी सेवाओं पर प्रकाश डाला गया हैं। जयपुर नगर में जैन समाज विशाल संख्या में हैं उनमें से हमने इस अध्याय के अन्तर्गत 195 यशस्वी समाजसेवियों का परिचय उपस्थित किया हैं। जयपुर नगर के पश्चात् राजस्थान के अन्य जिलों का सामाजिक इतिहास एवं वहाँ के यशस्वी समाजसेवियों का संक्षिप्त सचित्र परिचय दिया गया है। सामाजिक इतिहास में परिवारों को संख्या एवं प्रमुख गांवों की सामाजिक स्थिति का वर्णन किया गया हैं । प्रस्तुत इतिहास में जिले को ऐतिहासिक नामों से जोड़ा हैं और उन्हीं के नाम से सामाजिक परिचय दिया है। परिचय में उन सभी जैन जातियों का भी उल्लेख किया है जो उन प्रदेशों में प्रमुखता से रहती आ रही हैं 1 प्रदेशों के निम्न प्रकार शीर्षक रखे गये हैं: जयपुर एवं दौसा जिला सवाई माधोपुर, टोंक एवं अलवर जिला हाडौती प्रदेश (कोटा बूंदी एवं झालावाड़ जिला) मारवाड़ प्रदेश (जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, सीकर जिले) बागड़ एवं मेवाड़ प्रदेश (डुंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा जिला) 6. अजमेर जिला इस प्रकार राजस्थान का सामाजिक इतिहास एवं यशस्वी समाजसेवियों का परिचय 3200 पृष्ठों में समाप्त होता है । 1. 2. 3. 4. 5. बिहार प्रदेश राजस्थान के पश्चात् बिहार प्रदेश के जैन समाज का ऐतिहासिक परिचय दिया गया है तथा डाल्टनगंज, औरंगाबाद, रफीगंज, गया, पटना, कोडरमा, झूमरी तलैया, गिरडीह, सरिया, हजारी बाग, रांची एवं रामगढ केन्ट जैसे जैन समाज की दृष्टि से प्रमुख नगरों में समाज की स्थिति परिवारों की संख्या, जातियों की संख्या, मंदिरों की स्थिति आदि पर प्रकाश डाला गया हैं तथा इस प्रदेश के 95 यशस्त्री एवं समर्पित समाजसेवियों के व्यक्तित्व का वर्णन इतिहास का अंग बन गया है। बिहार का पूरा इतिहास 78 पृष्ठों में आंकत किया गया है। बिहार प्रदेश के एक भाग में नहीं जा सकने के कारण उसका यहां परिचय नहीं दिया जा सका जिसकी पूर्ति अगले खंड में की जावेगी । मालवा - मध्यप्रदेश देश का बहुत बड़ा प्रदेश है और उसमें जैन समाज भी अच्छी संख्या में मिलता है। इसलिये इस प्रदेश के एक छोटे से भाग मालवा प्रदेश और उसमें भी इन्दौर, उज्जैन, लश्कर, बडबानी जैसे नगरों तक ही सामाजिक इतिहास को सीमित रखा हैं। लेकिन मालवा के उक्त तीन नगर सामाजिक इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, प्रस्तुत इतिहास खण्ड के साथ वहां के कुछ समाजसेत्रियों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। हम नहीं कह सकते कि हमारा यह इतिहास पूर्ण है बर तो केवल उसका अंशमात्र है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश तो देश का सबसे बड़ा प्रदेश है । यहां जैन समाज भी 20-25 जिलों में मिलता है । प्रस्तुत इतिहास में हमने नमूने के तौर पर यहां के समाज का ऐतिहासिक दृष्टि से परिचय दिया है जिसमें प्रमुख रूप से आगरा, लखनऊ जैसे कुछ नगरों के नाम उल्लेखनीय हैं। उत्तर-प्रदेश के जैन बन्धुओं ने समाज की गतिविधियों में सबसे अधिक योगदान दिया है और न 2019 करें तो यहां अगेन पानधात दारा देश का नेतृत्व किया है। वर्तमान में साहु परिवार एवं सेठी परिवार इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। दक्षिण भारत प्रस्तुत इतिहास में हमने दक्षिण भारत के हैदराबाद, सेलम, मद्रास, बंगलौर, पांडीचेरी एवं बम्बई जाकर समाज का परिचय लेना चाहा | लेकिन बम्बई में हमें कुछ सफलता नहीं मिली और वहाँ की समाज का विस्तृत परिचय नहीं प्राप्त कर सके । फिर भी हमें जो कुछ सामग्री मिली उसी के आधार पर यहां परिचय उपस्थित किया गया है । इसी तरह बंगलौर में भी वहाँ के प्रमुख समाजसेवियों का सहयोग प्राप्त नहीं हो सका। हो हैदराबाद, सेलम, पांडीचेरी एवं मद्रास में वहाँ की समाज का सहयोग मिला। अंतिम अध्याय में हमने स्वतंत्रता सेनानियों का भी अति संक्षप्त परिचय एवं नामोल्लेख किया है । जैनों ने स्वतंत्रता आंदोलन में जो महान योगदान दिया है उसके लिये तो एक अलग से पुस्तक लेखन की आवश्यकता है। हम इतिहास के प्रत्येक खंड में प्रदेशानसार स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय देते रहेंगे। अन्त में इतिहास को उन समाज सेवियों के परिचय के साथ समाप्त किया है जिनका परिचय इसके पूर्व नहीं दिया जा सका। प्रस्तुत इतिहास को हमने निष्पक्ष दृष्टि में लिखने का प्रयास किया है और समाज में जितना जिसका योगदान रहा उसको बिना हिचक के स्वीकार किया है। घटनाओं का वास्तविकता के आधार पर वर्णन किया गया है । समग्र समाज का इतिहास लिखने का और वह भी वर्तमान शताब्दी का जिसको हमने देखा है, यह प्रथम प्रयास है इसलिये उसका मूल्यांकन करते समय इम दृष्टि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये। इतिहास खंड के प्रारंभिक पृष्ठों को परमपूज्य आचार्य विद्या सागर जी महाराज, परमपूज्य आचार्य विद्यानंद जी महाराज, परमपूज्य आचार्य सन्मति सागर जी महाराज, परमपूज्य गणधराचार्य कुंथुसागर जी महाराज, परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज, गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी माताजी को अवलोकन कराया है और सभी ने अपना शुभाशीर्वाद देने को महतो कृपा की है । परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज ने तो विस्तृत भूमिका लिखने की महती कृपा की है। आचार्य श्री तो स्वयं इतिहास पुरुष हैं तथा विद्वानों एवं समाजसेवियों के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। आचार्य श्री मन्मति सागर जी महाराज एवं आचार्य कुंथुसागर जी महाराज ने तो अपना लिखित शुभाशीर्वाद दिया है, जो हमारे लिये सम्बल का कार्य करेगा। इतिहास की खोज में नगरों एवं ग्रामों का भ्रमण इतिहास लेखन के लिये मुझे राजस्थान, पूर्वाञ्चल,विहार, उत्तर-प्रदेश,मालवा,महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के 100 से भी अधिक ग्रामों एवं नगरों में जाना पड़ा और वहाँ के समाज का सहयोग प्राप्त कर बिखरी हुई सामग्री का संकलन किया। ऐसे ग्रामों एवं नगरों में जयपुर, पोजमाबाद, अजमेर केकड़ी, नसीराबाद, ब्यावर, मालपुरा, टोंक, टोडारायसिंह, निवाई, सांभर, कुचामन, पंचवा, लाडनूं, सुजानगढ़, सीकर, राणोली, नागौर, मेड़तासिटी, अलवर, भीलवाड़ा, मांडलगढ, शाहपुरा, सवाई माधोपुर, रेनवाल, कोटा, बंटी, झालावाड़ बिजोलिया, बारां, जोबनेर दौसा, रामगंजमंडी झालरापाटन, पूर्वाञ्चल में गोहाटी, डीमापुर, तिनसुकिया, डिब्रूगढ, मनीपुर, नल्य.ड़ी, विजयनगर, बिहार में डाल्टनगंज, गया, औरंगाबाद, रफीगंज, हजारीबाग. मरोनिया र मगड़ मारथा,मालत्रा में उज्जन लाकर रख इन्दौर उत्तरप्रदेश में लखनऊ, अपरा, सीतापुर. गोरखपुर, बडौत. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, रामपुरमणिहारान एवं दक्षिण भारत के हैदराबाद, सेलम, मद्रास, बंगलौर आदि में घूमकर वहाँ के समाज के बारे में जानकारी एकत्रित की है। प्रमुख एवं यशस्वी समाजसेवियों का परिचय उनसे जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् लिखा है । हमारी इस यात्रा से इतिहास के कितने ही बंद पृष्ठ खुले हैं। इतिहास के नामकरण में परिवर्तन यहां यह भी लिखना उचित होगा कि पहिले हमारा ध्यान खण्डेलवाल जैन समाज का द्वितीय खंड के नाम से प्रस्तुत इतिहास का लेखन कार्य करना था लेकिन फिर जब देखा कि समाज के कार्यों में एवं समाज सेवा में किसी जाति विशेष को अलग करके नहीं देखा जा सकता । जो समाज जहाँ अधिक संख्या में है वह सब जैन समाज का ही तो एक अंग है और उसी के नाम से सारा कार्य होता रहता है जो समूचे जैन समाज का कार्य कहलाता है। इसलिये प्रस्तुत इतिहास में भी समूचे जैन समाज के सामाजिक इतिहास को सम्मिलित करके लिखा गया है उसमें किसी जाति विशेष का व्यामोह नहीं रखा गया है। भावी योजना : जैन समाज का वृहद इतिहास अभी तोन खंडों में और प्रकाशित करने की योजना है। दूसरे खंड में मध्यप्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र देहली, हरियाणा के जैन समाज का इतिहास एवं यशस्वी समाजसेवियों का परिचय रहेगा । तीसरे खंड में बंगाल, बिहार, उड़ीसा एवं उत्तर प्रदेश के जैन समाज का इतिहास प्रस्तुत किया जावेगा तथा चतुर्थ खंड में दक्षिण भारत के मूल निवासी जैन समाज का इतिहास एवं परिचय दिया जालेगा । इशा पगार सपो र मा का बीनतम इतिहास प्रस्तुत करने की हमारी योजना है तथा साहित्य एवं इतिहास लेखन की उत्कृष्ट अभिलाषा मन में संजोये हुये हैं। यदि समाज का पूर्ण सहयोग रहा तथा हमारा जीवन रहा तो इतिहास के चारों खण्डों को लिखने में पूर्ण सफलता मिलेगी ऐसा हमारा दृढ विश्वास है । यह सब कार्य पांच वर्षों में कर लिया जावेगा ऐसी हमारी हार्दिक अभिलाषा है। आभार : प्रस्तुत इतिहास की सामग्री जुटाने,परिचय के साथ आर्थिक सहयोग देने में समाज के उन सभी महानुभावों का आभारी हूँ जिनका किसी न किसी रूप में सहयोग प्राप्त हुआ है । व्यक्ति विशेष के सहयोग के रूप में सबसे अधिक सहयोग . गया के श्री रामचन्द्र जी रारा का नाप उल्लेखनीय है जिन्होंने मुझे अपने साथ लेकर बिहार के प्रमुख नगरों में घुमाया तथा व्यक्ति परिचय के साथ आर्थिक सहयोग भी दिलाया। इनके अतिरिक्त त्रिलोकचन्द जी कोठारी,श्री निर्मल कुमार जी सेठी, डीमापुर के श्री चैनरूप जी बाकलीवाल, श्री डूंगरमल जी गंगवाल,सागरमल जी सबलावत, मणीपुर में श्री मत्रालाल जी बाकालीवाल एवं पद्म श्री धर्मचन्द जी, डिबूगढ़ में श्री चांदमल जी गंगवाल,नागौर में श्री सोहनसिंह जी कानूगो, रांचों में श्री रायबहादुर हरकचन्द जो पांड्या, रिखब चन्द जी बाकलीवाल, रत्नेशकुमार जी जैन. झूमरीतिलैया में श्री महावीर प्रसाद जी झांझरी लखनऊ में श्री सौभाग्यमल जी काला,त्र्यावर में श्री धर्मचन्द जी मोदी, उज्जैन में श्री सत्यन्धर कुमार जी सेठी जी ने जो सहयोग दिया उसके लिये हम सबके प्रति आभारी हैं। पन्थ प्रकाशन में श्री महेशचन्द जो जैन चांदवाड़ ने प्रेस का सारा कार्य निपटाया तथा चि. नरेन्द्र कासलीवाल ने अनुक्रमणिका तैयार की उसके लिये हर उनके प्रति आभारी हैं। जय महावीर डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-सूची प्रकाशकीय - आशीर्वाद 11) आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज (27 गणधराचार्य श्री कुन्धुसागर जी महाराज - शुभाशीर्वाद आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज लखक ग्वं सम्पादक का निवेदन खण्ड 1 समाज का इतिहास 1-9 1. समाज का इतिहास इतिहास लखन की आवश्यक्ता । 11, इतिहास के गोन (1-4 भारत का मुलधर्म 141 महावीर काल में जैन समाज । 4-5) जानियों की संरचना :58 मुस्लिम काल में जैन धर्म और समाज ( 5-67 बिहार एवं उड़ीसा (6) गंगाल और आसाम ( 7 ) दक्षिण भारत में जैन समाज ( 7-8) गुजगत प्रदेश (8) हरियाणा, पजाब एवं काश्मीर प्रदेश:91 2. वर्तमान शताब्दी का इतिहास 10-34 अखिल भारतीय गग्थाओं की स्थापना. महासभा १ 111 परिपद् 112) महासमिति ( 121 सिद्धान्त सरंक्षिणी सभा 113) शास्त्री परिपद (13) विद्वत परिपद (13-14) खण्डेलवाल महासभा की स्थापना (14-18) तीर्थ क्षेत्र कमेटो ( 187 जैन समाज की जनसख्या ( 187 20वीं शताब्दी में होने वाले समाजसेवी । 19-20: शास्त्रार्थ ( 21 ) राष्ट्रीय आंदोलन (21) भगवान महावीर 2500वां परिनिर्वाण महोत्सव (23-24) महान आत्माओं का स्वागतण, शताब्दी का आंतम दशक (24) आचार्या का समाधिमगण 124) पंचकल्याणक एवं अन्य कियानों का आयोजन (25-28) सर्यकीर्ति प्रकरण (28) जम्ब्रदीप ज्ञान ज्योति 1281 आचार्य कन्दकन्द द्विसहस्त्राब्दि समारोह (29 : पंत्रम पट्टाचार्य प्रतिष्ठा 1 30 1 सामाजिक ग्थिति ( 300 दिवंगत विभूतियां ( 31 ) 4. चैनसुखदास जो ( 32 ) नागम प्रेमी (32) जुगलकिशोर जी मुख्तार (321 बाबू छोटलाल जी (33) साद जैन एवं रमा जैन 133) कानजी स्वामी ( 33-347 नवं दशक की प्रमुख घटनाएं 1 343 . 3. प्रमुख आवार्य एवं साधुगण 35-39 सर्व श्री आचार्य विद्यानंद जी (363 विद्यासागर जी (361 विमलसागर जी : 36 ) वर्धमानसागर जी ( 37 ) सन्मतिमागर जी : 37 ) कुथुगागर जी ! 37 ) गुतिसागर जी 1 37 : आचार्य पुष्पदंत जी ( 377 कल्याणसागर जो 137) श्रेयान्ससागर जी ( 371 उपाध्याय भग्तमागर जी 138; ज्ञानसागर जी ( 381 कनकनंदि जी : 38 ) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी (38) आर्यिका विशुद्धमती जी (39) आर्यिका सुपार्श्वमती जी (39) भट्टारक चारुकीर्ति जी मूडबिद्री (39) श्रवणबेलगोला (39) ब्रह्मचारिणी कौशल जी ( 39 ) 4. राष्ट्रीय स्तर के विद्वज्जन 40-44 पं. जगन्मोहन लाल जी ( 41 ) पं. फूलचंद जी सिद्धान्त शास्त्री (41) पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य (41) पं. नाथूलाल जी शास्त्री ( 42 ) पं. सुमरचंद जी (42) डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया ( 43 ) डॉ. हुकमचंदजी भारिल्ल (43) डॉ. कालबाटगी (44) डॉ. रमेशचंद ( 44 ) डॉ. भागचंद जैन (44) डा. जगदीश चंद्र जैन (43) श्रीमती सुमति बाई ( 43 ) डॉ. कस्तुरचंद कासलीवाल (43) 5. श्रेष्ठिजन 45-50 साहू, श्रेयान्य प्रसाद जी (46) निर्मल कुमार जी सेठी (46) साहू अशोक कुमार जी (46) डालचंद जी जैन (46) रतनलाल जी गंगवाल (47) डी. वीरेन्द्र हेगडे ( 47 ) त्रिलोकचंद कोठारी 47 ) हरकचंद पांड्या ( 47 ) अमरचंद जी पहाड़िया (47) हरकचंद जी सरावगी ( 48 ) देवकुमार सिंह कासलीवाल ( 48 ) लालचंद दोशी (48) पूनमचंद गंगवाल (48) प्रेमचंद जैनावाच ( 48 ) चैनरूप बाकलीवाल (50) उम्मेदमल पांड्या (50) राजकुमार सेठी (50) 6. अभिनंदन ग्रंथों का प्रकाशन 51-62 प्रेमी अभिनंदन ग्रंथ (51) सरसेठ हुकमचद अभिनंदन ग्रंथ (52) ख. चंदाबाई अभिनंदन ग्रंथ (52) आचार्य शांति सागर श्रद्धान्जलि विशेषांक ( 53 ) तनसुखराय स्मृति ग्रंथ (53) कानजी स्वामी अभिनंदन ग्रंथ ( 53 ) बाबू कोटे लाल स्मृति ग्रंथ (54) भंवरलाल बाकलीवाल स्मारिका (54) आचार्य शिक्सागर स्मृति ग्रंथ (54) तेजकरण इंडिया अभिनंदन ग्रंथ (55) पं. चैनसुखदास स्मृति ग्रंथ (55) पं. सुमेरुचंद दिवाकर अभिनंदन ग्रंथ (55) वित अभिनंदन ग्रंथ (56) आचार्य महावीर कीर्ति स्मृति ग्रंथ (56) आचार्य धर्मजागर अभिनंदन ग्रंथ ( 56 ) मूलचंद किशनदास कापाडेया अभिनंदन ग्रंथ ( 57 ) डॉ. दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन ग्रंथ (57) आर्थिका रत्नमती (अभिनंदन ग्रंथ ( 57 ) सुनहरीलाल जैन अभिनंदन ग्रंथ ( 58 ) आर्यिका इन्दुमती अभिनंदन ग्रंथ (58) पंडित सत्यधर कुमार सेठी अभिनंदन ग्रंथ (58) यशपाल जैन अभिनंदन ग्रंथ ( 59 ) पं. फूलचंद शास्त्री अभिनंदन ग्रंथ (59) डॉ. लाल बहादुर शास्त्री अभिनंदन ग्रंथ ( 59 ) पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनंदन ग्रंथ (60) पं. रतनचन्द जैन मुख्तार अभिनंदन ग्रंथ (60) डॉ. पन्नालाल जैन अभिनंदन ग्रंथ (60) पं. जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद ग्रंथ (61) आचार्य वीरसागर स्मृति ग्रंथ (61) जैन पत्र-पत्रिकाएं (62) खण्ड 2 पूर्वान्चल प्रदेश का जैन समाज 1. इतिहास की पृष्ठभूमि 63-74 पूर्वान्चल प्रदेश, गोहाटी (84) विजयनगर (64) डिब्रूगढ़ (65) नलबाड़ी (65) तिनसुकिया (67) खारूपदिया (67) सिल्चर (68) गोलाघाट 68 मरियानी (68) डेरगांव (69) बोकाखात (69) शिलांग [ 69 ) जोरहाट (69) शिवसागर (70) डीमापुर (70) इम्फाल का जैन समाज (71) पूर्वान्चल प्रदेश का जैन समाज एक झलक (72-74 (ID) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. पूर्वान्चल के दिवंगत समाजसेवी 75-86 इन्द्रचन्द पाटनी 176-77) किशनलाल सेठी (77-78 } चांदमल सरावगी (78-79) जेठमल सेठी (79) इंगरमल सरावगी (80) नेमीचंद पाडया 180} फलचंद सेठी (81-82) भवरीलाल बाकलीवाल 182} लक्ष्मीनारायण बज {83) संजयकुमार सेठी (84) हीरालाल सेठी (841 कन्हैयालाल जी सेठी 184 ) हरकवंद सेठी (85) 3. समाज के सजग प्रहरी ४-127 श्री अमरचद पाटनी (881 इन्दरचंद पाटनी (88-89) कल्याणमल बाकलीवाल (901 कपूरचंद सेठी डीमापुर (91) गजेन्द्रकुमार सबलावत इम्फाल (92) चंदनमल पहाड़िया इम्फाल (92-931 चांदमल गंगवाल डिब्रूगढ ( 93 7 चैनस्प बाकलीवाल डीमापुर (94-95 1 जयचन्द पाटनी गोहाटी (96) जयचंद लाल पाटनी तिनसुकिया (96-97 ) तनसुखराय सेठी (98) त्रिलोकचंद पाटनी 199) दानमल सौगाणी (100) धनराज माडा (101 1 धर्मचंद पाटनी (101) पन्नालाल सेठी ( 102-103 ) चांदमल सेठी ( 103 1 सोहनलाल सेठी (103) भागचढ सेठी (104) विमलकुमार सेठी (1043 डॉ. विजय कुमार (104) प्रसन्मकुमार बाकलीवाल सिल्चर । 105 पूनमचंद सेठी गौहाटी (106) बालचन्द सेठी (1077 मदनलाल बाकलीवाल (107-1081 मन्नालाल बाकलीवाल (108-1091 मांगीलाल कावडा (110) फूलचंद्र छाबड़ा । 110-111) शांतिलाल छाबड़ा .1111 अभकरण काबहा (1121 मानिकचंट गंगवाल (1121 महावीर प्रसाद राग नन्नबाड़ी (113) महावीर प्रसाट पाटनी (114) रतनलाल दुलीचन्द विनायक्या (115) रामकुमार मेठी 1116 } लाडादेवी सेठी : 117) रामचन्द्र मेठी (118) पवनकुमार सेठी 1119) विनोदकुमार सेठी (119) शैलेश कुमार सेठी (119) राजेन्द्र प्रसाद रारा (120) सागरमल सबमाक्त (121) सोहनलाल बगड़ा 1121) सोहनलाल बाकलीवाल । 122) सोहनलाल पाटनी (123-124) शांतिलाल पाड्या ( 1240 हकमचंद सरावगी (125-126) हीरालाल पाटोदी 11261. हुलाशचंद सेठी (127) 4. यशस्वी समाज सेवी 128-183 अखयचंद सेठी (130) अशोक कुमार कासलीवाल : 130 3 कपूरचंद पाटनी गोहाटी ( 131-32 1 किशनलाल सेठी (132) कैलाशचट झांझरी (132) गणपतराय चडीवाल (133) केशरीमल छाबड़ा 1134 1 चम्पालाल पाटोदी (135) जक्कुमार काला ( 136) जयचढलाल मनमौजी (136) जालमवंद बगहा (137) ज्ञानचंद पाटनी - 138) ज्ञान प्रकाश टोंग्या (139) झुमरमल कासलीवाल (140टीकमचंद पाटनी (141) इंगरमल गगवाल 11411 धर्मचंद झांझरी (142) नथमल बाकलीवाल 1143) नंदलाल गंगवाल (143) निर्मलकुमार झांझरी । 144) नेमीचंद छाबड़ा 11451 पदमकुमार सेठी (145) पन्नालाल गंगवाल 11461 परतलाल छाबड़ा [1461 प्रकाशचट मंगवाल (147) प्रेमसुख सेठी (148) फूलचंद बगड़ा (149) भवरलाल काला (150) भंवरलाल सेठी (151) भंवरीलाल पांड्या (151) भागचंद पाटनी (152) मदनलाल पाटनी (153) मदनलाल बड़जात्या (153) मदनलाल पाटनी [ 154) मदनलाल सेठी (155) मन्नालाल छाबडा (156) महाचंद सेठी (157) महावीर प्रसाद गोधा (158) महावीर प्रसाद पांड्या (158) महीपाल पाटनी 1159) मानमल छाबडा (160) मानिकचद पाटनी [161) मिश्रीलाल बगडा (161) मिश्रीलाल बाकलीवाल (163) मूलचद गंगवाल (183) मूलचंद छाबड़ा {164 1 मेघराज पाटनी (165) मोहनलाल बाकलीवाल (166) मोहनलाल रारा (166 ) मोहनलाल सेठी (167) रखीलाल पाटनी (178) रामगोपाल पाटनी (169) रामदेव पाटनी (1707 पं. स्पचन्द्र शास्त्री 1170-71) लक्ष्मीनारायण बड़जात्या (172) लक्ष्मीनारायण रारा (172) डॉ. लालचन्द्र पाटनी (173) लूणकरण पांड्या ( 173) शिखरीलाल बडजात्या 174 ) संतोषकुमार पाटनी (174) विजय कुमार पाइया ( 175 } सम्पत कुमार पाटनी (176) सम्पतराम पहाडिया (176) सागरमल सरावगी (1771 सौभागमल झांझरी (1781 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I (251) नधमल गंगवाल, नन्द किशोर पहाडिया णमोकार दीवान : 253) नरेन्द्र मोहन कासलीवाल (254) नरेन्द्र मोहन इंडिया (255) नरेश कुमार सेठी, नवरत्न मन्न कासलीवाल (256) नाथुलाम्म जेन एडवोकेट, नानूलाल साठ (257) निर्मल कुमार पाण्ड्या, निहालचन्द्र कासलीवाल (258) नेमीचन्द काला (259) नेमीचन्दं गंगवाल, मन्दाया (260) नेमीचन्द पाटनी, नेमीचन्द जैन भोसा, पदमधन्द तालुका (261) पदमचन्द भौसा (262) प्रकाशयन्द कासलीवाल, प्रकाशचन्द जैन, प्रकाश अजमेरा, प्रकाशचन्द्र कोठारी, प्रकाश बख्शी, प्रकाशचन्द दीवान, प्रकाशचन्द जैन बोहरा, प्रकाशचन्द संधी प्रकाशचन्द सेठी. प्रकाशचन्द सांगानी (263-268) वैद्य प्रभुदयाल, प्रभुलाल काली, प्रभुदयाल गंगवाल (269-270 प्रवीणचन्द जैन, प्रवीणचन्द छाबड़ा, प्रवीणचन्द पाटनी [(271-272) डॉ प्रेमचन्द काला, प्रेमचन्द काठ्याची प्रेमचन्द खिन्दुका, प्रेमचन्द छावा डॉ. प्रेमचन्द जैन दीवान प्रेमचन्द, प्रेमचन्द बड़जात्या, डॉ. प्रेमचन्द रोक्का 273-276 पानाचन्द जैन 277 पुनमचन्द कालीवाल, ब. पूरणधन्द हाडिया (278) फुलचन्द गोधा, फुलवन्य बिलाना 279-280) बसन्तीलाल पाटनी (280) बाबूलाल सेठी, डॉ. बालास सेठी, बाबूलाल जैन गांधा (281283) भवरलाल जैन छावड़ा, भंवरलाल बैद, भंवरलाल सगवगी, भंवरलाल साह (283285 भागयन्द याकलीवाल भागचन्द सात, भागचन्द गान अन्तार, भागचन्द सेठी 286-87) मदनलाल जैन, महावीर कुमार सेठी, महावीर प्रसाद नृपत्या, महावीर कुमार गरा महावीर प्रसाद पहाडिया मरेन्द्र कुमार अजमेरा, महेन्द्र कुमार पाटनी, महेन्द्र कुमार बगडा महेन्द्र कुमार सेठी. माणिकचन्द्र पाटनी, माणकचन्द मुसरफ ५ मिश्रीलाल ना माप जैन, मिलापयन्द बगावत, मिलापचन्द शास्त्री, महेशचन्द जैन, माणकचन्द्र साह, मुन्नालाल भाँवसा (288-299 मोतीलाल शास्त्री (300) मुन्नीती काला 300 मोहनपाल गंगवाल, जननायकाला (310 प्रतनलाल गंगवाल तनलाल शब्बा एतनलाल नृत्य, डॉ. रमेश अजमेरा, रमेशचन्द गंगवाल, राजकुमार भला गजमल वेगानी, राजमल सोनी, राजेन्द्र कुमार बाकलीवाल, रामचन्द्र ठेकेदार राजमन कासलीवाल, रतनमाल कासलीवान, गाडवा, राजेन्द्र कुमार लुहाडिक, स्पचन्द सौगानी एडवोकेट, स्पयन्द लुहारिया, नल्लुसान गोधा, डॉ. लाल जैन लूणकरण गोधा, लेखचन्द बाकलीवाल (302-312) विजयकुमार पाटनी, विपिन कुमार तोतूका विनयचन्द पापडीवाल, विनोदीलाल पाटनी, बिरधीचन्द सेठी, (313-316) डॉ. समन्तभद्र पापडीवाल, सरदारमन्न पाटनी (317) सागरमन्न सरावगी, सुमेरचन्द पाण्ड्या, सुमरचन्ट सोनी, सुरेन्द्रमोहन इंडिया, सुभाषचन्द चौधरी, सुरेन्द्र कुमार जैन, सूरजमल वैद, सौभागमल रावका, सोहनलाल सेठी स्वम्पचन्द पाण्ड्या (317-324 शांति कुमार गंगकल शातिल गंगवाल, आति कुमार सेठी 324-326) वास कुमार गंधा, शिखरचन्द हावड़ा 327 हजारीलाल निगोनिया (328 हरकचन्द चौधरी, हरकचन्द पाटनी, तरकचन्द्र पाण्डया हरकचंन्द्र सान (329-330) हरिश्चन्द्र अजमेरा 331 हीरालाल कटारिया हीरालाल सेठी 332 हेमन्त कुमार सोनी ( 333 ) ' 4. जयपुर एवं दौसा जिले का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी 334-353 समाज सेवी कपूरचन्द्र कासलीवाल, कपूरचन्द बडजात्या (337) कैलाशचन्द कान्ना (338) कल्याणमल पाटनी कल्याणमल बोहरा टहटड़ा (331) गंभीरमल बड़जात्या मोजमा (340) गुलाबचन्द रागवान रेनवाल 341 चिरंजीलाल कासलीवाल सैवल (342) चिरंजीलाल सोगानी बन्दानी, जमनालाल पटनी जोबनेर, ताराचन्द दोशी फागी (343) दुलीचन्द पाटोदी, (344) धर्मवन्द लुड़िया नगगणा 345 नेमीचन्द बाकसताल कमी पदमचन्द बडजात्या मोजमावाद, पांयूलास पाण्ड्या, चौधरी (346 प्रकाशचन्द काला एडवोकेट 347 प्रेमचन्द अजमेरा बरसी, प्रकाशचन्द पाण्ड्या दौसा (346) पूर्णचन्द जैन एडवोकेट टीमा प्रभातीलाल कासलीवाल 349 मिलापबन्द काला चंदलाई मूलबन्द बडजात्या जोबनर (350) बोहरा (351) सुगनचन्द पाटन जायनर (352) सौभागमल चौधरी (353) (v) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोहनलाल सांगा पाटनी (179) स्वरूपचंद पहाडिया (179 1 श्री चन्द सेठी (180) हनुमान प्रसाद बडजात्या (1801 हंसराज पांड्या (182) हुकमचंद टोग्या'(183) खण्ड 3 राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1. राजस्थान प्रदेश-एक सर्वेक्षण 184-192 सर्वेक्षण ( 184-85 ) जैन समाज ( 186-87 ) जैन जातियाँ (187) समाज के प्रमुख नगर एवं ग्राम (189) बीस हजार से ऊपर वाले जिले (1901 जैन तीर्थ 1191-92) 2. दूंढाड़ प्रदेश 193-208 सीमा (193) जयपुर जैन समाज अतीत एवं वर्तमान (1953 मंदिर एवं चैत्यालय (1967 शास्त्र भण्डार (196) जयपुर की जनसंख्या, चौकट्टी एवं उपनगरों की जनसंख्या (197) शिक्षा ( 199) आंध संस्थान ( 1991 सामाजिक संस्थाएं, कार्यकर्तागण उच्चतम एवं उच्च न्यायालय ( 200 ) मत्रीगण, विद्वानों का नगर, दिवंगत आत्माएं ( 201 ) धन्नालाल कासलीवाल, भोलेलाल सेठी, अर्जुनलाल सेठी (202) मुंशी प्यारेलाल कासलीवाल, मोतीलाल दारोगा, मास्टर मोतीलाल संघी, रामचन्द्र विन्दुका ( 203) पं. इन्द्रलाल शास्त्री, गुलाबचन्द कासलीवाल, मोहनलाल काला (205) सोहनलाल सौगानी, सुरज्ञानी चन्द लुहाडिया, रामचन्द्र कोठ्यारी (206) गैदीलाल साह, वीरेन्द्र कुमार खज (207 1 भौरीलाल चौधरी, माणकचन्द जैन ( 208) 3. जयपुर के यशस्वी समाज सेवी 209-333 अजीत कुमार नृपत्या अनूपचन्द गोधा (213) अनूपचन्द ठोलिया (214) अनूपचन्द न्यायतीर्थ, अनुपचन्द बाकलीवाल (215) अलबेल्पचन्द, डॉ. अशोक कासलीवाल (216) अशोक कुमार बाकलीवाल, उत्तमचन्द पांड्या 12171 उमरावमल साह (218) कनकप्रभा झाडा, कपुरचन्द गोधा (219) कन्हैयालाल सेठी 12201 कपुरचन्द काला 1220) कपूरचन्द पाटनी, कपूरचन्द पापड़ीवाल (221) कमल कुमार कासलीवाल, डॉ. कमलेश कासलीवाल (222) कालचन्द कासलीवाल (223) कंवरीलाल. काला (224) डॉ. श्रीमती कुसुम शाह, कोमलचन्द पाटनी (225) कैलाशचन्द चौधरी, कैलाशचन्द पाटनी (226) पं. कैलाशचन्द शास्त्री (227) कैलाशचन्द सेठी (228) गणपत राय सरावगी (2299 गुलाबचन्द कासलीवाल, पं. गुलाबबन्द छाबड़ा (229) गुलाबचन्द पाण्ड्या (2301 गोपीचन्द अजमरा, गोपीचन्द पाटनी (231) डॉ. गोपीचन्द पाटनी (232) गोपीचन्द पोल्याका, गोपीचन्द लुहाडिया, घादमल काला, चन्दालाल टॉग्या. डॉ. चान्दमल जैन, चिरंजीलाल बज, जयकुमार छाबडा, जीवनलाल बागड़ा, जिनेन्द्र कुमार सेठी, ज्ञानचन्द चौधरी, ज्ञानचन्द झाँझरी, टीकमचन्द जैन (233-2401 ताराचन्द अजमेरा (241) डॉ. ताराचन्द गंगवाल, ताराचन्द बलावाला. ताराचन्द छाबहा(242) डॉ. ताराचन्द पाटनी (243) डॉ. ताराचन्द बशी (2441 ताराचन्द बडजात्या चीमवाला, ताराचन्द बडजात्या लालहवेमी, ताराचन्द्र बाकलीवाल (246-246) ताराचन्द सेठी, ताराचन्द सोगानी (247) त्रिलोकचन्द टोग्या (248) दीपचन्द बख्शी 1 249 1 देवीनारायण टकसाली, देवेन्द्र कुमार गोधा (250) वैद्य धन कुमार, धूपचन्द पाण्ड्या (iv) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. सवाई माधोपुर, दौक एवं अलवर जिले का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी 354-380 सवाई माधोपुर जिला 13540 टोंक जिल्ला {355) मत्स्य प्रदेश (357) भरतपुर एवं धौलपुर (359) यशस्वी समाज सेवी - इन्दरमल सोनी, इन्दरमन पाटनी { 361) इन्दरमल बज, कन्हैयालाल छाबड़ा (362) कपूरचन्द संघी नुहाड़िया "भयंकर", कपुरचन्द एडवोकेट (363) कुन्तीलाल कटारिया. चांदमल सौगानी (364) ताराचन्द छाबड़ा, मनालाल बड़ा 25 नरकाननिजनकल सायड़ा ( 366 ) पदमबन्द भौच, प्रेमचन्द कासलीवाल, प्रेमचन्द बड़जात्या (367) पारसदास सोनी, फूलचन्द भौसा (368) बसन्त कुमार भास्त्री ( 3693 भंवरलाल दोशी, पं. भैरवलाल सेठी (370) भागचन्द जैन एडवोकेट, भागचन्द टोग्या ( 3711 महावीर प्रसाद जैन पल्लीवाल, माणकचन्द छाबड़ा (372) माणकचन्द सौगानी, रतनलाल पापड़ीवाल (373) रतनलाल बड़जात्या, रतनन्नाल सोगानी (374) रमेशकुमार, राजेन्द्र कुमार पाटनी (375) 4. लाइली प्रसाद पापड़ीवाल (376) सूरजमन्न कासलीवाल, सुरज्ञानीलाल बाकलीवाल (377) सुरेन्द्र मोहन कासलीवाल, सोहनलाल पाटनी 13783 सौभागमल बड़जात्या, स्वरूपचन्ट गंगवाल ( 379 ) हरकचन्द संघी ( 380) 6. हाडौती प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी 381-411 हाडौती प्रदेश का इतिहास ( 381) कोटा जिला ( 3821 रामगंज मंडी ( 3831 बारां, बूंदी जिला ( 384 ) झालावाड़ जिला 1386) समाज सेवी - त्रिलोकचन्द कोठारी (389) माणकयन्ट पालीवाल (390) मदनलाल चांदवाड़ ( 392) उत्तमचन्द निम्बी. उत्सवलाल जैन (393 ) कस्तूरधन्द गंगवाल, कुलदीप कोठारी ( 394 ) केशरीलाल गंगवान, कैलाशचन्द सेठी, चन्द्रप्रकाश कोठारी (395 ) चांदमल पाटनी, जयकुमार जैन (396) टीकमचन्द सेठी, द पांडया 13971 दयानन्द जिनशचन्द पाटोदी, धर्मप्रकाश कोठारी 1398) नमीचन्द चांदवाड, नेमीचन्द रावका 13997 पन्नालाल सेठी : 400) पटमचन्द पाटनी, पदमकमार दांग्या, प्रकाशचन्द पाइया (401) प्रातापचन्द रावका (402) बाबूलाल दोशी. फूलचन्द सौगानी, मदनमोहन कासलीवाल 1 403) महावीर कुमार काला. महावीर प्रसाद अजमेग (404) माणकचन्ट पाटनी, माणकचन्द सेठी (405 } मातीलाल टोंग्या, मुकेशकुमार रायका, यशभानु कुमार पाटादी ( 406 ) रतनकुमार बज, राजमल लुहाड़िया ( 407 1 लाडादेवी कोठारी ( 405 ) वीरेन्द्रकुमार पाटनी, शान्तिकुमार बड़जात्या ( 410 ) सुनील कोठारी, हुकमचन्द टोंग्या ( 411 } 7. मारवाड़ प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी 412-446 सीकर जिला { 412) नागौर जिला (413) झुंझुनू जिल्ला, चूर जिल्ला (415) यशस्वी समाजसेवी - कजलाल पहाडिया, कन्हैयालाल सेठी : 418 ) कन्हैयालाल सेठी लीचाणा वाले (419) कंवरीलाल बोहरा, किशनलाल पहाडिया 14207 खीवराज पांड्या. गणपतराय सबलावत (421 ) गुलाबचन्द अजमेरा, गुलाबचन्द छाबड़ा । 422) चतुर्भुज अजमंग ( 423 } बांदकपुर गंठी ( 4247 चिरंजीलाल काला, चिरंजीलाल गंगवाल ( 4251 चौथमल पाटनी. जयकुमार गोधा (426; जीवनमल छाबड़ा, जीवराज पहाड़िया ( 427 ) जीवराज बड़जात्या । 4281 जेटमाल सेटी, जागवरमन्न बाकलीवाल ( 4291 त्रिलोकचन्द बइजात्या, दीपचन्ट गगवाल 1430 धर्मचन्द गगवान नेमाचन्द झाडारी : 4311 पन्नालाल घादवाड, पूरणमल काना. फलबन्द याझग। 4323 भवरलाल सेटी, भवरलाल पहाडिया (433) भामराज चूड़ादान, मदनलाल काला 1434 ) मदनलाल गंगवाल, । मन्नालाल कासलीवाल ! 435) महावीरप्रसाद लालासवाला, रतनलाल छाबड़ा (436) रतनलाल पहाड़िया, रतनगन्न बहजात्या (437) रामकृष्ण जैन, राजकुमार पांइया ( 438 ) राजकुमार पाटनी. राजकुमार पाटनी.. खिचन्द पहाडिया ( 439 ) लालचन्द पांड्या, विमलचन्द छाबड़ा (440) सागरमल पांड्या, सूरजमल छाबड़ा 1441) सुरेशचन्द बडजात्या, सोहनलाल पहाडिया (442} सोहनसिह कानना (443) सोहनलाल सोगानी स्वरूपचन्द पाइया (444 श्रीपाल पहाडिया, श्रीपाल सेठी। 445) हनमानबक्स गंगवाल, हीरालाल काला ( 4467 (vi) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. बागड़ एवं मेवाड़ प्रदेश 447-466 भीलवाड़ा जिला 1452 ) यशस्वी समाजसेवी कालूलाल अजमेरा, कुन्तीलाल अजमेरा (455) के. एल. गोधा, केशरीमल सोगानी (456) घनश्याम लुहाड़िया, घीसालाल सेठी (457) चांदमल गदिया, ज्ञानमल पाटोदी (458) ताराचन्द पाटोदी, दुलीचन्द पाटनी (459) धर्मचन्द कासलीवाल, नाथूलाल सेठी (460) निहालचन्द अजमेरा, बसन्तीलाल चौधरी (461) बंशीलाल गांधा, मदनलाल गदिया, महावीरप्रसाद मंदिया (462) मांगीलाल लुहाड़िया, माणकचन्द गोधा, मूलकन्द सोनी (463) रतनलाल काला, रोस्लाल गढ़िया, सुगनचन्द जैन (464) सोहनलाल गोधा ( 465 ) हीरालाल अजमेरा (466) - 9. अजमेर क्षेत्र का जैन समाज 467-501 , वर्तमान समाज (467 नसीराबाद, ब्यावर 468 कंकड़ी, मेहरकला, मदनगंज- किशनगढ़ 468 बघेरा, सावर, सरवाड़ ( 470 ) ग्रामों के परिवारों की संख्या (471) यशस्वी समाजसेवी सेठ भागचन्द जी सोनी (4740 कपूरचन्द मेठी, कस्तूरमल बिल (475) के लुई सेट (175) गुलाबचन्द गोधा, शान्तिकुमार गांधा, बम्पालाल पाटनी (477) चादगल बज, छीतरमल दोशी (478) जतनलाल गढ़िया, टीकमचन्द पाटनी, त्रिलोकचन्द्र सौगानी 479 दीपचन्द चौधरी, पं. दीपचन्द हावड़ा (480) धर्मचन्द मोदी, निहालचन्द अजमेश (481) नेमीचन्द रायका, पदमचन्द गंगवाल पन्नालाल पहाडिया 482 प्रकाशचन्द कटारिया, प्यारेलाल अजमेरा (483) भंवरलाल सोनी, बाबूलाल छाबड़ा, बांदूलाल गंगवास (484) भंवरलाल सौगानी, भागचन्द पाटनी (485) मदनलाल गरावाल (486) महेन्द्रकुमार कासलीवाल 487) माधोलाल गदिया, माणकचन्द गंगवाल, माणकचन्द्र ठोलिया (488) माणकचन्स सौगानी, माणकचन्द सोनी (489) मूलचन्द लुहाड़िया, मूलचन्द्र सौगानी (491) मोहनलाल कटारिया, पं. रतनलाल कटारिया (492) स्तनलाल कटारिया (493) रतनलाल गगवाल, रतनलाल बाकलीवाल 494 राजकुमार दोशी, विनयचन्द्र सौगानी (495) शान्तिलाल कासलीवाल शान्तिलाल बड़जात्या (496) शिखरचन्द गांनी श्रीपाल कटारिया (497) सुजानमल गोधा, स्वम्पचन्द कासलीवाल (498) हजारीलाल यांनी 499 ) हरकचन्द सौगानी, हमराज बड़जात्या (500) बिहार प्रदेश का जैन समाज - 1. बिहार प्रदेश का जैन समाज 502-511 डाल्टनगंज, औरंगाबाद, रफीगंज (504) गया (505) पटना, चम्पारन, इटखोरी, चतरा, कोडरमा, झुमरीतिलैया (507) गिरडीह सरिया, हजारीबाग (508 राधी 509 रामगढ़ (5101 2. यशस्वी समाजसेवी 512-570 अशोककुमार पाड्या, अशोककुमार विनाकम्या 512 अशोककुमार सेठी, आनन्दीलाल चूड़ीवाल (513) आनन्दीलाल नरेशकुमार सेठी (514) इन्द्रवन्द अजमेरा कन्हैयालाल बड़जात्या [515) कन्हैयालाल सेठी, कन्हैयालाल गोठी (516) कमलकुमार राग (517) कस्तूरचन्द अजमेरा (518) किशनलाल विनश्यक्या, किशनलाल साहू 519 कुन्दनलाल साह, केशरीमल काला (520) गणपतलाल बडजात्या, गंगाबक्स गंगवाल 521) गुलाबचन्द अमंग, गोपीचन्द सेठी (522) गोरीलाल सेठी, चंदनमल पाड्या (523) चुन्नीलाल छाबड़ा, छीतरमल पाटनी 524 जयकुमार गंगवान, जयदेव हावड़ा जीतमल हावड़ा (525 ज्ञानवन्द अजितकुमार (vii) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानचन्द हरकचन्द (525) ज्ञानचन्द सेठी, झूमरमल कासलीवाल (527) झूमरमल सटी ( 528 ) ताराचन्द गोधा, दीनदयाल काला (529 ) धरमवन्द छाबड़ा, नन्दलाल सेठी ( 530 ) नरेशकुमार, नेमीचन्द ( 531) पदमचन्द अजमेरा (532) प्रभुलाल छाबड़ा, प्रताप छाबड़ा (533 ) प्रकाशचन्द सेठी, पूनमचन्द गरवाल (534) फूलबन्द अजय (535) फूलचन्द काला, फूलचन्द चौधरी (536) बनारसीलाल सेठी, बंशीधर साह ( 537 ) बालचन्द छाबड़ा (538) बाबूलाल पाटनी, भंवरलाल कासलीवाल (539) भागचन्द विनायक्या, मदनलाल पहाड़िया (540) मनोहरलाल शास्त्री ( 541 ) महावीर प्रसाद पाटनी, महेन्द्रकुमार गंगवाल ( 542 ) महेन्द्रकुमार पाटनी, महेन्द्रकुमार बाकलीवाल (543) महावीरप्रसाद बाकलीवाल, महावीरप्रमाद राग (544) महावीरप्रसाद सेठी, महावीरप्रसाद, महावीरप्रसाद सौगानी (545) महासुख घडजात्या, मानिकचन्द गगवान (546) माणिकबन्द अजमग, मानमल झाशरी (547) महावीरप्रसाद झांझरी (548 ] मूलचन्द छाबड़ा 1549) मूलचन्द काला, मोतीलाल बैनाड़ा (550) मुलचन्द गोधा 1551) स्तनलाल अजमेरा, रतनलाल काला (552) रतनलाल छाबड़ा, रतनलाल पाटनी 1553) रत्नेशकुमार कासलीवाल, राजमल सेठी (555) रामचन्द्र बड़जात्या (556 रामचन्द्र रारा ( 557 } राधाकिशन प्रकाशचन्द रारा, रिखबचन्द बाकलीवाल (558) स्पचन्द सेठी 15597 लालचन्द सेठी, लक्ष्मीनारायण रारा {5601 विद्याप्रकाश (561) विमलकुमार सेठी (562) विमलकुमार सेठी, वीरेन्द्रकुमार काला (563 2 शातिलाल बड़जात्या (564 ) शान्तिलाल बाकलीवाल, सुरेन्द्रकुमार पांड्या (565) सुरेशकुमार पांड्या [ 566 1 सुरेशकुमार पांड्या (5671 सुरेशकुमार पांड्या, हरकचन्द छाबड़ा (568) हरकचन्द पांड्या ( 5697 हीरालाल अजमेरा, हकमचन्द सेठी 15701 मालवा का जैन समाज 571-574 1. समाज का इतिहास एवं यशस्वी समाजसेवी उज्जैन. इन्दीर ( 571 1 लश्कर ग्वालियर. बड़वानी ( 573 1 खुरई, भिलाई ( 5741 575-577 2. समाज के दिवंगत नेता सरसेठ हुकमचन्द जी (5751 मिन्नीलाल जी पाटनी (576) 3. यशस्वी समाजसेवी 577-601 अशोककुमार बड़जात्या (577) इन्दरचन्द पाटनी, उजासचन्द काला (579 15. उषा जैन, कमलादेवी पाड्या, डॉ कैलाशचन्द जैन ( 580 घमण्डीलाल बोहरा, देवकुमार सिंह ( 581 ) धनराज कासलीवाल {583 1 नरेन्द्रकुमार गोधा, पं. नाथूलाल जैन शास्त्री (584) नेमीचन्द पांड्या, प्रकाशचन्द टोंग्या 1586 प्रेमसागर जैन (587) फूलचन्द जैन (568) फूलचन्द झांझरी (589 1 बाबूलाल पाटोदी, मदनलाल मोनी (590) महावीर प्रकाश निगोनिया, माणकचन्द गंगवाल (591 } माणकचन्द गंगवाल एडवोकट (592) मानिकचन्द पाटनी ( 593) मुलचन्द पांड्या, राजा बहादुरसिंह कासलीवाल ( 594) ललितकुमार पांड्या (596) विमलचन्द बाकलीवाल, पं. श्री राम जैन बाकलीवाल ( 59714. सत्यधरकुमार सेठी (5981 सूरजमल गोधा (601) (viii) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज 1. उत्तर प्रदेश का जैन समाज 602-608 जैन परिवार एवं जातियों, जैन तीर्थ (602) आगरा (603) मथुरा, कानपुर, रामपुर (604) लखनऊ (605) सहारनपुर ( 606) सरधना, रामपुर मणिहारान, शामली, कैराना (607) खतौली, कांटाला, बुदाना, बिलारी (608) 2. यशस्वी समाज सेवी 609-633 अशोक कुमार शाबड़ा, बाबू आनन्द कुमार एडवोकेट (610) उत्तम चन्द छाबड़ा, उम्मेदमल पांड्या (611) कपूर चन्द कासलीवाल (612) कैलाश चन्द बड़जात्या (613) कैलाश चन्द भूच, चंदाबाबू बाकलीवाल {614} चिरंजीलालजी छायडा (615) जिनश्वर दास बड़जात्या (616) टीकम चन्द गंगवाल, धन्नामल जैन (617) निर्मल कुमार सेठी (6181 निरंजन लाल बैनाड़ा (619) पदमचन्द जैन, पदमचन्द बाकलीवाल प्रकाशचन्द जैन 16201 प्रकाशचन्द छाबड़ा, पारसदास जैन क्षेत्रपाल, पुखराज पांड्या (621 ) प्रवीप्पचन्द छाबड़ा, प्रेमचन्द छाबड़ा, बाबूगम जैन मैनपुरी (622) भागचन्द पाटनी (623) जय नारायण जैन (624) कस्तूर चद चांदवाड़, रतन लाल पहाडिया (6251 रतन लाल राव: रामचन्द्र रारा मेस्सर जै ग जी-माजमननी जन मापन (6271 रिखबचन्द जैन गोधा, विमल्लकुमार पाटनी (628) विमलचन्द बम्ब, विमलचन्द बैनाड़ा (629) शिवचरण लाल जैन, शिखरचन्द जैन (630 ) सुमेरचन्द पाटनी ( 631 1 सुमेरचन्द बम्ब, सुमेरमल पांड्या. सौभाग्यमल काला (632) वैद्य हुकम चन्द मोठ्या ( 633 ) महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत का जैन समाज 634-636 1. महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत का जैन समाज बम्बई (634) बंगलौर, सेलम, मद्रास (635) पाडीचेरी, हैदराबाद (636) 2. यशस्वी समाज सेवी 636-654 अमृतराय अजय जैन ( 637) चम्पालाल कासलीवाल 1 638 ) चिरंजीलाल बड़जाते, जयचन्द लुगाड़े (639 ) पं. तनसुखराय काला (640) तेजपाल काला, ताराचन्द बमडा (641) ताराचन्द बड़जात्या (642) निर्मलकुमार बाकलीवाल ( 643) नेमीचन्द कासलीवाल, परमेष्ठिदास (644) पुष्पेन्द्र कुमार कौन्देय, बच्छराज सेठी (645) बोदूलाल सेठी, भारतकुमार काला (645) मंगल चन्द पांड्या, मांगीलाल पहाड़े (647) बाबूलाल पहाड़े, माणिकचन्द बज (648) महावीरप्रसाद पाटनी, मूलचन्द पाटनी (649) मूलचन्द बड़जाते, राजकुमार बड़जात्या 1650) विनोद लालचन्द दोशी, श्रीनिवास जैन बड़जात्या 1651) श्रीपाल काला, श्रीमती सरयु वी. दोशी (652) स्वस्पन्द बज (653) सोहनलाल कोठारी, सोहनलाल गंगवाल(654) (ix) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाज सेवी ( जिनका परिचय पूर्व में नहीं आ सका ) 1. यशस्वी समाज सेवी 655-681 अमरचन्द पहाड़िया (656) डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल 658) कैलाशचन्द बाकीवाला, घीसीलाल चौधरी, गणेशी लाल रानीवाला (660) विरंजी लाल लुठाडिया, जयकुमार जैन सिंघवी, जयचन्द पाटनी (662) ज्ञानचन्द खिन्दूका, डूंगर मल सबलाक्त, ताराचन्द पोल्याका (663) नवीनकुमार बज, नानगराम जैन (664) नेमचन्द बाकलीवाल (665) ब नेमीचन्द बड़जात्या (666) प्रसन्न कुमार सेठी, प्रोफेसर प्रवीणचन्द जैन, सुश्री पुष्पा जैन (667) प्रेमचन्द हैदरी (668) जयपुर का सेठ बनजी ठोलिया परिवार गोपीचन्द ठोलिया (669) सुन्दरलाल ठोलिया ऋषभदास ठोलिया (670) राजेन्द्र कुमार टोलिया, प्रदीप ठोलिया (671) बंशीलाल लुहाड़िया, बन्नभद्र कुमार जैन (672) जयपुर नगर का बिलाला परिवार (673) पं. भंवरलाल न्यायतीर्य (674) राजमल जैन बेगस्या, रामचन्द्र कासलीवाल, राजेश जैन कासलीवाल, बिलारी 675) बिरधीलाल सेठी, रुपचन्द जैन अग्रवाल, विनोद कुमार साह (676) व्रजमोहन जैन, शांतिलाल चूड़ीवाल, सरदारमल खण्डाका (677) सीताराम पाटनी (678) श्रीमती सुदर्शन देवी छाबड़ा हीरालाल रानीवाला, डॉ. हुकमचन्दसेठी, हरकचन्द सरावगी, (679) रूपचन्द कटारिया, श्रीमती सरोज छाबड़ा, जगजीत सिंह जैन (681) नाथूलाल चौधरी (682) 1 * स्वतंत्रता संग्राम में योगदान (x) - 682-684 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aWN इतिहास की पृष्ठभूमि इतिहास लेखन की आवश्यकता किसी भी देश एवं समाज के जीवन्त होने का प्रमाण उसके इतिहास से मिलता है। यदि उसका इतिहास सुरक्षित है, उसमें उसकी जागृति एवं गतिविधियों का उल्लेख मिलता है, उसके महापुरुषों की जीवन कहानी संग्रहित है, उसके द्वारा सम्पन्न लोकहित के कार्यों का लेखा-जोखा रखा गया है, राष्ट्र के विकास में उसके योगदान का समुचित मूल्यांकन लिपिबद्ध है तो फिर समझिये वह राष्ट्र जाग्रत राष्ट्र है, समाज भी जापत समाज है और उसका इतिहास भी स्वर्णिम पष्ठों में अंकित है। क्योंकि इतिहास वास्तव में सत्य का प्रकाश और जीवन का शिक्षक है। लेकिन हमने हमारे इतिहास को कभी भी क्रमबद्ध लिखने का प्रयास नहीं किया। प्रथम तो जैन समाज में इतिहास के महत्त्व को समझने वाले बहुत कम हुये और कहीं किसी ने इतिहास लिखने का प्रयास भी किया तो हमने उस व्यक्ति के महत्त्व को नहीं स्वीकारा इसलिए जैन समाज देश का प्राचीनतम समाज होने पर भी उसका कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता। आज इस बात की महती आवश्यकता है। सभी उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री को संग्रहित करने के पश्चात् काल विशेष के इतिहास लेखन के हमारे प्रयत्न जितने अधिक निष्पक्ष, सजीव एवं न्यायपूर्ण होंगे, वह इतिहास उतना ही रोचक, ज्ञानवर्धक एवं सत्य के निकट होगा । इतिहास लेखन के स्रोत : इतिहास लेखन के स्रोतों का सुरक्षित मिलना बड़ा कठिन है। प्रथम तो हमने स्वयं ने ऐसे स्रोतों को सुरक्षित रखने का प्रयास नहीं किया। दूसरा हमने अपने आपको यश, ख्याति, प्रसिद्धि से दूर रखा और ऐतिहासिक कार्य सम्पादन के पश्चात् भी उसका कहीं उल्लेख करना उचित नहीं समझा। हमारी इस भावना ने भी इतिहास के स्रोतों को अनुपलब्ध रखा। तीसरा इतिहास स्रोतों की उपलब्धि इसलिये भी कठिन रही कि नवमी शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी के उत्तराध्द तक देश पर विदेशियों के आक्रमण होते रहे जिनसे प्राचीन इतिहास जानने के माध्यम ही नष्ट हो गये। अधिकांश साधनों को आक्रान्ताओं ने नष्ट कर दिया और इतिहास के कुछ साधन काल गति के प्रभाव से स्वत: नष्ट हो गये। लेकिन इतिहास के स्त्रोतो का इतना विनाश होने पर भी जो कुछ सामग्री बची सुई है यदि उसको भी हम संकलित करके उसका विशिष्ट अध्ययन कर सके तो भगवान महावीर के बाद का इतिहास तो फिर भी लिखा जा सकता 1 इतिहास के स्रोतों को हम निम्न प्रकार विभाजित कर सकते हैं : Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 / जैन समाज का वृहद् इतिहास शिलालेख 1. शिलालेख 2. मूर्तिलेख 3. यंत्र लेख इतिहास के स्रोत पुरातत्त्व सामग्री 1. स्मारक 2. भित्ति चित्र 3. शिल्प कला साहित्यिक सामग्री 1. पुराण एवं कथा साहित्य 2. पट्टावलियाँ זי 3. ग्रंथ प्रशस्तियाँ 4. यात्रा साहित्य इतिहास के उक्त विभिन्न स्रोतों में समाज के इतिहास की विपुल सामग्री मिल सकती है। उदाहरण के लिये यहां कुछ स्रोतों के नाम प्रस्तुत किये जा रहे हैं : शिलालेख : 1. बिजोलिया (राज.) में उपलब्ध संवत् 1226 का शिलालेख, वहीं पर संवत् 1565 एवं निषेधिका लेख संवत् 1483 में बहुत से ऐतिहासिक तथ्य निबद्ध है। संवत् 1226 के शिलालेख में बिजोलिया में भगवान पार्श्वनाथ पर कमठ का उपसर्ग होने का उल्लेख मिलता है। 2. हाथी गुम्फा का शिलालेख : यह शिलालेख जैन सम्राट् खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालता है। इस तरह के शिलालेख माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथ माला के पांच भागों में प्रकाशित हो चुके है। मूर्तिलेख : जैन मूर्तिलेखों, यंत्र लेखों में इतिहास की विपुल सामग्री उपलब्ध होती है। मथुरा की खुदाई से प्रकाश में आई मूर्तियों से प्रमाणित हुआ है कि आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व जैन प्रतिमायें नग्न ही होती थी। इन मूर्तियों पर उत्कीर्ण लेखों में इतिहास की प्राचीनतम सामग्री संकलित की जा सकती है। यंत्र लेख : मूर्ति लेखों के समान यंत्र लेखों में भी जैन समाज के इतिहास की विपुल सामग्री उत्कीर्ण है। जयपुर एवं सवाईमाधोपुर के जैन मन्दिरों में सैकड़ों की संख्या में यंत्र मिलते है जिनमें प्राचीन लेख अंकित है । पुरातत्त्व सामग्री में हमने स्मारक भित्ति चित्र एवं शिल्प कला से सम्बन्धित सामग्री को इतिहास के स्त्रोत माने हैं। लेकिन अभी तक इन पर बहुत कम काम हुआ है। जयपुर, बूंदी, सवाईमाधोपुर के मन्दिरों से अच्छे भित्ति चित्र मिलते हैं। स्मारकों में चित्तौड़ के किले पर निर्मित कीर्ति स्तम्भ, आमेर (जयपुर) स्थित दिगम्बर जैन नशिया का कीर्ति स्तम्भ, आमेर के सरकारी म्यूजियम के कीर्ति स्तम्भों में इतिहास की उल्लेखनीय सामग्री उपलब्ध होती है। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/3 साहित्यिक सामग्री : पुराण एवं कथा साहित्य : जैन पुराणों - महापुराण, हरिवंश पुराण, पांडव पुराण जैसे पुराण एवं पुण्यासव कथाकोश, व्रतकथाकोश इतिहास के स्रोत हैं और इनमें सामाजिक इतिहास की प्रचुर सामग्री उपलब्ध होती है। •आदिपुराण में प्रतिपादित भारत," "हरिवंश पुराण का सांस्कृतिक अध्ययन" जैसी कृतियाँ इस सम्बन्ध में पठनीय है। पदावलियाँ : जैन शास्त्र भंडारों में पट्टावलियाँ अच्छी संख्या में मिलती है इनमें आचार्यों के नाम, आचार्य पद पर बैठने की तिथि, मुनि अवस्था में रहने की अवधि, उनकी जाति का नाम, भट्टारकों का कार्यकाल, पट्ट पर बैठने की तिथि, जाति का नाम आदि के सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री उपलब्ध होती है। भट्टारक सम्प्रदाय, खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास, राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूचियाँ पांच भाग जैसी पुस्तकों से पट्टावलियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ग्रंथ प्रशस्तियाँ : ग्रंथ प्रशस्तियाँ इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक स्रोत है । ग्रंथ प्रशस्तियों एवं लेखक प्रशस्तियों में जो कुछ वर्णित है वह पूर्णतः प्रामाणिक होता है। लेखक के सम्बन्ध में, शासन के सम्बन्ध में, ग्राम एवं नगर के सम्बन्ध में, समाज, व्यापार व्यवसाय के सम्बन्ध में इन प्रशस्तियों में महत्त्वपूर्ण सामग्री होती है। इन प्रशस्तियों के आधार पर इतिहास की अच्छी सामग्री एकत्रित की जा सकती है तथा इतिहास की कितनी ही समस्यायें सुलझायी जा सकती है। प्रशस्ति संग्रह जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह भाग एक एवं दो में प्रशस्तियों की महत्त्वपूर्ण सामग्री देखी जा सकती है। यात्रा साहित्य : यात्रा साहित्य में भी इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत छिपे रहते है। श्वेताम्बर साधुओं ने यात्राओं का अच्छा वर्णन किया है। राजस्थान के शास्त्र भण्डारों, यात्रा समुच्चयः, यात्रावली', शिखर विलास, जैन यात्रा आदि की पाण्डुलिपियों में जैन तीर्थों की यात्राओं का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त बनारसी दास कवि के अर्द्ध कथानक में भी इतिहास की सामग्री भरी पड़ी है। लेखक : डॉ. नेमिचन्द्र जैन ज्योतिषाचार्य। 2. लेखक : डॉ. प्रेमचन्द्र जैन, जबपुर। 8. लेखक : हॉ. विद्याधर जोहरापुरकर। 4. लेखक : डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल। 5. लेखक : हो, कस्तूरचन्द कासलीवाल। सम्पादक : डॉ. कस्तूरयन्द कासलीवाल, जयपुर। 7. सम्पादक : पं. परमानन्द जी शास्त्री 8. राज. के जैन शास्त्र भण्डारों की राय सूवी - पंचम भाग -पृ.655 9. राज के जैन शास्त्र भण्डारों की व सूची - पंचम भाग- पृ.655 10. शास्त्र भण्डार दि. जैन मन्दिर (चाकसू), जयपुर। 11. जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, जयपुर में पाण्डलिपि का संग्रह है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4/जैन समाज का वृहद् इतिहास प्रकाशित साहित्य : जैन समाज के इतिहास के स्रोत विगत 30-40 वर्षों में प्रकाशित साहित्य में भी उपलब्ध होते है तथा कुछ पुस्तके तो इतिहास पर ही आधारित है। यद्यपि उनमें धर्म, दर्शन, संस्कृति का इतिहास अधिक मात्रा में उपलब्ध होता है लेकिन सामाजिक इतिहास के पृष्ठ भी उनके आधार पर लिखे जा सकते है। इस सम्बन्ध में खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास, पल्लीवाल जैन इतिहास, जैसवाल जैन समाज तथा जयपुर, देहली, इन्दौर, कानपुर, आगरा, कलकत्ता जैसे नगरों की जैन डाइरेक्ट्रियों, बख्तराम का बुद्धि विलास, जैन पत्र-पत्रिकाएं, ए हिस्ट्री ऑफ जैनाज (A History of Jainas) श्री महावीर ग्रंथ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित जैन काव्य कृतियों पर आधारित 10 भाग, व्यक्तिपरक स्मृति ग्रंथ एवं अभिनन्दन ग्रंथ, दिगम्बर जैन साधु परिचय, विद्वत अभिनन्दन ग्रेथ समाज के इतिहास की सामग्री को प्रस्तुत करने वाले स्रोत है, जिनका अध्ययन इस सम्बन्ध में आवश्यक है। भारत का मूल धर्म : जैन धर्म और जैन समाज दोनों ही ऐतिहासिक काल से भारत के मूल धर्म एवं समाज रहे है। आयों के आगमन के पूर्व जो जातियों यहाँ रहती थी वे सब श्रमण धर्म की उपासक थी, अहिंसा प्रिय थी तथा शान्त स्वभाव की थी। जबकि आर्य लड़ाकू थे इसलिये उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को अपने वश में कर लिया। वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर है। उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा। ऋषभदेव के पश्चात् 23 तीर्थकर और हो चुके है जिनमें पार्श्वनाथ 23 वे और महावीर 24 वें तीर्थंकर थे। ऋषभदेव, नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ का उल्लेख वेदों में यत्र-तत्र मिलता है। भागवत पराण में ऋषभदेव को आठवाँ अवतार स्वीकार किया है। इस प्रकार वैदिक साहित्य से ही जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है। इसलिये जैन धर्म जो पहले आहेत धर्म, श्रमण धर्म के नाम से देश में जाना जाता था, भारत का मूल धर्म है। महावीर स्वामी 24वे एवं इस युग के अन्तिम तीर्थकर थे। उन्होंने 30 वर्ष तक देश के विभिन्न भागों में विहार करके अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रहवाद के सिद्धान्त को जन-जन तक पहुंचाया। आज हमारे देश में ही नहीं किन्तु पूरे विश्व में सर्व-जीव-समभाव, सर्व-धर्म-समभाव एवं अपरियहवाद (आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं रखना) की जो बराबर वकालत कर रहे है वे ही सिद्धान्त जैन समाज में ही सर्वाधिक प्रमुखता को लिये हुये हैं। महावीर काल में जैन समाज : महावीर के शासन काल में जैन समाज कितना विस्तार लिये हुये था, इस सम्बन्ध में तो कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता लेकिन इतना अवश्य है उनके संघ में एक लाख श्रावक, तीन लाख भाविकाये थी। 1. लेखक : डॉ. ए.के. राय Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 5 यह संख्या तो उनके संघ की थी। उनके अनुयायियों की संख्या तो करोड़ों में होनी चाहिये। उनके युग में पूरा देश चार वर्णों में विभक्त था तथा व्यवसाय के आधार पर समाज की पहचान होती थी। वर्ग भेद तो था लेकिन समाज भेद नहीं था। महावीर के पश्चात् अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी ने जब अपना संघ लेकर सम्राट् चन्द्रगुप्त के साथ दक्षिण भारत की ओर विहार किया तो उनके साथ 12 हजार साधु थे । जब इतनी बड़ी संख्या में साधुओं का बिहार हो सकता है तो समाज की कितनी विशाल संख्या होगी। उनके युग में पूरा का पूरा गाँव ही जैन धर्मानुयायी होता था । यह स्थिति तो महाराष्ट्र में आज भी कहीं-कहीं देखी जा सकती है। जातियों की संरचना : महावीर निर्वाण के पश्चात् जैनाचार्यों द्वारा सामूहिक रूप में नगर एवं ग्राम वासियों को जैन धर्म में दीक्षित किया जाने लगा। जितनी भी वाल संज्ञकं जातियां हैं उनके पूर्वज सामूहिक रूप में जैन धर्म में दीक्षित हुये थे। यह "वाल" किसी नगर विशेष के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। अग्रोहा से अग्रवाल, खंडेला से खण्डेलवाल, बघेरा से बघेरवाल, ओसिया से ओसवाल, जैसलमेर से जैसवाल, मेडता से मेड़तवाल, जातियों के नाम इसी तरह से पड़े हुये है । जातियों की सुरक्षा की दृष्टि से जाति बन्धन को कड़ा कर दिया गया और विवाह शादी अपनी ही जाति में करने को धर्म की संज्ञा दी गई। अपनी जाति वालों को भोजन कराने में पुण्य माना जाने लगा। धीरे-धीरे जातियों का सम्बन्ध ऐतिहासिक काल से जोड़ा जाने लगा और अपनी जाति को उत्कृष्ट एवं अन्य जाति वालों को हीन दृष्टि से देखा जाने लगा और इस प्रकार जाति बन्धन को धीरे-धीरे धर्म का बाना पहना दिया गया। एक धर्म, एक संस्कृति एवं एक विचारधारा वाले सिद्धान्त को उत्तम माना गया। जातियों की संख्या घटती-बढ़ती रही । यद्यपि 84 जातियों की संख्या रुढ़ मानी जाने लगी लेकिन देश में दिगम्बर जैन समाज में ही 250 से अधिक जातियाँ पैदा हो गई। 237 जातियों के नाम तो हमने खण्डेलवाल जैन समाज के वृहद् इतिहास में गिनाये हैं। ये जातियाँ तो 300-400 वर्ष पहले ही 1. अस्तित्व में थीं। मुस्लिम काल में जैन धर्म और समाज : मुस्लिम काल में प्रायः युद्ध हुआ करते थे और इन युद्धों में हार-जीत के पश्चात् विजेता मुस्लिम शासकों द्वारा मन्दिरों एवं मूर्तियों को लूटा एवं तोड़ा जाता था। यही नहीं मूर्ति भजन के पश्चात् नगरवासियों को भी धर्म परिवर्तन करने पर जोर देना तथा सम्पत्ति को लूटना-खसोटना आम बात थी। अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन, ग्वालियर किले में विराजमान मूर्तियाँ, इसके साचात् प्रमाण है। अजमेर का दाई दिन का झोपड़ा, वहाँ की प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह पहले जैन मन्दिर थे ऐसी इतिहासकारों की भी मान्यता है। मुस्लिम काल में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष काल में मुस्लिम शासन जैन संस्कृति के लिये भी भक्षक साबित हुआ। जो कुछ बचा रहा अथवा निर्मित हुआ वह या तो यहाँ के राजपूत 1. खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास पृष्ठ संख्या 44 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6/जैन समाज का वृतद् इतिहास शासकों के रियासतों में अथवा युद्धों में फंसे रहने से उधर ध्यान नहीं जाने के कारण भी बहुत से मन्दिर बचे रहे। जैन समाज कभी पूरे देश में करोड़ों में था। छोटे-छोटे गाँवों तक में उनकी बहुसंख्या थी । कहते है अकबर के शासन काल में ही जैन समाज की संख्या तीन करोड़ से अधिक थी लेकिन उसके पश्चात् वह घटने लगी और जब देश में सन् 1901 में जनगणना हुई तो उसकी संख्या केवल 18,34,148 रह गई। ये तो सरकारी आंकड़े है। हिन्दू जैन का विशेष अन्तर नहीं जानने के कारण यह संख्या सही न भी आई हो तो भी उस समय भी 40,00,000 से अधिक संख्या नहीं होनी चाहिये। बिहार एवं उड़ीसा : भगवान महावीर के युग में और उसके सैकड़ों वर्षों बाद भी बिहार जैन धर्मानुयायियों का प्रमुख केन्द्र बना रहा। बिहार का मानभूम जिला जैन पुरातत्त्व की दृष्टि से सबसे समृद्ध जिला था। बिहार में ही सम्मेद शिखर, राजगृही, पावापुर, कुण्डलपुर जैसे तीर्थ आज भी प्रतिवर्ष हजारों लाखों यात्रियों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। इतिहासज्ञों के अनुसार 12वीं शताब्दी तक बिहार जैन समाज का केन्द्र बना रहा लेकिन उसके पश्चात् उसका वहाँ पतन प्रारम्भ हो गया। जो 18वीं शताब्दी तक बराबर चलता रहा। यहाँ के मूल निवासी जैन शिक्षा एवं साधु सम्पर्क के अभाव में श्रावक से सराग बन गये और वे यह भी भूल गये कि कभी उनके पूर्वज जैन थे। लेकिन पिछले 150 वर्षों से बिहार में पुन: जैन धर्मानुयायी जाकर बसने लगे है । यह क्रम अब भी बराबर चालू है। बिहार की तरह उड़ीसा में खण्डगिरी, उदयगिरी की गुफायें, इस तथ्य का सबसे बड़ा प्रमाण है कि यहां भी जैन धर्म एवं जैन समाज प्रथम शताब्दी से ही जीवित समाज रहा । वर्तमान में भी ये गुफाये जैन तीर्थ का स्थान प्राप्त किये हुये है। बंगाल एवं आसाम : भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म देश के सभी भागों में फैल गया। बंगाल का बर्दमान जिला वर्धमान के नाम से जाना जाने लगा क्योंकि महावीर ने कैवल्य प्राप्ति के पहले बंगाल के लाड़ देश में विहार किया था और घोर उपसर्गों का सामना करना पड़ा था। बंगाल के राजाशाही जिले के पहारपुर में ताम्रपत्र मिला है उससे पता चलता है कि गुप्त काल में यहा जैन धर्म एवं समाज का पर्याप्त विस्तार था। इसके अतिरिक्त दिनाजपुर, मिदनापुर, बांकु, चौबीस परगना, जिलों में कायोत्सर्ग प्रतिमाओं की उपलब्धि, बंगाल में जैन धर्मावलम्बियों का होना सिद्ध करता है। भगवान महावीर के 1000 वर्ष तक यहाँ जैन समाज फला-फुला लेकिन मुस्लिम काल में उसका निरन्तर हास होता गया। समाट अकबर के शासन काल में जब आमेर के राजा मानसिंह वहाँ के गवर्नर थे तब नानू गोधा उनके मुख्यमन्त्री थे। नानू गोधा ने उस समय बंगाल में 84 मन्दिरों का निर्माण कराया, इससे यह स्पष्ट है कि उस समय भी वहाँ जैन समाज काफी अच्छी संख्या में रहता था। बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में 200 वर्ष पूर्व ही राजस्थान Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/7 का मारवाड़ी समाज यहां व्यापार व्यवसाय के लिये गया और फिर वहाँ का निवासी बन गया। इसी तरह कलकत्ता में भी पिछले 100 वर्षों से मारवाड़ी समाज व्यवसाय के लिये वहाँ जाता रहा और फिर वहीं का होकर रह गया । बंगाल में एवं. विशेषतः कलकत्ता में हजारों की संख्या में मारवाड़ी जैन समाज रहता है। मारवाड़ी समाज में दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनो ही समाज आता है। कलकत्ता में वर्तमान में 9 दिगम्बर जैन मन्दिर एवं 6 जिन चैत्यालय है। इस महानगर में जैन समाज के कितने परिवार रहते हैं उनका कोई लेखा-जोखा नहीं है लेकिन श्री दिगम्बर जैन युवक समिति कलकत्ता द्वारा प्रकाशित पार्श्व डायरी 1989 में एक हजार ऐसे व्यक्तियों के पते दिये है जो व्यवसायी है, समाज में जाते-आते है तथा जिनके पास टेलीफोन की सुविधा है। सन् 1913 में प्रकाशित यात्रा दर्पण में यहाँ 855 जैन परिवार एवं 1386 जनसंख्या लिखी है। दक्षिण भारत में जैन समाज : __ महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् देश के अन्य प्रदेशों की तरह दक्षिण भारत में जैन समाज की स्थिति मजबूत हो गई। जै समाजजनगरी एवं गायों तक में फैल गया । अन्तिम केवली आचार्य भद्रबाहु के समय में जब उत्तरी भारत में 12 वर्ष के भीषण अकाल के कारण जब उन्होंने अपने विशाल संघ एवं सम्राट् चन्द्रगुप्त के साथ दक्षिण की ओर विहार किया था तो उससे पता चलता है कि दक्षिण भारत में जैन समाज भी बड़ी संख्या में था। भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर और अष्टांग महानिमित्त के पारगामी श्रुतकेवली थे। उन्होंने अपने 12 हजार साधुओं के विशाल संघ के साथ दक्षिण की ओर विहार किया और उन्हें दृढ़ विश्वास था कि वहाँ जैन साधुओं के आचार का पूर्ण निर्वाह हो जावेगा। तमिल प्रदेश के प्राचीनतम शिलालेख मदुरा और रामनाड जिले से प्राप्त हुये हैं जो अशोक चक्र स्तम्भों में उत्कीर्ण लिपि में है। उनका काल ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का अन्त और दूसरी शताब्दी का प्रारम्भ माना गया है। अशोक के उत्तराधिकारी सम्प्रति ने भी दक्षिण भारत में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का बहुत बड़ा कार्य किया था। दक्षिणी कर्नाटक में भगवान बाहुबलि की विशाल खड़गासन प्रतिमा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दक्षिण भारत में जैन समाज कभी बहुसंख्यक समाज था। पांचवी शताब्दी में बेलगाँव जिला जैन समाज का प्रमुख केन्द्र था, यहाँ कदम्ब राजाओं ने अनेक जैन मन्दिर बनवाये थे। राष्ट्रकुट राजाओं के शासन में जैन धर्म वहाँ जनता का धर्म बन गया था और जैन समाज राज्य की बहुसंख्यक समाज थी। वर्तमान में भी सम्पूर्ण जैन समाज की जनसंख्या का तीस प्रतिशत भाग महाराष्ट्र एवं कनाटक प्रदेश में रहता है। जैन समाज की कुल 32,06,038 में से महाराष्ट्र में सन् 1981 की जनगणना के अनुसार जैन जनसंख्या 9,39,392 है जो अकेले बम्बई महानगर में जैनों की संख्या 3,41,980 है। इसी तरह प्रदेश के अन्य जिलों में रहने वाले जैनो की संख्या निम्न प्रकार है: कोल्हापुर 1,21,722 1. यात्रा दर्पण, पृष्ठ-9001 2. स्टडीज इन साउथ इण्डिया, पृष्ठ-32 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8/जैन समाज का वृहद् इतिहास सांगली ठाणे अहमद नगर नासिक जलगांव सोलापुर औरंगाबाद 67,314 65,907 45,509 33,565 28.792 24,589 24,141 23,328 यह जनसंख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार है जो वास्तविकता से बहुत दूर है। दक्षिण भारत की जैन समाज में अनेक आचार्यों ने जन्म लिया और जैन धर्म एव जैन साहित्य का निर्माण एवं प्रचार किया। आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समन्तभद्र, विद्यानन्द, जिनसेनाचार्य, रविषेणाचार्य, महाकवि स्वयम्भू, पुष्पदन्त दक्षिण भारत के ही सपूत थे। वर्तमान शताब्दी में आचार्य शान्ति सागर जी दक्षिण भारतीय थे। आचार्य देश भूषण जी, विद्यामन्द जी एवं आचार्य कुंधुसागर जी जैसे आचार्यों को देने का सौभाग्य भी दक्षिण भारत को ही मिला है। गुजरात प्रदेश : जैन समाज की दृष्टि से गुजरात को भी उसका महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहने का सौभाग्य प्राप्त है। जैनों का प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र गिरनार 22वें तीर्थकर नेमिनाथ का निर्वाण स्थल है। नेमिनाथ महाभारत युग के तीर्थकर थे तथा नवे नारायण श्री कृष्ण उनके चचेरे भाई थे। जैन पुराणों के आधार पर द्वारिका नगरी के अधिसंख्य नर-नारी उनका धर्मश्रमण करने जाते थे। महावीर के पश्चात् आचार्य धरसेन गिरनार की गुफा में रहते थे और उन्होंने दक्षिण भारत से भूतबलि एवं पुष्पदन्त मुनि युगल को आगम साहित्य का अवशिष्ट शान लाभ देने के लिये बुलाया था। 12वीं शताब्दी में होने वाले सम्राट् कुमार पाल हेमचन्द्राचार्य के प्रमुख शिष्य थे और उनके कारण गुजरात में जैन धर्म का खूब प्रचार हो सका था। मुस्लिम काल में भट्टारक परम्परा का सबसे अधिक विकास सूरत, भडौच, नवसारी, पोरबन्दर, महसाना जैसे नगरों में हुआ था। वर्तमान में कान्जी स्वामी ने सोनगढ़ को अपना कार्य क्षेत्र बनाया और गुजरात में बहुत से मन्दिरों का नवनिर्माण करवाया । जनसंख्या की दृष्टि से गुजरात का देश में तीसरा स्थान है जहाँ पांच लाख की संख्या में जैन समाज रहता है। 1. राजस्थान के जैन सम्स- व्यक्तित्व एवं कृतित्स्य, लेखक : डॉ. कासलीवाल Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/9 हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर प्रदेश : हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर तीनों ही प्रदेशों में कभी जैन समाज अच्छी संख्या में रहता था। सन् 1922-23 में लरकाना स्थित मोहनजोदड़ो स्थित टोले की खुदाई में प्राप्त मिट्टी की सीलों (मुद्राओ) पर एक तरफ खड़े आकार में भगवान ऋषभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्ति बनी हुई है दूसरी तरफ बैल का चिन्ह बना हुआ है। हडप्पा को खुदाई में कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है। इन दोनों धड़ों से इस बात पर प्रकाश पड़ता है कि हडप्पा कालीन जैन तीर्थकर की मूर्तियों जैन धर्म में वर्णित कायोत्सर्ग मुद्रा की ही प्रतीक है। पंजाब प्रदेश में पहले हरियाणा प्रदेश भी सम्मिलित था। गांधार, जम्म, पूंछ, स्यालकोट, जालन्धर, कांगडा, सहारनपुर से अम्बाला, पानीपत, सोनीपत, करनाल, हिसार एवं कश्मीर का भाग सभी पंजाब प्रदेश में गिने जाते थे। पंजाब में जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपने द्वितीय पुत्र बाहुबलि को बहली गधार का राज्य दिया था। उनकी राजधानी तक्षशिला थी। पूरे पंजाब प्रदेश में 11वीं शताब्दी तक जैन समाज पर्याप्त संख्या में था। सिकन्दर बादशाह ने जब भारत के पंजाब प्रदेश पर आक्रमण किया तो उसे देश से लौटते समय बहुत से नग्न मुनि मिले थे एवं जैन मुनि पिहिताश्रव से तो उसका साक्षात्कार भी हुआ था। लेकिन 11वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक महमूद गजनवी से लेकर सिकन्दर लोदी तक अनेक मुसलमान बादशाहों ने भारत पर अनेक बार आक्रमण किये और मुगल बादशाह औरंगजेब के समय तक यहाँ के हिन्दू जैन एवं बौद्ध सम्प्रदायों के मन्दिरों को ध्वस्त किया जाता रहा एवं शास्त्र भण्डारों को जला दिया गया । यही कारण है कि 11वीं शताब्दी के बाद से ही पंजाब में क्रमशः जैन धर्म का हास होने लगा। सन् 1947 में पाकिस्तान बनने से पूर्व रावलपिण्डी छादनी, स्यालकोट छावनी, लाहौर छावनी, लाहौर नगर, फिरोजपुर, फिरोजपुर छावनी, अम्बाला, अम्बाला छावनी, मुलतान डेरा गाजीखान आदि नगरों में जैनो के अच्छी संख्या में घर थे तथा मन्दिर थे। इन जैनी में ओसवाल, खण्डेलवाल एवं अमवाल जातियों प्रमुख थी। पंजाब प्रदेश में भट्टारक जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र एवं शुभचन्द्र ने विहार किया था और अहिंसा धर्म का प्रचार किया था। संवत् 1723 में लाहौर में खड्गसेन कवि ने त्रिलोक दर्पण कथा की रचना की थी। लाभपुर (लाहौर ) में जिन मन्दिर था। वहीं बैठकर धार्मिक चर्चा किया करते थे। सन् 1981 की जनगणना के अनुसार इन प्रदेशों में जैनों की संख्या निम्न प्रकार थी : पंजाब 27,049 हरियाणा 35,482 चंडीगढ़ 1,889 जम्मू-कश्मीर 1,576 इस प्रकार देश के उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक जैन समाज प्रागऐतिहासिक काल से यहाँ का प्रमुख समाज रहा है। वह सदैव अहिंसक समाज रहा इसलिये शान्तिप्रिय भी बना रहा। सम्राट चन्द्रगुप्त, सघाट सम्प्रति, वारवेल, राष्ट्रकुट, अमोघवर्ष, कुमारपाल जैसे शक्तिशाली शासक जैन धर्मानुयायी थे। अहिंसाप्रिय थे लेकिन राष्ट्र की रक्षा के लिये उन्होंने युद्धों से कभी मुख नहीं मोड़ा और देश की रक्षा में जुटे रहे। 1. मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में, सम्पादक : डॉ. कासलीवाल। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान शताब्दी का इतिहास वर्तमान शताब्दी के जैन समाज का इतिहास अनेक रोचक घटनाओं एवं संघर्षों का इतिहास है सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में किसी दृष्टि से वह आगे बढ़ा है तो किसी दृष्टि से वह पीछे भी गया है। उन्नति एवं अवनति उत्थान एवं पतन, सामंजस्य एवं मतभेद, शिक्षा एवं अशिक्षा, विरोध एवं भावात्मक एकता सभी की कहानी उसमें सम्मिलित है। वर्तमान शताब्दी का 60 वर्ष का काल (1888 से 1947 तक) पराधीनता का काल होने पर भी स्वतंत्रता के संघर्ष की कहानियों से ओत-प्रोत है। समाज का राष्ट्रीय एवं राजनैतिक पक्ष स्वतंत्रता के दीवानों की कहानियों को उजागर करने वाला है। राष्ट्रीय आन्दोलन उसने अपनी क्षमता से अधिक योगदान दिया और स्वतंत्रता सेनानियों में उसने अपने अस्तित्त्व को कभी नगण्य नहीं होने दिया। यद्यपि राजनैतिक दृष्टि से उसका कोई स्वतंत्र इतिहास नहीं लिखा गया किन्तु सैकड़ों राष्ट्रभक्तों के त्याग एवं बलिदान का देश के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास मे अवश्य उल्लेखनीय स्थान बना हुआ है। सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक दृष्टि से एक शताब्दी पूर्व की स्थिति का निम्न प्रकार विश्लेषण किया जा सकता है : 1. समाज में कोई भी केन्द्रीय संगठन नहीं था। प्रान्तीय संगठनों का भी कोई उल्लेख नहीं मिलता । 19वीं शताब्दी तक भट्टारक गण समाज के संचालक थे । धार्मिक एवं सामाजिक समस्याओं का वे समाधान किया करते थे, सामाजिक क्षेत्र में उनकी प्रमुख भूमिका रहती थी। लेकिन 20वीं शताब्दी में भट्टारकों का प्रभाव एकदम नगण्य हो गया। नागौर, अजमेर एवं श्रीमहावीरजी शताब्दी के प्रारम्भ में भट्टारक गादियां अवश्य थी लेकिन भट्टारकों का प्रभाव प्रायः विलुप्त होने लगा था और भट्टारको का स्थान स्थानीय पंचायतों ने ले लिया था। 2. देश में जयपुर के अतिरिक्त कहीं भी कोई स्वतंत्र जैन महाविद्यालय नहीं था इसलिये जैन धर्म की शिक्षा प्राप्त करना भी सम्भव नहीं था। सागर, मौरेना, वाराणसी के विद्यालय सभी 20वीं शताब्दी की देन हैं। जयपुर में सन् 1942 (संवत् 1885) में यहाँ के समाज द्वारा एक संस्कृत महापाठशाला की स्थापना की गई थी जिसका प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को संस्कृत एवं जैन धर्म की शिक्षा से शिक्षित करना रखा गया था। 3. जैन पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का युग प्रारम्भ हो चुका था और सन् 1888 के पूर्व 10 पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा था इनमें सन् 1875 में जैन दिवाकर (गुजराती), सन् 1880 में जैन पत्रिका (हिन्दी) इलाहाबाद से, सन् 1884 में जैन बोधक (मराठी) सोलापुर से, जीयालाल प्रकाश (हिन्दी) फर्रुखनगर से, सन 1885 में जैन समाचार (हिन्दी) लखनऊ से प्रकाशित होने लगे थे जो जैन समाज की जागरूकता के प्रतीक माने जा सकते हैं। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 11 अखिल भारतीय स्तर की संस्थाओं की स्थापना : वर्तमान शताब्दी में सर्वप्रथम श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना की गई। संवत् 1949 में जम्बूस्वामी चौरासी मथुरा के वार्षिक मेले पर अखिल भारतीय दिगम्बर जैन संस्था का उद्घाटन किया गया जिसका नाम भारतीय दिगम्बर जैन महासभा रखा गया। उसके प्रथम अध्यक्ष राजा लक्ष्मणदास जी. सी. आई. ई. मथुरा निर्वाचित हुये । उपसभापति लाला उग्रसेन जी रईस, सहारनपुर और महामंत्री पं. छेदीलाल जी अलीगढ़ निर्वाचित हुये। महासभा की स्थापना का उद्देश्य मूर्च्छित जैन समाज में नवचेतना का संचार करना था। महासभा की स्थापना ने जैन समाज के संगठन के लिये प्रकाश स्तम्भ का कार्य किया । संवत् 1952 में महासभा की ओर से भी "जैन गजट" नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किया गया और उसके प्रथम सम्पादक सूरजभान जी वकील सहारनपुर नियत किये गये। I वि.सं. 1953 में महासभा के अधिवेशन में भारतीय दिगम्बर जैन महाविद्यालय का उद्घाटन हुआ । महाविद्यालय के मंत्री न्याय दिवाकर पं. पन्नालाल जो तथा उप मंत्री न्याय वाचस्पति स्याद्वादवारिधि पं. गोपालदास जी बरैय्या नियुक्त हुये। इसी के साथ ही दिगम्बर जैन महासभा परीक्षालय स्थापित हुआ । श्री 105 क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी, पं. माणिकचन्द जी न्यायाचार्य पं. लालाराम जी शास्त्री, पं. मनोहरलाल जी शास्त्री, पं. रामप्रसाद जी शास्त्री आदि विद्वान महासभा विद्यालय के ही स्नातक बने । करीब 10 वर्ष तक महासभा का समाज पर एकाधिकार रहा और वही समाज का प्रतिनिधित्व करती रही। लेकिन 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में जब जैन ग्रंथों के प्रकाशन का प्रश्न सामने उपस्थित हुआ तो महासभा ने ग्रंथों के प्रकाशन का घोर विरोध किया। महासभा की इस नीति से समाज के कुछ प्रमुख व्यक्ति महासभा से अलग हो गये लेकिन महासभा सामाजिक क्षेत्र में बराबर डटी रही। अक्टूबर सन् 1902 में महासभा ने दिगम्बर जैन तीर्थों की रक्षा के लिये दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र की स्थापना की तथा 35 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया। महासभा बराबर तीर्थं क्षेत्रों का रक्षा का कार्य करती रही। सम्मेद शिखर जी पर अंग्रेजों द्वारा बंगला निर्माण की योजना का महासभा के विरोध के कारण ही क्रियान्वयन नहीं हो सका। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज अथवा अन्य मुनियों के स्वतन्त्र विहार में जहाँ भी विरोध हुआ महासभा ने उसका डटकर विरोध किया | महासभा को समाज की सेवा करते हुये शीघ्र ही एक शताब्दी पूरी होने वाली है। अपने 100 वर्षों के जीवन में वह बराबर सामाजिक क्षेत्र में डटी हुई है तथा बाधाओं की बिना परवाह किये निर्ग्रन्थ परम्परा की रक्षा में तथा आगम परम्परा का निर्वाह करने में लगी हुई है। उसकी अध्यक्षता समाज के वरिष्ठतम समाज सेवियों ने की है। वर्तमान में उसके अध्यक्ष युवा समाजसेवी श्री निर्मलकुमार सेठी एवं प्रधानमन्त्री श्री त्रिलोकचन्द कोठारी है। उसका माँगी तुंगी में 95वा अधिवेशन सम्पन्न हो चुका है। 1. हुकुमचन्द अभिनन्दन ग्रंथ पृष्ठ संख्या-418-419 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 / जैन समाज का वृहद् इतिहास समाज की दूसरी संस्था अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् है जिसका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है : अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् : इस अखिल भारतीय स्तर की संस्था का जन्म 26 जनवरी, 1923 को दिल्ली में हुआ था। इसकी स्थापना में स्व. ब्र. शीतल प्रसादजी, बैरिस्टर चम्पतराय जी, स्व. साहू जुगमन्दरदास जी, बैरिस्टर जमनाप्रसाद जी एवं श्री अक्षयकुमार जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। परिषद् ने सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों को समूल नष्ट / दूर करने का बीड़ा उठाया तथा मरणभीज, दस्सा पूजा निषेध जैसी घातक प्रथाओं को बंद कराने में सफलता प्राप्त की। जैन ग्रंथों को प्रेस द्वारा छपवाने के कार्य में परिषद को समाज का पूर्ण समर्थन मिला । अन्तर्जातीय विवाह को परिषद् ने अपने आन्दोलन का अंग बनाया और वर्तमान में भी वह इसका पुरजोर समर्थन करती है। समाज में सुधार चाहने वाले व्यक्तियों को एक मंच पर लाने में परिषद् को पूर्ण सफलता मिली है। परिषद् ने अपना संदेश प्रसारित करने के लिये "वीर" पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। परिषद् को बा. सूरजभान जी वकील, नाथूराम जी प्रेमी, बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार, डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैन, बाबू रतनलाल जी बिजनौर, रायबहादुर सुल्तानसिंहजी जैन देहली, स्व. साहू शान्तिप्रसाद जी जैन, पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थं जयपुर जैसे समाज के नेताओं का पूर्ण समर्थन मिला। महावीर जयन्ती की सार्वजनिक छुट्टी करवाने, जनगणना में अपने आपको जैन लिखवाने जैसे कार्यों में परिषद् का अपना पूर्ण योगदान रहा है। परिषद् अक्टूबर, 1982 में 60 वर्ष की समाप्ति पर कानपुर में हीरक जयन्ती समारोह आयोजित कर चुकी है। परिषद् द्वारा संचालित परीक्षा बोर्ड से प्रतिवर्ष हजारो विद्यार्थी जैन धर्म की विभिन्न परीक्षाओं में बैठते हैं यह परिषद् की बहुत बड़ी उपलब्धि है । परिषद् का वार्षिक अधिवेशन इसी वर्ष बम्बई में आयोजित हो चुका है। वर्तमान में श्री डालचन्द जी जैन सागर इसके अध्यक्ष है तथा श्री सुकुमालचन्द जी जैन मेरठ इसके महामंत्री है। श्री दिगम्बर जैन महासमिति सन् 1975 में दिगम्बर जैन महासमिति की स्थापना की परिकल्पना एक प्रकार की "जैन संसद" के रूप में की गई थी। इसकी स्थापना का प्रमुख श्रेय स्व. साहू शान्तिप्रसाद जी को जाता है। वे ही इसके प्रथम अध्यक्ष बने। इसका प्रमुख उद्देश्य दिगम्बर जैन समाज में एकता, समन्वय व पारस्परिक प्रेम की भावना उत्पन्न करना है। महासमिति किसी भी प्रकार के विवादास्पद पक्षपात की भावनाओं को प्रोत्साहन नहीं देगी व इसमें प्रत्येक विचारधारा का समावेश रहेगा और इसका प्रयास समन्वयात्मक रहेगा। महासमिति संगठन व संवर्द्धन के कार्य को सदा बल देती रहेगी और समाज के सामान्य जीवन Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/13 स्तर के उन्नयन व संवर्द्धन के प्रयास के साथ दिगम्बरत्व की रक्षा व पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करेंगी ऐसा उसका विधान है। भगवान महावीर के 2500 वे निर्वाणोत्सव के बाद भगवान बाहुबली की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की सहस्त्राब्दि समारोह तथा इस अवसर पर होने वाला महामस्तकाभिषेक एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया गया। इस पुनीत कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न करने में महासमिति को सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा एवं स्वस्ति श्री कर्मयोगी भटारक श्रवणबेलगोला श्री चास्कीर्ति जी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। महासमिति दिगम्बर जैन समाज का सबसे बड़ा और उसका सबसे अधिक सशक्त प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन है। यह सारे दिगम्बर जैन समाज की एकता का प्रतीक है। आज महासमिति और दिगम्बर जैन समाज एक दूसरे के समानार्थी बन गये है। महासमिति की सभी प्रान्तों में शाखायें है तथा समाज के सैकड़ों हजारों कार्यकता इससे जुड़े हुये है। वर्तमान में श्री रतनलाल जी गंगवाल इसके अध्यक्ष एवं श्री बाबूलाल जी पाटोदी इसके प्रधानमन्त्री है। इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में हैं। श्री भा.दि. जैन शान्तिवीर सिद्धान्त संरक्षिणी सभा : यह भी एक अखिल भारतवर्षीय संस्था है जिसकी स्थापना 40 वर्ष पूर्व जैनागम एवं सिद्धान्तों की रक्षा के लिये की गई थी। यह सभा आचार्यों एवं सन्तों के सानिध्य में धार्मिक शिविरों का आयोजन करती रही है। जिसमें धार्मिक क्रिया-कलापों एवं गतिविधियों को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलता रहता है। शान्ति वीर सिद्धान्त संरक्षिणी सभा द्वारा 10 जनवरी 1981 को सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर में एक लाख रुपये का अनुदान देकर अपभ्रंश भाषा में अनुसंधान योजना का श्री गणेश किया। सभा द्वारा जैन दर्शन पत्र प्रकाशित किया जाता है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद : जैन विद्वानों की यह प्राचीनतम अखिल भारतीय संस्था है जिसका प्रमुख उद्देश्य जैन विद्वानों को एक मंच पर लाना तथा उनमें धर्म, संस्कृति एवं साहित्य की सेवा करने की भावना भरना है। शास्त्री परिषद् विगत 70-80 वर्ष से समाज की विभिन्न प्रकार से सेवा कर रही है। इसके विद्वान दशलक्षण पर्व में शास्त्र प्रवचन के लिये समाज की मांग के अनुसार जाते रहते हैं। वर्तमान में पं. सागरमल विदिशा अध्यक्ष एवं डॉ. श्रेयान्स कुमार जैन शास्त्री महामंत्री है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् : भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत् परिषद् की स्थापना कलकत्ता में आयोजित वीर शासन जयन्ती के अवसर पर दिनांक 02-11-38 को हुई थी। विद्वत् परिषद् का उद्देश्य भी विद्वानों को एक सूत्र में बांधना, उनमें साहित्यिक अभिरुचि पैदा करना तथा समाज में जागृति पैदा करना है। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14/ जैन समाज का वृहद् इतिहास परिषद् का प्रथम अधिवेशन कटनी में सन् 1945 में स्व.प. बंशीधर जी न्यायालंकार इन्दौर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इसके पश्चात् पं. जगमोहनलाल जी शास्त्री कटनी, 4, कैलाशचन्दजी शास्त्री वाराणसी, पू. गणेशप्रसाद जी वर्णी, पं दयाचन्द जी शास्त्री सागर, 4. फूलचन्द जी शास्त्री वाराणसी, पं. जीवन्धरजी न्यायतीर्थ इन्दौर, पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य बीना, डॉ. नेमिचन्द जी शास्त्री, डॉ. दरबारीलाल जी कोटिन्या. डॉ पन्नालाल जी पाहिन्याचार्य सागर. पं. भंवरलाल जी न्यायतीर्थ जयपुर की अध्यक्षता में वार्षिक अधिवेशन सम्पन्न हुये। परिषद् के गुरु गोपालदास बरैय्या स्मृति ग्रंथ, तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (बार भाग) बहुत ही चर्चित ग्रंथ रहे हैं। पुरस्कार योजना के अन्तर्गत अब तक 10 से भी अधिक विद्वानों को पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। प्रस्तुत इतिहास के लेखक को भी उनकी पुस्तक ' राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व' पर पुरस्कृत किया जा चुका है। परिषद् के 600 से भी अधिक सदस्य है। वर्तमान में श्री माणकचन्द जी चवरे कारंजा अध्यक्ष एवं श्री पं. धन्यकुमार भौरे कारंजा प्रधानमंत्री है। जातीय महासभाओं की स्थापना : अखिल भारतवर्षीय संस्थाओं के अतिरिक्त 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कितनी ही जातीय महासभाओं की स्थापना हुई। इन जातीय सभाओं की स्थापना का उद्देश्य अपनी अपनी जातियों का उत्थान करना था। ऐसी जातीय सभाओं में जैन खण्डेलवाल महासभा, बघेरवाल जैन महासभा, जैसलवाल जैन महासभा, परवार जैन महासभा, जैन पदमावती पोरवाल महासभा आदि के नाम उल्लेखनीय है। इन जातीय सभाओं ने अपनी जाति का संगठन, जाति सुधार, शिक्षा का प्रचार-प्रसार, जातीय संगठनों के नाम से विद्यालयों की स्थापना आदि कार्य तो अवश्य किये लेकिन जातीय सभायें आपसी कलह, ईष्या, समय के अनुसार अपनी विचारधारा को नहीं बदलने के कारण अधिक वर्षों तक नहीं चल सकी। जैन खण्डेलवाल महासभा की स्थापना : जातिहितैषी श्रीमान लुनकरण जी पाण्ड्या झालरापाटन निवासी बम्बई प्रवासी और सेठ पद्मचन्द जी बैनाड़ा आगरा निवासी बम्बई प्रवासी इन्हीं दोनों के विशेष प्रयास से माह सुदी 3 सोमवार वीर संवत् 2445 ता. 28 फरवरी, 1919 को बम्बई में दिगम्बर जैन खण्डेलवाल पचाटेत की बैठक हुई। उसमें अपनी जातीय दशा सुधारने और उन्नति के लिये भारतवर्षीय दिगम्बर जैन खण्डेलवाल महासभा स्थापित करने का विचार किया गया और सर्वसम्मति से सेठ मिश्रीलाल जी बाकलीवाल, सेठ जौहरीलाल जी पाटनी, सेठ फूलबन्द जी बैनाडा, सेठ पं. धन्नालाल जी कासलीवाल, बाबू माणिकचन्द जी बैनाडा, मुंशी मोविन्दराम जी बड़जात्या, भाई सेठ तनसुख जी काला इन सात महानुभावों की एक संस्थापक कमेटी नियत की गई। कमेटी के मंत्री धन्नालाल जी कासलीवाल और सहायक मंत्री माणिकचन्द जी बैनाड़ा नियुक्त किये गये। । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास /15 अलीगढ़ मेले के अवसर पर मथुरा, आगरा, हाथरस, अलवर, दिल्ली, पलवल, चन्दौसी, मुरादाबाद, सासनी, भिवानी इत्यादि स्थानों के खण्डेलवाल पंचों ने महासभा की स्थापना का अनुमोदन किया। इसके अतिरिक्त महासाग की स्थापना के लिये जैन समाज के प्रमुख श्रेष्ठीगण ब्यावर, सेठ फूलचन्द जी अजमेर, मुंशी मूलचन्द जी लक्ष्मीचन्द, मूलचन्द उज्जैन, राजमल जी बाकलीवाल चतरलाल जी वैद - पारसोली, रायबहादुर सेठ टीकमचन्द जी सोनी वकील- मथुरा. पं. गणेशीलाल जी अलवर सेठ लक्ष्मीचन्द जी लुहाडिया - देहली, सेठ गंभीरमल जी पाण्ड्या - कलकत्ता, सेठ चैनसुख जी छाबड़ा सिवनी, सेठ केशरीमल सेठी - गया, सेठ लालचन्द जी पाटनी छिन्दवाडा, लाला मिश्रीलाल जी सौगानी हाथरस, बाबू गोपीलाल जी गोधा लशकर, मास्टर पांचूलाल जी काला- जयपुर, पं. इन्द्रलाल जी शास्त्री जयपुर, पं. उदयलाल जी कासलीवाल बम्बई, सेठ बाबूलाल जी काला प. पन्नालाल जी सोनी, सेठ मिश्रीलाल जी बाकलीवाल, सेठ चांदमल जी अजमेरा, सेठ मोहनलाल जी मच्छी, सेठ कल्याण मल जी इन्दौर, सेठ बालचन्द जी सेठी झालरापाटन, सेठ राजमल जी सेठी नसीराबाद, सेठ बनजीलाल जी ठोल्यां जयपुर, सेठ कुन्दनमल नांदमल जी अजमेरा अजमेर, पंडित पन्नालाल बाकलीवाल आदि अनेक महानुभावों ने भी महासभा स्थापना पर जोर दिया। - - - - 01. 02. - जैन खण्डेलवाल महासभा का प्रथम अधिवेशन दिनांक 27/11/1920 से 1 दिसम्बर 1920 तक पांच दिनों का यह अधिवेशन सेठ लालचन्द जी सेठी झालरापाटन वालों के सभापतित्त्व में कलकत्ता में सम्पन्न हुआ | इसमें बम्बई, खानदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बंगाल, बिहार, आसाम, मणिपुर आदि सुदूर प्रान्तों के कार्यकर्त्ताओं ने भाग लिया। - इसी अधिवेशन में महासभा के पाक्षिक पत्र " खण्डेलवाल जैन हितेच्छु" निकालने का निर्णय किया गया। प्रान्तीय सभाओं के लिये 15 प्रान्तों को नियत किया गया। उनमें बिहार, उड़ीसा प्रान्त के भाइयो ने उसी समय कलकत्ते में ही सेठ रतनलाल जी पाण्ड्या रावीवालों के सभापतित्त्व में प्रान्तीय सभा की स्थापना घोषित करदी। इसी तरह पंजाब प्रान्त के प्रतिनिधियों ने भी उसी अवसर पर सेठ काजूराम जी बड़जात्या भिवानीवालों के सभापतित्व में पंजाब प्रान्तीय सभा की स्थापना करली | बंगाल एवं आसाम प्रान्त बिहार एवं उड़ीसा जाति सुधार के अनेक प्रस्ताव इस अधिवेशन में पास किये गये और इस तरह के अधिवेशन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए। इसी अधिवेशन में देश को 15 भागों में बांटा गया। उन प्रदेशों की नामावली इस प्रकार है : क्रम सं. प्रान्तों का नाम संयोजक का नाम सेठ तनसुखलाल जी पाण्ड्या कलकत्ता । श्री रामचन्द्र जी सेठी - गिरीडीह । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16/जैन समाज का वृहद् इतिहास 03. नागपुर प्रान्त 04. महाराष्ट्र 05. मालवा प्रान्त 06. ग्वालियर एवं आगरा प्रान्त 07. पंजाब प्रान्त 08. जयपुर प्रान्त 09. ढूंढार एवं शेखावाटी प्रान्त 10. नागौर एवं लाडनूं सेठ बैंगसुख जी छाबड़ा - सिवनी। सेठ गंगाराम बंशीलाल जी कासलीवाल - नाद गाँव। सेठ हीरालाल जी पाटनी - इन्दौर। मुंशी मूलचन्द जी वकील - मथुरा तथा बाबू गोपीलाल जी गोधा - लश्कर । सेठ छाजूराम जी बड़जात्या - भीवानी। सेठ रामचन्द्र जी बिन्दूका - जयपुर। दीवान परतुलाल जी छाबड़ा - सीकर तथा सेठ प्रेमसुख कजोडीमल जी - सीकर । सेठ चंपालाल जी सबलावत - डेह तथा महादेवलाल जी पाटनी - लाडनू। मुंशी गोविन्दराम जी बड़जात्या - कुचामन और सेठ चंदनमल जी पाण्ड्या - कुचामन । बाबू नांदमल जी तथा मोहरीलाल जी बोहराअजमेर। बिरधीचन्द जी सेठी - सुजानगढ़। कस्तुरचन्द जी अजमेरा - भीलवाड़ा तथा भैरोलाल बाबूलाल जी - उदयपुर (मेवाड़)। श्री सुन्दरलाल जी बैनाड़ा - झालरापाटन । 11. कुचामन एवं गोरावाटी 12. अजमेर 13. बीकानेर एवं सुजानगढ़ 14. मेवाड़ प्रान्त 15. हाड़ौती प्रान्त प्रथम अधिवेशन के पश्चात् जैन खण्डेलवाल महासभा के एक के पश्चात् दूसरे अधिवेशन होते रहे। कुछ अधिवेशन स्थल एवं उनके सभापतियों के नाम निम्न प्रकार हैं : 1. द्वितीय एवं तृतीय अधिवेशन - देहली : मुंशी प्यारेलाल जी कासलीवाल, जयपुर। 2. चौथा एवं पांचवा अधिवेशन - ब्यावर (राज.): रायबहादुर सेठ कल्याणमल जी कासलीवाल, इन्दौर 3. छठा अधिवेशन - नावौं : रायबहादुर सेठ टीकमचन्द जी सोनी, अजमेर । 4. सातवौं अधिवेशन - लावा (टौक) (राज.): सेठ प्रभुलाल जी पाण्ड्या, कलकत्ता। 5. आठवा एवं नवम् अधिवेशन - ___ मोजमाबाद (राज.): सेठ छाजूराम बड़जात्या, भिवानी । 6. दशम अधिवेशन - लाडनू (राज.): मुंशी जमनालाल जी साह, जयपुर । 7. ग्यारहवाँ अधिवेशन - दुर्ग (म.प्र.) : सेठ गजराज जी गंगवाल । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 17 8. बारहवाँ अधिवेशन रेनवाल (राज.) : सेठ बिरधीचन्द जी सेठी, सुजानगढ़ । सेठ मूलचन्द जी बड़जात्या, लाडनूं । 9. तेरहवाँ अधिवेशन सम्मेद शिखर : यह अधिवेशन आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुआ था । 10. चौदहवाँ अधिवेशन नावाँ सेठ हीरालाल जी पाटनी । इसके पश्चात् सन् 1952 तक खण्डेलवाल महासभा के 22 अधिवेशन और सम्पन्न हुये । खण्डेलवाल जैन हितेच्छु पत्र का प्रकाशन वीर निर्वाण से. 2447 में शुरू हुआ। इसके सम्पादक तथा प्रकाशक पंडित पन्नालाल जी सोनी थे तथा सूरत से प्रकाशित होता था। चतुर्थ वर्ष से पत्र के सम्पादक पंडित पन्नालाल जी बाकलीवाल उनके बाद मोहरीलाल जी बोहरा, उनके बाद गुलाबचन्द जी पाटनी रहे। वीर निर्वाण सं. 2455 से पत्र के सम्पादक पं. इन्द्रलाल जी शास्त्री, जयपुर हुये । - महासभा के दो भागों में विभक्त हो जाने के बाद यह पत्र भी दो भागों में विभक्त हो गया तथा दोनों एक ही नाम से दो जगह से प्रकाशित होने लगे। मदनगंज से निकलने वाले हितेच्छु के सम्पादक - नेमिचन्द जी बाकलीवाल और इन्दौर से निकलने वाले हितेच्छु के सम्पादक पं. नाथूलाल जी शास्त्री रहे। बाद में प्रकाशन दोनों जगहों से बन्द हो गया । जैन खण्डेलवाल महासभा के अधिवेशनों में यद्यपि समाज सुधारकों में एवं स्थिति पालकों में कभी-कभी नोक-झोंक होती रहती थी लेकिन उससे महासभा के अस्तित्त्व पर कोई आँच नहीं आयी। लेकिन जब से मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज ने लोहड साजनों के विरुद्ध अपने वक्तव्य दिये तथा उनसे रोटी-बेटी व्यवहार बन्द करने का आन्दोलन चलाया तब समाज एकदम दो भागों में विभक्त हो गया। लोहड साजनों का पक्ष लेने वालों में सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर, सेठ तोलाराम जी गजराज जी गंगवाल, पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ जयपुर, सेठ बालचन्द जी सेठी झालरापाटन के नाम उल्लेखनीय थे, दूसरी ओर सेठ गंभीरमल जी पाण्ड्या कलकत्ता, सेठ हीरालाल जी पाटनी, पं. इन्द्रलाल जी शास्त्री ने मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज का पक्ष लिया। लूणियावास महासभा के अधिवेशन में समाज में जमकर लड़ाई हुई और यह झगड़ा इतना बढ़ा कि उसने अन्त में महासभा को ही समाप्त कर दिया। लोहड साजन आन्दोलन भी अपनी मौत मर गया और फिर लोहड साजन नाम का कोई समाज ही नहीं रहा। महासभा भी समाप्त हो गई। लेकिन इससे जातीय सभाओं के माध्यम से लागों में सामाजिक सेवा करने की भावना को बड़ी ठेस लगी । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18/जैन समाज का वृहद् इतिहास भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी : भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी की स्थापना विक्रम संवत् 1959 को भा, दि. जैन महासभा के अधिवेशन पर प्रस्ताव ने. 1 के अनुसार महासभा की एक सब कमेटी के रूप में हुई। इसके पश्चात् तीर्थक्षेत्र कमेटी ने स्वतन्त्र संस्था के रूप में 24 नवम्बर सन् 1930 में अपना विधान रजिस्टर करा लिया। कमेटी ने अपना दिगम्बर जैन क्षेत्री, अतिशय क्षेत्री, जिन मन्दिरों, प्रतिमाओं, जैन कलाकृतियों एवं धर्मायतनों की रक्षा एवं व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य रखा। कमेटी ने भारतवर्ष के समस्त तीर्थक्षेत्रों को 6 प्रदेशों में विभाजित किया। इनमें पूर्व प्रदेश (बंगाल, बिहार, उड़ीसा प्रान्त), पश्विम प्रदेश (गुजरात एवं महाराष्ट्र), उत्तर प्रदेश, दक्षिण प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में छह प्रादेशिक समितियों बनाई गई। विगत 60 वर्षों से तीर्थक्षेत्र कमेटी तीयों के पुख्ता संरक्षण एवं जीर्णोद्धार के कार्य कर रही है। दिगम्बर जैन तीर्थों पर आये दिन विभिन्न प्रकार के संकटों में कमेटी सतत् प्रयत्नशील रहती है। इसके अध्यक्ष समाज के सर्वमान्य प्रतिष्ठित व्यक्ति रहते रहे हैं। सर सेठ हुकमवन्दजी कासलीवाल - इन्दौर, सेठ भागचन्द जी सोनी, सेठ लालचन्द दोशी, साहू शान्ति प्रसाद जी जैन एवं साहू श्रेयान्स प्रसाद जी जैसे सर्वमान्य व्यक्ति इसके अध्यक्ष रह चुके है। वर्तमान में श्री साहू अशोककुमार जी जैन इसके अध्यक्ष एवं श्री जयचन्द लुहाडे उसके महामंत्री है इसका कार्यालय हीराबाग, बम्बई में है। जैन समाज की जनसंख्या : सन् 1891 से लेकर अब तक 10 बार जनगणना हो चुकी है। सन् 1991 की जनगणना भी हो चुकी है लेकिन उसके आंकडे प्राप्त नहीं हो सके है। अब तक की जनगणना के अनुसार 10 दशकों में जैन जनसंख्या निम्न प्रकार रही : सन् 1891 14,16,635 1911 13,34,148 1961 20,27,246 1971 25,04,646 1981 32,06,038 1991 - 40,00,000 (अनुमानित) जनसंख्या के उक्त अकिडो से पता चलता है कि जैन समाज विगत 100 वर्षों में 14 लाख से 32 लाख तक पहुंच सकी जबकि भारत की आबादी तिगुनी से अधिक हो गई। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में जैन समाज की जनसंख्या 45 लाख होनी चाहिये थी। इस तरह समाज की जन-शक्ति निरन्तर हास पर है और यह तो तब है जब लोगों में जनगणना में धर्म के कॉलम में जैन लिखाने की भावना में वृद्धि हुई है और जैन पत्रों ने बार-बार लोगों से आग्रह किया है कि वे धर्म के कॉलम में केवल जैन ही लिखवाये। जाति एवं सम्प्रदाय के चक्कर में नहीं फंसे । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/19 । सामाजिक जैन नेताओं, विद्वानों, कार्यकर्ताओं एवं आम जैन की यही धारणा है कि देश में जैनों की संख्या 1 करोड़ से कम नहीं होनी चाहिये। कुछ वषो पहले ओप. बाबूलाल जमीदार बडोत ने समस्त दिगम्बर जैन समाज की जनगणना की थी। उनके अनुसार यह संख्या 50 लाख तक पहुंच गई थी। यदि इतनी ही संख्या श्वेताम्बर जैन समाज की भी मान ली जावे तो फिर एक करोड़ जनसंख्या स्वतः सिद्ध हो जाती है। वैसे एक लाख से अधिक जैनों की जनसंख्या वाले नगरों की संख्या ही पर्याप्त है। अहमदाबाद, जयपुर, बम्बई, देहली, मद्रास जैसे नगरों के नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। 20वीं शताब्दी में होने वाले समाजसेवी : ___ 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में जिन विद्वानों एवं श्रेष्ठियों का समाज पर पूरा प्रभाव व्याप्त रहा तथा जिन्होंने समाज को प्रत्येक दिशा में आगे बढ़ाने में एवं संकट के समय तन-मन-धन से समाज का साथ दिया उनमें गुरु गोपालदास बरैय्या, सेठ माणकचन्द जी जे.पी. बम्बई, राजा लक्ष्मणदास जी सी.आई.ई., सेठ मथुरादास टंडैय्या, प. पन्नालाल जी बाकलीवाल, बाबू ज्ञानचन्द जी जैनी - लाहौर, फौजदार मुंशी धन्नालाल जी कासलीवाल जयपुर एवं मुशी भोले लाल जी सेठी जयपुर के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । ये सभी समाज के शिरोमणि थे और अपनी सेवाओं से समाज का मन जीत लिया था। इसी तरह सन् 1910 तक कितने ही प्रतिष्ठित एवं सेवाभावी व्यक्तियों के निधन से समाज को गहरी क्षति पहुंची उनमें से कुछ व्यक्तियों के नाम निम्न प्रकार है : 1. श्रीमद राजचन्द भाई शतावधानी थे। आध्यात्मिक सन्त ये। इनके जीवन एंव सत्यप्रियता से स्वयं गाँधी जी भी प्रभावित थे। 2.. रायबहादुर मूलचन्द जी सोनी, अजमेर का निधन दिनांक 18जून सन् 1901 को हो गया। सोनी जी ने जीवन पर्यन्त समाज सेवा एवं धार्मिक लगन का एक सुन्दर चित्र उपस्थित किया। 3. सहारनपुर निवासी श्री जुगमन्दरदास जी एम.ए. सम्पादक जैन गजट का नवम्बर सन् 1904 में स्वर्गवास हो गया। लालाजी सुधारक विचारों के युग पुरुष थे। 4. बाबू देवकुमार जी रईस आरा का 5 अगस्त, सन् 1908 में मात्र 32 वर्ष की आयु में मामूली बीमारी के पश्चात् स्वर्गवास हो गया। आपका जन्म चैत्र सुदी अष्टमी संवत् 1933 (सन् 1876) को हुआ था। आरा में उन्हीं के नाम पर दि. 14 मई सन् 1910 को "देवकुमार सरस्वती भवन" की स्थापना की गई। 5. रायबहादुर सेठ अमोलकचन्द जी का स्वर्गवास संवत् 1965 ज्येष्ठ बुदी ! (सन् 1908) को हो गया। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20/जैन समाज का वृहद् इतिहास 6. 6 मई सन् 1910 को विद्वत्वर सज्जन शिरोमणि सदिवद्यावर्धक, सौम्यमूर्ति, धर्म धुरन्धर, सरिश्तेदार दीवानी श्री भोलेलाल जी सेठी जयपुर का निधन हो गया। ये जयपुरं जैन समाज के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे। 7. दिगम्बर जैन महासभा के ये अध्यक्ष एवं जैन समाज के मूर्धन्य नेता थे। समाज की हर तरह से सेवा करते थे। दिनांक 15 नवम्बर, सन् 1911 को आकस्मिक निधन हो जाने के कारण समाज की गहरी क्षति हो गई। उक्त महानुभावों के निधन के पश्चात् सन् 1930 तक समाज का नेतृत्व सेठ माणकवन्द हीरानन्द जे.पी. बम्बई, बा. जुगमन्दिर दास जी रईस नजीबाबाद, बा. स्थचन्द जी रईस जमींदार - सहारनपुर, लाला सुल्तानसिंह जी बैंकर म्यूनिसिपल कमिश्नर - देहली, रायबहादुर सेठ नेमीचन्द जी सोनी - अजमेर, अर्जुनलाल जी सेठी - जयपुर, पं. गोपालदास जी बरैय्या, सेठ चम्पालाल जी - ब्यावर, सेठ हुकमचन्द जी - इन्दौर, सेठ बंशीलाल जी ठोलिया - जयपुर, रायबहादुर सेठ कल्याणमल जी - इन्दौर, रायबहादुर लाला घमण्डीलाल जी - मुजफ्फर नगर, रायसाहिब ईश्वर प्रसाद जी खजांची - देहली, लाला जम्बूप्रसाद जी रईस - सहारनपुर, रायबहादुर सेठ लक्ष्मीचन्द जी डेरागोजी खाँ, रायसाहिब मोती सागर जी वकील - देहली, पं. श्रीलाल जी शास्त्री - अलीगढ़, खूबचन्द जी शास्त्री - मुरैना, पे, पन्नालाल जी न्यायदिवाकर - सहारनपुर, पं. लक्ष्मीचन्द जी सागर, पं. गणेश प्रसाद जी न्यायाचार्य - सागर, 4. माणिकचन्द जी न्यायाचार्य - मुरैना, पं. जवाहरलाल जी शास्त्री - जयपुर, प. धन्नालाल जी कासलीवाल - बम्बई, पं. सूरजभान जी वकील - सहारनपुर, द्र. शीतलप्रसाद जी, पं. चिमनलाल जी गोधा - जयपुर, 4. पन्नालाल जी बाकलीवाल - जयपुर के हाथों में आया और उन्होंने समाज की सभी तरह से सेवा की। सन् 1930 से 1950 तक: सन् 1930 के पश्वात् समाज में एकदम परिवर्तन आया। यह आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (दक्षिण) तथा आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) वालों का युग था। समाज की बागडोर में इन दोनों आचार्यों एवं उनके संघ के मुनियों का हस्तक्षेप होने लगा था तथा समाज की गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र साधुगण बनने लगे थे। ये 20 वर्ष जातीय महासमाओं की स्थापना एवं उनके स्वर्ण युग के भी रहे लेकिन इन महासभाओं के कारण समाज में मनमुटाव बढ़ने लगा तथा सामाजिक कार्यकर्ता जातीय सभाओं में सिमट कर रह गये। खण्डेलवाल महासभा, परवार महासभा, जैसवाल महासभा, पद्मावती पुरवार महासभा जैसी जातीय सभाओं में कार्य करने वाले अपनी-अपनी जातियों में अपने आपको शीर्षस्थ समझने लगे। लेकिन यह अवश्य है ये व्यक्ति किसी न किसी सभा से जुड़े रहे और एक प्रकार से समाज सेवा में रचि रखते रहे। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/21 " आर्य समाज के विद्वानों से शास्त्रार्थ : 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में देश में आर्य समाज का बहुत जोर हो गया। स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में जैन धर्म के बारे में जो अनर्गल बातें लिखी थी, उसी के आधार पर आर्य समाजी जहाँ-तहाँ शास्त्रार्थ करने को तैयार हो जाते। अजमेर नगर में आर्य समाजियों से सृष्टि कर्तृत्व, मूर्ति पूजा जैसे विषयों पर दिनांक 30 जून सन् 1912 से 2 जुलाई तक लिखित एवं मौखिक शास्त्रार्थ हुआ। जैनों की ओर से कुंवर दिग्विजयसिंह, पं. गोपालदास बरैय्या तथा आर्य समाजियों की ओर से स्वामी दर्शनानन्द जी ने एवं अन्य दूसरे विद्वानों ने भाग लिया। इनके अतिरिक्त और भी विद्वानों ने समय-समय पर योग दिया। इसमें जैन विद्वानों द्वारा दिये गये तर्क अकाट्य माने गये और बिना किसी निर्णय के शास्त्रार्थ समाप्ति की घोषणा कर दी गई। जैन गजट के वर्ष 17 के कितने ही अंकों में समाज की जानकारी के लिये आर्य समाजियों के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रकाशित हुये है। शास्त्रार्थ की यह परम्परा धीरे-धीरे विकसित होने लगी। इससे जैन समाज में भी जागति आई और जैन विज्ञान शास्त्रार्थ के लिये तैयार होने लगे। इसके बाद तो आर्य समाजियो से शास्त्रार्थों की एक लम्बी परम्परा प्रारम्भ हुई। जैन समाज में शास्त्रार्थ संघ के नाम से एक अलग संगठन की स्थापना हुई। पं. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ इसके प्रधानम बी। उन्होंने एवं उनके साथ विज्ञान ने आर्य समाजियों से विभिन्न स्थानों में शास्त्रार्थ किये। इन शास्त्रार्थों के कारण एक समय तो ऐसा आया जब पे. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ को जैन समाज के अत्यधिक लोकप्रिय नेता के रूप में जाना जाने लगा। यह शास्त्रार्यों की परम्परा प. कर्मानन्द द्वारा जैन धर्म स्वीकार करने के बाद कम होती गई। शास्त्रार्थ संघ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया और उसके स्थान पर संस्था का नाम दिगम्बर जैन संघ रखा गया। यह संघ वर्तमान में भी चल रहा है। इसका मुख्य कार्यालय चौरासी मथुरा में है तथा वर्तमान में श्री रतनलाल जी गंगवाल अध्यक्ष एवं श्री ताराचन्द जी प्रेमी प्रधानमंत्री हैं। दिगम्बर जैन संघ का मुख पत्र जैन संदेश साप्ताहिक है जो समाज का लोकप्रिय सामाजिक राष्ट्रीय आन्दोलन : सन् 1930 से 50 तक की अवधि में देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का जोर रहा और अन्त में सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करके भारत स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया। समाज ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में खूब भाग लिया। अनेको जेल गये। हमारे पास ऐसे सैकडों व्यक्तियों के नाम है जिन्होंने जेल की यातनाये भोगी तथा देश-भक्ति में सबसे आगे रहे। राजस्थान, मध्य भारत, देहली, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश की जैन समाज का स्वतंत्रता आन्दोलनकर्ताओं को भरपूर सहयोग रहा। सन् 1947 के पश्चात् उत्तर प्रदेश के श्री अजित प्रसाद जैन को केन्द्रीय खाद्य मन्त्री बनाया गया। मध्य भारत में तख्तमल जैन, मिश्रीलालजी गंगवाल, प्रकाशचन्द सेठी जैसे नेता शासन के सर्वोच्च पदों पर अभिषिक्त हुये। अर्जुन लाल सेठी की सेवा एवं त्याग को देखते हुये जयपुर में आगरा रोड पर अर्जुनलाल सेठी के नाम से एक उप नगर (सेठी कॉलोनी) बसाया गया। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22/जैन समाज का वृतद इतिहास सन् 1950 तक समाज पर जिन व्यक्तियों का नेतृत्व छाया रहा उनमें इन्दौर के सर सेठ हुमकचन्द जी कासलीवाल, अजमेर के रायबहादुर टीकमचन्द जी सोनी, जयपुर के श्री गोपीचन्द जी ठोलिया, पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ, सेठ बैजनाथ जी सरावगी - कलकत्ता, बा. छोटेलाल जी - कलकत्ता, पं. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ - मथुरा, गणेशप्रसाद जी वर्णी व ब्र. शीतलप्रसाद जी, पं. मक्खनलाल जी शास्त्री, मुंशी प्यारेलाल जी कासलीवाल - जयपुर, धन्नालाल जी कासलीवाल - बम्बई, बैरिस्टर चम्यतराय जी के नाम उल्लेखनीय है। 20वीं शताब्दी मध्यकालोत्तर समाज (सन 1951 से 1970 तक): भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना : जैन समान इन सपाको में स-स्टिगों से निरन्तर आगे बढ़ता रहा। शिक्षा, साहित्य, सामाजिकता एवं संगठन की दृष्टि से कभी आगे बढ़ता रहा तो कभी पीछे भी चला गया। इस दशक की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि साह परिवार द्वारा देहली में भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना रही। अब तक साहित्य प्रकाशन की कोई उच्चस्तरीय संस्था नहीं थी। समाज की भी बहुत वर्षों से मांग थी। फरवरी सन् 1944 में साहू शान्तिप्रसाद जी एवं उनकी पत्नी रमारानी द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर है। प्रारम्भ में ज्ञानपीठ ने पुराण साहित्य का प्रकाशन किया जो बहुत रूचिकर रहा। इस दशक में दिगम्बर जैन संघ - मथुरा की ओर से कषाय पाहुड जयधवला टीका का प्रकाशन भी उल्लेखनीय कार्य रहा। वैसे इस दशक के प्रारम्भ में ही सन् 1951 में सर सेठ हुकमचन्द जी का सार्वजनिक अभिनन्दन एवं उनको अभिनन्दन ग्रंथ का समर्पण किया गया। किसी श्रेष्ठी का इस प्रकार का अभिनन्दन किये जाने का प्रथम अवसर था । समाज सेठ साहब को अनभिषिक्त सम्राट कहा करती थी। सन 1957 में आचार्य वीर सागर जी महाराज का तथा सन् 1968 में आचार्य शिवसागर जी महाराज का समाधिमरण इन दो दशकों में हुआ। दोनों ही आचायों के प्रति समाज में गहरी आस्था थी। सन् 1959 में देहली में आयोजित साहू शान्ति प्रसाद जी की अध्यक्षता में एक जैन कन्वेन्शन का . आयोजन हुआ। जिसमें महासभा को समाज की प्रतिनिधि संस्था मानते डुये कितने ही प्रस्ताव पास किये गये। जिससे समाज में एकता की आशा बंधी। जयपुर में आचार्य शिवसागर जी के सानिध्य में अक्टूबर 1963 में एक बार वाद-विवाद के रूप में चर्चा हुई। खानियों में चर्चा सम्पन्न होने के कारण इसे खानियाँ तत्वचर्चा कहा गया। वाद-विवाद के दोनों पक्षों में एक पक्ष सोनगढ़ के विद्वानों का तथा दूसरा आर्षमार्गानुयायी विद्वानों का था। आठ दिन तक चलने वाले इस तत्व चर्चा पर समाज का ध्यान तो अवश्य आकृष्ट किया लेकिन कोई प्रतिफल नहीं निकल सका। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/23 दूसरे दशक में अर्थात् 1961 से 70 तक श्रमण परम्परा में एक नये सन्त का प्रादुर्भाव हुआ और वह है मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज । मुनि श्री ने राजस्थान की राजधानी जयपुर से अपनी तेजस्विता का जिस ढंग से परिचय दिया उसकी गूज सारे देश में फैल गई जिससे भगवान महावीर के श्रमणों की आध्यात्मिक शक्ति का सबको परिचय प्राप्त हुआ। इन बीस वर्षों में जिन सन्तों, विद्वानों एवं नेताओं के निधन से गहरी क्षति हुई उनमें आचार्य कुंथुसागर जी (सन् 1945) आचार्य शान्ति सागर जी छाणी (1944), आचार्य शान्ति सागर जी (सन् 1955) आचार्य सूर्यसागर जी, आचार्य पायसागर जी (1956), आचार्य नेमिसागर जी (सन् 1957) एवं गणेशप्रसाद जी वर्णी (सन् 1961) के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। विद्वानों एवं श्रेष्ठियों में सर सेठं हुकमचन्द जी (1959), डॉ. कामता प्रसाद जी - अलीगंज (सन 1964), बाबू छोटेलाल जी जैन - कलकत्ता (1966), भंवरीलाल जी बाकलीवाल (1967), बाबू जुगल किशोर जी मुख्तार, ५. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ (1969) के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। सन 1971 से 1980 तक का समाज : भगवान महावीर 2500वां परिनिर्वाण महोत्सव : सन् 1971 से 1980 तक का काल जैन समाज के लिये गौरवपूर्ण रहा। सन् 1971 से ही भगवान महावीर के 2500वाँ परिनिर्वाण महोत्सव का कार्यक्रम बनने लगा था। योजनाये बनती और बिगड़ती और फिर बनती। जैसे-जैसे परिनिर्वाण वर्ष आने लगा समाज में नया उत्साह बढ़ने लगा और अन्त में 2500वों परिनिर्वाण महोत्सव पूरे एक वर्ष (सन् 1974-75) तक मनाने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राजकीय, सम्भागीय एवं स्थानीय स्तरों पर अनेक संगठन बने, नाना योजनाये बनी। इन सब गतिविधियों में समाज का सबसे अधिक सहयोग रहा। केन्द्र स्तर पर एवं राज्य स्तर पर श्री महावीर निर्वाण समितियों का गठन/इसके पश्चात् जिला स्तर, तहसील स्तर एवं ग्राम स्तर पर भी निर्वाण समितियों का गठन हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी केन्द्रीय समिति के संरक्षक खं प्रधानमंत्री अध्यक्ष बनी और इसी तरह प्रान्तों में भी राज्यपाल संरक्षक एवं मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय भगवान महावीर का 2500वौँ परिनिर्वाण महोत्सव समितियों बनाई गई। जिला कमेटियाँ भी बनी और उसमें जिलाध्यक्ष उसके अध्यक्ष बनाये गये । समाज ने अपने स्तर पर भी चारो समाजों के संयुक्त तत्त्वावधान में और फिर प्रत्येक समाज की और से भी निर्वाणोत्सव समितियाँ, केन्द्रीय, प्रान्तीय एवं जिला स्तर की समितियों बनाई गई । निर्वाण महोत्सव से जैन समाज में एकात्मक भावना में वृद्धि हुई और जैन कहलाने में वे गर्व का अनुभव करने लगे। निर्वाणोत्सव वर्ष में सेमिनारों, सम्मेलनों, संगोष्ठियों का तांता लग गया। अजमेर, नजीबाबाद, सागर, नागपुर, गया (बिहार) में आयोजित सेमिनारे विशेष उल्लेखनीय रहीं। पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक निकाले गये। कितनी ही पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। आकाशवाणी पर वार्ताये प्रसारित की गई। पुस्तक प्रकाशन में भारतीय ज्ञानपीठ ने विशेष योगदान दिया। राजस्थान सरकार की ओर से "राजस्थान में जैन साहित्य" पुस्तक प्रकाशित हुई। नगरों में महावीर उद्यान स्थापति किये गये तथा सड़कों का नाम महावीर Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24/जैन समाज का वृहद् इतिहास मार्ग रखा गया। सारे देश में भगवान महावीर की स्मति स्वरूप धर्मयक रथ घुमाबा गया जिससे केन्द्र एवं प्रदेशों की निर्वाण समितियों को अच्छी राशि प्राप्त हुई तथा . जैन धर्म की प्रभावना हुई। महावीर परिनिर्वाण महोत्सव के सफल बनाने में पूज्य मुनि विद्यानन्द जी महाराज एवं साहू शान्ति प्रसाद जैन का योगदान विशेषतः उल्लेखनीय है। उस समय उन्होंने सारे समाज को एक सूत्र में संगठित होने में पूर्ण । सफलता प्राप्त की। महान आत्माओं का स्वर्गारोहण : वैसे तो इन 10 वर्षों में अनेक सन्तो, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों का वरद हस्त समाज से उठ गया जिनके स्वर्गदास से समाज की गहरी क्षति हुई। आचार्य महावीरकीर्ति जैसे योगीराज के समाधिमरण से एक महान सन्त का अभाव हो गया। निर्वाण महोत्सव की पूर्व संध्या पर डॉ. नेमिचन्द जी शास्त्री जैसा विद्वान उठ गया। डॉ. हीरालाल जी जैसे उद्भट विद्वान चल बसे । यहीं नहीं जिनके निर्देशन में भगवान महावीर का 2500 वौँ परिनिर्वाण महोत्सव मनाया गया, ऐसे साहू शान्ति प्रसाद जी जैन का निधन सन् 1977 में हो गया। यही नहीं शिक्षा जगत की महान हस्ती बन्दाबाई जी जैन आरा भी चल बसी। इसके पूर्व अक्टूबर 1975 को प्राकृत भाषा के उद्भट विद्वान डॉ. ए. एन. उपाध्ये भी चल बसे जिससे साहित्यिक जगत की महान क्षति हुई। वर्धा के श्री चिरंजीलाल जी बड़जात्या जो राष्ट्रीय एवं सामाजिक क्षेत्र की महान हस्ती थी वह भी चल बसी। वीर सेवा मन्दिर के विद्वान एवं अपभ्रंश के खोजी विद्वान पं. परमानन्द जी भी इसी दशक में स्वर्गवासी हो गये। शताब्दी का अन्तिम दशक (सन 1981 से 1990 तक): 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के एक दशक पूर्व का इतिहास भगवान बाहुबली प्रतिष्ठापना सहस्राब्दि एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सव से प्रारम्भ हुआ। कर्नाटक प्रान्त में श्रवणबेलगोला तीर्थ पर 21 फरवरी सन् 1981 को लाखो नर-नारियों के मध्य भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने महामस्तकाभिषेक समारोह का उद्घाटन किया तथा दिनांक 22 फरवरी को देश-विदेश से आये लाखों यात्रियों के समक्ष भगवान बाहुबलि का हर्ष ध्वनि एवं जयघोषों के मध्य 1008 जल कलशों से अभिषेक किया। इस अवसर पर 151 साधु-साध्वियों ने महामस्तकाभिषेक समारोह में पधार कर महोत्सव की गरिमा में चार चांद लगा दिये । आचार्य देशभूषण जी महाराज, आचार्य विमल सागर जी महाराज एवं मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज सहित एवं अन्य संघों के साधु-साध्वियों पधारी थी। इस अवसर पर अखिल भारतीय स्तर की संस्थाओं, दिगम्बर जैन महासभा, दिगम्बर जैन महासमिति के विशेष अधिवेशन हुये। समारोह में अनेक विद्वानों एवं श्रीमन्तो ने भाग लिया। इस अवसर पर दिगम्बर जैन मुनि परिषद की स्थापना का निर्णय लिया गया। कुछ प्रस्ताव भी पास किये गये। लेकिन इसके पश्चात् इस दिशा में कोई कार्य नहीं हो सका। भगवान बाहुबलि सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह के पश्चात् समाज में समन्वय, सौहार्द एवं एकता का वातावरण बनने लगा। श्रवणबेलगोला की पुण्य धरती पर आचार्यों एवं मुनियों ने एक मंच पर बैठकर कुछ नियम बनाये तथा एकल विहार एवं शिथिलाचार विरोध की भावना Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/25 एवं सोच से समाज में प्रसन्नता का वातावरण पेदा हुआ। लेकिन इन दस वर्षों में समाज में कितनी ही कड़वी एवं मीठी घटनायें घटित हुई जिससे समाज कितने ही वर्गों में विभक्त हो गया। आचार्यों का समाधिमरण इन दस वर्षों में थोड़े-थोड़े अन्तराल से पांच आचार्यों का समाधिमरण हो गया। एक के पश्चात् एक आचायों की छत्र छाया उठती गई। आचार्य धर्मसागर जी महाराज का दिनांक 22-4-1987 को सीकर में समाधिमरण हुआ। सारे राष्ट्र ने उनके समाधिमरण पर दुखः प्रकट किया और एक महान तपस्वी एवं निर्ग्रन्थाचार्य को खोकर समाज में गहरी रिक्तता छा गई। इसके कुछ ही समय पश्चात् आवार्य देशभूषण जी महाराज ने कोथली (महाराष्ट्र) में समाधिमरण ले लिया। आचार्य देशभूषण जी समाज में वयोवृद्ध आचार्य थे और उन्होंने जयपुर में चूलगिरी एवं दक्षिण में कोथली जैसे तीथों की स्थापना की थी। कुंभोज बाहुबली तीर्थ प्रणेता आचार्य समन्तभद्र जी महाराज का भी इन्हीं दस वर्षों में निधन हो गया। इसके पूर्व आचार्य कल्प श्रुतसागर जी महाराज का लूणबा में 5 मई सन् 1988 को समाधिमरण हुआ था जिनके दर्शनार्थ लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी थी और इस दशाब्दि के अन्त में दिनांक मई 1990 में साबला ग्राम में आचार्य अजितसागर जी का समाधिमरण हो गया। आचार्य अजितसागर जी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये एक वर्ष से कुछ अधिक समय ही हुआ था। पंचकल्याणकों एवं अन्य विधानों का आयोजन सन् 1981 से 90 तक देश में पंचकल्याणकों की धूम रही। देश में चारों ओर पंचकल्याणको, इन्द ध्वज विधानों, कल्पद्रुम विधानों एवं चौसठ ऋद्धि विधानों का आयोजन होता रहा। इन दस वर्षों में देश के विभिन्न भागों में 100 से भी अधिक पंचकल्याणक समारोह एवं गजरथ समारोह आयोजित हुये होंगे। जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं देहली में सबसे अधिक पंचकल्याणक समारोह आयोजित हुये। अकेली देहली राजधानी में एक ही वर्ष में एक से अधिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होना हमारी धार्मिक जागृति के शुभ लक्षण है। पूर्वान्चल प्रदेश नलबाड़ी एवं डीमापुर में भी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुये। बड़े-बड़े नगरों के उपनगरों में नये-नये जिनालयों का निर्माण हुआ। इस दिशा में देहली एवं जयपुर का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। पंचकल्याणक महोत्सव आयोजनों के पश्चात् इन्द्रध्वज विधान, कल्पदुम विधानों की ओर समाज का विशेष आकर्षण रहा। कभी-कभी ये विधान पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवों से भी अधिक आकर्षक बनते देखे गये हैं। इन्द्रध्वज विधान एवं कल्पद्म विधानों की रचना करने का श्रेय गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी को है। उनके द्वारा निबद्ध ये विधान समाज में बहुत आकर्षक बन गये है । इन विधानों के आयोजनों में साधुओं की प्रेरणा विशेष फलवती होती है। स्व. क्षुल्लक सिद्धसागर जी महाराज (लाडने वाले) जहां कहीं भी विहार करते इन विधानों के आयोजन की प्रेरणा देते रहते थे। उन्होंने सीकर एवं भागलपुर में विशाल स्तर पर इन्द्रध्वज विधान संपन्न कराये थे। कल्पदुम विधान का विशाल आयोजन भिण्डर में श्री निर्मलकुमार जी सेठी द्वारा दिनांक 8-4-1988 से 19-4-88 तक विशाल Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26/जैन समाज का वृहद् इतिहास स्तर पर कराया गया जिसमें लाखों धर्मप्रेमियों ने भाग लिया था। आचार्य अजितसागर जी महाराज का पूरा संघ वहा विराजमान रहा था। आचार्य विमलसागर जी महाराज के सानिध्य में भी इस प्रकार के आयोजन खूब होते रहे। संस्थाओं का वार्षिकोत्सव अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् का हीरक जयन्ती महोत्सव कानपुर में दिनांक 23-24 अस्ट्रार. 1992 को भी हालाद जी न सागर की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। जिसमें समाज को नई दिशा प्रदान की गई। अ.भा.दि. जैन महासभा का 93 वा वार्षिकोत्सव गौहाटी (आसाम) में, 94 वाँ अधिवेशन सोनागिर में तथा 95 वां वार्षिक अधिवेशन सिद्भक्षेत्र मांगीतुंगी तीर्थ पर दि. 27-28 जनवरी, 90 को श्री निर्मल कुमार जी सेठी की अध्यक्षता में धूमधाम से संपन्न हुआ। महासभा की ओर से समाज को आर्ष मार्ग पर चलने तथा निर्ग्रन्थ मुनि की भक्ति में अपने आपको समर्पित करने के लिये आह्वान किया गया। अ.भा. दि. जैन विद्वत् परिषद् का वार्षिकोत्सव दिनांक 27-28 मई 85 को फिरोजाबाद पंचकल्याणक महोत्सव के अवसर पर प. भंवरलाल जी न्यायतीर्थ की अध्यक्षता में संपन्न हुआ तथा सन् 1990 में सतना में वार्षिकोत्सव आयोजिन हुआ। इसी तरह अ.भा. दि. जैन शास्त्री परिषद् के वार्षिकोत्सव भी सुजानगढ़ एवं खान्दूकॉलोनी में आयोजित हुये। इन अधिवेशनों से समाज के पचासों विद्वानों को एक मंच पर आने का अवसर मिला। विद्वानों एवं श्रेष्ठियों का निधन इन वर्षों में समाज के मूर्धन्य विद्वानों एवं समाज नेताओं के निधन से भी रिक्तता आई तथा उनके मार्गदर्शन से समाज को वंचित रहना पड़ा। समाज के मूर्धन्य नेता एवं मार्गदर्शक सर सेठ भागचन्द जी सोनी का दिनांक 3 अगस्त, 1983 को निधन हो गया। उनके वियोग से सम्पूर्ण समाज एवं देश ने गहरा दुख प्रकट किया और भविष्य में वैसा समाज सेवक होना असंभव माना गया। सर सेठ साहब की चार पीढ़ियों से समाज को संरक्षण प्राप्त होता रहा है। इन्दौर के सर सेठ हुकमचंद जी के सुपुत्र श्री राजकुमारसिंह कासलीवाल का 30 अप्रैल, 1987 को निधन से एक राष्ट्रीय स्तर का नेता उठ गया । मध्यप्रदेश में एवं विशेषतः मालवा के लिये श्री राजकुमारसिंह जी कासलीवाल की सेवायें उल्लेखनीय मानी जाती है। दि. जैन महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल एवं रायसाहब श्री चांदमल जी पाण्ड्या का निधन भी इन्हीं वर्षों में हुआ। दोनों ही श्रेष्ठियों से समाज को पर्याप्त समय तक मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 27 विद्वानों में पं. कैलाशचंद जी शास्त्री वाराणसी, इतिहास रत्न डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैन (11 जून, 1988), जैन मित्र के सम्पादक मूलचंद किशनदास कापड़िया एवं डाह्याभाई कापडिया, श्री कल्याणकुमार जी शशि (9-9-1988 ) प्रसिद्ध उपन्यास लेखक श्री जैनेन्द्रकुमार जी जैन (24-12-89) डॉ. हरीन्द्र भूषण जैन उज्जैन (1989) के निधन से समाज उनकी सेवाओं से सदा के लिये वंचित हो गया। भारत सरकार की ओर से विशिष्ट सम्मान भारत सरकार ने जैन समाज के कुछ नेताओं को उनकी विशिष्ट सेवाओं के कारण पद्मविभूषण एवं पद्मश्री उपाधियों से अलंकृत किया। इस अलंकरण से जैन समाज भी गौरवान्वित हुआ है। ऐसे महानुभावों में निम्न नाम उल्लेखनीय है : 1. श्री साहू भेयान्स प्रसाद जी जैन, पद्मविभूषण जनवरी, 1988 2. श्री धर्मचन्द जी पाटनी इम्फाल, पद्मश्री - 3. श्री बाबूलाल जी पाटोदी इन्दौर, पद्मश्री 4. श्री विमल प्रसाद जी जैन- देहली, पद्मश्री 5. श्री प्रद्युम्न कुमार जैन (एयर मार्शल ) देहली, पद्मश्री - 6. श्री यशपाल जैन- देहली, पद्मश्री 7. ब्र. पं. सुमति बाई जी शाह, पद्मश्री इसी तरह भारतीय डाक विभाग की ओर से दिनांक 9 अप्रैल, 1988 को महाराष्ट्र के जैन कर्मवीर भाउराव पाटिल की स्मृति में डाक टिकट जारी करके समस्त समाज का सम्मान किया गया। लोक सभा चुनाव इन दस वर्षों में लोक सभा के सन् 1984 तथा 1989 में दो बार चुनाव हुये। सन् 1984 के चुनावों में जैन समाज के निम्न महानुभाव लोक सभा के लिये चुने गये : 1. श्री प्रकाशचंद सेठी, इन्दौर 2. श्री डालचंद जी जैन, सागर 3. श्री निहालचंद जी जैन, आगरा 4. श्री विरधीचंद जी जैन, बाडमेर 5. श्री मूलचंद डागा, पाली 6. श्री शांतिलाल धारीवाल, कोटा सन् 1989 के चुनावों मे पूर्व की अपेक्षा बहुत कम जैन बंधु लोक सभा में पहुंच पाये । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 / जैन समाज का वृष्ठद् इतिहास सूर्यकीर्ति प्रकरण श्री कानजी स्वामी का निधन सन् 1981 की प्रमुख घटना रही। उनका व्यक्तित्व समाज में सदैव चर्चा का विषय बना रहा। बम्बई के जसलोक अस्पताल में उनकी मृत्यु को समाज के सभी वर्गों ने अच्छा नहीं माना। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके भक्तों ने उनके व्यक्तित्व को और भी उभारना चाहा और सन् 1984-85 में उनको घातकी खण्ड में होने वाले भावी तीर्थंकर सूर्यकीर्ति के रूप में घोषित कर दिया। इस अप्रत्याशित कार्य में चम्पा बहिन एवं उनके समर्थकों का प्रमुख हाथ रहा। भावी तीर्थंकर घोषित करते ही सोनगढ़ में भावी तीर्थंकर के रूप में सूर्यकीर्ति नाम से कानजी स्वामी की मूर्ति भी प्रतिष्ठापित कर दी गई। समाज को जब इस आगम विरोधी कदम की जानकारी मिली तो चारों ओर से विरोध के स्वर उभर उठे। समाज की सभी अखिल भारतीय संस्थाओं, प्रादेशिक एवं नगर स्तर की संस्थाओं, सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों ने सोनगढ के कर्णधारों के इस कदम का विरोध किया। समाज के. अति वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित जनों का एक प्रतिनिधिमंडल सोनगढ गया। न्यायालय के दरवाजे खटखटाये गये। समाज में घोर विरोध देखा गया तथा बच्चे-बच्चे तक की जबान पर सूर्यकीर्ति का नाम आने लगा। लेकिन कानजी स्वामी को सूर्यकीर्ति तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठापित करने का कार्य नहीं रुका। सूर्यकीर्ति प्रकरण को लेकर सोनगढ़ी भी दो धड़ों में बंट गये। एक धड़ा जिसमें गुजराती एवं कानजी स्वामी द्वारा दिगम्बर धर्म में दीक्षित समाज एक तरफ हो गया और सूर्यकीर्ति मूर्ति प्रतिष्ठापना का पक्ष एवं प्रचार करने लगा। दूसरा धडा टोडरमल स्मारक भवन जयपुर का हो गया और स्मारक भवन के पंडिनगण एवं ट्रस्टी सूर्यकीर्ति मूर्ति प्रतिष्ठापना का समाज के घोर विरोध को देखते हुए उनसे अलग हो गए। वे भी मूर्ति प्रतिष्ठापना का विरोध करने लगे। लेकिन कानजी स्वामी दोनों घड़ी के लिये आदर्श बने हुए है। समाज के घोर विरोध के पश्चात् मूर्ति प्रतिष्ठापना का जोश कुछ ठंडा पड़ गया है। जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति प्रवर्तन दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर की ओर से 4 जून 1982 को लाल किला मैदान देहली से जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का प्रवर्तन प्रारम्भ हुआ। इस ज्ञान ज्योति प्रवर्तन का मुख्य उद्देश्य सारे 1. देश में जम्बूद्वीप से संबंधित ज्ञान का प्रचार प्रसार तथा हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाना रहा। यह ज्ञान ज्योति देश के सभी भागों में गई और समाज ने उसका उत्साह से स्वागत किया तथा आर्थिक सहयोग दिया। सन् 1983 में जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का महाराष्ट्र के सांगली, कोल्हापुर जिलों में प्रवर्तन हुआ। तथा समापन हस्तिनापुर में 28 अप्रेल 1985 को हुआ। भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के तत्वावधान में तीर्थ क्षेत्रों की सुरक्षा एवं उनके सर्वांगीण विकास के लिये तीर्थ क्षेत्र सर्वेक्षण योजना का शुभारम्भ 15 सितम्बर सन् 1984 को साहू श्रेयान्स प्रसाद जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। जिसके अंतर्गत एक-एक तीर्थ का पूरा अध्ययन एवं विकास की सम्भावनाओं को क्रियान्वित करना, तीर्थ के इतिहास को ढूंढकर उसे प्रकाशित करना है। दि. जैन महासभा ने भी तीर्थों के विकास के लिये एक-एक तीर्थ को गोद लेकर उसके पूर्ण विकास की योजना पर कार्य चला रखा है। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/29 तीर्थ बंदना रथ प्रवर्तन ___ भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी की ओर से सन् 1987 के प्रारंम्भ में तीर्थ वंदना रथ का प्रवर्तन किया गया। इस रथ का प्रवर्तन इन्दौर में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने किया। तीर्थ रथ प्रवर्तन का उद्देश्य तीर्थ क्षेत्र कमेटी को आर्थिक सहायना जुटाने के अतिरिक्त देश में अहिंसा की भावना को बढ़ावा देना रहा। सर्वप्रथम तीर्थ रध प्रवर्तन मध्यप्रदेश में उसके पश्चात् दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान में हुआ। तीर्थ वंदना रथ को दि. जैन महासमिति, . दि. और परिषद जैसी संस्थाओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था । उस योजना से दिगम्बर तीर्थ कमेटी को अच्छी आय हुई। जिसका उपयोग तीर्थ क्षेत्रों के विकास में होने लगा है। आचार्य कुन्दकुन्द द्वि-सहस्राब्दि समारोह __ आचार्य कुन्दकुन्द श्रमण संस्कृति के जगमगाते नक्षत्र है। जैनाचार्य परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द को प्रथम स्थान दिया गया है। सन 1988 में उनके समाधिमरण को दो हजार वर्ष पूरे हो गये इसलिये उनका द्वि-सहस्राब्दि समारोह मनाने के लिये व्यापक तैयारी की गई। भारतवर्षीय स्तर की सभी संस्थाओं द्वारा आचार्य कुन्दकुन्द सहस्राब्दि मनाने के लिये समाज से अपील की गई। आवार्य विद्यानन्द जी ने द्वि-सहस्राब्दि समारोह को दो वर्ष तक मनाने का सुझाव दिया। समारोह वर्ष में देश में अनेक संगोष्ठियां आयोजित की गई। भव्य झाकियों निकाली गई तथा कुन्दकुन्द साहित्य का प्रकाशन कराया गया। आचार्य कुन्दकुन्द पर कार्य करने वाले विद्वानों को सम्मानित किया गया । मुख्य समारोह वर्ष 1988 एवं 1989 में आयोजित किये गये। सबसे अधिक समारोह आचार्य विद्यानन्द जी, आचार्य विद्यासागर जी एवं उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में संपन्न हुये। उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा खेकडा, मुजफ्फरनगर, बिनौली एवं सरधना में विशाल स्प से आचार्य कुन्दकुन्द पर संगोष्ठियों आयोजित की गई। 31 जनवरी, 1990 को देश में कुन्दकुन्द दिवस मनाया गया ! आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर आ. कुन्दकुन्द के जीवन पर वार्तायें प्रसारित की गई। अन्य विशिष्ट घटनायें __भारतीय ज्ञानपीठ, देहली एवं आचार्य शान्तिसागर जैन स्मारक ट्रस्ट, बम्बई के संयुक्त तत्वावधान में तथा आचार्य विमलसागर जी महाराज के सानिध्य मे दि. 7-8 सितम्बर, 82 को एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें देश के करीब 40 प्रमुख विद्वानों ने भाग लिया। अपने शोध पत्र पढ़े तथा उन पर विस्तृत चर्चा हुई। लेस्टर (लंदन) में स्थापित जैन सेन्टर में दिगम्बर-श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं श्रीमद् रामचन्द्रसूरि के एक ही विशाल भवन में मंदिर उपाश्रय एवं स्थानकों का निर्माण हुआ। मंदिर की दिगम्बर विधि से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दिनांक 14 जुलाई. 88 से प्रारम्भ हुई। इस प्रतिष्ठा के प्रतिष्ठाचार्य Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30/जैन समाज का वृहद इतिहास पं. फतहसागर जी मार्तण्ड रहे। भट्टारक चास्कीनि मृइविद्री सहित सैकड़ो धर्म प्रेमियों ने भारत से जाकर भाग लिया। यूरोप में यह अपने दंग का प्रथम पंचकल्याणक था । पंचम पट्टाचार्य प्रतिष्ठा आचार्य अजितसागर जी के आकस्मिक समाधिमरण के पश्चात उनके पट्ट आचार्य के रूप में मुनियों । वर्धमानसागर जी एवं मुनिश्री श्रेयान्स सागर जी ने अपने आपको आचार्य घोषित कर दिया। पारसोला में वर्धमानसागर जी को विशाल जन समूह के समक्ष तथा महासभा, महासमिति, दि. जैन परिषद, विद्वत् परिषद, शास्त्री परिषद एवं दूसरी अन्य संस्थाओं के पदाधिकारियों की उपस्थिति एवं सहमति से पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। इसके पूर्व साधु संघ के द्वारा आचार्य श्रेयान्स सागर जी महाराज को भी लुहारिया (राज.) में विशाल जनसमूह के समक्ष पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठापित किया जा चुका था। इस तरह एक ही आचार्य के दो पट्टाचार्य बनने की नई परम्परा का जन्म होना इस दशाब्दि की एक नई घटना है। इस घटना से समाज में पर्याप्त प्रतिक्रिया देखी गई। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान धर्मस्थल में वहां के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द हेगड़े द्वारा आचार्य विद्यानन्द जी के सानिध्य में 4 फरवरी, 82 को भगवान बाहुबली की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना संपन्न हुई। सामाजिक स्थिति इस प्रकार सन् 1981 से 1990 तक के दस वर्ष जैन समाज के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण रहे। लेकिन पूरा जैन समाज चाहे वह किसी जाति अधवा प्रदेश का हो, दहेज की बीमारी से ग्रसित ही रहा। बड़ी-बड़ी कन्यायें इस बीमारी का शिकार बन रही है। दहेज के अतिरिक्त विवाह के पश्चात् वधुओं का परित्याग किया जाने लगा है और परित्याग के पश्चात् दोनों का विवाह भी समाज को मान्य हो रहा है। इस कारण पारिवारिक जीवन अस्थिर बन रहा है। यही नहीं अहिंसक जैन समाज में बहुये सताई जाती है और कभी-कभी जला दी जाती है। सामाजिक संगठन एकदम पंगु हो गया है और व्यक्ति समाज की परवाह किये बिना अपनी इच्छानुसार कार्य करने का आदि हो रहा है। अर्थ की दृष्टि से जैन समाज पहले ही अच्छी स्थिति में है। शिक्षा के क्षेत्र में भी वह आगे बढ़ रहा है। जैन युवक प्रशासनिक सेवाओं के अतिरिक्त पुलिस एवं फौज में भी उच्च पदों पर पहुंचने लगे है यह सब उसके विकास के चिन्ह है। जैन धर्म को पहले से अधिक लोग जानने लगे है। भगवान महावीर का 2500 वौँ परिनिर्वाण महोत्सव, धर्मचक्र प्रवर्तन, भगवान बाहुबलि सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह, मंगल कलश प्रवर्तन, आचार्य कुन्दकुन्द द्वि-सहस्राब्दि समारोह के अवसर पर जैन धर्म का परिचय सारे देश में ही नहीं, किन्तु विदेशों में भी पहुंच रहा है। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवंगत विभूतियाँ विगत अर्द्ध - शताब्दी में जैन समाज में जितनी विभूतियाँ हुई उतनी विभुतियों इससे पूर्व एक साथ शायद ही हुई हो। सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, आर्थिक सुदृढ़ता, प्रेस, समाचार-पत्र आदि सभी ने समाज में नई-नई विभूतियों को जन्म दिया और उन्होंने भी अपने आपको समाज के लिये समर्पित करके रखा। समाज हित का इन महान् आत्माओं ने सदैव ध्यान रखते हुये अपने जीवन को सच्चरित्र एवं निष्कलंक बनाये रखा। समाज ने भी उन्हीं नेताओं को सिर आंखों पर रखा जिन्होंने समाज के हित की सदैव रक्षा की। सन् 1941 से 47 तक का युग स्वतंत्रता का युग था। देश में एवं समाज में स्वतंत्रता सेनानियों का जोर था। राजस्थान में श्री अर्जुनलाल सेठी ने 23 दिसम्बर सन् 1941 की अपनी अंतिम सांस ली। श्री सेठी ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे थे जिन्होंने कष्ट के सिवाय कुछ नहीं पाया लेकिन स्वतंत्रता के लिये दुःखों की कभी परवाह नहीं की। इसी युग में बैरिस्टर चम्पतराय जी जैन हुये। अपने युग के वे महान थे। उनके हृदय में जैन धर्म के प्रचार की कूट-कूट कर भावनायें भरी हुई थी। इनके द्वारा लिखी हुई " की ऑफ नॉलेज" (Key of knowledge) अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। बैरिस्टर साहब ने जैन लॉ लिखकर अभूतपूर्व कार्य किया। उनका निधन 67-68 वर्ष की आयु में दि. 02/06/42 को हो गया । सन् 1940 के पश्चात् सन् 55 तक आचार्य शांतिसागर जी महाराज का समाज पर वर्चस्व रहा और उनके निर्देशों की समाज भी पालना करती रही। उनके विलक्षण व्यक्तित्व से पूरा समाज अपने आपको सौभाग्यशाली मानने लगा। उनके समाधि मरण से विश्व की आँखे उन पर जा टिकी और जैन भ्रमण किस प्रकार मृत्यु का सहर्ष आलिंगन करते हैं इसको विश्व ने प्रथम बार देखा । इन्हीं के समकालोन आचार्य शांति सागर जी छाणी भी हुये। वे भी अपने त्याग एवं तपस्या के कारण समाज में बहु चर्चित रहे । सन् 1944 में उनका समाधिमरण हो गया। इसके अतिरिक्त सन् 58-59 तक सर सेठ हुकमचंद जी सारे समाज के अनभिषिक्त सम्राट् रहे। दि. जैन महासभा एवं दि. जैन खण्डेलवाल महासभा के वे मुकुट रहे । मुनियों के कट्टर भक्त थे। मुनियों पर जहां कहीं भी उपसर्ग आया तो सर सेठ साहब ने अपने प्रभाव का उपयोग किया। उनको संभाज की ओर से इन्दौर स्टेट की ओर से तथा अंग्रेजी सरकार की ओर से बराबर सम्मान प्राप्त होता था और उपाधियों की एक लम्बी सूची बन गई थी। सर सेठ साहब ने सैकड़ों जैन युवकों को रोजगार दिया तथा अपने विद्यालय में पढ़ाकर उनको अंग्रेजी एवं संस्कृत की पूर्ण योग्यता कराई। सेठ हुकमचन्द जी विद्वानों को अपने पास रखते उनसे शास्त्र श्रवण करने तथा कभी-कभी स्वयं भी शास्त्र प्रवचन करते थे। सन् 1940 से 1959 तक का समय सर सेठ हुकमचन्द जी का समय माना जाना चाहिये । सन् 1940 से 64 तक डॉ. कामता प्रसाद जी जैन संस्थापक एवं संचालक अ. दि. जैन मिशन ने सारे देश में अहिंसा के प्रचार प्रचार के लिये अत्यधिक प्रशंसनीय कार्य किया। उन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी जैन साहित्य भेजकर विदेशियों को जैन बनाया। मिशनरी स्प्रिंट डॉ. साहब ने जितना कार्य किया उसका मूल्यांकन करना कठिन है। डॉ. जैन स्वयं अंग्रेजी एवं हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। पुरातत्व एवं इतिहास से उन्हें बहुत प्रेम था। उन्होंने युवकों में मिशन से कार्य करने की भावना भरी । अहिंसा वाणी एवं Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32/जैन समाज का वृहद् इतिहास Voice of Ahimsa जैसे पत्रों का संपादन किया। डॉ. साहब का निधन 17 मई 1964 को मात्र 63 वर्ष की आयु में हो गया। क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वी बड़े प्रभावशाली संत थे। उन्हें बुंदेलखंड के संत के नाम से पुकारा जा सकता है। बुंदेलखंड में वर्णी जी ने नगर एवं गाँवों में संस्कृत विद्यालय खुलवाये और जैन धर्म एवं सिद्धान्त पढ़ाकर पचासों विद्यार्थियों को पंडित बनाया। उनके नाम से कितने ही विद्यालय चल रहे है। वणी जी का निधन दिनांक 5 दिसम्बर 1961 को हआ था। आपके निधन से बंदेलखंड अपने आपको असहाय अनुभव करता है। __इसी काल में ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी हुये जिनके जीवन का मिशन ही समाज सेवा बन गया था। अपने युग के वे महान संत, क्रांतिकारी सुधारक एवं महान साहित्य सेवी थे। जैन समाज ऐसे सन्त के विचारों को नहीं पचा सका। उन्होंने अपने जीवन में 77 पुस्तके लिखी या उनका संपादन किया। महाविद्यालय वाराणसी, अषभब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर, जैन श्राविकाश्रम बबई एवं जैन बाला आश्रम, आरा जैसी संस्थाओं को जन्म दिया। जैन मित्र का वर्षों तक संपादन किया। दि. 10 फरवरी, 42 को उनका शांतिपूर्वक स्वर्गवास हो गया। साहू शांतिप्रसाद जी ने उन्हें इस युग का समन्तभद बतलाया था। दि. जैन महासभा के अध्यक्ष भोट भंवरील जी बाकलीवाल का सन् 1967 में निधन हो गया । बाकलीवाल जो समाज के प्रमुख थे। उनके सम्मान में भंवरीलाल जी बाकलीवाल स्मृति ग्रंथ प्रकाशन हुआ। वे कट्टर आर्ष परम्परा के श्रावक थे। आसाम क्षेत्र में उनका पूर्ण प्रभाव था। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ : बीसवीं शताब्दी के क्रांतिकारी विद्वान थे। सामाजिक आदोलनों के जनक रहे। वे अपने विचारों पर दृढ़ रहते थे। जयपुर में आचार्य शांतिसागर जी महाराज के शुद्धजल त्याग, यज्ञोपवीत जैसे विचारों का उन्होंने उन्हीं के सामने विरोध किया। जयपुर जैन समाज के वे एक छात्र नेता थे तथा जैन समाज को जाग्रत रखने में उन्होंने अहं भूमिका निभायी। संस्कृत के वे महान प्रकाण्ड विद्वान थे। शास्त्रार्थ में वे कभी नहीं घबराते थे। ऐसे महान विद्वान का दिनांक 26 जनवरी 1969 को स्वर्गवास हो गया। बम्बई के श्री नाथूराम जी प्रेमी : हिन्दी ग्रंथ स्लाकर के संस्थापक श्री नाथूराम जी प्रेमी उच्च साहित्य सेदी थे। उन्होंने प्राचीन एवं अप्रकाशित जैन ग्रंथों के प्रकाशन का अभूतपूर्व कार्य किया। उन्होंने जैन हितैषी पत्र का सम्पादन किया। 30 जनवरी सन् 1960 को उनका देहान्त हो गया। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ, अभिनन्दन ग्रंथों की परम्परा में प्रथम ग्रंथ माना जाता है। बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार : अपने युग के अच्छे शोधक पंडित थे तथा साहित्य सेवी थे। वीर सेवा मन्दिर देहली के संस्थापकों में से थे तथा अनेकान्त के सम्पादक थे। आचार्य समन्तभद्र पर उनका विशेष कार्य था। उनका निधन 22 दिसम्बर, सन् 1968 को हो गया। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/33 बाबू होटेलाल जी कलकत्ता अपने जमाने के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता ये। वे स्वयं भी अच्छे विद्वान थे। बिब्लियोग्राफी तैयार करने में उन्होंने विशेष कार्य किया। उनकी स्मृति में बाबू छोटेलाल स्मृति ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। जो उनके यशस्वी जीवन पर अच्छा प्रकाश डालता है। आठवाँ दशक भगवान महावीर 2500वाँ परिनिर्वाण महोत्सव आयोजित होने के कारण जैन इतिहास में विशेष महत्व रखता है। भगवान महावीर के सिद्धान्तों का जितना प्रचार-प्रसार हस दशक में हुआ उतना इसके एवं कभी नहीं हआ। समस्त जैन समाज में भी पूर्ण एकता देखी गई। साहित्य प्रकाशन में भी अभतपर्वकार्य हआ। लेकिन समाज की महान इस्तियों का निधन भी इसी दशक में हआ। ऐसी हस्तियों में डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. नेमिचन्द जैन आरा, श्रीमती रमा जैन, डॉ. ए.एन. उपाध्ये, साहू शान्तिप्रसाद जी जैन के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। सन् 1973 से 77 तक चार वर्ष की अवधि में ही जैन समाज ऐसे रत्नों को खोकर खाली हो गया। डॉ. नेमिचन्द, डॉ, हीरालाल जैन एवं डॉ. उपाध्ये साहित्य जगत की रीढ़ थे। जो कुछ आज हमें साहित्य प्रकाशन का महल दिखता है उसके निर्माण में इन सबका महान् योगदान है। षखडागम की टीकाओ के सम्पादन एवं प्रकाशन में डॉ, हीरालाल जैन एवं डॉ. उपाध्ये का सबसे अधिक योगदान है। ये दोनों ही विद्वान प्राकृत, संस्कृत एवं अंग्रेजी के महान् विद्वान थे। भारतीय ज्ञानपीठ के माध्यम से इन्होंने बीसौं ग्रंथों का सम्पादन किया। इसी तरह डॉ. नेमिचन्द जैन आरा का भी 10 जनवरी 1974 को केवल 52 वर्ष की आयु में ही निधन हो गया। उनके द्वारा लिखित भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा कालजयी पुस्तक है। प्राकृत, हिन्दी एवं संस्कृत में उनकी समान गति थी। उन्होंने बिहार प्रदेश में पचासों छात्रों को जैन साहित्य की ओर मोड़ा। इस दशक की सबसे बड़ी घटना श्रीमती रमा जैन एवं साहू शान्ति प्रसाद जी के निधन को माना जा सकता है। साहू जी सर सेठ हुकुमचन्द जी के पश्चात् समाज के एक मात्र नेता थे। उन्होंने समाज का नेतृत्व इतने अच्छे ढंग से किया कि जैन समाज के वे प्रतीक बन गये। पुरातत्त्व, संस्कृत, साहित्य प्रकाशन, विद्वत् अभिनन्दन पर्व समाज सुरक्षा एवं समाज उन्नति उनके विशिष्ट गुण थे। वे और रमा जी दोनों ने ही अपने आपको ऐसे कार्यों के लिये समर्पित कर दिया था। वे साहित्य सेवियों को प्रोत्साहन देते रहते थे। देश के उच्च कोटि के उद्योगपति होने पर भी समाज में वे इतने घुले-मिले रहते कि छोटे-बड़े का कभी प्रश्न ही विचार में नहीं आता। पहले 22 जुलाई 1975 को श्रीमती रमा जी और फिर दि. 27 अक्टूबर 1977 को साहू जी चल बसे। इस दशक के अन्त में श्री कानजी स्वामी का निधन साहू जी के बाद सबसे बड़ी घटना थी। कानजी स्वामी 40 वर्ष तक समाज पर छाये रहे और आध्यात्मिक क्षेत्र की अभूतपूर्व सेवा करते रहे। समाज में उनका व्यक्तित्व सदैव चर्चा का विषय बना रहा। वे विरोध एवं समर्थन के बीच अपनी बात कहते रहते। हजारों को दिगम्बर जैन अनुयायी बनाकर बीसों मन्दिरों का निर्माण करवाकर सोनगढ़ को आध्यात्मिक केन्द्र बनाया लेकिन जहाँ एक और ऐसा अभूतपूर्व कार्य किया वहीं दूसरी और उनकी निश्चय धर्म-मूलक Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34/जैन समाज का वृहद् इतिहास प्रवृत्तियों के कारण तथा निर्ग्रन्थ साधुओं की उपेक्षा करने के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग उनका सदा ही विरोधी बना रहा। समाज में सामंजस्य स्थापित न होकर विरोध का वातावरण बना रहा। उनका निधन दिनांक 28/11/80 को बम्बई में हो गया। नवे दशक में हमारे परमपूज्य आचार्यों का एक के बाद एक समाधिमरण होना इस दशक की सबसे बड़ी दुखद घटना है। परम पूज्य आचार्य धर्मसागर जी महाराज का समाधिमरण दि. 22/04/87 को सीकर (राजस्थान) में हो गया। आचार्य श्री जैन समाज में आचार्य शान्ति सागर जी की परम्परा के तृतीय पट्टाधीश आचार्य थे। उनकी महान तपस्या, अक्खड़ स्वभाव, विशाल मुनि संघ, अनुशासन सभी उल्लेखनीय थी। उनके समाधिमरण से समाज ने एक महान सन्त खो दिया। आचार्य धर्मसागर जी के महाप्रयाण के पश्चात् आवार्य देशभूषण जी का दिनांक 28 मई, 1987 को कोयली में समाधिमरण हो गया। आचार्य देशभूषण जी भी अलौकिक सन्त थे तथा समाज पर उनका जादू जैसा असर था। जयपुर का चूलगिरी अतिशय क्षेत्र एंव कोथली का दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र उन्हीं की प्रेरणाओं का सुफल है। दोनों आचार्यों के समाधिमरण से उत्पन्न गहरी खाई अभी परी भी नहीं भरी थी कि 6 मई 1988 को आचार्य कल्प 108 श्री श्रुतसागर जी महाराज का लणवा (राजस्थान) में समाधिमरण हो गया। उनकी समाधि को देखने के लिये लाखों जनसमूह उमड़ गया। इसके पश्चात् 18 अगस्त, 1988 को कुभोज में आचार्य समन्तभद्र जी महाराज का समाधिमरण हो गया। उनकी आयु 97 वर्ष की थी। महाराष्ट्र में गुस्कुलों का संचालन एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी को आर्थिक सहयोग प्रदान करने में उनका महान् योग माना जा सकता है। इसके पश्चात् आचार्य अजित सागर जी महाराज का समाधिमरण हो गया जिससे समाज को और भी धक्का लगा। नवे दशक में 3 अगस्त 1983 को सर सेठ भागचन्द सोनी का निधन साहू शान्ति प्रसाद जी के बाद समाज की सबसे बड़ी गहरी क्षति मानी जाती है। सर सेठ साहब की पीढ़ी दर पीढ़ी समाज सेवा का इतिहास स्वर्ण पृष्ठों में अंकित रहेगा। इसके पश्चात् 30/04/87 को रायबहादुर राजकुमार सिंह जी कासलीवाल का इन्दौर में निधन हो गया। इससे मध्य भारत की ही नहीं किन्तु समस्त जैन समाज की अपूरणीय क्षति हुई। सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर के कार्यों को उन्होंने आगे बढ़ाया और सामाजिक कार्यों में सबको सहयोग दिया। नवें दशक में ही दिनांक 17 नवम्बर 1987 को पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री का निधन हो गया। शास्त्री जी जैन सिद्धान्त के प्रकाण्ड विद्वान थे। स्पष्ट वक्ता थे तथा महान् साहित्य सेवी थे। उनके द्वारा लिखित जैन धर्म पुस्तक कालजयी कृति मानी जाती है। इस दशक में डॉ. कन्छेदीलाल जी की हत्या भी समाज की उल्लेखनीय घटना मानी जाती है। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमुख आचार्य एवं साधुगण बीसवीं शताब्दी की प्रमुख सामाजिक घटनाओं में दिगम्बर मुनि परम्परा का पुनर्जीवित होना है। सर्वप्रथम आचार्य श्री आदिसागर जी महाराज ( अंकलीकर) ने दिगम्बर मुनि मार्ग को प्रशस्त किया। इन्होंने सन्1913 में कुंथलगिरि में स्वयं ने निग्रन्थ दीक्षा धारण की । सन् 1943 में इन्होंने नश्वर शरीर का त्याग किया। उत्तर भारत में आचार्य शान्तिसागर "(छाणी)" ने सन् 1923 में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दक्षिण में आचार्य शान्तिसागर जी ने सन् 1927 में मुनि व्रत धारण किये। दोनों ही आचार्यों ने उत्तर भारत में व्यापक विहार विच्या नावः साज में नामनि विहार के प्रति जो आशंकायें थी उन्हें दूर किया। आचार्य शान्तिसागर (दक्षिण) अपने विशाल संघ के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, देहली, बिहार, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र प्रदेश के विभिन्न नगरों में विहार करते हुये वीतराग धर्म का प्रचार करते रहे। आचार्य श्री ने बम्बई नगरी में विहार किया और नग्नता विरोधी कानून का उल्लंघन किया । अन्त में जब उन्होंने समाधिमरण पूर्वक मृत्यु का आलिंगन किया तो हमारे देश के साथ-साथ विश्व ने भी जाना कि जैन साधु मृत्यु का किस प्रकार वरण करते हैं। आचार्य श्री के समाधिमरण को लगभग 35 वर्ष हो गये। इन वर्षों में श्रावकों में मुनि बनने की ललक बढ़ी है और वे मुनि मार्ग को अपनाने लगे है। इन वर्षों में आचार्य कुंथुसागर जी, आचार्य दीर सागर जी, आचार्य शिवसागर जी, आचार्य सूर्यसागर जी, आचार्य महावीरकीर्ति जी, आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य देशभूषण जी, आचार्य अजितसागर जी, मुनि समन्तभद्र जैसे प्रभावक आचार्य हुये जिन्होंने अपने त्याग एवं तपस्या से जैन एवं जैनेतर समाज का मन जीत लिया। वर्तमान में 32 आचार्य, 11 उपाध्याय, 130 मुनिजन, 154 आर्यिकायें, 22 ऐलक, 80 क्षुल्लक एवं 45 क्षुल्लिकायें विद्यमान है। ब्रह्मचारी, ब्रहमचारिणियाँ, भट्टारकगण इस संख्या में सम्मिलित नहीं है। इस तरह वर्तमान में 500 से भी अधिक साधुजन विद्यमान है। देश के सभी प्रदेशो में मुनियों का विहार होने लगा है तथा पंजाब से मृद्रास तक और महाराष्ट्र से नागालैण्ड तक साधुजन विहार करते है और जन-जन को अहिंसा एवं सदाचरण का सदुपदेश देते रहते हैं। वर्तमान समय (सन् 1990) में जितने आचार्य एवं अन्य साधु परमेष्ठी है उनमें निम्न साधुगण प्रमुख है जिनका राष्ट्रीय व्यक्तित्व है तथा पूरे समाज के इतिहास निर्माण में योगदान रहता है : 01. परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज 02. परमपूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज 03. परमपूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज . 04. परमपूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज 05. परमपूज्य आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज 06. परमपूज्य आचार्य श्री कुंधुसागर जी महाराज 07. परमपूज्य आचार्य श्री समति सागर जी महाराज 08. परमपूज्य आचार्य श्री पुष्पदन्त जी महाराज Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36/जैन समाज का वृहद् इतिहास 09. परमपूज्य आचार्य श्री कल्याणसागर जी महाराज 10. परमपूज्य आचार्य श्री श्रेयान्ससागर जी महाराज 11. परमपूज्य उपाध्याय श्री भरतसागर जी 12. परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी 13. परमपूज्य उपाध्याय श्री कनकनन्दि जी 14. परमपूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमति जी 15. परमपूज्य आर्यिका श्री विशुद्धमती जी 16. परमपूज्य आर्यिका श्री सुपार्श्वमती जी 17. परमपूज्य आर्यिका श्री विजयमती जी 18. स्वास्त श्री भट्टारक वास्कीतिजो श्रवणबेलगोला • 19. स्वस्ति श्री भट्टारक चास्कीर्तिजी मूडविद्री 20. ब्रह्मचारिणी कुमारी कौशल बहिन जी आचार्य विद्यानन्द जी वर्तमान युग के समन्तभद्र हैं। अपनी आकर्षक वक्तृत्व शैली से लाखों की जनसभा को सम्बोधित करते रहते हैं। आप जहाँ भी जाते है जन मेदिनी उमड़ पड़ती है। भगवान महावीर के 2500वाँ निर्वाण महोत्सव, भगवान बाहुबली के सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह, बावनगजा महामस्तकाभिषेक समारोह जैसे विशाल समारोहों का सफल आयोजन आपकी ही प्रेरणा का सुफल है। समाज के एकीकरण में आपका पूरा योगदान रहता है। 12 अप्रैल, 1925 को जन्मे श्री विद्यानन्द जी ने सन् 1963 में मुनि दीक्षा ली, सन् 1974 में उपाध्याय पद दिया गया । सन् 1978 में एलाचार्य पर एवं सन् 1981 में सिद्धान्त चक्रवर्ति पद पर प्रतिष्ठित किया गया। युवाचार्य श्री विद्यासागर जी कठोर तपस्वी, उच्च साधक, सिद्धान्त मर्मज्ञ, महाकवि एवं मधुर वक्तृत्व शैली के धनी है। आप जहाँ भी विराजते है श्रावकगण खिचे चले आते है। प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के पारंगत विद्वान है। सन् 1946 में जन्मे आचार्य श्री ने 22 वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ग्रहण की। 32 वर्ष की छोटी आयु में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये। आप विशाल संघ के स्वामी है। ब्राह्मी विद्यालय की परिकल्पना आपकी ही देन है। मूक माटी आपका नवीनतम हिन्दी महाकाव्य है। वर्तमान में जितने आचार्य है उनमें आचार्य श्री विमलं सागर जी महाराज सबसे प्रभावक आचार्य है। आप श्री महावीरकीर्ति जी महाराज के शिष्य है तथा सन् 1961 में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये थे। विगत 30 वर्षों से आप साधनारत रहते हुये जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत रहते है 1 76 वर्ष की आयु होने पर भी प्रतिदिन सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं से घिरे रहते है। मंत्र शास्त्र के अपूर्व ज्ञाता है तथा निमित्त ज्ञानी है। आप जहाँ भी बिहार करते है समाज द्वारा घिर जाते हैं। विशाल संघ के स्वामी है। उपाध्याय भरत सागर जी एवं आर्यिका स्याद्रादमती जी जैसी विदुषी आर्यिका आपके संघ में है। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/37 आचार्य वर्धमान सागर जी आचार्य शान्तिसागर जी (दक्षिण) के पद पर प्रतिष्ठित पेचम पट्टाधीश आवार्य है। युवाचार्य है। साधना एवं तप में लीन रहते हुये समाज को आवश्यक दिशा प्रदान करते रहते है। समाज को आपसे बहुत आशाये है। आचार्य सन्मति सागर जी के दीक्षागुरु आचार्य विमल सागर जी है। सन् 1960 में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की तथा सन् 1976 में आचार्य महावीर कीर्ति जी ने आपको आचार्य पद प्रदान किया। आप अच्छे वक्ता एवं कठोर तपस्वी साधु है। उपवास बहुत करते है। 125 दिनों में 24 दिन आहार लेना ही कठोर साधना है। आहार में अनाज, घी, तेल, नमक, दही, जीरा, धनिया, मेथी, तिल्ली का आजीवन त्याग है। आपका जीवन अतिशयो सहित है। उपाध्याय श्री योगीन्द्रसागर जी महाराज आपके शिष्य है जो अच्छे वक्ता एवं प्रभावक साधु हैं। गणधराचार्य श्री कुंथुसागर जी महाराज विशाल संघ के अधिपति है। मंत्र साधना की और आपका विशेष ध्यान है। लघुविद्यानुवाद का आप सम्पादन कर चुके हैं। साहित्य प्रकाशन की ओर आपकी विशेष रचि रहती है। शान्त स्वभावी किन्तु कठोर साधना युक्त आपका जीवन सहज ही आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। आचार्य महावीर कीर्ति से आपने सन् 1967 में मुनि दीक्षा प्राप्त की तथा सन् 1980 में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। आचार्य सुमति सागर जी कठोर जीवन साधक एवं उपसगों में बार-बार विजय पाने वाले आचार्य सुमति सागर जी 108 विमल सागर जी महाराज (भिण्डवाले) से दीक्षित साधु है। आप सन्मार्ग दिवाकर, चारित्र चक्रवती, धर्म रत्नाकर, मासोपवासी जैसे उपाधियों से अलंकृत हैं। अब तक आप विभिन्न नगरों में 23 चतुर्मास सम्पन्न कर चुके है। आचार्य कल्प श्री सन्मति सागर जी, उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज जैसे साधु आपके शिष्य हैं। आचार्य पुष्पदन्त जी महाराज युवाचार्य है। लेखन कला एवं वक्तृत्व कला के धनी आचार्य हैं। आप आचार्य विमल सागर जी द्वारा दीक्षित और उन्हीं के द्वारा मार्च 1986 में गोम्मट गिरि इन्दौर में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित आचार्य है। हजारों लाखों की भीड़ को मंत्रवत वश में करना आपका सहज कार्य है। आपकी लिखी हुई कितनी ही पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। ___ आचार्य कल्याणसागर जी यद्यपि नव दीक्षित मुनि एवं आचार्य है। सात-आठ वर्ष का साधु जीवन कोई अधिक नहीं होता लेकिन आपने अल्पकाल में ही मोकार महामंत्र के नाम स्मरण का जो चमत्कार जैन एवं जैनेतर समाज के हृदय में बैठाया है वह अतीव कल्पनातीत है। आचार्य श्रेयान्स सागर जी महाराज वयोवृद्ध आवार्य हैं। आप भी. दिनांक 10/06/1990 को आचार्य शांतिसागर जी (दक्षिण) महाराज के पद पर पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित आचार्य है। एक ही पट पर दो आचार्यों की प्रतिष्ठापना वर्तमान युग की विशेषता बनने लगी है। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 / जैन समाज का वृहद् इतिहास उक्त आचायों के अतिरिक्त आचार्य सुबाहुसागर जी, आचार्य निर्मल सागर जी, आचार्य शान्ति सागर जी अलवाड़ा वाले, आचार्य सुमतिसागर जी जैसे और भी दिगम्बरावार्य हैं जिनकी साधना एवं उपदेशों से समाज को सतत लाभ मिल रहा है। उपाध्याय परमेष्ठी आचार्यों के पश्चात् उपाध्याय भरत सागर जी, उपाध्याय ज्ञान सागर जी एवं उपाध्याय कनकनन्दि जी महाराज साधु जगत में विशेष प्रतिष्ठित है। उपाध्याय भरतसागर जी महाराज, आचार्य विमलसागर जी के संघ में उपाध्याय है। सिद्धान्तों के अपूर्व ज्ञाता एवं ओजस्वी वक्तृत्व कला के धनी है। संघ को आचार्य श्री के पश्चात् आपका ही निर्देशन प्राप्त होता है। संघ को एवं समाज को आपसे विशेष आशायें हैं । उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज ज्ञान-ध्यान- तपो रक्त लक्षण वाले साधु है। आप स्वतन्त्र संघ के स्वामी है। मुनि श्री वैराग्यसागर जी आपके संघ में है। ज्ञानसागर जी अगाध ज्ञान के भण्डार, मधुर वक्तृत्व कला के धनी एवं परम तपस्वी साधु है। वे जहाँ कहीं भी विहार करते हैं अपनी अद्भुत द्वाप छोड़ देते हैं। गोष्ठियों का आयोजन आपकी ही प्रेरणा का सुफल है। विद्वानों को आपका सहज आशीर्वाद मिलता रहता है। आप युवा साधु हैं। आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) की परम्परा के प्रति अधिक झुकाव है। एलाचार्य उपाध्याय कनकनन्दि जी महाराज, आचार्य कुंथुसागर जी के संघ में विराजते है। दिन-रात लेखनी हाथ में रहती है और कुछ न कुछ लिखा ही करते हैं। आपकी लेखनी सशक्त है। आपकी प्रमुख कृतियों में धर्म ज्ञान एवं विज्ञान, पुण्य-पाप मीमांसा, विश्वतत्व विज्ञान, निमित्त उपादान मीमांसा के नाम प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त 20 से भी अधिक कृतियाँ लिखी हुई तैयार हैं तथा प्रकाशन के क्रम में है। आर्यिका माताजी : वर्तमान युग इस दृष्टि से सौभाग्यशाली है कि समाज में विदुषी आर्यिकाओं की संख्या में आशातीत वृद्धि हो रही है। गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमति माताजी, आर्यिकारत्न विशुद्धमती माताजी, आर्यिका सुपार्श्वमती जी, आर्यिका विजयमती जी, आर्थिका स्याद्वादमती जी, आर्थिका विशुद्धमती जी (द्वितीय), जैसी आर्थिकाओं ने साधना के क्षेत्र में एवं ज्ञान के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ प्राप्त की है वह कल्पनातीत है। भगवान महावीर के पश्चात् एवं 50 वर्ष पूर्व तक आर्यिकाओं के बहुत कम नाम मिलते हैं। आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने अष्टसहस्त्री जैसे न्यायशास्त्र के कठिन ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद करके उसका सम्पादन किया है, इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान एवं अन्य पूजा-पाठ लिखकर समाज में धार्मिक विधि-विधानों को लोकप्रिय बनाने में अपनी अहं भूमिका निभाई है । हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की संरचना आपकी सूझ-बूझ एवं आशीर्वाद का ही मूल है। अभी आपने मेरी जीवन गाथा" Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 39 लिखकर जीवन गाथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण कृति भेंट की है। आर्यिका विशुद्धमती माताजी वर्तमान महान् एवं विशाल व्यक्तित्व की धनी आर्यिका है। दिनांक 14/08/1964 को दिगम्बराचार्य श्री शिवसागर जी से दीक्षित आर्यिका है। करणानुयोग साहित्य की उत्कृष्ट विदुषी है। श्री नेमिचन्द्राचार्य के त्रिलोकसार, यतिवृषभाचार्य की तिलोयपष्णत्ति एवं भट्टारक सकलकीर्ति के सिद्धान्तसार दीपक जैसी करणानुयोग की महत्त्वपूर्ण कृतियों का आपने हिन्दी अनुवाद करके सम्पादन किया है। साहित्यिक क्षेत्र में आपकी यह महान सेवा स्वर्णाक्षरों में लिखी रहेगी। आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी ने देश के पूर्वान्चल भाग में एक अभूतपूर्व धार्मिक क्रान्ति पैदा की है। माताजी परम विदुषी एवं प्रभावक वक्ता है। आप स्व. आर्यिका इन्दुमती माताजी की शिष्या है। आर्यिका विजयमती माताजी भी लेखनी की धनी आर्यिका है। आपने दक्षिण भारत को अपना कार्य क्षेत्र बनाया है और वहाँ के जैन समाज में धार्मिक भावना उत्पन्न करने में महान् योग दिया है। भट्टारक संस्था : यद्यपि उत्तर भारत में भट्टारक संस्था की समाप्ति हो गई है लेकिन दक्षिण भारत में वर्तमान में जो भट्टारक गादियां हैं उन्हें वहाँ जैन मठ कहा जाता है। वर्तमान में दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला, मूडविद्री, कारकल, कोल्हापुर, हुमच्चा में भट्टारक गादियां हैं। जैन मठ श्रवणबेलगोला के भट्टारक स्वस्ति श्री चारुकीर्ति जी है। अच्छे विद्वान एवं वक्ता है। भगवान गोम्मटेश्वर का तीर्थ आप ही के मठ के अन्तर्गत है । चारुकीर्ति युवा भट्टारक है तथा देश-विदेश में जाकर धर्म का प्रचार करने में पूर्ण रुचि रखते I मूडविद्री के जैन मठ के भट्टारक जी का नाम भी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति जी है। आप भी युवा भट्टारक है तथा उच्च शिक्षित सन्त हैं। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी एवं कन्नड़ के अच्छे ज्ञाता है एवं वक्ता है 1 आप भी देश के विभिन्न भागों में एवं विदेशों में जाकर धर्म प्रचार करते रहते हैं। साधु-सन्तों में ब्रह्मचारी ब्रह्मचारिणियों की सेवायें भी महत्त्वपूर्ण होती है। वर्तमान में इस दृष्टि से ब्रहृमचारिणी कुमारी कौशल बहिन जी का नाम सर्वोपरि आता है। वे परम विदुषी एवं प्रभावक वक्ता है। कितनी ही पुस्तकों की लेखिका एवं सम्पादक हैं। इनमें अर्हत सूत्र, मंत्रानुशासन जैसे ग्रंथों के नाम प्रमुख रूप से लिये जा सकते हैं। ब्र. कमलाबाई जी परम विदुषी है। स्त्री शिक्षा प्रचार-प्रसार लिये श्री महावीर जी में आदर्श महिला विद्यालय का संचालन करती हैं। आदर्श महिला विद्यालय का राजस्थान में वनस्थली विद्यापीठ के बाद नाम लिया जा सकता है। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्रीय स्तर के वर्तमान विद्वज्जन 20वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध भाग (सन् 1941 से 1990 तक) विद्वज्जनों के लिये अधिक अनुकूल नहीं रहा। इस बीच हमने अनेक विद्वानों को खोया । इस शताब्दी के प्रारम्भ में जितने विद्वान तैयार हुये उन्होंने धर्म, समाज एवं साहित्य के लिये समर्पित भावना से कार्य किया । धार्मिक विद्यालयों, सामाजिक संगठनों एवं पत्र - सम्पादकों के रूप में कार्य करते हुये उन्होंने अपनी सेवाओं से समाज के विकास में योगदान दिया। ग्रंथों का सम्पादन किया। नव साहित्य का निर्माण किया। सेमिनारों एवं संगोष्ठियों के माध्यम से साहित्य के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला तथा इतिहास एवं साहित्यिक क्षेत्र में जैन धर्म एवं संस्कृति के उज्जवल पक्ष को सबके सामने रखा। ऐसे विद्वानों में पं. अजित कुमार जी शास्त्री, पं. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ, पं. खूबचन्द जी शास्त्री, पं. चैन सुखदास जी न्यायतीर्थ, पं. परमेष्ठीदास जी न्यायतीर्थ प इन्द्रलालजी शास्त्री, पं. बंशीधर जी न्यायालंकार, पं. जीवंधर जी न्यायतीर्थ, पं. जवाहरलाल जी शास्त्री, पं. रतनचन्द्र जी मुख्तार, वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, पं. बाबूलाल जी जमादार, पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार, पं. परमानन्द जी शास्त्री, डॉ. नेमिचन्द्र जी शास्त्री, पं. बंशीधर जी शास्त्री, डॉ. हीरालाल जी जैन, डॉ. ए. एन. उपाध्ये, प. हीरालाल जी सिद्धान्तशास्त्री, डॉ. ज्योति प्रसाद जी जैन, डॉ. हरीन्द्र भूषण जो जैन एवं पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। इन सभी विद्वानों ने साहित्यिक एवं सामाजिक क्षेत्र में खूब कार्य किया और समाज के राष्ट्रीय स्तर को ऊंचा बनाये रखा। इन विद्वानों की सेवाओं को प्रस्तुत इतिहास में यत्र-तत्र वर्णन किया गया है। 1. 2. वर्तमान युग के राष्ट्रीय स्तर के 20 विद्वानों में निम्न विद्वानों के नाम लिये जा सकते हैं : पं. श्री जगन्मोहन लाल जी शास्त्री, कटनी । पं. फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, वाराणसी । पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य, बीना । 3. 4. पं. नाथूलाल जी शास्त्री, इन्दौर । 5. पं. सुमेरचन्द जी दिवाकर, सिवनी। 6. डॉ. दरबारीलाल जी न्यायाचार्य, बीना । 7. डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य सागर । 9. 8. डॉ. लालबहादुर जी शास्त्री, देहली । पं. भवरलाल जी न्यायतीर्थ, जयपुर। 10. प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी जैन, फिरोजाबाद । 11. डॉ. देवेन्द्र कुमार जी जैन, नीमच। 12. डॉ. प्रेमसुमन जैन, उदयपुर । 13. डॉ. राजाराम जैन, आरा। 14. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर। 15. डॉ. कलघाटगी, बंगलौर । 16. डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर । 17. डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, बम्बई । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. ब्र. सुमति बाई जी शाह, सोलापुर 1 19. डॉ. भागचन्द भास्कर, नागपुर। 20. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर । समाज का इतिहास / 41 उक्त विद्वानों के अतिरिक्त पचासों विद्वानों के नाम और लिये जा सकते हैं। जिनकी सेवायें अत्यधिक प्रशंसनीय है तथा जो साहित्य एवं समाज के विकास में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। ऐसे विद्वानों में पं. बलभद्र जी जैन (आगरा), पं. नीरज जैन सतना, डॉ. श्रेयान्स कुमार जी जैन (बडौत ), डॉ. डॉ. भागचन्द्र भागेन्दु (दमोह), पं. माणकचन्द जी ( चंवरे ), डॉ. कपूरचन्द जैन (खतौली ), जयकुमार जैन (मुजफ्फरनगर), पं. सागरमल जी ( विदिशा) पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ (जयपुर), डॉ. प्रेमचन्द रांवका (जयपुर), डॉ. प्रेमचन्द जैन (जयपुर), पं. सत्यंधर कुमार जी सेठी (उज्जैन), डॉ. लालचन्द (वैशाली), डॉ. रतनचन्द जैन (भोपाल ) डॉ. चेतन प्रकाश पाटनी (जोधपुर), डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी (वाराणसी) प्रो. उदयचन्द जैन (वाराणसी), डॉ. कमलेश जैन (वाराणसी), डॉ. श्रीमती पुष्पलता जैन (नागपुर), डॉ. शीतलचन्द जैन (जयपुर), पं. दयाचन्द जी साहित्याचार्य डॉ. शेखरचन्द्र जैन (अहमदाबाद ), पं. विमलकुमार जैन सौरया (टीकमगढ़), डॉ. लालचन्द जैन (वैशाली), डॉ. श्रीमती कुसुम शाह (श्रीमहावीर जी), डॉ. उदयचन्द जैन (उदयपुर) पं. पद्मचन्द शास्त्री ( देहली) आदि के नाम और उल्लेखनीय है । 1. 20वीं शताब्दी के प्रमुख एवं राष्ट्रीय स्तर के विद्वानों में घं. जगन्मोहन लाल जी शास्त्री का नाम प्रथम पंक्ति में लिया जा सकता है। पण्डित जी जैन धर्म एवं साहित्य के निष्णात विद्वान है। तत्त्वचर्चा में आपकी रुचि रहती है। समवसार के वे अधिकृत विद्वान है। "अध्यात्म अमृत कलश" आपकी विद्वत्तापूर्ण कृति है। आप विद्वत परिषद् के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपके सम्मान में सन् 1989 में एक अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। 2. पं. फूलचन्द जी सिद्धान्तशास्त्री का जन्म संवत् 1958 में हुआ। 90 वर्षीय शास्त्री जी ने अपनी कृतियों के माध्यम से पूरे जैन समाज को धार्मिक क्रान्ति के लिये खड़ा कर दिया। " षट् खण्डागम" के आप सह सम्पादक रहे। धवन्ना टीका के 16 भागों के तथा जय घवला के 11 भागों के सम्पादन में | समाज ने इस ग्रंथ आपका पूरा सहयोग रहा। जैन तत्त्व मीमांसा आपकी महत्त्वपूर्ण कृति मानी जाती का समर्थन एवं विरोध दोनों किया । खानिया तत्त्वचर्चा का आपने सम्पादन किया। वर्ण, जाति और धर्म आपकी मौलिक कृति है । 3. पं. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य सिद्धान्त ग्रंथों के महान ज्ञाता है। खानियां तत्त्वचर्चा में आपने विशेष योग दिया। पं. फूलचन्द जी द्वारा लिखित "जैन तत्त्व मीमांसा एवं खानियां तत्त्वचर्चा" पर अपनी विद्वत्ता पूर्ण समीक्षा लिखकर उसे प्रकाशित कराई। आप स्वतन्त्रता सेनानी रहे हैं तथा राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय भाग ले चुके हैं। विद्वत् परिषद् के आप भी अध्यक्ष रह चुके है। आपके सम्मान Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 / जैन समाज का वृहद् इतिहास में अभी सन् 1990 में अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। 4. इन्दौर निवासी पं. नाथूलाल जी शास्त्री जैन जगत के प्रसिद्ध विद्वान एवं शिक्षा शास्त्री है। आपने पचासों पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें सम्पन्न कराई है। इन प्रतिष्ठाओं को एक रूप देने के लिये आपने अभी एक पुस्तक पंचकल्याणक विधि का सम्पादन किया है। वीर निर्वाण भारती द्वारा आप भी सम्मानित हो चुके हैं । इन्दौर से प्रकाशित होने वाले तीर्थंकर पत्र का पं. नाथूलाल शास्त्री विशेषांक प्रकाशित हुआ है। मध्य प्रदेश समाज में आपके प्रति विशेष श्रद्धा है । 5. पं. सुमेरचन्द जी दिवाकर समाज के क्योवृद्ध विद्वान है। सिद्धान्त के मर्मज्ञ, धर्मशास्त्रों के पारगामी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में अनेक पुस्तकों के रचयिता, प्रभावक वक्ता, आर्ष परम्परा के प्रबल समर्थक, धर्म प्रचार के लिये समर्पित विद्वान है। जैन शासन, चारित्र चक्रवर्ती, तीर्थकर आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं । आपकी अब तक हिन्दी में 27 तथा अंग्रेजी में 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सन् 1905 में आपका जन्म हुआ। सन् 1964 में आपके सम्मान में अभिनन्दन समारोह में एक अभिनन्दन ग्रंथ भेंट किया गया था। पं. दिवाकर पर समाज को गौरव हैं। i 6. डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया समाज में प्रथम न्यायाचार्य विद्वान है। आप हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में जैन दर्शन विभाग में पहले प्राध्यापक एवं फिर रीडर पद पर रहे। न्यायशास्त्र के आप प्रमुख जैन विद्वान है। "जैन तर्कशास्त्र में अनुमान प्रमाण, " जैन दर्शन और प्रमाण शास्त्र परिशीलन, प्रमाण परीक्षा, प्रमाण प्रमेय कलिका जैसे न्यायशास्त्र के महत्त्वपूर्ण कृतियों आप लेखक एवं सम्पादक हैं । वर्तमान जगत के आप मूर्धन्य विद्वान है। आप विद्वत परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष रह चुके है तथा वीर निर्वाण भारती एवं अन्य कितनी ही संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं। आपके सम्मान में 1982 में डॉ. दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। 7. पुराण ग्रंथों के सम्पादक एवं हिन्दी अनुवादक डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की वर्तमान मनीषी जगत के मूर्धन्य विद्वानों में गणना की जाती है। जैन पुराणों के हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन उनका सबसे बड़ा यशस्वी कार्य है। उनकी संस्कृत कृति " सम्यकत्व चिन्तामणि' महत्त्वपूर्ण कृति है । 8. डॉ. लाल बहादुर शास्त्री पुरानी पीढ़ी के मनीषी है। आरम्भ में इन्होंने जैन संदेश का सफल सम्पादन किया। भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के वर्षों तक अध्यक्ष रहे। डॉ. लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय विद्यापीठ में जैन दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहे । आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार पर शोध प्रबन्ध लिखने से आप पीएच. डी. की उपाधि से सम्मानित हुये । शास्त्री जी अच्छे व्याख्याता, शास्त्रीय चर्चा में निपुण. एवं संस्कृतज्ञ काव्य रचना में प्रवीण विद्वान हैं। आपकी सामाजिक एवं साहित्यिक सेवाओं को देखते हुये सन् 1986 में आचार्य धर्मसागर जी महाराज के सानिध्य में सम्पूर्ण समाज की ओर से आपको अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/43 ५. पं. भंवरलाल न्याय राजमार्ग मिलन है। जयपुर नगर आपका कार्य-क्षेत्र रहा है एवं पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के आप प्रमुख एवं प्रिय शिष्य रहे हैं। जयपुर की शिक्षण एवं सामाजिक संस्थाओं से आपका गहरा सम्बन्ध है। विद्यार्थी अवस्था में ही आप सामाजिक सेवा, लेखन कार्य एवं पत्रकारिता क्षेत्र में उतर गये । जयपुर के जैन दीवानों पर आपकी ऐतिहासिक शोध लिखी मानी जाती है। वीरवाणी पत्रिका के आप प्रारम्भ से ही सम्पादक है। वीर निर्वाण भारती से आपको समाजरत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया था। भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् के आप अध्यक्ष रह चुके है। 2 दिसम्बर को जन्मे वर्तमान में आप 76वें वर्ष में चल रहे है। अभी आपका जयपुर जैन समाज की ओर से सम्मान किया गया था। अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा के 40 से भी अधिक वर्षों तक मंत्री रहकर आपने क्षेत्र की उल्लेखनीय सेवा की है। 10. प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन, फिरोजाबाद : अभी तक हमने समाज के वयोवृद्ध विद्वानों का ही परिचय दिया है लेकिन नरेन्द्र प्रकाश जी युवा मनीषी है। वक्तृत्व कला के धनी है जब बोलने लगते है तो धारा प्रवाह बोलते रहते है। जैन गजट के सम्पादक है। अच्छे लेखक है। दिगम्बर जैन इन्टर कॉलेज, फिरोजाबाद के प्राचार्य है। कितने ही अभिनन्दन ग्रंथों के सम्पादक मंडल के सदस्य हैं। 11, डॉ. प्रेम सुमन जैन, डॉ. जैन वर्तमान जैन विद्वत् समाज में विशेष लोकप्रियता प्राप्त युवा विद्वान है। प्राकृत एवं अपभ्रंश के उच्चकोटि के विद्वान है। अच्छे वक्ता है। विद्वत संगोष्ठियों का आयोजन भी करते रहते है। विदेशों में जाकर शोध-पत्रों का वाचन कर चुके हैं। सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में प्राकृत एवं जैन विद्या विभाग के निदेशक है । प्राकृत विद्या के यशस्वी सम्पादक है। 12. रॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री : शरीर से दुबले-पतले तथा छोटे कद के डॉ. शास्त्री जी को पहचानने में देर नहीं लगती। शास्त्री जी प्राकृत एवं अपभ्रश के अधिकारी विद्वान है। अपभ्रश एवं प्राकृत के कितने ही ग्रंथो का सम्पादन कर चुके है। मध्य प्रदेश राज्य सेवा में आचार्य के पद पर कार्यरत है। जैन संदेश के सम्पादक रह चुके है। आपकी प्रमुख रचनाओं में "भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश काव्य," अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, रयणसार, वड्ढमाण चरिउ (नरसेन कृत) के नाम उल्लेखनीय है। उनके अतिरिक्त 150-200 शोध निबन्ध प्रकाशित हो चुके है। 13. डॉ. राजाराम जैन : महाकवि रइधु के अपभ्रंश भाषा में रचित ग्रंथों के सम्पादन एवं प्रकाशन में लगे डॉ. राजाराम जैन समाज के युवा विद्वानों में गिने जाते है। रइधु ग्रंथावली के अब तक दो भाग प्रकाशित हो चुके है। अच्छे वक्ता एवं विचारक है। जैन कॉलेज, आरा में प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर है। जैन साहित्य के अधिकारी विद्वान माने जाते है। अभी कुछ ही समय से जैन दर्शन के सम्पादक का कार्यभार सम्भाला है। 14. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल सोनगढ़ विचारधारा के कट्टर समर्थक विद्वान Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सम्पज का द्वारा है। डॉ. भारिल्ल आकर्षक वक्तृत्व शैली के धनी हैं तथा तत्वों को समझाने की अनूठी प्रक्रिया अपनाते है। आप लेखनी के भी धनी है। बीसों पुस्तको के लेखक एवं सम्पादक है। अध्यात्म के विशेष प्रवक्ता माने जाते हैं। 15. डॉ. ए.एम. कालघाटगी : दक्षिण भारत में जैन विद्वानों में अमृत माधव कालघाटगी का स्थान सर्वोपरि है। आप प्राकृन्त, संस्कृत, कन्नड एवं अंग्रेजी के बड़े भारी वयोवृद्ध विद्वान है। कितनी ही पुस्नको के लेखक है। वीर निर्वाण भारती द्वारा आपका भी सम्मान हो चुका है। आपके ही अन्यतम साथी डॉ. घाटगे वर्तमान में प्राकृत शब्द कोष योजना पर कार्य कर रहे है। 16. डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर : डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर में वर्धमान जैन पी.जी. कॉलज में संस्कृत विभाग में प्रोफेसर हैं। जैन धर्म एवं सिद्धान्त के अच्छे ज्ञाता है। लेखनी एवं वक्तृत्व कला दोनों के धनी है। आपकी दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र अहिच्छेत्र, श्रावक धर्म आदि पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। 17. डॉ. भागचन्द जैन भास्कर, नागपुर : डॉ. भास्कर पाली-प्राकृत के शीर्ष विद्वान है। एम.ए. करने के पश्चात् आपने लंका जाकर बौद्ध साहित्य में जैन धर्म पर रिसर्च करके पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप अच्छे वक्ता, लेखक एवं शोधक है। विदेशों में जाकर शोध-पत्र पढ़ चुके है। आपने जैन इतिहास और संस्कृति पर डी. लिट. प्राप्त की है। आपकी पत्नी पुष्पलता जैन भी हिन्दी जैन साहित्य की विदुषी है। 18.डॉ.जगदीशचन्द जैन, बम्बई : विगत आधी शताब्दी से डॉ. जैन प्राकृत एवं हिन्दी साहित्य पर काम कर रहे है। आप क्रान्तिकारी विचारधारा के विद्वान है। प्राकत भाषा का वहद इतिहास लिखकर आपने एक प्रशंसनीय कार्य किया है। आपने अब तक 65 से भी अधिक पुस्तकें लिखकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। वसुदेव हिण्डी एवं जैनागमों में भारतीय जीवन जैसी पुस्तकों के आप लेखक सम्पादक है। 19. श्रीमती सुमति बाई शाह : एक मात्र विदुषी महिला है जिनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत किया है। श्राविकाश्रम शोलापुर की संचालिका श्रीमती सुमति बाई जी शाह विदुषी महिलाओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है। दक्षिण भारत में आपका गौरवपूर्ण स्थान है। आप का अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। आपने पूर्वाद का सम्पादन एवं लेखन किया है। आपका अधिकांश साहित्य मराठी भाषा में प्रकाशित हुआ है। 20.डॉ.कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर : विगत 45 वर्षों से साहित्यिक क्षेत्र में संलग्न डॉ. कासलीवाल द्वारा लिखित एवं सम्पादित पुस्तकों की संख्या 70 तक पहुंच गई है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारी के सूचीकरण का आपका विशेष कार्य है। श्री महावीर ग्रंथ अकादमी की स्थापना करके उसके माध्यम से दस भाग प्रकाशित किये जा चुके है। इन भागों में 50 से भी अधिक हिन्दी जैन कवियों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। आपके द्वारा लिखित "खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद इतिहास" अभी दो वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ है। विद्वत् परिषद्, शास्त्री परिषद, वीर निर्वाण भारती जैसी संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का नेतृत्व करने वाले श्रेष्ठिजन राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्व करने वाले श्रेष्ठिजनों में कुछ नाम तो ऐसे है जो निर्विवाद हैं जिनके नाम लेने में किसी को शंका अथवा आपत्ति नहीं हो सकती। यही नहीं जो अखिल भारतीय स्तर की सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं तथा जो कहीं भी समाज पर संकट आने पर उसके निवारण को तत्पर रहते है अपनी सेवायें देते है। जिनका समस्त जीवन ही समाज के लिये समर्पित रहता है। 20वीं शताब्दी में ऐसे कुछ समाज सेवियों के सम्बन्ध में हम प्रहले प्रकाश डाल चुके है। वर्तमान श्रेष्ठिजनों में निम्न श्रेष्ठियों के नाम और लिये जा सकते है : 01. श्री साहू श्रेयान्स प्रसाद जी जैन, बम्बई। 02. श्री निर्मल कुमार जी सेठी, लखनऊ। 03. श्री साहू अशोक कुमार जी जैन, देहली। 04. श्री डालचन्द जी जैन, सागर । 05. श्री रतनलाल जी गंगवाल, देहली। 26. श्री वीरेन्द्र हेगडे, धर्मस्थल (कर्नाटक)। 07. श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी, कोटा। 08. श्री रायबहादुर हरकचन्द जी पाण्ड्या , रांची। 09, श्री अमरचन्द जी पहाड़िया, कलकत्ता। 10. श्री हरकचन्द जी सरावगी, कलकत्ता। 11. श्री देवकुमार सिंह जी कासलीवाल, इन्दौर। 12. श्री लालचन्द दोशी, बम्बई।। 13. श्री पूनमचन्दजी गंगवाल, झरिया । 14. श्री प्रेमवन्द जी जैन, जैनावाच-देहली। 15. श्री सुकुमार चन्द जी जैन, मेरठ। 16. श्री बाबूलाल जी पाटोदी, इन्दौर । 17. श्री सत्यन्धर कुमार सेठी, उज्जैन । 18. श्री जयचन्द लुहाड़े, हैदराबाद। 19. श्री चैनस्प जी बाकलीवाल, डीमापुर। 20. श्री उम्मेदमल जी पाण्ड्या , देहली। उक्त समाज सेवी श्रेष्ठियो के अतिरिक्त, श्री राजकुमार सेठी (डीमापुर), निरजनलाल जी बैनाड़ा (आगरा), भगतराम जी जैन (देहली), रमेशचन्दजी जैन (पी. एस. मोटर्स-देहली), श्री सुबोध कुमार जी जैन (आरा), श्री रुपचन्दजी कटारिया (देहली), धर्मचन्दजी सरावगी (कलकत्ता), पारसकुमार जी Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46/जैन समाज का वृहद् इतिहास गंगवाल (ग्वालियर), श्री भगतराम जी जैन (देहली), श्रीमन्त सेठ मषभदास जी (खुरई), अमोलकचन्द जी एडवोकेट (खंडवा), भूपेन्द्र कुमार जी (उज्जैन), ताराचन्द जी प्रेमी (फिरोजपुर), जे.के. जैन (एम. पी. - देहली), श्रीमती सरयू दफ्तरी (बम्बई), पद्मश्री धर्मचन्द जी पाटनी इम्फाल, ज्ञानचन्द जी बिन्दूका, कपूरचन्द जी पाटनी, राजेन्द्र कुमार जी ठोलिया (जयपुर), माणकचन्द जी पालीवाल (कोटा), माणकचन्द जी सेठिया (कोटा), पी. यू. जैन (बम्बई), जयनारायण जैन (मेरठ), कैलाशचन्द जी चौधरी (इन्दौर) आदि महानुभावों के नाम लिये जा सकते है। दक्षिण भारत के जैन समाज में जो अनेक महानुभाव समाजसेवा में जुटे हुये है कुछ उत्तर भारत से गये हुये है तथा कुछ नहीं के निवासी है। ऐसे नहानुभावों में श्री भागालाल औ पहा. हैदराबाद), श्री श्रीनिवास जी जैन (मदास), चम्पालाल जी ठोलिया (पाण्डिचेरी), ताराचन्द जी पहाडिया (मद्रास), ताराचन्द जी बगड़ा (सेलम ) आदि के नाम और जोड़े जा सकते है। उक्त सभी श्रेष्ठीजन अखिल भारतीय स्तर की, प्रादेशिक स्तर की अथवा अपने ही नगर की प्रसिद्ध संस्थाओं से, तीर्थ क्षेत्र कमेटियों से अथवा अन्य रीति से सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देते रहते है। यद्यपि प्रादेशिक स्तर के और भी नेतागण हो सकते हैं लेकिन हम उनका परिचय प्रादेशिक अध्यायों में देने का प्रयास करेंगे। 1. साहू श्रेयान्स प्रसाद जी जैन समाज के निर्विवाद नेता है । सम्पूर्ण जैन समाज से जुड़े हुये है। वे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी एवं भा. दि. जैन महासमिति के वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके है। समाज के विकास में वे जो योगदान दे रहे हैं वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा इसलिये समाज भी उनकी बातों को ध्यान से सुनता है। समाज की ओर से वे श्रावक शिरोमणि है तथा सरकार की ओर से वे पद्मभूषण है। बड़े उद्योगपति है। 2. श्री निर्मल कुमार जी सेठी भा.दि. महासभा के गत 10 वर्षों से युवा अध्यक्ष है। जुझार स्वभाव के होने के कारण उन्होंने इन वर्षों में पूरे देश का भ्रमण किया है। समाज से बातचीत की है तथा आर्ष परम्परा को बनाये रखने का जी-जान से प्रयास किया है। वे अके वाला है। पूर्णतः धार्मिक जीवन यापन करते हैं। कट्टर मुनिभक्त है और अपनी कट्टरता के कारण समाज के लोकप्रिय नेता बन सके है। उदार हृदय वाले है। लाखो रूपया संस्थाओं को दान देते है । विन्सनों के प्रति पूर्ण श्रद्धा के भाव रखते है। समाज सेवा की उनके मन में टीस है। 3. साडू अशोक कुमार जी जैन को समाज की बागडोर अपने पूज्य पिताश्री स्व. शान्ति प्रसाद जी जैन से प्राप्त हुई है और आपने जब से समाज का नेतृत्व सम्भाला है उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष होने के कारण तीर्थों की सुरक्षा का पूरा उत्तरदायित्व आपके कन्धों पर है और आप भी उस उत्तरदायित्व से कभी पीछे नहीं रहे है। समाज के अधिकृत प्रवक्ता है। सरकार भी आपकी बात को ध्यान से सुनती है । आपके अध्यक्ष बनने के पश्चात तीर्थ क्षेत्र कमेटी भी अपने ही पैरों Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास / 47 पर खड़ी है। ज्ञानपीठ के माध्यम से जैन साहित्य की महान् सेवा कर रहे हैं। 4. श्री डालचन्द जी जैन सागर के उद्योगपति हैं। संसद सदस्य रह चुके हैं। भा. दि. जैन परिषद् के वर्तमान अध्यक्ष हैं। सुधारक विचारों के हैं। सागर एवं मध्यप्रदेश में अत्यधिक लोकप्रिय नेता है । समाज आपकी आवाज को ध्यान पूर्वक सुनता है। नेतृत्व करने की आपमें पूर्ण क्षमता है। 5. श्री रतनलाल जी गंगवाल लाइन एवं कलकत्ता के प्रसिद्ध गंगवाल परिवार के सदस्य हैं। गंगवाल साहब ने महासमिति के अध्यक्ष का पद भार साहू श्रेयान्स प्रसाद जी से ग्रहण किया है जिसको वे प्रशंसनीय ढंग से आगे बढ़ा रहे हैं। महासमिति को समाज की संसद माना जावे तो उस संसद के आप अध्यक्ष है। उदार स्वभाव के है। जहाँ तक सम्भव हो आप मिलकर चलने वाले है। समाज का आपके नेतृत्व में पूर्ण विश्वास है । 6. श्री डी. वीरेन्द्र हेगडे प्रसिद्ध वैष्णव तीर्थ "धर्म-स्थल" के धर्माधिकारी है। आपके प्रति भगवान मंजुलनाथ के भक्तों की अपूर्व अद्धा है। वे उन्हें देवतुल्य मानते हैं। वे समाज के न्यायाधिपति हैं इसलिये जो कुछ वे न्याय करते हैं उसे सभी शिरोधार्य कर लेते हैं। हेगडे साहब जैन धर्मावलम्बी है। दक्षिण भारत की जैन समाज के निर्विवाद नेता | अभी आपने धर्म स्थल में भगवान बाहुबली की विशाल खड्गासन प्रतिमा स्थापित की है। समाज को आप सभी तरह का सहयोग करते हैं। 7. श्री त्रिलोकचन्द कोठारी अ. भा. दि. जैन महासभा के महामन्त्री है और जैसा किसी बड़ी संस्था के एक महामन्त्री का आचरण होना चाहिये वही कर्मठता, कार्य के प्रति समर्पित भावना से आप ओत-प्रोत हैं। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार जब तक आपने महासभा की देश भर में शाखायें स्थापित नहीं करली आपने मीठा नहीं लिया और शाग को अन्न ग्रहण नहीं किया। कोठारी जी में स्वाभाविक नेतृत्व गुण है। वे अच्छे वक्ता है अपनी बात को श्रोताओं के गले उतारने में पूर्ण निपुण हैं। आपका पूर्ण धार्मिक जीवन है। पंचकल्याणकों में भगवान के माता-पिता बनते रहे हैं। बहुत बड़े कारोबार के मालिक हैं। महासभा के प्रतीक बने हुये हैं। 8. श्री रायबहादुर हरकचन्द पाण्ड्या रांची के निवासी हैं। अपनी सामाजिक सेवाओं के कारण बिहार के एकछत्र नेता है। महासभा के उपाध्यक्ष है लेकिन सभी सामाजिक संस्था वाले आपको अपना समझते हैं और आप अपना सहयोग भी सबको देते रहते हैं। बिहार प्रान्तीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष है। उदार स्वभाव के है। 9. श्री अमरचन्द जी पहाडिया का पहले फ्लासबाडी में व्यवसाय था इसलिये उन्हें पलासबाड़ी के नाम से जानते हैं। अमरचन्द जी महासभा के कट्टर समर्थक हैं। जबरजस्त मुनिभक्त हैं। मुनियों पर अन वाले उपसर्ग को देखकर आप विचलित हो जाते हैं और तत्काल उसके निवारण में जुट जाते हैं। एक Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48/ जैन समाज का वृहद् इतिहास बार कलकत्ता में आपने रात्रि को 3 बजे जाकर रव. माहू शान्ति प्रसाद जी को जगाया और मुनि महागज पर आने वाले उपसर्ग को अपने प्रभाव से दूर करने को कहा। पहाडिया साहब अत्यधिक दानशील स्वभाव के है। बिना दिवे तो कहीं से आते नहीं। शुद्ध श्रावक के कलव्यों का पालन करते है। समाज में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा है। 10. श्री हरकचन्द सरावगी कलकत्ता जैन रत्न की उपाधि से सम्मानित है। दि. जैन महासभा के बरिष्ठ उपाध्यक्ष है। आचार, विचार एवं व्यवहार से पूर्ण श्रावक है। सुजानगढ़ में आप आचार्य धर्मसागर जी महाराज का चातुर्मास करा चुके हैं। तीर्थ भक्त है । दानशील है। सरल एवं विनयशील है। सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते हैं। 11, श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल इन्दौर सर सेठ हुकमचन्द जी कासलीवाल के परिवार में जन्मे श्री देवकमारसिह जो में नेतृत्व करने की स्वाभाविक क्षमता है। भगवान महावीर के 2500वें परिनिर्वाण महोत्सव. भगवान बाहुबली सहसाब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह, तीर्थ क्षेत्र रथ प्रवर्तन समारोह की योजना को सफल बनाने में आपका पूर्ण सहयोग रहा है। स्वभाव से सरल तथा कर्तव्य के प्रति पूर्ण सजग हैं। महासमिति, तीर्थ क्षेत्र कमेटी एवं महासभा सभी से आप जुड़े हुये है। अभी इन्दौर में आपने शोध संस्थान स्थापित किया है। 12. श्री लालबन्द दोषी, बम्बई अ.भा.दि, जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के पूर्व अध्यक्ष श्री लालचन्द दोषी महाराष्ट्र की जैन समाज में सर्वोपरि नेता हैं। आप बहुत बड़े उद्योगपति है लेकिन अपना जीवन समाज सेवा में समर्पित कर रखा है। राज्यसभा एवं महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। शोलापुर में आपकी ओर से कितनी ही शिक्षण संस्थायें संचालित है। दक्षिण भारत जैन समाज में आपकी बात ध्यान पूर्वक सुनी जाती है। बम्बई जैसी विशाल नगरी में आपका विशिष्ट स्थान है। 13. श्री पूनमचन्द गंगवाल राजस्थान के पचार ग्राम में जन्मे श्री पूनमचन्द जी वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर के समाजसेवी है। आप दि, जैन महासभा के उपाध्यक्ष एवं राजस्थान प्रान्तीय महासभा के अध्यक्ष है। लूणवा अतिशय क्षेत्र के अध्यक्ष है। परम धार्मिक है। मुनिभक्त है। देश के विभिन्न तीर्थों पर आपने कितने ही निर्माण कार्य कराये है। तिजारा तीर्थ पर आपका नि:शुल्क भोजनालय चलता है। आर्थिक सहयोग देने की उन्कट भावना रहती हैं। कितने ही पंचकल्याणको एवं इन्दध्वज विधानों में सौधर्म इन्द्र बन चुके हैं। सबको सहयोग देने की कामना करते है। भगवान बाहुबली के सन् 81 के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर आपने एक बहुत बड़े यात्रा संघ का संचालन किया था जो इतिहास बन चुका है। 14. श्री प्रेमचन्द जैन जैनावाच, देहली के श्री प्रेमचन्द जी जैन जैनावाच के नाम से प्रसिद्ध है। आप में प्रारम्भ से ही समाज सेवा के प्रति खूब रुचि रही है। देहली जैन समाज की प्रत्येक गतिविधि में आपका हाथ रहता है। दि. जैन महासमिति एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी से आप पूर्ण रूप से जुड़े हुये है । मुनि भक्त है। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास /49 आहार आदि से सेवा करते रहते हैं। शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता है। लाल मन्दिर में शास्त्र प्रवचन करते हैं। देहली में महरोली में कुतुब मीनार के पास एक टेकरी पर भगवान महावीर की पद्मासन मूर्ति की विराजमान करने का आपने चमत्कारिक कार्य किया है। श्री प्रेमचन्द जी का जीवन व्रती जीवन है। देहली समाज के साथ समस्त जैन समाज में आपकी लोकप्रियता व्याप्त है। 15. श्री सुकुमार चन्द जी जैन मेरठ निवासी श्री सुकुमार चन्द जी राष्ट्रीय स्तर के व्यक्तित्व के धनी हैं। अ. भा. दि. जैन परिषद् के वर्षों से महामंत्री है। महासमिति के भी महामंत्री हैं। उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय सामाजिक नेता है तथा विगत 50 वर्षों से उसका नेतृत्व कर रहे है। आपका जीवन अत्यधिक सादा एवं सरल है । हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष है। अभी आपने देश के सभी जैन मन्दिरों का सर्वे कराया था जिसका प्रकाशन महासमिति की ओर से कराया गया है। 1 16. श्री बाबूलाल जी पाटोदी, इन्दौर राजनैतिक जीवन होते हुये भी पाटोदी जी सामाजिक जीवन को विशेष महत्त्व देते हैं। शासन में एवं समाज में आपकी गहरी पहुंच है। आप बहुत चतुर समाजसेवी है 1 जिस काम को हाथ में लेते हैं उसका इतनी सुन्दरता से सम्पादन करते हैं कि दर्शक गण आपके गीत गाने लगते हैं । इन्दौर में गोम्मटगिरी का निर्माण एवं बावनगजा की मूर्ति का पुनरोद्धार एवं वहाँ पर विशाल मैले का आयोजन आपके कर्मठ व्यक्तित्व के नवीनतम उदाहरण है। इन्दौर की समाज पर आपका एक छत्र राज्य है । महासमिति के आप मंत्री है। आपकी सेवाओं के कारण भारत सरकार ने आपको इसी वर्ष पद्मश्री से अलंकृत किया हैं। 17. श्री सत्यन्धर कुमार जी सेठी राजस्थान निवासी एवं उज्जैन प्रवासी श्री सत्यन्धर कुमार सेठी प्रारम्भ से ही जुझारू स्वभाव के समाजसेवी रहे हैं। चाहे सामाजिक बुराई हो या धार्मिक शिथिलाचार वे उसके पूर्णतः विरोध में रहते हैं और कभी समझौता नहीं करते। उज्जैन में सामाजिक क्रान्ति के वे सूत्रधार रहे हैं और समाज नेतृत्व देने में वे पूर्ण सक्षम हैं। 75 वर्ष की आयु को पार करने पर भी अभी युवकों जैसी उमंग है। सेठी जी परिषद के कट्टर समर्थक हैं। मुनियों के प्रति पूर्ण भक्ति होते हुये भी शिथिलाचार के वे पक्षपाती नहीं है। जब उनका उज्जैन में सार्वजनिक अभिनन्दन हुआ था तथा अभिनन्दन ग्रंथ भेंट किया गया था तो देश के सम्पूर्ण समाज की ओर से उनका शानदार स्वागत किया गया था। सेठी जी अच्छे वक्ता एवं लेखक हैं। वे पण्डित श्रेष्ठी है। 18. श्री जयचन्द लुहाडे, हैदराबाद अ. भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्री श्री जयचन्द लुहाडे विशाल व्यक्तित्व के धनी है। जब से आपने तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्रित्व का कार्यभार संभाला है दि. जैन तीर्थो का पर्याप्त विकास हुआ है। तीर्थों की सुरक्षा का कार्य हो रहा है। अब आपने प्रत्येक प्रदेश के तीर्थों के पूर्ण सर्वे की योजना हाथ में ली है उससे भी तीर्थों के कार्य-कलाप में पर्याप्त अन्तर आयेगा । लुहाडे जी का जीवन पूर्णतः धार्मिक जीवन है। हैदराबाद समाज में आपकी अच्छी लोकप्रियता है। दक्षिण भारत में आपका विशेष स्थान है। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50/जैन समाज का वृहद इतिहास 19. श्री चैनस्प बाकलीवाल बाकलीवाल जी मा.दि.जैन महासभा के कार्याध्यक्ष है। आपके स्व. पिताश्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल भी महासभा के अध्यक्ष रहे थे इसलिये आप में भी सामाजिक सेवा की भावना उसी तरह देखी जा सकती है। श्री चैनस्प जी कुशल व्यवस्थापक है नेतृत्व करने की क्षमता है। जो कुछ कार्य हाथ में लेते हैं उन्ये पूरा करके ही विश्राम करते हैं। यहा समाज सेवी हैं। आपका जीवन भी पूर्णत: धार्मिक है। मुनि भक्त है। आर्ष मार्ग के प्रबल समर्थक है। 20. श्री उम्मेदमन पाण्ड्या श्री पाण्ड्या जी अखिल भा.दि. जैन महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष है। सामाजिक कार्यों के प्रति सहज रूप से समर्पित रहते हैं। देश की अनेक संस्थाओं से जुड़े रहते है। जहाँ भी जाते है वहीं पर अपनी उपस्थिति से समस्त वातावरण को प्रसन्न बना देते हैं। पंचकल्याणको एवं विधि-विधानों के आयोजन में सबसे आगे रहते हैं। महासभा एवं महासमिति को जोड़ने का कार्य करते 21. श्री राजकुमार सेठी श्री सेठी जी युवा समाजसेवी हैं। भा. दि. जैन महासभा के प्रकाशन मंत्री है। सामाजिक एवं साहित्य प्रकाशन के कार्यों में अपना योगदान देते रहते हैं। कार्य करने की बहुत रुचि है। पूर्वान्चल प्रदेश के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकता है। देश की अनेक संस्थाओ से जुड़े हुये है। इस प्रकार देश में ऐसे सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता है जिनकी सेवाओं के कारण हमारा समाज उन्नति की ओर अग्रसर है। यहाँ उनका नामोल्लेख न होने का अर्थ यह नहीं है कि उनकी सामाजिक सेवायें किसी से कम है। वे तो सामाजिक धरातल की नींव के पाये है जिन पर समाज रूपी महल खड़ा हुआ है। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनन्दन ग्रंथों के प्रकाशन का उदभव एवं विकास जैन समाज में सामाजिक कार्यों में समर्पित समाज सेवियों एवं साहित्य लेखन में समर्पित विद्वानों का अभिनन्दन समारोह आयोजित करके अभिनन्दन ग्रंथ समर्पण की विगत पचास वर्षों के सामाजिक इतिहास की एक उल्लेखनीय घटना है। सन् 1940 के पूर्व समाज के किसी भी समाज सेवी एवं विद्धान को अभिनन्दन ग्रंथ भेंट नहीं किया गया। लेकिन जब अन्य समाजों में एवं साहित्य सेवियों में अभिनन्दन ग्रंध समर्पण की परम्परा का विकास होने लगा तो जैन समाज ने भी इस परम्परा को अपना लिया और विगत 50 वर्षों में इस परम्परा का अच्छा विकास हुआ। इससे इतना लाभ अवश्य हुआ कि अभिनन्दनीय व्यक्ति के जीवन पर, उसकी सेवाओं पर, साथ में साहित्य, दर्शन, इतिहास एवं पुरातत्व पर अच्छी सामग्री सामने आई तथा अभिनन्दनीय व्यक्ति की सेवाओं को सामाजिक एवं सार्वजनिक स्तर पर मान्यता दी गई। स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन भी अभिनन्दन करने की परम्परा का ही दूसरा स्प है। सामाजिक दृष्टि से महान् व्यक्तियों के निधन के पश्चात् उसका स्मृति ग्रंथ प्रकाशित होना स्वर्गवासी व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशालता का द्योतक है एवं उसकी साहित्यिक अथवा सामाजिक सेवाओं की स्वीकृति है। जैनाचार्यों, आर्यिकाओं का अभिनन्दन ग्रंथ अथवा स्मृति ग्रंथ प्रकाशन भी इसी परम्परा का एक विकसित रूप है। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ : अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन परम्परा का "प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ" से उद्घाटन हुआ। श्री नाथूराम प्रेमी ने हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय के माध्यम से हिन्दी साहित्य की जितनी सेवा की तथा जैन साहित्य के शोध पूर्ण लेखों के लिखने एवं ग्रंथों के प्रकाशन में जो योग दिया वह सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। अक्टूबर सन् 1946 में प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन एवं समर्पण हुआ। उनके अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन में देश के समस्त हिन्दी जगत का योगदान रहा जिनमें राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त, पं, सुन्दरलालजी, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, जैनेन्द्र कुमार जी, डॉ. रामकुमार वर्मा जैसे हिन्दी जगत के प्रकाण्ड विद्वानों का नाम उल्लेखनीय है। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ समिति का डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल को अध्यक्ष बनाया गया और यशपाल जी जैन को मंत्री । अभिनन्दन ग्रंथ में 18 विभाग रखे गये और एक एक विभाग के सम्पादन का भार दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, उच्च स्तरीय विद्वानों को दिया गया। जैन दर्शन विभाग का संयोजक प्रो, दलसुख मालवणिया, संस्कृत, प्राकृत विभाग का संयोजक डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल को पुरातत्व का, आचार्य जुगल किशोर मुख्तार को जैन दर्शन, समाज सेवा का श्री अजित प्रसाद जैन एवं नारी जगत का श्रीमती सत्यवती मलिक को संयोजक बनाया गया। वास्तव में श्री नाथूराम प्रेमी से सारा हिन्दी जगत किसी न किसी रूप में उपकृत रहा। उनके अभिनन्दन ग्रंथ में इन मनीषियों ने अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की तथा प्रेमी जी के विशाल व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला वह अपने आप में अनूठा है। आठ खण्डों एवं 750 पृष्ठों में प्रकाशित यह अभिनन्दन ग्रंथ एक आदर्श अभिनन्दन ग्रंथ है तथा भविष्य में प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रंथों का वह मार्गदर्शक रहा Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52/ जैन समाज का वृहद् इतिहास है। पूरी सामग्री खोजपूर्ण तथा उच्च स्तरीय है। सर सेठ हकमचन्द अभिनन्दन ग्रंथ : जैन समाज के वर्षों तक एक छा अनभिषिक्त सम्राट् रहने वाले सर सेठ हुकमचन्द जी का सार्वजनिक अभिनन्दन यद्यपि कितनी ही बार आयोजित हो चुका था। जब वे अपने व्यवसाय में शिखर पर थे। यौवन उनके साथ था। राजसी ठाट-बाट के वे अभ्यस्त थे। जहाँ भी वे जाते लोग उन्हें देखने मात्र को ही उमड़ पड़ते। वे हाबल्या काबल्या के नाम से प्रसिथे। लेा साल में इररी पूरी किशी मी वाटी को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली थी। 13 मई सन् 1951 को एक अभिनन्दन ग्रंथ निकाल कर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। उनका जन्म 1874 की 14 जुलाई मंगलवार को हुआ और यह समारोह सन् 1951 की 13 मई रविवार को. अर्थात उस समय सेठ साहब की आय 77 वर्ष की थी। अभिनन्दन समारोह क्या था एक प्रकार से विशाल मेला था। जैन समाज में अभिनन्दन ग्रंथों का प्रारम्भ होना था। इसके पूर्व समाज ने किसी भी श्रेष्ठी अथवा विद्वान को अभिनन्दन ग्रंथ मेंट नहीं किया था। प्रकाशक के वक्तृत्व के अनुसार पूरा अभिनन्दन केवल एक दो माह की तैयारी के बाद निकला था। अभिनन्दन ग्रंथ में कोई खण्ड नहीं है। प्रारम्भ से सेठ साहब के जीवन, विभिन्न नेताओं, समाज सेवियों, व्यापारियों एवं संस्था अधिकारियों की शुभकामनायें. संस्मरण एवं उनके विशाल व्यक्तित्व का गुणगान है। इसके आगे जैन धर्म से सम्बन्धित विशिष्ट लेखों का संग्रह है। फिर बहत लम्बी चित्रावली है। अभिनन्दन ग्रंथ को सम्पादन करने का श्रेय श्री सत्यदेव विद्यालकार, पं. खूबचन्द जी शास्त्री, प, सुमेस्चन्द दिवाकर, पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री, पं. इन्द्र लाल जी शास्त्री, पं. नाथूलालजी शास्त्री, पं. मक्खनलाल जी शास्त्री, पं. अजित कुमार जी शास्त्री को जाता है। ग्रंथ के प्रकाशक महामंत्री अ.भा. दि.जैन महासभा है। ब्र.पं. चन्दाबाई अभिनंदन ग्रंथ ब्र.पं. चन्दा बाई जी का जीवन आदर्शों का जीवन रहा है। अपने विवाह के केवल एक वर्ष पश्चात् वैधव्य जीवन से आक्रान्त चन्दा बाई ने स्वयं अपने जीवन का निर्माण किया। वह कुलवधू से मौं श्री बन गई। सबकी श्रद्धा की पात्र बन गई। मां श्री ने समस्त विश्व को सुखी बनाने का संकल्प लिया। जब वे 60 को पार कर गई तो उनके अभिनन्दनीय जीवन को अभिन्दन ग्रंथ समर्पित करके उनके जीवन की सुरभि को देश-विदेशों में फैलाने का विचार किया गया। अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया गया और सन् 1954 में एक भव्य समारोह में उसे भेट किया गया । इस अभिनंदन ग्रंथ के सम्पादन में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्री जिनेन्द्र कुमार जैन, श्री बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री नेमिचन्द्र शास्त्री आरा एवं डॉ. श्री शूविंग ने पूर्ण सहयोग दिया। ग्रंथ के प्रधान संपादक श्री अक्षयकुमार जैन एवं श्री जैनेन्द्र कुमार जैन ने अभिनंदन ग्रंथ को आठ भागों में विभक्त किया । ग्रंथ की संपादिका श्री सुशीला सुलतान सिंह जैन देहली, एवं Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/53 श्रीमती जयमाला जैनेन्द्र किशोर जैन देहली रही। इसका प्रकाशन कराया। ग्रंथ विशालकाय है तथा उपयोगी सामग्री से परिपूर्ण है। आचार्य श्री शांतिसागर जी श्रद्धांजलि विशेषांक आचार्य श्री शांतिसागर जी वर्तमान शताब्दी के ऐसे महान आचार्य थे जिनके प्रति समस्त जैन समाज नतमस्तक है तथा जिन्होंने मृत्यु का सहर्ष वरण किया था। 84 वर्ष की अवस्था में दि, 18 सितम्बर,1955 जब उनका समाधिमरण हो गया तब विश्व के सभी धर्म प्रेमियों को हार्दिक वेदना हुई और उन्होंने भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित की थी। महासभा को आचार्य श्री ने अंतिम संदेश दिया था। महासभा ने अपने जैन गजट पत्र का श्रद्धांजलि अंक प्रकाशित कराया। यही आचार्य श्री का स्मृतिग्रंथ है। प्रस्तुत श्रद्धांजलि विशेषांक में आचार्य श्री के पूरे जीवन के बारे में कोई लेख नहीं है केवल श्रद्धांजलियों, संस्मरण आदि है। इसमें साहित्यिक लेख भी है। संस्मरण कुछ बड़े राजनीतिक नेताओं के भी है। विशेषांक का अंग्रेजी अध्याय भी है। श्रद्धांजलि अंक के पश्चात् आचार्य श्री का कोई अलग से स्मृति ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। श्री तनसुखराय स्मृति ग्रंथ देहली निवासी लाला ननसुखराय जी जैन समाज सेवी एवं समाज सुधारक दोनों थे। समाज क्रांति एवं समाज उत्थान की वे सदैव सोचा करते थे। उनका जन्म 21 नवम्बर सन 1899 एवं निधन 14 जुलाई 1960 को हुआ 1 उनके निधन के पश्चात् उनकी सामाजिक, राजनैतिक एवं सार्वजनिक सेवाओं की स्मृति बनाये रखने के लिये स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन किया गया। स्मृति ग्रन्थ के सम्पादक श्री जिनेन्द्र कुमार जैन, यशपाल जैन, अभय कुमार जैन एवं सुमेरचन्द जैन है। स्मृति ग्रन्थ में लालाजी की सेवाओं पर विशद प्रकाश डाला गया है। स्मृति ग्रंथ दो अध्यायों में विभक्त है। एक समाजसेबी की स्मृति को नाजा रखने के लिये ग्रंथ में अच्छी सामग्री का संकलन हुआ है। श्री कानजी स्वामी अभिनंदन ग्रंथ 20 वीं शानाब्दी के उत्तरार्द्ध में कानजी स्वामी जितने चर्चित रहे वह उनके विशाल व्यक्तित्व का द्योतक है। एक ओर वे भक्तो से घिरे रहते थे तो दूसरी ओर उन्हें विरोधियों के विरोध को भी सहन करना पड़ता था। सदा आत्मा की बात करने वाले स्वामी जी का अंतिम जीवन उनकी कथनी के अनुसार नहीं रह सका। उनके लिये अभिनंदन में कोई आकर्षण नहीं था क्योंकि उनका जीवन ही हजारों के लिये अभिनंदनीय धा। फिर भी वीर निर्वाण संवत 2490 तदनुसार 13 मई 1964 को स्वामी जी की हीरक जयन्ती के अवसर पर अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया। इस अभिनंदन ग्रंथ के संपादन समिति में प. फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, हिम्मतलाल कोटा वाले शाह, भीमचन्द, जैठालाल सेठ एवं ब्र. हरीलाल Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 / जैन समाज का वृहद् इतिहास थे। इसमें प्रारम्भ में गुजराती भाषा में सामग्री है और फिर हिन्दी में श्रद्धाजलियाँ एवं निबन्धों का संग्रह है । बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ प्रसिद्ध समाजसेवी बाब छोटेलाल जी जैन का पहिले अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन का निश्चय किया गया था। पर्याप्त सामग्री का संकलन भी हो गया था लेकिन 26 जनवरी 1966 को उनका अब्बानक निधन हो गया । इसलिये अभिनन्दन ग्रंथ को स्मृति ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया गया। इसके सम्पादक मंडल में पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ, जयपुर, डॉ. ए. एन. उपाध्ये कोल्हापुर, पं. कैलाशचन्द शास्त्री वाराणसी, श्री अगरचन्द नाहटा बीकानेर, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल जयपुर, डॉ. सत्यरंजन बनर्जी कलकत्ता एवं पं. भवरलाल पोल्याका जयपुर थे। प्रकाशक बा. छोटेलाल जैन अभिन्दन समिति कलकत्ता है। स्मृति ग्रंथ सन् 1967 में प्रकाशित किया गया था। कलकत्ता में स्मृति ग्रंथ के समर्पण समारोह में लेखक को भी सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था । स्मृति ग्रंथ के प्रथम खण्ड में व्यक्तित्व, कृतित्व, संस्मरण एवं श्रद्धांजलियाँ है । दूसरा खण्ड इतिहास, पुरातत्व एवं शोध विषयक है तथा तीसरा खण्ड साहित्य, धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित है। चतुर्थ खण्ड अंग्रेजी के लेखों का है जिसमें 43 लेखों का संकलन है । श्री भंवरीलाल बाकलीवाल स्मारिका भारतवर्षीय शांतिवीर दिगम्बर जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा द्वारा प्रकाशित श्री भवरीलाल बाकलीवाल स्मारिका स्वर्गीय बाकलीवाल जी की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दिशाओं में की गई सेवाओं का मूर्त रूप है। भवरीलाल जी बाकलीवाल उद्योगपति थे अथाह धन के स्वामी थे लेकिन समाज सेवा के भाव उनकी रग रग में भरे हुये थे । वे कट्टर मुनि भक्त थे । आर्ष मार्गी थे तथा मुनि धर्म की किंचित भी अवमानना सहन नहीं करने वाले थे। भादवा कृष्णा 7 वि. सं. 1955 में पैदा होकर वे केवल 69 वर्ष की आयु में आश्विन शुक्ला 13 से. 2024 में चल बसे। जितने वर्ष जिये उतने वर्ष ही यशस्वी जीवन जीते रहे। उनके निधन के एक वर्ष पश्चात् ही स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन होना समाज में उनके प्रति सहज श्रद्धा का द्योतक है। स्मृति ग्रंथ का सम्पादन पं. इन्द्रलाल शास्त्री, पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री एवं डॉ. लालबहादुर शास्त्री ने किया। प्रारम्भ में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। आचार्य श्री शिवसागर स्मृति ग्रंथ आचार्य शिवसागर जी महाराज आचार्य शांतिसागर जी के प्रशिष्य एवं आचार्य वीरसागर जी के शिष्य थे। उनका जन्म संवत् 1958 एवं समाधिमरण संवत् 2025 में हुआ। इसके चार वर्ष पश्चात् डा. पन्नालाल जी साहित्याचार्य के संपादकत्व में प्रस्तुत स्मृति ग्रंथ श्रीमती सौ. भंवरीदेवी पांड्या द्वारा प्रकाशित कराया गया। ग्रंथ का विमोचन टीक (राज.) में दिनांक 24 मार्च 1974 को किया गया । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/55 दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष राय साहब श्री चांदमल जो पाइया समारोह में उपस्थित थे। प्रथम खंड में आचार्य श्री के प्रति साधुओं की श्रद्धांजलियाँ एवं स्तवन आदि है शेष चार खंडों में शास्त्रीय चर्चा प्रधान लेख है। स्मृति ग्रंथ ने इस दृष्टि से सैद्धान्तिक ग्रंथ का रूप ले लिया है। श्री तेजकरण इंडिया अभिनंदन ग्रंथ शिक्षक और समाज शीर्षक से जयपुर नगर के प्रसिद्ध शिक्षाविद श्री तेजकरण इंडिया का सन् 1975 में अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करके सम्मानित किया गया। श्री इंडिया जी शिक्षा जगत के जैसे जाने माने हस्ती है वैसे ही सामाजिक क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते है। जयपुर के महावीर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के वे संस्थापको में से हैं और विगत कितने ही वर्षों से उसके अध्यक्ष भी हैं। प्रस्तुत ग्रंथ का सम्पादन श्री माणिक्य चन्द्र जैन एवं श्री नेमिचन्द काला ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में डंडिया जी के व्यक्तित्व, जीवन, संस्मरणों के अतिरिक्त राजस्थान की शिक्षण संस्थाओं पर भी प्रकाश डाला गया है। पंडित चैनसुखदास न्यायतीर्थ स्मृति ग्रंथ पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ समाज के बहुत लोकप्रिय विद्वान थे। उनके शिष्यवर्ग ने उनका अभिनन्दन ग्रंथ निकालने का जब कभी प्रयास किया पंडित जी के विरोध के कारण उसे स्थगित करना पड़ा। अन्त में उनका अभिनन्दन ग्रंथ समर्पण का निर्णय भी हो गया तथा लेख वगैरह भी मंगा लिये गये लेकिन 26 जनवरी 1969 को उनका अकस्मात निधन हो जाने के कारण अभिनन्दन ग्रंथ की स्मृति ग्रंथ में बदलना पड़ा और उनके स्वर्गवास के 7 वर्ष पश्चात उसे श्री महावीर जी क्षेत्र की ओर से प्रकाशित किया गया। स्मृति गंध के संपादक मंडल में पं. मिलापचन्द जी शास्त्री, डॉ. कमलचन्द सौगानी एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल है। श्री ज्ञानचन्द खिन्दूका स्मृति ग्रंथ के प्रबन्ध सम्पादक है। स्मृति ग्रंथ को घार खण्ड़ों में विभाजित किया गया है। प्रथम खण्ड में श्रद्धान्जलियाँ, जीवन, व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण, दूसरे खण्ड में धर्म एवं दर्शन विषयक 14 लेख, तीसरे खण्ड में साहित्य एवं संस्कृति एवं चतुर्थं खण्ड में इतिहास एवं पुरातत्व से संबंधित लेख है। पं. समेस्चन्द दिवाकर अभिनन्दन ग्रंथ 4. सुमेस्चन्द दिवाकर की सेवाओं को देखते हुये उनके अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1976 में हुआ और जबलपुर में आयोजित एक समारोह में श्री दिवाकर जी को यह ग्रंथ भेट किया गया। लेखक को भी उस समारोह में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। अभिनन्दन ग्रंथ के प्रधान सम्पादक डॉ. नन्दलाल जैन है तथा संपादक मंडल के अन्य सदस्यों में श्री लालचन्द जैन, डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर, डॉ. सुकुमाल जैन एवं महेन्द्र सिंघई ने प्रबन्ध सम्पादक के रूप में योग दिया । अभिनन्दन Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56/जैन समाज का वृहद् इतिहास ग्रंथ का प्रकाशन विगतरत्न पं. सुमेस्चन्द दिवाकर अभिनन्दन समारोह समिति जबलपुर ने किया। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में अभिवादन एवं संस्मरण है तथा शेष पाँच खण्ड विभिन्न विषयों में बटे हुए है। विद्वत अभिनंदन ग्रंथ यह अभिनंदन ग्रंथ किसी एक विद्वान का अभिनंदन ग्रंथ नहीं है किन्तु सम्पूर्ण जैन समाज के 201 साधु साध्वियों, क्षुल्लक, ऐलक, आर्यिका, भुल्लिका, ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मचारिणियों का सामान्य परिचय सहित है। साथ में 467 विद्वानों एवं विदुषियों का सामान्य किन्तु पूरी जानकारी के साथ परिचय दिया गया है। यह ग्रेथ पूरे विद्वत समाज एवं साधु समाज का प्रतिनिधित्व करता है। परिचय प्रस्तुत करने में संपादक मंडल के सभी सदस्यों ने जिनमें पं. रत्न डॉ. लाल बहादुर शास्त्री, पं. बाबूलाल जमादार, पं. विमलकुमार सोरया शामिल है प्रशंसनीय कार्य किया है। इतने साधुओं एवं विद्वानों का परिचय जुटाना, लिखना बहुत ही श्रम साध्य कार्य है। ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1976 में हुआ था। परिचय के अतिरिक्त इसमें कुछ विद्वानों के लेख भी है। आचार्य महावीर कीर्ति स्मृति ग्रंथ ___ आचार्य महावीर कीर्ति जी अपने युग के विशिष्ट आचार्य थे। आचार्य विमलसागर जी महाराज उन्हीं के शिष्य है। क्षुल्लक शीतलसागर जी भी उन्हीं के एक सुयोग्य शिष्य है। वे ही इस स्मृति ग्रंथ के सूत्रधार एवं प्रेरणा स्रोत रहे है। उन्हीं की प्रेरणा से आचार्य महावीर कीर्ति दि. जैन धर्म प्रचारिणी संस्था आवागढ़ (एटा) उत्तर प्रदेश ने प्रस्तुत स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन कराया है। इसके संपादक मंडल में डॉ. लाल बहादुर शास्त्री, 4. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, पं. महेन्द्र कुमार महेश, प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन एवं 4. धर्मचन्द शास्त्री का नाम है। इसकी प्रकाशन तिथि महावीर जयन्ती सन् 1978 है। स्मृति ग्रंथ पाँच खंडों में विभाजित है। प्रथम खंड में श्रद्धान्जलियों एवं संस्मरण है। द्वितीय खंड में आचार्य श्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय खंड में जैन धर्म और दर्शन पर, चतुर्थ खंड में इतिहास पर तथा पांचवे खंड में अवशिष्ट लेख है। आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज अभिवन्दन ग्रंथ ___ आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज आचार्य श्री शांतिसागर जी के तीसरे पट्टाधीश शिष्य थे। वे स्वभाव से अक्खड़ किन्तु मुनि चर्या में एकदम खरे साधु थे। श्री दिगम्बर जैन नवयुवक मंडल कलकत्ता ने उनको सार्वजनिक रूप से अभिवन्दन करने के लिये एक विशालकाय अभिवंदन ग्रंथ का प्रकाशन कराया। ग्रंथ का सम्पादन पं. धर्मचन्द जी शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने किया। ग्रंथ समर्पण समारोह में आचार्य धर्मसागर जी महाराज नहीं पधारे और उन्होंने ग्रंथ को स्वीकार भी नहीं किया। लेकिन यह विशालकाय अभिवन्दन ग्रंथ प्रथम खंड विनयांजलि, संस्मरण एवं शुभकामनाओं से युक्त है। दूसरे खंड में उनके विशाल व्यक्तित्व पर लेखों का संग्रह है। तृतीय खंड चित्रमाला का है। चतुर्थ खंड में काव्यांजलि प्रस्तुत की Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/57 गई है। पंचम, षष्ठ एवं सप्तम खंड में विभिन्न विषयों पर आधारित लेखों का संग्रह है। पूरा अभिवंदन ग्रंथ 850 पृष्ठों से भी अधिक है। अभिवन्दन ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1981 में किया गया था। इसका मूल्य 150/- रुपया रखा गया है। श्री मूलचन्द किशनदास कापडिया अभिनंदन ग्रंथ कापड़िया जी दिगम्बर जैन समाज के प्राचीनतम पत्र जैन मित्र के वर्षों तक सम्पादक रहे। उनका जन्म 12 फरवरी, 1883 को हुआ। 98 वर्ष की आयु में अक्टूबर 81 में उन्हें अभिनंदन ग्रंथ भेट किया गया। इस अभिनन्दन ग्रंथ के प्रधान संपादक डॉ. शेखरचन्द जैन है। सम्पादक मंडल में पं. परमेष्ठिदास जी शास्त्री, पं. परमेष्ठीदास जी न्यायतीर्थ एवं प. ज्ञानचन्द्र स्वतंत्र रहे। संकलनकर्ता श्री शैलेश डी. कापडिया है। लेकिन यह ग्रंथ अभिनंदन ग्रंथ नहीं बन पड़ा है। इसे हम जैन मित्र का विशेषांक कह सकते हैं। अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन बम्बई दि. जैन प्रान्तीय सभा द्वारा किया गया था। न्यायाचार्य डॉ. दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन ग्रंथ डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया का वर्तमान विद्वत समाज में सर्वोच्च स्थान है। समाज का उनके प्रति सहज आकर्षण है। वे अनेक संस्थाओं के जनक है तथा पचासों विद्यार्थियों के जीवन निर्माता हैं। सन् 1982 में बीना बराहा में भा. दि. जैन विद्वत परिषद् के वृहद अधिवेशन में सैकड़ों विद्वानों के मध्य उन्हें न्यायाचार्य डॉ. दरबारीलाल कोठिया अभिनंदन ग्रंथ समिति की ओर से अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था। अभिनंदन ग्रंथ का संपादन डॉ. ज्योति प्रसाद जैन, डॉ पन्नालाल साहित्याचार्य, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, पं. बलभद्र जैन न्यायतीर्थ शास्त्री, डॉ. भागचन्द भागेन्दु एवं डॉ. शीतलचन्द जैन जैसे विद्वानों ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में पाँच खंड है। प्रथम एवं द्वितीय खंड में कोठिया जी के जीवन, संस्मरण, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। उनके ग्रंथो..की समीक्षा भी इसी खंड में की गई है। शेष तीन खंडों में उन्हीं के द्वारा लिखे गये निबंधों का संग्रह है। पूज्य आर्यिका रत्लमती अभिनंदन ग्रंथ पूज्य आर्यिका रत्नमती माताजी की महान देन गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी एवं आर्यिका अभयमती जैसी आर्यिकाओं की जननी बनना है और फिर जननी बनने के पश्चात् गृहस्थ अवस्था की अपनी पुत्री आर्यिका ज्ञानमती से ही आर्यिका दीक्षा लेकर उन्हीं के संघ में रहना है। प्रस्तुत अभिनंदन ग्रंथ का भारतवर्षीय दि, जैन महासभा द्वारा प्रकाशन कराया गया है। अभिनंदन ग्रंथ के सम्पादकों में डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. कुन्जीलाल शास्त्री, डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, 4. बाबूलाल जमादार, ब्र. सुमतिबेन जी शाह, ब्र. विद्युल्लता शाह, ब्र.कु. माधुरी शास्त्री एवं श्री अनुपम जैन के नाम दिये गये है। अभिनंदन ग्रंथ पाँच खंडों में विभक्त है। प्रथम खंड में शुभाशीर्वाद, शुभकामना, विनयांजलि, संस्मरण आदि Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 / जैन समाज का वृहद् इतिहास है। दूसरे खंड में जीवन दर्शन एवं गृहस्थाश्रम के परिवार का परिचय है। तीसरे खंड में दीक्षा गुरु का परिचय, सघ का परिचय आदि है। चतुर्थ खंड में प्राचीन एवं अर्वाचीन आर्यिकाओं का परिचय दिया गया है। पंचम खंड जैन दर्शन एवं सिद्धान्त पर आधारित है। ग्रंथ का प्रकाशन वर्ष 1983 है। श्री सुनहरीलाल जैन अभिनन्दन ग्रंथ श्री सुनहरीलाल जैन अभिनन्दन ग्रंथ एक समाजसेवी की सेवाओं का अभिनंदन है। सुनहरीलाल जैन आगरा नगर के सर्वमान्य जैन रत्न थे। जिनको महासभा, महासमिति, तीर्थक्षेत्र कमेटी आदि सभी में उचित स्थान मिला हुआ था। वे समाज सेवी, शिक्षा सेवी, उदार दानवीर, प्रतिष्ठित व्यवसायी, देव शास्त्र गुरु के सच्चे उपासक, जिनवाणी के परम भक्त, धर्मवीर, धर्म दिवाकर जाति भूषण आदि उपाधियों से विभूषित थे। उनकी लगभग 50 वर्षों तक विभिन्न क्षेत्रों में की गई निस्वार्थ तथा समर्पित सेवाओं के कृतज्ञता स्वरूप 30 मार्च सन् 1983 को यह अभिनन्दन सिद्धक्षेत्र सोनागिर में भट्टारक चारुकीर्ति जी मूडबिद्री द्वारा भेंट किया गया था। ग्रंथ का संपादन डॉ. लालबहादुर जैन, आचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन, पं. बलभद्र जैन, मधनोर के रायजादा डॉ. श्रेयांस कुमार जैन ने किया है। प्रकाशन मंत्री श्री सुनहरीलाल जैन अभिनंदन समारोह समिति है। आर्यिका श्री इन्दुमती अभिनन्दन ग्रंथ आर्यिका इन्दुमती माताजी ने आसाम एवं बंगाल प्रदेश में पर्याप्त समय तक विहार किया और समाज को धार्मिक संस्कारों से युक्त बनाने में बहुत योग दिया। सन् 1983 में जब वे सम्मेद शिखर जी थीं तब अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन करवाया गया और उन्हें भेंट किया गया। इस अभिनन्दन ग्रंथ के सम्पादक डॉ. चेतन प्रकाश पाटनी, जोधपुर तथा प्रबन्ध सम्पादक श्री डूंगरमल सबलावत, डेह है। श्री सबलावत ने ग्रंथ को सुन्दर एवं उपयोगी बनाने के लिये बहुत परिश्रम किया है। प्रथम खण्ड में आशीर्वचन, अभिवादन, संस्मरण एवं काव्यांजलि दी गई है। दूसरे खण्ड में चित्रमाला है। तृतीय में जीवनवृत्त एवं चतुर्थ खण्ड में लेखों का संग्रह है। पांचवें खण्ड में मिले-जुले लेख है। आर्यिका इन्दुमती माताजी की सबसे बड़ी देन आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी जैसी विदुषी आर्यिका तैयार करना है। अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन दि. जैन महासभा, आर्यिका इन्दुमती अभिनन्दन समिति कलकत्ता एवं शांति वीर जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा श्री महावीर जी ने मिलकर किया है। अभिनन्दन ग्रंथ का मूल्य 50/- रुपये रखा गया है। किसी आर्थिका के अभिनन्दन में प्रकाशित होने वाला यह प्रथम ग्रंथ हैं। पं. सत्यन्धर कुमार सेठी अभिनन्दन ग्रंथ समर्पित जीवन शीर्षक से प्रकाशित पे सत्यन्धर कुमार जी सेठी का अभिनन्दन ग्रंथ उनकी सेवाओं की स्वीकृति के रूप में एक खुला दस्तावेज है। इस अभिनन्दन ग्रंथ को सेठी जी के निवास स्थान उज्जैन Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समग्रज का इतिहास/59 में दिसम्बर 83 में एक विशाल समारोह में भेंट किया गया था। अभिनन्दन ग्रंय के संपादक श्री नेमीचन्द काला जयपुर एवं प्रबना संपादक श्री सुशील कुमार जी सेठी उज्जैन हैं। प्रकाशन श्री पं. सत्यन्धर कुमार सेठी अभिनन्दन समिति जयपुर ने किया है। अभिनन्दन ग्रंथ के प्रथम खण्ड में पंडित जी के प्रति विद्वानो, समाजसेवियों, व्यापारियों एवं स्वजनों के संस्मरण एवं आशीवर्धन है। शेष छह खण्डों में विविध विषयों पर लेख है। समाजसेवियों का इस प्रकार का अभिनन्दन स्वागत योग्य है। श्री यशपाल जैन अभिनंदन ग्रंथ निष्काम साधक के नाम से प्रकाशित श्री यशपाल जैन अभिनंदन ग्रंथ अभिनंदन ग्रंथों की परम्परा में एक नया अध्याय है। श्री यशपाल जैन का व्यक्तित्व जितना विशालकाय है उतना ही अभिनंदन ग्रंथ भी विशालकाय है। प्रस्तुत अभिनंदन ग्रंथ मानवीय मूल्यों के उपासक श्री यशपाल जैन को उनकी 72 वीं वर्षगांठ पर 9 सितम्बर 1984 को समर्पित किया गया था। श्री यशपाल जैन अभिनंदन ग्रंथ समारोह समिति के अध्यक्ष डा. लक्ष्मीमल सिंघदी है। श्री बनारसीदास चतुर्वेदी इसके प्रधान सम्पादक है। श्री खेमचन्द्र सुमन इनके सम्पादक है तथा श्री वीरेन्द्र प्रभाकर इसके संयोजक है। पूरा ग्रंथ विभिन्न परिवेशों में विभक्त है। जैन संस्कृति पर एक अध्याय है जिसमें सात विद्वानों के लेख हैं। एक अध्याय हिन्दी का वैभव है तथा एक अध्याय भारतीय संस्कृति पर भी है। सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री अभिनंदन ग्रंथ पं. फूलचन्द जी शास्त्री विद्वत्ता एवं सिद्धान्त परक ज्ञान में अद्वितीय होने पर भी वे समाज के एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है। उनके सम्मान में सन् 1985 में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया गया जिसके सम्पादन में डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैन, पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री, पं. जगमोहन लाल जी शास्त्री, प. नाथूलाल जी शास्त्री, पं. माणकचन्द चवरे कारंजा, प्रोफेसर खुशालचन्द जी गोरेवाला एवं डॉ. देवेन्द्र कुमार जी नीमच जैसे मनीषी है। पं. बाबूलाल जैन फागुल्ल जिसके प्रबन्ध संपादक है । ग्रंध का प्रकाशन सिद्धान्ताचार्य पं. फूलबन्द शास्त्री अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति वाराणसी ने किया है। अभिनंदन ग्रंथ में पोच खंड है जिनमें तीन अध्याय उनके व्यक्तित्व पर आधारित है। शेष अध्याय उनके द्वारा लिखे गये निबन्धों से आप्लावित है। डॉ. लालबहादुर शास्त्री अभिनंदन ग्रंथ ___अ. भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के अध्यक्ष डा. लालबहादुर जी शास्त्री विद्वत्ता एवं शास्त्रीय ज्ञान के निष्णात मनीषी है। आपका अभिनंदन ग्रंथ निकालने की योजना अहमदाबाद में शास्त्री परिषद् के अधिवेशन में पं. बाबूलाल जी जमादार ने तैयार की लेकिन वे अभिनंदन ग्रंथ समर्पण के पूर्व ही चल बसे। शास्त्री परिषद की ओर से अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन कराया गया। अभिनंदन ग्रन्थ के प्रधान संपादक पं. विमल कुमार जी सोरया को बनाया गया। सम्पादक मंडल में सर्व श्री डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल जयपुर, पं. सागरमल जैन विदिशा, डॉ. श्रेयान्सकुमार जैन बडौत, Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60/जैन समाज का वृहद इतिहास प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन फिरोजाबाद, डॉ. सुपार्श्वकुमार जैन बडौत, डॉ. दामोदर शास्त्री दिल्ली को रखा गया। पं. बाबूलाल जी फागुल्ल इसके प्रबन्ध सम्पादक बनाये गये। अभिनंदन ग्रंथ का समर्पण सन् 1986 में सुजानगढ़ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर आयोजित शास्त्री परिषद् के अधिवेशन में विशाल जनसमूह के मध्य किया गया। अभिनेदन ग्रंथ चार खंडों में विभाजित है जिसमें प्रथम दो खंड स्वयं शास्त्री जी पर एवं दो खंडों में विभिन्न विषयों पर लेखों का संकलन है। सरस्वती वरद पुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनंदन ग्रंथ पुरानी पीढ़ी के यशस्वी विद्वानों में प. बंशीधर जी व्याकरणाचार्य का नाम लिया जा सकता है। व्याकरणावार्य उनके नाम से रुद हो गया है। पंडित जी आर्ष मार्ग के पक्के पंडित है। खानिया तत्वचर्चा में आपने एक वर्ग के विद्वानों का प्रतिनिधित्व किया था। स्वतंत्रता सेनानी रहे हुये है। कहा जाता है कुछ समय तक कोर्ट कचहरियो में आपका नाम लेना ही पर्याप्त समझा जाता था। सन 1989 में सागर में आयोजित एक विशाल समारोह में आपको समाज की ओर से एक अभिनदन ग्रंथ भेंट किया गया। अभिनंदन ग्रंथ के प्रधान सम्पादक डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य तथा सम्पादक मंडल में पं. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, डॉ. राजाराम जैन, डॉ. भागचन्द भागेन्दु, डॉ. फूलचन्द प्रेमी, पं. बलभद्र जैन न्यायतीर्थ, श्री नीरज जैन, डॉ. सुदर्शनलाल जैन एवं डॉ. शीतलचन्द्र जैन जैसे विद्वान है। प्रबन्ध सम्पादक बाबूलाल जैन फागुल्ल है। प्रकाशक सरस्वती पुत्र पंडित बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति वाराणसी है। पं. रतनचन्द जैन मुख्तार व्यक्तित्व एवं कृतित्व पं. रतनचन्द्र जैन मुख्तार बहुत बड़े पंडित थे। उनकी स्मृति में स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन उनके प्रति सहज श्रद्रा का द्योतक है। यह स्मृति ग्रंथ सबसे भिन्न परम्परा डालने वाला है और वह है पंडित जी द्वारा शंकाओं का उत्तर। स्मृति ग्रंथ में शंकायें और फिर उनका समाधान दिया गया है। यह शंका समाधान जैन गजद आदि पत्रों में पहिले प्रकाशित हुआ था। उन्हीं शंका समाधानों का विद्वत्ता पूर्वक संपादन डॉ. चेतन प्रकाश जी पाटनी ने एवं पं. जवाहरलाल जी भिण्डर ने किया है। यह स्मृति ग्रंथ दो खण्डों में प्रकाशित हुआ है। इस यंध के प्रकाशक आचार्य श्री शिवसागर दि. जैन ग्रंथमाला शांतिवीरनगर श्री महावीर जी है। दोनों भागों का मूल्य 150/- रुपये है। प्रकाशन वर्ष सन् 1989 हैं। साहित्याचार्य डॉ. पं. पन्नालाल जैन अभिनन्दन दीपिका __डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य जैन समाज के वयोवृद्ध मनीषी है। पिछले 50 वर्षों से वे जिनवाणी की सेवा में समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। ऐसे मनीषी पर अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन बहुत वर्षों पूर्व ही हो जाना चाहिये था। लेकिन वह समय आया 2 मार्च 90 को जब एक भव्य समारोह में उन्हें सागर में ग्रंथ समर्पित किया गया। अभिनन्दन ग्रंथ के संयोजक संपादक डॉ. भागचन्द भागेन्दु ने सम्पादन का सम्पूर्ण Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज का इतिहास/61 उत्तरदायित्व निभाया। सम्पादक मंडल में डॉ. ज्योति प्रसाद जी लखनऊ, डॉ.दरबारीलाल जी कोठिया वाराणसी, श्री लक्ष्मीचन्द जैन नई दिल्ली, डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर, डॉ. नेमिचन्द जैन इन्दौर, डॉ. हरीन्द्र भूषण बाहुबली, प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन फिरोजाबाद एवं पं. कमलकुमार जी शास्त्री छतरपुर के नाम उल्लेखनीय है। अभिनन्दन ग्रंथ का बहु आयामी स्वरुप है। प्रथम खंड में आशीष, शुभकामनायें दी गई है। द्वितीय में डॉ.साहब का जीवन स्वयं के शब्दों में दूसरे विद्वानों ने लिपिबद्ध किया है। इसी के साथ उनके व्यक्तित्व ' पर विभिन्न विद्वानों के आलेख है। कवियों ने उनके व्यक्तित्व को छन्दोबद्ध किया है तथा आगे उनकी कृतियों पर विभिन्न विद्वानों ने समीक्षात्मक लेख लिखे है। शेष तीन से छः खंड तक स्वयं डॉ. पन्नालाल जी द्वारा लिने गरी लेन्द्रों का संग्रह है। पंडित जी से सम्बद्ध चित्रों का भी अच्छा संग्रह हो गया है। अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशक साहित्याचार्य डॉ.पन्नालाल जैन अभिनन्दन समारोह समिति सागर है। अभिनन्दन ग्रंथ का मूल्य 201/- रुपये है। पंडित जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रंथ पंडित जगमोहन लाल जी वर्तमान विद्वत समाज के गुरुणां गुरु है। उनका विशाल पांडित्य सभी विद्वानों के लिये प्रेरणा दायक है। शास्त्री जी को अभिनन्दन ग्रन्थ 12 अप्रैल, 1990 को पं. जगमोहन लाल शास्त्री साधुवाद समिति कुंडलपुर, जबलपुर रीवा द्वारा जबलपुर में एक समारोह में भेंट किया गया था। साधुवाद ग्रंथ के सम्पादक मंडल में डॉ.विलास संगवे कोल्हापुर, डॉ. (सौ. ) मीलांजना शाह अहमदाबाद, डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर नागपुर, डॉ. हरीन्द्रभूषण उज्जैन, पं. जमनाप्रसाद शास्त्री कटनी, डॉ. नन्दलाल जैन रीवा के नाम है तथा डॉ. सुदर्शनलाल जैन काशी उसके प्रबन्ध संपादक है। साधुवाद ग्रंथ छ. खंडों में विभाजित है जिसमें प्रथम खंड पंडित जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से संबंधित है शेष पांच खंड विभिन्न विषयों में विभाजित है। पूरे ग्रंथ में 458 पृष्ठ है। आचार्य श्री वीरसागर स्मृति ग्रंथ आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज आचार्य शांतिसागर जी के प्रथम पट्टाचार्य शिष्य थे। आपका आचार्यकाल अधिक नहीं रहा और सन् 1956 में ही आपकी समाधि हो गई। उनकी समाधि के 33 वर्ष पश्चात् स्मृति ग्रेथ का प्रकाशन भी एक महत्त्वपूर्ण श्रद्धांजलि है। स्मृति ग्रंथ प्रकाशन का सराहनीय कार्य दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर एवं अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद् ने किया। इसका प्रकाशन वैशाख शुक्ला तृतीया वीर नि.स.2516 दि.27-4-1990 को हुआ। स्मृति ग्रंथ प्रकाशन की प्ररेणास्रोत पूज्य गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी, समायोजन आर्यिका चन्दनामती जी, निर्देशन स्वस्ति श्री पीठाधीश मोतीसागर जी एवं संपादक ब्र. रवीन्द्रकुमार जी जैन है। स्मृति ग्रेथ पांच खडो में विभाजित है। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जैन पत्र-पत्रिकाएं जैन पत्र-पत्रिकाओं का समाज के इतिहास निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनमत बनाने में उनका विशेष हाथ रहता है। वस्तुतः इन पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक इतिहास के पृष्ठ बिखरे पड़े हैं। क्योंकि अब तक जितने भी सामाजिक आंदोलन हुये, इन पत्रों ने उनमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इन आंदोलनों में चाहे वह दस्सा पूजाधिकार हो अथवा अन्तर्जातीय विवाह का प्रश्न, सिद्धान्त ग्रंथों को छुपाने का हो अथवा श्रावकों द्वारा पढ़ने का, लोहडसाजन बडसाजन आंदोलन हो, अथवा आर्षमार्ग का समर्थन, सोनगढ़ का विरोध हो अथवा समर्थन हो अथवा इनके अतिरिक्त और कोई भी आंदोलन हो, सभी में इन पत्र-पत्रिकाओं की अहं भूमिका रही है। 20वीं शताब्दी में अनेक पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और कुछ वर्षों के प्रकाशन के पश्चात् वे बंद ही गये। तीर्थंकर इन्दौर के (सन् 1977 के जैन पत्र-पत्रिकाएं ) विशेषांक में 386 पत्रों की संख्या दी गई है। जिनमें आधे से अधिक पत्र तो बंद हो चुके हैं। लेकिन प्रतिवर्ष नये-नये पत्रों का प्रकाशन भी हो रहा है। यद्यपि जैन समाज तो एक छोटा समाज है लेकिन उसमें बौद्धिक वर्ग अधिक होने के कारण जैन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या काफी अधिक है। वर्तमान में 150 से भी अधिक पत्र प्रकाशित होते हैं। कुछ पत्र तो संस्थाओं के पत्र हैं और कुछ निजी पत्र भी हैं। इसलिये संस्थाओं की ओर से प्रकाशित होने वाले पत्रों की रीति-नीति तो संस्थाओं के अनुसार होती है और जो निजी पत्र है उनकी नीति सम्पादक के ऊपर निर्भर करती है। जैन गजट अ. भा. दि. जैन महासभा का पत्र है तथा महासभा की रीति-नीति का दिग्दर्शक है। विगत एक शताब्दी से कुछ कम समय में समाज के प्रमुख विद्वानों ने इसका सम्पादन किया है। इसके अब तक कई विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। जैन मित्र की विकास यात्रा सन् 1950 से प्रारंभ हो गई थी। इसे हम मध्यममार्गी पत्र कह सकते हैं। अ.भा. दि. जैन परिषद् का मुख्य पत्र वीर है जो सुधारवादी विचाराधारा का है। इसी तरह जैन संदेश प्रारंभ में निजी पत्र रहा और फिर अ. दि. जैन संघ से जुड़ गया। पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री वाराणसी ने इसका वर्षों तक सम्पादन किया। इसी तरह जयपुर से प्रकाशित होने वाली वीरवाणी का सम्पादन पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ जैसे विद्वान ने किया और सामाजिक आंदोलनों में खूब भाग लिया । उक्त पत्रों के अतिरिक्त अहिंसावाणी (1950) तीर्थंकर मासिक इन्दौर (1955) सम्यग्ज्ञान हस्तिनापुर, जैन बोधक (मराठी) दिगम्बर जैन, अहिंसा जयपुर, जैन जगत (बम्बई) आदि पचासी पत्र हैं जो सामाजिक समाचारों को प्रकाशित करके समाज को नवीनतम सूचनायें कराते रहते हैं। इसी तरह अनेकान्त, जैन सिद्धान्त भास्कर, प्राकृत विधा जैसे साहित्यिक पत्र हैं जिनमें प्रमुखतः साहित्यिक अथवा शोध पूर्ण लेख प्रकाशित होते हैं। अब जयपुर से जैन समाज नाम से एक दैनिक पत्र अभी गत कुछ वर्षों से प्रकाशित होने लगा है। |‒‒‒‒‒‒‒ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतिहास की पृष्ठभूमिः देश के पूर्वाञ्चल प्रदेश में आसाम, नागालैण्ड, मणिमुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम जैसे छोटे-बड़े प्रदेश आते हैं । पहले इन में से अधिकांश प्रदेश आसाम प्रान्त के ही भाग थे, मणिपुर स्टेट थी लेकिन भाषा और संस्कृति के नाम पर ये सब स्वतन्त्र प्रदेश बना दिये गये । वर्तमान में सभी में विधानसभायें, सचिवालय एवं राज्यपाल आदि हैं । कूचबिहार बंगाल-बिहार का अंतिम रेल्वे स्टेशन है और गौरीपुर आसाम का प्रवेश द्वार है। पूर्वाञ्चल प्रान्त में राजस्थान से मुख्यत: मारवाड़ एवं शेखावाटी से व्यापार एवं रोजगार के लिये कोई 150 वर्ष पूर्व में जाना प्रारंभ हुआ। सन् 1891 की जनगणना के अनुसार पूरे आसाम प्रदेश की जनसंख्या 5476833 थी इनमें जैनों की जनसंख्या 1368 थी । इससे पता चलता है कि 100 वर्ष पूर्व वहां एक हजार से अधिक व्यापारी एवं उनके कार्यकर्ता पहुंच चुके थे। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि पूर्वाचल में 150 वर्ष पूर्व ही जैन धर्म का प्रवेश हुआ था । गौहाटी से 125 कि.मी. दूर सूर्य पहाड़ में जैन पुरातत्व के अवशेष मिले हैं । गुफा में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमायें उकेरी हुई मिली हैं। इससे पूर्वाञ्चल प्रदेश में जैन धर्म के प्राचीन अस्तित्व का नया स्रोत मिला है । पूर्वाञ्चल में भगवान महावीर के पूर्व एवं उनके निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म की क्या स्थिति रही इसकी खोज की महती आवश्यकता है। ___ पिछले 100 वर्षों में समूचे पूर्वाञ्चल प्रदेश में जैन धर्म की स्थिति सुदृढ़ हुई है। केवल जनसंख्या में ही वृद्धि नहीं हुई है किन्तु नये-नये मन्दिरों का निर्माण हुआ है । स्वाध्यायशालायें, प्रवचन हॉल, मानस्तंभ, समवसरण की रचना हुई है । साध्वियों का विहार होने लगा है । वर्ष 1974 से 75 में समूचे पूर्वाञ्चल प्रदेश में भगवान महावीर का 2500वां परिनिर्वाण वर्ष बड़े जोश के साथ मनाया गया। धर्मचक्र का प्रवर्तन हुआ, ज्ञान ज्योति रथ का प्रवर्तन हुआ । गौहाटी, विजय नगर, डीमापुर, नलबाड़ी जैसे नगरों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित हो चुके हैं । इस प्रकार पूर्वाञ्चल प्रदेश जैन धर्म एवं जैन संस्कृति की दृष्टि से अनेक प्रदेशों के बराबर आने लग गया है। अब जब पूर्वाञ्चल प्रदेश के प्रमुख नगरों एवं उनमें वर्तमान में जैन समाज की स्थिति, धर्म एवं संस्कृति के प्रति जागरूकता, दिवंगत महान् आत्मायें एवं समाज के प्रमुख कार्यकर्तागण आदि का परिचय प्राप्त करने के लिये पूरे प्रदेश में मुझे करीब 50 दिन तक घूमना पड़ा तथा कुछ सामग्री श्री राजकुमार जी सेठी प्रकाशन मंत्री दि. जैन महासभा द्वारा प्राप्त हुई । उसी के आधार पर पूर्वाञ्चल प्रदेश के नगरों का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 / जैन समाज का वृहद् इतिहास गौहाटी अथवा गुवाहाटी : गौहाटी नाम से प्रसिद्ध नगर आराम प्रदेश की राजी है। नदी के किस पर बसा हुआ होने के कारण इस नगर का प्रारम्भ से ही व्यापारिक महत्व रहा है। सन् 1891 की जनगणना के समय गौहाटी की जनसंख्या 10817 थी और उसमें 23 जैन थे। सन् 1991 की जनगणना में गौहाटी की जनसंख्या दो लाख से ऊपर पहुंच जायेगी । प्राचीन काल में गौहाटी का नाम प्रागज्योतिषपुर था । I वर्तमान में दिगम्बर जैन धर्म एवं समाज की दृष्टि से गौहाटी पूर्वाञ्चल प्रदेश का सबसे घनी बस्ती वाला नगर है। वहां जैन समाज के करीब 456 परिवार रहते हैं जिनमें अधिकांश उद्योगपति, व्यवसायी एवं व्यापारी हैं। नगर में एक दिगम्बर जैन मन्दिर एवं 6 चैत्यालय हैं। पंचायती मन्दिर फैन्सी बाजार में स्थित है तथा चैत्यालय पान बाजार, केदार रोड़, आठ गांव, मालीयान पांडू एवं महावीर भवन में हैं। समाज में सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था बनाये रखने के लिये दिगम्बर जैन पंचायत नाम की संस्था विगत 30-35 वर्षों से कार्यरत है। पंचायत के अध्यक्ष के रूप में रा. सा. चांदमल जी पांण्ड्या, हरकचन्द जी पाण्ड्या, लखमीचन्द जी छाबड़ा, मनालाल जी छाबड़ा जैसे महानुभाव कार्य कर चुके हैं। पंचायत में पदाधिकारियों सहित 30 सदस्य हैं। पंचायत के अतिरिक्त यहां श्री महावीर महिला परिषद्, श्री महावीर छात्र परिषद्, श्री दिगम्बर जैन विद्यालय, श्री महावीर सिलाई शिक्षा केन्द्र, श्री महावीर संगीत विद्यालय एवं श्री महावीर भवन जैसी संस्थाएं कार्यरत हैं। महावीर भवन साधु-साध्वियों एवं यात्रियों के लिये ठहरने का सुन्दर स्थान है। यहां का अधिकांश समाज खण्डेलवाल दि. जैन समाज है। मुनिभक्त है। जब से आर्यिका इन्दुमती जी एवं आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी ने गौहाटी में चातुर्मास किये हैं, समाज को धार्मिक कार्यों की ओर मोड़ने में पर्याप्त सफलता मिली है। माताजी के चातुर्मास से नवयुवकों में धार्मिक संस्कार जगे हैं। गौहाटी के वर्तमान प्रमुख समाज सेवियों में सर्व श्री लक्षमी चन्द जी छाबड़ा, मदन लाल जी बाकलीवाल, सोहनलाल जी पाटनी, गणपतराय जी सरावगी, जयचन्द लाल जी पाटनी, दानमल जी सौगानी, मदनलाल जी पाटनी, हुकमचन्द जी सरावगी, मानिकचन्द जी गंगवाल, पूनमचन्द जी सेठी, कपूरचन्द जी पाटनी आदि के नाम विशेषत: उल्लेखनीय है। नगर में खण्डेलवाल जैन समाज के अतिरिक्त अग्रवाल जैन, परवार एवं पद्मावती पुरवार के भी 2-2 घर हैं । विजय नगर : विजय नगर का निर्माण पलासबाड़ी के विनाश से प्रारंभ होता है। जब सन् 1955-56 में ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव की चपेट में पूरा पलासबाडी नगर आ गया तो वहां के आधे निवासी गौहाटी आकर बस गये और आधे विजयनगर चले गये । उन्होंने विजयनगर नामक नया शहर बसाया। पहले यहां का जैन मन्दिर वैष्णव मन्दिर के साथ मिला हुआ था लेकिन इससे कुछ लोगों को सन्तोष नहीं हुआ। उन्होंने नये मन्दिर के लिये अपना प्रयत्न Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /65 जारी रखा । धीरे-धीरे नया मन्दिर बनने लगा और सन् 1975 में वहां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया। इसके दो वर्ष पश्चात् सन् 1977 में ही विजय नगर में दूसरी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। नवनिर्मित मन्दिर का नाम श्री दि. जैन पार्श्वनाथ मन्दिर रखा गया। वैसे वर्तमान मन्दिर की रचना संवत् 2014 में हुई थी। मन्दिर में 241 मूर्तियां विराजमान हैं । इनमें मुख्य वेदी में 11 मूर्तियां विराजमान हैं । 226 मूर्तियां समवसरण में हैं तथा 4 मूर्तियां गुम्बज में हैं। मन्दिर के पीछे ही एक धर्मशाला है जिसमें त्यागी, वती, विद्वान एवं यात्रियों के लिये ठहरने की समुचित व्यवस्था है । लेखक को सन् 1988 में वहां जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था । होमियो नगर में होम्योपैथी दवाखाना भी समाज की ओर से चलता है । विजय नगर में भी आर्यिका इन्दुमती जी एवं सुपार्श्वमती जी माताजी का भी दो बार विहार हो चुका है और इन्हीं की प्रेरणा से यहां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हो सके थे। विजय नगर से कुछ ही कि.मी. पश्चिम की ओर सूर्य पहाड़ है जिसमें दिगम्बर जैन संस्कृति के भग्नावशेष हैं । एक शिला पर दो मूर्तियां अंकित हैं तथा दूसरी पर जैन मुनि पर उपसर्ग का दृश्य अंकित है । विजयनगर में 125 जैन परिवार रहते हैं। डिब्रूगढ़ : आसाम का डिब्रूगढ़ नगर प्राचीन एवं प्रसिद्ध नगर है । ब्रह्मपुत्र महानदी के तट पर बसा हुआ यह नगर आसाम प्रदेश में दि. जैन समाज की दृष्टि से भी यह दूसरा नगर है 1 सन् 1891 की जनगणना के समय डिब्रूगढ़ और छावनी में 8976 की जनसंख्या थी जिसमें जैनों की संख्या 47 थी । वर्तमान में यहां खण्डेलवाल जैन समाज के 110 धर तथा 4 परिवार अग्रवाल जैन समाज के हैं। खण्डेलवाल जैनों के गोत्रों में पाटनी, सेठी, पहाड़िया, कासलीवाल, पाण्ड्या, गोधा, पाटोदी, गंगवाल, काला, बड़जात्या, चूड़ीवाल, बाकलीवाल, सौगानी, चांदवाड़ अजमेरा, छाबड़ा, रारा, लुहाड़िया परिवार हैं। यहां दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं जिनमें एक ग्राहम बाजार में दूसरा नगर के मध्य में स्थित है । ग्राहम बाजार स्थित मन्दिर में अभी पक्की वेदी का निर्माण कार्य बाकी है। मुझे स्वयं को 13 सितम्बर, 88 को वहां जाने का अवसर मिला । नगर में तीन दिन तक ठहर कर समाज की गतिविधियां देखी । वहां का जैन समाज व्यापारिक समाज है । अधिकांश परिवारों में अपना स्वयं का व्यवसाय है । यहां के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में सर्व श्री अमरचन्द जी पाटनी, चांदमलजी गंगवाल, हीरालाल पाटोदी, निरंजन पाण्ड्या का नाम विशेषत: उल्लेखनीय है। यहां की प्रमुख भाषा असमिया एवं बंगला है । ज्यादातर इन्हीं में काम होता है । यहां के रहने वाले इन्हीं भाषाओं का प्रयोग करते हैं। अब तो बच्चों की मातृभाषा असमिया बनने वाली है। लोगों में धार्मिक कार्यों में खूब उत्साह दिखाई Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66. जैन समाज का वृहद इतिहास देता है । दर्शन, पूजा पाठ आदि में खूब रुचि लेते हैं। यहां के निवासियों पर भी दोनों ही आर्यिका माताजी का अच्छा प्रभाव है। यहां पर भी उनका विहार हो चुका है। डिब्रूगढ़ में सबसे अधिक सहयोग हमारे समधी श्री चांदगल जी साहब गंगवाल से मिला, इसके लिये मैं उनका आभारी हूं । इसी प्रवास में मुझे अमरचन्द जो पाटनी के निवास पर ठहरना पड़ा । उनके सुपुत्र बा. निर्मलकुमार जी से जो आतिथ्य मिला वह भी स्मरणीय रहेगा। नलबाड़ी: ___मैं गौहाटी से दिनांक 29 सितम्बर, 80 को नलबाड़ी गया । पूर्वाञ्चल प्रदेश का यह क्षेत्र अन्तिम स्टेशन था । वहां मैं दो दिन रहा तथा महावीर प्रसाद जी रारा का आतिथ्य स्वीकार किया। नलबाड़ी एन.टी.रोड पर स्थित आसाम प्रदेश का अच्छा व्यापारिक नगर है। अहिंसा युवा परिषद् द्वारा संकलित सूचना के अनुसार यहां दि. जैन परिवारों की संख्या 19 है जिनमें पुरुष 194, महिला 260, लड़के 29ti, लड़कियां 223, कर्मचारी ने इस प्रकार 441 की संख्या है । यहां संवका, सेठी, छाबड़ा, पाटनी, बड़जात्या, रारा, गंगवाल, पहाडिया, झांझरी, गोधा, काला, बगड़ा, पाण्ड्या, ठोलिया गोत्रों के परिवार हैं। नलबाड़ी का जैन मन्दिर करीब 50-55 वर्ष पुराना है। जिस समय यहां मन्दिर निर्माण की योजना बनी उस समय वहां केवल 8-9 घर ही थे और वे भी सम्पत्र नहीं थे। नौकरी करते थे इसलिये आते-जाते रहते थे। लेकिन कुछ श्रावकों के बिना दर्शन किये भोजन नहीं करने का नियम था इसलिये मन्दिर निर्माण कराना आवश्यक हो गया । मन्दिर निर्माण में सर्व श्री फतेहलाल जी छाबड़ा, चम्पालाल जी छाबड़ा, शिवचन्द राम सरा, मोतीलाल जी रारा, हरिबक्स जी काला के नाम उल्लेखनीय हैं । प्रारंभ में जमीन खरीदी गई । शास्त्रों को रखकर तथा भगवान की फोटो के ही दर्शन किये जाने लगे। जब समाज की संख्या बढ़ने लगी और धार्मिक प्रवृत्ति जागृत हुई तो नव मन्दिर निर्माण की योजना बनी और उसी योजना के फलस्वरूप यहां विशाल मन्दिर का निर्माण हो सका है। वर्तमान मे मन्दिर विशाल एवं उत्तुंग शिखर वाला है। जिनालय तीन तल्ले वाला है। तीनों ही तल्लों में वेदियां हैं। शिखर की जमीन से 108 फीट ऊंचाई है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है । पूरा मन्दिर मकराना का बनाया गया है । मन्दिर के अतिरिक्त यहां एक जैन प्राइमरी स्कूल चलता है । धार्मिक अध्ययन की व्यवस्था है । एक जैन भवन निर्माण की भी योजना है। यहां के उल्लेखनीय श्रावकों में श्री चांदमल जी छाबड़ा के सुपुत्र श्री प्रो. चिरंजीलाल जी छाबड़ा, गवर्नमेन्ट कॉलेज टिहूं में प्रोफेसर के पद पर हैं। श्री रूपचन्द जी छाबडा वाराणसी के शास्त्री हैं । पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के शिष्य रहे हुये है। श्री धर्मचन्द जी काला, हिन्दी के प्रोफेसर हैं, समाज सेवी हैं । जनता पार्टी के सेक्रेट्री हैं । नथमल जी रारा यहां के प्रतिष्ठित वकील हैं। मन्दिर में प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन करते हैं। श्री महावीर प्रसाद जी रारा आतिथ्य प्रेमी हैं, सर्राफ हैं । आपकी पत्नी श्रीमती मनभर देवी ने खूखार डाकुओं को भगा दिया था। यहां रारा गोत्र वाले परिवारों की अधिक संख्या है। रारा गोत्र वाले सेस गांव से निकले हुये बताये जाते हैं। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /67 तिनसुकियाः _ तिनसुकिया आसाम प्रदेश का व्यापारिक नगर है। छोटी लाईन का जंक्शन है । डीमापुर से चलकर मैं दि. 08:00187 को तिनसुकिया प्रात: 5 बजे ट्रेन द्वारा पहुंचा। वहां जाकर श्री हुलाशचन्द जी सेठी का आतिथ्य स्वीकार किया। तिनसुकिया प्रवास में सेठी जी का एवं उनके परिवार का जो स्नेह मिला उसके लिये मैं उनका पूर्ण आभारी हूं। स्टेशन के पास ही में साइडिंग बाजार है। यहां का यह प्रमुख बाजार है । रेल लाईन के दोनों ओर बाजार एवं बीच में रेल लाईन बिछी हुई है। स्टेशन के पास ही में दिगम्बर जैन मन्दिर है तथा उसी के सामने साइडिंग बाजार है जिसमें गल्ला, किराना, घी, तेल, आलू, प्याज, आटा, मैदा, पापड आदि की बड़ी-बड़ी गादियां हैं । गादियों को वहां गोला कहते हैं ये बहुत लम्बी होती हैं और एक ही गोले में हजारों मन जिन्स रखी जा सकती है। इसी बाजार में एक गोला श्री निर्मल कुमार हुलाशचन्द सेठी का है। सेठी ब्रदर्स के पिताजी श्री हरकचन्द जी सेठी जब जीवित थे तो राइस किंग कहलाते थे। सारा बाजार उनकी मुट्ठी में रहता था। तिनसुकिया में जैन समाज के अधिक घर नहीं हैं सब मिलाकर कोई 40 घर होंगे। लेकिन सभी व्यवसायी हैं तथा सम्पन्न है। पूरे समाज में सामंजस्य है । मन्दिर में चहल-पहल रहती है। शाम को प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन होता है। यहां के प्रतिष्ठित परिवारों में सर्व श्री हुलाशचन्द जी सेठी, जयचन्द लाल जी पाटनी, मदनलाल जी पाटनी, लालचन्द जी सेठी, राजेन्द्र प्रसाद जी रारा, सोहनलाल जी पाटनी, सांगा पाटनी, सुमेरमल जी पहाड़िया आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री लक्षमीनारायण जी बज का कुछ ही समय पूर्व स्वर्गवास हो गया। वे भी प्रतिष्ठित समाजसेवी थे। यहां अग्रवाल वैश्य समाज का बाहुल्य है। उनमें से कुछ प्रमुख महानुभावों से मिलने का अवसर मिला । इनमें श्री प्यारेलालजीरासीवासिया, रामगोपाल जी लोहिया, दुर्गादत्त जी लोहिया, साबरमलजी सुरेखा, दीनदयाल जी खेमका, छिगनलाल जी शर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सबका जैन परिवारों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध तिनसुकिया प्रवास में श्री हुलाशचन्द जी सेठी एवं श्री दुलीचन्द जी पाण्ड्या का जो सहयोग मिला वह अत्यधिक प्रशंसनीय है। खारूपेटिया : यह भी आसाम प्रदेश का ही एक छोटा नगर है । व्यापारिक केन्द्र है। यहां दिगम्बर जैन समाज के करीब 35 परिवार हैं तथा कुल जनसंख्या 350 होगी। नगर में एक शिखर बन्द मन्दिर एवं दो चैत्यालय हैं । चैत्यालयों Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68/ जैन समाज का वृहद इतिहास में पद्मावतीदेवी की मुख्य प्रतिमायें हैं । सन् 1970 में यहां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हो चुकी हैं । युवाओं का अच्छा संगठन है । श्री त्रिलोकचन्द बाकलीवाल अध्यक्ष एवं श्री डूंगरमल बाकलीवाल मंत्री हैं। सिल्चर: सिल्चर आसाम प्रदेश का जिला मुख्यालय है। सन् 1891 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 7523 थी जिनमें जैनों की संख्या केवल 5 थी। वर्तमान में यहां पर 10 घर हैं, सब मिलाकर जनसंख्या 100 के करीब होगी । छोटा समाज होने के नाते यहां समाज का कोई संगठन नहीं है। एक दिगम्बर जैन चैत्यालय यूनियन फ्लोर मिल मेहरपुर सिल्वर में स्थित है। इस मन्दिर की स्थापना भादवा सुदी 2 संवत् 2028 दिनांक 22/08/71 को हुई थी । मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ, महावीर एवं शान्तिनाथ की प्रतिमायें एवं पाँच यंत्र हैं। एक चैत्यालय रंजपुर सिल्चर में है जिप्समें चक्रेश्वरी माता एवं पद्मावती माता की प्रतिमायें हैं जिनकी प्रतिष्ठा संवत् 2506 वि. सं. 2026 में हुई थी। यहां के प्रतिष्ठित एवं उल्लेखनीय महानुभावों में श्री प्रसन्न कुमार जी बाकलीवाल, राजकुमार जी जैन, पारसमल पाटनी, सूरजमल जी जैन, सुरेन्द्रकुमार जी सेठी, प्रकाशचन्द जी एवं महावीर प्रसाद जी सेठी के नाम उल्लेखनीय हैं। गोलाघाट: गोलाघाट में एक गृह चैत्यालय है जो पुसराज जी के घर में स्थित है। मूलनायक प्रतिमा भगवान शान्तिनाथ की है। भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पद्मावती शीर्षस्थ है। सन् 1960 से ही इस चैत्यालय में बराबर पूजन होती रहती है। यहां जैन परिवारों की अधिक बस्ती नहीं है। मरियानी: मरियानी में एक गृह चैत्यालय है जिसे सन् 1970 में श्री बंशीलाल जी झांझरी की माताजी की प्रेरणा से स्थापित किया था । वे ही प्रतिदिन पूजा करते हैं। यहां दि. जैन समाज के केवल 7 परिवार है । जनसंख्या भी बहुत कम है। यहां आर्यिका इन्दुमती जी एवं सुपार्श्वमती जी के अतिरिक्त क्षु शीतल सागर जी एवं क्षु. पारस कीर्ति जी का भी विहार हो चुका है। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /69 डेर गांव : डेर गांव में जैन समाज के केवल 5 परिवार हैं। इसमें श्री दुलीचन्द जी बाकलीवाल, चांदमल जी पाटनी, केशरीमल जी पाटनी एवं श्री सोहनलाल जी छाबड़ा का घर है। यहां एक मात्र दि. जैन पार्श्वनाथ चैत्यालय है जिसकी स्थापना फाल्गुन सुदी 5 शनिवार संवत् 2032 दि. 06/02/76 को हुई थी। जब आर्यिका इन्दुमती जी माताजी का यहां संघ आया तब उनका जोरदार स्वागत किया गया तथा संघपति श्री मेघराज जी पाटनी डीमापुर एवं श्री नेमीचन्द सेठी के तत्वावधान में चैत्यालय की स्थापना की गई। मन्दिर में वीर निर्वाण सं. 24000 प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान है । बोकाखात : यहां पर 6 जैन परिवार रहते हैं जिनमें तीन बड़जात्या एवं तीन परिवार झांझरी गोत्र के हैं। श्री गंभीरमल जी, नथमल जी, सुगनचन्द जी, लिखमीचन्द जी, महेन्द्रकुमार जी, विनोदकुमार जी, सुमेरमल जी एवं लादूलाल जी के परिवार है, जनसंख्या 50 है। एक दिन चाल है जिसमें भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान है । मन्दिर की स्थापना वीर निर्वाण संवत् 2501 में हुई थी । शिलांग : वर्तमान में शिलांग मेघालय की राजधानी है। पहले यह आसाम का भाग था । सन् 1891 में जब जनगणना हुई उस समय वहां एक भी जैन परिवार नहीं रहता था। वर्तमान में यहां 30 दि. जैन परिवार रहते हैं जिनकी जनसंख्या करीब 200 होगी। यहां एक दि. जैन चैत्यालय पिछले 20 वर्षों से आसाम ऑटो एजेन्सीज के पार्टनर श्री हंसराज जी पाण्ड्या के घर में स्थित है । चैत्यालय में भगवान आदिनाथ, चन्द्रप्रभु, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी एवं पद्मावती सर्वधातु की प्रतिमायें है । ताम्र-पत्र पर 5 यंत्र हैं । भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में कन्टोनमेन्ट एरिया में उनकी स्मृति में भगवान महावीर पार्क बनाया गया जिसकी देख-रेख एवं प्रबन्ध कन्टोनमेन्ट वालों द्वारा किया जाता है। जोरहाट : जोरहाट आसाम प्रदेश के अन्तर्गत आता है। व्यवसाय की दृष्टि से जोरहाट का नाम उल्लेखनीय है । यहां दि. जैन समाज के 15-20 घर हैं। एक मन्दिर है। यहां के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में सर्व श्री कन्हैयालाल जी बाकलीवाल, सागरमल जी जैन, मिश्रीलाल जी, पुसराज के नाम उल्लेखनीय हैं। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70/ जैन समाज का वृहद् इतिहास शिवसागर: शिवसागर आसाम प्रान्त का जिला मुख्यालय है । सन् 1891 की जनगणना में पूरे जिले में 37 जैन थे। शिवसागर अंग्रेजी शासन के पहिले अहरा वंश के राजा का शासन था। वर्तमान नेपाल में केवल चार परिवार ही रहते हैं। बाकी के जैन आसाम के दूसरे नगरों में जाकर बस गये ऐसा लगता है। डीमापुरः डीमापुर नागालैण्ड प्रदेश की राजधानी है । जैन समाज की दृष्टि से समूचे पूर्वाञ्चल में डीमापुर का प्रमुख स्थान है। यहां का दिगम्बर जैन समाज 245 परिवारों का समाज है। यहां पर अधिकांश परिवार खण्डेलवाल समाज के ही हैं जो सभी राजस्थानवासी हैं । जो विगत 10 वर्षों से धीरे-धीरे आकर बस गये हैं । डेह, बेरी, छपरा, किराड, नागौर, लाडनूं, सुजानगढ़, सीकर, राणौली, दांता जैसे ग्रामों से आकर यहां व्यवसाय करने लगे हैं। अब तो एक दो परिवार जयपुर (राजस्थान) के भी रहने लगे हैं । डीमापुर में सबसे अधिक सेठी गोत्र वाले परिवार हैं। इसके अतिरिक्त छाबड़ा, गंगवाल, कासलीवाल, बाकलीवाल, विनायक्या, अजमेरा, टौंग्या, पाटनी, पाण्ड्या आदि गोत्रों के परिवार भी अच्छी संख्या में है। यहां एक मन्दिर एवं दो गृह चैत्यालय हैं । सन् 1947 में डीमापुर में जैन मन्दिर की नींव लगी थी । सन् 1960 में पंडित पन्नालाल जी धर्मालंकार वैशाली के हाथों यहां वेदी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । मन्दिर विशाल एवं दो तले का है जिसमें निर्माण कार्य बराबर चलता ही रहता है । जब लेखक वहां गया था तो पंचकल्याणक की तैयारियां चल रही थी वह पंचकल्याणक धूमधाम के साथ सम्पन्न भी हो चका है। . सारा समाज धार्मिक संस्कारों से सम्पन्न है । प्रति देवदर्शन, पूजाभिषेक आदि क्रियाओं के अभ्यस्त हैं। उस समय श्री शुभकरण जी सेठी दि. जैन समाज के अध्यक्ष थे । अन्य प्रमुख सज्जनों में सर्वश्री मांगीलाल जी शान्तिलाल जी छाबड़ा, रतनलाल जी विनायक्या, डूंगरमल जी गंगवाल, चैनरूप जी बाकलीवाल, कपूरचन्द जी सेठी, राजकुमार जी सेठी, सोहनलाल जी बाकलीवाल, पन्नालाल जी सेठी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। चैनरूप जी बाकलीवाल दि. जैन महासभा के कार्याध्यक्ष हैं तथा श्री मांगीलाल जी छाबड़ा धुव फण्ड ट्रस्ट अर्थ संग्रह कमेटी के अध्यक्ष हैं। यहां पर किशनलाल जी सेठी बहुत ही लोकप्रिय समाजसेवी थे जिनका 3-4 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। इसी तरह श्री नेमीचन्द जी सेठी अत्यधिक धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे जिनकी भी अभी मृत्यु हो जाने से समाज की गहरी क्षति हुई है। श्री राजकुमार जी सेठी के पिताजी श्री फूलचन्द जी सेठी भी यहां के समाज के शिरोमणि थे जिनका भी 10-11 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है । डेह निवासी श्री सागरमल जी सबलावत सक्रिय युवक हैं और बेरोजगार युवकों को व्यापार आदि में लगाते रहते हैं । महासभा एवं स्थानीय संस्थाओं में वे सक्रिय योगदान देते रहते हैं । श्री डूंगरमल जी गंगवाल (जैन टायर्स) आतिथ्य में अत्यधिक कुशल हैं । लेखक को उनके निवास पर 10-12 दिन रहने का अवसर मिला। उनके पूरे परिवार का जो स्नेह मिला उसके लिये वह सदैव स्मरण रहेगा । आपका पूरा परिवार ही धार्मिक संस्कारों से सुशोभित रहता है। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /71 डीमापुर में मन्दिर एवं चैत्यालय के अतिरिक्त महावीर भवन, दि. जैन हाईस्कूल, हॉस्पिटल आदि हैं जिनमें समाज के सभी व्यक्ति अपनी सेवायें देते हैं। हॉस्पिटल मे सभी दवाईयां नि:शुल्क मिलती हैं । हायर सैकण्डरी स्कूल में धर्म पढ़ना अनिवार्य है । पं. उत्तमचन्द जी शास्त्री धर्माध्यापक हैं जो विगत 20 वर्षों से यहां कार्यरत हैं। आप प्रतिदिन शास्त्र स्वाध्याय भी करते हैं । भगवान महावीर की 2500 वां निर्वाण महोत्सव पर दि. जैन औषधालय भवन एवं कीर्तिस्तंभ का निर्माण सम्पन्न हुआ था । जैन भवन का निर्माण स्व. फूलचन्द जी विनायक्या की स्मृति में उनके दोनों पुत्रों श्री रतनलाल जी एवं दुलीचन्द जी ने करवाया। ___ डीमापुर नगर की जनसंख्या करीब 1 लाख है । यहां आसामी एवं बंगला भाषा मिली-जुली भाषा बोली जाती है । जिसे नगामी भाषा कहते हैं। यहां का व्यापारी वर्ग नगामी भाषा अच्छी बोल लेता है तथा समझ लेता है। शहर में नागा जाति के अतिरिक्त आसामी, बंगाली भी हैं। डीमापुर रेल, सड़क एवं हवाई जहाज तीनों से जुड़ा हुआ है। इम्फाल का जैन समाज: देश के पूर्वाञ्चल प्रदेश/ भाग में मणिपुर एक छोटा सा प्रदेश है । जिसकी वर्तमान राजधानी इम्फाल मणिपुर के नाम से प्रसिद्ध है। इसे मणिपुर के नाम से भी कहा जाता है। मणिपुर यद्यपि एक छोटा प्रदेश है लेकिन उसकी अपनी भाषा है तथा अपनी संस्कृति है। मणिपुरी भाषा स्वतन्त्र भाषा है जिसके बोलने वालों की संख्या लाख से कम नहीं होगी। यहां का मारवाडी समाज व्यापारिक समाज है। 70 प्रतिशत मारवाड़ी समाज दिगम्बर जैन खण्डेलवाल समाज है जो राजस्थान से यहां 125-130 वर्ष पूर्व रोजी-रोटी कमाने के लिये आया था। सन् 1938 तक उनकी संख्या बढ़ती गई और यहां 30-40 दिगम्बर जैन समाज के परिवार हो गये । लेकिन इसके बाद द्वितीय महायुद्ध प्रारम्भ हुआ और जापान के साथ युद्ध होने के कारण शहर पर कितनी ही बार बम वर्षा हुई, मकान नष्ट हो गये और यहां के अधिकांश परिवार मणिपुर को छोड़कर अन्यत्र चले गये। मारवाड़ी बन्धु भी अपने-अपने देश चले गये। लेकिन युद्ध बन्द होने के पश्चात् जब पुनः शान्ति हो गई तो व्यापारी लौटने लगे और एक-एक करके यहां फिर आबाद हो गये । वर्तमान में दि. जैन मारवाड़ी (खण्डेलवाल) समाज के घरों की संख्या 225 है । इसके अतिरिक्त अग्रवाल जैन, पद्मावती पुरवाल एवं गोलापुर के भी एक-एक घर हैं। यहां एक मन्दिर, एक चैत्यालय है । एक दि. जैन महावीर हाईस्कूल है। धर्मशाला इम्फाल व्यापारिक नगर है। यहां पर दि. जैन समाज अधिकांश व्यापारी समाज है लेकिन अधिकांश व्यवसायियों ने सर्वप्रथम अपना जीवन यहां के कुछ फर्मों में नौकरी करने के साथ प्रारम्भ किया और फिर वे स्वतन्त्र व्यवसाय करने लगे। आज वे नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी कहलाते हैं । यहां पर बाकलीवाल परिवार हैं जिनका पेट्रोल का व्यवसाय 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है। स्व. भंवरीलाल जी बाकलीवाल महासभा के अध्यक्ष थे। धार्मिक जीवन एवं मुनिभक्ति में उनका अनुकरणीय जीवन रहा । समाज के प्रत्येक कार्य में Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72/ जैन समाज का वृहद् इतिहास उनका योगदान रहता था। यहां पर अधिकांश परिवार कुचामन, लाडनूं, सुजानगढ़, बेरी, छापड़ा, बनगोठड़ी, सीकर, मुकन्दगढ़, राणोली से आये हुये हैं । 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 2. 3. वर्तमान में भगवानलाल जी का राजकीय हॉस्पिटल बना रहे हैं। क्र.स. नगर का नाम 1. गौहाटी 4. जगमल अजीत कुमार जी सेटी द्वारा उमराव बाई चेरिटेबल ट्रस्ट के 20 लाख का मातृ-शिशु सदन का निर्माण करवा रहे हैं। हाईस्कूल की बिल्डिंग बन रही है। यहां की कंवरीलाल जी छाबड़ा की माताजी सबसे वयोवृद्ध महिला हैं । श्री मेघराज जी पाटनी सबसे वयोवृद्ध हैं जो डीमापुर भी रहते हैं । यहां का वीर विकास मंडल अच्छा कार्य कर रहा है। यहां के श्री धर्मचन्द जी पाटनी पद्मश्री की मानद राष्ट्रीय उपाधि से सम्मानित हैं । यहां के जैन विद्यालय में पं. धर्मचन्द जी पाटनी धर्माध्यापक हैं जो विगत 22 वर्षों से यहां कार्यरत हैं। श्री महाचन्द जी सेठी अच्छे लेखक हैं जो सीकर के जैन मन्दिरों का इतिहास लिख रहे हैं। खण्डेलवाल जैन समाज में पाटनी, सेठी, छाबड़ा, कासलीवाल, बड़जात्या, पहाड़िया, बाकलीवाल, झांझरी, गंगवाल, ठोलिया आदि गोत्रों के परिवार हैं । की स्मृति में उनके पुत्र विजय कुमार जी पाटनी 20 लाख की लागत डीमापुर इम्फाल तिनसुकिया पूर्वाञ्चल प्रदेश में जैन समाज एक झलक जैन परिवारों की संख्या 650 घर (अग्रवाल, परवार, पद्मावती पुरवार) जनसंख्या 5000 250 घर जनसंख्या 2300 2300 घर (खण्डेलवाल - 225, गोलापुरव-2, पद्मावती पुरवार- 3 अग्रवाल -1) 65 परिवार जनसंख्या -400 - - मन्दिरों/चैत्यालयों की संख्या मन्दिर - 1. चैत्यालय - 7 मन्दिर - 1 चैत्यालय-2 मन्दिर - 1, चैत्यालय - 2 मन्दिर - - 1 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/73 5. डिब्रूगढ़ मन्दिर-2 जोरहाट धूबड़ी 110 परिवार (खण्डेलवाल104 अग्रवाल-6) 20 परिवार अ परिवार 4 परिवार 12 परिवार 2घर 109 घर जनसंख्या -889 125 घर 30 घर 10. . N 13. 14 च 5घर शिवसागर सिल्चर करीमगंज नलबाडी विजयनगर बरपेटा गोलाघाट गोरीपुर टिहू शिलांग ठकुआ खाना तेजपुर डेरगांव तागलपुर 15. 16. 17. मन्दिर-1 मन्दिर-1 चैत्यालय-1 मन्दिर-1 चैत्यालय बन रहा है। मन्दिर-1 मन्दिर-1 एवं चैत्यालय-1 मन्दिर-1 चैत्यालय-2 चैत्यालय-1 चैत्यालय-1 एवं जैन पाठशाला है। चैत्यालय-1 मन्दिर-1 मन्दिर-1 चैत्यालय-1 चैत्यालय-1 निर्माणाधीन मन्दिर-1 निर्माणाधीन मन्दिर-1 चैत्यालय-1 मन्दिर-1 मन्दिर-1 (प्रतिमा नहीं है) मन्दिर-1 निर्माणाधीन चैत्यालय-1 चैत्यालय-1 चैत्यालय-1 चैत्यालय-1 मन्दिर-1 रंगिया 22. 23. 24. 25, 26. 8घर 14घर घर जनसंख्या -200 15 घर 15घर 5 घर 6घर 25घर 10 घर 5घर 13 घर 5घर 15 घर जनसंख्या -40 7घर 3घर घर 10 घर 15 घर 2घर 10 घर 35 घर 4घर गौरेश्वर विश्वनाथ चारली डीफू कोहिमा मोरे 30. 28. मरियानी 29. जागीरोड नोगांव 31. पाण्डु दिसपुर ग्वालपाडा बोकाखात 35. खारूपेटिया 3. नाहर करिया 32. 33, चैत्यालय-1 मन्दिर -1 मन्दिर-1 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74/ जैन समाज का बृहद् इतिहास मन्दिर -1 37. बगाई गांव 15 घर चैत्यालय - 1 38. डिगबोई घर मन्दिर - 1 निर्माणाधीन 39. चबुआ 1 घर 40. मारघरेटा 6घर चैत्यालय-1 41. लखीमपुर 10 घर पूर्वाञ्चल की कुछ अन्य प्रमुख घटनायें: 1. सर्य पहाड की गफा में उपलब्ध चैन परातत्व को सामग्री । अब तक आयोजित पंचकल्याणक; विजय नगर सन् 1976 एवं 1977 गौहाटी 1964 नलबाड़ी 1986 डीमापुर 1990 खारूपेटिया- 1970 वेदी प्रतिष्ठा एवं इन्द्र ध्वज विधान इम्फाल, डीमापुर , तिनसुकिया, जोरहाट, डीफू, गौहाटी, धूबडी । आसाम का सबसे पुराना मन्दिर ठकुआखाना पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित - श्री धर्मचन्द जी पाटनी । ब्रह्मपुत्र नदी की चपेट में आने वाले मन्दिर - पलासबाडी एवं डिब्रूगढ़ नागालैण्ड के राज्यपाल द्वारा सम्मानित - स्व. श्री फूलचन्द जी सेठी आर्यिका इन्दुमती एवं सुपार्श्वमती जी माताजी के चातुर्मास 1. गौहाटी सन् 1975 आर्यिका इन्दुमती जी 2. डीमापुर 1976 आर्यिका इन्दुमती जी 3, विजय नगर 1977 आर्यिका इन्दुमती जी 4. गौहाटी 1987 आर्यिका सुपार्श्वमती जी 5. तिनसुकिया 1988 आर्थिका सुपार्श्वमती जी 6.डीमापुर 1989 आर्यिका सुपार्श्वमती जी 7. गौहाटी आर्यिका सपार्श्वमती जी 1990 IIDEI. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवंगत समाजसेवी पूर्वाचल प्रदेश के जैन बन्धु अपनी धार्मिक आस्था, समाज सेवा एवं दानशीलता के कारण सारे देश में समादृत हैं। अधिक संख्या में नहीं होते हुये भी उन्होंने समाज की प्रत्येक गतिविधि में अपना योगदान दिया है और वर्तमान में भी दिया जा रहा है। अपनी व्यापारिक दक्षता के कारण वे समाज के विकास मे अपनी चंचला लक्षमी का उपयोग करते हैं। वे मुनियों के कट्टर भक्त हैं इसलिये उनके विहार एवं चातुर्मास कराने में पूर्ण रुचि लेते हैं। आहार देते हैं तथा तीर्थो के जीर्णोद्धार में, विकास में अपना सबसे प्रथम नाम लिखाते हैं। इसलिये पूर्वाञ्चल प्रदेश का जैन समाज सारे देश के समाज के लिये उपयोगी समाज है। घर से डोर, लोटा एवं सत्तु बांधकर जाने वाले इन लोगों ने अपनी लगन, कठिन परिश्रम एवं व्यापारिक सूझ-बूझ से आर्थिक दृष्टि से सम्पन्नता प्राप्त की है जिस पर पूरे समाज को गर्व है । पूर्वाञ्चल प्रदेश की जैन समाज ने दि. जैन महासभा को दो अध्यक्ष दिये और उसके वर्तमान अध्यक्ष श्री निर्मलकुमार सेठी जी भी पूर्वाचल की ही देन हैं। इसलिये वर्तमान समाज सेवियों की व्यक्तिशः सामाजिक सेवाओं के साथ उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करने के पूर्व हम उन सभी दिवंगत समाजसेवियों के प्रति अपनी सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने तनमनधन से समाज के विकास में योगदान दिया । स्व. इन्द्ररचन्द जी पाटनी से तो जब मैं डीमापुर गया था तब भेंट हुई थी और उन्होंने समाज के इतिहास लेखन की योजना को बहुत पसन्द किया था तथा जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान के परम संरक्षक सदस्य बनने की भी कृपा की थी। इसलिये स्व. पाटनी जी के प्रति हमारी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हुये सर्वप्रथम दिवंगत समाजसेवियों का परिचय उपस्थित कर रहे हैं। 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. स्व. श्री इन्द्रचन्द पाटनी स्व. श्री किशनलाल सेठी स्व. श्री चांदमल पाण्ड्या सरावगी स्व. श्री जेठमल सेठी स्व. श्री डूंगरमल सरावगी पाण्ड्या स्व. श्री नेमीचन्द सरावगी पाण्ड्या स्व. श्री फूलचन्द सेठी स्व. श्री भंवरीलाल बाकलीवाल ५. 10. 11, 12. 13. सम्पादक स्व. श्री लक्ष्मीनारायण बज स्व. श्री हीरालाल सेठी स्व. श्री कन्हैयालाल सेठी स्व. श्री हरकचन्द सेठी स्व. श्री संजय सेठी Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 76 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री इन्द्रचन्द पाटनी पाटनी जी स्व. श्री गिरधारीलाल जी पाटनी के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम केशरीबाई था जिनका करीब 22 वर्ष पूर्व 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया था । इन्द्रचन्द जी का जन्म संवत् 1981 के फाल्गुन मास में हुआ तथा सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् पुस्तक व्यवसाय में लग गये। संवत् 2000 में आपका विवाह फूलकुमारी के साथ सम्पन्न हुआ और भादवा सुदी 14 के पावन दिन संवत् 2042 में श्रीमती जी का स्वर्गवास हो गया । पाटनी के पिताजी श्री गिरधारीलाल जी की बहिन आर्यिका इन्दुमती माताजी थीं । दोनों एक ही स्वभाव के थे। अपने ग्राम डेह के वे लोकप्रिय व्यक्ति थे इसलिये वर्षों तक बिना चुनाव के वे डेह माम के सरपंच चुने जाते रहे। डेह के दि. जैन मन्दिर के लिये आपके पिताजी ने ही जमीन दी थी तथा फिर मन्दिर निर्माण में पूरा सहयोग दिया था और शिखर में प्रतिमा विसजमान करने का यशस्वी कार्य किया । पाटनी जी उदार मनोवृत्ति के व्यक्ति थे। डीमापुर के जैन मन्दिर एवं हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप में प्रतिमा विराजमान की थी इसी तरह सम्मेद शिखर के तेरहपंथी मन्दिर के नन्दीश्वर द्वीप चैत्यालय में एक-एक प्रतिमा विराजमान करवाई । इसी तरह रायगंज (बंगाल) एवं बारसोई (बिहार) के मन्दिरों में भी अपनी ओर से प्रतिमायें विराजमान कर चुके हैं। आपने डीमापुर के जैन भवन में एक कमरे का निर्माण करवाया। विशेष : पाटनी जी का दानी स्वभाव था। जहां भी जाते कुछ न कुछ सेवा कर ही आते थे। महावीर विकलांग समिति जयपुर के स्थायी सदस्य, पारमार्थिक सेवा संघ नागौर के ध्रुव फण्ड के सदस्य थे। आपके उदार स्वभाव के कारण बारसोई वेदी प्रतिष्ठा एवं इन्द्रध्वज विधान के अवसर पर आपका सार्वजनिक सम्मान किया गया। आप महासभा की ट्रस्ट फण्ड कमेटी के ट्रस्टी थे । प्रस्तुत इतिहास के लेखक को उन्होंने अपना परिचय सहर्ष लिखवाया था। लेकिन हमें दुःख है कि वे प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन को नहीं देख सके। हम उनकी स्वर्गीय आत्मा के प्रति हार्दिक श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। श्री पाटनी जी को चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इनमें सरोजकुमार ज्येष्ठ पुत्र हैं । 40 वर्षीय युवा हैं । बी.कॉम. हैं तथा विदेश यात्रा में भी आपने अपने नियम नहीं छोड़े हैं। आपकी पत्नी सरोजदेवी भी बी.कॉम. है तथा तीन पुत्रों की मां है। दूसरे पुत्र सुनीलकुमार ने बी.ए. तक अध्ययन किया है। आपको पत्नी शोभादेवी ने सन् 1942 में गौहाटी विश्वविद्यालय से बी. ए. प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान में पास किया। वर्तमान में आप एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। तीसरे पुत्र मनोजकुमार भी बी कॉम हैं। आपका विवाह श्रीमती चन्दादेवी के साथ सम्पन्न हुआ। चतुर्थ पुत्र श्री प्रमोदकुमार बी.कॉम. I श्री पाटनी अपने पिता के एक मात्र पुत्र नहीं थे किन्तु आपके पांच भाई और हैं जिनमें कंवरीलाल जी पाटनी एवं मदनलाल जी पाटनी का स्वर्गवास हो चुका है तथा मिश्रीलाल जी पाटनी (58 वर्ष) पन्नालाल जी (47 वर्ष) एवं पारसमल जी पाटनी (43 वर्ष) अपने-अपने व्यवसाय में आगे बढ़े हुये हैं। स्व. कंवरीलाल जी पाटनी की धर्मपत्नी टीकी बाई प्रतिमा पारी महिला हैं । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78/ जैन समाज का वृहद इतिहास सुप्रसिद्ध समाजसेवी, उद्योगपति एवं डीमापुर जैन समाज के अग्रणी मान्य नेता श्रीमान् किशनलाल सेठी का बुधवार दिनांक 5 फरवरी 1986 को प्रातः 1 बजकर 55 मिनट पर उनके डीमापुर निवास स्थान पर निधन हो गया। वे 61 वर्ष के थे। वे कर्मठ कार्यकर्ता, मिलनसार एवं सभी के दुःख-सुख में सच्चे साथी थे। वे स्वभाव से ही धर्मपरायण एवं दानप्रिय व्यक्ति थे । अपने डीमापुर निवास स्थान में श्री जिन चैत्यालय की स्थापना आपकी धार्मिक श्रद्धा का परिचायक है। धर्मानुरागी श्री किशनलाल जी सेठी भगवान महावीर 25000 वाँ निर्वाण महोत्सव समिति नागालैण्ड शाखा के मंत्री पूज्य आर्यिका इन्दुमती माताजी संघ के स्थानीय 1976 को संचालन समिति के अध्यक्ष एवं वीर विकास मंडल समिति डीमापुर के संरक्षक रहे हैं। अखिल भारतवर्षीय श्री दिगम्बर जैन महासभा के आप सन् 1968 से कार्यकारिणी सदस्य थे । आपका स्थानीय जैन संस्थाओं एवं अन्य कई संस्थाओं से पूरा संबंध था। आप कोहिमा के श्री दि. जैन मंदिर के मंत्री, डीमापुर के श्री दि. जैन हाई स्कूल के मंत्री तथा भ. महावीर चेरीटेबल दातत्र्य औषधालय के संस्थापक एवं ट्रस्टी थे । आप डीमापुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के संस्थापक एवं मरण पर्यन्त महामंत्री रहे । आप डीमापुर कॉलेज एवं डीमापुर क्लब के संस्थापक रहे। आप डीमापुर टाऊन कमेटी में दो कार्यकाल के लिये निर्वाचित सदस्य रहे । स्थानीय श्री दुर्गा मंदिर के आप ट्रस्टी एवं हिन्दु श्मशान घाट के संस्थापक एवं मंत्री रहे थे। आपके निधन पर पचासों संस्थाओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की थी। डीमापुर प्रवास में लेखक को भी उनके निवास पर जाने का अवसर मिला था । योगदान : स्थानीय श्री दिगम्बर जैन हाई स्कूल में पुस्तकालय कक्ष, कुंआ एवं एक कमरे का निर्माण, श्री दिगम्बर जैन भवन में एक कमरे का निर्माण तथा श्री गिरनार जी निर्वाण क्षेत्र पर पूज्य श्री निर्मल सागर जी महाराज की प्रेरणा से अहिंसा केन्द्र मैं एक कक्ष का निर्माण आपकी दानप्रियता के ज्वलन्त उदाहरण हैं। इसके अलावा हाल ही में स्थानीय श्री दिगम्बर जैन हाईस्कूल की द्वितीय मंजिल का निर्माण कार्य भी आपके सौजन्य से हो रहा है। विभिन्न धार्मिक क्षेत्रों एवं संस्थाओं को भी समय-समय पर आपने सहायता प्रदान की है। आपने सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक एवं मानव कल्याण के लिये रचनात्मक कार्य किये हैं। आपके छोटे भाई प्रकाशचन्द सेठी हैं। आयु 45 वर्ष है। धर्मपत्नी मनोरमा देवी है। आपके पांच लड़कियां एवं एक लड़का है । पता: चुन्नीलाल किशनलाल सेठी अमर रोलर फ्लोर मिल, डीमापुर दानवीर सेठ चांदमल सरावगी मरुप्रदेश (राजस्थान) के लालगढ़ कस्बे में श्री मूलचंद जी पाण्ड्या के घर मातुश्री जंवरीबाई की कुक्षी से 3 जनवरी, 1912 को सेट चांदमल जी का जन्म हुआ था। श्री सरावगीजी का बचपन तथा छात्र काल कलकत्ता में बीता, जहाँ के विश्वविद्यालय से उन्होंने 1930 में "मेट्रिक्यूलेशन" किया। स्कूल जीवन में ही छात्र आन्दोलनों में भाग लेने लगे और ब्रिटिश झण्डे यूनियन जैक का अपमान करने पर गिरफ्तार किये गये। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद श्री सरावगी जी ने तत्कालीन विख्यात फर्म सालिगराम राय चुनीलाल बहादुर एण्ड कम्पनी में व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया और अल्पकाल में ही उसके मैनेजिंग पार्टनर तथा गौहाटी डिवीजन के प्रबंधक बन गये। श्री सरावगी जी ने धर्म तथा समाज के कार्यों में आस्था और रुचि रखते हुये अपने उद्यम से खूब धनोपार्जन किया और उनकी गणना असम के प्रमुख उद्योगपतियों मे होने लगी । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/79 गौहाटी विश्वविद्यालय के निर्माण में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया । स्व.लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई के अध्यक्ष काल में वे गौहाटी विश्वविद्यालय के संयुक्त कोषाध्यक्ष रहे । उन्होंने गौहाटी,सिलचर, शिलांग तथा असम के अन्य महत्वपूर्ण कस्बों में कांग्रेस भवन बनाने में दिल खोलकर आर्थिक सहायता प्रदान की। उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती भंवरी देवी के नाम पर गौहाटी में मूक-बधिरों का स्कूल स्थापित किया जो सारे असम प्रान्त में अपने दंग की एक मात्र संस्था है। डॉ.बी.बरुआ कैन्सर इन्स्टीट्यूट, गौहाटी कुष्ठ रोग चिकित्सालय,यक्षमा चिकित्सालय शिलांग,वनस्थली विद्यापीठ, वनस्थली,गुरुकुल कुम्भोज बाहुबली (महाराष्ट्र) मिर्जा कॉलेज,बोको कॉलेज,मंगदई कॉलेज,कामाख्या स्कूल, मलईगांव सेवा आश्रम तथा विभिन्न स्थानों पर चल रहे मारवाड़ी विद्यालय आदि कुछ संस्थायें हैं जिनकी स्थापना तथा बाद में संचालन में श्री सरावगी जी का उल्लेखनीय योगदान रहा। आपने सुजानगढ़ में एक सार्वजनिक स्कूल की स्थापना की थी तथा गौहाटी में एक मोन्टेसरी स्कूल भा स्थापित किया । समाज के श्रावक तथा विद्वतवर्ग ने उन्हें समय-समय पर जनरल,धर्मवीर,दानवीर,श्रावक शिरोमणि तथा मुनिसंघ भक्त दिवाकर आदि उपाधियों से सम्मानित किया है। आपकी गुरु भक्ति श्लाघनीय और अनुकरणीय थी। श्री सरावगी जी मंदिरों के निर्माण,मानस्तम्भों की स्थापना तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में श्रद्धापूर्वक भाग लेते थे। गौहार्टी,मरसलगंज तथा शांतिवीर नगर,श्री महावीर जी में सम्पन्न पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवों में आपने मुक्तहस्त से सहयोग किया था। सुजानगढ़ में मानस्तम्भ का निर्माण कराया तथा शान्तिवीर नगर (श्री महावीर जी) में 61 फीट ऊंचे संगमरमर के मानस्तम्भ का निर्माण कराया। श्री सरावगीजी अ.भा दि.जैन महासभा की सहायता वर्षों तक करते रहे तथा अपनी सेवाओं के कारण एक कीर्तिमान स्थापित किया। आपके तीन पुत्र सर्व श्री गणतराय जी,रतनलाल जी व भागचन्द जी है तथा पांच पुत्रियां है । सभी पुत्र सुयोग्य, सुसंस्कृत तथा व्यापार की देखभाल करते हैं। स्व. श्री जेठमल सेठी डीमापुर के स्व. जेठमलसेठी का जन्म सन् 1900 में एवं निधन दि. 10 जून, 1982 को हुआ। आपके पिता श्री हरदेव जी सेठी व माताजी जडावदेवी दोनों ही धार्मिक स्वभाव के थे। जेठमल जी सेठी का विवाह गुलाबबाई के साथ हुआ था। बाईजी बेरी के नेतराम जी काला की बहिन थी । उनका स्वर्गवास सन् 1950 में ही हो गया था। आपके तीन पुत्रियां हुई। सोनी देवी का विवाह भिण्ड निवासी श्री बंशीलाल जी गंगवाल के साथ संपन्न हुआ। दूसरी पुत्री रामप्यारी गोहाटी के स्व. गंभीरमल जी के साथ विवाहित हुई। तीसरी पुत्री गुणमाला का विवाह विजयनगर के श्रीपाल जी अजमेरा के साथ संपन्न हुआ। विशेष - सेठी जी सामाजिक व्यक्ति थे । वे डीमापुर जैन समाज के सभापति रहे.चैम्बर ऑफ कॉमर्स डीमापुर के ट्रस्टी रहे। एक बार कोहिमा मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष रहे । मंदिर पंचायत के सभापति, सामाजिक कार्यकर्ता एवं सभी संस्थाओं से संबंधित रहे । दान देने में वे बहुत उदार थे। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80/ जैन समाज का वृहद् इतिहास डीमापुर जैन मंदिर में फर्श, स्कूल में कमरा अपने ग्राम छापड़ा में प्याऊ एवं कबूतर खाना, मृत्यु के पूर्व आपने अपनी संपत्ति का ट्रस्ट बनाया जिसके द्वारा छापड़ा में प्याऊ एवं कबूतर खाने का संचालन होता है । श्रीमहावीर धर्मशाला में पावापुरी धर्मशाला में तथा छापड़ा के स्कूल में कमरे का निर्माण करवाने का यशस्वी कार्य किया। यात्रा पर जाते रहते थे । आपने श्री त्रिलोकचन्द सेठी को गोद लिया, जो अलग रहते हैं । स्व. श्री डूंगरमल सरावगी पांड्या I गौहाटी की प्रसिद्ध फर्म छगनमल सरावगी एंड सन्स के मैनेजिंग पार्टनर श्री डूंगरमल सरावगी सुजानगढ़ से सन् 1956 में गोहाटी आकर रहने लगे । उनका जन्म 17 दिसम्बर 1920 को स्व. छगनमल जी के यहां हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करके वे व्यवसाय में लग गये। श्रीमती उमरावदेवी के साथ आपका विवाह हुआ। आपके चार पुत्र एवं एक पुत्री हुई सबसे बड़े पुत्र श्री सुरेशकुमार 47 वर्षीय युवा व्यवसायी हैं। आपको धर्मपत्नी श्रीमती किरणदेवी हैं । उनको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दूसरे पुत्र श्री पन्नालाल बी. कॉम हैं । सरोजदेवी आपकी धर्मपत्नी है उनके दो पुत्रियां हैं। तीसरे पुत्र श्री पद्मचन्द हैं। आप भी बी कॉम, हैं : श्रीमती मनोरमा आपको धर्मपत्नी है। जो दो बच्चों की मां है। चतुर्थ पुत्र श्री मक्खन लाल हैं जो 35 वर्षीय हैं तथा बी.कॉम. हैं। आपकी धर्मपत्नी रेखा है जिनको तीन पुत्रियां प्राप्त हैं। आपकी एक मात्र पुत्री श्रीमती सुशीला का विवाह बंगलौर हो चका ' सामाजिक सेवायें । स्व. श्री डूंगरमल जी पांड्या सुजानगढ़ दि. जैन पंचायत के वर्षों तक अध्यक्ष रहे । सुजानगढ़ की सभी शिक्षण संस्थाओं के संरक्षक एवं चूरू जिला स्काउट्स एसोसियेशन के अध्यक्ष रहे। आचार्य विमलसागर जी महाराज के आप अनन्य भक्त थे तथा 27-28 वर्ष पूर्व आचार्य श्री का चातुर्मास भी आपने ही करवाया था। खारूपेटिया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा की सम्पूर्ण व्यवस्था आप ही के पास थी । सम्मेदशिखर जी एवं श्री महावीर जी में वेदी निर्माण करवाया। पांड्याजी कट्टर मुनिभक्त थे। स्वभाव से उदार, परोपकारी तथा सभी जाति एवं धर्म के लोगों की सहायता करते थे। 66 वर्ष की अवस्था में दि. 29.12.86 को गौहाटी में निधन हो गया । उनके निधन से समाज ने अपना हितैषी खो दिया। उनके चारों ही पुत्र योग्य है तथा अपने पिताश्री के पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। स्व. श्री नेमीचन्द जी सरावगी पांड्या आसाम के सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री सेठ नेमीचन्द जी सरावगी पांड्या एक साधन सम्पन्न धर्मपरायण व्यक्ति थे । आप लाडनूं (राज) के मूल निवासी थे लेकिन वर्षों से आप गौहाटी में एयर आसाम के प्रमुख संचालक के रूप में पेट्रोलियम, चाय एवं जूट का व्यापार करते रहे। आपका जन्म 1926 में लाडनूं (राजस्थान) में हुआ था। स्कूली अध्ययन की समाप्ति के उपरान्त आजीविका के सिलसिले में आप गोहाटी आ बसे । समाज सेवा की ओर प्रारम्भ से ही लक्ष्य रहा। दिगम्बर जैन पंचायत गौहाटी के सेक्रेट्री की हैसियत Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /81 से आपने 15 वर्षों तक लगातार कार्य किया है । 1965 में गोहाटी में आयोजित "पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव" की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय आपके अत्यन्त विनम्र सर्वजन सुलभ,मिलनसार हँसमुख व्यक्तित्व को रहा । श्री नेमीचन्द जी जैन समाज के एक कर्मठ मेधावी कार्यकर्ता थे । आपके आकस्मिक निधन से समाज की भारी क्षति जैन गजट-26 अक्टू, 92 स्व. श्री फूलचन्द सेठी फुलचन्द जी का जन्म छपरा गांव में मातुश्री जडाव बाई की कोख से कार्तिक कृष्णा । 13 संवत् 1967 को हुआ। उस दिन नवम्बर 1911 थी । धनतेरस थी । इसलिये घर में पुत्र रत्न की प्राप्ति अत्यधिक शुभ मानी गई इसलिये पुत्र के जन्म लेते ही सारे परिवार में प्रसन्नता छः गई । माता-पिता की खुशी का क्या ठिकाना था । जन्म लेते ही चारों ओर फूल बरसने लगे इसलिये शिशु का नाम फूलचन्द रखा गया। व्यापार में फूलचंद जी प्रारम्भ से ही दक्ष रहे । जिधर भी आप हाथ डालते,लाभ ही लाभ मिलता । इसलिये विवाह के पूर्व ही आपने व्यापारिक क्षेत्र में नाम ही नहीं कमाया खूब धनोपार्जन भी किया । विवाह : चौद्धीसवर्ष की अवस्था में 11 मार्च,1935 फाल्गुण शुक्ला सप्तमी को आपका विवाह पलासबाडी में जौहरीमल जी की पुत्री लाडा देवी से हो गया । डीमापुर आगमन सन् 1944 में आपने कोहिमा छोड़ दिया और डीमापुर आकर बस गये । यहीं पर व्यापार व्यवसाय करने लगे और सर्वप्रथम आपने सूत का व्यवसाय किया और फिर पवनकुमार राजकुमार फर्म के नाम से गल्ले का थोक कार्य करने लगे । सन् 1951 से सन् 1974 तक आपने चीनी एवं गुड़ की लाखों बोरियों का कार्य किया और यहां भी सामाजिक एवं राष्ट्रीय सेवा में अपने आपको समर्पित रखा। डीमापुर आने के पश्चात् आपने अपने हाथों से यहां श्री दिगम्बर जैन मंदिर की नींव लगाई और धीरे-धीरे मंदिर को विशाल रूप प्रदान किया। दिगम्बर जैन मंदिर के सेक्रेट्री आपकी सामाजिक सेवा भावना को देखते हुये आपको निर्माणाधीन मंदिर का सेक्रेट्री बनाया गया 1 आपकी सेवा एवं लगन के कारण डीमापुर समाज ने आपको सदैव मस्तक पर रखा और मृत्यु पर्यन्त 48 वर्ष तक आपको ही सैक्रेटी पद पर बार-बार निर्वाचित करके प्रजातंत्र प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ा। किसी एक संस्था के इतने लम्बे समय तक सैक्रेट्री के पद पर बने रहने वाले संभवतः आप जैसे विरले ही व्यक्ति होंगे। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82/ जैन समाज का बृहद् इतिहास कोहिमा से मूर्तियों का स्थानान्तरण द्वितीय विश्वयुद्ध में कोहिमा पर जापानियों का आक्रमण हो गया। सभी जैन परिवार वहां से डीमापुर आ गये। अंग्रेजों ने दिगम्बर जैन मंदिर को चावल की बोरियों से भर दिया। उन्हें कौन रोकने वाला था। भगवान की मूर्ति भी बोरियों की ओट में आ गई। फूलचंद जी को चैन कहां। वे रात दिन प्रतिमाओं को लाने की योजना बनाने लगे और एक दिन अपने जीवन को जोखिम में डाल करके वे कोहिमा गये। मंदिर में घुसकर मूर्तियों को निकाला और सभी प्रतिमाओं को सुरक्षित रूप से डीमापुर आये । प्रतिमाओं को शिखर जी के मंदिर में विराजमान करने के पश्चात् ही उन्हें शांति मिली। फूलचंद जी के साहस एवं धार्मिक भावना की चारों ओर प्रशंसा होने लगी और पर्याप्त समय तक वे चर्चा के त्रिषय बने रहे । 2500 वां महावीर परिनिर्वाण महोत्सव सेठ फूलचंद जी सेठी ने भगवान महावीर 25000 वां परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष में सारे पूर्वाञ्चल प्रदेश में अहिंसा धर्म का जो धुआंधार प्रचार किया तथा पूरे जैन समाज को एक झण्डे के नीचे लाकर उसमें भावानात्मक एकता पैदा को उसकी सर्वत्र प्रशंसा की गई । सेठी जी के सतत् प्रयास से ही पूर्वोत्तर भारत में नागालैण्ड प्रान्तीय सरकार ने एक लाख की धनराशि भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाने के लिये दी। नागालैण्ड शासकीय समिति के सेठी जी महामंत्री भी थे। नागालैण्ड में निर्वाण महोत्सव की यादगार को चिरस्थायी बनाने के लिये जो कॉलम बनाया गया उसका शिलान्यास भी 11 दिसम्बर, 1974 को हजारों जैन, अजैन जनता की उपस्थिति में आप ही के कर कमलों द्वारा हुआ था । इस तरह आपकी प्रेरणा के फलस्वरूप डीमापुर में आम जनता की भलाई के लिये भगवान महावीर दातव्य औषद्यालय की स्थापना की गई थी । आपकी प्रशंसनीय समाज सेवा के कारण नागालैण्ड सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1975 को भारत के 29 वें स्वतंत्रता दिवस के भव्य समारोह में महामहिम राज्यपाल नागालैण्ड ने प्रशंसा पत्र देकर आपको सम्मानित किया । महाप्रयाण : सेठीजी का जीवन जितना सौम्य एवं संवेदनशील रहा उतना ही उनका महाप्रयाण दिवस भी रहा । उनका जैसा महाप्रयाण तो साधुओं को भी दुर्लभ होता है। 2 अक्टूबर, 76 को उन्होंने आर्यिका इन्दुमती जी के समक्ष मंदिर में णमोकार मंत्र का उच्चारण करते हुये जीवन लीला समाप्त कर दी। स्व. श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल अभिनन्दन ग्रंथ एवं स्मृति ग्रंथों के शीर्षक के अन्तर्गत श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल का परिचय दिया जा चुका है। बाकलीवाल जी पूर्वाचल प्रदेश के प्रभावी समाज सेवी थे। सामाजिक गतिविधियां, साधुओं की सेवा एवं विद्वानों के स्वागत सत्कार में वे पूर्ण रुचि लेते थे। वे वर्षों तक महासभा के अध्यक्ष रहे और उसके माध्यम से सामाजिक आयोजनों में खूब भाग लिया । कहते हैं उनको अपना निकट समय ज्ञात हो गया था इसलिये उसके पूर्व वे उदयपुर ईडर जाकर मुनिराजों के दर्शन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करके अपने ग्राम लालगढ़ आ गये और अक्टूबर सन् 1967 को अपने पूरे कुटुम्बी जनों के समक्ष आत्म चिंतन में लवलीन .होकर सदा के लिये चले गये। बाकलीवाल जी व्यक्ति नहीं संस्था थे। उनके चले जाने से समाज की गहरी क्षति हुई । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /83 श्री लक्ष्मीनारायण बज श्री लक्ष्मीनारायण जी बज का निधन दि.30 अप्रैल 83 को हुआ। उस समय आपकी आयु 72 वर्ष की थी । आप स्व. घनालाल जी एवं श्रीमती चन्दरीदेवी के पुत्र थे। आपके दो विवाह हुये । प्रथम पत्नी श्रीमती मुलीदेवी से दो पुत्र हुये। 31 वर्ष की आयु में आपका दूसरा विवाह नागौर के श्री वाघमलजी छाबड़ा की पुत्री शांतिदेवी के साथ हुआ। जिनसे तीन पुत्र एवं एक पुत्री हुई । आप मूल निवासी पलाड़ा ग्राम के थे जहाँ आपने अपनी मातृश्री चन्दरीबाई की स्मृति में औषधालय भवन का निर्माण करवाकर राजस्थान सरकार को संचालन के लिये सौंप दिया। किशनगंज (बिहार) हॉस्पिटल में एक कमरे का निर्माण करवाया । इसी तरह नागौर के बीस पंथी जैन मंदिर में एक गुम्बज का निर्माण करवाया । आप धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेते थे। नागौर एवं पलाड़ा (कुचामन) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर इन्द्र इन्द्राणी के पद को सुशोभित किया । अपने ग्राम पलाड़ा में मंदिर का निर्माण करवाकर उसमें मूर्ति विराजमान की। आपने सभी तीर्थों की वंदना की थी। तिनसुकिया जैन समाज के आप सन् 1981 से 83 तक अध्यक्ष रहे। आपको पांच पुत्रों एवं एक पुत्री का पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सबसे बड़े पुत्र श्री मदनलाल जी 54 वर्षीय हैं। उनकी पली श्रीमती मोहनीदेवी हैं जिनके चार पुत्र दो पुत्रियां हैं। चाय के बड़े याकव्यापारी है जयपुत्र श्री मोहनलाल जी 46 वर्षीय हैं । आपकी पत्नी गुणमाला देवी तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों की माता है। तीसरा पुत्र श्री विनोदकुमार का जन्म कार्तिक बुदी अमावस्या सन् 1957 को हुआ। आपकी पत्नी का नाम श्रीमती राजुल है । आपके एक पुत्र एवे एक पुत्री है । चतुर्थ पुत्र श्री चिरंजीलाल का सन् 1960 में माघ शुक्ला पंचमी को जन्म हुआ। आप बी कॉम. हैं । विवाहित हैं । पत्नी शर्मिला देवी हैं । एक पुत्र है । पांचवे पुत्र श्री निर्मलकुमार 27 वर्ष के हैं आपका जन्म भादवा सुदी 10 सन् 1962 को हुआ था। आप अभी तक अविवाहित हैं 1 श्रीमती सरोजबाई आपकी एक मात्र पुत्री है जिसका जन्म आसोज सुदी 10 सं. 2011 को हुआ था । आपका विवाह हो चुका है । श्रीमती शान्तिदेवी धर्मपरायण महिला हैं । उदार स्वभाव की हैं। पता : लक्ष्मीनारायण जैन एण्ड कम्पनी, चैम्बर रोड़,तिनसुकिया (आसाम) स्व. संजयकुमार सेठी (सुपुत्र श्रीमान् पत्रालाल जी सेठी) जन्म: 13.10.1968 स्वर्गदास : 02.08.1989 डीमापुर के सुप्रसिद्ध व्यवसायी,धर्मानुरागी श्रीमान पत्रालाल जी सेठी के ज्येष्ठ पुत्र श्री संजयकुमार सेठी का जन्म 13 अक्टूबर, 1968 को डीमापुर में हुआ। अपने पिताश्री के समान बाल्यकाल से ही इन्हें धर्म में विशेष रुचि थी । आचार्य संघ,आर्यिका संघ एवं मुनियों की सेवा सुश्रुषा में आप सदैव तत्पर रहते थे। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84/ जैन समाज का वृहद इतिहास डीमापुर से दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त कर फिर कलकत्ता से हायर सैकेण्डरी पास की, तत्पश्चात् बीकॉम, द्वितीय श्रेणी से पास की । पुनः डीमापुर जाकर अपने पिताश्री के व्यवसाय में भी निपुणता प्रदर्शित कर सहयोग करने लगे। दो वर्ष के अन्तराल में ही आपने व्यवसाय के क्षेत्र में आशातीत सफलता अर्जि की। 1 अगस्त,80 को वह भयानक रात,सेठी जी का पूरा परिवार सुप्त अवस्था में था। रात्रि के 3 बजे के करीब एक डकैत ने उनके मकान में प्रवेश कर डकैती करने को कुचेष्टा की । गोली की आवाज सुनकर संजय कुमार अपने शयन कक्ष से बाहर आये तथा अपने माता-पिता तथा अन्य परिवार जनों को उस डकैत से भयभीत पाया । आपने अपने प्राणों की परवाह न करते हुये उस खूखार डकैत पर निहत्ये ही आक्रमण कर दिया तथा उसके हाथ की पिस्तौल छीनने की चेष्टा की और पिस्तौल छीनकर फैकने में सफल भी हुये परन्तु इस मुठभेड में डकैत ने संजयकुमार के बांयी ओर पसली में गोली दाग दी, जिससे वे घायल हो गये लेकिन उसके इस प्रयास से परिवार पर संभावित सभी विपदा टल गयी क्यों कि उस डकैत की पिस्तौल में कई गोलियाँ थी, इसके उपरान्त भी उसने छुरा निकालने की चेष्टा की परन्तु परिवार के अन्य सदस्यों ने उस डकैत को दबोच लिया। संजयकुमार को अचेत अवस्था में ही स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया परन्तु रास्ते में ही रात्रि के 4.15 पर संजयकुमार ने इस संसार से सदैव के लिये नाता तोड़ लिया। इस साहसी बालक को अंतिम शवयात्रा दि.2.8.89 को दोपहर 4.30 बजे रवाना हुई जिसमें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु नागालैण्ड के मिनिस्टर्स वी.आई.पी. एस.पी.,डीमापुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अनेक सदस्य, स्थानीय व्यापारी वर्ग एवं समाज के अनेक व्यक्ति शामिल थे । इस दिन डीमापुर व्यापारी वर्ग ने प्रतिवाद स्वरूप अपने प्रतिष्ठानों को बंद रखा एवं प्रशासन से इस तरह की घटनाओं को रोकने की कड़ी मांग की। स्वर्गीय संजयकुमार अपने पीछे माता-पिता, पांच काका-काकी,दो अनुज भ्राता क्रमशः राजेश सेठी एवं रवि सेठी तथा एक विवाहित बहिन बबीता का भरा पूरा परिवार छोड़ गये । इस दर्दनाक दुर्घटना से सारा परिवार शोकाकुल हो गया। श्री हीरालाल जी सेठी स्व.श्री हीरालाल जी सेठी का जन्म झंझुनूं (राजस्थान) जिले में स्थित छापड़ा प्राम में हुआ था । सन् 1885 में सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात प्राम में रोजगार के अभाव में आप आसाम प्रांत के नागाहिल्स जिले में स्थित कोहिमा नगर में व्यवसाय हेतु आ गये और वहां गल्ला,सूत और बीड़ी का व्यवसाय करने लगे । कोहिमानगर आसाम प्रान्त के नागाहिल्स जिलें में समुद्र तल से पांच हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। सन 1920 में आपके परिवार ने कोहिमा में श्री दिग. जैन मंदिर की स्थापना की। आपने अपने व्यवसाय में शीघ्र ही ख्याति प्राप्त की। श्री कन्हैयालाल जी सेठी स्व.श्री कन्हैयालाल जी सेठी का जन्म आसाम प्रान्त के नागाहिल्स जिले में स्थित कोहिमा शहर में सन् 1916 में हुआ था | आप बचपन से ही समाज की परोपकारिता में संलग्न रहे । द्वितीय विश्वयुद्ध के समय आपका परिवार सन् 1942 में कोहिमा से डीमापुर आकर बस गया। अपने धार्मिक स्वभाव के कारण डीमापुर में जैन एवं जैनेतर समाज में चारों ओर प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गये । सरकार की ओर से उन्हें गांव बूढा (ग्राम सरपंच) की उपाधि दी गई। आपका शुद्ध खानपान का नियम था तथा आप मुनियों के परम भक्त थे । व्रत उपवास करते रहते थे । आपका विवाह श्रीमती राखी देवी से हुआ। आपको छः पुत्र और दो पुत्रियों के पिता Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /85 बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती राखीदेवी ने अपने जीवन में पांच बार दशलक्षण व्रत तथा दस बार आष्टादिनका वत करके एक कीर्तिमान स्थापित किया । आपके सभी पुत्र आपकी तरह धार्मिक, उदार एवं समाज के विकास में पूर्ण रुचि लेते हैं। ज्येष्ठ पुत्र पत्रालाल सेठी राष्ट्रीय स्तर के जैन समाज में ख्याति प्राप्त युवक हैं । सन् 1973 में सम्पूर्ण भारतवर्ष के तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करते हुये भागलपुर श्री दिग. जैन मंदिर में परमपूज्य श्री 108 आर्यनन्दी जी महाराज के सानिध्य में शांतिपूर्वक देह त्याग किया। स्व. श्री हरकचंद जी सेठी स्त्र. सेठी जी का जन्म संवत् 1970 आसोज बुदी 13 को राजस्थान के डेह नगर में हुआ । नागौर के समीप होने के कारण डेह दिगम्बर जैन समाज का अच्छा केन्द्र है । सेठी जी का साधारण परिवार था । उनके पिताजी भंवरलाल जी आसाम में नौकरी करते थे । आसाम का जलवायु उनहें माफिक नहीं आया इसलिये छोटी उम्र में ही उनका देहान्त हो गया। उससमय हरकचन्द जो केवल साढ़े आठ वर्ष के बालक थे। उनसे छोटे दो भाई बहिन और थे। लालन-पालन एवं भरण-पोषण का पूरा उत्तरदायित्व माताजी पर आ गया। घर में घोर आर्थिक संकट उपस्थित हो गया । इसलिये जो कुछ मां के पास था उसे के सहारे घर का काम चलने लगा। लेकिन बिना कमाये कब तक काम चलता इसलिये 13 वर्ष की अवस्था में उनहें खाने के लिये आसाम जाना पड़ा। वे तिनसुकिया गये । उनकी प्रारंभिक शिक्षा डेह में ही हुई थी। अपनी सोखी हुई महाजनी में दक्षता होने के कारण वे जल्दी ही काम सीख गये और मालिक के विश्वासपात्र बन गये । अपनी सीखी हुई महाजनी के बल पर ही ये कार्यक्षेत्र में उतर पडे । आसाम आने के 4 वर्ष पश्चात ही उन्हें अपनी बहिन का विवाह कराना पडा । जो कुछ कमाया था बह सब विवाह में लगा दिया । जब वे १९वर्ष के थे तभी उनका भी विवाह हेह में ही श्रीमती मोहनी देवी से हो गया। विवाह होने के उपरान्त उन्हें फिर आसाम जाना पड़ा। संवत् 1994 में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपना स्वतंत्र व्यापार करना आरम्भ कर दिया। इसी वाई आपको पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम निर्मल रखा गया। भाग्य ने साथ दिया । व्यापार में सफलता पर सफलता मिलने लगी । गल्ला,चावल आदि का थोक व्यापार करने लगे। इससे आपकी आर्थिक स्थिति एकदम बदल गई और सेठी जी की गिनती बड़े व्यापारियों में होने लगी। अपनी मिलनसारिता एवं व्यापारिक कुशलता के कारण वे तिनसुकिया, गौहाटी एवं डिब्रुगढ़ में लोकप्रिय बन गये । ___व्यापार के पश्चात् उनका ध्यान नये-नये उद्योगों की ओर गया । एक के बाद दूसरे उद्योगों की स्थापना की जाने लगी। सिल्चर में यूनियन फ्लोर मिल,सीतापुर में हरकचन्द फ्लोर मिल,गोरखपुर में सेठी फ्लोर मिल जैसे उद्योगों की स्थापना करके व्यापारिक क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। धार्मिक जीवन स्त्र. सेठी जी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के श्रावक थे । मुनियों का सानिध्य उन्हें छोटी अवस्था में ही प्राप्त होने लगा था । विवाह के 4 वर्ष पश्चात् ही अपनी पत्नी को शुद्ध आहार ग्रहण करने के नियम पालन की स्वीकृति प्रदान कर दी । वे जीवन पर्यन्त देव दर्शन, अभिषेक,पूजा,स्वाध्याय आदि का पालन करते रहे । उन्होंने आलू ,प्याज,गोभी जैसी सब्जियों का कभी सेवन नहीं किया। चलती ट्रेन में उन्होंने कभी खान-पान नहीं किया । तीर्थों की यात्रा करने में उन्हें विशेष रुचि थी। राजगृहो तो वे प्रतिवर्ष जाते थे। इसी तरह तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की भी वे यात्रा करते रहे। तीर्थों पर जाकर या तो जीर्णोद्धार में सहयोग Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86/ जैन समाज का वृहद इतिहास देते या फिर कमरे के निर्माण में रुचि लेते। शिखर जी की तेरहपंथी कोठी म,राजगृही में,नाथ नगर (चम्पापुर में एक-एक कमरे का निर्माण करवाया । जैन धर्मशाला तिनसुकिया में दो कमरे बनवाये तथा एक कमरा बनवाकर तिनसुकिया कॉलेज को प्रदान किया। इसी तरह वहां के दि.जैन मन्दिर में एक बड़े हाल का निर्माण करवाया । अपने ग्राम डेह की गौशाला में गायों को बांधने के लिये एक कमरा तथा वहीं के सरकारी प्राथपिक विद्यालय में एक कमरे का निर्माण करवाकर विद्या के प्रचार-प्रसार में योग दिया। वे स्वभाव से उदार थे । संस्थाओं के जो भी कार्यकर्ता अथवा प्रतिनिधि आते उन्हें वे मुक्तहस्त से आर्थिक सहयोग देते। देने वाले नामों में अपना सर्वप्रथम लिखते तथा ओरों को लिखने की प्रेरणा देते । आतिथ्य में वे सबसे आगे रहते । दूसरों को खिलाकर खाने में उन्हें अतीव आनन्द आता । उनका सभी के साथ अच्छा व्यवहार रहता था। इसलिए उनके पास आने एवं मिलने में किसी को भी हिचक नहीं होती थी। 27 जनवरी, 80 को एक लम्बी बीमारी के पश्चात् आपका देहली में ही स्वर्गवास हो गया । आप अपने पीछे चार पुत्र सर्वश्री निर्मलकुमार जी, श्री हुलाशचन्द जी,महावीर प्रसार जी एवं दिनेश कुमार जी जैन,पांच पुत्रियां,पौत्र एवं पौत्रियां का एक भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। आपके सभी पुत्र धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा समाजिक एवं धार्मिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री निर्मल कुमार जी सेठी वर्तमान में भा दि.जैन महासभा के अध्यक्ष हैं। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /87 समाज के सजग प्रहरी समाज के सजग प्रहरी बनना कांटों का ताज पहनने के समान है । क्योंकि जब कभी समाज में कोई ऐसी घटना घटती है जिससे समाज की छवि धूमिल होती है,समाज में अनुशासन न रहकर उच्छृङ्खलता बढ़ती है,सामाजिक बंधन, परम्पराओं एवं सीमाओं का जहां उल्लंघन होता है, उस समय समाज सेवी यदि वह सजग है, उसमें विरोध करने का साहस है,समाज के अपयश को देखकर जिसके हृदय में वुमन होती है,वही समाज का सजग प्रहरी है ऐसे समय में वह समाज की रक्षा करता है । उसके होते हुये सहसा किसी कों अपर कार्य करने में नाइसी के सपा सण संस्थाले विरुद्ध आज जो कुछ कार्य हो रहे हैं जिनको देखकर हमें समाज की चिन्ता होने लगती है तथा उनके निवारण के लिये हम कृत संकल्प बनते हैं । इसलिये जो व्यक्ति समाज सेवा में समर्पित हैं तथा धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने में जो सदैव तत्पर रहता है वही समाज का सजग प्रहरी है। प्रस्तुत शीर्षक के अन्तर्गत हम कुछ ऐसे ही समाजसेवियों का जीवन परिचय उपस्थित कर रहे हैं जो सामाजिक कार्यों में सतत् लगे रहते हैं तथा जिनकी सेवायें समाज के लिये वरदान स्वरूप हैं। -सम्पादक 1. श्री अमरचन्द पाटनी, डिबूगढ़ 2. श्री इन्दरचन्द पाटनी,नलबाड़ी 3. श्री कल्याणमल बाकलीवाल, इम्फाल 4. श्री कपूरचन्द सेठी,डीमापुर 5. श्री गजेन्द्रकुमार सबलावत, इम्फाल 6. श्री चन्दनल पहाड़िया, इम्फाल 7. श्री चांदमल गंगवाल,डिबूगढ़ 8. श्री चैनरूप बाकलीवाल,डीमापुर 9. श्री जयचन्द लाल पाटनी,गौहाटी 10. श्री जयचन्द लाल पाटनी,तिनसुकिया 11. श्री तनसुखराय सेठी, इम्फाल 12. श्री त्रिलोकचन्द पाटनी,इम्फाल 13. श्री दानमल सोगानी, गौहाटी 14. श्री धनराज बगड़ा,विजय नगर 15. श्री धर्मचन्द पाटनी, इम्फाल 16. श्री पन्नालाल सेठी,डीमापुर 17. श्री प्रसत्र कुमार बाकलीवाल,सिल्चर 18. श्री पूनमचन्द सेठी, गौहाटी 19. श्री बालचन्द सेठी,तिनसुकिया 20. श्री मदनलाल बाकलीवाल,गौहाटी 21. श्री मन्नालाल बाकलीवाल,इम्फाल 22. श्री मांगीलाल छाबड़ा,डीमापुर 23. श्री मानिकचन्द गंगवाल,गौहाटी 24. श्री महावीर प्रसाद जैन रारा, नलबाड़ी 25. श्री महावीर प्रसाद पाटनी,डीमापुर 26. श्री रतनलाल दुलीचन्द विनायक्या,डीमापुर 27. श्री राजकुमार सेठी,डीमापुर 28. श्रीमती लाडा देवी सेठीडीमापुर 29. श्री राजेन्द्रप्रसाद रारा,तिनसुकिया 30. श्री सागरमल सबलावत गणधर,डीमापुर 31. श्री सोहनलाल बगड़ा,विजयनगर 32. श्री सोहनलाल बाकलीवाल.विजयनगर 33. श्री सोहनलाल पाटनी,गौहाटी 34. श्री शान्तिलाल पाण्ड्या,डिदूगढ़ 35, श्री हुकमचन्द सरावगी, गौहाटी 36. श्री हीरालाल पाटौदी, डिब्रूगढ़ 37. श्री हुलासचन्द सेठी,तिनसुकिया Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री अपरचन्द पाटनी वर्तमान में आएकी आयु 65 वर्ष की है । आपने जीवन में यद्यपि सामान्य शिक्षा ही प्राप्त की है लेकिन आपकी सूझबूझ,व्यापारिक दक्षता, नेतृत्व करने की शक्ति सभी प्रशंसनीय है । आपके पिताजी श्री रिद्धकरण जी का 35 वर्ष की आयु में ही स्वर्गवास हो गया और माताजी श्रीमती जंवरीदेवी का अभी 10 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। विवाह : आपका विवाह 15 वर्ष की आयु में श्रीमती मैना देवी के साथ सम्पत्र हुआ। ख्यवसाय : गल्ला एवं किराणा,डिब्रूगढ़ एवं डीमापुर दोनों ही नगरों में व्यवसाय है। सन्तार : चार पुत्र हैं। ज्येष्ठ पुत्र श्री पदमकुमार 43 वर्षीय है। पत्नी का नाम शकुन्तलादेवी है । आपके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । डीमापुर का व्यवसाय आप ही देखते हैं। दूसरे पुत्र श्री प्रसन्न कुमार, आयु-40 वर्ष,धर्मपत्नी संतोषदेवी,आपके तीन पुत्रियां एवं दो पुत्र हैं। तीसरे पुत्र श्री निर्मलकुमार हैं । 35 वर्षीय हैं । धर्मपली ललिता देवी हैं । पांच पुत्रियों के पिता हैं | चतुर्थ पुत्र श्री सुरेश कुमार हैं। 40 वर्षीय युवा हैं । श्रीमती त्रिशला धर्मपत्नी हैं। मैना देवी धर्मपत्नी अमरचन्दर्जी पाटनी विशेष : श्री पाटनी बी का डिब्रूगढ जैन समाज में सम्माननीय स्थान है । आतिथ्य प्रेमी हैं । दशलक्षण वत्त के उपवास आप एक बार एवं आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मैना देवी तीन बार कर चुकी हैं । डिबूगढ़ में लेखक को आपके घर पर ठहरने का अवसर मिल चुका है । आपने डिवूगढ़ मन्दिर को नींव लगाई थी तथा वहां आयोजित सिद्धचक्र विधान में इन्द्र के.पद से सुशोभित हुये थे । धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों को आहार देने में रुचि रखती हैं। आपने सपरिवार सभी तीर्थों की वन्दना करती है। आपकी पुत्रवधुयें,श्रीमती शकुन्तलादेवी श्रीमती सन्तोष देवी एवं ललिता देवी ने एवं तीसरे पुत्र निर्मलकुमार ने दशलक्षण व्रत के उपवास करने का यशस्वी कार्य किया पता : रिद्धकरण अमरचन्द पाटनी,माहम बाजार,डिब्रूगढ़ (आसाम)। श्री इन्दरचन्द पाटनी जन्म तिथि : संवत् 1964 शिक्षा : सामान्य : कुचामन में पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के छात्र रहे हैं। व्यवसाय : गल्ला का व्यवसाय । ___ माता-पिता; स्व. श्री नेमीचन्द जी का संवत् 2008 में स्वर्गवास हुआ। माता स्व. श्रीमती चन्दरी बाई - आपका सन् 1982 में स्वर्गवास हो चुका है। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेशका जैन समाज / 89 विवाह : संवत् 1984 में आपका श्रीमती बसन्तीदेवी जी के साथ विवाह हुआ। लेकिन 22 वर्ष पूर्व आपका भी स्वर्गवास हो चुका है। परिवार पुत्र-5 1. श्री महावीर प्रसाद जी आयु 52 वर्ष पत्नी श्रीमती मनभरदेवी / पुत्र पांच, पुत्रियाँ चार । - 2. श्री रतनलाल आयु 50 वर्ष, पत्नी श्रीमती भागवती देवी / पुत्र 2, पुत्रियां पांच है। 3. श्री मोहनलाल आयु 48 वर्ष, पत्नी श्रीमती आशा देवी पुत्र, पुत्रयीन है। 4. . श्री स्वरूपचन्द - आयु 46 वर्ष, पत्नी श्रीमती सुशीलादेवी / पुत्र-2, पुत्रियां दो हैं। 5. श्री धर्मचन्द - आयु 44 वर्ष, पत्नी श्रीमती रतनीदेवी / पुत्र 3, पुत्रियां दो है। 1 स्वरूप चन्द पाटनी मोहनलाल पाटनी धर्मचन्द्र पाटनी जागमती धर्मपत्नी रखनलाल पाटनी पता: रतनलाल पाटनी श्री रतनलाल चिरंजीलाल पाटनी, कॉलेज रोड़, नलबाड़ी (आसाम) Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रतनलाल जी महासभा के स्थायी सदस्य हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भागमती देवी अत्यधित धर्मपरायणा है। बत उपवास करती रहती हैं। प्रतिदिन एक बार ही भोजन करती हैं। आपके पिताजी श्री नन्दलाल जी एवं माताजी श्रीमती विद्यावती देवी दोनों ही पंचम प्रतिमाघारी थे। भागमती जी दशलक्षण व्रत आष्टाहिका आदि के कितनों ही बार उपवास कर चुकी हैं। श्री इन्द्रचन्द जी इन्दौरवा (कुचामन, राज) के मूल निवासी हैं। वहां पर वेदो प्रतिष्ठा करवाकर मेला भरवाया था जिसका पूरा खर्चा आपके परिवार ने दहन किया था। नलबाडी पंचकल्याणक में आदिनाथ अजितनाथ भगवान की मूर्तियां विराजमान की थी 1 आपके शुद्ध खान-पान का नियम है। आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं। आपने सभी तीर्थों की वन्दना कर ली है। आपके सभी पांचों पुत्र धार्मिक स्वभाव के हैं तथा आज्ञाकी हैं! श्री कल्याणमल बाकलीवाल जन्मतिथि - आषाढ़ बुदी 9 संवत् 1979 शिवा : प्राइमरी तक पिताजी : श्री छिगनलाल जी - आपका स्वर्गवास 40 वर्ष की आयु में ही हो गया था। स्वावास को करीब 60 वर्ष : .. हो गये। माताजी : श्रीमती घेवरी देवी · 85 वर्ष की आयु में 15 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया । कल्याणपल एवं मोहनी देवी बाकलीवाल विवाह : सं. 2004 में श्रीमती मोहनी देवी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ। सन्तान : आपके तीन पुत्र एवं पांच पुत्रियां हैं। सबसे बड़े पुत्र श्री धर्मबन्द का विवाह हो चुका है। उनकी पत्नी का नाम सुनीता है। शेष दोनों पुत्र कमल कुमार एवं अजित कुमार पढ़ रहे हैं। पांच पुत्रियों में पुष्पा एवं सरोज का विवाह हो चुका है। वीना, सुमन एवं अनिता तीनों पढ़ रही हैं। विशेष : श्री बाकलीवाल जी मूल निवासी करड तहसील (दातारामगढ़ राज) के हैं। 45 वर्ष पूर्व इम्फाल में आकर व्यवसाय करने लगे और फिर यहीं के हो गये। आपकी धर्मपली धार्मिक प्रकृति की हैं। आष्टाहिका में आठ उपवास कर चुकी हैं। शुद्ध खान-पान का नियम है। मुनियों को आहार देती रहती हैं। तीर्थ यात्रा में दोनों की ही रुचि है। बाकलीवाल जी दि जैन मन्दिर इम्फाल की कार्यकारिणी के सदस्य हैं तथा चैम्बर ऑफ कॉमर्स के ट्रस्टी हैं। स्वभाव से सरल एवं उदार मनोवृत्ति वाले हैं। पता : कल्याणमल मोहनलाल, पावना बाजार,मन्दिर के पास,इम्फाल (मणिपुर) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /91 श्री कपूरचन्द सेठी 25 अगस्त, 1952 को जन्में श्री कपूरचन्द सेठी स्व. श्री नेमीचन्द जी सेठी के तीसरे पुत्र है जो छपडा (राज.) के मूल निवासी थे। श्री नेमीचन्द जी सेठी डीमापुर नगर के प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय व्यक्तित्व के धनी थे। वे उदार एवं धार्मिक प्रवृत्ति वाले सदगृस्थ थे । उनका अभी चार वर्ष पूर्व ही 16.05.87 स्वर्गवास हो गया। उनकी आयु उस समय 87 वर्ष की थी उनकी धर्मपत्नी फुलीदेवी आतिथ्य प्रेमी हैं। लेखक को भी उनको घर जाने का अवसर मिला और उनका आतिथ्य एवं स्नेह पाकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई। डीमापुर पंचकल्याणक में आप दोनों इन्द्र इन्द्राणी पद से सुशोभित हुये थे। साथ ही में मन्दिर में प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान की थी। सन् 1976 में जब इन्दुमति माताजी का संघ डीमापुर आया तो वे संघ के संघपति थे । उन्होंने सभी तीर्थयात्रायें भी सम्पन्न की थी। आप दोनों के शुद्ध खान-पान का नियम था तथा साधुओं की सेवा करने में आनन्द का अनुभव करते थे । श्री कपूरचन्द ने नेहू विश्वविद्यालय से बी.ए. किया था तथा नगामी, असमिया भाषाओं का भी अध्ययन किया। श्रीमती ज्ञानादेवी के साथ दि. 11 दिसम्बर 1976 को आपका विवाह सम्पन्न हुआ। आप दोनों को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आकाश एवं साकेत 5 वर्ष एवं 3 वर्ष का है तथा अभिलाषा ) वर्ष एवं प्रिया 7 वर्ष की है। सभी चारों पढ़ रहे हैं। आप भी अपने पिताजी की तरह उदारमना एवं सबको सहयोग देने वाले हैं। लियो क्लब के सन् 1974-75 में सेक्रेटरी एवं 1975-76 में अध्यक्ष रहे 1 डीमापुर लायन्स क्लब के सन् 1987-88 एवं 1988-89 में आप अध्यक्ष रहे थे । महासभा के प्रति आपकी पूरी निष्ठा है तथा उसके ध्रुव फण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। आपने मन्दिर के नव-निर्माण के समय मारबल लगाने में पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया था। मुजफ्फरनगर, लूणवा एवं वंरोदिया के मन्दिर के जीर्णोद्धार में सहयोग दिया तथा सम्मेदशिखर जी में फर्श एवं एक कमरे का निर्माण कराने का प्रशंसनीय कार्य किया। मारवाड़ी सम्मेलन (पूर्वोतर शाखा) के संयुक्त मंत्री, डीमापुर जैन समाज के कार्यकारी सदस्य, दि. जैन औषधालय के मंत्री, चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सदस्य एवं वीर विकास मंडल डीमापुर के कोषाध्यक्ष हैं । श्री कपूरचन्द जी के चार भाईयों में महावीर प्रसाद ज्येष्ठ भ्राता है। आयु 45 वर्ष की एवं धर्मपत्नी का नाम गुणमाला देवी है । आप चार पुत्र एवं एक पुत्री के पिता है। आपकी पत्नी ने दशलक्षण व्रत का एक बार उपवास किया था। आपके दूसरे भाई स्व. श्री पवन कुमार थे जिनका असमय में ही स्वर्गवास हो गया। आपकी पत्नी श्रीमती सरोजबाई ने एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे। आपके दो पुत्रियां एवं एक दत्तक पुत्र है । सुरेश कुमार आपके पिता श्री के चौथे नम्बर के 28 वर्षीय पुत्र हैं। आप बी कॉम हैं। श्रीमती किरणदेवी आपकी धर्मपत्नी हैं जो दो पुत्रों की मां बन चुकी हैं। पांचवें पुत्र श्री अजितकुमार हैं जो 25 वर्षीय युवा हैं। आपकी पत्नी श्रीमती संगीता है। सभी भाईयों में पूरा सामंजस्य हैं तथा सभी एक दूसरे का आदर एवं विनय करते हैं। गृह संचालन एवं व्यवसाय देखने में श्री कपूरचन्द जी का विशेष हाथ है। आपकी माताजी भी क्रियाशील महिला हैं। आपके एक बहिन भी है जिसका नाम संतोषदेवी है तथा स्व. नेमीचन्द के छोटे भाई स्व. चम्पालाल थे जिनके पवन कुमार दत्तक पुत्र थे 1 पता : श्री महावीर सइस फ्लोर एण्ड ऑयल मिल, जैन टेम्पल रोड़, डीमापुर । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92 / जैन समाज का वृहद इतिहास श्री गजेन्द्रकुमार सलावत ( गजराज ) जन्मतिथि: 27 सितम्बर, 1939, भादवा सुदी 14 संवत् 1996 शिक्षा : प्राइमरी शिक्षा पिताश्री : मेघराज जी सबलाघत का सन् 1966 में 62 वर्ष की आयु में स्वर्गवास 1 मातृश्री : श्रीमती मोहनीदेवी स्वर्गवास 6 वर्ष पूर्व हो चुका है। व्यवसाय : मोटर पार्ट्स विवाह: सन् 1957 में मेड़ता निवासी श्री नेमीचन्द जी सेठी की सुपुत्री कमला के साथ विवाह हुआ। एक पुत्री ममता है जो पढ़ रही है। पुत्र -3 पवन कुमार (सरोज कुमार) आयु 25। विवाहित धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना, मनीष कुमार-17 वर्ष एवं महेन्द्र कुमार-13 वर्ष दोनों अध्ययनरत हैं। . विशेष : आपकी धर्मपत्नी तीन बार तीर्थ वन्दना कर चुकी हैं। आप तेरहपंथ विचारधारा के कट्टर समर्थक हैं । दृढ़ श्रद्धानी एवं स्पष्ट वक्ता है। आपने अपना जीवन इम्फाल में सर्विस के साथ प्रारंभ किया। 13 मई, सन् 1965 से अपना मोटर पार्ट्स का स्वतन्त्र व्यवसाय प्रारंभ किया और उसमें पर्याप्त सफलता प्राप्त की। माता-पिता के प्रति आपकी सच्ची भक्ति थी। आपके पिताजी को अपने तीन भवों की बात याद थी तथा आपके पुत्र मनीष को पूर्व जन्म की बातें याद थी। पहले वह जो कुछ कहता था वही होता था। अब भी प्रश्न पूछने पर वह सही बात बतलाता है। श्री सागरमल जी सवलावत आपके छोटे भाई है। कोहिमा में दिगम्बर जैन मन्दिर निर्माण में आपने पूरा सहयोग दिया। एक बार कोहिमा में आपने राजमोहनदास गांधी को अपने घर पर बुलाकर उनका हार्दिक स्वागत किया था। श्री सबलाक्त जी सरल स्वभावी, मिलनसार एवं व्यवसाय में ईमानदारी को अधिक स्थान देते हैं, आतिथ्य प्रेमी हैं। आप श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी जयपुर के उपाध्यक्ष हैं। पता : मनोज ऑटो मोबाइल्स, महात्मा गांधी एवेन्यू, इम्फाल (मणिपुर) । श्री चन्दनमल पहाड़िया श्री पहाड़िया जी का जन्म संवत् 1987 सावन सुदी पंचमी को हुआ था! आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त की। आपके पिताजी श्री चम्पालाल जी पहाड़िया का 80 वर्ष की आयु में सन् 1956 में स्वर्गवास हुआ। उस समय आप केवल 26 वर्ष के थे। उसके चार वर्ष पश्चात् आपकी माताजी श्रीमती भूरीबाई का 1960 में 60 वर्ष की आयु मे स्वर्गवास हो गया। इसके पूर्व आपका विवाह 16 वर्ष की आयु में संवत् 2003 में श्रीमती उमराव देवी के साथ सम्पन्न हो गया। आप गल्ला के थोक व्यापारी हैं। आपके चार पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। ज्येष्ठ पुत्र श्रीचन्द बी.कॉम. हैं। सन् 1974 में इन्द्रा के साथ उनका विवाह हुआ था । दूसरे पुत्र महेन्द्र कुमार भी बी.कॉम. है। आप 1981 में शोभा देवी के साथ विवाहित हुये हैं। तृतीय पुत्र राकेश कुमार भी बी. कॉम. हैं। विवाहित हैं। पत्नी का नाम सुनीता है। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /93 पुत्रियां 3 हैं। प्रथम पुत्री पुष्पा का निधन हो चुका है। सरोज बी. ए. है तथा उनका विवाह भी हो चुका है। तृतीय पुत्री सुमन कुमारी अभी अविवाहित है। विशेष : श्री पहाड़िया जी इम्फाल के प्रतिष्ठित सज्जन हैं। धार्मिक रुचि रखते हैं। किशनगढ़ पंचकल्याणक में आप दोनों पति-पत्नी सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी के पद से सुशोभित होकर मन्दिर में मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त किया । नलबाडी पंचकल्याणक के अवसर पर भगवान पर पुष्प वर्षा की। सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं। धर्मपत्नी शुद्ध खान-पान का नियम है। आप दोनों ही मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। महासभा के तीर्थ क्षेत्र सुरक्षा फण्ड के ट्रस्टी हैं। एसोसियेटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स ट्रस्ट इम्फाल के ट्रस्टी मेम्बर हैं। जयपुर जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य रह चुके हैं। आपके बड़े भाई श्री मोहन लाल जी हैं। आयु 65 वर्ष। पत्नी मनभर देवी हैं। उनके एक पुत्र एवं पांच पुत्रियां हैं। पुत्र सुशील कुमार बी.कॉम. हैं। विवाहित हैं। पत्नी का नाम सरिता है। एक पुत्र एवं एक पुत्री है। पुत्रियां विमला, सुलोचना, जयकुमारी, रूपादेवी एवं किरण सभी विवाहित हैं। पति-पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। दोनों ही ब्रह्मचर्य व्रत धारी हैं। एक बार दोनों ने दशलक्षण व्रत के उपवास भी किये थे। सभी तीर्थों की वन्दना कर ली है। पता : मोहनलाल चन्दनमल जैन, चम्पा निवास, इम्फाल (मणिपुर) 1 श्री चांदमल गंगवाल जन्मतिथि : 60 वर्ष की आयु शिक्षा अष्टम कक्षा तक । माता-पिता स्व. श्री छोगालाल जी आपका स्वर्गवास 70 वर्ष की आयु में करीब 42 वर्ष पहले हुआ । : मातृश्री श्रीमती गुलाब देवी का स्वर्गवास 000 वर्ष की आयु में हुआ। व्यवसाय: होटल, बारदाना । विवाह : 45 वर्ष पूर्व श्रीमती पतासी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सन्तान : आपके दो पुत्रियां एवं एक दत्तक पुत्र हैं । पुत्रियां सुशीला एवं शकुन्तला दोनों विवाहित हैं। पुत्र (दत्तक) श्री अशोक कुमार 31 वर्षीय हैं। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा के दो पुत्रियां है। विशेष : हस्तेडा (राज.) में दि. जैन मन्दिर आपके पूर्वजों द्वारा निर्मित है। अपने धाम हस्तेडा में छोगालाल गुलाब देवी की स्मृति में एक हॉस्पिटल बनवाकर राज्य सरकार को संचालन के लिये दिया हुआ है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पतासी देवी दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। गंगवाल साहब जैन मन्दिर ग्राहम बाजार डिब्रूगढ़ के पिछले 13 वर्ष से अध्यक्ष हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं तथा सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं। श्री चांदमल जी लेखक के समधी हैं। पता : गंगवाल भवन, पी. एन. रोड, शान्ति पाडा, डिब्रूगढ़ (आसाम) Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री चैनरूप बाकलीवाल जन्म तिथि:9 अगस्त,सन् 1936 S शिक्षा : गौहाटी विश्वविद्यालय से सन् 1957 में बी.कॉम. । श्री चैनरूप बाकलीवाल स्त्र, श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल के चतुर्थ पुत्र हैं। स्व, बाकलीवाल जी दि. जैन महासभा के अध्यक्ष थे और अपने जमाने के समाज के राष्ट्रीय नेता माने जाते थे। बाकलीवाल जी की माता श्रीमती मलख देवी धर्म परायणा महिला रत्न थीं जिनका स्वर्गवास हुये 20 से भी अधिक वर्ष हो गये । बी.कॉम.करने के एक वर्ष पश्चात् वाकलीवाल जी का सन् 1958 में राय साहब चांदमल जी पाण्ड्या की सुपुत्री श्रीमती सुशीला देवी के साथ विवाह हुआ। राय साहब भी महासभा के बहुचर्चित अध्यक्ष रहे । इस तरह भाग्य से चैनरूप जी को समाज के बहुचर्चित नेता के रूप में ससुर एवं पिताश्री दोनों का ही शुभाशीवाद मिलता रहा। बाकलीवाल जी ने विवाह के पूर्व ही मोटर व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया था जिसमें उन्हें अच्छी सफलता प्राप्त हुई । वैसे तो आपके तीन बड़े भाई सर्व श्री नथमल जी, प्रसत्र कुमार जी एवं मन्नालाल जी हैं जिनका सभी का परिचय भी प्रस्तुत इतिहास में दिया है एवं तीन बहिनों का भाग्यशाली परिवार है । आप स्वयं को भी दो पुत्र एवं एक पुत्री का पिता बनने का सौभाग्य मिला है। आपके दोनों पुत्र संजय बाकलीवाल एवं अरुण बाकलीवाल उच्च शिक्षित युवक | हैं। संजय कुमार का जन्म 3 फरवरी 1962 को हुआ। उसने भी अपने पिताजी के पदचिन्हों पर चलते हुये बी.कॉम. तक अध्ययन किया तथा मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध व्यवसायी एवं समाज नेता श्री पारस कुमारजी गंगवाल की पुत्री प्रीति के साथ विवाह हुआ । अपने पिता एवं पितामह के समान संजय भी सेवाभादी युवक हैं तथा एक बालिका की जान बचाने के कारण आपको सुशीला देवी धर्मपत्नी चैनरूप वीरता का राष्ट्रीय पदक प्रदान किया जा चुका है। दूसरे पुत्र अरूण कुमार ने बीकॉम.एवं एमबीए किया और भाग्य से इसे भी महासभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री निर्मलकुमार सेठी की सुपत्री वधू के रूप में प्राप्त हुई है। आपकी एक पुत्री संगीता अभी अध्ययन कर रही है। विशेष : श्री चैनरूप जी का पूरा जीवन ही सामाजिक जीवन है । महासभा के वे कार्याध्यक्ष हैं। इसलिये देश की सम्पूर्ण समाज से मिलने का उनको अवसर मिलता रहता है। उनकी कार्यशैली भी सबको आश्चर्य में डालने वाली है । करो या मरो में विश्वास रखने वाले हैं तथा किसी भी समस्या पर शीघ्र ही निर्णय लेते हैं। समस्या को लटकाना उनकी आदत में सम्मिलित नहीं धार्मिक परिवारों से जुड़े होने के कारण आपका जीवन भी धार्मिक जीवन बनता जा रहा है । सोनागिरि सिद्ध क्षेत्र पर आपने नंग अनंग कुमार की प्रतिमा विराजमान की है । इसके अतिरक्त आपने शिखरजी के समवशरण में,शान्ति वीर नगर श्री महावीर जी में,हुम्मच पद्मावती तीर्थ में एवं डीमापुर के मन्दिर में अपनी ओर से एक-एक प्रतिमा विराजमान करने का पवित्र कार्य किया है। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /95 सामाजिक संस्थाओं की बहुत लम्बी सूची है जिनमें आपने किसी न किसी रूप में अपनी सेवायें दी हैं इनमें कुछ संस्थाओं के नाम निम्न प्रकार हैं : 1. . वर्तमान में भा. दि. जैन महासभा के कार्याध्यक्ष हैं इसके पूर्व आप उपाध्यक्ष थे । 2. पूर्वाञ्चल महासभा के प्रारम्भ से ही अध्यक्ष हैं। 3. शान्तिवीर सिद्धान्त संरक्षणी सभा के उपाध्यक्ष एवं शान्तिवीर संस्था के उपाध्यक्ष हैं। 4. लूणवा (राज) तीर्थ क्षेत्र कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। 5. हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप की कार्यकारिणी सदस्य, स्वाद्वाद शिक्षण परिषद् के पहले महामन्त्री एवं वर्तमान में उपाध्यक्ष है । 6. भगवान बाहुबली सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक कमेटी के सदस्य रहे तथा पांच स्वर्णकलश लेकर भगवान बाहुबलि का अभिषेक करने का सौभाग्य प्राप्त किया । 7. भगवान महावीर 25()() वां परिनिर्वाण समारोह समिति, धर्मचक्र, जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति के पूर्वाञ्चल के अध्यक्ष रहे। 8. पिछले 20 वर्षों में आयोजित होने वाले पंचकल्याणकों में किसी न किसी रूप से सक्रिय योगदान दिया है और दे रहे हैं । I 9. सोनागिर पंचकल्याणक के अवसर पर जैन युवा रत्न की उपाधि से अलंकृत हुये थे । 10. विदेश यात्रा में रुचि/ अब तक सन् 1970 में जापान की तथा सन् 1985 में यूरोप की यात्रा कर चुके हैं। 11. लायन्स क्लब डीमापुर के सन् 1968 में सदस्य बनने के पश्चात् आपको उत्तम निःस्वार्थ सेवाओं के आधार पर अनेक उपाधियों से अलंकृत किया जाता रहा है। 12. मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के 100 वर्ष तक महामन्त्री भी रहे। डीमापुर कांग्रेस (आई) के सक्रिय सदस्य हैं। पी. एण्ड टी. सलाहकार समिति में नागालैण्ड शासन की ओर से सदस्य हैं। 13. बाकलीवाल जी श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी जयपुर के संरक्षक एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान के परम संरक्षक विशेषतायें : कट्टर मुनि भक्त हैं। आर्ष मार्गी हैं। ओजस्वी वक्ता, कुशल मंच संचालक, मधुर भाषी एवं समाज सेवा में समर्पित युवा उद्योगपति हैं। पता: बाकलीवाल मोटर्स, डीमापुर (नागालैण्ड) । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 / जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री जयचन्द लाल पाटनी जन्मतिथि :- आसोज सुदी 10 संवत् 1981 | आपका जन्म विजयादशमी के शुभ दिन हुआ । शिक्षा :- अजमेर बोर्ड से आपने मैट्रिक किया । • टी.वी. डिस्ट्रीब्यूटर्स एवं सप्लायर्स । व्यवसाय : माता-पिता- पिता श्री लालचन्द जी पाटनी, 84 वर्ष की आयु में 14 वर्ष पूर्व आपका स्वर्गवास हुआ था। माताजी श्रीमती मलखू देवी का स्वर्गवास भी उसी वर्ष हुआ। आपकी आयु 82 वर्ष की थी। विवाह: सन् 1947 में आपका विवाह श्रीमती पतासीदेवी के साथ संपन्न हुआ । सन्तान :- आपके चार पुत्र हैं। सभी उच्च शिक्षित हैं तथा विवाहित हैं। सबसे बड़े पुत्र महीपाल पाटनी सी. ए. हैं। 38 वर्षीय हैं। पत्नी कुसुमदेवी दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की माता है। दूसरे पुत्र सुरेश कुमार बी.कॉम है। सरोज देवी धर्मपत्नी है। तीन पुत्रियां एवं एक पुत्र के माता-पिता हैं। तीसरा पुत्र सुभाष 33 वर्षीय है। बो.कॉम. हैं। लक्ष्मीदेवी पत्नी है, दो पुत्र एवं एक पुत्र की जननी है। चतुर्थ पुत्र पवनकुमार भी बी.कॉम. है । 32 वर्ष के युवा हैं। पत्नी का नाम शोभना है। दो पर एवं एक पत्री है। : विशेष : पाटनी जी सामाजिक एवं धार्मिक स्वभाव के मिलनसार, आतिथ्य प्रेमी एवं सरल स्वभावी हैं। समय-समय पर धार्मिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं। नलबाड़ी एवं भावनगर (सौराष्ट्र) के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं। 13 वर्ष पूर्व तेजपुर में सिद्धचक्र मंडल विधान करवाकर अपार पुण्य अर्जन कर चुके हैं। आपके माता-पिता मुनियों को आहार एवं उनकी सेवा में लगे रहते थे। वर्तमान में आप दि. जैन समाज गौहाटी के उपाध्यक्ष, महावीर भवन ट्रस्ट गौहाटी के उपाध्यक्ष एवं दि. जैन विद्यालय के संयुक्त मंत्री हैं। लायन्स क्लब गौहाटी के संस्थापक सदस्य हैं। स्वयं पूरे यूरोप का 1991 में भ्रमण कर चुके हैं। आपके सुपुत्र सुरेश एवं सुभाष दक्षिण पूर्व एशिया का भ्रमण कर चुके हैं। सभी जैन तीर्थों की दो बार वंदना कर चुके हैं। पता - मैं. ईस्टर्न इलेक्ट्रोनिक एवं इक्विपमेन्ट, महावीर भवन, एटी. रोड़, गौहाटी (आसाम) श्री जयचन्द लाल पाटनी जैन पिता :- स्व. सूरजमल जी पाटनी, 80 वर्ष की आयु में 26 वर्ष पूर्व स्वर्गवास । . माता :- स्व. घेवरी बाई, 15 वर्ष पूर्व 68 वर्ष की आयु में स्वर्गवास । जन्मतिथि :- फाल्गुण सुदी 14 संवत् 1981 डिब्रूगढ़ (आसाम में) शिक्षा : सामान्य, आसामी, हिन्दी दोनों ही बोलचाल की भाषा हैं। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /97 विवाह संवत् 1987 माघ सुदी 7 डेह में पली :श्रीमती रतनी देवी डेह (राज) धार्मिक प्रवृत्ति । व्रत उपवास करने में पूर्ण रुचि,दो बार दशलक्षण व्रत के उपवास एवं एक बार अष्टालिका में आठ दिन के उपवास कर चुकी हैं। 20 वर्ष से शुद्ध खान-पान के नियम का पालन कर रही हैं । मुनियों को आहार देने में बहुत रुचि है। परिवार : पुव पांच 1. प्रकाशचन्द :बी.कॉम,46 वर्ष की आयु,विवाहित पत्नी श्रीमती किरणदेवी,एक पुत्र एवं चार पुत्रियां,श्री निर्मल कुमार जी सेठी के साढू हैं । दो पुत्रियों की शादी हो चुकी है। 2. शान्तिकुमार :बी.कॉम.,39 वर्ष की आयु,पली सुशीला देवी, सुपुत्री नेमीचन्द जी U बड़जात्या (नागौर), कलकत्ता,दो पुत्र एक पुत्री । दोनों भाई नाहर कटिया में व्यवसायरत हैं। रतनी देवी धर्मपत्नी वयचन्द लाल पाटनी 3. महावीर प्रसाद : बी.कॉम., 33 वर्ष, पत्नी संतोष देवी, दो पुत्र। संतोषदेवी ने दशलक्षण व्रत किये थे। 4. अशोक कुमार : वी.कॉम., 30 वर्ष पत्नी-प्रेमदेवी,दो पुत्र दोनों भाई गौहाटी में व्यवसायरत हैं। 5. बिमलकुमार : बी.कॉम., 28 वर्ष पत्नी संगीता-विमल कुमार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। धार्मिक : दोनों पति-पत्नी ने ब्रह्मचर्य व्रत ले रखा है। दोनों का ही पूर्णत: धार्मिक जीवन है । पाटनी जी प्रभावशील व्यक्ति हैं, लोकप्रिय हैं तथा त्यागी एवं सत्यशील हैं । सामाजिक तिनसुकिया दि. जैन पंचायत के 37 वर्ष से मन्त्री हैं। यहां सम्पत्र वेदी प्रतिष्ठा समारोह के महामंत्री रह चुके हैं । नेशनल चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष,हिन्दी,इंगलिश हाईस्कूल सोसायटी के उपसभापति रह चुके हैं । मारवाड़ी पंचायती धर्मशाला के वर्तमान में प्रधानमंत्री,तिनसुकिया एजयूकेशन ट्रस्ट के ट्रस्टी है । हिन्दी एस हाईस्कूल के उपसभापति,न्यू हाई स्कूल एवं न्यू प्राइमरी स्कूल की मैनेजिंग कमेटी के उपसभापति, भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन, तिनसुकिया शाखा के उपसभापति, भा. दि.जैन महासभा पूर्वान्चल शाखा के उपसभापति एवं केन्द्रीय समिति की कार्यकारिणी के सदस्य,तिनसुकिया श्मशान भूमि समिति के कोषाध्यक्ष, भैरूबक्स मूलचन्द छाबड़ा चेरीटेबिल मुढ़कुवाखाना (आसाम) के ट्रस्टी हैं। श्री अनाथ गोरक्षा समिति, डेह (राज) की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमती जी के संघ का तिनसुकिया में चातुर्मास के समय महामंत्री के रूप में कार्य किया तथा इनके अतिरिक्त तिनसुकिया की अन्य सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं । तिनसुकिया समाज के प्रमुख समाजसेवी,आसाम प्रदेश के अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति हैं । सेवाभावी जीवन जीने वाले हैं। पता : जयचन्द लाल जैन एण्ड कम्पनी,एटी रोड़,तिनसुकिया (आसाम) Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री तनसुखराय सेठी जन्मतिथि: भादवा सुदी 6 संवत् 1980 शिक्षा : सामान्य शिक्षा पिताजी : श्री हरदेवलाल जी सेठी, सन् 1928 में आपको पांच वर्ष का छोड़कर स्वर्गलोक सिधार गये । माताजी श्रीमती चन्द्रावती देवी का निधन सन् 1980, आयु 72 वर्ष विवाह : 19 वें वर्ष में श्री बोदूलाल जी पाटोदी की पुत्री श्रीमती उमरावदेवी के साथ संपन्न हुआ । व्यवसाय : गल्ला एवं कपड़ा श्री त्रिलोकचन्द पाटनी संतान पुत्र एक श्री विजयकुमार सेठी, शिक्षा बी.ए. तक तथा आयु 32 वर्ष - विवाहित । पत्नी श्रीमती सरिता देवी। आपके सात पुत्रियां हैं- तारामणि किरणबाला, संतोष, राजकुमारी, सुमित्रा, सरोज एवं मीना। सभी विवाहित हैं। श्रीमती किरणबाला महिला जागृति संघ जयपुर की वरिष्ठ सदस्य रह चुकी हैं। तारामणि के पति श्री वेवरचन्द जी विजयनगर पूर्वाञ्चल के महासभा के मन्त्री हैं। देवी तनसुखय सेठी विशेष : श्री सेठी जी बहुत ही सरल, सौम्य एवं मधुर स्वभाव के हैं। विगत 25 वर्षों से दि. जैन समाज इम्फाल के मन्त्री हैं। पूर्वाञ्चल प्रदेश महासभा के उपाध्यक्ष हैं। मुनियों को आहार में रुचि लेते हैं। अपने गांव बेरी में जब वेदी प्रतिष्ठा हुई थी तब दोनों को सोधर्म इन्द्र-इन्द्राणी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पता : मैसर्स मोतीलाल घीसालाल, पावना बाजार, इम्फाल (मणिपुर) जन्मतिथि: भादवा सुदी 7, संवत् 1985 शिक्षा : प्राइमरी कक्षा तक अध्ययन माता-पिता : पिताजी श्री फूलचन्द जी पाटनी थे जिनका सन् 1958 में ही मात्र 51 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया । माताजी श्रीमती नारायणी देवी का 75 वर्ष की आयु में सन् 1980 में स्वर्गवास हुआ था । विवाह : संवत् 2009 में श्रीमती इचरज देवी से पांचवा (राजस्थान) में हुआ। संतान : एक मात्र पुत्र प्रकाशचन्द पाटनी, कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी. कॉम. किया है। आयु 40 वर्ष । धर्मपत्नी श्रीमती शशि जैन, आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। पुत्री - 2 त्रिमला एवं सरोज दोनों का विवाह हो चुका है। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /99 विशेष : आपका मूल पाम रामपुरा बेरी है जहां से आपके पिताजी 1928 में इम्फाल आये और यहीं के हो गये। पाटनीजी का व्यक्तित्व बड़ा विशाल है तथा विविध गतिविधियों से सम्पन्न है। उनमें से आपके जीवन में कुछ महत्वपूर्ण घटनायें निम्न प्रकार है : धार्मिक : आपकी धर्मपत्नी के पिताजी अर्थात् आपके श्वसुर ने पांचवा में पंचकल्याणक महोत्सव सम्पत्र कराया। सामाजिक सेवा : I. एसोसियेट मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के 9 वर्ष तक मन्त्री रहे और फिर वाइस प्रेसीडेन्ट रहे । 2. श्री दि.जैन महावीर हाईस्कूल के दो वर्ष तक प्रेसीडेन्ट रहे । आपने ही उसे मिडिल कक्षा से हाईस्कूल बनाकर उसे सरकार से मान्यता दिलाई। ३. आपने लड़कियों को कॉलेज शिक्षा की ओर प्रवृत्त किया । इसके पूर्व लड़कियों को ऊंची कक्षाओं में नहीं पढ़ाया करते थे। ततमान में आप5 वर्षों से जैन समाज पंचायत इम्फाल के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। 5. सामाजिक कुरीतियों ने सरक कुरीति कोज की यःमले में अपना ग योगदान दिया। 6. आपने अनेक समाज सुधारों को लागू कराया। व्यर्थ के खर्च एवं प्रदर्शन को समाज में बंद कराया गया। 7. आपने एन जी कॉलेज की स्थापना करने में पूरा सहयोग दिया तथा आप दो वर्ष तक राज्य की ओर से कॉलेज संचालन कमेटी के सदस्य मनोनीत किये गये। 8. ऑल इण्डिया डाक कमेटी मणिपुर के वाइस प्रेसीडेन्ट रहे । ५. गत पांच वर्षों से आप संगीत कलामंदिर कॉलेज के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। 10. फेमेली प्लानिंग कमेटी के सदस्य हैं। II. मानव समाज विकास सोसायटी के प्रेसीडेन्ट है। 12. जनहित के लिये निर्माणाधीन मारवाड़ी आरोग्य भवन के प्रेसीडेन्ट हैं। 13. आप इण्डिया नशाबन्दी समिति मणिपुर के वाइस प्रेसीडेन्ट विगत 4 वर्ष से हैं । 14. नारी समाज सुधार समिति मणिपुर के संस्थापक एवं नारी के लिये वालिटियर कोर के संस्थापक बनकर उसे प्रोत्साहित किया। 15. एक वर्ष तक हिमाचल मेला संघ मणिपुर के वाइस प्रेसीडेन्ट रहे | 16. नोर्थ वेस्ट डीलर एसोसियेशन-इम्फाल के पांच वर्ष से प्रेसीडेन्ट रहे। 17. सीमेन्ट डीलर्स एसोसियेशन के प्रेसीडेन्ट रहे। 18, पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी महिला कल्याण समिति के ट्रस्टी हैं। 19, अपनी आँखें हॉस्पिटल को प्रदान कर चुके हैं। 20. भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव में प्रचार मन्त्री, जैन चेयर स्कना के लिये प्रयत्नशील,शाकाहार के प्रबल प्रचारक है। 21. मणिपुर कृषि कॉलेज के वाइस प्रेसीडेन्ट रहे जिसे बाद में राज्य सरकार ने अन्यत्र स्थानान्तरित कर दिया। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100/ जैन समाज का वृहद इतिहास इस प्रकार श्री पाटनी का जीवन सामाजिक सेवाओं से ओत-प्रोत है। इससे आपकी कार्यशैली का पता चलता है। मणिपुर स्टेट में ऐसा कोई कार्य नहीं होता जिसमें आपका किसी न किसी रूप में सहयोग नहीं मिलता है। श्री दानमल सौगानी जन्म : संवत् 1981, स्थान-सुजानगढ़। शिक्षा : सामान्य - मिडिल कक्षा तक । माता-पिता : स्व.श्री नारायण मल जी सौगानी आपका 18 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ। माताजी श्रीमती हरकीदेवी का करीब 45 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया था। उस समय आप केवल 22 वर्ष के थे। व्यवसाय : पेट्रोलियम, प्रोडक्शन (पैट्रोल, डीजल, मोबिल ऑयल) आदि के थोक विक्रेता। विचार : संवत् 1080 अक विपकमरा देवी के साथ सम्पत्र हुआ। आप दोनों को पांच पुत्र एवं चार पुत्रियों के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है। लेकिन प्रथम पुत्री श्रीमती तारादेवी का स्वर्गवास हो चुका है। शेष तीनों हीरादेवी, मैनादेवी, मंजूदेवी का विवाह हो चुका है। 1. सबसे बड़े पुत्र सम्पतलाल 44 वर्षीय हैं । उनकी मैनादेवी धर्मपत्नी है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । 2. द्वितीय पुत्र श्रीपाल सोगानी 8 वर्षीय हैं । श्रीमती मंजूदेवी उनकी धर्मपली हैं आपके एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। 3. तृतीय पुत्र श्री लक्ष्मीनारायण 36 वर्षीय युवा है । श्रीमती ऊषादेवी उनकी धर्मपत्नी हैं | उनको दो पुत्र एवं एक पुत्री प्राप्त है । आपके चतुर्थ पुत्र प्रसत्रकुमार 23 वर्षीय युवा है,श्रीमती अलकादेवी धर्मपत्नी हैं। आपके एक पुत्र है । पंचम पुत्र मनोजकुमार 20 वर्ष के हैं तथा बी कॉम.में पढ़ रहे हैं। विशेष : सौगानी जी सन् 1943 में गौहाटी आये । यहां आने के पश्चात् उन्होंने 30 वर्ष तक सर्विस की उसके पश्चात् अपना कारोबार किया जो 18 वर्ष से चल रहा है | श्री सौगानी जी धार्मिक एवं सामाजिक व्यक्ति हैं। आप सुजानगढ़ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र के पद को सुशोभित कर चुके हैं। नशियां सुजानगढ़ में समवशरण वेदी आपके द्वारा बनवाई हुई है तथा चन्द्रप्रभु स्वामी की चारों प्रतिमायें एवं चौबीसी में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा भी आपके द्वारा विराजमान की हुई है। आपने देश की दो बार तीर्थ वंदना सपरिवार की है। आचार्य धर्मसागर जी महाराज से आपने शुद्ध खान-पान का नियम लिया था । कट्टर मुनिभक्त हैं तथा आहार आदि देते रहते हैं । सात बार दशलक्षण खत के उपवास कर चुके हैं | आपकी पत्नी धर्मपरायणा तथा मुनिभक्त हैं उनको भी शुद्ध खान-पान का नियम है,सभी धार्मिक कार्यों में साथ रहती हैं। दि.जैन महासभा के आजीवन सदस्य हैं । महासभा के ध्रुव फंण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं । सम्यकज्ञान एवं वीतराग वाणी के आजीवन सदस्य है। आपका पैट्रोल पम्प गौहाटी से 30 कि.मी. बाईरूट चारली एनएच-37 पर है | पता : दानमल सौगानी एण्ड सन्स,फैन्सी बाजार,गौहाटी (आसाम) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धनराज बगड़ा ( कासलीवाल) श्री धनराज बगड़ा, विजयनगर (आसाम) के प्रतिष्ठित श्रेष्ठी हैं। आपका जन्म संवत् 1964 में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री जैतरूपजी एवं माता सुगनीबाई थी । प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय में लग गये। वैसे आप मूलतः कसुम्ली ग्राम के निवासी थे जो नागौर जिले में स्थित है। वहां से लाडनूं आये और लाडनूं से फिर पलासबाडी चले गये। सन् 1958 में जब पलामवाडी ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ में बह गया तो विजयनगर बसाकर वहीं रहते रहने लगे। विजयनगर को बसाने के लिये जो समिति बनी थी उस कमेटी के आप अध्यक्ष थे | इस प्रकार कहा जा सकता है कि विजयनगर को बसाने वालों में आपका प्रमुख योगदान रहा। स्व. नारायणी देवी धर्मपत्नी धनराज बगड़ा श्री धर्मचन्द पाटनी पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /101 आपका विवाह श्रीमती नारायणी देवी के साथ हुआ। जिनका कुछ समय पहले स्वर्गवास हो चुका है। आपको 6 पुत्र एवं पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। पुत्रों के नाम सर्व श्री त्रिलोकचंद बगड़ा, श्रीपाल, शान्तिलाल, घेवरचंद, प्रकाशचन्द एवं उत्तमचन्द बगड़ा हैं। आपकी एक मात्र पुत्री का नाम कंचन है । आप वर्षो से विजयनगर जैन समाज के प्रमुख हैं तथा समाज की प्रत्येक गतिविधि में आगे रहते हैं। सन् 1976 एवं 1978 में विजयनगर में होने वाले पंचकल्याणक समिति के आप अध्यक्ष थे। आपकी ओर से विजयनगर के मंदिर में दो प्रतिमायें विराजमान की गईं। पता : विजयनगर (आसाम) जन्मतिथि: 1 अप्रैल, 1936 शिक्षा: सन् 1957 में मणिपुर कॉलेज से बी.कॉम. पास किया । पिता : स्व. श्री जौहरीमल जी पाटनी, आपका मात्र 55 वर्ष की आयु में 1967 स्वर्गवास हो गया । माता : श्रीमती भंवरी देवी पाटनी, आयु 75 वर्ष । विवाह : वर्ष 1953 में श्रीमती शर्बती देवी के साथ सम्पन्न हुआ । सन्तान पुत्र 3 1. प्रभात कुमार - आयु 30 वर्ष, विवाहित, पत्नी मंजू देवी, पुत्र-1, पुत्री - 1 2. सुनील कुमार आयु 28 वर्ष, विवाहित, पत्नी नीता । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1021 जैन समाज का बृहद् इतिहास 3. आलोक कुमार - आयु 20 वर्ष अध्ययनरत । पुत्री -1, चित्रा-श्रीहरकचंद जी पाण्ड्या के सुपुत्र विमलकुमार जी से विवाहित । विशेष : राष्ट्रपति द्वारा 24 मार्च 1984 को “पद्म श्री" की मानद उपाधि से सम्मानित । आप जैन समाज के सम्भवतः प्रथम व्यक्ति हैं जिनको भारत सरकार ने पद्मश्री की उपाधि से विभषित किया है। आपकी सामाजिक सेवाओं के उपलक्ष में "समाज रल" की उपाधि से विभूपित किया गया। मणिपुर के व्यावसायिक समुदाय की ओर से, जनवरी 1991 में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और संसद में विरोधी दल के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणो जी ने स्वर्ण पदक स्व. कस्तूरी चन्द गटनी प्रदान कर सम्मानित किया। चैम्बर ऑफ कॉमर्स मेडिकल सेन्टर आपके ही प्रयासों का परिणाम है । ऐसा मेडिकल सेन्टर पूरे उत्तर-पूर्वी भारत में नहीं है। इस अस्पताल में आधुनिक यन्त्र लगाये गये हैं। धार्मिक : वेरी के मन्दिर में मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । आपकी माता जी के शुद्ध भोजन करने का नियम है । वे मुनियों को आहार आदि देती रहती हैं । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के उपाध्यक्ष,स्ट फण्ड के सदस्य हैं । सापाजिक : ऐसोसियेट मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पिछले 15 वर्षों से आप सर्वसम्मति से अध्यक्ष हैं। ऐसोसियेटेष्ठ मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स मेडिकल केयर एण्ड रिसर्च सेन्टर के भी आप इसकी स्थापना से ही अध्यक्ष हैं. पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाडी सम्मेलन के भी अध्यक्ष हैं । डिबूगढ़ सम्मेलन में आपको सम्मानित किया गया था। लायन्स क्लब 322, डी जैन के डिप्टी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर । पाटनी जी पूर्वान्चल प्रदेश के युवा समाज सेवी एवं अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति हैं । पणिपुर प्रदेश की अनेक संस्थाओं के आप सक्रिय कार्यकर्ता एवं नेता हैं 1 भारत सरकार ने आपको Direct Taxes Advistry Committee for North East Region Public Gricvance Cell of Customs and Central Excise for Nyrth East Region का सदस्य मनोनीत किया है। मणिपुर के सबसे अधिक लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध व्यक्ति एवं कस्तूरी चन्द जी पाटनी के पौत्र हैं जिन्हें इम्फाल (मणिपुर) में आये 10 वर्ष से भी अधिक समय हो गया। सबसे पहले श्री कालूराम जी पाटनी पिताश्री कस्तूरीचन्द जी ने बेरी,पिलानी से यहां आकर अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया था । ___ पता : कस्तूरीचन्द जौहरीमल,थांगल बाजार, इम्फाल (मणिपुर) श्री पन्नालाल सेठी आपका जन्म 3 अक्टूबर, 1948 में झुंझुनू (राजस्थान)जिले में स्थित छापड़ा ग्राम में हुआ था । आप स्व.श्री कन्हैयालाल जी सेठी के ज्येष्ठ पुत्र है । शिशुकाल में ही आपके धार्मिक संस्कार प्रवल बन गये थे ! जब कभी माता-पिता के साथ मुनियों के दर्शन करने जाते तो उनके चरणों में लिपट जाते । जब आप केवल 17 वर्ष के थे तभी आपका विवाह श्रीमती सरिता के साथ हो गया। सरिता भी धर्मसरिता के रूप में प्राप्त हुई । आप दोनों को तीन पुत्र संजय, राजेश एवं रवि और एक पुत्री ललिता के Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /103 माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिताजी की मृत्यु के पश्चात् आपने साधुओं की भक्ति में अपने आपको समर्पित कर दिया। आप श्री दिग. जैन महासभा के बैय्यावृत्त विभाग के मन्त्री हैं । एक बार सुपार्श्व सागर जी महाराज, चार नार आर्यिका स्पार्श्वमनी जी माताजी तीन बार आर्यिका ज्ञानमती माताजी और आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज के सन् 1978 से अब तक के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में गत 13 वर्षों से आप साधर्मी भाई-बहिनों को प्रीति भोज देते आ रहे हैं। आचार्य श्री का आपको पूर्ण आर्शीवाद है। आपने डीमापुर में गृह चैत्यालय का निर्माण कराया और उसमें चन्द्रप्रभु तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान की डीमापुर में ही जैन भवन, जैन स्कूल एवं जैन हॉस्पिटल में एक-एक कक्ष बनवाया। राजगृह में सरस्वती भवन के नीचे का हाल बनवाया । शिखर जी के समवशरण में वेदी का निर्माण कराया। सोनागिरी में अनंग कुमार मुनिराज की मूर्ति विराजमान की । दुर्गा मंदिर डीमापुर में हॉल का निर्माण कराया । पद्मपुरा क्षेत्र (जयपुर) पर एक फ्लैट, लूणवा की दोनों वेदियों में कांच के किवाड़, कोथली में एक कमरा, भागलपुर में मन्दिर में एक हाल, पावापुरी में एक कमरा, टिकैत नगर के जैन स्कूल में एक कमरा, छपड़ा गांव के एक स्कूल में एक कमरा, सागर विद्यालय में एक कमरा तथा महामस्तकाभिषेक के समय प्रथम बोली लेकर पुष्पवृष्टि करने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपने अपने सभी भाईयों को उच्च शिक्षा प्राप्त कराकर अनेक महत्वपूर्ण पदों पर प्रतिष्ठित किया। इनमें दो अधिवक्ता, एक सर्जन, एक सामाजिक कार्यकर्ता तथा एक व्यवसायी है। श्री चांदमल सेठी स्व. कन्हैयालाल सेठी के द्वितीय पुत्र चांदमल जी सेठी का जन्म डीमापुर (नागालैण्ड) में दि. 20.11.1950 में हुआ। आपने सन् 1971 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और दि. 25.02.1972 में शशिप्रभा के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । आपको दो पुत्र कमलेश, पंकज तथा दो पुत्रियां चन्द्रप्रभा और नमिता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप भी समाज सेवा में गहरी रुचि रखते हैं। आप चुनाव जीतकर तीन वर्ष तक डीमापुर टाऊन कमेटी के चेयरमैन रहे हैं। आप चैम्बर ऑफ कॉमर्स डीमापुर के कार्यकारी सदस्य हैं तथा वर्तमान में जैन हाईस्कूल के मन्त्री हैं। श्री सोहनलाल सेठी आपका जन्म मंगसिर सुदी 5, सं. 2009 में डीमापुर (नागालैण्ड) में हुआ। आप आ. श्री विमलसागर जी महाराज एवं श्री 108 आ. विद्यासागर जी महाराज के अनन्य भक्त हैं। सन् 1974 में बी. कॉम. ( आनर्स), 1976 में एम. कॉम. 1977 में एल.एल.बी. और प्राकृतिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त कर आपने समाज सेवा में उतरने का संकल्प किया। आपने ज्येष्ठ भ्राता श्री पन्नालाल जी से मिलता-जुलता स्वभाव, मिलनसार एवं आतिथ्य प्रियता प्राप्त की । सोहनलाल जी का विवाह 20 फरवरी 1977 में लालगोला निवासी श्री चिरंजीलाल छाबड़ा की पुत्री प्रेमलता देवी के साथ हुआ। तीन पुत्र हेमन्त जयन्त एवं विकास और पुत्री अनामिका के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । व्यवसाय में आयकर और बिक्री कर के अधिवक्ता हैं। सेठी प्रिन्टर्स को भी संभालते हैं। आपकी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के करने की तीव्र उत्कण्ठा रहा करती हैं। अ.भा. स्याद्वाद शिक्षण परिषद् पार्श्वमंडल डीमापुर के मन्त्री, अ.भा. दयानंद विद्या निकेतन के भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम डीमापुर के मन्त्री, सोनागिर के मन्त्री, कार्यकारी सदस्य, नागालैण्ड कांग्रेस यूथ (आई) के कोषाध्यक्ष हैं। डीमापुर दिग. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जैन मंदिर से जो भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चोरी चली गई थी उसे ढाका से वापस लाने में प्रशंसनीय कार्य किया । प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करते हैं। आपने रात्रि भोजन का त्याग किया हुआ है। अच्छा स्वाध्याय करते हैं। एक बार दशलक्षण व्रत कर चुके हैं 1 श्री भागचन्द सेठी आपका जन्म 11 मई, 1955 में हुआ था। उच्च शिक्षित युवक हैं। सन् 1979 में एम.कॉम. सन् 1981 में एल.एल.बी., गौहाटी विश्वविद्यालय से कर चुके हैं। जनवरी 16, सन् 1979 को आपका विवाह हेमलता से सम्पन्न हुआ तथा दोनों पति-पत्नी को रोशन, सौरभ एवं नितिन तीनों पुत्रों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । सिविल एवं क्रिमीनल केसों के अधिवक्ता है। रात्रि में भोजन का पूर्ण त्याग हैं। आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज के अनन्य भक्त हैं । लेखन के प्रति रुचि रखते हैं। तीर्थों की बन्दना करते रहते हैं। एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। श्री विमलकुमार सेठी आप स्व. सेठी जी के पांचवें पुत्र हैं। भाद्रपद सुदी 7, संवत् 2013 में आपका जन्म हुआ था। आपने बी.कॉम. एवं कम्पनी सेक्रेट्री की शिक्षा प्राप्त की। सन् 1939 में आपका विवाह श्रीमती रेणु देवी के साथ सम्पन्न हुआ। दो पुत्र और दो पुत्रियों के पिता हैं। आप स्टोन क्रशिंग इण्डस्ट्री का कार्य देखते हैं। मारवाड़ी युवा मंच के अध्यक्ष हैं। णमोकार मंत्र पर आपकी दृढ़ श्रद्धा है। आप इस मंत्र के चमत्कार की कितनी ही घटनायें सुनाते रहते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से एक बार आपने सर्प को पकड़कर भी फेंक दिया था। रात्रि में भोजन का पूर्ण त्याग है। आप एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। डॉ. विजय कुमार सेठी आपका जन्म सन् 1959 में डीमापुर (नागालैण्ड) में हुआ था। आप बंगलौर स्थित सेन्ट जोन्स मेडीकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. तथा असम मेडिकल कॉलेज डिब्रूगढ़ से एम.एस. (सर्जरी) परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् नागालैण्ड सरकार की सेवा में आ गये। वर्तमान में श्री विशुद्धानन्द हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर कलकत्ता में कार्यरत हैं। आप भी प्रतिदिन अभिषेक एवं जिनेन्द्र पूजन करते हैं। आप भी आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज के अनन्य शिष्य हैं। आपका विवाह गजकुमार जी खजान्ची जयपुर/ कलकत्ता की सुपुत्री सरिता के साथ सन् 1983 में सम्पन्न हुआ । आपके एक पुत्र और एक पुत्री हैं। दम्पत्ति के शुद्ध खान-पान का नियम है । इस प्रकार पूरा सेठी परिवार धार्मिक, समाज सेवा में समर्पित एवं व्यवसाय कुशल है 1 पूरा परिवार ज्येष्ठ भ्राता पन्नालाल जी के निर्देशन में चलता है। अभी एक वर्ष पूर्व पत्रालाल जी के बड़े पुत्र संजय की डाकुओं द्वारा हत्या कर दी गई जिसके लिये डीमापुर नगर एवं समाज में हार्दिक शोक प्रकट किया गया । पता : के.एल.सेठी एण्ड सन्स, जी.एस. रोड़, डीमापुर (नागालैण्ड) Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /105 श्री प्रसन्न कुमार बाकलीवाल जन्मतिथि : 26 दिसम्बर,19340 शिक्षा : 1949 में पिलानी से मैट्रिक पास किया। माता-पिता : 1. श्रीमान स्व. भवरीलाल जी बाकलीवाल 2. माता स्व.मलकू देवी बाकलीवाल व्यवसाय : पेट्रोलियम एवं ट्रासपोर्ट विवाह : 3 जुलाई, 1949 पत्नी का नाम : श्रीमती इन्द्रमणि जी वाकलीवाल सन्तान : पुत्र-2 ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रद्युम्न कुमार बी कॉम हैं । श्रीमती सरिता आपकी धर्मपली है। एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों से सुशोभित है । दूसरे पुत्र श्री जवाहर लाल हैं । बी कॉम हैं । श्रीमती कविता आपकी धर्मपत्नी हैं। आपके एक पुत्र है तथा एक पुत्री हैं। विशेष : श्री बाकलीवाल जी को समाज सेवा पैतृक रूप से मिली है। आपके पिताजी स्व.भंवरीलाल जी बाकलीवाल अपने युग के समाज प्रमुख थे । महासभा के अध्यक्ष रहे थे । श्री चैनरूप जी बाकलीवाल आपके छोटे भाई एवं श्री मन्नालाल जी बाकलीवाल आपके छोटे भाई हैं। आपके घर में चैत्यालय है और उसी में आपने पद्मावती एवं चक्रेश्वरी देवी की मूर्तियां विराजमान कर रखी हैं । सकल दि.जैन समाज इम्फाल के सक्रिय एवं जागरूक समाजसेवी रहे हैं । जैन विकास मण्डल इम्फाल के संस्थापक हैं । आपका साम्गजिक सुधारों में पूर्ण विश्वास है ! सादा रहन-सहन एवं उच्च विचार के आदर्श पर चलने वाले हैं। दि.जैन महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों को आहार देती रहती हैं। पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी सम्मेलन के आप उपाध्यक्ष रहे हैं। अच्छे लेखक एवं विचारक हैं। आपके लेख जैन पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं। व्यवहार कुशल, मिलनसार एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। पत्ता !: 1. भंवरीलाल बाकलीवाल एण्ड सन्स, सिल्चर, इम्फाल (मणिपुर) 2. 2.सी 157, जनपथ, श्यामनगर जयपुर (राज). Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री पूनमचन्द सेठी जन्मतिथि : 1 नवम्बर, 1929 शिक्षा : सन् 1950 में जोधपुर विश्वविद्यालय से बी.कॉम. किया। व्यवसाय : इरीगेशन वाटर सप्लाई प्रोजेक्टस, सप्लायर्स । माता-पिता : स्व.श्री केशरीचन्द जी सेठी । सन.1971 में 80 वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हुआ। माता श्रीमती धापी देवी जी,85 वर्ष की आयु । विवाह:सन 1947 में श्रीमती मैनादेवी के साथ आपका विवाह हुआ था। परिवार : पुत्र. 3 1. अनिलकुमार - आयु 33 वर्ष, पली मीना देवी,आपके एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं । सन् 1983 में आप दक्षिण एशियाई देशों,थाईलैण्ड (बैंकाक) एवं हांगकांग की यात्रा कर चुके हैं। 2. सुभाष चन्द - आयु 30 वर्ष,बी.कॉम. .पली - सुमन देवी, एक पुत्र है। 3. सुशीलकुमार - आयु 28 वर्ष,बी.कॉम.पनी - संध्या रानी एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत हैं। पुत्री -1 : ग़जुल देवी - विवाहित विशेष: सेठी जी परम धार्मिक व्यक्ति हैं । सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं । राजगृही पंचकल्याणक में आप पल्लो के साश्य इन्द्र-इन्द्राणी के पद से सुशोभित हुए थे। सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं । भगदान बाहुबली सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक 1981 में आपने आरक्षी के पास वाला स्थान ग्रहण किया था। साधु भक्ति में आपका पूर्ण विश्वास है । आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी आपकी धर्मपत्नी के परिवार में से है। वह भी मैन्सर ही हैं। हाल ही में आपको दिगम्बर जैन महासमिति का संयुक्त महामन्त्री मनोनीत किया गया है। पता : 1. सुभाष प्रोजेक्ट्स एण्ड मार्केटिंग लि., जेल रोड़, फैन्सी बाजार,गौहाटी (आसाम) 2. एफ • 27/2, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया,फेज-II, न्यू देहली 3. एम - 231, ग्रेटर कैलाश पार्ट-1, न्यू देहली। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज:107 श्री बालचन्द्र सेठी श्री सेठी जी का जन्म संवत् 1967 मंगसिर बुदी 2 के दिन हुआ। आपके पिता श्री बालचन्द जी को छत्रछाया संवत् 1982 में तथा माता श्रीमती जेठीबाई का संवत् 1092 में जब वे (4 वर्ष की थीं तभी स्वर्गवास हो गया। आपकी शिक्षा पं.पन्नालाल जी काव्यतीर्थ के पास हुई । सन् 1987 में डेह (राज) की निवासी श्री धान जी पाण्ड्या की पुत्री श्रीमती नेमादेवी के साथ हुआ। आपके तीन पुत्र हुये । लेकिन ज्येष्ठ पुत्र निहालचन्द 18 वर्ष की आयु में इंदिरा गांधी के जलस में कवल कर मर गये। दुसरे पुत्र पदमचन्द 40 वर्ष के हैं। उनका विवाह डिब्रूगढ़ में श्रीमती प्रेमलता देवी से सम्पत्र । हुआ। जिनके दो पुत्र संजय एवं अभिषेक एवं एक पुत्री वन्दना है। तीनों ही बच्चे पढ़ रहे हैं। श्री सेठी जी के सात पुत्रियां हैं जिनके नाम मणि टेवो.चंचलटेवी पानादेवी,गिनिया देवी,सरोजदेवी,संतोष देवी एवं प्रेमबाई हैं। सभी पुत्रियां विवाहित हैं। धार्मिक जीवन : श्री सेठी का जीवन पूर्णतः धार्मिक रहा है। पति। पली दोनों के शुद्ध जल-पान का नियम था । आपकी पत्नी A का करीब 17 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है । तिनसुक्रिया . वेदी प्रतिष्ठा में आप इन्द्र के पद को सुशोभित हुये थे । सन् 1981 में तीर्थों की वन्दना से अपने आपको पवित्र किया नेमा टेवा धर्मपत्नी श्री बालबन्द जी है। आप प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं तथा दोनों समय सामा पदग चन्दजी मेठी मैती यिक भी करते हैं । पहले आप मन्दिर में शास्त्र प्रवचन करते थे। शास्त्रों के अच्छे जाता है । सेठी परिवार के वर्तमान में सवसे वयोवृद्ध मम्मानिन व्यक्ति हैं। आर्यिका विद्यामती माताजी आपके परिवार की बहू थी । वर्तमान में आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी के संघ में हैं। सेठी जी शान्त एवं भद्र परिणामी हैं। पता : पदम जैन एण्ड कम्पनी,साइडिंग बाजार,तिनसुकिया (आसाम) श्री मदनलाल बाकलीवाल ___78 वर्षीय श्री बाकलीवाल जी का गौहाटी जैन समाज में उच्चस्थान है । आपके पिताजी श्री छोटूलाल जी बाकलीवाल का स्वर्गवास युवावस्था में हो गया । उस समय आप केवल एक वर्ष के शिशु थे । आपकी माताजी स्व.श्रीमती परती बाई जी बहुत ही धर्मपरायण महिला थीं । सामान्य शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् आप व्यवसाय में चले गये और गल्ला एवं मनिहारी का व्यवसाय करने लगे। जय आप केवल 15 वर्ष के थे तभी श्रीमती चम्पादेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । आपके दो पुत्र हुये । ज्येष्ठ पुत्र चिरंजीलाल 58 वर्ष के हैं | आपको धर्मपत्नी सरबती बाई हैं जिनके दो पुत्र हैं। ये परम्परागत व्यवसायरत हैं। हुये थे । सन् MAN पता Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108/ जैन समाज का वृहद् इतिहास छोटे पुत्र श्री भागचन्द 53 वर्षीय युवा हैं । आपकी धर्मपत्नी रजनी है। इन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया पिताजी डिबूगढ़ के उत्तर में जालभारी (जिला ढकोहखाना) में आये और फिर वहां से गौहाटी आकर व्यवसाय करने लगे। आपका जीवन पूर्णत : सामाजिक एवं धार्मिक रहा है। संवत् 2043 दिनांक 18 मार्च,1986 को सम्पत्र नलबाडी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप दोनों ने माता-पिता बनकर पुण्य लाभ लिया था । आपने ही (फर्म चिरंजीलाल चैनसुख) संवत् 2093 में गौहाटी के जैन मन्दिर के ऊपर शिखर निर्माण करवाया । दि.जैन समाज गौहाटी के गत वर्षों से अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं। पटावीर भवन गोदरी के गाजीवटी है । आप, दाट कोही के उपाध्यक्ष भी हैं। आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । इन नियमों को आपने आर्यिका इन्दुमती माताजी से लिये थे। पुनियों को आहार आदि से खूब सेवा करते हैं । परम मुनिभक्त तथा आर्षमार्गी हैं । आपने लगातार दस वर्ष तक (वर्ष 1978-79 से 1988-89 तक) दशलक्षण व्रत करके एक कीर्तिमान स्थापित किया । आप सरल स्वभावी हैं तथा सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में पूरा आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आप जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान,जयपुर के परम संरक्षक हैं । पता : मैसर्स मदनलाल भागचन्द, एस.आर.सी.वी.रोड़,गौहाटी (आसाम) श्री मन्नालाल बाकलीवाल जन्मतिथि: 23 पई, 1933, शिक्षा : बी.कॉम. (1952) दिडला इन्स्टीटयूट, पिलानी पिता : स्व.श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल के तृतीय पत्र । मातृश्री : स्व.मलकूदेवी बाकलीवाल व्यवसाय : पेट्रोलियम एवं ट्रान्सपोर्ट । विवाह : अषाढ़ सुदी 2 संवत्, 1952 पत्नी का नाम: श्रीमती चिन्तामणि जी,सपत्री श्री शिखरीलाल जी गंगवाल,लाडनू । सन्तान पुरी -1 ममता, विवाहित । पुत्र-5 : महेन्द्र, राजेन्द्र,देबेन्द्र, जिनेन्द्र एवं नरेन्द्र । इनमें महेन्द्रराजेन्द्र एवं देवेन्द्र कुमार विवाहित हैं । विशेषता: श्री मत्रालाल जी का जीवन अत्यधिक सादा एवं धार्मिक है । सौम्यता एवं सरलता उनके जीवन के विशेष गुण हैं । वे मधुरभाषी हैं तथा आतिथ्य प्रेमी हैं। चार कार्य विजयनगर पंचकल्याणक के अवसर पर सौधर्म इन्द्र के पद को सुशोभित कर चुके हैं। एक बार आचार्य विसर जी महाराज के सानिध्य में वृहद शान्ति विधान सम्पत्र कराने का श्रेय प्राप्त किया था। सुजानगढ़ में आपके पिताश्री से एक चैत्यालय का निर्माण करवाया तथा उसमें तीन मूर्तियां विराजमान की। आपने बाहुबली सहस्त्राब्दी - Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /109 महामस्तकाभिषेक के अवसर पर कलश लेकर अभिषेक किया । लगातार 16 वर्षों तक दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। आचार्य शिवसागर जी महाराज से शुद्ध खान-पान का नियम लिया । स्वभाव से मुनिभक्त,आहारादि देने में परम श्रद्धा, अपने आपको आर्षमार्गी कहते हैं । प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं । विगत 15 वर्षों से रात्रि में जल नहीं ग्रहण करते हैं। सामाजिक महासभा के ट्रस्ट फण्ड के सदस्य, सिद्धान्त संरक्षिणी सभा की कार्यकारिणी सदस्य, आ. विमल सागर महाराज के सुजानगढ़ में आयोजित जयन्ती महोत्सव परसभी को अपनी ओरसे पंक्तिबद्ध भोजन कराया । कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र पर आर्यनन्दि महाराज के सानिध्य में पंक्तिबद्ध भोजन एवं एक कमरे का निर्माण करवाया । बंगाल, बिहार उडीसा तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सदस्य, अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के सदस्य मणिपुर में चैम्बर ऑफ कॉमर्स की ओर से निर्मित हॉस्पिटल में पर्याप्त आर्थिक सहयोग। विदेश यात्रा : सन् 1972 में पति-पत्नी ने मध्य एशिया, यूरोप एवं आस्ट्रेलिया की डेढ़ पास की यात्रा की। पता : बाकलीवाल एन्टरप्राइजेज,इम्फाल मणिपुर) डीमापुर का छाबड़ा परिवार : छाबडा गांव ठाकुर श्री साहेब सिंह जी के नगर खण्डेला में श्री जिनसेनाचार्य द्वारा संवत् 101 में श्रावक व्रत ग्रहण किये। उनकी सन्तति ने छाबडा गांव से संवत् 782 में रेवासा निवास स्थान किया। रेवासा से कासली-कासली से मूंडवाडा-मुंडवाडा से पांचवा-पांचवा से बांदुडा आये । बान्दुडा से संवत् 1749 में सीकर-सीकर से संवत् 1870 में किराडा निवास स्थान किया। किराडा में नवलरायजी से वंश परम्परा प्रारम्भ हुई। अभी वर्तमान में करीब 40 परिवार हैं जो कि किराडा (जिला-श्रीगंगानगर) डीमापुर (नागालैण्ड) इम्फाल (मणिपुर) तथा अन्य स्थान में रह रहे हैं। नागालैण्ड तथा मणिपुर में आपका परिवार करीब 100 वर्ष से रह रहा है । आपको फर्म पहले श्री टोडरमल सदाराम के नाम से प्रसिद्ध थी । आपके हो परिवार के श्री शिवनारायण जी छाबड़ा अखिल भारतवर्षीय खण्डेलवाल जैन महासभा के पदाधिकारी तथा कलकत्ता श्री दिगम्बर जैन समाज के मंत्री रह चुके • हैं । स्व.श्री उदयराम जी छाबड़ा,डीमापुर जैन समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं एवं श्री मोतीलाल जो छाबड़ा करीब 30 वर्षों से श्री दि. जैन समाज डीमापुर के उपमंत्री तथा अभी वर्तमान में मंत्री हैं । आपके दादाजी हरषामल जी आठ गांव पंचायत के प्रमुख थे । आपके पिताजी स्व.श्री नन्दलाल जो छाबड़ा बहुत शान्त-स्वभावी तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे । अतिशय क्षेत्र एवं सिद्ध क्षेत्रों में आपने बहुत जगह दान दिया तथा हॉल तथा कमरों का निर्माण करवाया । आपकी बहन स्व.सूरजी बाई की भाणजी कमला ने आर्यिका व्रत प्रहण किया जो कि अभी सन्मति माताजी के नाम से प्रसिद्ध हैं । आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के संघ में आर्यिका प्रमुख हैं। आपके पांच बहन एवं एक भाई बींजराज थे जिनका कि स्वर्गवास हो चुका है आपके पीछे आपकी लड़किया पतासी देवी एवं जीवणी देवी वर्तमान में सुजानगढ़ में रह रही हैं। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री मांगीलाल छाबड़ा श्री छाबड़ा जी नागालैण्ड के प्रमुख उद्योगपति हैं। आपका जन्म किराडा (गंगानगर राज) में दि. 4 अक्टूबर, 1934 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्यावसायिक जीवन में प्रवेश किया। सन 1951 में आपका मैनादेवी के साथ विवाह सम्पन हुआ | आपके पिताजी स्व. नन्दलाल जी छाबड़ा बहुत शान्त स्वभावी तथा धार्मिक प्रवृत्ति के थे। आप उदार प्रवृत्ति के थे तथा तीर्थ क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग देना आपका स्वभाव बन गया था। श्री छावड़ा के तीन पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। सबसे बड़े पुत्र विनोद कुमार बी. कॉम. हैं। आपका विवाह हो चुका है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मंजुला को एक पुत्र एवं एक पुत्री की मांता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। द्वितीय पुत्र सुनील कुमार बी. कॉम., सी.एस. एवं एल. एल. बी. हैं। आपकी पत्नी का नाम सीमा है। तृतीय पुत्र राजेन्द्र कुमार 23 वर्षीय युवा हैं तथा अभी अध्ययनरत हैं। श्री छाबड़ा जी की दोनों पुत्रियां सरोज एवं मंजू का विवाह हो चुका हैं। विशेष : धार्मिक सन् 1976 में डीमापुर में आयोजित तीन लोक मण्डल विधान में इन्द्र पद से सुशोभित हुये। डीमपुर मन्दिर की चौबीसी एवं जम्बूदीप में एक-एक मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। सामाजिक : डीमापुर आर्यिका संघ कमेटी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। स्याद्वाद शिक्षण परिषद सोनागिर के महामंत्री एवं भादि. जैन महासभावी करणी के उपलक्ष महाराणाको द फण्ड रूह कमेटी के चेयरमेन हैं। सभी कमरों का निर्माण करा चुके हैं तथा शेष में निर्माण कार्य चल रहा है। डीमापुर के प्रमुख समाजसेवी एवं अति सम्माननीय श्रेष्ठी हैं। सार्वजनिक छाबड़ा जी सार्वजनिक जीवन में विश्वास करते हैं। डीमापुर टाऊन कमेटी के वायस चैयरमैन रह चुके हैं तथा वर्तमान में डीमापुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष हैं। नार्थ रीजन रेल्वे की सलाहकार समिति के सदस्य हैं। पूर्वोत्तर मारवाड़ी सम्मेलन डीमापुर शाखा के अध्यक्ष रह चुके हैं। पी. एण्ड टी. सलाहकार बोर्ड नार्थ-ईस्ट रीजन के सदस्य रहे हैं। विदेश यात्रा लन्दन, पेरिस, जिनेवा, मिलान, फ्लोरेन्स, रोम, वियना, सेल्सबर्ग, म्यूनिख फ्रेंकफुर्त, सेल्स एवं एम्स्टर्डम आद देशों एवं नगरों का भ्रमण कर चुके हैं । श्री फूलचन्द छाबड़ा वर्तमान में आपको आयु 65 वर्ष की है। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्यवसाय में प्रवेश किया। वैसे आप हिन्दी के अतिरिक्त अभिया, बंगला भाषा " जानते हैं । आपका संवत् 2000 में उमराव देवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। आप दो पुत्र एवं पांच पुत्रियों के पिता हैं । ज्येष्ठ पुत्र सुरेश कुमार बी.कॉम. हैं। आयु 28 वर्ष की हैं विवाहित है। धर्मपत्नी का नाम रंजू है तथा दोनों को दो पुत्रों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। 26 वर्षीय छोटा पुत्र अजित कुमार विवाहित है। उसकी पत्नी अंजू को एक पुत्री प्राप्त हो चुकी हैं। छाबडा जी के पांच पुत्रियां हैं जिनमें कंवरी देवी, सुशीला एवं संगीता का विवाह हो चुका है। सन्तोष बाई एवं शारदा अभी अविवाहित हैं। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/111 विशेषःलाडनूं पंचकल्याणक में आपको 15 वें इन्द्र बनने का सौभाय प्राप्त हो चुका है । डीमापुर के मन्दिर में जम्बूद्वीप में प्रतिमा विराजमान की थी । आपकी बुआजी की पुत्री कमला बाई आर्यिका दीक्षा लेकर सन्मति माताजी कहलाई। वे आचार्य अजित सागर जी के संघ में प्रमुख आर्यिका हैं । दोनों पति-पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । दोनों ही मुनियों को आहार देने में खूब रुचि लेते हैं । डीफू के मन्दिर के नीचे के भाग में एक कमरे का निर्माण करा चुके हैं । स्यावाद शिक्षण परिषद् सोनागिर को विद्वान तैयार कराने हेतु आर्थिक सहयोग देते रहे हैं। आप अच्छे समाज सेवी एवं धार्मिक स्वभाव के श्रावक हैं। वर्तमान में सुरेश मिल, एके इण्डस्ट्रीज एवं अहिंसा स्टोर. क्रेशर के संचालक हैं । आप मूलतः किराडा निवासी हैं । पता : मै. फूलचन्द सुरेशकुमार, प्डीमापुर (नागालैण्ड) श्री शान्तिलाल जैन छाबड़ा स्व.श्री नन्दलाल जी के तीसरे पुत्र हैं । आपकी जन्मतिथि 18 नवम्बर,सन् 1938 है। इम्फाल के राजकीय महाविद्यालय से आपने इन्टरमीडियेट किया तथा फिर विशारद परीक्षा पास की। दिनांक 9 फरवरी, 1958 को आपका विवाह श्रीमती सुलोचना देवी के साथ सम्पन्न हुआ । आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त है । आपके ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार बी कॉम.(निस) एवं एल.एल.बी. हैं । विवाह हो चुका है,पत्नी का नाम रेखा है। द्वितीय पुत्र राकेशकुमार अभी 18 वर्षीय युवा है तथा अध्ययनरत हैं । आपको दो पुत्रियां सरिता एवं संगीता का विवाह हो चुका है। तीसरी पुत्री शर्मिला अभी अविवाहित है। आपकी पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । विशेष : वैसे तो आपके बड़े भाई श्री मांगीलाल जी छाबड़ा के समान सभी का सामाजिक,धार्मिक एवं सार्वजनिक कायों में योगदान रहता है तथा उनके साथ आपका भी सहयोग रहना है फिर निम्नलिखित कायों में आपका विशेष योगदान है। आप नागालैण्ड लार्ज स्केल इण्डस्ट्रीज एसोसियेशन डीमापुर के सेक्रेटरी हैं । फेडरेशन ऑफ ऐसोसियेशन ऑफ लार्ज स्केल इण्डस्ट्रीज ऑफ इण्डिया,न्यू देहली के कार्यकारी सदस्य उत्तर-पूर्वीय पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ एडवाइजरी बोर्ड नागालैण्ड के सन् 1974.75 में सदस्य रह चुके हैं । योथ सेक्टरएम.आई.एम.आई.गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया नागालैण्ड की कार्यकारिणी सदस्य, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया वकिंग गुप के कार्यकारिणी सदस्य केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड लार्ज स्केल इण्डस्ट्रीज -भारत सरकार,न्यू देहली के कार्यकारिणी सदस्य(1974-75) रह चुके हैं । वीर विकास मण्डल डीमापुर के सन् 1962-76 तक महामन्त्री रह चुके हैं। सामाजिक : श्री छाबड़ा जी का सामाजिक जीवन है । समाज के प्रत्येक कार्य में पूर्ण सहयोग रहता है। दिगम्बर जैन पंचायत डीमापुर के गत 25 वर्षों से कार्यकारिणी सदस्य हैं । अ.भा.स्याहाद शिक्षण परिषद् सोनागिर के संयुक्त महामन्त्री एवं पूर्वान्चल के महामन्त्री हैं । दिगम्बर जैन हाईस्कूल डीमापुर के संयुक्त मंत्री रह चुके हैं। तीर्थ-यात्रा प्रेमी हैं तथा सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। पता : मै. नन्दलाल मागीलाल जैन,डीमापुर (नागालैण्ड) Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री शुभकरण छाबड़ा आप स्त्र. नन्दलाल जी के सबसे छोटे पुत्र हैं। आपका जन्म 2 अक्टूबर सन् 1940 हुआ था। डिब्रूगढ़ से मैट्रिक किया तथा असमिया, बंगाली, नेपाली, देशवाली, मैनपुरी एवं अंग्रेजी का सामान्य ज्ञान प्राप्त किया। 26 अप्रेल, सन् 1962 को आपका विवाह पारू देवी के साथ सम्पन्न हुआ। आपकी पत्नी श्रीमती पारूदेवी के शुद्ध खान-पान का नियम है। वर्तमान में आप दो पुत्रों के यशस्वी पिता हैं। बड़े पुत्र संजय कुमार बी. कॉम., एल. एल. बी. है। विवाह हो चुका है। पत्नी का नाम सन्दीपा है । द्वितीय पुत्र मनोज कुमार 22 वर्ष के हैं तथा अध्ययनरत हैं। आपकी पत्नी श्रीमती पारूदेवी के शुद्ध खान-पान का नियम हैं । विशेष : समाजसेवी युवा हैं। और विकास मण्डल डीमापुर के वर्तमान अध्यक्ष है। मुनिभक्त हैं। आप आर्थिक इन्दुमती माताजी के पूरे संघ को डीमापुर से गौहाटी तक ले जाने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। डीमापुर लायन्स क्लब के वर्तमान में अध्यक्ष हैं। पता : श्री मांगीलाल जी शान्तिलाल जी जैन छाबड़ा, डीमापुर (नागालैण्ड) श्री मानिकचन्द गंगवाल जन्मतिथि: सावन बुदी 3 संवत् 1991 | जन्मस्थान बारसोई (बंगाल) शिक्षा : सामान्य व्यवसाय: आयकर सलाहकार, वस्त्र व्यवसाय (थोक) । याता-पिता पिता श्री हनुमान बक्स जी गंगवाल कुली (राज.), माता जी स्व. श्रीमती दाखा देवी जी 52 वर्ष की आयु में संवत् 2021 में स्वर्गवास : A श्रीमती देवी धर्मपत्नी मानिकचन्द गंगवाल विवाह : सं. 2004 फाल्गुण मास में श्रीमती देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सन्तान पुत्र तीन - 1. निरंजन कुमार : 31 वर्षीय युवा हैं। विवाहित हैं। रत्नमाला पत्नी है। दो पुत्रों के पिता हैं। 2. देवेन्द्र कुमार : 28 वर्ष के हैं। बी. कॉम. हैं। श्रीमती किरण धर्मपत्नी है। एक पुत्र है । 3. तृतीय पुत्र विनय कुमार अभी पढ रहे हैं। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 113 विशेष : श्री गंगवाल स्वाध्याय प्रेमी हैं। नियमित शास्त्र पठन एवं चर्चा करते हैं। बहुत ही शान्त एवं सरल स्वभावी हैं। संवत् 2030 में अपने ग्राम कुली खाचरियावास से गौहाटी कमाने-खाने आये और यहीं आकर बस गये। आपने ग्राम कुली में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान करने का उत्तम कार्य किया है मुनिभक्त हैं। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के संघ चातुर्मास में डेढ महीने रहकर आहार आदि से सेवा करने का पुण्यार्जन किया। मुनिश्री विजय सागर जी महाराज की आपने बहुत सेवा की थी। दक्षिण को लोडका सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं। पता : 305, श्रीमन्ता मार्केट, ए.टी. रोड, गौहाटी (आसाम) श्री महावीर प्रसाद जैन रारा जन्य: कार्तिक बुदी 13 संवत् 1993 शिक्षा : हाईस्कूल माता-पिता : स्व. श्री केसरी मल जी रारा, माता श्रीमती लाडा देवी जी सन्तान श्री नरेन्द्र कुमार पुत्री सुश्री किरणबाला । आपका विवाह डीमापुर के श्री रामचन्द्र जी सेठी के सुपुत्र श्री विजय कुमार जी सेठी से सम्पन्न हुआ। विशेष: आपके पिताश्री केसरीमल जी ने नलबाडी में दि. जैन मन्दिर का शिलान्यास किया था। आपने अपने प्राण बाय महावीर प्रसाद एवं मनभर देवी रारा (राज.) में पशु चिकित्सालय बनवाया था। आसाम की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को भारी आर्थिक सहयोग दिया था। आप बड़े धर्मपरायण रहे तथा नलबाड़ी पंच कल्याणक में स्वयं सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हुये। आर्थिका सुपार्श्वमती माताजी के नलबाड़ी में आगमन पर आयोजित तीन लोक मण्डल विधान में इन्द्र बने थे तथा आर्यिका संघ के साथ पदयात्रा भी की। आपका स्वर्गवास समाधिमरण पूर्वक हुआ। श्री महावीर प्रसाद जी ने नलबाडी मन्दिर में मूर्ति विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त किया । स्थानीय वीर आदर्श मण्डल के मन्त्री हैं तथा सम्पूर्ण धार्मिक कार्यों में सदैव आगे रहते हैं। श्री रारा जी मूलतः बाप ग्राम (राज) के निवासी हैं। करीब 30 वर्ष पूर्व नलबाडी आकर रहने लगे और गल्ले का व्यवसाय प्रारम्भ किया फिर सर्राफा का धंधा करने लगे जो आजकल भी कर रहे हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मनभर देवी बहुत धर्मपरायण हैं तथा कुली खाचरियावास के श्री हनुमान बक्श जी की सबसे छोटी पुत्री हैं। एक बार नलबाडी में आपके घर में डाकू घुस आये थे। आप जब भी नहीं डरी और बड़ी वीरता के साथ तेजाब फैककर सब डाकुओं को भगा दिया। आपके साहस एवं वीरता की लबाडी समाज में भारी प्रशंसा हुई। सरकार की ओर से भी आपको पारितोषिक देने की घोषणा हुई तथा आकाशवाणी द्वारा भी आपके साहस की प्रशंसा की गई। आपने लगातार 11 वर्ष तक दशलक्षण व्रत के उपवास किये हैं। रारा जी सामाजिक व्यक्ति हैं। आतिथ्य प्रेमी भी हैं। पता : रारा ब्रदर्स, नलबाडी (आसाम) Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री महावीर प्रसाद पाटनी, डीमापुर (नागालैण्ड) जन्मतिथि: अपाढ बुदी 14 संवत् 1996, सन् 1930 जन्मस्थान : मूलतः भोरडो का बास (सीकर) है। आपके माता-पिता सन् 1956 में किशनगढ़ रेनवाल (जयपुर) आकर रहने लगे । शिक्षा : अजमेर बोर्ड से सन् 1957 में मैट्रिक पास किया । पिताजी श्री किस्तूरमल जी आपका 88 वर्ष की आयु सन् 1977 में डीमापुर में स्वर्गवास हुआ। सागर जी महाराज 45 माताजी : श्रीमती मैनादेवी - आपका 8() वर्ष की आयु में 1982 में डीमापुर में स्वर्गवास हुआ। विवाह : मांडोता निवासी श्री गुलाबचन्द जी छाबड़ा की सुपुत्री इन्द्रमणी जी के साथ सन् 1960 में संपन्न हुआ। ' सन्तान : एक मात्र पुत्र संजय कुमार जो अभी 9वीं कक्षा में अध्ययन कर रहा है। आपके पांच पुत्रियां हैं जिनमें क्रमशः अनिता का विवाह श्री कमल कुमार जी काला इम्फाल निवासी तथा सुनीता का विवाह श्री भागचन्दजी चूडीबाल सुजानगढ निवासी के साथ हुआ है। शेष तीन पुत्रियां बबीता बी.कॉम. ममता बी.ए. फाइनल, एवं मनीषा प्राईमरी में पढ रही हैं। गहावीर प्रसाद एव इ-द्रमणी देवी पाटनी व्यवसाय : वस्त्र एवं रुई का थोक व्यवसाय । आप सन् 1964 में डीमापुर आकर वस्त्र व्यवसाय करने लगे। तब से आप डीमापुर में ही व्यवसायरत हैं। आपको अपने व्यवसाय में अच्छी सफलता मिली है। भाई-बहिन : आपके भाई और हैं, सर्वश्री पन्नालाल जी, श्री बंशीधर जी, चौथमल जी. पांचूलालजी, कुन्दनमल जी एवं भागचन्दजी सभी आपसे बड़े हैं तथा गौहाटी एवं डोमापुर में अपना-अपना वस्त्र व्यवसाय करते हैं। आपके एक मात्र बहिन 'शान्तीदेवी है जिसका विवाह श्री चौथमल जी काला सुजानगढ निवासी से हुआ है। आप अपने सभी भाई-बहिनों से छोटे हैं। विशेष: डीमापुर में सन् 1976 व 1989 में आयोजित सिद्धचक्र विधान में एवं 1908) में आयोजित इन्द्रध्वज महामंडल विधान में तथा 7 मई, 1990 को हुये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप पति-पत्नी इन्द्र-इन्द्राणी पद से सुशोभित हुये हैं तथा डीमापुर केही मन्दिर की चौबीसी में एक मूर्ति को विराजमान करने का सौभाग्य भी प्राप्त कर चुके हैं। आप सामाजिक व्यक्ति हैं । सन् 1982 से डीमापुर दि. जैन पंचायत की कार्यकारिणी के सदस्य, दि. जैन हाईस्कूल के संयुक्त मन्त्री पद पर काम कर रहे हैं। चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सदस्य, धार्मिक प्रवृत्ति से सम्पन्न, मिलनसार एवं आतिथ्य प्रेमी हैं । तीर्थ वंदना के भी प्रेमी हैं। आपको नित्य प्रति देवदर्शन, पूजन, प्रक्षाल करने का नियम है। आप प्रारम्भ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं। आपने अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग करके अपने पिताजी की पुण्य स्मृति में जन्मस्थान भोरडी का बास में सन् 1985 में महावीर जल योजना के तहत सार्वजनिक कुंए में बोरिंग करवाकर मोटर Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/115 बैठाकर तथा पानी की टंकी का निर्माण करवाकर पूरे गांव को पानी सप्लाई का काम शुरू कर रखा है । जिससे पूरे गांव को घर-घर में पानी की सप्लाई होती है जिसके खर्चे का पूरा भार आप वहन कर रहे हैं। पता : महेश क्लॉथ स्टोर स्टेशन रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री रतनलाल विनायक्या विनायक्या परिवार डीमापुर का प्रतिष्ठित परिवार है। इस परिवार के ज्येष्ठ सदस्य श्री रतनलाल जी विनायक्या का जन्म संवत् 1992, सन् 1935 में आसोज सुदी 2 को हुआ। आपने अजमेर बोर्ड से सन् 1951 में मैट्रिक परीक्षा पास की। आपके पिताजी श्री स्व.फूलचन्द जी विनायक्या से मेरा खूब परिचय था।वे भी धार्मिक प्रकृति के थे । ज्यादातर जयपुर रहते थे। उनका आकस्मिक निधन दि.25 अक्टूबर, 1980 को हुआ | आपकी माताजी तीजा देवी तो आपको आठ वर्ष का ही छोड़कर स्वर्ग चली गई। उस समय आपके लालन-पालन की समस्या हो गई। मैटिक करने के पश्चात फालाण सदी 10 श्रीमती सोहन देवी के साथ आपका विवाह हो गया। आप दोनों को दो पुत्र एवं चार पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । ज्येष्ठ पुत्र श्री नरेन्द्र कुमार बी.कॉम. हैं,31 वर्षीय युवा व्यवसायी हैं। एक पत्र के पिता हैं । दुसरे पुत्र विजय कुमार अभी 21 वर्ष के हैं । उच्च अध्ययन कर रहे हैं। चार पुत्रियों में राजकुमारी, संतोष,सरोज एवं रेखा सभी का विवाह हो चुका है। विशेष : आप एवं आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मोहन देवी सन् 1976 में दशलक्षण व्रत के उपवास करके पुण्य के भागी बन चुके हैं । पति-पत्नी दोनों के ही शुद्ध खान-पान का नियम है । दोनों ही मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं | डीमापुर के सम्माननीय व्यक्ति हैं । सामाजिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देने में अभिरुचि है । हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप में वेदी निर्माण करवाकर उसमें प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं तथा सिद्ध-क्षेत्र सोनागिर में स्थाद्वाद शिक्षण परिसर में एक कमरे का निर्माण करवाने का उत्तम कार्य कर चुके हैं। दि. जैन पार्श्वनाथ मंदिर जयपुर एवं दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुर के आजीवन सदस्य हैं । श्री दुलीचन्द विनायक्या आपके छोटे भाई हैं । संवत् 1995 में आपका जन्म हुआ। 16वें वर्ष में ही श्रीमती सुगनी देवी से आपका विवाह हो गया । श्रीमती सुगनीदेवी भी एक शर पांच वर्ष पूर्व दशलक्षण व्रत कर चुकी हैं। आपके तीन पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । ज्येष्ठ पुत्र संजय कुमार बी कॉम हैं,25 वर्षीय हैं । श्री सोहन लाल जी बाकलीवाल की सुपुत्री ममता के साथ उनका विवाह हो चुका है। दूसरे एवं तीसरे पुत्र सुनील कुमार एवं अनिल कुपार अभी पढ रहे हैं। दोनों पुत्रियां शोभा एवं मंजू का विवाह हो चुका है । शोभा के पति श्री जयकुमार कासलीवाल जयपुर निवासी हैं । वे सी.ए. हैं । मंजू का विवाह श्री नथमल जी गंगवाल के पुत्र विजय कुमार के साथ हुआ है। विशेष : आप दोनों भाई दि. जैन महासभा के ध्रुव फण्ड के ट्रस्टी एवं आजीवन सदस्य हैं । दोनों ने अपने पिताजी की पुण्य-स्मृति में डीमापुर में जैन भवन का निर्माण करवाने का श्रेयस्कर कार्य किया है तथा जनता कॉलोनी जयपुर के मंदिर निर्माण के लिये पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया है । श्री दुलीचन्द जी नागालैण्ड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एवं श्री दि. जैन हॉस्पिटल डीपापुर के सेक्रेट्ररी हैं : दि.जैन समाज डीमापुर के उपमंत्री हैं तथा गल्ला किराना कमेटी डीमापुर के अध्यक्ष हैं । पता : विनायक्या ट्रेडिंग कम्पनी,डीमापुर (नागालैण्ड) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 116/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री राजकुमार सेठी देश आजाद होने के तीन सप्ताह पश्चात् दिनांक 07.09,1947)को जन्मे श्री राजकुमार सेठी ने अपनी सामाजिक सेवाओं एवं युवकोचित कार्यों से अपने परिवार का नाम ही रोशन नहीं किया है बल्कि स्वयं के व्यक्तित्वको भोगपतीयस्ता साबसा लिया है। सारे पिता स्ट फूलचन्द जी सेठी एवं माता श्रीमती लाडा देवी के वे तीसरे पुत्र हैं । सन 1967 में उन्होंने गोहारी विश्वविद्यालय से बी.कॉम.किया। 23वें वर्ष में उनका विवाह श्रीमती ज्ञानादेवी के साथ सम्पत्र हो गया। पति-पत्नी को दो पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका समाज सेवा: समाजसेवा की धुन उनको प्रारम्भ से ही लग गई थी। दि.जैन महासभा के वे सक्रिय सदस्य हैं तथा महासभा के प्रकाशन विभाग के मंत्री हैं तथा आपके मंत्रित्वकाल में प्रकाशन विभाग ने अच्छा कार्य किया है। अब तक 25 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है । महावीर मंथ अकादमी जयपुर के वे सह संरक्षक हैं तथा द्वितीय विश्व जैन कॉन्फ्रेन्स लन्दन में वे पूर्वान्चल प्रदेश का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। इसके पश्चात् तृतीय विश्व जैन कॉक्रेन्स देहली में आयोजित पूर्वान्चल प्रदेश के संगठन संयोजक रहे थे। विभिन्न संस्थाओं में योगदान : खण्डेला विकास समिति के आप उपाध्यक्ष हैं तथा भारतीय दिग.जैन तीर्थ-क्षेत्र कमेटी के सदस्य हैं । जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति पूर्वान्चल समिति के महामंत्री रहे हैं । इसी तरह भगवान बाहुबलि सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक समिति के सदस्य दि.जैन त्रिलोक शोध संस्थान की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । इसी तरह दि.जैन सिसान्त संरक्षिणी कमेटी,स्याद्वाद शिक्षण परिषद्,बंगाल, बिहार, उड़ीसा तीर्थ-क्षेत्र कमेटी,मारवाडी रिलीफ सोसायटी के माननीय सदस्य हैं । दि.जैन समाज डीमापुर के संयुक्त सचिव,डीमापुर टैक्सटाइल एसोसियेशन के संयुक्त सचिव हैं। सम्मान-पत्र: अपनी सेवाओं के कारण डीफु एवं बोलाखात जैन समाज द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त समय-समय पर और भी संस्थाएं आपको सम्मानित करती रहती हैं। आप आदिवासी कल्याण संगठन डीमापुर के कोषाध्यक्ष,बनवासी कल्याण केन्द्र के प्रमुख सदस्य हैं । ये संस्थायें मानव मात्र की सेवा के प्रति समर्पित रहती हैं। धार्षिक कार्य: हरिद्वार के नव निर्मित मन्दिर में एक कमरा बनवाकर एक बड़ी भारी कमी की पूर्ति की । नलबाड़ी के पंचकल्याणक समारोह में मन्दिर के शिखर का ध्वजारोहण कर चुके हैं। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /117 सेठी जी मिलनसार, प्रत्येक कार्य में सहयोग को भावना रखने वाले, आर्षमार्गी, मुनिभक, अपनी मां के अनन्य भक्त, युतकोचित विचारों से युक्त हैं। आप भगवान आदिनाथ के निर्माणस्थली बदरीनाथ में स्थापित होने वाले आदिनाथ आध्यात्मिक फाऊण्डेशन के आजीवन ट्रस्टी हैं। अहारजी सिद्ध क्षेत्र के संरक्षक मनोनीत किये गये हैं। श्रीमती लाडा देवी सेठी श्रीमती सेठी स्व. श्री फूलचन्द जी सेठी की धर्मपत्नी हैं। जिनका निधन 2 अक्टूबर, 1976 को णमोकार मंत्र जपते हुये आर्यिका श्री इन्दुमति जी के सानिध्य में डीमापुर के मन्दिर में हुआ था । स्व. श्री फूलचन्द जी अपने युग के विख्यात श्रेष्ठी थे जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लेखक ने 'धरती से आकाश तक' एक पुस्तक लिखी है। वैसे अपरिग्रह पत्र का फूलचन्द सेठी स्मृति अंक मार्च 1972 में प्रकाशित हो चुका है जिसका विमोचन तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती ने किया था तथा अध्यक्षता तत्कालीन मंत्री बाबू जगजीवनराम ने की थी। श्रीमती लाडा देवी का विवाह स्व. श्री फूलचन्द जी के साथ फाल्गुण शुक्ला सन् 1911 में सम्पन्न हुआ। आपकी दान की प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही रही। पहले अपने पति के सहयोग से धार्मिक कार्यों में भाग लेती थी एवं संस्थाओं को आर्थिक सहायता देती रहती थी। अपनी इस प्रवृत्ति को श्रीमती लाडा देवी ने पति की मृत्यु के पश्चात् भी कम नहीं होने दिया और अपने आज्ञाकारी पुत्रों के सहयोग से जनोपयोगी कार्यों में और भी उत्साह से भाग लिया। यहां हम उनके द्वारा किये गये कुछ कार्यों का उल्लेख करना चाहेंगे : धार्मिक क्षेत्र : 1. विजय नगर मन्दिर के मान स्तंभ के चारों ओर प्रतिमायें विराजमान की गई। 2. द्रोणगिरी सिद्ध क्षेत्र पर 7 फुट ऊंची खड्गासन प्रतिमा विराजमान की । 3. हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप में विजयार्थ पर्वत की रचना करवाकर उसमें मूर्तियां विराजमान करने में योग दिया। 4. सम्मेद शिखर, खजुराहो, गजपंथा, ऊन, राजगृही, पावापुरी, हस्तिनापुर, पदमपुरा, श्रीमहावीर जी सभी सिद्ध क्षेत्रों में एवं अतिशय क्षेत्रों पर या तो कमरों का निर्माण करवाया अथवा फ्लेटों को बनवाकर क्षेत्रों को समर्पित किया। 5. पपौरा में मन्दिर जीर्णोद्धार, नैनागिरी में दो मन्दिरों का जीर्णोद्धार, आहार क्षेत्र पर फर्श का निमार्ण करवाने का उत्तम कार्य किया । मूडबद्री में एक मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। . जितने भी तीर्थों पर पूजन विधान के सदस्यता की प्रणाली है वहां की सदस्या बन कर योगदान दिया । 7. डिफू जैन मन्दिर के निर्माण में विशेष योगदान देकर प्रशंसनीय कार्य किया । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सामाजिक क्षेत्र: श्रीमती लाडा देवी का सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत योगदान रहता है । डीमापुर के जैन भवन एवं जैन हॉस्पिटल में कमरे का निर्माण,डीपापुर मंदिर में संगमरमर फर्श का निर्माण,खण्डेला मन्दिर में फर्श का कार्य,डीमापुर में कीर्ति-स्तम्भ की नींव रखना, डीमापुर के रेल्वे स्कूल,रामकिशन स्कूल एवं गवर्नमेन्ट कॉलेज में एक-एक कमरे का निर्माण करवाकर अपनी जनोपयोगी प्रवृत्ति का परिचय दिया। आप मूडबिद्री दि. जैन मठ, जैन गजट साप्ताहिक,महासभा प्रकाशन विभाग सभी की संरक्षिका हैं,जैन तीर्थ जीर्णोद्धार समिति की सदस्या, महावीर पंथ अकादमी की सदस्या एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान की संरक्षिका हैं। सम्मान: श्रीमती लाडा देवी को कितनी ही संस्थाओं से सम्मानित किया जा चुका है। गौहाटी में महासभा के 93वें वार्षिक अधिवेशन पर प्रकाशन विभाग की ओर से विशेष सम्मान पदक देकर सम्मानित किया गया । सन्तान: लाडा देवी पांच पुत्र एवं 6 पुत्रियों की जननी हैं। सभी पुत्र एई पुत्रियां मां के प्रति गहरी श्रद्धा रखती हैं । मां के संकेतों पर पूरा परिवार चलता है तथा पूरा परिवार उन की सेवा में तत्पर रहता है । कलकत्ता में जैन संस्कृति संसद् एवं जैन साहित्य प्रकाशन समिति एवं दिल्ली में अहिंसा इन्टरनेशनल द्वारा आपका अभिनन्दन किया जा चुका है। अभी आपने चारों दान के लिये लाडा देवी प्रथमाला, फूलचन्द सेठी स्मृति शिक्षा विकास कोष, फूलचन्द सेठी स्मृति जीर्णोद्धार कोष,निर्मथ सेवा समिति एवं जीव दया समिति की स्थापना की है। 1. श्री रामचन्द्र सेठी: सबसे बड़े पुत्र हैं । उनका जन्म सन् 1938 में हुआ। मैट्रिक तक अध्ययन करने के पश्चात् सन् 1959 में श्रीमती किरण देवी के साथ विवाह बन्धन में बंध गये । चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। सबसे बड़े पुत्र आशीष ने बी कॉम.कर लिया है। अरुण, अशोक एवं अजय व्यापार कर रहे हैं । दो पुत्रियों में अनिता का विवाह हो चुका है। रामचन्द्र सेठी चैम्बर ऑफ कॉमर्स डीमापुर के ट्रस्टी एवं कार्यकारिणी सदस्य हैं। पी एण्ड टी. एडवाइजरी बोर्ड नागालैण्ड के सदस्य रहे हैं। संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देने में उदार, सरल स्वभाव वाले एवं सेठी परिवार के प्रमुख हैं । छापडा विकास समिति के सदस्य Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदाचल प्रदेश का जैन समाज/119 2. श्री पवन कमार ये सेठी जी के दूसरे पुत्र हैं । सन् 1945 में जन्म हुआ तथा सन् 1965 में पानादेवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की । चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । चार पुत्रों में विनम ने बीकॉम, कर लिया है। विकास, विवेक एवं विशाल पढ़ रहे हैं। बबिता एवं वंदना दो पुत्रियां है । लायन्स क्लब के ट्रेजरर रह चुके हैं । पी.एण्ड टी.एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य हैं । राजनीति में आपका विशेष प्रभाव है । बबिता का विवाह हो चुका है। सरकारी क्षेत्र में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान है । ३. श्री राज कुमार सेटी : तीसरे पुत्र हैं जिनका अलग से परिचय दिया गया है। 4. श्री विनोद कुमार सेठी : चतुर्थ पुत्र हैं। सन् 1957 में जन्मे विनोद कुमार सेठी ने गौहाटी विश्वविद्यालय से बी.कॉम. किया । सन् 1980 में श्रीमती सोना देवी से आपका विवाह सम्पत्र हुआ। दो पुत्र दिवस कुमार एवं आनन्द और एक पुत्री चांदनी के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है । पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े प्लाईवुड फैक्ट्री डीमापुर के संचालक हैं। 5. श्री शैलेश कुमार सेठी : आपका जन्म सन् 1962 में हुआ । शिलांग विश्वविद्यालय डीमापुर से आपने बी.कॉम.किया । आपका विवाह 15 दिसम्बर 1986 में रायबहादुर हरकचन्द पाण्ड्या की पौत्री शालिनी के साथ सम्पन हुआ||आपको 2 पुत्री रिद्धी एवं सिद्धी के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है । जेसीज क्लब के प्रथम अध्यक्ष हैं । व्यापार में प्रवेश किया है। माताजी की सेवा में विशेष तत्पर रहते हैं। पुत्रियां : छः हैं - इन्द्रमणि,चन्द्रकला, प्रेमलता,कुसुम,उषा एवं सन्तोष सभी विवाहित हैं तथा साधन सम्पत्र हैं। इन्द्रमणि डिमापुर जैन महिला समाज की सैक्रेटी जीवन ज्योती डीमापुर शाखा की अध्यक्ष महिला समिति डिमापुर की सदस्या हैं। पता : फूलचन्द रामचन्द्र सेठी, डीमापुर (नागालैंण्ड) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री राजेन्द्र प्रसाद रारा जन्मतिथि : कार्तिक बुदी 4 संवत् 20403 । शिक्षा : 1962 में हाईस्कूल परीक्षा पास को। पितर : श्री म्होरीलाल जी 78 वर्ष की आयु में 1985 में स्वर्गवास । माता : श्रीमती भंवरी देवी, 9 वर्ष पूर्व स्वर्गवास | व्यवसाय : गल्ला किराना विवाह वर्ष : सन् 1961 । पत्नी का नाम : श्रीमती मैना देवी । परिवार : पुत्र-3: पवन कुमार (20 वर्ष), कैलाश कुमार (18 वर्ष), आदित्य कुमार (16 वर्ष) पुत्री-2:1. तारा - हजारीबाग के राजेन्द्र कुमार जी से विवाहित । 2. नीलम - अविवाहित । विशेष : 1.दि.जैन मन्दिर तिनसुकिया में आपके पिताजी द्वारा शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान की गई। 2. तिनसुकिया जैन मन्दिर की नींव भी आपके पिताजी द्वारा रखी गई । 3. आपने अपने बाय माम में स्कूल की बिल्डिंग बनवाकर राज्य सरकार को विद्यालय संचालन के लिए प्रदान की। 4. आप अपनी धर्मपत्नी के साथ दशलक्षण व्रत के 10 दिन के उपवास कर चुके हैं । 5. सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। भादि. जैन महासभा के स्थायी सदस्य एवं स्थायी फण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। 6. तीर्थयात्रा के प्रेमी हैं इसलिये तीर्थों की प्रायः यात्रा करते रहते हैं। 7, सभी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में पूर्ण सहयोग रहता है। पता : चिरजीलाल राजेन्द्र प्रसाद,साइडिंग बाजार,तिनसुकिया (आसाम) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/121 श्री सागरमल सबलावत "गणधर" जन्मतिथि : फाल्गुन सुदी 15 संवत् 1994 । शिक्षा : राजस्थान युनिवर्सिटी से सन् 1955 में मैट्रिक पास किया। माता-पिता : पिता श्री मेघराज जी सबलावत एवं माता श्रीमती सोहनी बाई दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। विवाह :आपका विवाह सन् 1955 में मैनसर निवासी श्री सोहनलाल जी पापड्या को ... सुपुत्री श्रीमती लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सन्तान : आपके दो पुत्र एवं पांच पुत्रियां है। दोनों पुत्र अशोक एवं प्रदीप पढ़ रहे हैं। मंजुलता एवं सरिता का विवाह हो चुका है तथा सुमन,रेखा एवं सुगन्धा पढ़ रही हैं। व्यवसाय : ऑटो ट्रेडर्स, फुटबाल पाउण्ड के पास,डीमापुर (नागालैण्ड) विशेष :श्री सबलावत जी प्रतिभाशाली समाजसेवी हैं। हस्तिनापुर जम्बूद्वीप प्रवर्तन-चक्र के पूर्वान्चल भ्रमण के प्रचार मन्त्री रहे हैं। भारतीय स्तर, प्रादेशिक स्तर एवं नगर स्तर को सभी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं । भारतवर्षीय दि. जैन र्वान्चल शाखा के मन्त्री एवं केन्द्रीय समिति के सदस्य महासभा के प्रकाशन विभाग के प्रमख कार्यकर्ता स्वाध्याय शिक्षण परिषद् सोनागिर पूर्वान्चल शाखा के प्रचार मन्त्री हैं । डिफू (आसाम) श्री जैन मन्दिर स्मारिका के मुख्य सम्पादक रह चुके हैं । डिफू में जैन मन्दिर स्थापना के सहयोगी हैं जो जिले का प्रथम मन्दिर है। सबलावत जी बहुत ही उत्साही कार्यकर्ता हैं । विद्वानों के परम भक्त हैं। सभी विद्वानों का सम्मान सेवा करते रहते हैं इसलिये भारतीय स्तर के सभी विद्वानों से आपका पत्र व्यवहार रहता है । डीमापुर आने वाले सभी को सहयोग देते रहते हैं। लेखक को डीमापुर आने पर आपसे बहुत सहयोग मिला था। आप कवि,लेखक एवं सम्पादक तीनों ही हैं। युवकों को रोजगार अथवा व्यवसाय खुलाने में पूरी रुचिलेते हैं । स्वाध्यायी हैं इसलिये चर्चाओं में रस लेते हैं । आचार्य कल्प श्रीवीरसागर जी महाराज एवं उनके शिष्य श्री क्षुल्लक सिद्धसागर जी महाराज मौजमाबाद वाले आपके विशेष प्रेरणास्रोत हैं । लेखक को गंगापुर में आपसे बहुत सहयोग मिला था। आपके तीन भाई गणपतराय,गजेन्द्र कुमार एवं अमरचन्द हैं। आप गणधर के नाम से प्रसिद्ध हैं। सर्वप्रथम आचार्य कल्प श्री वीरसागर जी महाराज के ससंघ पट्टाचार्य श्री शान्ति सागर जी के दर्शन से उनके शिष्य श्री क्षुल्लक सिद्धसागर जी के विशिष्ठ सानिध्य से स्वाध्याय प्रधान असीम चिन्तन किया। पता : ऑटो ट्रेडर्स, फुटबाल ग्राउण्ड के पास,डीमापुर (नागालैण्ड) Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री सोहनलाल बगड़ा श्री बगड़ा जी वर्तमान में 70 वर्ष के हैं । आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् व्यावसायिक क्षेत्र में पदार्पण किया। आपके पिता श्री जवरीलाल जी बगडा एवं माता श्री केशर देवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। आपका विवाह श्रीमती राजुल देवी के साथ फाल्गुन सुदी ? संवत् 1992 को सम्पन्न हुआ। आपके एक मात्र पुत्र महावीर प्रसाद का जन्म सन् 1962 में हुआ । उनका विवाह हो चुका है,पत्नी का नाम अनिता देवी है दो पुत्रियां हैं । आपकी पुत्री सरिता का विवाह भी भूरी गांव (आसाम) में श्री सुभाष चन्द्र जी सेठी के साथ हो चुका है। विशेष : श्री बगड़ा जी ने तीन बार तीर्थ यात्रा संघ चलाया और स्वयं उसके दो बार संघपति बने। यह यात्रा संघ दो बार बस द्वारा बिहार के तीर्थों के लिये तथा एक बार रेल द्वारा श्रवणबेलगोला के लिये निकाली गयी। ,आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । कट्टर मुनिभक्त एवं आर्ष परम्परा के अनुयायो हैं । अणुव्रतधारी हैं । परिग्रह परिमाण व्रत लिया हुआ है। राजुल देवी धर्मपत्नी सोहनलालजी : बगड़ा पता :सोहनलाल महावीर प्रसाद बगडा,विजय नगर (कामरूप) आसाम । श्री सोहनलाल बाकलीवाल आपका जन्म जून 1939 में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् आपने बिड़ला कॉलेज पिलानी से एम.कॉम.करके व्यावसायिक क्षेत्र में पदार्पण किया । हीमापुर आने के पहले लालगढ से डिबूगढ फिर जोरहाट और वहां से डीमापुर आकर बस गये । आपके पिता श्री कंवरीलाल जी का स्वर्गवास 2 अप्रैल,1974 को 57 वर्ष की आयु में डिबूगढ़ में हुआ । सन् 1979 में माताजी श्रीमती अंगूरी देवी का स्वर्गवास हो गया । आपका विवाह पद्मश्री धर्मचन्द जी पाटनी की बहन कंचन देवी के साथ सन् 1956 में बडे ठाट-बाट के साथ हुआ। श्रीमती कंचन देवी ने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की है । आपको तीन पुत्रियों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। तीनों ही पुत्रियों का विवाह हो चुका है । प्रथम पुत्री मीना का विवाह गणेशमल मोहनलाल के श्री दिलीप कुमार के माथ, द्वितीय पुत्री मधु का विवाह सरावगी मेन्शन जयपुर के विनोद कुमार के साथ एवं तोसरी पुत्री का डीमापुर के ही श्री संजय कुमार सुपुत्र श्री दुलीचन्द जो विनायक्या के साथ हुआ। विशेष : बाकलीवाल दम्पत्ति को डीमापुर में सन् 1976 में आयोजित सिद्ध-चक्र विधान में इन्द्र-इन्द्राणी बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। आपकी माताजी अंगूरी देवी एवं पिताजी कंवरीलाल जी ने शान्तिवीर नगर श्री महावीर जी में विशाल Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/123 खड्गासन प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाकर विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। उन्होंने शान्तिवीर नगर में ही एक स्वर्ण की प्रतिमा विराजमान की थी । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कंचन देवी व्रत उपवास करती रहती हैं । ने एक बार लब्धि विधान का तेला भी कर चुकी है। विदेश यात्रा एवं सामाजिक सेवा : सन् 1970 में आप जापान की यात्रा कर चुके हैं। दि.जैन पंचायत डीमापुर के दो वर्ष तक उपाध्यक्ष रहे । चैम्बर ऑफ कामर्स के फाउन्डर सेक्रेटरी रहे हैं । चैम्बर बिल्डिंग ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। आप मारवाड़ी सम्मेलन डीमापुर शाखा के अध्यक्ष,भारतवर्षीय दि.जैन महासभा की ट्रस्ट कमेटी के ट्रस्टी तथा पूर्वान्चल महासभा के क्रियाशील सदस्य हैं । जयपुर कैलगिरी आई हॉस्पिटल में आपने आर्थिक सहयोग लिया है । आपकी धर्म म्गलीगगम राय चुत्रीलाल बहादुर एण्ड कम्पनी आसाम को प्रतिष्ठित एवं पुरानी फर्म है। आसाम के अधिकांश प्रमुख व्यवसायी पहले आपको फर्म में कार्य कर चुके हैं और उसके बाद उन्होंने अपना स्वतन्त्र व्यवसाय प्रारम्भ किया है। आपके तीन भाई और है। सबसे बड़े बसन्त कुमार जी हैं। आयु 47 वर्ष है एवं धर्मपत्नी का नाम हीरामणि देवी है। आप दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । दूसरे भाई राज कुमार जी 42 वर्षीय हैं। पत्नी का नाम रंजना देवी है। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पित्ता हैं। तीसरे भाई अजय कुमार है । 35 वर्षीय युवक है। धर्मपत्नी सन्तोष देवी हैं। तीन पुत्रों के पिता हैं । पता : कंवरीलाल सोहनलाल एण्ड कम्पनी,सरकुलर रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री सोहनलाल पाटनी श्री पाटनी जी गौहाटी जैन समाज के ऐसे उदारमन सज्जन हैं जिनके नाम से सभी परिचित है । उनका जन्म 18 आगस्त,1925 को हुआ । प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने बंगला, असमिया भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। पहले उन्होंने पश्चिम बंगाल एवं दिल्ली | में कपडा व्यवसाय प्रारम्भ किया लेकिन फिर गौहाटी आकर हार्यस विक्रेता के रूप में अपना व्यवसाय करने लगे। इस कार्य में उन्हें पर्याप्त सफलता मिली । आप जब 16 वर्ष के थे तभी श्रीमती भंवरी देवी के साथ 10 जून,1941 को विवाह सूत्र में बंध गये। आपको एवं श्रीमती भंवरी देवी को तीन पुत्र एवं पांच पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ज्येष्ठ पुत्र उत्तम चन्द का जन्म 11 अगस्त,1955 को हुआ । उनकी पत्नी शोभा देवी दो पुत्र एवं एक पुत्री की मां हैं। दूसरे पुत्र उदय कुमार का जन्म 19 जनवरी,1959 को हुआ। उनकी धर्मपत्नी रीता देवी को 2 पत्री की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त है। तीसरे पत्र डॉ.राजेन्द्र कुमार एम.एस.जनरल सर्जरी हैं । इनका जन्म 26 अगस्त,1960 को,विवाह 17 जनवरी,1987 को सम्पन्न हुआ । पत्नी का नाम कविता है । वर्तमान में आप टाटा मेडिकल इन्स्टीट्यूट बंम्बई में कार्यरत हैं। आपके एक मात्र पुत्री चारू है। भंवरीदेवी धर्मपली मोहनलाल आपकी पांच पुत्रियों में बिमला,कौशल्या, शर्मीला,शशि एवं शोभा सभी का विवाह हो चुका है। पारनों Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 / जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका जीवन धार्मिक साधना का जीवन है। पूजा-पाठ का जीवन है इसलिये घर में ही चैत्यालय के रूप में एक बंदी बनवाकर उसमें पांच मूर्तियां विराजमान कर दो हैं। इसके अतिरिक्त नैनागिर सिद्ध क्षेत्र में समवसरण में एवं बाहुबली के पास मूलमन्दिर (कर्नाटक) में मूर्तियां विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त किया । आपके शुद्ध खानपान का नियम है जिसे उन्होंने संवत् 1998 में सूर्यसागर जी महाराज के पास लिया था। मुनिभक्त हैं आचार्य वीर सागर जी, शिवसागर जी एवं निर्मलसागर जी सभी की भक्ति कर चुके हैं। आहार देने में रुचि रखते हैं। आप दानी स्वभाव के हैं लूणवा धर्मशाला एवं साद्धूमल विद्यालय में एक एक कमरा बनवाया है। सागर की विद्यालय में भी कमरा बनवाया है। सीकर के विद्यालय में कमरा बनवाया, लूणवा में भी मन्दिर से फाटक तक फर्श बनाई हैं। फतेपुर में विद्यालय में भी काम करवाया है। जयपुर की विजैराम जी पांड्या की नशियां में जीर्णोद्धार का कार्य करा चुके हैं। कल्याण निकेतन सम्मेदशिखर के संरक्षक हैं। महासभा की ट्रस्ट कमेटी के ट्रस्टी हैं। दो बार पूरे तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपके पिताजी साहब गिरधारी लाल जी का पालन पोषण मुनि श्री विजयसागर जी महाराज की माता द्वारा हुआ था । इसलिये ये भी धार्मिक प्रकृति के थे। उनका स्वर्गवास 17 दिसम्बर, 1941 को जब वे 60 वर्ष के थे तभी हो गया। आपकी माताजी मेखा देवी का स्वर्गवास 19 अगस्त, 1962 में हो गया। पाटनी जी सरल एवं सीधे सादे धार्मिक स्वभाव एवं आतिथ्य प्रेमी महानुभाव हैं। आपके समाधिमरण पूर्वक मृत्यु का अलिंगन की पूरी लगन है। आपको अपने बीच में पाकर हम गौरवान्वित हैं। पता: 1. हिन्दुस्तान टायर कारपोरेशन. ए.टी. रोड, गौहाटी (आप) 2. सोहनलाल उत्तमचंद पाटनी, डी-21-ए, सिवाड एरिया, बापू नगर, जयपुर । श्री शान्तिलाल पापड्या पता: भंवरलाल शान्तिलाल फर्म: सरावगी एण्ड कम्पनी, न्यू मार्केट, डिब्रूगढ (आसाम) जन्मतिथि : संवत् 1994 शिक्षा : दसवीं तक माता-पिता : स्व. भंवरीलाल जी पाण्ड्या, जिनका दि. 01/07/1981 को 67 वर्ष की आयु में सिलापधार (लखीमपुर) में स्वर्गवास हो गया । माताजी श्रीमती चन्द्रावती देवी हैं, जिनकी आयु 67 वर्ष की है। व्यवसाय : डिब्रूगढ गल्ला किराणा, सिलापथार हार्डवेयर एण्ड बिल्डिंग मेटेरियल्स तथा गौहाटी में तिरपाल तथा रेगजीन बैग इत्यादी । विवाह अक्टूबर, 1956 में श्रीमती मनोहरी देवी के रूय सम्पन्न हुआ । ! Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /125 परिवार : आपके तीन पुत्र नरेश कुमार, अनिल कुमार एवं अरूण कुमार हैं । दो पुत्रियां सरिता एवं पूनम हैं, जिनमें सिर्फ कुमारी सरिता का विवाह हो चुका है । विशेष : आपका परिवार, कर पाईनों का गंगल पबिपा है । आप दक्षिण, उत्तरपूर्व,मध्य भारत एवं पूर्व भारत के कई तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं । आर्यिका इन्दुमती माताजी आपके परिवार से सम्बन्ध रखती थी। आप सिलापधार चैम्बर ऑफ कॉमर्स के वाइस प्रेसीडेन्ट, पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाडी सम्मेलन के अध्यक्ष, डिब्रूगढ़ गल्ला किराणा एसोसियेशन के प्रमुख कार्यकर्ता रह चुके हैं तथा वर्तमान में श्री दिगम्बर जैन मन्दिर,ग्राहम बाजार की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । सामाजिक कार्यों में आपकी रुचि हमेशा रही है। आपकी माताजी एवं आपकी धर्मपत्नी दोनों दशलक्षण के उपवास कर चुकी हैं। आपका डिबूगढ में सरावगी एण्ड कं. सिलापथार में श्री महावीर स्टोर्स तथा गौहाटी में महावीर तिरपाल एन्टरप्राइजेज के नाम से कारोबार है. आपके पांच भाईयों का परिचय इस प्रकार है । 1, श्री राजकुमार जैन : शिक्षा - बी.कॉम., आयु - 48 वर्ष,उनकी पत्नी श्रीमती सोहनी देवी हैं। उनके तीन पुत्र अजित कुमार मनोज कुमार,विनोद कुमार तथा पुत्री साधना एवं सुमन हैं । इनमें पुत्र अजित कुमार तथा पुत्री साधना एवं सुमन का विवाह हो चुका है। 2. श्री पन्ना लाल जैन :शिक्षा - दसवीं पास, आयु -43 वर्ष,इनकी धर्मपत्नी श्रीमती किरण देवी जैन हैं । ये दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी है । इनके दो पुत्र आनन्द जैन एवं अनिल जैन हैं तथा एक पुत्री अर्चना जैन है । 3. श्री अशोक कुमार जैन : शिक्षा - बी.कॉम., आयु - 37 वर्ष, इनकी धर्मपत्नी श्रीमती कुसुम देवी जैन है। दोनों पति-पत्नी एक साथ दशलक्षण धर्म के व्रत कर चुके हैं । इनकी दो पुत्रियां मून एवं मुद्रा जैन हैं। अशोक जी को भी सामाजिक कार्यों में काफी अभिरुचि रही है। 4. श्री पवन जैन : शिक्षा - बीकॉम, आयु • 33 वर्ष, इनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरिता जैन हैं,ये भी अष्टान्हिका व्रत के उपवास कर चुकी हैं। इनके एक पुत्री रुचि एवं एक पुत्र रौनक हैं। 5. श्री प्रदीप कुमार : इन्होंने दसवीं की परीक्षा पास करने के पश्चात् व्यापार में अभिरुचि ले रखी है,ये अभी तक अविवाहित हैं,इनकी उम्र 25 वर्ष है। श्री हुकमीचन्द सरावगी पाण्ड्या जन्म :सन् 1935 शिक्षा : सन् 1956 में डिब्रूगढ़,गौहाटी विश्वविद्यालय से बी.कॉम किया। व्यवसाय : व्यापार माता-पिता :पिताश्री मिश्रीलाल जी सरावगी - आपका 55 वर्ष की आयु में सन् 1958 में स्वर्गवास हो गया उस समय आप केवल 22 वर्ष के थे। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126/ जैन समाज का वृहद् इतिहास माताजी : श्रीमती घेवरी देवी - आयु :82 वर्ष । विवाह : आपका विवाह सन् 1951 में श्रीमती रतन देवी के साथ सम्पन्न हुआ उस समय आप 17 वर्ष के ही थे। सन्तान : आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री है। सबसे बड़ा पुत्र 33 वर्षीय श्री नरेन्द्र कुमार,एम.कॉम.,एल-एलबी.,एम.बी.ए. है । दूसरा पुत्र प्रदीपकुमार 30 वर्षीय युवा है । बी.कॉम. हैं । तृतीय पुत्र श्री अरूण कुमार 29 वर्षीय युवक है । तीनों भाईयों का विवाह हो चुका है। विशेष : श्री पाण्ड्या जी गौहाटी समाज में नवयुवकों के नेता हैं । सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं। दिगम्बर जैन पंचायत गौहाटी के चार वर्ष तक मंत्री रह चुके हैं । दि.जैन पंचायत महावीर भवन ट्रस्ट के ट्रस्टी एवं प्रारम्भ से ही जनरल सेकेट्री हैं । कामरूप चैम्बर ऑफ कॉमर्स गौहाटी की कार्यकारिणी सदस्य रह चुके हैं । गौहाटी गौशाला की कार्यकारिणी के मैम्बर हैं। पूज्य सुपार्श्वमतीजो आर्यिका संघ के तीन चातुर्मासों में आप चातुर्मास समिति के महामन्त्री रह चुके हैं। श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की पूर्वान्चल समिति के कार्याध्यक्ष हैं। सबको साथ लेकर चलने में आप कुशल हैं। तीर्थों को वंदना कर ली है। आपकी माताजी एवं धर्म-पत्नी दोनों ही बहुत धार्मिक हैं । शुध्द खान-पान का नियम पालती हैं । मुनियों एवं आर्यिका माताजी को आहार आदि से सेवा करती रहती है। पता- छगनमल सरावगी एन्ड संस फैन्सी बाजार,गौहाटी (आसाम) श्री हीरालाल पाटोदी जन्मतिथि : 60 वर्ष पूर्व । कुचामन (राज) में जन्म हुआ था। शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : गल्ला किरना (थोक एवं खुदरा) माता-पिता : स्व. श्री किशनलाल जी । 65 वर्ष की आयु में करीब 22 वर्ष पूर्व स्वाविास हुआ। माता स्व. श्रीमती गुलाब बाई। आपका स्वर्गवास पहले हो चुका था। विवाह : 42 वर्ष पूर्व श्रीमती मोहिनी देवी से आपका विवाह सम्पन्न हुआ। परिवार : आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है । पुत्र श्री ताराचन्ट 42 वर्षीय हैं । विवाहित हैं । पली का नाम मंजू है । उनके चार पुत्रियां हैं। आपकी एकमात्र पुर्वी मंजुला का विवाह हो चुका है। विशेष : श्री पाटोदी जी का जीवन बड़ा व्यस्त रहता है । स्वभाव से आतिथ्य प्रेमी हैं । आपने नया बाजार जैन मन्दिर में तथा ग्राहम बाजार जैन मन्दिर में शान्तिनाथ की पाषाण प्रतिमा विराजमान की थी । आप अधिकांश तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं । आपकी धर्मपत्नी भी धर्मपरायणा हैं . दशलक्षण वृत के एक बार उपवास कर चुको है । जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में आप एक Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /127 कमरे का निर्माण कराने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। नलबाडी पंचकल्याणक के अवसर पर मन्दिर के द्वार खोलने का कार्य आपने ही सम्पत्र किया था। उदार हृदय हैं। पता : सुरव भंडार,नया बाजार, डिबूगढ़ (आसाम) श्री हुलाशचन्द सेठी पिताश्री : श्री हरकचन्द जी सेठी,दि.27/01/1980 को देहली में स्वर्गवास हुआ। माताजी : श्रीमती सोहनी देवी। जन्मतिथि :माह सुदी 14 संवत् 1997 शिक्षा : बी कॉम (ऑनर्स),गौहाटी विश्वविद्यालय से। विवाह : 3 फरवरी 1961 पत्नी का नाम: श्रीमती तारामणी जो सुपुत्री श्री प्रकाश चन्द जी पाण्ड्या,कोटा। परिवार : पुत्री - 3 सुमन, संगीता एवं सारिका | सुमन एवं संगीता दोनों विवाहित हैं । सारिका वनस्थली विद्यापीठ में अध्ययन कर रही हैं। पुत्र · एक,सुकुमाल सेठी,विवाहित, बी कॉम - बिलारी सूगर मिल के डायरेक्टर। व्यवसाय : उद्योगपति,महावीर इण्डस्ट्रीज,तिनसुकिया के संस्थापक । विशेष : श्री सेठी जी का जीवन पूर्णतः धार्मिक है । प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं। सम्मेदशिखर जी, हस्तिनापुर, तिनसकिया सीतापुर गोरखपर नलबाडी आदि में इन्द्रध्वज विधान का आयोजन करने का एवं उसमें दोनों पति-पत्नी इन्द्र-इन्द्राणी के पद को सुशोभित कर चुके हैं। बुन्देलखण्ड को छोड़कर सभी तो थों की वन्दना कर चुके हैं । मुनियों एवं साधुओं को आहार देते रहते हैं । अष्टमी चतुर्दशी को एक बार भोजन करने का नियम लिया हुआ है । शान्त एवं सरल स्वभावी हैं। सामाजिक : श्री सेठी जी महासभा के स्थायी सदस्य हैं । नेशनल चैम्बर ऑफ कॉमर्स के तीन बार सेक्रेट्री रह चुके हैं। स्टेशन कन्सलटेशन,तिनसुकिया के सदस्य हैं । वेस्टर्न रेल्वे यूजर्स कन्सलटेशन कमेटी के सदस्य रह चुके हैं। । __ आपके बड़े भाई श्री निर्मल कुमार जी सेठी अध्यक्ष भा दि.जैन महासभा है। छोटे भाई श्री महावीर कुमार जी एवं दिनेश कुमार जी हैं । तिनसुकिया जैन समाज के प्रतिष्ठित एवं सम्मानित समाजसेवी हैं। पता : निर्मल कुमार हुलाश चन्द,साइडिंग बाजार,तिनसुकिया (आसाम) 000 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128/ जैन समाज का वृहद् इतिहास __ यशस्वी समाज सेवी वैसे तो समाज के सभी वयस्क समाजसेवी हैं । समाज के विकास में उनका कहीं न कहीं योगदान रहता ही है । लेकिन वे महानुभाव यशस्वी समाज सेवी हैं जिन्होंने समाज सेवा में अपना यशस्वी योगदान दिया है । मन्दिर निर्माण कराया है, प्रतिमायें विराजमान की हैं, जैन विद्यालयों के संचालन में आर्थिक योगदान दिया है । जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में आर्थिक सहयोग दिया है । मुनियों की भक्ति की है उन्हें आहार देकर अपने जीवन को उज्जवल किया है। तीर्थों की वन्दना की है तथा उनके जीर्णोद्धार एवं संरक्षण में योग दिया है। जो संस्थाओं के पदाधिकारी एवं सदस्य हैं । समाज पर अथवा साधर्मी बन्धुओं पर विपत्ति आने पर उसके निराकरण को तत्पर रहते हैं । जिनका जीवन पूर्णतः जैन पद्धति के अनुसार चलता है । इनके अतिरिक्त ऐसी और भी उनको विशेषताएं हैं जिसमें उनको भगवान महावीर का अनुयायी कहलाने में गौरव होता है । उक्त शीर्षक के अन्तर्गत हमने ऐसे ही यशस्वी समाज सेवियों का परिचय दिया है। -सम्पादक डीमापुर डीमापुर इम्फाल गौहाटी डीमापुर डीमापुर डीमापुर 1. श्री अजय चन्द सेठी ति निमः 2. श्री अशोक कुमार कासलीवाल गौहाटी 3. श्री कपूरचन्द जी पाटनी गौहाटी 4. श्री किशन लाल सेठी नलबाड़ी 5. श्री कैलाशचन्द झांझरी नलबाड़ी 6, श्री गणपतराय चूडीवाल डिबूगढ 7. श्री केशरीमल छाबड़ा इम्फाल 8. श्री चम्पालाल पाटोदी डिब्रूगढ 9. श्री जय कुमार काला गौहाटी 10. श्री जयचन्द लाल पाण्ड्या मनमौजी डीमापुर 11. श्री जालमचन्द बगडा गौहाटी 12. श्री ज्ञानचन्द पाटनी इम्फाल 13. श्री ज्ञानप्रकाश टोंग्या 14. श्री झूमरमल कासलीवाल प्रभात 15. श्री टीकमचन्द पाटनी इम्फाल भी गरमल गगनाल 17. श्री धर्मचन्द झांझरी 18. श्री रथमल बाकलीवाल 19. श्री नन्दलाल गंगवाल 20. श्री निर्मल कुमार झांझरी 21. श्री नेमीचन्द छाबड़ा 22. श्री पदम कुमार सेठी 23. श्री पत्रालाल गंगवाल 24. श्री परतुलाल छाबड़ा 25. श्री प्रकाश चन्द गंगवाल 26. श्री प्रेमसुख सेठो 27: श्री फूलचन्द बगडा 28. श्री भंवरलाल काला 29. श्री भंवरलाल सेठी 30. श्री भंवरीलाल पाण्ड्या सरावगी डोमापुर डीमापुर डिब्रूगढ़ गौहाटी इम्फाल डीमापुर गौहाटी गौहाटी डीमापुर Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/129 डीमापुर तिनसुकिया तिनसुकिया गौहाटी नलबाड़ी करीमगंज बाजार शिवसागर डीमापुर तिनसुकिया धूबड़ी' 31, श्री भागचन्द पाटनी 32. श्री मदनलाल पाटनी गौहाटी 33, श्री मदनलाल बड़जात्या इम्फाल 34. श्री मदनलाल पाटनी तिनसुकिया 35. श्री मदनलाल सेठी तिनसुकिया 36. श्री मन्नालाल छाबड़ा गौहाटी 37. श्री महाचन्द सेठी सिंघई इम्फाल 38. श्री महावीर प्रसाद गोधा डिगढ 39. श्री महीपाल पाटनी गौहाटी 40. श्री महावीर प्रसाद जैन पाण्ड्या गौहाटी 41. श्री मानमल छाबड़ा इम्फाल 42. श्री मानिकचन्द पाटनी इम्फाल 43. श्री मिश्रीलाल बगडा (कासलीवाल) डिबूगद्ध 44. श्री मिश्रीलाल बाकलीवारः 45. श्री मूलचन्द गंगवाल डिबूगढ़ 46. पूलचन्द छाबड़ा नलबाड़ी 47. श्री मेघराज पाटनी गौहाटी 48. श्री मोहनलाल बाकलीवाल तिनसुकिया 49. श्री मोहनलाल रास नलबाड़ी 50. श्री मोहनलाल सेठी इम्फाल 51. श्री रखीलाल पाटनी 52. श्री रामगोपाल पाटनी 53. श्री रामदेव पाटनी 54. श्री रूपचन्द छाबड़ा शास्त्री 55. श्री लक्ष्मीनारायण बड़बात्या 56. श्री लक्ष्मीनारायण राग 57. डॉ.लालचन्द पाटनी 58. श्री लूणकरण पाण्ड्या 59. श्री शिखरीलाल बड़जात्या 60. श्री सन्तोष कुमार पाटनी 61. श्री विजय कुमार पाण्ड्या 62. श्री सम्पत कुमार पाटनी 63. श्री सम्पतराम पहाड़िया ॐ मागणल गरी चूडीवाल गदिया 65. श्री सौभागमल झांझरी 66. श्री मोहनलाल सांगा पाटनी 67. श्री स्वरूपचन्द पहाड़िया 68. श्री श्रीचन्द सेठी 59. श्री हनुमान प्रसाद बड़जात्या 74), श्री हंसराज पाण्ड्या 71. श्री हुकमचन्द टोंग्या गौहाटी गौहाटी इम्फाल इम्फाल वरपेटा रोड तिनसुकिया तिनसुकिया डिब्रूगढ गौहाटी करीमगंज बाजार शिलांग डीमापुर Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री अखयचन्द सेठी जन्मतिथि : वैशाख सुदी 3 संवत् 1943 | शिक्षा : सामान्य - डेह (राज) में शिक्षा प्राप्त की है। पाता-पिता : श्री फ़तेहचन्द जी सेठी,74 वर्ष की आयु में आपका सन् 1971 में स्वर्गवास हुआ ! 89 वर्षीय श्रीमती गहूदेवी जी का आर्शीवाद आपको प्राप्त है। विवाह : संवत् 2001 फल्गुन सुदी 2 को आप श्रीमती रुक्मणी देवी के साथ विवाह सूत्र में बन्धे । सन्तान : आपके एक मात्र पुत्री सुमित्रा है जिसका विवाह डीमापुर के श्री डूंगरमल जी के सुपुत्र श्री नवरलमल जी के साथ हो चुका है। व्यवसाय : गल्ला विशेष : सन् 1981 तक आप सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं। तिनसुकिया में वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव पर पति-पत्नी ने इन्द्र-इन्द्राणी के पद को सुशोभित किया । सेठी जी तिनसुकिया जैन समाज के पिछले 5 वर्षों से उपमन्त्री हैं। समाजसेवी हैं, स्वाध्यायशील है तथा शान्त एवं सरल प्रकृति के हैं। आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । सन् 1977 में दशलक्षण व्रत के उपवास एवं सन् 1981 में अष्टान्हिका वत उपवास कर चुकी हैं । महिला समाज की प्रमुख कार्यकर्ता हैं। मुनि भक्ति में रुचि रखती हैं । प्रतिदिन पूजा-पाठ करती हैं। आर्यिका इन्दुमती माताजी से आपका पारिवारिक सम्बन्ध रहा था । पता : सेठी बदर्स एण्ड कम्पनी, महजिदपट्टी रोड,तिनसुकिया (आसाम) श्री अशोक कुमार कासलीवाल जन्मतिथि :21 फरवरी सन् 1951 शिक्षा : बी कॉम. पाता-पिता : पिता श्री दीपचन्द जी कासलीवाल माता श्रीमती मूली देवी विवाह : 30 अप्रैल 1975 पत्नी : श्रीमती शान्ति देवी सन्तान : पुत्र-2 - टिन्कू चिन्कू Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुत्री - L रूबी विशेष : युवा कार्यकर्त्ता हैं। सामाजिक कार्यों में रुचि रखते हैं। दिगम्बर जैन पंचायत गौहाटी के संयुक्त मंत्री, लायन्स क्लब के सक्रिय सदस्य महासभा के सदस्य, राजनैतिक एवं धार्मिक कार्यों में रुचि रखते हैं। खेल-कूद में विशेष रुचि है। तीर्थ-यात्रा प्रेमी हैं । श्री दीपचन्द कपूरचन्द कासलीवाल, गौहाटी (आसाम) पता: श्री कपूरचन्द पाटनी जन्मतिथि : 10 नवम्बर 1942 शिक्षा : एम.ए. (1963) एल एल. बी. (1965) कलकत्ता विश्वविद्यालय से । व्यवसाय : एडवोकेट, सीमेन्ट एवं हार्डवेयर के व्यवसायो । पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 131 : माता-पिता श्री चम्पालाल जी पाटनी आपका स्वर्गवास 72 वर्ष की आयु में सन् 1985 में हुआ। माताजी श्रीमती भंवरी देवी की छत्रछाया अभी प्राप्त है। L विवाह आपका विवाह दि. 28/11/1901 को श्रीमती मणिमाला के साथ सम्पन हुआ। मणिमाला भी मैट्रिक पास हैं। सन्तान : आपके एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। एक पुत्र राजेश कुमार कॉलेज के विद्यार्थी हैं। सबसे बड़ी पुत्री सुनिता का विवाह हो चुका है। कुमारी बेला एवं अनुराधा दोनों पढ़ रही हैं। विशेष : धार्मिक प्रवृत्ति सन् 1965 में होने वाले गौहाटी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आपने इन्द्र के पद को सुशोभित किया। आपके घर में ही जिन चैत्यालय का निर्माण करवाकर वर्ष 1963 में उसमें प्रतिमा विराजमान की थी आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है। वे मुनियों को आहार देती रहती हैं। सामाजिक सेवा : श्री दि. जैन विद्यालय गौहाटी के मंत्री हैं। सामाजिक सेवा में गहरी रुचि है। गौहाटी के प्रमुख समाज सेवी माने जाते हैं । कामरूप चैम्बर ऑफ कॉमर्स के 7 वर्ष तक मंत्री रह चुके हैं। नार्थ ईस्ट फ्रन्टियर रेल्वे एडवाइजरी बोर्ड, टेलीफोन एडवाइजरी बोर्ड गौहाटी, प्राधिकरण न्यास के सम्माननीय सदस्य हैं। साहित्य सेवा : आपके समालोचनात्मक एवं जैनधर्म सम्बन्धी लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। आसाम ट्रिब्यूनल (दैनिक) जागृत (साप्ताहिक) पर्व ज्योि 132/ जैन समाज का वृहद् इतिहास अच्छे वक्ता एवं लेखक हैं। आप विद्यार्थी अवस्था में अधिकांश कक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते रहे। असमिया न भाषा में लिख "भाषा में लिख १६ A Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132/ जैन समाज का वृहद् इतिहास अच्छे वक्ता एवं लेखक है। आप विद्यार्थी अवस्था में अधिकांश कक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते रहे । असमिया भाषा में लिखने में विशेष रुचि है। हाल ही में "द्रव्य संग्रह" पर एक प्रश्नोत्तरी टीका प्रकाशित हुई है । पता : कपूरचन्द जैन एण्ड सन्स, कामर्स हाऊस, ए.टी.रोड,गौहाटी-1 श्री किशनलाल सेठी शिक्षा : सामान्य माता-पिताः पिता श्री शिवदानमल जी सेठी - आपका 55 वर्ष की आयु में राजस्थान के गांव बेरी पो.पिलानी में देहान्त हो गया था। स्वर्गवास हुये 43 वर्ष हो चुके हैं । भाता श्रीपती मिश्री बाई जी - आपकी मृत्यु 32 वर्ष की आयु में ही हो गई थी। व्यवसाय : वस्त्र व्यवसाय ब्रोकर विवाह : संवत् 2011 में आपको सुश्री इन्दिरा देवी के साथ विशह भागलपुर में सम्पन्न हुआ था । सन्तान : आपके पुत्र एवं 1 पुत्री है। I. श्री शान्तिकुमार - आयु 27 वर्ष - धर्मपत्नी श्रीमती ललिता देवी,पुत्र . 2 एवं एक पुत्री है । 2. श्री नरेश कुमार की आयु 24 वर्ष,पत्नी श्रीमती सोनिया देवी,एक पुत्री एवं एक पुत्र से सुशोभित है। 3. रमेशचन्द दीपक एवं राजकुमार एवं जितेन्द्र सभी पढ़ रहे हैं। पुत्री - एक मात्र संगीता की शादी गौहाटी में श्री हजारीमल जी झांझरी के सुपुत्र राजकुमार जी के साध्य हुई है। संगीता दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। विशेष: आपके चाचाजी श्री नन्दलाल जो सेठी तृतीय प्रतिमाधारी थे। आपका स्वर्गवास सं.1973 में सपाधिमरण पूर्वक इम्फाल (मणिपुर) में हुआ था। आपने अब तक सारे भारतवर्ष की दो बार तीर्थ बन्दना की है । नलबाडी में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप यातायात विभाग के मंत्री थे। वर्तमान में वीर आदर्श मण्डल के प्रचार मन्त्री हैं । सामाजिक कार्यों में सबसे आगे रहते हैं। आपके छोटे भाई श्री मदन लाल जो सेठी परम मुनिभक्त हैं। शुद्ध जल-पान का नियम है जिसे सं.2012 साल से परमपूज्य मुनि 108 श्री महावीर कीर्ति जी महाराज से लिया था। दशलक्षण खत अष्टान्हिका व आपने किये हैं। आपकी आयु 53 वर्ष की है। आपके एक पुत्री मनीकान्ता है जिसका विवाह हो चुका है। पता : मै, किशनलाल शान्तिकुमार जैन सेठी, कॉलेज रोड, नलवाडी (आसाम) श्री कैलाश चन्द झांझरी जन्मतिथि : आषाढ सुटी संवत् 1988 शिक्षा-सामान्य Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 133 - माता-पिता : श्री जीवणलाल जो झांझरी आयु 95 वर्ष, श्रीमती इजरज बाई आयु 90 अभी आपको दोनों का ही आर्शीवाद प्राप्त है। व्यवसाय: कपड़ा एवं ठेकेदारी विवाह: संवत् 2003 में हुआ। पत्नी का नाम श्रीमती परमेश्वरी देवी है। - सन्तान : पुत्र - 1. श्री पदमचन्द - आयु 39 वर्ष पत्नी श्रीमती शकुन्तला, दो पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं । - 1 2. श्री कमल कुमार आयु 36 वर्ष । पत्नी श्रीमती सुशीला । आपके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। आप एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। गणपतराव चूडीवाल (गदिया) 3. नरेन्द्र कुमार आयु 35 वर्ष आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। 4. महेन्द्र कुमार आयु 33 वर्ष एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । . 5. सुरेश कुमार आयु 27 वर्ष एक पुत्री है। 6. सुशील 22 वर्ष अविवाहित हैं। - - पुत्रियां : तीन राज, मंजू एवं मुत्री। तीनों का ही विवाह हो चुका है। विशेष : नलबाड़ी के मन्दिर के भण्डार व्यवस्थापक रह चुके हैं। बीमारी के पूर्व प्रतिदिन पूजा-पाठ करते थे । आपकी पत्नी ने शुद्ध खान-पान का नियम ले रखा है। साधुओं को आहार देने में पूर्ण रुचि है । एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। आपके दो छोटे भाई हैं जिनके नाम रतन लाल, सुमेर मल है जो अपना स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं । पता : सुमेरमल पदमकुमार, एन.टी. रोड, नलबाडी (आसाम) जन्मतिथि : माघ बुदी 19 सं. 1988 शिक्षा : सामान्य माता-पिता : श्री चांदमल जो गदिया। आपका 72 वर्ष की आयु में 8 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ। 77 वर्षीय माता श्रीमती मोहिनी देवी जी का आर्शीवाद आपको प्राप्त है। व्यवसाय : जनरल मर्चेन्ट्स Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134/ जैन समाज का वृहद इतिहास विवाह सं. 2003 में उमरादेवी के साथ सम्पन्न हुआ। गानगोष wwws AnTM 65 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 135 विशेष : सुल्तानगंज के मन्दिर में आपकी माताजी द्वारा धातु की नेमिनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान की गयी थी। आपने सभी तीर्थों की वन्दना करली है। दि. जैन मन्दिर कमेटी इम्फाल के संयुक्त मंत्री, महाबीर दि. जैन हाई स्कूल की कार्यकारिणी सदस्य, चैम्बर ऑफ कॉमर्स के ट्रस्टी हैं। आपने नलबाडी प्रतिष्ठा महोत्सव के पंचकल्याणक में स्वर्णकलश लिया था। इम्फाल में आपके पिताजी मुकन्दगढ (जयपुर) से व्यवसाय के लिये आये थे । आपके 4 भाई और हैं जिनमें जगन्नाथ का स्वर्गवास हो चुका है। 1. धनकुमार जी आयु 53 वर्ष, पत्नी मैनादेवी, दो पुत्र चार पुत्रियां । 2. धर्मचन्द : आयु 48 वर्ष, धर्मपत्नी पार्वती देवी, एक पुत्र, दो पुत्रों, आप एम. कॉम., एल.एल.बी. है जापान आदि देशों में भ्रमण कर चुके हैं। 3. सन्तोष कुमार एम. कॉम. एवं सी.ए. हैं। पत्नी का नाम कुसुम है। तीन पुत्र हैं। श्री धर्मचन्द जी के बड़े पुत्र संजय कुमार ने मालविया इन्जीनियरिंग कॉलेज, जयपुर से 1980 में मैकेनिकल ब्रांच में इन्जीनियरिंग परीक्षा पास की। आप गोल्ड मेडिलिस्ट हैं। श्री केशरीमल जी छाबड़ा के कमल हार्डवेयर इम्फाल एवं नेशनल हार्डवेयर स्टोर, थांगल बाजार, इम्फाल है। ये दो व्यापारिक प्रतिष्ठान और है। पता : शिवकरण केशरीमल छाबड़ा, थांगल बाजार, इम्फाल (मणिपुर) श्री चम्पालाल पाटोदी आयु : 72 वर्ष शिक्षा : सामान्य - माता-पिता : स्व. किस्तूरचन्द जी पाटोदी। जब आप केवल एक वर्ष के थे तभी पिताजी fat मृत्यु हो गई। आपकी माताजी भी 40-45 वर्ष पूर्व आपको छोड़कर चल बसी । मनभावती देवी धर्मपत्नी चप्पालाल पाटोदी व्यवसाय : एजेन्सी, मणिहारी दुकान, स्टेशनरी एवं होटल व्यवसाय, डिब्रूगढ | विवाह : संवत् 1958 में आपका विवाह मनभावती देवी के साथ सम्पन्न हुआ । सन्तान : चार पुत्र एवं एक पुत्री 1. महावीर : बी.कॉम. हैं 38 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी का नाम भगवती। तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों से अलंकृत | जैन मन्दिर के उपमन्त्री रह चुके हैं। 2. पवन कुमार आयु 34 वर्ष पत्नी का नाम कनकलता। दो पुत्र एवं एक पुत्री I Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 / जैन समाज का बृहद् इतिहास 3. विनोद कुमार : आयु 30 वर्ष । पत्नी सरिता दो पुत्र एवं एक पुत्री है। 4. अशोक - 28 वर्ष । पत्नी अंजना तीन पुत्रों से अलंकृत हैं। विशेष : पाटोदी जी कर्मठ समाज सेवी हैं। नया बाजार के जैन पन्दिर के सेक्रेट्री रह चुके हैं। डिब्रूगढ़ के फूड ग्रेन रिटेल एसोसियेशन के भी सेक्रेट्री रहे हैं। आपने हस्तिनापुर जम्बूद्वीप में एक कमरे का तथा डिब्रूगढ के जैन मन्दिर में भी एक कमरे का निर्माण करवाया है। आपकी धर्मपत्नी ने ४ वर्ष पूर्व दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे । आप मूलत: हिराणी ग्राम के निवासी हैं। वहां से आपके पूर्वज कुचामन आये और कुचामन से यहां डिब्रूगढ में आकर व्यवसाय करने लगे । डिब्रूगढ़ में ही किस्तूरमल चम्पालाल, अशोक होटल, के.सी. एजेन्सीज एवं संजय स्टोर के नाम से चार प्रतिष्ठान और हैं। पता : अशोक होटल, न्यू मार्केट, डिब्रूगढ (आसाम) श्री जयकुमार काला जन्मतिथि: 25 मार्च 1938 शिक्षा : मैट्रिक व्यवसाय: गौहाटी एवं विजयनगर में किराणा का व्यवसाय माता-पिता : श्री भंवरलाल जी काला 45 वर्ष की आयु में स्वर्गवास । श्रीमती तीजा देवी 65 वर्ष। विवाह : 7 जुलाई सन् 1953 को कानखी (पं. बंगाल) में श्रीमती तारादेवी से विवाह हुआ। सन्तान पुत्र 5 1. अजीत कुमार, आयु 35 वर्ष । 2. कपूरचन्द, आयु 33 वर्ष, 3. प्रदीप कुमार, आयु 31 वर्ष, शिक्षा - बी.कॉम. । 4. धनकुमार, आयु 29 वर्ष, शिक्षा - बी. कॉम. । 5. मनोजकुमार, आयु 26 वर्ष, शिक्षा - बी. कॉम. । सभी अपने-अपने स्वतन्त्र व्यवसाय रत हैं । पुत्री मीरा एवं रेखा दोनों विवाहित हैं। ▾ I Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 137 श्री काला जीं राजनैतिक एवं सामाजिक दोनों क्षेत्रों में प्रभावशाली नेता हैं। अच्छे वक्ता हैं। विजय नगर जैन समाज के प्रभावशील व्यक्ति हैं । महासभा के कट्टर समर्थक हैं। आपकी धर्मपत्नी मुनिभक्त है । साधुओं को आहार देती रहती हैं। भा दि. 'जैन युवा परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष हैं। विजय नगर पंचकल्याणक में युवारत्न एवं कर्मवीर की उपाधि से सम्मानित हैं। विजय नगर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह के महामन्त्री हैं। दि. जैन समाज विजयनगर के जैन महासभा मंत्री हैं। की केन्द्रीय समिति के उपाध्यक्ष हैं। दि. जैन गर्ल्स हाईस्कूल विजय नगर के संस्थापक अध्यक्ष हैं। राजनीति: श्री काला जी कांग्रेस (आई) के कट्टर समर्थक, गौहाटी नगर एवं जिला काँग्रेस के उपाध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष (1978-8.3 तक) गौहाटी नगर परिषद् (1983-85) के उप मुख्य प्रशासक गौहाटी थोक विक्रेता संघ के चेयरमैन रहे हैं । पता : एम.एस. रोड, फैन्सी बाजार, गौहाटी (आसाम) श्री जयचन्द लाल पाण्ड्या "मनमौजी" श्री मनमौजी का जन्म पौष सुदी 4 संवत् 1984 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका संवत् 2001 में श्रीमती सरस्वती देवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। पिताजी . स्व. श्री हरकचन्द जी पाण्ड्या एवं माताजी श्रीमती मोन्ती देवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। सन्तान : आपके दो पुत्र हैं - श्री विजय कुमार एवं निर्मल कुमार हैं। विजय कुमार का विवाह श्रीमती शान्ता के साथ सम्पन्न हो चुका है। आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त है। दो पुत्रियां हैं - सुशीला एवं शकुन्तला दोनों का विवाह हो चुका है। विशेष : [ कहा जाता है कि करीब 150-175 वर्ष पूर्व आपके पूर्वजों के समय श्रीमती टोमा देवी अपने पति के साथ सती हुई थी। आपके परिवार में अभी भी उनकी मान्यता है। इसके अतिरिक्त मेन्सर के मन्दिर में आपके बाबाजी ने मूर्ति विराजमान की थी। विशेषता: मनमौजी जी अच्छे राजस्थानी कवि हैं। आपकी अब तक तीन पुस्तकें (1) मेवो मारवाड रो, (2) मरूधर माधुरी एवं (3) सवैया संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं। आप जब सस्वर कविता पाठ करते हैं तो सबको अपनी ओर सहज ही आकृष्ट कर लेते हैं 1 मुझे भी उनकी कविता पाठ सुनने का अवसर मिल चुका है। आपकी धर्मपत्नी मैन्सर ग्राम की हैं और वही आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी का भी गांव है। आपके शुद्ध जल-पान का नियम है। साधुओं की सेवावृत्ति, आहार आदि देने में रुचि रखती हैं। पता : विजय मिल, काली बाडी रोड, डीमापुर (नागालैण्ड) श्री जालमचन्द बगड़ा (कासलीवाल) आयु : 82 वर्ष शिक्षा : सामान्य Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138/ जैन समाज का वृहद् इतिहास । व्यवसाय : चावल के थोक व्यापारी माता-पिता : स्व. जुहारमल जी सरावगी, 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास, स्व. श्रीमती केशरबाई, 58 वर्ष की आयु में स्वर्गवास। विवाह : संवत् 1982 में श्रीमती मांगीदेवी जी के साथ विवाह हुआ। आपका स्वर्गवास मई 1987 में हो चुका है। सन्तान : दो पुत्र 1. श्री धर्मचन्द,आयु - 41 वर्ष,पली श्रीमती सुशीला - पुत्र दो एवं पुत्री एक। 2. श्री अशोक कुमार, आयु - 39 वर्ष, बी.कॉम.। विशेष : गौहाटी पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे । दोनों ने सभी तीर्थों की वन्दना की है : महासभा के ध्रुव फण्ड ट्रस्ट के सदस्य हैं। आपकी धर्मपत्नी बड़ी धर्मपरायण थी। मुनि महाराजों को आहार देने में रुचि थी । गौहाटी समाज में आपका अच्छा सम्मान है। पता :केदार रोड,गौहाटी (आसाम)। फोन नं.26062 | श्री ज्ञानचन्द पाटनी आयु : 48 वर्ष, जन्मस्थान : इम्फाल आयु : वर्तमान में पाटनी जी की आयु 45 वर्ष है । शिक्षा : आपने इन्टर की परीक्षा सन् 1941 में मणिपुर कॉलेज से पास की थी। पिताजी : श्री स्व. प्रेमसुख जी पाटनी, 52 वर्ष की आयु में सन् 1949 में स्वर्गवास हुआ । माताजी : श्रीमती गुणमाला देवी जी, वर्तमान में आपकी आयु 60 वर्ष हैं। विवाह : वर्ष 1962 में श्रीमती उषा के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ । श्रीमती उषा कपूरचन्द जी कासलीवाल की सुपुत्री हैं तथा इन्टर तक अध्ययन किया है । परिवार : एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां । श्री संजय कुमार इन्टर तक पढ़े हैं। विवाहित हैं । संगीता पत्नी का नाम है । एक पुत्री हैं । तीन पुत्रियों में शर्मिला का विवाह गुलाबचन्द जी सौगानी के सुपुत्र श्री राकेश के साथ हो चुका है। शेष दोनों पुत्रियां रुचि एवं पूजा पढ़ रही हैं। विशेष : आपकी मानाजी श्रीमती गुणमाला पाटनी महिला समाज की मंत्री हैं तथा समाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेती हैं । आपके पिताजी भी समाज को विभूति थे तथा सभी गतिविधियों में आगे रहते थे । स्व.पाटनी जी ने मणिपुर पब्लिक लाइब्ररी Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/139 का निर्माण करवाकर उसे नगर को समर्पित करने में यशस्वी कार्य किया था। यहां के जैन मन्दिर के निर्माण में भी उनका पूरा योग रहा। ___ आपके पूर्वज श्री जयसुख लाल जी बेरी से करीब 100 वर्ष पूर्व यहां आकर व्यवसाय करने लगे थे। पहले आधा इम्फाल पाटनी परिवार का कहलाता था । नगर में उनका पूरा सम्मान था । पहले आपकी फर्म का नाम गणेशलाल प्रेमसुख था। प्रेमसुख जी का जन्म बेरी में हुआ था । वर्तमान में आपके वहां मकान हैं। प्रेमसुख जी ने तीन विवाह किये थे। तीसरा विवाह करीब 40 वर्ष पूर्व किया । पहली पली श्रीमती मोहनदेवी से स्व. गुलाबचन्द 'झो पाटनी,स्व.लालचन्द जी पाटनी एवं झूपरमल जी पाटनी हुये। दूसरी पत्नी से स्व.दीपचन्द जी पाटनी हुये। पता : प्रेमसुख ज्ञानचन्द पाटनी,पावना बाजार, इम्फाल (मणिपुर) श्री ज्ञानप्रकाश टोंग्या जैन जन्मतिथि: 15 जून सन् 1949 शिक्षा : 1. बी कॉम.(आनर्स) राज.विश्वविद्यालय से । सन् 1968 में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 2. कम्पनी सेक्रे गी हन्टर भीजियेट) सन् 1976 । 3. चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट - 1971 मेरिट लिस्ट में स्थान प्राप्त किया था। पिता : श्री सूरजमल जी टोंग्या.माता - श्रीमती नारंगी देवी। परिवार : भाई . श्री चन्द्रप्रकाश दोग्या.पत्नी - श्रीमती प्रेमलता। विवाह : श्री प्रकाशचन्द जी जैन, आई.ए.एस. जयपुर की सुपुत्री श्रीमती प्रभा के साथ सम्पन्न हुआ। सन्तान : पुत्री - स्वाति एवं शिल्पा,पुत्र - सौरभ, भतीजी - रीना । विशेष : श्री टोंग्या जी सन् 1971 से कार्यरत हैं। सर्वप्रथम राजस्थान स्पीनिंग एण्ड वीविंग मिल लि. देहली में वित्त अधिकारी एवं कानून परामर्शक रहे । 1. सन् 1974 में मोहन स्टील्स लि.कानपुर में काम किया। 2. फिर 1974-76 तक जे.के. प्लास्टिक प्रोडक्ट्स लि., कानपुर में कम्पनी सेक्रेट्री रहे । 3. सन् 1976-84 तक वुड क्राफ्ट्स प्रोडक्ट्स लि.में मैनेजर के रूप में कार्य किया। 4. सन् 1984-87 तक कुड़ा क्राफ्ट प्रोडक्ट्स लि. में प्रबन्ध संचालक के पद पर कार्य किया। 5. सन् 1987 से रिलाइबिल प्रोडक्ट्स प्राइवेट लि.में डाइरेक्टर के पद पर एवं वर्तमान में स्वयं स्वतन्त्र रूप से ऑडट वर्क करते हैं। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140/ जैन समाज का बृहद् इतिहास विदेश भ्रमण: सन् 1983 में सभी यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। सभी प्लाईवुड फैक्ट्रीज के सलाहकार हैं। टोंग्या जी जयपुर निवासी हैं। आपके पिताजी बगडी से सन् 1910 में गोद आये थे। उनके दादाजी का नाम श्री गोरीलाल जी था । जयपुर के घी वालों के रास्ते में आपका पुराना मकान है । पता : जी. पी. टोंग्या एण्ड कम्पनी, चर्च रोड, डीमापुर (नागालैण्ड) श्री झूमरमल कासलीवाल "प्रभात " जन्मतिथि: 8 दिसम्बर 1925 शिक्षा : एम.कॉम., साहित्य भूषण । पिता : स्व. श्री लक्ष्मीचन्द जी कासलीवाल, आपका 52 वर्ष की आयु में 1942 में स्वर्गवास हो चुका है। माता : स्व. श्रीमती जडान देवी जी 87 वर्ष की आयु में 13 वर्ष पूर्व स्वर्गवास । विवाह : जेठ बुदी 4 सं. 1999 श्रीमती मोहिनी देवी के साथ | सन्तान पुत्र 2, पुत्रियां - 3 ज्येष्ठ पुत्र श्री योगेश विवाहित हैं, शिक्षा - बी.कॉम. द्वितीय पुत्र श्री मनोज 22 वर्ष के हैं तथा पढ़ रहे हैं। पुत्रियां 1- 3: हेमलता का विवाह श्री पत्रालाल जी सेठी के भाई भागचन्द जी सेठी, मोहिनी देवी धर्मपत्नी झूमरमल एम.कॉम., एल. एल. बी. के साथ हो चुका है। प्रेमलता का विवाह श्री दिलीप पाटनी से हुआ है। पाटनी जी सी.ए. हैं। तीसरी पुत्री कल्पना का विवाह दिनांक 8 जुलाई 1989 को श्री किशोर कुमार पाटनी, बी कॉम के साथ डीमापुर में हो गया है। कासलीवाल व्यवसाय: रूई व्यवसाय । विशेष : आप मूल निवासी वन गोउडी के हैं सन् 1917 में आपके पिताजी यहां व्यवसाय के लिये आये थे और यहीं के हो गये । सामाजिक : पूर्व मंत्री एवं संयुक्त मंत्री श्री दि. जैन महावीर हाईस्कूल, श्री दि. जैन समाज इम्फाल, दी एसोसियेट मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एवं मारवाडी धर्मशाला मणिपुर । तीर्थयात्रा के प्रेमी हैं तथा सभी तीर्थो को वन्दना कर चुके हैं। आपने चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पर फर्श का निर्माण करवाया था । पता : मै. झूमरलाल कासलीवाल एण्ड कं., थांगल बाजार, इम्फाल -75800) 1 (मणिपुर) फोन नं: 23521 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का बैन समाज/141 श्री टीकमचन्द पाटनी जन्मतिथि : पौष सुदी 11 सं. 1985 शिक्षा : सामान्य व्यवसाय: बस्त्र,गल्ला,सूत व्यवसाय माता-पिता : स्व. घेवर चन्द जी पाटनी - 55 वर्ष की आयु में 33 वर्ष पूर्व स्वर्गवास स्व. श्रीमती लादी देवी - आयु 30 वर्ष विवाह :17 वर्ष की आयु में संवत् 2002 में श्रीमती फूला देवी के साथ संपन्न हुआ। पत्नी का नाम : श्रीमती फूलादेवी जी सन्तान : पुत्र । श्री ज्ञानचन्द पाटनी 35 वर्ष । धर्मपत्नी जम्बू देवी-मैट्रिक पास 1 पुत्र - एक विकास । पुत्री • 2 मोनिका, खुशबू विशेष : श्री पाटनी जी का जीवन धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में ओतप्रोत रहता है । अपनी माताजी के षोडश कारण व्रत समाप्ति के उपलक्ष में आपने आनन्दपुर कालु (राजस्थान) के नये मंदिर में कमरा एवं वेदी बनवाकर,उसकी प्रतिष्ठा करवा कर उसमें आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान का थी। आपकी भुवाजी का पुत्र श्री रतनलाल पहाडिया नागौर वाले मुनि थे ठनका मदनगंज किशनगढ़ में समाधि मरण हुआ। लूणवा की मूलवेदी में स्वर्ण का कार्य करवाया तथा वहां एक औषधालय भवन बनवाकर गांव वालों को भेंट किया। आपकी माताजी कट्टर मुनिभक्त एवं धार्मिक स्वभाव की महिला थीं । शुद्ध खान-पान का नियम लिये हुये दो प्रतिमाधारी है । आप चैम्बर ऑफ कॉमर्स ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। आपके पिताजी स्व.घेवरचन्द जी एवं चाचाजी मोतीलाल जी सन् 1927 में इम्फाल में आये थे । आपके लघु भाता शान्तिलाल जी पाटनी इचलकरण जी में व्यवसायरत है । आपके दो बहिन- मैनादेवी एवं सुशीला देवी है। पता : टीकमचन्द ज्ञानचन्द पाटनी मानसरोवर,पावना बाजार, इम्फाल (मनीपुर) श्री डूंगरमल गंगवाल जन्मतिथि : संवत् 1996 का चैत्र मास शिक्षा : सामान्य, लेकिन आप अंग्रेजी, नगामी,मैनपुरी,असमिया बोल लेते हैं। अपना व्यापारिक कार्य कुशलता के साथ करते हैं। Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142/ जैन समाज का वृहद इतिहास माता-पिता : श्री मदनलाल जी गंगवाल 77 वर्ष-धर्म ध्यान में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भाताजी श्रीमती घेवरी देवी आयु - 70 वर्ष। विवाह : जून 1957 में गिनियादेवी के साथ विवाह संपन्न हुआ। दोनों ही डेह निवासी हैं। व्यवसाय : टायर ट्यूब के विक्रेता संतान : आपके चार पुत्र एवं एक पुत्री हैं। ज्येष्ठ पुत्र विजयकुमार 30 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी का नाम संतोष देवी है जो श्री निर्मल कुमार जी सेठी अध्यक्ष महासभा की बहिन हैं । द्वितीय पुत्र नवरल जैन हैं जिनकी आयु 26 वर्ष की है । पली का नाम सुमित्रा है । तीसरे एवं चतुर्थ पुत्र श्री सुनील कुमार एवं नवीन कुमार पढ़ रहे हैं। आपकी एकमात्र पुत्री अनिता अभी पढ़ रही है। विशेष : गंगवाल साहब बहुत ही सरल एवं आतिध्य प्रेमी हैं । लेखक को उनके यहां करीब 15 दिन तक रहने का सौभाग्य मिला था । पूरे परिवार से ही अत्यधिक स्नेह मिला । जो सदैव स्मरणीय रहगा। नागौर के पंचकल्याणक में आपके पिताजी एवं माताजी को इन्कइन्द्राणी पद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला था। आपने स्वयं ने मूडबिद्री में प्रतिमा स्थापित करने में पूरा आर्थिक सहयोग दिया। यात्रा प्रेमी हैं । दिगम्बर जैन समाज डीमापुर के प्रमुख एवं गणमान्य व्यक्ति हैं। पूरे परिवार में एक दूसरे के प्रति अत्यधिक प्रेम एवं आदर के भाव है। आपकी पत्नी श्रीमती गिनिया देवी पूरे परिवार को अपने स्नेह एवं प्यार से अनुशासन में रखती हैं। पता : जैन टायर्स,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री धर्मचन्द झांझरी जन्मतिथि : संवत् 1999 का वैशाख मास शिक्षा : मिडिल कक्षा तक तथा मनीपुरी,नगामी,नेपाली, अंग्रेजी का सामान्य ज्ञान पिताजी : श्री छिगनलाल जी झांझरी 63 वर्ष की आयु में 10 वर्ष पूर्व स्वर्गवासी हुये । माताजी : श्रीमती बसन्ती देवी जैन की आयु 73 वर्ष है। विवाह : संवत् 2016 में श्रीमती सन्तरा देवी से आपका विवाह हुआ। संतान : दो पुत्र - संजय कुमार (23 वर्ष,संदीप कुमार 14 वर्ष-दोनों पड़ रहे है।) तथा चार पुत्रियां हैं। व्यवसाय : बस व्यवसाय Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/143 विशेष; राणोली में आपके परिवार द्वारा नशियां बी में मान स्तम्प का निर्माण करवाया था । राणोली में ही जैन भवन में एक कमरे का निर्माण करवाया है। नलबाडी एवं सीकर के पंचकल्याणकों में आपके पिताजी ने इन्द्र के पद को सुशोभिक्त किया था। आपकी धर्म-पत्नी ने सभी तीर्थों की वन्दना कर ली है। आपके द्वारा डीमापुर मंदिर के समवसरण में एक मूर्ति विराजमान की गयी है । आप मुनि श्री विजय सागर जी महाराज के कट्टर भक्त रहे हैं। डीमापुर क्लॉथ एसोसियेशन के सदस्य हैं तथा भारतवर्षीय दि.जैन महासभा के सदस्य हैं । अति उत्साही कार्यकर्ता हैं। पता : डीमापुर फैन्सी स्टोर,डीमापुर श्री नथमल बाकरलीवाल जन्मतिथि : 30/06/1927 पिताश्री स्व.श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल माताश्री स्व.श्रीमती भंवरी देवी विवाह : वर्ष 1945 पत्ली - श्रीमती चम्पा देवी श्री बाकलीवाल समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । आप दार्शनिक स्वभाव के है तथा समाज सुधार की पावना रखते हैं। सन् 1972 में आप यूरोप भ्रमण कर चुके हैं। राज्य सरकार की ओर से आप इम्फाल में म्यूनिसिपल के चैयरमैनरहे । एसोसियेटेड मणिपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स इम्फाल के संस्थापक सेक्रेटरी,मारवाड़ी सम्मेलन इम्फाल शाखा के अध्यक्ष, मनीपुर होर्टीकल्चरल सोसायटी इम्फास के कोषाध्यक्ष, लायन्स क्लब इम्फाल के प्रेसीडेन्ट,मारवाडी धर्मशाला के ट्रस्टी,खादी मामोद्योग एसोसियेशन एवं आदिम जाति सेवक संघ के सैक्रेट्री रह चुके हैं । बागवानी, फोटोग्राफी एवं योग विद्या के आप प्रेमी हैं। परिवार : आपके चार पुत्र अनिल,सुनील,राकेश एवं सनतकुमार तथा दो पुत्रियां सुमन एवं अनिता है । दो पुत्र एवं पुत्री का विवाह हो चुका है। श्री नन्दलाल गंगवाल जन्पतिथि: कार्तिक सुदी 3 संवत् 1892 शिक्षा : मैट्रिक व्यवसाय: ट्रांसपोर्ट/ ट्रेवल एजेन्सी माता-पिता : स्व. श्री सदासुख जी गंगवाल । सन् 1965 में 66 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी हुये थे। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144/ जैन समाज का वृहद् इतिहास माताजी स्व. केशरदेवी। वर्ष 1976 में 70 वर्ष की आयु में स्वर्गवास । विवाह : संवत 1994 में श्रीमती भंवर देवी के साथ विवाह सूत्र में बंधे थे। सन्तान : पुत्र-2 प्रकाश चन्द आयु 42 वर्ष, पत्नी श्रीमती गीता । पुत्र एक पुत्रियां चार । पुत्र सुरेश कुमार आयु 32 वर्ष, पत्नी अरुणा । पुत्रियां तीन,पुत्र एक । विशेष : सीकर पंचकल्याणक में आपके पिताजी इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। आपके पिताजी ने मुगल हाट (बंगलादेश) में एक चैत्यालय स्थापित किया जिसे पाकिस्तान बनने के पश्चात् दीनहट्टा (बंगाल) में लाकर स्थापित किया। आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनिराजों एवं आर्थिका माताजी को आहारआदि से सेवा करती रहती है । आप बड़ी धार्मिक हैं । अब तक दशलक्षण व्रत के पांच बार तथा अष्टान्हिका व्रत का एक बार उपवास कर चुकी हैं। श्री गंगवाल जैन समाज गोहाटी के उपाध्यक्ष महावीर भवन गौहाटी के ट्रस्टी,मुनिसंघ चातुर्मास समिति के सदस्य हैं महासभा के कार्यकारिणी सदस्य,सामाजिक कार्यकर्ता,मिलनसार एवं सरल स्वभावी हैं। आप मूल निवासी सीकर (राज) के हैं। आपके पूर्वज बंगाल आये थे। सन् 1966 में आपने गौहाटी आकर अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया। पता : एस. कुमार एण्ड ब्रदर्स अधिकृत एजेन्टस् इन्डियन एयर लाइन्स, पूर्वोत्तर सीमा रेलवे आठ गांव रोड, गौहाटी (आसाम) श्री निर्मल कुमार झांझरी जन्मतिथि : , जनवरी,1957 आपके पिता दांता (राज) में रहते हैं। पिताजी श्री बालचंद जी झांझरी की आयु (62 वर्ष की एवं माताजी श्रीमती छोटी देवी जिनका स्वर्गवास 58 वर्ष की आयु में दाता में हो गया। विवाह : आपका विवाह श्रीमती किरण देवी के साथ सन् 1979 में सम्पन्न हुआ। आप दोनों तीन पुत्रियों मे सुशोभित झांझरी जी मैट्रिक्यूलेट हैं तथा अंग्रेजी एवं हिन्दी के अतिरिक्त बंगला, असमिया, नगामी भाषा के भी अच्छे जानकार व्यवसाय : आप सैल्सटेक्स के सलाहकार हैं तथा पैंट्रोल पम्प व डिपार्टमेन्टल स्टोर तथा अन्य कई व्यवसाय में संलग्न हैं। आपकी पत्नी श्रीमती किरण देवी एल.आई.सी.(बीमा) का व्यवसाय करती हैं। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/145 विशेष : आपने समयसार का सार संकलन करके उसका संपादन एवं प्रकाशन किया है। आप नाटक भी लिखते हैं और अब तक तीन नाटकों को मंचित कर चुके हैं । आपके अतिरिक्त चार भाई और हैं । जिनमें महेन्द्रकुमार रांची में प्रदीपकुमार डीमापुर एवं दिलीपकुमार व अशोककुमार आपके साथ रहते हैं। आप अब तक सभी यात्रायें कर चुके हैं। पता : बालचन्द निमल कुमा(झांझरी, एस.के.बिल्डिग कालीबाड़ो रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री नेमीचन्द छाबड़ा आपकी आयु 50 वर्ष की है। शिक्षा के क्षेत्र में आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त करके ही गृहस्थी में प्रवेश कर लिया। आपके पिताजी श्री गंगाबक्स जी का 75 वर्ष की आयु में 17-18 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ था। माताजी श्रीमती-गुलाबी देवी की छत्रछाया भी उठ चुकी है। विवाह : 17 वर्ष की आयु में श्रीमती विमला देवी के साथ आपका विवाह सम्पत्र हुआ । था। सन्तान: वर्तमान में आप दोनों सात पुत्र एवं तीन पुत्रियों से सुशोभित हैं । पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र श्री तेजपाल जैन 32 वर्षीय युवा हैं । विवाहित हैं। धर्मपत्नी का नाम सरला है। दो पुत्र एवं एक पुत्री से गौरवान्वित हैं । द्वितीय पुत्र राजकुमार 30 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी का नाम सुशीला देवी है। तीसरे पुत्र मदनलाल 26 वर्षीय हैं । पली का नाम संगीता है । चतुर्थ पुत्र श्री रतनलाल अभी 24 वर्षीय है उनका भी श्रीमती कल्पना के साथ विवाह हो चुका है । पंचम पुत्र पारसकुमार षष्ठ पुत्र संजयकुमार एवं सबसे छोटे पुत्र पंकज अभी अविवाहित हैं। तीसरी बिटिया चैना अभी अविवाहित है। तेजपाल छाबड़ा विशेषछाबड़ा जी सीधे सादे एवं सरल स्वभाव वाले महानुभाव है । धार्मिक प्रवृत्ति के हैं इसलिये सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं । सीकर के देवीपुरा मंदिर के सदस्य हैं। पता : सरावगी ब्रदर्स,स्टेशन रोड,डौमापुर (नागालैण्ड) श्री पदम कुमार सेठी श्री सेठी जी छापड़ा से राणोली आये फिर राणोली से कोहिमा और कोहिमा से करीब 20-22 वर्ष पूर्व डीमापुर आकर रहने लगे। आपके माता-पिता का नाम महादी देवी एवं श्री सुवालाल है । सन् 1965 में आपने हायर सैकण्डरी की परीक्षा पास की । आपका विवाह श्रीमती शांति देवी के साथ सम्पन्न हुआ।श्रीमती शांति देवी दशलक्षण वत के उपवास कर चुकी हैं। आपके तीन पुत्र पवन कुमार,मनीश कुमार एवं आशीष कुमार है । वंदना एक मात्र पुत्री है । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146/ जैन समाज का वृहद इतिहास धार्मिक एवं सामाजिक प्रवृत्तिः सेठी यो कमिशः प्रकृति के निण:। है । डागपुर के जैन मंदिर की चौबीसी में एक प्रतिमा आपने भी विराजमान की है । डीमापुर के जैन भवन में,राणोली के जैन भवन में तथा हायर सैकण्डरी स्कूल में एक-एक कमरे का निर्माण करा चुके हैं। भारतवर्षीय दि.जैन महासभा के ध्रुव फण्ड ट्रस्ट योजना के ट्रस्टी हैं । आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है । पूरा परिवार साधुओं को आहार देने में रुचि रखता है। पता : वंदना,मेन रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री पन्नालाल गंगवाल आयु: 46 वर्ष शिक्षा :पैट्रिक तक माता-पिता: आप श्री मोहनलाल जी के दत्तक पुत्र हैं। वर्तमान में मोहनलाल जी की आयु 67 वर्ष की है। विवाह : आपका विवाह 7 मार्च सन 1962 को श्रीमती शांतिदेवी के साथ हुआ था । आप दोनों को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । मनोज कुमार ज्येष्ठ पुत्र हैं । बी.कॉम. कर लिया है। दूसरा पुत्र किशोर कुमार पढ़ रहा है। पुत्री-2 इन्द्रा एवं मनीषा । इन्द्रा का विवाह हो चुका है। मनीषा पढ़ रही है। विशेष : आपकी धर्मपत्नी शांतिदेवी भी दो बार दशलक्षण वत के उपवास कर चुकी हैं । सन् 1987 में पुत्री मनीषा ने भी दशलक्षण के उपवास किये हैं। मनीषा ने जिस प्रसन्नता एवं हँसते-हँसते इस व्रत का पालन किया है वह देखने योग्य था । उस वर्ष लेखक उनके घर पर था । दस दिन के उपवास में भी जरा भी चेहरे पर घबराहट नहीं । पूरा परिवार ही आतिथ्य प्रिय है। पता : जैन टायर्स, डीमापुर (नागालैण्ड) मनीषा सुपुत्री पन्नालाल गगवाल श्री परतू लाल छाबड़ा जन्मतिथि: 2 जनवरी सन् 1931 शिक्षा :प्राइमरी शिक्षा प्राप्त की Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/147 पिताजी : श्री चोखचन्द जी का 72 वर्ष की आयु में सन् 1957 में स्वर्गवास हुआ | पाताजी : श्रीमती मनभरी देवी का सन् 1986 में डीमापुर में 72 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। विवाह : आपका विवाह सन् 1948 में श्रीमती विमला देवी के साथ सम्पत्र हुआ था। संतान : पुत्र-1, कांतिप्रसाद - जन्म सन् 1961, विवाहित,धर्मपली प्रभा सुपुत्री श्री मदनलाल जी चांदवाड रामगंज मंडी (राजस्थान) पुत्री-1 रेखा,20 वर्ष-डीमापुर में महावीर प्रसाद जी सेठी के सुपुत्र संजयकुमार से विवाहित । व्यवसाय : अमर रोलर मिल्स,डीमापुर,राइस मिल डीमापुर, अमर एन्टरप्राइजेज का संचालन आदि । विशेष : आपके द्वारा हस्तिनापुर के जम्बूद्वीप जिनालय में प्रमुख योगदान,सोनागिर में स्याद्वाद नगर में एक कमरे का निर्माण, डीमापुर के जैन हास्पिटल की तीसरी मंजिल के निर्माण में योगदान,डीमापुर के मंदिर की चौबीसी में एक प्रतिमा बिराजमान की । सम्मेदशिखर एवं किशनगंज आई हास्पिटल में योगदान । बैनाड (जयपुर) अतिशय क्षेत्र पर मां के नाम से एक कमरे का निर्माण एवं देश की सभी संस्थाओं के आर्थिक सहयोग देने में पदि। शुद्ध खान-पान के नियम का पालन करते हैं। आप दोनों ही मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। विदेश यात्रा : सन् 1985 में न्यूयार्क - बाशिंगटन (अमेरिका),लंदन (यूरोप) भ्रमण कर चुके हैं । यात्रा प्रेमी हैं तीर्थों की वंदना भी करते हैं। पत्ता : परतूलाल छाबड़ा.के.पी. हाउस, जैन टेम्पल रोड, डीभापुर (नागालैण्ड) श्री प्रकाशचन्द जैन गंगवाल जन्मतिथि : 35 वर्ष शिक्षा: मैट्रिक तक माता-पिता : स्व.श्री नेपीचन्द जी जैन - आपका 30 वर्ष पूर्व निधन हो चुका है । श्रीमती नारंगी देवी - आपकी छत्रछाया प्राप्त है। व्यवसाय : गल्ला विवाह : 7 फरवरी 1973 को मनफूल देवी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ । आप भी मैट्रिक पास हैं। संतान : पुत्र-3 - मनोजकुमार, विकास एवं विनीत - तीनों पढ़ रहे हैं। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 / जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष : डिब्रूगढ़ के जैन मंदिर की वेदी प्रतिष्ठा एवं सिद्धचक्र विधान में इन्द्र इन्द्राणी के पद को सुशोभित कर चुके हैं। नया बाजार जैन मंदिर डिब्रूगढ़ में पार्श्वनाथ स्वामी की पूर्ति विराजमान की थी। सभी तीर्थों की एक बार वंदना कर चुके हैं। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है। 'गंगवाल साहब सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते हैं। नया बाजार जैन मंदिर के संयुक्त सेक्रेटरी रहे हैं। मारवाड़ी दातव्य औषधालय के सदस्य हैं। महासभा के स्थायी सदस्य हैं। प्रमुख तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपकी माता के शुद्ध खान-पान का नियम है। आपके बड़े भाई शांतिलाल जी 37 वर्षीय हैं। उनकी धर्मपत्नी का नाम मैना देवी है। आपके दो पुत्र मनीष एवं सुशील, दो पुत्रियां मधुमिता एवं विनीता सभी पढ़ रही हैं। पता : शांतिलाल प्रकाशचन्द, नया बाजार, डिब्रूगढ़ (आसाम) श्री प्रेमसुख सेठी जन्मतिथि: संवत् 1969-77 वर्ष / शिक्षा : सामान्य पिताजी : श्री सूरजमल जी 85 वर्ष की आयु में कोहिमा में संवत् 20016 में स्वर्गवास हुआ। विवाह आपके तीन विवाह हुये । संवत् 1983, 1994 एवं संवत् 2000 में। वर्तमान पत्नी का नाम विलायनी देवी है। व्यवसाय: वस्त्र व्यवसाय । परिवार : पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियां | सबसे बड़े पुत्र श्री मदनलाल जी सेठी क1 3 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया। दूसरा पुत्र श्री सोहनलाल St) वर्षीय हैं बी. कॉम. है । पत्नी का नाम वनमाला देवी। दो पुत्र एवं एक पुत्री है। गौहाटी में व्यवसाथ करते हैं। तीसरे पुत्र श्री निर्मलकुमार जी 32 वर्षीय हैं। पत्नी का नाम ज्योति है। दो पुत्र एवं एक पुत्री है। चतुर्थ पुत्र श्री दिलीप कुमार बी कॉम हैं। 28 वर्षीय हैं। पत्नी का नाम नीलम आई है। एक पुत्र एवं एक पुत्री है। विनय कुमार पांचवे पुत्र हैं जो 25 वर्षीय हैं। तीनों भाई कलकत्ता में वस्त्र व्यवसाय का कार्य करते हैं। तीन पुत्रिया हैं। शकुन, सरोज एवं कुरुम तीनों विवाहित हैं। विशेष: सम्पेर्दा शखर पंचकल्याणक एवं गौहाटी पंचकल्याणक में इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हो चुके हैं। मेरी (राज.) ग्राम में तथा कोहिमा में मंदिर निर्माण में आपके पिताजी द्वारा आर्थिक सहयोग दिया गया था। बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा तीर्थ क्षेत्र कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं ! बेलगच्छ्रिया कलकत्ता मंदिर के भी कोषाध्यक्ष हैं। सेठी जी अधिकांश समय कलकत्ता में रहते हैं । एता: । भैसर्स छोगमल मदनलाल, गोहाटी (आसाम) 2. विनय टैक्सटाईल्स, पावना बाजार, इम्फाल (मणिपुर) 3. निर्मलकुमार सरावगी एण्ड कंपनी, 65, कॉटन स्ट्रीट, कलकता - 7 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री फूलचन्द बगड़ा (कासलीवाल) जन्मतिथि: वैशाख सुदी 8 संवत् 1981 शिक्षा: मैट्रिक तक अध्ययन | पिताश्री : स्व. चंदनमल जी, आपका 85 वर्ष की आयु में 9 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया। माताश्री : श्रीमती मुन्नीदेवी जी, जब आप 7 वर्ष के शिशु थे तभी स्वर्गवास हो गया था । व्यवसाय : बुक्स एण्ड न्यूज पेपर एजेन्सी । विवाह : संवत् 1996 में श्रीमती विमला देवी के साथ सम्पन्न हुआ। आर्यिका विद्यामती माताजी आपकी छोटी बहिन हैं । परिवार : चार पुत्र व्यापारिक दक्षता: धर्मयुग की एजेन्सी लेकर आप उस क्षेत्र में उतरे। सन 1952 से न्यूजपेपर बिक्री का कार्य, टाइम्स ऑफ इंडिया को एजेन्सी 15 पेपर लेकर प्रारम्भ की। लेकिन अपने सतत् अध्यवसाय से 15 हजार दैनिक पेपरों 14 हजार हिन्दी अंग्रेजी एवं हजार उर्दू के विक्रेता तथा पूरे मणिपुर स्टेट में आप मुख्य एजेन्ट हैं । पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 149 फूलचन्द बगड़ा एवं विमला देवी बगड़ा 1. कैलाशचन्द - पत्नी बीना, पुत्र- 1, पुत्रा-2 2. राजेन्द्र कुमार - बी. कॉम, पत्नी लीला, पुत्री -1 पुत्र- 1 3. कमल कुमार बी. कॉम, पत्नी राजुल, पुत्रियां-2 4. प्रदीप कुमार - बी. कॉम, पत्नी संगीता, पुत्री -1 चार पुत्रियां सुशीला, सरोज, सुनीता, सभी विवाहित संगीता अविवाहित हैं। - धार्मिक जीवन : दोनों पति-पत्नी के शुद्ध भोजन लेने का नियम है। मुनिभक्त है। आहार आदि से मुनियों की भक्ति करते रहते हैं । आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य अजितसागरजी, माता सुपार्श्वमती को आहार आदि देने का श्रेय प्राप्त किया है । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150/ जैन समाज का वृहद् इतिहास चम्पापुरी सिद्ध-क्षेत्र पर एक कमरे का निर्माण करवाया,मारवाड़ी आरोग्य भवन पणिपुर में भी एक कमरे का निर्माण करवाया । सुजानगढ की जैन नशियां में शान्तिनाथ स्वामी की धातु की प्रतिमा,सम्मेदशिखर समवशरण में तथा विजय नगर में जैन मंदिर में मूर्तियां विराजपान करवाई। मणिपुर राज्य के स्कूलों में चलने वाली पुस्तकों पर नोट्स बुक्स के लेखक एवं प्रकाशक । आप मूलतः सुजानगढ के हैं लेकिन 70 वर्ष से आपके पिताजी यहां व्यवसायस्त हैं। आपको भी यहां आए 60 वर्ष से भी अधिक समय हो गया है। आपके तीन भाई और हैं अजितकुमार जी,प्रकाशचन्द जी एवं शांतिलाल जी,तीनों ही स्वतंत्र रूप से इम्फाल (मणिपुर) में व्यवसायरत हैं । दो बहिन चम्पा देवी एवं रत्नमाला का विवाह हो चुका है। पता : पी.सी जैन एण्ड कम्पनी, थांगल बाजार इम्फाल (मनीपुर) श्री भंवरलाल काला आयु :65 वर्ष शिक्षा :सामान्य आपके पिताश्री बालाबक्श जी का 33 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ था । माताजी श्रीमती एजन देवी की आपको छत्रछाया प्राप्त है। विवाह : जब आप 15 वर्ष के थे तभी श्रीमती उमरावदेवी के साथ विवाह हो गया। आपके दो पुत्र एवं पांच पुत्रियां - विमला, सुशीला,हीरामणि, सरोज एवं किरण हैं । सभी का विवाह हो चुका है । दोनों पुत्रों में महावीर प्रसाद ज्येष्ठ पुत्र है । इन्टरमिजियेट हैं । आयु 43 वर्ष तथा पत्नी का नाम श्रीमती लालमणि देवी है । आपके दो पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। दूसरा छोटा पुत्र भागचन्द बी.ए. है। उनका श्रीमती देवी से विवाह हो चुका है। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। विशेष: महावीर प्रसाद काला श्री काला जी का सामाजिक कार्यों में पूर्ण सहयोग रहता है । अडकसर के मंदिर निर्माण में आपने पूर्ण सहयोग दिया था। आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनिभक्त हैं तथा मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं। पता : (1) सरावगी ब्रदर्स,स्टेशन रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) (2) भंवरलाल छाबड़ा, मु.पो.- अडकसर,नागौर (राज) वाया कूकनवाली - 340 519 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/151 श्री भंवरलाल सेठी शिक्षा : मैट्रिक, अजमेर बोर्ड से,जोबनेर पढ़ते हुये व्यवसाय : वस्त्र विक्रेता माता-पिता : स्व.ईश्वरलाल जी सेठी. 70 वर्ष की आयु में 7 वर्ष पूर्व स्वर्गवास | आप सप्तम प्रतिमा धारी थे। श्रीमती बदामी-34 आयु विवाह : सं. 26908 में कंचन देवी के साथ विवाहित । पुत्र : 3 कमल कुमार (26 वर्ष), अनिल कुमार (21 वर्ष) सुशील कुमार(19 वर्ष) पुत्री : 1 किरण बाई - विवाहित विशेष: श्री सेठी जी गोहाटी में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता है। आपके पिताजी ने पार्श्वनाथ भवन जयपुर में पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान की थी । विजयनगर के जैन मन्दिर के समवसरण में प्रतिमा विराजमान की थी । महावीर भवन गौहाटी के ट्रस्ट कमेटी के सदस्य । महासभा पूर्वान्चल समिति के उपमंत्री । चातुर्मास समिति के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक (1981) में यात्रा संघ के संचालक रहे थे। आप कट्टर मुनिभक्त,शुद्ध खान-पान का नियम लिए हुए साधुओं की सेवा करने में पूर्ण दक्ष एवं सक्रिय कार्यकर्ता हैं । पता : भंवरलाल कमल कुमार, बजरंगबली मार्केट,फैन्सी बाजार, गोहाटी (आसाम)। श्री भंवरीलाल पाण्ड्या सरावगी जन्मतिथि : भादवा बुदी 13 संवत् 1995 शिक्षा : मैट्रिक - गोहाटी से व्यवसाय : एयर सर्विस व्यवसाय माता-पिता : स्व.श्री सोहनलाल जी सरावगी - 57 वर्ष की आयु में 16 वर्ष पूर्व स्वर्गवास श्रीमती धापी देवी माता विवाह : 27 वर्ष की आयु में श्रीमती इचरज देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सन्तान : पुत्र-1 कमलकान्त (17 वर्ष) पुत्री-1 विजय लक्ष्मी - विवाहित Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152 / जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष : आपके पिताजी स्व. सोहनलाल जी सरावगी समाज के बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । वे एयर आसाम वाले कहलाते हैं। वे उदार स्वभाव के थे तथा अपने हाथों से खूब आर्थिक सहयोग दिया करते थे। आपने गौहाटी के मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा करवाकर विराजमान की थी। श्री भंवरीलाल जी पांड्या भी गौहाटी की सभी संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। आपने प्रायः तीर्थों की बन्दना करली है। आप भी अपने पिताजी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। पत्ता : बी.एस.एल. ट्रेवल्स सर्विस, फैन्सी बाजार, गौहाटी (आसाम) श्री भागचन्द पाटनी जन्मतिथि: 5 मई सन् 1950 जन्मस्थान : डेह (राज) शिक्षा: सन् 1967 में गौहाटी कॉलेज से इन्टरमिडियेट पास किया । पिताजी श्री मांगीलाल की वर्ष माताजी : श्रीमती कमला देवी पाटनी - आयु (1) वर्ष । विवाह : आपका 4 जनवरी सन् 1971 को श्रीमती कुसुमलता जैन के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। श्रीमती पाटनी मैट्रिक पास हैं। व्यवसाय: प्रेस संचालन विशेष : श्री पाटनी जी युवा समाजसेवी हैं। डेह के दिगम्बर जैन मन्दिर के निर्माण में आपके पूर्वजों का बहुत योगदान रहा था। आपने डीमापुर के जैन मन्दिर के समवसरण में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा स्थापित की है। आर्यिका इन्दुमती जी आपकी बुआ लगती थी । आपके माता-पिता के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों के परम भक्त हैं तथा आहार देते रहते हैं। सामाजिक महासभा की ध्रुव फण्ड ट्रस्ट योजना कमेटी के सदस्य हैं। आर्यिका इन्दुमती माताजी के संघ की बारसोई चातुर्मास की पूर्ण व्यवस्था एवं आर्थिक सहयोग देने में आप सबसे आगे रहे। आपने किशनगंज आई हॉस्पिटल में एक कमरे का निर्माण तथा जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में आपकी धर्मपत्नी ने एक कमरे का निर्माण करवाया है। आपको बंगला, असमिया एवं नगामी भाषाओं का अच्छा ज्ञान है। डीमापुर में आपने महावीर प्रिंटिंग प्रेस की सन् 1975 में स्थापना की थी। नगर के आप प्रतिष्ठित समाज सेवी माने जाते हैं। : महावीर प्रिंटिंग प्रेस, डीमापुर (नागालैण्ड) पता: Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/153 श्री मदनलाल पाटनी जन्मतिथि : भाद्रपद शुक्ला 10 सं. 1983 शिक्षा : मैट्रिक (राज. अजमेर बोर्ड से) व्यवसाय : व्यापार माता-पिता : स्व.मलूकचन्द जी पाटनी माताश्री स्व, तत्रीदेवी पाटनी विशेष : आपके दो भाई तखतमल जी एवं राजमल जी पाटनी तथा तीन पुत्र विनोद कुमार, बसंत कुमार एवं मक्खनलाल पाटनी हैं। सभी भाई एवं पुत्र मुनिभक्त,आर्षमार्गी हैं । एकमात्र पुत्री सुमन का विवाह हो चुका है । उसके एक पुत्र एवं एक पुत्री है। 1. विनोद कुमार : आयु 35 वर्ष, बी.कॉम. हैं । पत्नी शोभादेवी हैं । एक पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता हैं। आप इलाहाबाद में यूनाइटेड इण्डिया इन्सो.कं.के डी.एम.के पद पर कार्यरत हैं। 2. वसन्त कुमार : बी.कॉम. है । विवाहित है । श्रीमती उपादेवी आपकी धर्मपत्नी है । गौहाटी व्यापार के इन्चार्ज हैं,बड़े मिलनसार हैं। 3. मक्खन लाल : बी कॉम है। 27 वर्षीय हैं । धर्मपत्नी सीमा को दो पुत्र प्राप्त हैं । आप मिजोरम में व्यवसाय करते हैं। कर्मठ हैं। आपकी प्रारम्भ में एकदम साधारण स्थिति थी । साधारण नौकरी की, लेकिन साहस एवं पुरूषार्थ से अपना कारोबार प्रारम्भ किया और धनोपार्जन किया । गजपंथा में संवत् 2044 में आचार्यकल्प श्री श्रेयान्स सागर जी के संघ का लगातार चार चातुर्मास कराकर पुण्य संचय कर रहे हैं तथा सुजानगढ पंचकल्याणक एवं मुनिसंघ व्यवस्था में प्रमुख योगदान रहा है। आप विद्या प्रेमी हैं। विद्यालयों में योगदान करते रहते हैं। स्थानीय स्कूलों में छात्रों को बराबर पुरस्कार वितरित करते रहते हैं। सुजानगढ़ नागौर मन्दिर में मूर्ति विराजमान का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। अब तक सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं । सवाई माधोपुर में आचार्यकल्प श्री चन्द्रसागर जी महाराज का स्टेच्यू तथा कौशम्बी प्रयासगिरी अतिशय क्षेत्र में पदमप्रभु भागवान की वेदी निर्माण कराकर धन का सदुपयोग किया है । प्रत्येक धर्म कार्यों में तन-मन-धन से पूर्ण सहयोग देते रहते हैं । पता :उषा मोटर्स,मन:24, महावीर भवन,एटी.रोड,गौहाटी (आसाम) श्री मदनलाल बड़जात्या जन्मतिथि : आषाढ सुदी 2 संवत्,1984, शिक्षा : सामान्य (होमियोपैथ) Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154/ जैन समाज का वृहद् इतिहास पिताजी : श्री गंगाराम जी - सन् 1976 में 77 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था। माताजी की छत्रछाया तो जब वे तीन वर्ष के थे तभी उठ गई। व्यवसाय : होमियोपैथिक डाक्टर हैं। विवाह : सन् 1944, पत्नी श्रीमती सोहनी देवी जिनका भी सन् 14165 में ही स्वर्गवास हो गया। सन्तान : पुत्र दो, ज्येष्ठ पुत्र श्री पदम कुमार,आयु 3५ वर्ष । पत्नी का नाम : श्रीमती किरण देवी दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की माना हैं । दुसरे पुत्र डॉ. प्रदीप कुमार हैं जो एफ.ए.आई.एम.एस. हैं । चैम्बर ऑफ कॉमर्स में विजिटिंग डाक्टर हैं । पत्नी का नाम बबिता है आपके एक पुत्र है। पुत्रियां चार हैं जिनमें ललिता एवं कमला का विवाह हो चुका है। तीसरी पुत्री कंचन का स्वर्गवास हो चुका है । चतुर्थ पुत्री कुसुम पढ़ रही है । आपके छोटे भाई श्री रतनलाल जी बड़जात्या हैं जो 55 वर्ष के हैं । जन्मतिथि - 15/06:105 है । पत्नी का नाम तारामणि है एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । पुत्र ललितकुमार पढ़ रहा है तथा पुत्री मंजू और ऊषा का विवाह हो चुका है। बड़जात्या जी मूलत. फुवामन के निशाता है। यहां से 100 भिवानी आकर बस गये । फिर वहां से भी 65 वर्ष पूर्व इम्फाल आकर बस गये। धार्षिक कार्य : भिवानी में एक मई सन् 1987 को नया बाजार स्थित दि.जैन मन्दिर में पेदी प्रतिष्ठा के अवसर पर इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हुये थे। पता : मैं. मोतीलाल रतनलाल,थांगल बाजार इम्फाल (मणिपुर) श्री मदनलाल पाटनी पिताश्री : स्व. श्री चम्पालाल जो पाटनी,जिनका 52 वर्ष की अल्प आयु में सं.1985 में स्वर्गवास हो चुका है। माताश्री : अणचीवाई की छत्रछाया भी संवत् 2000 में उठ गई जब वे ) वर्ष की थी। जन्मतिथि : संवत् 1976 आषाढ बुदी 12 शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : गल्ला व्यवसाय विवाह तिथि : संवत् 19432, पत्नी का नाम: श्रीमती पतासी देवी है । वह पार्मिक मनोवृत्ति की महिला हैं। शुद्ध खान-पान व्रत का पालन करती हैं। एक बार अष्टान्हिका और एक बार दशलक्षण द्रत के उपवास कर चुकी है। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /155 परिवार ; आपके दो पुत्र हैं - श्री स्वरूपचन्द एवं श्री हीराचन्द । दोनों ही कॉमर्स ग्रेज्यूयेट है। विवाहित हैं । स्वरूपचन्द की पली का नाम सुशीला देवी है। आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री प्राप्त है। श्री हीराचन्द की पत्नी श्रीमती राजमती है । इनके दो पुत्र एवं एक पुत्री है । दोनों भाई अपने पिताजी के साथ ही व्यवसायरत हैं। विशेष: श्री पाटनी जी संवत् 2039 में तिनसुकिया के दि.जैन मन्दिर में भगवान महावीर की पाषाण की मूर्ति विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं । तीर्थ बन्दना कर चुके हैं। बाहुबली तीर्थयात्रा संघ द्वारा दिन की तीर्थयात्रा आपके सभापतित्व में सम्पन्न हुई थी। आपकी पुत्री के श्वसुर श्री रतनलाल जी पहाडिया ने मुनि दीक्षा अंगीकार करके मुनि श्री जिनेन्द्र सागर जी कहलाये तथा किशनचन्द मदनगंज में उनका समाधिमरण आचार्य की धर्मसागर जी के सानिध्य में हुआ था। सामाजिक : श्री पाटनी जी दि.जैन महासभा के निष्ठावान सदस्य हैं 1 मारवाडी धर्मशाला तिनसुकिया की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । स्वाध्यायशील रहते हैं तथा शास्त्र सभा के नियमित श्रोता है। पता : चम्पालाल झूमरमल,साईडिंग बाजार,तिनसुकिया (आसाम) श्री मदनलाल सेठी जन्मतिथि : भाद्रपद मास संवत् 1984 शिक्षा : सामान्य माता-पिता : श्री जौहरीलाल जी सेठी,65 वर्ष की आयु में - 15 वर्ष पूर्व स्वर्गवास । माताजी श्रीमती बरखा देवी - आपकी छत्रछाया प्राप्त है। व्यवसाय : गल्ला व्यवसाय विवाह : संवत् 2002 में आपका श्रीमती गैंदीदेवी के साथ विवाह सम्पत्र हुआ। सन्तान: पुत्र-2 1. श्री विजय कुमार - आयु 29 वर्ष,पत्नी - श्रीमती मंजूदेवी। 2. श्री राजकुमार सेठी - आयु 25 वर्ष, पत्नी श्रीमती संगीता देवी पुत्रियां : सेठी जी को सात पुत्रियों के पिता होने का भी सौभाग्य प्राप्त है । 6 पुत्रियां : भंवरबाई,लालीबाई,पानाबाई, सन्तोष बाई,चन्दा बाई, आशा बाई, विवाहित है केवल सातवीं पुत्री सुश्री राधा अभी अविवाहित हैं। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156/ जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष : श्री मदनलाल जी सेठी मूलतः खुड (राज) निवासी हैं । सन् 1:081 में आपने सभी तीर्थों को वन्दना की थी आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है वे मुनियों को आहार देती रहती हैं । खूड में आजकल ) जैन परिवार रहते है पता : मदालात सन्द कुमार जैन, पै.रेर दिया (आपा श्री मन्नालाल छाबड़ा आयु : 43 वर्ष शिक्षा:सामान्य व्यवसाय : सूत,पेपर एवं सुपारी के थोक व्यापारी। माता-पिता : स्व.श्री लक्ष्मीनारायण जी छाबड़ा मातृश्री - स्व. श्रीमती महादेवी जी पत्नी का नाम : श्रीमती मनफूल देवी - 7() वर्ष सन्तान : ? पुत्र एवं तीन पुत्रियां 1. निर्मल कुमार वो कॉम... । वर्ष, पत्नी श्रीमती उमराव देवो दो पुत्रियां एवं एक पुत्र हैं। 2. परेन्द्र जुगार - आयु 4२ वर्ष धर्मपत्नी पुष्पादेवी एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां है । 3. विमल कुमार - 4) वर्ष एम कॉम., पत्नी आशा देवी तीन पुत्रियां एवं एक पुत्र के माता-पिता 4. कमल कुमार - 38 वर्ष एम.कॉम., एल-एल.वी. । पत्नी श्रीमती मंजू देवी - 3 पुत्रियां हैं । 5. निरंजन कुमार - 35 वर्ष पली श्रीमती सुलोचना दो पुत्रियां एवं एक पुत्र हैं। 6. सन्तोष कुमार - 30 वर्ष - पत्नी - श्रीमती अनीता एक पुत्री है। 7. सन्तोष कुमार - बी.कॉम., आयु - 24 वर्ष - अविवाहित । श्री मन्नालाल जी के ज्येष्ठ भ्राता स्व. गुलाबचन्द जी थे । तनके पांच पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं । पुत्रों के नाम श्री महावी प्रसाद,प्रकाशचन्द, अशोक कुमार, सुरेश कुमार एवं अनिल कुमार हैं। विशेष : श्री मन्त्रालाल जी छाबडा का परिवार गौहाटी का प्रसिद्ध परिवार है । व समाज के अग्रणी रहे हैं । उदार हदर एवं सम्मानित समाजसेवी हैं । आपकी फर्म भी गौहार्टी की अत्यधिक प्राचीन फर्म है । आपने विजय नगर पंचकल्याक प्रतिष्ठ के अवसर पर एक मूर्ति प्रतिष्ठापित करवाकर वहां के मन्दिर में विराजमान क़ी थी । गौहाटी मे दि. जैन विद्यालय की स्थापन आपकी ही अध्यक्षता में हुई है। फिर 10 वर्ष तक आप उसके अध्यक्ष रहे । गौहाटी के श्री दि.जैन मन्दिर में अपनी माता जी के स्मृति में एक बड़ा हाल बनवाया जहां वर्तमान में कक्षा 10 तक विद्यालय है । पालीगांव पाण्द्ध में एक स्कूल का निर्माण भी किय Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/157 है । गौहाटी में पाण्डु बाजार में गुलाब चन्द मन्नालाल माध्यमिक विद्यालय के नाम से विद्यालय चलता है। आपके द्वारा किशनगंज में लाइन्स सेवा केन्द्र में हास्पिटल में एक 40 बैड का जनरल वार्ड बनवाया हुआ है। श्री भन्नालाल जी ने यह बना कर दिया है । पता : गुलाबचन्द मन्नालाल,फैन्सी बाजार,गौहाटी (आसाम) श्री महाचन्द सेठी संघई जन्मतिथि : 30 दिसम्बर,1930 शिक्षा : मैट्रिक, विशारद एवं धार्मिक शिक्षा प्राप्त की है। पिताजी : स्व.श्री रुघनाथ जी,18 वर्ष पूर्व 88 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी बने । माताजी : श्रीमती मैना देवी जी,आपका भी 80 वर्ष की आयु में 15 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ था। विवाह : संवत् 2004 में श्रीमती चन्द्रकला जी के साथ विवाह हुआ । सन्तान : पुत्र-3 1. श्री प्रकाशचन्द ज्येष्ठ पुत्र हैं। आयु - 35 वर्ष,पत्नी का नाम - उषा है । दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। 2. द्वितीय पुत्र श्री राकेशचन्द्र हैं। आयु - 30 वर्ष,पत्नी का नाम : शोभा है । एक पुत्री है । 3. तृतीय पुत्र ज्ञानचन्द्र अभी अविवाहित है । पुत्रियां-3 निर्मला एवं शशि, दोनों विवाहित हैं। तीसरी पुत्री-ज्योत्सना पढ़ रही है। विशेष: आप अच्छे लेखक एवं कवि हैं तथा विभिन्न जैन पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। आपके अब तक करीब 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं । धार्पिक : आपके पिताजी द्वारा सीकर के नये मन्दिर में वेदी का निर्माण करवाकर मूर्ति विराजमान की थी। वर्तमान में उसो मन्दिर में एक और वेदी एवं उसमें मूर्ति विराजमान करने का कार्य आपके सभी भाईयों द्वारा हो रहा है। सामाजिक : मारवाड़ी औषधालय इम्फाल के मन्त्री हैं । मोरे में नवनिर्मित मन्दिर में पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। परिवार : आपके अतिरिक्त भाई और है (1) भंवरलाल जी - आपका 6 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है । (2) राधाकिशन जी (78 वर्ष) । (3) फूलचन्द जी (68 वर्ष)। (4) भगवान. दास जी 63 वर्ष) सभी अपना-अपना स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं तथा सभी दृष्टि से सम्पन्न हैं । मूल निवासी सीकर के हैं । वहां से करीब 25 वर्ष पूर्व यहां आकर व्यवसाय करने लगे। पता : प्रकाश ट्रेडिंग कम्पनी, थांगल बाजार, इम्फाल रमणिपुर) Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री महावीर प्रसाद गोधा आयु : 45 वर्ष माता-पिता : आपके पिताजी श्री जुगलकिशोर जी का 25-5-83 को 64 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। आपकी माताजी श्रीमती गहू देवी जी की छत्रछाया आपको प्राप्त है। वे 78 वर्ष की हैं। शिक्षा : बी. कॉम. एल. एल. बी । सन् 1967 में बी. कॉम. एवं 1972 में एल एल.बी. की परीक्षा में उत्तीर्ण हुये। व्यवसाय: गल्ला किराणा विवाह : सन् 1965 में आपका विवाह गुणमाला जी के साथ संपन्न हुआ । सन्तान : पुत्र-2- अरुणकुमार-22 वर्ष सन् 1946 में बी.कॉम. (प्रीवियस) में डिब्रूगढ यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। मुकेश कुमार 13 वर्ष पुत्रियां 3 रजनी, वंदना, अनुराधा तीनों पढ़ रही हैं। विशेष: आपके पिताजी ने तीन बार एवं आपने एक बार सभी तीर्थों की वन्दना की है। आपकी माताजी ने अष्टान्हिका व्रत के उपवास करने का यशस्वी कार्य किया था। आपके बड़े भाई श्री मेघराज जी ने बड़े बाजार के मन्दिर में मूर्ति विराजमान की थी । आपने अपने गांव हिंगया में स्कूल के लिये एक कमरा बनवाकर राज्य सरकार को प्रदान किया है। श्री गोधा जी समाज सेवी हैं जैन नवयुवक संघ डिब्रूगढ के संस्थापक अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में नया बाजार दि. जैन मन्दिर के संयुक्त मंत्री हैं। आपके अतिरिक्त दो छोटे भाई राजकुमार (आयु अ) वर्ष) एवं अशोक कुमार (आयु 27 वर्ष) हैं। दोनों भाई बी. कॉम. हैं तथा विवाहित हैं। पता : मैसर्स महावीर प्रसाद गोधा, द्वारा जसकरण जुगलकिशोर नया बाजार, डिब्रूगढ (आसाम) श्री महावीर प्रसाद जैन पाण्ड्या जन्मतिथि: 11 अप्रैल सन् 1942 शिक्षा : एम.कॉम. (1964) एल एल. बी. (1967) व्यवसाय वकालत माता-पिता स्व. मांगीलाल जी पाण्ड्या (स्वर्गवास 3-1-1980) माताजी श्रीमती सोहनी देवी पांड्या विवाह तिथि: 30 जून, 1967 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /159 पली का नाम : श्रीमती इंदिरा देवी संतान : पुत्र-2 राकेश एवं विकास पुत्री-2 प्रेमलता,रीना विशेष: आपके बड़े भाई श्री प्रभुलाल पाण्ड्या वस व्यवसायी है। छोटे पाई डा. आनन्दीलाल सरावगी हैं। आपके माताजी एवं पिताजी ने खारुपेटिया पंचकल्याणक में भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपकी पत्नी तीन बार दशलक्षण व्रत के उपवास एवं एक बार अष्टान्हिका व्रत कर चुकी हैं | श्री पाण्ड्या जी सरल स्वभावी एवं स्वाध्यायशील हैं। प्रतिदिन चर्चा करते हैं। पता : एम.पी.जैन एडवोकेट,फैन्सी बाजार,गौहाटी-780 001 (आसाम) श्री महीपारन पाटनी जन्म : सन् 1949 शिक्षा : चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट/ एम.के.पाटनी एण्ड कम्पनी के प्रोपाइटर । माता-पिता : आपके पिताजी श्री जयचन्द लाल जी पाटनी गौहाटी के प्रमुख समाजसेवी हैं । माताजी का नाम श्रीमती पतासी देवी है। ____ विवाह : आपका विवाह 17 अप्रैल 1968 को श्रीमती कुसुम के साथ हुआ श्रीमती कुसुम डीमापुर के प्रसिद्ध सेठी परिवार श्री राजकुमार जी सेठी को बहिन हैं। सन्तान: आपके दो पुत्रियां गुड्डी एवं रिंकू तथा दो पुत्र सवेश एवं सौरम हैं । सभी पढ़ रहे हैं। विशेष : पाटनी जी सक्रिय समाजसेवी हैं। महासभा के पूर्वान्चल समिति के लेखा निरीक्षक है। सन 1987 में आपने दशलक्षण सत्त के उपवास करके अपनी धार्मिक मनोभावना का परिचय दिया था । गौहाटी जेसीज क्लब के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह पायनियर क्लब के संरक्षक रह चुके हैं । पता : एम.के. पाटनी एण्ड कंपनी - चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट, गौहाटी (आसाम) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160/ जैन समाज का दृहद् इतिहास श्री मानमल छाबड़ा जन्मस्थान : किराडा बड़ा,जिला-श्री गंगानगर (राजस्थान) जन्मतिथि : संवत् 1960 के आषाढ मास में जन्म माता-पिता : श्री शेरमल जी छाबड़ा,85 वर्ष की आयु में सं. 1993 में स्वर्गवास। . श्रीमती रूपादेवी 80 वर्ष की आयु में सं.1972 में स्वर्गवास । शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। व्यवसाय : गल्ला, किराणा,काडा,ट्रांसपोटेंशन आदि । विवाह : संवत् 1978 में श्रीमती पांची देवी के साथ सम्पन हुआ। धर्मपत्नी का 15 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। सन्तान : एक पुत्र एवं पांच पुत्रियां । पुत्र श्री भीखमचन्द का विवाह श्रीमती गुलाब देवी से हुआ जो कि अब 8 पुत्र एवं 4 पुत्रियों के पिता हैं। संतोष कुमार :42 वर्ष पत्नी - मुनीया ती : एत्र एक ही अशोक कुमार : 36 वर्ष - पत्नी मंजू देवी - 2 पुत्र बाबूलाल :34 वर्ष - पत्नी सरोज देवी - 1 पुत्र,2 पुत्री प्रमोदकुमार : 30 वर्ष - पली स्नेहलता देवी • 2 पुत्री मनोज कुमार : 28 वर्ष - पत्नी सुमन देवी - 1 पुत्री महेन्द्र कुमार,संजयकुमार,हेमन्तकुमार, अविवाहित हैं। ये सभी पढ़ रहे हैं । पुत्रियां : सुलोचना देवी,प्रेमलता देवी,सरोज देवी,रानीदेवी सभी विवाहित हैं । तीनों बड़ी पुत्रियों एवं दो पुत्रों बाबूलाल स्व.प्रमोदकुमार दशलक्षणव्रत के 10 उपवास कर चुके हैं। विशेष : इम्फाल में आपके पिताजी शेरमल जी के भाई सदाराम जी 108 वर्ष पूर्व आकर यहां व्यवसाय करने लगे। उनके पश्चात् शेरमल जी भी यहां आकर रहने लगे। इम्फाल मनीपुर का दि.जैन मंदिर आपके पिताजी श्रीशेरमल जी द्वारा स्थापित किया गया था । आपके पुत्र श्री भीखमचन्द जी ने बारसोई के मंदिर में चन्द्रप्रभु की प्रतिमा स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त किया । किराडा में दि.जैन मंदिर का निर्माण आपके पिताजी एवं उनके परिवार द्वारा कराया गया था । श्रीमती गुलाब देवीजी के शुद्ध जलपान लेने का नियम है । यात्रा प्रेमी हैं । पता :शेरमल मानमल जैन, धर्मशाला रोड,शांगल बाजार, इम्फाल (मणिपुर) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/161 श्री मानिक चन्द पाटनी जन्मतिथि: भादवा बुदी 8 संवत् 1984 शिक्षा : मैट्रिक - अजमेर बोर्ड से व्यवसाय : मोटर पार्टस एण्ड गवर्मेन्ट सप्लायर्स माता-पिता : श्री बालचन्द जी पाटनी - 83 वर्ष की आयु में 18 वर्ष पहले स्वर्गवास हो चुका है। माताजी श्रीमती मलकूद .. जी - 78 वर्ष की आयु में स्वर्गवास विवाह : माह सुदी 5 सं. 2008 में श्रीमती शांतिदेवी के साथ विवाहित सन्तानःो गुट प्रदीप दमा का ईलॉग परूले सला संदीप कुमार - पढ़ रहा है। विशेष : आपके काकाजी श्री सूरजमल जी पाटनी ने उज्जैन में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई एवं इन्द्र इन्द्राणी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपने तेजपुर(आसाम) के मंदिर में मूर्ति विराजमान की थी। यात्रा प्रेमी हैं। अब तक तीन बार तीर्थ वंदना कर चुके हैं। धार्मिक स्वभाव है । सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखते हैं । मुनिभक्त हैं । गौहाटी समाज के सम्मानित व्यक्ति पता : स्पेर्स कॉरपोरेशन,32 महावीर भवन, ए.टी.रोड,गौहाटी-781 001 (आसाम) श्री मिश्रीलाल बगड़ा(कासलीवाल) जन्मतिथि :21 अप्रैल 1939 Piram ४. शिक्षा : बी.कॉम. गौहाटी विश्वविद्यालय से सन 1960 में किया। व्यवसाय: व्यापार माता-पिता : स्व. रूपचंद जी बगडा, स्वर्गवास 810-86 में 86 वीं वर्ष की आयु में। माता श्रीमती सोनीदेवी आयु 60 वर्ष । विवाह : श्रीमती सुलोचना देवी, सुपुत्री श्री मेघराज जी पाण्ड्या, गौहाटी (आसाम) परिवार : पुत्र एक सुनील कुमार जैन सुलोचना देवी धर्मपत्नी मिश्रीलालबागड़ा Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162! जैन समाज का वृहद् इतिहास पुत्री-तीन संगीता एवं अनीता विवाहित,ममता पढ़ रही है । संगीता का विवाह डीमापुरवासी सूरजमल जी पहाडिया के सुपुत्र कैलाशचन्द जी के साथ एवं अनीता का इम्फालवासी रामचन्द्रजी सेठी के सुपुत्र राजकुमार जी सेठी के साथ हुआ है। आपके छोटे भाई श्री चैनसुख बागड़ा वी कॉम हैं। इन्होंने बी कॉम. 1961 में आल आसाम से द्वितीय स्थान में प्राप्त किया । श्रीमती शकुन्तला देवी जैन सुपुत्री श्री चांदमल जी गंगवाल, डिबूगढ़ के साथ उनका विवाद सम्पत्र हुआ है। उनके एक पुत्री सुनीता एवं तीन पुत्र संजय अनिल एवं पंकज हैं। श्री संजय ने म.उ.एल.सी. परीक्षा में पूरे आसाम प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया और फिर एच एस परीक्षा में सन्1988 में भी विज्ञान में पूरे आसाम में द्वितीय स्थान प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया। आसाम सरकार के कोटे में वारंगल इंजीनियरिंग कालेज.आंध्रप्रदेश में इलेक्ट्रोनिक्स में इंजीनि चैनसुख बगड़ा MA Y यरिंग कर रहे हैं। आपके माता-पिता द्वारा किए गए कार्य : शकुन्तला देवी जै 1.विजय नगर पंचकल्याणक में भगवान के माता ___iuni बने। एक बार सुजानगढ तथा दो बार डिब्रूगढ़ में सिद्धचक्र विधान करवाया एवं सौधर्म इन्द्र इन्द्राणी बने। 2. डिब्रूगढ़ के जैन मंदिर में चंवरी निर्माण करवाकर भगवान को मूर्ति विराजमान को एवं गुजानगढ के बगड़ा मंदिर तथा नसियां में योगदान एवं चंवरी सहित मूर्ति विराजित की। हस्तिनापुर में कमरा तथा शिवाजी में कमरा बनवाया है। 3. आप नगर एवं प्रादेशिक स्तर के सामाजिक,धार्मिक,व्यापारिक तथा सरकारी स्तर की संस्थाओं के सदस्य एवं पदाधिकारी रह चुके हैं। सजय कुमार जैन आपके माता-पिता, अनुज तथा उनकी धर्मपत्नी ने सम्पूर्ण भारत का तीर्थ भ्रमण क्रमश दो बार तथा एक बार किया से परिवार के अन्य सदस्य प्राय: उत्तरी भारत के तीर्थ क्षेत्रों की कई बार वंदना कर चुके हैं । माता-पिता ने कई बार दशलक्षण अष्टान्हिका व्रत तथा अन्य व्रत अकेले एवं जोडे से किये हैं। अनुज चैनसुख एवं उनकी धर्मपी ने भी जोडे से दशलक्ष किया है । आपके परिवार के सदस्य शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत एवं जुड़े रहे हैं तथा अत्यधिक परिश्रम से अपना वर्तमान बनाया है । आपने बी.कॉम. (1951) में आसाग से तृतीय स्थान तथा एम.कॉम. (1158) में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। आपके परिवार के सदस्यों ने सर्वदा कम्पीटीशन स्कोलरशिप प्राप्त की वे सभी मेधावी छात्र हैं तथा स्नातको पंकज कुमार जैन ने उ.मा. वाणि. विभा। परीक्षा 1904) में असम में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। आप तथा आपके पा सदस्य असमिया, हिन्दी, अंग्रेजी तथा बंगाली अच्छी तरह बोल लेते हैं। आपके परिवार वाले मुनि एवं आर्यिका मा आहार प्रदान करने में विशेष रुचि रखते हैं। आप जैन महासभा के आजीवन सदस्य हैं । आप श्री दि.जैन पंचायत मासा डिबूगढ़ के संयुक्त मंत्री भी हैं। पता : जैन एन्टरप्राइजेज मारवाडी पट्टी, डिब्रूगढ (आसाम) Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मिश्रीलाल बाकलीवाल वर्तमान में आपकी आयु 65 वर्ष की है। आपने शिक्षा के क्षेत्र में गौहाटी से मैट्रिक पास किया था। इसके साथ ही असमिया, बंगला एवं अंग्रेजी भाषा के भी आप अच्छे जानकार हैं। माता-पिता आपके पिताजी श्री जेठमल बाकलीवाल थे जिनका 82 वर्ष की आयु में करीब 26 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ था | माता श्रीमती मलकू बाई तो जब आप दो वर्ष के थे तभी छोड़कर स्वर्ग सिधार गई । मातृ स्नेह एवं प्यार से आप सदा के लिये वंचित हो गये । उमराव देवी धर्मपत्नी मिश्रीलाल बाकलीवाल पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 163 श्री मूलचन्द गंगवाल विवाह: संवत् 2000 में अक्षय तृतीया के दिन आप उमरावदेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । T: संता: आपके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। ज्येष्ठ पुत्र निर्मलकुमार 400 वर्ष पार कर चुके हैं। उनकी धर्मपत्नी सुशीला को एक पुत्र एवं दो पुत्रियों को जन्म देने का सौभाग्य मिल चुका है। दूसरे पुत्र सुरेश कुमार 33 वर्षीय युवा हैं। धर्मपत्नी ललिता देवी हैं जिनके एक पुत्र एवं एक पुत्री है। व्यवसाय : गल्ला व्यवसाय है। विशेष : बाकलीवाल जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती उमराव देवी दोनों गौहाटी, खारूपेटिया, विजयनगर एवं लाडनूं पंचकल्याणक में इन्द्र-इन्द्राणी के पद से सुशोभित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त आप गौहाटी के मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की श्याम पाषाण की एवं रंगिया में सर्व धातु की महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं। आप गौहाटी के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता हैं। महावीर भवन ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। दि. जैन मंदिर गौहाटी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। दोनों पति-पत्नी के शुद्ध जल-पान का नियम है। मुनिभक्त हैं। आहार आदि देते रहते हैं। आर्यिका इन्दुमती माताजी के संघ को किशनगंज से गौहाटी तक लाकर गौहाटी में उनका चातुर्मास कराया। इसी तरह सुपार्श्वपती माताजी को संवत् 2013 में गौहाटी में चातुर्मास की व्यवस्था की थी। आप गौहाटी के सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं । पता : मिश्रीलाल निर्मलकुमार, फैन्सी बाजार, गौहाटी (आसाम) जन्मतिथि: शिक्षा : सामान्य माता-पिता : स्व. श्री नेमीचन्द जी गंगवाल माता : श्रीमती केशरीदेवी जी आयु 77 वर्ष र जी : सावन सुदी 2 संवत् 1990 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164/ जैन समाज का वृहद् इतिहास व्यवसाय:किराणा विवाह :16 फरवरी सन् 1960 पत्नी का नाम : श्रीमती चिन्तामणि जी प्रथम/द्वितीय श्रीमती सुमित्रा परिवार : दो पुत्र · आनन्द कुमार एवं पारस मल 4 वर्ष,14 वर्ष पुत्री-4, आशा,रन्जना,मनीषा एवं लक्षपी । प्रथम पुत्री का विवाह हो चुका है। शेष तीनों अध्ययन कर रही हैं । विशेष: आपके पूर्वों ने हस्तेडा में मंदिर निर्माण करवाया था । आप जैन स्कूल डिब्रूगढ़ के सेक्रेटरी भी रह चुके हैं। समाज सेवा में विशेष रुचि रखते हैं। आपकी धर्मपली व्रत उपवास खून करती रहती हैं। अब तक दशलक्षण व्रत के उपवास 4 वर्ष तक लगातार कर चुकी हैं । आपके छोटे भाई श्री लालचन्द की धर्मपत्नी गिनिया देवी भी दशलक्षण के उपवास कर चुकी पता : तरुण समिति लेन,शांति पाड़ा,डिबूगढ (आसाम) श्री मूलचन्द छाबड़ा जन्मतिश्चि : संवत् 1981 का कार्तिक मास शिक्षा: सामान्य व्यवसाय : अहिंसा केमिकल फैक्टरी माता-पिता : श्री रामप्रताप जी जिनका 57 वर्ष पूर्व केवल 25 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया था। श्रीमती लक्ष्मीदेवी जी - आयु 80 वर्ष,नलबाड़ी में आपके साथ रहती हैं। विवाह : संवत् 2002 में सुश्री कंचन देवी के साथ पाणिमहण संस्कार हुआ। परिवार : आपके 9 पुत्र एवं 4 पुत्रियां हैं। सबसे बड़े पुत्र का नाम 1. नेमीचन्द है । आयु 33 वर्ष,पत्नी - सुमित्रादेवी,दो पुत्र एवं एक पुत्री है। 2. सम्मत कुमार बी.ए.31 वर्ष । पत्नी - श्रीमती सुनिता एक पुत्री है। 3. प्रदीप कुमार - बी.ए. 29 वर्ष । पत्नी • श्रीमती कल्पना । एक पुत्र की मां हैं। विवाह के पूर्व ही आपने दशलक्षण व्रत के उपवास कर लिये थे। 4. प्रकाशचन्द - सी.ए. कर रहे हैं। आयु 27 वर्ष 5.विमल कुमार Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज/165 6. अनिल कुमार,7. राजेश, 8. दीपक कुमार 9. अजित कुमार सभी पढ़ रहे हैं। पुत्रियां • मुश्री सुलोचना, सुशीला, सरिता,पविता - सभी विवाहित । विशेष : 1. नलबाड़ी पंचकल्याणक में मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी। 2. दोनों के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों एवं आर्यिकाओं को आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। 3. नलबाड़ी दि. जैन समाज के पिछले 27 वर्षों से मंत्री हैं। 4. नलबाड़ी चैम्बर आफ कॉमर्स के अध्यक्ष । नलबाड़ी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में प्रधानमंत्री पद पर कार्य किया। महासभा के ट्रस्ट फण्ड के ट्रस्टी हैं। 5. मूलतः मुंडवाडा ग्राम (राज) के हैं यहां संवत् 2000 में व्यवसाय के लिये आये थे। पता :रामप्रताप मूलचन्द,एन.टी.रोड,नलबाड़ी (आसाम) श्री मेघराज पाटनी आयु :83 वर्ष शिक्षा: सामान्य आपके पिताजी श्री मंगलचन्द जी पाटनी का 35 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था । । माताजी श्रीमती सुगनी बाई का तो जब आप 12 वर्ष के थे तभी स्वर्गवास हो गया। विवाह : 16 वर्ष की आयु में श्रीमती मोहनी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। ___ संतान : पुत्र-दो 1. श्री चिरंजीलाल जी - 60 वर्ष - धर्मपत्नी श्रीमती शांति देवी - दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों की मां हैं। 2. श्री रतनलाल पाटनी, 58 वर्ष, धर्मपत्नी - शांति देवी • पुत्र एक कमल कुमार, विवाहित • एक पुत्र के पिता पुत्र-1, पुत्रिया-पांच - सभी का विवाह हो चुका है । दो अविवाहित हैं। पुत्रियां-पांच - भंवरीबाई,श्रीमती बाई,सुलोचना,शकुन्तला एवं सन्तोष बाई, सभी का विवाह हो चुका है। विशेष : आप मूलतः बेरी निवासी हैं । दोनों पति-पत्नी धार्मिक स्वभाव के हैं । आदर्श महिला विद्यालय श्री महावीर जी के पंच-कल्याणक में माता-पिता के पद से गौरवान्वित हो चुके हैं। डीमापुर के मंदिर में बनने वाली चौबीसी में एक प्रतिमा आपने भी विराजमान की है । दोनों के शुद्ध खान-पान का नियम है । जिसे वीर सागर जी महाराज से लिया था। मुनियों को आहार देते रहते हैं । महासपा के धुव फण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मोहनी देवी तीन बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166/ जैन समाज का वृहद इतिहास चुकी हैं। यहीं नहीं आप दोनों पति पत्नी एवं पुत्र श्री रतनलाल के रात्रि को भोजन एवं जल गेनों का पिछले 10 वर्ष से त्याग है। पाटनी जी डीमापुर में सम्माननीय व्यक्ति हैं । आप आतिथ्य प्रेमी हैं । पता : 1. मंगल चन्द मेघराज पाटनी, थांगल बाजार, इम्फाल (मणिपुर) 2. मंगलचन्द मेघराज पाटनी, कालीबाड़ी रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री मोहनलाल बाकलीवाल बाकलीवाल जी का जन्म स्व.भेरूलाल जी के यहां संवत् 1987 के मंगसिर मास में श्रीमती लाडदेवी के कोख से हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्ति के पश्चात आप ब्रोकरशिप का कार्य करने लगे । जेष्ठ सुदी 110 सं.2404 को माली देवी के साथ आपका विवाह हुआ। आपको 4 पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । चार पुत्रों में श्री कमल कुमार एवं उमेश का विवाह हो चुका है तथा प्रदीप एवं राजेश अभी अविवाहित हैं। विशेष : श्री मोहनलाल जी शान्त स्वभावी, धार्मिक एवं सामाजिक व्यक्ति हैं । तिनसुकिया समाज में आपका सम्माननीय स्थान है। पता : वर्द्धमान,सुपर मार्केट तिनसुकिया (आसाम) श्री मोहनलाल रारा जन्मतिथि : संवत् 1971 का वैशाख मास शिक्षा : मैट्रिक पास माता-पिता : श्री मोतीलाल जी का 12 वर्ष पूर्व 80 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। श्रीमती रुक्मिणी देवी 98 वर्ष की आयु पार कर चुकी हैं । व्यवसाय : हार्डवेयर का व्यवसाय विवाह : संवत् 1988 में श्रीमती राजादेवी के साथ विवाह हुआ। परिवार : पुत्र चार 1. श्री पदमचन्द आयु 46 वर्ष पत्नी पुष्पादेवी तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियां प्राप्त हैं। 2. श्री धर्मचन्द आयु 44 वर्ष/पत्नी श्रीमती कंचन देवी पुत्र एक,पुत्री चार।। 3. श्री भागचन्द आयु41 वर्ष पत्नी उषा देवी । दो पुत्र पुत्रियों के माता-पिता हैं। 4. प्रदीप कुमार - आय 30 वर्ष पत्नी चन्दा देवी दो एत्रियां एवं एक पत्र । भागचन्द राय Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज/167 4. प्रदीप कुमार- आयु 30 वर्ष पत्नी श्रीमती चन्दा देवी दो पुत्रियां एवं एक पुत्र। पुत्रियां- तीन- पाना देवी,हीरामणि देवी एवं इंदिरा देवी- तीनों विवाहित । धार्मिक प्रवृत्ति : 1. टीहू पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। 2. नलबाड़ी दि.जैन समाज के विगत 15 वर्षों से अध्यक्ष हैं। 3. शुद्ध खान-पान का नियम । मुनियों को आहार देने में पूर्ण रुचि । उषा देवी धर्मपल्ली भागचन्द रारा 4. व्रत उपवास करने में सदैव तत्पर रहते हैं। 5. आपके पिताजी स्व.मोतीलाल जी 100 वर्ष पूर्व जिजोठ (राज) से यहां नलबाड़ी आये थे। मोहनलाल जी का जन्म नलवाड़ी (आसाम) में ही हुआ ! 6. यहां के दि. जैन मंदिर का निर्माण 50 वर्ष पूर्व हुआ था। जिसका पुर्ननिर्माण अभी 4-5 वर्ष पहिले हुआ । पंच-कल्याणक हो चुका है। 7. आप दि.जैन महासभा के स्थायी सदस्य हैं। श्री मोहनलाल सेठी जन्मतिथि : सन् 1921 शिक्षा : मिडिल कक्षा तक अध्ययन । पिताश्री : स्व. चैनसुख जी सेठी 80 वर्ष की आयु में करीब 35 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो। गया था। माताजी स्व. छानीदेवी का भी 40 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। व्यवसाय : मोटर पार्टस् विवाह : सन् 1939 में श्रीमती कंवरीदेवी के साथ हुआ। सन्तान : दो पुत्र एवं दो पुत्रियां ज्येष्ठ पुत्र श्री पवनकुमार की आयु 41 वर्ष है तथा बी.कॉम. तक शिक्षित हैं । श्रीमती गिनिया के साथ 7 जुलाई,1965 में विवाह हुआ। आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। कनिष्ठ पुत्र श्री प्रसन्न कुमार 39 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम सुमित्रा देवी है । तीन पुत्र पवन कुमार सेठी Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168/ जैन समाज का वहद इतिहास सागर जी महाराज दोनों पुत्रियां इन्दिरा एवं सरला का विवाह हो चुका है। विशेष : प्रारम्भ में लाडनूं से जोरहाट एवं जोरहाट से सन् 1944 में इम्फाल आये । प्रारम्भ में सर्विस की और फिर 1965 से व्यवसाय करने लगे। धार्मिक प्रवृत्तियां : आपका पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का है। आपकी धर्मपत्नी ने एक बार लाडनूं में तथा दो बार इम्फाल में दशलक्षण व्रत के उपवास किये । आपकी पुत्र वधू श्रीमती गिनिया देवी ने इम्फाल में तीन बार दशलक्षण व्रत किये । आपके सुपौव पवन कुमार के कनिष्ठ पुत्र श्री समीर कुमार ने 16 वर्ष की अल्पायु में इम्फाल में प्रथम बार दशलक्षण व्रत करके एक यशस्वी कार्य किया है | सामाजिक : महासभा के स्थायी सदस्य, एसोसियेटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स,मणिपुर के सदस्य हैं । स्वभाव से मधुर एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। पता : मोहन मोटर्स, थांगल बाजार, इम्फाल (मणिपुर) प्रमत्र कुमार सेठी : श्री रखीलाल पाटनी जन्मतिथि : सावर सुदी पंचमी संवत् 1995 शिक्षा : सामान्य माता-पिता: श्री रामजीवन जी । आपका स्वर्गवास बहुत छोटी अवस्था में जब केवल 44 वर्ष के थे आज से 55 वर्ष पूर्व हो गया था। माताजी श्रीमती जाती देवी की छत्रछाया अभी 10 वर्ष पूर्व ही उठी है। व्यवसाय : दुकान एवं दलाली विवाह: संवत 2000 में मैना देवी के साथ सम्पन्न हुआ। मैना देवी धर्मपत्नी रखीलाल पाटनी परिवार : आपके 4 पुत्र एवं 3 मुत्रियां हैं। सबसे बड़े पुत्र श्री आनन्दीलाल हैं जो 40 वर्षीय हैं। उनकी पत्नी का नाम लक्ष्मी देवी हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत हैं । दूसरा पुत्र गजेन्द्र जैन है । आयु 28 वर्ष , पत्नी का नाम उर्मिला है। दो पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है । तृतीय पुत्र श्री पवन कुमार 30 वर्षीय है विवाहित हैं तथा दो पुत्रियों के पिता है। पत्नी का नाम शशि है । चतुर्थ पुत्र श्रीपाल जैन 27 वर्षीय है । बिवाह हो चुका है । पत्नी का नाम मंजू देवी है । एक पुत्र से अलंकृत हैं । श्री पाटनी पन पैना देवी धर्मपत्नी रखीलाल पाटनी Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्ण समाज 100 गिनिया, पुष्पा एवं जय कुमारी तीन पुत्रियां हैं। इनमें से प्रथम दो का विवाह हो चुका है। तीसरी पुत्री अविवाहित हैं। धार्मिक विशेषतायें: डेड (राज.) के तेरह पंथी मन्दिर में एक धातु को चौबीसी को विराजमान करने का जी ने दशलक्षण व्रत के उपवास एक बार एवं उनकी धर्मपत्नी ने दो बार उपवास किये हैं। आपको पावन बना लिया है। तिनसुकिया मन्दिर में होने वाले शास्त्र सभा के पाटनी जी नियमित श्रोता हैं इसलिये आपको शास्त्र ज्ञान भी अच्छा है। पता : सरावगी पेपर्स, आर-3, बाबूलाल बाजार, तिनसुकिया (आसाम) श्री रामगोपाल पाटनी भाग्य प्राप्त कर चुके हैं। श्री पाटनी सभी तीर्थों की बन्दना करके अपने जन्मतिथि: भादवा सुदी 10 सं. 1984 शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : किराना गल्ला के व्यापारी पिताश्री : श्री फतेहचन्द जी पाटनी, दो प्रतिमाधारी थे। आपका अभी तीन वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। माताश्री : श्रीमती हुलाशी देवी "पद्मावती"। आप पांच प्रतिमा की धारी थी। आचार्य विमल सागर जी नाम आपका रखा गया था। विवाह: संवत् 1996 पत्नी का नाम: श्रीमती कंचन देवी परिवार पुत्र-3 श्री शान्तिलाल, पदमचन्द एवं श्री विनोद कुमार तीनों ही पुत्र बी.कॉम. पास हैं तथा विवाहित हैं । शान्ति लाल जी की पत्नी का नाम श्रीमती कंचन देवी है। आपके एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। श्री पदमचन्द जी की आयु 35 वर्ष की है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मंजू देवी है। विनोद कुमार 28 वर्ष के हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती रंजूदेवी हैं। जिनके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। विशेष : आपकी माताजी को प्रतिष्ठाओं में मूर्तियां प्रतिष्ठापित करवाने में पूर्ण रुचि रहती थी तथा आतिथ्य सत्कार में उन्हें खूब आनन्द आता था । आपकी पत्नी एवं पुत्रवधू (श्रीमती कंचन देवी) के शुद्ध जल-पान के नियम है। मुनियों को बराबर आहार देती रहती हैं। आपके घर में चैत्यालय है जिसमें पद्मावती की मूर्ति विराजमान है। आप प्रतिदिन वहीं पूजा पाठ करते हैं। आचार्य सन्मति Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170/ जैन समाज का बृहद् इतिहास सागर जी महाराज एवं आचार्य विमलसागर जी महाराज की प्रेरणा मिलती रहती है । महासभा के आप स्थाई सदस्य हैं । आपके दो छोटे भाई हैं। श्री दुलीचन्द जी पाटनी निम्बाहेडा में व्यवसाय करते हैं तथा दूसरे माई पूनमचन्द जी नीमच में व्यवसायरत पता : जीवंधर ट्रेडिंग कम्पनी, साइडिंग बाजार,तिनसुकिया (आसाम) श्री रामदेव पाटनी आयु :56 वर्ष शिक्षा: सामान्य पाता-पिता : श्री पूनमचन्द जी पाटनी । आपका स्वर्गवास अभी 7-8 वर्ष पूर्व ही हुआ है लेकिन माताजी सुगनी देवो का वियोग 40 वर्ष पूर्व ही हो गया था। विवाह : सं. 2015 में आपका विवाह सुश्री उमरावदेवी से सम्पन्न हुआ | सन्तान : पुत्र-3 सन्तोष कुमार, धर्मपत्नी श्रीमती कनकलता। दो पुत्रियों एवं एक पुत्र हैं। दूसरे पुत्र सुरेश कुमार का विवाह मंजू देवी के साथ सम्पन्न हुआ। तृतीय पुत्र श्री अनिल कुमार अविवाहित है। विशेष : गौहाटी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं । महावीर भवन गौहाटी के ट्रस्ट कमेटी के सदस्य हैं । दि. जैन महासभा के ध्रुव फण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। . आपकी पत्नी ने शुद्ध खान-पान का नियम लिया हुआ है । मुनिभक्त हैं । मुनियों को आहार आदि से सेवा करती रहती पता : रामदेव सन्तोष कुमार पाटनी,टी.आर. फूकन रोड,गौहाटी (आसाम) पं. रूपचन्द छाबड़ा शास्त्री जन्मतिथि सन् 1930 शिक्षा : साहित्य शास्त्री सन् 1953 में वाराणसी से किया। पाता-पिता : श्री लक्ष्मीचन्द जी छाबड़ा - आपका 12 वर्ष पूर्व 60 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो चुका है । उनके एक वर्ष बाद माताजी श्रीमती छगनीदेवी जी की छत्रछाया उठ गई । उस समय माताजी की आयु केवल 55 वर्ष की थी। व्यवसाय : साईकिल हाट Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • पूर्वांचल प्रदेश का बैन समाज/171 विवाह : सन् 1955 में श्रीमती कमला देवी के साथ आपका विवाह हुआ। परियार : पुत्र-2 (1) अशोक कुमार - आयु 26 वर्ष पत्नी श्रीमती चम्पादेवी, पुत्र 3 है। (2) श्री सन्तोष कुमार • आयु 15 वर्ष - अविवाहित । पुत्री-4 सुमन का विवाह हो चुका है । उषा,उर्मिला एवं दुर्गा पढ़ रही हैं। विशेष : अपने विद्यार्थी जीवन में संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी से स्वर्ण पदक प्राप्त किया। कमला देवी धर्मपली रूपचन्द आपके पिताजी भी संस्कृत के ज्ञाता थे । उनको पं. चैनसुख दास जी न्यायतीर्थ का छात्र रहने का सौभाग्य प्राप्त था। आपके माताजी एवं पिताश्री दोनों के ही शुर खान-पान का नियम था। उन्होंने कभी भी एलोपैथिक दवा का उपयोग नहीं किया । आपका मूल प्राम जिजोठ (राज) है वहां से आपके पिताजी 70 वर्ष पूर्व नलबाडी रोजगार के लिये आये थे । शास्त्री जी का नलबाड़ी में खूब सम्मान है । स्वभाव से एकदम सरल एवं मधुर भापी हैं । आप एक बार सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके छाबड़ा पता : लक्ष्मीचन्द रूपचन्द छाबड़ा, एन-8 रोड, नलबाई (आसाम, श्री लक्ष्मीनारायण बड़जात्या जन्मतिथि : संवत् 1988 शिक्षा : मैट्रिक पास है व्यवसाय : गल्ला किराना माता-पिता : श्री हजारीलाल जी बड़जात्या एवं श्रीमती दाखा देवी । माता-पिता दोनों की ही छत्रछाया प्राप्त नहीं है। विवाह : १6 वर्ष की आयु में श्रीमती मनभरदेवी के साथ आपका विवाह हुआ था। परिवार : आपके दो पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं । पुत्र श्री अजित कुमार बी.कॉम, एल.एल.बी. हैं 1 अजय कुमार अभी छोटे हैं तथा प्राथमिक कक्षाओं के छात्र हैं। आपके चार पुत्रियां हैं। सबसे बड़ी पुत्री आशा का गौहाटी के विमल कुमार छाबड़ा के साथ विवाह हो चुका है। दूसरी पुत्री सुगन्धा भी विवाहित है जिनके पति श्री धनपत जी पाण्ड्या शिलांग निवासी हैं । चन्दा एवं किरन दोनों ही पढ़ रही हैं। Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1721 जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष : आप दोनों विजरानगर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र के पद से सुशोथित हये थे। अपने नाम घोबलाई में जिन मन्दिर का निर्माण करवाया है । महासभा के स्थायी सदस्य एवं सुरक्षा ट्रस्ट फण्ड के ट्रस्टी है | बड़जात्या जी मिलनसार एवं सेवाभावी स्वभाव के हैं। पता : मैसर्स लक्ष्मीनारायण अजित कुमार,करीमगंज बाजार (आसाम) श्री लक्ष्मीनारायण जी सरा आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से मैट्रिक करने के पश्चात् अपने व्यवसाय में लग गये। आप 53 वर्ष के हैं। आपके दादा जी का नाम रंगलाल जी था । आपके पिताजी श्री केशरीमल जी सरा आपको पांच वर्ष का छोडकर ही स्वर्ग सिधार गये थे। माताजी श्रीमती भंवरी देवी 17 वर्ष पर्व 61 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवासी हुई हैं । संवत् 2011 में आपका विवाह श्रीमती गुलाब देवी के साथ सम्पन्न हुआ। श्रीमती गुलाब देवी लाडनूं के स्व. भवरलाल जी पाण्डया की सुपुत्री हैं । सन्तान : आपके तीन पुत्र हैं । ज्येष्ठ पुत्र श्री ललित कुमार 30 वर्ष के हैं, ली.कॉम हैं, विवाहित हैं । पूनमदेवी पत्नी हैं। आपके एक पुत्र है तथा एक पुत्री है । द्वितीय पुत्र बसन्त कुमार भी बी.कॉम. है । आपकी पत्नी का नाम शोभादेवी है । आपके एक लड़का व एक लड़की है। तृतीय पुत्र राजेश कुमार भी बी.कॉम. है । आपकी पत्नी का नाम अनीता देवी है। बड़ी पुत्री पुष्पादेवी का विवाह डिब्रूगढ के राजकुमार जी गोधा के साथ सम्पन्न हो चुका है। आपके दो पुत्रियां व एक पुत्र है । द्वितीय पुत्री बीना देवी का विवाह गौहाटी के अजीज कुमार पाटनी के गुलाब देवी धर्मपत्नी लक्ष्मीनारायण साथ सम्पन्न हो चुका है। तृतीय पुत्री सीमा अभी अविवाहित है। रास आपके बड़े भाई सागरमल जी रारा सुजानगढ में ही व्यवसाय करते हैं । आपके तीन पुत्र व दो पुत्रियां हैं। ज्येष्ठ पुत्र कमल कुमार का विवाह कविता देवी के साथ लाडनूं में हुआ है । द्वितीय पुत्र हितेन्द्र बी कॉम. है तथा अभी अविवाहित है । तृतीय पुत्र मनोज भी बी कॉम है तथा अविवाहित है । आपके बड़ी पुत्री सुमित्रा देवी का विवाह लाडनूं के पवन कुमार जी सेठी के साम्य हो चुका है तथा द्वितीय पुत्री राजलक्ष्मी का विवाह डेह के पारसमल जी सबलावत के साथ हुआ है। आपकी बहिन पानादेवी गौहाटी के मोहनलाल जी सेठी से विवाहित है । विशेष : आपने हस्तिनापुर जम्बूद्वीप में एक कमरे का निर्माण करवाया । सोनागिरी में निर्माण कार्य चल रहा है। सुजानगढ के मन्दिर में चौबीसी में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान की है। धार्मिक दोनों पति-पली ने तीन बार अष्टान्हिका तथा एक बार दशलक्षण व्रत का उपवास किया है । सन् 1985, 85, 88,89 व 90 में आपने अकेले ही दशलक्षण के उपवास किये थे। पता : सरावगी हार्डवेयर स्टोर्स,एटी.रोड,शिवसागर (आसाम) Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /173 डॉ. लालचन्द पाटनी. डॉ.पाटनी का जन्म राजस्थान के सीकर जिले में स्थित राणोली पाम में 6 जून,1950 के शुभ दिन हुआ। आपके पिताजी मोहनलाल जी (60 वर्ष) एवं माता श्रीमती गुलाबी देवी (56 वर्ष) राणोली में ही रहते हैं। आपकी शिक्षा राजस्थान में ही हुई। सन् 1975 में मेडिकल कालेज बीकानेर से एम.बी.बी.एस.परीक्षा पास करने के पश्चात् आपडीमापुर चले आये और यहां भगवान महावीर चेरीटेबल डिस्पेन्सरी में कार्य करने लगे । लगातार 10 वर्ष तक डिस्पेन्सरी में कार्य करने के पश्चात् आपने स्वयं का अस्पताल खोल लिया । वर्तमान में डीमापुर में आप अत्यधिक लोकप्रिय डॉक्टर माने जाते हैं। आपका विवाह सन् 1974 में श्रीमती सन्तोषदेवी के साथ हुआ। वर्तमान में आपके एक पुत्र आशीष एवं तीन पुत्रियां गुडू, मुनमुन एवं शिल्पा है। डॉ.पाटनी पूरे परिवार के साथ विदेश यात्रा कर चुके हैं । डीमापुर के दिगम्बर जैन मन्दिर में निर्माणाधीन जम्बूद्वीप में आप 12 वें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा विराजमान करेंगे । पाटनी जी सामाजिक सेवा में रुचि लेते हैं। आप पारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के वव फण्ड टस्ट के सदस्य एवं उसके आजीवन सदस्य हैं। राणोली में जैन भवन में एक में एक कमरे का निर्माण करा चुके हैं । आप लाइन्स क्लब डीमापुर के मेडिकल चेयरमैन हैं तथा रोगियों का निःशुल्क चैकअप करते हैं । पता : जैन क्लीनिक, धोबी नला,डीमापुर (नागालैण्ड) श्री लूणकरण पाण्ड्या जन्मतिथि : आसोज सुदो । सं. 1988 पिताश्री श्री चांदमल जी पाण्ड्या । आपका स्वर्गवास 45 वर्ष पूर्व में हो गया था। उस समय आपकी आयु केवल 14 वर्ष की थी। माताश्री : श्रीमती सोहनी देवी । आपका अभी सन् 1981 में स्वर्गवास हुआ। शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : जीरोक्स फोटोकॉपी विवाह : आषाढ सुदी 9 सं. 2010 पत्नी का नाम : श्रीमती सुलोचना देवी । आपका सन् 1985 में स्वर्गवास हो गया। परिवार : तीन पुत्र - श्री सुकुमाल,रतनलाल एवं शैलेन्द्र पुत्री- ताराबाई एवं कविता Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174/ जैन समाज का वृहद् इतिहास y विशेष : आपकी माताजी सप्तम् प्रतिमाधारी थी । आपकी पुत्री ताराबाई ने सन् 1987 में दशलक्षण के उपवास किये थे। पाण्ड्या जी शान्त परिणामी तथा समाजिक कार्यों में रुचि लेने वाले हैं। पता : कोपीको सेन्टर, ए.टी. रोड, तिनसुकिया (आसाम) श्री शिखरी लाल जैन बड़जात्या (नागौर पाले) जम्पनिश्चि : आसोज सुदी 15 सं.1978 शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : जूट के व्यापारी माता-पिता : स्व.ज्ञानीलाल जी बड़जात्या सं.2009 में 61 वर्ष की आयु में स्वर्गवास । ___माता - स्व.हुलाशी देवी सं.2011 में स्वर्गवास । विवाह : सं. 1994 में श्रीमती शान्ति देवी के साथ विवाह सम्पन हुआ। सन्तान : पुत्र-2 टीकमचन्द,आयु - 41 वर्ष,पत्नी श्रीमती शान्ताबाई । दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । सुशील कुमार,आयु • 35 वर्ष, पत्नी श्रीमती सुशीला देवी । 3 पुत्र एवं 3 पुत्री। पुत्री - एक अंजना देवो पाटनी विशेष : आपके बड़े पिताजी जी दीपचन्द जी ब्रह्मचारी थे । आपको धूबड़ी इन्द्रध्वज विधान में इन्द्र इन्द्राणी तथा सिद्ध चक्र विधान कलकत्ता में भी इन्द्र इन्द्राणी पद से सुशोभित किया। इसी तरह दिनहटा में आयोजित सिद्ध चक्र विधान में इन्द्र इन्द्राणी बने थे। नागौर में श्रीपदमप्रभू एवं पार्श्वनाथ जी में एवं पावापर जी में श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी। श्री शान्तिनाथ जो एवं पदमप्रभु स्वामी की मूर्ति भी वेदी का निर्माण नागौर में करवाकर विराजमान की थी। दोनों पति-पत्नी के शुद्ध खान-पान का 32 वर्ष से नियम है, मुनिभक्त हैं,साधुओं को आहार देने में रुचि लेते हैं। आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी गृहस्थ जीवन में आपके परिवार की सदस्या थी । दिनहटा में भी श्री मन्दिर में श्री शान्ति नाथ जी की मूर्ति विराजमान की थी। पता : नूनिया पट्टी धूबड़ी (आसाम) श्री सन्तोष कुमार पाटनी आयु : 35 वर्ष शिक्षा : हायर सेकेण्डरी पिता :श्री रामदेव जी पाटनी सन्तोष कुमार एवं कनकलता पाटनी Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता : श्रीमती उमराव देवी जी व्यवसाय: गल्ला व्यवसाय शिवार: वर्ष 1970 में आपका विहार श्रीमती कननलता के साथ हुआ । सन्तान : एक पुत्र दिनेश पाटनी (15 वर्ष) एवं दो पुत्रियां बेलर (12 वर्ष) एवं विनिता (10 वर्ष) विशेष : पाटनी जी लिखने की ओर रुचि रखते हैं। आपके कभी-कभी जैन पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। आपने णमोकार मन्त्र व्रत के 35 उपवास किये हैं। व्रत, उपवास, स्वाध्याय जैसे कार्यों में आप आगे रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कनकलता भी धर्मपरायणा हैं। आपने आर्यिका सुपार्श्वमती जी माताजी से शुद्ध खान-पान का नियम लिया हुआ है। एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। पूजा पाठ में विशेष रुचि है। पता : रामदेव सन्तोष कुमार पाटनी, फैन्सी बाजार, गौहाटी (आसाम) श्री विजय कुमार पाण्ड्या पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 175 जन्मतिथि: 1 जनवरी 1948 शिक्षा: गौहाटी विश्वविद्यालय से वर्ष 1973-74 में एम.कॉम. परीक्षा पास की। व्यवसाय: साडी व्यवसाय सरोज धर्मपत्नी विजय कुमार पाण्ड्या माता-पिता र श्री जयचन्द जी पाण्ड्या, मातास्व. श्रीमती उमराव देवी जी । विवाह : सन् 1967 में श्रीमती सरोज के साथ विवाहित सन्तान : पुत्र दो विकास एवं विशाल पुत्री एक बोना विशेष : आपके पितामह श्री जीतमल जी पाण्ड्या लाडनूं के प्रसिद्ध समाज सेवी थे 1 श्री पाण्ड्या जी दि. जैन समाज गौहाटी के संयुक्त मन्त्री है। युवा समाज सेवी, मुनिभक्त एवं सबको सहयोग देने वाले युवक हैं। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है। श्री सम्पत कुमार पाटनी श्री पाटनी जी का जन्म दिनांक 31 मार्च सन् 1940 को हुआ। जन्म के तीन वर्ष पश्चात् ही आपको माता श्रीमती मोहनी देवी का स्वर्गवास हो गया और जब आप 20 वर्ष के थे तभी पिताजी श्री प्रभुलाल जी पाटनी का सन् 1960 में 75 वर्ष की आयु Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176/ जैन समाज का वृहद् इतिहास में निधन हो गया । डी.एन.कॉलेज मणिपुर से 1960 में बी.कॉम. करने के पश्चात् आप बिल्डिंग ठेकेदारी एवं हार्डवेयर का कार्य करने लगे। आपका विवाह दि.14/07/1958 को श्रीमती सुशीला देवी के साथ हुआ । वर्तमान में आपके एक पुत्र एवं पांच पुत्रियां हैं 1 पुत्र श्री सुनील कुमार कॉमर्स मेजुएट हैं। पुत्रियां सविता, बबिता, कविता,सीमा एवं मधु हैं। सबसे बड़ी पुत्री सविता का विवाह श्री राजकुमार सोगानी हजारीबाग से हो चुका है । बबिता ग्रेजुएशन कर चुकी है,कविता,सीमा एवं मधु पढ़ रही है । पाटनी जी इम्फाल में एसोसियेटेड मणिपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स के विगत 5 वर्ष से महासचिव है। श्री दिगम्बर जैन महावीर हाईस्कूल मणिपुर के देसी एवं गालाही सम्मेलन काल के उपाधक्ष हैं । लायन्स क्लब के जिला उप गवर्नर रह चुके हैं। ___ आपका पूरा परिवार धार्मिक स्वभाव का है । आपकी पुत्री सुश्री बबिता एवं पुत्र सुनील कुमार एक बार दशलक्षण व्रत के 10 दिनों का उपवास कर चुके हैं । सन् 1970 में पाटनी जी जापान, हांगकांग, थाईलैण्ड,मलेशिया आदि का एक बार भ्रमण भी कर चुके हैं। पता : सी.एल. जैन एण्ड कम्पनी, थांगल बाजार,इम्फाल (मणिपुर) श्री सम्पतराय पहाड़िया आयु : 50 वर्ष शिक्षा : सामान्य पिताजी :श्री झूमरमल जी पहाडिया,आपका पूर्ण त्याग के साथ सन् 1960 में स्वर्गवास माताजी : श्रीमती चांदूदेवी जी का भी दिनांक 01.05.90 को पूर्ण त्याग के साथ स्वर्गवास हो चुका है। विवाह : 16 वर्ष की आयु में आपका श्रीमती अनोप देवी के साथ विवाह सम्पत्र हुआ । सन्तान : पुत्र-4, पुत्रियाँ-2 । ज्येष्ठ पुत्र अशोक (31 वर्ष) का विवाह हो चुका है। पत्नी का नाम सरिता है । द्वितीय पुत्र डॉ. अरूण कुमार एम बी बी.एस. के बाद एमड़ी. कर रहे हैं । आलोक कुमार (12 वर्ष),अश्विन कुमार 17 वर्ष के हैं तथा पढ़ रहे हैं। पुत्रियाँ - छाया एवं सुमन का विवाह हो चुका है। सुमन ने मैट्रिक पास कर लिया है। व्यवसाय : मोटर ऑटो पार्टस । विशेष : डेह (राज) से करीब 100 वर्ष पूर्व लालचन्द जी मूलचन्द जी, सदासुख जी एवं मनसुख जी चारों यहां आये और व्यवसाय करने लगे। श्री सदासुख जी पहाडिया आपके बावाजी के बड़े भाई थे । जब उनका स्वर्गवास हुआ तो राज्य भर में छह महिने का शोक रखा गया। वे मणिपुर महाराजा श्री चूडा चादसिंह के धर्म भाई थे । महाराजा ने उनकी स्मृति में हॉस्पिटल में छतरी का निर्माण करवाया था। सदासुख जी डीमापुर से यहां घोड़े पर आये थे । मणिपुर में आने वाले मारवाड़ी समाज में Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वाचल प्रदेश का जैन समाज /177 प्रमुख थे । उन्होंने अपने जीवन की घटना सुनाई थी - जब वे यहां आये तो खाने-पीने का कोई साधन नहीं था । उन्होंने चावलों की पोटली बनाई। मिट्टी खोदो और उस पर अग्नि जलाई । जब चावल पक गये तो खाकर अपनी भूख मिटाई । जब वे यहां आये तो महाराजा ने उनका खूब सम्मान किया था । जब वे मणिपुर से अपने देश जाया करते तो सभी परिवार उनको विदायगी के 2 रूपये प्रति परिवार देते और बड़े स्नेह से उनको विदा करते थे। सम्पतराय सहित पांच भाई है. महावीर प्रसाद जी (40 वर्ष) पदमचन्द जी (35 वर्ष) महीपाल - बी.कॉम. दत्तक गये. यशपाल बी.ए., एल.एल.बो. (.) वर्ष)। सभी मोटर पार्टस का व्यवसाय करते हैं। परिवार के सदस्य अमर मल जी पिता श्री राम्पत राय ज: पहाड़िया चांद देवी माताश्री सम्पत राय जी पहाड़िया अनोपदेवी धर्मपत्नी श्री सम्पत राय पहाडिगा पता • पहाडिया आंटो डिस्ट्रीब्यूटर्स, घांगल बाजार,इम्फाल (मणिपुर) श्री सागरपल सरावगी चूडीवाल गदिया जन्मतिथि : काल्गुन सुदी : संवत 1987 शिक्षा : सामान्य ध्यवसाय : जूट का व्यापार माता-पिता : पिता श्री हरकचन्द जी सरावगी - आपका 69 वर्ष की आयु में सन् 1978 में स्वर्गवास हुआ था । माताजी श्रीमती आणची बाई का स्वर्गवास सं. 1999 में हो गया उस समय आयु केवल 12 वर्ष मात्र थीं। विवाह : संवत 2005 में श्रीमती बनारसी देवी के साथ विवाह हुआ। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 / जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष : श्री चूड़ीवाल धार्मिक स्वभाव के महानुभाव हैं। परम मुनिभक्त हैं। आर्यिका सुपार्श्वमती जी माताजी आपकी गृहस्थावस्था की बहन है। उनका पूर्व नाम भंवरीबाई था। संवत् 1997 में मैन्सर में नागौर के श्री इन्दरचन्द जी के साथ भंवरी बाई का विवाह हुआ। लेकिन विवाह के चार महिने पश्चात् ही उनका स्वर्गवास हो गया। संवत् 2014 में आपको आचार्य वीरसागर जी महाराज ने अपनी समाधि के 25 दिन पूर्व ही आर्यिका दीक्षा दी और सागरमल जी समाज सेवी एवं धार्मिक प्रवृत्तिवाले सज्जन हैं । पता : श्री सागरमल चूडीवाल, बरपेटा रोड (आसाम) श्री सौभागमल झांझरी जन्मतिथि : संवत् 20000 ईस्वी शिक्षा : सामान्य माता-पिता श्री गोरधनलाल जी झांझरी आपका सन् 1971 में स्वर्गवास हुआ। माताश्री सांझादेवी जी 865 वर्ष की आयु, आपकी छत्रछाया प्राप्त है। व्यवसाय : 196/1 से 1989 तक तिनसुकिया में ही मैसर्स रामदेव भगवती प्रसाद के यहां गल्ला के व्यवसाय में कार्यरत रहे । 1989 में सेवानिवृत्त होकर वर्तमान में उक्त फ्लावर मिल के महाप्रबन्धक के रूप में कार्यरत । विवाह एवं गृहस्थ जीवन : I सन् 1959 में श्रीमती गुणमाला देवी सुपुत्री स्व. श्री बुद्धमल जी पाटनी मु. इन्दोखा जिला नागौर के साथ सम्पन्न, आपके तीन पुत्र चि. उम्मेद कुमार (20 वर्ष) मनोज कुमार (22 वर्ष) सुनील कुमार (19 वर्ष) एवं दो पुत्रियां आ पुष्पा एवं कु. प्रीति है चि. उम्मेद कुमार सी.ए. पास करके अपनी प्रेक्टिस कर रहे हैं। चि. मनोज एवं सुनील शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आ. पुष्पा का विवाह गौहाटी निवासी श्री कमल किशोर जी छाबड़ा के साथ सम्पन्न हुआ है और कु. प्रीति अभी अविवाहित है। चि. उम्मेद कुमार का विवाह आ. किरण सुपुत्री श्री भदन लाल जी छाबड़ा गौहाटी के साथ 1990 में सम्पन्न हुआ है। विशेष : आपके पिताश्री ने अपने जन्मस्थल ग्राम खारंडीयां जिला नागौर में मूर्ति प्रतिष्ठा एवं वेदी शुद्धि कराई । श्री सोभागमल जी 1972 से 1989 तक तिनसुकिया गल्ला किराना कमेटी के मन्त्री रहे हैं एवं सभी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। पता : शिवशक्ति फ्लावर मिल्स प्रालि, माकुम रोड, तिनसुकिया (आसाम) Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सोहनलाल सांगा पाटनी जन्मतिथि: 10 अगस्त, 1934 शिक्षा : अजमेर बोर्ड सन् 1952 में मैट्रिक किया। माता-पिता श्री गैंदीलाल जी पाटनी। आपका करीब 22 वर्ष पूर्व 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। माताजी श्रीमती म्होरीदेवी आपको छत्रछाया प्राप्त है । . - श्री स्वरूप चन्द पहाडिया पूर्वाचल प्रदेशका 179 व्यवसाय : हार्डवेयर एवं मशीनरी पार्ट्स विवाह दिसम्बर 1955 में आपका श्रीमती मौसमी देवी जी के साथ विवाह हुआ । : परिवार आपके तीन पुत्र हैं। ज्येष्ठ पुत्र श्री निर्मल कुमार 22 वर्षीय हैं। 18 वर्षीय श्री जयकुमार एवं विजय कुमार 16 वर्षीय दोनों ही पढ़ रहे हैं। विशेष: आपकी धर्मपत्नी ने सन् 1979 में 31 दिन के उपवास करके एक कीर्तिमान स्थापित किया था। आप आचार्य ज्ञान सागरजी महाराज की प्रेरणा से दशलक्षण व्रत के तीन बार उपवास कर चुके हैं। आप मूलतः रेनवाल किशनगढ मौसमी देवी एवं महोरी देवीं (राज.) के हैं तथा तिनसुकिया में सन् 1951 में आकर व्यापार करना प्रारम्भ किया था। पाटनी जी सरल एवं मधुर स्वभाव के हैं। तिनसुकिया में आपकी समाज में बहुत अच्छी प्रतिष्ठा है। पता : सांगा पाटनी ट्रेडिंग कम्पनी, माकूम रोड, तिनसुकिया (आसाम) जन्मतिथि: 31 दिसम्बर, 1931 शिक्षा : सामान्य पिताजी : श्री तखतमल जो पहाड़िया 75 वर्ष की आयु में 27 जुलाई 89 को स्वर्गवास हुआ था। माताजी श्रीमती सदी देवी आपका निधन 30 वर्ष की आयु में हो गया था जिसको 48 वर्ष से अधिक समय हो गया। • विवाह : सन् 1948 में मणिदेवी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ । सन्तान : एक पुत्र - श्री विनोद कुमार आयु 28 वर्ष, विवाहित, पत्नी उषा देवी, दोनों के एक पुत्र एवं एक पुत्री है। - Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140: जैन समाज का वृहद इतिहास पुत्री-दो,मनफूल बाई .मंजू बाई,दोनों का विवाह हो चुका है। व्यवसाय : चाय पत्ती एवं रूई का व्यवसाय । विशेष : श्रीमती भणिदेवी एक बार दशलक्षण व्रत एवं एक दार अशान्तिका व्रत के उपवास कर चुकी हैं । आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों को आहार आदि देती हैं। आपको बड़ी माता श्रीमती गद् देवी बह्मचारिणी हैं । सहस्लाब्दि महामस्तकाभिषेक महारोह के अवसर पर भगवान बाहुबली पर अभिषेक करने का स्वर्ण अवसर प्राप्त किया। पता : स्वरूपचन्द विनोद कुमार जैन,ग्राहम बाजार, डिब्रूगढ (आसाम) श्री श्रीचन्द सेठी आयु :(5.3 वर्ष शिक्षा : सामान्य व्यवसाय : जनरल मर्चेन्ट्स माता-पिता : श्री बालचन्द जी सेठी - 75 वर्ष की आयु में करीब 11 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। विवाह : श्रीमती केशरी देवी के गश 18 वर्ष की आयु दिन का था। सन्तान : पुत्र- पुखराज सेठी ज्येष्ठ पुत्र है,आयु - 42 वर्ष । आपकी पत्नी का नाम सुमित्रा जैन दो पुत्र एवं एक पुत्री के भाता-पिता हैं। राजकुमार जैन, आयु - 38 वर्ष,पत्नी श्रीमती सरोज जैन, दो पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता हैं। अभय कुमार जैन, आयु . 31 वर्ष पत्नी श्रीमतो इन्द्रा जैन । आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है । पुत्री - एक है ललिता,जिसका श्री सुरेश कुमार सबलावत के साथ विवाह हो चुका है। आपके दो पुत्र हैं । विशेष: आपके ज्येष्ठ पुत्र पुखराज सेठी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। तीर्थयात्रा में रुचि रखते हैं । साधुओं के प्रति पूर्ण भक्ति है। पता : सेठी निकेतन, सती जयमती रोड, आठ गाँव,गौहाटी (आसाम) श्री हनुमान प्रसाद बड़जात्या (धोबलाई वाले) जन्मतिथि : आषाढ सुदी 9 संवत् 1981 शिक्षा: मैट्रिक एवं विशारद माता-पिता : श्री हजारीलाल जी एवं श्रीमती दाखादेवी जी · आपके सिर से दोनों को ही छत्रछाया उठ चुकी है। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवसाय : गल्ला किराना थोक विवाह : 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती गुलाब देवी के साथ सम्पन्न हुआ । गुलाब देवी धर्मपत्नी श्री हनुमान 2. पुत्रियाँ : आठ हैं। विमला देवी का विवाह गौहाटी में शान्ति कुमार जी बाकलीवाल के साथ सम्पन्न हुआ। दूसरी पुत्री पाना देवी का विवाह डॉ. एस. के. जैन कलकत्ता के साथ हुआ। तीसरी पुत्री ज्ञाना देवी के पति प्रसिद्ध समाज सेवी श्री राजकुमार जी सेठी डीमार हैं। चतुर्थ पुत्री राजकुमारी का जयपुर में आर.के. अजमेरा के साथ विवाह हुआ । पांचवी पुत्री कुसुमलता का विवाह श्री सुरेश कुमार जी छाबड़ा (फर्म गुलाब चन्द मत्रालाल गौहाटी) के साथ सम्पन्न हुआ। छठी पुत्री अंजना के पति श्री रमेश चन्द एस. डी. ओ. हैं। सप्तम पुत्री सुनिता बी.ए. का विवाह अशोक छाबडा अहमदाबाद से सम्पन्न हुआ एवं आठवीं पुत्री ममता भी बी.ए. है तथा उसका विवाह अशोक पाण्ड्या (आसाम ऑटो एजेन्सीज) शिलांग के साथ सम्पन्न हुआ। ममता जैन शर्मा नर्सिंग होम लालकोठी जयपुर की डाइरेक्टर हैं। प्रसाद पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज / 181 परिवार 1 श्री सन्तोष कुमार एक मात्र पुत्र हैं। आयु 33 वर्ष है। बी.कॉम., एल.एल.बी. में गौहाटी विश्वविद्यालय में प्रथम आये थे । आप रेलवे कन्सलटेन्ट कमेटी के सदस्य हैं। पत्नी कुसुमलता सुपुत्री श्री लखमी चन्द जी छाबड़ा गौहाटी (पूर्व अध्यक्ष दि. जैन महासभा) | पुत्र- एक (सन्दीप) एवं एक पुत्री (भावना) से अलंकृत हैं। सन्तोष कुमार जैन सुपुत्र हनुमान प्रसाद विशेष: विजयनगर पंचकल्याणक में इन्द्र पद को सुशोभित कर चुके हैं। आपने प्राम धोबलाई (राज.) में मन्दिर का निर्माण करवाकर उसमें मूर्ति विराजमान की है। महासभा के स्थाई सदस्य एवं महासभा की सुरक्षा फण्ड ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। करीमगंज के व्यापार मण्डल के उपसभापति हैं। आपने सभी तीर्थो को वन्दना कर ली है। गौहाटी में हनुमान प्रसाद सन्तोष कुमार के नाम से तथा करीमगंज में हनुमान प्रसाद सन्तोष कुमार जैन के नाम से व्यापारिक प्रतिष्ठान है। परिवार के सदस्य पता: हनुमान प्रसाद सन्तोष कुमार जैन, करीमगंज बाजार (आसाम) कुसुमलता धर्मपत्नी सन्तोष 1 कुमार Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1821 जैन समाज का वृहद् इतिहास TAE 4 श्री हंसराज पाण्ड्या जन्मतिथि :17 सितम्बर, 1928 शिक्षा : बिडला कालेज पिलानी से 1947 में बी.कॉम. किया तथा हिन्दी में विशारद डिप्री भी प्राप्त की। माता-पिता: चम्पालाल जी पाण्डया। आपका स्वर्गवास:50 वर्ष पहआजब आप सागज जो ज 32 वर्ष के थे लेकिन पाताजी की मृत्यू जब पिताजी ३० वर्ष के थे.तभी हो गई थी। आपके पिताजी श्री चम्पालाल जी, सदासुखजी,रायसाहब तनमुखराय जी एवं बालचन्द जी चार भाई थे। परिवार : आप चार भाईयों - श्री नेमीचन्द,माणकचन्द, हंसराज,बच्छराज में से प्रथम दो का स्वर्गवास हो चुका है। __ व्यवसाय : पेट्रोलियम एवं ऑटोमोबाईल्स विवाह : 16 वर्ष की आयु में सन् 1944 में आपका विवाह गुणमाला देवी से सम्पन्न हुआ। सन्तान: आप दोनों को एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है | आपका एकमात्र पुत्र निहाल जैन बी कॉम है । विवाहित है तथा उनके दो पुत्र आदित्य एवं अतिशय जैन हैं । दोनों पुत्रियाँ राजकुमारी एवं सन्तोष का विवाह हो चुका है। गुणपाला धर्मपली श्री हंसराज विशेष : हंसराज जी पाण्डया का जीवन पर्णतः धार्मिक एवं सामाजिक है । वरपेटा पाण्ट्या रोड, हस्तिनापुर लाइन पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में आप इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं। आपके घर में ही चैत्यालय है । चैत्यालय में सभी प्रतिमायें आपने प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान को है । आप दोनों समस्त तीर्थों को दो बार वन्दना कर चुके हैं। सुजानगढ़ की दि. जैन नशियां में चौबीस वेदियों में से एक वेदी का आपने निर्माण करवाया तथा उसमें मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । चूलगिरि जयपुर में भी आपने एक पद्मासन पूर्ति विराजमान की है। पिछली बड़ी यात्रा के दौरान मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र में मुनिवर श्री श्रेयांससागर जी की प्रेरणा से तलहटी में स्थित प्राचीनतम मन्दिर का “अतिशय श्री 108 विश्वहितंकर भगवान पार्श्वनाथ मन्दिर" नामकरण उद्घाटन समारोह आपके द्वारा किया गया। सामाजिक मेघालय प्रान्तीय महासभा के उपाध्यक्ष हैं। आपकी धर्मपत्नी धार्मिक स्वभाव की महिला हैं । मुनिभक्त हैं। मुनिराजों को आहार देकर उनको खूब सेवा करती हैं। आसाम में आपके पूर्वज सन् 1860 में आकर रहे इस प्रकार आपका परिवार यहां 130 वर्ष पूर्व का निवासी है। पता : आसाम ऑटो एजेन्सीज जवाई रोड, शिलांग (मेघालय) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /183 श्री हुकुम चन्द टोंग्या आयु : 68 वर्ष शिक्षा : सामान्य पिताजी : श्री बिरधीचन्द जी टोंग्या - स्वर्गवास सन् 1939 में । माताजी श्रीमती गुलाब देवी टोप्या का स्वर्गवास सन् 1961 में हुआ । विवाह : श्रीमती मोहनी देवी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ। सन्तान : पांच पुत्र - श्री प्रभातचन्द, प्रकाशचन्द, प्रदीपकुमार, अनिलकुमार और राजकुमार जैन। पुधियां दो - प्रेमलता एसोजदेव। व्यवसाय : वस्त्र, गल्ला,टिम्बर, फर्नीचर एवं आदत । विशेष : श्री टोग्या जी धार्मिक स्वभाव के हैं । तीर्थ वन्दना में रुचि है। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रभातचन्द बी.कॉम. हैं । उनकी जन्मतिथि 10/07/1940 है। सन् 1959 में आपका विवाह श्रीमती कंचन देवी के साथ सम्पन्न हुआ था । आप तोन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं। सामाजिक कार्यकर्ता हैं । विकास स्मारिका के सम्पादक हैं । डीमापुर जैन पंचायत कार्यकारिणी के सदस्य,लायन्स क्लब के उपाध्यक्ष तथा महासभा की प्रबन्धकारिणी कमेटी के सदस्य हैं। द्वितीय पुत्र : प्रकाशचन्द,आयु - 48 वर्ष,पत्नी का नाम निर्मला देवी । तीन पुत्रियों के पिता है। तृतीय पुत्र : प्रदीप कुमार, बी.कॉम. । आयु - 33 वर्ष,श्रीमती रंजना देवी पत्नी । दो पुत्रों के पिता हैं । चतुर्थ पुत्र : अनिल कुमार,बी.कॉम. है। आयु - 32 वर्ष । पत्नी का नाम सरिता, दो पुत्रों के पिता हैं। पंचम पुत्र : राजकुमार,बी.कॉम., आयु • 28 वर्ष, धर्मपत्नी का नाम सुनिता है। पदा :।. प्रदीप कुमार संजय कुमार जैन,जैन मन्दिर रोड,डीमापुर (नागालैण्ड) 2. हुकुमचन्द प्रकाशचन्द जैन,झालावाड़ (राज) प्रधान चन्द टोप्या 100 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184/ जैन समाज का वृहद इतिहास खण्ड 3 राजस्थान प्रदेश का जैन समाज राजस्थान प्रदेश का जैन समाज-एक सर्वेक्षण राजस्थान का वर्तमान में जो स्वरूप है वह सन् 1947 के पूर्व छोटी बड़ी अनेक रियासतों एवं ठिकानों में विभाजित था। शासन राजाओं की मर्जी के अनुसार चलता था। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् रियासतों का विलीनीकरण हुआ तो राजस्थान का एक रूप सामने आया। उसका क्षेत्रफल 3,42,440 वर्ग किलोमीटर हो गया । सन्-1981 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 342,61,862 हो गई । सीमा की दृष्टि से राजस्थान के पश्चिम, उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर तथा उत्तर पूर्व में पंजाब और हरियाणा, पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण पूर्व मे मध्य प्रदेश एवं दक्षिण में गुजरात के राज्य हैं। समृचा राजस्थान 30 जिलों में विभक्त है। वर्तमान में राज्य में 192 तहसील, ग्राम स्तर पर 7353 ग्राम पंचायतें, खंड स्तर पर 237 पंचायत समितियाँ एवं जिला स्तर पर 27 जिला परिषदें हैं। राज्य में 37124 गाँव हैं जिनकी जनसंख्या 27051354 है शेष 72,10508 जनसंख्या भगरों की है जिनमें जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर, भीलवाडा, अलवर, बीकानेर जैसे नगर आते हैं । सन् 1981 में राजस्थान को कुल जनसंख्या 3,42,61,862 थी जो सन् 91-92 मे 4 करोड़ (अनुमानित) हो गई । सन् 1981 की जनगणना के अनुसार विभिन्न धर्मावलम्बियों की संख्या निम्न प्रकार है - 30603970 89.32 प्रतिशत 624327 1.82 प्रतिशत सिख 492818 1.44 प्रतिशत बौद्ध 4427 0.1 प्रतिशत मुसलमान 2492145 7.28 प्रतिशत ईसाई 39568 (0.12 प्रतिशत अन्य 4617 उक्त आँकड़ों के अनुसार हिन्दू और मुसलमानों के पश्चात् जैनों की संख्या तीसरे स्थान पर आती है । हिन्दू Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/185 राजस्थान में जैनधर्म सर्वाधिक प्राचीन धर्म है अथवा यह यहाँ का मूलधर्म है । भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर स्वामी तक सभी तीर्थकरों ने किसी न किसी रूप में राजस्थान की भमि को पावन किया है यही कारण है जैन धर्मावलम्बी यहां के स नगरों एवं हजारोगांवों में बसे हुये हैं और वहाँ के मूल निवासी हैं । जैन धर्म यहाँ का कितना पुराना धर्म है इस संबंध में उपलब्ध पुरातत्व साक्ष्य ही पर्याप्त नहीं है । लेकिन राजस्थान में जैन समाज प्रारंभ से ही प्रभावी रहा है । यद्यपि उस समय इस प्रदेश का वर्तमान स्वरूप तो नहीं था लेकिन दूंढाड़, मत्स्य, कुरुजांगल, खेराड, बागड, मेवाड़, मारवाड़ आदि नामों से जाना जाता था । इन प्रदेशों में महावीर के पूर्व जैन धर्म की क्या स्थिति थी इसके संबंध में निश्चित परिणाम पर पहुंचना तो कठिन है लेकिन इतना अवश्य है कि इनके पूर्व होने वाले भपार्श्वनाथ ने राजस्थान को अपने विहार से पवित्र किया था और भीलवाड़ा प्रान्त रिस्थत बिजोलिया के भीम वन को अपनी तपोभूमि बनाया था और कमठ असुर द्वारा किये गये उपसर्ग में विजय प्राप्त की थी । इस घटना का विस्तृत वर्णन वहीं पर एक चट्टान पर अंकित संवत् 1226 के शिलालेख से जाना जा सकता है। शिलालेख पूर्णत: ऐतिहासिक है और इसमें वर्णित सभी उल्लेख सही पाये गये हैं। भगवान पार्श्वनाथ के संबंध में निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं “यहीं पर भीम नाम का वून है जहाँ जिनराज का वास है। यहीं वे शिलायें विद्यमान हैं जिन्हें कमठ शठ ने आकाश में फेंका था । सर्वदा विद्यमान यही वह उद्यान कुण्ड सरिता है तथा यह वह स्थान है जहाँ परमसिद्धि को प्राप्त हुये।" बिजोलिया के अतिरिक्त चंबलेश्वर, दर्रा की गुफा पर अंकित लेख, झालरापाटन की पहाड़ी पर बनी 11 वीं शताब्दी की निषेधिकायें भगवान पार्श्वनाथ के विहार होने की कहानी कहती है। पार्श्वनाथ के पश्चात् महावीर ने राजस्थान के किस भाग को अपनी चरण रज से पवित्र किया इस संबंध में तो कितनी ही जनश्रुतियां चर्चित हैं किन्तु आठवीं शताब्दी में होने वाले आचार्य जिनसेन ने अपने महापुराण में महावीर के जीवन की एक घटना का उल्लेख किया है और वह है उज्जयिनी के अतिमुक्तक शमसान में ध्यानस्थ होने का। इसलिये यह अधिक संभव है कि उज्जयिनी जाने अथवा वहां से आने के पश्चात् उन्होंने राजस्थान के किसी भाग में विहार किया हो । कविवर बुलाखीचन्द ने अपनी रचना बचनकोष (रचना काल सन् 1680) में भगवान महावीर के समवशरण का जैसलमेर में आने का उल्लेख किया है । महावीर के शासन काल में ही जैनधर्म ने राजस्थान में दृढता से आपने पांव जमा लिये थे और उसे लोकप्रियता प्राप्त होने लगी थी। दिगम्बर . साधुओं का विहार होने लगा था । यही कारण है कि उनके निर्वाण के कुछ ही वर्षों पश्चात् अंतिम केवली जम्बूस्वामी ने चौरासी मथुरा में आकर निर्वाण प्राप्त किया था । मथुरा का क्षेत्र तो राजस्थान से सटा हुआ है । यहां के कंकाली टीले की खुदाई में दूसरी शताब्दी में बने अति प्राचीन स्तूप और जैन मंदिरों के ध्वंसावशेष मिले हैं जिनसे ज्ञात होता है कि राजस्थान में उस समय जैन समाज अत्यधिक समृद्ध एवं प्रभावशाली था । __ मथुरा के पश्चात् राजस्थान में जैन धर्म एवं समाज के प्रसार का सर्वाधिक ठोस प्रमाण ईसा से पूर्व 5 वीं शताब्दी में बडली का शिलालेख माना जाता है जिसमें वीर निर्वाण संवत् 89 वें वर्ष का तथा चित्तौड के समीप स्थित माझमिका का उल्लेख है । माझमिका जैनधर्म का प्राचीन केन्द्र रही है । मौर्य युग में चन्द्रगुप्त ने जैनधर्म के प्रचार-प्रसार के लिये कितने ही प्रयत्न किये थे । भरतपुर संग्रहालय में प्रदर्शित एवं जफीना से प्राप्त सर्वतो Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186/ जैन समाज का वृहद इतिहास भद्र आदिनाथ और नेमिनाथ की मूर्तियों का विशेष महत्व है। इन पर गुप्तकालीन कला परम्परा की स्पष्ट छाप है । मेवाड़ प्रदेश का चित्तौड पहाड़ जैनाचार्यों का कितनी ही शताब्दियों तक केन्द्र रहा । आगम ग्रंथों की रचना का वह मुख्य स्थान बना रहा । 11वीं व 12वीं शताब्दी तक राजस्थान में जैन मुनियों का विहार होता रहा। चित्तौड़ के पश्चात् अजमेर, चम्पावती, तक्षकगढ जैसे नगर जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र माने जाने लगे । मुस्लिम काल में भट्टारकों का उदय हुआ और भट्टारक संस्था का इतना अधिक प्रभाव रहा कि दिगम्बर मुनि भी उन्हीं के देखरेख में रहते रहे । राजस्थान में होने वाले प्रमुख भट्टारकों में से भ. पद्मनंदि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र, सकलकीर्ति, शुभचन्द्र, जगत्कीर्ति जैसे नाम स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य हैं। इन भट्टारकों का मुस्लिम बादशाहो से गहरा संबंध था इसलिये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, यात्रा संघों का संचालन, साधुओं का विहार खूब होता रहता था । इन भट्टारकों के प्रभाव से जैन पवों के अवसर पर शिकार खेलने की सखा मनाही रहती थी। . उत्तर भारत की प्रमुख जैन जातियों का राजस्थान के किसी न किसी भाग से निकास होना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। ओसिया में ओसवाल, खण्डेला से खण्डेलवाल, बघेरा से बघेरवाल, चित्तौड से चित्तोडा जातियों का उद्भव माना जाता है। राजस्थान में यद्यपि किसी सिद्ध क्षेत्र की उपलब्धि तो नहीं मिलती लेकिन यहां अतिशय क्षेत्रों की तो 20 से भी अधिक संख्या है । इनमें बिजौलिया, चंवलेश्वर, श्रीमहावीर जी, केशोरायपाटन, चांदखेडी, आदि के नाम लिये जा सकते हैं। राजस्थान का जैन समाज सन् 1981 की जनगणना में राजस्थान में जैन समाज की जनसंख्या 624327 थी इसमें दिगम्बर श्वेताम्बर, स्थानकवासी एवं तेरहपंथी ये चारों ही सम्प्रदाय सम्मिलित हैं । दिगम्बर जैन समाज में यद्यपि बीस पंथ, तेरह पंथ विचारधारा विद्यमान है तथा पूजा पद्धति में कुछ मौलिक मतभेद भी हैं । लेकिन समाज की दृष्टि से दोनों ही पंथ दिगम्बर जैन समाज के ही अंग हैं । भट्टारक युग में दिगम्बर जैन समाज मूलसंघ, काष्ठा संघ, द्राविड संघ, माथुर संघ आदि शाखा उपशाखाओं में विभक्त हो गया था लेकिन उनके मूल स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आया था। इसके पश्चात् दिगम्बरों में तेरहपंथ विचारधारा की उपज 17वीं शताब्दी की देन रही। भट्टारक सम्प्रदाय वाले बीस पंथी और अध्यात्म शैली वाले तेरहपंथी कहलाने लगे। तेरहपंथ पूजा पद्धति में बीस पंथ से कुछ अलग मान्यतायें रखने लगा लेकिन सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं में कोई अन्तर नहीं आया । उनका ब्राह्य स्वरूप एक सा बना रहा। श्वेताम्बर समाज कई भागों में बंट गया । मूर्तिपूजक समाज 84 गच्छों में विभाजित हो गया उनमें खरतर गच्छ, तपागच्छ जैसे गच्छ प्रमुख हो गये । स्थानकवासी बाईस पंथ या बाईस टोला नाम से प्रसिद्ध हो गये। सभी स्थानकवासी जैन बन्धु साधुओं की उपासना करते हैं तथा मुंहपट्टी लगाते हैं। इन्ही स्थानकवासियों में से अषाढ शुक्ला पूर्णिमा शनिवार (28 जून 1760 ई.) को स्थानकवासी समाज से अलग होकर संत भिक्षु (भीखण जी) ने Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 187 एक अलग शाखा / सम्प्रदाय स्थापित की जो तेरहपंथी शाखा कहलायी । वर्तमान में आचार्य तुलसी इसी पंथ के नवम आचार्य हैं। इस प्रकार राजस्थान का जैन समाज दिगम्बर श्वेताम्बर, स्थानकवासी एवं तेरहपंथी इन चार सम्प्रदायों में विभक्त है। लेकिन सभी सम्प्रदाय आदिनाथ से महावीर पर्यन्त 24 तीर्थंकर होना मानते हैं । जैन जातियाँ दिगम्बर जैन समाज विभिन्न जातियों में विभक्त है। यद्यपि इन जातियों को 84 संख्या मानी जाती है। लेकिन गत 2 हजार वर्षों में जातियाँ बनती रही और बिगड़ती रही हैं। खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद इतिहास पुस्तक में 237 जातियों के नाम गिनाये गये हैं । इसी बीसवीं शताब्दी में भी नेमा जाति को खण्डेलवाल जाति में मिलाकर उसको बाकलीवाल गोत्र प्रदान किया गया। राजस्थान में वर्तमान में निम्न जातियों की प्रधानता है } 1. खण्डेलवाल जैन समाज - खण्डेलवाल जैन समाज वैसे तो राजस्थान के सभी भागों में बसा हुआ है। लेकिन ढूंढाड प्रदेश इसका प्रमुख प्रदेश है इसके अतिरिक्त अजमेर, कोटा, बूंदी, झालावाड, नागौर, पाली, सीकर, भीलवाड़ा एवं उदयपुर जिलों में भी इस समाज का बाहुल्य है । खण्डेलवाल जैन समाज की सर्वाधिक जनसंख्या राजस्थान की राजधानी जयपुर में मिलती है। 2. अग्रवाल जैन समाज :- खण्डेलवाल जैन समाज के पश्चात् राजस्थान में अग्रवाल जैन समाज की संख्या आती है। धार्मिक मान्यता रीति-रिवाज, उत्सव विधान, पूजा पाठ आदि की दृष्टि से सारा अग्रवाल जैन समाज दिगम्बर जैन समाज का प्रमुख अंग है। अग्रवाल जैन समाज के जयपुर, टोंक, अलवर, कोटा, बूंदी जैसे जिलों में पर्याप्त संख्या में घर मिलते हैं। अग्रवाल जैन समाज व्यापारी समाज हैं। 3. बघेरवाल जैन समाज :- राजस्थान में बघेरवाल समाज भी अच्छी संख्या में मिलता है। बघेरवाल जाति की उत्पत्ति टोंक जिले में स्थित बघेरा ग्राम से मानी जाती हैं। लेकिन वर्तमान में वहां बघेरवालों का एक भी परिवार नहीं रहता । राजस्थान के कोटा, बूंदी, टोंक, झालावाड़ जिले इस समाज के प्रमुख जिले माने जाते हैं । बघेरवाल समाज नगरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक रहता है । धार्मिक दृष्टि से इस समाज में अच्छी कट्टरता है । बघेरा का शांतिनाथ स्वामी का मंदिर, चांदखेड़ी का आदिनाथ जैन मंदिर, चित्तौड़गढ़ किले का जैनकीर्ति स्तंभ, इसी समाज के श्रेष्ठियों द्वारा निर्मित है। बघेरवाल जाति 52 गोत्रों में विभक्त है। महापंडित आशाधर बघेरवाल जाति में उत्पन्न हुये थे । 4. हूंबड जैन समाज :- • हूंबड जैन समाज राजस्थान के बागड प्रदेश में प्रमुख रूप से मिलता है । डूंगरपुर, प्रतापगढ़, उदयपुर, बांसवाडा जिलों में हूंबड समाज अच्छी संख्या में पाया जाता है। यह समाज दस्सा एवं बीसा दो भागों में विभाजित है। राजस्थान के झालरापाटन में स्थित शांतिनाथ स्वामी मंदिर इस जाति द्वारा निर्मित मंदिरों में से है । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 5. नरसिंहपुरा समाज :- नरसिंहपुरा जैन समाज भी दस्सा बीसा समाज में बंटा हुआ है । इस समाज का प्रमुख केन्द्र उदयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, सागवाड़ा अर्थात् बागड़ प्रदेश एवं मेवाड़ प्रदेश है। श्री रिषभदेव की भट्टारक गादी नरसिंहपुरा समाज की गादी कहलाती है। नरसिंहपुरा जाति में 27 गोत्र होते हैं। किसी किसी में इस जाति के 40 गोत्र भी मिलते हैं। नरसिंहपुरा वर न्यात, थापिया नरसंघपुर नयर । दया दान दातार हवा. बाहर व्रत धारी। श्री रामसेन भट्टारक प्रतिबोध्या श्रावक सहसरस भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति कहे सुगमत मांही अति ही सुजम्स । राजस्थान के अतिरिक्त नरसिंहपुरा समाज महाराष्ट्र एवं गुजरात में भी अच्छी संख्या में बसा हुआ है। 6. नागदा : गगटा जैन का भी मुख्य केन्द्र राजस्थान में ब्रागड एवं मेवाड़ प्रदेश है । यह समाज भी-दस्सा बीसा में बंटा हुआ है । उदयपुर में नागदा समाज के 200 परिवार एवं सलुम्बर में 150 से भी अधिक घर हैं । नागदा, नरसिंहपुरा, हूंबड, चित्तौड़ा ये तीन जातियां ही वागड़ एवं मेवाड़ की प्रमुख जातियां हैं। तीनों ही जातियां धार्मिक परम्पराओं से बंधी हुई है । मुनि भक्ति में विशेष रुचि रखती हैं । 7. पल्लीवाल :- राजस्थान में पल्लीवाल जैन समाज की अच्छी आबादी है । पल्लीवाल जाति प्रारंभ से ही दिगम्बर धर्मानुयायी रही है। करौली, हिण्डौन, गंगापुर एवं अलवर जिले में पल्लीवाल समाज के घर मिलते हैं, जो प्रमुखत: दिगम्बर धर्म के अनुयायी हैं। 8. ओसवाल :- ओसवाल जाति के नाम से श्वेताम्बर ओसवाल जाति को समझ लिया जाता है लेकिन ओसवाल जाति में दिगम्बर धर्मानुयायी भी है। पाकिस्तानी प्रदेश पंजाब से आये हुये दिगम्बर जैनों की भी ओसवाल जाति है । मुलतानी ओसवाल वर्तमान में जयपुर एवं देहली में बसे हुये हैं । दिगम्बर जैन ओसवाल जाति में वर्धमान नवलखा, अमोलका बाई, लुहिन्दामल, दौलताराम ओसवाल जैसे अनेक श्रेष्ठीगण हुये । मुलतान में दि, जैन समाज बहुत संगठित समाज था। दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ संघ का वही उत्पत्ति स्थान था। जयपुर में मुलतानी ओसवाल समाज के अधिक घर हैं । 9. जैसवाल जैन.समाज:- राजस्थान में जैसवाल जैन समाज के मुख्य केन्द्र अजमेर जिला एवं धौलपुर जिला है । एक ही स्थान पर सबसे घनी बस्ती अजमेर है जहाँ समाज के 250-300 घर हैं। जैसवाल जाति की उत्पत्ति जैसलमेर नगर से मानी जाती है । उक्त प्रमुख जातियों के अतिरिक्त और भी जातियों के घर मिलते हैं लेकिन उनकी संख्या अत्यधिक सीमित है । वे या तो व्यापार अथवा नौकरी के कारण राजस्थान में आकर बस गये हैं और सामाजिक कार्यों में सम्मिलित होते रहते हैं । ऐसी जातियों में श्रीमाल, परवार, पद्मावती पुरवार, लमेचू आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 189 राजस्थान में जैन समाज के प्रमुख ग्राम एवं नगर 1. जयपुर एवं दौसा जिला :- जयपुर शहर, तथा उपनगर- बापू नगर, जवाहर नगर, सेठी कॉलोनी, अशोक नगर कॉलोनी, जनता कालोनी, आदर्श नगर, शास्त्री नगर, बरकत नगर, ज्योति नगर, मालवीय नगर, महावीर नगर, • सांगानेर, बांदीकुई, सिकन्दरा, दौसा, चौमू, कालाडेरा, बस्सी, रेनवाल, जोबनेर, फुलेरा, नरायणा, सांभर, मोजमाबाद, लालसोट, चाकसू, माधोराजपुरा, रेनवाल मांजी, फागी, चौरु, बगरु, दृदू, चंदलाई, छारडा । 2. टोंक जिला :- टौंक, निवाई, टोडारायसिंह, मालपुरा, पचेवर, पाडली, डिग्गी, देवली, लावा, झराना, पीपलू, सोहला, बनेठा, उनियारा, अलीगढ़, आवां, चनानी, दूनी, नासिरदा, नगर, राजमहल । 3. कोटा एवं बारां :- कोटा, दीगोद, खातोली, इटावा, मांगरोल, बारां, किशनगंज, अटरू, छबड़ा, छीपाबडोद, अकलेरा, सारोला, रामगंज मंडी, मंडाना, कनवास, सांगोद, कैथून, भवानीमंडी, अन्ता, लाडपुर पीपलदा, इन्द्रगढ़ | 4. बूंदी:- बूंदी, नैणवा, हिण्डोली, नयागांव, आसींद, तालेडा, कापरेन । 5. झालावाड़ :- झालावाड़, झालरापाटन, खानपुर, पिड़ावा, अकलेरा, मनोहर थाना, बकानी । 6. सीकर :- सीकर, राणोली, दांता, फतेहपुर, दुजोद, धोद 7. झुन्झुनूं :- बेरी, छापड़ा, वन गोठडी, 8. चुरू :- चुर, किराडा 9. पाली :- पाली, आनन्दपुर कालू, नीमाज, बलूंदा 10. उदयपुर उदयपुर, पारसोला, भीण्डर 11. नागौर :- नागौर, मेडता, डेह, लाडनूं, नावां, मारोठ, कुचामन सिटी, पांचवा, कूकनवाली, 12. चित्तोडगढ़ :- चितौड़, बैगू, निम्बाहेडा 13. भीलवाड़ा :- भीलवाड़ा, मांडलगढ, शाहपुरा 14. अलवर :- अलवर, बैराठ तिजारा, मंडावर, रामगढ़, थानागाजी, राजगढ़ 15. भरतपुरः- भरतपुर, कामां, नगर, डीग, नदबई, बैर, बयाना Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1901 जैन समाज का वृहद् इतिहास 16. धौलपुरः- धौलपुर. राजाखेड़ा 17. सिरोही:- सिरोही 18. सवाई माधोपुर- सवाई माधोपुर. गंगापुर, हिण्डौन, करौली, बौंली, खंडार 19. जोधपुर-जोधपुर, सुजानगढ़ 20. जालौर- जालौर 21. जैसलमेर- जैसलमेर 22. गंगानगर- गंगानगर 23. बांसवाड़ा बांसवाड़ा, बागीदौरा, घाटोल, धरियावाद, सावला, प्रतापगढ़ 24. डूंगरपुर- दूंगरपुर, सागवाडा 25. बाडमेर- बाडमेर 26. बीकानेर- बीकानेर 27. अजमेर- अजमेर, ब्यावर, केकड़ी, नसीराबाद, सरवाड, सावर, विजयनगर, किशनगढ मदनगंज, रूपनगर राजस्थान में 20 हजार से ऊपर जैन जनसंख्या वाले जिले 1. उदयपुर - 92093 2. पाली - 50116 3. जयपुर - 47416 4. अजमेर - 44263 5. जालौर - 41873 6. बाडमेर -32627 7. भीलवाडा -32483 8. चुरु -31645 9. जोधपुर -29558 10. चित्तौड़गढ- 29984 11. नागौर - 23013 12. सिरोही - 23927 उक्त जनगणना दिगम्बर, वेताम्बर, स्थानकवासी एवं तेरहपंथी समाज की सम्मिलित जनसंख्या है । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिला अजमेर 1. श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सरवाड पो. सरवाड 2. श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र सावर जिला अलवर 3. श्री 1008 चन्द्रप्रभ दि. जैन अ. क्षेत्र देहरा- तिजारा पो तिजारा जिला उदयपुर राजस्थान के जैन तीर्थ 4. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभदेव जी पो. ऋषभदेव 5. श्री दिगम्बर जैन अ. क्षेत्र अणन्दा पार्श्वनाथ जिला जयपुर 6. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा 7. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ चूलगिरि, आगरा रोड 8. 1008 आदिनाथ दिजैन अ. क्षेत्र मोजमाबाद पो. मोजमाबाद 9. श्री दिगम्बर जैन अ. क्षेत्र बैनाड जिला झालावाड़ I0. श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अ क्षेत्र चांदखेड़ी पो. खानपुर जिला डूंगरपुर 11. श्री 1008 देवाधिदेव श्री नागफणी पार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 191 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 192/ जैन समाज का वहद इतिहास जिला बांसवाड़ा 12. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नशियाजी पो. अरथुना जिला बून्दी 13. श्री 1008 देवाधिदेव मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन जिला भीलवाड़ा 14. श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ दि. जैन अ. क्षेत्र बागूदार 15. श्री दि. जैन अ. क्षेत्र पार्श्वनाथ सिजौलिया 16. श्री दिगम्बर जैन मन्दिर जिला चित्तौड़गढ़ जिला सवाईमाधोपुर 17.श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी पो. श्रीमहावीरजी 18.श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चमत्कार जी पो. आलनपुर 19. श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र खंडारजी पो. खंडार जिला सिरोही 20 श्री दिगम्बर जैन मन्दिर प्रबन्ध समिति देलवाडा पो. आबू पर्वत Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /193 ढूंढाड़ प्रदेश ढूंढाड़ प्रदेश राजस्थान का अतीव प्राचीन प्रदेश है। स्वयं ढूंढाड शब्द ही उजड़ी हुई बस्ती का द्योतक है । इसलिये यह प्रदेश कभी सुरम्य एवं जन संकुल रहा होगा लेकिन कालान्तर में कुछ अज्ञात कारणों से वह उजड़ हो गया और "ढूंढाड" इस नाम से जाना जाने लगा। ढूंढाड़ और ढूंढाइड एक ही शब्द है। अधिकांश कवियों ने अपनी कृतियों एवं ग्रंथ प्रशस्तियों में ढूंढाड शब्द का ही प्रयोग किया है। ढूंढाड़ प्रदेश की सीमा ढूंढाड़ प्रदेश की सीमाओं के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस प्रदेश की सीमाओं में सदा ही परिवर्तन होता रहा है । इसीलिये गत एक हजार वर्षों से ढूंढाड़ प्रदेश का राजस्थान के मानचित्र में कभी एक स्वरूप नहीं रहा। इस प्रदेश की सीमाओं के संबंध में भाटों की बहियों में निम्न दोहा मिलता है : उत्तर टोंक टोड़ा से, सैंथल से आथूणी धरा । इसड़ा मिनख बसें ढूंढाड में, परबतसर से उरा उरा । अर्थात् टाँक और टोडारायसिंह से उत्तर दिशा की ओर दौसा जिले के सैथल ग्राम से पश्चिम की ओर तथा मारवाड़ के परबतसर ग्राम से इस ओर का प्रदेश ढूंढाड प्रदेश कहलाता है जिसमें बहुत से मनुष्य रहते हैं । इसी तरह सीमाओं संबंधी एक और दोहा मिलता है : सोता साबी काटली चंबल और बनास । इन सब नदियन कै बीच में, बसें देश ढूंढाड़ 1 इस दोहे में नदियों को आधार मानकर ढूंढाड प्रदेश की सीमाओं का वर्णन किया गया है । दृढड़ प्रदेश की सीमा निर्धारित करने वाली नदियों में सोत, साबी, काटली, चंबल और बनास के नाम प्रमुख हैं। ढूंढार प्रदेश की सीमायें एक विद्वान के अनुसार निम्न प्रकार अंकित की जा सकती हैं । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 194/ जैन समाज का वृहद् इतिहास +r-artmen - - जयपुर जिले की बस्सी, चाकसू, गोविन्दगढ, दौसा, आमेर, सांगानेर तथा जमवारामगढ की तहसीलें, अलवर जिले की थानागाजी तहसील, टौंक जिले की मालपुरा एवं उनियारा तहसीलें, सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील एवं जयपुर की फुलेरा, फागी, बैराठ और कोटपूतली तहसीलों के भाग सम्मिलित हैं । संवत् 1781 में जैन कवि खुशालचंद ने हिण्डौन तहसील में स्थित अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी को भी ढूंढाड़ प्रदेश में सम्मिलित किया था। देश ढूंढाहड सुहावनों महावीर संस्थान । जहां बैठ लेखन कियो, धर्मध्यान चित ठान । इसी तरह संवत् 1871 में सकलकीर्ति के रामपुराण की पाण्डुलिपि दीर्धपुर (डीगामें संपन्न हुई थी। लिपिकार ने उसे "ढूंढाहर देश दीर्घपुर लिपिकृतं" ढूंढाहड प्रदेश का ही एक भाग माना है। ___ भाषा की दृष्टि से ढूंढाडी भाषा को राजस्थानी भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है । इसी ढूंढारी भाषा की उपभाषायें अथवा उप बोलियों में तोरावाटी,राजावाटी, काठेडी, चौरासी,शाहपुरी, जयपुरी, अजमेरी, किशनगढी तथा हाडौती को गिनाया है । लेकिन अजमेरी, किशनगढी, हाडौती को ढूंढाड़ी भाषा का अंगनहीं माना जा सकता। इसलिए तोरावाटी, राजावाटी, काठेडी. चौरासी, शाहपुरी एवं जयपुर बोलियों के भाग को ही हम ढूंढारी भाषा का प्रदेश अथवा ढूंढाड़ प्रदेश कह सकते हैं। यद्यपि ढूंढाड प्रदेश की सीमाये कभी कभी राजस्थान के एक बड़े भू-भाग को स्पर्श करने लगी थी और ढूंढार में डीग, टोडारायसिंह, रणथम्भौर, टौंक नैणवा, सीकर, कोटपूतली, बैराट, नीलकंठ महादेव जैसे ग्राम एवं नगर उसकी सीमा में आने लगे थे लेकिन ढूंढाड प्रदेश की वास्तविक सीमाये पहिले आमेर एवं फिर जयपुर राज्य की सीमाओं के साथ-साथ चलती रही । और ढूंढारी बोली का भी उसी तरह प्रचार प्रसार होता रहा । आमेर एवं जयपुर यद्यपि ढूंढारी का केन्द्र स्थान रहे और बाहर से आने वाले भाषा - भाषी भी धीरे-धीरे ढूंढारी भाषा के ही भाषी बन गये । ढूंढाड प्रदेश की जयपुर जिले की जयपुर, बस्सी, चाकसू, आमेर, दौसा, सांगानेर तहसीलें, अलवर जिले की बैराठ एवं थानागाजी तहसील, टौंक जिले की मालपुरा, निवाई एवं उनियारा की तहसीलें, सीकर जिले की श्री माधोपुर तहसील पूर्ण रूप से ढूंढाड प्रदेश में गिनी जानी चाहिये । इन तहसीलों के अतिरिक्त सवाई माधोपुर जिले की सवाई माधोपुर, बौंली, खंडार एवं हिण्डौन तहसील, जयपुर की फुलेरा तहसील, अजमेर की किशनगढ का कुछ अंश भी ढूंढाइ प्रदेश का ही एक अंग माना जाने चाहिये। प्रस्तुत इतिहास में हमने उक्त आधार पर ढूंढाड प्रदेश के जैन समाज का परिचय दिया है । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 195 जयपुर जैन समाज का अतीत एवं वर्तमान जयपुर नगर को विगत 40 वर्षों से राजस्थान की राजधानी रहने का सौभाग्य प्राप्त है । लेकिन इससे पूर्व भी वह अपने ही नाम की रियासत की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। देखा जावे तो जबसे इस नगर की विधिवत स्थापना हुई इसके नक्षत्र सदा ही प्रबल रहे और मुगल शासन एवं अंग्रेजी शासन दोनों में ही जयपुर नगर का महत्व बना रहा। यहां का हवामहल विश्वविख्यात निधि है। देशी विदेशी पर्यटक इसी को देखने के लिये यहाँ आते रहे हैं । जैन कवि बख्तराम साह ने भी अपनी काव्य कृति बुद्धिविलास में जयपुर को इन्द्रपुरी बताकर उसकी प्रशंसा की है। इस नगर के संस्थापक महाराजा जयसिंह अपने समय के प्रसिद्ध शासक, योद्धा एवं दूरदर्शी थे। उन्होंने नगर की स्थापना के समय जैनों का विशेष ध्यान रखा। आमेर एवं सांगानेर नगर के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों के जैन व्यापारियों एवं योग्य व्यक्तियों को यहां लाकर बसाया गया। चौकड़ी मोदीखाना एवं चौकड़ी घाट दरवाजा उनको रहने एवं मंदिरों के निर्माण के लिये विशेष सुविधायें दी गई इसलिये उसमें चारों ओर से जैन परिवार आकर बसने लगे। मंदिर बनने लगे और अपनी स्थापना काल के 10-15 वर्षों में ही जयपुर जैनपुरी कहलाने लगा। शासन में जैनों का प्रमुख हाथ, शांति, सुरक्षा एवं अहिंसक वातावरण ने भी जैन समाज का हृदय जीत लिया और जयपुर जयपुर न रहकर जैनपुर बन गया। जो आज भी उसी नाम से जाना जाता है I जयपुर नगर राजस्थान की राजधानी है। जनसंख्या की दृष्टि से भी जयपुर राजस्थान का सबसे बड़ा नगर है जहाँ 15 से 20 लाख तक नागरिक रहते हैं। पिछले 20-30 वर्षों में जयपुर का खूब विकास हुआ है। सैकड़ों उप-नगर बस गये हैं। ऐसे नगरों में शास्त्री नगर, जवाहर नगर, बापू नगर, मालवीया नगर, मानसरोवर, गोविन्दनगर जैसे बड़े उपनगरों के अतिरिक्त 100 से भी अधिक छोटे-छोटे उपनगर होंगे। लाखों की संख्या में राजस्थान के गांवों के कस्बों के एवं नगरों के निवासी रोजगार के लिये, नौकरी के लिये एवं व्यापार के लिये यहाँ आकर बस गये हैं । इसलिये जयपुर की जनसंख्या में राजस्थान के दूसरे नगरों की दृष्टि से अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है । जैन समाज की दृष्टि से भी जयपुर नगर का प्रथम स्थान हैं। यहां दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी एवं तेरहपंथी सभी समाजों के अच्छी संख्या में परिवार हैं लेकिन दिगम्बर जैन समाज की सबसे घनी बस्ती है। जिसकी संख्या 80 हजार से ऊपर होगी । पहिले यहां प्रायः दिगम्बर समाज में खण्डेलवाल जैन एवं अग्रवाल जैनों के ही परिवार थे लेकिन वर्तमान में पल्लीवाल, जैसवाल, श्रीमाल, बघेरवाल एवं हूंबड समाज के भी कुछ परिवार आ गये हैं । मुलतानी जैन समाज के 200 परिवार यहां सन् 1947 में पाकिस्तान से आये थे । उनका आदर्श नगर प्रमुख केन्द्र है लेकिन धीरे-धीरे मुलतान जैन समाज भी दिगम्बर जयपुर जैन समाज में घुलमिल Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196/ जैन समाज का वृहद् इतिहास गया है । जातियों की दृष्टि से यहां खण्डेलवाल जैन समाज के सत्वसे अधिक परिवार हैं । इस समाज के इतने अधिक परिवार देश के किसी भाग में नहीं मिलते हैं। मन्दिर एवं चैत्यालय जैन मंदिरों की दृष्टि से भी जयपुर का प्रथम स्थान है । दि.जैन मंदिर महासंघ की ओर से प्रकाशित स्मारिका में जैन मंदिरों की संख्या दी हुई है । देश के किसी भी नगर में इतनी अधिक संख्या में मंदिरों के दर्शन नहीं होते । यहां के सभी मंदिर विशाल एवं कलापूर्ण हैं । विगत 40 वर्षों में निर्मित मंदिरों के बापू नगर, शास्त्री नगर, सेठी कालोनी, जवाहर नगर, आदर्श नगर, तिलक नगर, जनता कालोनी, मालवीय नगर, मधुवन कालोनी, बरकतनगर, कीर्तिनगर, ज्योतिनगर, महावीर नगर, आदि के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। इन वर्षों में चूलगिरी तीर्थ की स्थापना हुई एवं वहां मंदिर निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य हुआ है । कविवर स्वरूप चन्द ने संवत् 1891 में मन्दिरों की वंदना तश्या संवत् 1940 में चैत्यालयों की वंदना की थी तो उस समय उसने जयपुर की परिधि में आने वाले मंदिरों की संख्या 84 एवं इतने ही चैत्यालय अर्थात् दोनों की संख्या 168 बतलाई थी एवं उनका नामोल्लेख किया था । लेकिन अभी श्री दिगम्बर जैन मंदिर महासंघ द्वारा प्रकाशित स्मारिका में 116 मंदिरों का परिचय दिया है अर्थात् विगत 156 वर्षों में 32 नये जैन मंदिरों का निर्माण हुआ है। सबसे अधिक मंदिर विगत 20 वर्षों में नये-नये उपनगरों में बने हैं। मंदिर चैत्यालयों की संख्या की दृष्टि से सारे देश में जयपुर नगर का स्थान सर्वोपरि है । शास्त्र भंडार (ग्रंथसंग्रहालय) जयपुर की एक विशेषता यहां के शास्त्र भंडार हैं। यहां के सभी बड़े-बड़े मंदिरों में हस्तलिखित ग्रंथों का अच्छा संग्रहालय है । जिनमें जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी भाषा में निबद्ध ग्रंथों की प्राचीनतम पाण्डुलिपियां संग्रहित हैं । इन शास्त्र भंडारों का डा. कासलीवाल एवं पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ द्वारा सूचीकरण हो चुका है। इन सूचियों के पान भाग श्रीमहावीर क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की ओर से प्रकाशित भी हो चुके हैं। प्राचीन ग्रंथों का इतना बड़ा संग्रह अन्यत्र मिलना कठिन है। पांच भागों के प्रकाशन के पश्चात् प्रतापगढ़, कुचामन, डिग्गी एवं जयपुर के बधीचन्द जी बज के मन्दिरों के शास्त्र भण्डारों का सूचीकरण भी हो चुका है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जयपुर में जैन समाज की जनसंख्या जनगणना के आधार पर निम्न प्रकार मानी जाती है: जनसंख्या 1901 8726 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ष जनसंख्या 1911 7503 1921 6267 1931 7242 1941 8760 1951 12376 1961 15831 1981 32474 1991 40,000 (अनुमानित) उक्त आंकडों के अनुसार सन् 1921 से 1931 तक यहां की नाका होगा जो सन् 1941 में जाकर कुछ स्थिर हुआ उसके पश्चात् उसकी संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सन् 1913 में प्रकाशित यात्रा दर्पण में जयपुर की जनसंख्या के बारे में निम्न उल्लेख मिलता है। "यहां की मनुष्य संख्या डेढ़ लाख के करीब हैं। इसमें दिगम्बर जैन खण्डेलवाल, अग्रवाल और श्रीमाल आदि जाति के 1893 घरों की मनुष्य संख्या 6524 हैं। इस साल (1913) में प्लेग के कारण जैनियों की संख्या कई हजार कम हुई है। कहते हैं कि 15-20 साल पहिले करीब 10 हजार दिगम्बर जैन थे।" जयपुर नगर का जैन समाज (197 लेकिन पिछले 11 वर्षों में जिस तेजी से गांवों के जैन परिवार जयपुर आकर बस गये हैं तथा उपनगरों में रहने लगे हैं उसको देखते हुये यहां की जनसंख्या में आशातीत वृद्धि होनी चाहिये। जयपुर नगर के एक सर्वे के अनुसार दिगम्बर जैन परिवारों की मोटे रूप में संख्या निम्न प्रकार मानी जाती है : क्रम संख्या नाम चौकड़ी / उपनगर परिवार संख्या 1 2 3 4 चौकड़ी मोदीखाना तोपखाना देश किशनपोल बाजार पुरानी बस्ती घाट दरवाजा चौकडी 4000 500 200 3000 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198/ जैन समाज का वृहद इतिहास 5. विश्वेश्वर जी रामचन्द्र जी 100 70 150 80 1000 50 200 240 तोपखाना हजूरी सूरजपोल बाहर ब्रह्मपुरी लक्ष्मीनारायणपुरी मोहनबाडी गोविन्द नगर 11. सेठी कालोनी 12- जनता कालोनी 13- आदर्श नगर एम.आई.रोड़ 15- अशोक नगर 16- बापूनगर, बजाज नगर, गांधीनगर 17. तिलक नगर 18- बरकतनगर, टोंक फाटक, ज्योतिनगर 19- महावीर नगर, कीर्ति नगर, दुर्गापुरा 20- जवाहर नगर 21- अनाजमंडी चांदपोल 22- न्यूकालोनी, संसारचन्द्ररोड 23- बनीपार्क 24- रेलवे स्टेशन/पावर हाऊस 25- गोपालबाडी 26- सोडाला इसनपुरा, 30 200 100 270 50 50 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27. विद्याधर नगर 28- शास्त्री नगर, नेहरूनगर, सुभाष नगर 29- बस्ती सीतारामपुरा 30- अम्बाबाडी 31- मालवीय नगर 32- सांगानेर एवं अन्य उपनगर 33- अन्य नये उपनगर जयपुर नगर का जैन समाज /199 50 150 10 50 100 150 300 कुल 10670 यदि एक परिवार की जनसंख्या 8 भी मान ली जावे तो पूरे जैन समाज की संख्या 85600 होगी। यदि इसमें श्वेताम्बर जैन समाज की जनसंख्या जोड़ दी जावे तो जयपुर में समूचे जैन समाज की जनसंख्या एक लाख से ऊपर जा सकती है । जयपुर नगर की जैन समाज में 85 प्रतिशत खण्डेलवाल, 10 प्रतिशत अग्रवाल एवं 5 प्रतिशत श्रीमाल, पल्लीवाल एवं अन्य जातियां आती हैं। शिक्षा शिक्षा के क्षेत्र में इन वर्षों में किसी नये विद्यालय अथवा कालेज की स्थापना नहीं हो सकी। विगत शताब्दी से चल रहे दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, महावीर दिगम्बर जैन सीनियर हायर सैकण्डरी स्कूल, महावीर कन्या विद्यालय, पद्मावती जैन कन्या विद्यालय ये चार विद्यालय ही समाज द्वारा संचालित है । शोध संस्थान महावीर क्षेत्र की ओर से संचालित शोध संस्थान विगत 40 वर्षों से चल रहा है। पहिले इसका नाम आमेर शास्त्र भंडार था फिर अनुसंधान विभाग, साहित्य शोध विभाग जैसे नाम परिवर्तित होते गये और अब इसका नया नाम जैन विद्या संस्थान है। इसका प्रधान कार्यालय भट्टारक जी की नशियां जयपुर में स्थित है तथा शाखा कार्यालय श्री महावीर जी में है। नगर के दूसरे शोध केन्द्रों में श्री महावीर ग्रंथ अकादमी एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, बरकत नगर में संस्थापित हैं जिनमें साहित्य एवं इतिहास परक ग्रंथों का प्रकाशन होता है। इन दोनों संस्थाओं से अब तक 13 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। टोडरमल स्मारक भवन से भी पुस्तक प्रकाशन Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200/ जैन समाज का वृहद् इतिहास का कार्य होता रहता है । दि. जैन कुन्थु विजय ग्रंथ माला की ओर से पुस्तक प्रकाशन का कार्य हो रहा है। राजस्थान जैन सभा की ओर से प्रतिवर्ष महावीर जयन्ती पर स्मारिका प्रकाशन का कार्य गत 29 वर्षों से चल रहा है। राजस्थान जैन साहित्य परिषद् की ओर से भी साहित्य प्रकाशन का कार्य होता है। सामाजिक संस्थायें जयपुर में श्री दि.जैन अ.क्षेत्र श्री महावीर जी एवं श्री दि. जैन अ.क्षेत्र पद्मपुरा के मंत्री कार्यालय हैं जहां से इन दोनों क्षेत्रो की व्यवस्था होती है । राजस्थान जैन सभा नगर की सबसे प्रमुख सामाजिक संस्था है जिसके द्वारा विभिन्न सामाजिक आयोजन किये जाते हैं। महिला जागृति संघ महिलाओं का प्रमुख संगठन है जिसका उद्देश्य महिलाओं में सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक जागृति पैदा करना है 1 वीर महिला संघ भी महिलाओं का पुराना संगठन है । वीर सेवक मंडल स्वयंसेवकों की संस्था है जिसके स्वयंसेवक प्रतिवर्ष महावीर जी के मेले पर जाते हैं और व्यवस्था में योगदान देते हैं। नगर की अन्य सामाजिक संस्थाओं में वीर संगीत मंडल, बाल सहेली शुक्रवार, पूजा प्रचारक समिति, शीतलनाथ संगीत मंडल, पार्श्वनाथ युवा मंडल बापूनगर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सामाजिक कार्यकर्तागण वैसे तो समाज का प्रत्येक सदस्य ही सामाजिक कार्यकर्ता है फिर चाहे वह किसी सभा सोसायटी मे, मंदिर की प्रबन्ध समिति में, शिक्षण संस्थानों में, नागरिक समिति में, राजनैतिक संगठनों में अथवा किसी अन्य संगठन का सदस्य हो इसलिये किसी व्यक्ति विशेष को ही सामाजिक कार्यकर्ता कहना बड़ा कठिन है । प्रस्तुत इतिहास में हमने नगर के कुछ विशष्ट समाज-सेवियों, व्यवसायियों, उद्योगपतियों एवं शिक्षाविदों का परिचय दिया है । इनमें कुछ महानुभाव समाजसेवा में इतने धुलमिल गये हैं कि उनको देखना ही समाज को देखना है । उच्चतम एवं उच्च न्यायालय विगत 40 वषों में जैन युवा वकील न्यायालयों में स्थान प्राप्त करके समाज का गौरव बढ़ाया है । जयपुर समाज के ही एक सदस्य श्री नरेन्द्रमोहन जी कासलीवाल उच्चतम न्यायालय देहली में न्यायाधिपति बने हैं । इसी तरह सांभर के श्री मिलापचन्द जैन देहली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद तक पहुंच चुके हैं । गजस्थान हाईकोर्ट में श्री मिलापचंद जैन एवं श्री नगेन्द्र जैन न्यायाधिपति के पद पर कार्य कर रहे है। इसका पूर्व श्री पानाचन्द जैन एवं श्री सौभाग्यमल जैन न्यायाधिपति रह चुके हैं। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 201 मंत्रीगण राजस्थान में प्रथम बार जिस जैन महिला को मंत्री मंडल में स्थान मिल पाया है वह है सुश्री पुष्पा जैन, जो राजस्थान मंत्रीमंडल में पर्यटन मंत्री हैं। सुश्री पुष्पाजी का सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में बहुत अच्छा योगदान रहा है। धार्मिक भजनों को बहुत ही आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। विद्वानों का नगर जयपुर नगर को विद्वानों का नगर होने का सौभाग्य भी मिलता रहा है। इस नगर को पं. दौलतराम कासलीवाल, महापंडित टोडरमल, पं. बख्तरामसाह, पं. जयचन्द छाबडा, पं. जोधराज गोदीका, पं. नेमिचन्द, पं. सदासुख कासलीवाल, पं. बुधजन, पं. भाई रायमल्ल, पं. गुमानीराम, ऋषभदास निगोत्या, पार्श्वदास निगोत्या के अतिरिक्त पं. जवाहर लाल शास्त्री पं. चैनसुखदास न्यायतीर्थ, पं. इन्द्रलाल शास्त्री, जैसे विद्वानों की साधना भूमि रहने का सौभाग्य मिल चुका है। वर्तमान में यहां पं. मिलापचन्द शास्त्री, पं. भंवरलाल न्यायतीर्थ, डा. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, डा. नरेन्द्र भानावत, पं. अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ, डा. प्रेमचन्द रांवका, डा. हुकमचन्द भारिल्ल, डा. प्रेमचन्द जैन, पं. ज्ञानचन्द बिल्टीवाला, वैद्य प्रभूदयाल कासलीवाल, डा. (श्रीमती) कोकिला सेठी, पं. रतनचन्द भारिल्ल, डॉ. बाबूलाल सेटी जैसे उच्च कोटि के विद्वान एवं विदुषियां विराजते हैं जो सदैव प्राचीन ग्रंथों के संपादन, प्रकाशन एवं शोध कार्यों में लगे हुये हैं । नगर की महान् दिवंगत आत्मायें वैसे तो जयपुर प्रारम्भ से ही विद्वानों, दीवानों एवं समाज सेवियों का नगर रहा हैं जिन्होंने अपने विशाल कार्यों से सारे देश को प्रभावित किया और समय-समय पर समस्त समाज का मार्गदर्शन भी किया। विगत एक शताब्दी में होने वाली ऐसी महान आत्माओं में सर्व श्री धन्नालाल जी फौजदार, भोलेलाल जी सेठी, अर्जुनलाल जी सेठी, जमनालाल जी साह, मास्टर मोतीलाल जी संघी, बन्जीलाल जी ठोलिया, रामचन्द्र जी खिन्दूका, मुंशी प्यारेलाल जी कासलीवाल, बधीचन्द जी गंगवाल, केशरलाल जी बख्शी, गोपीचन्द जी टोलिया, श्री सुन्दरलाल ठोलिया, डा. राजमल जी कासलीवाल जैसे समाजसेवी व्यक्ति हुये जिन्होंने अपने प्रभावक व्यक्तित्व से समाज का संचालन किया। प्रस्तुत इतिहास के लेखक ने विगत 50 वर्षों का समाज देखा है जब समाज संगठित था तथा एक ही व्यक्ति के आदेश अथवा परामर्श से समाज की गतिविधियों का संचालन होता था। लेकिन आज का समाज उस स्थिति में नहीं है । यहाँ हम कुछ ऐसे समाज सेवियों का संक्षिप्त परिचय उपस्थति कर रहे हैं जो विगत एक शताब्दी में जीवन पर्यन्त समाज सेवा में समर्पित रहे । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2021 जैन समाज का वृहद इतिहास श्री धन्नालाल जी कासलीवाल ___ मुंशी पत्रालाल जी कासलीवाल का जन्म संवत् 1900 कार्तिक सुदी 13 को हुआ। उन्होंने अरबी, फारसी,उर्दू, हिन्दी की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की तथा अंग्रेजी की शिक्षा एक सरकारी हाई स्कूल देहली में प्राप्त की। जयपुर महाराजा रामसिंह जी के वे विश्वस्त व्यक्ति थे इसलिये वे जयपुर नगर के फोजदार बनाये गये । फोजदार बनने के पश्चात् भी वे समाज में खूब आते-जाते थे । जयपुर के दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना में उन्होंने बहुत योग दिया । वे जब तक जीवित रहे जैन समाज की भलाई,बिकास एवं शिक्षा निवारण में लगे रहें : संवत् 1944 बैशाख कृष्णा 13 को मात्र 44 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। श्री भोलेलाल जी सेठी जयपुर जैन समाज के कर्मठ कार्यकर्ता थे। उन्होंने दि.जैन संस्कृत महाविद्यालय के संचालन में सबसे अधिक योगदान दिया तथा अंतिम समय तक उसके महामंत्री रहे। उनकी मृत्यु 6 मई 1910 को हुई। जैन गजट में उनको विद्वदवर, सज्जन शिरोमणि,सद् विद्यावर्धक,सौम्यमूर्ति, धर्मधुरन्धर एवं जैन महापाठशाला के प्राणमूर्ति जैसी उपाधियों से अलंकृत किया था। वे अपने समय के जयपुर जैन समाज के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे। श्री अर्जुनलाल जी सेठी स्वतंत्रता सेनानियों में जयपुर नगर के श्री अर्जुनलाल सेठी का नाम सर्वोपरि आता है। अर्जुनलाल सेठी राजस्थान में स्वातंत्र्य आंदोलन के जहां पितामह थे, वहां बैन जागरण के अग्रदूत थे । सन् 1907 में जयपुर में उन्होंने बैन वर्धमान विद्यापीठ को स्थापना की जो देश में अपने ढंग की प्रथम राष्ट्रीय विद्यापीठ थी। सन् 1914 में राजद्रोह के अभियोग में बंदी करके मद्रास के बैलूर जेल में रखा गया जहां उन्होंने जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करके ही आहार करने के अपने प्रण को पूरा करने के लिये 70 दिन का अनशन किया । जैन धर्म के नित्य कर्म के प्रति ऐसी निष्ठा ने उन्हें भारत का मैकेस्विनी बना दिया। सन् 1920 में जेल से मुक्त होने पर वे बंबई जा रहे थे, उस समय मार्ग में पांचवा स्टेशन पर स्वयं लोकमान्य तिलक ने उनके स्वागत का अभूतपूर्व आयोजन किया। अपने गले का रेशमी दुपट्टा सेठी जी के गले में डालते हुये कहा कि आज सेठी जी जैसे महान देशभक्त व कठोर तपस्वी का स्वागत करते हुये महाराष्ट्र अपने को धन्य समझता है 15 जुलाई 1934 को महात्मा गांधी स्वयं उनसे भेंट करने उनके अजमेर स्थित निवास स्थान पर गये। एक सितम्बर,1934 को वे राजपूताना एवं मध्य भारत प्रान्तीय कांग्रेस के प्रान्तपति चुने गये । महात्मा गांधी ने 1925 के कानपुर अधिवेशन में सेठीजी के लिये कहा था आप धर्मशास्त्र के ज्ञान में मेरे गुरु तुल्य हैं। 1937 में सेठीजी ने अपने एक पत्र में लिखा था क्या अच्छा हो जो मैं केवल सर्वनपालक अनेकान्ती नाम से पुकारा जाऊं। तिलक महाराज की प्रेरणा से महाराष्ट्र के जो पांच विद्यार्थी सेठीजी की विद्यापीठ के स्नातक बने उनमें मोतीचन्द को फांसी हो गई तथा देवाचन्द जैन मुनि होकर आचार्य समन्तभद्र हुये जिन्होंने दक्षिण भारत में अनेक गुरुकुलों की स्थापना की । आचार्य समन्तभद्र का कहना था-सेठीजी जैसे व्यक्ति जिस धरती,समाज,देश व कुल में पैदा होते हैं,वे धन्य हो जाते हैं । सितम्बर 1880 में जयपुर में जवाहर जी सेठी के घर जन्में सेठी जी ने बी.ए. पास किया । कुछ माह चोमू ठिकाने में भी रहे उनका निधन 22 दिसम्बर,1941 को अजमेर में हो गया । सेठी जी अंग्रेजी, फारसी, संस्कृत, अरबी,हिन्दी और पाली के अच्छे विद्वान थे । जैन दर्शन के अधिकारी विद्वान थे तथा गीता के व्याख्याता थे। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/203 मुंशी प्यारेलाल जी कासलीवाल आप जयपुर राज्य के अन्तिम जैन मिनिस्टर (1910-22) थे। आप के ज्येष्ठ पुत्र स्व.श्री नेमीचन्द जी कासलीवाल लोकसपा के सदस्य रहे । दूसरे पुत्र स्व.श्री रामरतनजी कासलीवाल उदयपुर विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर रहे तथा उनके एक पुत्र डा.राजमलजी कासलीवाल ने चिकित्सा जगत में महती ख्याति प्राप्त की । वे भी अपने पिता के समान श्री महावीर क्षेत्र कमेटी के कितने ही वषों तक अध्यक्ष रहे। डा. कासलीवाल आजाद हिन्द फौज में सुभाषचन्द बोस के साथ कर्नल भी रहे मोतीलाल जी दारोगा लरोगा मोतीलाल जी इस सदी के दिगम्बर जैन समाज के ख्याति प्राप्त समाज सेवी थे। समाज में उनको प्रतिष्ठा एवं मान्यता अत्यधिक थी । वे जयपुर राज्य की मर्दानी ड्योढी के दारोगा थे । दरबार में उन्हें पूर्ण सम्मान प्राप्त था ! जब भी महाराजा की सवारी लगती,किसी भी त्यौहार या अन्य समय पर कोई राजकीय शोभा यात्रा निकलती उसमें वे हाथ में छड़ी लेकर सबसे आगे चलते थे। वे किसी भी जगह अपनी लम्बाई से पहिचान लिये जाते थे। हल्दियों के रास्ते में ऊंचा कुआ के पास उनकी विशाल हवेलियों तथा मंदिर है । उन्हें जागीर प्रदान की हुई थी। मास्टर मोतीलाल जी संघी इसी शताब्दी में मास्टर मोतीलाल जी संधी हुये जो सेवा की साक्षात मूर्ति थे । इन्होंने अपना जीवन स्कूल मास्टर गणित अध्यापक के रूप में आरम्भ किया और अंतिम समय तक मास्टर साहब के नाम से प्रसिद्ध रहे । मास्टर साहब ने कितने ही युवकों के जीवन का निर्माण किया । वे नैतिकता के सफल प्रचारक व त्यागी जीवन के प्रतीक थे ।वे विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराते । वे घर घर जाकर अध्ययन के लिये पुस्तके बांटते थे । पुस्तकालय क्षेत्र में उनका नाम अमर रहेगा। भारत के साइबेरी साइन्स के प्रणेता डा. एस. रंगनाथन ने मास्टर साहब की भूरि-भूरि प्रशंसा करके यह बताया कि वे पुस्तकालय के आंदोलन के प्रणेता रहे । आपका जन्म 25 अप्रैल सन् 1876 ई.जयपुर जिले के चौमूं कस्बे में हुआ था। श्री कपूरचन्द जी पाटनी स्थ.पारनी जी का राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन अनेक विशेषताओं से भरा पड़ा है । उनकी सूझबूझ ड्राफ्टिग प्रसिद्ध यो । जब सर मिर्जा जयपुर के प्रधानमंत्री बन कर आये तो वे पाटनी जी के परामर्श को बहुत महत्व देते थे। जयपुर राज्य प्रजा मंडल के संस्थापक एवं प्रथम मंत्री थे। 26 सितम्बर,1946 को 45 वर्ष की अल्पायु में आपका स्वर्गवास हो गया। श्री रामचन्द्र जी खिन्दूका सामाजिक क्षेत्र में श्री रामचन्द्र जी खिन्ट्रका का नाम वर्षों तक समाज पर छाया रहा। वे प्रारम्भ में दि.जैन खण्डेलवाल महासभा के जयपुर के प्रतिनिधि संयोजक थे । श्री महावीर क्षेत्र कमेटी के वे वर्षों तक मंत्री रहे और क्षेत्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्री महावीर क्षेत्र के अन्तर्गत साहित्य शोध विभाग की स्थापना में आपका प्रमुख योगदान रहा। Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री बधीचन्द जी गंगवाल श्री खिन्दूका जी के सहयोगी श्री बचीचन्द जी गंगवाल उदारता एवं करुणा की प्रतिमूर्ति थे। श्री गंगवाल जी ने भी महावीर क्षेत्र की करीब 8 वर्ष तक मंत्री रहते हुये चिरस्मरणीय सेवा की । श्री मालीलाल जी कासलीवाल दीवान साहब के नाम से विख्यात श्री मालीलाल जी कासलीवाल का जन्म 1 मार्च,1881 ई.को हुआ था। 1995 में बी.ए. की परीक्षा पास की और राजकीय प्रशासनिक सेवा में आ गये। सर्वप्रथम तहसीलदार नियुक्त हुये,बाद में मालपुरा,दौसा, झुझुनू हिण्डोन आदि स्थानों पर नाजिम रहे तथा अंत में रेवेन्यू सीगे के दीवान पद से सेवा निवृत्त हुये । स्पेशल सप्लाई आफीसर तथा चीफ पट्टा आफीसर के पद पर भी कार्य किया । दीवान साहब धार्मिक प्रवृत्ति के अध्ययन प्रेमी थे । जयपुर के तेरहपंथी बड़े मंदिर में इनका मार्मिक प्रवचन होता था। वे धार्मिक सामाजिक एवं शैक्षणिक अनेक संस्थाओं से जुडे हये थे। वे तेरहपंथी बडा मंदिर,गुमानी का मंदिर, महावीर हाई स्कूल,पद्मावती कन्या विद्यालय के अध्यक्ष रहे तथा दि.जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी की प्रबंधकारिणी कमेटी के वर्षों तक अध्यक्ष रहे। इनका निधन् दि.19-9-1962 को हुआ । इनके एक पुत्र श्री नरेन्द्र मोहन कासलीवाल वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के जज हैं जिन्हें दिगम्बर जैन समाज के सर्वप्रथम जज होने का गौरव प्राप्त है । इससे पूर्व वे राज. उच्च न्यायालय में न्यायाधिपति एवं हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। श्री केशरलाल जी बशी श्री बख्शी जी अपनी ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा के लिये सर्वत्र समादृत थे । वित्त विषय के वे विशेषज्ञ थे। समाज में इनका विशेष सम्मान था। दिगम्बर जैन संस्कृत कालेज एवं दिगम्बर जैन औषधालय के वर्षों तक अध्यक्ष रहे । श्री महावीर क्षेत्र के ये यशस्वी मंत्री रहे । दि.19 जून,75 को जब वे महावीर जी से दर्शन करके लौट रहे थे तो मार्ग में गाड़ी से लुढक जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई । उस समय वेत) वर्ष के थे। श्री केशरलाल जी अजमेरा श्री अजमेरा जी का सामाजिक, साहित्यिक एवं राजनैतिक तीनों ही विधाओं का जीवन रहा। आपने सन् 1935 में प्रकाशित जयपुर एलबम जो एक अनूठा संदर्भ ग्रंथ है, संपादन किया । इसी तरह उन्होंने राजस्थान वार्षिकी का सम्पादन किया सथा अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड पत्र प्रकाशित किया । राजस्थान जैन सभा के वे अध्यक्ष रहे । श्री महावीर क्षेत्र से प्रकाशित महावीर संदेश" के भी वे सम्पादक रहे। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ पंडित जी साहब का जन्म 22 जनवरी सन् 187) को भादवा ग्राम में हुआ था । उन्होंने वाराणासी से न्यायतीर्थ परीक्षा पास की। कुछ वर्षों तक वे कुचामन विद्यालय के प्रधानाध्यापक रहे और फिर सन् 1933 में जयपुर के दि.बैन संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य बनकर आये। पंडित जी ने अपने प्रखर पांडित्य, ओजस्वी वक्तृत्व कला,लेखनकला,निकिता एवं नेतृत्व करने की स्वाभाविक क्षमता से सारे जयपर जैन समाज को अपने वश में कर लिया था तथा वे जब तक जिये समाज के एक मात्र नेता माने जाते रहे । उन्होंने पघासौं व्यक्तियों के जीवन का निर्माण किया । लेखक को भी उनका शिष्य होने का गौरव प्राप्त है । समाज में Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज :205 ऐसे आकर्षक व्यक्तित्व का धनी विद्वान सैकड़ों वषों में होता है । पंडित जी को जैन दर्शनसार, भावना विवेक जैसी पुस्तकें उल्लेखनीय हैं। वे “जैन बन्धु” “जैन दर्शन" एवं “वीरवाणी के प्रधान सम्पादक थे । जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ-साथ वे प्रतिभाशाली कवि भी थे। उनकी कविताओं का संग्रह'दार्शनिक के गीत' के नाम से प्रकाशित है । पंडित जी सा. का निधन 26 जनवरी सन 1949 को हुआ ! पं, इन्द्रलाल जी शास्त्री शास्त्री जी प्राचीन विचारधारा के कट्टर सपर्थक विद्वान थे। जैन विद्वानों के अतिरिक्त संस्कृत पंडितों में भी उनका अच्छा स्थान था। वे संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे कवि थे तथा संस्कृत में धारा प्रवाह बोलते थे । भा.दि.जैन महासभा,खण्डेलवाल महासभा एवं शास्त्री परिषद् के वे प्रमुख कार्यकर्ता थे। अंहिसा पत्र के वे संस्थापक एवं संपादक थे । शास्त्री जो राजनीति में भी भाग लेते थे तथा रामराज्य परिषद के प्रमुख कार्यकर्ता थे। श्री गुलाबचन्द जी कासलीवाल एडवोकेट स्व.श्री गुलाबचन्द कासलीवाल प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी तथा उच्च कोटि के वकील थे । सन् 1956 से 1972 तक वे राजस्थान सरकार के एडवोकेट जनरल रहे । वे सुप्रीमकोर्ट आफ इंडिया के सन् 1957 से अन्त तक मीनियर एडवोकेट रहे । वे रायल इंडियन सोसायटी लन्दन के फेलो थे और अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन आफ जूरिस्ट्स के सदस्य थे । वे बार एसोसियेशन उन्डर मैम्बर थे। जयपर बार एसोसियेशन के फाउन्डर मैम्बर एवं आजीवन सदस्य थे। हाईकोर्ट बार ऐसोसियेशन के आजीवन सदस्य थे। श्री कासलीवाल जी जयपुर म्युनिसिपल कौंसिल के प्रथम चुने हुये अध्यक्ष थे और निरन्तर पांच क्षों तक सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने रहे । वे नगर विकास न्यास के प्रथम चैयरमैन हुये । वे दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के 40 वर्षे तक सदस्य रहे तथा राजनीति में भी उनका वर्चस्व रहा । वे जयपुर राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष रहे । उन्होंने सन् 1929 में सत्यायह आंदोलन चलाया और 6 माह तक कारागार में रहे | उनके द्वारा चलाये गये सत्यागह आंदोलन को महात्मा गांधी ने भी सराहा था। वे राजस्थान विधानसभा के 1952 के चुनावों में बड़े भारी बहुमत से चुने गये । श्री मोहनलाल काला श्री काला जी कर्तव्य निष्ठा एवं कर्मठता की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने जयपुर लेखा कार्यालय में लेखक के रूप में प्रवेश किया लेकिन अन्त में अकाउन्टेन्ट जनरल के पद से रिटायरमेन्ट लिया । जब सामाजिक मेवा में जुटने लगे तो अपने स्वयं के बलबूते पर भा. तीर्थ क्षेत्र कमेटी को लाखों की सहायता राशि भिजवाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया । कालाजी का जयपुर की सभी सामाजिक संस्थाओं से घनिष्ठ संबंध था। दि.जैन महावीर क्षेत्र कमेटी, दि.जैन संस्कृत महाविद्यालय के अध्यक्ष एवं मंत्री रहे। श्री मोहनलाल जी काला सेवा एवं त्याग की प्रतिमूर्ति थे। आपके दो पुत्र हैं । डा. प्रेमचन्द काला एवं नरेन्द्र कुमार दोनों ही अपने पिताजी के कदमों पर चलने वाले युवक हैं । श्री मोहनलाल जी का अकस्मात ही एक दुर्घटना में निधन हो गया। उनके निधन से समाज की जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति होना सहज संभव नहीं है। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206/ जैन समाज का वृहद इतिहाम श्री सोहनलाल सोगानी श्री साँगानी अपने समय के प्रतिष्ठित समाजसेवी थे । श्री दि. जैन अ.क्षेत्र श्री महावीर जी के यशस्वी मंत्री रहे तथा क्षेत्र की उल्लेखनीय सेवा की भी। नगपुर की विभिन्न संगाओंगोलों तक जसे रहे। जनका जन्म 5 जुलाई सन् 1911 को तथा निधन 20 जुलाई, 1979 को हुआ । SHRom श्री सुरज्ञानीचंद लुहाड़िया न्यायतीर्थ की उपाधि से अलंकृत एवं पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के प्रमुख शिष्य .. के रूप में प्रसिद्ध श्री सुरज्ञानीचंद जी लुहाड़िया का सामाजिक एवं विद्वत जात दोनों में समान । आदर रहा।।4 जून 1924 को जन्मे आपने जयपुर की अनेक संस्थाओं के संचालन में योग दिया। इसमें दि. जैन आ. संस्कृत कालेज, दि. जैन औषधालय, दि. जैन अ. क्षेत्र पदमपुरा, राजस्थान जैन सभा,राजस्थान जैन साहित्य परिषद के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। भगवान महावीर का 2500 वां परिनिर्वाण महोत्सव में आपने अपने आपको समर्पित रखा तथा यशस्वी कार्य किया । दि.जैन महासमिति के भी वे सक्रिय कार्यकर्ता रहे । लुहाडिया जी समाज में सेवा की प्रतिभर्ति बन गये । प्रस्तत इतिहास के लेखक को इनके साथ वर्षों तक रहने का सौभाग्य मिला तथा वे परमपिन थे। स्वभाव से विनीत, सौम्य एवं सरल परिणामी थे । जून, 1- 10 में एक सामान्य बीमारी से आपका निधन हो गया। श्री रामचन्द्र कोठ्यारी भौंसा श्री कोठ्यारी जी जयपुर जैन समाज के स्तम्भ थे। उनका समस्त जीवन मुनि भक्ति, पूजा पाठ एवं व्रत उपन्यासों में व्यतीत हुआ । जयपुर की प्राय: सभी संस्थाओं से वे जुड़े रहे । आचार्य वीरसागर जी शिवसागर जी, धर्मसागर जी,महावीर कीर्ति जी, देश भूषणजी आदि सभी आचार्यों को आपने खूब सेवा की थी। वे पंडित थे। जयपुर के छोटे दीवान जी के मंदिर में उन्होंने वर्षों तक शास्त्र प्रवचन किया । दो प्रतिमा के धारी थे । प्रतिदिन पूजा प्रश्नाल करने का नियम उन्होंने युवावस्था में ही ले लिया था। शांतिवीर नागर श्री महावीर जी में आयोजित पंचकल्याणक में वे भगवान के माता-पिता बने थे। आचार्य वीर सागर जी के संघ को उन्होंने सम्मेदशिखर तक की यात्रा करवायी थी। कोठ्यारी जी ने तीन विवाह किये । सन् 1939 में तीसरा विवाह किया । श्रीमती रतनदेवी धार्मिक संस्कारों की महिला हैं। आपके 6 पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रकाश चन्द्र कोठ्यारी भी सामाजिक व्यक्ति हैं । श्री रामचन्द्र कोठ्यारी के निधन से समाज की एक अपूरणीय क्षति हुई है। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /207 श्री गैंदीलाल साह खण्डेलवाल जैन समाज के प्रथम शाही गोत्र में उत्पन्न श्री गैदीलाल जी साह करीब । 40-50 वर्षों तक सामाजिक एवं राजनैतिक क्षितिज पर छाये रहे । यद्यपि उनका झुकाव सदैव .. पुरानी विचारधारा की ओर रहा लेकिन उन्होंने प्रगतिवाद का कभी खुलकर विरोध नहीं किया। उनका जन्म 2 नवम्बर 1902 को रा! हिन्दी में प्रवेशिका एवं गई थी की परीक्षा पास की । विवाह हुआ और चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौपाग्य प्राप्त किया । चारों ही पुत्र सर्व श्री ताराचन्द साह, कैलाशचन्द साह, सुरेश चन्द साह एवं रमेशचन्द साह सभी समाजसेवी एवं उत्साही कार्यकर्ता हैं । सबसे बड़े पुत्र ताराचन्द साह तो जयपुर नगर परिषद के कितने ही वर्षों तक निर्वाचत सदस्य रह चुके हैं। राजस्थान बैन सभा के वर्षों से उपाध्यक्ष हैं । इसी तरह कैलाशचन्द साह एवं सुरेश साह भी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। स्वयं श्री गैंदीलाल जी साह श्री महावीर जी क्षेत्र कमेटी के तीन वर्ष तक मंत्री रहे थे । जयपुर नगर परिषद के निर्वाचित सदस्य रहे । दि.जैन मंदिर लश्कर के अंतिम काल तक अध्यक्ष रहे तथा आपने 65 वर्षों तक बकालात को । सन् 1948 से आप हाईकोर्ट के वकील रहे। आपका जीवन धार्षिक नियमित एवं सामाजिक रहा । आपका निधन जनवरी श्री वीरेन्द्र कुमार छज जयपुर के प्रसिद्ध बज परिवार में जन्मे श्री वीरेन्द्र बज प्रतिभाशाली, परिश्रमी एवं सूझबूझ वाले इंजीनियर थे । आपके पिताजी चिरंजीलाल जी बज"कलजी" के नाम से प्रसिद्ध थे। श्री वीरेन्द्र जी सन् 1962 में बीई.मेकेनिकल परीक्षा पास करके राजस्थान राज्य बिजली बोर्ड में कार्य करने लगे तथा अन्त्र में ए एस ई प्रोक्योमेंट के पद पर कार्य कर रहे थे । 7 मई 1960 में आपका विवाह श्रीमती प्रेमदेवी के साथ हुआ। आपके तीन पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र विनयकुमार जो भी बीई.हो चुके हैं। राजेश एवं महावीर भी पढ़ रहे हैं। मीना एवं बीना दो पुत्रियाँ हैं दोनों ही एम.ए हैं। बज सा. तीर्थ यात्रा प्रेमी थे। भगवान राहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक के अवसर पर स्वर्ण कलश लिया था। बिन दर्शन किये भोजन नहीं करते थे। सादा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्ति थे । जयपुर के बधीचन्दजी मंदिर (बजों का) आपके पूर्वजों द्वारा बनवाया हुआ है। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री भौंरीलाल चौधरी पाटनो गोत्रीय श्री भौरीलाल चौधरी सर्राफा व्यवसाय में रज्याति प्राप्त व्यवसायी थे। आपका जन्म दिसम्बर 1917 को हुआ । आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त की और फिर पैतृक व्यवसाय में चले गये। आपके दादा श्री भूरामल चौधरी का देहान्त आपके बाल्यकाल में हो गया या एवं आपके पिताजी श्री छिगनलाल जी का सन् 1950 में एवं माताजी सुन्दरदेवी का 25 फरवरी सन् 1962 को निधन हो गया । सन् 1917 में आपका विवाह श्रीमती उमरावदेवी के साथ हुआ, जिनका निधन 7 सितम्बर 1959 को हो चुका है। दोनों पति पत्नी को दो पुत्रों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ लेकिन बड़े पुत्र श्री प्रेमचन्द जी चौधरी का 4 मार्च सन 1957 को अचानक स्वर्गवास हो गया । श्री प्रेमचन्द जो आपके द्वारा श्री शांतिनाथ जी की खोह में आयोजित इन्द्रध्वज विधान में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। श्री चौधरी जी मुनि भक्त थे । आचार्य शांतिसागर जी, आचार्य श्री वीर सागर जी महाराज के जयपुर चतुर्मास में आहार आदि से पूर्ण सेना की । इसी तरह आचार्य देशभूषण जी महाराज के चातुर्मास में भी आपने पूर्ण सहयोग दिया । आहार आदि को व्यवस्था में भाग लिया । श्री दि. जैन मंदिर श्री शांतिनाथ जी खोह जयपुर की देखरेख पिछले 15 वर्षों से आपका परिवार ही करता आ रहा है । श्री चौधरी जी का 7 जून 1991 को स्वर्गवास हो गया । श्री मानकचन्द जैन बड़जात्या चौधरी घीसीलाल जी के द्वितीय पुत्र श्री मानकचन्द जैन का जन्म मौजमाबाद में 16 अवटूबर 1933 को हुआ ! इन्होंने सन् 1954 में बी.एस-सी. किया। राज्य सरकार में विभिन्न अराजपत्रित पदों पर रहते हुये सन् 149) में एल.एल.बी.परीक्षा उत्तीर्ण की । सन 1962 में आप , तहसीलदार पद पर पदोत्रत हुये । सन् 1976 में आप आर.ए.एस. कैडर में पदोन्नत हुये और ! सोकर आगेर ब्यावर गंगापुरमिटी व निम्बाहेड़ा में उपखण्ड अधिकारी एवं उपखण्ड मजिस्ट्रेट के पद पर रहकर पूर्ण परिश्रप वलान के साथ कार्य किया। सन 198) में आप आर.ए.एस. । की वरिष्ठ वेतन श्रृंखला में पदोनत होकर अतिरिक्त कलेक्टर एनं अति. जिला मजिस्ट्रेट, दौसा के पद पर पदासीन हुये। आपका विवाह 11 मार्च, 1955 को श्री गेंदीलाल जी साह की सुपुत्री श्रीमती चम्पा जैन के साथ सम्पत्र हुआ। आप दोन को दो पुत्रियां रेणु व रंजना एवं तीन पुत्रों राकेश राजीव व रवि के माता-पिता करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप विनम्र स्वभाव के मिलगमार एवं सबको माथ लेकर चलने वाले थे। जयपर से श्री महावीर जी की पदयात्रा में आप प्रायः प्रतिवर्प मम्मिलित होते थे। आप सामाजिक कार्यों में भी काफी रुचि रखते थे। आप जहा जहां भी प्रस्थापित रहे समाज के सम्पर्क में रहे तथा जनता ने लोकप्रिय अधिकारी रहे। आपका आकस्मिक नं दुखद निधन दिनांक 29.11.91 को हो गया । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का बैन समाज /209 जयपुर के यशस्वी समाज सेवी प्रस्तुत खण्ड में हमने जयपुर नगर के समाजसेवियों का जीवन परिचय, उनके द्वारा की जाने वाली धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं का विस्तृत वर्णन करने का प्रयास किया है । वैसे जयपुर एक विशाल नगर है । जैन समाज की दृष्टि से इसे जैनपुरी कहा जाता है । इस नगर को समाज सेवियों का प्रमुख केन्द्र रहने का सौभाग्य मिला हुआ है। यहां शिक्षा संस्थानों के व्यवस्थापक गण,सामाजिक सभाओं, परिषदों एवं मण्डलों के पदाधिकारी गण,सैकड़ों मन्दिरों के प्रबन्धक गण, शोध संस्थानों,पुस्तकालयों के निदेशक एवं व्यवस्थापक गण,अतिशय क्षेत्रों के पदाधिकारी गण आदि सभी की समाज सेवियों में गणना की जा सकती है। कुछ समाज सेवी अखिल भारतीय स्तर की,कुछ राजस्थान स्तर की तथा कुछ कुछ स्थानीय संस्थाओं में जुड़े हुये है । इसलिये किसी भी समाजसेवी की सेवाओं का मूल्यांकन करना सहज कार्य नहीं है । कुछ समाज सेवी नीव के पत्थर हैं तो कुछ महल के रूप में खड़े हैं । इस खण्ड में हमने जिन 195 समाज सेवियों का परिचय दिया है उनको हमने यशस्वी समाज सेवी नाम से अलंकृत किया है । वे यशस्वी समाज सेवी इसलिये हैं उनके व्यक्तित्व को समाज से अलग करके नहीं देखा जा सकता । वे रात दिन किसी न किसी रूप में अपने आपको समाज सेवा में समर्पित रखना चाहते हैं । उनका जीवन सामाजिक इतिहास के लिये अमूल्य है तथा एक घरोहर के रूप में है । हम यह तो नहीं कह सकते कि जिन समाजसेवियों का इस खण्ड में परिचय दिया है उनके अतिरिक्त यहाँ और समाज सेवी नहीं हो सकते हैं। फिर भी हमने यथाशक्ति अधिक से अधिक पहानुभावों को सामाजिक सेवाओं का उल्लेख किया है। सामाजिक इतिहास में इन सबका महत्वपूर्ण स्थान है। इन सभी समाजसेवियों का हार्दिक स्वागत है। - सम्पादक P जयपुर नगर के यशस्वी समाज सेवी 1. श्री अजीत कुमार नृपत्या 2. श्री अनूपचन्द गोधा 3. श्री अनूपचन्द ठोलिया 4. पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ 5. श्री अनूपचन्द बाकलीवाल 6. श्री अलबेलचन्द 7. डा. अशोक कासलीवाल ४. श्री अशोक कुमार बाकलीवाल 9. श्री उत्तमचन्द पांड्या 10. श्री उमरावमल साह 11. श्रीमती कनक प्रभा हाड़ा 12, श्री कपूरचन्द गोधा Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210/ जैन समाज का बृहद् इतिहास 13. श्री कन्हैयालाल सेठी 14. श्री कपूरचन्द काला 15. श्री कपूरचन्द्र पाटनी श्री कपूरचन्द पापड़ीवाल 16. 17. श्री कमल कुमार कासलीवाल 18. डा. कमलेश कासलीवाल एवं डा. पुष्पा जैन 19. श्री कमलचन्द कासलीवाल 211. श्री कंवरीलाल काला 21. श्रीमती डा. कुसुम शाह 22. श्री कोमलचन्द पाटनी 23. श्री कैलाशचन्द चौधरी 24. श्री कैलाशचन्द पाटनी 25. पं. कैलाशचन्द रांवका 26. श्री कैलाशचन्द सेठी 27. श्री गणपत राय सरावगी पांड्या 28. श्री गुलाबचन्द कासलीवाल (गुल्लोजी) डा. पं. गुलाबचन्द जी जैन दर्शनाचार्य 30. श्री गुलाबचन्द्र पांड्या 29. 31. श्री गोपीचन्द्र अजमेरा एडवोकेट 32. श्री गोपीचन्द पाटनी 33. डा. गोपीचन्द पाटनी 34. श्री गोपीचन्द पोल्याका 35. श्री गोपीचन्द्र लुहाडिया 36. श्री चांदमल काला 37. श्री चन्दालाल टोंग्या 38. डा. चांदमल जैन 39. श्री चिरंजीलाल बज 4(). श्री जयकुमार छाबडा 41. श्री जवाहिरलाल जैन 42. श्री जीवनलाल बगडा 43. श्री जिनेन्द्र कुमार सेठी 44. श्री ज्ञानचन्द चौधरी 45. श्री ज्ञानचन्द झांझरी 46. 47. श्री ताराचन्द्र अजमेरा 48. डा. ताराचन्द गंगवाल 49. श्री ताराचन्द बेलावाले 50. 51. श्री टीकमचन्द जैन पहाडिया श्री ताराचन्द छाबडा जौहरी श्री ताराचन्द पाटनी होमियोपैथ 52. डा. ताराचन्द बख्शी 53. 54. श्री ताराचन्द बडजात्या चौमूवाले श्री ताराचन्द बडजात्या लाल हवेली 25. 56. श्री ताराचन्द सेठी श्री ताराचन्द एवं श्रीमती सुशीला बाकलीवाल 57. श्री ताराचन्द सौगानी 58. श्री त्रिलोकचन्द जैन टौंग्या 72. 73. 59. श्री दीपचन्द बख्शी 60. श्री देवीनारायण टकसालो 61. श्री देवेन्द्र कुमार गोधा 62. श्री देवेन्द्र कुमार पाटनी 63. वैद्य धनकुमार गोधा (14. श्री धूपचन्द पांड्या 65. श्री नथमल गंगवाल 66. श्री नन्दकिशोर जैन पहाड़िया 67. डा. णमोकार जैन दीवान 68. श्री नरेन्द्रमोहन कासलीवाल 69. श्री नरेन्द्र मोहन इंडिया 700. 71. श्री नरेश कुमार सेटी श्री नवरतनमल कासलीवाल श्री नाथूलाल जैन एडवोकेट श्री नानूलाल साह 74. श्री निर्मलकुमार पांड्या 75. श्री निहालचन्द्र कासलीवाल Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जेन समाज /211 76. श्री रेमीचन्द काला 77. श्री नेमीचन्द गंगवाल 78. श्री नेमीचन्द छाबडा 79. श्री नेमीचन्द पाटनी 80. श्री नेमीचन्द जैन भौंसा 81. श्री पदमचन्द तोतूका 82. श्री पदमचन्द भौसा 83. श्री प्रकाशचन्द कासलीवाल 84. श्री प्रकाशचन्द जैन 85. श्री प्रकाशचन्द जैन अजमेरा 86. श्री प्रकाशचन्द कोठ्यारी 87. श्री प्रकाश बख्शी 88. श्री प्रकाशचन्द दीवान 89. श्री प्रकाशचन्द जैन बोहरा 90. श्री प्रकाशचन्द संघी लुहाडिया 91, श्री प्रकाशचन्द सेठी 92. श्री प्रकाशचन्द सौगानी 93. वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल 94. श्री प्रभुलाल काला 95. श्री प्रभुदयाल गंगवाल 96. श्री प्रवीणचन्द जैन कासलीवाल 97. श्री प्रवीणचन्द छाबडा 98. श्री प्रवीणचन्द खिन्दका पाटनी 99. डा. प्रेमचन्द काला 100. श्री प्रेमचन्द कोठारी 101. श्री प्रेमचन्द खिन्दूका 102. श्री प्रेमचन्द छाबडा 103. डा प्रेमचन्द जैन 104. दीवान प्रेमचन्द भौंच 105. श्री प्रेमचन्द बड़जात्या 106. डा. प्रेमचन्द रांवका 107. श्री पानाचन्द जैन पहाडिया 108. श्री पूनमवन्द कासलीवाल 109. 5. पूरणचन्द लुहाडिया 110 श्री परगचन्द जैन गोधा 111. श्री फूलचन्द बिलाला 112. श्री बसन्तीलाल पाटी 113. श्री बाबूलाल सेठी 114. डा. बाबूलाल सेठी 115. श्री बाबूलाल जैन गोधा 116, श्री भंवरलाल जैन छाबडा 117. श्री भंवरलाल वैद 118. श्री भंवरलाल सरावगी पांड्या 119. श्री भंवरलाल साह 120. श्री भागचन्द बाकलीवाल 12.!. श्री भागचन्द साह 122. श्री भागचन्द अत्तार 123. श्री भागचन्द जैन सेठी 124. श्री मदनलाल जैन 125. श्री महावीर कुमार सेठी 126. श्री महावीर कुमार नृपत्या 127. श्री महावीर कुमार रारा 128. श्री महावीर प्रसाद पहाडिया 129. श्री महेन्द्र कुमार अजमेरा 130. श्री महेन्द्र कुमार पाटनी 131, श्री महेन्द्र कुमार बगडा 132. श्री महेन्द कुमार सेठी 133. श्री माणकचन्द पाटनी 134. श्री माणकचन्द मुशरफ 135, पं. मिश्रीलाल साह शास्त्री 136. श्री माणकचन्द बज 137. श्री माणिकचन्द जैन 138. श्री मिलापचन्द जैन बागायत वाला 139. पं. मिलापचन्द शास्त्री Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 140 श्री महेशचन्द्र जैन चांदवाड़ 168. विनोदीलाल पाटनी 141 श्री माणकचन्द साह 142. श्री मुन्नालाल जैन भांवसा 143. पं. मोतीलाल शास्त्री 144 श्रीमती मुन्नीदेवी काला 145. श्री मोहनलाल गंगवाल 146. श्री रतनलाल काला 147. श्री रतनलाल गंगवाल 169. श्री विरधीचन्द सेठी 170, डा. समन्तभद्र पापडीवाल 171. श्री सरदारमल पाटनी 172. श्री सागरमल सरावगी पांड्या (एयर आसाप कलकता यातेः 173. श्री सुमेर कुमार पांड्या 174. श्री सुमेरचन्द सोनी 175. श्री सुरेन्द्रमोहन डंडिया 176. श्री सुभाषचन्द्र चौधरी 177. श्री सुरेन्द्रकुमार जैन 17 श्री सूरजमल वैद H 148 श्री रतनलाल छाबडा 149 श्री रतनलाल जैन नृपत्या 150 श्री रमेशचन्द अजमेरा 151. श्री रमेशचन्द गंगवाल 152. श्री राजकुमार काला 153. श्री राजवल सीधानी 154. श्री राजमल सोनी 155. श्री राजेन्द्र कुमार बाकलीवाल 156. श्री रामचन्द्र ठेकेदार 157. श्री राजमल रतनलाल कासलीवाल 179 180. 131. श्री श्री सौभाग्यमल रांवका श्री सोहनलाल सेठी चन्द पांड्या श्री शान्तिकुमार गंगवाल 182. 183 श्री शान्तिलाल गंगवाल 184. श्री शान्तिकुमार सेठी 158. श्री राजेन्द्र कुमार लुहाडिया 159. श्री रूपचन्द सौगानी एडवोकेट 160. श्री रूपचन्द लुहाडिया 161. श्री लल्लूलाल जैन गोधा 162. डा. लल्लूलाल जैन बडजात्या 163. श्री लूणकरण गोधा बाकलीवाल 185. श्री श्रेयांस कुमार गोश्रा 186. श्री शिखरचन्द छाबड़ा 187 श्री हजारीलाल निगोत्या 188, श्री हरकचन्द चौधरी 189. श्री हरकचन्द पाटनी 100. श्री हरकचन्द पांड्या 191 श्री हरकचन्द साह 192. श्री हरिश्चन्द्र अजमेरा 193. श्री हीरालाल कटारिया 194. श्री हीरालाल सेटी 195. श्री हेमन्त सोनी 164 श्री लेखचन्द बाकलीवाल 165. श्री विजय कुमार पाटनी 166. श्री विपिन कुमार तोतूका 167. श्री विनयचन्द पापडीवाल Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /213 श्री अजीत कुमार नृपत्या जवाहरात उद्योग के प्रतिभाशाली श्री अजीत कुमारनपत्या मुलाध्यपसा योग है। धिसागर जी 31 दिसम्बर 1952 को अलवर में जन्मे श्री नृपत्याजी ने जयपुर में अपनी शिक्षा प्राप्त की। आपका विवाह वर्धा निवासी श्री बंसीलाल जी पाटनी की सुपुत्री ज्या देवी (स्नातक) के साथ सम्पन्न हुआ। श्री बंसीलाल जी वर्धा (महाराष्ट्र) के राजनीतिक जीवन में मुख्य स्थान रखते हैं। श्री अजीत कुमार जी व्यावसायिक कार्यों के साथसाथ धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में भी रुचि रखते हैं। वर्ष 1981 में भगवान बाहुबली सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह में एक स्वर्ण कलश लेकर धर्म लाम/ पुण्य अर्जित किया था । श्रवणबेलगोला में "विद्यानन्द निलय" में नपत्या परिवार की ओर से एक फ्लेट का निर्माण कराया गया था, इस प्रकार अनेक तीर्थ क्षेत्रों,मन्दिरों एवं धर्मशालाओं में आपका व परिवार का सनिय योगदान रहता है। आपके पिता श्री महावीर प्रसाद नपत्या भी सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों से सर्दभिज्ञ हैं। श्रीपतो उठा देवी धर्मपली श्री अजीत कुमार जी अपने व्यावसायिक कार्यों से विदेशों की यात्रा पर जाते रहते है। आपसे समाज को एवं व्यवसाय जगत दोनों को बहुत आशाएं है । पता : डी-41, ज्योति मार्ग, बापू नगर जन्मपुर श्री अनूपचन्द गोधा दीवान परिवार में 1 मार्च 1923 को जन्में श्री अनूपचंद गोधा जयपुर के जाने माने समाजसेवी हैं। नगर के प्रसिद्ध पार्श्वनाथ मंदिर सोनियान के वर्षों से मंत्री हैं तथा मंदिर के विकास में अपना भारी योगदान देते रहते हैं। आपने सन् 1942 में मैट्रिक एवं सन् 1952 में साहित्यरत्न किया। इसके पश्चात् राज्य सेवा में चले गये । सन् 1942 में आपका विवाह हुआ । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती फूलदेवी को एक पुत्र अशोक एवं एक पुत्री अंजु को जन्म देने का सौभाग्य मिल चुका है। दोनों का ही विवाह करके आपने गृहस्थ जीवन से मुक्ति पा ली है | आपके पूर्वज दीवान नंदलाल जी ने झालरेवाली नशियां बनवाई,मंदिर का निर्माण करदाया और फिर उसे पार्श्वनाथ मंदिर को भेंट कर दी । दीवान नंदलाल गोधा ने संवत् 15265 में सवाई माधोपुर में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई थी। गोधा जी ज्ञानबालनिकेतन के मंत्री हैं । पार्श्वनाथ मंदिर के शास्त्र भंडार को भी आप ही देखते हैं । लेखक को गोधा जी से बहुत सहयोग मिलता रहता है। पता -1435 चाणक्य मार्ग,सुभाष चौक,जयपुर। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214/ जैन समाज का बृहद् इतिहास . . श्री अनूपचन्द ठोलिया ठोलिया परिवार में 19 जनवरी 1915 में जन्में श्री अनूपचंद ठोलिया जयपुर के ख्याति प्राप्त समाजसेवी है। आपके पिता श्री गुलाबचन्द जी ठोलिया का स्वर्गवास 3 जुलाई, 1947 को हुआ। इसके पूर्व आपकी माताजी श्रीमती सरदारवाई वैशाख सु6 सं. 1982 को आपको केवल 10 वर्ष का छोड़कर स्वर्ग सिधार गई । सन् 1938 में आपका विवाह श्रीमती सुलोचना देवी के साथ हुआ जो ईश्वरलाल जी दीवान की पुत्री हैं। इसके पूर्व सन् 1936 में आपने आगरा विविद्यालय से बी.ए. किया और फिर सन् 1939 में राज्य सेवा में चले गये। अपनी सेवा में धीरे धीरे उन्नति करते-करते अंत में आप राजस्थान राज्य के उप सरित (वित्त) एन बजट अधिकारी के सम्माननीय पद से श्री अनूप चन्द ठोलिया धर्मपत्नी सुलोचना देशी के साथ सेवा निवृत्त हुये। राज्य सेवाकाल में आपको राज्य सरकार से अनेक प्रशंसा छ मिलते रहे हैं । दिनांक 15 अगस्त 1970 को स्वतंत्रता दिवस समारोह में राज्य सरकार द्वारा आपको उच्च कोटि की कर्तव्य परायणता के उपलक्ष में प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। सामाजिक सेवा : सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपका अधिकांश समय सामाजिक कार्यों में व्यतीत होता है तथा जयपुर की अनेक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। दिगम्बर जैन मंदिर छोलियान के आप अभ्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह दि.जैन मंदिर महासंघ में मंत्री रहने के पश्चात् वर्तमान में कार्यसमिति के सदस्य हैं । सन्मति पुस्तकालय एवं राज. पेन्शनर एसोसियेशन की गतिविधियों में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आप उदार हृदय हैं । सार्वजनिक संस्थाओं को अपना मार्गदर्शन देते हुए उन्हें मुक्तहस्त से आर्थिक सहयोग भी देते रहते हैं। आचार्य देशभूषण जी महाराज सन् 1982 में जयपुर पधारे तब आपके निवास स्थान पर आचार्य श्री के करकमलों द्वारा एक दिगम्बर जैन चैत्यालय की स्थापना की गई जिससे इस क्षेत्र में वहां की जैन समाज को दर्शन पूजन की पूर्ण सुविधा मिली हुई है तथा सभी धर्म लाभ उठाते हैं। परिवार -आपके दो पुत्र श्री ताराचन्द ठोलिया एवं अशोक कुमार ठोलिया एवं चार पुत्रियां हैं । सभी का विवाह हो चुका है । आपके दोनों पुत्र आदिनाथ मेडिकल स्टोर एवं आदिनाथ एन्टरप्राइजेज के नाम से व्यवसायरत हैं। आपके बड़े भाई श्री गोपीचंद ठोलिया का स्वर्गवास हो चुका है तथा छोटे भाई श्री केवलचन्द ठोलिया भी सामाजिक कार्यकर्ता है तथा सवाई मानसिंह इन्वेस्टमेन्ट कारपोरेशन के सचिव पद पर कार्यरत हैं । श्री अनूपचंद ठोलिया प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल करते हैं । सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। पता: ई-15, चितरंजन मार्ग, अशोक नगर, जयपुर। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/215 ३ T पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ राजस्थान के जैन साहित्य सेवियों एवं कवियों में पं. अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ का विशिष्ट स्थान है। अस ५. चैनसुखदासजी के यि शिष्य रहे हैं। आपने डा. कस्तूरचंद कासलीवाल के साथ वर्षों तक कार्य किया तथा राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूचियों के भाग तीन, चार,एवं पांच के सह सम्पादक रहे हैं। आप अच्छे लेखक तथा आशु कवि हैं एवं बाहुबली खंडकाव्य के रचयिता हैं, जिसका प्रकाशन श्री महावीर क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की ओर से हुआ है। आपने गीतांजलि के कतिपय गौतों का पद्यानुवाद किया है तथा अब तक 500 से भी अधिक कविताओं की रचना करके उन्हें विभिन्न जैन पत्र पत्रिकाओं, अभिनन्दन एवं स्मृति ग्रंथों में प्रकाशित कराया है। आपकी लघु रचनायें आचार्य सूर्य सागर पूजा, पदमप्रभु चालीसा, रोहिणी वत पूजा,कांजीबारस पूजा, चन्दन षष्टि व्रत पूजा उल्लेखनीय हैं । अभी आपने दिगम्बर जैन मंदिर जयपुर परिबय स्मारिका का सम्पादन किया है जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई है। जैन पुरातत्व एवं प्राचीन जैन साहित्य की शोध तथा खोज में आपकी विशेष रुचि है। आप सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं । दि.जैन औषधालय जयपुर के 20 वर्ष तक मंत्री रह चुके हैं । दि.जैन संस्कृत कॉलेज को प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य हैं तथा महावीर निर्वाण शताब्दि समारोह में स्वर्ण पदक से सम्मानित हुए हैं। वर्तमान में आप यंत्रों पर कार्य कर रहे हैं। कोटा कवि सम्मेलन में प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित भी हो चुके हैं । आएका जन्म 10 सितम्बर सन् 1922 को जयपुर में हुआ। आपके पिता श्री गोमतीलालजी भावमा जयपुर के सम्माननीय पंडित एवं प्रसिद्ध वस्त्र व्यवसायी थे। सन् 1958 में पिताजी का तथा सन 1978 में माताजी का स्वर्गवास हो गया । आपने मैट्रिक, न्यायतीर्थ एवं साहित्यरत्न की परीक्षायें पास की हैं तथा केन्द्रीय सरकार की सेवा में 37 वर्ष से भी अधिक समय तक रहने के पश्चात् आप सन् 80 में सेवानिवृत्त हुए हैं। आपके दो पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कंचन देवी धर्मपरायण महिला हैं । आपके ज्येष्ठ पुत्र नेमीचन्द चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट है जिसका विवाह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस श्री नरेन्द्र मोहन कासलीवाल की पुत्री रेणु के साथ हुआ है । दूसरा पुत्र सुरेन्द्र बी कॉम है । तीनों पुत्रियां उर्मिला मंजू एवं प्रमिला एम.ए. हैं जिनका विवाह हो चुका है। पंडित जी की साहित्यिक सेवायें अमूल्य हैं । विगन 4() वर्षों से आपने अपने आपको साहित्य देवता के समर्पित कर रखा है । प्रस्तुत इतिहास के लेखक डा.कासलीवाल के आप अभिन्न मित्र हैं। पता : 769, गोटीकों का रास्ता किशनपोल बाजार,जयपुर- 302603 श्री अनूपचंद बाकलीवाल टौंक (राजस्थान) के मूल निवासी श्री अनूपचन्द बाकलीवाल जयपुर में कांच के व्यवसायी हैं। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी नायब तहसीलदार के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् जयपुर में आकर रहने लगे । सन् 1980 में 67 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया । श्री बाकलीवाल का जन्म सन् 1947 को चैत्र शुक्ला तेरस को हुआ। सन् 1963 में Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 216 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्रीमती सुशीला देवी धर्मपाली श्री अनूपचन्द बाकलीवाल आपने हायर सैकण्डरी परीश्चा पास की। आपका विवाह सन् 1972 में श्रीमती सुशीला देवी के साथ संपन्न हुआ | आपको दो पुत्र अम्बिकेश एवं अमर तथा एक पुत्री अंजू के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। डा. अशोक कासलीवाल श्री बाकलीवाल जी ने अपनी जन्म नगरी टौंक के श्याम बाबा के मंदिर में गुम्बज का निर्माण करवाकर समारोह के साथ उस पर ध्वजायें फहराई। आप मधुवन टोंक फाटक स्थित, दि. जैन पार्श्वनाथ मंदिर की कार्यकारिणी सदस्य रह चुके हैं। श्रीमती सुशीला देवी बाकलीवाल समाज सेवा में भाग लेती हैं। पता:- 868, अमरदीप, बरकतनगर, किसान भार्ग, जयपुर । श्री अलबेलचन्द प्रसिद्ध संगीतज्ञ स्व. श्री चिरंजीलाल जी वैद के सुपुत्र श्री अलबेलचन्द का जन्म 24 फरवरी सन् 1924 को हुआ । सन् 1952 में मैट्रिक किया और फिर बैंक सेवा में चले गये। सन् 1960 से 1981 तक मैनेजर के पद पर कार्य करने के पश्चात् सेवानिवृत्त हुये। सन् 1948 में आपका विवाह श्रीमती रतनदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपको 4 पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हैं। इनमें प्रथम दो पुत्र श्री पदमचन्द एवं सुरेशकुमार बैंक सेवा में हैं। अशोक कुमार बस्त्र व्यवसायी हैं तथा चतुर्थ पुत्र दिलीप पढ़ रहा हैं। आपकी एकमात्र पुत्री त्रिशला का विवाह हो चुका है। वर्तमान में आप शान्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दर्शन, अभिषेक करने में रुचि लेते हैं। मिलनसार हैं। पता:- 2427, घी वालों का रास्ता, जयपुर। आपका जन्म 20 मई, 1945 जौहरी परिवार में श्री गुलाब चन्द जी कासलीवाल के यहां जयपुर में हुआ। आपकी मां का नाम श्रीमती गंगादेवी है। आपकी प्रारंभिक शिक्षा से लेकर एम.बी.बी.एस. तक की शिक्षा आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की । सन् 1969 से 74 तक दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों व केन्द्रीय सरकार स्वास्थ्य सेवा (सीजीएचएस) में विभिन्न पदों पर कार्य किया। सन् 1974 से 78 तक आपने जयपुर शहर में जनरल प्रेक्टिस की। मन 1978-85 कुल 7 वर्ष तक याना (वेस्ट अफ्रीका) के प्रान्तीय अस्पताल में सीनियर मेडिकल आफसर (पिडियाटिक्स) के पद पर कार्य किया। आपने सुदूर देशों की यात्रा की है। वर्तमान में आप निजी वात्सल्य चिल्ड्रेन अस्पताल क्लिनिक में नवजात शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ हैं तथा नवजात शिशु गहन इकाई का कार्यभार देख रहे हैं। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /217 आपका विवाह ज्योति टोंग्या से 7 जनवरी 1969 में इन्दौर में सम्पन्न हुआ। श्रीमती ज्योति कम्प्यूटर शिक्षण व प्रोग्रामिंग पोहा से जुड़ी हुई है। पानी का ही पतियार मेडिकल कालेज की छात्रा है । पुत्र आयुष राष्ट्रीय डिजायन संस्थान (एनआईडी) अहमदाबाद का छात्र है। पता- वात्सल्य ,बी 61 ए,पृथ्वीराज रोड,बड़े अस्पताल के पास,सी-स्कीम,जयपुर। श्री अशोक कुमार बाकलीवाल सामाजिक जुलूसों में शेरवानी एवं साफा पहिनकर घोड़े पर ध्वज लेकर चलने वाले श्री अशोक कुमार बाकलीवाल जयपुर के प्रिय समाजसेवी है। आपके पिताजी स्व. श्री गुलाबचन्द जी पूरी रामगढ तहसील में प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय व्यक्ति थे । अशोक कुमार जी का जन्म 7 जुलाई 1933 में हुआ तथा एम.ए.बीएससी.(गणित) एवं बी.एड. की परीक्षा पास की तथा अध्यापक बनकर राज्य सेवा में प्रवेश किया। तथा माध्यमिक विद्यालय रामगढ़ के प्रधानाध्यापक के पद से सेवा निवृत्त हुये। . अशोक कुमार जी सामाजिक सेवा में खूब रुचि लेते है । जयपुर के संघी जी के मंदिर के प्रमुख कार्यकर्ता हैं । वीर सेवक मंडल,राजस्थान जैन समा,अ.भा.दि.जैन परिषद जयपुर शाखा के सदस्य हैं । एन.सी.सी.के कमीशन अधिकारी रहे है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला देवी बाकलीवाल महिला जागृति संघ की कर्मठ सदस्या श्रीमती विमला देवी धर्मपत्नी श्री अशोक कुमार बाकलीवाल' ___ बाकलीवाल जी के दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ है। सभी का विवाह हो चुका है । आपके सभी भाई श्री मोतीलाल जी, श्री राजेन्द्रकुमार जी एम एस.सी, बी.एड. श्री भागचन्द जैन अभियंता,श्री बाबूलाल जैन एवं श्री सुरेन्द्र कुमार हैं । श्री राजेन्द्र जी केन्द्रीय विद्यालय संगठन में सहायक कमिश्नर हैं। पता: 2173, बाकलीवाल भवन,पंडित शिवदीन जी का रास्ता,जयपुर। श्री उत्तमचंद पांड्या खोरा घाम के निवासी श्री उत्तमचन्द पांड्या अपने पिताश्री फोजूलाल जी पांड्या के साथ जयपुर आये और यहीं के होकर रह गये । वर्तमान में आप दवाईयों के थोक विक्रेता है जिसमें आपको अच्छी सफलता मिली है। आप स्वयं भी वैद्याचार्य एवं फार्मासिस्ट हैं । आप चारभाई हैं तथा सबसे छोटे आप ही हैं । आपसे बड़े घासीलाल जी,भागचन्द जी एवं मोहनलाल जी हैं। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री उत्तमचंद जी का जन्म दि. 15-10-1950 को हुआ। सन् 1967 में आपने हायर सैकेण्डरी की परीक्षा पास की तथा एक वर्ष कॉलेज में पढ़ने के पश्चात् शिक्षा जगत् को छोड़कर व्यवसाय में लग गये। आपका विवाह श्रीमती सरोजदेवी के साद दि. 19-2.72 को संपन्न हुआ। आपके 2 पुत्र लोकेश एवं तपेश हैं। पांड्या जी दानशील एवं धार्मिक प्रकृति के युवा समाजसेवी हैं। दि.जैन अ.क्षेत्र बैनाड़ के मंदिर पर । जुलाई,1986 को ध्वजारोहण एवं कलशारोहण में सौधर्म इन्द्र के पद से अलंकृत हुये । वहां के मंदिर के जीर्णोद्धार में आपने खूब सहयोग दिया तथा अपने ग्राम खोरा में औषधालय की स्थापना की । उसी ग्राम में सैकण्डरी स्कूल में एक कमरे का निर्माण करवाया। राज.जैन साहित्य परिषद् की ओर से आयोजित श्रुतपंचमी समारोह में रथ के सारथी बनने का यशस्वी कार्य किया। वर्तमान में आपश्री दि.जैन चन्द्रप्रभु अतिशय क्षेत्र बैनाड़,श्री दि.जैन सेवा समिति मालवीय नगर जयपुर एवं श्री बाहुबली ट्रस्ट मालवीय नगर के अध्यक्ष है । इसके अतिरिक्त श्री दि.जैन औषधालय जयपुर एवं श्री दि.जैन संस्कृत आचार्य महाविद्यालय के स्थायी आजीवन सदस्य हैं । इनके अतिरिक्त और भी अनेक संस्थाओं से आप जुड़े हुए हैं | समाज से आपको बहुत आशायें पता : न्यू मेडिकल चैम्बर ,दूनी हाऊस, फिल्म कालोनी,जयपुर | श्री उमरावमल साह जवाहरात व्यवसाय में कुशल माने जाने वाले श्री उमरावमल साह का जन्म 17-91924 को जयपुर में श्री गुलाबचन्द जी साह के यहां हुआ । आपकी माताजी श्रीमती लाडदेवी का स्वर्गवास अभी मई 1984 में हुआ था। मैट्रिक एवं संस्कृत में उपाध्याय पास करने के पश्चात् जवाहरात व्यवसाय में प्रवेश किया और विगत 45 वर्षों से इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। आपका विवाह सन् 1944 में श्रीमती पदमादेवी का साथ संपन्न हुआ । आपको पांच पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके चार पुत्र सुनील,प्रदीप,अशोक एवं अरुण पेज्युएट हैं। प्रदीप एवं अशोक गलीचा का कार्य करते हैं। बाकी दोनों पुत्र जवाहरात में व्यवसायरत हैं। अपने व्यवसाय के प्रसंग में श्री उमरावमलजी दो बार विश्व भ्रमण जिनमें केनिया यगांडा दक्षिणी अफ्रीका आदि भी सम्मिलित हैं कर चुके हैं। आपके ज्येष्ठ पत्र अनिल का अभी दुखद निधन हो गया जिससे आपको एवं पूरे परिवार को ही गहरा धक्का लगा है। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। सभी सामाजिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। भगवान महावीर 25 सौं वां निर्वाण शताब्दी समिति की ओर से आपका स्वर्णपदक से सम्मान किया गया था । दि. जैन औषधालय जयपुर के स्वर्णजयन्ती अवसर पर आप ही उसके अध्यक्ष रहे थे। आपके पुत्र सुनील कुमार जवाहरात के अच्छे पारखी हैं । विदेशों में जाते ही रहते हैं । साह साहब जयपुर के प्रतिष्ठित एवं सेवाभावी नागरिक हैं । आपसे जयपुर को बहुत आशायें हैं । पता : 782 चूरूकों का रास्ता, चौडा रास्ता जयपुर । - Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमती कनकप्रभा हाडा आध्यात्मिक भक्ति संगीत के क्षेत्र में आपका विशिष्ट स्थान है. आपका जन्म जयपुर में 22 अक्टूबर सन् 1940 को श्रीमान जिनेन्द्र कुमार जी सेठी के यहां हुआ। बचपन से ही आपकी भक्ति संगीत में रुचि रही है आपने "साहित्यरत्न" "संगीत रत्न" आदि परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। संगीत के गुरू श्रीमान गोपीचंद जी गोधा रहे। आपके भजन श्रोताओं को भक्ति सरिता में प्रवाहित कर देते हैं तथा कार्यक्रम जिन मंदिर, गुरू सान्निध्य और धार्मिक समारोहों के अतिरिक्त अन्य कहीं नहीं होते । लोक प्रशंसा से दूर निस्वार्थ सेवा ही इनका लक्ष्य है 1 जयपुर नगर का जैन समाज /219 समय समय पर आपको गुरूओं के आशीर्वाद स्वरूप अनेक उपाधियाँ भी प्राप्त हुई हैं। गणधराचार्य पू. 108 कुंथुसागर महाराज द्वारा "आध्यात्मिक संगीत विदुषी" मुनि भल्लिसागर महाराज द्वारा "जैन संगीत कोकिला रानी" अखिल भारतीय दिगंबर जैन महासभा के द्वारा "जिन भक्ति संगीत विशारद" तथा महिला जागृति संघ जयपुर द्वारा " जैन संगीत रत्न" आदि से अलंकृत किया गया है। श्री दिगंबर जैन कुंथुविजय ग्रंथ माला समिति की आप सक्रिय सदस्या हैं। दस दर्ष तक आपने श्री शांतिनाथ संगीत नृत्य निकेतन का निशुल्क एवं निस्वार्थ भाव से संचालन किया है तथा अनेक बालिकाओं को संगीत एवं नृत्य की शिक्षा प्रदान की है। आपका विवाह धर्मस्नेही श्री मोतीलाल जी हाड़ा से हुआ है । हाड़ा साहब कपड़े के व्यवसायी हैं तथा भक्ति मार्ग में सदा ही आपका सहयोग रहा है। आपके एक पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं तथा तीनों ही विवाहित हैं। पता : 1896, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर श्री कपूरचन्द जैन गोधा कालेज शिक्षा के प्राचार्य पद से निवर्तमान श्री कपूरचन्द जी जैन ख्याति प्राप्त शिक्षा बिंदू रहे हैं। आपका जन्म 12 नवम्बर 1927 को हुआ। एम. काम किया और कालेज शिक्षक के पद पर कार्य करना प्रारंभ किया। आप स्व. श्री मोतीलाल जी गोधा वकील के सुपुत्र हैं। गोधा जी एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। पुत्र श्री सुभाष जैन बैंक सर्विस में हैं तथा पुत्री श्रीमती विजया जैन डाक्टर हैं तथा अमेरिका में रह रही हैं। गधा जी स्काउट्स एवं गाइड्स कोटा के अवैतनिक सचित्र रहे हैं तथा राजस्थान जैन सभा के संस्थापक सदस्य तथा सर्वप्रथम मंत्री रहे हुये हैं। गोधों के चौक में जो श्री ईश्वर लाल गोधा का मंदिर है वह आपके पूर्वजों द्वारा ही बनाया हुआ है। गोधा जी शान्त स्वभावी हैं तथा आपकी प्रारंभ से ही सामाजिक गतिविधियों में विशेष रुचि रही है। पता : 580 रास्ता· हल्दियान, जौहरी बाजार, जयपुर । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री कन्हैयालाल सेठी सेठी गोत्रीय श्री कन्हैयालाल जी का जन्म 21 सितम्बर 1923 को पचार प्राम में हुआ । आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी सेठी गांव के व्यक्ति 2340 में साप मैट्रिक परीक्षा पास की और शिक्षक के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया। इसके पश्चात् 12 वर्ष तक एक प्रेस में मैनेजर रहे और फिर सन् 1950 में अपना रेडीमेट वस्त्रों का स्वतंत्र व्यवसाय प्रारंभ किया जिसमें आपको आशातीत सफलता मिली। वर्तमान में आपके 6 व्यापारिक संस्थान एवं तीन फैक्ट्रियां हैं। महाराज आपका सन् 1947 में श्रीमती इन्द्रप्रभा देवी के साथ विवाह हुआ | जिनसे आपको तीन पुत्र अनिलकुमार, कमल कुमार एवं महेन्द्र कुमार के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अनिलकुमार ने बी.कॉम. किया है। उसकी पत्नी का नाम सुमन है तथा दो बच्चों के पिता हैं। कपलकुमार 32 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम सुनीता है तथा दो पुत्रों की जननी हैं। आपके तीन छोटे भाई हैं जिनके नाम चिरंजी लाल, भागचंद एवं राजेन्द्र कुमार है। सभी भाई रेडीमेट वस्त्रों का व्यवसाय करते हैं। सेठी जी सामाजिक क्षेत्र में भी ख्याति प्राप्त श्रेष्ठी हैं। जनता कालोनी जैन समाज के अध्यक्ष हैं। श्री महावीर मंथ अकादमी के उपाध्यक्ष तथा अतिशय क्षेत्र पदमपुरा, दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जैसी संस्थाओं के वरिष्ठ सदस्य हैं। आपकी ओर से तिजारा क्षेत्र की धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण कराया गया है। आप अपने ग्राम पचार की ग्राम पंचायत के वर्षों तक सरपंच रह चुके हैं। पता - बी- 176, जनता कालोनी, आगरा रोड, जयपुर । श्री कपूरचन्द काला कपूर आर्ट प्रिन्टर्स के संस्थापक श्री कपूरचन्द काला प्रेस जगत् में ख्याति प्राप्त व्यक्ति हैं। आपका जन्म 19 सितम्बर 39 को हुआ। आपके पिताश्री मोतीलाल जी एवं माताजी कान्तादेवी दोनों ही का आपको आशीर्वाद प्राप्त है 1 सन् 1961 मैं आपने राज विश्वविद्यालय से बी काम किया लेकिन इसके पूर्व ही आपने प्रेस संचालन का कार्य प्रारंभ कर दिया था। फाल्गुण शुक्ला द्वितीया संवत् 2018 को आपका विवाह श्रीमती कमला देवी जी के साथ संपन हुआ। आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। बड़े पुत्र राजकुमार ने सन् 1985 में बीकाम कर लिया है। छोटा पुत्र अरूण कुमार पढ़ रहा है | आपके बड़े भाई फूलचन्द जी ने लामिया (सीकर) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन करवाया था। काला जी प्रेस जगत् में विशेष स्थान रखते हैं। राजस्थान प्रेस आनर्स एसोसियेशन जयपुर की कार्यकारिणी सदस्य हैं। महावीर शिक्षा समिति के आजीवन सदस्य हैं। कितनी ही जैन पत्र पत्रिकाओं के भी आजीवन सदस्य हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। पता:- कर्पूर आर्ट प्रिन्टर्स, मणिहारों का रास्ता, जयपुर। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /221 श्री कपूरचंद पाटनी जयपुर की बीस से भी अधिक संस्थाओं से जुड़े हुये श्री कपूरचंद पाटनी नगर के ख्याति प्राप्त समाजसेवी हैं। आपका जन्म 8 जनवरी,1927 को सांभरलेक में हुआ। आपके पिताजी स्व, नाथूलाल जी अपने क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति थे। आपने जयपुर में पंडित चैनसुखदासजी न्यायती के संरक्षण में रहकर एन.कापरल.एल.बी.एवं साहियरल किया तथा फिर टैक्स एडवोकेट बनकर कार्य करने लगे। आपका कार्यालय पाटनी जैन एंड कम्पनी के नाम से प्रतिद्ध है। जो वर्तमान में 210 वर्धमान,जौहरी बाजार में स्थित है । आपका विवाह सन् 1944 में श्रीमती मनफूलदेवी के साथ हुआ। पाटनी जी सन् 1955-57 तक जयपुर नगर परिषद के सदस्य रहे । सन् 1975 में महामंत्री जयपुर शहर जिला कांग्रेस एवं सन् 1977 में उसके अध्यक्ष रहे । सन् 1984-85 में कांग्रेस शताब्दी समारोह के संयोजक रहे । इसके अतिरिक्त कांप्रेस (आई) के और भी विभिन्न पदों पर रहे। सामाजिक क्षेत्र में भी पाटनी जी की सेवायें महत्वपूर्ण रहीं । राज. जैन सभा के 7 वर्ष तक मंत्री एवं तीन वर्ष तक उसके अध्यक्ष रहे । दि.जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के सन् 1973 से ही आप मंत्री पद पर कार्य कर रहे हैं । देश के प्रमुख तीर्थ दि.जैन अ.क्षेत्र श्री महावीर जी के पहिले सन् 1979 से 8 तक मंत्री रहे तथा फिर 1990 में आपको पुनः निर्वाचित किया गया । दि. जैन महासमिति के वर्तमान में आप महामंत्री हैं। जयपुर टेक्स सलाहकार संघ के महामंत्री एवं अध्यक्ष रहकर अपनी उल्लेखनीय सेवाओं से बहुचर्चित रहे । आप कितनी ही सरकारी कमेटियों के सदस्य रहे जिसमें बिक्री कर सरलीकरण समिति, राज. भूदान एवं पामदान बोर्ड,देवस्थान सलाहकार बोर्ड के नाम उल्लेखनीय हैं। पाटनी जी विनोदप्रिय है। जहां भी जाते हैं अपना स्थान बना लेते हैं । सामाजिक सेवा ही आपके जीवन का अंग बना हुआ है । आपसे समाज को बहुत आशायें हैं। पता:-17 जोबनेर बाग स्टेशन रोड, जयपुर । श्री कपूरचन्द पापड़ीवाल पावन सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर जी की 31 बार बंदना करने वाले श्री कपूरचन्द पापड़ीवाल का जन्म संवत् 1964 के फाल्गुन मास में हुआ। आपकी पाता धूरी बाई एवं पिता श्री गणेशीलाल जी थे। आपका विवाह सन् 1930 में हुआ लेकिन आपको पत्नी सुख अधिक समय तक नहीं मिल सका और सन् 1958 में पत्नी का स्वर्गवास हो गया। सन् 1925 में आपने मैट्रिक की परीक्षा पास की । आपका हस्तलेख बहुत सुन्दर होने के कारण स्कूल में आपको राज्य सरकार की ओर से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई । आपने क्यूरियोज का सफलता के साथ व्यवसाय किया और उसमें सफलता प्राप्त की । इसके अतिरिक्त 25 वर्षों तक आप जयपुर महाराजा की सेवा में रहे तथा विभिन्न पदों पर कार्य किया । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2221 जैन समाज का वृहद् इतिहास आप दि. जैन बड़ा तेरह पंधी मंदिर के प्रमुख कार्यकर्ता तथा कितने ही वर्षों तक उसके मंत्री रहे । आपके बड़े भाई श्री केशर लाल जी पापडीवाल ने इसी मंदिर में आलिया बनवाया तथा तेरहपंथी कोठी सम्मेदशिखर जी में फर्श का निर्माण करवाया। श्री पापडीवाल जी अपने जमाने के बहु चर्चित समाजसेवी रहे हैं । वर्तमान में आप निवृत्ति परक जीवन यापन कर रहे Tue पता :- 4867 पापडीवाल भवन,कुंदीगरों के भैरू का रास्ता,जयपुर श्री कमलकुमार कासलीवाल जयपुर के श्री मिलापचन्द जी कासलीवाल के सुपुत्र श्री कमलकुमार कासलीवाल का जन्म 30 अप्रेल सन्1942 को हुआ । इन्टर कामर्स तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप जवाहरात उद्योग में चले गये। मार्च सन् 1965 को आपका विवाह सुश्री प्रेमलता से सम्पन्न हुआ । श्रीमती प्रेमलता श्री मुन्नीलाल जी बैन चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट को पुत्री है। आपको एक पुत्र लोकेश कुमार तथा एक पुत्री प्रिया के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्री कासलीवाल तीर्थयात्रा में रचि रखते हैं। अब तक आपने सभी तीर्थों की बंदना कर ली है। पता : 362, मेहमियों की गली, गोपाल जी का रास्ता, जयपुर। डा. कमलेश कुमार कासलीवाल वैद्य प्रभुदयाल जी कासलीवाल भिषगाचार्य के सुपुत्र डा. कमलेश कुमार नेत्र रोग के वरिष्ठ चिकित्सक हैं । आपका जन्म 21 अप्रेल 1946 को हुआ । सन् 1963 में बी. एससी. किया। इसके पांच वर्ष पश्चात् एम. बी. बी. एस. किया और सन् 1972 में एम. एस. करके चिकित्सा क्षेत्र में प्रवेश किया । जयपुर,सवाई माधोपुर के अस्पतालों में रहने के पश्चात् सैटेलाइट अस्पताल के अधीक्षक रहे । वर्तमान में भरतपुर राजकीय अस्पताल में वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं। आपका विवाह श्रीमती डा. पुष्पा जैन से हुआ। आपको दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपकी धर्मपत्नी डा. श्रीमती पुष्पा जैन भी एम.बी.बी.एस., एम.एस, है तथा वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं । आपने सन् 1965 में एम.बी.बी.एस.एवं सन 1973 में एम.एस.किया । वर्तमान में आप राजकीय अस्पताल भरतपुर की अधीक्षिका हैं । स्वभाव से विनयशील तथा परिवार की सेवा सुश्रुषा करने में आगे रहती हैं । जयपुर के प्रसिद्ध श्री रूपचंद जी लुहाडिया की पुत्री हैं। डॉ. युधा जैन धर्मपत्नी __ आप दोनों ही सेवाभावी जीवन व्यतीत करते हैं तथा रोगियों की सेवा सुश्रुषा में विशेष डॉ. कमलेश कासलीवाल ध्यान देते हैं। पता- 1- 165 , गोविन्द नगर पूर्व, जयपुर 2-ए-28 जनता कालोनी ,जयपुर । 3.1003 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /223 श्री कमलचंद जी कासलीवाल कमल एंड कम्पनी के संस्थापक श्री कमलचंद कासलीवाल जी की गणना जयपुर के विशिष्ट नागरिकों में की जाती है । राज्य सेवा एवं वकालात के पैतृक एवं पारिवारिक धन्धे को छोड़कर आपने आटोमोबाइल्स एवं मोटर उद्योग की ओर कार्यक्षेत्र बनाया और उसमें अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की। आपका जन्म 9 अगस्त सन् 1914 को जयपुर में हुआ। जब वे 18 वर्ष के हुये तो आपका विवाह श्रीमती रतनदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपके पांच पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। सभी पुत्र एवं पुत्रियां उच्च शिक्षित हैं तथा आटोमोबाइल्स में अपने पिता के साथ कार्यरत हैं। ___ आपने अपने जीवन में कितने ही छोटे बड़े उद्योगों को स्थापना ही नहीं के बल्कि उनको सुसंचालित भी किया। ऐसे उद्योगों में 1-कमल एण्ड कम्पनी एम.आई.रोड,जयपुर,2. कमल एपड कम्पनी कोच वर्क्स,3. कमल पोटर कम्पनी,4. कमल ट्रेडिंग कम्पनी 5- कमल आटो इन्डस्ट्रीज कोटा,6- कमल आटो इन्डस्ट्रीज कोच वर्क्स कोटा,7- कमल सुरखरसह-निधि कमल कम्पनी प्राइवेट लि.के नाम प्रमुख रूप से लिये जा सकते हैं । जयपुर नगर में सन् 1939 से 1972 तक सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस चलाकर आपने इस क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया। सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस के लिये आपको जयपुर के नागरिक आज भी याद करते हैं। आप राजस्थान आटोमोबाइल्स डीलर्स एसोसियेशन,राजस्थान पेट्रोलियम डीलर्स एसोसियेशन एवं जयपुर क्लब लि. के वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके हैं । वर्तमान में जयपुर मोटर फ्रेन्चाइल डीलर्स एसो.,राज.आटोमोबाइल्स बोडी बिल्डर्स एसो.के अध्यक्ष हैं तथा कितनी ही आटोमोबाइल्स संस्थाओं एवं जयपुर चैम्बर आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री के सदस्य हैं। उक्त व्यापारिक संस्थाओं के अतिरिक्त कासलीवाल जी सन्मति पुस्तकालय जयपुर के अध्यक्ष के साथ उसके विकास में सर्वाधिक योगदान आपका ही रहता है । मास्टर मोतीलाल जी संघी के आप अनन्य भक्त हैं और उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये आपने सन्मति पुस्तकालय को एक नया जीवन प्रदान किया है। श्री कमलचंद जी कासलीवाल की सामाजिक सेवायें भी प्रशंसनीय है। आपके उद्योगों में समाज के कितने ही युवक । कार्यरत हैं। आप अपने मधुर व्यवहार के लिये प्रसिद्ध है। जयपुर की साहित्यिक संस्था श्री महावीर पंथ अकादमी के आप संरक्षक हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती रतनदेवी जी बहुत शांत एवं सरल प्रकृति वाली महिला हैं । धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में जितना भी सहयोग अपेक्षित होता है उसे देने में आप को प्रसत्रहा होती है। श्री कंवरीलाल काला सुजानगढ (राजस्थान) में दि.13 मार्च सन् 1942 को जन्मे श्री कंवरीलाल काला युवा समाजसेवी हैं । आप श्री मोहनलाल जी काला के सुपौत्र एवं श्री सोहनलाल जी काला के सुपुत्र हैं। आपके पिता जी श्री सोहन लाल जी का मात्र 40 वर्ष की आयु में ही स्वर्गवास हो गया। V Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224/ जैन समाज का वृहद् इतिहास लेकिन माताजी श्रीमती रैनादेवी का आर्शीवाद अभी प्राप्त है । आप पंचम प्रतिपाधारी हैं तथा मुनिराजों को आहार देती है। आपके शुद्ध खानपान का नियम है। श्री काला जी ने कलकत्ता से सन् 1958 में मैट्रिक पास किया और 10 मई सन् 1959 को श्रीमती सुमित्रा देवी सुपुत्री श्री हरकचंद जी पांडया सजानगढ के साथ आपका विवाह हआ। जिनसे आपको तीन पत्र एवं एक पत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री जितेन्द्र बीकॉम. हैं । 38 वर्ष के युवा हैं। उनकी पत्नी का नाम शशि जैन है जो एक पुडी नेहा की जननी है। आप कलकत्ता में व्यवसाय करते हैं । दूसरा पुत्र मनोजकुमार एम.बी.ए. में अहमदाबाद में अध्यनरत है तीसरा पुत्र मनोजकुमार बी.कॉम हैं तथा देहली में जैन रोडवेज का कार्य देखते हैं। आपको एक मात्र पुत्री बेला ने बी.ए. किया है । उसका विवाह श्री सुरेश कुमार जी गंगवाल सुपुत्र श्री झूमरमल जी गंगवाल गोहाटी से हो चुका है। श्रीमती बेला एक पुत्री की मां है। श्री काला जी का धार्मिक जीवन यापन की ओर विशेष ध्यान रहता है । भगवान बाहुबली सहस्त्राब्दी महामस्तकाभिषेक के अवसर पर रजत कलश से भगवान बाहुबली का अभिषेक करने का सौभाग्य प्राप्त किया। आप सामाजिक सेवा में विशेष अग्रसर रहते हैं। जयपुर स्टेशन पर स्थित दि. जैन मंदिर बगरूवाला के ट्रस्टी हैं। सुजानगढ परिषद के उपाध्यक्ष एवं जयपुर ग्रेटर लाइन्स क्लब के सदस्य हैं । सन् 1974 में सुजानगढ से जयपुर व्यवसाय के लिये आये और यहीं के हो गये । आपके परिवार द्वारा सुजानगढ़ में एक आयुर्वेदिक जैन औषधालय का संचालन किया जाता है जिसका मोहनलाल मोहन लाल मिश्री लाल काला गिटिबेल ट्रस्ट के नाम से ट्रस्ट बनाया जा चुका है। आपके पितामह श्री मोहनलाल जी अपने जमाने के समाज के प्रमुख व्यक्तियों में अपना विशिष्ट स्थान रखते थे। आपकी अच्छी धाक थी। वे सुजानगढ नगरपालिका के सदस्य तथा बीकानेर स्टेट असेम्बली के सदस्य रहे थे। कालाजी के चार छोटे भाई और हैं जिनके नाम मोतीलाल जी,जवाहरलाल जी,माणिक लाल जी एवं अजीत लाल जो है । पहले एवं चौथे माई कलकत्ता में व्यवसाय करते हैं। दूसरे भाई जयपुर एवं तीसरे देहली में व्यापार करते हैं। परिवार जन श्री मिश्रीलाल जी काला स्रो मोहनलाल बी श्री सोहनलाल जी पता- विमल आशीष,डी 216/3 भास्कर मार्ग, बनीपार्क,जयपुर Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /225 डा. (श्रीमती) कुसुप शाह दिगम्बर जैन महासभा की महिला मासिक पत्रिका की प्रधान संपादिका डा.(श्रीमती) कुसुम शाह उच्च अध्ययन प्राप्त महिला हैं । सन् 1961 में बी.ए.करने के पश्चात् एम.ए(1972) बी.एड.(1964) एवं पी.एचडी.(1975) की उपाधियों प्राप्त करने ८ अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की । आप अच्छी लेखिका,वक्ता एवं संगीतज्ञ हैं ।जब भक्तामर स्तोत्र एवं बारह भावनाओं पर संगीत के माध्यम से नृत्यांजलि प्रस्तुत करती हैं तो हबारों दर्शकों को वाहवाही लूट लेती हैं। डा. (श्रीमती) शाह ने जब से जैन महिलादर्श का संपादन प्रारंभ किया है उसकी काया ही पलट दी है । सामाजिक गतिविधियों में खूब सक्रिय रहती हैं अब तक मधुर भक्ति गीत, कुसुमांजली, नौद कहां गई गद्य भाग) दर्द की सी परी (गीत संकलन) प्रकाशित हो चुकी हैं। आपके पति श्री जैनेन्द्र कुमार शाह भी उच्च शिक्षित युवक है तथा बैंक अधिकारी हैं। आप भी उदार हृदय एवं सरल स्वभावी हैं। एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता है । पता :- डी-51], ज्योति मार्ग,बापू नगर,जयपुर। श्री कोमलचन्द पाटनी श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरहपंथियान के अध्यक्ष, श्री कोमलचन्द पाटनी का जन्म 15 सितम्बर 1927 को हुआ। आपके पिता श्री मूलचन्द जी पाटनी (मारोठ वाला) जयपुर के व्यवसायिक समाज व जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आपने बी.कॉम. तक शिक्षा प्राप्त की और काफी समय तक कमल एण्ड कम्पनी जयपुर के मुख्य व्यवस्थापक के पद पर कार्य किया। अब वर्तपान में आप स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं। आपके तीन पुत्र व दो पुत्रियाँ हैं। पुत्र राजेश, राकेश और परेश अपने स्वतन्त्र व्यवसाय में कार्यरत हैं । दो पुत्रियाँ आभा व शोभा बम्बई व अमेरिका में रहती है । दामाद श्रीअभिनन्दन अजमेरा'व अशोक लुहाड़िया अपने स्वतन्त्र व्यवसाय में कार्यरत श्री कोमलचन्द पाटनी कई सामाजिक व्यापारिक शिक्षण संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। राजस्थान चैम्बर ऑफ कामर्स,जयपुर चैम्बर ऑफ कामर्स, एम्पलायर्स एसोसियेशन ऑफ राजस्थान, महावीर इन्टरनेशनल, रोटरी क्लब, पदमावती जैन बालिका विद्यालय,महावीर हाई स्कूल आदि से जुड़े हुए हैं। आप सामाजिक व व्यवसायिक कार्यों में पूर्ण रुचि रखते हैं । पुस्तकें पढ़ने में भी आप रुचि रखते हैं। पता :- कोमलचन्द पाटनी, 13, उनियारा बाग, मोती डूंगरी रोड़,जयपुर। फोन :- निवास :46.554,47529 कार्यालय : 70310, 626,14 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 / जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री कैलाशचन्द चौधरी आपका जन्म 4 जुलाई सन् 1944 को हुआ । इन्टरमीजियट परीक्षा पास करने के पश्चात् आप सर्राफा व्यवसाय में चले गये। सन् 1963 को आपका विवाह श्रीमती कुसुम के साथ सम्पन्न हुआ। आप दोनों को एक पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। श्री कैलाशचन्द जी लाइन्स क्लब जयपुर के प्रेसीडेन्ट, महावीर क्लब के उपाध्यक्ष जैन संस्कृत महाविद्यालय के शताब्दी समारोह समिति के सदस्य रह चुके हैं एवं वर्तमान में महावीर इंटरनेशनल एवं जयपुर चैम्बर ऑफ कामर्स, बाल शिक्षा मंदिर की कार्यकारिणी के सदस्य हैं एज केयर इंडिया के आजीवन सदस्य महावीर दि. जैन शिक्षा परिषद् के विशिष्ट सदस्य एवं लाईन्स डिस्ट्रिक 323-ई-1 के उप प्रांतपाल हैं। श्री चौधरी सामाजिक कार्यों में रूचि रखते हैं तथा सभी आर सक्रिय रहते हैं । पता : निवास : 796, चौधरी भवन, मनिहारों का रास्ता, जयपुर पता : फर्म : मै. भौंरीलाल कैलाशचन्द ज्वैलर्स, 174, किशनपोल बाजार, जयपुर । श्री कैलाशचन्द पाटनी मार्बल उद्योग में प्रतिष्ठा प्राप्त श्री कैलाशचन्द जी पाटनी जयपुर जैन समाज के सम्माननीय सदस्य हैं। आप राज. मार्बल्स एण्ड मिनरल्स के पार्टनर एवं पाटनी मार्बल्स के संचालक हैं। स्वभाव से अत्यधिक सरल एवं विनय संपन्न है। आपका जन्म दि32 अक्टूबर 1936 को हुआ। आपने राज. वि. विद्यालय से बी.एस-सी. किया और फिर अपने व्यवसाय में लग गये। 24 वर्ष की आयु में दिनांक 28-11-60 को आपका विवाह श्रीमती प्रेमलता जी के साथ हुआ। आप दोनों दो पुत्र अतुल एवं अनुराग एवं एक पुत्री ममता से अलंकृत हैं। ज्येष्ठ पुत्र अतुलकुमार एम.काम एवं कम्पनी सेक्रेटरी कोर्स के विधार्थी हैं। आपके पिताजी स्व. श्री मूलचन्द जी मारोठ वाले समाज में प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्ति थे । आपकी माताजी श्रीमती चम्पा देवी का स्वर्गवास अगस्त 84 में हुआ था । पाटनी जी की समाज सेवा में रुचि रहती है तथा सामाजिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। जयपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स की कार्यकारिणी सदस्य हैं। राजस्थान खनिज उद्योग एवं व्यापार के कोषाध्यक्ष हैं तोर्थयात्राओं में रूचि रहती है। कितने ही तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। पता:- एस. बी. 4 महावीर उद्यान, जवाहरलाल नेहरू मार्ग, जयपुर Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/227 पं. कैलाशचन्द शास्त्री रावका रांवका गोत्रीय श्री पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री पूज्य पं.चैन सुखदास जी न्यायतीर्थ के छोटे भाई हैं। 30 अगस्त,1914 में आपका भादवा ग्राम में जन्म हुआ। आपके पूर्वज संवत् 1112 में सांगानेर आये। वहां से नरेणा मंढा-भैंसलाना और फिर अन्त में संवत् 1821 में भादवा आकर बस गये। आपके पिताबी श्री लाल की भावना मित्राने में कापसे । आपने जयपुर में आकर जैन दर्शन शास्त्री एवं मैटिक किया। कुछ समय तक रेलवे आफिस में काम किया और सन् 1950 से राजश्री पिक्चर्स जयपुर में मैनेजर एवं सैक्रेटरी पद पर कार्यरत सन् 1933 में 17 फरवरी को आपका श्रीमती सरोज के साथ विवाह हुआ । आपको सात पुत्र एवं एक पुत्री के पिता होने का गौरव प्राप्त है । सबसे बड़े पुत्र महेन्द्र ने रांची विश्वविद्यालय से बी.ई.किया तथा इंजीनियर प्रतिष्ठानों में जयपुर,पूना,बंगलोर में कार्य करने के पश्चात् वर्तमान में न्यूयार्क में इंजीनियर है । श्री महेन्द्र का बड़ा पुत्र संजय भी एम.ई. (USA) में कार्यरत है। छोटा पुत्र अजय भी USA में जवाहारात का व्यापार कर रहा है। डा.राजेन्द्र दूसरा पुत्र है । उदयपुर वि. विद्यालय से सन् 66 में एम.एस-सी.करने के पश्चात् कृषि विज्ञान में सन् 1977 में लोवन विश्वविद्यालय बेलजियम में पी-एच ड़ी.किया । उर्मिला के साथ विवाह हुआ। वह भी एम.ए. है । सज. सरका में कृषि अनुसंधान अधिकारी के पद पर कार्यरत है । आपके राजीव एवं अमित पुत्र है । राजीव ने बी.ई.किया है। डा. निर्मल दंत चिकित्सक है। वर्तमान में टॉप (न्यूयार्क स्टेट) में अपना डेन्टल क्लीनिक चला रहे हैं । सन् 1978 में शीला के साथ विवाह हुआ। पत्नी भी बी.एस-सी.,बी.एड. है । शेनिल एवं नीरव दो पुत्रों से अलंकृत हैं। सुरेन्द्र USA में जवाहरात व्यापार में कार्यरत हैं । इंदिरा पत्नी है । एक पुत्री तथा एक पुत्र है। ___ रवि जैन - एम.काम, एल.एल.बी, करने के पश्चात सन् 1985 से न्यूयार्क में एक फैक्टरी में कार्यरत है । सन् 1988 में आशिमा के साथ विवाह हुआ। प्रमोद जैन- जन्म 30-7.59 का है । राज. वि. वि.से एम. काम. करने के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका में वूल वर्थ स्टोर के व्यवस्यापक हैं । सन 1985 में संगोता के साथ विवाह हुआ । मनोज जन्म 25-7-65 का है । हायर सैकन्डरी एवं कम्यूटर में डिप्लोमा पास करने के पश्चात सन् 1985 में अमेरिका चले गये तथा अलबनी में कम्प्यूटर संस्थान में कार्यरत है। पुत्री लता- जन्म 25-19-52 हैं,बी.ए. है । सन् 1972 में अमेरिका रह रही हैं । उसके पति अनिल जी कनाडा में इंजीनियरिंग परीक्षा पास हैं तथा न्यूजर्सी में इंजीनियर पद पर हैं । एक पुत्र जय एवं एक पुत्री सीमा है । इस प्रकार शास्त्री जी का परापूरा परिवार समाज सेवा में भी आप रुचि रखते हैं । जयपुर चैम्बर्स आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज के सदस्य हैं । दि. जैन संस्कृत कालेज की महासमिति के सदस्य हैं। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228/ जैन समाज का बृहद् इतिहास श्रीमती सरोज श्री महेन्द्र रांयका पता- डी- 58 ज्योति मार्ग, बापू नगर, जयपुर- 4 श्री कैलाशचन्द्र सेठी पिता श्री प्यारेलाल जी सेठी, जन्म तिथि- 12 अक्टूबर, 1945, शिक्षा - बी.काम, एल.एल.बी. परिवार जन मार्गदर्शक व्यवसाय- सहायक रजिस्टार सुप्रीमकोर्ट, देहली। विवाह- 10 मई 1966 पत्नी का नाम श्रीमती उर्मीला देवी सुपुत्री वैद्य प्रभुदयाल जी कासलीवाल, जयपुर। I परिवार पुत्री -1 रेणु वी.ए., एल. एल. बी. इनका विवाह हो चुका है। श्री राजेन्द्र गर जी महाराज श्री निर्मल यंत्रका श्री कैलाशचन्द्र सेठी व श्रीमती उर्मीला देवी पुत्र-1 नीवन, इंजीनियर फाइनल में अध्ययनरत । वर्तमान में अमेरिका में उच्च अध्ययन के लिये गया हुआ है। रुचि - जरुरतमंद लोगों की कानूनी सहायता एवं समाज सुधार के कार्यों में रुचि । आपके पिताजी श्री प्यारेलाल जी जयपुर जैन समाज के सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते थे । पता : सी- 3/24 यमुना विहार, देहली-110053 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /229 श्री गणपतराय सरावगी (पांड्या) श्री गणपतराय जी सरावगी राय साहब श्री चांदमल जी पांड्या के ज्येष्ठ पुत्र है । आपका जन्म 31 जुलाई,सन् 1939 को हुआ था । मैट्रिक परीक्षा पास करके आपने व्यापार जगत में प्रवेश किया। आपका विवाह लाडनूं निवासी श्रीमान दीपचंन्द जी पहाड़िया की सुपुत्री नवरलदेवी के साथ संपन्न हुआ | श्री गणपतराय जी अपने पिता के समान गुणवान एवं कुशल सामाजिक कार्यकताओं में गिने जाते हैं । मुनियों के परमभक्त हैं तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं । आप विदेश यात्रा कर चुके हैं। आपके एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार है जो बी काम. है। उनकी पत्नी का नाम शशिकान्ता है। उनके दो पुत्र है। पुत्रियों के नाम बेला और अनिता है। सभी का विवाह हो चुका है। श्री रतनलाल जी आपके छोटे पाई हैं। इनका विवाह लाडनूं निवासी श्री नथमल जी सेठी की सुपुत्री श्रीमती सरिता के साथ संपन्न हुआ। आपने जयपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से पोस्ट ग्रेज्युएशन प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है ।श्री भागचन्द जी आपके दूसरे लघु भ्राता है । गण्यपतराय जी के पांच बहिने हैं जिन सबका समाज के प्रतिष्ठित घरानों में विवाह हो चुका है। पता: सी-106 सावित्री पथ, बापू नगर,जयपुर श्री गुलाबचन्द कासलीवाल (गुल्लोजी) आपका जन्म 16 फरवरी,1917 को जौहरी परिवार में स्व.श्री मणिराम जी कासलीवाल आगरे वाले के यहां जयपुर में हुआ। आपकी मां का नाम स्व.श्रीमती उमस्वदेवी है । आपने हाराज जयपुर के महाराजा स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् फर्म जैम पैलेस जबाहरात व पुरातत्व तस्वीरों व कालीन का संकलन निर्यात व विक्रय का कार्य किया। आपको मध्यकालीन कलात्मक वस्तुओं का विशेष ज्ञान है साथ-साथ पुस्तकों का संग्रह भी है । आपका विवाह गंगाबाई पाटनी से 7 मई,1937 में किशनगढ़ (मदनगंज) में हुआ। आपके पांच पुत्र ऋषभ, अशोक,अजित.अनिल व अलय तथा तीन पुत्रियां निर्मला, ब्रजबाला व गिरिबाला है। सभी विवाहित हैं। जनवरी 1981 में कार दुर्घटना में सिर में चोट आने के कारण विगत 10 वर्ष से अस्वस्थ वल रहे हैं। पता: मणि महल,ठोलिया सर्किल पांच बत्ती,जयपुर। डा. पं. गुलाबचन्द छाबड़ा जैनदर्शनाचार्य श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के सन् 1969 से 1981 तक प्राचार्य पद पर रहे डा. गुलाबचन्द जी जैन दर्शनाचार्य का जयपुर के विद्वत समाज में विशिष्ट स्थान है । अपने आचार्यत्व काल में आप राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के पांच वर्ष तक कन्वीनर रहे । राजस्थान जैन साहित्य परिषद परीक्षालय बोर्ड के वर्षों तक मंत्री रहे। डा. गुलाबचन्द जी ने संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में रचनायें निबद्ध की हैं। बाहुबलि निष्क्रमणम, पोहा दुखस्य कारणम् सत्यमेव जयते नानृतम, कीचक्र वर्णन, आदि Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230/ जैन समाज का वृहद् इतिहास रचनाओं के अतिरिक्त सुगन्ध दशमी मंडल विधान,लब्धि विधान,कर्मनिर्भरमंडल विधान आदि की भी रचना कर चुके हैं। विधि विधान कराने में आप विशेष दक्ष हैं । वेदी प्रतिष्ठा. सिद्ध चक्र विधान, नन्दीश्वर विधान, अढाई द्वीप विधान,तीन लोक विधान जैसे विधान करा चुके हैं। अपः। ) नवम्क: 1:"2: में हुआ भवनकार्य परीय पास की और सन् 1939 में रविषेणाचार्य का पद्मपुराण एक अध्ययन पर पी-एच.डी. प्राप्त की। सन् 1947 में आपका विवाह श्रीमती मुन्नीदेवी के साथ संपन्न हुआ। मुत्रीदेवी जी भिषगाचार्य है और वर्तमान में अजमेर राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में वैद्या हैं । आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । दोनों पुत्रियां आयुर्वेदाचार्य है तथा वे भी राजकीय आयुर्वेदिक अस्पतालों में कार्यरत हैं। पता- 580 गोधा भवन, गोधों का चौक, हल्दियों का रास्ता,जयपुर श्री गुलाबचन्द पांड्या सामाजिक सेवा में संलग्न श्री गुलाबचन्द जो पांड्या 60 को पार करने वाले हैं । आप के पिताजी श्री फूलचन्द जी पांड्या खोरा वाले का स्वर्गवास सन 1969 में हो गया। आप की माता जी परम मनि भक्त थी । मुनियों को आहार दिया करती थी। उनका स्वर्गवास करीब 80 वर्ष की आयु में हुआ। __पांड्या जी ने प्रारम्भिक शिक्षा समाप्ति के साथ ही जयपुर में सर्वप्रथम 1952 में ऊन की दुकान चौड़े रास्ता में प्रारम्भ की जो आज भी मैसर्स वर्धमान के नाम से कन होजरी का प्रतिष्ठान चला रहे हैं। सन् 1953 में आप श्रीमती प्रेमदेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । इसके पश्चात् आप दोनों को तीन पुत्र व चार पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य मिला है। आए के दोनों पुत्र श्री विजय कुमार व राजेन्द्र कुमार ग्रेजुएट हैं तथा दोनों का विवाह हो चुका है । जो कटला पुरोहित जी में सूत का व्यवसाय कर रहे हैं। तीसरा पुत्र श्री राकेश बी.काम.कर ऊन के व्यवसाय में संलग्न है तीनों पुत्रियां अनिता, सुनिता एवं ललिता का विवाह हो चुका है । ललिता देवी संगीत एवं नृत्य में निपुण है । महिला जामति संघ की सांस्कृतिक मंत्री रह चुकी हैं। ___ पांड्या जी सामाजिक सेवा में रुचि के कारण ही विभिन्न संस्थाओं में सेवा कर रहे हैं। खास तौर से दि. जैन. अतिशय क्षेत्र बैनाड़ के चौमुखी विकास में सन 1968 से पूर्ण योगदान दे रहे हैं । वर्तमान में इस क्षेत्र के महामंत्री हैं और पाश्र्वनाथ सेवा समिति चादपोल शमशान के मंत्री हैं तथा श्री दि.जैन मुनि संघप्रबन्ध समिनि पाश्र्वनाथ श्वन के संयुक्त मंत्री हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमदेवी भी धार्मिक कार्यों में रुचि रखती हैं इनका शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों को आहार देने में तत्पर रहती हैं विगत 10 वर्षों से रात्रि में जल का भी त्याग किया हुआ है। पता- 761 पांड्या भवन,मणिहारों का रास्ता,जयपुर फोन.66334 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /231 श्री गोपीचंद अजमेरा एडवोकेट गए के जो 4: 10. जन्मे श्री गोपीचंद अजमेरा विगत पांच दशकों से सामाजिक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्ति हैं | आपके पिताजी मुंशी लादूराम जी अजमेरा मुंशी फाजिल थे । उनका जन्म स्थान रामगढ़ तहसील का साईपराया म था। उन्हों ग्राम में स्कल बिल्डिंग बनवाकर उसका संचालन किया। श्री गोपी चन्द जी ने उसमें तीन कमरे और बनवाकर उसे मिडिल स्कूल में परिवर्तित करके राज्य सरकार को सौंप दिया। __ अजमेरा जी ने सन् 1926 में महाराजा कालेज से इन्टर किया और वकालत प्रारम्भ को । आपका सन् 1928 में श्रीमती मगना देवी के साथ विवाह हुआ । वर्तमान में श्रीमती मागना देवी की आयु 78 वर्ष की है। आप दोनों पांच पुत्रों एवं दो पुत्रियों से अलंकृत हैं । एक पुत्र कैलाशचन्द का सन् 1966 में एक दुर्घटना में देहान्त हो गया । डा.रमेश एम.एस.सी,एमई,पी-एच ड़ी. है तथा सन् 1963 से अमेरिका में रह रहे हैं। श्री हरिश्चन्द्र सेल्स टेक्स एन्ड इन्कम टेक्स के वकील हैं। तीसरे पुत्र श्री पदमचंद बी.एस-सी.कृषि एल.एल.बी. हैं तथा स्टेट बैंक आफ बीकानेर एंड जयपुर में कार्यरत हैं। श्री शिवरतन वर्तमान में अमेरिका में कम्प्यूटर में बी.एस.सी. नार्थकरोलिना विवि.से किया । उसका विवाह 30 जून 1991 में जैन पद्धति से राजरानी के साथ हुआ है जो स्वयं बी.एस.सी. हैं ।आपकी दो पुत्रियाँ हैं श्रीमती शांति बाई एवं श्रीमती कमलाबाई । दोनों का विवाह हो गया है। अजमेरा जी सन् 1945 से 50 तक जयपुर राज्य विधान सभा के सदस्य रहे । उस समय आपने अपना मकान डिसेंसरी के लिये दान स्वरूप दिया जो वर्तमान में अच्छी डिस्पेंसरी मानी जाती है । आप सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों में बराबर भाग लेते रहते हैं। महावीर कन्या विद्यालय के पहले सेक्रेट्री एवं वर्तमान में सदस्य हैं । दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय एवं दि. जैन औषधालय को कार्यकारिणी के सदस्य रह चुके हैं। बुंदेलखंड को छोड़कर सभी तीयों की वंदना कर चुके हैं। अजमेरा जी जयपुर के जाने माने समाज सेवी एवं एडवोकेट हैं। पता : चौकड़ी घाट दरवाजा, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, जयपुर-3 श्री गोपीचन्द पाटनी किराणा व्यवसाय में संलग्न श्री गोपीचन्द पाटनी का जन्म संवत् 1977 पौष सुदी 10 को हुआ । मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की और संवत् 1991 में ही फिर विवाह सूत्र में श्रीमती सूरजदेवी के साथ बंध गये । आप दोनों को तीन पुत्र सिद्धान्त कुमार, सुशील कुमार एवं प्रदीपकुमार तथा चार पुत्रियाँ कमलेश, वारा, गुणमाला एवं अनिता के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्री सुशील कुमार एवं प्रदीप कुमारे दोनों ही बी.ए., एल. एल. बी. हैं तथा सभी जयपुर में व्यवसाय करते हैं । आपकी एक पुत्री तारा एम.ए.पीएचड़ी. साहित्यरत्ल हैं। श्री पाटनी जी रामगंज मंडी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में ईशान इन्द्र तथा जयपुर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा (महावीर हाईस्कूल) में सन्तकुमार इन्द्र के पद से सुशोभित हुये। रामगंज मंडी के शांतिनाथ स्वामी के मंदिर में चन्द्रप्रभु चैत्यालय बनवाकर आदिनाथ एवं शांतिनाथ की प्रतिमायें विराजपान की । तीन बार तीर्थ वंदना कर चुके हैं । मुनियों को आहार देने में आगे रहते हैं। शुद्ध खानपान का नियम है। पता : एकान नं.2543 वो वालों का रास्ता, जयपुर। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232/ जैन समाज का वृहद् इतिहास डा. गोपीचन्द पाटनी डा. गोपीचन्द पाटनी शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र दोनों में समान ख्याति प्राप्त विद्वान है। आपका जन्म 4 अगस्त 1919 को हुआ। आपके पिताश्री मगनलाल जी एवं मातश्री पानादेवी दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपका विवाह 26 जनवरी 1936 को श्रीमती सुशीला देवी के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों को पांच पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपका ज्येष्ठ पुत्र श्री विजयकुमार सिंचाई विभाग में अभियंता है,दूसरे पुत्र सुरेन्द्र कुमार वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक है,नरेन्द्रकुमार रारा विद्युत मंडल में सहायक इंजीनियर है । देवेन्द्रकुमार एवं राजेन्द्र कुमार व्यवसाय क्षेत्र में कार्यरत हैं। आपकी एक मात्र पुत्री उषा का विवाह हो चुका है। पाटनी साहब की सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में समान रुचि है। मुनिभक्त हैं । साधुओं को आहार आदि देने में रुचि लेते हैं। प्रतिदिन दान करने का निभा र गति को पोजन नही श्रीमती सुशीला देवी धर्मपली डा.पाटनी प्रसिद्ध गणितज्ञ शिक्षाविद् माने जाते हैं । विद्यार्थी जीवन में सभी परीक्षायें डॉ. गोपीचन्द पाटनी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा बी.एस.सी.एवं एम.एस.सी.में प्रथम स्थान प्राप्त कर रजत पदक एवं स्वर्ण पदक प्राप्त किया। आप बैलेस्टिक्स (शास्त्र विज्ञान) में भारत वर्ष में डाक्टरेट प्राप्त करने वाले प्रथम गणित शास्त्री है । सन् 1942-43 में आपने नवलगढ़ कालेज में अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया और अन्त में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष गणित विभाग राज.वि.विद्यालय के पद से सेवानिवृत्त हुये। अपने सेवाकाल में कितने ही उच्च पदों पर कार्य किया । विश्वविद्यालय में चयन समिति,परीक्षा समिति एवं सीनेट आदि के सदस्य रहे । अब तक आपकी गणित से संबंधित 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा 100 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं । सन् 1971 में आपको अध्ययन एवं भाषण देने के लिये रूस जाने का अवसर मिला। अब तक गणित शास्त्र के 15 शिविर आयोजित किये। आपका गणित शास्त्र की कितनी ही संस्थाओं से गहरा संबंध रहा । आपका सामाजिक जीवन भी उतना ही स्वर्णिम है जितना विश्वविद्यालय का जीवन रहा है। श्री महावीर दि.जैन शिक्षा परिषद् के पूर्व मंत्री एवं अध्यक्ष रहे तथा वर्तमान में कार्य समिति के सदस्य हैं । सन्मति पुस्तकालय की कार्यकारिणी सदस्य, जैन समाज बापू नगर के पूर्व अध्यक्ष एवं वर्तमान में कार्य समिति के सदस्य दि.जैन अ. क्षेत्र श्री महावीरजी के पूर्व उपाध्यक्ष एवं वर्तमान में कार्य समिति के सदस्य हैं 1 हिंसा इन्टरनेशनल महासमिति के पूर्व संयोजक जैन विद्या संस्थान,जैन विद्या के संपादक,संरक्षक दि. जैन मंदिर जी बीस पंथी कोठी शिखर जी आदि 30 से भी अधिक संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं। आपका जीवन पूर्ण गतिशील रहा है और अपनी सेवायें आज भी उसी प्रकार दे रहे हैं। समाज को आपसे बहुत आशायें vie पता : एस.बी.10, जवाहरलाल नेहरू मार्ग,बापू नगर,जयपुर । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /233 श्री गोपीचन्द पोल्याका पांड्या पोल्याका बैंक से प्रसिद्ध श्री गोपीचन्द पोल्याका का जन्म 20 सितम्बर 1929 को हुआ। आपके पिताश्री नाथूलाल जी पोल्याकास्वाध्यायशील व्यक्ति हैं । आपने एम.ए.साहित्यरत्न किया । आपने महालेखाकार (लेखा परीक्षा)राजस्थान के कार्यालय में आडिटर, अनुभाग अधिकारी एवं सहायक लेखापरीक्षा अधिकारी के पद पर कार्य किया। आपका सन् 1947 में स्वर्गीय ईसरलालजी दीवान की सुपुत्री कमलादेवी के साथ विवाह हुआ । आपके दो पुत्र हैं जिनमें ज्येष्ठ पुत्र डा.सुभाष पांड्या ने पशुचिकित्सा में एम.बी.एस.सी.व पी-एचड़ी.(सर्जीकल)किया व नेशनल इन्शोरेन्स कम्पनी में सहायक क्षेत्रीय प्रबन्धक है। छोटे पुत्र श्री सुरेश चन्द बैंक सर्विस में अधिकारी हैं। दो पुत्रियां सुलेखा एवं सुनिता दोनों का विवाह हो चुका है। श्री पोल्याका जो बहुत ही सरल परिणापी एवं मिलनसार है । केन्द्रीय सेवा से निवर्तमान होने के पश्चात् वे सामाजिक एवं धार्मिक जीवन बिता रहे हैं । सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। पता : बी-18 सेठी कालोनी,आगरा रोड,जयपुर। श्री गोपीचंद लुहाडिया श्री गोपीचन्द लुहाडिया जयपुर नगर के प्रसिद्ध लुहाडिया परिवार के सदस्य हैं जो अपनी सूझबूझ ,समाज सेवा एवं व्यापारिक दक्षता के लिये प्रसिद्ध है । उनका जन्म 11 अक्टूबर 1930 को हुआ। उनके पिताजी श्री बोदीलाल जी का सन् 1949 में हो स्वर्गवास हो गया ।आपको 85 वर्षीय माताजी का आशीर्वाद अभी तक प्राप्त है। 24 नवम्बर 1944 को आप श्रीमती ललिता देवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । आपको 4 पुत्र-निर्मल कुमार,रमेश कुमार अरूण कुमार एवं विपिन कुमार एवं तीन पुत्रियां मधु, मंजु एवं मीनाली के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। श्री लुहाडिया जी जयपुर चैम्बर आफ कामर्स एंड इन्डस्ट्रीज के लगातार 15 वर्ष तक कार्यकारिणी सदस्य रहे तथा जयपुर क्लाथ मरेर एसोसियेशन के 10 वर्ष तक अध्यक्ष रहे । राजस्थान जैन सभा जयपुर के कोषाध्यक्ष एवं श्री दि.जैन औषधालय तथा दि.जैन महावीर बालिका विद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आप द्वारा जोबनेर के दि.जैन मंदिर जयपुर की नवनिर्मित वेदी में मूर्ति विराजमान की गयी है । लुहाडिया जी प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. श्री सुरज्ञानी चंद जी न्यायतीर्थ के छोटे भाई हैं । चुपचाप काम करने में विश्वास रखते है तथा सभी सामाजिक कार्यों में पूर्ण सहयोग देते रहते हैं। . पता: 2172 खेजडे का रास्ता,चांदपोल बाजार,जयपुर । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 234 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री चांदमल काला ज्योतिष शास्त्र विशेषतः अंक शास्त्र के प्रमुख पंडित श्री चांदमल काला की अब तक कितनी ही भविष्यवाणियां सही निकली हैं तथा पिछले 25-30 वर्षों से वे इसी कार्य में लगे हुये हैं। उनका जन्म 4 दिसम्बर सन् 1908 को पचार ग्राम में हुआ। बंबई जैन परीक्षालय से प्रथमा, मध्यमा पास की और प्रारंभ में खादी के विक्रेता के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया । उनका श्रीमती केशरदेवी से विवाह हुआ लेकिन एक पुत्र एवं दो पुत्रियों को जन्म देने के पश्चात् उनका वानं सुखवीर्थ के शिष्य हैं तथा अपनी युवावस्था में खण्डेलवाल जैन महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। उनका जीवन संघर्ष पूर्ण रहा है। काला जी 82 वर्ष की आयु पार करने के पश्चात् भी पूर्ण सक्रिय हैं तथा आज भी उनकी ज्योतिष विद्या से काफी व्यक्ति प्रभावित हैं। पता:- पं. शिवदीन जी का रास्ता, जैन मन्दिर के पास, जयपुर । श्री चंदालाल टोंग्या टोंग्या परिवार में 2 अक्टूबर 1915 को जन्में श्री चंदालालजी टोंग्या नगर के सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में विशिष्ट पहिचान रखते हैं। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल टोंग्या तो आपको बाल्य अवस्था में ही छोड़कर स्वर्गवासी बन गये थे। आपकी माता हीरादेवी भी करीब 50 वर्ष पहिले स्वर्गवासी बन गई थी। आपका विवाह श्री ज्ञानचंद सोनी की सुपुत्री कमला देवी के साथ संपन्न हुआ । आप दोनों पति पत्नी को चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। चार पुत्रों में श्री विजयकुमार पिछले 10 वर्षों से न्यूयार्क में क्विन्स आइलैण्ड में रहते हैं। श्री जैन के अनुसार न्यूयार्क स्टेट में करीब अढाई हजार परिवार के 5 हजार जैन रहते हैं। वहां महावीर जयन्ती आदि सभी पर्व मनाये जाते हैं। जयपुर के ही करीब 400 व्यक्ति वहां रहते हैं। दूसरे पुत्र श्री राजकुमार (38 वर्ष) अनिलकुमार (34 वर्ष) सुनील कुमार (31 वर्ष) सभी जवाहरात व्यवसाय में लगे हुये हैं। आपकी तीनों पुत्रियां रतनदेवी, कुमुद एवं राजकुमारी सभी का विवाह जयपुर के संपन्न परिवारों में हो चुका है। श्री विजय कुमार ग्या जयपुर में चौबीस महाराज का मंदिर आपके पूर्वज लाला अमीचंद टोंग्या द्वारा बनवाया गया था। श्री चन्दालाल जी टोंग्या सरल एवं शांत स्वभावी हैं। पूजापाठ में रुचि लेते हैं। संगीत में रस लेते हैं। संगीत पार्टियों में जाते हैं। आपने बिना किसी की मदद के स्वयं ने ही जवाहरात जैसे विषय में अद्भुत परीश्वण ज्ञान प्राप्त किया तथा पारस पत्थर को छोड़कर अब तक विभिन्न प्रकार के नब्बे पत्थरों का निरीक्षण कर चुके हैं। जयपुर के जौहरियों को जिस किसी पत्थर Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 235 के बारे में समझ में नहीं आता उसकी जानकारी प्राप्त करने के लिये आपके पास आते हैं। इसके अतिरिक्त जो भी बच्चा बच्ची आपके पास जवाहरात का कार्य सीखने आते हैं उनको आप ध्यान से सिखाते हैं। स्वयं आपके सिखाये हुये शिष्य ख्याति प्राप्त जौहरी बन गये हैं। आप जवाहरात ज्ञान के साथ उन्हें सच्चा धार्मिक एवं कर्मठ ज्ञान भी देते हैं। पता : टग्या भवन, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर डा. चांदमल जैन 1932 में जयपुर में जन्में डॉ. चान्दमल जैन वर्तमान में कोटा खुला विश्वविद्यालय में बरिष्ठ निदेशक के पद को सुशोभित कर रहे हैं । आपका जीवन पूर्ण संघर्षमय रहा। सन् 1953 मैं राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक के रूप में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश किया। सन् 1957-58 में आपका आरएएस में भी चयन हुआ किन्तु आपने शिक्षा जगत् में ही रहने का निश्चय किया । इसके पश्चात् उदयपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विभाग में प्राध्यापक, सहआचार्य रहे । सन् 1980 में आपका विश्वविद्यालय के पत्राचार महाविद्यालय के अधिष्ठाता पद पर चयन हुआ । कुछ वर्ष पश्चात् इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्व विद्यालय में क्षेत्रीय निदेशक पद पर चले गये। डॉ. जैन ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से योगदान दिया है। इस शिक्षा के सम्बंध में आपने भारत और विश्व के अनेक उच्च शिक्षा की संस्थाओं के सेमिनार, सम्मेलना में भाग भी लिया तथा भाषण भी दिये। भारत में आकाशवाणी व दूरदर्शन पर आप अनेक कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहे हैं। उच्च शिक्षा के दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में आप अग्रणी हैं। आपकी दस पुस्तकें तथा अनेक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. चांदमल जैन के तीन पुत्र हैं। उनमें वरिष्ठ पुत्र गोल्ड मैडल प्राप्त डा. राजीव जैन उदयपुर में वाणिज्य के प्राध्यापक हैं। मध्यम श्री संजीव जैन एम.एस.सी., एम.बी.ए. जैम डवैलपमेण्ट कारपोरेशन में उच्च अधिकारी पद पर कार्यरत हैं तथा कनिष्ठ पुत्र रजनीश जैन भारत सरकार के एक उपक्रम में कार्य कर रहे हैं। दोनों पुत्रियों का संभ्रात परिवारों में विवाह हो चुका है। डॉ. जैन सोवियत रूस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, सिंगापुर व यूरोपीय देशों की विदेश यात्रा कर चुके हैं। स्थायी पता : 394 लुहाडिया भवन, मणिहारों का रास्ता, जयपुर तथा 168 अशोक नगर, उदयपुर है । श्री चिरंजीलाल बज श्री चिरंजीलाल जी बज जयपुर जैन समाज के प्रतिष्ठित समाजसेवी माने जाते हैं। आपका जन्म श्रावण शुक्ला 6 संवत् 1971 को हुआ । इन्टर तक शिक्षा प्राप्त करके केन्द्रीय सेवा में चले गये और वहां से सन् 1974 में रिटायरमेन्ट होने के पश्चात् धार्मिक कार्यों में, तीर्थो की यात्राओं में मुनियों को सेवा में तथा सामाजिक समारोहों में भाग लेने में अपने आपको समर्पित कर रखा है। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 236/ जैन समाज का वृहद इतिहास सन् 1937 में आपका विवाह श्रीमती नन्ही देवी से हुआ था | विवाह के 13-14 वर्ष पश्चात् ही उनका निधन हो गया। वे अपने पीछे दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों को छोड़ गई । धार्मिक प्रवृत्ति के कारण आपने चूलगिरी क्षेत्र के निर्माण कार्य,सड़क,फर्श, आदि में पूर्ण सहयोग दिया है। आप उसके उपाध्यक्ष हैं। आपके बड़े पुत्र श्री कमलचन्द का जन्म 16 सितम्बर सन् 1942 को हुआ | आपने बी कॉम. तक शिक्षा प्राप्त की । सन् 1961 में आपका विवाह श्रीमती शकुन्तला से हो गया। आप दो पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं । आप जयपुर में ही जबाहरात का व्यवसाय करते हैं । स्वभाव से विनम्र तथा अपने पिताजी की तरह मुनियों के परम भक्त हैं । द्वितीय पुत्र का नाप चिन्तामणि है जो वास्तव में चिन्तामणि रत्न ही हैं। सन् 1971 में आपका विवाह श्रीमती आशा देवी के साथ हुआ। आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। चिन्तामणि जी रत्न व्यवसाय में बहुत ऊंचाइयों को रों को पार कर चके है । बम्बई में व्यवसाय करते हैं तच्या व्यवसाय निमित्त विदेश यात्रा करते रहते हैं। विचारों से अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। सभी सामाजिक संस्थाओं को सहयोग देते रहते है । जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान जयपुर के परम संरक्षक हैं । मुनि भक्त हैं । जयपुर में आचार्य बिमलसागर जी महाराज का चातुर्मास कराने में आपने सबसे अधिक सहयोग दिया । आप आचार्य श्री के परम भक्त है । आपका पूरा परिवार मुनिसंघों के प्रतिवर्ष दर्शन करता है । 'सोने का पींजरा' पुस्तक का प्रकाशन करा चुके हैं। परिवार जन TR श्री चिंतामणी मज प्रीमती आशा देवी धर्मपत्नी श्री चिंतामणी अज श्री कमल कुमार बज श्रीमती शकुन्सला धर्मपत्नी श्री कमल कुमार बज पता: उन 42 जवाहर नगर,जयपुर। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 237 श्री जयकुमार जैन छाबड़ा जयपुर नगर के सामाजिक जीवन में श्री जयकुमार जी छाबड़ा का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । आपका जन्म 21 जुलाई, 1921 को हुआ। आपके पिताजी श्री लछमनलाल जो अपने जमाने के जाने माने व्यक्ति थे। जागीरदार थे। आपकी माताजी का नाम श्रीमती गेंदीबाई था। बी.ए. पास करने के पश्चात् सन् 1942 में आपने राजकीय सेवा में प्रवेश किया तथा तहसीलदार, विकास अधिकारी, उपखंड जिलाधिकारी, विभागीय जांच अधिकारी, उपविकास आयुक्त, उपनिदेशक खादी ग्रामो कमीशन राज, जयपुर जैसे उच्च पदों पर रहने के पश्चात सन् 1976 में ससम्मान सेवानिवृत्त हुये । उपखंड जिलाधिकारी हिण्डोन रहते हुये आपने दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीर जी के वार्षिक मेले में दो बार भगवान महावीर की रथयात्रा में नाजिम (एसडीएम) होने के कारण सारथी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया था। सेवा काल में ही आपने एल. एल. बी. किया है। सामाजिक क्षेत्र में आप 21 से भी अधिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं और उनके विकास में अनवरत कार्य करते रहते हैं। राजस्थान मामोदय संस्थान सांगानेर एवं बाल शिक्षा मंदिर जयपुर के सचिव रह चुके हैं। महावीर क्लब जयपुर के संस्थापक सदस्यों में से हैं। राज. पब्लिक ट्रस्ट बोर्ड जयपुर में दि. जैन समाज का प्रतिनिधित्व किया। महावीर इन्टरनेशनल, श्री दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीर जी, पद्मपुरा, हस्तिनापुर, दि. जैन नशियां, दीवान उदयलाल जी, दिग जैन मंदिर महासंघ, दिग, जैन मंदिर ढल जी एवं संघी जी की वर्षों से कार्यकारिणी सदस्य हैं। अ. भा. दि. जैन महासभा तीर्थ क्षेत्र कमेटी राज के सचिव, दि.जैन अ. क्षेत्र चूलगिरी जयपुर के मंत्री रहने के पश्चात् उसकी कार्यकारिणी के सदस्य है। अ. विश्व जैन मिशन जयपुर केन्द्र के सदस्य हैं। इनके अतिरिक्त आप और भी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि आप होमियोपैथिक रजि. डाक्टर हैं। श्रीपती माणक देवी धर्मपत्नी श्री जयकुमार छाबड़ा छाबड़ा जी मुनि भक्त हैं । आचार्य देशभूषण श्री विद्यानंद जी, बिमल सागर जी महाराज का आपको पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त था। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती माणकदेवी विद्या विनोदनी हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता जयपुर नगर में प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने में अग्रणी रही हैं। आप दो पुत्र श्री जितेन्द्र कुमार एवं जिनेन्द्र कुमार एवं दो पुत्रियों श्रीमती कुसुम देवी एवं शशिकला जैन क्रमशः बी.ए. व एम.एस.सी. से सुशोभित हैं। आपकी एक पुत्ररधू श्रीमती रेखा जैन तथा दूसरी कुमुद जैन बी.ए. हैं। दोनों पुत्र भी उच्च शिक्षित हैं। एक बैंक अधकारी हैं तथा दूसरे बोमा एजेन्ट है। पता : पं. शिवदीन जी का रास्ता, किशनपोल बाजार, जयपुर-3 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238/ जैन समाज का वृहद् इतिहास रायपुत्र एवY श्री जवाहिर लाल जैन देश सेवा एवं खादी प्रचार में समर्पित श्री जवाहर लाल जी जैन जयपुर के स्वतंत्रता सेनानियों में प्रमुख स्थान रखते हैं 19 दिसम्बर 1909 को आपका जयपुर में जन्म हुआ ! आपके पिताजी श्री जीवनलाल जी बड़जात्या का निधन सन् 1936 में हुआ तथा माताजी का साया सन् 1944 में उठ गया। आपने सन् 1932 में एम.ए(इतिहास) में किया,विशारद की परीक्षा पास की और फिर सन् 1943 में आपने पुन: राजनीतिशास्त्र में एम.ए. किया । आपका प्रथम विवाह 1926 में तथा दूसरा विवाह 1931 में श्रीमती कस्तूरबाई के साथ हुआ। आपको पांच पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके सभी पुत्र उच्च शिक्षित हैं। सबसे बड़े पुत्र शांति विजय जैन एम.एस.सी. हैं तथा कृषि विभाग में संयुक्त निदेशक हैं। दूसरे पुत्र कांतिकुमार औषध निर्माता एवं विक्रेता हैं। श्री सुशील कुमार ब्यावर माइन्स में इंजीनियर हैं । चौथा पुत्र सुरेश कुमार जयपुर मेटल्स में कार्यरत है तथा पांचवें पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार मैकेनिकल इंजीनियर है । सभी के विवाह हो चुके हैं । जैन साहब ने सर्वप्रथम जयपुर एलबम का श्री केशरलाल जी अजमेरा के साथ संपादन किया। जयपुर स्टेट के संबंध में यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसका सभी ओर से हार्दिक स्वागत हुआ । आपके द्वारा अब तक 200 से भी अधिक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमें सर्वोदय अर्थव्यवस्था,खादी विचार,कुमारप्पा सुन्दर मानव सुन्दर समाज आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । जयपुर की प्रसिद्ध दैनिक राज पत्रिका में स्थायी स्तंभ के लेखक हैं। आप सर्वोदयी हैं | जयप्रकाशनारायण के साथ राजस्थान एवं बिहार में संपूर्ण क्रांति का कार्य किया । राष्ट्र संत विनोबा जी के साथ भूदान एवं ग्रामदान आंदोलनों में समर्पित रहे । जवाहिरलालजी ने प्रारंभ में अध्यापक के रूप में जीवन प्रारंभ किया। बाद में पोद्दार कोलेज में प्राध्यापक एवं उपाचार्य रहे । आप लोकवाणी दैनिक पत्र के सन् 19440 से 52 तक संपादक रहे । सन् 1954-59 तक खादी ग्रामोद्योग विद्यालय स्योदासपुरा में प्राचार्य रहे । राज.हरिजन सेवक संघ में उपाध्यक्ष रहने के पश्चात् वर्तमान में कुमारप्पा शोध संस्थान के 68 से डाइरेक्टर के रूप में कार्यरत हैं। आपका राजनैतिक जीवन भी रहा। जयपुर राज्य प्रजा मंडल एवं राज प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सक्रिय सदस्य रहे । इमर्जेन्सी के समय में सत्याग्रह करके छ: महीने की जेल गये । शराब बंदी आंदोलन में भी जेल जाकर आये। आप अब तक 2 बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। पहली विदेश यात्रा 1978 में पश्चिमी यूरोप में डेनमार्क तथा दूसरी 1680 में यूरोप, अमेरिका, जापान, थाइलैण्ड, हांगकांग गये थे। आपको योग, ध्यान धारणा की ओर विशेष रुचि है। आप सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। आपके हृदय में समाज सेवा एवं राष्ट्र सेवा दोनों के लिये समान स्थान है। पता: ए 21 जीवन ज्योति, बजाज नगर, जयपुर । श्री जीवनलाल बगडा नगर के प्रसिद्ध बगडा परिवार में दि.2 नवम्बर 1916 को जन्मे श्री जीवनलाल जी की गणना जयपुर के प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय समाजसेवियों में की जाती है। उनके पिताजी श्रीगंगालाल जो बगडा भी समाजम प्रसिद्ध थे जिनका स्वर्गवास 12 में ही हो गया था। श्री गंगालाल जी अर्जुनलाल जी सेठी के प्रमुख शिप्यों में थे तथा उनको पर्याप्त सहयोग देते थे। आप स्वयं भी अपने पिताजी के साथ उनके संपर्क में आये थे तथा आपको उनको स्पष्टवादिता एवं समाज सेवा का व्रत उनसे प्राप्त हुआ। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /239 आपकी माताजी का देहान्त 1976 में हुआ। बगड़ा जी का विवाह 1934 में गैंदीलाल जी छाबडा की पुत्री केचनदेवी के साथ हुआ जिनसे आपको पांच पुत्र एवं एक पुत्री की सुखद प्राप्ति हुई। सभी चारों पुत्र रलेश, अनिलकुमार, रविकुमार एवं आनन्द कुमार ज्वैलरी एवं वस्त्र व्यवसाय में संलग्न हैं सथा सबसे छोटा पुत्र सुन्दर अध्ययन कर रहा है । आपकी पुत्री बीना ने बी.ए. किया है तथा श्री ताराचन्द जी पाटनी के पुत्र रवीन्द्र कुमार से विवाह हो चुका है । श्री बगष्ठा जी ने बी.ए. तक अध्ययन किया और फिर मिलिट्री डिपार्टमेन्ट आर्मी मुख्यालय में 8 वर्ष तक कार्य किया। उसके पश्चात् वस्त्र व्यवसाय करने लगे। फिर फाइनेंस का कार्य किया लेकिन वर्तमान में सामाजिक कार्यों में ही समर्पित हैं। चौड़ा रास्ता में स्थित दि. जैन मंदिर यशोदानन्द जी आपके पूर्वजों द्वारा निर्मित है। इस मंदिर के आप 20 वर्ष तक अध्यक्ष एवं मंत्री रह चुके हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार का सभी कार्य आपकी देखरेख में सम्पत्र हुआ है । भगवान बाहुबली सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह सन् 1981 में आपने पूरे परिवार के साथ भाग लिया था । यति यशोदानन्द जी के मंदिर में आयोजित वेदी प्रतिष्ठा एवं कलशारोहण में आपका सक्रिय योगदान रहा। पता : 1808 बगडा भवन,चौडा रास्ता,जयपुर। श्री जिनेन्द्र कुमार सेठी श्री सेठी युवा चार्टर्ड अकाउंटेन्ट है। 15 जनवरी,62 को जन्मे श्री जिनेन्द्र कुमार ने 24 वर्ष की आयु में ही सी.ए., आई.सी डब्ल्यू, सी.एस.एम.की कठिन परीक्षायें पास कर ली । स्वभाव से अत्यधिक सरल एवं विनयी है। अपने पिता श्री बाबूलाल जी सेठी के पूरे गुण इनमें देखे जा सकते हैं। आपका विवाह हो चुका है । पत्नी श्रीमती आभा डाक्टर एम.बी.बी.एस. है । अमर जैन अस्पताल जयपुर में कार्यरत है। श्री जिनेन्द्र लेखक डॉ.कासलीवाल के नाती हैं। समाज को आप दोनों पति-पत्नी से विशेष आशायें हैं। पता :- 937 सेठी भवन चौरूकों का रास्ता,जयपुर। श्री ज्ञानचन्द चौधरी R LOS जैन संस्कृति के प्रमुख केन्द्र मोजमाबाद (जयपुर) । माम में 2 मार्च सन् 1931 को जन्मे श्री ज्ञानचन्द चौधरी ने जयपुर आकर एम.कॉम.किया तथा केन्द्रीय सेवा में आडीटर बनकर कार्य करने लगे। वहां से आप पर्यवेक्षक के पद से 31-3-889 को रिटायर हो गये। आपके पिताजी श्री कस्तूरचन्द जी,माताजी श्रीमती मोती बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो , चुका है। आपका विवाह अजना जी के साथ दिसम्बर 1952 में संपन्न हुआ। आप दोनों को एक मात्र पुत्री के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पुत्री मंजू का विवाह हो चुका है। श्रीमती अंजना धर्मपत्नी श्री ज्ञानचन्द चौधरी Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री ज्ञानचन्द जी शांतिप्रिय जीवन व्यतीत करने में विश्वास करते हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। पता: 2124, खेबडे का रास्ता,चांदपोल बाजार,जयपुर । श्री ज्ञानचन्द झांझरी सन् 1941 में जन्में श्री ज्ञानचन्द झाझरी जयपुर जैन समाज के उदीयमान समाजसेवी हैं। समाज सेवा की लगन उनको अपने पिता श्री मालचन्द जी झांझरी से विरासत में मिली। लेकिन उसमें आप वृद्धि कर रहे हैं। स्व. श्री मालचन्द जी झांझरी जयपुर की प्रायः सभी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे तथा वे अपने समय के ख्याति प्राप्त समाजसेवी थे। श्री ज्ञानचन्द झांझरी हायर सैकण्डरी के पश्चात् लोह व्यवसाय में पिता श्री का साथ देने लगे। 30 जून 19461 को आपका विवाह श्रीमती कमलादेवी के साथ संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्रियां एवं एक पुत्र के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्री झांझरी जयपुर की अधिकांश संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। पार्श्वनाथ युवा मंडल बापू नगर के 7.8 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं । राजस्थान जैन सभा, महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल,पदमपुरा क्षेत्र कमेटो,बापू नगर जैन समाज, जयपुर चैम्बर आफ कामर्स जैसी संस्थाओं की कार्यकारिणी सदस्य हैं तथा क्रियाशील रहकर सभी संस्थाओं में काम करते हैं। अभी आप अमेरिका में आयोजित पंच कल्याणक प्रतिष्ठा में सम्मिलित हुये हैं। आपने भागलपुर, चम्पापुर नाथ नगर में कमरे का निर्माण, राणोली में जैन भवन में एक कमरे का निर्माण, पदमपुरा में कमरे का निर्माण,बापू नगर चैत्यालय में नवीन वेदी का निर्माण करवाकर अपनी धार्मिक प्रवृत्ति का परिचय दिया है । पता : बी 101, वर्धमान यूनिवर्सिटी मार्ग बापूनगर,जयपुर। श्री टीकमचन्द जैन पहाड़िया कोटा नगर में ] अप्रेल 1923 को जन्में श्री टीकमचन्द जैन का विद्यार्थी जीवन स्वतंत्रता आंदोलन प्रिय रहा है । सन् 1942 में पढ़ाई लिखाई छोड़कर स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े और जेल की हवा खाई। इसके पश्चात एम.ए.(अर्थशास्त्र) एवं राजनीतिशास्त्र) एवं एल एल बी.करने के पश्चात् राजकीय सेवा में प्रवेश किया और अन्त में राजकीय अधिकारी के पद से निवृत्त होकर वर्तमान में श्रम सलाहकार के पद पर कार्यरत है। श्री जैन के श्रम समस्याओं पर अनेक लेख प्रकाशित हुये हैं तथा कितनी ही बार अन्तर्राष्ट्रीय लंदन एवं यूरोप,थाइलैण्ड, जापान, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1959, 1983, 1984, 1985 एवं 1987 में राजकीय उपक्रमों एवं सेमिनारों में भाग लेने के लिये जा चुके हैं । लेबर कानून के आप विशेपज्ञ माने जाते हैं। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आपको राजस्थान सरकार द्वारा 13 अप्रैल को ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया जा चुका पता : 1237, अजबघर का रास्ता,किशनपोल,जयपुर। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ताराचंद अजमेरा जयपुर में धर्मप्रेमी श्री लालजीमल जी अजमेरा के यहां दिनांक 2 अक्टूबर 1928 को जन्में श्री ताराचंद जी अजमेरा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। 15 वर्ष की अल्पायु में सन् 1943 में आपने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। आपके पिता राज्य कर्मचारी थे जिनका सन् 1947 में स्वर्गवास हो गया। आपकी माताजी कस्तूरदेवी जी धार्मिक विचारों की महिला थी। श्री ताराचंद जी पांच भाईयों में चौथी संतान हैं। आपकी पांच बहिनें भी हैं। आपका विवाह पिताजी के देहावसान के एक वर्ष पचमी चम्पादेवी के साथ हुआ. मेजर धार्मिक प्रवृत्ति की गृह कार्य में दक्ष महिला है। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। आपके दोनों पुत्र श्री सुभाष चन्द्र व श्री अशोककुमार स्नातक स्तर तक शिक्षा ग्रहण कर अपने पैतृक व्यवसाय में रत हैं । अजमेरा जी का व्यक्तित्व राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत है। आपका प्रारंभ से हो स्वतंत्रता सेनानियों से परिचय रहा । आपने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भाग लिया। सन् 1943 में जब नेहरू जी एवं इंदिरा जी जयपुर आये और यहां लक्ष्मीनारायण जी के बाग में ठहरे तब आपका उनके आतिथ्य सत्कार में प्रमुख योगदान रहा। राजस्थान के अग्रज राष्ट्रीय नेता श्री जमनालाल बजाज, श्री हीरालाल शास्त्री एवं श्रीमती रतनशास्त्री के भी आप संपर्क में रहे। आप जयपुर चेम्बर आफ कॉमर्स एंड इन्डस्ट्रीज, सर्राफा ट्रेडर्स कमेटी जयपुर, राज सर्राफा संघ, जौहरी बाजार के सचिव हैं, व्यापार मंडल, देवस्थान किरायादार संघ की कार्यकारिणी के सदस्य एवं जयपुर स्टाक एक्सचेंज लि. के सम्माननीय सदस्य है । श्री अजमेरा जी कला प्रेमी हैं। आप प्राचीन कलाकृतियों की परख में दक्ष हैं। आप वर्तमान में चांदी सोना व जवाहरात के व्यवसाय में रत हैं। आपका व्यावसायिक प्रतिष्ठान अजमेरा जैन ज्वैलर्स के नाम से जौहरी बाजार में प्रतिष्ठित संस्थान है। आपने समस्त देशों के लिये कोरियर सेवा भी प्रारंभ कर रखी है। आप धार्मिक प्रवृत्ति के सद्द्महस्थ और श्रावक है। आपने सन् 1981 में फाल्गुन की अष्टाहिका में श्री चौबीस महाराज के मंदिर में सिद्धचक्र विधान का सफलता पूर्वक आयोजन करवाया । आप प्रतिदिन पूजा पाठ करते है तथा मुनियों के परम भक्त हैं। जरूरतमंद की तनमन धन से सेवा करते हैं। पता - अजमेरा भवन न. 1 मोतीसिंह भोमिया का रास्ता, चौथा चौराहा, जौहरी बाजार, जयपुर 302003 प्रतिष्ठान अजमेरा जैन ज्वैलर्स, 210 जौहरी बाजार, जयपुर नगर का जैन समाज / 241 - जयपुर डॉ. ताराचन्द गंगवाल चिकित्सा जगत् में जयपुर में डा. ताराचन्द गंगवाल का नाम सर्वोपरि है। अगस्त 3 सन् 1903 को नीम का थाना में जन्में डा. गंगवाल वर्तमान में सबसे वयोवृद्ध डाक्टर हैं जिनकी मेडिकल उपाधियों एवं सेवाओं की एक लम्बी तालिका है। सन् 1928 में आपने मेडिकल जीवन प्रारंभ किया और इस दिशा में सभी ऊंचाईयों को पार करते हुये अभूतपूर्व ख्याति एवं प्रसिद्धि प्राप्त डॉ. ताराचन्द जी गंगवाल धर्मपत्नी के मान Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242/ जैन समाज का वृहद इतिहास की। आपको प्रेरणा से एस.एम.एस.के सामने एक विशाल धर्मशाला का निर्माण हुआ जिसमें रोगियों के सगे संबंधी रह सकते हैं । इसी के पास एक संतोकबा दुर्लभ जी निदान केन्द्र की स्थापना की जिसमें आपने 8 वर्ष तक निशुल्क सेवायें प्रदान की। डा.गंगवाल के पिताश्री हजारीलाल की मृत्यु सन् 1950 में, माता गुलाब बाई का निधन सन् 1952 में हुआ। आपका विवाह निहालकरण सेठी की सबसे बड़ी पुत्री सुलोचना के साथ सन् 1930 में सम्पन्न हुआ । श्रीमती सुलोचना देवी जयपुर राज्य विधान सभा की सदस्य रह चुकी हैं । डा.पी.के.सेठी आपके भाई हैं । आपको एक पुत्र एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । पुत्र डा.के.सी.गंगवाल भी चिकित्सा जगत में ख्याति प्राप्त चिकित्सक हैं । आपकी एक मात्र पुत्री शारदा दर्शन शास्त्र में पीएचड़ी.हैं तथा व्याख्याता रहने के पश्चात् वर्तमान में इन्स्टीट्यूट आफ इवलपमेन्ट स्टेडीज में प्रोफेसर हैं। डा. गंगवाल दयालु एवं धार्मिक प्रवृत्ति वाले चिकित्सक हैं । नीम का थाना में आपके पितामह उदयलाल जी ने मंदिर का निर्माण करवाया तथा उसमें थोई से मूर्ति लाकर विराजमान की । आप सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आप आजकल लेखन कार्य में लगे हुये हैं तथा भारतीय शाकाहार, अनित्य भावना, डायबीटीज रोग निदान,श्रीमद भागवद् गीता जैसी दस से भी अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। पता : डा. गंगवाल,एस. एम. एस.के सामने जयपुर । श्री ताराचन्द गोधा (बेला वाले) जयपुर के बेलावाले उपनाम से प्रसिद्ध परिवार में श्री ताराचन्द गोधाका जन्म 5 फरवरी 1926 को हुआ । सन् 1948 में आपने बी.ए.किया और फिर मशीनरी का व्यवसाय करने लगे। आपके पिताजी श्री वृद्धिचन्द जी का समाज में सम्माननीय स्थान था । वे खादी आन्दोलन के : पूर्ण समर्थक थे तथा चर्खा कातने का खूब काम करते थे। जयपुर में बधीचन्द जी का पन्दिर आपके पूर्वज श्री मन्नालाल जी ने निर्माण करवाया था। श्री ताराचन्द जी के तीन पुत्र नरेन्द्र कुमार,सुरेन्द्रकुमार एवं राजेन्द्र कुमार हैं। तीनों ही अलग अलग व्यवसाय में लगे हुये हैं। आपकी एक मात्र पुत्री ऊया एम.ए. हैं । आप सन् 1987 में बैंकाक थाईलैण्ड, हांगकांग, सिंगापुर आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं । ताराचन्द जी शान्तिप्रिय एवं सरल स्वभाव वाले हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में रुचि रखते हैं तथा मुनि भात हैं । बधीचन्द जी मंदिर के प्रमुख कार्यकर्ता हैं । वर्तमान में राज. में बी.ई. पम्प के अधिकृत विक्रेता है । इलैक्ट्रिक मोटर्स के वपम सेटस् के स्टाकिस्ट हैं तथा मनी लैंडिग का भी कार्य करते हैं। पता : 2532,घी वालों का रास्ता,बधीचन्द जी के मन्दिर के पास,जौहरी बाजार,जयपुर 302003 फोन - 5615965 श्री ताराचन्द छाबड़ा जौहरी छाबड़ा परिवार में दि.22 नवम्बर सन् 1922 को जन्मे श्री ताराचन्द छाबड़ा जयपुर के वर्तमान जैन समाज में प्रसिद्ध जौहरी माने जाते हैं। आपके पिता जी श्री सेठ गैंदीलाल जी छाबड़ा का स्वर्गवास 17 जून 1972 को हुआ । इसके पश्चात् माताजी सूरजदेवी 10 अगस्त 81 Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /243 को चल बसी । आपने वी कॉम. पास किया और बैंक सेवा में चले गये। सर्विस के मध्य एसोसियेटेड इंडियन इन्स्टीट्यूशन बैंकर्स की बैंक परीक्षा पास की जिसकी परीक्षा इम्पीरियल बैंक आफ इंडिया के माध्यम से होती थी तथा लंदन में उसका है। आपिया 12 मई 1940 को अका दिवानादेषों के बाद पत्र हुआ। आपकी एक मात्र पुत्री हंसा रानी का विवाह श्री पी.सी.बाकलीवाल एम.एस.सी. जियोलोजिस्ट के साथ हो चुका है। श्री छाबड़ा जी जयपुर में महावीर हाई स्कूल में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र पद से सुशोभित हुये । आपके पिताजी साहब ने चौबीस महाराज के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर तीन वेदियों का भी जीणोद्धार करवाया । श्री ताराचन्द जी दीवान उदयलाल जी की नशियां के ट्रस्टी हैं । दि.जैन बडा मंदिर तेरहपंथियान का एक बार चुनाव जीत कर मंत्री बन चुके हैं। ज्वैलर्स एसोसियेशन जयपुर की कार्यकारिणी सदस्य रहे। - आप सन् 1937 से 42 तक जयपुर राज्य प्रजामंडल के सक्रिय सदस्य रहे तथा इस अवसर पर जमनालाल जी बजाज जैसे नेताओं के संपर्क में आये। आप राजस्थान बैंक एम्पलायज यूनियन के सन् 1945 से 52 तक फाउन्डर मैम्बर एवं एक्जीक्यूटिव जनरल सेक्रेटरी रहे । छाबड़ाजी सन् 1961 से जवाहरात का कार्य करने लगे। इसके पूर्व वर्ष 1952 से 60 तक ट्रांसपोर्ट का कार्य किया। आल राज.बस ओवरसीज एसोसियेशन के सेक्रेटरी रहे । सन् 1958 में आप इंडिया रोड ट्रांसपोर्ट कांफ्रेंस बंगलौर में राजस्थान ट्रांसपोर्ट के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । वहां पर एक्जीक्यूटिव बोडी के सदस्य चुने गये । वर्तमान में आप माणक,नीला,पत्रा के प्रमुख व्यवसायी हैं। पता :जयपुर इन्टरनेशनल ज्वैलर्स कारपोरेशन,घी वालों का रास्ता जयपुर -3 फोन- कार्यालय 563887 केबल स्टार निवास 78381 निवास : विक्रम मेन्सन डी 143 ए सावित्री पथ,बापू नगर, जयपुर 302015 डॉ. ताराचंद पाटनी पाटनी जी होमियोपैथ डाक्टर हैं और अपनी दवाओं से मरीजों की निःशुल्क सेवा करते रहते हैं । आपका जन्म 8 दिसम्बर सन् 1940 को हुआ। एम.ए. एवं होम्योविशारद करने के पश्चात् केन्द्रीय सेवा में कार्य करने लगे। वर्तमान में आप देबुलेशन आफीसर के पद पर जन गणना निदेशालय राज. जयपुर में कार्य कर रहे हैं। आपका विवाह 16 फरवरी सन् 1963 को श्रीमती शांतिदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र तरूण पाटनी एवं अरुण पाटनी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका ज्येष्ठ पुत्र एम.बी.बी.एस.कर रहा है तथा द्वितीय पुत्र सी.ए. में अध्ययनरत है । आपकी सेवाओं को देखते हुये सन् 1971 में आपको ताम्र मैडल सेन्सस मैडल एवं सन् 1981 में रजत मेडल सेन्सस मेडल भारत सरकार की ओर से दिया गया । पाटनी जो सीधे सादे एवं सरल परिणामी व्यक्ति हैं । आफ्ने गिरनार एवं बुंदेलखंड सहित सभी दक्षिण भारत के तीर्थों की वंदना कर ली है। मुनिभक्त हैं। आपकी पली शांतिदेवी भी धार्मिक कार्यों में रुचि रखती हैं। पता : ए-1 शांति निकेतन,वर्धमान जनरल स्टोर के सामने, किसान मार्ग,जयपुर । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 244 / जैन समाज का वृहद् इतिहास डा. ताराचन्द जैन बख्शी जयपुर के प्रसिद्ध बख्शी खानदान में दि. 10 नवम्बर 1920 को जन्मे श्री ताराचन्द शी समाज के प्रमुख समाज सेवियों में गिने जाते हैं। आपके पिता श्री केशरलाल जी बख्शी श्री समाज के माने हुये नेता थे। प्रारंभ से ही आपकी सामाजिक कार्यों में रुचि रही जैन नवयुवक मंडल एवं श्री महावीर क्लब के संस्थापक सदस्य एवं सन् 1935 से 1942 तक मंत्री रहे । सन् 1943 में प्रथम श्रेणी में एल.एल.बी. पास किया और बार कौसिंल के संयुक्त मंत्री बने फिर जयपुर नगर पालिका के दो बार कौंसिलर चुने गये तब आपकी आयु केवल मात्र 23 वर्ष थी और आप सबसे कम उम्र के कौंसिलर थे। सन् 1945 में आरजे. एस. परीक्षा में सर्वोत्कृष्ट स्थान प्राप्त होने से आप मुंसिफ मजिस्ट्रेट नियुक्त हुये और एस.डी.ओ., डिप्टी कलेक्टर व जिलाधीश के पदों पर कार्य किया। आपकी सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं स्वास्थ्य संबंधी प्रवृत्तियों में बराबर रुचि बनी रही । श्रीमती पुत्री देवी पत्नी डा. ताराचन्द जैन बख्शी सन् 1940 में आपका श्रीमती मुत्री देवी जी के साथ विवाह हुआ। आपको दो पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपके एक पुत्र नरेन्द्र कुमार जी अमेरिका में रहते हैं दूसरे पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार डाक्टर हैं। आप सामाजिक क्षेत्र में वीर संघ के अध्यक्ष रहे। आपने अनेक पत्रों में सामाजिक एवं स्वास्थ्य संबंधी लेख लिखे हैं। आप "दीवाणी" पाक्षिक पत्रिका के सम्पादक रहे हैं। आप महावीर समाचार समिति के माध्यम से सभी जैन पत्रों में सामाजिक समाचार व लेख भेजते रहते हैं। आप रा. दि. जैन परिषद्, भारत जैन महामंडल (राज) श्री महावीर के 250 वें निर्वाणोत्सव समिति, राज जैन विद्वत परिषद् राज जैन गणना समिति, महावीर व्यायाम शाला के पदाधिकारी रहे हैं। भांखरोटा दि. जैन मंदिर कार्य समिति के अध्यक्ष हैं। श्री केशरलाल बख्शी सहायता क्रोष के मंत्री हैं एवं जैन संस्कृत कॉलेज के संयुक्त मंत्री रहे हैं। पं. चैनसुखदास जी स्मारक समिति एवं श्री जैन औषधालय की कार्य समिति तथा राज. जैन सभा, वरिष्ठ नागरिक परिषद् वीर सेवक मंडल, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति आदि अनेक संस्थाओं के सक्रिय सदस्य हैं। अ. विश्व जैन मिशन के प्र. मंत्री त्र बुलेटिन के प्र. सम्पादक, सेवा भारती के अध्यक्ष, अशोक वाटिका के मंत्री, राज जैन मिलन के महामंत्री हैं । पार्श्वनाथ सेवा समिति के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नागरिक परिषद् के स. मंत्री हैं। अनेक पत्रों के सम्पादक हैं। गजरथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समापन समारोह में आपकी धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष्य में आपको "समाज रत्न" पदवी से अलंकृत किया गया। पता :- बख्शी भवन, न्यू कालोनी, जयपुर। फोन 73758 Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /245 श्री ताराचंद बड़जात्या चौमूवाले रामसुख चुनीलाल फर्म के मालिक श्री ताराचंद बड़जात्या श्री गुलाबबन्द जी के पुत्र हैं जिनका 82 वर्ष की आयु में 3 जनवरी 84 को निधन हुआ था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात श्री ताराचन्द जी अपने पिताजी के साथ व्यवसाय में लग गये।16वें वर्ष में आपका श्रीमती इमरती देवी के साथ विवाह हो गया | आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अरुणकुमार मैट्रिक पास है एवं आपके साथ व्यवसाय रत है । दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी बहुत ही उदार हृदय एवं धर्मात्मा थे। शिखर जी में नदीमा दीप में प्रतिमा निमाजगान नी । जयपुर में चूलगिरी में प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। एस.एम.एस. के सामने नशियां के मानस्तंभ में चारों ओर प्रतिमायें विराजमान की थी । गुलाबचंद जी मुनियों को आहार देकर पुण्य लाभ लिया करते थे । श्री ताराचंद जी ने जयपुर के पार्श्वनाथ पवन के निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया तथा वर्तमान में उसकी कार्यकारिणी के सदस्य हैं। पता - रामसुख चुनीलाल, अनाज मंडी,चांदपोल बाजार,जयपुर। श्री ताराचन्द बड़जात्या श्री ताराचन्द बड़जात्या जयपुर में लाल हवेली वाले के नाम से प्रसिद्ध हैं । सामाजिक,धार्मिक एवं साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं। आपका जन्म 18 मई 1926 को हुआ था। आपके पिताजी श्री शंकरलाल जी का निधन सन् 1951 में हो गया था । माताजी श्रीमती झमको बाई का आशीर्वाद अभी तक प्राप्त हैं । सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती मैनादेवी के साथ हुआ। आपके दो पुत्र श्री विनोद कुमार एवं वीरेन्द्र कुमार है । दोनों बी.एस.सी. तथा विवाहित हैं । विनोदकुमार जी की पत्नी रेखा एम. ए. है तथा एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की जननी हैं । वीरेन्द्र कुमार की पत्नी श्रीमतो कामिनी भी एम.ए. हैं तथा 2 पुत्रियों से अलंकृत हैं । ताराचन्द जी के दो पुत्रियाँ आशा और अनिता हैं दोनों का विवाह हो चुका है। आप मुनि भक्त है । बापू नगर में आने वाले सभी मुनियों को आहार देकर पुण्यलाभ लेते हैं । धार्मिक एवं भर परिणामी हैं । सन् 1981 में भगवान बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह पर स्वर्ण कलश से अभिषेक किया था। अभी कुछ ही समय पूर्व आपकी धर्मपत्नी का अचानक स्वर्गवास हो जाने से आपके जीवन में एक रिक्तता आ गई। लेकिन आप पूर्ण सक्रिय रहते हैं । आचार्य श्री विद्यानन्द जी से विशेष प्रभावित हैं। श्री ताराचन्द जी की धर्मपली बड़ी धार्मिक प्रवृति की थी तथा उनकी प्रबल इच्छा थी कि उनको मृत्यु के पश्चात् उनके नाम की जमा पूंजी धार्मिक व जन हितैषी कार्यों में लगावें । उनको अन्तिम इच्छा को ध्यान में रखते हुये उनके नाम से श्रीमती मैना देवी जैन बड़जात्या स्मृनि ट्रस्ट" की स्थापना की गई जिसके अध्यक्ष व ट्रस्टी निम्न प्रकार से हैं 1. ताराचन्द जैन अध्यक्ष 2. विनोद कुमार जैन ट्रस्टी Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 246/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 3. जिनेन्द्र कुमार जैन 4. आशा जैन 5. अनिला जैन यह ट्रस्ट धार्मिक व जन हितैषी कार्यों के लिये व निर्धन छात्रों की शिक्षा के लिये यथाशक्ति सहायता प्रदान करने का प्रयल करता है। पता :- मैसर्स यूनाईटेड आटो स्टोर्स,मिर्जा इस्माईल रोड,जयपुर फोन 72149 2. सी 125 लाल बिल्डिंग,मोती मार्ग,बापू नगर,जयपुर फोन 635060 श्री ताराचन्द बाकलीवाल ___ 'गटल' उपनाम से प्रसिद्ध श्री ताराचन्द बाकलीवाल का जैन समाज में प्रतिष्ठित स्थान है। आपके पिताजी मधुरीलाल जी एवं माताजी श्रीमती भंवरबाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। कार्तिक सुदी 4 सं. 1987 को आपका जन्म हुआ तथा राजस्थान विश्वविद्यालय से आपने सन् 1953 में बी.कॉम.किया। इसके पूर्व ही आपका विवाह श्रीमती सुशीला देवी बाकलीवाल से हो गया था। जो एमए. साहित्यरत्न हैं। बाकलीवाल जी के तीन पुराग एक पुत्री है ! पसे बड़े परतीमा पार की कॉम एल.एल.बी. हैं । बैंक सर्विस में हैं । विवाहित हैं। दो बच्चों के पिता हैं । पत्नी मधु है वह भी बी.ए. है । दूसरे पुत्र सुधीर चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट हैं । नमदा बनाने की फैक्टरों के मालिक हैं । सन् 1980 में विवाह हुआ। पली रंजना बी.ए. है। एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं 1 तीसरे पुत्र सुनील एम.एस.सी.हैं तथा शेयर्स का कार्य करते हैं । सन् 1984 में आपका विवाह श्रीमती रेणु के साथ हुआ था। बाकलीवाल जी की एक मात्र पुत्री नीलू का विवाह हो चुका है। वह भी बी.ए. है। ताराचन्द जी उदार एवं शांत स्वभावी हैं। 8 जून 81 को आपकी ओर से कीर्ति नगर, गोपालपुरा के मंदिर में मूर्ति विराजमान की गई थी। जयपुर पंचकल्याणक में आप कुबेर पद से अलंकृत हुये थे। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला देवी बाकलीवाल का जयपुर जैन महिला समाज में प्रतिष्ठित स्थान है । सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेती हैं । निभीक महिला हैं । महिला जागृति संघ जयपुर की 15 वर्षों तक मंत्री रह चुकी हैं। भगवान महावीर 2500 वां परिनिर्वाण शताब्दी महोत्सव में आपको स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया था 1 संगोष्ठियों में एवं महिला सम्मेलनों में भाग लेती रहती हैं। अ.भा.दि.जैन परिषद महासभा,महासमिति सभी संस्थाओं से जुड़ी हुई र हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेती रही हैं। पता - 103 ए, स्वास्तिक, यूनिवर्सिटी मार्ग,बापू नगर,जयपुर। श्रीमती सुशीला बाकलीवाल धर्मपत्नी श्री ताराचन्द माकलीवाल 14. 84 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /247 श्री ताराचन्द सेठी पिता - स्व.मुंशी सूर्यनारायण जी सेठी बकौल,स्वर्गवास सन् 1975 माता - स्व.श्रीमती गुलाबदेवी । जन्मतिथि- 13 जुलाई सन् 1929 शिक्षा- बी.ए. (1948) एल.एल.बी.(1952) विवाह - 4 जुलाई 1953 पत्नी- श्रीमती गुणमाला देवी सुपुत्री गुलाबचन्द जी गोधा गाजियाबाद परिवार- पुत्र ! हेमन्तकुमार (22-8-57) बीकॉम.रजनी के साथ सन् 1984 में विवाहित । 2. सम्राट अध्ययनरत जन्म 1-12-1970 बी.कॉम. की परीक्षा दी है। पुत्री पथु बी.ए. विवाहित विशेष - सेठी जी को नगर के अच्छे वकीलों में गिनती की जाती है। आप शान्त स्वभावी हैं। स्वाध्यायशील हैं । दिगम्बर जैन मंदिर कालाडेरा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । अब तक आपने सभी तीर्थों की बंदना करली है । प्रदर्शन एवं प्रचार प्रसार से दूर रहते हैं । मूक समाज सेवी हैं। पता - सेठी भवन,हनुमान का रास्ता,त्रिपोलिया बाजार,जयपुर-3 श्री ताराचंद सौगानी श्री सौगानी युवा समाजसेवी हैं। जयपुर की विभिन्न संस्थाओं राजस्थान जैन सभा, महावीर शिक्षा समिति,बापूनगर जैन समाज,लायन्स क्लब उच्चतर अध्ययन अनुसंधान केन्द्र से जुड़े हुये हैं। लाल कोठी जैन मंदिर के सेक्रेटरी हैं। विगत 15 वर्षों से बैंक आफ बडोदा में वरिष्ठ प्रबन्धक हैं । पार्श्वनाथ युवा मंडल,बापू नगर की ओर से वर्ष 1984 में विशेष सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। आपका जीवन पूर्णतः धार्मिक है । प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं । स्वाध्याय करते ? हैं। जैन पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने की रुचि रहती है। सबको सहयोग देने में विश्वास करते हैं। आपका जन्म दिनांक 2 अक्टूबर,1937 को चनाणी माम में हुआ। आपके पिताजी श्री फूलचंद जी एवं माताजी गुलाबदेवी अपने गांव चनाणी में रहते थे। एमकॉम. करने के पश्चात् बैंक सर्विस में गये और फिर सी.ए. आई.बी.में सफलता प्राप्त की तथा 1984 में सीनियर मैनेजर प्रेड में प्रमोशन प्राप्त किया। 12 दिसम्बर 57 को विपला देवी के साथ विवाह संपत्र हुआ। आपको 2 पुत्र एवं एक पुत्री प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । पुत्री आशा एम.ए. है जिसका विवाह सरदारमल जी Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248/ जैन समाज का वृहद् इतिहास : गोधा के सुपुत्र अक्षय जैन से 1987 में हुआ है। अशोक बो कॉम, एल.एल.बी. है तथा बैंक सर्विस में है। द्वितीय पुत्र भूपेन्द्र आरई.सी.त्रिचनापल्ली कम्पटर साइन्स में इंजीनियरिंग कर रहे हैं। आपके पिताजी ने पदमपुरा पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से विभूषित होने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपके परिवार की ओर से लालकोठी मंदिर में एक मूर्ति भी विराजमान की थी। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं । सभी तीर्थों को वंदना कर चुके हैं। पता :- 19, एवरेस्ट कॉलोनी,लालकोठी,जयपुर। श्री त्रिलोकचन्द जैन टोंग्या जहाजपुर(भीलवाड़ा)निवासी श्री त्रिलोकचन्द जो जैन राजस्थान के यशस्वी सर्वोदयी कार्यकर्ता,कुशल एवं प्रभावी वक्ता माने जाते हैं । राजस्थान की जनता सरकार में आप 1977 से 1980 तक उद्योग, सहकारिता,स्वास्थ्य एवं आबकारी मंत्री रहे और अपनी कार्यशैली तथा ईमानदारी से सबको प्रभावित किया | इमरजेन्सी में आपको 20 महिने जेल में रहना पड़ा । जन लेखक ने आपसे व्यवसाय के लिये पूछा तो आपने बतलाया कि समाज सेवा एवं अहिंसक समाज रचना के लिये समर्पित रहना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। आपका जन्म 1 जुलाई सन् 1927 को हुआ। सन् 1950 में आपने राजनीतिशास्त्र में एम.ए. किया । साहित्यरत्न की परीक्षा भी आपने पास की। श्रीमती बादाप बाई के साथ आपका विवाह संपन्न हुआ तश आप दोनों को दो पुत्र विमलचन्द एवं दिनेशचन्द तथा दो पुत्रियां स्वयं प्रभा एवं पूर्णिमा के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपने अपने जीवन का प्रारंभ शिक्षक के रूप में किया। गांधी विचार प्रचार के लिये सन् 1954 में जयपुर इन्स्टीट्यूट आफ गांधियन स्टडीज में कार्य करने लगे। 1958 के पश्चात् आप जयप्रकाश नारायण के सेक्रेटरी के रूप में चार वर्ष तक कार्य किया । फिर सर्वोदय युग में राजस्थानी खादी ग्रामोद्योग विद्यालय में सन् 1962 से 1968 तक प्रिंसिपल के पद पर कार्य करते रहे । सन् 1961 से 77 तक आप सर्वोदय आंदोलन में लगे रहे । सन् 1977 में राज.विधान सभा का चुनाव लड़ा और निर्वाचित होने पर मंत्रीमंडल में लिये गये। अब आपने फिर सर्वोदय आंदोलन की बागडोर संभाल ली । सन् 1965 में प्रौढ शिक्षा योजना के अन्तर्गत डेनमार्क में राज. विश्वविद्यालय की ओर से प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । आजकल आप प्रदेश में शराब बंदी आंदोलन को संगठित करने में लगे हुए हैं तथा विचार प्रचार की दृष्टि से 'सत्याग्रह मासिक पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं। एता :- गोकुल,दुर्गापुरा,जयपुर । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दीपचन्द बख्शी जागीरदारों के परिवार में दिनांक 24 अगस्त, 1920 को जन्मे श्री दीपचन्द जी बख्शी को सरकार का बफादार होना चाहिये था लेकिन बख्शी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदने को अधिक श्रेयस्कर समझा और आठ वर्ष की आयु से ही राजनीति में सक्रिय कार्य करने लगे और मित्र मंडल, प्रेममंडल जैसी जयपुर नगर का जैन समाज /249 संस्थाओं के सदस्य बन गये। जयपुर में प्रजा का सुविधिसागर जी महारा आंदोलन में अपने सक्रिय योगदान के अतिरिक्त आंदोलनकारियों की आर्थिक सहायता भी करने लगे। तत्कालीन राजनीति के प्रमुख जमनालाल बजाज हीरालाल शास्त्री, कपूरचन्द पाटनी, बाबा हरिचन्द्र एवं हरीभाऊ उपाध्याय के विश्वस्त सहयोगी बन गये। सन् 1937, 38, 40 एवं 42 में जेल यात्रायें करके स्वतंत्रता सेनानियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। आपने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के आंदोलन में भी भाग लिया। श्री दीपचन्द बख़्शी धर्मपत्नी स्नेहलता के साथ सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् सन् 1940 में आपका विवाह श्री लालचन्द कासलीवाल बूंदी की पुत्री श्रीमती स्नेहलता से हुआ | आपको 4 पुत्रों एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल के पूर्वज महाराजा प्रतापसिंह जी के शासन काल में मोजमाबाद (जयपुर) में आये । आपके पूर्वजों की परम्परा में लालचन्द नेमिचन्द - सुवालाल- उदयलाल - चिरंजीलाल नाम उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में आपका केमिकल्स एवं रंगों का व्यवसाय है। बख्शी जी बहुत शांत एवं सरल परिणामी व्यक्ति हैं। संध्या पूर्व ही अपनी दुकान से घर चले जाते हैं। प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा करने का नियम है। आपके घर में ही चैत्यालय है जो श्री नेमिचन्द जी बख्शी ने बनवाया था। पता :- बख्शी भवन, आंकड़ों का रास्ता, किशनपोल बाजार, जयपुर । श्री देवीनारायण टकसाली गोयल गोत्रीय श्री देवीनारायण टकसाली अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति के श्रावक हैं। आपका जन्म सावन बुदी 6 सं. 1978 को हुआ। आपके पिताश्री राधाकिशन जी का स्वर्गवास 2 नवम्बर 1955 को हुआ। आपकी माताजी 88 वर्षीय हैं जिनका आशीर्वाद आपको प्राप्त है। आप की माताजी प्रतिमाधारी हैं। आपने आचार्य शांतिसागर जी महाराज को आहार दिया था तभी से आपका पूरा परिवार धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत हैं । देवीनारायण जी का सन् 1936 में श्रीमती सज्जनदेवी के साथ विवाह हुआ | आपके शुद्ध खानपान का नियम है तथा मुनियों को आहार देने में रुचि रखती हैं । आपके तीन पुत्र ओमप्रकाश (48 वर्ष) ईश्वरलाल (44 वर्ष) एवं कुंजबिहारी (35 वर्ष) हैं सभी पुत्रों का विवाह हो चुका हैं। पांच पुत्रियां हैं लल्ली बाई, पदमाबाई, सविता, बीना एवं रेखा बाई भी विवाहित हैं तथा धार्मिक संस्कारों से युक्त हैं। पदमाबाई अमेरिका में रहती हैं। Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 250/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके घर में ही चैत्यालय है जिसको स्थापित हुये 40 वर्ष हो गये। आप दानशील प्रकृति वाले हैं तथा मंदिरों के जीणींद्वार में रुचि लेते हैं । बाई जी के मंदिर में आपके पिताजी ने श्वेत पाषाण का पार्श्वनाथ स्वामी की पदमासन मूर्ति विराजमान की थी । पाटोदी के मंदिर में चन्द्रप्रभ एवं महावीर स्वामी की प्रतिमाओं का वहीं पर पंचकल्याणक करवाकर विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । चूलगिरी पर श्याम पाषाण को खडगासनमा विराजमान की। दिन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के पदमप्रभु के दाहिने ओर वेदी निर्माण करवाई। महावीर क्षेत्र पर शांति वीर नगर में बाहर चौक में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान करने का पुण्यशाली कार्य किया । इसी तरह सम्मेदशिखर जी में धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण करवाया। आपके छोटे भाई श्री हरिचन्द्र जी टकसाली नैनवां पंचकल्याणक में सौधर्म इन्द्र बन चुके हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम कंचनदेवी है । दोनों ही कहरमुनि भक्त एवं आर्षमार्गी हैं। पता 1. 1061 भट्टों की गली,अमर जैन के पास,चौड़ा रास्ता, जयपुर 2. 3बी खन्दा बाई जी,बड़ी चौपड़, जयपुर श्री देवेन्द्र कुमार गोधा गोधा परिवार में दि.26 अक्टूबर,1926 को जन्मे श्री देवेन्द्र कुमार गोधा अत्यधिक भद्र परिणामी एवं बिनयी स्वभाव के व्यक्ति हैं। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप इन्स्योरेन्स का कार्य करने लगे। सन् 1948 में आपका विवाह फतेहलाल जी चौधरी की सुपुत्री श्रीमती सुशीला देवी के साथ हुआ । आप दोनों पति-पली को दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपको एक पुत्री उषा एम.ए.बी.एड.है तथा सेंट एंजिला स्कूल में अध्यापन करती हैं । आपके पुत्र मुकेश के बीमा एजेन्सी है तथा दिनेश सर्विस करता है। बास गोधान का मंदिर आपके पूर्वजों द्वारा बनाया हुआ है । वर्तमान में आप उसके विगत वर्षों से अध्यक्ष है। आप स्व.नायव सरजमलजी गोधा के द्वितीय पत्र है । नायन सरजमल जी अपने समय के प्रभावशाली व्यक्ति थे । राजाशाही के युग में जनानी ड्योढी के नायव अधिकारी थे । दरबार में उनको कुर्सी मिली हुई थी। उनके पिता बाजूलाल गोधा भी नायब थे । नायब सूरजमल जी महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के आजीवन सदस्य रहे तथा अन्त्र में उसके उपाध्यक्ष रहे । नायब साहब का और भी कितनी ही संस्थाओं से संबंध रहा था । जयपुर के चूलगिरी क्षेत्र का प्रवेश द्वार आप ही के द्वारा बनवाया गया है। पता : नायब हाऊस,गोधों का चौक,हल्दियों का रास्ता,जयपुर फोन नं : 563226 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /251 श्री देवेन्द्र कुमार पाटनी पाटनी जी का जन्म 25 सितम्बर 1943 को हुआ था। श्री गुलाबचन्द जी पाटनी आपके पिताजी थे जिनका 1981 में स्वर्गवास हो गया । आपकी माताजी का नाम सूरजदेवी था। आपने टी.डी.सी. प्रथम वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में आपकी दुकान 365 इन्द्रा मार्केट में स्थित है तथा विशेषतः अग्निशमन यंत्र एवं उपकरणों का निर्माण एवं बिक्री का कारोबार है । सन् 1966 में आपका विवाह श्रीमती इंदिरा देवी के साथ हुआ। आपको दो पुत्र राजीव एवं संजीव तथा एक पुत्री दीपाली को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । आप जैन संस्थाओं में नियमित सहायता देते रहते हैं। पता:- 277 मेहन्दी वालों का चौक, रामगंज बाजार, जयपुर 302003 दूरभाष दूकान 523120 निवास 563294 कुमार गो आयुर्वेद चिकित्सक, लेखक, सम्पादक एवं समालोचक श्री वैद्य धनकुमार का जन्म 28 फरवरी सन् 1935 को हुआ। आपने आयुर्वेदाचार्य, आयुर्वेद रिषि, आयुर्वेद चक्रवर्ती, विधिसाग जी महाराज साहित्य वाचस्पति, फार्मासिस्ट की परीक्षायें पास की तथा चिकित्सा, औषधि निर्माण एवं विक्रय का कार्य करने लगे। इसी के साथ 'आयुर्वेद दूत' पत्र का भी संपादन करने लगे। आकाशवाणी जयपुर से समय-समय पर निरन्तर स्वास्थ्य सम्बन्धी रेडियो वार्ता का भी प्रसारण होता रहा है। सभी में आपको विशेष रुचि हैं। सन् 1953 में आपका विवाह श्रीमती प्रेमलता के साथ संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। ज्येष्ठ पुत्र श्री कमलचन्द आयुर्वेदिक लाइन में है। महेशकुमार सेल्स एक्जिक्यूटिव आफीसर है तथा गुजरात एरिया संभालते हैं। धमेन्द्र कुमार ग्राम भारती में प्रोजेक्ट आफीसर हैं। तीन पुत्रियों आशा, स्नेह एवं कुसुमलता का विवाह हो चुका है। स्नेहलता एवं कुसुमलता दोनों डबल एम.ए. हैं। वैद्य जी मुनि भक्त हैं । आचार्य सन्मति सागर जी के साथ जयपुर से कुचामन तक साथ रहे। मुनियों को आहार देने में पूर्ण रुचि लेते हैं। आयुर्वेद एवं स्वास्थ्य संबंधी लेख लिखते रहते हैं। आयुर्वेद दूत मासिक पत्र के सम्पादक एवं योगायोग बुलेटिन के भी सम्पादक हैं। पता :- 4 धामाणी मार्केट- राजस्थान आयुर्वेदिक रिसर्च लेबोरेटरीज जयपुर 302003 | फोन 62560 श्री धूपचन्द पांड्या 15 अगस्त 1936 में जन्मे धूपचंद जी पांड्या समाज के जाने पहचाने श्रेष्ठी हैं। स्वभाव से शांत एवं धार्मिक प्रकृति के पांड्या जी बैंकिंग का कार्य करते हैं। सन् 1956 में राजस्थान विश्वविद्यालय से इन्टर करने के पश्चात् आप पैतृक व्यवसाय में लग गये। श्री मूलचंद जी पांड्या के आप दत्तक पुत्र हैं। आपकी माता का नाम श्रीमती मोता देवी है। मई 1954 में Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2521 जैन समाज का वृहद् इतिहास ही आपका विवाह श्रीमती चम्पादेवी से हो गया । चम्पादेवी श्री केशरलाल कटारिया की पुत्री हैं । श्रीमती चम्पादेवी को दो पुत्रों को जन्म देने का गौरव प्राप्त है । राजीव एवं संजीव दोनों ही पुत्र लॉ ग्रेज्यूएट हैं तथा दोनों का विवाह हो चुका है। पांड्या जी एवं श्रीमती चम्पादेवी दोनों ही खानियां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में एवं आमेर की बाहरली नशियां में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में भी इन्द्र-इन्द्राणी का पद ग्रहण कर चुके हैं । जयपुर के चौबीस महाराज के मंदिर के तल-घर में तथा चूलगिरी पर्वत पर चौबीस टोंकड़ों में से एक में मूर्ति विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। सन् 1964 में तेरह पंथी बड़ा मंदिर में एक वेदी का निर्माण करवाया था। आपकी माताजी ने श्रीमती चम्पा देवी धर्मपत्नी श्री धूपचन्द पांड्या __ बोरिवली बंबई के मन्दिर में मूर्ति विराजमान की थी । खोरा ग्राम के राजकीय विद्यालय में एक कमरे का निर्माण करवाया। फिरोजाबाद पंचकल्याणक में आपके पुत्र राजीव संजीव तीसरे चौथे इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। पांड्या जी धन्वंतरी औषधालय एनं दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय के सदस्य हैं। पता : मोहनवाड़ी सूरजपोल गेट,जयपुर । फोन- 564487 घर 4144017 श्री नथमल गंगवाल जन्म:- 64 वर्ष की आयु, शिक्षा सामान्य व्यवसाय-होटल संचालन माता-पिता :- स्व.श्री छोगालाल जी । आपका स्वर्गवास ?) वर्ष की आयु में करीब 42 वर्ष पहिले हुआ । मातृश्री श्रीमती गुलाबदेवी का स्वर्गवास 90 वर्ष की आयु में हुआ। विवाह :- 48 वर्ष पूर्व श्रीमती सुउठी देवी से संपन्न हुआ। सन्तान :- 4पुत्र एवं 3 पुत्रियां आपने अपने एक पुत्र अशोक कुमार को अपने छोटे भाई चांदमल जी गंगवाल को दत्तक दे दिया। शेष तीन पुत्रों में श्री मोतीकुमार 35 वर्षीय हैं । जन्मतिथि 9-12-54 है। धर्मपत्नी श्रीमती सरोजदेवी है । एक बार दोनों पति पत्नी ने अष्टान्हिका व्रत किये थे। दूसरा पुत्र श्री निर्मलकुमार चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट है । 33 वर्षीय है । मीरा धर्मपत्नी हैं । आपके एक पुत्र एवं पुत्रिया हैं। तीसरे पुत्र श्री विमलकुमार 3। वर्षीय हैं । पली का नाम मंजु है । तीनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है । विशेष :- दोनों भाईयों ने अपने प्राम हस्तेडा में अपने माता-पिता की स्मृति में कन्या पाठशाला के लिये भवन बनवाकर राज्य सरकार को दिया । कुचामन एवं नलवाडी के पंचकल्याणक में विशेष आर्थिक सहयोग दिया । जयपुर के पार्श्वनाथ मंदिर (सोनियान) में कांच का बहुत सुन्दर कार्य कराया । जम्बूद्दोप हस्तिनापुर में एक कमरे का निर्माण कराया । आपकी धर्मपत्नी सुउठी देवी लगातार दश वर्ष तक दशलक्षण वत्त के उपवास करके एक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं । पता : आसाम होटल.स्टेशन रोड, जयपुर Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/253 श्री नंदकिशोर जैन पहाड़िया श्री नंदकिशोर पहाड़िया उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने अपनी संपत्ति,यश एवं व्यक्तित्व स्वयं की सूझबूझ,निष्ठा एवं सतत अध्यवसाय से बनाया है । आपके पिताजी श्री कपूरचंद जी . अमेजी के अध्यापक थे एवं पुस्तक के लेखक को भी उनसे एक वर्ष पढ़ने का अवसर मिला था। स्वभाव से अत्यधिक सरल एवं हँसमुख थे उनका निधन सन् 1951 जुलाई में हो गया । उस समय आपकी आयु केवल 12 वर्ष की थी। आपकी माताजी श्रीमती भवरी देवी का आशीर्वाद अभी तक मिल रहा है । कलकचा विश्वविद्यालय से आपने इन्टरमीजियट किया और फिर बिजली की मोटर एवं डीजल इंजीनियरिंग का व्यवसाय करने लगे । व्यवसाय में आपको आशातीत सफलता मिली। आपका विवाह श्रीमती शांतिदेवी से हुआ जिसका घर में आगमन समृद्धि एवं संपत्ति के साथ हआ। श्रीमती पहाष्टिया सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में अत्यधिक रुचि लेती हैं। कितने ही समारोहों में मुख्य अतिथि अथवा अध्यक्षता करती हुई देखी जा सकती हैं। आप उदार हृदया है। आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ज्येष्ठ पुत्र प्रमोद देहली में कार्यरत हैं तथा छोटा सुनील जयपुर में ही पिताजी के साथ व्यवसाय में लगा हुआ है । आप दोनों पति-पत्नी की तीर्थ यात्रा में विशेष रुचि रहती है । पहाडिया जी मूलतःचौमूं के हैं और अपने गांव के मंदिर में आपने एक कमरे का निर्माण कराया है । जयपुर में पार्श्वनाथ भवन के क्रय में आपने आर्थिक सहयोग दिया था। श्रीमत्री शांति देवी धर्मपत्नी श्री नर किशोर जैन पता : ए 27/4/2 कांति चन्द रोड,बनीपार्क,जयपुर। डा. णमोकार जैन दीवान दीवान परिवार में दिनांक 12 फरवरी 1946 को जन्मे श्री णमोकार जैन ने सन् 1968 में उदयपर विश्वविद्यालय से एम.एस.सी.(कषि) प्रथम श्रेणी में पास कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया। सन् 1971 में जर्मन भाषा में राज विवि, से डिप्लोमा किया तथा सन् 1971 से 74 तक पश्चिमी जर्मनी में रहते हुये कृषि विज्ञान में डाक्टरेट उपाधि प्राप्त की । सन् 1968 में ही राजस्थान में सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी पद पर नियुक्त हुये। सन् 1975 में आपका लोक सेवा आयोग द्वारा सहायक कृषि रसायनज्ञ के पद पर चयन किया गया । आपको मिट्टी एवं जल सर्वेक्षण, संरक्षण एवं विश्लेषण का पूर्ण अनुभव है और कीटनाशक विश्लेषण में भी अच्छा जान रखते हैं । सन् 1990 में आपने जर्मन भाषा में पोस्ट डिप्लोमा भी अर्जित कर लिया है और जर्मन भाषा लिखने पढ़ने एवं बोलने में पूर्ण सक्षम हैं। डा.जैन को सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि रहती है। वर्तमान में आप महावीर दि.जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय की साधारण कार्यकारिणी के सदस्य हैं तथा दि.जैन औषधालय की कार्यकारिणी के सदस्य एवं वर्धमान रसायन शाला के उपाध्यक्ष Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 254/ जैन समाज का वृहद् इतिहास रह चुके हैं । सन् 1971-74 के बर्मन प्रवास में आपने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा जैन एवं पुत्र सहित यूरोप के अन्य देशों का मी भ्रमण किया। ___हा.जैन की लेखन कार्य में भी रुचि है। आपके व्यवसाय से संबंधित विभिन्न विषयों पर अब तक 20-25 अनुसंधान पूरक लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । आप विषय संबधित समितियों के सदस्य हैं। आपका सन् 1969 में श्री फूलचंद जी हलवाई की सुपुत्री श्रीमती पुष्पा के साथ विवाह हुआ। पुष्पा जी बी.ए. पास हैं। 2 पुत्रों से अलंक्त हैं । आपका बड़ा पुत्र अपने नाना के यहां दत्तक है। आपके पिताजी का नाम स्व. अंबरचंद जी एवं माताजी श्रीमती रतनदेवी हैं । आपके पितामह दीवान कपूरचंद जी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति है। पता: 1. 1763 फतेहपुरियों का दरवाजा, चौड़ा रास्ता, जयपुर 2. 627 गोघा भवन, बोरडी का रास्ता,जयपुर । श्री नरेन्द्र मोहन कासलीवाल जयपुर स्टेट के दीवान मालीलाल जी कासलीवाल के सुपुत्र श्री नरेन्द्र मोहन जी कासलीवाल समस्त जैन समाज में प्रथम व्यक्ति है जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधिपति के सम्माननीय एवं विशिष्ट पद पर पहुंच सके हैं। इसके पूर्व आप हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहें तथा राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधिपति रहे थे। आपका जन्म 4 अप्रैल, 1928 को हुआ आपने बी.एस.सी.एल.एल.बी. किया। 11 मई 1948 को आपका विमला देवी के साथ विवाह हुआ। आप दोनों को दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । ज्येष्ठ पुत्र इंजीनियर (एमई इले) है तथा राहुल II.T.(Mech.) में अध्ययन कर रहा है। दो पुत्रियों का विवाह हो चुका है और छोटी पुत्री रश्मि भी डाक्टर है ! लॉ करने के पश्चात् सन् 1950 से 58 तक आप जयपुर में वकालात करते रहे और सन् 1958 से 1977 तक जोधपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करते रहे 1 15 जून सन् 1978 से राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधिपति बनाये गये। आप इस अवधि में राजस्थान नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट (सलाहकार बोर्ड) के अध्यक्ष रहे । फैसलों का एक प्रयोग आपके महत्वपूर्ण ईसा नेलसिंह बनाम प्रो. रामसिंह दोनों नाबालिग लड़कियों को मां के सुपुर्द करना है। माननीय जस्टिस महोदय के माताजी ने सन् 1983 में वेदी निर्माण करवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवाई। आपकी माताजी की मृत्यु अभी 2 वर्ष पूर्व ही हुई है । उस समय उनकी आयु83 वर्ष की थी । आपसे तीन भाई देवेन्द्र मोहन जी,राजेन्द्र मोहनजी, सुरेन्द्र मोहन भी बड़े तथा वीरेन्द्र मोहन जी छोटे हैं। पता : उच्चतम न्यायालय, तिलक मार्ग,न्यू देहली । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का बैन समाज /255 श्री नरेन्द्र मोहन इंडिया लालाजी के नाम से प्रसिद्ध श्री नरेन्द्र मोहन इंडिया समाज के जाने माने व्यक्ति है। आपका जन्म आपोज सुदी 13 संवत् 1973 को हुआ। आपके पिताजी श्री चांदूलाल जी डंडिया एवं माताजी फूलानाई का देहान्त वर्ष संवत् 2012 में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् संवत् 1989 में आपका विवाह श्रीमती चतुरमती से साथ संपत्र हुआ। जिससे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके बड़े पुत्र श्री पदमचन्द जी डंडिया राजकीय सेवा में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत है तथा छोटे पुत्र अरविन्द कुमार जवाहरात का व्यवसाय करते हैं। आपकी तीनों पुत्रियां ग्रेज्यूएट है तथा सभी विवाहित हैं। श्री नरेन्द्र मोहन जी का सामाजिक जीवन भी उल्लेखनीय रहा है। संवत् 2004 में आपने सर्व प्रथम दि.जैन मंदिर ठोलियान की प्रबन्ध समिति का गठन किया और उसके 20 वर्ष तक सेक्रेटरी रहे। वर्तमान में उप सभापति हैं। यहां के शास्त्र मंडार के तो आप प्रारंभ से ही व्यवस्थापक हैं । शाख मंडार के ग्रंथों का शोधार्थियों द्वारा उपयोग होता रहे इसका आप पूरा ध्यान रखते हैं। प्रस्तत इतिहास के लेखक को आपसे पूर्ण सहयोग मिलता रहा है। लालाजी दि.जैन मंदिर महासंघ के तीन वर्ष तक संयुक्त मंत्री रहे। आप उसके आजीवन सदस्य हैं। आप फ्रैण्डस एसोसियेशन के सदस्य थे जिसने सर्वप्रथम मृत्यु भोज का बहिष्कार किया था । महावीर जयन्ती को प्रारम्भ करने में आपका बड़ा सहयोग रहा। सभी संस्थाओं को आपका सहयोग मिलता रहता है। पता - इंडिया भवन, घी वालों का रास्ता, अयपुरः श्री नरेश कुमार सेठी स्व. मुंशी सूर्य नारायण जी सेठी के सुपुत्र श्री नरेश कुमार जी सेठी वर्तमान में उन समाजसेवियों में से हैं जिनको सामाजिक संस्थाओं में शीर्ष पद प्राप्त हैं । वे आई.ए.एस. आफीसर हैं और राजस्थान सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारियों में उनकी गणना है। स्वभाव से विनम्र एवं मधुर भाषी श्री सेठी जी का जन्म 8 फरवरी 1937 को हुआ । सन् 1959 में एम.ए राजनीतिशास्त्र) में प्रथम श्रेणी में प्रथम पोजीशन लाने के बाद वे कालेज में प्राध्यापक बने और फिर 1960 में आरए.एस.में चले गये । सन् 1960 से उन्होंने राजस्थान सरकार के विभिन्न पदों पर कशलता एवं लगन से कार्य किया। इसके पश्चात वे आई.ए.एस.में चन लिये गये। श्री सेठी जी ने राजस्थान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन के जनरल मैनेजर,राजस्थान विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, राज, पर्यटन विभाग के अतिरिक्त निदेशक तथा देवस्थान आयुक्त राजस्थान जैसे उच्च पदों पर कार्य किया। यू.आई.टी.जयपुर के 2 वर्ष तक आप सैक्रेटरी रह चुके हैं। आपका विवाह 1960 में श्रीमती कला के साथ हुआ। आपका एक मात्र पुत्र दीपक सेठी जवाहरात के व्यवसाय में कार्यशील है । सामाजिक क्षेत्र में भी आप लोकप्रिय व्यक्ति हैं। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के वर्तमान में Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 256 / जैन समाज का वृहद् इतिहास अध्यक्ष हैं । इसके पूर्व इस क्षेत्र के मंत्री रह चुके हैं। श्री महावीर दि. जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय की पिछले 18 वर्षों में आपने संयुक्त मंत्री एवं मंत्री के रूप में सेवा की है। जयपुर के प्रसिद्ध दिगम्बर जैन मंदिर, कालाडेरा (महावीर स्वामी) के भी आप अध्यक्ष हैं। इसके अतिरिक्त आप श्री महावीर दिगम्बर जैन बालिका विद्यालय तथा बाल शिक्षा मन्दिर की कार्यकारिणी समिति के सदस्य I सन् 1971 में राज्य सरकार की ओर से आप इंगलैंड, अमेरिका, हांगकांग, जापान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं। पता : 4/83, सूर्य पथ, जवाहर नगर, जयपुर । श्री नवरतनमल कासलीवाल जयपुर के प्रसिद्ध दीवान श्री केसरीसिंह कासलीवाल की आठवीं पीढ़ी में जन्में श्री नवरतनमल कासलीवाल का जन्म 21 जुलाई 1925 को हुआ। आपके पिताजी श्री फूलचंद जी सन् 1938 में स्वर्गवासी बन गये तथा माताजी श्रीमती लक्ष्मीदेवी का निधन 1952 में हो गया। सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती मुन्ना देवी जी सुपुत्री चान्दूलाल जी रारा के साथ संपन्न हुआ | उसी वर्ष आपने हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। आपने अपना जीवन बडोदा बैंक से प्रारंभ किया और वहीं से सेवा निवृत्त हुये । श्री कासलीवाल चुपचाप सेवा करने में विश्वास रखते हैं। जयपुर की विभिन्न संस्थाओं में आपके द्वारा आर्थिक सहयोग दिया जाता रहता है। रोगियों को निशुल्क दवा वितरण में आपको विशेष रुचि रहती है। जयपुर का प्रसिद्ध कलापूर्ण मंदिर सिरमोरियों का निर्माण आपके पूर्वज श्री केशरीसिंह कासलीवाल द्वारा कराया गया था। उनकी पीढ़ी निम्न प्रकार है देवीसिंह जैतराम जी मोतीराम जी निरभयदास जी कृपाराम जी हरसुखजी कासलीवाल चिरंजीलाल जी आनंदीलाल जी फूलचंद जी ईश्वरलाल जी, केशरलाल जी नवरतनमल जी पता :- 723, कासलीवाल हाऊस, हरसुख जी कासलीवाल का रास्ता, जयपुर । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /257 श्री नाथूलाल जैन एडवोकेट कोटा (राजस्थान) में दिनांक 29-12-1919 को जन्मे श्री नाथूलाल जैन को राष्ट्रीय, साहित्यिक, सामाजिक सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । आपके पिताश्री मूलचन्द जी कोटा के प्रतिष्ठित सज्जन थे। आपके एक भाई श्री पानाचन्द जैन राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति रह चुके हैं तथा सबसे छोटे भाई श्री टीकमचन्द जैन भी राजस्थान में उच्च पदाधिकारी रहे हैं। श्री जैन ने सन 42 में एलएलबी. किया तथा एडवोकेट बन कर वर्षों तक कोटा बार एसोसियेशन के अध्यक्ष रहे। सन 1952 में सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट के रूप में आपने अपना नाम अंकित करा लिया । सन् 1962 में आप कोटा में पब्लिक प्रोसीक्यूटर बनाये गये और फिर विभिन्न जांच कमेटियों के सदस्य रहते हुये सन् 82 में राजस्थान के एडवोकेट जनरल नियुक्त किये गये । इसी के मध्य में सन् 1967-68 तक भारत सरकार के भाषा कमीशन के सदस्य रहे । सन् 1970-72 तक कोटा विकास न्यास के चेयरमेन, सन् 1974-79 तक राजस्थान पब्लिक कमीशन के सदस्य बनाये गये । श्री जैन पत्रकार भी रहे तथा किसान संदेश लोक सेवक,दीन बंधु एवं जयहिन्द के सम्पादक रहे । सन् 1969 से 74 तक उच्चतम न्यायालय निर्णय पत्रिका के सदस्य रहे । श्री जैन अत्यधिक व्यस्त होते हुये भी बीस से भी अधिक संस्थाओं से जुड़े रहे जिनमें हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहबाद, राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर, राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर के प्रमुख नाम हैं। श्री जैन अच्छे लेखक एवं वक्ता दोनों हैं। पता : 34, उणियारा गार्डन,जयपुर। श्री नानूलाल साह जयपुर के श्री नानूलाल जी साह सर्राफ एवं बैंकिंग का व्यवसाय करते हैं | 11 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह श्रीमती कपूरीदेवी के साथ कर दिया गया। जिनका 1976 में स्वर्गवास हो चुका है। श्री नानूलाल जी ने मोहनबाडी मंदिर में वेदी बनवाकर उसमें बाहुबली एवं पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान की है। इसी तरह बैदों को चैत्यालय में जो मनीराम जी की कोठी के रास्ते में स्थित है पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति विराजमान की थी । बधीचन्द जी के मंदिर को अपने पिताजी की स्मृति में एक दुकान भेंट की थी । बधीचन्द जी मंदिर के वर्तमान में अध्यक्ष हैं तथा मोहनबाडी मंदिर समिति के 4 वर्ष तक आप अध्यक्ष रहे थे । आपने नानूलाल कपूरदेवी चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की है। इसी ट्रस्ट के अन्तर्गत मोहनबाडी में होमियोपैथी दवाखाना चलता है। आपका जन्म आषाढ़ सुदी 9 संवत् 1968 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त की तथा अपना पैतृक व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। आप सीधे सादे श्रेष्ठी हैं। पता : मोहन बाडी, गलता गेट,जयपुर। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 258/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री निर्मल कुमार पांड्या - श्री पाड्याजी मूलतःसुजानगढ (राजस्थान )के हैं । वहां से आपके पिताजी श्री कुन्दनमल जी व्यवसाय के लिये कलकत्ता चले गये और वहीं सन् 1968 में मई मास में आपका निधन हो गया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उमराव बाई धार्मिक स्वपाव की महिला है । श्री निर्मलकुमार जी का विवाह 2 जुलाई 1971 को श्रीमती कनकलता से साथ हुआ। कनकलता जी बी.ए.प्रथम वर्ष तक पढ़ी हैं। श्री सूरजमल जी जैन सब्जी वाले आपके पिता है । पांड्या जी को दो पुत्रियों नीतू एवं प्रिया के पिता बनने का गौरव प्राप्त है । आप धार्मिक प्रवृत्ति वाले युवक हैं । प्रतिदिन दर्शन एवं अभिषेक करते हैं । मधुवन स्थित पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर में वेदी निर्माण आपकी ओर से आपके दो बड़े भाई श्री धनराज जी एवं सतीशकुमार जी पांड्या हैं दोनों ही अपना-अपना व्यवसाय करते हैं। पता : बी-15 मधुवन कालोनी, बरकत नगर,जयपुर - 15 श्री निहालचन्द कासलीवाल जवाहरात व्यवसाय में श्री गुलाबचन्द जी कासलीवाल का अच्छा नाम था। उनका जन्म सन 1911 में तथा निथन सन 1972 में हुआ था । अपने 61 वर्ष के छोटे से जीवन में समाज की चुपचाप सेवा करने में विश्वास रखते थे तथा सामाजिक जागृति एवं उत्थान की पूर्ण उत्कंठा बनी रहती थी। उनकी पत्नी श्रीमती सौभागदेवी धार्मिक स्वभाव की महिला थी तथा अष्टान्हिका एवं दशलक्षण व्रत के उपवास लगातार आठ वर्ष तक करती रही । उनके श्री नेमीचन्द, निहालचन्द, कमलचन्द एवं नरेशचन्द, चार पुत्र हुये। इनमें नरेश जी ज्यादातर हांगकांग रहते हैं लेकिन वहां रहते हुये भी उनका पूर्णतः धार्मिक जीवन है । वे हांगकांग में ही दो बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। श्री निहालचन्द जी आपके दूसरे पुत्र हैं जिनकी जन्मतिथि 24 मई 1940 है । उनका जन्म जयपुर में ही हुआ था। लेकिन अध्ययन बंबई में किया और वहीं से इन्टरमीजियर (साइन्स) किया । आपका विवाह श्री गोपीचन्द जी गंगवाल की सुपुत्री मैना देवी से दिनांक 23 मई 62 को संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्रों- योगेश,हरीश एवं चारू के पिता होने का सौभाग्य मिला । आप विगत 30 वर्षों से बंबई में ही व्यवसाय करते हैं । सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से श्री निहालचन्द जी का जीवन स्वच्छ एवं सरल है । उदार स्वभाव के हैं। अखिल भारतीय तीर्थक्षेत्र कमेटी के स्थायी सदस्य हैं । यात्रा प्रेमी हैं इसलिये अपने परिवार एवं संबंधियों को चार बार यात्रा करा चुके हैं । बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक के अवसर पर 15 रजत कलश लेकर सभी को अभिषेक का अवसर दिया था। दि.जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुर के संरक्षक सदस्य,श्री महावीर मंथ अकादमी एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान जयपुर के सदस्य हैं । दि.जैन औषधालय के विकास में आप आर्थिक सहयोग देते रहते हैं । सन् 1967 में आप एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। जयपुर जैन समाज को आपसे सहयोग की पूर्ण आशा है। पता- 1. 35 सागर महल,65 बालकेश्वर रोड,बंबई-6 2-जे 47, कृष्णा मार्ग,सी-स्कीम,जयपुर। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /259 श्री नेमीचंद काला काला जी का जन्म 21 जनवरी, 1942 को जयपुर शहर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री केसरलाल जी था। आपने बी.ए. विशारद तक की शिक्षा प्राप्त की है। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् शिक्षा जगत् में कार्य करने लगे। लेखन, सम्पादन के कार्य के अतिरिक्त अभिनंदन पंथों एवं स्मारिकाओं के संपादन एवं लेखन का कार्य भी किया। अब तक तीन अखिल भारतवर्षीय अभिनंदन ग्रंथों के प्रधान सम्पादक, 27 स्मारिकाओंका सम्पादन, तीन पुस्तकों के लेखक, अनेक बालोपयोगी रचनाओं के लेखन का प्रशंसनीय कार्य कर चुके हैं I एलों पर एक दशक तक कार्य किया है। अनेक शिव संघ के प्रतीय वा सेमीनारों, विचार गोष्ठियों, सम्मेलनों में भाग लिया है। श्री काला जी नगर की अनेक संस्थाओं से जुडे हुए हैं। पदमावती जैन बालिका सीनियर उच्च माध्यमिक विद्यालय, जयपुर तथा श्री बाल शिक्षा मंदिर महावीर पार्क जयपुर के संयुक्त मंत्री हैं। श्री दि. जैन मंदिर पहाडियान के मंत्री तथा श्री दि. जैन मंदिर बड़ा दीवान जी जयपुर के संयुक्त मंत्री हैं। भारतवर्ष के करीब करीब सभी तीर्थ क्षेत्रों की वंदना एक से अधिक बार करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो चुका है। आपका विवाह श्रीमती शांतिदेवी के साथ 4 फरवरी, सन् 1961 को हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! आपके ज्येष्ठ पुत्र का विवाह हो चुका है। पत्नी का नाम साधना है जो दो पुत्रियों की जननी है। दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शांतिदेवी सामाजिक कार्यों में रुचि लेती हैं। महिला जागृति संघ तथा पार्श्वनाथ भवन की कार्यकारिणी की सदस्या हैं। पता - 566, मनिहारों का रास्ता, जयपुर । श्री नेमीचन्द गंगवाल जन्मतिथि श्रावण सुदी अष्टमी संवत् 1995 शिक्षा- सन् 1957 में अजमेर बोर्ड से इन्टरमीजियट किया । श्री गंगवाल जी के पिताश्री भागीरथ मल का 21 दिसम्बर 1986 को 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ। आपकी मातृश्री धापूदेवी की छत्रछाया अभी मिल रही हैं। आपका विवाह श्रीमती बुलबुल के साथ दि. 26 जनवरी 1958 को संपन्न हुआ । श्रीमती बुलबुल बलूंदा निवासी स्व. गूजरमल जी कासलीवाल की पुत्री हैं। आप दोनों पति पत्नी को दो पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र राजेश कुमार 23 वर्ष के युवा हैं विवाहित हैं। स्वयं बी. कॉम. एवं पत्नी जैना देवी इन्टर हैं। छोटा पुत्र राकेश अभी अध्ययनरत है। आपकी एक मात्र पुत्री मीना का विवाह अजमेर के श्री अनिलकुमार दिया से हो चुका हैं। ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करते हैं। कलकत्ता में भी ट्रांसपोर्ट व्यवसाय है। I Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 260/ जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष :- गंगवाल जी प्रतिदिन जयपुर के महावीर स्वामी के मंदिर में पूजा प्रक्षाल करते हैं। आपका सामाजिक जीवन है । दि. जैन पार्श्वनाथ भवन जयपुर के सेक्रेटरी हैं। सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग करते रहते हैं। शुद्ध खानपान में रुचि रखते हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। मिलनसार एवं सरल स्वभावी हैं। आपके तीन छोटे भाई श्री माणकचन्द जी, पदमचन्द जी, नरेन्द्रकुमार जी गंगवाल किशनगढ मदनगंज में व्यवसायरत हैं। आपका मूल निवास अजमेर जिले का कडेल याम है। पत्ता : 696, दरीबा पान, जयपुर श्री नेमीचन्द छाबड़ा जयपुर के शुक्रवार सहेली के प्रमुख संगीतज्ञ स्व. श्री दासूलाल जी छाबड़ा के सुपुत्र श्री नेमीचन्द छाबड़ा भी संगीत में रुचि रखते हैं तथा जवाहरात पिरोने का व्यवसाय करते हैं। भाद्रपद मास में सन् 1952 में आपका जन्म हुआ । सैकण्डरी पास करने के पश्चात् आपने अपना पैतृक व्यवसाय पकड़ लिया। सन् 1958 में आपका श्रीमती मंजू के साथ विवाह हुआ। आप दोनों को दो पुत्र विवेक एवं विशाल एवं एक पुत्री वर्षा के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! श्रीमती मंजू देवी धर्मपत्नी नेमीचन्द छाबड़ा छाबड़ा जी प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा करते हैं। द जैन मंदिर बड़ा दीवान जी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं। पता : 78, दीनानाथ जी की गली, चांदपोल बाजार, जयपुर। श्री नेमीचन्द पाटनी आगरा निवासी श्री नेमीचन्द पाटनी टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर के 300 वर्ष से महामंत्री हैं। आप सेठ पंडित कहलाते हैं। सोनगढ विचारधारा के कट्टर समर्थक हैं। आप लेखक, व्याख्याता एवं प्रशासक सभी हैं। संवत् 19700 अषाढ शुक्ला 14 को आपका जन्म हुआ | हाई स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय करने लगे। लेकिन कानजी स्वामी के संपर्क में आने के पश्चात् आप उन्हीं के साहित्य के प्रकाशन एवं प्रचार प्रसार में लग गये । आपके पिताजी श्री मगनमल जी पाटनी एवं माताजी श्रीमती कलावती बाईजी दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपके दो पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार एवं नगेन्द्रकुमार है तथा पांच पौत्र हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार का निधन हो गया है। I पता : टोडरमल स्मारक भवन, ए-4 बापू नगर, जयपुर । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/261 श्री नेमीचन्द जैन भौंसा लेखक एवं कवि पं.अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ के सुपुत्र श्री नेमीचन्द होनहार युवक है | 1 अगस्त, 1951 के दिन जन्मे श्री जैन ने सन् 170 में बी.एस.सी. की परीक्षा पास करके चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट की परीक्षा में सफल हुये । सन् 1979 में आपका विवाह श्रीमती रेणु जैन से हुआ। श्रीमती रेणु जैन भी बी.एस.सी. हैं तथा न्यायमूर्ति श्री नरेन्द्र मोहन जी कासलीवाल जस्टिस उच्चतम न्यायालय की सुपुत्री हैं। श्री जैन चार्टर्ड अकाउन्टेसी में मेरिट होल्डर रहे हैं। वर्तमान में एनसी जैन एण्ड एसोसियेट्स नाम से आडिट का कार्य करते हैं । जैन सरल स्वभावी,विनयी एवं सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले युवक हैं। आप 2 पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। पता : 769 गोदीकों का रास्ता, किशनपोल बाजार,जयपुर । श्री पदमचन्द तोतूका जयपुर जैन समाज में श्री पदमचन्द जी तोतूका का विशिष्ट स्थान है । आपके पिताजी श्री हरिश्चन्द्र तोतूका भी समाज में जाने पहिचाने समाज सेवी थे । टैक्सटाइल कमिश्नर,सेन्शस कमिश्नर जैसे पदों पर रहे थे । उच्चाधिकारी थे । 83 वर्ष की आयु में 1977 में आपकी मृत्यु बडी शांतिपूर्वक हुई । पदमचन्द जी को माता का विशेष प्यार नहीं मिला | श्री हरिश्चन्द्र जी प्रतिदिन 4 मंदिरों के दर्शन करते थे। इनकी माताजी इन्हें 11 वर्ष का छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। तोतूका जी का जन्म 28 जून 1928 को हुआ। 15 वर्ष की आयु में पैट्रिक पास किया और 16 वर्ष की आयु में पहिले जयपुर और फिर बेबंई में जवाहरात का व्यवसाय करने लगे। अपनी सूझबूझ लगन एवं निष्ठा पूर्ण कार्य करने के कारण व्यवसाय में आशातीत सफलता मिलती गई और कुछ ही वर्षों में जौहरियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। आपका विवाह 12 दिसम्बर 1945 को अजमेर के श्री छीतरमल जी जैन की सपत्री दोनों को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका ज्येष्ठ पुत्र श्री अनिल तोतूका का जन्म 15 अक्टूबर 50 को हुआ । बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की तथा मुरादाबाद के मोतीलाल जैन एडवोकेट को पुत्री नीरू से आपका विवाह हुआ। श्रीमती नीरू स्वयं भी बी.ए. है तथा दो पुत्र एवं एक पुत्री की मां है । सात नवम्बर 52 को जन्मे इनके पुत्र सुनील तोतूका का विवाह सरसेठ भागचन्द जी सोनी की पौत्री एवं निर्मलकुमार सोनी की पुत्री जयश्री से हुआ । जयश्री भी बी.ए. है तथा तीन पुत्रियों की जननी है। श्री तोतूका जी का सामाजिक योगदान भी उल्लेखनीय है । भट्टारक जी की नशियां में अपने पिताजी की स्मृति में तोतूका भवन बनाकर उसमें विशाल हाल का निर्माण करवाया । श्री अनिल तोतुका सुपुत्र महावीर क्षेत्र के मंदिर में सन् 75 में संगमरमर की सीदियां बनाई। पहावीर हायर सैकेण्डरी श्री पदमचन्द तोतुका विद्यालय में साइन्स लेबोरेटरी तथा सवाई मानसिंह अस्पताल में ज्वैलर्स एसोसियेशन की ओर से जो कपरे बने हैं उनके निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया । दि.जैन आचार्य संस्कृत कालेज के Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 262/ जैन समाज का वृहद् इतिहास संरक्षक सदस्य एवं श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के उपाध्यश्व हैं। श्री महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के मेम्बर हैं। भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बंबई के सदस्य हैं। बंबई में होने वाले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आर्थिक सहयोग देकर उसे सफल बनाया है। आपकी दो पुत्रियां सुधा एवं रानी हैं 1 श्रीमती सुधा के पति मनमोहन मोदी की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। दूसरी पुत्री रानी का विवाह सुधीर कुमार पापड़ीवाल के साथ हुआ है। सन् 1978 में आप दोनों पति-पत्नी ने विश्व भ्रमण किया है। तोतूका परिवार जयपुर का बहुत बड़ा परिवार है। पता- निवास 1. अनुपम डी-32, मालवीय मार्ग, सी-स्क्रीम, जयपुर टेलीफोन नं. 67154-78223 2. राहुल बिल्डिंग बालकेश्वर रोड, पांचवी फ्लोर, बंबई टेलीफोन नं. 3628852- 3613514 कार्यालय 3.1077 नवरत्न एपार्टमेन्ट, चौडा रास्ता, जयपुर फोन. 66308 4. राहुल बिल्डिंग, बालकेश्वर रोड, बम्बई फोन 3628094, 3629389 श्री पदमचन्द सा फाइनैंस ब्रोकरशिप व्यवसाय में प्रतिष्ठा प्राप्त श्री पदमचन्द भैंसा का समाज में भी सम्माननीय स्थान है। आपके पिताजी कपूरचन्द जी भौंसा ने अपनी ईमानदारी एवं निष्ठा से इस व्यवसाय में अपना अच्छा स्थान बनाया था जी श्री की प्रता में और भी चार चांद लगाये हैं। जौहरी बाजार में दुकान नं. 172 कपूरचंद भौंसा के नाम से कार्यालय हैं। आपका जन्म सन् 1945 में हुआ। सन् 1964 में राजस्थान विश्वविद्यालय से बी. कॉम. किया। सन् 1967 में आपका विवाह श्रीमती मोहना देवी से सम्पन्न हुआ । श्रीमती मोहना जैन पार्श्वनाथ महिला मंडल की उपाध्यक्ष है । समाज सेवा में आप बहुत रुचि लेते हैं। श्री पार्श्वनाथ नवयुवक मंडल के अध्यक्ष हैं। श्री पार्श्वनाथ नवयुवक मंडल द्वारा निशुल्क होम्योपैथिक चिकित्सालय, बीजा पांड्या की नशियां आमेर रोड में चालू है। मंडल द्वारा पिछले 4 वर्ष से पार्श्वनाथ जयन्ती पर सामूहिक रक्त दान शिविर एवं सुगन्ध दशमी एवं महावीर जयन्ती पर सांस्कृतिक झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं। मावकाश में धार्मिक प्रशिक्षण शिविर लगाया जाता है आदि आदि । लायन्स क्लब जयपुर केपिटल के संचालक मंडल के सदस्य एवं क्लब की तरफ से यूरोप व अमेरिका का सन् 1989 3 माह भ्रमण किया। में श्री पार्श्वनाथ जैन मेडिकल रिलिफ सोसायटी के संस्थापक सदस्य हैं। स्व. कपूरचंद जी भौंसा की प्रेरणा से इस सोसायटी का निर्माण हुआ । दि. जैन मंदिर पार्श्वनाथ के उपाध्यक्ष हैं। राजस्थान जैन सभा एवं महावीर शिक्षा समिति से आप बहुत जुड़े हुये हैं। स्वभाव से अत्यधिक सरल एवं सहयोग की भावना से ओतप्रोत हैं। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/263 परिवार जन श्रीमती मोहना देवा धर्मपल्ली श्री पदमचन्द्र पौसा श्री कैलाश च भीमा श्री कपुरबन्द जी भौसा आपके चार छोटे भाई और हैं जिनमें कैलाशचन्द जी आप जैसे ही स्वभाव के हैं तथा अपने पिताश्री के पदचिन्हों पर चलने वाले हैं। आप तीन भाई श्री ताराचंद जी,श्री मुकेश जी एवं श्री राकेश जी सभी अपने बड़े भाईयों के साथ कार्यरत हैं। पता : 748, जैन भवन,दरीबा पान,जयपुर। श्री प्रकाशचन्द कासलीवाल पिता- स्व. श्री प्रभुलाल जी स्वर्गवास सन् ।।137, 55 वर्ष की आयु में माता- पिताजी की मृत्यु के 10 दिन के पश्चात माताजी को मृत्यु हो गई। जन्मतिथि - 8 जनवरी 14]। शिक्षा - सामान्य व्यवसाय - ज्वैलरी विवाह - 1924 में । पत्नी का नाम- श्रीमती नांदकंवर सुपुत्री स्व. श्री सठ बंजीलान जी ठोलिया जयपुर। परिवार - पुत्र - । श्री राजेन्द्र कुमार, जन्म 1347. विवाह 1970 पत्नी श्रीमती निशि सुपुत्री श्री मोतीलाल जी मुरादाबाद । जवाहरात के कुशल व्यवमायी हैं। श्री राजेन्द्र कुमार जी कामलोवाल Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 264/ जैन समाज का वृहद् इतिहास - पुत्रियां - 6, नन्हीं बाई,लक्ष्मीबाई, हीराबाई,मुम्रीबाई,कमलाबाई, चित्रा बाई सभी का विवाह हो चुका है। लिशेल शक : तपन भी PasiniPA on.. थार्पिक :- जयपुर के सिरम्होरियों के मंदिर के तलघर का जीर्णोद्धार करवाकर वेदी निर्माण में सहयोगी बने । गोनेराजयपुर) के जैन मंदिर का जीर्णोद्धारकरवाकर वहाँ एक धर्मशाला का निर्माण करवाया। : सामाजिक :- श्री कासलीवाल जी पूरे सामाजिक व्यक्ति है । पद एवं अधिकारों से दूर श्रीमती निशी धर्मपत्नी रहकर समाज की विविध गतिविधियों में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं । वैसे आप कितने ही श्री राजेन्द्र कुमार जी कासलीवास सामाजिक संगठनों के अध्यक्ष एवं संरक्षक रह चुके हैं । वर्तमान में दि.जैन अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा के संरक्षक हैं । अनेक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। विदेश यात्रा :- अपने व्यावसायिक कार्यों से विदेशों में जाते रहते हैं। अब तक चार बार विश्व भ्रमण कर चुके हैं। आपके पूर्वज आगरा के थे तथा आपके पिता श्री प्रभुलाल जी जयपुर आकर रहने लगे थे। पता : बी-6, सी पृथ्वीराज मार्ग,अशोक नगर, जयपुर । श्री प्रकाशचन्द जैन श्री जैन मोजमाबाद के चौधरी परिवार के यशस्वी सदस्य हैं। आपके पिताश्री श्री घीसीलाल जी चौधरी तहसीलदार के नाम से प्रसिद्ध हैं। आपका जन्म मोजमाबाद जिला जयपुर में 1 मार्च, 1931 को हुआ। बी.कॉम. एल.एल.बी. करने के पश्चात् आपने राजकीय सेवा में प्रवेश किया । आप प्रबन्ध संचालक राज. भंडार व्यवस्था निगम,उपसचिव,जिलाधीश भरतपुर,नागोर, अलवर व उदयपुर कोलोनाईजेशन कमिश्नर इन्द्रागांधी नहर परियोजना, विशिष्ठ शासन सचिव,मंत्रीमंडल सामान्य प्रशासन विभाग व शिक्षा विभाग आदिमहत्वपूर्ण पर्दो पर कार्यरत रहे एवं संभागीय आयुक्त बीकानेर के पद से दि.31.3.89 को सेवानिवृत्त हुये। इसके पश्चात् दि. 13.4.89 से आप को पुनः नियुक्ति सदस्य राज राज्य सेवा अपील अधिकरण के सदस्य रूप में हुई जहां अभी भी कार्यरत हैं। पता :- राजेन्द्र मार्ग,बापूनगर,जयपुर Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /265 ४. . श्री प्रकाश अजमेरा पिता- स्व. श्री चौगानमल जी जैन माता- श्रीमती इचरज देवी जी बन्मतिथि - 17 जनवरी,1954 शिक्षा - बीकॉम. व्यवसाय - राज्य सेवा 498 Ke HAMASE WARDand पत्नी का नाम- श्रीमती कुसुम जैन परिवार - पुत्रियां 2 पुत्र 1 1-कु. प्रेरणा 2. कु.रुचि 3. अर्पित विशेष श्री जैन की छात्र जीवन से ही समाज सेवा में रुचि रही है। कालेज में छात्रसंघ के सचिव पद पर कार्य किया था। भारतीय युवक परिषद की राज्य शाखा के प्रान्तीय महामंत्री, श्रीमती कुसुम जैन धर्मपल्ली भारतीय दिगम्बर जैन परिषद की राजस्थान शाखा के प्रान्तीय उपपंत्री, पार्श्वनाथ दि. जैन श्री प्रकाश चन्द जैन मंदिरटर्टीक फाटक के मंत्री रह चके हैं। पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख छपते रहते हैं। वैसे पांच वर्षे तक आप दैनिक नवज्योति के पत्रकार भी रह चुके हैं। वाद विवाद प्रतियोगिता, निबन्ध प्रतियोगिता में कई बार भाग लेकर पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं : प्रगतिशील विचारों के नवयुवक हैं । पता - ए-8, टेलीफोन कालोनी,टौंक फाटक,जयपुर - 302015 श्री प्रकाशचन्द कोठ्यारी कोठ्यारी परिवार में 10 अगस्त, 1930 को जन्मे श्री प्रकाशचन्द कोठ्यारी जयपुर के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री रामचन्द्र कोठ्यारी के ज्येष्ठ पुत्र हैं । सन 1951 में आपने हाईस्कूल किया लेकिन उसके तीन वर्ष पूर्व ही आपका विवाह सीकर के सागरमल जी छाबड़ा की सुपुत्री श्रीमती रतनदेवी से हो गया । आपको माता जी श्रीमती गुलाबदेवी आपको 2 वर्ष का छोड़कर स्वर्ग सिधार. गई। श्री प्रकाशचन्द जी शान्त जीवन यापन करते हैं : धार्मिक संस्काने में पले हुये हैं । वर्तमान में आप पार्श्वनाथ भवन मुनि संघ कमेटी के अध्यक्ष हैं तथा आपमें सभी को अपना सहयोग देते रहने की भावना निहित हैं । पता : कोठ्यारी भवन,चौड़ा रास्ता,जयपुर Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 266 / जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री प्रकाश बख्शी जयपुर के प्रसिद्ध बख्शी परिवार में दि. 9-6-1947 को जन्मे श्री प्रकाश बख्शी युवा समाज सेवी हैं। साइन्स पेज्यूएट हैं। शांत एवं धार्मिक जीवन में विश्वास रखते हैं। अपने पिता श्री दीपचन्द जी बख्शी माता श्रीमती स्नेहलता बख्शी की तरह सभी सामाजिक संस्थाओं में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आपका विवाह हेमलता के साथ 17 मई 1970 को संपत्र हुआ । हेमलता जी इंटरमीजियट हैं तथा एक पुत्र हिमांशु एवं पुत्री अर्पिता की जननी है। श्री बख्शी जी के कैमिकल्स का व्यवसाय है । पता - 305 बख्शी भवन, आंकड़ों का रास्ता, किशनपोल बाजार, जयपुर । श्री प्रकाशचन्द दीवान जयपुर राज्य के दीवानों में दीवान स्योजीराम जी एवं दीवान अमरचंद जी का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। दीवान श्योजीराम संवत् 1834 से 1867 तक जयपुर राज्य के दीवान रहे। इसके सामने ही इनके पुत्र अमरचंद जी दीवान नियुक्त हुये जो संवत् 1860 से 1892 तक दीवान रहे। इनके पुत्र ज्ञानचंद जी हुये जो ब्रिटिश सरकार के प्रकोप से इधर उधर ही रहते रहे। उनके पुत्र उदयलाल जी दो विषयों में एम.ए. थे तथा पोस्ट मास्टर जनरल के पद पर रहे। उनके पुत्र दीवान फतेहलाल जी भी पोस्ट मास्टर के पद पर रहे। उनके पश्चात् उनके पुत्र ईश्वरलाल जी हुये। ईश्वरलाल जी के दो पुत्र हुये। भंवरलाल जी एवं प्रकाशचंद 'जी। दीवान भंवरलाल जी का अभी कुछ वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। वर्तमान में श्री प्रकाशचंद जी दीवान संस्थाओं, मंदिरों, धर्मशालाओं का कार्य देख रहे हैं। जयपुर में बड़ा दीवान जी का मंदिर, छोटे दीवान जी का मन्दिर, दीवान जी की धर्मशाला, नशियां आदि सभी आपके पूर्वजों द्वारा बनवाई हुई हैं जिनका रखरखाव, सुरक्षा आदि सभी कार्य आपको देखना पड़ रहा है। tara साहब के माता-पिता दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपकी माताजी गुलाब बाई धर्मपरायण महिला थी । आपने तथा आपके दोनों पुत्रों भवरलाल जी प्रकाशचंद जी ने दीवान जी की नशियां का पूर्णतः जीर्णोद्धार कराया। सार्वजनिक ट्रस्ट बनाकर उसकी आय के स्रोत बनाये। आपकी माताजी ने नशिया में पान-स्तंभ बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवाई । धर्मशाला एवं छोटे दीवान जी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। आपकी माताजी मुनियों के चातुर्मास करवाने में बहुत रुचि लेती थी । श्री प्रकाशचंद जी भी बहुत उत्साही युवक हैं। समाज सेवा में बहुत अभिरुचि है। अपने मंदिरों के जीर्णोद्धार में बहुत रुचि लेते हैं । आपकी पत्नी ने अभी महिला जागृति संघ द्वारा आयोजित नेत्र चिकित्सा शिविर का उद्घाटन किया था । पता दीवान जी की नशियां, एस.एम.एस. के सामने, जयपुर । Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /267 श्री प्रकाशचन्द्र जैन बोहरा प्रौढ़ शिक्षा जयपुर के सहायक निदेशक श्री प्रकाशचन्द जैन स्वभाव से अत्यधिक धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत हैं । आपका जन्म8 अप्रेल 37 को हुआ। आपके माताजी श्रीमती राज सजना 70 वर्ष एवं पिताश्री मोतीशंकर जी बोहरा 76 वर्ष दोनों ही केशोरायपाटन रहते हैं। आपने एम.एस.सी.एम.एड. जैसी उच्च परीक्षायें पास की। मई सन् 1956 में आपका विवाह मैना जैन से हुआ। आप दोनों तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों से गौरवान्वित हैं। आपका ज्येष्ठ पुत्र मनोजकुमार (27 वर्ष)मेटेलर्जिकल वरिष्ठ इंजी. नियर प्रोसेज के पद पर हिन्दुस्तान जिंक लि.में कार्यरत है । दूसरा पुत्र रवि जैन देहली में सिविल इंजीनियर हैं। तीसरा पुत्र मुकेश रा.उ.मा.वि.सरवाड में कार्यरत है। दोनों पुत्रियां रश्मि एवं सुरभि उच्च शिक्षित हैं । सभी पुत्र पुत्रियां अभी अविवाहित हैं । आपके पांच छोटे भाई एवं एक बहिन हैं । सभी व्यवसायरत हैं । वर्तमान में जैन सा. जिला शिक्षाधिकारी धौलपुर के पद पर कार्यरत हैं। श्रीमती मैना देवी धर्मपली श्री प्रकाश चन्द जैन बोहरा पता : 1.3ए-3 तलवंडी केटा 2-10 किसान मार्ग बरकर नगर जयपुर । श्री प्रकाशचन्द संघी लुहाड़िया श्री रतनलाल जी संघी के सुपुत्र श्री प्रकाशचन्द संधी का जन्म 27 जुलाई सन 1940 को हुआ । सन् 1962 में राजस्थान विश्वविद्यालय से बिजनेस मेनेजमेन्ट में पोस्ट ग्रेज्यूएट डिप्लोमा प्राप्त किया। सन् 1972 में बेचलर आफ इंजीनियरिंग(खनिज ब्रांच) की परीक्षा पास की। खनिज इंजीनियर बनते ही आप राजस्थान के खनिज विभाग में चले गये। जिसमें सन् 15 से सुपरिन्टेडिंग इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। आपका विवाह श्रीमती आशा के साथ सन 1967 में संपन्न हुआ। श्रीमती आशा संधी ने भी सन् 1998 में इंदौर विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइन्स में एम.ए. किया : आप तीन पुत्रियों के पिता हैं । कुमारी दीपिका,रचना एवं कुमारी शिक्षा तीनों ही उच्च अध्ययन कर रही हैं। संघी जी को विशिष्ट सेवाओं के लिये सन् 1971 में राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया। आप अपने पिताश्री रतनलाल संघी के ज्येष्ठ पुत्र हैं । श्री रतनलाल जो परम शान्त परिणामी एवं स्वाध्याय करने में पूर्ण रुचि लेते हैं। पता :- 6/5 हीराबाग फ्लैट्स रामसिंह रोड़,जयपुर। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 268 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री प्रकाशचंद सेठी स्वतंत्रता सेनानियों के सिरमोर श्री अर्जुनलाल सेठी के नाम से सभी परिचित होंगे। श्री प्रकाशचंदजी सेठी को उन्हीं का ज्येष्ठ पुत्र होने का गौरव प्राप्त है। आपका जन्म 9 अप्रैल, 1926 को तब हुआ जब अर्जुनलाल जी सेठी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहे थे। आप सन् 1946 में बी.एस.सी. करने के उपरान्त ही जयपुर राज्य में अध्यापक नियुक्त हुये एवं उप जिला शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुये । सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती ललिता देवी के साथ संपन्न हुआ। आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सुखद अवसर मिला। ज्येष्ठ पुत्र आलोक हैं। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कोकिला है जो पीएच.डी. उपाधि से अलंकृत हैं। भगवान आदिनाथ पर आपने शोधकार्य किया है। डा. श्रीमती कोकिला अच्छी विदुषी हैं, लेखिका हैं तथा वोर बालिका महाविद्यालय में कार्यरत हैं। महिला जागृति संघ की संयुक्त मंत्री रह चुकी है। छोटे पुत्र अरुण सेठी एम.बी.बी.एस. डाक्टर हैं तथा कुष्ट रोग एवं मानसिक रोग के विशेषज्ञ हैं। डा. अरुण सेठी वर्तमान में उत्तरप्रदेश सरकार में उप मुख्य चिकित्साधिकारी हैं एवं आगरा में कार्यरत हैं। आपकी पुत्री आभा भी डाक्टर हैं तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं प्रकाशचंद जी सेठी के छोटे भाई डा. जगतप्रकाश सेठी हैं जो मेडिकल क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त हैं । आभासेठ सुपुत्री श्री प्रकाश चन्द्र सेठी डॅ कोकिला सेटी सेठी जी सफल अध्यापक एवं प्रशासक रहे हैं। स्पष्टवादिता आप में कूट-कूट कर भरी हुई है। मुनियों की सेवा करने में रुचि रखते हैं। सेटो कोलोनी के मंदिर निर्माण में आपने भी आर्थिक सहयोग दिया है। श्री प्रकाशचंद्र सेठी सेवा नियमों में पारंगत हैं एवं सेवा निवृत्ति के उपरान्त राज्य सेवकों को सेवा संबंधी प्रकरणों में यथा संभव सहायता करते रहते हैं। पता :- ए-50 सेठी कालोनी, जयपुर । श्री प्रकाशचन्द सौगानी यूनिवर्सल सप्लाई कारपोरेशन के मालिक श्री प्रकाशचन्द्र जी सौगानी का जन्म 27 दिसम्बर 1924 को हुआ। आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी सौगानी राथल स्टोर वाले कहलाते थे तथा स्वादिष्ट भोजन खाने एवं खिलाने के लिये प्रसिद्ध थे। जब वे 70 वर्ष के थे तभी उनका निधन हो गया। प्रकाशचंद जी उनके इकलौते पुत्र हैं जो पी.सी. सौगानी के नाम से अधिक जाने जाते हैं । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /269 श्री सौगानी जी ने सन् 38 में मैट्रिक किया और अपनी पिताजी को आज्ञानुसार व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश किया। आपको इंजीनियरिंग लाइन अधिक पसन्द थी इसलिये 1941 में ही रेफ्रीजिरेटर बिक्री का कार्य प्रारंभ कर दिया। इसके पश्चात् धीरे धीरे अपने व्यवसाय में उन्नति करते गये और सन् 1948 में यूनिवर्सल सप्लाई कारपोरेशन की स्थापना की और कुछ ही वर्षों में आपने अपने व्यवसाय में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की । राजस्थान के सभी प्रमुख नगरों में इस कारपोरेशन की शाखायें एस्कोर्ट ट्रेक्टर्स के अच्छे विक्रेता हान के कारण 1973 मे एस्कोड लिमिटेड ने आप दोनों पारा-पली को लंदन,पेरिस, रोप एवं धारसा की यात्रा कराई । इसी कम्पनी द्वारा 1984 में फिर आप दोनों को जापान, हांगकांग, बैकाक एवं सिंगापुर का भ्रमण कराया तथा 1984 में मैसर्स लारसन एंड टुब्रो लि. तथा एटलस कोपीको लि. ने हनोवर वेस्ट जर्मनी में आयोजित मेले की तथा अमेरिका की यात्रा करवाई । इस दृष्टि से आप बहुत भाग्यशाली सिद्ध हुये । श्री सौगानी जो राज.इलेक्ट्रिक्स मशीनरी एसोसियेशन के अध्यक्ष रहे तथा सन्मति पुस्तकालय की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। सन् 1994 में आपने निशुल्क शिक्षा के लिये एक एलफा बीटा स्कूल की भी स्थापना की थी। श्री दिगम्बर जैन संस्कृत आचार्य महाविद्यालय में अपने पिता की स्मृति में एक विशाल हाल का भी निर्माण करवाया है। आपकी पत्नी श्रीमती विमला देवी धार्मिक स्वभाव को महिला हैं । वे इंदौर के जौहरी श्री मानकचंद अजमेरा की पुत्री हैं। श्रीमती विमलाजी बड़ी भाग्यशाली महिला हैं । सौगानी जी को एक पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता होने का गर्व है । सभी पुत्रियां इंदिरा अरुणा.कामिनी श्रीपती विमला देवी धर्मपली एवं मनीषा का विवाह हो चुका है । आपका बुत्र अरुण सोगानी भी विवाहित है। बीकॉम है। श्री प्रकाश चन्द सौगानी हार्वर्ड विश्वविद्यालय से एम.बी.ए. किया है । आपने 1981 में कम्प्यूटर डिवीजन अलग खोला है जिसमें आपको पर्याप्त सफलता मिली है । आप एक पुत्र एवं एक पुत्री से मुशभित हैं। पता : सी - 410, लाजपत मार्ग,सी स्कीम,जयपुर । वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल ___ जयपुर नगर में जैन आयुर्वेदिक चिकित्सकों में वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल का नाम प्रथम स्थान पर आता है । उनका जन्म आसोज सुदी पूर्णिमा संवत् 117799 को हुआ। अपने गांव सैंथल से जयपुर आकर कासलीवाल जी ने जैन दर्शन, उपाध्याय एवं भिषणाचार्य की परीक्षा पास की तथा राजकीय सेवा में चले गये। इसके पर्व आपने दि. जैन । औषधालय में प्रमुख चिकित्सक के पद पर कार्य किया । सन् 1944 में आपका विवाह दीवान शिवजीलाल जी के वंशज दीवान जयकुमार जी श्रीमती सरस्वती देवी धर्मपली की पुत्री सरस्वती देवी से हुआ। आपको पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता पिता बनने का वैन प्रभुदयाल कासलीवाल सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र कमलेश कुमार एम बी ली.एस., एम.एस. वरिष्ट " Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 270/ जैन समाज का बृहद् इतिहास नेत्र चिकित्सक है। उनकी पत्नी डा. पुष्पा जैन भी वरिष्ठ महिला चिकित्सक है । दूसरे पुत्र राजेशकुमार बैंक सेवा में अधिकारी हैं। तीसरे पुत्र अशोक कुमार भी बैंक सेवा में अधिकारी हैं । चतुर्थ पुत्र सुभाष कासलीवाल जयपुर शेयर कारपोरेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा पांचवे पुत्र श्री राजीव जवाहरात का कार्य करते हैं । तीन पुत्रियों में सभी का विवाह हो चुका है। वैद्य प्रभुदयाल लेखक के छोटे भाई हैं । चिकित्सा के अतिरिक्त आप अच्छे लेखक एवं चिन्तक है। अब तक आत्म विनिश्चय, समयसार प्रकाश,प्रवचन सार प्रकाश,पंचास्तिकाय प्रकाश,आत्मानुशीलन एवं श्रावक धर्म छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । सभी पुस्तकों का समाज में अच्छा स्वागत हुआ है । आप अच्छे व्याख्याता है तथा धार्मिक सभाओं में प्रवचन करते रहते हैं । हस्तरेखा विशारद हैं। ज्योतिष शास्त्र में आपकी अच्छी गति है । समाज सेवा में भी आपकी गहरी रुचि है। दि.जैन औषधालय के उपाध्यक्ष एवं रसायन शाला के मंत्री रह चुके हैं । दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय,ज्ञान विद्यालय,राज. जैन साहित्य परिषद् की कार्यकारिणी सदस्य हैं । आप कवितायें खूब लिखा करते हैं । वीरवाणी आदि पत्रों में आपके लेख एवं कवितायें प्रकाशित होती रहती हैं। सेमिनारों में भाग लेते रहते हैं। पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के प्रमुख शिष्यों में से एक हैं। वर्तमान में आप चिन्तन एवं लेखन में ही लगे रहते हैं। पता : ए-28, जनता कालोनी,जयपुर। श्री प्रभुलाल काला नागौर जिले के कुचामन सिटी में दि.14-1-1927 को जन्मे श्री प्रभुलाल काला का नाम सिनेमा व्यवसाय में अच्छा रहा । आपके पिताजी श्री किशनलाल जी काला को सन् 1978 में और माताजी श्रीमती चन्दनी देवी का निधन सन् 1979 में हो गया । आपकी पत्नी श्रीमती स्नेहप्रभा एम.ए. हैं जो अच्छी विदुषी एवं लेखिका हैं । आपका एक मात्र पुत्र डा.सुभाष काला एम डी. है तथा संतोकबा दुर्लभ जी अस्पताल में कार्यरत है । डा.सुभाष की पत्नी श्रीमती प्रेम काला भी एम.बी.बी.एस. डाक्टर है तथा निजी प्रेक्टिस करती है । डा. श्रीमती प्रेम काला इन्दौर के हीरालाल गंगवाल की सुपुत्री हैं। काला जी स्वभाव से सीधे - सादे एवं व्यवहारकुशल थे । ये चुपचाप कार्य करने में विश्वास करते थे। जयपुर चैम्बर आफ कामर्स की कार्यकारिणी के सदस्य थे। प्रारंभ से ही सिनेमा व्यवसाय में रहे तथा अन्त तक राजश्री पिक्चर्स जयपुर के निदेशक के पद पर कार्यरत रहे । पता : बी 161 ए आदर्श नगर,फतेह टीबा,जयपुर । श्री प्रभुदयाल गंगवाल जन्म तिथि - मंगसिर सुदी 10 संवत् 1988 शिक्षा-सामान्य आपके पिताश्री कन्हैयालाल जी का 22 जनवरी सन् 1986 को स्वर्गवास हुआ था। उसके कुछ दिनों पञ्चात ही मातश्री किशनादेवी का 25 फरवरी 86 को स्वर्गवास हो गया । आपका विवाह संवत् 2006 में मंगसिर सुदी 10 को श्रीमती तारादेवी के साथ संपन्न हुआ। जो श्री मूलचंद जी लुहाडिया फिरोजपुर (पंजाब) को सुपुत्री हैं । आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री AM Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /271 है। सबसे बड़ा पुत्र सतीशचन्द जवाहरात का कार्य करते हैं । शेष दोनों पुत्र ज्ञानचंद एवं महावीर कुमार फोटाग्राफी के व्यवसाय में लगे हुये हैं । सभी का विवाह हो चुका है। आपकी एक मात्र पुत्री सुशीला देवी का विवाह हो चुका है। वर्तमान में आप झालाना डूंगरी जयपुर में माइन्स का तथा सुबोध उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में केन्टीन का संचालन करते हैं। विशेष :- श्री गंगवाल जी धार्मिक प्रकृति के सरल परिणामी एवं मधुर भाषी श्रेष्ठी हैं । प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा करते हैं। अपके पिताजी बहुत दानी स्वभाव के थे । वे दि.जैन संस्कृत महाविद्यालय के स्थायी सदस्य थे। गंगवाल जी तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं तथा सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। आपकी धर्मपत्नी भी प्रतिदिन पूजा करती है तथा व्रत उपवास करती रहती हैं। श्री प्रभुदयाल जो वर्तमान में दि.जैन पार्श्वनाथ मंदिर मधुवन कालोनी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । मूडविद्री एवं हस्तिनापुर, जम्बूद्वीप में भी शास्त्रों की सरक्षा एवं आहार दान के लिये आर्थिक सहायता दी है । पता: प्रभुदयाल गंगवाल,22, किसान मार्ग,टौंक रोड,जयपुर | श्री प्रवीणचन्द जैन कासलीवाल राजस्थान राज्य के उच्च पदों पर कार्य करने के पश्चात् सेवा निवृत्त श्री प्रवीणचन्द जी जैन समाज में पी.सी.जैन के नाम से प्रसिद्ध है । श्री जैन का जन्म 4 जुलाई 1931 को टोडारायसिंह कस्वे में हुआ था । आपके पिताश्री चन्दालाल जी 40 वर्ष की आयु में ही स्वर्गवासी बन गये। आपकी माताजी सप्तम प्रतिमाधारी श्राविका है। बी.कॉम.एल.एल.बो. एवं विशारद करने के पश्चात् आपने अपना जीवन शिक्षक के रूप में प्रारंभ किया। किन्तु 1956 में आर.ए.एस. करने के पश्चात् राजकीय सेवा में चले गये । सन् 1981 में आप आई.ए.एस. में चुन लिये गये । इसके पश्चात् जिलाधीश झालावाड़, अतिरिक्त आयुक्त कामर्शियल टैक्सेशन आफ राजस्थान जैसे उच्च पदों पर रह कर ख्याति प्राप्त की। आपका सन् 1953 में श्रीमतो फूलवती देवी के साथ विवाह हुआ । आप दोनों पति-पत्नी को चार पुत्र एवं चार पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। सबसे बड़ा पुत्र अनन्त जैन बी कॉम.एल.एल.बी. है तथा प्लास्टिक की फैक्ट्री देखते हैं । चारों पत्रियां सुनीता, संगीता, अलका और सीमा सभो पढ़ रही है। श्री जैन ने खानियां चूलगिरी के मंदिर में मूर्ति विराजमान की थी। आप जयपुर की विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। पदमपुरा अ.क्षेत्र कमेटी के उपाध्यक्ष,शांति वीर नगर महावीर जी के ट्रस्टी,बाल शिक्षामंदिर की कार्यकारिणी के सदस्य,महावीर हाईस्कूल की महासमिति के सदस्य हैं। पार्श्वनाथ नवयुवक मंडल,बापू नगर द्वारा सम्मानित हैं। एवरेस्ट कालोनी में नवीन मन्दिर निर्माण का आपने यशस्वी कार्य किया है। पता : 45, एवरेस्ट कॉलोनी,लाल कोठी,टोंक रोड, जयपुर -15 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2728 जैन समाज का बृहद इतिहास श्री प्रवीणचन्द्र छाबड़ा पत्रकारिता के क्षेत्र में सुपरिचित श्री प्रवीणचन्द्र छाबड़ा को समाज में उप विचारों का वक्ता माना जाता है । सभाओं में वे स्पष्टवादिता के लिये प्रसिद्ध हैं। आपका जन्म 25 जुलाई 1931 को हुआ । आपके पिताजी स्व. गुलाबचन्द जी छाबड़ा भो अपने समय के लप विचारों के वक्ता व समाज सुधारक थे । पं. चैनसुख दास जो न्यायतीर्थ की शिष्य परम्परा में श्री छाबड़ा अच्छे वक्ता होने के साथ स्वतंत्र विचारक व कलम के धनी हैं । उनका सबसे पहला लेख 'वीर वाप्पी में प्रकाशित हुआ,जब वे सत्रह वर्ष के थे । उन्होंने 1943 में पत्रकारिता के क्षेत्र में दैनिक ' जन्मभूमि से प्रवेश किया । आप कलकत्ता के विश्वमित्र, लोकमान्य तथा जयपुर के दैनिक लोकवाणी में सह संपादक रहे । भाषायी संवाद समिति ' समानानी के लिये राजाशार पं.नागल हरियाणा र पंजाब के ब्यूरो प्रमुख के पद पर काम कर चुके हैं। आप अखिल भारतीय श्रप जीवी पत्रकार परिषद् को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य,राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के महामंत्री राजस्थान में केन्द्रीय कर्मचारी संघों की समन्वय समिति के संयोजक रह चुके हैं। आपने तृतीय विश्व पत्रकार सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान आपने कई देशों की यात्रा की । सामाजिक संस्थाओं में श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री पार्श्वनाथ चूलगिरी के संरक्षक, राजस्थान जैन सभा के संस्थापन सदस्य हैं। अन्य संस्थाओं में महावीर हायर सैकेण्डरी स्कूल, आरोग्य भारती 'के नाम उल्लेखनीय हैं । सर्वोदर साहित्य समाज के संस्थापक सदस्य एवम् अर्जुनलाल सेठी नगर की परिकल्पना को साकार करने में प्रमुख योगदान रहा है। महाराजा सवाई जयसिंह स्मृति दिवस के प्रमुख आयोजक,जयपुर में तास मण्डल एवम् अन्तर्राष्ट्रीय सभा भवन की स्थापना आपकी प्रेरणा का सुफल है। अब तक आपकी चांदन के बाबा" धम्मम्-शरणम् ' तथा ' सिद्ध क्षेत्र की पगडण्डी पर ' रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको राजस्थान दिवस पर 1989 में राजस्थान सरकार द्वारा पत्रकारिता के लिये सम्मानित किया गया | आपको तीन पुत्र व दो पुत्रियों के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है । पता : 2, न्यू-कालोनी,जयपुर। श्री प्रवीणचन्द पाटनी (खिन्दूका) जोवन में सदा क्रियाशील रहने वाले श्री प्रवीणचन्द पाटनी का जन्म 1 अगस्त सन 1920 को हुआ था।आपके पिताजी श्री गुलाबचन्दजी तो आपके जन्म के एक मास पश्चात् ही स्वर्ग सिधार गये। रह गई अकेली मां तीजाबाई । आपने प्रवेशिका, मैट्रिक एवं इन्टर तक अध्ययन किया और सरकारी कार्यालय में काम करने लगे। धीरे-धीरे अपने पद पर वृद्धि पाते अन्त में अनुभागाधिकारी राजस्थान सचिवालय के पद से सेवा-निवृत्त हुये। सन् 1948 में आपका विवाह श्री हजारीलाल जी मुंशी की पुत्री श्रीमती मुन्नीदेवी के साथ संपन्न हुआ । मुन्नी देवी आध्यात्मिक महिला हैं । महिला जागृति संघ की सदस्य रह चुकी हैं। आपको तीन पुत्रों गजेन्द्र कुमार, कैलाशचन्द एवं लोकेन्द्र कुमार एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /273 कित्सा से . . महाराज पाटनी जी बहुत ही सरल एवं मिलनसार हैं । दुखदर्द में काम आने वाले हैं। समाज में चुपचाप काम करने में विश्वास रखते हैं । आपके पूर्वजों द्वारा बनवाया हुआ, आपके घर में जिन चैत्यालय ' है जो ऊंची पैडी वाले खिन्दूका के चैत्यालय के नाम से जाना जाता है। आप श्री दि. जैन मन्दिर खिन्दूकान के मंत्री रह चुके है। सेवा निवृत्ति के पश्चात् आपने नवज्योति में कार्यालय अधीक्षक एवं राजस्थान पत्रिका में सम्पादकीय विभाग में 14 वर्ष तक कार्य किया सन् 1953 में आप लेखक (डॉ. कासलीवाल) के साथ कलकत्ता में बेलगछिया में ग्रन्थ प्रदर्शनी आयोजित करने गये थे। पता- पाटनी धवन, मकान नं.1193, रास्ता चुरुकान,जयपुर डा. प्रेमचन्द काला जयपुर के सवाई मानसिंह हास्पिटल में डा. प्रेमचन्द काला सर्जरी के प्रोफेसर है तथा | अपनी चिकित्सा के लिये लोकप्रिय वरिष्ठ डाक्टर है। अब तक आपने शल्य चिकित्सा से । संबंधित 35 पेपर्स प्रान्तीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कान्फ्रेंसों में पढ़े हैं तथा 30 से अधिक खोजपूर्ण पत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं। डा.काला श्री मोहनलाल जी कालरात्र हैं। अपने पिता भी आटिटिगर्टमेन के सर्वोच्च पदों पर रहे थे। अपने पिताजी के समान अध्ययन एवं सेवा की वही प्रवृत्ति आप में भी देखी जा सकती है । 18 जून, 1934 को जन्में डा.काला जी ने एम.बी.बी.एस.एण्ड एम.एस. (सर्जरी) में किया। आप चार पुत्रियों- प्रीति,रश्मि,नीना एवं नूपुर जैन के पिता हैं । आपके छोटे भाई श्री नरेन्द्र कुमार बी.ए.,बी.ई. है तथा वर्तमान में एम एम टी सी में जनरल मैनेजर हैं। डा. काला जी जयपुर के लोकप्रिय चिकित्सक हैं । धार्मिक विचारों के हैं। पार्श्वनाथ मंदिर में ऐलोपैथिक अस्पताल आपही की देखरेख में चल रहा है । आपका सेवाभावी जीवन है । प्रतिदिन मंदिर जाने का नियम है। पता - सी-45, प्रेमपथ, राजेन्द्र मार्ग,बापू नगर,जयपुर । श्री प्रेमचन्द कोठारी जयपुर से श्रीमहावीर जी तक पद यात्रा संघ के संयोजक के रूप में प्रसिद्ध श्री प्रेमचन्द जी कोठारी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं । आपका जन्म रेनवाल माम में दिनांक 2-7-40 को हुआ। अपने रेनवाल गांव से ही आपने सन् 1958 में हायर सैकण्डरी पास की और फिर राज्य सेवा में आ गये। सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने में आप सदैव आगे रहते हैं। साधुओं की भक्ति करने में आपविशेष रुचि लेते हैं । मधुवन कालोनी में स्थित दि.जैन पार्श्वनाथं मंदिर के आप अध्यक्ष हैं और मंदिर के निर्माण में आपका बहुत सहयोग रहता है । मोहनपुरा के दि. जैन मंदिर में जीर्णोद्धार करवाकर आपने प्रशंसनीय कार्य किया है। आप दि. जैन महासमिति के सदस्य भी Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 274 जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके पिताजी श्री गैदीलाल जी रेनवाल के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं तथा आपकी माता श्रीमती गुलाबदेवी धर्मपरायण महिला हैं। श्री कोठारी जी का विवाह दि.14-2-59 को श्रीमती रतनदेवी के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों को दो पुत्र एवं एक पुत्री का माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । पुत्री उषा का विवाह हो चुका है। ___ कोठारी जी सक्रिय कार्यकर्ता हैं तथा मिलनसार, आतिथ्य प्रेमी एवं उदारमना हैं । आपको धर्मपत्नी श्रीमती रतनदेवी कोठारी भी पूजा पाठ करने वाली महिला हैं । बरकत नगर की महिला मंडल की सक्रिय सदस्या है । प्रतिवर्ष जयपुर से महावीरजी पद यात्रा संघ का नेतृत्व करते हैं। पता - सी-2 मधुवन,ौंक फाटक, जयपुर । श्री प्रेमचन्द खिन्दूका खिन्दूका परिवार में 9 मई 1928 को जन्मे श्री प्रेमचन्द खिन्दूका यश एवं ख्याति से दूर रहते हुये अपने पिताश्री की स्मृति में सन 1984 में भापित श्री रामचन्द्र प्रेमचन्द खिन्दूका चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से मानव सेवा एवम् समाज सेवा में अपना योगदान देते रहते हैं। अपने युग के प्रसिद्ध समाज सेवी श्री रामचन्द्रजी खिन्दूका के द्वितीय युवा पुत्र होने के कारण समाज सेवा में आपकी रुचि बचपन से ही रही है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती रलप्रमा भी उदार हृदय एवम् स्वाध्यायशील स्व.श्री ताराचन्दजी गंगवाल की सुपुत्री है। श्री खिन्टूका जी को एक पुत्र एवम् तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपके पुत्र डा.सुशील जैन एमड़ी हैं तथा कैन्सर व खून की बीमारियों में अमेरिका में विशेष योग्यता प्राप्त की है व अवार्ड भी प्राप्त कर चुके हैं । चिकित्सा के क्षेत्र में डा. सुशील ने अमेरिका में अच्छा नाम कमाया है तथा लोकप्रियता प्राप्त की है। अमरीका के पत्रों में आपकी कितनी ही बार प्रशंसा प्रकाशित हुई है । इस समय आप अमरीका में ओहायो (क्लीवलैण्ड) शहर में प्रेक्टिस कर रहे हैं । इसी तरह आपकी तीनों पुत्रियों सौ.कुसुम व अंजना अमरीका में रहती हैं व सौ.सरोज अब कनाडा से पिलानी आ गई हैं। आपके बड़े भाई श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दुका भारतवर्षीय स्तर के समाजसेवी श्री रामचन्द्र जी खिन्दूका हैं तथा छोटे भाई शांतिकुमार अमरीका में रहते हैं, शांतिकुमार जी की अमरीका के अच्छे शिक्षाविदों में गणना की जाती हैं। पता : द्धिन्दूका पवन - न्यू कालोनी, पांच बत्ती,जयपुर । फोन - 74155 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /275 श्री प्रेमचंद छाबड़ा मालपुरा निवासी श्री प्रेमचंद छाबड़ा का जन्म 25 अप्रैल,सन् 1934 को हुआ। आपके पिताजी का नाम अमीचंद जैन था तथा माता धापू बाई आपके पास रहती हैं। सन् 1975 में बी.कॉम.पास किया लेकिन इसके पूर्व ही आप राज्य की सेवा में चले गये थे। जहां से आपने 1 अप्रैल,1988 को लेखाकार के पद से सेवा निवृत्ति प्राप्त की। आपका विवाह सन् 1958 में श्रीमती शांतिदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। आपका ज्येष्ठ पुत्र महेन्द्रकुमार एम.कॉम. है तथा उसकी पत्नी श्रीमती मीनाक्षी बीकॉम.है। द्वितीय पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार की पत्नी श्रीमती अरूणा बी.ए.है । तृतीय पत्र श्री देवेन्द्रकमार की पत्नी का नाम इन्द्रबाला है। चतुर्थ पुत्र धर्मेन्द्र कुमार बी कॉम.है। आपके ताऊ जी श्री अभयकुमार जी शुल्लक दीक्षा लेकर आनन्द सागर जी कहलाये। मालपुरा के श्री चन्द्रप्रभुजी (चौधरियान) मन्दिर में महावीर स्वामी को अष्ट धातु की प्रतिमा विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त किया । आपके माता-पिता टोडारायसिंह में मुनि श्री सन्मति सागर जी की क्षुल्लक दीक्षा पर उनके माता-पिता बने थे। आपकी पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है। श्री छाबड़ा जी सन् 1967 से जयपुर में रह रहे हैं। आप बहुत शांत स्वभावी एवं सरल परिणामी हैं । प्रतिदिन मंदिर में पूजा एवं अभिषेक करते हैं। पता : बी-24 मधुवन कालोनी,जैन मंदिर के सामने,किसान मार्ग,ौक रोड,जयपुर। डा. प्रेमचन्द जैन __ जैन अनुशीलन केन्द्र राजस्थान विश्वविद्यालय के व्याख्यातापद पर कार्यरत डा.प्रेमचंद जैन युवा मनीषी हैं। हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन विषय पर आपको राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पी.एचड़ी. उपाधि से अलंकृत किया जा चुका है। आपका शोध प्रबंध प्रकाशित हो चुका है । इसके अतिरिक्त आपने नागौर (राज) के प्रसिद्ध भट्टारकीय शास्त्र भंडार का सूचीकरण किया है जो विश्वविद्यालय से प्रकाशित किया गया है । डा. जैन का जन्म 22 अगस्त,1951 में हुआ। आपका विवाह वैद्य प्रभुदयाल जी कासलीवाल की सुपुत्री चन्द्रकला जैन के साथ संपन्न हुआ। श्रीमती चन्द्रकला भी बी.ए., एल.एल.बी. है । आप एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों से सुशोभित हैं । आपके तीन छोटे भाई है। महावीर प्रसाद एम.एस.सी.,ताराचंद जैन बी कॉम.एवं ओमप्रकाश जैन एम.ए. आपके पिताश्री फूलचन्दजी एवं माता नारंगीदेवी अपने ग्राम चैनपुरा रहते हैं। पहा : बी 417, सुख विलास,मालवीय नगर,जयपुर । Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 276 / जैन समाज का वृहद् इतिहास दीवान प्रेमचन्द जैन भौंच पूर्व दीवान भागचन्दजैन के वंश में दि. 21-11-1943 को श्री प्रेमचन्द जैन का जन्म हुआ। उनके पिताजी दीवान कपूरचंद जी ५० वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। उनकी माताजी विरधीबाई का सन् 87 में 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दीवान प्रेमचन्द जी ने एम.एस.सी. (कृषि) एनटोमालोजी की परीक्षा उदयपुर विश्वविद्यालय से सन् 1968 में पास को । उसके पश्चात् भंडार निगम में कार्य करने लगे। वर्तमान में आप भंडार निगम में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्य कर रहे हैं। सन् 1968 की 7 मार्च को आप श्रीमती विमलेश जैन हिन्दी विशारद के साथ विवाह सूत्र में बंधे। इसके पश्चात् दो पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपके पुत्र प्रवीण कुमार 20 वर्ष के युवा है। एम.कॉम. कर लिया है और अब सी.ए. कर रहे हैं। पुत्री प्रीति जैन का विवाह हो चुका है । प्रेमचन्द जी बहुत ही निष्ठावान एवं स्वच्छ विचारों के युवक हैं। मिलनसार हैं तथा समाज सेवा करने के इच्छुक हैं। उनकी पत्नी विमलेश जैन भी मधुरभाषी एवं सेवाभावी युवती है। पता : 45 सेक्टर 4 मालवीय नगर, जयपुर । श्री प्रेमचन्द बड़जात्या राजस्थान बीमा विभाग में पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत श्री प्रेमचन्द चौधरी युवा कार्यकर्ता हैं। आपका जन्म 26 जून 1938 को हुआ। इन्टर तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् राज्य सेवा में चले गये। 19 वर्ष की अवस्था में दिनांक 13-12-1957 को आपका विवाह श्रीमती मोहना देवी के साथ हुआ। आपको एक पुत्र मनोज एवं दो पुत्रियां अमिता और रीवा के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। मनोज का सीमा से विवाह हो चुका है। आप मोजमाबाद मंदिर के जीर्णोद्धार में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आपके पिताजी श्री मानमल जी एवं माताजी का स्वर्गवास हो चुका है। पता :- 91, करतारपुरा, भगवती नगर, जयपुर - 6 डॉ. प्रेमचन्द्र रावका डॉ. रावका की गणना राजस्थान के युवा विद्वानों में की जाती है। ये अपने शोध कार्यों, लेखन एवं भाषण से समाज को अपनी ओर आकर्षित करने लगे हैं। डा. रांका का जन्म 201 अक्टूबर 1943 को जयपुर (राज.) में हुआ । इनके पिता श्री भंवरलाल जी संवका अत्यधिक सरल, सन्तोषी वृत्ति, दयालु स्वभाव एवं धार्मिक प्रवृति वाले श्रावक थे । लेखक को उनके सम्पर्क में आने का अनेक बार अवसर मिला है। व्रतोपवासी उनका सन् 1972 में निधन हुआ। सन् 1984 में डॉ. रांवका की मातुश्री छिगनी देवी चल बसी। डॉ. रांका के दो अग्रज भ्राता श्री कपूरचन्द जी, जयपुर राजघराने में कामदार (भजन गायक) एवं श्री पूनमचन्द जी शिक्षक रह चुके हैं। Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज 277 डॉ. रावका ने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए., पी.एच.डी. एवं जैन दर्शनाचार्य परीक्षा पास की है। दरभंगा सं. विवि. से शिक्षा शास्त्री उत्तीर्ण की। सन् 1962 से अब तक श्री रावका ने विभिन्न पदों पर शिक्षण कार्य किया है और वर्तमान में डॉ. विका राजकीय संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान पं. चैनसुखदास न्यायतोर्थ के ये प्रिय शिष्य रहे हैं। इनके जीवन निर्माण में पूज्यपाद पं. सा. का पूर्ण आशीर्वाद रहा है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक के मार्ग निर्देशन में डॉ. रावका ग्रन्थ भण्डारों के अन्वेषण, सूचीकरण, शोध- साहित्य लेखन में सुरुचि पूर्वक कार्य सम्पादित किया है। ये मेरे उत्तरदायी शिष्य-सम है । आपका विवाह सन् 1964 में 3 जुलाई को श्रीमती स्नेहलता के साथ हुआ। दोनों को दो सुयोग्य पुत्रों के माता-पिता बनने का सौभाग्य मिला । ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रमोदकुमार एम.एस.सी. बी.एड. हैं तथा मेयो कॉलेज में कम्प्यूटर विभागाध्यक्ष है। इनका विवाह राजेश एम.कॉम. के साथ हुआ है। द्वितीय पुत्र प्रदीप कुमार एम.एस.सी. (गणित) में अध्ययन कर रहा है । डॉ. रावका ने 15वीं सदी के हिन्दी संस्कृत के प्रसिद्ध महाकवि ब्रह्मजिनदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 1977 में राज. वि.वि. से पी.एच.डी. उपाधि प्राप्त की है। प्रस्तुत शोध-ग्रंथ श्री महावीर ग्रंथ अकादमी द्वारा सन् 1980 में प्रकाशित हो चुका है। अब तक आपके विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, ग्रंथों में अनेक साहित्यिक शोध-लेख प्रकाशित हो चुके हैं। वीरवाणी एवं जिनवाणी में क्रमश: अमृत वाणी एवं ज्ञानामृत स्थायी स्तम्भ लेखक हैं। विश्वविद्यालय स्तरीय संगोष्ठियों में शोधपत्र वाचन करते हैं। आकाशवाणी जयपुर से इनकी वार्तायें स्वतंत्र रूप से प्रसारित होती रहती हैं। प्रतिवर्ष प्रकाश्य महावीर स्मारिका के सम्पादन में डा. वका की मुख्य भूमिका रहती है। कई पुस्तकों के समीक्षक हैं। डॉ. प्रेमचन्द रांषका सामाजिक गतिविधियों में भी पर्याप्त रुचि लेते हैं। श्री दि. जैन संस्कृत कॉलेज, श्री दि. जैन औषधालय, की प्रबन्ध समिति के सदस्य, राजस्थान जैन सभा, राजस्थान जैन साहित्य परिषद, राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन, राज. संस्कृत परिषद्, अ.भा. जैन विद्वत् परिषद, अ.भा दि. जैन विद्वत्परिषद्, दि. जैन मन्दिर जोबनेर जयपुर के सक्रिय सदस्य हैं। डॉ.रांवका से साहित्य जगत् एवं समाज को बहुत आशायें हैं ।। पता :- 1910, खेजड़े का रास्ता, जयपुर 302001 (राज.) श्री पानाचन्द जैन पहाड़िया राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधिपति के पद से रिटायर होने वाले श्री पानाचन्द जैन कितनी ही सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। श्री जैन का जन्म 19 मार्च, 27 को कोटा में हुआ। एम.ए.बी.एस.सी. एल. एल. बी. साहित्यरत्न की परीक्षायें पास करने के पश्चात् वकालात प्रारंभ की तथा उसमें अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त की। सन् 1985 में राजस्थान हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुये। इसी वर्ष लाइन्स इन्टरनेशनल के डिस्ट्रिक्ट 323 ई 2 का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गये। श्री जैन राजस्थान राज्य के महाधिवक्ता नाथूलाल जैन के छोटे भाई हैं। स्वभाव से विनम्र हैं तथा प्रत्येक को सहयोग देने की भावना रखते हैं। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 278/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री पूनमचन्द कासलीवाल पूनम भवन वाले श्री पूनमचन्द कासलीवाल समाज के प्रतिष्ठित महानुभाव है । आपका जन्म 4 फरवरी 1920 को हुआ। आपके पिताजी मुंशी जगन्नाथ जी जयपुर नगर के प्रथम बी.ए. थे। महाराजा रामसिंह के निजी सचिव थे तथा अन्त में नाजिम के पद से सेवा निवृत्त हुये । मुंशी जगन्नाथ जी के बड़े भाई कन्हैयालाल जी भी जयपुर की बड़ी महारानी के कामदार थे। महारानी जी उनके काम से बड़ी प्रभावित थी इसलिये सेवा निवृत्ति के पश्चात् भी उन्हें उतना ही वेतन मिलता रहा जितना सेवा काल में मिलता था। पूनमचन्द जी का सन् 1937 में श्रीमती सुशीलादेवी सुपुत्री चौधरी सुगनचन्द जी नावां वाले के साथ विवाह हुआ। उनको चार पुत्र एवं एक पुत्री की मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चारों पुत्रों में शशि कान्त रविकान्त, अतुल,एवं प्रफुल्ल में प्रथम तीन पुत्र बी.एस.सी. है। प्रथम दो ठेकेदारी तथा शेष दोनों फैक्टरी का कार्य देखते हैं । पुत्री इंदिरा का विवाह हो चुका है। सन् 1981 में आपकी पत्नी श्रीपती सुशीला देवी का स्वर्गवास हो गया । आपके दो भाई और है । छोटे पाई श्री प्रेमचन्द का जन्म 17 जुलाई 1924 को हुआ। उनकी पत्नी शकुन्तला देवी तीन पुत्रियों,मंजू,मणि एवं रेखा की जननी है। तीनों का विवाह हो चुका है । आप सन् 1975 एवं 1932 में विदेश यात्रा कर चुके हैं। दूसरे भाई पदमचन्द जी का जन्म 13 जुलाई 1934 को हुआ। आपकी पत्नी प्रेमदेवी जी को हिमांशु, सुधांशु, विकास एवं विशाल की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । हिमांशु का विवाह हो गया है । झालीवाल परिला कारबाहिरिगीना है। पता : पूनम भवन,मोतीसिंह मोमियों का रास्ता, जयपुर। स. पूरणचंद लुहाडिया नरायणा के शाह परिवार में जन्म लेने वाले व.पूरणचन्द लुहाडिया को राजस्थान में कौन नहीं जानता । वे ब्रहमचारी है, स्वतंत्रता सेनानी हैं,जेल यात्रा की हुई है,पंचकल्याणक महोत्सव में माता-पिता बने हुये हैं। इस प्रकार लुहाडिया जी बहु व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जन्म भादवा सुदी पूर्णिमा संवन 1903 तद्नुसार 2 सितम्बर 1906 को हुआ। आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की और बी.ए.एल.एल.बी.करके वकालात में भी प्रसिद्धि प्राप्त की। लेकिन शिक्षा प्राप्त करने में कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आपकी जीवन कहानी अनेक विचित्रताओं को लिये हुये है। लुहाडिया जी का विवाह 12 जून 1924 को गुढा (सांभर) निवासी स्व. दानमल जी श्रीमती पिली रांवक की सुपुत्री रिद्धिलता के साथ हुआ। आपको एक पुत्री की माता बनने का सौभाग्य मिला। च. पूरणचन्द लुहाड़िया Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /279 जिसका विवाह जयपुर के प्रसिद्ध वकील मुंशी सूर्यनारायण जी के सुपुत्र श्री महावीर कुमार की सेठा के साथ हुआ। प्रारंभ से ही देश सेवा का व्रत होने के कारण कालेज से आपको निष्काषित कर दिया गया तथा 22-2-1932 को अजमेर में सत्याग्रह करने के कारण चार माह की सख्त कैद की सजा सुना दी गई । जब आप जेल से छूटकर वापिस अपने गाँव लौटे तो आपके स्वागत में सारा गांव उमड़ पड़ा। आपके जीवन की कुछ प्रमुख घटनायें निम्न प्रकार हैं : 1. नरायणा नगरपालिका के पांच वर्ष तक निर्वाचित सदस्य रहे । 2. श्री दिगम्बर जैन पंचायत सांभर के सात वर्ष तक अध्यक्ष रहे | 3. सन् 1945 में फुलेरा तहसील में आयोजित राजनैतिक सम्मेलन के महामंत्री पद पर कार्य किया। 4. जयपुर राज्य के सर्वप्रथम लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य का फुलेरा तहसील से चुनाव का अवसर प्राप्त हुआ था। 5. कोल्हापुर में आयोजित पंच कल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में माता-पिता के पद से अलंकृत किये गये। उसी पंचकल्याणक में आ.देशभूषण महाराज ने आपको एक वर्ष का ब्रह्मचर्य वत दिया । इसके पश्चात् आचार्य श्री शिवसागर जी महा. से यावज्जीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। फिर इन्हीं आचार्य श्री से दूसरी प्रतिमा धारण की तथा आचार्यकल्प श्रुतसागर जी महाराज से सातवीं ब्राह्मचर्य प्रतिमा का व्रत लेकर अपने जीवन की दिशा ही मोड़ दी। लुहाडिया सा.ने 25 वर्ष तक वकालात की तथा उसमें ख्याति भी अर्जित की । लेकिन जब उससे विरक्ति हुई तो 16-8-72 को उससे सदा के लिये विश्राम ले लिया और साधुओं की सेवा, स्वाध्याय, शास्त्र प्रवचन आदि में अपने आपको समर्पित कर दिया । आपने दशलक्षणपर्व में शास्त्र प्रवचन आदि में अपने आपको समर्पित कर दिया। आपको दशलक्षणपर्व में शास्त्र प्रवचन करने, पूजा विधान कराने के उपलक्ष में पांचवा, फागी,सीकर आदि से अभिनंदन पत्र दिये गये। वर्तमान में आपका जीवन वैराग्य पूर्ण है। सीमित परिग्रह, भोजन, स्वाध्याय, सामाजिक पूजा पाठ आदि ही आपके जीवन का क्रम बन गया है। आपकी पत्नी श्रीमती रिखिलता देवी सेवाभात्री महिला थी । प्रतिदिन स्वयं ही घर पर आने वाले मरीजों की मालिस करके हड्डी, पेटदर्द,हसली, आदि को ठीक कर देती थी । दवा भी अपनी स्वंय की ही देती थी। आयु 75 वर्ष एवं तीसरी प्रतिमाधारी थी। पति-पत्नी का ऐसा जीवन यापन अन्यत्र मिलना कठिन है । पता :- शांति निलय,लुहाडिया भवन,अशोक मार्ग,सी-स्कीम, जयपुर श्री फूलचंद जैन गोधा पिछली चार पीढियों से मिष्ठान्न विक्रेता परिवार में दिनांक 20 फरवरी 1919 को श्री। फूलचंद जी गोधा का जन्म हुआ। आपके पिताश्री गणेशीलाल जी जैन एवं माताजी श्रीमती गैरू बाई का दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है । अष्टम कक्षा तक अध्ययन के पश्चात् ही सन् 1936 में आपका श्रीमती अनूपदेवी के साथ विवाह हुआ। आपको दो पुत्रियां पुष्पा एवं सुशीला Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 280/ जैन समाज का वृहद् इतिहास के पिता का सौभाग्य प्राप्त हुभा नया गान न होने के कारण आपने अपने बड़े दोहिता नितिन जैन को दत्तक पुत्र बनाया। आपकी पत्नी का 16 मार्च 1978 को स्वर्गवास हो गया। श्री गोधा जी की धार्मिक प्रवृत्ति रही है। अपनी धर्मपत्नी के साथ आपने सभी तीर्थोंकी वंदना करली थी। तीर्थ क्षेत्रों के विकास में तथा सामाजिक संस्थाओं में योगदान करते रहते हैं । श्री दि.जैन औषधालय के आजीवन सदस्य हैं तथा उसे भवन निर्माण के लिये एक भूमि खंड भी दिया है। दि.जैन मंदिर पाटोदियान में वेदी बनवाकर उसमें भगवान बाहुबली की मूर्ति विराजमान कर चुके है । सन् 1981 में आयोजित दि.जैन शांतिनाथ पंचकल्याण महोत्सव के संरक्षक भी रह चुके हैं। इसी तरह खानियां पंचकल्याणक महोत्सव में भी आपने पाण्डुकशिला पर भगवान का अभिषेक करने का श्रेय प्राप्त किया था । पता : गोधा भवन,बोरडी का रास्ता,जयपुर-3 श्री फूलचन्द बिलाला जयपुर के बिलाला परिवार में दि.28 मई,1928 को आपका जन्म हुआ । युवा समाजसेवी हैं । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने पैतृक व्यवसाय में पर्याप्त सफलता प्राप्त की । सन् 1952 में आपका विवाह श्रीमती कांतादेवी से संपन्न हुआ। आप दत्तक पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार (40 वर्ष) एवं एक पौत्र तथा एक पौत्री से अलंकृत हैं । श्री फूलचंद जी के पिता श्री कपूरचंद जी का समाज में अच्छा सम्मान था। आप शांतिप्रिय जीवन जीने वाले श्रेष्ठी हैं। पता :- डी8 ए, बापू नगर,गणेश मार्ग,जयपुर। श्री बसन्तीलाल पाटनी 11 फरवरी 1932 को जन्मे श्री वसन्तीलाल माटनी पवाल्या (टोडारायसिंह) के निवासी हैं। बीकॉम.एल.एल.बी. करने के पश्चात् आप केन्द्र सेवा में चले गये। 18 वर्ष की आयु में आपका श्रीमती कमला देवी के साथ विवाह हुआ। आपने मनोजकुमार को गोद लिया जिसका विवाह हो चुका है। आपके पूर्वजों ने पंचाल्या में मंदिर का निर्माण करवाकर उसे समाज को भेंट कर दिया। पाटनी जी सामाजिक सेवा में रुचि लेते हैं । पहिले बे दि.जैन मंदिर जवाहर नगर के कोषाध्यक्ष एवं वर्तमान में कार्यकारिणी सदस्य हैं । सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। जब भी मुनि संघ पंवाल्या होकर विहार करता है आपके माता-पिता उनको आहार आदि से सेवा करते हैं । पंवाल्या गांव में वर्तमान में दि.जैन समाज के 12-13 परिवार हैं । पाटनो जी आडिट अधिकारी के पद पर महालेखाकार (आङिट) कार्यालय में कार्य करते हुए 58 वर्ष की उम्र में फरवरी 1990 में सेवा निवृत्त हुए । स्वभाव से विनम्र एवं व्यवहार में मधुर पाटनी जी अपने सर्किल में सबके मित्र हैं। पत्ता - 1 2 7 जवाहर नगर,जयपुर । TA Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /281 महाराज श्री बाबूलाल सेठी जन्मतिथि - 15 अगस्त 1137 विधिस शिक्षा - एम कॉम.एस.ए.एस.,आइ.सी.डब्ल्यू,कम्पनी सेक्रेटरी सी.एस. पिता का नाम - श्री कस्तूरचंद जी सेठी,स्वर्गवास एक दिसम्बर 1974 पाता - श्रीमती गैंदाबाई सन् 1954 मई में स्वर्गवास विवाह - 31 मई 1955 पत्ली - श्रीमती विमला देवी, सुपुत्री श्री चिरंजीलाल जी कासलीवाल सैंथल परिवार - पुत्र । श्री जिनेन्द्र कुमार,चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट, सी. एस. स्वयं का व्यवसाय, पत्नी श्रीमती डा. आभा जैन सुपुत्री स्व.श्री ओमप्रकाश जी कोटा एम.बी.बी.एस. (1987) एम.एस. कर रही हैं । जयपुर के जनाना हास्पिटल में कार्य कर रही है। विशेष :- श्री सेठी जी सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े हुये है। राजस्थान जैन सभा जयपुर के मंत्री एवं उपाध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में दि.जैन संस्कृत कालेज, दि. जैन औषधालय की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आरोग्य भारती एवं दि. जैन मन्दिर बाई जी कुशलमति जी के अध्यक्ष एवं दि.जैन मंदिर महासंघ जयपुर के मंत्री हैं । जयपुर चेप्टर आफ कास्ट अकाउन्टेन्ट्स के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपका जीवन पूर्णतः धार्मिक है । प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल करते हैं । सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं । आपके पिताजी ने दिगम्बर जैन मंदिर बाईजी कुशलमति जी में वेदी का निर्माण कराया है तथा जयपुर के कालाडेरा पहावीर जी के मंदिर में मूर्ति स्थापित करायी है । मुनियों के भक्त हैं । पृ. आचार्य विद्यासागर जी महाराज में पूर्ण श्रद्धा है एवं आहार दिया है उनके संघ को जयपुर से किशनगढ़ तक पहुंचाया । पता: 23?, सेठी भवन, रास्ता चूरुकान,जयपुर। डा. बाबूलाल सेठी ___ जयपुर राज्य के चीचवाडी गांव में 5 मई 1951 को जन्मे डा. बाबूलाल सेठी को अपना जीवन निर्माण के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने शास्त्री परीक्षा पास करने के पश्चात सन् 1972 में शिक्षा शास्त्री को उपाधि प्राप्त की फिर सन् 1975 में जैन दर्शनाचार्य हुए । सन् 1977 में इतिहास से एम.ए. पास करने के पशात 1978 में एमफिल(इतिहास) मेरिट में द्वितीय स्थान राजस्थान में प्राप्त किया तथ सन् 1982 में महाकवि पुष्पदंत विरचित आदिपुरण एक सांस्कृतिक अध्ययन पर पीएच.डी.की उपाधि इतिहास विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय से प्राप्त की। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 282/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपने राजकीय महाविद्यालय श्री गंगानगर में इतिहास के व्याख्याता के पद पर कार्य प्रारंभ किया तथा राजकीय महाविद्यालय डूंगरपुर में प्राध्यापक इतिहास रहे । वर्तमान में सेठी जी प्रोफेसर एवं अध्यक्ष इतिहास विभाग राजकीय सेठ मोतीलाल कालेज झुंझुंनू (राज.) में कार्य कर रहे हैं तथा सात व्यक्तियों को शोधकार्य पी. एच. डी. करवाने के लिए राज. विश्वविद्यालय अधिकृत हैं । सेठजी का विवाह 27 फरवरी 1975 को श्रीमती विद्या जैन के साथ संपन्न हुआ। श्रीमती विद्या इतिहास, राजनीतिशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में एम.ए. हैं। बी.एड. हैं तथा वर्तमान में नथमल जैन राजकीय बालिका संस्कृत विद्यालय बगडा सिरोही में प्रधानाध्यापिका हैं। सेठी जी एक पुत्र एवं दो पुत्रियों से गौरवान्वित हैं। डा. सेठी इतिहास एवं संस्कृत के अच्छे विद्वान हैं। अब तक आपने रघुवंश महाकाव्य भाग एक, प्रतिज्ञा योगन्धरायण एवं शुकनासोपदेश का संपादन किया है। सेठी जी से साहित्यजगत को बहुत आशायें हैं। पता : 12, गणिवारों का एना, पोलिया आधार, जयपुर । श्री बाबूलाल जैन गोधा जन्मतिथि 3 जुलाई सन् 1942, शिक्षा- बी. कॉम. (1961) राज. विश्वविद्यालय पिता श्री फूलचन्द जी फैन्सी, 1946 में जब आप मात्र 4 वर्ष के थे तभी आपका स्वर्गवास हो गया । - माता श्रीमती उमराव देवी - व्यवसाय सन् 1972 से बैंक अधिकारी हैं। विवाह 4 फरवरी 1965 पत्नी - श्रीमती सरोज जैन सुपुत्री श्री कंवरीलाल जी पाटनी अजमेर परिवार पुत्र -2 - 1- मनोज सूरत में व्यवसायरत 2- नितिन - तृतीय वर्ष मेडिकल में अध्ययन कर रहे हैं। आपके तीन भाई हैं - श्री सरदारमल जी, धनकुमारजी एवं कैलाशचन्द गोधा विशेष : : धार्मिक नगर के तेरहपंथी बड़ा मंदिर में मुख्य वेदी के पीछे के आलिये में भगवान आदिनाथ की श्वेत पाषाण की मूर्ति विराजमान करके धर्मलाभ ले चुके हैं। यात्रा प्रेमी हैं। अधिकांश तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। TM क Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /283 सामाजिक : सामाजिक कार्य करने में रुचि रखते हैं । दि. जैन महासमिति के सदस्य हैं। पता - मकान नं. 435, फैन्सी हाउस, हल्दियों का रास्ता,जयपुर श्री भंवरलाल जैन छाबड़ा श्री भंवरलाल जी छाबड़ा मेंहदीवाले के नाम से जाने जाते हैं। आपके पिताश्री मुंशी गोविन्दलाल जी छाबड़ा अपने जमाने के प्रसिद्ध वकील थे। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप पब्लिक टाइपिस्ट का कार्य करने लगे। सन् 1947 में आपका विवाह श्रीमती यशोदा देवी जी के साथ हुआ लेकिन सन् 1979 में यशोदा देवी का स्वर्गवास हो गया । आप को दो पुत्र तेजकुमार एवं हरिश्चन्द तथा एक पुत्री संतोष देवी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। तेजकुमार की पत्नी का नाम श्रीमती किरण देवी तथा हरिश्चन्द की पत्नी का नाम मंजू है। संतोषदेवी का विवाह श्री निर्मलकुमार कासलीवाल से हुआ है । श्री छाबड़ा जी शांतिप्रिय जीवन बिताने वाले हैं। पता-39, गंगवाल पार्क, मोती डूंगरी रोड़,जयपुर। श्री भंवरलाल वैद अपने मधुर व्यवहार एवं सरल स्वभाव के लिये प्रसिद्ध श्री भंवरलाल वैद का जन्म अगस्त, 1912 को हुआ। बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप राज्य सेवा में चले गये और सन् 1967 में सहायक सचिव राज.सरकार के पद से सेवा निवृत्त हुये । आपका सन् 1925 में श्रीमती बादाम बाई के साथ विवाह हुआ जिनका सन् 1980 में 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया । आपके चार पुत्र एवं एक पुत्री है । सबसे बड़े पुत्र ताराचन्द बैंक सर्विस में हैं। दूसरे पुत्र गणपतलाल राजस्थान राज्य के इन्दिरा गांधी नहर बोर्ड में हैं । तीसरे पुत्र राजेन्द्र कुमार भी बैंक सर्विस में हैं। चतुर्थ पुत्र श्री सत्येन्द्र कुमार भी राज्य सेवा में हैं। सभी पुत्र ग्रेज्यूएट हैं। श्री ताराचन्द पद यात्रा संघ जयपुर के संयोजक है तथा प्रतिवर्ष श्री महावीर जी व पदमप्रभु बाड़ा,पद यात्रा संघ ले जाते हैं तथा लोकप्रिय युवा समाजसेवी हैं। श्री मंदरलाल जी जयपुर के पंचायतो मंदिर दि.जैन पाटोदी मंदिर के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपका जीवन पूर्णतः धार्मिक जीवन है । पाटोदी के मन्दिर के उत्तरवर्ती चैत्यालय की वेदी में कांच आदि लगवाने का पुण्यकारी कार्य किया है । लेखक को भी आपसे एक वर्ष तक पढ़ने का सौभाग्य मिल चुका है । आपके पिताजी श्री छिगनलाल जी आपको 20 वर्ष का ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गये तथा माताजी श्रीमती कस्तुरी बाई भी सन् 1980 में स्वर्गवासी बन गई । दैद जो वर्तमान में शांत एवं स्वाध्यायरत जीवन व्यतीत कर रहे हैं। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 284/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री भंवरलाल सरावगी पांड्या जन्म तिथि-17 दिसम्बर सन् 1928 जन्म स्थान- सुजानगढ शिक्षा- बी.कॉम. बिडला कॉलेज पिलानी से सन 1948 में सपा पदक बाताया एमाप. प्लएल.बी. 1958 गोहाटी विश्वविद्यालय से। दोनों परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी एवं सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। व्यवसाय- गोहाटी (आसाम) को सालिगराम चुन्नीलाल फर्म के पार्टनर, इसके पश्चात् हरकचन्द सरावगी एंड संस के नाम से अलग व्यवसाय- गोहाटी, घबड़ी,तूरा,मानकेचोर आदि में पेट्रोल पम्प हैं । गोहाटी में बाबू बाजार नाम का वाणिज्यिक भवन है। जयपुर में वर्तमान में सरावगी मेन्शन के नाम से वाणिज्यिक भवन है। ईगल केमिकल मुदर्शनपुरा एवं सरावगी केमिकल विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र जयपुर में व्यापारिक प्रतिष्ठान है। माता-पिता:- श्री हरकचन्द सरावगी जन्म 4-1-1909 मृत्यु 11-6-87 माताजी श्रीमती लाडेश्वरी बाई-वर्ष 1943 में स्वर्गवास विवाह- सन् 1944 में सुजानगढ़ निवासी श्री भंवरलाल जी सौगाणी की सुपुत्री चिन्तामणि देवों के साथ सम्पन्न हुआ । संतान- पुत्र-2 अशोक कुमार-आयु 40 वर्ष पत्नी-श्रीमती शोभा देवी 2. किशोर कुमार,आयु-27 वर्ष बी ई. पत्नी श्रीमती सपना देवी पुत्रियाँ-4 निर्मला, अन्या, कुसुम,सरिता-सभी विवाहित विशेष- मरसलगंज पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र पद से सुशोभित हुये । बायन गजा पंच कल्याणक महोत्सव में सौधर्म इन्द्र के पद से अलंकृत हुए । भागवान महावीर परिनिर्वाण महोत्सव आसाम समिति के अध्यक्ष रहे । दिगम्बर भ.महावीर 2500 वा महोत्सव समिति के भी अध्यक्ष रहे । इसी समिति द्वारा निर्मापित भगवान महावीर उद्यान भवन के भी अध्यक्ष रहे। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। सामाजिक एवं राजनैतिक 1. विद्याथों अवस्था में सन् 1942-43 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सुजानगढ नगर शाखा की प्रथम कमेटी के सदस्य 2. राजस्थान से गोहाटी जाने के पश्चात् नगर पालिका गोहाटी एवं डवलपमेन्ट आयोरिटीज के लगातार 1953.63 तक सदस्य रहे। 3. कामरूप चैम्बर आफ कामर्स गोहाटी के वर्षों तक अध्यक्ष रहे । इसी के साथ आसाम फैडरल चैम्बर आफ कामर्स गोहाटी के भी अध्यक्ष रहे। 4. आसाम राइस मिल एसोसियेशन के डाइरेक्टर रहे । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/285 5. नार्थ ईस्ट इंडिया पैट्रोलियम डीलर्स एसोसियेशन के मंत्री एवं अध्यक्ष रहे । 6. आसाम सरकार की अनेक परामर्शदात्री कमेटियाँ रेलवे,पी.एंड टी. डाइरेक्टर टेक्सेस- कमेटियों के प्रमुख सदस्य रहे। 7. बंगलादेश इवेक्यूरिलीफ कमेटी के मंत्री रहे । 8. सन् 1968 में पब्लिक द्वारा स्थापित उपद्रव पीडित संघ के सचिव रहते हुये आपने बहुत सेवा की । 9. अखिल आसाम मारवाड़ी सम्मेलन के शिलांग एवं गोहाटी अधिवेशन की आपने अध्यक्षता की थी 1 पूर्वोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी संघ के अध्यक्ष रहे तथा आल इंडिया मारवाड़ी सम्मेलन के उपाध्यक्ष रहे । 10. रोटरी क्लब गोहाटी के प्रथम मारवाड़ी प्रेसीडेन्ट रहे । 11. वर्तमान में राज.प्रमोटर्स एंड बिल्डर्स एसोसियेशन जयपुर के अध्यक्ष हैं। इस प्रकार श्री सरावगी जी का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रीय एवं सामाजिक सेवा में समर्पित रहा है। जिस संस्था के आप पदाधिकारी रहे उसे ही विकसित एवं उन्नतशील बनाया । पूरे आसाम में आप अत्यधिक प्रिय रहे और वर्तमान में जयपुर में रहते हुये अपने व्यापारिक संस्थानों की देखभाल कर रहे हैं। पता: अशोक नगर,जयपुर श्री भंवरलाल साह जैन ' प्रभाकर' जन्मतिथि- मंगसिर सुदी 13 वृहस्पतिवार सं. 1968 (4-12-1911) शिक्षा- मैट्रिक, हिन्दी, उर्दू, फारसी एवं संस्कृत की भूषण, प्रभाकर परीक्षायें भी पास की हैं। ___ व्यवसाय- राजस्थान सचिवालय से सन् 1975 में सेवा निवृत्त हुये हैं। वर्तमान में जवाहरात का कार्य भी छोड़ दिया है। पिता- श्री जमनालाल जी साह मातमीवाले के पुत्र श्री कन्हैयालाल जी साह, पली- श्रीमती उमरावदेवी जी साह । परिवार- पुत्र-2 1-डॉ.रमेश कुमार जैन कोटा खुला विश्वविद्यालय में पत्राचार विभाग के प्रोफेसर हैं और अपने विभाग के अध्यक्ष हैं। 2. सुरेश कुमार साह -बाहुबली टेन्ट हाऊस का व्यवसाय करते हैं। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 286/ जैन समाज का बृहद इतिहास पुत्रियां दो हैं। विशेष- श्री भंवरलाल जी साह भाई जी के नरम से प्रसिद्ध हैं । धार्मिक प्रवृत्ति है और आप स्वाध्यायशाल हैं तथा मुमुटु का जीवन व्यतीत करते हैं। शान्त स्वभावी हैं । पता - शान्ति निदास,ई.51, चितरंजन मार्ग,सी-स्कीम,जयपुर। श्री भागचन्द्र बाकलीवाल सूरजपोल अनाज मंडी में छीतरमल भूरामल व्यावसायिक प्रतिष्ठान के प्रोपाइटर श्री भागचंद बाकलीवाल जीरा धनिया एवं सौंफ के थोक व्यापारों हैं। आपके पिताजी श्री छगनलाल जी समाज में एवं व्यवसाय क्षेत्र दोनों में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पहिले आप बस्सी (जयपुर) में रहते थे और वहीं से संवत् 1998 में जयपुर आकर व्यवसाय करने लगे। आपका निधन हो गया है। श्री भागचंन्द जी सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त रुचि लेते हैं । दि.जैन अ.क्षेत्र पदमपुरा की प्रबंध कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं । व्यापार मंडल सूरजपोल मंडी के प्रमुख सदस्य एवं कार्यकर्ता है। भादवा सुदी 13 संवत् 1995 को आपका जन्म हुआ। बीए. तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्यापारिक क्षेत्र में प्रवेश किया। संवत् 2011 में नावाँ में दि. :-2.55 में पांचूलाल जी झांझरी को सुपुत्री कमलादेवी के साथ आप विवाह सूत्र में बंधे । श्रीमती कपला सुशिक्षित महिला हैं तथा सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की पूर्ण रुचि रखती हैं । आतिथ्य में आगे रहती हैं। आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री है । ज्येष्ठ पुत्र जम्बू कुमार का विवाह हो चुका है तथा अपने पिता के साथ व्यवसाय में लगे हुये हैं। दूसरे पुत्र दर्शन कुमार फैक्ट्री चलाते हैं तथा तीसरा पुत्र नवीन कुमार फैशन पैलेस के प्रोप्राइटर हैं। पता- 2676 कमल भवन, चूडीबालों का मोहल्ला, फागी मंदिर के पास,जयपुर। श्री भागचन्द साह साह परिवार के भागचन्द साह का जन्म 17 नवम्बर 1943 को जयपुर में हुआ। आपके पिताजी श्री सूरजमल जी माह प्रसिद्ध डीड लेखक थे। आपकी माता श्रीमती उमराव देवी पांचीबाई के नाम से जानी जाती है । साहित्य ती उमराव देवी पांची बाई के नाम से जानी जाती है। साहित्य सुधाकर पास करने के पश्चात् आप बैंक सर्विस में आ गये और वर्तमान में स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जन्मपुर टोडारायसिंह शाखा के प्रबंधक हैं। सन् 1970 में आपका श्रीमती उर्मिला जैन से विवाह हुआ । आप तीन पुत्र दीपक,पीयूष एवं मनीष के पिता हैं । भागचन्द जी सामाजिक व्यक्ति हैं पहले पार्श्वनाथ स्वामी के मंदिर के ट्रस्टी रह चुके हैं । तीर्थ यात्रा पर जाते रहते हैं । आपके बड़े भाई श्री पूनमचन्द जी साह जयपुर के नामी एडवोकेट हैं तथा राजनीतिक कार्यकर्ता हैं । पता- 251, मनीराम जी की कोठी का रास्ता,जयपुर Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/287 श्री भागचन्द साह अत्तार श्री भागचंद साह अतार ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने प्रारम्भ में बहुत छोटे रूप में अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया लेकिन सतत परिश्रम एवं अध्यवसाय के बल पर आज वे महावीर यात्रा कम्पनी के यशस्वी प्रोप्राइटर हैं । वैसे उनका पैतृक व्यवसाय अत्तारपने का रहा है । इसलिये उन्होंने मैट्रिक पास करके तब्दीव फाजिल को परीक्षा पास की थी । उनके पिताजी श्री कपूरचंन्द जी अत्तार का निधन सम्मेदशिखर जी के पहाड़ पर 27वें टोंक पर दर्शन करते हुआ था। आपका विवाह सन् 1960 में श्रीमती मैना देवी के साथ हुआ। जो मैट्रिक पास हैं । आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके पुत्र महावीर कुमार का विवाह हो चुका है। आप अपनी बसों द्वारा समाज को तीर्थ यात्रायें कराते रहते हैं । सन् 1981 में श्री पूनमचंदजी गंगवाल के नेतृत्व में बाहवली यात्रा संघ को 30 बसें लेकर सफलता पर्चक यात्रा कराई। जो एक इतिहास बन गया है। जयप जो एक इतिहास बन गया है । जयपुर में जितने भी बड़े विधान आदि के आयोजन होते रहते हैं उनमें आप लागत मात्र पर बस सेवा प्रदान करते हैं। पता-1.661 बोरड़ी का रास्ता, जयपुर 2 महावीर यात्रा कम्पनी.किशनपोल बाजार जयपूर श्री भागचन्द सेठी डिग्गी (टौंक) गांव में जन्मे श्री भागचन्द सेठी अपने मधुर व्यवहार एवं सामाजिक सेवा में रुचि रखने के कारण टौंक फाटक समाज में लोकप्रिय व्यक्ति हैं । आपका जन्म 12 दिसम्बर 1734 को हुअर । पिताजी श्री नाथूलाल जो सन् 1945 में एवं पाताजी सुगनदेबी का स्वर्गवास 1983 में हुआ था । सन् 1957 में राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.कॉम.पास किया। । पहिले ट्रांसपोर्ट का कार्य किया और फिर मिष्ठान भंडार स्थापित किया। 20 वर्ष की आयु में रेवाड़ी में श्रीमती अंगूरीदेवी से आपका विवाह हुआ। आपके पांच भाई हैं- श्री चिरंजीलाल जी रतनलाल जी, सूरजमल जी बड़े भाई एवं ताराचन्द जी छोटे भाई हैं । आपको तीन पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । श्री भागचन्द जी तीर्थयात्रा प्रेमी हैं । प्रत्येक माह में तीर्थ यात्रा पर जाने का कार्यक्रम रहता है । मधुवन कॉलोनी में स्थित पार्श्वनाथ मंदिर एवं हलवाई समिति की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । पता- आर 12, टेलीफोन कॉलोनी,टौंक फाटक, जयपुर। . Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 288/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री मदनलाल जैन टौंक (राजस्थान) के मूल निवासी श्री मदनलाल जी जैन दि. जैन मंदिर जवाहर नगर के पहिले मंत्री एवं वर्तमान में उपाध्यक्ष हैं । जयपुर के सामाजिक कार्यकर्ताओं में आपकी गणना विशेष रूप से की जाती है। आपका जन्म 16 जून 1940 को हुआ था। एमकॉम करने के पश्चात आप शिक्षा जगत में चले गये । वर्तमान में आप विभागाध्यक्ष लेखाकर्म एवं व्यावसायिक सांख्यिकी विभाग,सुबोध कॉलेज में कार्यरत हैं। आप के पिताश्री श्री रामराय जैन हैं तथा माताजी कस्तूरी देवी का दि.13-12-84 को निधन हो गया। आपका विवाह श्रीमती मनमोहनी के साथ दिनांक 7 फरवरी को संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त है । श्री महेन्द्र जैन सी.ए. कर रहे हैं तथा सुरेन्द्र जैन एवं संजीव जैन पढ़ रहे हैं । पुत्री प्रीति का विवाह हो चुका है। आपके पिताजी ने टौंक में बाहर की नशियां में जहां से 26 मूर्तियां निकली थी एक छतरी बनवाकर उस घटना को ऐतिहासिक बना दिया । राजस्थान जैन सभा द्वारा तथा तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन समिति द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। पत्ता- 1 4 18 जवाहर नगर, जयपुर फोन.44413 श्री महावीर कुमार सेठी, ___ जयपुर के प्रसिद्ध सेठी परिवार में 5 मार्च सन् 1927 को जन्मे श्री महावीर कुमार सेठी समाज के जाने माने व्यक्ति थे । आपके पिताजी मुंशी सूर्यनारायण जी सेठी अपने जमाने के प्रसिद्ध वकील एवं समाजसेवी थे । आपका विवाह सन् 1947 को श्रीमती कुंजबाला सेठी सुपुत्री व्र. पूरणचन्द जी लुहाडिया तरायणा के साथ संपन्न हुआ । आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है । पुत्र श्री शांति कुमार फैक्ट्री संभालते हैं उनकी पत्नी श्रीमती उषा देवी आर.सी. कासलीवाल की पुत्री हैं । महावीर सेठी की पुत्री जयश्री का विवाह श्री ताराचन्द जी के साथ हो चुका है। सेठी व्यवसाय में एवं समाज में दोनों में प्रतिष्ठा प्राप्त थे । महाबीर शिक्षा समिति के आजीवन सदस्य थे। व्यापार उद्योग मंडल जयपुर एवं चैम्बर ऑफ कामर्स की कार्यकारिणी के सदस्य थे । विश्वकर्मा इन्ड. एसोसियेशन के संस्थापक सदस्य थे । सेठी जी वैसे भी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते थे । आपकी तीर्थयात्राओं में सदैव रुचि रहती थी। एता- जयश्री इन्डस्ट्रीयल कारपोरेशन, तिवाडी बिल्डिग,एम.आई.रोड,जयपुर। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /289 श्री महावीर प्रसाद नृपत्या ... श्री महावीर प्रसाद नृपत्या का जन्म 24 नवम्बर,1930 को अलवर (राज) में हुआ। आपके पिताश्री का नाम लाला गजरमल जी नपत्या एवं मातुश्री श्रीमती गंगादेवी हैं । स्व.श्री गृजरमल जी अलवर राज्य की सेवा में थे जो वृत्त राजस्थान के निर्माण के अवसर पर सन् 1949 में राजस्थान सरकार की सेवा में जयपुर आकर बसे। श्री महावीर प्रसाद जी नृपत्या सामान्य शिक्षा प्राप्त कर विभित्र व्यवसायों में कार्यरत रहते हुए जयपुर आकर जवाहरात का व्यवसाय करने लगे। आपकी पैनी दृष्टि, परिश्रम,लगन एवं निष्ठा तथा सद्व्यवहारी होने के कारण जवाहरात के व्यवसाय में आपको अभूतपूर्व सफलता पिली । फलस्वरूप वर्तमान में जातिष्ठित समय में आप अच्छा रटान । SDAY नृपत्या जी का विवाह 17 वर्ष की अवस्था में डोग (जिला-भरतपुर में हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शांति देवी जी भी आप की ही तरह धार्मिक स्वभाव की गृहणी हैं । आप दोनों ही तीर्थों के दर्शन करने में विशेष रचि रखते हैं। अब तक सभी तीथों की कितनी ही बार वन्दना कर चके हैं। तीथों के विकास में भी आप बराबर सहयोग देते रहते हैं। सन 1981 में गोमटेश्वर सहस्त्राब्दी महामस्तकाभिषेक में आपने सपरिवार प्रथम 10 शताब्दि कलशों में तृतीय कलश कर, पुण्य अर्जित किया तथा श्रवणबेलगोला में विद्यानन्द निलय में नृपत्या परिवार की ओर से एक कक्ष का निर्माण कराया था। सामाजिक एवं साहित्यिक कार्यों में नृपत्या जी बरावर भाग लेते रहते हैं लेकिन श्रीमती शान्ति देवी धर्मपत्नी ख्याति यश व प्रदर्शनों से हमेशा दर रहते हैं। श्री महावीर प्रन्थ अकादमो.जबपुर के आप श्री महावीर प्रसाद नृपत्या उपाध्यक्ष है तथा जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान व श्री दिगम्बर जैन शिक्षा परिषद्-महावीर स्कूल के विशिष्ठ सदस्य हैं तथा कई संस्थाओं के आजीवन सदस्य हैं । दैनिक पूजा पाठ प्रक्रिया में रत रहकर आत्मकल्याण में उन्मुक्त रहते हैं व मुनियों को आहार देने में रुचि लेते हैं। आपके तीन पुत्र हैं श्री अजीत कुमार,श्री जय कुमार एवं श्री मनोज कुमार। तीनों ही पुत्र आपके व्यवसाय की वृद्धि करने में लगे हुए हैं। श्री अजीत कुमार का जन्म सन् 1952 में हुआ,उनका विवाह श्रीमान बंशीलाल जी पाटनी निवासी वर्धा की सुपुत्री ऊषा के साथ हआ। श्रीमती ऊषा स्नातक है। श्री अजीत कमार पाने के विशेष पारखी हैं व्यवसाय के लिए विदेश यात्रा करते रहते हैं,श्री जय कुमार हीरे के व्यवसायी हैं। इस कार्य हेतु वे भी विदेश यात्रा पर सामान्यतः जाते रहते हैं । वे अपना व्यवसाय बम्बई में करते हैं । श्री जय कुमार का विवाह श्री पूनम चन्द जी लुहाड़े,निवासी पूना की सुपुत्री संध्या से हुआ है,जो कि बी.एस.सी. (होम साइंस) हैं। श्री मनोज कुमार भी पने के कार्य में लीन हैं । वे भी व्यवसाय हेतु देश-विदेश में यात्रा करते रहते हैं। 1, श्री महावीर प्रसाद जी नृपत्या, डी-41, ज्योति मार्ग,बापूनगर,जयपुर-302015 फोन नं,जयपुर 64484 एवं 67337 2. श्री जयकुमार जी नृपत्या, मेकर टावर जे-54, कफ परेड़,कोलावा, बम्बई फोन नं.218.3513 एवं 218.2716 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2901 जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री महावीर कुमार रारा किराना व्यवसाय में लोकप्रियता प्राप्त श्री महादीर कुमार रारा युवा समाजसेवी हैं। आपका जन्म 30 जुलाई 1944 को हुआ । वर्ष 1961 में आपने बी.कॉम किया साथ में हिन्दी विशारद भी पास की । इसी वर्ष आप श्रीमती सुशीला देवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । श्रीमती सुशीला जी सरदारमल जी पाटनी रामगंजमंडी वालों की सुपुत्री है । आप दोनों को राजेश, राकेश एवं मुकेश के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। श्री राजेश ने भी बी. कॉम.कर लिया है तथा अपने पिता के साथ व्यवसाय में कार्यरत है। आपका विवाह हो चका है । पली कानाम पूर्णिमा है। बी.कॉम.है | राकेश भी एम.ए.है तथा पत्नी का नाम कुमकुम A श्री रारा जी सामाजिक संस्थाओं के सक्रिय सदस्य हैं। किराणा व्यापार संघ जयपुर के अध्यक्ष, किराणा मर्चेन्ट्स एसोसियेशन के उपाध्यक्ष,त्रिपोलिया व्यापार मंडल के कोषाध्यक्ष हैं । जयपुर की वैय्यावृत्त समिति के सेक्रेट्री हैं। रोगियों की सेवा करने एवं सेवा भाव से औषधियों का आरोग्य भारती में जाकर निर्माण करते रहते हैं। "व्यापार भारती में कभी-कभी आपके व्यावसायिक संबंधी लेख प्रकाशित होते रहते हैं । रारा जी तीर्थ यात्रा के प्रेमी हैं । आपने सभी तीर्थों की वंदना करली है । बैनाल (जयपुर) अतिशय क्षेत्र में आपका भूखण्ड है तथा महावीर तीर्थ क्षेत्र पर चार नम्बर धर्मशाला में अपने पिताजी की स्मृति में एक कमरे का निर्माण करवा चुके हैं। ___ आपके पिताश्री कोकलचन्द जी रारा भी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनका स्वर्गवास दिनांक 30-12-89 को हो गया। पता- रारा भवन गोधों का रास्ता,किशनपोल, जयपुर श्री महावीर प्रसाद पहाडिया आपश्री नन्दकिशोर जी पहाडिया के छोटे भाई हैं। आपकी जन्म तिथि 14-10-1941 है । सन् 1963 में आपने एम.पी.से इन्टर की परीक्षा पास की और फिर अपने भाई के साथ ही बिजली की मोटरों एवं डीजल इंजिन का व्यवसाय करने लगे। आपका पहिला विवाह सन् 1967 में श्रीमती मंजू जैन के साथ हुआ 1 जिसकी स्मृति में पहाडिया परिवार की ओर से वेदो का निर्माण कराया तथा अप्रैल 84 में मुनि श्री आनन्द सागर जी के सानिध्य में प्रतिष्ठा संपन्न कराई । दूसरा विवाह आपका सन् 1983 में श्रीमती शशि प्रभा के साथ हुआ। शशि प्रभा अर्थशास्त्र में एम.ए. है। उनके पिताजी श्री श्रीपती शशी प्रगा Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /291 दुलीचन्द जी जैन थे। विवाह के पूर्व शशि प्रभा ने रोडवेज एवं बैंक में आठ वर्ष तक कार्य किया । आप म्यूजिक में इन्टर पास श्री महावीर प्रसाद जी संस्थाओं को आर्थिक सहायता देने में रुचि लेते हैं। जयपुर खानियां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपने रथयात्रा आदि में विशेष योग दिया था। आपकी माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । एक बार उन्होंने दशलक्षण बत के उपवास भी किये थे । पता- ए 27/4/2 कांति चन्द्र रोड, बनीपार्क, जयपुर श्री महेन्द्र कुमार अजमेरा जन्म तिथि 9 जुलाई 1941 पाम बगम (जयपुर में जन्मे श्री महेन्द्र कुमार अजमेरा ने सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् हो ठेकेदारी का कार्य प्रारम्भ कर दिया | जब वे 15 वर्ष के थे तभी सन् 1956 में उनके पिताजी श्री चौगानमल अजमेरा का निधन हो गया। माघ शुक्ला पंचमी सन् 1964 को उनका विवाह श्रीमती विमला देवी से हो गया । उनको 3 पुत्र एवं महाराज. एक पुत्री का सौभाग्य प्राप्त है। श्री अजमेरा जी सीधे-साधे एवं सरल स्वभावी हैं । सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने की रुचि है। बरकत नगर स्थित दि.जैन पार्श्वनाथ मंदिर के कोषाध्यक्ष एवं कार्यकारिणी सदस्य रह चुके हैं। उसके निर्माण में उन्होंने आर्थिक सहयोग दिया है। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं इसलिये तीर्थ वंदना के लिये जाते रहते हैं। उनकी माताजी श्रीमती इचरज देवी धार्मिक स्वभाव वाली महिला हैं । धार्मिक कार्यों में खूब रुचि लेती हैं । उनके दो छोटे भाई हैं जिनमें श्री प्रकाशचन्द बिजली बोर्ड में तथा भागचन्द श्रीमती विमला देवी धर्मपली । राज.विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। श्री महेन्द्र कुगर अजमेरा पता- ए.४ टेलीफोन कालोनी,टौंक फाटक, जयपुर श्री महेन्द्र कुमार पाटनी जयपुर जैन समाज एवं विशेषतः बापूनगर सम्भाग के श्री महेन्द्र कुमार पाटनी विगत 15 वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त समाजसेवी हैं । पाटनी जी का कितनी ही सामाजिक संस्थाओं से सक्रिय संबंध है । वे दिगम्बर जैन समाज बापू नगर सम्भाग के विगत 7 वर्षों से मंत्री हैं। बापूनगर विकास समिति के मंत्री, राज. जैन सभा के संयुक्त मंत्री, दि.जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय की कार्यकारिणी सदस्य, दीवान उदयलाल जी नौशयां की समिति के ट्रस्टी, आचार्य कुन्दकुन्द पाठशाला समिति के स्टि, दि. जैन महासमिति राजस्थान की कार्यकारिणी सदस्य,दि.जैन महासमिति बापूनगर इकाई के मंत्री,बापूनगर जैन संगीत मंडल Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 292/ जैन समाज का वृहद् इतिहास NEW की कार्यकारिणी के सदस्य हैं तथा उद्योग विभाग राजपत्रित अधिकारी एसोसियेशन के कोषाध्यक्ष हैं । अभी आदिनाथ दि.जैन पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति जयपुर के मंत्री रह चुके हैं। श्री दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीर जी की कार्यकारिणी के मनोनीत सदस्य हैं इस प्रकार जयपुर के सामाजिक जीवन में बराबर आगे आ रहे हैं। पाटनी जी का दिनांक 28 दिस. 1933 को जयपुर जिले के कालाडेरा ग्राम में जन्म हुआ। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी पटनी भी सामाजिक व धार्मिक व्यक्ति हैं । माताजी पतासी बाई की भी छत्रछाया प्राप्त है । आपने राज.विश्वविद्यालय से 1956 में एम.कॉम किया तथा साहित्य विशारद एवं साहित्य भूषण की परीक्षायें पास की । 19 वर्ष की अवस्था में दि. । 16 जनवरी,1952 को आपका सुशीला देवी के साथ विवाह हुआ। आप भी साहित्य सुधारक हैं। आपको चार पुत्रों की मां बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके ज्येष्ठ पुत्र नरेन्द्र के स्वयं का वस्त्र उद्योग है । बी कॉम है । आपकी पत्नी सरोज भी रेडीमेड वस्त्र उद्योग की संचालिका हैं। एक पुत्र एवं एक पुत्री को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त है । पौत्री श्वेता का टी.वी.पर भी नृत्य व श्रीमती सुशीला देवी धर्मपली भजनों का कार्यक्रम आता रहता है । दूसरे पुत्र जिनेन्द्र बी.एस. सी. तथा झुन्झुनू में बैंक सर्विस श्री महेन्द्र कुमार ,गटनी में हैं। दो पुत्रों के पिता हैं । इनकी पत्नी विजय लक्ष्मी एम. ए. है तथा गर्ल्स कालेज झुन्झुनू में प्राध्यापिका हैं। तीसरा पुत्र सुभाष भी बी. कॉम. है तथा सिरोही में बैंक सर्विस में है । पत्नी शीला है जो बी.ए. है । एक पुत्र है। चतुर्थ पुत्र अशोक है । पत्नी का नाम अर्चना है जो एम.ए. है तथा संगीत में रुचि है, इनका टी.वी.पर कार्यक्रम आता रहता है । स्वयं जयपुर गोल्डन ट्रास्पोर्ट कम्पनी लि.में ब्रांच मैनेजर हैं। इनके भी एक पुत्र है। पाटनी जी के सब मिलाकर 5 पोत्र एवं एक पौत्री है । वर्तमान में आप उद्योग निदेशालय राजस्थान में रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्म राज. एवं रजिस्ट्रार नॉन ट्रेडिंग कम्पनी के पद पर कार्यरत हैं। आपका पूर्णतः धार्मिक जीवन है । प्रतिदिन पूजा प्रवाल करते हैं । यात्रा प्रेमी हैं। सभी तीथों की वंदना कर चुके हैं। शिखरजी की 13 बार वंदना कर चुके हैं। बद्री नाथ यात्रा भी कर चुके हैं। प्रतिवर्ष कहीं न कहीं की यात्रा संघ सहित करते रहते हैं । आप मिलनसार हैं । स्वभाव से विनम्र एवं सरल हैं। पता: डी - 127, पाटनी भवन, सावित्री पथ,राजेन्द्र मार्ग,जयपुर । श्री महेन्द्र कुमार बगड़ा श्री महेन्द्रकुमार जयपुर के प्रसिद्ध बगड़ा परिवार के सदस्य हैं । जयपुर में बगड़ा बैंक वाले बडजात्या गोत्र के हैं । बगड़ा जी का 12 अक्टूबर 1919 को जन्म हुआ तथा लखनऊ से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पास करने के पश्चात् वे राज्य सेवा में चले गये । सन् 1938 से सन् 1973 तक इंजीनियर पद पर रहते हुये सर्विस से रिटायर हुये । सन् 1974 से दि.जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी में इंजीनियर एवं मैनेजर पद पर निष्ठा पूर्वक कार्य कर रहे हैं। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/293 बगड़ा जी स्वभाव से मिलनसार एवं स्पष्टवादी हैं । अपने व्यवहार से सबको प्रसन्न रखते हैं । श्री महावीर जी में 17-18 वर्षों से लगातार कार्य करते रहने का एक मात्र कारण आपकी व्यवहार कुशलता है । आप दो पुत्रियों एवं चार पुत्रों के पिता हैं। छोटी पुत्री शोभा का विवाह श्री दिनेश कुमार जैन पापडीवाल जयपुर के साथ हुआ है । श्री दिनेश पुलिस विभाग में अधिकारी है। बड़ी पुत्री ललिता का विवाह जयपुर के डा.जी.सी.जैन के साथ हुआ है। आपके चार पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र श्री भागचन्द एवं कनिष्ठ पुत्र श्री सुदीप कुमार व्यवसाय करते हैं तथा शेष दो पुत्र किरण कुमार एवं राकेश राज्य सेवा में इंजीनियर है । सभी पुत्रों का विवाह हो चुका है। पस, - श्रीमहावीरजी रावस्था श्री महेन्द्रकुमार सेठी जयपुर नगर के प्रतिष्ठित सेठी परिवार में 17 अक्टूबर 1915 को जन्मे श्री महेन्द्र कुमार सेठी का जैन समाज में सम्माननीय स्थान है। आपके पिताजी श्री मीठालाल जी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिनका 14 वर्ष पहिले 38 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था । आपकी माताजी लहला बाई का भी निधन हो चुका है। सेठी जी का विवाह 55 वर्ष पूर्व श्रीमती चमेली देवी के साथ हुआ । आपको एक पुत्र एवं पांच पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त है। प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुनलाल जी सेठी ने आपको बचपन में खूब खिलाया था। आपके एक मात्र पुत्र राजकुमार सेठी रत्नों के कुशल व्यवसायी हैं तथा विदेशों में व्यवसाय के लिये जाते रहते हैं। उनकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मीदेवी बी.ए. तक पढ़ी हुई हैं। आप एक पुत्र आनन्द एवं दो पुत्रियों काजल एवं पूनम से अलंकृत हैं। श्री महेन्द्रकुमार जी के पांच पुत्रियां हैं जिनके नाम सुधा,विजयलक्ष्मी सौगानी,आशा श्री राजकुमार सेटी सुपुत्र श्री महेन्द्र कमार सेठी काला,सरोज बांकीवाला एवं ऊषा लुहाडिया है । विजयलक्ष्मी एवं सरोज बी.ए. हैं । सेठी बी अध्यात्म प्रेमी हैं। श्री कानजी स्वामी से आप खूब प्रभावित रहे हैं । विद्वानों के शिविर लगाने में आपकी गहन रुचि रहती है । टोडरमल स्मारक भवन निर्माण में गोदीका जी को आपका पूरा सहयोग रहा। दोनों ही बचपन के साथी रहे हैं। मुमुक्षु मंडलों की स्थापना में भी आपका पूरा सहयोग रहा है। अशोक नगर जैन समाज के उपाध्यक्ष,दिगम्बर जैन मुमुक्षु मंडल के अध्यक्ष,टोडरमल स्मारक भवन के ट्रस्टी हैं । सोनगढ़ में आएका बनाया हुआ एक बंगला है । जयपुर में अभी आपने त्रिपोलिया बाजार में सेठी कॉम्पलैक्स का निर्माण कराया है। आपके तीन भाई और हैं जिनके नाम प्रसन्नकुमार,निर्मलकुमार,एवं सुबोधकुमार हैं। तीनों भाई बंबई में जवाहरात का व्यवसाय करते हैं। सभी भाइयों में अत्यधिक स्नेह है। सभी भाई आपको पिता तुल्य मानते हैं भाइयों में यदि प्रेम देखना हो तो सेठी जी के घर में देखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है । Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 294/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सेठी जी के घर में ही चैत्यालय है जिसमें भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान है। सेठी जी अत्यधिक सरल स्वभावी तथा आतिथ्य प्रेमी हैं। स्वाध्याय प्रेमी हैं। अभी टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव समिति के आप अध्यक्ष थे । आपकी ओर से एक सेठी ग्रन्थ माला स्थापित की हुई है। प्रन्थ-माला की ओर से अब तक 15 से भी अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। ये सभी पुस्तकें जैनाचार्यों द्वारा रचित हैं तथा स्वाध्याय के लिए बहुत उपयोगी हैं। पता : सेठी भवन, हास्पिटल रोड, अशोक नगर, जयपुर । श्री माणकचंद पाटनी केकड़ी निवासी प्रतिष्ठाचार्य पं. धन्नालाल जी पाटनी के सुपौत्र एवं सेठ लखमीचंद पाटनी के दत्तक पुत्र श्री माणकचंद जी पाटनी का प्रारंभिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। सन् 1935-36 में आपने केकड़ी में ही बस मोनोपाली तोड़ने के आंदोलन में भाग लेकर अपने जुझारू स्वभाव का परिचय दिया। आपने इंदोर से विशारद परीक्षा पास की और जयपुर में शुद्ध घी का व्यवसाय करने लगे । आपका विवाह श्रीमती ललिता देवी के साथ संपन हुआ जो अत्यधिक सरल स्वभावी, धार्मिक मनोवृत्ति एवं परिवार को साथ लेकर चलने वाली महिला हैं। आपको तीन पुत्र एवं पांच पुत्रियों की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त हैं। सबसे बड़ा पुत्र राजेन्द्रकुमार लॉ कालेज में व्याख्याता है तथा छोटे पुत्र महेन्द्र लोहे का व्यवसाय करते हैं। तीसरे पुत्र जिनेन्द्र ने बी.ए. कर लिया है। पांचों पुत्रियों में श्रीमती विद्या एम. ए., बी. एड. हैं तथा सिरोही में एक महिला विद्यालय में प्रधानाध्यापिका हैं। आपका विवाह डा. बाबूलाल जी सेठी के साथ हो चुका है। आपकी दूसरी पुत्री ज्ञानवती एम. ए., एम. फिल. है । पाटनी जी प्रारंभ से ही धार्मिक जीवन यापन करते हैं। जहां तक हो सकता है धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आपने तीन बार सभी तीर्थों की यात्रा संपन करली है। पता :- 566 मनिहारों का रास्ता, जयपुर। श्री माणकचन्द मुशरफ जी अपनी शालीनता एवं मधुर व्यवहार से सबको प्रभावित करने वाले श्री माणकचन्द मुशरफ वर्तमान में सेठी नगर जैन समाज के अध्यक्ष हैं। विगत 10-15 वर्षों से उनका व्यक्तित्व समाज में उभर कर आया है तथा उनके कृतित्व प्रशंसा होने लगी है। आए दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय की महासमिति के सदस्य हैं। सेठी कालोनी की पहिले वेदी प्रतिष्ठा में और फिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आपका सराहनीय योगदान रहा। इसके पूर्व वे वहां के सेक्रेटरी भी रह चुके हैं। एक बार राज जैन साहित्य परिषद् द्वारा श्रुतपंचमी के अवसर पर आयोजित रथयात्रा में सारथी का पद प्राप्त कर चुके हैं। आपका जन्म 11 मार्च 1933 को हुआ। आपके पिताश्री गपूचंद जी मुशरफ का निधन हो चुका है तथा माताजी की छाया अभी प्राप्त हैं। आपका विवाह 1951 में श्री नन्दलाल जी Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/295 बड़जात्या चौमूं वाले की सुपुत्री कमला देवी के साथ हुआ। आपको एक पुत्र राकेश एवं चार पुत्रियां विजयलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, जयश्री एवं रेणु के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सभी का विवाह हो चुका है। श्री राकेश कुमार एम कॉम हैं। उनकी पत्नी का नाम रेणु है जो बी.कॉम हैं तथा अशोक कासलीवाल की पुत्री हैं। आपको पत्नी श्रीमती कमला देवी भी सामाजिक कार्यों में भाग लेती है तथा महिला जागृति संघ की सक्रिय सदस्या हैं। एक बार आपके द्वारा नेत्र चिकित्सा शिविर का उद्घाटन किया गया था 1 आप दोनों से ही समाज को बड़ी आशायें हैं। पता : बी 125, सेठी कालोनी, आग; रोड,जयपुर। पं. मिश्रीलाल साह शास्त्री वयोवृद्ध विद्वान पं.मिश्रीलाल जी साह का जन्म माध बुदी 13 सं.1969 को हुआ | आपके पिताजी श्री छीतरमल जी केकड़ी निवासी थे तथा मुनीम कहलाते थे। आपकी माता का नाम मोती बाई था । सोलापुर परीक्षालय की शास्त्री परीक्षा पास करने के पश्चात् आप धार्मिक शिक्षण एवं विधि विधान कराने लगे और नैणवां,नागौर, सुजानगढ,कुचामन सिटी, पदमपुरा, लाडनू आदि में रहकर बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने तथा पंडिताई करने का कार्य संपन्न किया। संवत् 1984 में आपका विवाह श्रीमती गुलाबबाई से हो गया। आपको चार पुत्रों सर्व श्री सुमत्तिचन्द, सूरजमल,माणकचंद एवं महेन्द्रकुमार की प्राप्ति हुई। सभी पुत्र उच्च शिक्षित हैं तथा अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। शास्त्री जी मुनिभक्त हैं। आर्षमार्गानुयायी हैं तथा शास्त्र प्रवचन में दक्ष हैं। आपने वीर निर्वाण संवत् 2505 वै.शु.7 को जयपुर के लश्कर के मंदिर में भगवान महावीर की 5 अंगुल सर्वधातु की प्रतिमा पूरे पुत्र पौत्रों की उपस्थिति में विराजमान को थी। श्री माणकचंद बज टॉक (राजस्थान) में चैत्र शुक्ला 3 संवत् 1989 तद्नुसार 9 अप्रैल,1932 को जन्मे एवं वहीं पर सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् श्री माणकचन्द जी बज ने टौंक में वस्त्र व्यवसाय प्रारंभ किया। लेकिन वहां व्यापार का कोई विशेष स्कोप नहीं देख कर 1964 में जयपुर आकर दि.16-2-1964 को मुहुर्त करके कपड़े का ही व्यवसाय किया और उसमें अपूर्व सफलता प्राप्त की। आप के पिताजी श्री राजूलाल जी बज का दिसम्बर 1963 में ही स्वर्गवास हो गया था। आपकी माताजी मोतिया बाई टौंक में ही रहती हैं। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 296/ जैन समाज का बृहद् इतिहास आपका विवाह फाल्गुण शुक्ला 3 संवत् 2013 में श्रीमती शांति देवी के साथ टोंक में ही हुआ। आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। दोनों पुत्र नरेन्द्र एवं सुरेन्द्र का विवाह हो चुका है। नरेन्द्र की धर्मपत्नी श्रीमती विद्या सामाजिक कार्यों में रुचि लेती है। आपके पूर्वज 125 वर्ष पूर्व मालपुरा से गैंक आये थे। आपके पूर्वजों में कालूराम जी सूरजमल जी जवाहरलाल जी एवं राजूलाल जी थे | मालपुरा में भगवान महावीर स्वामी का (मंडी का मंदिर) आपके पूर्वजों द्वारा बनवाया गया था। श्री बज श्रो अखिल विश्व जैन मिशन जयपुर के कोषाध्यक्ष हैं श्री दि.जैन मंदिर बड़ा दीवान जी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं । दि.जैन बड़ा तेरहपंथी मंदिर के भी आप सदस्य हैं । प्रतिदिन अभिषेक एवं पूजा का नियम है । संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते हैं । आपकी माताजी मुनियों को आहार देती हैं। पता : 677, बिचून हाउस, किशनपोल बाजार,जयपुर श्री माणिक्यचन्द जैन शिक्षा एवं समाज सेवा के लिये विगत 61 वर्षों से विख्यात श्री माणिक्यचन्द जी जयपुर ही नहीं अपितु राजस्थान में विख्यात हैं । शिक्षा एवं शिक्षार्थियों के लिये समर्पित मास्टर साहब सदैव कार्यरत रहते हैं। 10 दिसम्बर 1914 को जयपुर जिला के सेवाग्राम में जन्मे माणिक्यचन्द जी जैन के पिता का नाम श्री गोरीलाल जी एवं माता का नाम श्रीमती नानकी देवी था। आपके एक लघु प्राता श्री कुन्दनलाल जी एडवोकेट हैं। आपके पांच पुत्र सर्व श्री दिनेश, रजनीकान्त,महावीर कुमार,राकेश,शशिकांत हैं । तीन पुत्रियां सुश्री इन्दु बाला,श्रीमती मुन्नी,श्रीमती सुमंगला है । सभी पुत्र-पुत्रियां सुयोग्य एवं उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। आपकी शादी 1939 में श्रीमती भंवर देवी हाड़ा परिवार में हुई है। आपने जैन कुमार सभा,वीर संघ,बीर सेवक मण्डल,राजस्थान जैन सभा,श्री दि.जैन मन्दिर गुमानी रामजी,श्री दि.जैन मन्दिर आदि, सेठी कालोनी में स्थापना संरक्षण तथा अन्य पदों पर रहकर सक्रिय भूमिका निभाई हैं । मास्टर जी जयपुर को सभी शिक्षण संस्थाओं से किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं। इनके सैकड़ों हजारों शिष्य हैं जो उच्च पदों पर कार्यरत हैं। आपकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिये दिनांक 9 मार्च 1991 को आपका सार्वजनिक अभिनन्दन भी आयोजित हो चुका है तथा आपके बारे में अभिनन्दन पंथ भी प्रकाशित किया गया है। आपको राजस्थान शिक्षक संघ, भारत सेवक समाज, जयपुर लायन्स क्लब, लायन्स क्लब बापूनगर,कैपिटल लाइन्स कल्ब जयपुर भारत जैन महासंघ मण्डल शिक्षण प्रकोष्ठ कांग्रेस जयपुर, जैन समाज पाडवा बांसवाडा) राजस्थान समाज सेवी संस्था,श्री शिवजी गोधा की नशियां प्रबन्ध समिति जयपुर,विश्व जैन मिशन, श्री महावीर दि. जैन शिक्षा परिषद जयपुर,श्री पद्मावती जैन बालिका सी.उ.मा. विद्यालय परिवार जयपुर की ओर से सम्मानित और पुरस्कृत किया जा चुका है । मास्टर माणिक्यचन्द जी जैन सही मायने में सादगी और सजगता से युक्त सच्चे समाजसेवी हैं। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 297 जैन समाज के प्रबुद्ध समाजसेवी व विद्वान पं. चैनसुखदास जी के मुख्य अनुयायियों में से भी आप एक हैं । श्री मिलापचन्द जैन बागायत वाला " बागायत वालों के बैंक से प्रसिद्ध श्री मिलापचन्द जी गोधा समाज की एक विभूति हैं। जिनवाणी के प्रकाशन, संरक्षण एवं व्यवस्थितकरण में आप विगत 50 वर्षों से लगे हुये हैं। आपने अब तक धर्मरत्नाकर, जीवराज की चिट्ठी ध्यानोपदेश कोश, रामचन्द्र चालीसा, आदिनाथ पार्श्वनाथ पूजा, पार्श्वनाथ स्तोत्र, ऋषि मंडल स्तोत्र, समवसरण स्तोत्र णमोकारपे तोसी विमान, धवल जगध्वल पूजा, जैनविद्री मूडविद्री की चिट्ठी, हितकर कहानियां, लक्ष्मी और सरस्वती, दिगम्बराचार्य पट्टावलि, रविवत पूजा व तीन लोक बड़ी पूजा पार्श्वनाथ पद्मावती नालीसा जैसी र पुस्तकें प्रक के हैं। A आप सन् 1933 से ही जिनवाणी की सेवा में लगे हुये हैं। पांडे लूणकरण जी के मंदिर के शास्त्र भंडार को व्यवस्थित करने तथा उसका सूचीकरण करने में डा. कासलीवाल को बहुत सहयोग दिया था। आप शास्त्र भंडार के मंत्री हैं और रात दिन उसकी व्यवस्था में लगे रहते हैं। आजकल आप वेदी प्रतिष्ठा, पूजा विश्वान आदि कराते हैं। अब तक 181 विधान करा चुके हैं। पार्श्वनाथ भवन में स्थित आर्यिका धर्ममती क्षु राजमती पुस्तकालय में प्रतिदिन बैठते हैं। पाण्डे लुणकरण जी एवं पार्श्वनाथ भवन की दोनों पुस्तकालयों में 4 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त साधुओं की सेवा में भी आप बराबर लगे रहते हैं। साधुगण आपको जिनवाणी भक्त एवं सरस्वती पुत्र कहकर संबोधित करते रहते हैं। आपका जन्म 12 दिसम्बर सन् 1912 को हुआ । मेट्रिकुलेट किया और राजकीय सेवा में चले गये। 16 फरवरी 1934 को आपका विवाह हुआ। आपकी पत्नी श्रीमती पद्मावती देवी हिन्दी प्रवेशिका हैं। आपके पिता श्री हजारीलाल जी सन् 1930 में ही स्वर्गवासी हो गये थे तथा माताजी का स्वर्गवास अभी सन् 1977 में हुआ। मिलापचन्द जी धार्मिक स्वभाव के हैं तथा शोधार्थियों को बराबर सहयोग देते रहते हैं। लेखक को तो आपसे विभिन्न ग्रंथों की पाण्डुलिपियां प्राप्त करने में बहुत सहयोग मिलता रहा है । पता :- मकान नं. 1981 बागायत भवन, बंजी ठोलिया की धर्मशाला के पास, जयपुर ३ पं. मिलापचन्द शास्त्री जयपुर की पुरानी पीढ़ी के विद्वानों में पं. मिलापचन्द जी का सर्वोच्च स्थान है। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के प्रिय शिष्य होने के साथ उनके पश्चात् समाज आपके प्रवचनों के प्रति विशेष आकर्षित रहा है। इसलिये भाद्रपद मास के अतिरिक्त अन्य सभी समारोहों में आप विशेष वक्ता के रूप में याद किये जाते हैं। पावन प्रवाह एवं जैन दर्शन सार का आपने हिन्दी अनुवाद किया है। भावना विवेक को अपने पिताजी मगनलाल जी की समृति में प्रकाशित करवाकर उसे आप निशुल्क वितरित कर चुके हैं। आपके स्वदेशी वस्त्र भण्डार के नाम से स्वतंत्र Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 298/ जैन समाज का वृहद् इतिहास व्यवसाय है । आपकी सभी चारों पुत्रियों का विवाह हो चुका है । आपके एक मात्र पुत्र श्री भागचन्द जी जवाहरात का व्यवसाय करते हैं। ___ धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में आपका विशेरशे रहता है । वला. उससुर जैगन की सप संशाओं की ओर से सर सेठ मागचन्द जी सोनी की अध्यक्षता में सम्मानित हो चुके हैं । उस समय आपको जो राशि भेंट की गई थी उसे आपने तत्काल सभी संस्थाओं में वितरित कर दी थी। भगवान महावीर के 2500 बा निर्माण महोत्सव एवं बाहुबलि सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोहों पर आप स्वर्ण पदक से सम्मानित हो चुके हैं। जैन दर्शन विद्यालय का 25 वर्षों तक संचालन करके सैकड़ों छात्र-छात्राओं को धार्मिक शिक्षा प्रदान की है। महावीर कन्या विद्यालय जयपुर के वर्षों तक मंत्री रह चुके हैं। श्री दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय को सक्रिय रूप से योगदान देते रहते हैं तथा वर्षों से उसकी कार्यकारिणी के सदस्य हैं। श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के संपादक मंडल के सदस्य हैं । आप जयपुर की सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। राजस्थान जैन साहित्य परिषद् परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष हैं तथा श्री सन्मति पुस्तकालय जयपुर ट्रस्ट मंडल के आप अध्यक्ष हैं । पंडित मिलापचन्द का अर्थ सेवा की प्रतिमूर्ति ,निरभिमानी एवं सरल स्वभावी है। पता :- स्वदेशी बस्त्र मंडार, कुन्दीगरों के भैरूं का रास्ता,शिवजीराम भवन के सामने,जयपुर। श्री महेशचन्द्र जैन चांदवाड़ जन्म : 26 फरवरी,1948 पिताजी : स्व. श्री राजमल जी जैन चांदवाड़ माताजी : श्रीमती उमराव देवी धर्मपत्नी : श्रीमती निर्मला देवी (सुपुत्री डा कस्तूरचंद कासलीवाल) सन्तान: 1. मोनू जैन • सुपुत्री -विवाहित 2. मनोज कुमार जैन - सुपुत्र - सी.ए. अध्ययनरत 3. ममता जैन • सुपुत्री - बी.एस.सी. 4. मनीष कुमार जैन - सुपुत्र. सीनियर हायर सेकेन्ड्री अध्ययनरत श्री महेशचन्द्र जैन प्रारम्भ से ही श्रमजीवो रहे हैं। स्नातक स्तर के अध्ययनोपरांत मुद्रण व्यवसाय में प्रविष्ट हुए । अल्पायु में ही पिताश्री के स्वर्गवास हो जाने के कारण सम्पूर्ण पारिवारिक जिम्मेदारियों का वहन करते हुए निरन्तर गतिशील रहे हैं। प्रारम्भ से ही अध्ययनशील होने और मुद्रण व्यवसाय में दक्षता के कारण अब तक आपके निर्देशन में सैकड़ों पुस्तकों का श्री पहेशचन्द्र जैन चांदवाड़ धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला देवी के साथ कलात्मक मुद्रण सम्पन्न हो चुका है। वर्तमान में राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /299 अकादमी,जयपुर में आप प्रकाशन अधीक्षक के पद पर कार्यरत रहते हुए मुद्रण के क्षेत्र में रुचिशील जनों को अपने परामर्श से लाभान्वित करते रहते हैं। जयपुर जैन समाज की विभित्र सामाजिक संस्थाओं के सक्रिय सदस्य हैं । दि. जैन समाज मधुवन,टोंक फाटक,जयपुर के मंत्री एवं राजस्थान जैन साहित्य परिषद,जयपुर के अर्थ मंत्री रह चुके हैं । अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रतिभाशाली युवक है। पता.- प्लाट नं. 1335 किसान मार्ग वरकत नागर,जयपुर 302035 फोन :514815 श्री माणकचंद साह जैन धर्म विशारद एत्र बोए. की उपाधि प्राप्त श्री माणकचंद माह पं. मिश्रीलाल जी शास्त्री के सुपुत्र हैं। आपका जन्म 14 अगस्त, 1946 को हुआ तथा श्रीमती सरला के साथ विवाह सूत्र में दि.11 मई 1967 को बंध गये। आप दोनों को एक पुत्र संजीवकुमार एवं एक पुत्री नूतन जैन के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । टेलीफोन विभाग में सेक्शन आफीसर के पद पर कार्यरत श्री साह अत्यन्त विनम्न एवं सेवा भावी युवक हैं। आपके पिताजी द्वारा जयपुर के लश्कर के मंदिर में एक मूर्ति विराजमान करने का पुण्य लाभ ले चुके हैं। पता : प्लाट नं. 533 बरकत नगर,जयपुर। BA श्री मुन्नालाल भावसा जयपुर को शुक्रवार सहेली के मंत्री श्री मुत्रालाल भावसा ने टेलीफोन कार्यालय में | अरिष्ठ सुपरवाइजर पद से निवृत्त होने के पश्चात् अपना समय स्वाध्याय एवं आत्म चिंतन में | लगा दिया तथा 8-10 वर्षों में कितने ही ग्रंथों की स्वाध्याय ही नहीं की है किन्तु गाथाओं एवं श्लोकों को कंठस्य भी कर लिया है। आपका जन्म 8 नवम्बर सन् 1922 को हुआ। मैट्रिक एवं न्यायतीर्थ तक अध्ययन करने के पश्चात् वे केन्द्रीय सेवा में चले गये। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मनोरमा देवी का 17 फरवरी 1965 को स्वर्गवास हो गया । आपको एक पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपका एक मात्र पत्र मरेन्द्र कुमार बी.ए. है तथा रत्नों का व्यवसाय करता है। उसकी पत्नी श्रीमती आसा देवी बैंक सर्विस में है । चारों पुत्रियों सुलोचना,रेणु, पुष्पा एवं विनीता का विवाह हो चुका है। आपके दो पौत्र हैं । आपके पिता श्री गैंदीलाल जी भांवसा जयपुर के प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे तथा शुक्रवार सहेली की संवत् 1966 में स्थापना की थी । उनका सन् 1956 में स्वर्गवास हुआ था। माताजी सूरक्षबाई भी धार्मिक स्वभाव वाली महिला थी । वर्तमान में मुन्नालाल जो ने अपने आपको स्वाध्यायी एवं आत्म चिन्तनशील बना दिया है । पता:813, सेवा पथ,लाल जी सांड का रास्ता, जयपुर । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300/ जैन समाज का वृहद इतिहास पं. मोतीलाल शास्त्री शास्त्र प्रवचन, विवाह विधि, गृह- प्रवेश आदि को संपन्न कराने में दक्ष पं.मोतीलाल । जी शास्त्री राजकीय कार्यालय में कार्य करते हैं । मैट्रिक एवं शास्त्री परीक्षा पास करने के पश्चात् आपने सामाजिक संस्थाओं में कार्य करने की अपेक्षा राजकीय संवा में जाना अच्न समझा। राजकीय सर्विस भी आपको प्रभुभक्ति के कारण मिली । आपका जन्म भुरटिया गांव में हुआ। आपके पिताजी का नाम रिखबचंद एवं माता का नाम चापदेवी है। आपके पिताजी भी बहत धर्मात्मा थे । रात्रि को भजनों को गाकरप्रभु की भक्ति किया करते थे । आपके जीवन पर उनका पूरा प्रभाव पड़ा । आपकी धर्मपत्नी का नाम मनफूल देवी है । आप दोनों पति-पत्नी को दो पुत्र. धनकुमार एवं धनराज के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । श्री धनकुमार बी.कॉम, एल.एल.बी.सी.ए.एस. है । शास्त्री जी ने ज्योति नगर मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया है । भाद्रपद पास में आप प्रवचन करते रहते हैं। धार्मिक कार्यों में भाग लेने में आप सदैव आगे रहते हैं तथा सबको सहयोग देने की भावना रखते हैं। आप अच्छे वक्ता हैं । प्रतिदिन पूजा अभिषेक का नियम है । जिनेन्द्र भक्ति में आपकी बड़ी आस्था है । कभी-कभी आकाशवाणी एवं टी.वी.पर आपके कार्यक्रम आते रहते हैं । सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि रखते हैं । पता : प्लाट नं.52 ए.शिवा कालोनी, टौंक फाटक,जयपुर। श्रीमती मुन्नीदेवी काला __ महिला जागृति संघ की मंत्री श्रीमती मुत्री देवी काला सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाली महिला हैं। संगीत में विशेष रुचि है तथा महिला जागृति संघ की सदस्याओं के साथ संगीत एवं नृत्य का अच्छा कार्यक्रम देती हैं। आपके पिता श्री हजारीलाल सोनी अजमेर रहते हैं । आपका जन्म 20 अक्टूबर सन् 1951 को हुआ। हायर सैकण्डरी परीक्षा पास करने के पश्चात् श्री रजनीश काला के साथ आपका विवाह हो गया। श्री काला जी राजकीय सेवा में उच्च पद पर कार्यरत हैं। आप दोनों को दो पुत्रियां एवं एक पुत्र के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपकी पुत्री रचना एवं रीमा काला दोनों ही नृत्य एवं संगीत में निपुण हैं । पुत्र श्री रविश काला अभी अध्ययन कर रहा है । श्रीमती मुन्नी देवी काला नाटकों में भाग लेती है । दो बार पंचकल्याणकों में 56 कुमारियों का नेतृत्व किया तथा माता के संवाद बोले । भक्तामर शिक्षण शिविर में उपसंयोजिका का कार्य संपन्न किया। पता: गांधी नगर,जयपुर Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /301 श्री मोहनलाल गंगवाल बूंदी (राजस्थान) के निवासी श्री मोहनलाल गंगवाल जयपुर में आजकल राज पंचायत प्रकाशन वालों के नाम से जाने जाते हैं। सामाजिक क्षेत्र में एवं प्रकाशन के क्षेत्र दोनों में ही गंगवाल साहब की अच्छी ख्याति है । आपका जन्म 28 दिसम्बर, 1925 को हुआ । राजस्थान विश्वविद्यालय से सन् 1950 में एम.कॉम. किया । सर्वप्रथम शिक्षक के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया इसलिये आज भी आपको मास्टर जी के नाम से पुकारा जाता है । सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती पुष्पादेवी के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों से अलंकृत हैं। दोनों पुत्र राजेन्द्र एवं महेन्द्र आपके ही व्यवसाय में सहयोग देते हैं। दोनों उच्च शिक्षित हैं तथा विवाहित हैं। तीनों पुत्रियों प्रेम,चंदा एवं सुधा का विवाह हो चुका है। गंगवाल साहब ने राजस्थान नियम उपनियम से संबंधित 25-3) पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद किया है । सन् 1962 में आपने प्रेस की स्थापना की जो वर्तमान में जयपुर के अच्छे प्रेसों में गिना जाता है । सामाजिक सेवा के क्षेत्र में आपका योगदान उल्लेखनीय है । आप दि. जन औषधालय की कार्यकारियों के सदस्य रह चुके हैं एवं पार्श्वनाथ भवन की कार्यकारिणी सदस्य हैं। मुनिभक्त हैं । समाज की प्रत्येक गतिविधियों में सहयोग देते हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पादेवी जो रोटेदा याम निवासी भंवरलाल जो पाटोदी की पुत्री हैं धार्मिक प्रकृति वाली महिला हैं । मुनियों को आहार आदि देती रहती हैं। महिला जागृति संघ की सक्रिय सदस्य रह चुकी हैं। पता : राज पंचायत प्रकाशन, चौड़ा रास्ता, जयपुर । श्री रतनलाल काला श्री रतनलाल काला का जन्म करांची में उस समय हुआ जब करांची भारत का ही अंग था। आपके पिताजी श्री इन्दरलाल जी काला का रूई एवं अनाज का थोक व्यापार था। पाकिस्तान बनने के पूर्व उन्होंने करांची में दि. जैन मंदिर का निर्माण करवाया लेकिन पाकिस्तान . बनने के पश्चात उन्होंने चन्द्रप्रभ एवं महावीर स्वामी की मूर्तियां जयपर में लाकर ठोलियों के मंदिर में विराजमान की थी । आप वर्षों तक करांची में रहे इसलिये आज भी रतनलाल जी काला को करांची के नाम से जाना जाता है। इन्टरपीजियेट तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात सन् 1951 में 19 वर्ष को आयु में आपका विवाह राणोली के जमनालाल जी रारा की पुत्री इन्द्रमणी के साथ संपत्र हुआ। आपके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । ज्येष्ठ पुत्र सरोज काला बी.कॉम.एल.एल बी.(1979) है तथा सन् 1981 में तीना के साथ उनका विवाह हो चुका है । दूसरा पुत्र नवीन काला पढ़ रहा है। आपकी दोनों पुत्रियां चन्द्रा एवं चन्दा का विवाह हो चुका है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती इन्द्रमणी जी का निधन दिनाक 4 सितम्बर 91 को हो गया। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 302/ जैन समाज का वृहद् इतिहास कालाजी अपने पिताजी के 6 भाई हैं जिनके नाम श्री विमलचंद, रतनलाल, प्रकाशचन्द, ताराचंद, माणकचन्द एवं कमलचन्द हैं । अंतिम दोनों भाई आपके साथ ही रहते हैं। आप अपने व्यवसाय में दक्ष हैं तथा वर्तमान में आपने जो कुछ उत्कर्ष किया है बह आपकी सतत् अध्यवसाय एवं निष्ठा का सुपरिणाम है । आप एक बार भट्टारकजी की नशियां में शांति विधान की पूजा करा चुके हैं । आपकी दानशील प्रकृति है तथा संस्थाओं का किसी न किसी रूप में सहयोग करते रहते हैं। पता : 52 ए,देवी पथ,तख्ते शाही रोड,रामबाग के सामने,जयपुर श्री रतनलाल गंगवाल श्री रतनलाल गंगवाल युवा समाजसेवी हैं । रेनवाल जिला (जयपुर) के रहने वाले हैं लेकिन व्यवसाय के लिये आप जयपुर आकर रहने लगे हैं । सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते हैं। वर्तमान में आप श्री दिगम्बर जैन समाजशास्त्री नगर के का है। राज करोसिन डीलर्स एसोसियेशन के मंत्री है,सुभाष नगर नागरिक समिति के संयुक्त मंत्री राजश्री विद्यालय शास्त्री नगर की प्रबन्धकारिणी समिति के अध्यक्ष दिगंबर जैन परमार्थिक ट्रस्ट किशनगढ़ रैनवाल के मंत्री एवं श्री बगरूवाला दि. जैन मंदिर स्टेशन रोड जयपुर के ट्रस्टी हैं । आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी गंगवाल समाज के प्रतिष्ठित महानुभाव हैं । आपकी माताजी विमलादेवी का । स्वर्गवास हो चुका है। ___ आपका जन्म :) मई 1940 को हुआ। बी.कॉम. करने के पश्चात् आपने व्यावसायिक क्षेत्र में पांव रखा । श्रीमती किरणलता सुपुत्री श्री तनसुखराज जी सेठी इंफाल (मनिपुर के साथ आपका विवाह हुआ। दोनों ही पति-पत्नी सरल स्वभाव एवं आतिथ्य प्रेमी हैं । आपको एक पुत्र एवं दा पुत्रियों के पिटा होने का सौभाग्य प्राप्त है । आपका ज्येष्ठ पुत्र श्री अरूणकुमार गंगवाल चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट है । विवाह हो चुका है । पत्नी का नाम अमिता गंगवाल है । आपकी दोनों पुत्रियां सुधा एवं मधु का विवाह हो चुका है। आपकी पत्नी श्रीमती किरणलता जी माध्यमिक परीक्षा पास हैं। अच्छी वक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ती हैं। महिलाओं में कार्य करने की पूर्ण रुचि है। महिला जागृति संघ की श्री रतनलात गंगवाल कर्मठ सदस्या रही हैं। शास्त्री नगर जैन समाज महिला मंडल जयपुर को उपाध्यक्ष एवं स्नेहिल वनिता संघ,जयपुर की संयुक्त मंत्री हैं : मधुर स्वभाव एवं कार्य करने में दक्ष हैं । दोनों से ही समाज को विशेष आशा है। पता : बी. 34, पार्श्वनाथ मार्ग,सुभाष तार,जयपुर Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /303 श्री रतनलाल छाबड़ा राजस्थान जैन सभा जयपुर के पूर्व मंत्री श्री रतनलाल छाबड़ा जयपुर के लोकप्रिय समाजसेवी हैं। समाज की विभिन्न गतिविधियों में आपका पूर्ण योगदान रहता है । सभाओं समारोहों का संचालन करने में आपको कुशल माना जाता है। आपकी जन्म तिथि 25 सितम्बर 1725 है। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल जी एवं 7 माताजी श्रीमती भंवरदेवी का स्वर्गवास हो चुका है। आपके परिवार में दो भाई एवं तीन छोटी बहिनें है,सभी विवाहित हैं। भाइयों में एक भाई राजकीय लेखा सेवा से सेवा निवृत्त हो चुके । हैं दूसरे अभी सेवारत हैं। आपके दो पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। तीनों पुत्रिया एवं एक पुत्र का विवाह हो चुका है । एक पुत्र निजी व्यवसाय में एवं दूसरा बैंक सर्विस में है। छाबडा जी राजकीय सेवा से निवृत्त हो चुके हैं तथा वर्तमान में समाज सेवा में अपने आपको समर्पित किया हुआ है। पता - 2636, षी बालों का रास्ता,जौहरी बाजार- जयपुर । श्री रतनलाल जैन नृपत्या युवा समाज सेवियों में श्री रतनलाल नृपत्या का विशिष्ट स्थान है । आपका जन्म अलवर में दिनांक 22.7.37 का है,सन् 1954 में हाई स्कूल उत्तीर्ण के पश्चात् तत्काल राजकीय सेवा में आ गये। जयपुर में प्रथम बार आचार्य श्री 108 देशभूषण जी महाराज के पदार्पण के समय से ही उनकी प्रेरणाः आशीर्वाद से आप धर्म प्रभावना एवं समाज सेवा में लग गये । राजकीय सेवा के साथ-साथ अध्ययनरत रहकर आपने शैक्षणिक योग्यता प्राप्त की,जिसमें हिन्दी साहित्य में साहित्य रल, आदि विशिष्ठ उपलब्धि ली । मास्टर गोपीचन्द जी का सानिध्य पाकर संगीत वाद्य यंत्र में भी अध्ययनरत रहे । बापू नगर समाज संभाग के संगठन की सृजन अवस्था से सक्रिय रहते हुए,जैन मंदिर के विभिन्न पदों पर,महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल में विशिष्ठ सदस्य, अखिल भारतीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी व राजस्थान महासमिति,पार्श्वनाथ जैन मेडिकल रिलीफ सोसायटी के आजीवन सदस्य, आरोग्य भारती में सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत हैं । दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के मानद मंत्री वर्ष 88 में बनने के पश्चात् आपने कर्मठता के साथ एवं समर्पित भाव से क्षेत्र की सेवा करते हुए विकास की ओर अग्रसर किया है। आपका विवाह श्रीमती गुणमाला देवी (जोधपुर निवासी) के साथ वर्ष 1963 में सम्पन्न हुआ । एक पुत्री नीलू तथा दो पुत्र राजेश व राकेश के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । नृपत्या जी के बड़े भाई श्री महावीर प्रसाद जो हैं जिनका विस्तृत परिचय पथक से दिया गया है । नपत्या परिवार ने विभिन्न मंदिरों के जीणोद्धार विशेषकर आमेर के बाहरली नसियां परानी डीग. जैन मंदिरों में व नये निर्माण कार्यों में श्रवणबेलगोला,मंसूरी के जैन भवन, अलवर की धर्मशाला,बापू नगर जैन मंदिर आदि में कमरे व जलकूप बनवाये हैं । वर्तमान में आप उपनिदेशक खादी यामोद्योग (जिला उद्योग केन्द्र, उद्योग भवन) जयपुर के पद पर कार्यरत हैं। पता - डी -73, सिवाड एरिया, मंगल मार्ग,बापूनगर, जयपुर दूरभाष : 6658] Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 304) जैन समाज का वृहद् इतिहास डा. रमेशचन्द्र अजमेरा डा. रमेशचन्द्र अजमेरा श्री गोपीचन्द जी अजमेरा एडवोकेट के द्वितीय पुत्र हैं । आपका अन्म 30 सितम्बर सन् 194) को हुआ । एम.एस.सी.पास करने के पश्चात् सन् 1963 में आप अमेरिका चले गये । वहां जाकर एम.ई.पी.एच.डी.जैसी परीक्षायें अभूतपूर्व सफलता के साथ पास की तथा केलीफोर्निया में अमेरिका सरकार के रक्षा विभाग में बहुत ऊंची जगह काम करने लगे। इसके पूर्व वे नार्थ कारोलीना में प्रोफेसर फिजिक्स के पद पर कार्यरत थे । उसके पश्चात् ही उनकी डिफेंस में उच्च पद पर नियुक्ति हो गई। श्री अजमेरा जी का सन् 1461 में गया जी के श्री गजानन्द जी की सुपुत्री सुश्री रूपलता से विवाह हुआ। आपको एक पुन एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । आपका पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी जीवनयापन करता है तथा आदर्श भारतीय के रूप में वहां जाने जाते हैं । अमेरिका में आप जैसे उच्च पद पर कार्य करने वाले बहुत कम भारतीय मिलेंगे। श्री रमेशचन्द गंगवाल राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष श्री रमेशचन्द गंगवाल सामाजिक क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं । व्यापारिक दृष्टि से आप राजस्थान साड़ी एवं कपड़ा व्यवसाय संघ के मंत्री हैं तथा राजस्थान व्यापार उद्योग मंडल की कार्यकारिणी सदस्य हैं। महावीर सेवा समिति के महामंत्री एवं न्यू मार्केट एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं। किसी भी सेवा कार्य से पीछे नहीं हटने : वाले तथा स्वेच्छा से कार्य करने की प्रवृत्ति वाले गंगवाल साहब मधुर भाषी है । आपका जन्म 25 सितम्बर 1939 को श्री फूलचन्द जी गंगवाल के यहां हुआ जिनका देहान्त ९ जन को हआ था ! फूलचन्द जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे तथा आपने कितने ही पदों की स्वयं ने रचना की थी । उन्होंने पूर्णतः धार्मिक जीवन व्यतीत किया और अन्त में श्री अरिहन्त सिद्ध का नाम लेते हुये चिर निद्रा में लीन हो गये । श्री गंगवाल ने राजस्थान विश्वविद्यालय से सन् 1961 में श्री कॉम किया और फिर साड़ी उद्योग में लग गये। 30 नवम्बर 14 को आपका विवाह श्रीमती इन्द्रा देवी से हुआ । आपको तीन पुत्रियों एवं एक पुत्र का पिता होने का गौरव प्राप्त है । पिनाई ग्राम के मंदिर निर्माण में आपके पूर्वजों का पूरा योगदान रहा था। पता : 2974 गंगवाल भवन.न्यू मार्केट, घी वालों का रास्ता जयपुर 66 AANTHE म. श्रीपती इन्द्रा देवी धर्मपत्नी श्री रमेशचन्द्र भगवान Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /305 श्री राजकुमार काला श्री काला जी ऐसे युवा समाजसेवी हैं जिनको जन्मजात नेतृत्व गण मिला। आपके सागर जी महा पिताजी श्री गैदीलाल जी काला अपने समय के कांग्रेसी नेता थे तथा नगर परिषद के सदस्य भी रहे थे। उन्हों के पुत्र श्री काला जी का जन्म 22 अगस्त,1940 को हुआ। आपको प्रारंभ से ही वकालात करने की धुन थी इसलिये एम.ए.एलएल.बी. किया और फिर लेबर कोर्टस में वकालात प्रारंभ कर दी जिसमें आपको अच्छी सफलता मिली। आपका विवाह दि.12 मई,67 को श्रीमती राज काला के साथ संपन्न हुआ । श्रीमती काला स्वयं हिन्दी एवं नृत्य में एम.ए. है तथा नगर की प्रगतिशील पहिलाओं में गिनती होती है। आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है। श्री काला जी सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन वाले युवा नेता हैं। जयपुर की प्रसिद्ध सामाजिक संस्था राज. जैन सभा के लगभग 15 वर्षों तक अध्यक्ष रहे हैं । दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, दि. जैन औषधालय,दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी की कार्यकारिणी सदस्य हैं। महावीर दि.जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के मंत्री हैं इसी तरह और भी अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। अनेक राष्ट्रीय संस्थाओं से आप खूब जुड़े हुये हैं। नगर कांपेस (आई) के आप वर्तमान में अध्यक्ष हैं । आपका समस्त जीवन समाज एवं देश के लिये समर्पित रहता है । आपके आठ भाई एवं चार बहिनें हैं। श्री पदमचन्द काला न्यूयार्क में ज्वेलरी का कार्य करते हैं तथा एक भाई विनोद काला बंबई में जवाहरात का कार्य करते हैं । आपके ज्येष्ठ भ्राता स्व.ज्ञानप्रकाश जी काला स्वतंत्रता सेनानियों में गिने जाते हैं। पता :- 458, काला भवन, नाटणियों का रास्ता त्रिपोलिया बाजार,जयपुर। श्री राजमल सौगानी जन्म तिथि :- फाल्गुण सुदी 14 संवत् 1975 शिक्षा:- सामान्य पिता :- श्री लिखमीचंद जी सौगाणी ) वर्ष पूर्व 77 वर्ष की आयु में स्वर्गवास माता :- श्रीमती आन बई - 25 वर्ष पूर्व (0.5 वर्ष की आयु में स्वर्गवास व्यवसाय: वस्त्र व्यवसाय विवाह :- संवत् 1990 में पत्नी :- श्रीमती मुत्राबाई सुपुत्री श्री कन्हैयालाल जी चांदवाड,जयपुर। परिवार :- 'पुत्र-3 प्रकाशचंद 50 वर्ष पत्नी - गुणमाला पुत्र -2 पुत्री - ] Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 306 / जैन समाज का वृहद् इतिहास सुरेश चन्द 4() वर्ष पत्नी सुमनदेवी, पुत्र - 2 रमेश चन्द 300 वर्ष पत्नी जी सी.ए. पुत्र पुत्री 1 पुत्रियां-9, कमला बाई, कान्ता बाई शान्ता बाई, पुष्पा बाई, पदम बाई, शकुन्तला, हेमलता, रेखा बाई, मीना बाई, सभी का विवाह हो चुका है। विशेष :- धार्मिक 1. मंदिर निर्माणार्थ विशेष आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। 2. बस्सी सीतारामपुरा जयपुर के मंदिर में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की है। 3- सभी तीर्थों की वंदना करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया है। सामाजिक 1- दि. जैन बड़ा तेरहपंथी मंदिर में प्रमुख कार्यकर्ता 2- दि. जैन संस्कृत आचार्य महाविद्यालय, दि. जैन महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल, दि. जैन औषधालय आदि के आजीवन सदस्य | 3- भजनों के प्रेमी, शान्त स्वभाव, उदार हृदय, मुनियों के परम भक्त विशेष :- जयपुर से 12 मील दूरी पर टौंक रोड वाटिका मोड के पास स्थित आपकी फैक्ट्री सौगानी उद्योग के नाम से प्रसिद्ध हैं । वहां आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज का संघ पदमपुरा से जयपुर आया तब ठहरा था तथा आचार्यकल्प श्रुतसागर महाराज का संघ भी सांगानेर से पदमपुरा जाते वक्त ठहरा था। फर्म : 1- लखमीचंद राजमल 2- राजमल सुरेशचंद 3- सौगानी उद्योग पता :- सौगानी भवन, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर श्री राजमल सोनी सोनी परिवार में दिनांक 200-1-24 को जन्मे श्री राजमल सोनी बी.कॉम. पास करके सन् 1946 में जयपुर राज्य सेवा में चले गये और 1951 में एल.एल.बी. परीक्षा पास की। सन् 1979 में लेखाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आप श्री फूलचन्द जी सोनी के सात पुत्रों में चौथे पुत्र रहे। श्री फूलचन्द जी के बड़े भाई श्री हजारीलाल जी सोनी का सन् 1937 में स्वर्गवास होने पर उनकी धर्मपत्नी महताब देवी के ये गोद चले गये। श्री हजारीलाल जी जयपुर राज्य के कितने ही वर्षों तक नाजिम रहे। उनके समय में उनका राज्य व समाज में अच्छा प्रभाव था। आपकी माता का सन् 1949 में स्वर्गवास हुआ। सन् 1941 में आपका विवाह www Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /307 श्रीमती भाग्यवती से हुआ । इन्होंने विद्या विनोदनी परीक्षा पास की। आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ लेकिन आपके ज्येष्ठ पुत्र निर्मल कुमार सोनी चीफ इन्जीनियर प्रोडक्शन के पद पर गुडगावां में कार्यरत होते दि. 27-2-91 को 46 वर्ष के आयु में आकस्मिक निधन हो गया । आपके छोटे पुर्व डॉ.विनय काम...अपने निजीकिसालय में कार्यरत हैं और अल्प समय में ही चार वर्ष विदेश का अनुभव प्राप्त कर समाज में अच्छी प्रसिद्धि पर है । आपकी एकमात्र पुत्री प्रमिला का विवाह डा.रवि जैन एम.एस.के साथ हुआ है ।' श्री सोनी श्री वीर सेवक मण्डल के वर्षों से सक्रिय सदस्य हैं। पर्याप्त समय तक आप इसके सैक्रेटेरी एवं दलपति रहे एवं मण्डल की स्वर्ण जयन्ती का आयोजन आपके ही मंत्रित्वकाल में सफलता पूर्वक आयोजित हुआ। आपने धर्म-पत्नी के साथ सभी तीर्थों की यात्रा सम्पन्न कर ली है । आचार्य सूर्यसागर जी महाराज के आप काफी निकट रहे । वर्तमान में आचार्य विद्यानन्द से काफी सम्पर्क हैं तथा श्रवण बेलगोला में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर उनके सत्र से वीर सेवक मंडल के स्वयं सेवकों को ले जाकर मेले में यात्रियों एवं साध समाज की व्यवस्था का कार्य दलपति पद के रूप में सम्पादन किया। पत्ता : 449. नाटानियों का रास्ता,जयपुर । श्री राजेन्द्र कुमार बाकलीवाल भूतपूर्व जयपुर स्टेट की जमवारामगढ़ तहसील के छोटे से गांव लांगडीवास में दि. 27-12-1937 को जन्में श्री राजेन्द्र जी वर्तमान में केन्द्रीय विद्यालय संगठन बम्बई संभाग में सहायक आयुक्त पद पर आसीन हैं । अपनी तहसील के जाने माने उदारमना व्यक्तित्व स्व.सेठ श्री गुलाब चंद जी बाकलीवाल के सुपुत्र श्री बाकलीवाल को कर्तव्यनिष्ठा,सहृदयता,आत्मीयता तथा धर्मानुराग विरासत में मिला है। आपने गणित जैसे जटिल विषय में स्नातकोत्तर योग्यता प्राप्त करके अध्यापन कार्य को चुना जबकि उनको जैसी योग्यता वाले व्यक्ति को लौकिक प्रगति और समृद्धि के दूसरे दरवाजे भी खुले थे । भारत सरकार ने उन्हें सेफील्ड (इंगलैण्ड) में स्कूल मैनेजमेन्ट की ट्रेनिंग के लिये सन् 1976 में भेजा । अपनी लगन और योग्यता के बल पर वे निरन्तर उन्नति करते गये और अपेक्षाकृत कम आयु में ही प्राचार्य शिक्षाधिकारी जैसे पदों पर रहते हुये आज शिक्षा जगत् में एक उच्च अधिकारी ही नहीं बल्कि एक जाने माने व्यक्तित्व हैं । आपके अधीन महाराष्ट्र ,गोवा एवं कर्नाटक प्रान्तों के करीब 50 केन्द्रीय विद्यालय हैं और यह आपके व्यक्तित्व का प्रभाव है कि देश के 15 संभागों में बंबई संभाग शिक्षा एवं अन्य इतर गतिविधियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। श्री राजेन्द्र जी के भरेपूरे परिवार में उनकी पत्नी सुशीला देवी के 2 पुत्र एवं 3 पुत्रियां हैं । ज्येष्ट पुत्र नरेन्द्र एम.ए. और कनिष्ठ पुत्र नवीन बी.एस.सी. डिप्लोमा होल्डर तथा जयपुर में कार्यरत रेखा जैन बी.ए. बी. एड. मझली रेणु एम.एस.सी.,बी. एड. तथा छोटी रश्मि बी.ए. बी.एड. है। दोनों पुत्रों तथा दो पुत्रियों का विवाह संपत्र हो चुका है। श्री राजेन्द्र जी बाकलीवाल शिक्षा के प्रति समर्पित व्यक्तित्व है । सरल,मृदुभाषी,आडम्बर हीन सहज, सौम्य एवं कर्मठ व्यक्तित्व के धनी श्री जैन से सैकड़ों कर्मचारी प्रभावित हुये हैं । शिक्षा जगत को उनसे बड़ी आशायें हैं तथा सम्पूर्ण जैन समाज को उन पर गर्व है। पता : पंडित शिवदीन जी का रास्ता,किशनपोल बाजार, जयपुर । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 308/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रामचन्द्र ठेकेदार 76 वर्षीय श्री रामचन्द्र ठेकेदार ने जयपुर नगर के धार्मिक जीवन में अपनी उदारता, सामाजिकता तथा जिनेन्द्र भक्ति की कितनी ही बार छाप छोड़ने में सफलता प्राप्त की । दि.जैन मंदिर खिन्दूकान में आयोजित तीन लोक पूजा समारोह के आप प्रमुख आयोजक थे । उसी मंदिर में नववेदी का निर्माण करवाकर नवदेवता एवं महावीर स्वामी की धातु की प्रतिमा विराजमान की। तीर्थ यात्रायें करने, धार्मिक समारोहों में भाग लेने में आपको प्रसत्रता होती है । दि. जैन मंदिर खिन्दूकान के आप वर्षों तक अध्यक्ष रहे तथा अ. क्षेत्र चूलगिरी एवं भांकरोटा मंदिर की कार्यकारिणी के सदस्य रहे । आपके दो विवाह हुये । प्रथम विवाह 18 वर्ष की आयु में तथा दूसरा विवाह 26 वें वर्ष की आयु में सरस्वती देवी के साथ हुआ। आपके एक मात्र पुत्र श्री बाबूलाल छाबडा बी.ए. एवं आयुर्वेदाचार्य है। आपकी धर्मपत्नी का नाम निर्मला देवी है। श्री बाबूलाल जी भी सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले युवा नेता हैं । आप अच्छे चिकित्सक हैं । कवि हैं । कवि सम्मेलनों में भाग लेते रहते हैं। ठेकेदार जी द्वारा चूलगिरी पहाड़ पर प्याऊ का निर्माण करवा कर संचालन व्यय वहन किया जाता है । वहीं पर धर्मशाला में आपकी ओर से तीन कमरों का निर्माण करवाया गया है। ख़ानियां पंच कल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में इन्द्र-इन्द्रानी बन चुके हैं। श्रीमती सरस्वती देवी धर्मपत्नी श्री रामचन्द्र ठेकेदार पता : 9/1 टेलीफोन कालोनी, टौंक फाटक,जयपुर । PAICC श्री राजमल कासलीवाल (साइवाइवाले) जमवारागढ तहसील के साइवाड़ ग्राम में संवत् 1981 में जन्में श्री राजमल जी कासलीवाल का धार्मिक समाज में अच्छा स्थान है। आपके पिताजी श्री श्यामलाल जी भी अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति थे तथा गांव में ही लेनदेन का कार्य करते थे । आपकी माताजी श्रीमती दाखादेवी का अभी 9 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है । आपने गांव में ही सामान्य शिक्षा प्राप्त ही और 17 वर्ष की आयु में मनभरदेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । आपको पांच पुत्र सर्व श्री हरिशचन्द्र,हुकमचंद, अमित कुमार,सुभाष एवं रमेशकुमार तथा 4 पुत्रियाँ विमला, गुणमाला,मंजू एवं सरोज के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। । एक पुत्री को छोड़कर सभी का विवाह हो चुका है। श्री कासलीवाल जी का ब्रत नियम से पूर्ण जीवन है । दोनों पति पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों को भक्ति में आगे रहते हैं । सामाजिक जीवन जीने वाले हैं। जयपुर के महाबोर हायर सैकण्डरी विद्यालय में आयोजित पंचकल्याणक में Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /309 इन्द्र बन चुके हैं। अपने ही गांव के मन्दिर में वेदी बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा करा चुके हैं। तीर्थ यात्रा के बहुत प्रेमी हैं इसलिये तीर्थयात्रा पर जाया ही करते हैं। लेखक के साथ सन् 1981 में बाहुबली स्वामी की यात्रा की थी । आप अत्यधिक सरल एवं शांत स्वभाव के हैं तथा दानी प्रकृति के हैं। संस्थाओं को सहायता देते रहते हैं । श्री दि.जैन महासभा के स्थायी सदस्य हैं। I श्री रतनलाल कासलीवाल आपके छोटे भाई है जिनका जिनका जन्म संवत् 1988 में हुआ था। संवत् 2004 में आपका विवाह अनोपदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र शिखरचंद, अशोक कुमार, प्रकाशचंद एवं धर्मचन्द तथा एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। आप दोनो भाईयों के सभी पुत्र व्यवसाय करते हैं। आप जयपुर की सिरमोरियों के मंदिर समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं। आप भी अपने बड़े भाई के पद चिन्हों पर चलते हैं। पता :- 1- मु.पो. साइवाड (जमवारामगढ) जयपुर 2- 167 जैन ब्रदर्स, आतिश मार्केट, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर। श्री राजेन्द्रकुमार लुहाड़िया नयना (जयपुर) के शाहजी खानदान में ४ नवम्बर, 1899 में जन्मे श्री राजेन्द्रकुमार लुहाड़िया राजस्थान के वयोवृद्ध समाजसेवी हैं। नब्बे वर्ष की आयु पार करने के पश्चात् भी आप शरीर एवं मस्तिष्क दोनों से स्वस्थ हैं तथा आज भी आप में कुछ लिखने, पढ़ने एवं समाज सेवा करने के भाव जागृत हैं। अपने लम्बे जीवन में आपके द्वारा सम्पादित कितने ही कार्य इतिहास के पृष्ठों पर अंकित किये जाने योग्य हैं। आप सर्वप्रथम भा. दि. जैन परिवार डाइरेक्टरी की संपादन प्रकाशन योजना में जनरल सेक्रेटरी रहे । सन् 1962 में नावां बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर काठेड़ा प्रान्तीय दि. जैन खण्डेलवाल सभा की स्थापना करके उसके 25-30 वर्ष श्री रतनलाल कासलीवाल तक मंत्री रहे तथा सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में बहुत योगदान दिया। मथुरा के राजा लक्षमणदास के उत्तराधिकारी सेठ भगवानदास की एस्टेट के 4-5 वर्ष जनरल मैनेजर रहे। जयपुर जैन डाइरेक्टरी 1974 एवं भारतीय दि. जैन तीर्थ क्षेत्रों के चार भाग की सामग्री संकलन में आपने पूरा योग दिया। अपने ग्राम नरायना में चन्द्रशेखर आजाद चिकित्सालय के भवन निर्माण हेतु पूरा आर्थिक सहयोग दिया। श्री लुहाड़िया जी विनम्र, सरल, शांतिप्रिय एवं अत्यन्त परिश्रमी व्यक्ति हैं। आपके चार पुत्र, तीन पुत्रियां, 5 पत्र 1 पौत्रियां, चार पुत्र वधुयें एवं टो पौत्र वधू में सभी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। आपने जीवन में कपड़ा, किराना, लेनदेन, साहूकारी के अतिरिक्त को वाधीशों के यहां जनरल मैनेजर पदों पर कार्य किया है। सन् 1961 में 30 वर्ष पहले कोटा में भारी वाहन 30 टन तक के का ट्रक कांटा बहुत ही परिश्रम व लगन से स्थापित किया है जो वर्तमान में भी सुचारू रूप से संचालित हो रहा है तथा Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 310/ जैन समाज का वृहद् इतिहास अपने व्यवहार एवं कार्यकुशलता से सबको प्रभावित किया है, प्रस्तुत इतिहास लेखन में भी आपका पूरा सहयोग मिला हैं । इस अवसर पर हम आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। पता :- 6 मलसीसर हाउस, स्टेशन रोड, जयपुर दूरभाष : 78246 श्री रूपचन्द सौगानी, एडवोकेट सन् 1939 के जयपुर सत्यामह आन्दोलन के प्रथम डिक्टेटर श्री रूपचन्द सौगानी हैं। जयपुर नगर के लोकप्रिय समाज सेवी हैं। आपका जन्म 14-6-1907 को जयपुर में हुआ । आपके पिताजी श्री जौहरीलाल जी का 85 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया इसके पूर्व माताजी श्रीमती जमना बाई का स्वर्गवास भी हो चुका था। आप राजस्थान उच्च न्यायालय के एडवोकेट हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और अरबी का आपने खूब अध्ययन किया है। वकालत के कार्य में आपकी विशिष्ट तर्क शक्ति एवं सूझबूझ है और आपने खूब प्रसिद्धि प्राप्त की है। राजस्व मामलात में आपने बहुत अधिक ख्याति प्राप्त की है। सन् 1931 में आपका विवाह श्रीमती विमला देवी के साथ हुआ। आपको दो पुत्र और पांच पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके बड़े पुत्र श्री शशीभूषण सौगानी, बी.ए. हैं, विवाहित हैं तथा दो पुत्रों के पिता हैं जिनमें दीपक सौगानी एडवोकेट हैं और छोटा दीपेश बी. कॉम. है- दूसरे पुत्र श्री हेमन्त सौगानी, एडवोकेट हैं और अच्छे वकीलों में उनकी गिनती है । उनकी धर्मपत्नी का नाम पुष्पा है और वह भी एम. ए., एल.एल.बी. हैं। उनके एक पुत्र है । आपका राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन दोनों ही शानदार रहे हैं। सन् 1940 में किशनगढ़ में आयोजित खंडेलवाल महासभा के अधिवेशन में आपने सक्रिय भाग लिया। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी कमेटी के आप सन् 1940 से सफलता प्राप्त हुई है। ही क्रियाशील सदस्य रहे हैं। निजी सम्पत्ति के मामले में भी आप ही के कारण श्री महावीरजी क्षेत्र जयपुर नगर की अन्य सामाजिक संस्थाओं से भी आप जुड़े हुए हैं और अनेक प्रख्यात धार्मिक संस्थाओं के आप सलाहकार रहे हैं। राजनीति में आपकी दिलचस्पी सन् 1932 से ही शुरू हो गई थी और सन 1939 के सत्याग्रह आन्दोलन में आप प्रथम जत्थे के डिक्टेटर थे और श्री हीरालाल शास्त्री आदि के साथ विशिष्ट व्यक्तियों में आपकी गिनती थी । आपको 6 माह की कारावास हुई - सन् 1948 में जयपुर कांग्रेस अधिवेशन में आप जुलूस समिति के संयोजक रहे । सन् 1945 से 50 तक जयपुर प्रतिनिधि सभा के सदस्य रहे सन् 1957 में हाई कोर्ट आन्दोलन में भी आपका सक्रिय भाग रहा और आप जेल गये । सन् 1967 से 76 तक जयपुर नगर परिषद् के निर्वाचित सदस्य रहे तथा सन् 1968 में स्वतंत्र पार्टी के भुवनेश्वर अधिवेशन में आपने भाग लेकर विशेष गणना रही है। पता :- सौगारी भवन, मारुजी का चौक, जयपुर । Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /311 श्री रूपचन्द लुहाड़िया श्री रूपचन्द लुहाड़िया का जन्म 11 नवम्बर सन् 1919 को हुआ था । आपके पिताजी श्री मणिकचन्द जी लुहाडिया एवं माताजी रतनवाई का स्वर्गवास हो चुका है। श्री लुहाड़िया जी ने बी.कॉम.,एल.एल.बी.की परीक्षा पास की और राज्य सेवा में चले गये । वहां से सन् 1974 में ज्वाइन्ट रजिस्ट्रार सहकारी समितियां राजस्थान के सम्माननीय पद से सेवानिवृत्त हुये। आपके दो विवाह हुये । प्रथम विवाह सन् 1940 में तथा दूसरा विवाह सन् 1952 में श्रीमती शांतिदेवी के साथ संपत्र हुआ । आपको 4 पुत्र एवं 6 पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। सबसे बड़ा पुत्र श्री विनोद कुमार बीई,एम.बी.ए.है तथा खेतड़ी तांबा प्रोजेक्ट में उच्च अधिकारी है। कि नितीय पत्र श्री निर्मलकमार आटो मोबाइल्स टेड में कार्यरत है। ततीय पत्र श्री कमलकमार स्कटर पार्टस विकी एन्टरप्राइजेज के प्रोप्राइटर हैं । चतुर्थ पुत्र श्री राजेश कुमार बीइ.सिविल है तथा पी.एचड़ी. में कनिष्ट अभियन्ता हैं । वारों पुत्रों की पलियां भी उच्च शिक्षित हैं और पूरा परिवार साथ रहता है। आपकी सभी छहों पुत्रियां उच्च शिक्षित हैं। सबसे बड़ी पुत्री डा. पुष्पा जैन एम. एस है तथा वर्तमान में भरतपुर में राजकीय अस्पताल की इंचार्ज हैं। शेष पुत्रियां सुशील देवी, प्रेम सेठी,नीरा बज,रजती बाला एवं रेखा सौगानी उच्च शिक्षित हैं। लुहाड़िया जी शान्त स्वभाव एवं सरल प्रकृति के हैं। जैन समाज में उनका सम्मान है। पता- 161 शांति भवन, गोविन्द नगर,आमेर रोड़ ,जयपुर । निवास टेलीफोन 46245 श्री लल्लूलाल जैन (गोधा) जयपुर नगर के यशस्त्री समाजसेवी एवं जयपुर जैन डायरेक्टरी के प्रकाशक एवं सम्पादक श्री लल्लूलाल जैन (गोधा) का अपना विशिष्ठ स्थान है। आपका जन्म 7 नवम्बर 1935 को हुआ था। आपके पिताजी श्री कपूरचन्द जी गोधा का अभी एक वर्ष पहिले ही स्वर्गवास हुआ है । इन्टरमीजियेट करने के पश्चात् आपने राज्य सेवा में प्रवेश किया तथा वर्तमान में राजस्थान हाऊसिंग बोर्ड में कार्यरत हैं । __ श्री गोघाजी ने भागवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव वर्ष में जयपुर जैन डाइरेक्टरी का सम्पादन एवं प्रकाशन का महत्वपूर्ण कार्य किया । धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में आपको विशेष रुचि रहती है। दि.जैन मंदिर गोधान जयसिंहपुरा खोर के जीर्णोद्धार विकास एवं उसे सुन्दरतम बनाने में आपका सराहनीय योगदान रहा है । अभी आप रोटरी क्लब जयपुर ईस्ट के सक्रिय सदस्य होने के नाते चार मेडिकल कैम्प (शिबिर) दि.जैन मंदिर जयसिंहपुरा खोर पर संयोजक शिविर के रूप में कार्य कर चुके हैं। इसी प्रकार आपने जैन मंदिर जयसिंहपुरा खोर पर एक होम्योमैथिक एवं आयुर्वेदिक औषधालय का शुभारम्भ करा कर प्रामवासियों को निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध करायी है । मंदिर जी के बाहर एक वाचनालय-पुस्तकालय एवं शुद्ध जल की प्याऊ भी चाल करायी है। आपने जयपुर जैन दर्शन नाम से एक वीडियो कलर मूवी फिल्म तैयार की है, जिसमें जयपुर व राजस्थान के प्रमुख प्रमुख पंदिरों की पूर्ण जानकारी है तथा दूसरी फिल्म जयपुर दर्शन तैयार की हैं, जिसमें जयपुर व इसके आसपास के सभी पर्यटन स्थल Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3125 सैनाज का पततिार' एवं अन्य दर्शनीय स्थलों की जानकारी दी है । आप जवाहर नगर जैन मंदिर के संस्थापक सदस्य हैं तथा प.बिजैलालजी पांड्या, आमेर रोड़ के संयोजक,पाटोदी जैन मंदिर की कार्यकारिणी के सक्रिय सदस्य हैं । आप लघुविद्यानुवाद ग्रन्थ प्रथम संस्करण के प्रधान सम्पादक हैं तथा दि.जैन तीर्थ स्थलों के रेल एवं सड़क मार्ग के नक्शों के प्रकाशक है। गोधाजी की पली का नाम मुन्नी देवी है जो भी सरल स्वभावी एवं धार्मिक प्रवृत्ति की है, आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री पता: 3--14, जवाहर नगर,जयपुर । डॉ. लल्लूलाल जैन बडजात्या (होमियोपैथ) होमियोपैथी के डाक्टर श्री लल्लूलाल जी बड़जात्या का उल्लेखनीय सामाजिक जीवन रहा है। आपने अब तक कितनी ही सामाजिक संस्थाओं के चुनाव लड़कर उनमें सफलता प्राप्त की है। राजस्थान जैन सभा को कार्यकारिणी सदस्य गत 20 वर्षों से हैं। इसी तरह दि.जैन औषद्यालय को कार्यकारिणी सदस्य हैं। महावीर दि. जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की महासमिति के निर्वाचित सदस्य रह चुके हैं। श्री वीर सेवक मंडल की कार्यकारिणी के सदस्य रह चुके हैं एवं दि.जैन मंदिर बड़ा दीवान जी की कार्यकारिणी सदस्य हैं । इसी तरह गत 30 वर्षों से होमियोपैथी धर्मार्थ औषधालय के सहायक सचिव एवं अवैतनिक चिकित्सक हैं । पदमपुरा एवं जयपुर के पंचकल्याणकों में राजा एवं इन्द्र पद से सम्मानित हो चुके हैं। पदपपुरा क्षेत्र के मंदिर में अपने हाथ से मूर्ति विराजमान कर चुके हैं। संगीत में रुचि रखते हैं तथा शुक्रवार सेहेली के प्रमुख सदस्य हैं। __आपका जन्म दि. 28-10-1931 को हुआ था। आपका विवाह सन् 1949 में श्री चिमनलाल जी को पुत्री श्रीमती विमलादेवी के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति वाले हैं। आपके पिताजी श्री गेंदौलाल जी संगीत विधा में पारंगत थे । समाजरत्न पं.भंवरलाल जी न्यायतीर्थ आपके बड़े भाई हैं। हाईस्कूल,एच.एम.बी.एसबिहार) की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है तथा और एम.पी. राजस्थान से हैं । साधुओं की, समाज सेवा एवं रोगियों की सेवा करना ही आपका जीवन बन गया है। मुनिभक्त हैं । साधुओं को आहार देने में रुचि रखते हैं। पता:- 813 लालजी साँड का रास्ता,चौकड़ी मोदीखाना, जयपुर। श्री लूनकरण गोधा बाकीवाला भारत के 15-8-47 को स्वतंत्र होने के दो साल बाद 39-3-49 को बनी राजस्थान की ... राजधानी जयपुर के जैन समाज जयपुर में प्रख्यात बाकीवाला परिवार में 3-11-1871 को जन्में .. स्व. मु. म्हौरीलाल जी के एक मात्र पुत्र लूनकरण का जन्म 13.9-1013 को हुआ। आपकी .. माताजी आपको डेढ वर्ष का छोड़कर 1915 मे स्वार्ग सिधार गई थी। सन् 1934 में आपने .. मैट्रिक किया और महकमा हिसाब में सर्विस करने लगे । लगातार 33 वर्ष तक विभिन्न विभागों में काम करते हुये सन् 1968 में वहां से सेवा निवृत्त हुये । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज :313 आपका विवाह सन् 1932 में श्रीमती उमरावदेवी के साथ हुआ | आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके सबसे बड़े पुत्र श्री महावीर प्रसाद अच्छे पत्रकार हैं। श्री ज्ञानचंद एवं श्री राजेन्द्रकुमार दोनों बैंक सर्विस में हैं। संगीत में आपकी गहरी रुचि है। मास्टर नानूलाल जी भौसा एवं अन्य जैन कवियों के आपको बहुत से भजन पाठ याद हैं। स्वयं बाजा बजाते हैं । मित्रगण आपको संगीत समाट् कहते हैं। अभी आपने अपने पिताजी की 117 वी जयन्ती पर स्मारिका 9.9-89 को प्रकाशित की थी । आप अपनी धुन के पक्के हैं । अपने प्रतिदिन की दिनचर्या लिखते हैं। पत्ता- बी 106, यूनिवर्सिटी मार्ग,बापू नगर,जयपुर । फोन 70595 श्री लेखचन्द नामलील जन्मतिथि - 12 नवम्बर, 1928 पिता- स्व.श्री गप्पूलाल जी बाकलीवाल दि.11.9.77 को स्वर्गवास सुपुत्र श्री म्होरीलाल जी बाकलीवाल घी वाले माता- श्रीमती भंवरदेवी बाकलीवाल सुपुत्री श्री जयकुमार जी दीवान, जयपुर शिक्षा- बी कॉम., एल.एल.बी.व्यवसाय- फिल्म वितरण एवं प्रदर्शन विवाह - 19 फरवरी,1948 पत्नी का नाम- श्रीमती ललिता सुपुत्री श्री लालचंद जी कोठारी, जयपुर परिवार दो पुत्र (1) श्री लेख प्रकाश,आयु-38 वर्ष (बिल्लू) पत्नी- रागिनी सुपुत्री श्री हीरालाल जी सेठी लाडनू (2) श्री अजयकुमार (बब्बल) पत्नी,श्रीमती अंजू देवी आयु-26 वर्ष बी.कॉम. (3) दो पुत्रियां शशि एवं पुष्पा- दोनों विवाहित विशेष - श्री बाकलीवाल फिल्म व्यवसाय में अच्छी प्रतिष्ठा रखते हैं । आप सर्विस छोड़कर व्यवसाय की ओर मुड़े और उसमें पर्याप्त उन्नति की । आप डिस्ट्रीब्यूटर सैक्सन इस्टर्न इंडिया मोरान पिक्चर्स एसोसियेशन कलकत्ता के वर्ष 1985-86 के पश्चात् आप इसके तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष हैं। फिल्म व्यवसाय में आपकी कार्य-कुशलता के कारण कलकत्ता के दैनिक पों में चर्चित रहते हैं। अपने व्यवसाय के प्रसंग में बर्मा एवं पूर्वी पाकिस्तान (बांगलादेश) की यात्रा की । उत्तरी कलकत्ता लायन्स क्लब के सेक्रेटरी, वाइस प्रेसीडेन्ट रहे तथा शत-प्रतिशत अध्यक्ष पुरस्कार प्राप्त किया। Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 314 जैन समाज का वृहद् इतिहास सामाजिक सेवा - आप शान्त स्वभात्री तथा चुपचाप सेवा कार्य करने में विश्वास रखते हैं। सन् 1982 में जयपुर में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र के पद को सुशोभित किया। आप वर्तमान में सरस्वती ग्रंथमाला के अध्यक्ष एवं श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष हैं। पता- 300 हरीश मुखर्जी रोड़, तीसरा तल्ला, कलकत्ता-25 फोन 485334484029 श्री विजयकुमार पाटनी धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत श्री विजयकुमार पाटनी जवाहरात के व्यवसायी हैं। समाज सेवा की लगन उन्हें अपने स्व. पिताश्री सूरजमल जी पाटनी से प्राप्त हुई थी। श्री सूरजमल अपने जमाने के प्रसिद्ध समाज सेवी थे तथा पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के विश्वासपात्र सहायक थे । उनका दि. 27 मई 84 को निधन हो गया। श्री सूरजधन पानी श्री विजयकुमार जी का जन्म 7 जुलाई 1951 को हुआ। आपने सन् 1976 में राज. विश्वविद्यालय से बी.कॉम. दिया और फिर जाट के व्यय में प्रवेश किस । पाि आपके लिये यह व्यवसाय एकदम नया था लेकिन अपनी लगन एवं सूझबूझ से आपको इसमें अच्छी सफलता मिली। 13 मार्च सन् 1974 को आपका विवाह श्री सूरजमल जी जोशी (बाकलीवाल) की सुपुत्री उर्मिला देवी के साथ संपन्न हुआ। श्रीमती लाजी हायर सैकण्डरी परीक्षा पास है। आप दोनों को एक पुत्र नीलेश एवं दो पुत्रियां वर्तिका एवं नीतिका के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है ! मंदिरों के जीर्णोद्धार कराने में आपकी गहरी रुचि है। अब तक आपने बगराना (जयपुर) एवं जोबनेर के मंदिर का जीर्णोद्धार कराने में आर्थिक सहयोग दिया हैं। आपके दो बड़े भाई श्री पदमचन्द पाटनी रोडवेज में एवं श्री कैलाशचन्द जी पाटनी बैंक सेवा में है। पाटनी जी से समाज को बहुत आशायें हैं। पता:- 4/ 28 रत्नदीप, किसान मार्ग, बरकतनगर, जयपुर- 15 श्रीमती उपला देवी श्री विजय कुमार पाटनी Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /315 श्री विपिनकुमार तोतूका तोतूका परिवार में अक्टूबर सन् 1947 को जन्मे श्री विपिनकुमार तोतूका स्व. श्री सरदारमल जी तोतूका के सुपुत्र हैं। आपकी माताजी श्रीमती कपूरीदेवी अत्यधिक धार्मिक महिला थी । प्रतिदिन घण्टों पूजापाठ करती रहती थी । वे और मंदिर कुछ वर्षों के लिये एक पर्याय बन गये थे । विपिन जी ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया । वर्तमान मे राजकीय सेवा में राजस्थान वन विभाग में सम्पदाधिकारी पद पर कार्य कर रहे हैं। आपके बड़े ई. कैलाशचन्द गोपूना का जन सागर जी रात दिसम्बर सन् 1942 को हुआ। सन् 1971 में आपने बी.कॉम. किया तथा राजकीय सेवा में कार्य करने लगे | 9 मई सन् 1965 को मुन्नादेवी के साथ आपका विवाह हुआ। आपके दादाजी श्री चिमनलाल जो तोतूका राजकीय सेवा के साथ दो गांवों के जागीरदार थे । उनको मृत्यु के पश्चात् आपके पिताजी जागीरदारी का कार्य देखते रहे । सन् 1957 में जागीरदारी प्रथा समाप्त हो गई। डॉ.कैलाशचन्द जी होमियोपैथ डाक्टर हैं । सन् 19461 में आपने होम्योपैथिक पद्धति में एक निशुल्क चिकित्सालय की स्थापना की । इसके पश्चात् जैन डा. केलाशचन्द तांतूका होमियो चिकित्सा सेवा समिति की सन् 1986 में स्थापना की जिसका उद्देश्य आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्तियों से अर्थ संग्रह करके दीन एवं गरीब रोगियों को होम्योपैथ चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना है । आष दोनों भाईयों के प्रयास से बरकत नगर के रामलीला मैदान में सर्वधर्म देवालय प्रांगण में चन्द्रप्रभु दि. जैन मंदिर को स्थापना हुई तथा उसमें भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान की गई। डॉ. कैलाशचन्द जी की बचपन से ही पूजा अर्चना करने में रुचि रही हैं । जो अब तक चलो आ रही है। आप दोनों भाई शंतिप्रिय,सरल स्वभावी एवं धार्मिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। पता- 1. डी 175 कृष्णा नगर (प्रथम) गांधी नगर मोड,टौंक रोड, जयपुर __2.771 बरकत नगर,किसान मार्ग,टौंक रोड़,जयपुर श्री विनयचन्द पापड़ीवाल श्री विनयचन्द पापड़ीवाल तेरहपंथ महासभा के संस्थापकों में से एक हैं । समन्वयवाणी पत्रिका के संपादन में सहयोग देते रहते हैं। स्वयं भी विभिन्न जैन पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते रहते हैं। जयपुर की विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। राजस्थान जैन सभा तेरहपंथी बड़ा मंदिर के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। महावीर जयन्ती स्मारिका के संपादक मंडल में रहते हैं । युवा परिषद को राजस्थान शाखा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 316/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका जन्म 8 फरवरी 1941 को हुआ। मट्रिक परीक्षा पास करने के पश्चात आप राज्य सेवा में चले गये। 11 जुलाई 62 को आपका विवाह श्रीमती पदमादेवी के साथ हुआ। आपको तीन पुत्रों शैलेश, राकेश, योगेश के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पापड़ीवाल जी उत्साही कार्यकर्ता है तथा स्वयं ही अपना मार्ग बनाने वाले हैं। पता:- 4866, पापड़ीवाल भवन,मठ का कुआ, कुंदीगरों के भैरू का रास्ता, जौहरी बाजार,जयपुर। श्री विनोदीलाल पाटनी पाटनी जी का जन्म भादबा सुदी अष्टमी संवत् 1962 को जयपुर में हुआ। आपके पिता श्री चांदमल जी एवं माताजी गुलाबबाई दोनों का ही निधन हो चुका है । मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् एक ओर जवाहरात व्यवसाय में लग गये तो दूसरी ओर प्रजामंडल आंदोलन एवं स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय होकर भाग लेने लगे। प्रारंभ से ही खइरधारी रहे तथा राष्ट्रीय नेताओं जैसे हीरालाल शास्त्री,जमनालाल बजाज के संपर्क में रहे। कस्तूरबा गांधी जब जयपुर आई तो उसके स्वागत समिति के सक्रिय सदस्य रहे । आपकी एक पात्र पुत्री कंचनबाई का विवाह हो चुका है । पाटनी जी की सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में विशेष रुचि रही है। आप सदैन सादा जीवन उच्च विचार के पक्षपाती रहे हैं। पता: 1791, आबूजी वालों का मकान, हल्दियों का रास्ता जयपुर । श्री विरधीचन्द सेठी जयपुर के सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत श्री विरधीचन्द जी सेठी विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। श्री दि.जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के एवं दि. जैन संस्कृत कॉलेज के आप वर्षों से कोषाध्याक्ष हैं । जयपुर के दि.जैन मुनि संघ कोटी पार्श्वनाथ भवन के आप मंत्री रह चुके हैं। श्री दिगम्बर जैन मंदिर बेगस्यान के अध्यक्ष हैं । जयपुर खाद्य व्यापार संघ के सेक्रेटरी रह चुके 7 सेठी जी का जन्म सन् 1931 में हुआ। ग्रेज्यूएशन करने से पूर्व ही आप व्यापारिक लाइन में चले गये । सन् 1952 में श्रीमती भंवरीदेवी के साथ आपका विवाह हुआ। आपके तीन पुत्र वीरेन्द्र, राजेन्द व दो पुत्रियां सरला एवं शारदा हैं। आपकी धर्मपत्नी का अभी कुछ समय पूर्व ही निधन हो चुका है। सेठी जी का सरल एवं शान्न जीवन है । धार्मिकता से ओतप्रोत हैं। अपने ग्राम मुकुन्दपुरा में मंदिर का जीर्णोद्धार एवं नवीन वेदी प्रतिष्ठा आप करा चुके हैं । जयपुर एवं पदमपुरा में आयोजित पंचकल्याणकों में आपके बड़े भाई ने इन्द्र की बोलियां ली थी। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /317 श्री चिरंजीलाल जी सेठो आपके छोटे भाई हैं जिनका जन्म 1934 में हुआ था । धर्मपत्नी का नाम नारंगीदेवी है। आपके पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं । महेशकुमार ट्रक का व्यवसाय करते हैं । सुरेश एवं निर्मल की आइल मितभालते हैं। श्री विरधीचन्द जी मुनिभक्त हैं । अब तक कितने ही आचार्यों को आहार दे चुके हैं। पता: सी-14, अनाज मंडी चांदपोल दाजार ,जयपुर श्रो चिरंजीलाल सेठी डॉ. समन्तभद्र पापड़ीवाल जयपुर के प्रसिद्ध हकीम श्री मोहनलाल जी पापड़ीवाल के सुपुत्र श्री समन्तभद्र जी पापड़ीवाल का राजकीय चिकित्सा सेवा में उच्च स्थान है । स्व.हकीम मोहनलाल जी का लेखक को भी आशीर्वाद प्राप्त था । आपने समाज में कितने ही विद्यार्थियों को चिकित्सा क्षेत्र में जाने को प्रेरणा दी । जैन संस्कृत कॉलेज में आयुर्वेद अध्ययन प्रारम्भ करवाने में विशेष योग था। डॉ.पापड़ीवाल का जन्म 20 नवम्बर 36 को हुआ । सन् 1961 मे आपने एमबीबी एस. किया और सन् 71 में आरथोपैडिक्स में एम.एस.किया । आर्थोपैडिक्स में वरिष्ठ विशेषज्ञ पद पर कार्य कर रहे हैं एवं पोलियो चिकित्सा में विशेष रुचि हैं । आपका विवाह सन् 1958 में श्रीमती विमलादेवी से हुआ । आपके तीन पुत्र हैं। तीनों ही पुत्र मणिभद्र,श्रीभद्र एवं सुप्रद्र आयुवैदिक औषधि निर्माण के कार्य में संलग्न हैं । आपकी पली विमला देवी सामाजिक कार्यों में रुचि लेती है। मणिभद्र महावीर शिक्षा परिषद के सदस्य हैं तथा सुभद्र संगीत में विशेष रुचि लेते हैं। पता- श्री सदन, हल्दियों का रास्ता,जयपुर। श्री सरदारमल पाटनी दिल्ली वाले स्व. श्री गैंदीलाल जी पाटनी के सुपुत्र श्री सरदारमल जी पाटनी उदार हृदय एवं दानशील स्वभाव के हैं। आपका जन्म 25 अगस्त,सन् 1925 को हुआ। आगरा विश्वविद्यालय से सन् 1944 में बी.कॉम. किया तथा फिर व्यवसाय में प्रवेश किया जिसमें आपने आशातीत सफलता प्राप्त की । सन 1942 में श्रीमती सरदार बाई के साथ आपका विवाह हुआ। आप दोनों को 2 पुत्र निर्मलकुमार व ललित कुमार एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। वेश किया जिसमें आप HAS को हुआ। आगरा विश्वविद्यालपाटनी उदार हृदय एवं दानशील Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 318/ जैन समाज का वृहद् इतिहास पाटनी जी धार्मिक रुचि वाले श्रावक हैं। रामगंज पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं जयपुर के महावीर हायर सैकण्डरी विद्यालय में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप ईशान इन्द्र पद से अलंकृत हुये। दोनों पति-पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है जिसे उन्होंने वीर सागर जी महाराज से लिया था। देश की सभी तीर्थ यात्रायें संपन्न कर ली हैं। आपके प्रतिदिन देवदर्शन एवं पूजा करके भोजन करने का नियम भी है। मुनिभक्त हैं। मुनियों के लिये चौका बनाते हैं। माता जी सिद्धमती जी आपकी धर्मपत्नी की मामीजी हैं । पता:- ए- 51, जनता कॉलोनी, जयपुर। श्री सागरमल सरावगी पांड्या (एयर आसाम, कलकत्ता वाले) लाडनूं (राज.) नगर में सन् 1934 में जन्मे श्री सागरमल जी सरावगी पांड्या अशोक नगर जैन समाज एवं गोपालबाड़ी जैन समाज के विशिष्ट समाजसेवी हैं। सन 1950 में मैट्रिक करने के पश्चात् आपका सन् 1951 में श्रीमती सुलोचना देवी के साथ विवाह हो गया। उसके पश्चात् आपने 1967 में जयपुर आकर मशीनरी उत्पादन एवं एजेन्सीज का कार्य प्रारम्भ किया जिसमें आपको पर्याप्त सफलता मिली। आपके तीन पुत्र सर्व श्री निर्मल कुमार, कमल कुमार एवं नवीन कुमार हैं जो सभी आपके साथ कार्यरत हैं। आपके दो पुत्रियों तारामणी एवं कल्पना है दोनों ही का विवाह हो चुका है। सरावगी साहब विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं तथा सूझबूझ एवं कुशल व्यवहारी हैं. तथा समाज में अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त समाजसेवी हैं। धार्मिक लगन वाले हैं तथा सोनागिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में इन्द्र के पद को सुशोभित कर चुके हैं। हस्तिनापुर, निवाई जयपुर आदि नगरों में होने वाले पंचकल्याणकों में मूर्ति विराजमान कर चुके हैं। आपकी धर्मपत्नी मुनिभक्त एवं धार्मिक स्वभाव वाली है तथा मुनियों को आहार आदि से सेवा करती रहती हैं। एक बार आप कलकत्ता में रहते हुये दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। श्रीमती सुलोचना देवी धर्मपी श्री सागर पल सरावगी जयपुर में अशोक मार्ग सी स्कीम में अहिंसा सर्किल का निर्माण एवं उस पर धर्मचक्र लगाने का श्रेय आपको ही हैं तथा आज यह अहिंसा सर्किल के नाम से प्रसिद्ध हो गया है तथा श्री दिगम्बर जैन मंदिर नशियाँ तेरापंथ गोपालवाड़ी का जीर्णोद्धार और सुधार भी आपके सहयोग और लगन से हुआ है। अभी भी इसी नशियां की व्यवस्था देखरेख आप ही करते हैं । दर्शनार्थी भी रोज काफी तादाद में दर्शनार्थ आने लगे हैं। सरावगी साहब समाज में विविध कार्यक्रमों का संचालन करते रहते हैं। समाज को आपसे बहुत आशायें हैं। पत्ता : प्रेम भवन, 38 गोपालबाड़ी, जयपुर । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुमेरकुमार पांड्या कुचामन (मारवाड़) में दि. 20 जून सन् 1936 को जन्मे श्री सुमेरकुमार ने सन् 1959 में राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.ए. किया और अपने पैतृक व्यवसाय ट्रांसपोर्ट में कार्य करने लगे। इसके पूर्व आपका सन् 1951 में ही श्रीमती देवी से विवाह हो गया। आपके पिता श्री हरकचन्द जी पांड्या अत्यधिक धार्मिक, मुनिभक्त एवं आर्ष मागी हैं। आप में भी वे ही संस्कार उतरे हैं। आपके बड़े पिताजी चन्दन मल जी क्षुल्लक उदयसागर जी बन गये थे और अन्त में अवस्था में समाधिमरण प्राप्त किया । इसी तरह आपकी बड़ी माताजी आर्यिका विमलमती माताजी कहलाई । वे आचार्य धर्मसागर जी के संघ में रहती थी। श्री सुमेरकुमार जी को दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। दोनों पुत्र सुभाषचन्द एवं उजासचन्द आपके ही साथ कार्य करते हैं । तीनों पुत्रियों सरोज, संतोष एवं रेणु का विवाह हो चुका है। जयपुर नगर का जैन समाज /319 श्री पांड्या जी पूर्णतः धार्मिक एवं सामती करते हैं: रोटी के सन् 1979-800 में अध्यक्ष रह चुके हैं। राजस्थान जैन सभा के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। आल राजस्थान ट्रांसपोर्ट एसोसियेशन के सेक्रेटरी, जयपुर ट्रांसपोर्ट एसोसियेशन के वर्षों तक सेक्रेट्री, जयपुर चैम्बर आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री के सेक्रेटरी, फेडरल आफ राजस्थान ट्रेड एण्ड इन्डस्ट्री के सेक्रेटरी रह चुके हैं। पांड्या जी जयपुर की और भी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। पदमपुरा तीर्थ क्षेत्र कमेटी को कार्यकारिणी के सदस्य हैं। मुनिभक्त हैं। सबको सहयोग देने वाले हैं। पता : संतोष रोडवेज, मोती डूंगरी रोड, जयपुर - 4 श्री सुमेरचन्द सोनी श्री सुमेरचन्द सोनी का सोनी परिवार में दि. 20 अक्टूबर सन् 1934 को जन्म हुआ । आपके पिताजी स्व. श्री फूलचन्द जी सोनी प्रतिष्ठित समाजसेवी थे। आपका निधन 8 दिस 1976 को हुआ। श्री सुमेर जी ने सन् 1957 में राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और व्यवसाय में लग गये । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला देवी धार्मिक स्वभाव की महिला हैं। आप दोनों तीन पुत्रों से गौरवान्वित हैं । प्रथम पुत्र सुधीर सोनी बी.कॉम. है तथा जवाहरात के कार्य में संलग्न है। सुधांशु एवं सुदीप दोनों ही अध्ययन कर रहे हैं। सोनी जी शान्त जीवनयापन करते हैं। सामाजिक कार्य करने में रुचि रखते हैं। चूलगिरी क्षेत्र के सन् 1982 से मंत्री हैं । आपने चलगिरी का पर्याप्त विकास किया है। क्षेत्र के चारों ओर बाउन्ड्री वाल का निर्माण हो चुका है। सौढ़िया बन चुकी हैं। और उस पर 27 पोल लगाकर लाइटें लगा दी गई हैं। पश्चिम दिशा में विशाल चौक का निर्माण हो चुका है। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 320/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जैसा कि ऊपर कहा गया है आपके पिताजी स्व. फूलचन्द जी सोनी जैन संस्कृत कालेज, दि. जैन औषधालय, महावीर कन्या विद्यालय के वर्षों तक सेक्रेटरी रहे। महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के वर्षों तक सदस्य रहे । पहाडियों के मंदिर के अध्यक्ष थे तथा पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के विश्वस्त व्यक्ति थे । सुमेरचन्द सोनी जी को आचार्य देशभूषण जी महाराज ने जयपुर से विहार करते हुये चूलगिरी क्षेत्र का सेक्रेटरी बनाया था। महावीर जयन्ती के अवसर पर प्रतिवर्ष सामूहिक भोजन, पूजा, अभिषेक आदि विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं। पता : ई- 78, भगतसिंह मार्ग, सी-स्कीम, जयपुर । श्री सुरेन्द्र मोहन डंडिया (एक्यूप्रेशर, चुम्बक, क्रियायोग, ध्यान, चिकित्सा पद्धति विशेषज्ञ) डंडिया परिवार में श्री गेंदीलाल जी इंडिया तत्कालीन शिक्षा अधिकारी, जयपुर स्टेट के सुपुत्र श्री सुरेन्द्र मोहन इंडिया का जन्म 4 अप्रैल, 1918 को जयपुर नगर में हुआ । वर्नाक्यूलर फाइलन (उर्दू) की परीक्षा पास करने के पश्चात् हो आपने 1936 में अध्यापक जीवन अपना लिया और धीरे-धीरे अभ्यापन का कार्य करते हुये एम.ए. बी.एड. की शिक्षा प्राप्त की। आपके दो पुत्र श्री निहालचंद्र इंडिया सीनियर इन्चार्ज मैनेजर बैंक आफ बड़ौदा अजमेर, शरदचन्द्र इंडिया उद्योग अधिकारी राजस्थान सरकार हैं। इंडिया जी शान्त स्वभाव, परिश्रमी, समाज सुधारक तथा सामाजिक गतिविधियों में विशेष रुचि लेते हैं तथा जयपुर नगर की शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं के विशिष्ट सदस्य हैं तथा उनमें आपका विशेष योगदान है। श्रीमती उपराव देवी धर्मपत्नी श्री सुरेन्द्र मोहन डंडिया प्रशैक्षणिक विधियां:- पी.टी.सी., बी.टी.सी., बी.एड., एन.टी.ई. सी. ट्रेनिंग, न्यू दिल्ली । - प्रशासनिक कार्य जिला समाज शिक्षा अधिकारी, उदयपुर, सीकर, झुंझुनू, जयपुर, जिला शिक्षा अधिकारी टौंक, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर के संयोजक, निरीक्षक व इन्चार्ज फ्लाइंग स्कवेड | प्रधानाध्यापक व प्राचार्य:- राजस्थान व जयपुर नगर के ख्याति प्राप्त विद्यालय में रहे । प्रशिक्षण कार्य मा.शि. बोर्ड अजमेर द्वारा आयोजित नागरिकशास्त्र कार्यशाला, संयोजक व बी. एड. पत्राचार कोर्स राजस्थान विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण | : समाज सेवा : सचिव श्री वीर संघ जयपुर (अब राजस्थान जैन सभा) अध्यक्ष, अखिल विश्व जैन मिशन जयपुर । अभिनन्दन:- 15 मई, 1973 को जयपुर नगर में सार्वजनिक अभिनन्दन व 15 सितम्बर, 1973 को राज्य स्तरीय पुरस्कार पता - सुरेन्द्र निकुंज, ज्योतिमार्ग, बापूनगर, जयपुर Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /321 श्री सुभाषचन्द चौधरी जयपुर नगर के सामाजिक कार्यों में निष्ठापूर्वक लगे हुये युवकों में श्री सुभाषवन्द चौधरी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। वे राजस्थान जैन साहित्य परिषद के मंत्री, वीर सेवक मंडल, राजस्थान जैन सभा, भा. दिगम्बर जैन परिषद् राजस्थान शाखा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। राज. जैन साहित्य परिषद एवं हैप्पी चम्मस एसोसियेशन की स्मारिका के संपादक रह चुके हैं । महासभा के अजमेर अधिवेशन में भाग लिया था। श्री चौगले जी. पी.एफ र्गतरी बीमाक्ष वंशध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में वे प्रवर्तन अधिकारी के पद पर कार्य कर रहे हैं। आपका जन्म 20 सितम्बर 1939 को हुआ तथा बी.ए.बी.कॉम.एवं डिप्लोमा इन रूसी भाषा में किया और केन्द्रीय सेवा पी.एफ. विभाग में कार्य करने लगे | 30 नवम्बर 64 को आपका विवाह श्रीमती राजदेवी चौधरी के साथ हुआ। आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपकी यात्राओं पर जाने में रुचि रहती है। श्रीमती राज चौधरी सुभाष चन्द चौधरी की धर्मपत्नी श्रीमती राजदेवी चौधरी ने राज.विविद्यालय से बी.ए. किया है । कुछ समय तक ज्ञान विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के स्थान पर कार्य किया । महिला जागृति संघ जयपुर की कार्यकारिणी को कर्मठ सदस्या रह चुकी हैं । सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे नाटक, संगीत, संवाद आदि में भाग लेती रही हैं। अ.भा. दि. जैन परिषद के वार्षिक भिण्ड अधिवेशन में भाग ले चुकी है । लेखिका एवं वक्ता है । जयपुर के श्री प्यारेलाल जी बज की पुत्री हैं। अभी महिला जागृति संघ द्वारा आयोजित चतुर्थ नेत्र चिकित्सा शिविर की संयोजिका थी । उत्साही,विनयी एवं कर्तव्यनिष्ठ हैं। श्रीमती राज चौधरी धर्मपत्नी पता:- 744, गोदीकों का रास्ता,जयपुर। श्री सुभाषचन्द चौधरी श्री सुरेन्द्र कुमार जैन सवारिया (मालपुरा) के निवासी श्री सुरेन्द्रकुमार जैन युवा समाजसेवी हैं । आपका जन्म 1 सितम्बर 1952 को हुआ था ।आपके पिताजी श्री चांदमल जी का सवारिया गांव में विशिष्ट स्थान है तथा माताजी धापू देवी धर्मपरायण महिला हैं। आपने सन् 1972 में बी.कॉम. एवं सन् 1975 में एल.एल.बी.किया और फिर बैंक सेवा में चले गये। वर्तमान में आप बैंक अधिकारी के पद पर कार्य कर रहे हैं आपका विवाह 2 जुलाई,1975 को श्रीमती शशिकला के साथ संपत्र हुआ है। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 322/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्रीमती शशिकला धर्मवली श्री सुरेन्द्र कुमार जैन श्रीमती शशि जैन एम.ए. हैं तथा प्रस्तुत इतिहास लेखक की द्वितीय पुत्री हैं। श्री जैन को चार पुत्रों- अमित जैन, अंकुर जैन, सौरभ जैन एवं गौरव जैन के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपका समाज सेवा एवं धार्मिक जीवन व्यतीत करने की ओर विशेष झुकाव है। प्रतिवर्ष जयपुर से महावीर जी, जयपुर से पदमपुरा की पदयात्रा करते हैं। प्रत्येक महिने में मालपुरा के आदिनाथ स्वामी के दर्शनार्थ जाने का नियम बना रखा है। श्रीमती शशि जैन महिला जागृति संघ की वरिष्ठ सदस्या हैं तथा संगीत समारोहों में विशेष रुचि रखती हैं। पत्रों खबर से ही समाज को विशेष आशायें हैं । हैं पता : 525, महाबीर नगर, टाँक रोड, जयपुर श्री सूरजमल वैद वीर सेवक मंडल के विगत 30 वर्षों से निर्विरोध सेक्रेटरी एवं अध्यक्ष रहने वाले श्री सूरजमल जी वैद जयपुर जैन समाज के प्रतिष्ठित सदस्य हैं। स्वभाव से सरल, दयाशील, यश एवं ख्याति से दूर रहने वाले, जिन भक्त, समाज सेवी वैदजी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं। श्री महावीर दि.जैन अ.क्षेत्र कमेटी के वर्तमान में सदस्य हैं। चूलगिरी अतिशय क्षेत्र के 8 वर्ष तक मंत्री का कार्य कर चुके हैं। बाल शिक्षा मंदिर के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। श्री दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय की शिक्षासमिति के मंत्री रह चुके हैं। दि. जैन औषधालय की कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं। दि. जैन मंदिर खिन्दूकान के पांच वर्ष तक अध्यक्ष रहे । खानियाँ की संधी जी की नशियों के कोषाध्यक्ष, मंत्री एवं वर्तमान में अध्यक्ष हैं। पहिले जैन संघ के शाखा संचालक रहे हैं। श्री सुरेन्द्र कुमार बैद a 1 आपका जन्म 2 अक्टूबर, 1914 को हुआ। आपके पिताजी श्री छिगनलाल जी का सन् 1932 में एवं माताजी कस्तूरदेवी का सन् 1947 में स्वर्गवास हुआ। आपका मूल निवास तूंगा ग्राम है जो जयपुर से 38 कि.मी. है । आपने बी.एस.सी. एवं एल.एल.बी. की परीक्षा पास की तथा राज्य सेवा में चले गये । आप अन्त में सहायक सचिव के पद से निवर्तमान हुये। आपने राजस्थान के राज्यपाल गुरुमुख निहालसिंह, संपूर्णानन्द जी एवं सरदार हुकमसिंह के पास कार्य किया डॉ. सम्पूर्णानन्द जी की आप पर विशेष कृपा रही । ' आपके दो विवाह हुये। पहली पत्नी अक्टूबर 42 में तीन पुत्र एवं एक पुत्री को जन्म देकर चल बसी । दूसरा विवाह श्रीमती रतनदेवी के साथ सन् 1943 में हुआ जिसे तीन पुत्र एवं 2 पुत्रियों की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके सभी पुत्रों का विवाह हो चुका है तथा अपने अपने व्यवसाय में लगे हुये हैं। आपके एक पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार वैद वीर सेवक मंडल के वर्षो से मंत्री हैं । पता :- 58, वसुंधरा कॉलोनी, टोंक रोड, जयपुर Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सौभागमल रांवका राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्री सौभागमल जी रांवका राजस्थान पत्रिका में सहयोगी संपादक है। इसके पूर्व आप राष्ट्रदूत एवं नवयुग में भी संपादन विभाग में कार्य कर चुके हैं। आपका जन्म 4 जनवरी सन् 1933 को हुआ। रांवका जी सरदारमल जी रांवका के पुत्र है तथा पं. चैनसुखदास जी आपके बड़े पे पंडित जी से ही संग में आपका लालनपालन हुआ । जयपुर नगर का जैन समाज /323 आपने बी. ए. एवं साहित्यरल किया। सन् 1949 में आप श्रीमती कमलादेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध गये । वर्तमान में आप तीन पुत्र एवं एक पुत्री से गौरवान्वित हैं । आप अच्छे लेखक एवं विचारक है । कल्याण का सागर, कल्याण मार्ग, भक्तामर महात्म्य एवं षट् पाहुड का आप संपादन कर चुके हैं। रावका तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। आपकी पत्नी श्रीमती कमला देवी जी भी सरल एवं आतिथ्य स्वभाव की महिला हैं। - 669, बोरडी का रास्ता, जयपुर । पता: श्री सोहनलाल सेठी जोधपुर रियासत के प्रमुख नगर लाडनूं में दि. 10-5-1931 को जन्मे श्री सोहनलाल जी सेठी की जयपुर के प्रतिष्ठित समाज सेवियों में गणना की जाती हैं। अपने ग्राम में ही सन् 1950 में मैट्रिक पास करके व्यवसाय की ओर मुड़ गये। उसके पूर्व 13 वर्ष की अवस्था में ही आपका विवाह लाडनू के ही श्री मांगीलाल जी पांड्या की पुत्री उमरावदेवी के साथ हो गया। वर्तमान में आपके एक पुत्र एवं 2 पुत्रियां नोरतन एवं पुष्पा हैं। अभी करीब 2 वर्ष पूर्व दिनांक 28-6-89 को आपके श्रीमती उमा देवी धर्मपत्नी श्री सोहनलाल जी सेठी अनुज द्वितीय पुत्र सुरेन्द्र कुमार बी.कॉम. एवं सी. एस. का कार दुर्घटना में दुःखद निधन हो गया। श्री सुरेन्द्र कुमार अपने पीछे पत्नी (संगीता) एवं चार वर्षीय पुत्र को छोड़ गये हैं। श्री सुरेन्द्र कुमार जी बहुत ही होनहार युवक थे तथा छोटी सी आयु में ही व्यावसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री नरेन्द्र कुमार की पत्नी का नाम निर्मला है। वह एक पुत्र जिनेन्द्रकुमार एवं एक पुत्री मनीषा से अलंकृत हैं। दोनों पुत्रियों नवरतन देवी एवं पुष्पादेवी का विवाह हो चुका है। नवरतन देवी का विवाह श्री संतोष कुमार जी सबलावत सुपुत्र श्री कंवरी लाल जी सबलावत डेह से एवं पुष्पा का विवाह अनिल कुमार जी पाटनी (फर्म चांदमल धन्नालाल कलकत्ता) सुपुत्र श्री प्रकाश चंद जी पाटनी से हुआ है। पुष्पादेवी बी.ए. है । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 324/ जैन समाज का बृहद इतिहास श्री सेठी जी सन् 1967 में व्यवसाय के लिये जयपुर आ गये लेकिन इसके पूर्व सन् 1964 में आप गंभीर रूप से बीमार हो गये थे । एक तरह से आपको नया जीवन प्राप्त हुआ था। जयपुर आने के पश्चात् आपने व्यवसाय में अच्छी प्रगति की तथा वर्तमान में आप प्रोपर्टी बिजनेस एवं मकान निर्माण व्यवसाय में प्रथम श्रेणी के व्यवसायी गिने जाते हैं। सेठी जी दि.जैन महासपा से अधिक जुड़े हुये हैं । सन् 1982 से ही आप उसके उपाध्यक्ष हैं । सेठी जी ने सन् 1982 में जयपुर में चूलगिरी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इन्द्र का पद ग्रहण किया तथा चूलगिरी मंदिर में शिखर पर स्वर्ण कलश चढाया था। लेस्टर के पंचकल्याणक में जब गये थे तो यूरोप के देशों का भ्रमण किया था । धार्मिक जीवनयापन करते हैं। प्रातः 4 बजे से 9 बजे तक धार्मिक क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं। आपकी पत्नी सन् 1954 में दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। पता :- एच-8, सुखी जीवन कम्प्लेक्स जेकब रोड,अजमेर पुलिया के पास,जयपुर। .श्री स्वरूपचन्द पांड्या खोरा (जयपुर) के पांड्या परिवार के श्री स्वरूपचन्द जी पांड्या का सेवत् 1986 में जन्म हुआ था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप रेल्वे बिल्टियों के क्लीयरिंग व्यवसाय में चले गये। आपके पिताजी श्री सुवालाल जी सन् 1972 में 80 वर्ष की आयु में चल बसे । आपकी माताजी रामादेवी का स्वर्गवास सन् 1984 में 90 वर्ष की आयु में हुआ था। श्री पांड्या जी का विवाह संवत् 2006 में श्रीमती तारादेवी के साथ संपन्न हुआ । वर्तमान में आपको दो पुत्र भागचन्द (39वर्ष) एवं हरिश शुर(27 सितः । पु। ::, मुशीता रजपे पन्नता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । दोनों पुत्रों एवं तीनों पुत्रियों सभी का विवाह हो चुका है 1 श्री भागचन्द की पत्नी का नाम श्रीमती प्रेमलता एवं हरिशकुमार की पत्नी का नाम सुनीता है। आप दि.जैन अ. क्षेत्र बैनाड़ के मंत्री एवं अध्यक्ष दोनों रह चुके हैं। श्री विजेराम पांड्या नशियां की कार्यकारिणी के सक्रिय सदस्य हैं । आपके प्रतिदिन पूजा अभिषेक करने का नियम है । विजैराम पांड्या की नशियों में जाकर ही पूजा पाठ करते हैं । मूल निवासी खोरा के हैं । जयपुर में विगत 40-45 वर्षों से रह रहे हैं। पता : - प्लाट न.10 सीतारामपुरी,गोलीमार सदन के सामने,आमेर रोड़,जयपुर । श्री शान्ति कुमार गंगवाल बी.कॉम. सुपुत्र स्व.श्री गेंदीलाल गंगवाल (वकील) आप बैंक ऑफ राजस्थान के क्षेत्रीय कार्यालय जयपुर में कार्य कर रहे हैं । आप श्री महावीर जैन संगीत मण्डल व श्री दिगम्बर जैन मुनि संघ व योग समिति के मंत्री तथा मुनि संघ समिति जयपुर के प्रथम मन्त्री रह चुके हैं । पूजा प्रचारक समिति के सक्रिय कार्यकर्ता व मन्त्री रह चुके हैं । आप धार्मिक भजनों के अच्छे गायक हैं। श्री णमोकार महामंत्र का संगीत के साथ विभित्र राग रागनियों में आप जाप्य किया करते हैं। भादवा मास में वर्ष 1961 से Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज/325 विभिन्न मंदिरों में श्री णमोकार महामंत्र का जाप्य प्रतिदिन रात्रि में एक माला संगीत से कर रहे हैं। आपके द्वारा गाये गये णमोकार मंत्र को सुनकर प.पू.श्री 108 गणधराचार्य कुंथुसागरजी महाराज ने आपको संगीताचार्य का पद प्रदान किया है । आप सभी साधुओं की सेवा में सदैव तल्लीन रहते हैं, इसीलिये वर्ष 1988 में आरा (बिहार) में आयोजित पंचकल्याणक के शुभावसर पर आपको अखिल भारतीय दि.जैन महासभा के द्वारा गुरू उपासक के पद से विभूषित किया था। आपके निवास स्थान पर परम पूज्य श्री 108 विमल सागरजी महाराज विशाल संघ सहित (47) पिच्छी पधारकर देवाधिदेव श्री INOS धर्मनाथ भगवान की मूर्ति स्थापना को जिससे आप प्रतिदिन प्रक्षाल,पूजन आदि का लाभ उठा रहे हैं। आप अपनी धुन के पक्के हैं तथा साहित्य प्रकाशन में उल्लेखनीय कार्य किया है। वर्ष 1972 में आपने समाधि सम्राट आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज का पावन जीवन चरित्र पद्य रूप में प.पूज्या श्री 105 मिनी आर्यिका विजयमती माताजी द्वारा लिखित प्रकाशित करवाया। भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में आपने 24 तीर्थंकरों को विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ विभिन्न स्थानों पर जन्म जयन्ति मनाई और परिचयात्मक उनकी अलग-अलग लघु पुस्तिकायें भी प्रकाशित करवाई। वर्ष 1981 में आयोजित बाहुबलि महामस्तकाभिषेक महोत्सव के शुभावसर पर आपने परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागर जी महाराज व प. पूज्या श्री 105 गणिनी आर्यिका विजयामाती माताजी के मंगलमय शुभाशीर्वाद से श्री दि.जैन कुंभु विजय पंथमाला समिति को स्थापना की और मंथमाला समिति के प्रकाशन संयोजक बने । सर्व प्रथम लघुविद्यानुवाद ग्रंथ का प्रकाशन करवाया। जिसका प्रकाशन आज तक नहीं हुआ था। इसके पश्चात् पंथमाला के माध्यम से अब तक 17 ग्रंथों का प्रकाशन करा चुके हैं और आगे भी महत्वपूर्ण ग्रंथों के प्रकाशन के कार्य में जुटे हुये हैं। आपको धर्मपत्नी मेमदेवी जो हैं जो अत्यधिक सरल एवं मधुर स्वभाव की होने के साथ सदैव ही श्री गंगवाल जी के माय धार्मिक कार्यों को सम्पन्न कराने में सहयोग देती रहती हैं । आप दोनों दो पुत्र व दो पुत्रियों के माता-पिता हैं । ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रदीप कुमार है जो पूर्ण धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण है। पता : जौहरी बाजार,धी वालों का रास्ता,कसेरों की गली,जयपुर राज. दूरभाष- 562404 श्री शांतिलाल गंगवाल बापू नगर जयपुर संभाग के प्रमुख युवा सामाजिक कार्यकर्ता श्री शांतिलाल गंगवाल का जन्म 5 सितम्बर,1947 को कुली पाम जिला सीकर में हुआ। आपके पिता श्री हनुमानबक्ष जो गंगवाल अभी गांव में ही रहते हैं। आपने गौहाटी यूनिवर्सिटी से बी.कॉम.(आनर्स) प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया एवं यूनिवर्सिटी की योग्यता सूची में नवां स्थान प्राप्त किया। इसके पश्चात् चार्टर्ड अकाउन्टेंट की परीक्षा पास की। 9 मार्च, 1970 को आपका विवाह श्रीमती सुशीला देवी के साथ संपन हुआ। आप दोनों पति पत्नी को एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। बड़ी पुत्री वंदना का विवाह हो चुका है। विपिन एवं वीणा पढ़ रहे हैं। . Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /327 श्री श्रेयांसकुमार गोधा रायसाहिब घेवरचन्द जी गोधा के सुपौत्र श्री श्रेयान्सकुमार गोधा ने अपनी उदारता एवं दानशीलता के कारण जयपुर के सामाजिक क्षेत्र में अच्छा स्थान बना लिया है । गोधा जी का जन्म 12 जनवरी सन् 1935 में भरतपुर में हुआ। आपके पिताजी श्री शिखरचन्द जी भरतपुर में ही रहते हैं। बी.ए. पास करने के पश्चात् सर्वप्रथम केन्द्रीय सेवा में कार्य किया लेकिन वहां की से त्यागपत्र देकर जवाहरात उद्योग में प्रवेश किया और उसमें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। सन् 1953 में आपका विवाह आगरा के नेमीचन्द जी बड़जात्या की पुत्री कुंतीदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। आपके दोनों पुत्र अभय कुमार एवं विनयकुमार की जवाहरात व्यवसाय में अच्छी पकड़ है । व्यापार के लिये दोनों को ही जब कभी विदेश यात्रा करनी पड़ती है। अभी तक आप बाजील, अमेरिका हांगकांग, जर्मनी, इंगलैण्ड आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं । श्रेयांसकुमार जी गोथा की बहिन का विवाह दि. जैन महासमिति के अध्यक्ष रतनलाल जी गंगवाल के साथ हुआ है । अभयकुमार का विवाह इन्दौर के श्री अभय कुमार पौधा स्व.शांतिलाल जी पाटनी की सुपुत्री सुनीता के साथ हुआ है तथा विनयकुमार का विवाह जयपुर के श्री रतनलाल जी श्री विनय कुमार गोधा काला की सुपुत्री चम्पाबाई के साथ हुआ है । श्रेयांसकुमार जी पुण्यशाली व्यक्ति हैं । पूजा पाठ करने में रुचि रखते हैं । बहुत ही शान्त प्रकृति के हैं। पता - 16 लाल निवास.नारायण सिंह चौराहा,जयपुर। श्री शिखरचन्द छाबड़ा श्री छाबड़ा का जन्म 14 अक्टूबर 1938 को हुआ। एम.ए.बी.काम, परीक्षा पास करने के पश्चात् आप राज.विश्वविद्यालय सेवा में चले गये तथा वहां विभिन्न पदों पर कार्य करते हुये ! वर्तमान में सहायक रजिस्ट्रार के पद पर कार्य कर रहे हैं । विश्वविद्यालय प्रशासन में आपकी अच्छी ख्याति है तथा अपने मधुर व्यवहार से सभी को प्रसन्न रखते हैं। समाज सेवा में भी आपकी रुचि रहती है । टौंक रोड मधुवन स्थित श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर के कार्यकारिणी सदस्य एवं वहाँ के कोषाध्यक्ष भी है। दि.जैन संस्कृत कालेज के आजीवन सदस्य एवं ज्ञान विद्यालय समिति के सदस्य हैं। आपके प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल का नियम है। .... Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 326/ जैन समाज का वृहद इंतहास श्री गंगवाल जी वर्तमान में एस.एल.गंगवाल एण्ड कम्पनी, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स, त्रिपोलिया बाजार,जयपुर के सीनियर पार्टनर हैं। आप जयपुर कर सलाहकार संघ के कोषाध्यक्ष व सचिव रह चुके हैं और वर्तमान में उपाध्यक्ष पद पर कार्य कर रहे हैं। राजस्थान कर सलाहकार संघ के क्षेत्रीय सचिव रह चुके हैं। आप जयपुर ब्रांच ऑफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स के लगातार दो साल तक उपाध्यक्ष रह चुके हैं और वर्तमान में अध्यक्ष पद पर हैं। आप रोटरी क्लब जयपुर की कार्यकारिणी के सदस्य व लगातार दो साल सचिव रह चुके हैं और वर्तमान में उपाध्यक्ष पद पर हैं । सामाजिक क्षेत्र में बापूनगर संभाग के कार्यकारिणी सदस्य,पार्श्वनाथ युवा मण्डल द्वारा प्रकाशित होने वाली स्मारिका के संपादक मंडल के सदस्य रह चुके हैं और वर्तमान में बापूनगर, विकास समिति की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आप अच्छे लेखक एवं वक्ता भी हैं। आप कई सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं के मानद आडिटर रह चुके हैं और वर्तमान में धार्मिक संस्थाओं में प्रमुख श्री दि.जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी एवं श्री दि.जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा के आडिटर हैं। आप प्रति वर्ष तीर्थ क्षेत्रों की वंदना के लिये जाते रहते हैं और अधिकांश तीर्थ क्षेत्रों को आपने अभी से वन्दना कर ली 2ॐ आप आचार्य 108 श्री विद्या सागर जी महाराज के परम भक्त है। आपके पिताजी ने कुली के दि.जैन मंदिर में शांतिनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान की थी। पता- अरिहंत,मंगल मार्ग:बापूनगर,जयपुर । श्री शांतिकुमार सेठी जयपुर के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं वकील स्व.मुंशी सूर्यनारायण जी सेठी के आप सबसे छोटे पुत्र हैं। आपका जन्म 13 मार्च, 1948 को हुआ | बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप जवाहरात उद्योग में चले गये। 25 अप्रैल 1970 को आपका विवाह इन्दौर के रायबहादुर हीरालाल जी कासलीवाल की सुपौत्री एवं स्व.श्री नरेन्द्रकुमारसिंह जी की सुपुत्री कामिनी के साथ संपन्न हुआ। कामिनी ने इन्दौर विश्वविद्यालय से बी.ए.किया है। आपको तीन पुत्रों रोहित, अमित एवं सुमित के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपको संगीत में रुचि रहती है। सेठी जी शान्त एवं सरल स्वभावी हैं । आपने जवाहरात व्यवसाय में जो कुछ उन्नति की है वह स्वयं ने की है । वर्तमान में आप ख्याति प्राप्त जौहरी माने जाते हैं। तथा सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों के संपादन करने में तत्पर रहते हैं। आप अब तक दो बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। पता- सेठी भवन, हनुमान का रास्ता,त्रिपोलिया बाजार,जयपुर Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 328/ जैन समाज का वृहद इतिहास आपका सन् 1958 में श्रीमती मनोरमा देवी के साथ विवाह हुआ। श्रीमती मनोरमा देवी भी नियमित पूजा करने वाली महिला हैं । आप दो पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। बड़े पुत्र सुनील का विवाह हो चुका है तथा वह बैंक सेवा में कार्यरत है। छाबड़ा जी निरभिमानी एवं अत्यधिक सरल स्वभावी हैं। पता - पी 0, मधुवन वेस्ट, किसान मार्ग,ौंक रोड़,जयपुर। श्री हजारीलाल निगोत्या जयपुर के प्रसिद्ध निगोत्या परिवार में चैत्र शुक्ला एकम संवत् 1965 में जन्में श्री हजारीलाल निगोत्या अत्यधिक धार्मिक एवं सेवाभावी श्रेष्ठी हैं। आपकी माता श्रीमती लाठया बाई एवं पिता श्री म्होरीलाल जी दोनों का ही बहुत पहले स्वर्गवास हो गया था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी संवत् 1988 को आपका विवाह श्रीमती महताब बाई जों के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों को पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । प्रारम्भ में आपने अपना ही व्यवसाय किया तथा फिर फूलचन्द जो निगोत्या एवं बम्बई वालों के कार्य किया । वर्तमान में आप जवाहरात का व्यवसाय करते हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री नवरत्नमल का जन्म संवत् 1990 में हुआ तथा 19 वर्ष की आयु में श्रीमती मुन्नादेवी जी के साथ विवाह हुआ। सन् 1972 में बम्बई में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र इन्द्राणी पद को सुशोभित किया । बोरिवली के मंदिर में आपका विशेष सहयोग रहता है । देशभूषण जी महाराज में आपको अटूट श्रद्धा थी । आपके दूसरे पुत्र सर्व श्री सुमेरमल,कमलकुमार,राजकुमार पार्श्वकुमार एवं महावीर सभी जवाहरात के व्यवसाय में लगे हुये है तथा व्यवसाय के लिये जब कभी अमेरिका आते जाते रहते हैं। आपने यरोप, अमेरिका एवं साउथ एशिया की कितनी बार यात्रायें की हैं। आपकी दोनों पुत्रियों धनेश एवं मनोरमा जैन का ।। विवाह हो चुका है । जैन ने शिकागो में कम्यूटराइज का कोर्स किया है । वहीं आप पढ़ाती भी हैं । आपका विवाह श्री महेन्द्र - जी साह से हो चुका है। श्रीमती महताब बाई धर्मपत्नी श्री निगोत्या जी समाज के सभी कार्यों में आर्थिक श्री हजारीलाल निगोत्या श्री नवरल पल निगोत्या सहयोग देते रहते हैं। जयपुर चूलगिरी पहाड़ पर चन्द्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं । आप दोनों ने सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। पता- निगोत्या भवन,मोतीसिंह भोमियों का रास्ता,जयपुर। " सEिN Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /329 श्री हरकचन्द चौधरी बड़जात्या मोजमाबाद (जयपुर) के चौधरी परिवार में 5 सितम्बर 1923 को जन्में श्री हरकचन्द . जी चौधरी जन साधारण की सेवा में विश्वास रखते हैं । आपके पिताजी श्री कस्तूरचन्द जी का सन् 1972 में निबन हो गया तथा माला को मनोमा देवी का 3 में ही स्वर्गवास हो । गया। मैट्रिक एवं सुधाकर साहित्य करके आप राज्य सेवा में चले गये तथा विभिन्न राजपत्रित पदों पर कार्य करते हुये अन्त में जिला परिवीक्षा एवं समाज कल्याण अधिकारी के पद से सन् 1978 में सेवा निवृत्त हुये। चौधरी जी का विवाह दि.17 फरवरी 1944 को श्रीमती कमला देवी के साथ संपन्न हुआ । आप दोनों को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपका ज्येष्ठ पुत्र राजेन्द्र कुमार राज्य 'सेवा में है । आप को पत्नी का नाम मंजूलता है । आपके दो पुत्र हैं। छोटा पुत्र धीरेन्द्र कुमार है । पत्नी अरुणा है । एक पुत्री को माता बन चुकी है। दोनों पुत्रियां राजकुमारी एवं कनकलता बी.ए. एवं एम.ए. हैं । दोनों का विवाह हो चुका है। श्री हरकचन्द जी बरकत नगर जैन समाज के लोकप्रिय अंग हैं। मंदिर के जीर्णोद्धार में आपका विशेष सहयोग रहता है । मोजमाबाद के आदिनाथ स्वामी के मन्दिर के जीर्णोद्धार में आपको विशेष रुचि रहती है। आप अपने पेटेन्ट नुक्सों से रोगियों को रोग मुक्त कर देते हैं। पता-9 वर्धमान जनरल स्टोर्स, किसान मार्ग,टौंक ब्रिज,जयपुर। श्री हरकचन्द पाटनी बैंक ऑफ राजस्थान में अधिकारी पद पर कार्यरत श्री हरकचन्द पाटनी का जन्म 28 मार्च 1938 को हुआ। आप 1955 में अपने मामाजी श्री नाथूलाल जी पाटनी खारी कुई बालों के दत्तक पुत्र बने । बैंक में सर्विस करते हुये आपने बी.ए.पास किया । सन् 1958 में आपका विवाह मुन्ना देवी के साथ संपन्न हुआ 1 आपके तीन पुत्र राकेश, राजेश एवम् राजीव व एक पुत्री रेणु है। राकेश बी.एस.सी.करने के पश्चात् कम्प्यूटर प्रोफेशन में चले गये । राजेश ने बी कॉम.(आनर्स) करने के पश्चात् सी.ए. पास किया । राजीव एम.कॉम. फाईनल कर रहा है । आपकी पुत्री रेणु एम.ए. हैं एवम् बिवाहित है। पाटनी जी सामाजिक कार्यों में रुचि एवम् लगन रखने वाले हैं। आप भारतवर्षीय दि.जैन परिषद् की राजस्म्यान शाखा के मन्त्री रह चुके हैं। श्री दि.जैन मन्दिर जी खिन्दुकान,जयपुर के 8 वर्षों तक मंत्री रहकर आपने समाज एवम् मन्दिर के लिये बहुत अच्छा कार्य किया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आप पूरी रुचि रखते हैं तथा सामाजिक सेवा करने में आप सदैव आगे रहने वाले युवा साथी हैं। पता - चूरूकों का रास्ता,जयपुर। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 330/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री हरकचन्द पांड्या कुचामन निवासी श्री हरकचन्द पांड्या पूर्णत: धार्मिक स्वभाव के श्रेष्ठी हैं । मुनिराजों की भक्ति आहार से पुण्य उपार्जन करने वाले पांड्या जी के विगत 17 वर्षों से शुद्ध खानपान का नियम है । आब्बार्य शिवसागर जी,धर्मसागर जी, विजयसागर जी, विवेक सागर जी सभी की आपने सेवा की है। प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल का नियम है । कुचामन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपने इन्द्र इन्द्राणी पद का सुशोभित किया । वहीं के अजमेरी मंदिर में एवं मानस्तंभ मे मूर्ति विराजमान की । जयपुर के खजांची रशियां में अष्टाहिका उपवास के साथ सिद्धचक्र मंडल विधान संपन्न करवाया। पांड्या जी का जन्म फाल्गुण सुदी संवत् 1966 को हुआ ! आपने पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के पास कुचामन में शिक्षा की और किसोरेला माय चले गये । संवत 1984 में आपका विवाह श्रीमती रतनीदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपके तीन पुत्र श्री सुमेरकुमार,सम्पतलाल एवं उम्मेदमल हैं । श्री सुमेर कुमार संतोष रोड़वेज के प्रोप्राइटर हैं। श्री सम्पतलाल श्री जैन रोडवेज का कार्य देखते हैं तथा उम्मेदमल पांड्या सी.ए. हैं तथा उम्मेद मल जैन एण्ड कम्पनी के नाम से व्यवसायरत हैं। श्री सम्पतलाल 45 वर्ष के हैं । पत्नी का नाम जीवती देवी तथा दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता है। श्री उम्मेदमल की पत्नी का नाम आशा है । एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। आपके बड़े भाई श्री चन्दनमल जी ने क्षुल्लक दीक्षा धारण की । उदयसागर जी कहलाये तथा अन्त में मुनि अवस्था में सीकर समाधिभरण प्राप्त किया। इन्हों की पत्नी फूलीदेवी विमलमती माताजी है । आचार्य वर्धमान सागर जी के संघ में हैं। पता - एस-7, जनता कॉलोनी,जयपुर। श्री हरकचन्द्र साह जयपुर के प्रसिद्ध समाज नेता स्वर्गीय श्री जमनालाल जी साह के सुपुत्र श्री हरकचन्द्र साह का जन्म दिसम्बर सन 1922 में हुआ। बी.कॉम. पास करने के पश्चात् अगस्त 1942 में जयपुर राज्य की सेवा में प्रवेश किया । 13 फरवरी सन् 1945 में आपने बैंक सेवा में प्रवेश किया तथा 37 वर्ष तक सर्विस करने के पश्चात् 1 दिसम्बर सन् 1982 में आप रीजनल मैनेजर के पद से सेवा निवृत्त हुये । एन् 1939 में आपका मनफूल देवी के साथ विवाह हुआ। आप दोनों को तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपके तीनों पुत्र श्री राजकुमार, डॉ विनोद एवं डा.सुशील तीनों ही उच्च शिक्षित हैं तथा संपन्न जीवन बिता रहे हैं। दोनों पुत्रियों विमला एवं आशा का विवाह हो चुका है । आशा बड़जात्या एम. ए. स्वर्णपदक से अलंकृत तथा एम.बी.ए. है। डॉ.सुशील भी स्वर्णपदक से अलंकृत है । आपके तीनों पुत्रों ने विदेश भ्रमण भी किया श्री साह सामाजिक सेवा में गहन रुचि लेते हैं । जवाहर नगर के नवनिर्मित मंदिर में आपने भगवान पार्श्वनाथ की पाषाण की मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । आपने जैन भवन जनाहर नगर में पूज्य पिताजी की स्मृति में एक कमरे का निर्माण भी कराया एवं जैन दर्शन पुष्पांजली पुस्तिका भी प्रकाशित की है । जयपुर की अनेक सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज 1331 १BAR एवं सदस्य रह चुके हैं । दि.जैन मंदिर जवाहर नगर के तीन वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह दि.जैन मंदिर चंपाराम जी पांड्या के पांच वर्ष तक एवं दि.जैन मंदिर नशियां संगही जी के 20 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। आप अभी दि. जैन मंदिर चंपारामजी पांड्या के छ: वर्ष से अध्यक्ष हैं एवं दी बैंक आफिसर्स रिटायर्ड एसोशियेशन के तीन वर्ष से अध्यक्ष है। आप अच्छे लेखक भी हैं । विभिन्न जैन व अजैन पत्र पत्रिकाओं में आपके लेख अब तक 95 से भी अधिक प्रकाशित हो चुके हैं । आप कवितायें भी लिखत है एवं आकाशवाणी व दूरदर्शन पर आपकी वार्तायें प्रसारित होती हैं। पता- 5 2 5 जवाहर नगर,जयपुर टेलीफोन- 562387 श्रीमती पनफूल देवी धर्मपत्नी श्री हरकचन्द्र शाह श्री हस्चिन्द्र अजमेरा जयपुर के प्रसिद्ध अजमेरा परिवार में श्री हरिश्चन्द्र अजमेरा का दि. 28 अक्टूबर सन् 1941 को जन्म हुआ ! आप श्री गोपीचन्द जी अजमेरा के तीसरे पुत्र हैं। बी.ए.एल.एल.बी. एवं डिप्लोमा इन लेबर लॉ पास करके आप टेक्सेशन के एडवोकेट बन गये। सन 1962 में आपका विवाह श्री रामचन्द्र कोठयारी की सपत्री स्वर्णलता के साथ हुआ। आपको एक पत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। प्रथम पुत्री गायत्री का विवाह हो गया है। द्वितीय पुत्री मीनू ने बी.ए.(आनर्स) कर लिया है जिसका इसी वर्ष विवाह हो गया,पीनाली अभी बी.ए. (अन्तिम वर्ष) में अध्ययनरत हैं । पुत्र का नाम आनन्द है। श्री अजमेरा जी सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं। श्री दि. जैन संस्कृत कॉलेज को महासमिति एवं सन्मति पुस्तकालय में कमेटी के सदस्य हैं । बैंक टैक्स कन्सलटेन्ट एसोसियेशन जयपुर के पहले संयुक्त मंत्री रह चुके हैं। संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते हैं । दि. जैन संस्कृत कॉलेज में चौक की फर्श आपके द्वारा बनवाई गई है। इसी तरह अपने ग्राम साहिपुरा में राजकीय स्कूल के लिये कमरे का निर्माण करवाया है। श्री पदमचन्द अजमेरा आपके छोटे भाई हैं । जो स्टेट बैंक आप बीकानेर एण्ड जयपुर में बड़े अधिकारी हैं । सन् 1970 में आपका विवाह लाडनूं के सेठ तोलाराम जो गंगवाल की पौत्री पुष्पा के साथ हुआ। आपके दो पुत्र अमित एवं रोहित पता: 379] मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, जौहरी बाजार ,जयपुर Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 332) जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री हीरालारन कटारिया कटारिया परिवार में 27 जनवरी सन् 1930 को जिन्में श्री हीरालाल कटारिया ने बो. ई. (इलेक्ट्रिक) परीक्षा पा करो ट्रांसपोर्ट साइन में प्रवेण मा आपके बड़े भाई श्री क्रांतिचन्द जी कानपुर में श्री रूपचन्द जी दिल्ली में एवं सोभागमल जी अहमदाबाद में कटारिया ट्रांसपोर्ट व्यवसाय संभालते हैं। आपके पिताजी श्री छीतरमल जी कटारिया का स्वर्गवास हो गया है तथा माता श्रीमती लाड बाई की छत्रछाया प्राप्त है। आपका दि. 5 मई, 1955 को श्रीमती प्रेमदेवी कटारिया के साथ विवाह हुआ । आप दोनों को चार पुत्रियों एवं एक पुत्र के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । श्री कटारिया जी अपने व्यवसाय में अत्यधिक निपुण हैं भारी मशीनरी वाहन का टांसपोर्टेशन करते हैं। धार्मिक प्रवत्ति वाले हैं। सामाजिक कार्यों में आर्थिक योग देते रहते हैं। आपकी पत्नी श्रीमती मैना देवी कटारिया भी सामाजिक समारोहों में जाती रहती हैं तथा आयोजकों को प्रोत्साहन देती रहती हैं। पता- बी 91, बापू नगर,गणेश मार्ग,जयपुर। श्रीमती प्रेम देवी कटारिया धर्मपली श्री होसलाल कटारिया श्री हीरालाल सेठी धार्मिक संस्कारों एवं व्रत उपवासों में जीवन को समर्पित करने वाले श्री हीरालाल जी सेठी का जन्म 24 अक्टूबर,1921 को हुआ। प्रभाकर आनर्स एवं इन्टरमीजियेट करने के पश्चात् भारतीय सेना के भर्ती करने वाले आफिस में कार्य करने लगे। आपने विदेश (इंडोनेशिया) में सन् 1961 से 64 तक इंडियन एम्वेसी जकार्ता में कार्य किया। सन् 1971 में आप जयपुर आकर रहने लगे और जैन साधुओं की सेवा,बत विधान, पूजापाठ आदि आपके जीवन का अंग बन गया । भवानीखेडा (नसीराबाद) में आपके पूर्वजों द्वारा निर्मित मंदिर है। आपके पिताजी स्व. सुगनचन्द जी सेठी समाज के प्रतिष्ठावान उत्तम धार्षिक संस्कारों के धनी थे। ___ आप चार पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित है। सभी पुत्र एवं पुत्री उच्च शिक्षित हैं तथा अच्छे पदों पर कार्य कर रहे हैं। सभी धार्मिक कार्यों में लगे रहते हैं। कर्नल अशोककुमार सेठी- आपका जन्म 17 मई 1944 को हुआ। बेलगांव मिलिट्री स्कूल में शिक्षा प्राप्त की । एन डी.ए. राष्ट्रीय सुरक्षा अका.में तीन वर्ष तक तथा एक वर्ष देहरादून में इंडियन मिलिट्री अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् सेकिन्ड लै.के पद पर नियुक्त हुये । इसके पश्चात् लै. केप्टिन ले.क.मेजर वर्तमान में नियुक्त हैं । जहां आपने प्रशंसनीय कार्य किया। सन् 1973 में प्रभा कुमारी के साथ आपका विवाह हुआ। श्रीमती प्रभा भी बी.ए.हैं। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर नगर का जैन समाज /333 विजयकुमार सेठी. बी.ई. (मेकोनकल) भिलाई स्टील सुपरिन्टडेन्द्र के पद पर कार्यरत है। 27 जून 1947 को जन्में विजयकुमार ने पिताजी के साथ इंडोनेशिया में रहते हुये सीनियर कैम्बिज किया और फिर गोरखपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से बी. ई.किया । आपका विवाह सन् 1974 में श्रीमती डा. अंजू के साथ हुआ । श्रीमती अंजू एम.बी.बी.एस. है तथा भिलाई में ही स्वयं की क्लीनिक है । आप बडवानी दि.जैन तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री डॉ.ज्ञानचन्द्र जी लुहाडिया की पुत्री हैं । सुशीलकुमार सेठी- तीसरे पुत्र हैं। एम.एस.सी.एवं एम.बी.ए. वाराणासी से करने के पश्चात् पहले गुलाबपुरा राजस्थान में राजस्थान स्पीनिंग एंड वीविंग मिल में और वर्तमान में गौतम सूटिंग्स,गौतम प्रोसेस इंडिया लि. भीलवाड़ा में जनरल मैनेजर फेबरिक्स के पद पर कार्यरत हैं । इनका जन्म 17-3-56 को हुआ । आपका सन् 1983 में श्रीमती संजू के साथ विवाह हुआ ! संजू सेठी बी.ए. है । जयपुर के समाज सेवी श्री प्रकाशचंद जी कासलीवाल की पौत्री हैं। श्री नवीनकुमार सेठी - इनका जन्म 12 मई 1960 को हुआ। पहिले दुबई में कार्य किया है। आप बी.कॉम. हैं । आपको एक मात्र पुत्री सुनिता बी कॉम. है । विवाह हो चुका हैं। बचपन में भक्ति संगीत में खूब रुचि लेती थीं । महिला जागृति संघ की सदस्य रही हैं । आपके पति श्री सुकुमार जी जौहरी हैं। आपने बचपन में अपने पिता जी के साथ इंडोनेशिया में रहकर वहीं प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। पता- सरा भवन, गोधों का रास्ता, त्रिपोलिया बाजार,जयपुर श्री हेमन्तकुमार सोनी युवा वैज्ञानिक श्री हेमन्तकुमार सोनी सैन्ट्रल इलेक्ट्रोनिक्स रिसर्च इन्सटीट्यूट पिलानी राजस्थान में कार्यरत हैं। आपका जन्म 10 मई 1934 को हुआ। बी.एस.सी.एवं इलेक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा करने के पश्चात् पिलानी में कार्य करने लगे। आपके पितामह श्री मोहनलाल जी सोनी जयपुर के विशिष्ट समाजसेवी थे । आपका विवाह श्रीमती ललिता देवी से हुआ जिनको तीन पुत्रियों प्रमिला,वीणा एवं चित्रा की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त है । प्रमिला जैन एम.एस. सी. हैं तथा उनका विवाह हो चुका है। आपके पिताजी का नाम श्री कपूरचंद जी एवं माता का नाम श्रीमती गेंदी देवी सोनी है। डॉ. हेमन्तकुमार जी अत्यधिक सीधे,सादे एवं धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति है । सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि रखते हैं। पता- पिलानी Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 334/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जयपुर एवं दौसा जिले का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी " ढूंढाड़ प्रदेश के जयपुर जिला एवं दौसा जिला दोनों ही प्रमुख भाग हैं । पहिले दौसा जिला जयपुर का एक उपखंड था लेकिन प्रशासनिक सुधार की दृष्टि से अब यह एक स्वतंत्र जिला बन गया है । जयपुर जिले का मुख्यालय जयपुर नगर एवं दौसा जिले का मुख्यालय दौसा कस्बा है । दोनों जिलों में आमेर, दौसा, सांभरलेक, जयपुर एवं कोटपूतली उपखंड हैं तथा आमेर, चौमू, जमवारामगढ़, दौसा, बसवा, लालसोट, सिकराय, फुलेरा. दूदू (मुख्यालय मोजमाबाद) फागी, जयपुर, सांगानेर, बस्सी, चाकसू, कोटपूतली, विराटनगर एवं शाहपुरा तहसीलों में विभक्त है । जैन समाज की दृष्टि से सन् 1981 की जनगणना के अनुसार इन तहसीलों में पूरे जैन समाज की संख्या 12176 थी जिसमें 62151 पुरुष गावं 5975 महिलाएं थी ! इस गणना में श्वेताम्बर जैन सपाज की गणना भी सम्मिलित है। तहसीलों के अनुसार पूरे जिले की जैन जनसंख्या निम्न प्रकार थी : स्वी 12176 पुरुष (6201 325 620 1114 577 1- जयपुर जिला 2- विराटनगर 3- आमेर 4- फुलेरा 5- जमवारामगढ़ 6. बसवा 7- दूदू 8- सांगानेर 9. बस्सी 10- दौसा 11- सिकराय 12- फागी 2593 1911 288 1467 1346 859 150 758 356 306 - 625 5975 295 537 1247 1052 138 709 746 390 306 612 1173 230 1654 127 548 103 528 878 Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /335 13- चाकसू 14- लालसोट 15- कोटपूतली 1292 1155 678 621 614 534 उक्त स्थिति सन् 1981 को है लेकिन उसके पश्चात् गांवों की स्थिति और भी बिगड़ गई और अधिकांश जैन परिवार गांवों को छोड़कर तहसील मुख्यालय, जिला मुख्यालय अथवा राजधानी में आकर बस गये हैं। विराटनगर तहसील में सबसे अधिक 40 जैन परिवार बैराठ में रहते हैं जो सभी अग्रवाल जैन हैं । बैराठ ऐतिहासिक नगर है। पं. राजमल्ल जी बैराठ के ही थे जिन्होंने समयसार की रब्वा टीका लिखी थी। अमेिर तहसील में भी जैनों की अच्छी संख्या है। फुलेरा तहसील में 28-30 गांवों में जैन परिवार मिलते हैं । इन में सांभर में 50 घर, जोबनेर में जा घर, रेनवाल किशनगढ़ में 50 घर, नरायणा में 30 परिवार, हिंगण्या में 15 परिवार रहते है। पूरी तहसील में खंडेलवाल दि. जैन समाज मिलता है । इसके अतिरिक्त सांभर में चार, जोबनेर में तीन जैन मंदिर हैं । नरायणा के मंदिर बहुत प्राचीन है जिनमें दुर्लभ एवं प्राचीन प्रतिमा विराजमान है । नरायणा में आचार्य धरसेनाचार्य के 12 वीं शताब्दी के चरण चिन्ह हैं । वहां सरस्वती की प्रतिमा भी बहुत प्राचीन एवं कलापूर्ण है। बसवा तहसील में सबसे अधिक 38 परिवार बांदीकुई में मिलते हैं जबकि बसवा बहुत पुराना कस्बा है जहाँ केवल 175 परिवार रहते हैं। श्री दि. जैन महावीर क्षेत्र के प्रथम मंदिर निर्माता अमरचंद बिलाला बसवा के ही थे। 18 वीं शताब्दी के अनेक ग्रंथों के निर्माता पं. दौलतराम कासलीवाल भी बसवा के ही थे । यहाँ का काला बाबा का मंदिर अतिशयपूर्ण है लेकिन समाज धीरे धीरे कम हो रहा है। दृदु तहसील का मुख्यालय मोजमाबाद है जहां जैन खण्डेलवाल समाज के 4) परिवार हैं । मोजमाबाद का तीन शिखरों का मंदिर 17 वीं शताब्दी का मंदिर है जो कला की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । सांगानेर तहसील में सांगानेर एवं दुर्गापुरा एवं बगरू के अतिरिक्त अन्य गांवों में बहुत कम परिवार मिलते हैं । सांगानेर टाउन तो जयपुर बसने के पूर्व ही बहुत बड़ा नगर था जिसको बीसों विद्वानों को पैदा करने का सौभाग्य प्राप्त है । यहां का संघीजी का मन्दिर जैन कला एवं पुरातत्त्व का बेजोड़ नमूना है । वर्तमान में यहाँ जैनों के 100-125 परिवार रहते हैं । सांगानेर तहसील के बगरू कस्बे में जैनों के अच्छी संख्या में परिवार रहते हैं । दौसा तहसील में स्थित सैथल ग्राम प्रस्तुत पुस्तक के लेखक को जन्म भूमि है । लेकिन पूरे तहसील में दौसा और छारडा ग्राम के अतिरिक्त अन्य गांवों में तो नाम मात्र के परिवार रह गये हैं । सिकराय तहसील में तो जैन परिवारों की और भी दयनीय स्थिति है । केवल सिकन्दरा कस्बे के जैन समाज की दृष्टि अच्छी स्थिति में है जहाँ 25 घरों का थोक है । गीजगढ़ में भी ४ खण्डेलवाल जैन परिवार एवं तीन अग्रवाल जैन परिवार रहते हैं। फागी तहसील में 22-23 गांवों में जैन परिवार मिलते हैं इनमें फागी में 87 घर, चोरु में 37, रेनवाल में 25. माधोराजपुरा में 30. अच्छी संख्या में जैनों के घर मिलते हैं । इस तहसील में खंडेलवाल परिवारों से अधिक दि. जैन अग्रवाल परिवारों की संख्या मिलती है । फागी, रेनवाल, माधोराजपुरा में तो उनकी सबसे अधिक संख्या Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 336/ जैन समाज का बृहद् इतिहास है । चाकसू तहसील में चाकसू, शिवदासपुरा, चंदलाई, कोटखावदा, रूपाडी में फिर भी जैन घरों की अच्छी बस्ती है शेष गांवों में जैन समाज की स्थिति विशेष अच्छी नहीं है। दि. जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा चाकसू तहसील में ही है। लालसोट तहसील में लालसोट में 40 एवं बगड़ी में 15 जैन परिवार रहते हैं। बगड़ी में सभी परिवार अग्रवाल जैन हैं । इस प्रकार जयपुर जिला एवं दौसा जिले में जैन समाज सांगानेर एवं जयपुर के अतिरिक्त अन्यत्र एक ही ग्राम में 1000 परिवारों से अधिक नहीं मिलते फिर भी दोनों जिलों में जैन समाज का व्यापक प्रभाव है तथा शिक्षा एवं व्यापार की दृष्टि से वह सबसे आगे है। प्राचीन एवं कलापूर्ण मन्दिरों की दृष्टि से भी दोनों जिले महत्वपूर्ण हैं । विगत 50 वर्षों से दि. जैन मन्दिर पदमपुरा एक नया दि जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में उभर कर आया है । यहां का मन्दिर निर्माण जब पूरा हो जावेगा तब फिर यह राजस्थान में ही नहीं किन्तु पूरे उत्तरी भारत में अपने ढंग का अकेला मन्दिर होगा। भगवान पदमप्रभु की अतिशय मूर्ति के दर्शनार्थ जैन ही नहीं किन्तु जैनेतर समाज भी अच्छी संख्या में जाता है। I जयपुर जिले में सांभर जैन समाज के एक सदस्य माननीय श्री मिलापचन्द जी जैन देहली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। 1 यशस्वी समाज सेवी 1. 2. श्री कपूरचन्द कासलीवाल श्री कपूरचन्द, चिरंजीलाल, कैलाशचन्द बड़जात्या श्री कैलाशचन्द काला श्री कल्याणमल पाटनी 3. 4. 5. श्री कल्याणमल बोहरा 6. श्री गम्भीरमल बड़जात्या 7. श्री गुलाबचन्द गंगवाल 8. श्री चिरंजीलाल कासलीवाल 9. श्री चिरंजीलाल सौगानी 10. श्री जमनालाल पाटनी 11. श्री ताराचन्द दोषी जैन 12. श्री दुलीचन्द पाटोदी 13. श्री धर्मचन्द लुहाड़िया 14. 15. 16. 17. 18. श्री नेमीचन्द बाकलीवाल श्री पदमचन्द चौधरी श्री पांचूलाल जैन पांड्या श्री प्रकाशचन्द काला श्री प्रकाशचन्द जैन पांड्या श्री पूर्णचन्द जैन बड़जात्या श्री प्रभातीलाल कासलीवाल 19. 20. 21. श्री मिलापचन्द काला 22. श्री मूलचन्द बड़जात्या 23. श्री रतनलाल बोहरा 24. श्री सुगनचन्द पाटनी 25. श्री सौभागमल चौधरी Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /337 श्री कपूरचन्द कासलीवाल साइबाड़ पाम के निवासी श्री कपूरचन्द कासलीवाल विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जन्म ज्येष्ठ चुदी 8 संवत् 1980 को हुआ। आपके पिताजी श्री सूरजमल जी माताजी गलकू देवो दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। संवत् 10492-93 में आपका केशरदेवी से विवाह हुआ । सन्तान नहीं होने से श्री सुरेन्द्रकुमार को दत्तक किया । आपके तीन पौत्र सचिन, सौरभ एवं अभिषेक हैं। श्री कासलीवाल जी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं । प्रतिदिन भगवान का अभिषेक करते हैं । मुनिभक्त हैं । तीर्थ यात्रा करते. रहते हैं । चूलगिरी (जयपुर) पंचकल्याणक महोत्सव में इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं । साइवाड़ के मंदिर में पार्श्वनाथ, महावीर एवं चौबीसो (धातु) की प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। ग्राम के प्रतिष्ठित कार्यकर्ता हैं । नटाटा ग्राम पंचायत के 20 वर्ष तक सरपंच रहे जिनमें तीन बार निर्विरोध निर्वाचित होने का गौरव प्राप्त किया। पता : मु.पो.साइवाड़ तहसील जमवारामगढ़ (राज) श्री कपूरचन्द बड़जात्या पिता - श्री सुगनचन्द जी सन् 1971 में 84 वर्ष की आयु में स्वर्गवास माता - श्रीमती तीजा बाई 98 वर्ष की आयु में 2 मई 1989 को स्वर्गवासी जन्म - 1910 में शिक्षा - सामान्य व्यवसाय - वस्त्र व्यवसाय विवाह - जनवरी 1934, पत्नी - धीसू देवी परिवार - तीन पुत्र • ज्ञान चन्द,सुमेरचन्द एवं पूनमचन्द पुत्री - 2 पता - राज बाजार,फुलेरा (राज) श्री चिरंजीलाल बड़जात्या विवाह : जनवरी 1939, पली श्रीमती सोहनी देवी 3 पुत्र शान्ति कुमार,सन्तोष कुमार एवं बसन्त कुमार श्री कैलाशचन्द बड़जात्या आयु : 54 वर्ष ,पत्नी कुसुम,दो पुत्र - वीरेन्द्र एवं प्रमोद विशेष : आपके पिताजी स्व.सुगनचन्दजी सन् 1951 में फुलेरा में आयोजित पंचकल्याण प्रतिष्ठा में मुख्य अधिष्ठाता थे । इस प्रतिष्ठा में कपूरचन्द जी के पास जल व्यवस्था का उत्तरदायित्व था । श्री कपूरचन्द जी विगत 8 वर्ष से समाज के अध्यक्ष हैं। आपके पुत्र श्री ज्ञानचंद फुलेरा नगर कांग्रेस के सेक्रेटरी है । दोनों ही भाई मुनिभक्त हैं तथा आहार आदि देने में रुचि रखते Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 338/ जैन समाज का वहद इतिहास हैं। श्री कपूरचन्द जी एवं उनकी धर्मपत्नी के शुद्ध जल प्रहण करने का नियम है । वीरसागर जी महाराज के चातुर्मास में आप दोनों का बहुत सहयोग रहा था । श्री कपूरचन्द जी को भारतीय दि.जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की ओर से तीर्थ रथ वंदना में सक्रिय सहयोग देने के लिये 20-9-87 को प्रशस्ति पत्र दिया गया था। पता - कुसुम निवास,शट बाजार, बुहरानपुर (मप्रदेश) श्री कैलाशचन्द काला पिता - श्री माणकचन्द जी काला पितामह - श्री गुलाबचन्द जी काला दोहते - सीकर के दीवान श्री भंवरलाल जी माता - श्रीमती छगनकंवर - 70 वर्ष जन्मतिथि - मंगसर सुदी 10 सम्वत् 1993 शिक्षा - इन्टर मिडियर सन् 1955 में अजमेर बोर्ड गाजपथान से उत्तीर्ण । व्यवसाय - नमक उत्पादन - आयोडीनयुक्त नमक के निर्माता । विवाह तिथि - 5 मई,1955 पत्नी का नाम - श्रीमती तारादेवी परिवार - पुत्र तीन 1- वर्धमान एम.कॉम.पली श्रीमती कुसुम बी.ए. 2. सुशील बी कॉम. पत्नी श्रीमती प्रेम सैकेण्डरी 3- निर्मल एम.कॉम. पत्नी - श्रीमती उषा बी.ए. तीनों ही नमक उत्पादन के कार्य में संलग्न पुत्री एक निर्मला - हायर सैकेण्डरी पौत्र चार - नवनीत, सन्मति, सुकुमाल,महावीर पौत्री एक किरण विशेष : आपके बाबा स्व.श्री गुलाबचन्द जी काला समाज के अत्यधिक प्रतिष्ठित सदस्य थे। वे जागीरदार थे। सन् 1922 में उन्होंने सांभर पुस्तकालय को स्थापना की और उसकी आर्थिक दृष्टि से नींव सुदृढ़ की । वे दानशील स्वभाव के थे। बम्बई में भूलेश्वर कालबादेवी रोड स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर में विद्यमान चांदी की चंवरी का निर्माण सन् 1935 में करवाया था। सांभर के सभी मंदिरों एवं सामाजिक संस्थाओं में आप का पूर्ण आर्थिक सहयोग रहता था य सामाजिक कार्यों में आगे रहते थे। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /339 नागपुर में आयोजित भारतीय दिगम्बर जैन महासभा अधिवेशन के अध्यक्ष थे । उनके नाम से सांभर में सेठ गुलाबचन्द काला मार्ग प्रसिद्ध हैं। 1 श्री कैलाशचन्द जी काला के जीवन पर उन्हीं के संस्कारों का पूर्ण प्रभाव है इसलिये आपका जीवन भी पूर्णतः सामाजिक एवं धार्मिक बना हुआ है। सन् 1985 में आचार्य धर्म सागरजी महाराज ने लूणवां में चातुर्मास किया तब आप चातुर्मास कमेटी के संयोजक रहे और छः महीना वहीं रहकर मुनि संघ की पूरी प्यावृत्ति करने का सौभाग्य मापा किया। लूगवां अंतराय क्षेत्र के आप टुरटी भी हैं। आपका पूरा परिवार मुनि संयों की सेवा में तत्पर रहता है। सांभर में विहार करने वाले सभी मुनियों को आहार देकर अपूर्व पुण्य लाभ लेते हैं। पक्के मुनिभक्त हैं, आचार्य धर्मसागर जी महाराज के संघ को नांवा से लूणवां तक लाने में आपका प्रमुख योगदान रहा। आप धार्मिक, सामाजिक एवं सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं एवं अपने पितामह के नाम पर सांभर नगर में सड़क का स्वयं के खर्चे से निर्माण कराया । स्वभाव से उदार एवं दानशील हैं। वर्तमान में सांभर के गणमान्य नागरिक हैं पता : गुलाबकुंज, सेठ गुलाबचंद काला मार्ग, सांभर लेक (राज.) फोन नं. आफीस 171 निवास 25 कृषिकार्म 15 श्री कल्याणमल पाटनी बस्सी तहसील के काशीपुरा गांव के निवासी श्री कल्याणमल जी पाटनी माने हुये समाज सेवी हैं। गांव तहसील एवं स्टेट की विभिन्न सामाजिक एवं राजकीय संस्थाओं में आपका सक्रिय योगदान रहता है। आप ग्राम पंचायत के सदस्य हैं। सहकारी समिति के अध्यक्ष हैं। पाम की शिक्षा समिति एवं काशीपुरा जैन समाज के अध्यक्ष हैं। पदमपुरा क्षेत्र कमेटी के गतिशील सदस्य है । आपका जन्म चैत्र सुदी पूर्णिमा संवत् 1974 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने गांव में ही लेन देन एवं खेती का कार्य प्रारंभ कर दिया। आपके पिताजी श्री गेंदीलाल जी एवं माता जी फूला देवी का स्वर्गवास हो चुका है। आपके दो विवाह हुये। दूसरा विवाह संवत् 2012 में शांतिदेवी के साथ संपन्न हुआ। आप दो पुत्र प्रेमचन्द एवं अनिल कुमार तथा चार पुत्रियां राजा, गुढी, विमला एवं शशि के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुके हैं। पाटनी जी अपने गांव में समाज में किसी भी प्रकार के सेवा कार्य में पीछे नहीं रहते। पता : मु.पो. काशीपुरा (बस्सी) जयपुर । श्री कल्याणमल बोहरा बस्सी तहसील में टहटड़ा ग्राम के निवासी श्री कल्याणमल जी बोहरा अपने क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जन्म फाल्गुण सुदी 6 संवत् 1970 को हुआ । आपके पिताश्री मन्नालाल जी ठिकाने में पटवारी थे। उनका स्वर्गवास संवत् 2004 में हो गया। माता श्रीमती मोतादेवी का स्वर्गवास संवत् 1885 में हुआ। आपका विवाह वैशाख सुदी 3 संवत् Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 340 / जैन समाज का वृहद् इतिहास 1993 में श्रीमती थापा देवी के साथ हुआ। आपको पांच पुत्रों की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ पुत्र श्री हरकचन्द राज्य सेवा में हैं। द्वितीय पुत्र बाबूलाल गांव में ही व्यवसाय करते हैं। तृत्तीय पुत्र ताराचंद राज्य सेवा में हैं। वे शिक्षक हैं। चतुर्थ पुत्र श्री कमलेश कुमार बी. कॉम., एल.एल.बी. डिप्लोमा इन लेबर ला है तथा राज्य सेवा में है। आपकी पत्नी श्रीमती गायत्री देवी भी एम.ए., बी.एड. है तथा राज्य सेवा में हैं छोटे पुत्र पत्र में है। श्री कल्याणमल जी शुद्ध खान-पान वाले हैं। मुनिभक्त हैं। मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक लेखक के मामाजी हैं। श्री कमलेश कुमार श्रीमती गायत्री देवी धर्मपत्नी श्री कमलेश कुमार पता : श्री कल्याणमल बोहरा भु. टहटडा पो. जटवाड़ा, तहसील वस्सी (जयपुर) श्री गंभीरमल जैन बड़जात्या मोजमाबाद के चौधरी परिवार में फाल्गुण सुदी 10 संवत् 1989 में जन्में श्री गंभीरमल चौधरी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं। आपने अपने सामाजिक जीवन में जो प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता प्राप्त की है वह उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय है। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी एवं माताजी श्रीमती राजबाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपका विवाह मालपुरा के श्री प्रेमचंद जी कासलीवाल की बहिन गटनी बाई के साथ संपन्न हुआ | आपको चार पुत्रों संजयकुमार, सुशीलकुमार, सुनीलकुमार एवं चुन्नीलाल के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। गंभीरमल जी सबको साथ लेकर चलने वाले हैं। एक बार मोजमाबाद से श्री महावीर जी तक पैदल यात्रा संघ को ले जा चुके हैं। इसी तरह मोजमाबाद से सोनागिरी तक बस द्वारा एक सप्ताह की सबको यात्रा करा चुके हैं। आप मोजमाबाद माम पंचायत के उपसरपंच रह चुके हैं। अप्रकाशित जैन साहित्य को प्रकाश में लाने में आपकी पूर्ण रूचि है। मोजमाबाद के प्रसिद्ध आदिनाथ स्वामी के मंदिर की जीर्णोद्धार समिति के आप मंत्री हैं तथा समाज से आर्थिक सहायता जुटाकर जीर्णोद्धार का बहुत ही प्रशंसनीय कार्य संपन्न कराया है। पता : मु. पो. मोजमाबाद (जयपुर) Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /341 श्री गुलाबचन्द गंगवाल अपने जीवन को देश एवं समाज सेवा से अलंकृत करने वाले श्री गुलाबचन्द जी गंगवाल समूचे रेनवाल क्षेत्र के जाने पहिचाने व्यक्ति हैं। जो विगत 500 वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। आपका जन्म कार्तिक सुदी 12 संवत् 1978 को हुआ। आपने जैन दर्शन शास्त्रों (प्रथम वर्ष) तथा न्याय मध्यमा तक अध्ययन किया आपके पिताजी श्री महाचन्दजी भी प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनका स्वर्गवास सन् 1964 में हुआ तथा उसी वर्ष आपकी माताजी गैंदीबाई का स्वर्गवास हो गया। उस समय उनकी आयु 80 वर्ष की थी। आपके दो विवाह | प्रथम विवाह 16 वर्ष की आयु विलायती देवी (रानोली) से हुआ जिनका स्वर्गवास संवत् 2006 में ही हो गया। उसी वर्ष आपका दूसरा विवाह विमला देवी (कुचामन) के साथ संपन्न हुआ। लेकिन वे भी अधिक जीवित नहीं रह सकी और चैत्र बुदी 14 संवत् 2028 में सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गयी । दोनों पलियों से आपको चार पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। उनमें श्री रतनलाल जी जयपुर में व्यवसाय करते हैं। श्री जिनेन्द्र कुमार का अभी कुछ ही समय पूर्व दुखद निधन हो गया। तीसरे पुत्र डा. अशोक अमेरिका में रह रहे हैं तथा चतुर्थ पुत्र निर्मल कुमार बी. कॉम. है व जयपुर में ही व्यवसाय करते हैं। आपके पितामह मोहनलाल जी शास्त्राभ्यासी थे तथा रात्रि को रेनवाल में नियमित शास्त्र प्रवचन किया करते थे। उनका संवत् 1984 में स्वर्गवास हो गया। श्री गुलाबचन्द जी प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय विचारधारा के व्यक्ति रहे । स्वतन्त्रता आन्दोलन में राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं के प्रति आपका पूर्ण सहयोग रहता था। आप ग्राम पंचायत रेनवाल के भी प्रमुख सदस्य रह चुके हैं। पारिवारिक जीवन में आपके जीवन निर्माण में आपकी भोजाई श्रीमती घेवरी देवी का योगदान रहा। आपके बड़े भाई श्री कन्हैयालालजी का विवाह के 6 माह बाद ही स्वर्गवास हो गया था। उनके निधन के 3 वर्ष पश्चात् आपका जन्म हुआ । घेवरी देवी बड़ी धर्मात्मा थी। उनका स्वर्गवास संवत् 2027 में हुआ। उनके नाम से घेवरी देवी गंगवाल ट्रस्ट बना हुआ है जिसके माध्यम से साहित्यिक कार्य होता है। श्री गंगवाल साहब का बहुआयामी व्यक्तित्व है । समाज सेवा के वे प्रतीक हैं। अपने क्षेत्र की सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। आप महाबीर दि. जैन विद्यालय किशनगढ़ के उपमंत्री, दि. जैन दातव्य औषधालय किशनगढ़ के मंत्री, दि. जैन महासमिति रेनवाल के अध्यक्ष, श्रीलाल गंगवाल पारमार्थिक ट्रस्ट के संयोजक ट्रस्टी, लूणवा अतिशय क्षेत्र की कार्यकारिणी के सदस्य, श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष, जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान के संरक्षक, दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय जयपुर की शताब्दी समारोह समिति के सदस्य रहे हैं। आपने श्रीलाल पारमार्थिक ट्रस्ट की ओर से शाकंभरी प्रदेश के विकास में जैन धर्म का योगदान (लेखक डा. कासलीवाल ) आत्म प्रसून (आर्यिका विशुद्धमति माताजी एवं पूजापाठ संग्रह ) जैसी उपयोगी पुस्तकों का प्रकाशन कराया है। श्री गंगवाल जी सामाजिक आंदोलनों के सदा ही अग्रिम पंक्ति में रहे हैं। यही नहीं उनके पक्ष में कभी-कभी लेख भी लिखते रहे हैं । प्रस्तुत इतिहास लेखक से आपका विगत 25 वर्षों से मधुर संबंध है । पता मोहनलाल महाचन्द मु. पो. रेनवाल (जयपुर) : Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 342/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री चिरंजीलाल कासलीवाल दौसा जिले में प्रसिद्ध समाज एवं देशभक्त श्री चिरंजीलाल जी कासलीवाल प्रस्तुत इतिहास लेखक के ज्येष्ठ भाता है। आपका जन्म आसोज सुदी 14 संवत् 1970 को हुआ था। पिताजी श्री गैंदीलाल जी भी दयालु प्रकृति के एवं धार्मिक गुणों से संपन्न थे । आपका निधन 5 दिसम्बर सन 1968 को हुआ । माताजी गेखा बाई का स्वर्गवास तो बहुत पहिले हो गया था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप पिताजी के साथ वस्त्र व्यवसाय एवं लेनदेन का कार्य करने लगे। आपका विवाह छारड़ा निवासी श्री धूरामल जो पाटनी की सुपुत्री नारंगीदेवो के साथ संपन्न हुआ । अनोख, सुशीला, विमला एवं कालला चार पुत्रिया एवं महावीर कुमार प्रकाशचंद एवं देवेन्द्र तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । सभी पुत्र एवं पुत्रियों का विवाह हो चुका है। सर्व श्री महावीर कुमार सैथल में कपड़े का व्यवसाय करते हैं। श्री प्रकाशचंद खेती के अतिरिक्त खानों का व्यवसाय करते हैं । आप राजनैतिक कार्यकर्ता हैं तथा कोआपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष हैं । देवेन्द्र कुमार जयपुर में बैंक सेवा में है । श्री महावीर कुमार श्री देवेन्द्र कुमार श्री कासलीवाल जी अपने क्षेत्र के प्रभावशील व्यक्ति है । स्वाध्याय प्रेमी हैं । जैन पुस्तकों को पढ़ने की बचपन से ही रुचि रही है । सैंथल जैन समाज के अध्यक्ष हैं। ग्राम पंचायत सैंथल के उपसरपंच एवं सदस्य रह चुके हैं। पता : चिरंजीलाल महावीर कुमार जैन सैंथल (जयपुर) Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चिरंजीलाल सौगानी चन्दाणी (निवाई ) ग्राम के श्री चिरंजीलाल जी सौगानी अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति हैं आप सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में बराबर भाग लेते रहते हैं। आपके पिता श्री लादूलाल जी गांव में बहुत ही लोकप्रिय थे इसलिये वे ग्राम पंचायत चन्द्राणी के वर्षों तक बिना किसी चुनाव के सरपंच रहे। उनका स्वर्गवास 75 वर्ष की आयु में हुआ था। आपकी माताजी गुलाब बाई का भी स्वर्गवास हो चुका है। राजस्थान प्रदेश का जैन समाज आपकी धर्मपत्नी का नाम लाड़ बाई है। जो धार्मिक स्वभाव की महिला हैं। आपको विधानों में बोलियां लेने की बहुत रुचि रहती है। आपके छोटे भाई श्री नरेन्द्र कुमार जी, श्री हरकचंद जी श्री श्रवण कुमार जी एवं महावीर जी हैं। सभी भाई स्वतंत्र व्यवसायी हैं। हरकचंद जी एवं महावीर जी जयपुर में फोटोग्राफी का अच्छा व्यवसाय करते हैं। पता : मु.पो. चन्दाणी वाया निवाई (टोंक) श्री जमनालाल पाटनी जोबनेर के श्री जमनालाल जी पाटनी का जैन समाज में अच्छा स्थान है। आपका जन्म संवत् 1978 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप मनी लेंड का कार्य करने लगे। आपके पिता श्री केशरीलाल जी एवं माता बालां बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। पाटनी जी का संवत् 1991 में नोरतीदेवी से विवाह हुआ। आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों की जननी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका पुत्र श्री भागचन्द एम.एस.सी. है तथा सरदारशहर में बडोदा बैंक में मैनेजर के पद पर कार्य कर रहे हैं। 15 वर्ष पूर्व आपका विवाह मैनादेवी के साथ संपन्न हुआ। पाटनी जी शांति वीर जैन गुरुकुल के वर्तमान में अध्यक्ष हैं। हस्तिनापुर पंचकल्याणक में इन्द्र बन चुके हैं। आपकी पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम था तथा वह मुनिराजों को आहार देती रहती थी। आप यात्रा प्रेमी हैं तथा सभी यात्रायें कर चुके हैं। समाज विकास के लिये कुछ न कुछ कार्य करते ही रहते हैं। पता : मु.पो. जोबनेर (जयपुर) श्री ताराचंद दोशी (जैन) पंचायत समिति फागी के सरपंच श्री ताराचंद दोशी बहुत ही अच्छे कार्यकर्ता एवं नेता हैं। सन् 1981 से आप सरपंच के पद को सुशोभित कर रहे हैं तथा जनहित के कार्यों में बने रहते हैं। आपका जन्म सन् 1938 में हुआ। इन्टरमीजियेट तक शिक्षा प्राप्त की तथा फिर वीरेन्द्र मेडिकल स्टोर प्रतिष्ठान चलाने लगे। आपके पिताजी श्री नाथूलाल जी एवं माताजी श्रीमती नारंगीदेवी दोनों का ही अभी आशीर्वाद प्राप्त है। 21 वर्ष की आयु में शांति देवी के साथ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 344/ जैन समाज का वृहद इतिहास विवाह हुआ। एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं । वीरेन्द्र जैन बी कॉम. है । तथा मेडिकल की दुकान संभालते हैं । पुत्री मंजू का विवाह हो चुका है । ग्राम में इन्हें गरीबों के नांसह के नाम से जाना जाता है। दोशी जी ने फागी के मंदिर में बेदी निर्माण करवाकर उसमें पद्मावती माता की मूर्ति विराजमान करने का मशस्वी कार्य किया। फागी के बड़े मंदिर के प्रमुख कार्यकर्ता हैं । दोशी जी से फागी कस्बे को एवं समाज को बहुत आशायें हैं। पता - मु.पो. फागी (जयपुर) राज. श्री दुलीचन्द पाटोदी पिता : श्री फूलचन्द जी पाटोदी 87 वर्ष की आयु में कार्तिक बुदी 3 सं. 24338 में स्वर्गवास । माता - श्रीमती भंवरी देवी - 57 वर्ष की आयु में स्वर्गवास जन्मतिथि - चैत्र बुदी 14 सं. 1983 - शिक्षा - सामान्य व्यवसाय - सन् 195] से नमक के उत्पादक इसके पूर्व 25 वर्ष तक जयपुर में रामसुख चुन्नीलाल के पार्टनरशिप में गुलाबचन्द चौमूवालों के माझे में ताराचन्द एण्ड कम्पनी के नाम से कार्य किया। विवाह - वैशाख सुदी पूर्णिमा सं. 2001 पत्नी का नाम श्रीमती शांतिदेवी पग्विार - पुत्र 2, 1- विनोदकुमार 2- कमलकुमार विशेष :- श्री पाटोदी जी ने अपना जीवन कलकत्ता एवं रांची में सर्विस से आरम्भ किया । दि.जैन अतिशय क्षेत्र लूणवा के सेक्रेटरी हैं। आपके मंत्रित्व काल में आचार्य धर्पसागर जी महाराज ने ससंघ चातुर्मास किया और आपने चातुर्मास की पूर्ण व्यवस्था को थी । छह मास तक हजारों लाखों यात्रियों ने धर्म लाभ लिया। चातुर्मास व्यवस्था को.देखने के लिये आप छह मास तक वहीं लूणवां में रहे । पाटोदी लगवा क्षेत्र के ट्रस्टी भी हैं। 2. सांभर दि.जैन समाज के 10 वर्ष से सेक्रेटरी हैं । रामलीला कमेटी के 8 वर्षों तक कोषाध्यक्ष रहे हैं । सांभर नगर पालिका के पार्षद रहे व अब भी हैं। श्री गोपाल गोशाला सांभर के उपाध्यक्ष हैं । नागरिक विकास समिति के सांस्कृतिक सचिव रहें हैं। 3. कट्टर मुनिभक्त । शुद्ध जल ग्रहण का नियम । सभी मुनिसंघों को आहार देते रहते हैं । धार्मिक स्वभाव एवं सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। 4- तीर्थों की वंदना करने में पूर्ण रुचि । Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /345 5. चैम्बर आफ ज्यनुपन साल्ट डिस्ट्रीब्यूटर लिमि के बोर्ड आफ मेनेजमेन्ट के सदस्य रह चुके हैं अभी भी हैं। पता : सांभरलेक (राज) जिला- जयपुर । श्री धर्मचन्द लुहाड़िया जन्मतिथि - 44 वर्ष की आयु । पिता का नाम स्व. श्री मूलचन्द जी लुहाडिया, 4 मार्च 1987 को 84 वर्ष की आयु में स्वर्गवास | माता श्रीमती गौरा देवी जी 78 वर्ष नरायणा में रहते हैं। शिक्षा - बी. कॉम. सन् 1960 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से व्यवसाय - 18 वर्ष की आयु में पत्नी श्रीमती मनोरमा देवी, सुपुत्री श्री भंवरलाल जी झांझरी नावां विशेष :- धार्मिक 1- किशनगढ़ एवं विजयनगर पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में इन्द्र एवं राजा बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। सभी तीर्थो की वंदना 1 - 2. आपके बड़े भाई श्री पूर्णचन्द जी लुहाडिया ने ब्रह्मचारी अवस्था धारण कर रखी है। 3- 12 वर्ष पूर्व 1978 में आपने नरायणा में वेदी प्रतिष्ठा कराई थी। सामाजिक श्री मूलचच्च लुहाड़िया पिता श्री धर्मचन्द लुहाड़िया 1. पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर सोसायटी जयपुर के ट्रस्टी 2- नरायणा दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष, नरायणा नगर पालिका के पांच वर्ष तक चेयरमैन रहे। 3. कांग्रेस (आई) के सक्रिय सदस्य 4- मिलनसार, दानशील एवं 5- सन् 1971] से डोमापुर में कार्यरत पता- साह जी भवन, नरायणा, फोन 2805 डीमापुर 62551 जयपुर, 15 नरायणा Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 346/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री नेमीचंद बाकलीवाल दिगम्बर जैन मंदिर बस्सी (जयपुर) के अध्यक्ष श्री नेमीचन्द जी बाकलीवाल पुराने भजनों के ज्ञाता एवं गायक दोनों ही हैं। समारोहों में वे संगीत के साथ पूजा कराते हैं तथा चैा बन का सर पर पाई भी करते हैं . काका जन संपत् ।। में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्यापारिक क्षेत्र में प्रवेश किया। सन् 1985 में आपका विवाह तोलाबाई के साथ हुआ । उनसे आपको पांच पुत्र सर्व श्री पदमचंद,महावीर कुमार, जयकुमार,कमलकुमार एवं निर्मलकुमार तथा एक पुत्री विमला बाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । सभी पुत्र अपना-अपना व्यवसाय करते हैं । श्री बाकलीवाल जी ने बस्सी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया,नई वेदी बनवाई तथा कांच का काम करवाया। तीर्थो पर जाते रहते हैं। अब तक 8 बार सम्मेद शिखर जी की वंदना कर चुके हैं। पत्ता : छीतरमल भूरामल मु.पो.बस्सी (जयपुर) श्री पदमचंद बडजात्या चौधरी श्री दि.बैन अ.क्षेत्र मोजमाबाद के प्रचार मंत्री श्री पदमचंद चौधरी युवा समाज सेवी हैं तथा अपनी निष्ठापूर्वक समाज सेवा से उन्होंने अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली है। दि.2 जुलाई 1940 में जन्में सन् 1957 में आपने मैट्रिक पास किया और राज्य सेवा में चले गये । वर्तमान में आप तहसील अकाउन्टेन्ट के पद पर कार्य कर रहे हैं। आपका विवाह भी सन् 1957 में ही वसन्ती देवी के साथ संपन्न हुआ। आपको दो पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है । आप की धार्मिक प्रवृत्ति सराहनीय है। प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं तथा मंदिर की देखभाल करते हैं । उत्साही कार्यकर्ता हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी है। पता : मु.पो. मोजमाबाद (जयपुर) श्री पांचूलाल पांड्या चौधरी बगरू जयपुर के निवासी श्री पांचूलाल जी पांड्या चौधरी कहलाते हैं तथा अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध सामाजिक व्यक्ति हैं । आपका जन्म संवत् 1980 में हुआ। आपके पिताजी श्री म्होरीलाल जी का स्वर्गवास 60 वर्ष की आयु में ही संवत् 1993 में हो गया । उस समय भात्र 13 वर्ष के थे । माताजी श्रीमती सोनीदेवी जी संवत् 2014 में स्वर्ग सिधार गई । बाल्यकाल में ही रोजी रोटी की समस्या के कारण आप अष्टम कक्षा के आगे नहीं पढ़ सके | संवत् 1994 में आपका विवाह भंवरलाल जी चौधरी मोजमाबाद की पुत्री रतनदेवी के साथ हो गया । आपको चार पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ज्येष्ठ पुत्र श्री पदमचन्द 30 वर्ष के हैं। विवाहित हैं। पत्नी का नाम मीना कमारी है । 29 वर्षीय श्री नरेन्द्र कमार की पत्नी का नाम कुमार बी.कॉम.है । आशा देवी पत्नी का नाम है । ट्रांसपोर्ट जयपुर का कार्य देखते हैं । सबसे छोटे पुत्र पवनकुमार भी बी.कॉम. है विवाह हो चुका है तथा अंजू पत्नी का नाम है। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /347 श्री पांचूलाल जी वस्त्र व्यवसायी हैं। शांत स्वभाव के हैं। धार्मिक जीवनयापन करते हैं । बगरू जैन समाज के प्रमुख समाज सेवी हैं । मुनि भक्त हैं। पता : पदमकुमार नरेन्द्र कुमार.कपड़े के व्यवसायी,बगरू (जयपुर) श्री प्रकाशचन्द काला एडवोकेट पिता : श्री मोतीलाल जी काला (स्वर्गवास दिनांक 10.4.1976) पाता : चांददेवी (स्वर्गवास - 1967) जन्म तिथि : अषाढ़ बदी। सम्बत् 1979 दिनांक 10.6.1922 शिक्षा : बी.ए., एल.एल.बी. व्यवसाय :वकालत विवाह :11.7.1940 श्री काला की सांभर के प्रमुख वकीलों में गणना की जाती हैं। उनका सामाजिक एवं राजनैतिक दोनों ही जीवन उच्च कोटि का रहा है । आप सांभर नगरपालिका के सन् 1949-77 तक सदस्य एवं दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। सांभरबार ऐसोसियेशन के एवं कई स्थानीय संस्थाओं के मंत्री भी रहे हैं। आप कांग्रेस के प्रमुख कार्यकर्ता एवं पांच वर्ष तक मंडल कांग्रेस कमेटी के मंत्री भी रह चुके हैं। पालिका कार्य काल में नगर में कई विकास कार्यों में आपका सहयोग रहा है और कई सब कमेटियों के अध्यक्ष रहकर कार्य किया है। आप विगन कई वर्षों से सांभर पुस्तकालय के मंत्री हैं एवं नागरिक विकास समिति के प्रमुख सदस्यों में से हैं। सामाजिक जीवन के अन्तर्गत जैन पंचायत सांभर के वर्षों तक मंत्री रहे और विगत सात साल से आपने अध्यक्ष पद संभाल रखा है । अतिशय क्षेत्र लूणवा के ट्रस्टी सदस्य हैं और वहां के कानूनी सलाहकार हैं आपने सभी तीर्थों की बंदना कर ली है । आपके पांच पुत्रियां एवं दो पुत्र है। धार्मिक जीवन जीते हैं । प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं । सरल व मधुर स्वभाव के हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं एवं प्रस्तुत इतिहास पुस्तक के लेखक :डा.कासलीवाल के साथ वर्षों पढ़े हुए हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री महेन्द्रकुमार काला हैं जो बी.कॉम., एल.एल.बी.(पी) डिप्लोमा लेबर ला तक अध्ययन किया है और स्टेट बैंक आफ इंडिया सांभर में फील्ड आफीसर के पद पर कार्यरत हैं । द्वितीय पुत्र सुरेन्द्रकुमार काला डाक्टर हैं और उन्होंने ई.एन.टी. में एम.एस.कर रखा है व वर्तमान में सउदी अरब में कार्यरत हैं। आप से समाज को बहुत आशाएं हैं। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 348/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री प्रेमचन्द अजमेरा बस्सी (जयपुर) निवासी श्री प्रेमचन्द जी अजमेरा कस्बे के प्रतिष्ठित समाजसेवी है। बस्सी माम पंचायत के सरपंच रह चुके हैं तथा । वर्ष तक नाई मैम्बर रहे हुये हैं। वहां की भी जैन समाज के भी मत्री रह चुके हैं तथा वर्तमान पंचायत के सदस्य हैं । दौसामंडल की जैन समिति के कार्यकारिणी सदस्य हैं। अजमेरा जी धार्मिक कार्यों में विश्वास रखते हैं। प्रतिदिन पूजा अभिषेक करने का नियम है । बस्सी गांव में सन् 1983 में सिद्धचक्र मंडल विधान का आयोजन करवाया था। अजमेरा जी का जन्म कार्तिक बुदी 13 संवत् 1983 को हुआ। आपके माता-पिता दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय में लग गये । संवत् 2001 में वैशाख सुदी 13 को आपका श्रीमती अनोखीदेवी से विवाह हुआ। अजमेरा जी के बड़े भाई श्री मोतीलाल जी है। छोटे भाई कपूरचंद जी मास्टर हैं । श्री फूलचन्द,चिरंजीलाल,लालचर आपके भतीजे हैं । वह कोटखायदा रहते हैं । इनकी ससुराल सिकन्द्रा में बालचंद विनोदीलाल के है। उस परिवार में 55 सदस्य हैं जिनका कारोबार खाना वगैरह सब एक जगह है, बड़े बालचंदजी हैं जो कस्बे में प्रतिष्ठित समाज सेवी है । प्रतिदिन पूज अभिषेक करने का नियम है। पता : ग्राम बस्सी,तहसील • बस्सी,जिला- जयपुर श्री प्रकाशचन्द जैन पांड्या युवा समाजसेवी श्री प्रकाशचंद जी पांड्या ने अपने मधुर व्यवहार एवं उदार स्वभाव के कारण जो लोकप्रियता प्राप्त की है वह निसंदेह प्रशंसनीय है । नेतालादाले गांव में दि.1.7-47 को जन्में श्री पांड्या जी बी.ए. पास करके खनिज एवं खनन उद्योग में चले गये तथा अपनी सच्चाई एवं ईमानदारी से सफलताओं की सीढ़ी पर चढते चले गये और आज उनका खनिज उद्योग में अच्छा नाम है। आपका विवाह श्रीमती शकुन्तला देवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं पांच पत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिला है। आपके परिवार द्वारा अपने ग्राम नेताला में एक चैत्यालय का निर्माण करवाकर करीब 12-13 वर्ष पूर्व मूर्ति की स्थापना करने का प्रशंसनीय कार्य संपन्न हुआ। आपके पिताजी श्री विरधीचन्द जी की समाज में अच्छी ख्याति है। आपकी माताजी श्रीमती चांददेवी धार्मिक स्वभाव की पहिला थी जिनकी प्रेरणा और सामाजिक भावना ने विकास में एक सम्बल का काम किया जिनकी याद में दौसा मुख्य रेल लाइन के पास चांद धर्म कांटा व प्याऊ संचालित है। श्री पांड्या जी से समाज को बहुत आशायें हैं। पता :: पांड्या भवन, आगरा रोड़,दौसा। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /349 श्री पूर्णचन्दन दङ्गवाया एडयावर ___ ढूंढार प्रदेश के प्राचीन नगर बसवा में दिनांक 24 अक्टूबर 1923 को जन्में मृदुल एवं स्नेहिल व्यवहार के धनी श्री पूर्णचन्द जैन की वर्तमान में राजस्थान के प्रसिद्ध वकीलों में गणना होने लगी है। आपके पिता जी श्री आनन्दीलाल जी का सन् 1952 में निधन हो गया, इनके चार वर्ष पश्चात् आपकी माताजी श्रीमती दाखा देवी चल बसी । श्री आनन्दीलाल जी के तीन पुत्र सर्व श्री हजारीलाल जी, फूलचन्द जी एवम् श्री पूर्णचन्द हुए। सबसे छोटे पुत्र आप हैं । श्री जैन ने सन् 1945 में बी.कॉम, और सन् 1947 में आगरा विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की परीक्षा पास की और इसके पश्चात् आप वकालत करने लगे। आपने अपनी सूझ-बूझ कानूनी शान एवम् गौरवशाली व्यक्तित्व के कारण इस क्षेत्र में सहज ही प्रसिद्धि प्राप्त करली । सन् 1949 में आप बसवा से दौसा आ गये वैसे आप प्रारम्भ से ही राजनीति एवम् सामाजिक कार्यों में आगे बढ़ते गये । सन् 1948 में सर्वप्रथम बसवा म्यूनिसिपेलटी के सदस्य चुने गये तथा सन् 1948-49 में गवर्नमेंट सप्लाई कमेटी के अध्यक्ष बनाये गये । दौसा बार एसोसियेशन के तीन बार अध्यक्ष रहे । वर्तमान में आप राजस्थान के लीडिंग फौजदारी वकीलों में माने जाते हैं। हाई-कोर्ट बार एसोसियेशन के सदस्य हैं तथा आरएस.एस. दौसा के संघ चालक हैं । विगत सात वर्षों से आप अपनी धार्मिक वृत्ति के कारण दि. जैन अ. क्षेत्र पदमपुरा कमेटी के अध्यक्ष हैं तथा दौसा की और भी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । मुनियों की सेवा करने में गहरी रुचि लेते हैं। सन् 1944 में आपका विवाह जयपुर के प्रसिद्ध वकील कपूरचन्द जी संघी की पुत्री श्रीमती सुनन्दा के साथ हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवम् चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका सुपुत्र सुधीर कुमार भी बी.कॉम, एल.एल.बी. है । उनकी शादी श्रीमती इन्दिरा जैन एम.ए. से हुई है । श्री सुधीर कुमार वकालत करते हैं । चारों पुत्रियों सुमन,ऊया, मृदुला एवम् पूर्णिमा सभी उच्च शिक्षत है तथा विवाह हो चुका है | आपके दो पौत्र कुमार अभिषेक, अभिनव तथा एक पौत्री सुश्री सोनल है । आपकी धर्मपली का अभी कुछ ही समय पूर्व दुःखद निधन हो गया । श्री पूर्णचन्द जी अपने आप में एक अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्ति हैं तथा समाज सेवा की ओर विशेष ध्यान देते हैं। पता : जैन मौहल्ला दौसा (राज) श्री प्रभातीलाल कासलीवाल श्री प्रभातीलाल जी कासलीवाल बस्सी तहसील में प्रभावशाली व्यक्ति हैं। तहसील राजनीति में उनकी अच्छी पहुंच है । अपने माप दणाउ कला की ग्राम पंचायत के वे 21-22 वर्ष तक सरपंच रहे तथा बस्सी पंचायत समिति के सन् 1968 से 1981 तक प्रधान रहे । इसके पूर्व वे सन् 1965 से 68 तक तहसील पंचायत समिति के उप-प्रधान रहे। कांग्रेस (आई) के तहसील कमेटी के अध्यक्ष एवं जिला कमेटी के सदस्य रह चुके हैं। राजनीति के अतिरिक्त सामाजिक कार्यों में भी उनकी गहरी पहुंच है। वे दि. जैन अ. क्षेत्र पदमपुरा की कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं । पदमपुरा पंचकल्याणक महोत्सव के अवसर पर राज दरबार में वे राजा के पद को सुशोभित कर चुके हैं। Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 350/ जैन समाज का वृहद् इतिहास AX आपका जन्म संवत् 1984 में हुआ। आपके पिताजी श्री कस्तूरचंद जी कासलीवाल का 28 वर्ष की आयु में ही देहान्त हो गया था। आपकी माताजी 80 वर्ष की है। मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप खेती लेनदेन एवं अन्य व्यवसाय करने लगे। आपका दूसरा विवाह 1.5 फरवरी 64 को पुष्पादेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र राजेन्द्र कुमार एवं महेन्द्र कुमार एवं एक पुत्री इंदिरा की प्राप्ति हुई। तीनों ही पढ़ रहे हैं। श्री कासलीवाल जी सामाजिक एवं राजनैतिक दोनों क्षेत्रों में बसवर गतिशील रहते हैं। पता :- मु.पो. दणाऊकला (तहसील बस्सी) जयपुर श्री मिलापचंद काला चंदलाई मान के निवासी श्री मिलापचंद को काला का जन्म भादपी बुदो संवत् 1982 को हुआ । आपके पिताजी श्री पांचूलाल जी एवं माताजी श्रीमती भंवरदेवी दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है । मृत्यु के समय पिताजी 80 वर्ष के एवं माताजी 75 वर्ष की थी । आपने मिडिल तक शिक्षा प्राप्त की और संवत् 1996 में श्रीमती भंवरदेवी के साथ विवाह सूत्र में बंध । गये। आपके दो पुत्र श्री राकेश एवं सुखानन्द हैं । राकेश जी वाटर वर्क्स में कार्य करते हैं। काला जी के तीन पुत्रियाँ , झान देवी,छव्वादेवी एवं रूपा देवी हैं तथा तीनों का ही विवाह हो चुका है । आप पी.डब्ल्यू. डी.की ठेकेदारी का कार्य करते हैं । आपने थली चाकसू के मंदिर के जीर्णोद्धार में आर्थिक सहयोग दिया है। काला जी चंदलाई प्राम पंचायत के उपसरपंच एवं सदस्य रह चुके हैं। काँग्रेस के निष्ठावान सदस्य हैं तथा गांव के हायर सैकण्डरी स्कूल एवं प्राम समिति के अध्यक्ष हैं । चंदलाई जैन मंदिर कमेटी के सदस्य हैं। आपके एवं आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । वत उपवास बहुत करते हैं। दशलक्षण, अष्टान्हिका, पोडशकारण के उपदास कर चुके हैं । मुनि भक्त हैं तथा मुनियों को आहार देने में रुचि रखते हैं। पता:- मु.पो.चंदलाई (चाकसू ) जयपुर। श्री मूलचंद बड़जात्या कामदार कामदार के उपनाम से प्रसिद्ध श्री मूलचंद जी बड़जात्या की जोबनेर ग्राम में एवं समाज में अच्छी प्रसिद्धि है। इनके पूर्वज एवं पिताजी जोबनेर के जागीरदार पानासोयम के कामदार थे। जब तक जागीरें रही तब तक इस ठिकाने की रियासत में होने वाले विवाह अवसरों एवं मृत्यु समय पगड़ी के दस्तूर के बाद, ठाकुर साहब के समान ही सब इनके घर पर राम राम करने आते थे । यह अधिकार ठिकाने की तरफ से पीढ़ी दर पीढी के लिये दिया गया था। भादवा सुदी ४ संवत् 1978 को आपका जन्म हुआ। आपके पिताजी श्री जवाहर मल जी का एवं माताजी श्रीमती मगनी बाई का बहुत पहिले स्वर्गवास हो चुका है । आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त को और फिर वस्त्र व्यवसाय एवं बैंकर्स का कार्य आरम्भ कर दिया जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1351 आपका विवाह मारोठ निवासी श्री लालचंद जी गोधा की सुपुत्री श्रीमती सुवादेवी के साथ फाल्गुण सुदी 8 सं.1993 को संपन्न हुआ | आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका सबसे बड़ा पुत्र स्वरूपचंद एम.ए. हैं। उसकी पत्नी का नाम मंजू है जो भी बी.ए. है । इन्दौर में शांति रोडवेज का कार्य संभालते हैं। एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित है। दूसरे पुत्र अशोक कुमार बी.एससी. हैं। उनकी पत्नी संतोष देवी तीन पत्रियों की माँ है। तीसरा पत्र धर्मचंद एम.एससी. है। पत्नी का नाम मंजू है । एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है । पंजाब नेशनल बैंक में कार्यरत है। श्री कामदार जी कुचामन,श्री महावीर जी एवं जयपुर के पंचकल्याणकों में इन्द्र के पद से अलंकृत हो चुके हैं । शांति वीर जैन गुरुकुल की स्थापना एवं उसके विकास में प्रमुख योगदान रहा है । सन् 1981 में भगवान बाहुबली की विशाल यात्रा संघ का संचालन कर चुके हैं । यह यात्रा संघ इतिहास की कहानी बन चुका है। पता: मु.पो.जोबनेर,जयपुर श्री रतनलाल बोहरा मोजमाबाद के प्रसिद्ध बोहरा परिवार में श्रावण शुक्ला 13 संवत्-1977 को जन्मे श्री रतनलाल जी बोहरा विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी हैं । आपके एक बड़ी बहन व चार अनुज प्राता है जो सभी धर्मप्रेमी व सम्पन्न हैं व सभी का अलग-अलग व्यवसाय है । आपके पिता श्री फूलचंद जी बोहरा का निधन 8 वर्ष पूर्व ही हुआ था उस समय उनकी आयु 92 वर्ष की थी आपकी माताजी श्रीमती दाखा देवी का इनके पूर्व स्वर्गवास हो गया था। आपने सन् 1936 में वर्नाक्यलर फाइनल 8वीं कक्षा पास की व इसी वर्ष पटवार पास करके करीब डेढ वर्ष तक पटवारी पद पर कार्य किया । बाद में ग्रेन प्रोक्योरमेन्ट स्कीम में एक वर्ष नायब तहसीलदार के पद पर काम किया था बाद में व्यवसाय करते हुये एक बार पाम पंचायत मोजमाबाद में उपसरपंच व तहसील पंचायत में पंच एवं न्यायपंचायत के अध्यक्ष पद पर रहकर कार्य किया था। आपका विवाह स.1989 सन् 1933 में सुन्दरदेवो पाम लबाना के साथ संपन्न हुआ। आपके 3 पुत्रियाँ - सुशीला, शकुन्तला,विजयलक्ष्मी हुई। तीनों का विवाह हो चुका है इसके पश्चात् आपने अशोक कुमार को दत्तक पुत्र बनाया जिसके 2 पत्र सरेन्द्र-पकेश व हीरामणि पुत्री है। श्रो रतनलाल जी धार्मिक व सामाजिक दोनों कार्यों में विशेष भाग लेकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं । अपने मोजमाबाद के लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रथम सौधर्म इन्द्र के पद को सुशोभित किया था । मोजमाबाद के मंदिरों के जीणोंद्धार में आर्थिक सहयोग भी देते रहते हैं। स्थानीय मोजमाबाद के बड़े मंदिर में श्री महावीर भगवान व शांतिनाथ भगवान की धातु की दो मूर्तियाँ भी विराजमान कर चुके हैं । पक्के मुनि भक्त हैं उनके प्रति वर्ष दर्शनार्थ जाते रहते हैं । पति-पत्नी दोनों के ही शुद्ध खानपान का वर्षों से ही नियम है। प्रतिदिन पूजापाठ स्वाध्याय करते हैं। यात्रा प्रेमी हैं इन्होंने जीवन में अब तक 5 बार श्री सम्मेदशिखर जी आदि पूर्व दिशाओं की व श्री बाहुबली गिरनार आदि दक्षिण के तीर्थों को दो बार यात्रायें की हैं। पता: मु.पो.मोजमाबाद जिला- जयपुर Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3521 जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री सुगनचंद पाटनी जोबनेर निवासी श्री सुगनचंद पाटनी मानव सेवा एवं समाज सेवा की प्रतिमूर्ति हैं। विगत 50 वर्षों से आप ग्राम सेवा एवं समाज सेवा में इतने समर्पित हैं कि आपके प्रति जन । सामान्य में गहन श्रद्धा के भाव उमड़ पड़ते हैं। आपका जन्म 29 अप्रैल,1916 को हुआ। स्व. नेमीचंद जी पाटनी आपके पिताजी थे तथा श्रीमती लादी बाई आपको माताजी थी जो प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान स्व.पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ की बहिन थी । माता का वियोग 2 वर्ष की आयु में ही हो गया,पिताजी हमेशा बीमार रहते थे इसलिये 9 वीं कक्षा से आगे अध्ययन चालू नहीं रख सके और रोटी रोजी के लिये दुकान पर बैठना पड़ा। आपका विवाह मनफूल देवी ५ सुपुत्री भूरमल जी छाबड़ा बगरू बालों के साथ सपन शु। आपकी धर्मपत्नी आतिथ्य तथा . घरेलू कार्यों में निपुण थी लेकिन उनका भी अल्पायु में ही स्वर्गवास हो गया। पाटनी जी का अध्ययन की ओर विशेष झुकाव रहा इसलिये स्वाध्याय के वक्त पर आपने अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया । छात्र-छात्राओं में धार्मिक एवं लोकिक प्रचार प्रसार के लिये वीर निर्वाण सं.2489 में जोबनेर में प्रवेशिका संस्कृत विद्यालय शांतिवीर जैन गुरूकुल की स्थापना में पूरा योगदान दिया और उसके अध्यक्ष 23 वर्ष तक रहे । गुरुकुल के लिये जनसहयोग लेकर विशाल भवन का निर्माण करवाया। अपनी पत्नी की स्मृति में आपने भी उसमें एक कमरा बनवाया । पाटनी जी दि. बैन अ. क्षेत्र पदमपुरा के वर्षों तक सदस्य रहे । श्रीपती मरफूल देवी भगवान महावीर 2500वाँ निर्वाण महोत्सव समिति तहसील फुलेरा के अध्यक्ष रहे तथा जोबनेर नगर परिषद के सदस्य रहे । जयपुर राज्य प्रजा मंडल एवं कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहे । दि. जैन संस्कृत आचार्य महाविद्यालय जयपुर की शाताब्दी समारोह समिति के सदस्य रहे । राज. जैन साहित्य परिषद परीक्षालय समिति एवं राज.विद्वत परिषद के सदस्य रहे । आप जहां भी रहे तन मन धन से संस्थाओं के विकास में पूरा योग दिया। आप मुनि भक्त हैं,जोबनेर मुनिसंघ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं अपने ही गांव में दि.जैन चन्द्रप्रभु मंदिर की वेदी प्रतिष्ठा एवं रथयात्रा महोत्सव व समिति के भी अध्यक्ष रहकर प्रशंसनीय कार्य किया। श्री पाटनी जी पूरे जोबनेर का प्रतिनिधित्व करते हैं । वेदी प्रतिष्ठा एवं रथयात्रा महोत्सव के अवसर पर विशाल आम सभा में आपकी अभूतपूर्व सेवाओं को देखते हुये आपको अभिनंदन पत्र मेंटकर सम्मानित किया गया । पाटनी जी ने अपने भतीजे श्री प्रेमचंद पाटनी के पुत्र श्री प्रमोद कुमार को दनक पुत्र बनाया है। श्री प्रमोद कुमार सेवाभावी युवक हैं तथा राज. सरकार की सेवा में हैं। पत्नी का नाम श्रीमती कान्ता देवी है तथा वह एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है। वर्तमान में श्री पाटनी जी शरीर से अस्वस्थ रहते हुये श्री स्वाध्याय एवं शास्त्रों के अध्ययन में लगे रहते हैं तथा समाज एवं पूरे गांव को मार्गदर्शन देते रहते हैं तथा आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। पता:- सुगनचंद पाटनी,जोबनेर (जयपुर) Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /353 श्री सौभागमल चौधरी जीवन भर शिक्षक रहकर समाज सेवा में समर्पित श्री सौभागमल बड़जात्या मोजमाबाद नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। आपका जन्म आसोज सुदी 14 संवत् 1976 को हुआ । आपके पिता श्री इन्दरलाल जी एवं माताजी मोतीदेवी का स्वर्गवास हो चुका है। सन् 1955 मैं बम्बई विद्यापीठ की साहित्य सुधाकर परीक्षा पास करने के पश्चात् आपने शिक्षक का जीवन पसन्द किया और उसी पद से सेवानिवृत्त हुये। सन् 1934 में केवल 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह लादीबाई से हुआ लेकिन आपकी धर्मपत्नी अधिक वर्षों तक जीवित नहीं रह सकी और एक पुत्री शांति को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई । श्री सौभाग मल जी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। मोजमाबाद पंचकल्याणक महोत्सव में रथयात्रा के समय आपने सारथी का पद प्राप्त किया। मोजमाबाद मंदिर के जीर्णोद्धार में आपने खूब आर्थिक सहयोग दिया है। मोजमाबाद के विद्यालय के भवन निर्माण में आपने खूब सहयोग दिया है। यहां के औषधालय के 10 वर्ष तक मंत्री रहकर उसके विकास में योगदान दिया है। श्री समीरमल जी बड़जात्या आपके छोटे भाई हैं जिनका जन्म वैशाख मास में संवत् 1979 में हुआ 1 मिडिल तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप राज्य सेवा में चले गये और अन्त में तहसील में रेवेन्यू अकाउन्टेन्ट के पद से रिटायर हुये । आपका विवाह 20 अक्टूबर सन् 1940 में हुआ आपकी पत्नी का नाम श्रीमती रतनदेवी है जो मालपुरा की है। आपको 2. पुत्र एवं चार पुत्रियों की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। दोनों पुत्र अशोक एवं पारस कुमार तथा पुत्रियां पुष्पा, आशा, ऊष एवं विनोद सभी का विवाह हो चुका है। वर्तमान में आप रिटायर जीवन बिता रहे हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र अशोक कुमार ग्राम पंचायत मोजमाबाद के एक बार सरपंच रह चुके हैं। पता:- मु.पो. मोजमाबाद, जिला जयपुर Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 354/ जैन समाज का बृहद् इतिहास सवाई माधोपुर, टौंक एवं अलवर जिले का जैन समाज एवं यशस्वी समाजसेवी इतिहास के प्रस्तुत उपखंड में सवाई माधोपुर, टौंक एवं अलवर प्रदेश के जैन समाज पर प्रकाश डाला जा रहा है । सवाई माधोपुर एवं टौंक जिला ढूंढाड प्रदेश में ही गिना जाता है तथा अलवर जिला यद्यपि मत्स्य प्रदेश का प्रमुख भाग है लेकिन सामाजिक संगठन, रीतिरिवाज, पूजा पद्धति, रहन-सहन, खानपान प्राय: वही है जो जयपुर नगर एवं जयपुर जिले की समाज का है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सन् 1981 में इन तीनों जिलों में जैनों की संख्या निम्न प्रकार थी: 1- सवाई माधोपुर 15219 2. टौक 19041 3- अलवर 10321 यदि वर्तमान जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में और धर्म के कालम में जैन लिखाने की भावना से सन् 1991 में सवाई माधोपुर 18000, टौंक 23000 एवं अलवर 12000 की जनसंख्या होनी चाहिये । सवाई माधोपुर जिला: सवाई माधोपुर जिले के प्रमुख नगरों में सवाई माधोपुर, हिण्डौन, गंगापुर, करौली, भगवतगढ़, चौथ का बरवाड़ा, बौंली, सिवाड़, खंडार आदि के नाम लिये जा सकते हैं । जिले की प्रमुख दि. जैन जातियों में खण्डेलवाल, अग्रवाल, पोरवाल, श्रीमाल, पल्लीवाल जातियाँ हैं । सभी गाँवों में दिगम्बर जैन मंदिर हैं। कहीं-कही धर्मशाला एवं जैन पाठशालायें भी है । सन् 1913 में प्रकाशित जैन यात्रा दर्पण में सवाई माधोपुर के संबंध में लिखा है कि यहां जैनियों के घर 158 मनुष्य संख्या 439 खंडेलवाल, पोरवाल, श्रीमाल आदि जातियों की हैं। 7 शिखरबन्द मंदिर हैं और एक चैत्यालय है । पंचायती बड़े मंदिर में पाठशाला भी है । वर्तमान में भी यहां इतने ही मंदिर है। एक मंन्दिर रणथम्भौर किला पर तथा एक मंदिर शेरपुर में है । सवाई-माधोपुर में खण्डेलवाल जैन समाज के 50 घर हैं। शहर के पास ही में श्री दि. जैन अ. क्षेत्र चमत्कार जी आलमपुर में है । पहिले इस क्षेत्र की बहुत प्रसिद्धि थी लेकिन चमत्कार जी की मूल प्रतिमा के खंडित होने के पश्चात् यहां की लोकप्रियता कम हो गई । लेकिन फिर Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/355 भी क्षेत्र तो उसी तरह बना हुआ है । साहू श्री शांतिप्रसाद जी जैन ने इस क्षेत्र के विकास में पर्याप्त योगदान दिया है । सवाई माधोपुर एवं सिवाड़ में दि. जैन वीर बाल संघ (शाला) भी है। ___ इसी सवाई माधोपुर जिले में दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी का प्रसिद्ध क्षेत्र हैं । जहां प्रतिवर्ष लाखों यात्री भगवान महावीर के दर्शनार्थ आते हैं। पिछले 50 वर्षों में क्षेत्र का बहुत विकास हुआ है तथा क्षेत्र की काया ही पलट गई है । बड़ी-बड़ी धर्मशालाओं का निर्माण हुआ है । कटले को नया स्वरूप दिया गया है। पुस्तकालय, वाचनालय, शोध संस्थान, प्राकृतिक योग संस्थान का निर्माण हुआ है । श्री महावीर जी में 9 जनवरी 1953 को श्री दि. जैन आदर्श महिला विद्यालय की स्थापना हुई है जिसकी संस्थापिका ब्र. कमला बाई जी हैं। सारे सवाई माधोपुर जिले में इसका पहिला विद्यालय भन्या कहीं नहीं है : अलो विद्यालय की विशाल बिल्डिंग बन गई है । विद्यालय की संस्थापिका ब. कमला बाई जी ने विद्यालय भवन के बाहर ही कांच का भगवान पार्श्वनाथ के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया है जिसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सन् 1987 में संपन्न हो चुका है । विद्यालय के अध्यक्ष श्री सेठ अमरचन्द जी पहाड़िया है। इसके अतिरिक्त नदी के उस पार शांति वीर जैन गुरुकुल का नया निर्माण हुआ है । आचार्य शांतिसागर जी एवं आचार्य वीर सागर जी महाराज के नाम से संस्थापित इस गुरुकुल की अपनी विशाल बिल्डिंग है । विशाल मंदिर है । मंदिर के विशाल प्रांगण के दोनों ओर चौबीस तीर्थंकरों की वेदियाँ हैं । बीच में विशाल खडगासन प्रतिमा है। इसी तरह श्री महावीर जी में दि. जैन मुमुक्षु महिला विद्यालय का भी विशाल भवन है। विशाल मंदिर है। धर्मशाला है । इस विद्यालय की संस्थापना ब्र. कृष्णाबाई ने की थी । सवाई माधोपुर जिले में हिण्डौन एवं गंगापुर जैसे नगर हैं लेकिन उनमें दि. जैन समाज की घनी बस्ती नहीं टौंक जिला: जैन समाज की दृष्टि से टौक जिला एक महत्वपूर्ण जिला है । जहां जैन समाज की सघन बस्ती है। इस जिले में मालपुरा, निवाई, टोडारायसिंह, देवली एवं उणियारा एवं टौंक तहसीलें हैं जिनमें सभी में दि. जैन समाज की अच्छी बस्ती है । अधिकांश समाज व्यापारिक समाज है तथा दिगम्बर जैन समाज में खण्डेलवाल एवं अग्रवाल समाज की ही प्रमुखता है। इस जिले का मुख्यालय टौंक है जिसमें सन् 1911 की जनगणना में 296 घरों की बस्ती तथा जनसंख्या 815 थी । 80 वर्ष पश्चात् भी टौंक के जैन परिवारों की जनसंख्या में कोई विशेष बढोत्तरी नहीं हुई है । वर्तमान में यहां 350 घरों की बस्ती मानी जाती है । जिनमें अग्रवाल समाज के 200 एवं सरावगी समाज के 150 परिवार हैं। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 356/ जैन समाज का वृहद इशिहास पूरे जिले में 100 गाँवों एवं नगरों में जैन परिवार रहते हैं । यहां सन् 1974 मे एक विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन हो चुका है । टौंक तहसील में आवां कस्बा है जहाँ सभी परिवार बघेरवाल समाज के हैं। यहाँ के मंदिर में संवत् 1593 में प्रतिष्ठित शांतिनाथ स्वामी की अतिशययुक्त प्रतिमा है तथा टेकरी पर भट्टारक जिनचन्द्र, शुभचन्द्र एवं प्रभाचन्द्र की तीन निषेधिकायें जैन समाज के इतिहास को गरिमामय बना देती है। निवाई टौक जिले का व्यापारिक नगर है जहाँ दिगम्बर जैन समाज की भी अच्छी बस्ती है। यहाँ के खण्डेलवाल एवं अग्रवाल दि. जैन परिवारों की संख्या 250 होगी। यहाँ आचार्यों एवं साधुओं का विहार होता ही रहता है । यहाँ के निवासियों में साधुओं के प्रति अपार भक्ति रहती हैं । यहाँ चार मंदिर एवं दो चैत्यालय हैं । शहर के बाहर के मंदिर में विशाल मानस्तंभ है जिसका निर्माण इन्हीं पचास वर्षों में हुआ है । निवाई तहसील में चनाणी, राहुली, झिलाय, पराणा, पहाड़ी गाँवों में जैन परिवार अच्छी संख्या में बसे हुये हैं। देवली तहसील में सबसे अधिक दि. जैन समाज देवली कस्बे में ही रहता है । अग्रवाल एवं खण्डेलवाल दि. जैनों के करीब 200 घर है। दो मंदिर हैं। सरावगी समाज में यहाँ एक बार सामूहिक विवाहों का आयोजन हो चुका है । देवली के अतिरिक्त दूनी, राजमहल, नासिरदा, नगर, जैसे गाँवों में जैनों के अच्छी संख्या है। मालपुरा तहसील मे भी जैनों की सघन बस्ती है । स्वयं मालपुरा में दोनों समाजों के करीब 200 परिवार है । नगर में 6 मंदिर हैं, पांच चैत्यालय, एक नशियां, 'तीन धर्मशालायें एवं एक पांडुकशिला है । कुछ मंदिर तो अत्यधिक विशाल हैं । एक मंदिर आदिनाथ स्वामी का है जिसकी अतिशय क्षेत्रों मे गिनती है । भगवान आदिनाध स्वामी की प्राचीन एवं मनोज्ञ प्रतिमा है जिसके दर्शनार्थ प्रतिदिन बाहर से भी सैंकड़ो व्यक्ति आते है । मालपुरा के अतिरिक्त डिग्गी, लाम्बा हरिसिंह, चांदसेन, लावा, पचेवर. पारली में भी जैन समाज की अच्छी स्थिति हैं । पचेवर का जैन समाज अत्यधिक धार्मिक समाज है तथा वहां के युवकों में सामाजिक कार्यों के प्रति पर्याप्त रुचि है। उणियारा (टोंक) में जागीरदारी गांव है। वर्तमान में यहाँ तहसील है। यहां का महावीर स्वामी का मंदिर सरावगियों द्वारा निर्मित है । यहाँ खण्डेलवाल जैन समाज का बाहुल्य है । यहाँ पर वीर निर्वाण संवत् 2487 (सन् 1950 में) एक विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन हो चुका है । टोडारायसिंह रौक जिले का प्राचीन नगर है जो पहिले तक्षक गढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां का आदिनाथ एवं नेमिनाथ का मंदिर विशाल एवं कलापूर्ण है । नेमिनाथ स्वामी के मंदिर को रेण का मंदिर कहा जाता है जहाँ छोटे-छोटे शास्त्र भडार भी हैं । यहाँ भी भट्टारक प्रभाचन्द्र की निधिका है । जिस पर संवत् 1589 का लेख अंकित है। यहाँ पांच मंदिर हैं शहर में तथा एक मंदिर मंडी में है इस तरह कुल 6 जिन मंदिर हैं। जिनमें चार खण्डेलवाल पंचायत व दो अग्रवाल पंचायत की व्यवस्था है । इसके अतिरिक्त यहां के पहाड़ पर एक नशियाँ है Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1357 जो आज भी जैन मंदिर के नाम से जानी जाती है वहाँ एक छतरी की दीवार पर शातिनाथ स्वामी की मूर्ति लगी टोडारायसिंह में जैन समाज के 130 परिवार हैं जिनमें 65 परिवार खंडेलवाल समाज के व65 अग्रवाल जैन समाज के परिवार हैं। 7 घर श्वेताम्बर समाज के भी हैं इनका एक मंदिर भी है। पूरे समाज में धर्म के मामले में मतैक्य है तथा वात्सल्य भाव है । दिगम्बर समाज की यहाँ 3 बड़ी धर्मशालायें हैं जिनमें साधु संघ के ठहरने की पूरी व्यवस्था है । सभी की देवशास्त्र गुरु के प्रति पूरी भक्ति है इसी तरह यहां कितने ही आचार्य संघों के एवं कितनी ही आर्यिका संघ के चातुर्मास हो चुके हैं। यहां के समाज में से 2 मुनिराज, एक आर्थिक एवं : शुल्लक हुये हैं । पहिले यहां श्रावक व्रत पालने वाले 20-21 महानुभाव थे लेकिन वर्तमान में 10 व्रती हैं। खण्डेलवाल समाज के बाकलीवाल (16) पाटनी (11) छाबडा (४) सोनी (5) गोधा (1) चांदवाड (1) अजमेरा (8) कटारिया (3) कासलीवाल (10) साह (1) वैद(3) इस प्रकार कुल 65 परिवार हैं । तहसील में 23 गाँवों में जैन परिवार रहते हैं जिनकी संख्या 78 है तथा 14 गाँवों में मंदिर हैं। मालपुरा नगर में खण्डेला से आने वाला सरावगी समाज चित्तौड़ से यहाँ आकर बस गया था । कासलीवाल गोत्रीय सरावगी परिवार राजस्थान के दूसरे प्रदेशों में यहाँ से ही आगे गये हुये हैं। इस प्रकार पूरा दौंक जिला दिगम्बर जैन समाज का गढ़ है जहां के अधिकांश गाँवों में जैन परिवार मिल जाते हैं। सरावगी समाज में, एवं अग्रवाल जैन समाज में इसी प्रदेश में सामूहिक विवाहों का आयोजन प्रारंभ हो चुका हैं। पूरा क्षेत्र साधुओं की भक्ति में रुचि रखता है इसलिये निवाई, मालपुरा , टौंक, डिग्गी, पचेवर आदि में साधुओं के संघों का विहार हुआ करता है । पुरातत्व की दृष्टि से मालपुरा टोडारायसिंह का क्षेत्र महत्वपूर्ण है। मत्स्य प्रदेश:. मत्स्य प्रदेश में अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली की प्राचीन रियासतें गिनी जाती है। तहसील कोटपूतली में स्थित जोधपुरा, भरतपुर जिले में स्थित नोह तथा अलवर जिले के समीप स्थित बैराठ अब तक की पुरातत्वीय खोज के आधार पर माष्ठ इतिहास कालीन तथा ईसा के 900 वर्ष से 500 वर्ष तक के नगर सिद्ध होते हैं। अलवर प्रदेश में राजौरगढ़, भावगढ,प्राचीन कस्बे हैं जहाँ कभी जैन धर्म का व्यापक प्रभाव रहा था । राजौरगढ़ आठवी शताब्दि में श्रीसम्पत्र नगर था। चारों ओर ऊंचे पर्वतों से घिरा हुआ यह नगर कभी जैन संस्कृति का प्रधान केन्द्र रहा था। यहां आज भी 15 फीट ऊंची दिगम्बर प्रतिमा है जिसे वहां तो नोगजा कहते हैं। राजोरगढ़ के विक्रम संवत् 1798 के एक अन्य लेख के अनुसार प्रसिद्ध शिल्पकार सर्वदेव द्वारा शांतिनाथ के मंदिर का निर्माण हुआ था। सर्वदेव ने इस मंदिर का निर्माण पुलीन्द राजा के आग्रह से किया था इसमें राजा सावर का भी उल्लेख हैं इसमें सर्वदेव के पुत्र बदांग तथा गुरु आचार्य सूरसेन का भी नाम अंकित है । इसी प्रदेश Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 358/ जैन समाज का वृहद् इतिहास का अजबगढ भी सैंकड़ो वर्षों तक जैन साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र रहा। राजस्थान के विभिन्न नगरो में यहाँ से पर्याप्त संख्या में जैन धर्मावलम्बी जाते रहे । इसी ग्राम में सोमसागर के पास एक दीवाल पर जो लेख अंकित है उसमें तालाब में मछली मारने का निषेध किया गया है। . अलवर के समान भरतपुर, करौली, धौलपुर के प्रदेश भी किसी न किसी रूप में जैन संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। इनमें कामॉ, कुम्हेर, बयाना एवं तिजारा में जैन साहित्य का निर्माण एवं लेखन होता रहा। कॉमा नगर के शास्त्र भंडार में 14 वीं शाताब्दि तक की पाण्डुलिपियाँ संग्रहित हैं । बयाना का जैन मंदिर 10 वीं शताब्दि में निर्मित हुआ माना जाता है । इसी तरह कुम्हेर एवं तिजारा के मंदिर हैं जिनमें 16 वीं एवं 17 वी शताब्दि में कितने ही ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ हुई थी। अलवर का भूभाग पहिले जयपुर का ही एक भाग था । यह जिला मत्स्य प्रदेश में गिना जाता है लेकिन जब से राजस्थान प्रदेश बना है इन छोटे-छोटे प्रदेशों का नाम ही विस्मृत होता जा रहा है। अलवर जिले में जैन समाज की जनसंख्या निम्न प्रकार थी वर्ष 1951 वर्ष 1961 वर्ष 1981 9320 5608 10321 अलवर जिले की तिजारा एवं लछमनगढ तहसील को छोड़कर शेष तहसीलों में जैन समाज की सघन बस्ती नहीं है। जिले की प्रमुख जैन जातियों में अग्रवाल, खण्डेलवाल, पल्लीवाल, सैलवाल एवं जैसवाल के नाम उल्लेखनीय है । पल्लीवाल, सैलवाल एवं जैसवाल जातियों की जनसंख्या में कमी के कारण तीनों जातियों में परम्परा में विवाह संबंध होना प्रारंभ हो गया है । इसके अतिरिक्त पल्लीवाल, दिगम्बर जैन एवं श्वेताम्बर जैनों में भी परस्पर विवाह संबंध होते हैं । दि. जैन पल्लीवालों के एक दो घरों में खण्डेलवाल जाति से भी वैवाहिक संबंध हुये हैं। अलवर में खण्डेलवालों के 60 घर, अग्रवाल जैनों के 350 घर, पल्लीवाल, जैसवाल एवं सैलवालों के 300 घर हैं । यहाँ 11 दिगम्बर जैन मंदिर हैं । ओसवालों के 2 मंदिर हैं । यहाँ महावीर जयन्ती का उत्सव अग्रवाल, खण्डेलवाल, पल्लीवाल समाज बारी बारी से मनाते हैं । अलवर में आठ मंदिर.दो चैत्यालय एवं एक नशियाँ है, जिनमें एक दि. जैन खण्डेलवाल मंदिर हलवाई पाड़ा, दि. जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर, बलजी राठोड़ की गली, श्री चन्द्रप्रभु दि. जैन पंचायती मंदिर पल्लीवाल है। 1- राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत - पृ.स.57 2- वही पृ.सं.255 3. विस्तृत विवरण के लिये ..... Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /359 अलवर रियासत में भी जैन दीवान एक के बाद दूसरे रहे। दीवान रामसेवक जी प्रथम दीवान थे महाराजा प्रतापसिंह जी के साथ माचेडी से आये थे। इनके पश्चात् दीवान बख्तावरसिंह, दीवान साहब बगराम जी एवं दीवान बालमुकुन्द जी दीवान हुये। ये सभी दिगम्बर जैन पल्लीवाल थे। दीवान रामचन्द्र सैलवाल थे। बहुत ही योग्य शासक थे । इनको अन्त में फाँसी की सजा दी गई। इनमें दि. जैन खण्डेलवाल मंदिर का विशाल गुम्बज है। अन्दर स्वर्ण का कार्य है। ऐसा लगता है मानों आज ही कार्य किया गया हो। दीवारों पर भित्तिचित्र भी कलापूर्ण है । दि जैन अग्रवाल मंदिर भी विशाल मंदिर है। पूर्व की ओर जो वेदी है उसमे संवत् 1144 पोष ख़ुदी 2 की एक प्रतिमा जो कि प्रतिष्ठित है जिसे जयसेनाचार्य के उपदेश से प्रतिष्ठित की गई थी। जयसेनाचार्य समयसार के तात्पर्यवृत्ति टीका के टीकाकार थे। ये खण्डेलवाल जैन जाति में उत्पन्न हुये थे । अलवर जिले में तिजारा में श्री दि. जैन चन्द्रप्रभु स्वामी का अतिशय क्षेत्र है जिसका उद्भव सन् 1956 में हुआ। जिसने अपने 35 वर्षों के जीवन में ही भारतीय स्तर की ख्याति प्राप्त करली हैं। यहां विशाल मंदिर है। धर्मशालायें हैं तथा यात्रियों की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है । तिजारा ग्राम में सभी अग्रवाल जैनों के ही परिवार हैं। इस जिले में लछमनगढ तहसील में दि. जैनों के अच्छी संख्या में परिवार हैं। लक्ष्मणगढ़, गोविन्दगढ, हामाणा, बड़ौदामेव, कटूमार, खेरलीगंज में खण्डेलवाल जैनों के अच्छी संख्या में घर मिलते हैं। बडोदा मेव में खण्डेलवालों के 45 घर हैं, कठूमर में 10 घर हैं। प्रायः सभी गाँवों में मंदिर है। इस जिले में पहिले सभी पल्लीवाल दि. जैन थे लेकिन श्वेताम्बर साधुओं के प्रभाव से कुछ परिवार श्वेताम्बर धर्म को मानने लगे । इस तरह राजगढ़ में भी खण्डेलवाल जैनों के ही 6 परिवार रहते हैं । भरतपुर एवं धौलपुर पहिले धौलपुर भरतपुर जिले का ही एक भाग था लेकिन सन् 1990 में इसे बाड़ी, बसेड़ी, राजाखेड़ी एवं धौलपुर को मिलाकर एक नया जिला बना लिया गया। सन् 1981 की जनगणना में भरतपुर जिले के जैनों की संख्या 5700 थी जो कामों, नगर, डीग, नदबई, भरतपुर, कुम्हेर, बेर, बयाना, रूपवास, बसेडी, बाड़ी, धौलपुर एवं राजाखेडा नगरों एवं गाँवों में रहती थी। धौलपुर एवं राजाखेड़ा में खण्डेलवाल, अग्रवाल जैनों के अतिरिक्त जैसवाल जैन भी मिलते हैं। लेकिन दोनों ही जिलों में अग्रवाल एवं खण्डेलवाल जैनों की ही प्रमुखता है । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 360/ जैन समाज का वृहद इतिहास यशस्वी समाज सेवी श्री इन्दरमल सोनी चौधरी श्री इन्दरमल पाटनी 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. श्री धन्नालाल छाबड़ा 11. श्री नाथूलाल बज 12. श्री निरंजनलाल छाबड़ा 13. श्री पदमचन्द जैन भौंच 14. श्री प्रेमचन्द कासलीवाल 15. श्री प्रेमचन्द बड़जात्या 16. श्री पारसदास सोनी श्री इन्दरमल बज श्री कन्हैयालाल छाबड़ा श्री कपूरचन्द संघी भयंकर श्री कपूरचन्द एडवोकेट श्री कुन्तीलाल कटारिया श्री चांदमल सौगानी श्री ताराचन्द छाबड़ा 17. श्री फूलचन्द भौसा 18. पं. बसन्त कुमार शास्त्री 19. श्री भंवरलाल सेठी 20. श्री भैरवलाल सेठी 21. श्री भागचन्द एडवोकेट 22. श्री भागचन्द टोंग्या 23. श्री महावीर कुमार पल्लीवाल 24. श्री माणकचन्द छाबड़ा 25. श्री माणकचन्द सौगानी 26. 27. 28. 29 30. श्री रतनलाल जैन पापड़ीवाल श्री रतनलाल बड़जात्या श्री रतनलाल सौगानी श्री राजेन्द्रकुमार पाटनी पं. लाडली प्रसाद पापड़ीवाल 31. श्री सूरजमल कासलीवाल 32. श्री सुरज्ञानीलाल बाकलीवाल 33. श्री सुरेन्द्रमोहन जैन कासलीवाल 35. श्री मोहनलाल जैन पाटनी 36. श्री सौभागमल बड़जात्या 37. श्री स्वरूपचन्द गंगवाल 38. श्री हरकचन्द संघी Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 361 श्री इन्दरमल सोनी चौधरी चौधरो उपनाम से प्रसिद्ध श्री इन्दरमल जी सोनी युवा समाजसेवी हैं। आपका जन्य फाल्गुण बुदी अमावस संवत् 1993 को हुआ | आपके मातापिता दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है । सन् 1953 में आपने मैट्रिक किया और उसी वर्ष आपका सुश्री प्रेमदेवी के साथ विवाह हुआ। आपको एक पुत्र अनिल कुमार एवं चार पुत्रियां संतरा, मंजू, अनिता एवं सुनिता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चारों लड़कियों का विवाह हो चुका है। टौंक में आपके पूर्वजों ने करीब 200 वर्ष पूर्व चौधरियों का दि. जैन मंदिर तथा गृह दैत्यालय का निर्माण करवाया । मुनि योगीन्द्र सागर जी महाराज से रात्रि भोजन त्याग एवं प्रतिदिन देव दर्शन करने का नियम लिया था जिसका अच्छी तरह पालन कर रहे हैं। पता : कन्हैयालाल नाथूलाल जैन कपड़े के व्यापारी,पांचबत्ती टौक । श्री इन्द्रमल जैन पाटनी टोडारायसिंह निवासी श्री इन्द्रमल जैन स्वयं तो उच्च शिक्षित हैं साथ में उनका पूरा परिवार शिक्षा के क्षेत्र में आगे है। तीन अप्रेल सन् 1930 में जन्में श्री इन्द्रमल जी ने एम.ए(राजनीतिशास्त्र एवं हिन्दी),बी.एड. किया है, तथा वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय दतोब (टौंक जिला) में प्रधानाध्यापक के पद से सेवा निवृत्त हो चुके हैं। आपकी पत्नी का नाम दिलभर देवी है 1 आपके दो पुत्र हैं । प्रथम पुत्र श्री अशोककुमार एमबी बी.एस. हैं तथा फतेहगढ़ (अजमेर) में मेडिकल आफीसर हैं। दूसरा पुत्र श्री सुनील कुमार बी ई.ए.जी) है तथा डी.आरड़ी.ए. अजमेर में कनिष्ठ अभियंता है। श्री पाटनी जी सादगी के साथ जीवनयापन करते हैं । संवत् 2011 में आपने अणुव्रत ग्रहण किये तथा देवदर्शन एवं रात्रि भोजन एवं जमीकन्द त्याग का निष्ठा के साथ पालन करते हैं । जून,85 में नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। आपकी एक मात्र पुत्री कान्ता का विवाह हो चुका है। आपकी बड़ी पुत्रवधू स्नेहलता एम.एससी. (जुलोजी) है । छोटी पुत्रवधू अनिता एम.ए.(अंग्रेजी) हैं। आपको माता श्रीमती गुलाबबाई वर्तमान में आर्यिका शांतिमती माताजी है। इनका समाधिमरण अडिन्दा पार्श्वनाथ (उदयपुर) में 25-12-88 को हुआ । आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज के अन्तिम समय में आप आचार्य अजित सागर महाराज के संघ में थीं । आपका जन्म हमीरपुर गांव में अम्बालाल जी बड़जात्या की पुत्री के रूप में हुआ। प्रारंभ से ही आपकी रुचि धार्मिक कार्यों में रही । आपको आर्यिका दीक्षा टोडारायसिंह में संवत् 2028 में मंगसिर बुदी 6 श्री सन्मति सागर जी महाराज द्वारा हुई थी। पता : कोठ्यारी चौक, टोडारायसिंह (टौंक) Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 362/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री इन्द्रमल बज क जैन समाज के प्रमुख समाजसेवी श्री इन्द्रमल जी बज का जन्म संवत् 1991 में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री राजूलाल जी था। लेकिन आप उनके अग्रज दिवंगत घासीलाल जी के दत्तक हो गये। वे लगभग 400 वर्ष की आयु में दिवंगत हुये थे। आपने सन् 1961 में एम.ए. तथा सन् 1962 में बी. एड. किया। आपने अपना जीवन अध्यापक के रूप में प्रारंभ किया । जयपुर में दि. जैन महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल, अग्रवाल कालेज, वीर बालिका विद्यालय तथा बगरू, विचून, जोबनेर, निवाई, दतोब एवं टोंक के राजकीय विद्यालयों में आपने कार्य किया किन्तु उसे अपने अनुकूल नहीं समझ कर छोड़ दिया तथा आप टौंक में वस्त्र व्यवसाय करने लगे। यह आपका टोंक में नवाबी शासन की स्थापना से ही पैतृक व्यवसाय था । आप जयपुर में अपने अमज के इसी व्यवसाय में निरन्तर सहयोग करते रहे थे। इस व्यवसाय में आपको अच्छी सफलता मिली। सन् 1957 में आपका विवाह श्री गुलाबचंद कासलीवाल बॉसी वाले की पुत्री सुश्री रतनदेवी के साथ हुआ जिनसे आपको दो पुत्र और एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ज्येष्ठं पुत्र चन्द्र प्रकाश ने एम.कॉम. तक शिक्षा प्राप्त की । आपका सुश्री सरोज के साथ विवाह हो चुका है जिनसे सन 89 में एक पुत्र और 91 में एक पुत्री ने जन्म लिया है। पुत्री का नाम चन्द्रकला है तथा उसने एम.ए. कर लिया है तथा उनका विवाह महावीर नगर जयपुर में श्री माधोलाल अजमेरा के कनिष्ठतम पुत्र जितेन्द्र कुमार के साथ हुआ है। दूसरे पुत्र ललित कुमार बज ने एम. कॉप किया है। दोनों पुत्र भी वस्त्र व्यवसाय में लगे हुये हैं। बज साहब समाज की प्रत्येक गतिविधि में निष्ठा के साथ भाग लते हैं। आप अच्छे वक्ता हैं । दि. जैन तेरापंथी चन्द्र प्रभु ट्रस्ट, टोंक के आप लगभग 15 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। रामायण, गीता, महाभारत बौद्ध प्रेरक उदाहरणों के साथ आपके जैनेतर समाज में भी व्याख्यान होते रहते हैं। आपकी छोटी बहिन मैना ने टौंक के जैन महिला समाज में सबसे पहले एम.ए. किया है। अब वे इन्दौर में एक उत्साही उद्योगपति श्री राजेन्द्रकुमार जैन की भार्या हैं। बज साहब के बड़े भाई श्री माणकचंद जी बज का जयपुर समाज में प्रतिष्ठित स्थान हैं। पता : जैन कटपीस स्टोर, सुभाष बाजार, टोंक (राज) श्री कन्हैयालाल छाबड़ा टोडारायसिंह के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री कन्हैयालाल जी छाबड़ा वर्तमान में अपना शांतिपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं। 7 मार्च 1922 को आपका जन्म हुआ। मैट्रिक की परीक्षा पास की। राज्य सेवा में चले गये तथा 55 वर्ष की आयु मे सेवानिवृत्त हो गये । आपके पिताजी का नाम मोतीलाल जी एवं मां का नाम एजनबाई था । I आपका विवाह सन् 1942 में सुश्री कंचनदेवी के साथ संपन हुआ। जिनसे आपको दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। बड़ा पुत्र निर्मलकुमार बी.एससी. है। विवाहित है। धर्मपत्नी का नाम मंजुदेवी है। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। तहसील में कनिष्ठ लेखाकार है। दूसरा पुत्र अशोक कुमार एम. काम. है । आपकी पत्नी का नाम बीना है जो वर्तमान में तीन पुत्रों की मां है तथा सैन्ट्रल को आपरेटिव बैंक में कार्य कर रही है। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाब/363 आपके बड़े भाई मोहनलाल जी ने वीर सागर जी महाराज से संवत् 2014 में मुनिदीक्षा ग्रहण की । आपका नाम सन्मति मागर रखा गया । आपका समाधिमरण संवत् 2038 मंगसिर बुदी 14 को उदयपुर में हो गया । आपने अशोक नगर की नशियां में कमरे का निर्माण मुनिश्री सन्मति सागर बी की स्मृति में करवाया था। छाबड़ा जी स्वाध्यायशील हैं । प्रतिदिन मंदिर में शास्त्र प्रवचन करते हैं | श्री दि.जैन नेमिनाथ स्वामी (रेणका) के प्रमुख सदस्य हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं । सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। पता : श्री कन्हैयालाल छाबड़ा,टोडारायसिंह । श्री कपूरचंद संघी लुहाड़िया भयंकर' दिखने में साधु स्वभाव के श्री कपूरचंद जी संघा भयंकर उपनाम से प्रसिद्ध है 1 नवाई समाज के आप बहुत ही निष्ठावान कार्यकर्ता हैं । वर्तमान में आप 58 वर्ष को पार करने वाले हैं । सन् 1950 में आपने मैट्रिक पास किया तथा व्यापार की ओर मुड गये । आपके पिताश्री कस्तूरचंद जी संधी वयोवृद्ध सज्जन हैं । श्री चिरंजीलाल जी आपके बड़े भाई एवं तासचंद जी आपसे छोटे श्री लुहाडिया जो उत्साही समाजसेवी हैं। धार्मिक विचारों से ओतप्रोत हैं । मुनिभक्त है। 25 वर्षों से ब्लाक कांग्रेस कमेटी के महामंत्री है। पता : श्री कपूरचंद संघी मयंकर",मु.पो.निवाई (टोंक) श्री कपूरचंद जैन एडवोकेट (छाबड़ा) श्री कपूरचंद जी का जन्म दि.3-6-1936 में हुआ । इनके पिता का नाम श्री गैंदीलाल । जी एवं माताजी का नाम श्रीमती मोहनी बाई था। दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। ये बी.ए. एल.एल.ली. हैं जो जोधपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। इनके पिता के खास बड़े भाई यानि की इनके दादा श्री मोहनलाल जी जैन ने भाद्रपद शुक्ला 3 सं. 2014 में मुनि दीक्षा जयपुर में ख़ानिया में श्री 108 वीर सागर जी महाराज से महण की । आपका नामकरण श्री 108 सन्मति सागर जी महाराज के नाम से हुआ था। इसके पूर्व आपकी क्षुल्लक दीक्षा टोडारायसिंह में सन् 1954 में श्री 108 वीर सागर जी महाराज द्वारा ही हुई थी। महाराज श्री प्राकृत,उर्दू, अरबी,संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान रहे हैं। 12 वर्ष तक आपने मध्यप्रदेश में विहार किया । अनेक गांवों में विहार करके आपने पूरे गांव वालों को शराव, रात्रि भोजन, मांस भक्षण न करने के संकल्प करवाये । आपका ध्यान सदैव बच्चों को धार्मिक शिक्षा की ओर विशेष था | अतः आपने टोडारायसिंह,मालपुरा व अन्य अनेक स्थानों पर जहां पर भी आपने चातुर्मास किया धार्मिक स्कूल,आवास खुलवाये । आप प्रखर वक्ता,तत्त्वज्ञानी व मृदुभाषी रहे हैं । आपका समाधिमरण उदयपुर शहर में दि.25-11-1981 को पूरे धार्मिक क्रिया के साथ हुआ । आपका जन्म पौष शुक्लापंचमी विक्रम सं.1964 को टोडारायसिंह में हुआ था। Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 364 जैन समाज का वृहद इतिहाग उपलब्धियां : श्री कपूरचंद जैन एडवोकेट का सारा जीवन कड़ी मेहनत, पक्की निष्ठा व सादगीपूर्ण रहा है। पितामह की जल्दी मृत्यु हो जाने के कारण जीवन के उत्तरदायित्व को पूरी तरह संभालना पड़ा ! अत: आपने मैट्रिक की परीक्षा के बाद इन्टर यू.पो.बोर्ड सं व बी.ए. की परीक्षा भागलपुर विश्वविद्यालय से सर्विस करते हुये प्राइवेट परीक्षार्थों के रूप में दी। आपने एल.एल.बो. की परीक्षा भी नगर परिषद जोधपुर में सर्विस करते हुये जोधपुर विश्वविद्यालय में गत्रि कालोन शिक्षा अध्ययन कर प्रथम श्रेणी में। उरोर्ण को । इसके बाद 1917 मे आप मालपुरा में साल वक्रोल के रूप में वकालत कर रहे है । आश्का सारा परिवार धार्मिक परम्पराओं से परिपूर्ण हैं। बचपन से हो आपको दादा स्व. श्री 108 सन्मार मागर जी महाराज के सानिध्य में रहने का मौक “मन्नः । अतः प्रारंभ से ही आपके जीवन में भी धार्मिक संस्कार उत्कीर्ण हो गये। आप व आपका परिवार टोडारायमिह का निवासी है। आपने टोडारायसिंह के अध्यक्ष पद पर रहकर भी सराहनीय कार्य किया है। आप बार एसोसियेशन मालपुरा के 1971-77 में अध्यक्ष रहे हैं। सैन्ट्रल कोआपरेटिव बैंक टौंक के अनेक वर्षों तक संचालक मंडल के सदस्य रहे हैं । टोडारायसिंह खादी समिति के आप फाउण्डर सत्य है। गत : नो से आप गला लागस कलन के अध्यक्ष पद रहते हुये मानवीय मेवाओं में सराहनीय कार्य किया है। आप इस क्लब के सन 1987-४५ में भी अध्यक्ष पद पर सर्वसम्मति से चुने गये। बोडारायसिंह की जैन पाठशाला को ठीक तरह संचालित करने में आपका पूग योगदान रहता है : आपने अपने पितामह व स्व. मान जी की रमृति में धार्मिक पुस्तक श्रावक सुमन संचय का प्रकाशन करवाया है जिसका सम्पादन आर्थिका 105 विशुद्ध नागाजी ने किया है। आप अपन क्षेत्र की हर सामाजिक, राष्ट्रीय गतिविधियो से पूरी तरह जुड़े हुये हैं ! पन' • कमानायग, पोस्ट आफिस के सामने नालपुरा (क) श्री कुन्तीलाल कटारिया राज के प्रसिद्ध कटारिया परिवार में जन्में श्री कुन्तीलाल कटारिया को निवाई जैन समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त है । आप निवाई जैन समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपके पिलाजी श्री गुल्नायबंद जी एवं मानाजी भूरीबाई दोनों का स्वर्गवास हो चुका है । 65 वर्षीय श्री कुन्नीलाल जी को दो पुत्र अशोक एवं सुशील तथा दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त आ है । आप स्वास्तिक आइल इन्डस्ट्रीज निवाई के प्रोप्राइटर हैं । निवाई के प्रमुख व्यवसायी माने जाते है । धार्षिक प्रवृत्ति है। पता - स्वाग्दिरक, आइन इन्डस्ट्रीज (निराई) टोंक श्री चांदमल सौगानी स्व.श्री घासीलाल जी सौगानी के सुपुत्र श्री चांदमल मौगानी का जन्म संवत् 1977 में हुआ । गिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने पिताजी के साथ चांदी सोने का व्यवसाय करने लगे। सन् 1942 में आपका विवाह श्रीमती अनोखी बाई के साथ संपत्र हो गया। आपको चार पुत्रों के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र श्री धनराज Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /365 कोटा में लेखाधिकारी हैं । नाभिराम बैंक सर्विस में हैं । श्री रमेशचन्द इंजीनियर है तथा श्री सुरेशकुमार पत्रकार है । सभी पुत्रों का विवाह हो चुका है। आपने निवाई पंचकल्याणक में प्रतिष्ठा करवाकर शांतिनाथ भगवान की मूर्ति सवाई माधोपुर के तेरहपंथी मंदिर में विराजमान की । सन् 1974 में दो बस लेकर सम्मेदशिखर यात्रा संघ का नेतृत्व किया। अ. क्षेत्र चमत्कार जी के सन् 1968 से ही मंत्री हैं। खण्डेलवाल जैन समाज के मंत्री,दि.जैन पाउशाला के पहिले मंत्री एवं वर्तमान में अध्यक्ष हैं । सर्राफा एसोसियेशन के मंत्री एवं अध्यक्ष दोनों रह चुके हैं । दि. जैन चन्द्रसागर ट्रस्ट की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । दोनों पति पली के शुद्ध खान पान का नियम है । मुनिभक्त हैं । सवाई माधोपुर में आने वाले सभी मुनियों को आहार आदि देने में आगे रहते हैं । सौगानी जी शांतिप्रिय एवं सेवाभावी व्यक्ति हैं। पता : चांदमल सौगानी सर्राफ, सवाई माधोपुर । श्री ताराचंद छाबड़ा छाबड़ा गोत्रीय श्री ताराचंद जी का जन्म 4 जून,1948 को हुआ। आपने सन् 1965 में हायर सैकण्डरी परीक्षा पास की और फिर वस्त्र व्यवसाय में चले गये । उसी वर्ष आपका विवाह हो गया । पत्नी का नाम श्रीमती शांतिदेवी है जिनसे आपको एक पुत्र मनीश कुमार एवं तीन पुत्रियां राजकुमारी,बौना एवं सीमा के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी बच्चे पढ़ रहे हैं। आपके पिताजी श्री धूलचंद जी का स्वर्गवास हो चुका है तथा माता जी चांदबाई का अभी आशीर्वाद मिल रहा है । श्री छाबड़ा जी युवा समाजसेवी हैं तथा वर्तमान में तेरहपंथ दि. जैन ट्रस्ट के उपाध्यक्ष हैं । पता : महावीर चौक, पुरानी टौंक। श्री धन्नालाल छाबड़ा जयपुरिया उपनाम से प्रसिद्ध श्री धन्नालाल जी छाबड़ा का जन्म कार्तिक बुदी 13 संवत् 1987 को हुआ। आपके पिताजी श्री धूलचंद जी का 14 वर्ष पूर्व स्वर्गबास हो चुका है उस समय उनकी आयु 65 वर्ष की थी। माताजी श्रीमती चांदबाई जी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । संवत् 2001 में आपका नानगीदेवी से विवाह हुआ। आप तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों से अलंकृत हैं। सर्व श्री सुगनचंद,सुभाषचंद एवं सुरेन्द्र कुमार तीनों का विवाह हो चुका है तथा वस्त्र व्यवसाय में लगे हुये हैं 1 दोनों पुत्रियों विमला एवं मुत्री भी विवाहित हो चुकी हैं। __ छाबड़ा जी टौंक के तेरहपंथी मंदिर के सदस्य है तथा तेरहपंथी चैत्यालय में प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करते हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं तथा एक बार सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। पत्ता : महावीर चौक, पुरानी टौंक, टौंक । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 366/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री नाथूलाल बज सर्राफा के व्यवसाय में प्रसिद्धि प्राप्त श्री नाथूलाल जी बज सवाई माधोपुर बैन समाज के प्रमुख कार्यकर्ता हैं। आपका जन्म सावन सुदो 3 संवत् 1985 को हुआ । मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् संवत् 2001 में आपका प्रथम विवाह हो गया। लेकिन आप की पहली पत्नी अधिक जीवित नहीं रही और संवत् 2013 में आपका दूसरा विवाह सुश्री कंचनदेवी के साथ हो गया। आपको उनसे पांच पत्रों एवं तीन पत्रियों की प्राप्ति हई। सभी चार पत्रों मोहनलाल, सोहनलाल, नरेश एवं महेश तथा कान्ता,शांति,प्रभा एवं प्रमिला बाई का विवाह हो चुका है । पांचत्र पुत्र दिनेश पढ़ रहा है। आपके पिताजी श्री गुलाबचन्द के स्वर्गवास (सन 19646) के पूर्व माताजी गुलाब बाई का सन् 1945 में ही निधन हो गया था। बज साहब पूर्णतः धार्मिक जीवनयापन करते हैं। शुद्ध खानपान का नियम है । मुनिभक्त हैं। महावीर जी में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हो चुके हैं । सांवला बाबा के मंदिर में आप वेदी निर्माण करा चुके हैं। आर्यिका जिनमती माताजी के समाधि स्थान का निर्माण करवाया था। सामाजिक क्षेत्र की दृष्टि से आप श्यामबाबा मंदिर के अध्यक्ष हैं। चमत्कार जी अतिशय क्षेत्र की कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य हैं। आपके सुपुत्र श्री मोहनलाल जी सर्राफा संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। बज साहब सामाजिक क्षेत्र में अच्छे व्यक्ति माने जाते हैं। पता : नाथूलाल मोहनलाल जैन सर्राफ, सवाई माधोपुर । श्री निरंजनलाल छाबड़ा दिगम्बर जैन पंचायत सवाई माधोपुर के विगत 20 वर्षों से अध्यक्ष पद पर रहने वाले श्री निरंजनलाल छाबड़ा का जन्म पौष बुदी 2 मंगलवार संवत् 1980 में हुआ। आपके पिताजी श्री कस्तूरचन्द जी का स्वर्गवास 30 वर्ष की आयु में सन् 1926 में ही हो गया तथा माताजी श्रीमती कस्तूरबाई का निधन 80 वर्ष की अवस्था में सन् 1984 में हुआ। माताजी के दो प्रतिमायें थी। सामान्य शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् संवत् 2003 में आपका विवाह श्रीमती रतनदेवी से हुआ। जिससे आपको दो पुत्र महावीर कुमार एवं दीपचन्द एवं 6 पुत्रियों की प्राप्ति हुई । पुत्रियों में सुलोचना, मंजू, शशि, त्रिशला का विगह हो चुका है । मुनिभक्त हैं । आचार्य वीरसागर जी महाराज से शुद्ध खान-पान का नियम लिया था। प्रतिदिन पूजा अभिषेक का नियम है । ___ आपके बड़े भाई श्री चिरंजीलाल जो 70 वर्ष के हैं । तीन पुत्रों श्री कमलकुमार चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट, पवनकुमार एम.ए. एवं पदमकुमार बी.ए. से सुशोभित हैं। पता : चिरंजीलाल निरंजनलाल जैन छाबड़ा सर्राफ,सवाई माधोपुर Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पदमचंद जैन भौंच खण्डेलवाल जैन जाति के भौंच गोत्रीय श्री पदमचंद जी का अलवर जैन समाज में विशिष्ट स्थान है। वर्तमान में आप 60 वर्ष पार कर चुके हैं। आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी का स्वर्गवास 16 मई 1968 हुआ था किन्तु आपकी माताजी सुन्दरबाई का आशीर्वाद अभी प्राप्त है। आपका विवाह श्रीमती कस्तूरी देवी से हुआ, जिनसे आपको 5 पुत्र 3 पुत्रियों की प्राप्ति हुई। श्री पदमचंद जी धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति हैं। किशनगढ़ पंचकल्याणक में इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हुये थे । मुनियों के परमभक्त हैं। शुद्ध खान-पान का नियम विमलसागर जी महाराज से लिया एवं आ. शिवसागर जी महाराज को आहार देकर पुण्य प्राप्त किया | आपके पांच पुत्रों में निर्मलकुमार बी.ए. हैं। श्रीमती पुष्पादेवी उनकी पत्नी हैं। दूसरे पुत्र श्री पवनकुमार एम.ए. हैं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती किरण भी एम.ए. हैं। सतीश ने भी एम.ए. कर लिया है। शेष दोनों राकेश एवं नवीन पढ़ रहे हैं । पता : 1 साहजी का चौक, अलवर 2- गुलाब चंद पदमचंद जैन, कृषि मंडी, अलवर राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /367 श्री प्रेमचन्द कासलीवाल श्री प्रेमचंद जैन कासलीवाल मालपुरा क्षेत्र के प्रसिद्ध वकील हैं। आपके पिताजी श्री मांगीलाल जी भी अपने समय के ख्याति प्राप्त वकील एवं समाजसेवी थे। आपकी माता श्रीमती भंवरीबाई का निधन हो गया । आपका जन्म 15 जून 1936 को हुआ। बी.कॉम., एल.एल.बी. करने के पश्चात् आपने वकालात करना प्रारंभ कर दिया । आपका विवाह श्रीमती के साथ हुआ। आपको एक पुत्री एवं तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपकी पुत्री श्रीमती कुसुम जैन बी.ए., एल.एल.बी. है। ज्येष्ठ पुत्र श्री रविकुमार मालपुरा में एडवोकेट है। श्री राकेश कुमार एम.बी.बी.एस. डाक्टर है तथा श्री जिनेन्द्र कुमार बी.एससी., एल. एल. बी. है। श्री कासलीवाल जी जनता पार्टी में हैं। सन् 1977 में 86 तक मालपुरा नगर जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं तथा टौंक जिला कार्यकारिणी के सदस्य हैं। मालपुरा नगरपालिका में सन् 1973 से 77 तक चेयरमैन रहे आप गतिशील कार्यकर्ता एवं समाजसेवी हैं। आपके बड़े भाई श्री भानुकुमार जी जैन डिस्ट्रिक्ट जज रह चुके हैं। पता मालपुरा, जिला टौंक " श्री प्रेमचंद बड़जात्या बिलासपुरिया आपके पूर्वज बिलासपुर गांव से आने के कारण बिलासपुरिया उपनाम से प्रसिद्ध श्री प्रेमचंद जी बड़जात्या का जन्म 10 अगस्त, 1933 को हुआ ! आपके पिता श्री चिमनलाल जी का 50 वर्ष की आयु में संवत् 2001 में स्वर्गवास हुआ था | माताजी श्रीमती चौथी बाई का निधन 82 वर्ष की आयु में हुआ । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 368/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सन् 1953 में आपका विवाह श्रीमती तारादेवी के साथ संपन हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्र पवन, प्रवीण एवं महावीर तथा एक पुत्री वंदना की प्राप्ति हुई। कुमारी वंदना का विवाह हो चुका हैं। तीनों पुत्र पढ़ रहे हैं। बड़जात्या जी वर्तमान में दि. जैन तेरापंथी चन्द्रप्रभु मंदिर के अध्यक्ष हैं 1 युवा कार्यकर्ता हैं। राज्य सेवा में हैं तथा तहसील टोंक में भू-अभिलेख निरीक्षक हैं। पता महावीर जनरल स्टोर, पुरानी टौंक, टौंक N श्री पारसदास सोनी टौक स्थित सोनियों के मंदिर के प्रमुख कार्यकर्ता श्री पारसदास सोनी का जन्म भादवा सुदी 14 संवत् 1975 में हुआ । आपके पिताजी श्री मांगीलाल जी थे जिनका 45 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। माता जी तो आपको 1 महिने का हो छोड़ कर स्वर्ग चली गई 115 वर्ष की आयु में आपका विवाह भंवरबाई से हो गया। आपको चार पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी पुत्र सर्व श्री कैलाशचंद जी, धनराज जी, रमेशचंद जी एवं पदमचंद तथा पुत्रियां शांति बाई, सुशीला बाई, कमला बाई एवं मैना बाई सभी का विवाह हो चुका है। मैना बाई ने एम.ए. किया है। टौंक स्थित सोनियों का मंदिर आपके पूर्वजों बनाया हुआ है। शुद्ध गान का नियम ले रखा है। मुनियों के लिये आहार की व्यवस्था करने में निपुण हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं सभी तीर्थों को वंदना कर चुके हैं। पता - माणक चौक, पुरानी टौंक १ श्री फूलचंद भौंसा दिगम्बर जैन समाज में वयो वृद्ध श्री फूलचंद भैंसा का जन्म सावण त्रुदी अष्टभी संवत् 1971 में हुआ। आपके पिताश्री मोतीलाल जी का स्वर्गवास 85 वर्ष की अवस्था में संवत् 2017 में हुआ तथा माताजी कपूरी बाई उनके पूर्व ही संवत् 20000 में चल बसी । बम्बई परीक्षालय को विशारद पास करने के पश्चात् आप चांदी सोने का व्यवसाय करने लगे जिसमें आपको अच्छी सफलता मिली। आपके तीन विवाह हुये। अंतिम विवाह संवत् 2002 में शांति बाई के साथ हुआ । श्री पारस सुपुत्र श्री फूलचंद भीमा आपको चार पुत्र अर्जित कुमार, पारस कुमार, निर्मल कुमार एवं प्रवीण कुमार एवं मैना, मनोरमा, गुणमाला एवं सुलोचना के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । श्री फूलचंद जी सामाजिक व्यक्ति हैं। तेरहपंथी मंदिर के अध्यक्ष हैं। शुद्ध खानपान का नियम है। मुनियों की भक्ति में तथा उनकी आहार आदि से सेवा सुश्रूषा करने में आगे रहते । उत्तर भारत के सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। पता : फूलचंद अजितकुमार जैन सर्राफ, सवाई माधोपुर Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /369 श्री बसन्तकुमार जैन शास्त्री (बोहरा) माता-पिता का नाम - पिता स्व.श्री कस्तूरचंद जैन, माता स्व. गुलाब देवी जैन (वती रही,वृत्ती अवस्था में स्वर्गवास) जन्म दिनांक - 21-2-35 ई. शिक्षा- राजकीय इन्टर कामर्स,धार्मिक शास्त्री,एजे पी.एच. व्यवसाय - सर्विस परिवार के अन्य सदस्यों का नाम व उनका सामान्य परिचयः पत्नी श्रीमती विमला जैन (चाकसू के सुप्रसिद्ध बड़जात्या परिवार की पुत्री) पांच पुत्र एक पुत्र विवाहित, पुत्रवधू बनेठा के प्रसिद्ध पांड्या परिवार की पुत्री,चार अध्ययनरत । एक भाई,भाई की पत्नी एवं इनके तीन पुत्र,सभी धार्मिक विचार के । सात्विक खानपान एवं सादा रहन-सहन। जीवन की उपलब्धियां : 1- सन् 1967 में जापान एवं सिंगापुर की यात्रा । बौद्ध भिक्षुओं से टोकियो में भ. महावीर एवं बौद्ध कालीन चर्चायें। श्रीमती विमला बैनधए श्री. बसन्त कुमार बोहरा 2- सम्पर्क में आये सज्जनों एवं माता बहिनों के हृदय में धार्मिक विचारों का संचार करना तथा युवा वर्ग को सन्मार्ग पर लाना । मुनि वर्ग में विशेषतया आचार्यवर वीरसागर जी, आचार्यवर शिवसागर जी एवं आचार्यवर धर्मसागर जी तथा आचार्य कल्प श्रुतसागर जी महाराज के सानिध्य का विशेष सुयोग प्राप्त। 3. उत्तर प्रदेश जिला शाहजहांपुर के खुदागंज कस्बे के 20 वैष्णव अग्रवाल परिवारों को दिगम्बर जैन बनाकर जैन मंदिर की स्थापना कराई गई । 16 जुलाई, 1983 ईस्वी । 4- सभी तीर्थ क्षेत्रों की यात्रायें की । पूर्ण भारत भ्रमण किया। 5. चार धार्मिक उपन्यास लिखे,तीन सामाजिक नाटक लिखे, पूजन,भजन कविताओं की रचना की तथा अखबारों में लेख आदि प्रकाशित हुने । 6- राजनैतिक गतिविधियों में भाग लिया। श्री बसन्तकुमार जी अत्यधिक विनयी एवं मधुरभाषी है । धार्मिक प्रवृत्तियों में भाग लेते रहते हैं । पता - बसन्त निवास शिवाड़ जिला-सवाई माधोपुर, राज) Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 370/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री भंवरलाल दोशी टौंक निवासी श्री भंवरलाल दोशी का संवत् 1968 में जन्म हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वस्त्र व्यवसाय करने लगे। आपके पिता श्री कंवरीलाल जी एवं माता पाना बाई का बहुत पहिले स्वर्गवास हुआ था। संवत् 1987 में आपका विवाह मोतिया वाई से हुआ था जिनका 7 वर्ष पूर्व निधन हो गया । आप चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं । आपके प्रथम तीन पुत्र श्री टीकमचंद, श्री रतनलाल एवं श्री राजमल बी.ए. बी.एड, हैं तथा अध्यापक हैं । चतुर्थ पुत्र श्री बसन्तीलाल एम.एससी., पीएचड़ी. हैं तथा भूसंरक्षण अधिकारी हैं । श्री दोशी जी सोनियों के मंदिर के पंच थे। आप डाहहा तुर्की माम के मंदिर के मुखिया रहे थे तथा एक कुई बनवाकर मंदिर के लिये एवं गांव के लिये पानी की व्यवस्था की थी। तीर्थ यात्रा प्रेमी है। एक बार सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं । आपके बड़े पिताजी श्री गौरीलाल जी ब्रह्मचारी त्यागी थे। पता: भंवरलाल टीकमचंद जैन दोशी,माणक चौक, टौंक (राज) पं.भैरवलाल सेठी वीर पुस्तक भंडार श्री महावीर जी के प्रोप्राइटर पं. भैरवलाल सेठी का जन्म 29 दिसम्बर सन् 1914 को हुआ। सन् 1935 में आपने कलकत्ता से न्यायतीर्थ की परीक्षा पास की। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के आप शिष्य रहे हैं। इसी वर्ष आपका विवाह श्रीमती राजकुमारी से हो गया लेकिन 1953 में 40 वर्ष की आयु में ही उनका देहान्त हो गया । आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन दुर्भाग्य से 4 जुलाई सन् 1984 को एक मात्र पुत्र का पी देहान्त हो गया। आपके 2 पौत्र हैं दोनों ही पढ़ रहे हैं। सेठीजी उत्साही समाजसेवी हैं । सन् 1955 से 1976 तक ग्राम पंचायत श्री महावीर जी के उपसरपंच रह चुके हैं। मुनिभक्त है। आचार्य सूर्यसागर जी एवं आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के अधिक निकट रहे हैं । दि.जैन पंचायत श्री महावीर जी के संस्थापक अध्यक्ष,आदर्श महिला विद्यालय श्री महावीरजी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपने अपना जीवन अध्यापक की लाइन से प्रारंभ किया और फिर पुस्तक विक्रय करने लगे। आपने नवीन महावीर कीर्तन का संपादन किया है जिसका 12 वां संस्करण छप गया है। सेठी जी सीधे-सादे एवं सरल स्वभावी हैं । झगडों से दूर रहते हैं। श्री महावीर क्षेत्र के विशिष्ट महानुभाव हैं। पता : वीर पुस्तक भंडार,श्री महावीरजी Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /371 श्री भागचन्द जैन, एडवोकेट विक्षिसागर जी महा बिलाला गोत्रीय श्री भागचन्द जी जैन राजस्थान के प्रसिद्ध समाज सेवी एडवोकेट हैं । वे जुझारू प्रकृति एवम् प्रगतिशील विचारों के हैं। आप राजस्थान एवम् टौंक जिले की । अनेक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपका जन्म पोष बुदी 1 बुधवार सम्वत् 1992 को निवाई कस्बे में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री कपरचन्द जी एवम माताजी श्रीमती कंचन देवी हैं । पाता जी का स्वर्गवास इनके वाल्यकाल में ही हो चुका है । सन् 1952 में आपका विवाह सुश्री लाड देवी के साथ ग्राम रजवास में सम्पन्न हुआ। आपने एम.ए, एल.एल.बी. की शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् वकालत प्रारम्भ की और उसमें पर्याप्त सफलता प्राप्त की। श्री भागचन्द जी सपत्नीक सभी तीर्थों को वन्दना दो बार कर चुके हैं तथा पक्के धार्मिक विचारों के हैं। राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यों में अग्रणी आप उत्साही एवम कर्मठ व्यक्तित्व के धनी हैं। आप राजस्थान विश्वविद्यालय के सन् 1983 से सन् 1988 तक सीनेटर रहे हैं । महावीर इन्टरनेशनल टोंक के कार्याध्यक्ष एवम् मन्त्री रह चुके हैं। महावीर मात शिशु कल्याण केन्द्र टोंक एवम् अस्पताल धर्मशाला टोंक एवम् महावीर पार्क टोंक का निर्माण आपके संयोजकत्व में हुआ है। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव समिति एवम् तीर्थ वन्दना रथ प्रवर्तन समिति के टोंक जिले के मंत्री रहे तथा स्वर्ण पदक से सम्मानित हुये हैं । दिगम्बर जैन परिषद् ,भारत वर्षीय दिगम्बर जैन महासमिति एनम राजस्थान समिति की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । टैगोर बाल शिक्षण समिति टोंक जिला के सचिव हैं । लायन्स क्लब टौंक के अध्यक्ष रहे हैं। राजस्थान दिगम्बर जैन सामूहिक विवाह समिति के आप अध्यक्ष हैं । प्रारम्भ से ही आप कांपेस की विचारधारा के है और गत 240 वर्ष से जिले के महामन्त्री हैं । अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा एवम् परिश्रम से आप प्रत्येक सामाजिक एवम् धार्मिक कार्य में पूरा योगदान देते व नेतृत्व करते रहे हैं। श्री भागचंद टोंग्या निवाई के प्रसिद्ध टोंग्या परिवार में जन्में श्रीमागचंद जी टोंग्याको समाज में विशिष्ट म्यान प्राप्त है। आपके पिताजी श्री जीवणलाल जी टोंग्या भी अपने समय के समाज प्रमुख थे तथा अपनी सेवा, उदारता एवं सहयोग की भावना के लिये ख्याति प्राप्त थे । प्रस्तुत पुस्तक के .. लेखक पर उनका महज स्नेह रहा । इनका स्वर्गवास दि. 12 मई,78 को हुआ था। आपकी माताजी नाथी बाई का भी स्वर्गवास हो चुका है। अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रहे श्री भागचंद जी अपने पिता की गति में वृद्धि कर रहे हैं। आपका जन्म भादवा सुदी 13 संवत् 1990 को हुआ । मैटिक पास करने के पश्चात आप व्यापार की ओर चले गये । संवत् 2006 ज्येष्ठ सुदी ! को आपका विवाह किशनगढ़ मदनगंज की सुश्री पतासी देवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको एक पुत्र तथा चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पुत्र देवेन्द्र कुमार बी.ए. हैं तथा कोटा में ट्रांसपोर्ट का कार्य करते हैं । वह कोटा ट्रक आपरेटर्स यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं इनके एक सुपुत्र चि. अमन एवम एक सपत्री सौ.राशी टोया है। श्री देवेन्द्र कमार की शादी जयपर निवासी मप्रसिद्ध समाजसेवी स्व.भागचंद जी अजमेरा की सुपुत्रो सौ.उर्मिला से हुआ है । सभी पुत्रियों विमला,शिमला,उर्मिला एवं मीना का विवाह हो चुका है। Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 372/ जैन समाज का वहद इतिहास टोंग्या जी के चार भाई सर्व श्री गूजरमल जी,उमरावमल जी, ताराचंद जी एवं महेन्द्रकुमार जी हैं। सभी भाई स्वतंत्र व्यवसाय में लगे हुये हैं । आपकी एक मात्र बहिन शांतिदेवी है जिनका विवाह प्रसिद्ध समाजसेवी श्री रूपचंद जी कटारिया देहली के साथ हुआ है। आपके पिताश्री पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में प्रमुख बोलियां लेते रहते थे । टोंग्या जी पदमपुरा तीर्थक्षेत्र कमेटी के सदस्य है तथा इसके पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं । निवाई की सभी जैन संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं। पता : जीवणलाल देवेन्द्र कुमार जैन बी-12, नई धानमंडी, निवाई श्री महावीर प्रसाद जैन पल्लीवाल अलवर निवासी श्री महावीर प्रसाद जैन कर्मठ कार्यकर्ता एवं समाजसेवी हैं तथा पल्लीवाल दि. जैन समाज के प्रमुख माने जाते हैं । आपका जन्म 10 जुलाई 1921 को हुआ। पैट्रिक एवं साहित्य सुधाकर पास करने के पश्चात् आप पुलिस सेवा में चले गये और अन्त में सन् 1982 में पुलिस उपनिरीक्षक के पद से सेवा निवृत्त हुये। अपने सेवाकाल में आपने एक बार 319 किग्रा. अफीम पकड़ी जो विश्व का एक रिकार्ड है। सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती गिरजादेवी के साथ हुआ जिनका सन 1986 में निधन हो गया। आपको एक पुत्र प्रमोदकुमार जैन एवं एक पुत्री मिथलेश जैन के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जैन साहब स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं तथ्या सन् 1942 में एवं मत् 1945 में दो बार जेल यात्रा कर चुके हैं । इस उपलक्ष में । भारत सरकार द्वारा सन् 1984-85 में लखनऊ में शाल ओढा कर एवं बैज देकर सम्मानित किया था। एक बार आपने बुंदेलखंड की पदयात्रा की थी। आफ्ने पुलिस सेवा से संबंधित पुस्तकें लिखी हैं और उनका प्रकाशन कराया है । आपने पल्लीवाल जैन जाति के इतिहास को डा. अनिल कुमार से लिखवा कर प्रकाशित किया। पता : 332 स्कीम नं.]। अलवर (राज) श्री माणकचन्द छाबड़ा सवाईमाधोपुर के श्री माणकचन्द छाबड़ा सर्राफा का व्यवसाय करते हैं। आपका जन्म फाल्गुण सुदो 2 संवत् 1981 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप चांदी । सोने के व्यवसाय में चले गये । आपके पिताजी श्री लक्ष्मीचन्द जी का स्वर्गवास सन् 1970 में हो गया तथा इसके 4 वर्ष पूर्व पाताजी श्रीमती आनन्दी बाई की छत्रछाया उठ गई। 10 वर्ष की अवस्था में ही आपका विवाह श्रीमतों दाखा बाई के साश्य कर दिया गया । आप दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । ज्येष्ठ पुत्र श्री चन्द्रप्रकाश एक्सरे मशीन तथा छोटा पुत्र श्री रमेशचन्द वी कॉम. है तथा मेडिकल स्टोर चलाते हैं । पुत्री मनोरमा का विवाह हो चुका है। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /373 श्री छाबड़ा जी धार्मिक प्रवृत्ति वाले हैं। शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनि भक्त हैं । साधुओं को आहार देने में रुचि रखते हैं । श्री चन्द्रसागर स्मृति ट्रस्ट के मंत्री हैं । सर्राफा एसोसियेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। चन्द्रसागर स्मारक ट्रस्ट में नवीन वेदी का निर्माण करवाकर चन्द्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी। अग्रवाल जैन नशियां में भी बेदी निर्माण करवाकर महावीर स्वामी की मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । शांति वीर नगर में धर्मनाथ स्वामी की वेदी बनवाकर उसमें धर्मनाथ स्वामी को प्रतिमा विराजमान करवाई। नगरपालिका (सन् 1955) में सदस्य रहे । दि.जैन वाचनालय के अध्यक्ष रह चुके हैं। नगर कांग्रेस के सक्रिय सदस्य हैं। आपके पुत्र श्री चन्द्रप्रकाश जी युवा कांग्रेस के अध्यक्ष युके हैं : अ.३.क.ल वारसा नी हैं। सफा संघ के उपाध्यक्ष एवं कार्यकारिणी सदस्य रह चुके हैं। सामाजिक सेवा में आगे रहते हैं । चमत्कार क्षेत्र में मंत्री रह चुके हैं। पता : लक्ष्मीचन्द माणकचन्द सर्राफ, सवाई माधोपुर (राज) श्री माणकचंद सौगानी सौगानी परिवार में दि.4 जनवरी 1922 को जन्में श्री माणकचंद जी सौगानी टौंक के प्रतिष्ठित समाजसेवी हैं । आपके पिताजी श्री माधोलाल जी का 82 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ जबकि माताजी 25 वर्ष की आयु में ही चल बसी । आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त की और सर्राफी का धन्धा कर लिया। वर्तमान में आप सौगानी आइल मिल के मालिक हैं । सन् 1938 में आपका सुश्री नजर बाई से विवाह हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं चार पुत्रियों की प्राप्ति हुई । सबसे बड़े पुत्र श्री रतनलाल 44 वर्ष के होंगे। उनके दो पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं तथा अपना अलग व्यवसाय कर रहे हैं । द्वितीय पुत्र श्री प्रकाशचन्द बी कॉम, है 42 वर्ष की आयु है तथा . ... दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं । तृतीय पुत्र श्री हुकमचंद वी कॉम है 3 बच्चों के पिता हैं । दोनों भाई मिल का कार्य देखते हैं। श्री सौगानी जी की सभी पांच पुत्रियों,मुन्ना, शकुन्तला,उषा,मंजु,रेणु का विवाह हो चुका है । मंजु एवं रेणु ने बी.ए. कर लिया है। आपकी पत्नी धर्मपरायण है। एक बार अष्टान्हिका का उपवास कर चुकी हैं। दौंक के प्रसिद्ध श्याम बाबा मंदिर के व्यवस्थापक है तथा उसी मंदिर में प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं । दक्षिण भारत को छोड़ सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं । रौंक नगरपालिका के सन् 1950 से 62 तक सदस्य रह चुके हैं। पता : सोगानी आइल मिल, सुभाष बाजार,टोक श्री रतनलाल जैन पापड़ीवाल एक जनवरी सन् 1942 को जन्में श्री रतनलाल जैन का टैकं जिले के समाजसेवियों में विशिष्ट स्थान है । आपके पिता श्री बालचंद जी एवं माता श्रीमती जानकीदेवी दोनों ही अपने गांव नासिरदा विराजते हैं। आपने एम.ए. (अंग्रेजी) बी एड किया तथा राज्य सेवा में अध्यापक पद पर कार्य करने लगे । वर्तमान में आपका प्रधानाध्यापक के पद पर राजस्थान लोकसेवा आयोग द्वारा चयन हो चुका है। Pribe E Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 374/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपकी पत्नी का नाम श्रीमती सूरजदेवी है। जिनसे आपको दो पुत्र सुभाष एवं राकेश तथा एक पुत्री ममता की प्राप्ति हो चुकी है। आपके तीन भाई श्री मोतीलाल, चेतनकुमार एवं प्रकाशचंद और हैं। पापड़ीवाल जी समाज से कुरीतियों के उन्मूलन का विशेष प्रयास करते रहते हैं। सबको सहयोग देने वाले सुत्रक हैं । पता : ग्राम नासिरदा तहसील देवली (टक) श्री रतनलाल बड़जात्या बिलासपुरिया बिलासपुरिया उपनाम से प्रसिद्ध श्री रतनलाल जी बड़जात्या का जन्म भादवा सुदी 8 संवत् 1982 को हुआ। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी का 47 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया था तथा माताजी श्रीमती चाहूबाई का सन् 1981 में निधन हो गया। आप अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके और छोटी आयु में ही लेन-देन तथा तेल मिल का कार्य देखने लगे 19 वर्ष की आयु में ही आपका विवाह हो गया। आपकी पत्नी दाखा बाई ने तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों को जन्म दिया । पुत्रों में श्री राजेन्द्र कुमार 465 वर्ष के हैं। तेल मिल का कार्य संभालते हैं। दूसरे पुत्र रवीन्द्र कुमार बी.ए. एल.एल.बो. हैं | इन्कम टैक्स के वकोल हैं। दोनों भाईयों का विवाह हो चुका है। तीसरे पुत्र श्री महेश कुमार ने एम.कॉम. कर लिया है तथा मोटर पार्ट्स का कार्य देखते हैं। आपकी तीन पुत्रियों में से सुश्री चन्द्रा एवं इंदिरा का विवाह हो चुका है। मंजू बी.ए. में पढ़ रही हैं। सन् 1980 में आपकी पत्नी श्रीमती दाखा बाई का कैंसर से दुःखद निधन हो गया। श्री रतनलाल जी श्री चन्द्रप्रभु दि. जैन ट्रस्ट तेरापंथ समाज के पांच वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके है। समाज के सभी कार्यों में आगे रहते हैं तथा समर्पण की भावना से कार्य करते हैं। प्रमुख तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। पता - शबील साह की चौकी के सामने बड़ा कुआ, टॉक श्री रतनलाल सोगानी पचेवर के सौगानी परिवार में पौष शुक्ला 11 सं. 1982 को जन्मे श्री रतनलाल जी का जैन समाज में विशिष्ट स्थान है। आपके पिताजी श्री सुवालाल जी सप्तम प्रतिमा के धारी थे। उन्होंने यह व्रत आचार्य ज्ञान सागरजी महाराज से लिया था। आपका देहावसान माघ शुक्ला 5 संवत् 2036 को रात्रि के समय पंच परमेष्ठी का स्मरण करते हुये समाधिमरण पूर्वक हुआ था। आपके पांच पुत्र हैं। रतनलाल जी सबसे बड़े हैं। मोहनलाल जी, शांतिकुमार जी, चेतनकुमार जी एवं टीकमचंद जी व्यापार एवं राजकीय सेवा में है। श्रीमती ऐजन देवी माता जी रतनलाल जी सोगानी 01 श्री रतनलाल जी ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। आपका विवाह सुवाबाई के साथ संपन हुआ। आपको चार पुत्र सर्व श्री हेमन्तकुमार, राजकुमार, राजेश कुमार एवं अनिल कुमार तथा 4 पुत्रियाँ प्रेमबाई, स्नेहलता, मंजूलता एवं मैनाबाई के पिता होने का गौरव प्राप्त है। हेमन्त कुमार Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/375 जो बैंक सर्विस में हैं शेष तीनों पुत्र अपना अपना व्यवसाय करते हैं । सौगानी जी की पुत्रा मनाबाई प्रस्तुत इतिहास लेखक की पुत्रवधू है। __ अपने अपने जीवन में 2 बार शिखर जी एवं अन्य तीर्थों की वंदना की है। दो बार सिद्ध चक्र मंडल विधान,संपत्र करा चुके हैं। दुटु में आयोजित इन्द्र ध्वजमंडल विधान में इन्द्रइन्द्राणी के पद को सुशोभित किया था। प्रतिदि करने का नियम है । अभी दो वर्ष पूर्व ही पति पत्नी ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया है। अपने पूज्य पिताजी की स्मृति में मंदिर जी में वेदी का निर्माण करवा कर उसकी प्रतिष्ठा करवाने का यशस्वी कार्य किया है। सौगानी जी सरल एवं सादा जीवनयापन करते हैं। धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हैं। पता- पु.पो. पचेवर रटौंक) राज. श्री रमेश कुमार जैन जन्म 21-6-1960 पिता - श्री सुवालाल जी जैन बोरखण्डिया माता - श्रीमती पुष्पा । देवी जन्म स्थान - ग्राम आबां जिला टोंक । आवां राष्ट्रीय राजमार्ग सं.12 पर टोंक से दवली के बीच सरोली मोड़ से 12 कि.मी. दूर है। यहां पर श्री शान्तिनाथ दि.जैन अतिशय क्षेत्र है। गर्भ गृह में भगवान शांतिनाथ की तीन हाथ अंची पद्मासन प्रतिमा बड़ी मनोज्ञ व अतिशययुक्त धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी जैन सुपुत्री श्री लालचन्द जी जैन बावरिया (सर्राफ) हैं। बड़े भ्राता श्री धर्मचन्द जी,श्री प्रकाश चन्द (C.A.), सुरेश चन्द एवं मानोज कुमार जैन हैं । सुपुत्र - रीतेश जैन एवं सुपुत्री रीतिका बैन हैं। शिक्षा - एम.ए.(राजनीति शास्त्र) 1983, एवं जैन शिक्षा छ: ढाला तक । अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता - श्री शान्तिनाथ जयन्ती स्मारिका वर्ष 1988 का सम्पादन, श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन बाल मण्डल आवां के अध्यक्ष (1981) संरक्षक (1988) सम्पूर्ण परिजन अत्यन्त सेवाभावी व धर्मनिष्ठ है। आतिथ्य प्रेमी हैं। श्री जैन बहुत ही धर्मनिष्ठ एवं सेवाभावी हैं। वर्तमान में दूरसंचार विभाग,जयपुर में कार्यरत हैं,प्रतिदिन भगवान की सेवा पूजा का नियम है । श्री राजेन्द्र कुमार पाटनी अ.हीरालाल जी पाटनी के परिवार में जन्मे श्री राजेन्द्र कुमार जी पाटनी को समाज सेवा का व्रत विरासत में प्राप्त हुआ। आपके पिताजी श्री बालचंद पाटनी का सन् 1981 में 72 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था। अभी आपको माताजी श्रीमती मनफूल देवी का आशीर्वाद प्राप्त है । 1 जुलाई, 1964 में आपका विवाह शांति देवी से हुआ। आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । पुत्र कमलेश कुमार मैट्रिक पास करने के पश्चात् व्यवसाय में आपको सहयोग दे आपके चाचाजी ब्र. हीरालाल जी का स्वर्गवास सन् 1979 में हुआ था । श्री राजेन्द्रकुमार जी कांग्रेस आई के सदस्य हैं तथा निवाई नगर पालिका में सन् 1974 से 79 तक तथा 1982 से 8 तक सदस्य रहे । नगरपालिका के प्रशासन समिति के भी Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 376/ जैन समाज का वृहद इतिहास राज आप सदस्य रहे । कृषि उपज मंडी में व्यापारियों की ओर से प्रतिनिधि हैं । निवाई के दि.जैन बड़ा मंदिर के सन् 1981 से अध्यक्ष हैं । आपकी माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों की सेवा करने में आपका परिवार निवाई का प्रमुख परिवार पाना जाता है | निवाई लायन्स क्लब के संस्थापक एवं अध्यक्ष रह चुके हैं । खण्डेलवाल सामूहिक विवाह समिति के आप प्रमुख कार्यकर्ता हैं। आपके पिताजी ने आनन्दपुर कालू में नव मंदिर बनवाकर उसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई थी। पता: बालचंद राजेन्द्र कुमार पाटनी, निवाई (टोंक) पं. लाड़लीप्रसाद जैन पापड़ीवाल वेदी प्रतिष्ठा, विधान,विवाह संस्कार आदि क्रियाओं में दक्ष पं. लाइलोप्रसाद जी पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में भी सहयोगी प्रतिष्ठाचार्य का कार्य करने लगे हैं। मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज आपके संस्कार गुरु एवं ब.प्रतिष्ठाचार्य सूरजमल जी बाबाजी आपके धर्मगुरु है । लेकिन आपने स्वाध्याय के बल पर ज्ञानार्जन किया है और उसी का फल है कि वर्तमान में आप विधान कराने वाले पंडितों की प्रथम पंक्ति में आ गये हैं। आपका जन्म मंगसिर कृष्णा 11 सं. 1977 को मंडावरा कोटा में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपको व्यवसाय में जाना पड़ा। 10 वर्ष की अवस्था में आप अपने चाचा के गोद आ गये। आपका विवाह श्रीमती निर्मला देवी के साथ हो गया। आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । ज्येष्ठ पुत्र विमलप्रकाश जी एवं तीसरे पुत्र राजेन्द्रकुमार दोनों बैंक सर्विस में हैं । द्वितीय पुत्र वीरेन्द्र वस्त्र व्यवसायी है। आप समाजसेवी हैं । अ.विश्व जैन मिशन, सिद्धान्त संरक्षिणी सभा 'शास्त्री परिषद' विद्वत परिषद, दि. जैन महासभा चन्द्रसागर स्मृति ट्रस्ट सभी से जुड़े हुये हैं। देश के विभिन्न नगरों एवं गांवों में वेदी प्रतिष्ठा एवं विधान आदि करा चुके हैं। पहिले आप जयपुर राज्य प्रजामंडल के सक्रिय सदस्य रहे हैं । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं जनसंघ के भी सक्रिय सदस्य रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं जनसंघ के भी सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके हैं । कितने ही स्थानों से आप सम्मानित हो चुके हैं तथा धर्म प्रभावक, समाजरत्न, वाणी भूषण, प्रतिष्ठा भूषण, प्रतिष्ठाचार्य आदि उपाधियों से सम्मानित हो चुके हैं। जैन पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं । सवाई माधोपुर के दि.जैन मंदिर दीवाण जी में आदिनाथ भगवान की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान कर चुके हैं। पं.लाड़लीप्रसाद जी मधुर पाषी एवं शान्त प्रकृति के पंडित हैं। पता: पं.लाड़सीप्रसाद जैन पापड़ीवाल नवीन” सवाई माधोपुर पापड़ीदाल पवन,सवाई माधोपुर (राजस्थान) पिन 322029 Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/377 श्री सूरजमल कासलीवाल (भसावड़ी) दिगम्बर जैन समाज सवाई माधोपुर के अध्यक्ष श्री सूरजमल कासलीवाल चांदी सोने के व्यापारी हैं। आप कट्टर मुनि थक्त हैं। शुद्ध खान-पान का नियम लिया हुआ है। साधुओं को आहार देने में आगे रहते हैं। आपने सवाई माधोपुर में ही श्री चन्द्रसागर दिगम्बर जैन विद्यालय भवन निर्माण का यशस्वी कार्य किया है। कासलीवाल जी का जन्म माह सुदी 7 संवत् 1980 को हुआ। आपके पिताजी का . स्वर्गवास सन् 1931 में 42 वर्ष की आयु में हो गया था । आपकी माताजी वर्तमान में 90 वर्ष की हैं। जो समाज में सबसे बड़ी हैं। आपका विवाह सुश्री लक्ष्मीदेवी के साथ संवत् 2013में मंगसिर महिने में हुआ । आप 6 पुत्रों एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं । पुत्रों में श्री मोहनलाल, नेमिचन्द,रमेशचन्द एवं ओमप्रकाश सभी ग्रेज्यूएट है। शेष पुत्र भागचन्द,राजेन्द्र एवं सुश्री मीना कुमारी पढ़ रही है। आप इस वक्त करीबन 10 साल से दि.जैन समाज के अध्यक्ष पद पर हैं व श्री दि.जैन चन्द्र सागर विद्यालय के भी अध्यक्ष हैं। श्री कासलीवाल जी सामाजिक व्यक्ति है इसलिये सामाजिक कार्यों में पूरा योगदान देते हैं। पता : सूरजमल, मोहनलाल जैन सर्राफ, सवाई माधोपुर श्री सुरज्ञानीलाल बाकलीवाल बाकलीवाल परिवार में दि. 1 जुलाई सन् 1950 को जन्में श्री सुरशानीलाल जी टोडारायसिंह के प्रमुख युवा समाजसेवी हैं। आप के पिताजी श्री मोहनलालजी सर्राफी का व्यवसाय करते थे । आपकी माता का नाम श्रीमती मनफूलदेवी है । आप टी डी.सी.द्वितीय वर्ष तक पढ़ने के बाद वस्त्र व्यवसाय में चले गये । जिसमें आपको अच्छी सफलता मिल रही है। आपका विवाह सुश्री कमला देवी के साथ दि.20 नवम्बर 71 को संपन्न हुआ जिनसे आपको दो पुत्र अविनाश एवं सुमित तथा एक पुत्री मेनका का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। । आपकी माताजी ने धर्मशाला के चैत्यालय में दो प्रतिमायें विराजमान की हैं। आपके पिताजी . नगर परिषद टोडारायसिंह में उपाध्यक्ष पद पररहे । आप स्वयं पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर के मंत्री ___ आप सहित 5 भाई है । सबसे बड़े महेन्द्र कुमार जी 48 वर्ष के हैं। तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं । पत्नी का नाम चमेली देवी हैं । सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं। दूसरे बड़े भाई पदमचंद जी सर्राफी का कार्य करते हैं । तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । पली का नाप कंचनदेवी है । आपके छोटे भाई वीरकुमार राज्यसेवा में हैं। सबसे छोटा अनिलकुमार पंचायत सर्विस में है। आपके पिताजी तीन भाई हैं। रतनलाल जी, मोहनलाल जी एवं गूजरमल जी । श्री रतनलाल जी ने बघेरा के मंदिर में फर्श एवं नवीन वेदी का निर्माण करवाकर जीर्णोद्धार करवाया । आपके चाचाजी गूजरमल जी ने मुनि चारित्र सागर जी की स्मृति में टोडारायसिंह में सन 6 में सत्तरी का निर्माण करवाकर उनके चरण स्थापित किये । आपके चाचा सुगनचंद जी बाकलीवाल Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 378 जैन समाज का बृहद् इतिहास आचार्य निर्मलसागर जी से दीक्षा लेकर तीन वर्ष तक मुनि रहे । मुनि चारित्र सागर कहलाये। उनका समाधिमरण सन् 1975 में हुआ था। पता - मु.पो. टोडारायसिंह (टौंक) राज. श्री सुरेन्द्रमोहन जैन कासलीवाल नगरपालिका पालपुरा के सन 1982 से निरन्तर सदस्य रहने वाले श्री सुरेन्द्रमोहन जी कामलीवाल की टोंक जिले के प्रमुख वकीलों में गणना की जाती है । समाज के वे बहुत ही गतिशील कार्यकर्ता हैं । आप जिला महामंत्री जनता दल (दि) संयोजक भगवान महावीर हैल्थ सोसायटी,संरक्षक श्री जैन नवयुवक मण्डल मालपुरा,संरक्षक खुदरा विक्रेता संघ अध्यक्ष लघु उद्योग संघ मालपुरा, महामंत्री दि.जैन महासमिति एवं शांति समिति मालपुरा आदि विभिन्न संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं। आपका जन्म 30-6-47 को दौंक जिले के पालपुरा में हुआ। आपके पिताजी श्री मोहनलाल जो कासलीवाल कार्यालय अधीक्षक,जिलाधीश पाली से सन् 1975 में सेवानिवृत्त होकर शांत एवं धार्मिक जीवन जी रहे हैं । आपकी माताजी चांदबाई पुराने विचारों की महिला है। सन् 1967 में आपका विवाह सुश्री विद्या जैन से हुआ आपके छोटे चार भाई और हैं, जिनमें सर्व श्री डा. नरेन्द्र मोहन जी एम.डी. है तथा एस.एम.एस. मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, आपने सन 1972 में एम.बी.बी.एस. तथा 1985 में एड डी.किया है,श्री राजेन्द्र मोहन जैन चार्टर्ड अकाउन्टेण्ट हैं,वर्तमान में वाईस प्रेसीडेंट मार्डन ऐड रोयल के पद पर कार्यरत हैं । श्री देवेन्द्र मोहन जी जैन एमई(पी.एच) हैं तथा पी.एचई डॉ.जयपुर में सहायक अभियन्ता हैं तथा श्री जितेन्द्र मोहन जी जैन राजस्थान हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं। श्री सुरेन्द्र मोहन जैन मालपुरा क्षेत्र में सर्वत्र प्रसिद्ध हैं, सक्रिय नेता हैं तथा युवा वकील हैं । पता: कासलीवाल सदन, जैन मोहल्ला,मालपुरा (राज) - 304502 श्री सोहनलाल जैन पाटनी सामाजिक कार्यों में आगे रहने वाले श्री सोहनलाल जी पाटनी निवाई जैन समाज के प्रमुख समाजसेवी हैं । निवाई नगरपालिका के 4 वर्ष तक सदस्य रहे तथा उसमें स्वास्थ्य सफाई समिति एवं भवन निर्माण समिति के संयोजक थे। भारतीय जनता पार्टी के क्रियाशील सदस्य हैं। नगर की सभी सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं तथा उनमें सक्रिय होकर भाग लेते हैं। भगवान महावीर के. 250(3 वां निर्वाण महोत्सव में प्रशंसनीय कार्य किया । शुद्ध खानपान का नियम लिया हुआ है । मुनिराजों को आहार देने में आगे रहते हैं । समाज सुधारक हैं । अभी आपने अपने पुत्र राजेन्द्र कुमार की सगाई एवं विवाह केवल 15 घंटों में करके यशस्वी कार्य किया । आपका जन्य कार्मिक शुक्ला 4 संवत् 1990 को हुआ । हाईस्कूल, साहित्य विशारद एवं धर्म विशारद पास करने के पश्चात् आपका विवाह फाल्गुण शुक्ला अष्टमी संवत् 2005 में उमरावदेवी के साथ हो गया । जिनसे आपको 6 पुत्र एवं 6 पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । आपके छ: पुत्रों में श्री सुरेश,महेन्द्र एवं राजेन्द्र का तथा दो पुत्रियां भंवरबाई एवं शांतिबाई का विवाह हो चुका है । सभी पुत्र आपको व्यापार में सहयोग देते हैं। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /379 ___ आपके पिताजी श्री लोडूलाल जी एवं माता एजनदेवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। आपके डीजल इंजन. माटर मशीनरी पार्ट्स का व्यवसाय है। पत्ता : वार्ड नं.11 मकान नं.197 निवाई (टौंक) श्री सौभागमल बड़जात्या बिलासपुरिया बिलासरमा उपनान में प्रसि श्री सोपानमत जी बड़जात्या के पुत्र श्री पारसमल बड़जात्या 54 वर्ष के है तथा कपड़े की दुकान करते हैं। सौभामल जी तेरहपंथी नशियांजी मंदिर में पूजा अभिषेक करते हैं उसी मंदिर (नशिया) में पारसमल जी भी जाते सौभागमल जी के तीन पुत्रियां श्रीमती सुशीला,शकुन्तला एवं तारादेवी हैं। तीनों ही विवाहित | " T हैं। __ आपके एक मात्र पुत्र पारसमल जी ने इन्टरमीजियेट तक शिक्षा प्राप्त की। आपके । 7 पुत्र कमलचंद,विमलकुमार,खेमचंद,इन्दरमल, संजयकुमार, गजेन्द्रकुमार एवं प्रकाशचंद्र हैं। इनमें विमलकुमार राज.बैंक सेवा में हैं। आपकी एक मात्र पुत्री सुशीलादेवी का विवाह हो चुका है। आपने तेरहपंथी नशियां में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी । यात्राओं में विशेष रुचि लेते हैं । 2-3 बार सभी यात्रायें कर ली है। मुनिपक्त है । मुनिराजों को आहार देने में गहरी रुचि रखते हैं। पता :- फूलचंद सौभागमल वस्त्र व्यवसायी,सुभाष बाजार,ौंक । श्री स्वरूपचंद गंगवाल सर्राफ मालपुरा के वयोवृद्ध एवं प्रतिष्ठित समाज नेता श्री स्वरूपचंद गंगवाल विशाल व्यक्तित्व के धनी है। आपके पिता श्री सूरजमल जी पहिले सिराणा (अजमेर) रहते थे वहां से किशनगढ आये और आप किशनगढ से मालपुरा आकर रहने लगे। आपकी माताजी श्रीमती चायदेवी का 15 वर्ष पूर्व ही निधन हो गया। आपका जन्म 4 जून, 1919 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप सर्राफी का व्यवसाय करने लगे 1 संवत् 2004 में आपका बादाम बाई के साथ विवाह हुआ । आपके एक मात्र पुत्र पदमचन्द का जन्म 26 नवम्बर को हुआ। उसकी पली का नाम कंचनदेवी है। केचनदेवी चार पुत्रों,प्रदीपकुमार, अमेन्द्र कुमार, जितेन्द्र कुमार एवं मनोजकुमार की मां है । आपके दो भाई मदनलाल जी,एवं नरेशचंद जी किशनगढ़ मदनगंज में रहते हैं तथा चांदी सोने के व्यापारी हैं। श्री स्वरूपचंद जी मालपुरा नगरपालिका के 7 वर्ष तक सदस्य रहे । कुछ समय तक आप चेयरमैन भी रहे । मालपुरा के प्रसिद्ध आदिनाथ स्वामी के मंदिर की कार्यकारिणी सदस्य हैं। सभी प्रमुख तीर्थो पदमपुरा, चाँदखेड़ी जम्बूस्वामी, सोनागिर, चम्पापुर भागलपुर,पावापुर, नयनागिरी, गुणावा, पारसपुर,छतरपुर एवं देवगढ़ में स्थायी पूजन के सदस्य,महासभा के सक्रिय सदस्य हैं। पहिले खंडेलवाल जैन महासभा के सदस्य रहे । पुरानी एवं नई पीढी के पंडितों के खूब संपर्क में रहे। आचार्य Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 380/ जैन समाज का वृहद इतिहास शांतिसागर जी महाराज एवं चन्द्रसागर जी महाराज के संघ की खूब सेवा की थी । पहिले कर्मठ कांग्रेसी सदस्य थे लेकिन अब जनतापार्टी में हैं । सन् 1952 में किशनगढ से स्व. जयनारायण व्यास के विरुद्ध निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा । कट्टर मुनिभक्त हैं । आ. सूर्यसागर जी,आचार्य शांतिसागर जी (छांणी) आ. ज्ञानसागर जी,विद्यासागर जी की खूब सेवा की। आपके पिताजी खण्डेलवाल महासभा के सक्रिय सदस्य थे। आपने मंगलकलश प्रवर्तन, धर्मचक्र, ज्ञानज्योति आदि को खूब सहयोग दिया। पता : स्वरूपचंद सर्राफ,मालपुरा (टौंक) श्री हरकचन्द संघी दोशी संघीजी के उपनाम से प्रसिद्ध श्री हरकचन्द जी दिगम्बर जैन खण्डेलवाल है तथा दोशी आपका गोत्र है। आपका जन्म कार्तिक बदी 6 संवत 1994 को हआ। आपके माता-पिता दोनों का ही काफी समय पूर्व स्वर्गवास हो गया । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 16 वर्ष की अवस्था में ही आपका विवाह सुश्री कमला देवी के साथ संपन्न हुआ। लेकिन दो पुत्र महेन्द्र कुमार एवं राजेन्द्र कुमार तथा चार पुत्रियों सुश्री मैना, सज्जन,त्रिशला एवं शकुन्तला को जन्म देने एवं विवाह सूत्र में बांधने के पश्चात् दिनांक 7 मार्च 19841 को आपका स्वर्गवास हो गया। श्री महेन्द्रकुमार खादी भंडार में कार्य करते हैं तथा राजेन्द्र कुमार सर्राफी का ही व्यवसाय करते । जी की दुर खान का हिना मात लाग्ने : मुभर हैं रमा पंजीकृत दि.जैन समाज सवाई माधोपुर के अध्यक्ष हैं । चमत्कारजी क्षेत्र पर भगवान शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं। अपने पूर्वजों के समान आप भी तीर्थयात्रा प्रेमी हैं । चमत्कार जी क्षेत्र के उपमंत्री हैं तथा जैन चन्द्रसागर ट्रस्ट के सदस्य हैं। पता - माधोलाल हरकचन्द जैन सर्राफ, सवाई माधोपुर । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 381 हाडौती प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी हाडौती प्रदेश का इतिहास पूर्व इतिहास :- हाडौती प्रदेश राजस्थान का एक प्रमुख प्रदेश है । राजस्थान का कोटा,बूंदी एवं झालावाड़ का सम्मिलित प्रदेश हाती देश कहलाता है। प्रदेश की डी ालवा की सीमाओं से मिलने के कारण यहां की प्रत्येक सांस्कृतिक एवं साहिरियक गतिविधियों पर एक दूसरे का बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस प्रदेश के बारां, नैणत्रा, बंदी, केशोरायपाटन,कोषवर्धन (शेरपुर), श्री नगर, अटरू,बिलाप,खानपुर, जैसे प्राचीन सांस्कृतिक केन्द्र रहे हैं तथा जिन्होंने सारे देश को प्रभावित किया है। बारां नगर में आचार्य पद्मनंदि ने आठवीं शताब्दि में जम्बूद्वीप पण्णति की रचना की थी। उम सभय बारा जैन धर्मानुयायियों एवं मंदिरों से परिपूर्ण था । शक्तिकुमार वहाँ का शासक था । बारां नगर उस समय मूलसंघ के भट्टारकों का प्रमुरत केन्द्र था । शेरगढ़ में 11 वीं शताब्दी में किसी क्षत्रिय द्वारा प्रतिष्ठित तीन विशाल प्रतिमायें हैं । रायगढ़ के समीप ही पहाड़ियों में उत्कीर्ण जैन गफायें हैं। इन गफाओं में जैन साध निवास करते थे । इन्हीं गफाओं के आसपास तीर्थकरों की मूर्तियां भी उकेरी हुई हैं। इसी नगर में मलसंघ की भडारक गादी की स्थापना सन 1083 में माषचन्द्र द्वितीय ने स्थापित की थी। अटरू भी हाडौती प्रदेश का प्रमुख सांस्कृतिक नगर था। यहाँ के रेल्वे स्टेशन के पास ही आज भी जैन मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। कहते हैं एक मूर्ति तो आज भी वहां उपलब्ध होती है। यहां दो जैन मंदिर हैं जिनका निर्माण 12 वीं, 15वीं शताब्दि में हुआ था। इसी तरह अटरू से 12 मील आगे कृष्णा बिलास नगर में जैन संस्कृति के प्राचीन अवशेष उपलब्ध होते हैं। जिन्हें विद्वानों ने आठवीं से 12 वीं शताब्दी तक का स्वीकार किया है। इसी तरह कोटा से 25 मील की दूरी पर स्थित शाह बाद के निकट जैन मंदिर के अवशेष बिखरे पड़े हैं। खानपुर के निकट चांदखेड़ी का प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। यहां के मंदिर को प्रतिष्ठा संवत् 1745 में हुई थी और वहां का प्रतिष्ठा महोत्सव स्वयं कोटा निवासियों की अगुवाई में हुआ था। चांदखेड़ी में विशाल जैन मंदिर है और उसमें विशाल मूर्ति विराजमान है, यह प्रतिष्ठा महोत्सव कृष्णदास बघरेवाल ने कराई थी। प्रतिष्ठा महोत्सव आमेर गादी के तत्कालीन भजगत्कीर्ति द्वारा कराई गई थी। कोटा नगर के विभिन्न जैन मंदिरों में 12 वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियां बिराजमान हैं। जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाडौती का यह भाग जैन धर्म की दृष्टि से पर्याप्त रूप से प्राचीन है। बूंदी हाडौती का ही एक भाग है और जैन धर्म की दृष्टि से यह प्रदेश सैंकड़ो वर्षों तक हाडौती प्रदेश का प्रमुख केन्द्र बना रहा । यहां के पास में ही स्थित केशोरायपाटन इस प्रदेश का प्राचीनतम स्थान है जिसमें जैनाचार्य नेमिचन्द ने वर्षों तक Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 384/ जैन समाज का वृहद् इतिहास घर,खरोवाद में 3 घर एवं सांगोद में 5 घर हैं जबकि सांगोद में बघेरवाल जैन समाज के 40 घर हैं । सभी गांवों में एक-एक मदिर बारां : जैसाकि प्रारंभ में कहा गया है बारां नगर जैनाचार्यों का प्रमुख केन्द्र रहा था । शहर के बाहर नशियां में आचार्य पद्यनंदि के चरण चिन्ह हैं । इन्होंने जम्बूद्वीप प्रशस्ति की यहीं पर ठहर कर रचना की थी। बारां नगर में वर्तमान में दिगम्बर जैनों के 100 घर हैं जिनमें खण्डेलवाल जैनों के हाथ अग्रवाल जैनों के 3th घर शेष बघेरवाल.श्रीमाल.परवार जाति के घर है। यहां 2 मंदिर एवं 2 नशियां हैं। बूंदी जिला: बूंदी :- बूंदी हाडौती प्रदेश का प्राचीनतम नगर है तथा उसका मुख्यालय है । बूंदी पहिले रियासत थी लेकिन अब यह राजस्थान का एक जिला मात्र है । इस जिले में चार तहसीलें हैं जिनके नाम बूंदी,नैणवां,हिण्डोली एवं कैशोरायपाटन हैं। इन चारों तहसीलों में 735 प्राम एवं नगर हैं । सन् 1971 की जनगणना में जहाँ बूंदी जिले की जनसंख्या करीब चार लाख थी वहीं सन् 1981 की जनगणना में वहां की संख्या 586982 हो गई है जिससे पता चलता है कि इस जिले की उपजाऊ जमीन होने के कारण वहां के निवासी विकासशील हैं । बूंदी जिले में खण्डेलवाल,बघेरवाल,अपवालों के अतिरिक्त श्रीमाल जाति के भी परिवार मिलते हैं। इस जिले में 90 से भी अधिक ग्राम एवं नगरों में जैन परिवार मिलते हैं इनमें 35 ऐसे ग्राम हैं जिनमें जैन घर हैं लेकिन मंदिर नहीं हैं। कुछ गांवों में पांच से भी अधिक परिवार होने पर भी मंदिर नहीं होने के कारण वहां के जैन बन्धुओं को दर्शन लाभ नहीं होता है। नैणवां तहसील जैन धर्म, संस्कृति एतं साहित्य की दृष्टि से नैणवां तहसील सबसे महत्वपूर्ण तहसील है जिसके 23 गांवों एवं कस्बों में दिगम्बर जैन परिवार एवं मंदिर मिलते हैं । इनमें नैणवां के अतिरिक्त बासी.दुगारी,देई,दाहुन करवर सूसा, आजरदा जैसे कस्बों के नाम उल्लेखनीय हैं । नैणवा नगर में 1.30 से अधिक दिगम्बर जैन परिवार हैं । जिनमें खण्डेलवाल के 2-2 घर अग्रवाल 81 घर,बघेरवाल 23 घर,श्रीमालों के 4 घर हैं । आठ मंदिर तथा चैत्यालय हैं । नैणवां के विभिन्न नाम मिलते हैं जिनमें नैणवाहपत्तन, नयनपुर,लोचनपुर एवं चक्षुपुर के नाम उल्लेखनीय हैं । नैणवां के मंदिरों में पुरातत्त्व की विशाल एवं महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है । जिसका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है - श्री दिगम्बर जैन मंदिर बघेरवाल (ठोला) इस मंदिर में 12 वीं-13 वीं शताब्दी की प्रतिमायें विराजमान हैं । नेमिनाथ स्वामी की संवत् 1202, शांतिनाथ स्वामी की संवत् 1219 एवं पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति पर संवत् 1217 के लेख अंकित हैं। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /385 दिगम्बर जैन मंदिर संधियों में भी 12 वीं-13वीं शताब्दी की प्रतिमाओं के दर्शन किये जा सकते हैं। भगवान अनन्तनाथ स्वामी की एक पद्मासन प्रतिमा पर संवत 1147......अमृतनाथ" का लेख अंकित है। इसी तरह एक दूसरी वेदी में संवत् 12072 में प्रतिष्ठापित श्याम पााण की पद्मासन मूर्ति के दर्शन किये जा सकते हैं। संघियों का मंदिर नैणवां नगर का प्राचीनतम् मंदिर है । निज मंदिर के प्रवेश द्वार पर बहुत से सुन्दर एवं कलापूर्ण भाव अंकित हैं। मंदिर के अन्दर संवत् 1109 का लेख अंकित है जिससे यह प्रतीत होता है कि इस मंदिर का निर्माण इसी संवत् में हुआ था। नैणवां के श्मशान के पास जो निषेधिकायें मिलती हैं उनमें पुरातत्व एवं इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है। इन निषेधिकाओं का निर्माण 11 वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी तक होता रहा है। खुले आकाश में वर्षा, धूप से पीड़ित एवं असामाजिक तत्वों द्वारा खंडित ये निषेधिकायें अपने पुराने वैभव एवं नैणवां के सांस्कृतिक जागृति की प्रतीक है। नगर के शेष दिगम्बर जैन मंदिरों के नाम निम्न प्रकार हैं: 1- श्री दिगम्बर जैन मंदिर बघेरवालों का 2- श्री दिगम्बर जैन मंदिर सवाई रामजी का 3- श्री दिगम्बर जैन मंदिर अग्रवालों का 4. श्री दिगम्बर जैन मंदिर पार्श्वनाथ चैत्यालय 5-श्री दिगम्बर जैन मंदिर मल्लासाहजी (तेरहपंथियों का) 6- श्री दिगम्बर जैन मंदिर चन्द्रप्रभु स्वामी (नशियां) इन मंदिरों में बघेरवालों के मंदिर में संवत् 1145 तक की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। मुख्य वेदी में भगवान शांतिनाश्च की संवत् 1202 में प्रतिष्ठित मूर्ति है जो आचार्य श्री सगरसेन से धर्कट जाति के वाणिक महिंद सुत जान्हा द्वारा विराजमान कराई थी। इसी मंदिर के तिबारे में व नौचोकी वेदी में एक प्रतिमा संवत् 12009 में प्रतिष्ठित हुई थी। भगवान महावीर की संवत् 1228 में प्रतिष्ठित प्रतिमा भी मनोहारी है। नैणवां नगर प्रारंभ से ही धर्मप्राण नगर रहा है । वर्तमान में आचार्य सूर्यसागर जी महाराज के शिष्य स्व. मुनि जयसागर जी महाराज भी इसी नगर में पैदा हुये थे। तहसील बूंदी बूंदी तहसील में 26 गांवों में जैन परिवार मिलते हैं तथा वहां मंदिर भी बने हुये हैं। तहसील में तालेड़ा,नोताड़ा,डाबी, सीलोर एवं देवपुरा में 10 से अधिक जैन घर हैं । सीलोर एवं तालेड़ा में दो-दो मंदिर है शेष सभी गांवों में एक-एक मंदिर है | खटकड़ में प्राचीन मंदिर हैं । एक वेदी में 3 प्रतिमायें विराजमान हैं । भगवान पार्श्वनाथ की मूलनायक प्रतिमा है जिस पर संवत् Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 386 / जैन समाज का वृहद् इतिहास 1548 का जीवराज पापड़ीवाल का लेख अंकित है। वर्तमान के गांवों, उनके मंदिरों की संख्या तथा वहां रहने वाले जैन परिवारों की संख्या निम्न प्रकार है लेकिन इन गांवों के अधिकांश परिवार शहरों में आकर रहने लगे हैं गांव उजड़ रहे हैं और वहां मन्दिरों की भी शोचनीय स्थिति हो गई है। बूंदी तहसील में दि. जैन बघेरवाल समाज अच्छी संख्या में मिलता है। लेकिन बूंदी शहर में खण्डेलवालों के 100 घर, बघेरवालों के 60 घर, श्रीभालों के 20 घर एवं अमवालों के 10 घर हैं। यहाँ मंदिर एवं चैत्यालयों की संख्या 13 है। बूंदी तहसील के 26 गांवों में 28 मंदिर हैं। | तहसील हिण्डोली तहसील हिण्डोली में 16 गांवों में दिगम्बर जैन घर मिलते हैं उनमें अलोद, बड़ा नया गांव, हिण्डोली एवं गोठडा में जैनों की संख्या अच्छी है तथा शेष गांवों में नाममात्र के घर हैं लेकिन सभी गांवों में दिगम्बर जैन मंदिर हैं। 16 गांवों में कुल 18 मंदिर हँ t दबलाना ग्राम के मंदिर में स्थित शास्त्र भंडार अत्यधिक महत्वपूर्ण शास्त्र भंडार है जिसमें 400 से अधिक पाण्डुलिपियां संपति हैं। यहां के शास्त्र भंडार को लेखक ने पं. अनूपचन्द जी के साथ देखा था तथा ग्रंथों की सूची भी तैयार की थी जो राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूची पंचम भाग में प्रकाशित हो चुकी है। यहां के शास्त्र भंडार में काव्य, चरित्र, कथा, रास, व्याकरण, आयुर्वेद एवं ज्योतिष विषयक ग्रंथों का अच्छा संग्रह मिलता है। यहां के शास्त्र भंडार में नैणवां, इन्दरगढ़, गोठडा, जयपुर, जोधपुर एवं सागवाड़ा में लिपि किये हुये ग्रंथों के दर्शन होते हैं जो इस गांव के जैन समाज के साहित्यिक प्रेम का द्योतक है। बूंदी में रचित साह लोहट के यशोधर चरित की पाण्डुलिपि भी यहाँ मिलती है। सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि षडावश्यक बालावबोध की है जिसकी प्रतिलिपि संवत 1521 में उज्जयिनी में हुई थी। सिंहासन बत्तीसी संवत् 1611 एवं माधवानल काम कंदला चौपाई (संवत् 1714) की पाण्डुलिपियां भी उल्लेखनीय हैं। केशोरायपाटन तहसील बूंदी जिले की केशोरायपाटन भी एक तहसील है। तहसील के अन्तर्गत 15 गाँवों एवं कस्बों में जैन बस्ती है जिनमें लाखेरी एवं कापरेन में अच्छी बस्ती है। लाखेरी वैसे सीमेन्ट उद्योग के लिये प्रसिद्ध है। पुरातत्व एवं प्राचीनता की दृष्टि से केशोरायपाटन के पश्चात् गैंडोली का मल्लाहसाह का दिगम्बर जैन मंदिर प्राचीन मंदिर है जो अपने पुराने वैभव की याद दिलाता है । मंदिर में पाषाण पर तीन चौबीसी की मूर्तियां दर्शन करने योग्य हैं जिनको मल्लाहसाह ने कितनी श्रद्धा के साथ प्रतिष्ठापित किया था। मंदिर की छत पर चार कोनों पर चार छतरियां है। मंदिर के पीछे हरा भरा पहाड़ है जो प्राकृतिक सुरम्यता को प्रस्तुत करता है । यहाँ एक मंदिर और है जो अब खंडहर बना हुआ है। यहाँ के निवासियों के अनुसार यह मंदिर दो हजार वर्ष पुराना है । इस तहसील के 15 गाँवों एवं कस्बों में कुल 19 मंदिर हैं । झालावाड़ जिला झालावाड : संवत् 1853 में महाराजा झालासिंह द्वारा बसाया गया झालावाड झालरापाटन का ही एक भाग है जिसमें अधिकांश परिवार झालरापाटन से ही शनै-शनै जाकर बस गये। झालावाड़ वर्तमान में जिला मुख्यालय हैं तथा उन सभी सुविधाओं से युक्त है जो स्टेट की राजधानी एवं वर्तमान में जिला मुख्यालय को मिलती है। यहाँ जैन समाज के निम्न प्रकार Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /387 परिवार हैं: खण्डेलवाल अग्रवाल जैसवाल बघेरवाल हूंबड पोरवाल 15 12 5 यहां 2 मंदिर एवं एक चैत्यालय है । झालावाड़ तहसील में 13 गाँवों में जैनों की बस्ती है । खानपुर तहसील में खानपुर, सरोला,हरीगढ़ चितावा,धानोटा,पतावर सभी में यबेरवाल जैन समाज के ही प्रमुख रूप से परिवार हैं। सबसे अधिक संख्या खानपुर में है वहाँ उसके 30 परिवार हैं। खानपुर में दि.जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेडी है जहां के विशाल मंदिर में भगवान आदिनाथ को अद्वितीय पद्मासन प्रतिमा है । प्रतिमा गेहुये वर्ण की है जो संवत् 512 की प्रतिष्ठित है । चांदखेडी के मंदिर का निर्माण संवत् 1746 में पूर्ण हुआ जब यहां किशनदास क्षेरवाल द्वारा विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ था । यह प्रतिष्ठा समारोह राजस्थान की प्रमुख प्रतिष्ठा समारोहों में गिनी जाती है । झालावाड़ जिले में पिडावा नगर में भी दि.जैनों की अच्छी बस्ती है जिसमें जैसवाल जैनों के सबसे अधिक परिवार हैं। मंदिर है तथा यहां के जैनों में धार्मिक भावना अधिक रूप में देखी जा सकती है। इस जिले में अकलेरा,बबानी,मनोहरथाना,डग,गंगधार,पंचपहाड की और तहसीलें हैं । सन् 1981 की जनगणना के अनुसार जैन परिवारों की निम्न प्रकार स्थिति थीखानपुर 1001 झालरापाटन तहसील 1743 झालावाड़ 412 झालरापाटन 1037 अकलेरा तहसील - 441 पंचपहाड़ तहसील 1849 अकलेरा शहर 136 भवानी मंडी 6103 पिडावा तहसील - 2194 सुनेल . 62 पिडावा शहर 1276 गंगधार तहसील 1764 भवानी मंडी व्यापारिक सेन्टर है। यहाँ 85 जैन परिवार रहते हैं जिनकी जातियों के अनुसार संख निम्न प्रकार है : खण्डेलवाल अग्रवाल बघेरवाल हूंबड जैसवाल श्रीमाल परवार 25 25 2 25 1 4 मध्यप्रदेश के समीप होने के कारण यहां परवार जाति के भी परिवार है। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 388 / जैन समाज का वृहद् इतिहास समाज सेवी 1. श्री उत्तमचन्द निरखी श्रीलाल सलामता 3. श्री कस्तूरचन्द गंगवाल 4. श्री कुलदीप कोठारी 5. श्री केशरीमल गंगवाल 6. डा. कैलाशचन्द्र सेठी 7. श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी 8. श्री चांदमल पाटनी ७. श्री 10. श्री टीकमचन्द सेठी जयकुमार जैन एडवोकेट 11. डा. ताराचन्द पांड्या 12. श्री त्रिलोकचन्द पाटोदी 13. श्री धर्मप्रकाश कोठारी 14. श्री नेमीचन्द चांदवाड़ 15. श्री नेमीचन्द रांका 16. श्री पत्रालाल सेठी 17. श्री पदमचन्द जैन राटनी 18. श्री पदमकुमार टांग्या 19. श्री प्रकाशचन्द पांड्या 20. श्री प्रतापचन्द रांवका 21. श्री बाबूलाल 22. श्री फूलचन्द सोगानी 23. श्री मदनमोहन बाकलीवाल 24. श्री महावीर कुमार 25. श्री महावीर प्रसाद जैन अजमेरा 26. श्री माणकचन्द पाटनी 27. श्री माणकचन्द सेठी 28. श्री मोतीलाल टोंग्या 29. श्री मुकेश कुमार विका 30. श्री पवन कुमार पाटोदी 31. श्री रतनकुमार बज 32. श्री ब्र. राजमल कासलीवाल 33. श्री राजमल लुहाड़िया 34. श्रीमती लाडदेवी कोठारी 35. श्री वीरेन्द्र कुमार पाटनी 36. श्री शांतिकुमार बड़जात्या 37. श्री सुनील कोठारी 38. श्री हुकमचन्द्र Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /389 श्री त्रिलोकचन्द कोठारी; जैन समाज के वरिष्ठतम नेताओं एवं समाजसेवियों में श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी को विशेष स्थान प्राप्त हैं। जब से कोठारी जी ने दि. जैन महासभा के महामंत्री का पद स्वीकार किया है तथा लगातार 10-12 वर्षों तक उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पश्चिम तक विभिन्न प्रदेशों में जाकर समाज को जोड़ा है तथा स्वयं उससे जुड़े हैं उनके व्यक्तित्व का अखिल भारतीय स्वरूप हो गया है। अब कोटा अथवा राजस्थान तक ही सीमित नहीं रहे पूरे देश के प्रिय नेता हो गये हैं 1 श्री कोठारी जी का जन्म 11 जून सन् 1927 को दून माम में हुआ। आपके पिता श्री सोहनलाल जी गांव में दुकान करते थे कोठारी जो की पाता का नाम जड़ावदेवी था । अपने माता पिता के इकलौती संतान होने के कारण शिशु कोठारी का लालन-पालन भी बड़े लाड़ प्यार से हुआ। आपने 1.4 की आयु में मिडिल पास किया और घर का कामकाज करने लगे । 28 फरवरी सन् 1946 को आपका विवाह हिण्डोली ग्राम में लालाबक्स जी सोनी की पुत्री सुश्री लाड़देवी के साथ संपन हुआ | उनसे आपको पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके एक पुत्र श्री ओम प्रकाश कोठारी का सन् 1973 में अकस्मात दुःखद निधन हो गया। आपके चारों पुत्र सर्व श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी, धर्मप्रकाश कोठारी, श्री कुलदीप कोटा एवं श्री सुनील कोठारी उच्च शिक्षित टेक्निकल ज्ञान से ओतप्रोत कुशल प्रबंधक एवं पिता के आज्ञाकारी हैं। चारों हो पुत्रों का विवाह हो चुका है। आपकी तीनों पुत्रियाँ चन्द्रकान्ता, मधु एवं रितु इंदिरा का विवाह हो चुका है। श्री कोठारी जी ने अपना जीवन खादी प्रचार एवं भूदान आंदोलन के कार्यकर्ता के रूप में प्रारंभ किया । इससे यह लाभ हुआ कि आपको विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, हीरालाल शास्त्री, गोकुल भाई भट्ट जैसे शीर्षस्थ नेताओं से संपर्क में आने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सन् 1959 से वे उद्योग की ओर मुड़े। नगर निर्माण में ठेकेदारी का काम हाथ में लिया। फिर नहरों के गेट्स लगाने का ठेका लेने लगे और फिर बड़े-बड़े बांधों के गेट्स लगाने का काम लिया और सन् 1979 तक पिछले 20 वर्षों के लगातार परिश्रम के बाद वे कुशाग्र उद्योगपति बन गये । सन् 1981 में इन्स्टीट्यूट आफ सेल्फ डिफेन्स एण्ड नेशनल करेक्टर किशनगंज देहली की ओर से आपको स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात् सन् 1983 में भारत के उपराष्ट्रपति हिदायतुल्ला ने स्वयं के प्रयासों से उद्योगपति बनने के उपलक्ष में उद्योग पत्र देकर सम्मानित किया। कोठारी जी बराबर अपने उद्योगों में आगे बढ़ रहे हैं और वर्तमान में देश के प्रमुख उद्योगपतियों में आपका स्थान बनने लगा है। सामाजिक क्षेत्र में वे सन् 1979 में चांदखेडी अ. क्षेत्र के अध्यक्ष बनकर आगे आये। वे क्षेत्र के दस वर्ष तक अध्यक्ष रहे और उसके विकास में विशेष योगदान दिया। जनवरी सन् 1981 में आप अ.भा. दि. जैन महासभा के महामंत्री बनाये गये और उसके बाद तो अपने आपको समाज सेवा में ही समर्पित कर दिया। इसी वर्ष भगवान बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक में सम्मिलित हुये और वहीं पर महासभा का अधिवेशन बुलाया गया। पिछले 10 वर्षों में वे सारे समाज से जुड़ गये। बीसों संस्थाओं के महामंत्री, अध्यक्ष एवं संरक्षक हैं। श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान के वे संरक्षक हैं। कोठारी जी कट्टर मुनि भक्त हैं। प्रतिवर्ष चातुर्मास में अथवा अन्य समय में मुनिराजों के दर्शनार्थ जाते रहते हैं। उन्हें आहार देकर एवं व्यवस्था में आर्थिक योगदान देते रहते हैं। मुनिसंघों के विहार में भी अपना सक्रिय सहयोग देते हैं। अब तक आचार्य शिवसागर जी को कोटा से महावीर जी तक, , आचार्य विद्यानंद जी मंदसोर से महावीर जी तकं, आचार्य विद्यासागर जी Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 390/ जैन समाज का वृहद् इतिहास को सरवाड से चांदखेडी तक आचार्य देशभूषण जी को चांदखेडी से जयपुर तक एवं आचार्य विमल सागर जी महाराज के संघ को बिहार में सहयोग देकर अपनी मुनि भक्ति का परिनय दिया है ! आपकी धर्मपत्नी श्रीमती लाइदेदी कोलारी आपसे भी अधिक मुनिराजों की सेवा में रहती हैं, आहार देती हैं। कोठारी जी ने अब तक कितने ही विधान कराये हैं । आचार्य विमल सागर जी के सानिध्य में तीन मूर्ति बंबई में इन्द्रध्वज विधान कराया,तथा जयपुरखानिया में चौसठ ऋद्धि विधान कराया। यही नहीं अब तक कोटा,महावीर जी, शिखर जी,चांदखेडी, राजगृही आदि कितने ही तीर्थों में इन्द्रध्वज विधान एवं सिद्ध चक्र विधान करा चुके हैं। अपने प्राम दूनी में सिद्धचक्र विधान के पश्चात् रथयात्रा निकलवाई तथा पांच दुकानें, धर्मशाला एवं नोहरा बनवाकर मंदिर को भेंट कर दिया । कोटा की नशियों का पूरा जीर्णोद्धार करवाया। श्री कोठारी जी पूरे जैन समाज के लोकप्रिय नेता हैं । समाज को अभी उनसे बहुत आशा है । आशा है वे पूरी होंगी। पता: कोठारी निवास, धान मंडी,कोटा श्री पाणकचंद पालीवाल राजनैतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में समान रूप से लोकप्रिय एवं विशाल व्यक्तित्व के धनी श्री माणकचंद जी पालीवाल समस्त राजस्थान में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । पालीवाल जी खण्डेलवाल दि.जैन समाज के सदस्य हैं । ठोलिया उनका गोत्र है । लेकिन पाली से आने के कारण आपको पालीवाल कहते हैं और इसी उपनाम से वे सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। पालीवाल जी का जन्म 11 सितम्बर 1920 में नीमाज में हुआ। आपके पिता श्री फूलचंद जी ठोलिया नीमाज में बहुत प्रतिष्ठित एवं अच्छे व्यवसायी थे जिनका स्वर्गवास सन् 1981 में 85 वर्ष की आयु में हुआ था । पालीवाल जी की माता का नाम जपुनी बाई था । वह सीधी सादी एवं धार्मिक प्रवृत्ति वाली महिला थी । उनका स्वर्गवास भी 82 वर्ष की आयु में सन् 1974 में हुआ । आपके माता-पिता दोनों आचार्य शांति सागर जी महाराज के पक्के भक्त थे। __ पालीवाल जी ने नीमाज के स्कूल से मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की तथा राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने लगे 13 वर्ष की • आयु में ही आपका श्रीमती चांददेवी के साथ विवाह हो गया। इसके पश्चात् आप सर्विस के लिये मद्रास चले गये तथा वहां सत्यमूर्ति जैसे नेता के संपर्क में आने का अवसर मिला । सन् 1941 में आप सदासुख मनसुखराय की जूरी के पार्टनर बन गये और इंडो वर्मा सीमा पार आजाद हिन्द फौज को सामान सप्लाई करने का कार्य करने लगे। लेकिन सन् 1942 में इम्फाल का पतन होने के पश्चात् आपको फिर वहां से देश में आना पड़ा। पाली में आने के पश्चात् पालीवाल जी लोक परिषद जोधपुर के क्रियाशील सदस्य बन गये । इससे आपको जयनारायण व्यास,रणछोड लाल,मथुरादास माथुर जैसे नेताओं के संपर्क में आने का अवसर मिला । सन् 1947 के पूर्व आप महात्मा गांधी एवं विनोबा भावे के संपर्क में आये । राजनैतिक क्षेत्र में गतिशील रहने के पश्चात् आपका ध्यान व्यवसाय की ओर गया और सन् 1952 में आपने एस.एन.पालीवाल ग्रुप के नाम से व्यवसाय प्रारंभ किया । सन् 1956 में कोटा छावनी में सुभाष इन्ड.कारपोरेशन Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 391 के नाम से व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थापित किया । इसके पश्चात् सन् 1965 में राजस्थान इन्ड एण्ड केमिकल कारपोरेशन के नाम से एक और प्रतिष्ठान की स्थापना की और इसके बाद तो आपको व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता पर सफलता मिलती गई। पालीवाल जी का राजनैतिक जीवन से भी सामाजिक एवं धार्मिक जीवन और भी उज्जवल पक्ष है। आप कट्टर मुनिभक्त हैं और आ. शांतिसागर जी महाराज से लेकर वर्तमान आचार्यों एवं मुनिराजों के आप भक्त हैं। प्रतिवर्ष उनके दर्शनार्थ जाते रहते हैं। आहार देकर पुण्य लाभ कमाते हैं। उनके चातुर्मास में सहयोग देते हैं। आचार्य विमल सागर जी महाराज के संघ के दो मुनिराजों का केशलोंच कोटा में आपने अपने कम्पाउण्ड में कराया था। विधान कराने की भी आप में खूब रुचि है। इन्दौर में, कोटा में अपने निवास स्थान पर इन्द्रध्वज विधान करा चुके हैं। अधिकांश पंच कल्याणक प्रतिष्टा मसाने में भाग लेते रहते हैं अबम्बई वीर जी, गोम्मटगिरी, इन्दौर, सरबाड, केशोरायपाटन में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में इन्द्र बन चुके हैं। आपने बम्बई थाना में नये मंदिर की स्थापना कराई। चांदखेडी अ. क्षेत्र पर समोसरण में प्रतिमा विराजमान की । हाडौती के कितने ही मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया है। यात्रा प्रेमी हैं और तीर्थों की वंदना करते ही रहते हैं। विदेश यात्रा भी कितनी ही बार कर चुके हैं। बनाडा लेस्टर में आयोजित पंच कल्यानक में आप सम्मिलित हो चुके हैं। पालीवाल जी अ.भा. दि. जैन महासभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। कोटा एवं देश की अनेक संस्थानों से आप जुड़े हैं। अन्तर्राष्ट्रीय शांति परिसर के सदस्य हैं। जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान परम संरक्षक हैं। पारसोला पंचकल्याणक समारोह में आपको समाज भूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया था। गंगराणा में आपने धर्मशाला बनवाकर गांव वालों को भेंट कर दी। परिवार - आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चन्दादेवी ने सन् 1975 में दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे। आप दोनों पति पत्नी शुद्ध खानपान का नियम हैं। आपके तीन पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं । के I- ज्येष्ठ पुत्र श्री सुभाषचंद का जन्म 8 जनवरी 54 को हुआ था। बी.ए. है। धर्मपत्नी का नाम उमा है वह भी बी. ए. है । एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं। 2. द्वितीय पुत्र अरुण कुमार है। 28 फरवरी 1958 को जन्म हुआ। आपने बी. कॉम. किया है। आपकी धर्मपत्नी अनुपमा दो पुत्रियों की जननी है। 3- सबसे छोटा पुत्र विजयसिंह का जन्म 19 दिसम्बर 60 को हुआ। एम.एससी. है। आई. आई. टी. नागपुर से किया है। विवाह हो चुका है। पत्नी का नाम मीना है। वह भी बी.एससी. है। एक पुत्र की मां है। पालीवाल जी के चार पुत्रियाँ है शान्ता, पुष्पा, उर्मिला व निर्मला हैं। सबका विवाह हो चुका है। इसके अलावा निमाज के मन्दिर का जिर्णोद्धार करवाया। पाली के मन्दिरों का भी जिर्णोद्धार करवाया व दिगम्बर जैन धर्मशाला में एक कमरा बनवाया। अकलंक विद्यालय में एक बरामदा बनवाया। श्री महावीर जी शान्तीवीर नगर गुरुकुल में एक कमरा बनवाया । सुसनेर जिला शाहजापुर (मध्यप्रदेश) में वेदी बनवाई व स्कूल के निर्माण में व गुरुकुल के निर्माण में काफी योगदान दिया व चांदखेड़ी अति क्षेत्र में एक अतिथिगृह का निर्माण करवाया इसके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु व मध्यप्रदेश के कई अतिशय क्षेत्रों में जीर्णोद्धार में काफी योगदान दिया । Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 392/ जैन समाज का वृहद् इतिहास वे कई जगहों पर पंचकल्याणक व इन्दध्वज एवं कल्पद्रुम विधान, बावनगजा इन्दौर में इन्द्र बने एवम् चक्रवती बने । कोटा के नये बनने वाले मन्दिरों में ध्वज कलश एवम् निर्माण में योगदान दिया। कोटा जिले के श्री चाँदखेडी एवम् केशोरायपाटन में मन्दिरों अतिशय क्षेत्रों के सरंक्षक हैं। कोटा में इन्द्रध्वज विधान, तीन लोक विधान की नई रचनाऐं मुनि श्री 108 की श्रुतसागर से लिखवाई। छावनी में चातुर्मास करवाकर छावनी में विधान करवाया व इन्द्रध्वज विधान की पुस्तक प्रकाशित करवाई । छावनी के दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण करवाया व वेदी बनवाई। पालीवाल कम्पाउन्ड के सामने नवनिर्मित मन्दिर में भी पार्श्वनाथ की मूलनायक प्रतिमा विराजमान की और तलवण्डी के मन्दिर पर कलश चढ़ाया व विधान नगर के मन्दिर का फाउन्डेशन रखा। मुनि महाराजों के करीब-करीब सारे संघों का कोटा छावनी में पालीवाल कम्पाउन्ड में शुभागमन हुआ और जितने साधु आये उनका चौका रखा और चौके की व्यवस्था की व दिल्ली हस्तिनापुर आगरा मेनपुरी अयोध्या श्री महावीर जी के बड़े-बड़े कार्यक्रम में पहुंचते रहे और उदयपुर जिले में मुनि महाराजों के साधुओं के चतुरमास पर बराबर जाते रहे व आध्यात्मिक शिविरों में जाते रहे । 1985 से धार्मिक कार्य समर्पित भावनाओं से करते रहे। श्री मदनलाल चांदवाड़ चांदवाड़ गोत्रीय श्रेष्ठि श्री मदनलाल जी राजस्थान में एक सामाजिक हस्ती हैं जिन्होंने समाज की विभिन्न गतिविधियों में अपना योगदान दिया है। वे अनेक वर्षों से दि. जैन महासभा की राज. इकाई के अध्यक्ष हैं। इसी तरह 15-20 वर्षों से शांति वीर नगर श्री महावीर जी के मंत्री का कार्य कर रहे हैं। चांदखेड़ी क्षेत्र की कार्यकारिणी सदस्य हैं तथा रामगंज मंडी व्यापार संघ के गत 20 वर्षों से अध्यक्ष हैं | चांदवाड जी का जन्म सावण सुदी 6 संवत् 1983 को हुआ। आपके पिता श्री धनसुखलाल जी का 65 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ था। आपकी माताजी श्रीमती गोपीबाई का 85 वर्ष की आयु में अभी 9 वर्ष पहिले ही निधन हुआ है। आप मैट्रिक में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये फिर साहित्यरत्न किया और व्यापार की ओर मुड़ गये। संवत् 2001 में आपका फूलबाई के श्री साथ विवाह हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र : कमलकुमार जी बी काम हैं। एक पुत्र के पिता हैं। द्वितीय पुत्र प्रभाचंद जी एम. एस.सी., एल.एल.बी. हैं। आपकी पत्नी का नाम मधु है जो श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी की पुत्री है। बी.ए. हैं। 2 पुत्रियों एवं एक पुत्र की जननी है। तृत्तीय पुत्र श्री नरेश कुमार बी.काम. एल. एल. बी. है। पत्नी का नाम रजनी है । आपकी तीनों पुत्रियां उर्मिला, प्रभा, सरिता बी.ए. है तथा सभी का विवाह हो चुका है। आपकी धार्मिक मनोवृत्ति रहती है । हस्तिनापुर एवं रामगंज मंडी के पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं। शांति वीर नगर में वेदी बनवाकर प्रतिमा विराजमान की। वैसे प्रतिमायें तो आप विराजमान कराते हो रहते हैं। आर्यिका ज्ञानमती माताजी के इन्द्रध्वज विधान को आप प्रकाशित करा चुके हैं। पक्के मुनिभक्त हैं। मुनिराजों को आहर देने में पूरी रुचि है । पता:- बाजार न. 1, रामगंज मंडी, कोटा Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /393 श्री उत्तमचंद जैन निर्खी कोटा जैन समाज व व्यापारी वर्ग के जाने पहचाने निर्खी परिवार में श्री उत्तमचंद निख का जन्म 26 जून, 1946 को हुआ। आप क्योंकि निर्खी परिवार के पहले पुत्र हुये । इसलिये आपका लालन पालन बड़े ही प्यार से हुआ। निर्खी जी के पिता श्री सुगनचंद जी एवं ताऊ श्री नेमिचंद जी की देखरेख में जैन धर्मशाला एवं छात्रावास का निर्माण हुआ। आप युवावस्था से ही समाज के सामाजिक धार्मिक एवं प्रत्येक प्रकार के कार्यों में रुचि लेते रहे हैं। वर्तमान में आप दि. जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी व केशोरायपाटन की कार्यकारिणी के सदस्य, अकलंक माध्यमिक विद्यालय के कोषाध्यक्ष, वर्धमान नवयुवक मंडल के अध्यक्ष व दिग. जैन समाज कोटा के मंत्री हैं। आप रामपुरा दिगम्बर जैन समाज के युवावर्ग के तो संरक्षक ही हैं तथा अखिल भारतवर्षीय दिग. जैन युवा परिषद कोटा शाखा के आप प्रारंभ से ही अध्यक्ष है । स्व. श्री सरदारमल जी पांड्या की वृद्धावस्था के पश्चात् श्रीमती सूरजवाई दि. जैन छात्रावास के व्यवस्थापक के रूप में गत 8-9 वर्षों का कार्य बड़ा दी है । अता की व्यवस्था बड़ी ही सुचारु व बिना किसी विघ्न बाधा के चल रही है। महाराज श्री को कोटा में चातुर्मास हेतु लाने का बहुत कुछ श्रेय आपको व युवा परिषद के सदस्यों को है जिन्होंने कि निवाई चातुर्मास से ही महाराज जी से कोटा चातुर्मास करने हेतु प्रत्येक स्थान पर जैसे निवाई, टॉक, शिवाड़, बौंली जाकर निवेदन किया। आप चातुर्मास समिति के मंत्री हैं। निर्खीजी नागरिक सहकारी बैंक कोटा में गत 15 वर्षों से सैन्ट्रल एकाउन्टेन्ट के पद पर कार्यरत हैं । दि. जैन सरावगी खण्डेलवाल समाज में कुरुतियों को दूर करने हेतु हाडौतो व टौंक क्षेत्र में चालू किये गये सामूहिक विवाह सम्मेलन में भी आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है I श्री उत्सवलाल जैन रजलावतावाला श्री उत्सवलाल जी जैन अपने ढंग के अनूठे समाजसेवी हैं। धुन के पक्के एवं समाज सेवा में समर्पित रहने वाले श्री जैन का जन्म 11 मई, 1939 को हुआ। मैट्रिक पास करने के पश्चात् आप राज्य सेवा में चले गये और अध्यापक के पद पर कार्य करने लगे । आपका जीवन विविधताओं से भरा हुआ है। सन् 1958-59 में आपने विनोबा भावे के साथ राजस्थान में पदयात्रा की। इसके पूर्व सन् 1956 से 61-62 तक खादी ग्रामोद्योग सेवा सदन भीलवाड़ा में कार्य किया। सन् 1964 में ए.सी.सी आफिसर्स की ट्रेनिंग प्राप्त की । सन् 1964 में स्काउट मास्टर की ट्रेनिंग प्राप्त की। सन् 1970 में दि. जैन नवयुवक मंडल के माध्यम से नैनवां में नौ दिवसीय शिक्षण शिविर का आयोजन किया। सन् 1980 के जून मास में श्री चन्द्रसागर दि. जैन बाल मंदिर की स्थापना की जिसके आप स्थापना काल से ही अध्यक्ष हैं। इस विद्यालय में वर्तमान में 3000 से अधिक छात्र अध्ययन कर रहे हैं। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 394/ जैन समाज का वृहद इतिहास दि, जैन खण्डेलवाल सरावगी समाज सामूहिक विवाह एवं रीति रिवाज समिति के आप सक्रिय कार्यकर्ता एवं संयोजक पद पर हैं । देवली, नैनवां कोटा में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में आप प्रमुख कार्यकर्ता रहे तथा आप जैसे कार्यकर्ताओं के कारण ही सामूहिक विवाह की योजना सफल हो सकी। आप दि, जैन नवयुवक मण्डल के 1965 से 1980 तक अध्यक्ष रहे | श्री महावीर जी,शांति वीर नगर, टोंक,निवाई, देई, अरसी आदि जगहों पर हुये पंच कल्याएका, दो अचिच्छा कार्यक्रमों में अपनी टीम का साय पहुँच कर सक्रिय सेवायें दी। पता- मु.पो. नैनवां (बून्दी) श्री कस्तूरचन्द गंगवाल गंगवाल गोत्रीय श्री कस्तूरचन्द जी गंगवाल का सामाजिक जीवन उल्लेखनीय है । आप दि. जैन अ. क्षेत्र चांदखेड़ी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । बारां जैन समाज के 7-8 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। यहां पर आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इन्द्र के पद से सशोभित हो चके हैं। 15-16 वर्ष पहिले जोडला जैन मन्दिर में वेदी बनवाकर करवा चुके हैं। कुछ ही समय पूर्व तीन लोक मंडल एवं सिद्ध चक्र विधान करा चुके हैं। राजनीति में भी सक्रिय रहते हैं । कांग्रेस आई के कर्मठ कार्यकर्ता है । सन् 1972-78 तक बारां नगर परिषद के सदस्य रह चुके है। आपके छोटे भाई श्री सुगनचन्द जी स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर में कार्य करते हैं । आपका जन्म सवत् 1982 में हुआ। आपके पिताजी श्री भैरुलाल जी गंगवाल एवं माताजी एजन बाई का स्वर्गबास हो चुका है। सन 1947 में आपका विवाह सूरजबाई से हुआ । सन 1957 में मैट्रिक किया और फिर चांदी सोने का व्यवसाय करने लगे। आपने श्री अशोक कुमार को अपना दत्तक पुत्र बनाया । पत्नी का नाम कनकलता है । अटरू में सर्राफ की दुकान करते हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। पता- कस्तूरचन्द, अशोक कुमार सर्राफ, सर्राफा बाजार,बारां श्री कुलदीप कोठारी 10 जुलाई 1958 को दूनी प्राम में जन्मे श्री कुलदीप कोठारी अपने पिता श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी के तृतीय पुत्र हैं। बी.कॉम. करने के पश्चात् आपको कोठारी उद्योग समूह में कामर्शियल डाइरेक्टर का उत्तरदायित्व दिया गया। जिसको वे कुशलता के साथ निर्वाह कर रहे हैं । कुलदीप जी का विवाह ग्वालियर के श्री माणकचंद जी गंगवाल की सुपुत्री अनिता के साथ संपन्न हुआ। श्रीमती अनिता जी एम.ए. हैं। आपको दो पुत्र भरत बाहूबलि,एवं एक पुत्री के पिता बनने का गौरव प्राप्त है । उच्च शिक्षित होने पर भी अनिता जी ने अपने आपको घर गृहस्थी तक ही सीमित रखा है। श्री कुलदीप कोठारी विनीत एवं सरल स्वभाव के युवा हैं । अपने पिता जी एवं बड़े-भाईयों के मार्गदर्शन में कोठारी उद्योग समूह का कार्य देखते हैं। पता: 30-31 कोठारो भवन नई धानमंडी, कोटा । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /395 श्री केशरीलाल गंगवाल बूंटी के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री केशरीलाल जी गंगवाल को कौन नहीं जानता। उनकी सामाजिक सेवाओं की सूची बहुत लम्बी है। वे दि.जैन महासमिति एवं दिगम्बर जैन परिषद बंदी अंचल के संयोजक रहे । केशोरायपाटन के विकास में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा तथा वहां के इतिहास, राजस्थान का प्राधीन तीर्थ केशोरायपाटन, पुस्तक के प्रकाशन संयोजक रहे । विगत 50 वर्षों से समान ली नामहरत कप हे मेद कर रहे : आपका जन्म चैत्र बुदी 10 संवत् 150 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त की लेकिन निरन्तर स्वाध्याय के बल पर अच्छा धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया। संवत् 1979 में आपका विवाह श्रीमती कंचनदेवी के साथ हुआ जिनका अभी ४ वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ है । आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । ज्येष्ठ पुत्र श्री महावीर कुमार है । द्वितीय पुत्र श्री पारसकुमार एवं तृतीय पुत्र श्री जितेन्द्र कुमार हैं। आपने बूंदी के महावीर स्वामी के मंदिर में वेदी का निर्माण करवा कर मूर्ति विराजमान की थी। एक बार शराबबंदी के आंदोलन में आप जेल यात्रा भी कर चुके हैं। पता : - ए-ti. इन्द्रा मार्केट बूंदी डॉ. कैलाशचन्द सेठी बारां निवासी डॉ. कैलाशचन्द सेठी श्री भंवरलाल जी सेठी के सुपत्र हैं जो वर्तमान में 39 वर्ष के होंगे। सेठी जी का जन्म 3 आगस्त सन् 1945 को हुआ । सन् 1983 में आपने अजमेर मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. एवं एमड़ी. किया । वर्तमान में आप राज्य सेवा में मनोहरथाना हास्पिटल में मेडिकल आफिसर हैं । सन् 1972 में आपका विवाह श्रीमती माणक बाई से हुआ। वर्तमान में आप दो पुत्र सिद्धार्थ एवं रूपल तथा पुत्री चेतना से सुशोभित हैं। श्रीमती मायकमेटी सेठी जी समाज सेवा में रुचि रखते हैं,शान्त स्वभावो हैं । आपकी पलो श्रीमती माणक सेठी भी अतिथ्य प्रेमी तथा समाज का कार्य करने में रुचि रखती हैं। पता : - तालाब पाड़ा, बारा कोटा श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी ओम कोठारी उद्योग समूह के मैनेजिंग डाइरेक्टर श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी युवा उद्योगपति तथा श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। 31 अक्टूबर सन् 1948 को आपका दूनी ग्राम में जन्म हुआ। सन् 1965 में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.काम.किया उसके पश्चात वे कोठारी जी को उद्योगों के संचालन में सहयोग देने लगे। बी काम करने के एक ... MAHAR MLUIPM Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 396/ जैन समाज का वृहद उतरा वर्ष पश्चात् आपका विवाह इन्दौर निवासी स्व. श्री सुगनचंद जी सोगानी की पुत्री श्रीमती सी. मंजुला के साथ दि. 17 मई 70 को संपन्न हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिला। दोनों पुत्र विवेक एवं वैभव तथा तीनों पुत्रियों, मोनिका, नीलू एवं पूजा पढ़ रही है। श्रीमती सी. मंजुला कोठारी बी.ए. हैं। श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी सी.पी. कोठारी के नाम से जाने जाते हैं। वे सूझबूझ के धनी एवं अदम्य उत्साही युवक हैं। छोटी आयु में वे जिस कुशलता के साथ सारे देश में फैले हुये अपने उद्योग समूह का संचालन कर रहे हैं वह उनको स्वाभाविक प्रतिभा का परिचायक है। उनकी नम्रता, व्यवहार कुशलता एवं मिलन- सारिता सारे उद्योग समूह एवं पूरे परिवार में प्रसिद्ध है। उनकी पत्नी श्रीमती मंजुला भी विनम्र स्वभाव की महिला है। आतिथ्य प्रेम से ओतप्रोत हैं। सी.पी. कोठारी जी में धार्मिक भावना है। मुनिराजों के दर्शनार्थ जाते रहते हैं। तीर्थयात्रा भी करते रहते हैं। अपने उद्योग समूह में कार्यरत कर्मचारियों के कल्याण की हमेशा चिन्ता रहती है। - 30)-31, कोठारी भवन, नई धानमंडी, कोटा । पता : श्री चांदमल पाटनी कापरेन वाले कोटा के सामाजिक जीवन में आगे रहने वाले श्री चांदमल पाटनी अपनी सामाजिक सेवाओं के लिये उल्लेखनीय व्यक्ति हैं। आपके पिताजी श्री हंसराज जी पाटनी एवं मातेश्वरी श्रीमती केसरबाई दोनों का स्वर्गवास हो चुका है । इन्टरमीडियेट पास करने के पश्चात् आप खेतीबाडी एवं प्रेस पंचायत का कार्य करने लगे। 24 फरवरी सन् 1952 को आपका विवाह श्रीमती शकुन्तला के साथ हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र वीरेन्द्र, देवेन्द्र, अशोक कुमार, सन्मति कुमार एवं चार पुत्रियों आशा रानी, अंजूरानी, मौनारानी, मंजूदेवी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । पाटनी जी दि. जैन अ. क्षेत्र चांदखेडी एवं केशोरायपाटन के प्रचार मंत्री हैं तथा दूसरे क्षेत्रों से भी जुड़े हुये हैं। आप कट्टर मुनि भक्त हैं तथा मुनिसंघों में जाकर आहार आदि से खूब सेवा करते रहते हैं। आप टोंक में रहते थे। वहां आप अपने व्यवसाय के अतिरिक्त आचार्य धर्मसागर जी महाराज एवं आचार्यकल्प श्रुतसागर जी महाराज के चार्तुमासों को सफल बनाया। सन् 1962 में आयोजित वहां के पंचकल्याणक समारोह में भी आपने अच्छा कार्य किया। कोटा में भी सभी सामाजिक आयोजनों में आपका पूर्ण सहयोग रहता है तथा जो भी उत्तरदायित्व आपको दिया जाता है आप उसको पूर्ण सफल बनाने में लग जाते हैं। पता:- पाटनी प्रिन्टर्स, रामपुरा कोटा । श्री जयकुमार जैन एडवोकेट नैनवा के मूल निवासी श्री जयकुमार जी जैन वर्तमान में बूंदी रहते हैं तथा वहीं वकालत करते हैं। सितम्बर 1928 में आपका जन्म हुआ। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी कासलीवाल एवं माताजी श्रीमती गुलाबदेवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। आप बी काम., एल.एल.बी., साहित्यरत्न करके पहले केन्द्रीय सेवा में चले गये लेकिन कुछ समय के पश्चात् आप वकालत करने लगे । आपकी पत्नी का नाम श्रीमती रतनदेवी है जिनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य मिला । आपके सबसे बड़े पुत्र अशोक कुमार जी श्री ई. हैं तथा जलदाय विभाग बूंदी में सहायक अभियंता हैं। अशोक जी की पत्नी प्रतिभा एम.ए. हैं। दूसरे पुत्र राजेन्द्र Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /397 कुमार बी.काम. एल.एल.बी है और वकालत करते हैं उनकी पत्नी सुनीता है । पुत्री निर्मला जैन एम.ए. है । ___ श्री जयकुमार जी का राजनीति एवं समाज नीति दोनों में योगदान है। आप सन् 1961 से 64 तक नगरपालिका नैनवा के अध्यक्ष रहे । सन् 1966 से 78 तक तथा 1981 से 83 तक बूर पक्ष रहे। सन 1966 से 78 तक तथा 1981 से 83 तक बंदी जिला लोक अभियोजक एवं राजकीय अभियोजक रह चके हैं। सन् 1974-75 में बूंदी जिला-भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव समिति के संयोजक थे। दिनांक 9-11-75 को निर्वाण महोत्सव महासमिति द्वारा आपका सम्मान करके समाज सेबक की पदवी दी गई तथा भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव समिति द्वारा स्वर्णपदक से अलंकृत किया गया। इसी तरह जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का बूंदी जिले का महामंत्री तथा तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन के बूंदी जिला समिति के अध्यक्ष तथा दिनांक 2-9.87 को महावीर जो में प्रशंसा पत्र दिया गया। श्री जैन समाज सेवा के लिये सदैव समर्पित रहते हैं । स्वभाव से सरल एवं मधुर भाषी हैं। पता :- श्री जयकुमार जैन एडवोकेट (68 न्यू कालोनी,बूंदी फोन :2521 श्री टीकमचन्द सेठी सेठी गोत्रीय श्री टीकमचन्द सेठी जो की बारां के समाजसेवियों में गणना की जाती है । आपका जन्म चैत्र सुदी 10 संवत् 1978 को हुआ था। आपके पिताजी श्री नन्दलाल जी का 56 वर्ष की आयु में तथा माताजी श्रीमती मोत्याबाई का बहुत पहिले हो स्वर्गवास हो गया। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यापारिक लाइन में चले गये और अच्छा नाम कमाया । सन् 1944 में आपका विवाह श्रीमती शान्ति बाई से हुआ। आपको पांच पुत्र सर्वश्री दिनेश कुमार राजेन्द्र कुमार महेशचन्द्र,सोहनलाल, धर्मचन्द एवं तीन पुत्रियों प्रेमबाई,लक्ष्मीबाई एवं चम्पाबाई के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। श्री धर्मचन्द के अतिरिक्त सभी का विवाह हो चुका है। श्री महेशचन्द्र बैंक सर्विस एवं श्री धर्मचन्द संस्कृत में आचार्य कर चुके पता :- राजेन्द्र कुमार, महेशचन्द्र जैन,दीनदयाल पार्क,बारां (कोटा) डॉ. ताराचन्द पांड्या कोटा नगर के डॉ. ताराचन्द पांड़या का जन्म 15 अप्रेल सन् 1928 को हुआ था। आपके पिताजी श्री जमनालाल जी का 15 वर्ष की आयु में तथा माताजी श्रीमती थापूबाई का 75 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो चुका है। आपने सन् 1956 में बम्बई मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस.किया इसके पूर्व सन 1952 में बम्बई से ही बी एस.सी.किया । आपका सन् 1946 में चन्दादेवी के साथ विवाह हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्र ऋषभ कुमार,जम्बू कुमार एवं लवलेश कुमार तथा 6 पुत्रियां विमला. सुशीला, चन्द्रकसा,शोभा,आभा एवं विभा के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। दोनों पुत्र एवं पांचों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 398 / जैन समाज का वृहद् इतिहास डॉ. पांडया मेडिकल डाक्टर के साथ ही ज्योतिष विद्या के शीर्ष विद्वान हैं। स्वास्थ्य एवं ज्योतिष विषय पर धर्मयुग आरोग्य एवं ज्योतिषमती आदि में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। अखिल भारतीय ज्योतिष अनुसंधान समिति के सदस्य हैं। जिसके द्वारा आपको ज्योतिष मार्तण्ड की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। आप रामगंज मंडी नगर परिषद के तीन वर्ष तक (3955-58) सदस्य रहे थे तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन में सन् 1944, 1947 में जेल भी जा चुके हैं । स्वतन्त्रता सेनानी रहने का गौरव प्राप्त है। दादाबाड़ी जैन समाज के सरपंच हैं। वर्तमान में आप ज्योतिष सम्बन्धी कार्य सम्पादन करते हैं। पता :- 5811 विस्तार योजना, दादाबाड़ी, कोटा । श्री दयाचन्द्र जिनेशचन्द्र पाटोदी किशनगंज के प्रमुख समाजसेवी श्री दयावन्द्र पाटोदी एडवोकेट हैं। आगरा विश्वविद्यालय से बी.ए. एल. एल. बी. किया । राजस्थान के जिला जज रह चुके हैं। आपके पिताजी श्री बालमुकुदा हो चुका है। आपका जन्म ज्येष्ठ कृष्णा 15 वि.स. 1971 में हुआ था। आप अच्छे लेखक हैं। अहिंसा वाणी पत्रिका में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। हिन्दी में ऋषभाष्टक स्तोत्र की शिखरणी छन्द में रचना की है। वर्तमान में आप अध्ययन, लेखन एवं समाज सेवा में लगे रहते हैं । आपके छोटे भाई जिनेशचन्द्र जी हैं जिनका जन्म कार्तिक कृष्णा 1.3 संवत् 1978 में हुआ था। आप गांव में कृषि करते हैं। आपकी पत्नी का नाम चन्द्र दुलारी बाई है। आपको पांच पुत्र, यशभानुकुमार, हेमन्तकुमार, धनरथकुमार, युगबंधकुमार, दृश्दशकुमार एवं पुत्रियाँ निरंजनलता, तारुण्यलता, विद्युल्लता, वीणाकुमारी, मणिमाला, सरिता कुमारी के पिता बनने का सोभाग्य प्राप्त हैं। आप पर्याप्त समय तक किशनगंज ग्राम पंचायत के उपसरपंच रह चुके हैं। पता:- किशनगंज (कोटा) राज. श्री धर्मप्रकाश कोठारी, कोठारी उद्योग समूह के टेक्नीकल डाइरेक्टर श्री धर्मप्रकाश कोठारी डी.पी. कोठारी के नाम से जाने जाते हैं। श्री डी.पी. कोठारी अपने पिता श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी के द्वितीय पुत्र है। आपका जन्म 231 अगस्त 1951 को हुआ । शिक्षा में मेकेनिकल डिप्लोमा किया। आपका विवाह 6 दिसम्बर 1974 को इन्दौर के श्री चांदमल जी गंगवाल की पुत्री मंजुला के साथ संपन्न हुआ। श्रीमती मंजुला एम.ए. हैं। भाषण देने, निबंध लिखने एवं महिला सम्मेलनों में भाग लेने में पूरी रुचि लेती हैं। वह दो पुत्र विकास एवं विशाल एवं एक पुत्री सोनाली की मां हैं I श्री डी.पी. कोठारी परिश्रमी युवक हैं। मेकेनिकल इंजीनियरिंग के संबंध में उनका विशिष्ट ज्ञान है इसलिये उद्योग समूह के बड़े-बड़े इंजीनियर टेक्नीकल विषयों पर चर्चा करते Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 399 हैं तो डी.पी. कोठारी अपने इन्जीनियरिंग संबंधी ज्ञान से सबको प्रभावित कर लेते हैं। व्यवहार में एकदम स्वच्छ एवं नियत में साफ, उनकी पहिचान बन गई है। श्री डी.पी. कोठारी में सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की रुचि अवश्य है लेकिन वह अभी तक विकसित नहीं हो पाई है लेकिन इस कमी को आपकी पत्नी मंजुला कर देती है। वैसे श्रीमती मंजुला जी गृह संचालन में दक्ष हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं । पता : 30-31 कोठारी भवन, नई धानमंडी, कोटा।' श्री नेमीचंद चांदवाड़ झालरापाटन के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री नेमीचंद चांदवाड़ सुपुत्र श्री प्रेमसुख जी चांदवाड़ का जन्म कार्तिक बुदी 13 संवत् 1979 को हुआ। श्री प्रेमसुख जी का निधन 52 वर्ष की आयु में हो गया। आपकी माताजी की आयु 98 वर्ष की है। मिडिल कक्षा तक अध्ययन करने के पश्चात् आप वस्त्र एवं किराणा व्यवसाय में चले गये। 20 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह श्रीमती सुन्दर बाई के साथ हो गया । जिनसे आपको चार पुत्र एवं पुत्री की प्राप्ति हुई । श्री चांदवाड़ का बहुत ही धार्मिक जीवन है । प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल का नियम है। विगत 35 वर्षों से शुद्ध खानपान का नियम लिये हुये हैं। कट्टर मुनिभक्त एवं समाजसेवी हैं। रामगंजमंडी के शांतिनाथ स्वामी के मंदिर के पंचकल्याणक महोत्सव पर इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। शांतिवीर नगर श्री महावीर जी में वेदी निर्माण करवाकर सुपार्श्वनाथ स्वामी की श्याम पाषाण की मूर्ति विराजमान कर चुके हैं। झालरापाटन की नई नशियाँ में, जयपुर के स्टेशन के मंदिर में मूर्ति विराजमान की है। प्रसिद्ध शांतिनाथ स्वामी के मंदिर में चांदी की मूर्ति विराजमान करने का श्रेय प्राप्त किया। पाटन के नगरपालिका के चार वर्ष तक (1951-52) चैयरमैन रह चुके हैं। कपड़ा एसोसियेशन झालरापाटन के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। शांतिनाथ स्वामी के मंदिर के वर्षों से मंत्री हैं। महासभा के सदस्य हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री गजेन्द्र कुमार जी 44 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम सुशीलादेवी है। तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। कालवा देवी बम्बई में व्यवसाय करते हैं। द्वितीय पुत्र श्री पदम कुमार जी 41 वर्षीय हैं। एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता है। जयपुर चांदपोल मंडी में दुकान है। तीसरे 40 वर्षीय हैं इनका नाम राजकुमार जी है जो कि कानपुर में व्यवसायरत हैं । चतुर्थ पुत्रं श्री विमलकुमार जी हैं एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता है। पता :- बजाज खाना, झालरापाटन । श्री नेमीचन्द रांवका विका जी रामजमण्डी के वयोवृद्ध सज्जन हैं। आपका जन्म माह बुदी 11 संवत् 1965 दि. 18 जनवरी 1909 को हुआ। आपके माता-पिता का नाम श्री केसरीमलजी व श्रीमती भंवरबाई है। फर्म का नाम सेठ नाथूराम बागजी हैं। आपने अष्टम् तक शिक्षा प्राप्त की और फिर व्यवसाय करने लगे । आपका विवाह संवत् 1980 में हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 400/ जैन समाज का वृहद् इतिहास कंचनबाई का 40 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया । श्री नेमीचन्दजी रावका को तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। तीनों ही पुत्र लालचन्द,प्रतापचन्द एनं केवलचन्द तथा श्रीमती सुशीला बाई का विवाह हो चुका है। आपने आचार्य धर्मसागर जी महाराज से प्रतापगढ़ में शुद्ध खान-पान का नियम लिया था । कट्टर मुनिभक्त हैं। साधुओं को आहार देने में पूर्ण रुचि है। रामगंजमंडी नगर पालिका के सदस्य रह चुके हैं । यात्रा प्रेमी है। श्री 1008 शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के ट्रस्टी है तथा समगंजमण्डी दिगम्बर जैन समाज द्वारा आयोजित समस्त धार्मिक कार्यक्रमों में अग्रणी रहते हैं । पता:-श्री नेमीचन्द जी रावका बाजारन.1. रामगंजमण्डी। श्री पन्नालाल सेठी लाडनूं मारवाड़ के मूल निवासी श्री पत्रालाल जी सेठी वर्तमान में रामगंजमंडी में निवास करते हैं लेकिन उनका आसाम में सिल्चर एवं गोहाटी जैन सदर प्रदेश में भी व्यवसाय है । आपका जन्म संवत् 15 में हुआ। आपके पिताजी श्री झूमरमल जी सेठी का 15 वर्ष पूर्व 75 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। लेकिन माताजी पतासी देवी का करीब 45 वर्ष पूर्व ही निधन हो गया था जब आपकी उम्र 25-26 वर्ष की होगी। जब आप 13 वर्ष के थे तभी आपका विवाह सुश्री पतासी देवी के साथ हो गया | आपने इन्टरमीडियेट परीक्षा पास की और गवर्नमेन्ट सप्लाई एवं हार्ड वेयर का कार्य करने लगे। आपको तीन पुत्रियों एवं पांच पुत्रों के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तीनों पुत्रियों निर्मला,कुसुम एवं पुष्पा का विवाह हो चुका है। आपके पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र नरेन्द्रकुमार 50 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पदमादेवी है । एक पुत्र एवं दो पुत्री के पिता हैं । सिल्वर में नेशनल कारपोरेशन के संचालक हैं । द्वितीय पुत्र श्री अजीतकुमार 45 वर्ष के हैं । सन् 1966 में सुमित्रा देवी के साथ विवाह हुआ | आपने सन् 1971 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.काम. किया। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। रामगंजमंडी में व्यवसायरत है। तीसरे पुत्र - महेन्द्रकुमार 40 वर्ष के हैं । बी काम हैं एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं । उनकी पत्नी शशि मैट्रिक है। सिल्चर में व्यवसाय करते हैं। चतुर्थ पुत्र - अशोक कुमार 38 वर्ष के हैं बी.काम हैं । पत्नी का नाम मंजू देवी है जो बी.ए. है । सिलचर में व्यवसाय करते पंचम पत्र - श्री ऋषभ कुमार 34 वर्ष के हैं । बी.काम.हैं उनकी पत्नी कविता बी.ए. है। सिलचर में नेशनल कारपोरेशन में कार्यरत हैं। Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /401 आपका एक व्यापारिक प्रतिष्ठान नेशनल ट्रेडर्स के नाम से गोहाटी में भी है । सेठी साहब एवं उनकी पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । कट्टर मुनिभक्त हैं । मुनियों को आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। आपने रामगंज मंडी पंचकल्याणक के अवसर पर इन्द्र बनकर आकाश से पुष्प वर्षा की थी 1 मंदिर में प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल का नियम है। पता : - सेठी एण्ड संस, बाजार न.6 रामगंजमंडी (कोटा) श्री पदमचन्द जैन पाटनी राजस्थान बिजली बोर्ड कोटा में अभियन्ता पद पर कार्यरत श्री पदमचन्द जैन का जन्म 28 फरवरी 1946 को हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री मूलचन्द जी पाटनी एवं माता जी का श्रीमती चांदबाई है। आपने इलेक्ट्रीकल्स इंजीनियरिंग में कोटा से डिप्लोमा किया और फिर राजस्थान बिजली बोर्ड में कार्य करने लगे। आपका विवाह दि. 20 जून 1967 को श्रीमती यशोधरा जैन से संपन्न हआ। आपको तीन पत्रियां सश्री विनीता.लक्ष्मी एवं रुचि तथा दो पत्र विनय एवं वैभव के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है । पाटनी जी के दो भाई श्री सुरेशचन्द जैन एवं महेशचन्द्र जैन एवं बहिन श्रीमती सरोज जैन है। पाटनी जी सामाजिक जीवन व्यतीत करने में पूर्ण रुचि लेते हैं । सभी को सहयोग देने की पावना से युक्त हैं । पता :- 132 केवी मिड सब स्टेशन इन्डस्ट्रियल एरिया,डी-सी.एम. चौराहा,कोटा (राज) श्री पदमकुमार टोंग्या स्व.श्री माणकचंद जी जैन के सुपुत्र श्री पदमकुमार टोंग्या का जन्म दिनांक 2 अप्रैल,1933 को हुआ। आपने एम.ए. (अर्थशास्त्र) एवं बीकाम.किया और राजकीय महाविद्यालय कोटा में अध्यापन कार्य करने लगे। आपका श्रीमती कान्ता जैन से विवाह हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र सुनील कुमार,सुधीर कुमार वं सुबोधकुमार एवं एक पुत्री सुनीता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है । ज्येष्ठ पुत्र के अतिरिक्त अभी सभी अविवाहित हैं । श्री टोंग्या जी कोटा नगर दिगम्बर जैन खण्डेलवाल समाज के महामंत्री एवं नशियां दिगम्बर जैन समाज दादाबाडी कोटा के कार्यकारिणी सदस्य हैं। पता :- मकान न.1 क8, दादाबाडी (कोटा) श्री प्रकाशचन्द पांड्या लालगढ से सुजानगढ आये हुये स्व. श्री बालचन्द जी पान्ड्या के पुत्र श्री प्रकाशचन्द | पान्ड्या जो कि आसाम की प्रसिद्ध फर्म सालिगराम राय चुत्रीलाल बहादुर एण्ड कम्पनी की विभाजित इकाई आसाम ओटो ऐजेन्सीज मेघालय एवं आसाम के पार्टनर हैं अब अपने परिवार व दोनों छोटे भाईयों स्व.विजय कुमार व श्री राजकुमार के साथ अपने अपने निजी भवनों में Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 402 / जैन समाज का वृहद् इतिहास कोटा में बस गये हैं। श्री प्रकाश चन्द्र पान्ड्या अपनी सामाजिक सेवाओं के लिये ख्याति प्राप्त श्रेष्ठी हैं आपका जन्म 20 अप्रेल . 1924 को बंगाल में हुआ है आपने इन्टर तक गोहाटी में बंगला भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त की 1 92 वर्षीय आपको माताजी श्रीमती बाली देवी का अभी भी आशीर्वाद प्राप्त है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती इन्द्रमणी देवी का अभी जनवरी 1991 में स्वर्गवास हो गया आपके एक पुत्र श्री देवेन्द्रकुमार पान्ड्या है जिनका विवाह श्रीमती शकुन्तला देवी से हुआ है तथा इनके दो पुत्र श्री वीरेन्द्र व श्री जितेन्द्र तथा एक पुत्री कुमारी पूजा है तथा चार पुत्रियां श्रीमती तारामणी देवी सेठी तिनसुकिया, श्रीमती सरला देवी चांदवाड़ झालरापाटन, श्रीमती सरितादेवी छाबड़ा गोहाटी तथा श्रीमती बबिता देवी कासलीवाल मद्रास है। सुजानगढ़ में रहते हुये श्री प्रकाश जी वहां की समाज के तथा संस्थाओं के अध्यक्ष थे। आप वर्तमान में श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चादखेड़ी के अध्यक्ष हैं दिगम्बर जैन समाज शॉपिंग सेटर कोटा के भी अध्यक्ष हैं। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा से भी जुड़े हुये हैं एवं कोटा की बहुत सी संस्थाओं से भी जुड़े हुये हैं। आप धार्मिक प्रवृत्ति के सरल मधुरभाषी एवं आतिथ्य सेवी हैं। कोटा में पैट्रोल पम्प है I पता:- प्रकाशदीप 410, शॉपिंग सेंटर, कोटा (राज.) श्री प्रतापचंद रावका कोटा नगर की अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये श्री प्रतापचंद जी रांवका का जन्म 13 दिसम्बर सन् 1930 को हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री नेमीचंद रावका है। समाजसेवी हैं । माताजी श्रीमती कंचनबाई का स्वर्गवास हो चुका है। आप आगरा विश्वविद्यालय से सन् 1954 में एम.ए. अर्थशास्त्र करने के पश्चात् फिर मेटिरियल की ठेकेदारी का कार्य करने लगे। 4 मार्च सन् 1952 में आपका विवाह सुश्री विनोदकुमारी के साथ संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। तीनों पुत्रों का विवाह हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र विपिन बी.ए. एवं प्रमोद बी.एस.सी. हैं। तीनों ही पुत्र व्यापार में लगे हुये हैं। श्री रावका जी ने सन् 1974 में कोटा में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में तथा मन् 1980 में रामगंजमंडी पंचकल्याणक के महामंत्री रहकर अच्छा कार्य किया। आप सन् 1981 में यात्रा संघ का नेतृत्व कर चुके हैं। कोटा में आयोजित होने वाले सभी सामाजिक समारोहों का संयोजन करते रहते हैं। 26 जनवरी 86 को कोटा में आयोजित दि. जैन युवा परिषद की ओर से आपको अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया था तथा श्रावक श्रेष्ठी की उपाधि से अलंकृत किया । उपाध्याय योगीन्द्र सागर जी महाराज के चातुर्मास समिति के प्रधानमंत्री रहे। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव समिति द्वारा आपको स्वर्णपदक से सम्मानित किया था। उत्साही कार्यकर्ता हैं। सभा समारोह आयोजित करने में दक्ष हैं। नटराज कला केन्द्र के अध्यक्ष हैं तथा विद्यार्थी जीवन में बालीबाल के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। 1952 में आपको बैस्ट फोटोग्राफी का भी अवार्ड मिल चुका है। पता :- 579 चिमन होटल के पीछे, नयापुरा, कोटा Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /403 श्री बाबूलाल दोशी . आगरा के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी के सानिध्य में रहकर जान का प्रचार प्रसार करने वाले श्री गुलाबचंद जी दोशी के सुपुत्र श्री बाबूलाल जी दोशी भी सामाजिक कार्यों में अपने पिताश्री के आदर्शों में चल रहे हैं। आपका जन्म आगरा में भादवा सुदी 3 संवत् 1971 को हुआ सामान्य शिक्षा प्राप्त करने या पश्चात् आप व्यवसाय में लग गये । करीब 25 वर्ष पूर्व आप लोग आगरा छोड़कर कोटा आकर रहने लगे और फिर वहीं के हो गये । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री ललित कुमार बैंक में अधिकारी हैं तथा द्वितीय पुत्र श्री महेन्द्र दोशी सेल्स आफिसर हैं। दोशी जी बड़े धार्मिक हैं । जब आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी दोशी को आगरा जैन समाज ने दि. 11 जनवरी सन् 1959 को अभिनंदन पत्र भेंट किया था तो उसमें आपको भी धर्मात्मा, सदाचारी,दानी शब्द से उल्लेख किया था। पता :- रिपब्लिक ट्रेडिंग कम्पनी,186 शापिंग सेन्टर, कोटा श्री फूलचन्द सोगानी भवानीमंडी जैन समाज के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री फूलचन्द सौगानी का जन्म कार्तिक बुदी अष्टमी संवत् 1970 को हुआ | आपके पिताजी श्री मोहरोलाल जी एवं माताजी श्रीमती गुलाबबाई का बहुत पहिले स्वर्गवास हो चुका है । संवत् 2000 में आपका विवाह पुष्पाबाई से हुआ 1 जिनसे आपको एक पुत्री इन्द्र बाई की प्राप्ति हुई। श्री सौगानी जी दि.जैन अ.क्षेत्र चांदखेडी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में कार्यकारिणी सदस्य हैं। भवानीमंडी नगरपालिका के स्टेट टाइम में तीन वर्ष तक सदस्य रहे थे। यहां के जैन समाज के अर्थमंत्री हैं। आपके द्वारा चांदखेडी अतिशय क्षेत्र पर एक कमरे का निर्माण करवाया तथा पिड़ावा धर्मशाला के निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया। मुनि भक्त हैं आपकी पत्नी दशलक्षण क्त के उपत्रास, अष्टाह्निका व्रत के उपवास एवं अन्य उपवास कर चुकी है। पता :- शिवनारायण द्वारकादास, भवानीमंडी (झालावाड़) स्व. श्री मदनमोहन कासलीवाल बूंदी के नगर सेठ स्व.श्री मदनमोहन जी कासलीवाल अपने युग के हाडौती प्रदेश के । सर्वाधिक प्रतिष्ठित सेठ थे । उनका सामाजिक जीवन समाज के लिये मार्गदर्शक रहा । उनके पूर्वजों की परम्परा में सर्वप्रथम श्री दौलतराम जी बूंदी कमाने खाने गये। उनके कोई संतान नहीं होने से गगराणा से कुन्दनमल जी के गोद आये । इन्होंने दो विवाह किये । प्रथम पत्नी से सौभागमल जी राजमलजी एवं गाढमल जी हुये तथा दूसरी पत्नी से नेमीचन्द जीएवं मदन मोहन । जी हुए। उनका जन्म जेठ सुटी ।। शुक्रवार संवत् 1:462 में हुआ। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 404 / जैन समाज का वृहद् इतिहास सेठ मदनमोहन जी ने भी दो विवाह किये। प्रथम पत्नी सेठ भागचंद जी सोनी अजमेर वालों की बुआ थी। दूसरी पत्नी श्रीमती रत्नप्रभा जयपुर के श्री वृद्धिचंद जी बेलेवाले की पुत्री थी। श्रीमती रत्नप्रभा का जन्म जेठ सुदी 2 संवत् 1981 को हुआ था तथा विद्या विनोदनी तक शिक्षा प्राप्त की थी। रत्नप्रभा का विवाह मदनमोहन जी के साथ सन् 1938 में हुआ । मदनमोहन जी के भी कोई संतान नहीं हुई इसलिये अपने भाई गाढ़मल के पौत्र एवं फूलचंद जी के पुत्र राजेन्द्र कुमार जी को गोद लिया। श्री राजेन्द्र कुमार की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पुष्पादेवी है जो दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की जननी है। स्व. सेठ मदनमोहन जी विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने बूंदी पंचकल्याणक में सौधर्म इन्द्र पद स्वीकार किया । आपने चौगान के मंदिर में बाहुबली, शांति नाथ की मूर्तियाँ विराजमान की थी। उनकी 18 अप्रेल, 1979 को मृत्यु हो गई । प्रस्तुत पुस्तक के लेखक को उनके संपर्क में आने का उस समय अवसर मिला जब उनकी कीर्ति एवं यश पराकाष्ठा पर थे । सेठ साहब की धर्मपत्नी श्रीमती रत्नप्रभा जी धर्मपरायण महिला हैं। पता :- कुन्दनमल, दौलतराम, सूरजपोल, बूंदी श्री महावीर कुमार काला बूंदी के उत्साही युवा समाजसेवी श्री महावीर कुमार जी काला का जन्म 31 मई सन् 1939 को हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री लालचंद एवं माता श्रीमती हीराबाई है। प्री यूनि. तक अध्ययन करने के पश्चात् आप व्यापारिक लाइन में चले गये और कपड़े का व्यवसाय करने लगे। 2 फरवरी सन 1961 को आपका श्रीमती मनोरमा देवी से विवाह हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका ज्येष्ठ पुत्र अनिल कुमार एम.कॉम. एल.एल.बी. है। दूसरा पुत्र सुनील कुमार मैट्रिक हैं। आपका एक भाई सुरेन्द्रकुमार एल. एल. बी. तथा दूसरा अमित कुमार बी. ए. है । काला जी काँग्रेस (आई) के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बूंदी मुमुक्षू मंडल के सेक्रेटरी तथा बूंदी किराणा एसोसियेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। भगवान महावीर परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष में आपने खूब कार्य किया था। पता:- सुनिता साडी सेन्टर, सदर बाजार, बूंदी श्री महावीर प्रसाद जैन अजमेरा 2 फरवरी सन् 1949 को जन्मे श्री महावीर प्रसाद जैन खण्डेलवाल दि. जैन हैं तथा अजमेरा उनका गोत्र है | उनके पिताजी का नाम श्री छगनलाल जी एवं माता श्रीमती कान्ता देवी है। उन्होंने दो विषयों में एम.ए. किया। एल. एल. बी. हैं साथ में बी.एड. भी हैं। अध्यापन का कार्य करते हैं। सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। अजमेरा जी वर्तमान में दि. जैन समाज हाडोती अंचल के मंत्री हैं। जैन क्लब के डाइरेक्टर तथा दि. जैन अकलंक माध्यमिक विद्यालय कोटा के संयुक्त मंत्री हैं। अजमेरा जी और भी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं तथा सभी सामाजिक Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /405 समारोहों में अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं। सन् 1973 में कोटा में जब दि. जैन परिषद का स्वर्ण जयन्ती अधिवेशन हुआ था तो आप स्वयं सेवक समिति के संयोजक थे। उमेशकुमार आपका छोटा भाई है तथा एक पुत्री वंदना एवं दो पुत्र विकास एवं वरुण से अलंकृत हैं। पता:- 3 क 34 विज्ञान नगर, कोटा (राज.) श्री माणकचंद पाटनी ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में लगे हुये श्री माणकचंद पाटनी कोटा की जैन समाज में ख्याति प्राप्त समाजसेवी हैं। नगर की छावनी सर्किल में आप विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। आपके पिताजी श्री घीसालाल जी एवं माताजी श्रीमती सुगनीबाई दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। संवत् 1988 में सावन सुदी 5 आपका जन्म हुआ और 16 वर्ष की आयु में संवत् 2004 में आपका विवाह श्रीमती कंचनदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्र सुभाष चंद, नवीन चन्द एवं राजकुमार एवं दो पुत्रियाँ चांदवाई एवं उषा बाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। तीनों ही पुत्र ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में लगे हुये हैं तथा दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। पाटनी जी समर्पित कार्यकर्ता हैं एवं अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने वाले समाजसेवी हैं। श्री दिगम्बर जैन मंदिर छावनी के आप सदस्य हैं। पता:- जैन गुड्स ट्रांसपोर्ट, 21, नई धान मंडी, कोटा । श्री माणकचंद सेठी बारां के सामाजिक क्षेत्र में श्री माणकचंद सेठी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। आप दि. जैन समाज बारां के अध्यक्ष हैं। आपका जन्म श्रावण सुदी 10 सं. 1982 को हुआ। आपके पिता श्री नंदलाल जी व माताजी श्रीमती मोतिया बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपने आठवीं कक्षा तक सामान्य शिक्षा प्राप्त की और आढत एवं कमीशन का कार्य करने लगे। संवत् 2008 में आपका विवाह श्रीमती चंदा बाई से हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र, अशोक, प्रवीण एवं राकेश की प्राप्ति हुई। तीन पुत्र है जो बी कॉम है। प्रथम दो पुत्रों का विवाह हो चुका है। श्री अशोक के तीन पत्र एवं प्रवीण कुमार के दो पुत्रियाँ हैं । सेठी जी पूर्णतः सामाजिक एवं धार्मिक जीवन व्यतीत करते हैं। बारों में एवं अन्य स्थानों में आयोजित होने वाले पंचकल्याणकों में आप इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त करते रहते हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। अब तक सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। बारां की सार्वजनिक संस्था धर्मादा के अध्यक्ष रह चुके हैं और वर्तमान में उसके कोषाध्यक्ष हैं। महावीर जैन औषधालय 'बारां के वर्तमान में अध्यक्ष हैं। सेठी जी मुनिभक्त हैं । मुनियों को आहार आदि देते रहते हैं। प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करते हैं। पता:- माणकचंद एण्ड संस, दीनदयाल पार्क, बारां (कोटा) Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 406/ जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री मोतीलाल टोंग्या भवानीमंडी के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री भातीलाल जो टो-या अब तक आतशय क्षेत्र चांदखेडी, मक्सी पार्श्वनाथ, समवशरण मन्दिर चांदखेडी निर्माण में उल्लेखनीय आर्थिक सहयोग कर चुके हैं । आहार औषधालय संचालन एवं पूजा जैसे कार्यों में आपकी विशेष रुचि रहती है। आप रामगंजमंडी एवं झालरापाटन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र के पद से सुशोभित हुए थे । आप पहिले बैंक सर्विस में थे और वहां से सेवा निवृत्त होकर सादगी से जोवनयापन कर रहे हैं। वर्तमान में आपकी आयु करीब 80 की हो गयी है। आपकी धर्मपत्नी का नाम कंचन बाई है। पता: जैन मन्दिर के पास, भवानीमंडी (कोटा)। श्री मुकेश कुमार रांवका ___ श्री मुकेशकुमार का जन्म रामगंजमंडी एवं झालावाड़ के प्रसिद्ध घराने में दिनांक 14 जनवरी सन् 1952 को हुआ । उसी वर्ष आपके पिताजी श्री दीपचंद जी रावका का मात्र 24 वर्ष की आयु में बिजली का करेन्ट लगने से निधन हो गया । आपकी माताजी श्रीमती चन्द्रकला देवी जी रावका बहुत ही सहनशील महिला हैं जिन्होंने आपका पालन पोषण किया। सन् 1971 में आपने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से बी.ए.किया । पढ़ाई जारी रखने के लिये आपको बहुत कष्ट उठाने पड़े और चने खाकर रहना पड़ा । पढ़ाई करने के बाद व्यापारिक क्षेत्र में रामगंजमंडी की प्रसिद्ध फर्म नाथूराम का कार्य देखने लगे। दिनांक 30 नवम्बर, [976 को आपका विवाह ब्यावर की सुश्री संतोष के साथ संपन्न हुआ.। आपको दो पुत्रियाँ सोनल एवं चेताली एवं एक पुत्र नमन के पिता होने का गौरव प्राप्त है। आपके पूर्वजों ने झालरापाटन एवं रामगंजमंडी में आयोजित पंचकल्याणकों को संपन्न कराया था। उसके पश्चात् सेठ कल्याणमल जी रावका की धर्मपत्नी श्रीमती सेठानी धारकंवर बाई जी ने उसे समाज को संभला दिया । श्री मुकेश जी बहुत ही उत्साही युवक हैं । व्यापारिक दक्षता के साथ-साथ समाजसेवा में पूर्ण रुचि रखते हैं। स्वभाव से अत्यधिक विनीत एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। आपकी माताजी श्रीमती चन्द्रकला जी रावका बी.ए. विशारद है। समाज सेवा में अग्रणी हैं। रामगंजमंडी महिला समाज की संयोजिका हैं । सेवाभावी महिला हैं । पति के मरने के पश्चात् आपको काफी कष्ट उठाना पड़ा। मैट्रिक किया और फिर बी.ए.किया । जयपुर में श्री महावीर दि.जैन हायर सैकेण्डरी स्कूल में सर्विस करनी पड़ी । लेकिन आपने हार कभी नहीं मानी और अपने एक मात्र पुत्र मुकेश के जीवन निर्माण में लगी रही। श्रीमती चन्द्रकला देवी राबका पहा- नाथूराम जोरजी, रामगंज मंडी,कोटा श्री यशभानुकुमार पाटोदी राजस्थान की किशनगंज में 19 अगस्त 1954 को जन्में श्री यशभानुकुमार सन्1972-73 में मैकेनिकल इन्जीनियरिंग में डिप्लोमा करके गैस एजेन्सी का कार्य करने लगे । आपके पिताजी श्री दिनेश चन्द जी किशनगंज में ही खेती का कार्य करते Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /407 हैं। आपकी माताजी श्रीमती चन्द्रदुलारी है । आपका विवाह श्रीमती मन्जूलता के साथ दि.9 मार्च सन् 1974 को संपन्न हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्रियां विनीता,ममता, टीना एवं एक पुत्र गुणवन्त के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। सभी बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। पाटोदी बहुत ही उत्साही युवक हैं । अपने ग्राम किशनगंज के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया है तथा उसकी देखभाल करते हैं। विद्यार्थी जीवन में आप कॉलेज यूनियन के अध्यक्ष रहे तथा उस समय में आपको लेख वगैरह लिखने में बहुत रुचि रहती थी । वर्तमान में आगाएं नागरिक सहकारीको अलमे अक्ष हैं। और युवा मंडल बारां के परामर्शदाता भी रह चुके हैं। पता- श्री जी का चौक,बारां (बारा) राज. श्री रतनकुमार बज बारां के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री हजारीलाल जी बज के सुपुत्र श्री रतनलाल जी बज का जन्म 13 दिसम्बर सन् 1933 को हुआ । मैट्रिक एवं व्यापार विशारद करने के पश्चात् आप जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय करने लगे। सन 1952 में आपका विवाह श्रीमती सन्तोष देवी के साथ सम्पन्न हुआ। आपको तीन पुत्र नूतन कुमार ,मनोज कुमार एवं जम्बूकुमार तथा पांच पुत्रियां रजीन, प्रभा,नगेन्द्रबाला,अमिता एवं सुमन के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। सभी -पुत्र उच्च शिक्षित हैं इसी तरह पुत्रियां एम.ए. हैं तथा सभी का | विवाह हो चुका है। आपके पिताजी से लेखक का बहुत पत्र व्यवहार रहता था । वे बारां पंचकल्याणक की व्यवस्था समिति के संयोजक थे । बे 15-20 वर्ष तक नगर परिषद् के सदस्य रहे । श्री रतनलाल जी बज अपने पिताजी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। वर्तमान में आप महावीर जैन औषधालय के सेक्रेटरी,खुदरा किराना विक्रेता संघ के अध्यक्ष एवं खण्डेलवाल जैन समाज के उपाध्यक्ष हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सन्तोष देवी भी महिला मंडल बारां की अध्यक्ष तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि लेती हैं। श्रीमती संतोष देवी पता:- हजारीलाल हीरालाल जैन,जनरल मर्चेन्ट्स,बारां श्री राजमल लुहाडिया रामगंजमंडी नगर बसने के साथ-साथ झालरापाटन से आकरबसने वाले श्री नन्दलाल माणकचन्द समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उन्हीं के घर में कार्तिक शुक्ला 2 संवत् 1984 (सन 1927) को जन्में श्री राजमल जी लुहाडिया ने सन 1970 में मैट्रिक किया और फिर पिताजी के साथ आढत बारदाना का कार्य करने लगे । संवत् 2000 में आपका विवाह सुन्दरबाई जी के साथ हो गया। जिनसे आपको 4 पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपके पितामह चार प्रतिमा के धारी थे तथा उन्होंने 40 वर्ष तक नियमित जीवन व्यतीत किया। आपका स्वर्गवास 4 सितम्बर सन् 1967 को हो गया। उसके पश्चात् दिनांक 13.11.1974 को Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 408/ जैन समाज का वृहद इतिहास आपके पिताजी चल बसे । आपकी माता श्रीमती गट्टबाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । आप, आपकी धर्मपत्नी एवं माताजी सभी के शुद्ध खानपान का नियम है । वर्तमान में आप दि.जैन मन्दिर शान्तिनाथ स्वामी रामगंजमंडी के ट्रस्टी हैं। आपके बाबाजी श्री नन्दलाल जी की धार्मिक कार्यों में पूर्ण रुचि रहती थी। रामगंजमंडी के शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर निर्माण करवाने में आपने पूर्ण सहयोग दिया था तथा पास ही में स्थित रातादेवी की पहाड़ी में स्थित अरहनाथ,शान्तिनाथ,कुंथनाथ की प्रतिमायें एवं सहस्कूट चैत्यालय को लाकर यहां स्थापित किया। 1. आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री पवनकुमार 46 वर्ष के हैं । बी.कॉम हैं । पत्नी का नाम सुलोचना है । एक पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता हैं। 2.द्वितीय पुत्र श्री जम्बूकुमार सी.ए. हैं । एच.एम.टी. अजमेर में लेखाधिकारी हैं । उनकी पत्नी श्रीमती मधू भी एम.ए. हैं। एक पुत्र एवं एक पुत्री की माता हैं । 3.तीसरे पुत्र श्री कमल कुमार 33 वर्ष के हैं। वी.कॉम,एल.एल.बी. हैं । पत्नी का नाम संगीता है जो एम. ए. है । एक पुत्र के पिता हैं। 4. चतुर्थ पुत्र श्री प्रदीप कुमार 30 वर्षीय हैं,युवा हैं,बी.एस.सी.हैं। सन् 1980 में राजस्थान विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में पास कर चुके हैं। पता- राजमल, पदमकुमार,बाजार नं.9, रामगंजमंडी,(कोटा) श्रीमती लादेवी कोठारी श्रीमती लाड़देवी कोठारी कोटा (राजस्थान) महिला समाज में बहुचर्चित एवं लोकप्रिय महिला हैं अपने उदार एवं मानव सेवा भावी स्वभाव के कारण वे सब की प्रशंसा की पात्र बन गई हैं । विनम्रता एवं दयाशीलता उनके जीवन के विशिष्ट गुण माने जाते हैं सबको साथ लेकर चलने में उन्हें असीम प्रसत्रता होती है तथा जनकल्याण के कार्यों को सम्पादित करने में वे सब से आगे रहती है। राजस्थान में बून्दी जिले के हिन्डोली ग्राम में जन्मी लाइदेवी सामाजिक सेवा की प्रतिमूर्ति श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी को धर्मपली हैं जिन्हें घर में आने वाले अतिथियों का स्वागत करने में बड़ा आनन्द आता है। प्रतिदिन पूजा पाठ करना तथा साधु संतों की सेवा सुश्रुषा में लगे रहना उन्हें अच्छा लगता है वे पचासों महिलाओं से जुड़ी रहना चाहती है इसलिये पदयात्रा में उनको विशेष रुचि रहती है । अभी तक वे सैकड़ों महिलाओं को साथ लेकर कोटा से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन तक 5 बार पदयात्रा कर चुकी हैं । तथा दो बार कोटा से 110 कि.मी.दूरी पर स्थित चांदखेडी क्षेत्र की भी पदयात्रा कर चुकी हैं । यात्रा में उन्होंने सभी महानुभावों की दिल खोलकर अपनी तरफ से सर्व प्रकार के साधन जुटाते हुये जो सेवा सुश्रुषा की है वह सराहनीय है। श्रीमती लाइदेवी कोठारी मुनिराजों एवं आर्यिका माताओं की सेवा करने में सदैव तत्पर रहती हैं। प्रतिवर्ष मुनि संघों के दर्शनार्थ जाना वथा संघ को आर्थिक सहयोग देना अपना कर्तव्य समझती हैं मुनिसंघों के विहार में बराबर सहयोग देती रहती Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /409 हैं। परम पूज्य योगीराज आचार्य विमल सागर जी महाराज एवं उनके संघ को एक बार चांदखेडी से महावीर जी तथा दूसरी बार उन्हीं के संघ को निवाई से महावीर जी तक सकुशल पहुंचाने में स्मरणीय सहयोग दिया तथा संघ के साथ रहकर साधु संतों की अपूर्व सेवा की, इसी तरह आचार्यप्रवर विद्यासागर जी महाराज के संघ में जाकर उनकी यथोचित सेवा सुश्रुषा करके अपने जन्म को धन्य बना लिया है। विपत्र एवं साधनहीन महिलाओं को सभी तरह से आर्थिक सहयोग देने में आप विशेष रुचि लेती हैं। ओम कोठारी फाउन्डेशन के माध्यम से आप प्रसूति के समय सैंकड़ों बहिनों की सेवा सुश्रुषा करके उन्हें यथोवित आर्थिक सहयोग भी देती रहती हैं। इस कार्य के लिये आपके घर के द्वार सदैव खुले रहते हैं । महिलाओं में शिक्षा का प्रचार हो सके उसके लिये भी आप यथेष्ट सक्रिय रहती हैं । बालिकाओं की फीस जमा कराना तथा उन्हें पुस्तकें आदि दिलवाने में आगे रहती हैं। समाज में होने वाले सामहिक विवाहों के आयोजन में कोठारी परिवार की ओर से पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया जाता है। राजस्थान के देवली नैनवा हिण्डोली आदि स्थानों पर होने वाले सामहिक विवाहों के अवसर पर नव विवानि को गृहस्थी को आवश्यक वस्तुएं उपहार में देकर सामूहिक विवाह प्रथा के प्रचार प्रसार में भी योग देकर अपने कर्तव्य का पालन किया है। तीर्थों पर आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिये आपने गोम्मटगिरी इन्दौर तथा चांदखेडी राजस्थान अतिशय क्षेत्रों पर अतिथि भवनों (गेस्ट हाऊस) का निर्माण करवाकर एक अच्छी परम्परा को जन्म दिया है । इस तरह राजस्थान के ही चंवलेश्वर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र के चहुंमुखी विकास में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कोटा की प्राचीन नशियों का जीर्णोद्धार करवाकर उसली घार रनों के मन मार्यों के चरण चिन्ह स्थापित किये हैं। आचार्य विमल सागर जी महाराज के आदेशानुसार आपने विभिन्न सात स्थानों पर आचार्य समन्त भद्र,मानतुंग,नेमीचन्द्र जैसे आचार्यों के चरण स्थापित करके इतिहास को सुरक्षित रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया है । आपने कोठारी जी के साथ 42 जैन बन्धुओं को लेकर लेस्टर में आयोजित पंचकल्याणक में भाग लेकर पुण्य संपादित किया है। अमेरिका में स्थित सिद्धाचलम मन्दिर में आप एवं आपके परिवार द्वारा भगवान बाहुबलि की एक मनोप्य प्रतिमा को विराजमान करवाकर विदेश में भी जैन संस्कृति के प्रचार का एक स्थायी कार्य किया है। श्रीमती लाडदेवी एवं श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी को गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव में तीर्थंकर भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। वैसा ही दुबारा सौभाग्य आप दोनों को 16 जनवरी 1991 में परमपूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के सानिध्य में भगवान आदिनाथ के बावनगजा महामस्तकाभिषेक के अवसर पर होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव में माता-पिता बनने का पुन: सौभाग्य प्राप्त हुआ है । सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास में इस प्रकार के बहुत कम व्यक्ति मिलेंगे जिनको जीवन में एक बार से अधिक माता-पिता बनने का परम सौभाग्य मिला हो। ___ कोटा से आपकी विशेष प्रेरणा से पदयात्रा श्री अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन जो 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है समाज के साथ करते हुये समाज का धार्मिक उत्साह बढ़ाया है। Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 410/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आ.ने दूनी मान में जैन धर्माला, गोमटागरी एवं भाखडा आदि क्षेत्रों पर गेस्ट हाउस का निर्माण करके काफी हद तक क्षेत्रों की इस कमी को ठीक करने में योगदान दिया है। मंडल विधान के कार्यक्रमों में भी आप आगे रहते हैं। जयपुर,बम्बई,शिखरजी,राजगिरी,चांदखेडी,सोनागिर जी आदि नगरों में आपकी तरफ से वृहत् सिद्धचक्र व इन्द्रध्वज मंडल विधान एवं अन्य विद्वानों में विशेष रुचि रखते हुये समाज में धर्म के प्रति उत्साह बढ़ाते हैं। आपके सद्गुणों से प्रभावित होकर गतवर्ष कोटा की स्थानीय समाज द्वारा श्री दि. जैन महासभा के उपाध्यक्ष श्री माणकचंद जी पालीवाल की अध्यक्षता में आपको महिला भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया था। हम आप दोनों के स्वस्थ,सुखद एवं यशस्वी जीवन की श्री बीर प्रभू से मंगल कामना करते हैं। श्री वीरेन्द्रकुमार पाटनी झालावाड़ निवासी श्री वीरेन्द्रकुमार पाटनी श्री महेन्द्रकुमार पाटनी के सुपुत्र हैं। श्री महेन्द्रकुमार जी कुजेड ग्राम पंचायत के सरपंच हैं । पाटनौजी का जन्म 15 मई सन् 1948 को हुआ। सन् 1971 में आपने. कोरा कालेज से बी.ए., एल.एल.बी किया। सन् 1975 में आपका विवाह श्रीमती रंजना के साथ संपन्न हुआ । श्रीमती रंजना बी.ए. हैं तथा कोटा के श्री रिखबवन्द जी एडवोकेट की सुपुत्री हैं। आपको दो पुत्रों को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपके पूर्वजों ने अपने ग्राम कुंजेड में दिग.बैन मन्दिर का निर्माण करवाया था। पाटनी जी लायन्स क्लब के अध्यक्ष एवं रेडक्रास सोसाइटी के सदस्य हैं। श्रीमती रंजना भी महिला समाज को जागृत करने में विशेष रुचि रखती हैं। पता: मामा भाणजा चौराहा, झालावाड़ श्री शांतिकुमार बड़जात्या श्री बड़जात्या जी बारां नगर के प्रमुख समाजसेवी हैं। आप दि.जैन समाज के संयोजक,मंत्री एवं अध्यक्ष सभी पदों पर कार्य कर चुके हैं। वर्तमान में यहां की प्राचीन एवं विशाल नशियां के संयोजक है। आपका जन्म संवत् 1983 में हुआ। आपके पिताजी श्री छीतरमल जी एवं माता श्रीमती दाखादेवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। सन् 1947 में आपका विवाह मोहिनी बाई से हुआ। आपको 6 पुत्र अशोककुमार, निर्मलकुमार,राजेन्द्रकुमार, चेतनकुमार,मिजयेन्द्र एवं नरेन्द्र तथा तीन पुत्रियाँ चन्दा,रानी एवं रोजी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। श्री निर्मल कुमार एवं राजेन्द्रकुमार एम.ए. हैं । चेतनकुमार बोई. हैं । दोनों छोटे बच्चे पढ़ रहे हैं । श्रीमती चंदा बी.ए. है तथा रानी एम.ए., एल.एल.बी. है। आपका धार्मिक जीवन विशेष उल्लेखनीय है । बारां में आप सिद्धचक्र मंडल विधान करा चुके हैं। आपने अपने परिवार के साथ सभी तीर्थों की वंदना करली है। मुनियों के कट्टर भक्त हैं। उनकी वैयावृत्ति करने में पूर्ण रुचि रखते हैं । प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक का नियम है। पता: शाह नेमजी छीतरमल जीबड़जात्या भीमगंज वार्ड,प्रतापचौराहा, बारां,कोटा Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुनील कोठारी 1 कोटा के श्री त्रिलोकचंद जी कोठारी के सबसे छोटे पुत्र श्री सुनील कोठारी का जन्म उस समय हुआ जब उनके पिता श्री उद्योग संचालन की दिशा में कदम रखने लगे थे 3 फरवरी 1904 को जन्मे श्री सुदील कोठारी ने बी.कॉम. एवं एम.बी.ए. की परीक्षा पास की तथा 13 मार्च सन् 1985 को कानपुर निवासी श्री रिषभचन्द जी गोधा की सुपुत्री सीमा से विवाह सूत्र में बंध गये। जिनसे आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /411 श्री सुनील कोठारी ओम कोठारी उद्योग समूह के सेल्स डायरेक्टर एवं एल.पी.जी. ट्रांसपोर्ट डिवीजन के इन्चार्ज है। आयु में बहुत छोटे होने पर भी आप अपने उत्तरदायित्व को अच्छी तरह निभा रहे हैं। पता:- 16/121-122, कोठारी भवन, फैज रोड, नई दिल्ली। श्री हुकमचंद टोंग्या झालावाड़ के सामाजिक कार्यकर्ता श्री हुकमचंद टोंग्या का जन्म सन् 1922 में हुआ। आपके माता-पिता श्री विरधीचंद जी माताजी श्री गुलाबबाई दोनों का ही काफी पहले स्वर्गवास हो चुका है। सन् 1942 में आपका विवाह श्रीमती मोहनी देवी के साथ हुआ। जिनसे आपको पांच पुत्र श्री प्रभातचन्द, प्रकाशचन्द, प्रदीपकुमार, अनिल कुमार, राजकुमार एवं दो पुत्रियों प्रेमवाई एवं सरोज के पिता बनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। सभी पुत्र एवं पुत्रियों का विवाह हो चुका है। प्रकाशचंद के अतिरिक्त सभी बच्चे डीमापुर में व्यवसायरत हैं। आपके घर में पूर्वजों द्वारा बनाया गया चैत्यालय है। झालावाड स्टेट में आपके पूर्वजों का पर्याप्त सम्मान था । राजमल जी चंदनमल जी झालावाड स्टेट के प्रधान मंत्री एवं तहसीलदार रहे थे तथा कोटा से जब झालावाड स्टेट अलग हुई तो उनके साथ ही आये थे । आपने सभी तीर्थ यात्रायें संपन्न कर ली हैं। मुनिभक्त हैं। 1 पता हुकमचंद प्रभातचंद मंगलपुर बाजार, झालावाड़ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 412/ जैन समाज का बृहद् इतिहास मारवाड़ प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी पूर्व इतिहास:- मारवाड़ प्रदेश में मुख्य जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर एवं शेखावाटी के भाग आते हैं। राजस्थान बनने के पर्व शेरावाटी जयपर राज्य का अंग था तथा शेष तीनों स्वतंत्र स्टेट्स थी और उनकी अलग-अलग सीमायें थी । ये सभी प्रदेश रेगिस्तानी प्रदेश हैं । आवागमन के बहुत ही सीमित साधन हैं । पानी की बड़ी कमी है और कहीं-कहीं तो कोसों तक पानी नहीं मिलता। लेकिन जैन धर्म के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से यह प्रदेश सदैव उर्वरक माना जाता रहा । इस प्रदेश में साधु संतों का खूब विहार होता रहा। यहां के शासकों द्वारा जैन मंदिरों की व्यवस्था के लिये दिये जाने वाले संवत् 1167 से 1322 तक के दानपत्रों के सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं । साहित्य निर्माण का कार्य भी अबाध गति से चलता रहा यही नहीं मारवाड़ के कितने ही जैन मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से विश्व में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। नागौर इस प्रदेश का प्रमुख स्थान है । यह नगर प्रारंभ से ही दिगम्बर जैन समाज का प्रमुख केन्द्र रहा । भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य रलकीर्ति ने यहाँ स्वतंत्र रूप से भट्टारक गादी की स्थापना की । इस पट्ट पर एक के पश्चात् दूसरे भट्टारक होते रहे । नागौर का ग्रंथ संग्रहालय सारे राजस्थान में विशाल एवं समृद्ध है । 15-16 वीं शताब्दि मे यहाँ संस्कृत कवि मेधावी हुआ जिसने संवत् 1541 में इसी नगर में धर्मसंग्रहश्रावकाचार की रचना की थी। वर्तमान इतिहास: मारवाड़ में नागौर जिला, सीकर जिला, झंझुनू जिला, लाडनूं, सुजानगढ, मेडतासिटी, जैसे नगरों को लिया गया है । इन सब जिलों एवं नगरों तथा गाँवों में खण्डेलवाल जैनों के ही घर हैं । अग्रवाल जैन समाज की जनसंख्या बहुत सीमित है। सीकर जिला: सीकर जिले में फतहपुर, लक्ष्मणगढ़, दांतारामगढ़, नीम का थाना, सीकर, श्री माधोपुर की तहसीलें हैं। खण्डेलवाल जैनों का उदभव स्थान खंडेला भी सीकर जिले में ही है । लेकिन वहां कोई जैन परिवार नहीं रहता। अब खंडेला विकास समिति द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार एवं धर्मशाला का निर्माण हुआ है । सन् 1981 की जनगणना में सीकर जिले की जनसंख्या 7050 थी । तहसील एवं नगर के अनुसार निम्न प्रकार जनसंख्या के आंकड़े थे :फतहपुर नगर 559 रामगढ़ नगर - 56 लक्ष्मणगढ नगर 46 लक्ष्मणगढ तहसील . 158 सीकर तहसील 3231 नीम का थाना तहसील) सीकर नगर 2150 • नीम का थाना श्री माधोपुर (तहसील) - 646 रींगस दांतारामगढ़ (तहसील) - 209n इस जिले में 28-30 गांवों में जैनों के घर मिलते हैं। लेकिन फतेहपुर के अतिरिक्त अन्य सभी गांवों में खण्डेलवाल जैनों के ही घर हैं। सीकर शहर में सबसे अधिक जैन घरों की बस्ती है जिनकी संख्या 300 होगी । 208 Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 413 सीकर में सभी परिवार खण्डेलवाल जैन जाति के हैं तथा सबसे अधिक छाबडा गोत्रीय परिवार है। धाकडा उपनाम भी छाबड़ा गोत्रीय श्रावकों का है। सीकर शहर में मुनियों का विहार एवं चातुर्मास होता रहा हैं। पंच कल्याणक प्रतिष्ठायें एवं इन्द्रध्वज विधान भी आयोजित होते रहते हैं। यहां अंतिम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा अभी देवीपुरा में हुई थी। आचार्य धर्मसागर जी महाराज का चातुर्मास सोकर में हुआ था तथा उनका समाधिमरण भी सीकर में ही हुआ था। सीकर जैन पंचायत का शेखावाटी एवं मारवाड़ में पूरा प्रभाव है। सीकर में पं. महाचन्द प्रसिद्ध विद्वान एवं कवि हो चुके हैं। यहां का दीवान खानदान सीकर का प्रतिष्ठित खानदान है जिसमें यहां के ठिकाने के दीवान होते रहे। अन्तिम दीवान भंवरलाल जी थे । सीकर जिले के कोछोर में 15 परिवार, दांता में 40 परिवार, फतेहपुर में 55 परिवार, दुजोद में 20 परिवार एवं राणोली में 55 परिवार रहते हैं। फतेहपुर में अग्रवाल जैन समाज के 25 परिवार हैं। ये सभी खण्डेलवाल जैन हैं जिन्हें सरावगी कहा जाता है। राणोली में छाबड़ा, पाटनी, बड़जात्या, कासलीवाल, गंगवाल, झांझरी, काला एवं रारा गोत्रीय सरावगियों के घर हैं। एक मंदिर एवं एक नशियां हैं। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के गुरू आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज राणोली ही के थे। राणोली के पास ही रेवासा है जहां का मंदिर कलापूर्ण, विशाल एवं दर्शनीय हैं । नागौर जिला : दिगम्बर जैन समाज की दृष्टि से नागौर जिला अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं समृद्ध जिला है। सन् 1981 की जनगणना में यहां के जैन समाज की संख्या 23013 थी जिसका तहसील के अनुसार विभाजन निम्न प्रकार है:लाडनूं जिला 4607 डीडवाना 1173 4229 411 6236 3670 4151 कुचामन शहर 972 परबतसर 2268 मकराना 197 3045 मेड़ता शहर 1081 मेड़ता (तहसील) उक्त आंकड़ों के अतिरिक्त इस जिले में नागौर, कुचामन सिटी, डेह, नावां, पांचवा, मेड़ता सिटी जैसे नगरों में दिगम्बर जैन समाज की अच्छी संख्या है। लाडनूं शहर नागौर तहसील नागौर शहर जायल नावां नागौर में दिगम्बर जैन जनसंख्या सन् 1911 में 114 तथा घर तथा 326 स्त्री-पुरुष थे। इसके पूर्व जब महासभा के उपदेशक हकीम कल्याणमल यहां आये तो उन्होंने 1500 घर एवं दो मंदिरों का उल्लेख किया है। लेकिन वर्तमान में यहां 2000 घरों की बस्ती है जिनमें 135 घर बीस पंथ पंचायत में, 35 घर तेरहपंथी मंदिर पंचायत में तथा 30 घर साढे सोलह पंथ पंचायत में हैं। बीसपंथी मंदिर के अध्यक्ष श्री जीवराज पहाड़िया हैं तथा जीवराज जी पाटनी मंत्री हैं। तेरहपंथी पंचायत के श्री नन्दलाल मच्छी (चांदवाड) अध्यक्ष हैं तथा साढ़े सोलह पंथ पंचायत के श्री दीपचन्द जी सबलावत अध्यक्ष हैं। नागौर ही ऐसा नगर है जहां साढ़े सोलहपंथ भी हैं। Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 414/ जैन समाज का वृहद इतिहास यहां की भट्टारक गादी चन्द्रप्रभु स्वामी के मंदिर में है । जो बीस पंथ आम्नाय का है । अंतिम भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति जी थे जिनकी समाधि हैदराबाद में बनी हुई है । भट्टारकीय गादी वाले मंदिर में एक विशाल शास्त्र भंडार है जिसमें हजारों हस्तलिखित ग्रंथों का अलभ्य एवं दुर्लभ संकह है। यहां वि.सं. 2043 में बीसपंथी मंदिर में तथा सन् 1972 में साढ़े सोलहपंधी गति में प्रतापगम प्रशिता को दुक में यहां के श्री रतनलाल जी पहाड़िया ने मुनि दीक्षा ली थी तथा आचार्य धर्मसागर जी के संघ में रहे थे। आपका स्वर्गवास हो चुका है। श्री सोहनसिंह जी कानूनगों यहां के सबसे प्रतिष्ठित सज्जन थे। कुचामन सिटी : कुचामन सिटी नागौर जिले का एक प्रमुख नगर है जिसकी स्थापना संवत् 1701 में हुई थी। पहिले यह जोधपुर राज्य में जागीरदारी नगर था लेकिन वर्तमान में यह नागौर जिले का प्रमुख नगर है । वर्तमान में यहां 150 दि.जैन परिवार रहते हैं यहां तीन मंदिर, दो नशियां एवं दो चैत्यालय हैं । यहां नागौर एवं अजमेर दोनों ही भट्टारकों का केन्द्र था इसलिये यहां के मंदिर नागौरी मंदिर एवं अजमेरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं । दोनों ही मंदिर किले के नीचे मुख्य बाजार में आमने सामने हैं। एक ओर अजमेरी मंदिर का शिखर अत्यधिक कलापूर्ण है। वहां नागौरी मंदिर के शिखर के अन्दर के भाग में सोने का कार्य दर्शनीय है। दोनों ही मंदिर विशाल एवं दर्शनीय हैं। दोनों ही मंदिरों के नीचे एक एक नशियां है । कुचामन में स्व. गंभीरमल जी पांड्या बहुत बड़े समाजसेवी हुये हैं जिन्होंने लोहड साजन बडसाजन आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी। राजश्री पिक्चर्स के मालिक स्व. मोहनलाल जी बड़जात्या कुचामन के ही थे । वर्तमान में उनके पुत्र ताराचन्द जी बड़जात्या एवं उनका परिवार बम्बई रहता है तथा फिल्म जगत में भारत में विख्यात है। कुचामन में सबसे वयोवृद्ध श्री जमनालाल जी पाटोदी से जब लेखक ने भेंट की तो वे 106 वर्ष पार कर चके थे। उन्होंने अपनी परी अचल संपत्ति जिनेश्वर राय दि जैन विद्यालय को भेंट कर दी थी। वे प्रतिदिन अपने हाथों से 500 मन अनाज तोल देते थे। उन्होंने 13/-रुपया मन का घी खाया था तथा एक रुपया का 54 सेर बाजरा देखा था जो घटते-घटते 3 रुपया सेर हो गया था । वे गरीबी के कारण जन्म भर कुंवारे ही रहे । उनकी बहिन नाराणी का भी पैसे के अभाव में एक वृद्ध के साथ विवाह करना पड़ा। कुचामन विद्यालय में स्व. पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ ने कितने ही वर्षों तक पढ़ाया था तथा तोरावाटी गौडावाटी सभा भी स्थापित की थी। नावां शहर में 60 घर हैं जो सभी खण्डेलवाल जैन जाति के हैं। यहां भी नागौरी, अजमेरी एवं साहों का मंदिर है। यहां श्री किशनलाल जी रावका बहुत ही सेवाभावी व्यक्ति हो चुके हैं । कूकनवाली में 50 परिवार हैं। पांचवा ग्राम में 30 परिवार हैं । यहां चतुर्भज जी अजमेरा प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं जिन्होंने यहां विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन किया था। Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/415 मेड़ता तहसील: मेड़ता तहसील में मेड़ता सिटी में 35 घर एवं 2 मंदिर मेडता टोड में 10 घर एवं 1 मंदिर रेण में 8 घर एवं एक मंदिर तथा तहसील के शेष गांवों में छुटपुट परिवार रहते हैं। णली जिला: पाली जिले के जैतारण तहसील में आनन्दपुरकाल में खण्डेलवालों के 30 घर हैं तथा तीन मंदिर हैं । वहां श्री कंवरीलाल जी बोहरा अत्यधिक प्रतिष्ठित श्रेष्ठी है । इसके अतिरिक्त पाली में 40 घर, नीमाज में 15 घर तथा वलंदा में 15 घर हैं। सभी में एक-एक मंदिर हैं। झंझुनूं जिला : झुझुनूं जिले में वर्तमान में वेरी में 40 घर, वनगोठडी में 20 घर तथा छापडा में भी 20 घर हैं तथा सभी घर खण्डेलवाल जैन समाज के हैं । इन तीनों के अधिकांश परिवार डीमापुर (नागालैण्ड) एवं गोहाटी (आसाम) चले गये हैं। चूरू जिला : चूरू जिले में किराडा ग्राम में 25 परिवार रहते हैं। सभी खण्डेलवाल जाति के है । सुजानगड : सुजानगढ नगर में जनों को अच्छौ बस्ता है । यद्यपि यहां के आंधकांश परिवार आसाम, नागालैण्ड एवं कलकत्ता जैसे नगरों में स्थानान्तरित हो गये हैं फिर भी वर्तमान में यहाँ 225 परिवार खण्डेलवाल समाज के एवं 7 परिवार अग्रवाल जैन समाज के हैं। यहां के निवासी धार्मिक जीवन व्यतीत करते हैं। साधुओं की सेवा में समर्पित रहते हैं । आचार्य धर्मसागर जी ने यहां चातुर्मास किया था । सुजानगढ़ में भंवरीलाल जी बाकलीवाल हुये थे जो महासभा के अध्यक्ष थे। जैन रत्न श्री हरकचन्द जी पांड्या सरावगी यहीं के निवासी हैं जो वर्तमान में कलकत्ता रहते हैं। यहां के समाजसेवी श्री मांगीलाल जी सेठी का अभी कुछ ही समय पूर्व स्वर्गवास हुआ है। सुजानगढ़ में 5-6 वर्ष पूर्व ही एक विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन हुआ था। उस समय भारतवर्षीय दि. जैन महासभा एवं शास्त्री परिषद् के अधिवेशन सम्पत्र हुये थे । श्री नेमीचन्द बाकलीवाल यहां के वयोवृद्ध समाज सेवी हैं। लाडनू : नागौर जिले में लाडनूं शहर दिगम्बर जैन समाज का प्रमुख केन्द्र है। यह नगर आचार्य तुलसी जी के अनुयायियों तेरहपंथी समाज का भी प्रमुख केन्द्र है। जैन विश्वभारती जैसी संस्था यहीं पर स्थित है जिसको विश्वविद्यालय स्तर की मान्यता प्राप्त हैं । सन् 1974-75 में स्थापित जैन विश्व भारती एक विशाल संस्थान है जहां शिक्षण कार्य के अतिरिक्त आचार्य श्री तुलसीगणि जी के अन्य कार्यक्रम चलते रहते हैं। दिगम्बर समाज में यद्यपि खण्डेलवाल जैन समाज का बाहुल्य है फिर भी अग्रवाल जैन समाज भी अच्छी संख्या में है। स्व क्षुल्लक सिद्धसागर जी महाराज लाडनूं के ही थे। यहां का गंगवाल परिवार अपनी सामाजिक सेवाओं के लिये प्रसिद्ध रहा है। स्व. तोलाराम जी गंगवाल, बच्छराज जी गंगवाल एवं गजराज जी मंगवाल Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 416 / जैन समाज का वृहद् इतिहास अपनी सामाजिक सेवाओं के कारण सारे भारत की जैन समाज में प्रसिद्ध थे अ.भा. दि. जैन महासभा एवं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन खण्डेलवाल महासभा के वे वर्षों तक कर्णधार रहे। वर्तमान में दि. जैन महासमिति के अध्यक्ष श्री रतनलाल जी गंगवाल उन्हीं के वंश में से हैं। यहां के श्री कन्हैयालाल जी सेठी वर्षों तक यहां की नगर पालिका के चेयरमैन रहे और लाडनूं के विकास में बहुत योगदान दिया । यहां का दि. जैन बड़ामंदिर अपनी प्राचीनता एवं भव्यता के कारण राजस्थान भर में प्रसिद्ध है। उसमें 11 वीं 12 वीं शताब्दी तक कलापूर्ण प्राचीन जिन प्रतिमायें, सरस्वती, आराधिका एवं 16 विद्यादेवियों की मूर्तियां, तोरण, स्तम्भ लेख तथा सैकड़ों पाण्डुलिपियों से युक्त शास्त्र भंडार विद्यमान है। मंदिर के खंभों पर लेख संवत् 1103 का है। भगवान शांतिनाथ की मूर्ति पर संवत् 1136 आषाढ सुदी 8 अंकित हैं । जैन सरस्वती की श्वेत संगमरमर से निर्मित संवत् 1219 वैशाख सुदी 3 का है। लाडनूं में जब अब भी खुदाई हुई है वहां कुछ न कुछ पुरातत्व की प्राचीन सामग्री निकली हैं। श्री दि. जैन बड़ा मंदिर के अतिरिक्त श्री सुखदेव आश्रम दर्शनीय है। सन् 1958 में इसकी प्रतिष्ठा हुई थी 1 यह मंदिर सुखदेव जी गंगवाल के सुपुत्रों द्वारा निर्मित है। श्री दिगम्बर जैन नशिया मंदिर रेल्वे स्टेशन के पास है यह केसरीचंद, निहालचंद अग्रवाल द्वारा निर्मित है। श्री दि. जैन बगडा मंदिर- दीपचन्द जी बगड़ा द्वारा बनवाया हुआ है । श्री चन्द्रसागर स्मारक मंदिर भी दर्शनीय हैं। लाडनूं में चार शिक्षण संस्थायें, पांच समाजसेवी संस्थायें एवं सार्वजनिक संस्थायें हैं । I लाडनूं में संवत् 549 से संवत् 2041 तक 32 पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें सम्पन्न हो चुकी हैं। एक ही नगर में इतनी संख्या में प्रतिष्ठा होना इतिहास की प्रथम घटना है। डेह : नागौर से 30 कि.मी. दूरी पर डेह प्राचीन नगर है जिसमें सरावगी समाज की अच्छी बस्ती है। इस गांव ने समाज नेता पैदा किये हैं। बड़े-बड़े धनाढ्यों को पैदा किया है तथा धार्मिक जीवन बिताने वालों को पैदा किया है। यहां के सेठी परिवार में श्री निर्मलकुमार जी सेटी अध्यक्ष दि. जैन महासभा, डूंगरमल जी गंगवाल डीमापुर, जैसे समाजसेवियों के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। यहां का सबलावत परिवार सभी ओर बिखरा हुआ है। श्री डूंगरमल जी सबलावत, सागरमल जी सबलावत प्रसिद्ध समाजसेवी हैं। डेह में कितने ही साधु-संतों ने विहार किया है। आचार्य महावीर कीर्ति जी महाराज आचार्यकल्प चन्द्रसागर जी महाराज के नाम उल्लेखनीय हैं। यहां का चन्द्रप्रभु स्वामी का मंदिर विशाल एवं मनभावन है । 1 2 विशेष अध्ययन के लिये देखिये लाडनूं के जैन मंदिर का कलावैभव लेखक डा. फूलचन्द जैन प्रेमी । खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास लेखक डा. कस्तूरचंद कासलीवाल पू.स. 189-90 Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 417 मारवाइ प्रदेश के यशस्वी समाज सेवी 1. श्री कजूलाल पहाडिया पांचवा 2. श्री कन्हैयालाल सेठी,लाइनूं 3.श्री कन्हैयालाल सेठी,कुचामन सिटी 4. श्री कंबरीलाल बोहरा,आनन्दपुरकालू (पाली) 5. श्री किशनलाल पहाड़िया, कुचामन सिटी 6. श्री खींवराज पाड्या,लाडनूं 7.श्री गणपतराय सबलावत,डेह 8. श्री गुलाबचन्द अजमेरा, पांचवा १.श्री गुलाबचन्द छाबड़ा, राणोली 10.श्री चतुर्भज अजमेरा, पांचवा 11. श्री चांदकंवर सेठी,लाडनूं 12. श्री चिरंजीलाल काला,कुचामन 25. श्री पन्नालाल चांदवाड़,नागौर 26.श्री नेमीचन्द बाकलीवाल, सुजानगढ़ 27. श्री पूरणमल काला,कुचामन 28. श्री फूलचन्द झांझरी,कुचामन 29. श्री भंवरलाल सेठी,सीकर 30, श्री भंवरलाल पहाडिया, कुचामन 31. श्री भोमराज चूड़ीवाल, लाडनूं 32. श्री मदनलाल काला, राणोली 33. श्री मदनलाल गंगवाल,डेह 34. श्री मत्रालाल कासलीवाल, नागौर 35. श्री महावीर प्रसाद जैन लालासवाला, सीकर 36. श्री रतनलाल छाबडा, कुचामन 37. श्री रतनलाल पहाडिया,कुचामनसिटी 38. श्री रतनलाल बड़जात्या, सीकर 39. श्री रामकृष्ण जैन एडवोकेट मेड़ता 40. श्री राजकुमार पांड्या,लाडनूं 41. श्री राजकुमार पाटनी, राणोली 42. श्री राजकुमार पाटनी, लाडनूं 43. श्री रिखबचन्द पहाडिया,कुचामन 44, श्री लालचन्द पांड्या कुचामन 45. श्रीन्दिमलवन्द छाबड़ा,राणोलो 46. श्री सागरमल पांड्या,लाडनूं 47. श्री सूरजमल छाबड़ा, कुचामन 48. श्री सुरेशचन्द बड़जात्या,नागौर 13. श्री चिरंजीलाल गंगवाल, कुचामन 14. श्री चौथमल पाटनी,नागौर 15. श्री जयकुमार गोधा, फतेहपुर 16. श्री जीवनमल छाबड़ा,पांचवा 17.श्री जीवराज पहाडिया सर्राफ,नागौर 18.श्री जोत्रराज बड़जात्या,नागौर 19.श्री जेठमल सेठी.लाडनूं 20. श्री जोरावरमल बाकलीवाल,मेड़तासिटी 21. श्री त्रिलोकचन्द बड़जात्या,लाडनूं 22.श्री दीपचन्द गंगवाल,कुचामन 23. श्री धर्मचन्द गंगवाल,पांचवा 24.श्री नेमीचन्द झांझरी, कुचामन Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 418/ जैन समाज का नहर इतिहास 49. 'श्री सोहनलाल पहाड़िया,कुचामन 50. श्री मोहनसिंह कानूनगो,नागौर 51. श्री मोहनलाल सौगानी, सुजानगढ 52. श्री स्वरूपचन्द पांड्या, कुचामन 53. श्री श्रीपाल पहाड़िया,कुचामन 54. श्री श्रीपाल सेठी,लाडनूं 55. श्री हनुमान बक्स गंगवाल,कुली S6. श्री हीरालाल काला श्री कज्जूलाल पहाड़िया पांचवा के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री कज्यूलाल पहाड़िया का जन्म श्रावण बुदी 13 संवत् 1976 को हुआ। पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के पास धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने गांव में निजी कार्य करने लगे। 12 वर्ष की आयु में ही आपका विवाह श्रीमती मनोहर देवी से हो गया। जिनसे आपको 2 पुत्र ताराचंद एवं शिखरचंद व दो पुत्रियों शांतिबाई एवं मैनाबाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुअर | श्री ताराचंद जी बेबई एवं शिखरचंद जी जयपुर में व्यवसायरत हैं। पहाड़िया जी को पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में बहुत रुचि रहती है। जब वे आठ वर्ष के थे तभी से वे इन प्रतिष्ठाओं में अपने माता-पिता के साथ जाने लगे। संवत 2043 तक आयोजित 88 पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में भाग ले चुके हैं। आप वर्तमान में सन्मति औपधालय के अध्याक्ष हैं । मंदिर की देखरेख करते रहते हैं। पांचवा की सभी संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं। श्री पहाडिया जी ने अपने गोत्र का इतिहास तैयार कर रखा है जो निम्न प्रकार है : गोत्र - पहाडिया - क्षेत्रीय कुल चौहान • कुलदेवी • चक्रेश्वरी माता मूल माम • पहाड़ी,ठाकुर जेतसिंह ने मुनिराज श्री जिनसेनाचार्य द्वारा श्रावक व्रत पहण किया। वे लोग सवंत् 101 से 401 तक पहाडी गांव में रहे । 402 में पहाड़ी ग्राम से खोआ आये तथा वहां संवत् 193 तक रहे । मंवत् 174 में फिर खोआ से रवासा आये और वहां 1375 तक रहते रहे । फिर संवत् 1376 में रेवासा से हर्ष आये वहां 1581 तक रहे । संवत् 1582 से हर्ष से ठेठ गांव आये। और वहां 1733 तक रहते रहे | फिर अंत में ठेठ से पांचवा संवत 1734 में आ गये और तब से वहीं रह रहे हैं। पता : सुवालाल कज्जूलाल पहाडिया,पांचवा (नागौर) श्री कन्हैयालाल सेठी राजनीति एवं समाजनीति दोनों में समान आधकार रखने वाले लाडनूं के श्री कन्हैयालाल जी सेठी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं । सीधे सादे भेप में रहने वाले सेठी जी लाडनूं नगरपालिका के सन् 1964 से 67 तक तथा 1982 से 86 तक अध्यक्ष रहने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं । इसके अतिरिक्त लाडनूं नगर कांग्रेस के भी तीन वर्ष तक अध्यक्ष रहकर राजनीति को भी जीवन का अंग बना चुके हैं। जिला विकास समिति के सदस्य रहे तथा महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल के भी पांच वर्ष तक अध्यक्ष रहने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /419 सेठी जी ने 67 बसन्त देख लिये हैं। आपके पिताजी श्री इन्दरचंद जी एवं माताजी श्रीमती बल्लूबाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है । आपने मैट्रिक पास की। सन् 1942 में आपका विवाह श्रीमती गुलाबदेवी से संपन्न हुआ लेकिन विवाह के 4 वर्ष पहात् ही वे सबको छोडकर चल बसी । तब से आपने सार्वजनिक सेवाकार्य अपना लिया है और मानव मात्र को सेवा में जुटे हुये हैं। आपके पिताजी भी धार्मिक स्वभाव के थे । आपसे छोटे तीन भाई और हैं उनमें श्री सोहनलाल एवं शांतिलाल जी जयपुर रहते हैं तथा मोहनलाल जी का स्वर्गवास हो चुका है । सेठी जी लाडनूं की सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। आपका जीवन गतिशील रहता है । स्वभाव से आतिथ्य प्रेमी हैं । पता : इन्दरचंद कन्हैयालाल सेठी लाडनूं (राज) TO श्री कन्हैयालाल सेठी लीचाणावाले लीचाणावाले श्री कहैयालाल जी सेठी अपने जमाने के यशस्वी समाजसेवी, उदार हटम पर्स पार्मिक प्रकृति के श्रेजो। म जालीचाण प्राम में हुआ और अपना अधिकांश जीबन दीनहट्टा (पं. बंगाल) में जूट एवं तम्बाकू के प्रमुख व्यवसायी के रूप में बिताया लेकिन जीवन के अन्तिम 20 वर्ष उन्होंने कुचामन में व्यतीत किये जिनमें अधिक से अधिक समाज सेवा में लगे रहे। अपनी पैतृक भूमि लीचाणा में पांच लाख की लागत की धर्मशाला,औषधालय एवं स्कूल भवन का निर्माण करवाया और फिर औषधालय एवं विद्यालय भवन को राज्य सरकार को दे दिया। जिनमें दोनों ही संस्थायें वर्तमान में अच्छी तरह से चल रही हैं। कुचामन में वे नागौरी मन्दिर के वर्षों तक अध्यक्ष रहे | कुचामन में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में सक्रिय भाग लेकर उसे सफल बनाया । सेठी जी अपने परिवार में एकरूपता रखना चाहते थे। इसी दृष्टि से उन्होंने अपने छोटे भाई गुलाब चन्द जी के पुत्र महावीर प्रसाद एवं राजकुमार जी को अपने कारोबार में सम्मिलित कर लिया। वर्तमान में महावीर प्रसाद जी आम्रगुड़ी (आसाम) में व्यवसायरत हैं । सेठी जी ने अपने सभी भाइयों की लडकियों के विवाह किये और बान्धव प्रेम का स्तुत्य उदाहरण प्रस्तुत किया। कन्हैयालालजी सेठी का निधन 2 जून 1985 को 83 वर्ष की आयु में कुचामन में हुआ । उनके स्वयं के कोई सन्तान नहीं थी इसलिए उन्होंने श्री कस्तूरचन्द जी को अपना दत्तक पुत्र बनाया । उन्होंने अपने पिता की बहुत सेवा की और सेवा करते करते ही अकस्मात् हृदय गति बन्द हो जाने के कारण दिनांक 15.6.84 को 60 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया । वे भी सेवाभावी एवं मिलन सार स्वभाव के थे। ___वर्तमान में दीनहटा में कस्तूरचन्द जी सेठी के पुत्र पदमचन्द जी कारोबार देखते हैं । वे 42 वर्ष के युवा है। तीन पुत्रियों एवं दो पुत्रों से अलंकृत हैं । कुचामन में राजकुमार जी कार्य देखते हैं । वे 45 वर्ष के युवा है। सन् 1967 में उनका विवाह श्रीमती शकुन्तला देवी के साथ संपन्न हुआ था । वे पांच पुत्रियों एवं एक पुत्र से सुशोभित हैं। वे भी स्वभाव से विनम्र,उदार एवं धार्मिक प्रवृत्ति के युवा हैं। पता : कन्हैयालाल झूमरमल,कुचामन सिटी। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 420/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री कंवरीलाल बोहरा आनन्दपुर कालू के निवासी श्री कंवरीलाल बोहरा का जन्म आसोज सुदी 12 संवत् 1.982 को हुआ। आपके पिता श्री सुवालाल जी का सन् 1976 में तथा माताजी का भी उसी वर्ष स्वर्गवास हुआ था। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यापारिक लाइन में चले गये। जिसमें आपको विशेष सफलता मिली है। संवत् 1998 में फाल्गुण सुदी 2 को श्रीमती कंवला देवी के साथ विवाह हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र तेजराज एवं महावीर प्रसाद तथा दो पुत्री नैना एवं इन्द्र की प्राप्ति हुई। दोनों ही पुत्र बी.कॉम. हैं । ज्येष्ठ पुत्र इच्छलकरण जी में व्यवसाय करते हैं। श्री बोहरा जी ने बधेरा पंचकल्याणक में ईशान इन्द्र बनने का श्रेय प्राप्त किया । जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति में सौधर्म इन्द्र की बोली ली थी। आपने महासभा के गोहाटी अधिवेशन में भाग लिया तथा महासभा के 11111/- के सदस्य बने । आप अपने ग्राम आनन्दपुर काल के नये मंदिर के वर्षों तक व्यवस्थापक रहे हैं। आपके शुद्ध खानपान का नियम है जिसे उन्होंने स्त्र आचार्य धर्मसागर जी से लिया था। आचार्य कल्प श्रुतसागर जी महाराज के चातुर्मास समिति के मंत्री रहे । अपने ही गांव में हास्पिटल बिल्डिंगवनना कर राज्य सरकार को दिया जो सुवालाल कंवरीलाल बोहरा राजकीय चिकित्सालय के नाम से चल रहा है । आपके ज्येष्ठ पुत्र द्वारा नये मंदिर में भगवान पहावीर की धातु की प्रतिमा विराजमान की थी। आपकी समाज सेवा में विशेष रुचि रहती है। पता : आनन्दपुर कालू (पाली) श्री किशनलाल पहाड़िया कुचामन नगर के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री किशनलाल पहाड़िया अपनी धार्मिक प्रवृत्तियों,आचार-विचार एवं उदार स्वभाव के लिये प्रसिद्ध है । आपका जन्म फाल्गुन सुदी संवत् 1960 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप वस्त व्यवसाय में चले गये। आपके पिताजी श्री सुगनचन्द जी एवं माताजी श्रीमती सरदार बाई का बहुत पहिले स्वर्गवास हो गया था । 15-16 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती गुणमाला देवी के साथ हो गया । श्रीमती गुणमाला देवी का स्वर्गवास अभी 80 वर्ष की आयु में हो गया है । पहाड़िया जी को एक पुत्र श्री नेमीचंद एवं पाच पुत्रियां ताराबाई, चूकीबाई,चांदबाई,कंचनवाई एवं पांची बाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपने कुचामन पंचकल्याणक में इन्द्र की बोली ली थी तथा नागौरी नशियों में आपकी मां ने पूर्ति विराजमान करने का संकल्प लिया है । विगत 50 वर्षों से आप शुद्ध खानपान का नियम पालन कर रहे हैं। आपके द्वारा कुचामन में सन् 1857 में जैन भवन का निर्माण करवाकर किशन लाल पहाड़िया चेरिटेबिल ट्रस्ट के अधीन कर दिया। Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /421 आपके एक मात्र पुत्र नेमिचंद का जन्म 1997 में हुआ । बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की । संवत् 2017 में श्रीमती विनोद देवी से विवाह हुआ । जिनसे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । संगीता एवं राजेश्वरी बी.ए हैं तथा दोनों का विगह हो चुका है । राजेश के बंबई में कपड़े का व्यवसाय है। पता - सुगनचंद किशनलाल पहाड़िया कपड़ा बाजार,कुचामन सिटी (नागौर राज) श्री खींवराज पांड्या लाडनूं के श्री खींवराज पांच्या वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । वे लाडनूं नगरपालिका के 25 वर्ष तक सदस्य रहे थे । चन्द्रसागर स्मारक ट्रस्ट के टुस्टी हैं । सत्यनारायण मंदिर के ट्रस्टी हैं। आऊ संवत् ल गने पिताजी श्री मांगीलाल जी पाटनी का सन् 1973 में स्वर्गवास हुआ। मानाजो छगना देवी का अभी तक आशीर्वाद प्राप्त है । संवत् 1997 में आपका जीवन देवी के साथ विवाह हुआ। आपको एक पत्र नीरेन्द्र एवं 5 पुत्रियों के पिता बनने का मौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आप आपने लाइन सजानगढ़ एवं अन्य स्थानों पर आयोजित पंचकल्याणकों में रुचिपर्वक भाग लिया। अनेक प्रतिमायें इन प्रतिष्ठाओं में प्रतिष्ठित हैं । पहावीर हीरोज के 7 वर्ष तक अध्यक्ष रहे । लाडन व्यापार मंडल एवं लाडनं मचेंन्टस के सेक्रेटरी रह चुके हैं। मांगीलाल जी अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति रहे । वे कुशल व्यवसायी तथा सेठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। आपने वीरागर जी,शिवसागर जी महाराज के चातुर्मास कराये । मुनि चन्द्रसागर जी महाराज के अनन्य भक्त थे तथा चन्द्रसागर स्मारक टुस्ट में पूर्ण सहयोग दिया। श्री गणपतराय सबलावत डेह निवासी श्री मेघराज जी सबलावत के सुपुत्र श्री गणपतराय सबलावत का जन्म पोष बुदी ५ संवत् 1989 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप डीभापुर एवं दिल्ली में पोटा पार्टस का कार्य करने लगे । सन 111260 में आपका विवाह उमराव देवों के साथ हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र धर्मचंद,विनोद कुमार एवं पारसमल तथा दो पुत्रियां पुष्पा एवं उषा के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। आपने सभी तीर्थ यात्रायें कर ली हैं। आपकी पत्नी के 2A) वर्षों से शुद्ध खानपान का नियम है। आपकी प्रारंभ में साधारण आर्थिक स्थिति रही। किन्तु बाद में स्वतंत्र व्यापार किया । मोटर पार्टस का कार्य करने लगे और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया । अब आपके नीन पुत्र व्यापार संभालते हैं। . आप विगत 15-110 वर्षों से डेह में रह रहे हैं । आपका पूर्णत: धार्मिक जीवन है । प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं। आप दोनों पति-पत्नी ने दशलक्षण द्रत के उपवास कर लिये हैं । कटर मुनिभक्त हैं ! जो भी मुनि संघ डेह में आते हैं उनकी आहार आदि से खूब सेवा करते हैं। आपको आचार्य धर्मसागर जी,आ.विमलसागर जी,आचार्य श्रेयान्स सागर जी में भी विशेष भक्ति रही है। देह में आप भगवान शांतिनाथ की वेदी में ही पूजा पाठ करते हैं। उनमें आपकी अनन्य भक्ति है। Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4224 जैन समाज का वृहद् इतिहास नागौर के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में अंगदेश के राजा बनकर सम्मान प्राप्त किया। आपकी धर्मपत्नी ने शिखर बी में,निवाई में मूर्ति एवं यंत्र बनवाकर विराजमान किये हैं । पता : गणपतराय सबलावत, मु.पो. डेह,(नागौर) श्री गुलाबचंद अजमेरा पांचवा ग्राम के प्रतिष्ठित समाजसेवी श्री गुलाबचंद अजमेरा का जन्म 1 अक्टूबर, 1949 को हुआ। आपके पिताजी श्री हीरालाल जी अजमेरा का करीब 14 वर्ष पर्व ही स्वर्गनास हुआ है । आपकी माताजी की छत्रछाया अभी प्राप्त है । उनकी आयु 80 के करीब है। सन् 1950 में अजमेर बोर्ड से मैट्रिक परीक्षा पास करके आप नमक उत्पादन एवं विक्रय का कार्य करने लगे। उनका सन् 1957 में प्रथम एवं सन् 1968 में दूसरा विवाह हुआ। दूसरी पत्नी का नाम निर्मलादेवी है। जिनसे आपको तीन पुत्र सर्व श्री राजेश, ललित एवं दिनेश तथा एक पुत्री किरण के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। पुत्री का विवाह हो गया है तथा तीनो ही पुत्र उच्च अध्ययन कर रहे र हैं। आपके एक छोटा भाई विमल कुमार है जो आप हो के साथ काम करते हैं तथा तीन पुत्री एवं को दो पुत्रों के पिता हैं। आपके पिताजी श्री हीरालाल जी ने पांचवा में सन्मति दि.जैन औषधालय की नींव लगाई और उसके निर्माण में योग दिया। श्री पार्श्वनाथ दि.जैन विद्यालय पांचवा के पांच वर्ष तक संचालन में पूरा व्यय वहन किया और वर्तमान में उसमें आप सहयोग दे रहे हैं। पांचवा ग्राम की सभी विकास योजनाओं में बराबर योगदान करते रहते हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में पूर्ण सहयोग दिया था। उसमें इन्द्र वनने का सौभाग्य प्राप्त किया । पुनिभक्त हैं तथा आहार आदि से सेवा करते रहते हैं। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है। पता : 1- गुलाबचंद अजमेरा,मु.पो. पांचवा (नागौर) 2- पाटडी (सुरेन्द्रनार) गुजरात श्री गुलाबचंद छाबड़ा राणोली के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री गुलाबचंद छाबड़ा का जन्म श्रावण सुदी पूर्णिमा संवत 1977 को हुआ। आपके पिताजी का स्वर्गवास संवत् 164) में ही हो गया था । आपकी माताजी श्रीमती धापा बाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप वस्त्र व्यवसाय करने लग गये। आप पांच पुत्रों से अलंकृत हैं। जिनमें ज्येष्ठ पुत्र श्री ज्ञानचंद को स्वयं की भिवाड़ी में फैक्ट्री है तथा दीपचंद,शांतिलाल, अमरचंद एवं महेन्द्र कुमार सभी बंबई में कारोबार करते हैं । छाबड़ा जी धार्मिक प्रकृति के एवं उदारमना समाजसेवी है। कट्टर मुनिभक्त हैं । आपने एक बार आचार्य धर्मसागर जी के संघ को सीकर से अलवर तक विहार करवाया था। इसी तरह आप मुनि श्री विजयसागर जी का राणोली में दो बार चातुर्मास Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /423 . कराने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं । आपने सपी तीर्थों की दो बार वंदना की है । वर्तमान में आपका पूरा जीवन पूजा पाठ एवं साधु सेवा में व्यतीत होता है। पता : गुलाबचंद ज्ञानचंद छाबड़ा,राणोली (सीकर) (राज) श्री चतुर्भुज अजमेरा वरिष्ठ समाजसेवी श्री चतुर्भुज जी अजमेरा का अपने विशाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व के कारण नागौर प्रान्त में प्रमुख स्थान माना जाता है। आयु में भी 85 वर्ष पार कर चुके हैं। उनके पिताजी सुवालाल जी एवं माताजी श्रीमती गुलावदेवी का काफी वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो । गया था। 20 वर्ष की आयु में उनका विवाह श्रीमती धापूदेवी के साथ संपत्र हुआजिनसे उनको .. दो पुत्र सर्वश्री भंवरलाल,चिरंजीलाल एवं 5 पुत्रियां इलायची देवी,मैनादेवी,तारादेवी,पानादेवी B A एवं बीनादेवी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अजमेरा जी का स्पृहणीय जीवन है । आप एवं आपकी पत्नी दोनों ही सप्तम प्रतिमा - का पालन करते हैं । आप दोनों ने 40 से भी अधिक बार सम्मेदशिखर जी एवं उसके आस-पास के तीर्थों की वन्दना की है । उन्होंने संवत् 2506 में पांचवा में एक वृहद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संपन्न करायी,मन्दिर में तीन प्रतिमाएं विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। कांच का चैत्यालय बनवाकर उसमें प्रतिमाएं विराजमान की । सन् 1981 में आयोजित भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक समारोह में अपने पूरे परिवार के साथ यात्रा संपन्न को । वैसे आप दक्षिण भारत की एवं गिरनारजी की चार बार यात्राएं कर चुके हैं । मुदिशा में के आवाक्त हैं। ना में नुनिविलम्स. रीगन्मतिसागर जी, अजितसागर जी एवं विरागसागर जी का चातुर्मास संपन्न कराया । जो एक रिकार्ड है। ___ आप दि.जैन अ.क्षेत्र लूणवां के संरक्षक हैं । आपने पांचवा में ही एलोपैथिक डिस्पैन्सरी के लिए भवन का निर्माण करवा कर उसे राज्य सरकार को संचालन के लिए दे दिया है। भाइयों का परिवार आपके चार भाई और है। जिनमें गौरीलाल जी का जन्म संवत् 1983 में हुआ। 17 वर्ष की आयु में श्रीमती कमला देवी ' के साथ उनका विवाह हुआ । वर्तमान में दो पुत्रियां मूली बाई एवं मीरा बाई तथा 5 पुत्र सर्वश्री नरेन्द्रकुमार,नरेशकुमार,निर्मलकुमार, नवीनकुमार एवं नीलेश के पिता है । श्री गौरीलाल जी भी समाजसेवा में रुचि रखते हैं । दि.जैन औषधालय पांचवा के उपाध्यक्ष एवं अ.क्षेत्र लूणवां के महामंत्री रह चुके हैं। शिक्षक अभिभावक संघ पांचवा के अध्यक्ष हैं । अपने पिताजी सुवालाल जी की स्मृत्ति में उनके सभी पुत्रों ने जलाशय बनवाकर विगत 20 वर्षों से परे गांव के लिए निःशुल्क जल को व्यवस्था कर रखी है। चतुर्भुज जी के दूसरे माई ग्यारसीलाल जी के तीन पुत्र संजय, विजय एवं अजय तथा चार पुत्रियां सरिता, अनिता,माया एवं पूंजी हैं। तीसरे भाई सोहनलाल जी के दो पुत्र पवन एवं राजकुमार तथा दो पुत्रियाँ इन्द्राणी एवं मन्त्री देवी है। सबसे छोटे भाई शान्तिलाल जी तीन पुत्रों अशोक, अनिल एवं राकेश के पिता हैं। Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 424/ जेन सम्गज का वृहद इतिहास स्वयं का परिवार आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री भंवरलाल जो का जन्म संवत् 1969 में हुआ। 18 वर्ष की आयु में मीना देवी के साथ विवाह हुआ। आपके एक मात्र पुत्री अन्जुबाई है। भंवरलाल जी भी जामनगर में नमक का व्यवसाय करते हैं । समाजसेवा की रुचि आपको अपने पिताश्री से प्राप्त हुई है । सन्मति दि. जैन औषधालय स्मारिका के प्रबन्ध संपादक रह चुके हैं। गुजरात नमक विक्रेता संघ के उपाध्यक्ष, जामनगर साल्ट एसोसियेशन के अध्यक्ष, कच्छ सौराष्ट्र साल्ट मर्चेन्टस एसोसियेसन के कोषाध्यक्ष, राजस्थान समाज जामनगर के उपाध्यक्ष हैं । धार्मिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते हैं। पाकिस्तान को व्यापारिक यात्रा कर चुके हैं। कट्टर मुनि भक्त हैं। आपके छोटे पुत्र श्री चिरंजीलाल जो शान्त स्वभावी हैं। आप चार पुत्र दिनेश, धर्मेन्द्र मन्तोष एवं मनोज तथा एक पुत्रा मंजू बाई के पिता हैं। पता: ।- सुवालाल, चतुर्भुज अजमेरा, पांचवा,नागौर 2- अजमेरा जैन एण्ड कम्पनी विवल निघाम,दिग्विजय हाट, जामनगर परिवारजन धर्मपली श्री चतुर्भुज अजमेरा अंबरलान अजमे गोना अजमेग मापा Sid श्री चांदकपूर सेठी लाडनूं के सेटी परिवार में जन श्री चांदकपूर मेटी युवा समाज सेवी है । सन् 1975 में राज. विविद्यालय से मांग करने के पश्चात भी आपने अपना ही व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। सन् 1977 में आपका विवाह श्रीमती सरला देवी से संपन्न दुका । जिनसे आपको दो पुत्रियां गरिमा एवं चिकी की प्राप्ति हुई। आपके पिताजी श्री सुकुमाल सेठी का स्वर्गवास सन 1978 में हु ना जब वे केवल 50 वर्ष के ही थे । माताजी मनफूलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त है। Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /425 आपकी धार्मिक प्रवृत्ति रही है । सन् 1985 में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में आपने अष्टधातु की दो मूर्तियों प्रतिष्ठित करवाकर मंदिर में विराजमान की। आप महावीर हीरोज के पिछले 10 वर्ष से उपमंत्री हैं। महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल के कार्यवाहक मंत्री रह चुके हैं। नगर के सभी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में पूरी रुचि से भाग लेते हैं । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विगत 10 वर्ष, .. आदि का गहते हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आप ही इंचार्ज थे । पता : दीपचंद सुकुमाल सेठी, सरावगी मोहल्ला, लाडनूं । श्री चिरंजीलाल काला श्री किशनलाल जो काला के सुपुत्र श्री चिरंजीलाल कुचामन के बहुत ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे । आप सन् 1955 से 73 तक नगरपालिका के सदस्य रहे तथा 1961से 73 तक उसके चेयरमैन रहे । ग्राम जल योजना. नेहरू बाल उद्यान, सड़कों का निर्माण जैसरी योजनाओं को क्रियान्वित करके एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया । आपने पंचायत राज के द्वितीय समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जिला मुख्यालय नागौर पधारी तब आपने उनका भव्य स्वागत किया और नागौर के चेयरमैन श्री इन्द्रजीत जी जैन के साथ उनकी अगवानी की थी। आपके पिताजी श्री किशनलाल जी भी कुचामन ठिकाने के आजन्म कामदार रहे। नगर में उनका पूरा वर्चस्व था । वे समाज के सरपंच थे तथा ठिकाने एवं समाज का प्रतिनिधित्व करते थे। श्री चिरंजीलाल जी का जन्म श्रावण शुक्ला 13 संवत् 1978 में हुआ। 16 वर्ष की आयु में आपका विवाह मोहनी देवी के साथ हुआ । आपने मैट्रिक एवं धर्म की परीक्षा पास की। आप अनाज के व्यवसायी रहे। आपने नयी नसियां के मानस्तंभ में मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया था। पता : महावीर भवन के पास, उपासरा गली,कुचामन सिटी (नागौर) श्री चिरंजीलाल गंगवाल नगर सेठ मेघराज के पौत्र एवं छोटूलाल जी के पुत्र श्री चिरजीलाल गंगवाल का जन्म फाल्गुण बुदी 13 सं. 1376 को हुआ । मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की तथा पं.चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के शिष्य रहे । बंबई में कपड़े की दलाली करने लगे । संवत् 1994 में आपका पहला विवाह तथा सं 2003 में दूसरा विवाह श्रीमती मोहिनो देवी के साथ हुआ। उनसे आपको 4 पुत्र एवं तीन पुत्रियों को प्राप्ति हुई। प्रथम एवं द्वितीय पुत्र नावां में तृतीय एवं चतुर्थ पुत्र पवन कुमार एवं मनोज कुमार बंबई में व्यवसायरत हैं। तीनों पुत्रियों - मैना, श्रीकान्ता एवं चैन का विवाह हो चुका है। ___ आप कुचामन के पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। मुनिभक्त हैं। आ. वीरसागर जी, शिवसागर जी,धर्मसागर जी, विमलसागर जी,सभी आचार्यों की आहार आदि से सेवा कर चुके हैं। Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 426/ जैन समाज का वृहद इतिहास GAMESH आपके पिताजी को घुडसवारी व ऊंट की सवारी करने का बहुत शौक था। आपके दादा मेघराज जी अपने समय के सर्वाधिक संपन्न व्यक्ति थे । नागौरी मंदिर के निर्माण में आपने पूर्ण महयोग दिया था तथा अपनी ओर से मंदिर के लिये साल गांव में 5 दुकानें एवं एक नोहरा भेंट स्वरूप दिया था। कुचामन में इसी तरह कितनी ही दुकानें देकर समाज को पूर्ण आश्रय प्रदान किया था। आप बड़े उदार हृदय थे। जो भी व्यक्ति सेवरा बांध करके आता उसका विवाह करा देते थे । पोत्या बांध कर आने वाले का मौसर करवा देते थे। कचामन के ठाकरसाहव आपसे बहत प्रसन्न थे।जब कभी आपसे कहीं जाने के लिये कहा जाता था तो कहा करते कि मेघराज थोडे ही नाराज हुआ है जो मुझे उसके पास जाना पडेगा । वे अपने नगर सेठ को बहुत बात मानते थे । पता: मोचियों का मोहल्ला,कुचामन सिटी। AM श्रीमती मोहिनी देवी धर्मपत्नी चिरंजीलाल गंगवाल श्री चौथमल पाटनी ___ नागौर के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री चौथमल जी पाटनी 85 वर्ष को पार कर चुके हैं। उनके पीछे समाजसेवा का लम्बा इतिहास है । वर्तमान में वे उदासीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं । पत्नी का देहान्त हुये 30 वर्ष हो गये तथा नेत्रों को ज्योति गये हुये 20 वर्ष हो गये । ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ले रखी है कभी-कभी मुनि संघों में चले जाते हैं। आपके एक मात्र पुत्र श्री जीवराज 48 वर्ष के युवा हैं । उनकी पत्नी का नाम सुलोचना है जिससे आपको 6 पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। ज्येष्ठ पुत्र गजराजको छोडकर सभी विजयकुमार,संजय,अभिषेक,आशीष,अविनाश पढ़ रहे हैं तथा दो पुत्रियों सुशीला एवं सुनीता का विवाह हो चुका है । संगीता एवं शिल्पा अभी पढ़ रही हैं। आपने नागौर पंचकल्याणक में इन्द्र के पद को सुशोभित किया था तथा बीसपंथी मंदिर में महावीर स्वामी को प्रतिमा विराजमान करने का सुखद अवसर प्राप्त कर चुके हैं । आपने अपने परिवार के साथ सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। जीवराज जी बीसपंथी समाजसेवी हैं । महावीर इन्टरनेशनल एवं दि.जैन सोनी बाई पाठशाला की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । आपकी धर्मपत्नी अष्टाह्निका व्रत का उपदास कर चुकी हैं । शुद्ध खानपान का नियम है। पता : गिनानी गली,नागौर (राज श्री जयकुमार गोधा फतेहपुर शेखावाटी के निवासी श्री जयकुमार गोधा 50 वर्ष के युवा समाजसेवी हैं । आप इन्टरमीजियेट परीक्षा पास करके व्यापारिक लाइन में चले गये। सन् 1958 में आपका विवाह श्रीमती आनन्दी देवी के साथ हुआ। आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । चार पुत्रों में रमेश बी कॉम.हैं शेष सुरेन्द्र,कपल एवं पंकज पढ़ रहे हैं । इसी तरह तीन पुत्रियों में मंजू का विवाह हो चुका है तथा ममता एवं प्रियंका पढ़ रही हैं। Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /427 आपके पिताजी स्व. सुखदेव जी गोधा ने 50 वर्ष को अवस्था में सुजानगढ में ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था। उसके तीन वर्ष पश्चात् अजमेर में आचार्य शिवसागर जी पहाराज के नाम से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की तथा मुनि पद धारण करके रेनदाल में समाधिमरण प्राप्त किया : आपके अतिरिक्त आपके एक बड़ा भाई श्री पूरणम्स और है जिसके अन एवं 2 पुत्रियां हैं । ये फतेहपुर में ही व्यवसाय करते हैं। छोटे भाई चिरंजीलाल जी हैं जो तोन पुत्रियों एवं दो पुत्र के पिता है । ये भी फतेहपुर में व्यवसायरत हैं । श्री गोधा के तीन बहिने हैं- श्रीमती रतनीबाई कमलाबाई एवं विमलाबाई । तीनों का ही विवाह हो चुका है। पता : द्वारा जयकुमार सुरेश कुमार जैन,फतेहपुर (शेखावाटी) राज. श्री जीवनमल छाबड़ा पांचवा के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री जीवनमल छाबड़ा का जन्म आपाढ़ सुदी 2 संवत् 1957 को हुआ। आपके पिताजी श्री उदयलाल जी का निधन संवत् 1974 में तथा माताजी श्रीमती मत्रीदेवी का स्वर्गवास सं.21124 में हआ। संवत 2004 में आपका विवाह श्रीमती सूरजदेवी से संपन्न हुआ। आपने नागौरी मंदिर में वेदी व फर्श बनवाकर संवत् 2009 में उनमें मूर्तियों विराजमान की । पांचवा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्मरोह के कोपाध्यक्ष रहे । इसके अतिरिक्त नागौरी मंदिर दवाखाना, श्री दि. जैन कबूतर निवास,महावीरकीर्ति व्रती आश्रम के अर्थमंत्री एवं श्री दि. जैन पार्श्वनाथ विद्यालय के कोषाध्यक्ष हैं। सभी धार्मिक कार्यों में आगे रहते हैं तथा संस्थाओं को पूर्ण सहयोग देते रहते हैं। आपने जीवनमल धर्मार्थ ट्रस्ट बनाकर बैंक में राशि जमा करा दी है। पता : मु.पो. पांचवा (नागौर श्री जीवराज पहाड़िया सर्राफ दिगम्बर जैन बीस पंथी पंचायत के अध्यक्ष श्री जोतराज पहाड़िया सर्राफ नागौर जैन समाज के प्रतिष्ठित समाजसेवी हैं। आपने दिगम्बर जैन परमार्थी सेवा संघ का 32 वर्ष तक संचालन करके यशस्वी कार्य किया है। आपका पौष सुदी 3 संवत् 1984 में जन्म हुआ। आपके दो विवाह हुये । एक 13 वर्ष की आयु में एवं दूसरा 26 वर्ष की अवस्था में । दूसरी पली पद्मादेवी हैं तथा सुजानगढ़ के श्री भंवरलाल जी पांड्या की सुपुत्री हैं। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप सर्राफी के राफी के । व्यवसाय में लग गये। आपके पिताजी श्री धनसूख जी पहाडिया का 6 वर्ष की आयु में संवत् 2009 में स्वर्गवास हो गया। माताजी भूरीदेवी 87 वर्ष की हैं तथा आपकी छत्रछाया प्राप्त है। श्री पहाड़िया जी तीन पुत्रों के पिता हैं । ज्येष्ठ पुत्र श्री कमल किशोर 35 वर्ष के हैं । धर्म पत्नी सन्तोष देवी है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । कलकत्ता में व्यवसाय करते हैं : दूसरे पुत्र श्री राजकुमार हैं तथा तीसरे का नाम विजयकुमार है जो Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 428/ जैन समाज का वृहद् इतिहास SHP अध्ययन कर रहे हैं। आपके सात पुत्रियां हैं इन्द्रमणि, चन्द्रकान्ता,सन्तोष, सरिता, विवाहित हैं तथा सुशीला,संगीता एवं अनिता अभी अविवाहित हैं। ___ श्री जीवराज जी नागौर में आयोजित पंचकल्याणक में इन्द्र बने थे। आपकी माताजी ने बीस पंथी मन्दिर नागौर में दो वेदियों का निर्माण करवाया था। आप सोनीबाई दि. जैन पाठशाला के तथा महावीर इन्टरनेशनल के अध्यक्ष हैं। आप नागौर म्युनिसिपैल्टी के सदस्य रह चुके हैं। आप दोनों पति पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है जो उन्होंने आचार्य महावीरकोर्ति जी से लिया था । श्रीमती पद्मादेवी अष्टाह्निका एवं दशलक्षण व्रत के उपवास का चुकी हैं। जीबाज पहाडिया आपके छोटे भाई पारसमल 52 वर्ष के हैं। उनकी पत्नी का नाम रानी देवी है । तीन पुत्रों. अमरचन्ट, विनोद कुमार एवं पुखराज जैन के पिता हैं । दो पुत्रियां हैं इन्द्रा कुमारी एवं सुनिता कुमारी । प्रथम पुत्री का विवाह हो चुका है। दोनों भाइयों का सम्मिलित कारोबार है। छोटे भाई पारसमल कलकत्ता निवास करते हैं। पता :- धनसुख,जीवराज,गिनानी गली नागौर । श्री जावराज बड़जात्या नागौर के श्री जीवराज बड़जात्या का समाजसेवा में पर्याप्त योगदान रहता है । 40 वर्ष के युवा समाजसेवी हैं । बी.एस.सी. तक शिक्षा प्राप्त की है तथा पैट्रोलियम एवं वस्त्र व्यापारी हैं । सन् 1973 में आपका विवाह श्रीमती रूपादेवी के साथ सम्पन्न हआ। आप धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति हैं। अभी 10 में संपन्न पंचकल्याणक में ईशान इन्द्र बनने कास नागौर के मन्दिर में मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं । मुनि भक्त हैं । यात्रा संघों की व्यवस्था में आपके पिताजी सदा आगे रहते थे। __ आपके तीन छोटे भाई हैं । सन्तोष कुमार जी 36 वर्षीय हैं उनकी धर्मपत्नी का नाम तारा देवी है । दूसरे भाई श्री ललित कुमार बी कॉम.हैं । मेघालय में व्यवसाय करते हैं । आपकी पत्नी का नाम पुष्पा देवी है जो तीन पुत्रियों की जननी है। तीसरे भाई दिलीप कुमार भी मेघालय में कार्यरत हैं। सुमित्रा पत्नी है एक पुत्री के पिता हैं। आपके 5 बहिने हैं विमला सुलोचना,मनफूलबाई,मिनियाबाई एवं प्रभाबाई । सभी का विवाह हो चुका है । आपके पिताजी स्व.श्नी रतनलाल जी बड़जात्या परम धार्मिक व्यक्ति थे। आचार व्यवहार एवं सामाजिकता से पूर्ण थे । संस्थाओं को आर्थिक सहयोग देते रहते थे। केवल 52 वर्ष की आयु में हृदय रोग से सन् 1975 में स्वर्गवास हो गयः। आपकी माताजी श्रीमती कंवरी देवी की छत्रछाया प्राप्त है। पता- रत्नदीप, नागौर। Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /429 श्री जेठमल सेठी लाडनूं निवासी श्री जेठमल सेठी अच्छे समाजसेवी हैं । दिसम्बर सन् 1929 को आपका जन्म हुआ। मैट्रिक किया और फिर आर एम पी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर बने आपके पिताजी श्री बाराचंद जोसेटी का निसा हो चुका है लेकिन माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है। सन् 1954 में श्रीमती सुलोचना के साथ आप विवाह सूत्र में बंधे । आप तीन पुत्र अशोक, राजेन्द्र एवं जितेन्द्र तथा दो पुत्री कल्पना एवं पुष्पा से अलंकृत हैं । आपके छोटे भाई गजराज सेठी जी जयपुर में राजस्थान क्रेडिट कारपोरेशन के मालिक हैं। सन् 1985 में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह समिति के आप उपाध्यक्ष रहे हैं 1 नगर कांग्रेस कमेटी के मंत्री एवं व्यापार मंडल के अध्यक्ष हैं । महावीर उच्च माध्य. वि. के व्यवस्थापक तथा बड़े मंदिर की पंचायत के मंत्री रह चुके हैं। आजकल उसकी कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपकी माताजी मुनि भक्त हैं तथा आहार देती रहती हैं। पता- सेठी निकेतन,राहु दरवाजे के पास, लाडनूं राज. श्री जोरावरमल बाकलीवाल लालगढ़ सुजानगढ से आकर मेड़ता सिटी में बसने वाले श्री जोरावरमल जो बाकलीवाल मेड़ता सिटी के प्रसिद्ध समाजसेवी हैं । आपका जन्म जेठ बुदी 3 संवत् 1971 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पक्षात् आप जूट को दलालो एवं अनाज का व्यवसाय करने लगे। 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती मगतुदेवी से हो गया । जिनसे आपको 6 पुत्र एवं दो पुत्रियों को प्राप्ति हुई 1 आपके पिताजी श्री केशरीमल जी का 8 फरवरी 71 को &0 वर्ष की आयु में निधन हो गया । माताजी का स्वर्गवास 31 जुलाई सन् 1979 को सावन सुदी 7 संवत 2013 में हुआ। श्री जोरावर जी धार्मिक एवं आतिथ्य प्रेमी हैं । मेड़ता के पार्श्वनाथ स्वामी के मंदिर में सन् 1985 में पिताजी स्व. श्री केशरीपल जी एवं मातेश्वरी आशा देवी की स्मृति में पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति बनवाकर विराजमान की थी । आपकी पत्नी के शुद्ध खानणन का नियम है जो उन्होंने सुजानगढ़ में आचार्य विमलसागर जी महाराज से लिया था तथा वे दो प्रतिमाधारी हैं एवं दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी है। श्री बाकलीवाल दिगम्बर जैन समाज के कोषाध्यक्ष हैं । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री सम्पतलाल (it) वर्ष के हैं उनको धर्मपली का नाम पानादेवी है। आप 3 पुत्र एवं दो पुत्रियों से सुशोभित हैं । कटक में जूट गल्ल्ला का व्यवसाय करते हैं। द्वितीय पुत्र श्री शुभकरण जी मड़ता में ही व्यवसाय करते हैं। उनकी पत्नी शांति देवी ने दशलक्षण के उपवाम किये हैं । तृतीय पुत्र श्री जयचंद्रलाल 52 वर्षीय हैं। मद्रास में किराणा की दलाली का कार्य करते हैं । उनकी पत्नी मनफूलदेवी है आप वहां खण्डेलवाल दि.जैन समाज Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 430/ जैन समाज का वृहद् इतिहास के कोषाध्यक्ष हैं एवं चातुर्मास के व्यवस्थापक हैं। प्रति दिन पूजा पाठ करते हैं। चतुर्थ पुत्र श्री हुलाशचंद 52 वर्ष के हैं। बी काम. है । पत्नी का नाम श्रीमती शर्बतीदेवी है । तीन पुत्रों की मां है । हैदराबाद में कार्य करते हैं। पांचवे पुत्र श्री सरोजकुमार वर्ष के हैं एवं मद्रास में व्यवसाय करते हैं। पत्नी का नाम पुष्पादेवी है । एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं । विगत पांच वर्ष से एक समय भोजन करते हैं सबसे छोटे पुत्र कमलकुमार 40 वर्षीय युवा हैं । धान मंडल कटक में व्यवसाय करते हैं । पत्नी का नाम कौशल्या देवी हैं । 2 पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। आपकी दोनों पुत्रियाँ कान्ता देवी एवं कनकलता का विवाह हो चुका है । पता- जोरावरमल पदपकुमार, जानी मोहल्ला मा शिरीज, श्री त्रिलोकचंद जैन बड़जात्या लाडनूं निवासी स्व.शिखरीलाल जी बड़जात्या के सुपुत्र श्री त्रिलोकचंद जैन का जन्म सन् 1933 में हुआ। आपने राज. विश्वविद्यालय से सन् 1952 में बी.ए.किया और फिर जूट के व्यापार में चले गये । सन् 1951 में आपका विवाह श्रीमतो स्तनदेवी से हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । दोनों बच्चे नरेन्द्र एवं अशोक का विवाह हो चुका है तथा वे आपके साथ ही कार्य करते हैं। दोनों पुत्रियों का विवाह भी संपत्र कर चुके हैं। बड़जात्या जी सन 1985 में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र इन्द्राणी के पद से अलंकृत हुये। आपके माता-पिता द्वारा बगडा मंदिर लाडनूं में सप्तर्षि की धातु की मूर्ति विराजमार की तथा शांतिनाथ स्वामी की मूर्ति नागौर के मंदिर में प्रतिष्ठापित कराई गई। आप महावीर हायर सैकण्डरी विद्यालय के सन् 19549-63 तक व्यवस्थापक रहे । महावीर हीरोज के सेक्रेटरी एवं उपाध्यक्ष रहे । लाइन नागरिक परिषद कलकत्ता कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आप जूट के कुशल व्यापारी हैं। डेला जूट मिल कलकत्ता में 1976-79 तक जूट के परचेजर तथा गोरीपुर जूट मिल में 1978-85 तक कार्य किया। वर्तमान में स्वयं का हो कार्य कर रहे हैं। सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं। मुनिभक्त हैं। आपकी धर्मपत्नी आचार्य विद्यासागर जी को परमभक्त हैं। पता:- 1- त्रिलोकचंद बड़जात्या, लाडनूं. 2. वैशाख स्ट्रीट,कलकता-7 श्री दीपचन्द गंगवाल पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री दीपचन्द गंगवाल अपनी सामाजिक सेवा के लिये पूरे नागौर जिले में प्रसिद्ध हैं। आपका जन्म 17 अक्टूबर सन 1937 को कलकता में हुआ । आपके पिताजी स्व.लक्ष्मीचन्द थे । जिनका फरवरी 1981 में ?) वर्ष की आयु में देहान्त हो गया । अरकी माता धापुदेवो का अभी आशीवाद प्राप्त है। आपने बी.ए. किया और बिक्री कर सलाहकार बन गये । अप्रेल 11154 में आपका विवाह हुआ आपके हीन पुत्र एवं ।। युनियां | हैं |ज्येष्ठ पुत्र निर्मल कुमार बी.कॉम., एल.एल.बी., सी.ए.सी.एस. है। शेष दोनों पुत्र विनोद कुमार एवं मनोज कुमार पढ़ रहे हैं । श्री गंगवाल नागौर जिला अकाशवाणी संवाददाता हैं। सेवा के .. . Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /431 पाक्षिक पत्र संकल्प.प्रामीण समाचार पत्र का जून 1978 से सम्पादन कर रहे हैं । आपकी धर्मपत्नी कंचन देवी गंगवाल नगर पालिका को फरवरी 12 से 1956 तक सदस्य रह चुकी हैं। आपने दो ग - - ई की बेटी मादलकत्तामन के संस्थापक सदस्य.दि. more 8 M enstea AJi Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 432/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री पन्नालाल चांदवाड़ अपने युग के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. रामनाथ जी चांदवाड़ के सुपुत्र श्री पन्नालाल चांदवाड़ का जन्म आषाढ बुदी 6 संवत् 1976 को हुआ । आपकी माताजी का स्वर्गवास 15 वर्ष पूर्व हुआ था। श्री पन्नालाल जी सामान्य शिश्वा प्राप्त करने के पश्चात् आढत कमीशन एजेन्सी का कार्य करने लगे। संवत् 1989 में आपका विवाह श्रीमती केशरबाई जी से हो गया जिनसे आपको 4 पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री फूलचंद भवानीमंडी रहते हैं। पत्नी का नाम फूलकुमारी है जो चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों की मां है । द्वितीय पुत्र श्री राजकुमार बी. कॉम. है। पत्नी का नाम शिमला है। 47 वर्षीय है। तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। तृतीय श्री सोहनलाल 47 वर्षीय युवा हैं पत्नी का नाम इन्द्रा है। एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं। सबसे छोटे पुत्र श्री प्रेमचंद भी बी. कॉम. है । पत्नी का नाम गुणमाला है। तीन पुत्रियों के पिता हैं । आपके पिताजी सेठ रामदेव रामनाथ नागोर के प्रख्यात व्यापारी थे। उन्होंने बौकानेर जैन धर्मशाला, बौसपंथी धर्मशाला, शिखरजी तथा जोधपुर के मंदिर में एक एक कमरे का निर्माण करवाया । मुनिसंघ चातुर्मास के समय रुचिपूर्वक कार्य करते हैं । बीस पंथी मंदिर के 300 वर्ष से अधिक समय तक मंत्री रहे। द्वारा रामदेव रामनाथ, नागौर । श्रीपूरणमल काला कुचामन के श्री पूरणमल काला सामाजिक व्यक्ति है। आपका जन्म चैत्र सुदी 13 संवत् 1975 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यापारिक लाइन में चले गये। आपके पिताजी श्री कुन्दनलालजी एवं माताजी श्रीमती लाडी बाई का स्वर्गवास हो चुका है। आपका 14 वर्ष की आयु में ही श्रीमती भूलीदेवी से विवाह हो गया जिनसे आपको दो पुत्रों सुरेश, नरेश के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। श्री सुरेश कुचामन में तथा नरेश गोहाटी में व्यवसायरत हैं। काला जी ने अजमेरी मन्दिर में पार्श्वनाथ, सुपार्श्वनाथ एवं चन्द्रप्रभ को धातु की मूर्तियां विराजमान करने का उल्लेखनीय कार्य किया। आप विगत 4 वर्षों से अजमेरी मन्दिर के कोषाध्यक्ष हैं। आप शान्त स्वभावी एवं सेवाभावी व्यक्ति माने जाते हैं। पता:- सुपारस भण्डार, कुचामन (नागौर) श्री फूलचंद झांझरी बाडवास से करीब 45 वर्ष पूर्व कुचामन आकर बसने वाले श्री फूलचंद झांझरी ने अपने जीवन में अनेक उतार चढ़ाव देखे। लेकिन अपने पुत्रों एवं स्वयं अपने परिश्रम एवं लगन से अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाई। वर्तमान में आपकी आयु 67 वर्ष की होगी । आपका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में चूंकीदेवी के साथ संपन्न हुआ। ऑपके दो पुत्र एवं एक पुत्री हैं। पुत्री संतोष का विवाह मदनलाल जी काला के पुत्र कैलाशचंद काला के साथ संपन्न हुआ । Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /433 आपके पूर्वजों ने बाडलवास में चैत्यालय बनाकर मूर्ति स्थापित की तथा महावीर स्वामी की प्रतिमा मूंडवाड़ा के मंदिर में विराजमान की। आप कट्टर मुनिभक्त हैं। धुनि श्री विवेकसागर जी एवं विजयसागर जी के आप परमभक्त थे | आपने सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। कुंकुलवाडा में मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज की छत्री निर्माण में आपका पूर्ण सहयोग मिला था। पता:- अभिनंदन भवन, कुचामन सिटी (नागौर) श्री भंवरलाल सेठी सीकर नगर के समाजसेवियों में श्री भंवरलाल सेठी का विशिष्ट स्थान है। आप सामाजिक, साहित्यिक और राजनैतिक सभी गतिविधियों में समर्पित भावना से कार्य करते हैं। सेठी जी का जन्म सन् 1928 में हुआ। सन् 1943 में आपने मैट्रिक पास की और सन् 1944 में आपका विवाह श्रीमती पत्रादेवी के साथ हो गया जिनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र भरतेश का विवाह श्रीमती ऊषा के साथ हो चुका है जो एक पुत्री की मां बन चुकी है। सेठी जी के पिता श्री छोगालाल जी का सन् 1947 में तथा माता पीजीबाई का सन् 1979 में स्वर्गवास हो चुका है। सेठीजी का पूर्ण गतिशील जीवन है। आप ति जैन हायर मैकण्डरी स्कूल के !' वर्ष तक सेक्रेटरी रह चुके हैं। लाइन्स क्लब सीकर के चार्टर्ड सैक्रेटरी एवं संस्थापक सदस्य महावीर इन्टरनेशनल के उपाध्यक्ष खण्डेला विकास समिति के मंत्री, सीकर जिला मुद्रक संघ के सेक्रेट्री, जैन वीर मेवा संघ के संस्थापक सदस्य, जैसी कितनी ही संस्थाओं से जुड़े हुये हैं । सामाजिक रूढियों के उन्मूलन की ओर लगे रहते हैं। पुरातत्व प्रेमी हैं। सीकर पंचकल्याणक में प्रमुख कार्यकर्ता थे । पता:- लोक-मंगल प्रेस, सीकर श्री भंवरलाल पहाड़िया श्री पहाड़िया जी स्वाध्याय प्रेमी एवं प्रतिदिन पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति हैं। नागोरी गोठ के मन्दिर ट्रस्ट के पहिले कोषाध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष हैं। आपका जन्म श्रावण कृष्ण 10 संवत् 19800 को हुआ । आपकी माता का स्वर्गवास तो जब आठ वर्ष के थे तभी हो गया और पिताजी का स्वर्गवास अभी 1.3 वर्ष पूर्व हुआ है। संवत् 1999 में आपका विवाह श्रीमती अनोपदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपके 4 पुत्र एवं 3 पुत्रियां हैं। तीन पुत्र धर्मचन्द, कैलाचन्द एवं अजितकुमार हैं जो तिनसुकिया, अनोपदेवी पहाडिया किशनगढ़ एवं कुचामन में व्यवसायरत हैं। तीन पुत्रियों में संतोष एवं राजकुमारी का विवाह हो चुका है। कुमारी अनिता अभी अविवाहित है। Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 434/ जैन समाज का बृहद् इतिहास पहाड़िया भी में कुचामन एवं पांच में बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। नागौरी मन्दिर की मुख्य वेदी में पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान करने का श्रेय प्राप्त किया। आप पूरे मुनिभक्त हैं। मुनि श्री विवेक सागर जी महाराज की आपने बहुत सेवा की थी। तीर्थो को आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव के धर्मचक्र में तीन महिने तक रहे थे। समाज के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की भावना रहती है। पता:- कुन्दनमल भंवरलाल जैन, वस्त्र व्यापारी, कुचामन सिटी (नागौर) स्व. श्री भोमराज जी चूडीवाल सन् 19000 में जन्मे श्री भोमराज चूडीवाल समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय व्यक्ति रहे। वे गदिया गोत्रीय खण्डेलवाल जैन जाति के श्रावक थे। चूडीवाल उनका उपगोत्र पड़ गया। इनका जीवनकाल सन् 1900 से सन् 1983 तक रहा। ये आदर्श एवं श्रेष्ठ कवि तथा हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के अच्छे विद्वान, इतिहास, साहित्य-दर्शन एवं धर्मशास्त्रों के अच्छे ज्ञाता, तथा सत्यनिष्ठ एवं आदर्श व्यवसायी थे। इनका संपूर्ण जीवन बहुत ही कर्मठ एवं प्रेरणाप्रद रहा । उन्होंने मात्र 21 वर्ष की अल्प आयु में आध्यात्मिक भजनों एवं गीतों को पुस्तक प्रकाशित करवा ली थी। इन्होंने बहुत सारे राष्ट्रीय गीत एवं गाने भी बनाये हैं। ये बहुत ही प्रतिभाशाली एवं आदर्श व्यक्ति थे। आपके सुपुत्र श्री नेमीचंद चूडोवाल का जन्म पोष बुदी 13 संवत् 1991 में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य में प्रभाकर 1951 और बी. ए. 1954 की परीक्षा पास की है। सन् 1954 में आपका विवाह श्रीमती चन्द्रकला के साथ संपन हुआ। आपको दो पुत्र महावीर प्रसाद एवं रमेश कुमार तथा दो पुत्रियों पुष्पा एवं सरिता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आप भी संगीत, साहित्य एवं इतिहास में विशेष रुचि रखते हैं । आपके दादाजी के सगे भाई चांदमल जी चूडीवाल वैराग्यमय जीवन व्यतीत करते थे। अंतिम समय में मुनि अवस्था में रहकर स्वर्गवासी हुए। वे गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध थे । पता- सरावगी मोहल्ला, लाडनूं । श्री मदनलाल काला राणोली सोकर के श्री मदनलाल काला का जन्म श्रावण सुदी 3 संवत् 1983 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने आसाम जाकर सर्विस की और वर्तमान में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आपका विवाह 44 वर्ष पूर्व श्रीमती सोहनी देवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको दो पुत्र ओमप्रकाश एवं दीपचंद तथा चार पुत्रियों सुरज्ञान, हीराबाई सुशीला एवं प्रफुल्ला के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। दो पुत्र एवं प्रथम तीन पुत्रियों का विवाह हो चुका है। श्री काला जी शांतिप्रिय व्यक्ति हैं तथा अपना जीवन पूर्ण सादगी के साथ व्यतीत कर रहे हैं। पता:- मु. पो. राणोली (सीकर) राज. Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /435 श्री मदनलाल गंगवाल डेह नागौर के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री मदनलाल जी गंगवाल का जन्म संवत् 1969 . . में आसोज महिने में हुआ। आपके पिताजी श्री किशनलाल जी का सन् 1972 में तथा माताजी श्रीमती सुरजीदेवी का निधन सन् 1981 की 17 जनवरी को हो गया । आपने मनीपुर एवं डेह में सामान्य शिक्षा प्राप्त की तथा टायर्स,गल्लावं इलेक्ट्रिक के सामान के थोक विक्रेता का कार्य करने लगे । आपके पिताजी को मनीपुर में महाराजा एवं पोलीटिकाटन एजेन्ट की ओर से पूर्ण सम्मान प्राप्त था वे आपकी सच्चाई एवं ईमानदारी से बहुत प्रभावित थे। सन 1984 में मदनलाल जी का विवाह घेवरी देवी से हुआ। जिनसे आपको पांच पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके दो पुत्र श्री डूंगरमल जी एवं पन्नालाल जी डीमापुर में व्यवसायरत हैं। उनका पूर्वान्चल भाग में अलग से परिचय दिया गया है। तीसरे पुत्र शान्तिलाल जी देहली में व्यवसायरत हैं तथा चौथे पुत्र भागचन्द जी सी.ए. हैं। पांचवे पुत्र टीकमचन्द जी बी.कॉम. हैं । दो पुत्रियां मैना देवी एवं गिनिया देवी विवाहित हैं। आपने जम्बूदीप ज्ञान ज्योति में सौधर्म इन्द्र के पद को तथा नागौर पंचकल्याणक में सातवें इन्द्र के पद को सुशोभित किया। आपके द्वारा डेह के शान्तिनाथ दि.जैन मन्दिर में पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी की तथाडीमापुरके जैन मन्दिर में सर्वधातु की प्रतिमा विराजमान की गयी है। आपके शुद्ध खान-पान का नियम है जिसे आप 60 वर्षों से पालन कर रहे हैं । डेह में आने वाले सभी आचार्यों एवं मुनियों की आहार आदि से सेवा करते हैं। आपकी धर्मपत्नी ने दशलक्षण बत एवं अष्टाहिका व्रत के सथा सभी पुत्रवधुओं ने ये सभी उपवास कर लिए हैं। आपने सम्मेदशिखर जी की कितनी ही बार यात्रा करली है। आपके पास विगत 20 पीठियों का वंश वृक्ष है जो टुलीचन्द जी गंगवाल से प्रारम्भ होता है। श्री मन्नालाल कासलीवाल श्री मनालाल कासलीवाल नागौर के प्रतिष्ठित वयोवृद्ध समाजसेवी हैं। 88 वर्ष की आयु को पार करने वाले श्री कासलीवाल के पिताजी श्री रिद्धकरण जी एवं माताजी का स्वर्गवास भी बहुत पहिले हो चुका है। आपका विवाह 50 वर्ष पूर्व श्रीमती मोहिनी देवी के साथ संपन्न हुआ। जिससे आपको दो पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। ज्येष्ठ पुत्र श्री रतनलालजी 47 वर्ष के युवा है । पत्नी का नाम शांतिदेवी है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं 1 दूसरे पुत्र श्री राजकुमार 33 वर्ष के हैं। सरोजदेवी पत्नी है। आप नागौर पंचकल्याणक में इन्द्र बन चुके हैं तथा नागौर के बीस पंधी मंदिर एवं तेरहपंथी मंदिर में प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं । युवावस्था में आप प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते थे। आपने अधिकांश तीर्थों की यात्रा कर ली है । धार्मिक स्वभाव के माने हुये व्यक्ति हैं। पता:- गिनानी गली,नागौर Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 436 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री महावीर प्रसाद जैन लालासवाला समाजसेवा में सदैव अग्रिम पंक्ति में रहने वाले श्री महावीर प्रसाद जैन लालासवाला का जन्म 14 मई सन् 42 को हुआ। बी. कॉम. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही आपने जैनधर्म विशारद भी किया। आपके स्व. चन्द जी जैन हते थे। इसलिये लालासवाला आपका उप नाम पड़ गया। वैसे आपका काला गौत्र है। आपका अनेक संस्थाओं से संबंध रहा। दि. जैन अ. क्षेत्र लूणवां के पांच वर्ष तक अध्यक्ष रहे। इसी तरह सीकर के बीस पंथी आम्नाय वाले मन्दिर के पांच वर्ष तक अध्यक्ष रहे । दि. जैन खण्डेला विकास समिति के सदस्य, दि. जैन महासभा के सदस्य हैं। दि. जैन आचार्य धर्मसागर संस्कृत विद्यापीठ लूणवां के मंत्री हैं। सीकर देवीपुरा में आयोजित पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के महामंत्री रहे साथ ही में सौधर्म इन्द्र के पद से भी अलंकृत हुये । इसी तरह और भी संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं। एक बार आप जैन रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किये जा चुके हैं। पता:- मैसर्स हरकचन्द महावीर प्रसाद जैन, बी-12, नयी अनाज मंडी, सीकर (राजस्थान) श्री रतनलाल छाबड़ा कुचामन सिटी के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री रतनलाल छाबड़ा विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा संवत् 1974 में हुआ। आपके पिताजी श्री बालाबक्स जी का 34 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ। वे साहजी गोरधनराय जी काबरा के प्रधान सलाहकार थे । संवत् 1991 में मैट्रिक करने के पश्चात् आपका विवाह बादामीदेवी सुपुत्री गोविन्दलाल जी गोधा कुचामन के साथ संपन्न हुआ। आपको दो पुत्र मुकेश एवं सुरेश तथा एक पुत्री शिमला के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मुकेश कुमार सी.ए. हैं तथा अशोक बिडला के यहां कार्यरत हैं। सुरेश कुमार ब्रोकर एवं कमीशन एजेन्ट हैं। पुत्रो शिमला का विवाह नागौर के रामदेव रामनाथ के पौत्र राजकुमार चांदवाड़ के साथ हो चुका है । वर्तमान में आप सेवाभावी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आपने कुचामन पंचकल्याणक में हवाई जहाज से पुष्प वर्षा की थी। बंबई में खार में निजी चैत्यालय है जो जुह रोड पर स्थित है। लूणवां धर्मशाला में एक कमरा हस्तिनापुर क्षेत्र पर एक कमरा एवं सोनागिर में एक कमरे का निर्माण करा चुके हैं। कुचामन में आपके द्वारा निर्मित बालाबक्श धर्मशाला में सार्वजनिक विद्यालय चल रहा है। नागौरी नशियां कुचामन में एक कमरे का निर्माण करवाया हैं । आप घाटका अडकसर, राणी, देवली एवं कुचामन के कामदार रह चुके हैं। ठिकाने की ओर से इंडिया पावर आफ अटोर्नी 250 वर्षों तक आपके पूर्वजों के नाम रही। आपके तीन भाई और हैं। सबसे बड़े भाई घासीलाल जी थे जिनका निधन हो चुका है। उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री है। दूसरे भाई अमृतलाल जी हैं। दो पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं। आपसे छोटे चांदमल जी हैं। पता: कुचामन सिटी । Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 437 श्री रतनलाल पहाड़िया श्री पन्नालाल जी पहाड़िया के द्वितीय पुत्र श्री रतनलाल पहाड़िया का जन्म संवत् 1984 में हुआ था। मैट्रिक पास करके आप वस्त्र व्यवसाय में चले गये। वर्तमान में आपके बंबई, सूरत एवं कलकता दोनों ही नगरों में पहाड़िया एण्ड कम्पनी के नाम से वस्त्र व्यवसाय का कार्य होता है। 18 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती कमला देवी के साथ हो गया। जिनसे आपको आठ पुत्रों एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। पुत्रों में सर्व श्री राजकुमार, विजयकुमार, जयकुमार, सुरेशकुमार एवं विमलकुमार का विवाह हो चुका है। शेष तीन पुत्र प्रदीप, अशोक एवं जितेन्द्र पढ़ रहे हैं। भंवरबाई एवं मंजूबाई ये दो पुत्रियाँ हैं । श्री पहाड़िया जी धार्मिक प्रकृति एवं शांत स्वभावी हैं। आपने अजमेरी मंदिर में सर्वधातु को चौबीसी मूर्ति विराजमान करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। आपके छोटे भाई सोहनलाल जी के तीन पुत्र एवं एक पुत्री हैं। पता:- रतनलाल राजकुमार पहाड़िया, डीडवाना, कुचामन सिटी । श्री रतनलाल बड़जात्या i 1 सीकर निवासी श्री रतनलाल बड़जात्या समाजसेवा का पर्याय बने हैं आपका जन्म भादवा सुदी 8 संवत् 1974 में हुआ आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी बड़जात्या का स्वर्गवास सन् 1975 में तथा माता ताली देवी का सन् 1940 के केवल 35 वर्ष की आयु में हो गया था। प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् संवत् 1996 में आपका विवाह श्रीमती नारी देवी सुपुत्री भंवरलाल जी कासलीवाल दांता के साथ संपन्न हुआ। आपको तीन पुत्रों शान्तिलाल, महेन्द्रकुमार, इन्द्रकुमार तथा पांच पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। इनमें से प्रथम एवं तृतीय पुत्र सूरत में तथा महेन्द्र कुमार सीकर में ही व्यवसायरत हैं। पांचों ही पुत्रियों इन्द्रा हीरामणी, सन्तोष, सुलोचना एवं मधू का विवाह हो चुका है। सन् 1947 में सीकर में आयोजित पंचकल्याणक में आपके दादाजी गजानन्द जी बड़जात्या प्रमुख कार्यकर्ता थे। आपने दीवान जी की नशियां सीकर में मुनि श्री विवेकसागर महाराज की छतरी का निर्माण करवाया। सन् 1981 में जब मंगल कलश सीकर आया तब आपने समारोह में इन्द्र इन्द्राणी का पद ग्रहण किया था। वर्तमान में खण्डेला जैन मन्दिर विकास समिति के कार्याध्यक्ष हैं। आप सीकर नगर परिषद् के सदस्य रह चुके हैं। उपभोक्ता भण्डार सोकर के डाइरेक्टर, सोकर जिला कांग्रेस के लगातार 25 वर्ष तक कोषाध्यक्ष तथा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। राष्ट्रीय खुदरा व्यापार संघ के जिला संयोजक तथा हिन्दी विद्या भवन के उपाध्यक्ष रहे हैं। सीकर की और भी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपके दादाजी श्री गजानन्द जी का 1112 वर्ष की आयु में सन् 1984 में स्वर्गवास हुआ। आपके घर पर सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर सन् 1947 सर सेठ भागचन्द जी 1947, इन्दिरा गांधी सन् 1979 जैसे नेता आ चुके हैं। 1 पता:- पटेल मार्ग, तबेला, सीकर । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 438/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रामकृष्ण जैन एडवोकेट मेड़ता सिटी के निवासी श्री रामकृष्ण जी जैन नागौर जिले में वरिष्ठ समाजसेवी के रूप में जाने जाते हैं। आसोज सुदी 14 सं. 1963 को जन्मे श्री जैन ने जीवन पर्यन्त सामाजिक कार्यों में अपने आपको समर्पित रखा और मेड़ता नगर एवं नागौर जिले की कितनी ही सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे । आपने बी. ए., एल.एल.बी, विशारद परीक्षायें पास कीं और वकालत का कार्य करने लगे। आपको अपने व्यवसाय में अच्छी सफलता मिलती गयी। संवत् 1985 में आपका विवाह श्रीमती सती से हुआ। जिनसे आपको चार पुत्रों सर्वश्री विमलचन्द रांका, आनन्द प्रकाश रांवका, कपूरचन्द रांवका एवं कैलाशचन्द रांवका के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके सभी पुत्र उच्च शिक्षित हैं तथा उच्च पदों पर कार्य कर रहे हैं। आप दि. जैन समाज पंचायत मेड़ता के विगत 30 वर्षो से अध्यक्ष हैं। इसी तरह अन्य संस्थाओं के पदाधिकारी हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए आपने जैन मन्दिर में एक फ्लेट बना रखा है। इसी तरह यहां के राजकीय औषधालय में भी मरीजों को ठहरने के लिए एक कमरे का निर्माण कराया है। पता- रामकृष्ण जैन एडवोकेट- मेड़ता सिटी (नागौर) राजस्थान । श्री राजकुमार पांड्या लाडनू निवासी श्री राजकुमार जी का पूरे नगर में एक सम्मानीय स्थान है। आपका जन्म 21 सितम्बर सन 1947 को हुआ। आपके पिताजी श्री फूलचन्द जी पांड्या का 80 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था। माताजी श्रीमती रामी देवी का निधन अभी 9 वर्ष पूर्व ही हुआ है। वे भी उस समय 80 वर्ष की थी। बारात आपने सन 1968 में कलकता विश्वविद्यालय से बी. कॉम. किया और फिर व्यवसाय में चले गये । इसके पूर्व ही आपका विवाह जयपुर के श्री रोशनलाल जैन की सुपुत्री शकुन्तला के साथ सम्पन्न हुआ | जिनसे आपको 1 पुत्र कपिल एवं दो पुत्रियां सुलेखा एवं सुजाता की प्राप्ति हो चुकी है। तीनों सन्तान पढ़ रही हैं। न शकुन्तला देवी IF पांड्या जी स्कूल समय से ही सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने लगे। महावीर उच्च माध्यमिक विद्यालय लाडनू के 6 वर्षों तक अवैतनिक व्यवस्थापक रहने के पश्चात् वर्तमान में उसके अध्यक्ष है। आप नगर को सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। वर्तमान में श्री दि. जैन खण्डेलवाल पंचायत, श्री दि. जैन बड़ा मन्दिर के कार्याध्यक्ष हैं। श्री महावीर हीरोज के अध्यक्ष हैं तथा श्री दि. जैन महासमिति जिला नागौर के संयोजक हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शकुन्तला पांड्या भी उत्साही महिला हैं तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेती रहती हैं। पता:- फूलचन्द पांड्या रोड, लाडनूं (राजस्थान) Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /439 श्री राजकुमार पाटनी, सीकर राणोली के युवा समाजसेवी श्री राजकुमार पाटनी का जन्म 7 जुलाई सन् 1950 को हुआ । आपके पिताजी का नाम श्री रतनलाल जी पाटनी एवं माता श्रीमती महताबदेवी है। इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप कलकत्ता में अपना व्यवसाय करने लगे। सन् 1973 में आपका विवाह श्रीमती विमला देवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको एक पुत्र विकास एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपके तीन भाई एवं दो बहने हैं। दोनों बहिनों का विवाह हो चुका है। श्री पाटनी राजनीति में भी प्रभाव रखते हैं। जिला युवा लोकदल सीकर के कोषाध्यक्ष हैं । एक बार दांतारामगढ़ से विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। पता: पाटनी सदन ,राणोली (सीकर) राजस्थान श्री राजकुमार पाटनी लाडनूं में 31 मार्च सन् 1942 को जन्मे श्री राजकुमार पाटनी लाडनूं के युवा समाजसेवी हैं । आपके पिताजी का नाम डूंगरमल जी पाटनी एवं माताजी श्रीमती देवकी देवी हैं । सन् 1965 में आपने कलकत्ता में दि.विद्यालय से बी.कॉम.आनर्स किया तथा उसी वर्ष आपका विवाह श्रीमती निर्मला जी के साथ हुआ । उनसे आपको एक पुत्र दीवान पाटनी एवं एक पुत्री निशा पाटनी के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चूका है। पाटनी जी सुखदेव आश्रम के व्यवस्थापक हैं। जिनकूदेवी जैन बालिका विद्यालय के कोषाध्यक्ष तथा श्री दि.जैन मंदिर एवं पंचायत के व्यवस्थापक हैं। पाटनी जी सतत् क्रियाशील रहते हैं तथा समाज में ऊंचाइयों को छूने वाले हैं। पता : सेठ बच्छराज रोड़,लाडनूं (राज) श्री रिखबचंद पहाड़िया कुचामन के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री रिखबचंद पहाड़िया अपनी धार्मिक लगन, समाजसेवा एवं साधुओं के प्रति भक्ति के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। आपका जन्म चैत्र सुदी 3 संवत् 1961 को हुआ। 86 वर्ष के होने पर भी आप अभी तक अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण सजग हैं । 11 वर्ष की अवस्था में आपका विवाह भंवरीदवी के साथ हुआ जिनका अभी 7 वर्ष पहिले ही स्वर्गवास हुआ है। आपको 4 पुत्र एवं 4 पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त आप स्वयं दो प्रतिमाधारी हैं जिनको उन्होंने आचार्य वीरसागर जी महाराज से ग्रहण की थी । कुचामन पंचकल्याणक में आपका एवं आपके परिवार का पूरा सहयोग था । आपने अपने घर में चैत्यालय बनवा रखा है जिसकी स्थापना आचार्य वीरसागर जी महाराज के संघ आपके घर पदापर्ण के अवसर पर की गई थी। आप प्रति दिन इसी चैत्यालय में पूजा पाठ करते हैं। इनमें तीन पातु की प्रतिमायें एवं एक सिद्ध यंत्र है। वीरसागर जी महाराज के चरण भी हैं। Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 440/ जैन समाज का बृहद इतिहास .... चैत्यालय के लिये वहीं कुआ बना हुआ है । आपके शुद्ध खान-पान का नियम है । 20 वर्ष तक अजमेरी मंदिर के व्यवस्थापक रहे । 1. श्री चिरंजीलाल जी आपके ज्येष्ठ पुत्र थे जिनका 16 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया था । आप अपने पीछे चार पुत्र छोड़ गये हैं जिनमें देवेन्द्र कुमार कुचामन में व्यवसायरत हैं शेष तीन पुत्र भागचंद,जम्बूकुमार एवं शंभु कुमार बुहरानपुर में रहते हैं । 2-श्री मदनलाल जी पहाड़िया दूसरे पुत्र हैं। जिनका जन्म मंगसिर जुदी 8 सं.1982 को हुआ । संवत 2000 में विवाह हुआ । पत्नी का नाम नेमिदेवी है । जो महावीर प्रसाद जी भवरदेवी पहाड़िया अहमदाबाद की बहिन है। दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों से सुशोभित हैं। दोनों पुत्र जयकुमार एवं मुकेशकुमार कुचामन में हो वस्त्र व्यवसाय करते हैं। तीनों पुत्रियों मंजू रंजू एवं बीना का विवाह हो चुका है । श्री मदनलाल जी अजमेरी मंदिर के 31 वर्ष से मंत्री हैं। दि.जैन विद्यालय के सेक्रेटरी हैं। कुचामन कपड़ा कमेटी के 31 वर्ष से अध्यक्ष हैं । पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में भोजन व्यवस्था के संयोजक रहे थे। 3- श्री सरसासनी- प. पु. एवं पुत्रियों से सुशोभित हैं । इनमें से श्री निर्मलकुमार एवं सुमतिकुमार बुहरानपुर में शांति कुमार (उप नेहरू) एवं राजकुमार कुचामन में तथा अजित कुमार सी.ए. है एवं बबई में कार्य करते हैं । 4. श्री महावीर प्रसाद - बी.ए. एवं कास्ट अकाउन्टेन्ट हैं । मुहरानपुर में रहते हैं तथा पावरलूम फैक्टरी चलाते हैं । पता: कुचामन सिटी (नागौर) श्री लालचंद पांड्या कुचामन सिटी में एक मात्र प्रिंटिंग प्रेस के संचालक श्री लालचंद पांड्या का जन्म संवत् 1905 फाल्गुण सुदी 10 को हुआ। आपके पिताजी श्री चंदनमल जी ने पहिने क्षुल्लक दीक्षा आचार्य विमलमागर जी महाराज से धारण की और फिर अंतिम समय मुनि अवस्था धारण करके उदय सागर जी कहलाये। इसी तरह आपकी माताजी श्रीमती फूलीदेवी पांड्या ने आर्यिका दोक्षा धारण की और धर्मसागर जी महाराज के संघ में रहे थे । आप दोनों की स्मृति में लाडनूं के बाहर के मंदिर में चरण चिन्ह स्थापित हैं। श्री लालचंद जी पांड्या का संवत् 2012 में श्रीमती शिमला देवी से विवाह हुआ । जिनसे आपको एक पुत्र प्रमोद एवं छह पुत्रियों किरण,अनिता सुनिता संगीता,सरिता एवं कनकलता की प्राप्ति हुई । लाडनूं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में आप प्रमुख कार्यकर्ता रहे । नागौरी मंदिर में आपने भगवान चन्द्रप्रभु को मूर्ति विराजमान को। पता : श्री पांड्या, पदय प्रिटिंग प्रेम,कपड़ा मार्केट कुचामन सिटी . श्री विमलचंद छाबड़ा राणोली के श्री विमलचंद छाबड़ा युवा समाजसेवी हैं। आपका जन्म श्रावण बुदी 4 मंगलवार सं. 2002 को हुआ। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी छाबड़ा का 62 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। आपकी माताजी श्रीमती गुलाबदेवी जी को आयु 76 वर्ष की होगी। Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /441 सन् 1964 में आपका विवाह हुआ। आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । बड़े पुत्र विनोद का विवाह हो चुका है । सूरत में व्यवसाय है। शेष दोनों पुत्रियों एवं एक पुत्र पड़ रहे है । आपकी माताजी गुलाबदेवी बहुत धर्मात्मा एवं मुनिभक्त हैं । राणोली में आने वाले सभी मुनियों को आहार देती रहती हैं । स्वयं के शुद्ध खानपान का नियम है । लेखक की बड़ी बहिन हैं। छोटा भाई ओमप्रकाश विवाहित है । बैंक सर्दिस में है। तीन पुत्रियां एवं एक पुत्र का पिता है । पता : मु.पो.राणोली (सीकर) राज, श्री सागरमल पांड्या लाडनूं निवासी श्री सागरमल पांड्या का जन्म संवत् 1990 में हुआ। आपके पिताजी श्री नेमीचन्द जी पांड्या एवं माताजी श्रीमती धापादेवी दोनों क्रमश:89 एवं 87 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं । सन् 1952 में आपने मैट्रिक किया और जनरल मर्चेन्टस एण्ड क्रमोशन एजेन्ट का कार्य करने लगे। सन 1951 में आपका विवाह श्रीमतो चम्पादेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र सुनील एवं प्रमोद तथा एक पुत्री सरिता की प्राप्ति हुई। सुनील बी.ए, एल.एल.बी है । विवाह हो चुका है । पत्नी का नाम सुमन हैं । पुत्र अंकित है । जैन युवा संगठन कलकत्ता का कोषाध्यक्ष है। ____ पांड्या जी ने सुजानगढ पंचकल्याणक में भूटान नरेश का नाम रखवाया । जसरासर के मंदिर के जीणोद्धार में योगदान दिया। आप सब भाई हैं। आपका नम्बर तीसरा है 1 आपके अतिरिक्त सर्व श्री नथमल जी (गोहाटी),मांगीलाल जी (गोहाटी), पुखराज जी (गोहाटी).सम्पतलाल जी (गोहाटी),एवं महावीर प्रसाद लाडनूं में कार्यरत हैं। पता: (1) सागरमल पांड्या लाडनूं (नागौर) (2) नेमिचंद नथमल पांड्या,राजरोड़ कलकत्ता 234,8/2 महर्षि देवेन्द्र रोड़,बड़ा बाजार, बडा मंदिर,कलकत्ता । श्री सूरजमल छाबड़ा कुचामन के वयोवद्ध समाजसेवी श्री सूरजमल छाबड़ा का जन्म श्रावण सुदी ) संवत् 1967 को हुआ। आपके पिताजी श्री मांगीलाल जी छाबड़ा का स्वर्गवास हुए करीब 35 वर्ष हो गये । माताजी केशरवाई का आशीर्वाद अभी प्राप्त है । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका विवाह करीब 72 वर्ष पूर्व श्रीमती इचरज देवी के साथ हो गया जिनकी आयु भी वर्तमान में 80 वर्ष की होगी। आपको चार पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कुचामन की अजमेरी नशियां में तीन बार वेदो प्रतिष्ठायें संपन्न कराई तथा भगवान पार्श्वनाथ की बड़ी प्रतिमा कुचामन पंचकल्याणक में प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान की थी। भावनगर दि. जैन मंदिर में एक प्रतिमा विराजमान की । आप कष्टर युनिभक्त हैं । मुनियों को आहार देने में आगे रहते हैं ! दानशील प्रवृत्ति के हैं तथा सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। 1. आपके चार पुद्रों में राजमल जी का जन्म 31 दिसम्बर सन् 1937 को हुआ । राज. विश्वविद्यालय से बी.कॉम., एल.एल बी.तक शिक्षा प्राप्त की। आपका विवाह 4 मार्च 67 को श्रीमती सरोजदेवी के साथ हुआ। आपका देहली एवं फूलेरा Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 442 / जैन समाज का वृहद् इतिहास | श्री में व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं। तीन पुत्रियां प्रतिभा, शुभलक्ष्मी, पदमश्री एवं एक पुत्र पार्श्वकुमार के पिता हैं। प्रतिभा एम.ए. राजमल जी स्वाध्यायशील युवक हैं। शांत स्वभावी एवं पूजा पाठ में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं । 2- श्री धर्मचंद जी राजमल जी के बड़े भाई हैं। नलबाड़ी में व्यवसाय है। एक पुत्र एवं पांच पुत्रियों के पिता हैं। 3 श्री सुन्दरलाल जी आपके बड़े भाई हैं। गोहाटी में व्यवसायरत हैं। 3 पुत्र एवं 3 पुत्रियों के पिता हैं। ज्येष्ठ पुत्र विमलकुमार बी. कॉम. में विश्वविद्यालय से प्रथम पोजीशन प्राप्त की है। राजीव ने इन्टरमीजियेट में आसाम यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त किया। संजय अध्ययन कर रहा है। 4- आपके छोटे भाई सुमेरकुमार का गोहाटी में व्यवसाय है। तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । पता - सूरजमल धर्मचंद छाबड़ा, छाबड़ों का मुहल्ला, घाटी कुआ, कुचामन सिटी । श्री सुरेशचन्द बड़जात्या जी नागौर निवासी श्री सुरेशचन्द बड़जात्या का जन्म दि. 13 सितम्बर सन् 1949 हुआ। आपके पिताजी श्री जेठमल बड़जात्या एवं माताजी श्रीमती पतासी देवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। सन् 1968 में जोधपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. किया और फिर सप्लाई का कार्य करने लगे। सन् 1971 दिनांक 11 मई को आपका विवाह श्रीमती सुशीला देवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको देवेन्द्र, सौरभ, गौरव एवं निलेश जैन चार पुत्रों की प्राप्ति हुई । बड़जात्या शान्तिप्रिय व्यक्ति हैं । समाजसेवा में रुचि लेते हैं। पता : जेठमल मिलापचन्द बड़जात्या, गिनानी गली, नागौर (राजस्थान) श्री सोहनलाल पहाड़िया कुचामन शहर के बयोवृद्ध समाजसेवी श्री सोहनलाल पहाडिया 80 को पार करने वाले हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुबाबाई भी 75 के करीब है। आपके पिता का नाम श्री सुगनचंद जी एवं माता का नाम सरदारबाई था। आपके कपड़े का व्यवसाय है । सामाजिक कार्यों में तीव्र उत्कंठा रहती है। कुचामन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर आपने इन्द्र के पद को सुशोभित किया तथा हेलीकाप्टर से भगवान पर पुष्पों की वर्षा की। अजमेरी मंदिर में एक धातु की प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । शुद्ध खानपान का नियम है। मुनियों की सेवा करने में व्यस्त रहते हैं। प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं। आपको सात पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हैं। सभी पुत्र उच्च शिक्षित हैं जिनका सामान्य परिचय निम्न प्रकार है - सात पुत्र 1. गोपालचन्द्र - जन्मतिथि आसोज सुदी 15 संवत् 1991 शिक्षा -मैट्रिक, विवाह - सन् 1952, पत्नी का नाम-रूपकान्ता, संतान 2 पुत्रियां, व्यवसाय- जैना सीमेन्ट उद्योग कुचामनसिटी, कुचामन में कपड़े का व्यवसाय । Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /443 2- जोरावरमल - आयु -55 वर्ष 1993 संवत्, शिक्षा- मैट्रिक, विवाह - 1954, पत्नी का नाम जैनमती पुत्र-5, पुत्रियां- 1, बंबई में कपड़े का व्यवसाय । 3. सुन्दरलाल - 53 वर्ष शिक्षा- मैट्रिक, विवाह - 1956, गुणमाला पत्नी का नाम है। पुत्र -2, पुत्रियां -3, व्यवसाय- पैट्रोल पम्प एवं रमेश मार्बल कुचामन में हैं । 4- धर्मचन्द- 45 वर्ष विवाह 1970, पत्नी कानाम मीनाक्षी, पुत्र एक, पुत्रियां 2, व्यवसाय- डायमंड कटिंग फैक्टरी, मारबल मकराना में 1 5- पदमचंद - 38 वर्ष, शिक्षा - एम.डी. डाक्टर, विवाह - 1972 में पत्नी का नाम निर्मला, पुत्र-1, पुत्री - 1 6- मनोहरलाल 36 वर्ष, सी.ए. जयपुर ग्लास फैक्टरी के मैनेजर, विबाह 1975 लड़के- 1 पुत्री-1, पत्नी रश्मि 7- पारसमल बी.कॉम., 32वर्षीय, विवाह - 1978 में जयपुर में। पत्नी का नाम मंजू, लडकी एक. मारबल डाइमन्ड फैक्टरी कुचामन सिटी में कार्य देखते हैं। पता:- रमेशकुमार, प्रदीपकुमार, कपड़ा मार्केट, कुचामन सिटी । श्री सोहनसिंह कानूगो नागौर शहर के प्रतिष्ठित समाजसेवियों में श्री सोहनसिंह जी कानृगो का सर्वोच्च स्थान था। आपका जन्म 23 जून, 1923 को हुआ। आपके पिताजी श्री धनसुखदास जी का स्वर्गवास 82 वर्ष की आयु में कार्तिक सुदी 17 सं. 2012 में हुआ एवं माताजी केशरबाई का वियोग तो बहुत पहिले हो चुका था। जयपुर में आपकी शिक्षा हुई और मैट्रिक पास भी वहीं से किया । संवत् 1996 वैशाख सुदी 3 के दिन आपका विवाह श्रीमती सुशीलादेवी के साथ संपन हुआ । श्रीमती जी चाकसू के श्री मूलचंद जी सौंगाणी की सुपुत्री हैं। आपको पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं । पुत्री का विवाह डेह के श्री प्रसनकुमार जो सबलावत के साथ संपन्न हुआ है । कानूगो जी अत्यधिक सरल स्वभावी एवं आतिथ्य प्रेमी थे। लेखक को उनके निवास पर रहने एवं उनका आतिथ्य स्वीकार करने का अवसर प्राप्त हो चुका है। वे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के सेक्रेटरी रहे थे। इस समिति द्वारा आपको 28 पई सन् 1986 में जैन समाजरत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया था। आपका धर्मनिष्ठ, धर्मतीर्थ, समाजसेवी, सत्यनिष्ठ, धर्मानुरागी, देवशास्त्र गुरू उपासक, लगनशील, मिलनसार एवं आतिथ्यप्रिय जैसे विशेषणों से भी सम्मान किया गया था। आप महासभा नागौर अंचल के अध्यक्ष, सोनीबाई दि. जैन प्राथमिक विद्यालय के मंत्री एवं महावीर इन्टरनेशनल नागौर के अध्यक्ष रहे थे | आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री देवेन्द्र कुमार 46 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम पुष्पा हैं जो दो पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। द्वितीय पुत्र राजकुमार 41 वर्षीय युवा है। पत्नी का नाम सुशीला है। तीन पुत्रों की जननी है। तृतीय पुत्र श्री दलपतकुमार 39 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम सरला तथा एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता है। चौथे पुत्र श्री सनत्कुमार जी 35 वर्षीय युवा हैं। Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 444/ जैन समाज का वृहद् इतिहास -पली का नाम शशि है तथा एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। सबसे छोटे पुत्र गजेन्द्रकुमार जी | 30 वर्षीय युवा हैं । उनकी पत्नी चंदा एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है । सभी पुत्र नागौर समाज में पूर्ण क्रियाशील हैं। श्री सोहनसिंह जी नागौर एवं पूरे मारवाड़ के अत्यधिक लोकप्रिय समाजसेवी थे। नागौर का सारा जैन समाज आपके निर्देशन में कार्य करता था। कानूगो बैंक आपके पूर्वजों से आया हुआ है। सिंह शब्द का भी सर्वप्रथम आपके पिताजी साहब ने प्रयोग किया था 1 श्री सोहन सिंह जी का अभी कुछ समय पुर्व ही दुःखद निधन हुआ है। श्रीमती सुशीला देवी धर्मपत्नी पता :- धनसुख विलास, नागौर (राज) श्री सोहनसिंह श्री सोहनलाल सौगानी सुजानगढ़ के श्री सोहनलाल सौगाती समाज के वरिष्ठ समाजसेवी हैं । आपका जन्म माह सुदी 14 सं.1973 को हुआ। आपके पिताजी श्री नथमल जी सौगानी का स्वर्गवास सन् 1978 में 93 वर्ष की आयु में एवं माताजी सुन्दर बाई का उसके एक वर्ष पूर्व 92 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ था। संवत् 1989 में आपका विवाह श्रीमती मोहिनीदेवी के साथ हुआ जिनसे आपको चार पुत्र प्रकाशचंद, विमलकुमार जयकुमार एवं ललितकुमार की प्राप्ति हुई। सभी पुत्रों का विवाह हो चुका है तथा सभी पुत्र -पुत्रियों से अलंकृत हैं। आप सुजानगढ़ पंचकल्याणक महोत्सव में भावान के माता-पिता बनने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। यहां की नशियां में भगवान शांतिनाथ कुंथुनाथ एवं अरनाथ की प्रतिमायें प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान कर चुके हैं । कट्टर मुनिभक्त हैं । आचार्य धर्मसागर जी महाराज के चातुर्मास में आपने बराबर आहार दिया । आप दोनों पति-पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । तीन बार सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। सौगानी जी सन् 1972-73 एवं 1982-86 तक नगरपालिका के अध्यक्ष रह चुके हैं। कांग्रेस कमेटी सुजानगढ़ के 8 वर्षों तक (1980 तक) अध्यक्ष रहे । श्रीमती इंदिरा गांधी के समर्थन में एक बार जेल भी जा चुके हैं। पता : सोहनलाल प्रकाशचंद सौगानी, सुजानगढ़ (राज) श्री स्वरूपचंद पांड्या कुचामन (राज) को वर्तमान जैन समाज की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रमुख रूप से भाग लेने वाले श्री स्वरूपचंद पांड्या का जन्म 20 सितम्बर सन् 1936 को हुआ। आपके पिताजी चांदमल जी पांड्या का स्वर्गवास 52 वर्ष की आयु में संवत्-1999 में हो गया । वे सेठ चैनसुख गंभौरमल के प्रमुख मुनीम थे। आपकी माताजी श्रीमती विरधीदेवी का अभी आशीर्वाद मिल रहा है । आपने सन् 1952 में अजमेर बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा पास की और फिर कुचामन में ही जनरल पर्चेन्टस् का कार्य करने लगे 121 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती नंदकेशरदेवी के साथ हो गया। आपको 2 पुत्र एवं Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /445 तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। बड़े लड़के राजेश का विवाह हो चुका है तथा मनोज भी आपके साथ ही कार्य कर रहा है। आपका परिवार सदैव मुनिभक्त रहा है । आपके काकाजी कुन्दनमल जी क्षुल्लक दीक्षा लेकर उदयसागर जो कहलाये तथा काकीजी विमलमती आर्यिका दीक्षा लेकर धर्मसागर जी के साथ रहने लगी। आपने कुचामन में श्री जैन वीर मंडल की सन 1958 में स्थापना की और हाल में आप उसके बराबर कार्यवाहक अध्यक्ष रहे हैं । लूणवां अतिशय क्षेत्र को मैनेजिंग कमेटी के सदस्य है ।कुचामन में आयोजित पंचकल्याणकों को सफल बनाने में पूरा योग दिया। सन् 1989 में जब आप मंच का संचालन कर रहे थे घर में चोरी होने के समाचार मिलने पर भी नाटक समाप्त होने के बाद ही घर गये । णमोकार मंत्र के जाप आदि में विशेष रुचि लेते हैं । इनमें मुनि श्री विवेसागर जी महाराज को विशेष प्रेरणा रही है। पता - उपासरा की गली,कुचामन सिटी (राज.) श्रीपाल पहाड़िया __कुचामन के श्रीपाल पहाड़िया बहुत ही शांत स्वभावी तथा समाजसेवा में तत्पर रहने वाले व्यक्ति हैं । संवत् 1988 में आपका जन्म हुआ । आपके पिताजी श्री चुन्नीलाल थे । आप पांच भाई थे तथा सबसे छोटे आप हैं । संवत 2001 में आपका श्रीमती लादीदेवी से विवाह हो गया 1 जिनसे आपको एक पुत्र महेन्द्रकुमार एवं एक पुत्री प्रेमबाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महेन्द्रकुमार कुचामन में होजरी का व्यवसाय करते हैं 1 पुत्री का विवाह हो चुका है । 30 वर्ष की आयु में आप श्री रामपाल जी के दत्तक चले गये। श्रीपाल जी पहाड़िया ने नागौरी नशियां में दो स्नानघर एवं एक कमरे का निर्माण करवाया । आपसे लेखक को कुचामन में इतिहास लेखन के कार्य में बहुत सहयोग मिला था । आपके एक बड़े भाई टीकमचंद जी पहाड़िया भी प्रसिद्ध समाजसेवी रहे पता : कुचामन सिटी (राजस्थान) श्रीपाल सेठी लाडनूं के श्रीपाल सेठी का जन्म संवत् 1980 में हुआ । मैट्रिक करने के पश्चात् आप अपना व्यवसाय करने लगे। 17 वर्ष की आयु में सोहनीदेवी से विवाह हो गया। जिनसे आपको एक पुत्र अनिल एवं दो पुत्रियां ममता,अमिता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोनों पुत्रियां उच्च शिक्षिता है तथा संगीत में निपुण हैं । आपके पिताजी का नाम स्व.गुलाबचंद जी सेठी एवं माता का नाम स्व.माणकदेवो था । गुलाबचंद जी अच्छे लेखक एवं शास्त्र प्रवचन करते थे। पता :- गांधी चौक,लाडनूं Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 446/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री हनुमानबक्स गंगवाल कुली (सीकर) निवासी श्री हनुमानबक्स गंगवाल को समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त है। आपके पिताजी श्री रिखबचंद जी का बहुत पहिले स्वर्गवास हो गया। आप गांव में ही अपना व्यवसाय करते हैं। आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। ज्येष्ठ पुत्र श्री मानिकचंद गंगवाल गोहाटी में रहते हैं । सबसे छोटे पुत्र श्री शांतिलाल सी.ए. हैं तथा जयपुर में व्यवसायरत हैं। दूसरे पुत्र हरकचंद आपके साथ रहते हैं जो दो पुत्र जिनेन्द्र एवं अजय एवं एक पुत्री कल्पना के पिता हैं । आपकी तीनों पुत्रियों-रुक्मणिदेवी,गुणमालादेवी एवं मनभरदेवी का विवाह हो चुका है। श्री गंगवाल ने अपने गांव के मंदिर में सन् 1972 में एक मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया था । तीर्थ यात्रा में पूर्ण अभिरुचि है। आप मुनिभक्त हैं । मुनि श्री विजयसागर जी की आपने बहुत सेवा की थी। पता :- मु.पो.कुली (सीकर) राज, श्री हीरालाल काला कुचामन निवासी श्री कज्जूलालजी काला के सुपुर श्री हीरालाल काला का जन्म 24 मार्च सन् 1934 को कुचामन में हुआ । हिन्दी प्रभाकर पास करने के पश्चात् आपका विवाह हो गया । आपके तीन पुत्र सुरेन्द्रकुमार,सुनीलकुमार एवं राजेन्द्रकुमार है। चार पुत्रियां तथा एक बहिन है । आपके भाई माणकचन्द जी काला के चार पुत्र अनिलकुमार,कमलकुमार,विजयकुमार एवं आनन्दकुमार हैं । इनके दो पुत्रियां भी हैं। श्री काला जी का व्यावसायिक क्षेत्र भावनगर (गुजरात) गौहाटी(आसाम) एवं बम्बई है। विशेषता आए स्वाध्यायशील व्यक्ति हैं। श्री दि.जैन स्वाध्याय मंदिर द्वार के ट्रस्टी एवं दि.जैन मुमुक्षु मंडल भावनगर के प्रमुख दूस्टी,श्री वीतराग सत् साहित्य प्रभाकर ट्रस्ट भावनगर के संस्थापक ट्रस्टी, श्री जिनेश्वरदास दि.जैन विद्यालय ट्रस्ट कुचामन सिटी (राज) के अध्यक्ष व ट्रस्टी तथा श्री दिगम्बर जैन तेरापंथी मंदिर कुचामन सिटी के ट्रस्टी हैं । श्री काला मिलनसार एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। पता - हीरालाल जैन, 580 जूनी मानिकबाड़ी, भावनगर -1 (गुजरात) Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /447 बागड़ एवं मेवाड़ प्रदेश बागड़ प्रदेश:- बागड़ प्रदेश राजस्थान का महत्वपूर्ण अंग है जिसकी सीमायें राजस्थान को गुजरात प्रदेश से भिन्न करती हैं। यही नहीं इस प्रदेश की सभ्यता एवं संस्कृति, बोलचाल एवं रहन-सहन में गुजरात तथा राजस्थान दोनों का सम्मिश्रण है । राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ राज्यों का सम्मिलित क्षेत्र बागड़ कहलाता है। इन तीनों ही राज्यों के शासक जैन धर्म से प्रभावित रहे और अपने-अपने राज्य में जैनधर्म एवं साहित्य के विकास में पूर्ण सहयोग एवं समर्थन दिया । जैन साधुओं, भट्टारकों एवं मुनियों का बराबर विहार होता था। मंदिरों का निर्माण, प्रतिष्ठा-महोत्सव का आयोजन तथा साहित्य निर्माण से जन-जन में धार्मिक निष्ठा एवं कर्तव्य पालन के भाव जाग्रत होते रहे। बागड़ प्रदेश में डूंगरपुर का राज्य सबसे बड़ा राज्य था । उदयपुर के ऊण्डा मंदिर में 14 वीं शताब्दि तक की प्रतिमायें है जिनकी प्रतिष्ठा बागड़ प्रदेश में ही हुई थी । बागड़ प्रदेश का सबसे प्राचीन उल्लेख 994 ई. के मूर्तिलेख से होता है । डूंगरपुर बांगड़ प्रदेश का केन्द्र रहा तथा सैकड़ों वर्षों तक यह नगर दि. जैन भट्टारकों का प्रमुख स्थान बना रहा । भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य पद्मनंदि आचार्य बनते ही बागड़ एवं गुजरात में बिहार करने लगे और इसके पश्चात् उन्हें संवत् 1385 पौष सुदी सप्तमी की शुभवेला में गुजरात एवं बागड़ प्रदेश का भट्टारक बना दिया गया। इसके पश्चात् 70 से भी अधिक वर्षों तक ये बागड़ प्रदेश में अहिंसा एवं सत्य का प्रचार करते डूंगरपुर में दूसरे बड़े एवं प्रतिभा सम्पन्न भट्टारक सकलकीर्ति हुये इन्होंने अपने जबर्दस्त व्यक्तित्व से कितने ही मंदिरों का निर्माण कराया, प्रतिष्ठा महोत्सव का संचालन किया तथा सैकड़ों मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराकर बागड़ प्रदेश में ही नहीं किन्तु समस्त देश में सांस्कृतिक जागृति उत्पन्न की । भ. सकलकीर्ति के पश्चात् 200 वर्ष तक बागड़ प्रदेश भट्टारकों का प्रमुख प्रदेश माना जाता रहा और डूंगरपुर, सागवाड़ा, गलियाकोट जैसे नगर इनके प्रमुख स्थान बन गये। सागवाड़ा में नगर के बाजार में जो विशाल जैन मंदिर है एवं उनमें प्रतिष्ठापित विशाल जैन मूर्तियां इस प्रदेश में जैन धर्म के जबर्दस्त प्रभाव की ओर स्पष्ट संकेत है। भ. भुवनकीर्ति, सोमकीर्ति (संवत् 1526 से 40 तक) ज्ञानभूषण (1530-57 तक) विजयकीर्ति (1557-73 तक) भशुभचन्द्र (1573 से 1613 तक) भ. रत्नकीर्ति (सं. 1600से 1656 तक) भट्टारक वीरचन्द्र जैसे कितने ही भट्टारकों ने इस प्रदेश में विहार करके जैनधर्म एवं साहित्य के विकास में अपना प्रमुख योगदान दिया है। डूंगरपुर से लगभग साढे आठ मी. ऊपर गांव के श्रेयांसनाथ के मंदिर में एक शिलालेख अंकित है जिसके अनुसार सन् 1904 में डूंगरपुर रावल प्रतापसिंह के मंत्री नरसिंह जातीय प्रल्हाद ने दि. जैन मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 448/ जैन समाज का वृहद् इतिहास इसी तरह गलियाकोट के दिगम्बर जैन नया मंदिर में संवत् 1632 (सन् 1575) का एक लेख अंकित है जो भ, सुमतिकीर्ति के समय का है तथा राजाधिराज रावल श्री आसकरण के शासन में डूंगरपुर के निवासी हूंबड जातीय श्राविका फतली ने प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन करवाया था। सागवाडा से गलियाकोट जाने वाले मार्ग पर एक प्राचीन खंडहर जैन मंदिर है जिसे कालाडेहरा के नाम से पुकारा जाता है । इस मंदिर में एक लेख संवत् 1314 का है जो इस प्रदेश की जैन संस्कृति के विकसित चरणों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करता है । सागवाड़ा के ही जूना मंदिर में संवत् ।1:26 की मणिभद्र की पाषाण की मूर्ति है। सागवाडा के नये मंदिर में 5 फिट 8 इंच x 6.6 फिट की संवत् 1761 (सन् 1703) की प्रतिष्ठित विशाल नेमिनाथ स्वामी की मूर्ति भ. क्षेमकीर्ति द्वारा निर्माण करवाई गई तथा उन्हीं के शिष्य भ. नरेन्द्र कीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित कराई गई । वास्तव में इतनी विशाल पद्मासन मूर्ति का निर्माण स्वयं ही आश्चर्यजनक घटना है। सागवाड़ा के समान गलियाकोट में भी जैन मंदिरों की प्राचीनता तथा उनकी मंदिर निर्माण कला देखने योग्य है और वे जैनधर्म के प्राचीन उत्कर्ष की याद दिलाते हैं। मेवाड़ एवं बागड़ प्रदेश उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़ जिले मेवाड़ प्रदेश के नाम से जाने जाते हैं तथा डूंगरपुर. बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, कुशलगढ़ के क्षेत्र बागड़ प्रदेश में आते हैं तथा कुछ विद्वान इस पूरे क्षेत्र को ही बागड़ प्रदेश कहते हैं । इन जिलों में राजस्थान के अन्य भागों जैसी स्थिति नहीं है। यहां खण्डेलवाल जैन समाज एवं अग्रवाल जैन समाज अल्पसंख्यक समाज है और नागदा, नरसिंहपुरा, हूंबड, चित्तौड़ा जैसी जैन जातियां जो सभी दस्सा एवं बीसा में बंटी हुई है, बहुसंख्यक समाज है । यह पूरा समाज धर्म भीरू समाज है, साधु संतों की सेवा में तत्पर रहने वाला समाज है । अधिक शिक्षित नहीं है । खेती एवं व्यापार व्यवसाय करने मे ही संतोष करते हैं। मोटा खाना और मोटा पहिनना इनका स्वभाव बन गया है। आज भी पुरानी वेशभूषा में रहना चाहते हैं । इस प्रदेश ने प्राचीन काल में अनेक भट्टारक दिये हैं। भट्टारक सकलकीर्ति, ज्ञानभूषण, ब्रह्मजिनदास, शुभचन्द्र, कुमुदचन्द्र, रत्नकीर्ति जैसे भट्टारक इसी बागड़ क्षेत्र के थे । और वर्तमान युग में आचार्य शांतिसागर जी छाणी जैसे आचार्य एवं आर्यिका दयामती जैसी आर्यिका थी । बागड़ क्षेत्र में बड़े-बड़े आचार्यों के चतुर्मास होते रहते हैं । आचार्य धर्मसागर जी महाराज ने उदयपुर, सलुम्बर एवं ऋषभदेव में चातुर्मास किये तथा उनके शिष्य आचार्य अजितसागर जी महाराज ने तो बागड़ प्रदेश को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाया। उनके शिष्य वर्धमान सागर जी महाराज का पारसोला में पट्टाभिषेक हुआ और इसके पश्चात् उन्होंने बागड़ प्रदेश में विहार करने को प्राथमिकता दी है। बागड़ प्रदेश के प्रमुख गांवों एवं नगरों में आचार्य श्रेयान्ससागर जी महाराज भी बागड़ प्रदेश मे चातुर्मास कर चुके हैं । जहां जैन परिवार एवं जैन मन्दिर मिलते हैं उनमें दाहोद, लेमडी, जालह, रामपुर, गलियाकोट, अरथूना, Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /449 आंजनबोरी, परतापोर, तलवाड़ा, बांसवाड़ा, खाद, मोरगांदोल, नरवारी, मुगाण, धरियावाद, पारसोला, जामडी, सबरामार, बराबोडीगांव, छोटा कोडीगांव, बडोदा, आसुर, बगड़ा, पादुका, कुनापुर, सागवाड़ा, भीलोडी, मेतवाला, परोदा, सरोदा, आर्वरा, आंतरी, पीठ डूंगरपुर, वेसीवाडा, देयोर, शाणि, नकागांव बावलावाडा, छोडादर, भाणदु, जवास, भुदर, केसरियानाथ, धुलेव, वीरपाल एवं उदयपुर के नाम उल्लेखनीय हैं। बागड़ प्रदेश में महिलाएं भगवान का अभिषेक करती हैं। केशर लगाकर एवं फलों से पजा की जाती है। खण्डेलवाल जैन समाज उदयपुर, भीलवाड़ा, शाहपुरा, चित्तौड़गढ़, पारोली, बेग, चेची, निम्बाहेड़ा, कोटडी, बिजोलिया, मांडलगढ, दानिया की कोरडी में मिलता है । उदयपुर में 125 परिवार हैं, चित्तौड़ में 55 परिवार हैं। इसी तरह बागड़ प्रदेश में नरसिंहपुरा, नागदा, हूंबड, चित्तौड़ा के प्रमुख परिवार निम्न नगरों में गांवों में बसे हुये हैं । जोकि प्रमुखत: उदयपुर जिले के हैं। :क्र.सं. नगर/गांव नरसिंहपुरा नागदा हूँबड़ चित्तौड़ अन्य का नाम दस्सा बीसा दस्सा बीसा दस्सा बीसा दस्सा बीसा - 110 - - 70 . - - 1- उदयपुर 100 400 - 100 2. लकड़वास 30 - - 2 3- कानपुर - - - 15 डबोक खेडी मोडी बातेडा 30 छोटा बाठेडा 10 बुरावड़ 100 10. वदी - - 25 - 11- वसु - - 10 - 12- जगत - - 60 - 13. दांतीसर - - 15 - 1- देखाये जैन गजट- उपदेशक कस्तरबन्द जी द्वारा निर्दिष्ट, वर्ष -11 - - - - - - - - - Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 450/ जैन समाज का बृहद् इतिहास हंबड़ अन्य क्र.सं. नगर/गांव नरसिंहपुरा नागदा चित्तौड़ का नाम दस्सा बीसा दस्सा बीसा दस्सा बीसा दस्सा बौसा 14 सांसवी 25 - - - - - - - 15. उत्थरदा 25 16. साकरोदा 0 17. वेदला 25 भुवाण - 19. गुढली 25 खटका 21. गोंगला - ओटवादिया - 23. गुदेल - 24. थाणा 40 25. बनकोडा 40 26- विनीता 30 देलवाड़ा 8 28. देवपुस - 29. अदवास ... 30- माणूद 15 31- परसाद 25 जावर माइन 25 33 कल्याणपुर 100 34 आसपुर 30 35- सलुम्बर 10 ॐ झाडोल - - - - - 300 परिवार 50 परिवार Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. नगर/गांव का नाम 37 38 39 40 45 बसी कंझड 46 47 48 सगतडा इन्दाली 5 41- इटालीखेड़ा 5 42- सेमारी 43 राठोड़ा 44 जासूडा कृष्ण 100 करनोड 10 लूणदा 10 डूंगरपुर दस्सा नरसिंहपुरा 50 15 बीसा I दस्सा बीसा 30 15 नागदा 10 L हूँ बड़ दस्सा वीसा राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /451 चित्तौड़ दस्सा बीसा अन्य 50 नागदा चित्तौड़ा 20 500 परिवार प्रतापगढ़ में दस्सा एवं बीसा हूंबड़ समाज सबसे अधिक है। कोट्याधीश पनमचन्द घासीलाल के सुपुत्र मोतीलाल जी इसी प्रतापगढ़ के निवासी थे जिन्होंने अपार वैभव को त्याग • आर्य वीरसागर जी महाराज से मुरिदीक्षा ग्रहण की थी। इसी तरह डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिलों में इन सम. की अच्छी बस्तियां हैं। प्रतापगढ़ में आचार्य धर्मसागर जी महाराज का चातुर्मास था तब लेखक को भी वहां जाने का अवसर मिला। वहां के समाज की साधु भक्ति देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। प्रतापगढ में सेठ पूनमचन्द घासीलाल द्वारा सन् 1933 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई गई । उदयपुर प्रथम नगर है जहां के विश्वविद्यालय में प्राकृत एवं जैन विद्या का पूरा विभाग है । डा. प्रेमसुमन जैन उसके अध्यक्ष एवं डा. उदयचन्द जैन प्राध्यापक है। समाज के प्रमुख व्यक्तियों में श्री मोतीलाल जी मौंडा प्रमुख समाजसेवी हो गये हैं उनके पुत्र श्री महावीर कुमार जी मींडा उसी परम्परा को चला रहे हैं । 1 डूंगरपुर में मीराचन्द जी गांधी भी बहुत अच्छे समाज सेवी हो गये हैं । Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 452/ जैन समाज का वृहद् इतिहास भीलवाड़ा जिला : भीलवाड़ा प्रान्त का जैन समाज :- भीलवाड़ा जिले में दिगम्बर जैन समाज का उल्लेखनीय स्थान हैं। जिन तहसीलों में दिगम्बर जैन समाज प्रमुखता से मिलता है उनमें भीलवाड़ा, मांडलगढ़, बिजोलिया, जहाजपुर एवं शाहपुरा प्रमुख हैं। भीलवाड़ा नगर में 200-225 दि. जैन परिवार रहते हैं जिनमें खण्डेलवाल जैन समाज में अजमेरा, चौधरी (कासलीवाल) सौगानी, काला, पाटोदी, वैद आदि प्रमुख गोत्र के परिवार हैं। शेष परिवार बघेरवाल, अग्रवाल एवं नरसिंहपुरा समाज के है। यहां 7 दि. जैन मंदिर हैं जिनमें तीन मंदिर शहर में, एक मंदिर भोपालगंज में, एक मंदिर सुभाषनगर में बना हुआ है। यहां का दिगम्बर जैन खण्डेलवाल बड़ा मंदिर सबसे पुराना है जिसे 235 वर्ष पूर्व श्री लालचन्द जी अजमेरा ने निर्माण करवाकर समाज को समर्पित किया था। यह मंदिर अपनी विशिष्ट कला, भव्यता एवं कांच पर सोने के काम के लिये प्रसिद्ध है। 20 स्वर्ण कलशों से युक्त मंदिर का उत्तुंग शिखर अपनी विशेषता के लिये सारे मेवाड़ में ख्याति प्राप्त हैं। मंदिर में 3 वेदियां हैं। मूल वेदी में चन्द्रप्रभु स्वामी की संवत् 1231 की प्राचीन प्रतिमा है जो अपने अतिशय के लिये प्रसिद्ध है। इसी तरह मंदिर में पद्मासन प्रतिमा चन्द्रप्रभुं स्वामी की संवत् 1498 में प्रतिष्ठित है। तीसरा मंदिर अजारदारा की गोठ का मंदिर कहलाता है । तीनों मंदिरों में संवत् 1997 वैशाख सुदी 11 को होने वाली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का लेख अंकित हैं। तीनों ही मंदिर तेरहपंथ शुद्धानाय के हैं I भूपालगंज में तेरहपंथी मंदिर है जिसका निर्माण (शिलान्यास) संवत् 2013 में तथा प्रतिष्ठा सं. 2019 वैशाख सुदी 10 में सम्पन्न हुई थी । वेदी मंदिर के ऊपरी भाग में एक बड़े हाल में हैं जिसके दोनों ओर बड़े सुन्दर भाव अंकित हैं। दोनों ओर के भित्तिचित्र दर्शनीय हैं। वैसे यहां सभी मंदिरों में भित्तिचित्रों की बहुलता है । कला की दृष्टि से मंदिर के भित्ति चित्र उल्लेखनीय हैं। यहां के बिच मंदिर में प्राचीन 299 3000 हस्तलिखित ग्रंथों का अच्छा भंडार बतलाते हैं। नगर में विमलसागर जैन विद्यालय संचालित है जिसके संस्थापक एवं व्यवस्थापक श्री भंवरलाल जी बलावत हैं। यहां एक नेमिनाथ दि. जैन स्वाध्याय भवन भी हैं। श्री जिनेन्द्र कला भारती यहां की भारत प्रसिद्ध संस्था है जिसके मंत्री श्री निहालचन्द जी अजमेरा हैं। जैन संगीत के लिये आपका पूरा परिवार ही समर्पित है। कठपुतलियो एवं महावीर जी फड़ एवं बाहुबलि की फड़ के माध्यम से आप राजस्थानी भाषा में भगवान महावीर एवं बाहुबली का अच्छा वर्णन करते हैं। यहां महावीर जैन हायर सैकण्डरी स्कूल भी है। नगर के वयोवृद्ध समाजसेवियों में श्री हीरालाल जी अजमेरा, भागचन्द जी अजमेरा एवं युवक समाज में निहालचंद जी अजमेरा, बसन्तीलाल जी चौधरी, रतनलाल जी अजमेरा, कुन्तीलाल जी अजमेरा, ज्ञानमल जी पाटोदी, सागरमल जी टोंग्या के नाम उल्लेखनीय । यहां दो जैन औषधालय एवं एक रात्रि पाठशाला ' समाज द्वारा संचालित हैं। बिजोलिया : बलिया लवाड़ा जिले का मुख्य भाग हैं। यहां भगवान पार्श्वनाथ का अतिशय क्षेत्र है जहां के भीम वन में रेवा नदी के तट पर ध्यानस्थ भगवान पार्श्वनाथ पर कर्मठ ने उपसर्ग किया था जिसका संवत् 1226 का Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज (453 एक बहुत बड़ा शिलालेख मिलता है तथा दूसरे शिलालेख में उन्नत शिखर पुराण अंकित है जिसमें भगवान पार्श्वनाथ का जीवन लिपिबद्ध है। अभी कुछ वर्षों पूर्व कुंड के उत्तर भाग पर एक 51 फुट ऊंचा संगमरमर का शिखर निर्मित हुआ है । क्षेत्र पर विकास का कार्य चल रहा है। बिजोलिया और उसके आसपास के गांवों में जैन समाज की स्थिति निम्न प्रकार है : बिजोलिया छोटी बिजोलिया आरोली सलाबटिया चांदजीवी खेड़ बघेरवाल 40 12 8 खण्डेलवाल 40 2 यशस्वी समाज सेवी 1. श्री कालूराज जी अजमेरा 2. श्री कुन्तीलाल जी अजमेरा 4 मंदिर 3 1 1 अतिशय क्षेत्र 1 चित्तौड़ भीलवाड़ा 11 1 बिजोलिया के पास मन्दाकिनी का प्राचीन खंडहर जैन मंदिर है । जिसके मुख्य गेट पर जैन तीर्थकरों की पद्मासन मूर्तियां विराजमान हैं। 1 भीलवाड़ा जिले में शाहपुरा की पुरानी स्टेट है जो जैन पुरातत्व की दृष्टि से समृद्ध नगर हैं। यहां के मंदिर में 11 वीं शताब्दी से ही प्रतिमायें उपलब्ध होती हैं। यहां खण्डेलवाल श्रावकों के 40 से भी अधिक परिवार है उनमें श्री माणकचन्द जी गोधा का नाम विशेष उल्लेखनीय है । बागड़ प्रदेश एवं मेवाड़ प्रदेश (भीलवाड़ा चित्तौड़, उदयपुर, डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा) Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 454/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 3. श्री के. एल. गोधा 4. श्री केशरीमल सौगानी 5. श्री घनश्याम लुहाडिया 6. श्री घीसालाल सेठी 7. श्री चांदमल गर्दिया 8. श्री ज्ञानमल पाटोदी 1) श्री ताराचन्द पाटोदी 1. श्री दुलीचन्द पाटनी 11. श्री धर्मचन्द कासलीवाल 12. श्री नाथूलाल सेठी 13. श्री निहालचन्द्र अजमेरा [4. श्री बसन्तीलाल चौधरी 15. श्री बंशीलाल गोधा 16. श्री मदनलाल गंदिया एडवोकेट 17. श्री महावीर प्रसाद गदिया 18. श्री मांगीलाल लुहाडिया 19. श्री माणकचन्द गोधा 20. श्री मूलचन्द सोनी 21. श्री रतनलाल काला 22. श्री रोशनलाल गदिया 23. श्री सुगनचन्द जैन 24. श्री सोहनलाल गोधा 25. श्री हीरालाल अजमेरा उदयपुर पारोली चित्तौड़ कोटड़ी निम्बाहेडा भीलवाड़ा, निम्बाहेड़ा निम्बाहेड़ा पारोली चित्तौडगढ़ भीलवाड़ा भीलवाड़ा कोटड़ी चित्तौडगढ़ चितौडगढ़ बिजोलिया शाहपुरा बिजोलिया बिजोलिया चित्तौडगढ़ मांडलगढ़ दानिया की कोटडी भीलवाड़ा Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 455 श्री कालूलाल अजमेरा श्री अजमेरा जी चित्तौडगढ़ जैन समाज के प्रतिष्ठित कार्यकर्ता हैं। आप पार्श्वनाथ दि. जैन ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष है। आपका जन्म पौष शुक्ला अष्टमी संवत् 1986 को हुआ। आपके पिता श्री ओंकारलाल जी एवं माता जी श्रीमती इन्दरबाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपने सन् 1947 में मैट्रिक किया और अपने स्वतंत्र व्यवसाय में लग गये । संवत् 2008 (सन् 1951 ) में आपका विवाह श्रीमती सोहनदेवी से हो गया जिनसे आपको तीन पुत्र रमेश, राकेश एवं मनोज तथा एक पुत्री अनिता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र रमेश ने बी.ए. कर लिया है। विवाह हो चुका है एवं आपके साथ M ही. व्यवसायरत है। श्री अजमेरा जी धार्मिक स्वभाव के हैं। आपने आदिनाथ दि. जैन चैत्यालय में आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान की है। दो बार सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। पता : रमेश क्लाथ स्टोर्स, चित्तौडगढ़ (राज) श्री कुन्तीलाल अजमेरा भीलवाड़ा के युवा समाजसेवी श्री कुन्तीलाल अजमेरा करीब 30 वर्ष पूर्व हम्मीरगढ़ से आकर यहां बस गये । आपका जन्म 12 अप्रैल 1934 को हुआ। सन् 1951 में हाईस्कूल परीक्षा पास करने के साथ आपका श्रीमती हुकमबाई से विवाह हो गया और फिर अनाज एवं मेडिकल का व्यापार करने लगे । आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। महावीर कुमार एम काम., एल. एल. बी. एवं शिखरचन्द बी.ए. हैं। दोनों ही आपको सहयोग दे रहे है। तु रोज का ब्यावर विवाह हो चुका है। | अजमेरा जी का गांव में भी पूरा प्रभाव व्याप्त है। आप ग्राम पंचायत के उपसरपंच रह चुके हैं। सन् 1947 में कांग्रेस (आई) के सक्रिय कार्यकर्ता थे । इन्दिरा जी के आव्हान पर जेल यात्रा की थी। दि. जैन अतिशष क्षेत्र बिजोलिया एवं चंबलेश्वर कार्यकारिणी के सदस्य हैं। दि. जैन स्वाध्याय भवन भीलवाड़ा के 1019 तक संयुक्त मंत्री भी रहे। आपके बड़े भाई श्री रतनलाल जी का जन्म कार्तिक सुदी 6 संवत् 1987 को हुआ । संवत् 2003 में श्रीमती चांदबाई के साथ विवाह हुआ। आप 3 पुत्र सर्व श्री पदमचन्द, अशोक कुमार, अनिल कुमार से अलंकृत हैं। श्री पदमचन्द जी डाक्टर हैं। एम.एस. हैं जयपुर मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता हैं। डाक्टर साहब की पत्नी का नाम हीरामणि है। रतनलाल जी के दो पुत्रियां हैं । आप सबका व्यवसाय एक ही है। भीलवाड़ा व्यापार मण्डल के प्रमुख सदस्य एवं भोपालगंज दिगम्बर जैन मंदिर के ट्रस्टी हैं ! श्री शान्तिलाल जी सबसे छोटे भाई हैं। आपने सन् 1955 में बी.कॉम. किया। श्रीमती चांदबाई आपकी धर्मपत्नी हैं। जिन से आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । आपका एक पुत्र राजेन्द्र एम.कॉम. है तथा छोटा पुत्र सुनील सी. ए. है। पुत्री साधना का जयपुर में विवाह हुआ है। पता : 700, कॉटन फैक्ट्री एरिया, भीलवाड़ा। Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 456/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री के.एल.गोधा आपका पूरा नाम ख्यालिलाल गोधा है। 15 मार्च सन् 1931 को जन्में आपने बी.ए. तक अध्ययन किया 19 वर्ष तक अध्यापन का कार्य करने के पश्चात् जीवन बीमा निगम में कार्य किया । आपको माता का देहान्त तो 26 दिसम्बर 47 में ही हो गया था तथा पित्ताजी श्री प्रभुलाल जी गोधा का स्वर्गवास 11 जुलाई सन् 1978 को हुआ। आपका विवाह अजमेर के सेठी परिवार में श्रीमती कमलप्रभा के साथ सन 1947 में संपन्न हआ। जिनसे आपको 4 पत्र -अनिलमैकेनिकल इंजीनियर,विजय कुमार एम.ए., दीपक बी.कॉम.एवं भूपेश चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट एवं दो पुत्रियों रजनी बी.एस.सी.एवं प्रभा एम.एस.सी.के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। ___ श्री गोधा जी विभिन्न संस्थाओं से जुड़े ये हैं। मन : १८ से आप विश्व हिन्दू परिपद सेन्ट्रल बोर्ड आफ ट्रस्टीज के दृस्टी तथा प्रान्तमंत्री हैं। आपको 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में बाल-छात्र की भूमिका रही तथा 1947 के आंदोलन में जेल जाने का सौभाग्य प्राप्त किया। आपके पिताश्री उदयपुर संभाग में दिगम्बर जैन मतावलम्बी समाज के प्रतिष्ठित विद्वान दृढप्रतिज्ञ, सिद्धान्तनिष्ठ,निर्भीक वक्ता,समन्वयवादी समालोचक और जैनेतर समाज में भी प्रतिष्ठित सत्पुरुष थे । इन्हीं दिव्य गुणों के दर्शन आपके दादाजी श्री भैरुलाल जी के व्यक्तित्व में होते थे। वे तत्कालीन राज्याधिकारी थे। पिताश्री ने कई वार आचार्यों की प्रेरणा से धार्मिक अनुष्ठान कराये। ___ आपने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्रादि की भूमिका 4 वर्ष पूर्व ही निभाई थी ! खण्डेलवाल पार्श्वनाथ मंदिर मे भगवान श्री शांतिनाथ जी को खड़ी प्रतिमा, प्रतिष्ठित कराकर विराजमान की । घर में लगभग 50 वर्षों में चैत्यालय रहता है। जुलाई 1984 के अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू सम्मेलन (न्यूयार्क में आयोजित) में प्रतिनिधि के नाते अमेरिका गये । पत्र-पत्रिकाओं में राष्ट्रीय एकता व अखंडता के भावों को पुष्ट करने के प्रयोजन से लेख देते रहते हैं । राज. गीता आश्रम के सदस्य तथा दि. जैन महासभा के आजीवन सदस्य हैं । सामाजिक और राष्ट्रीय एकता की स्थापना में जैन सिद्धान्त के अनुयायी हैं। पता - 222. अशोक नगर,शासी मार्ग,उदयपुर। श्री केशरीमल सौगानी पारोली (भीलवाड़ा) के श्री केशरीमल सौगानी वयोवृद्ध समाजसेवी एवं आतिथ्य प्रेमी मलती जोवर मोती आनिभासी -SN "RS.in से हैं। आपकी जन्म तिथि वैशाख सुदी 3 संवत् 1968 है । संवत 1981 में आपका विवाह श्रीमती 'Yad av पान बाई के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । आपके VERY पिताजी श्री राजमल जी का 82 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ तथा माताजी श्रीमती अलोल बाई का 11 वर्ष पूर्व निधन हुआ है। आपने पारोली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इन्द्र के पद को बिधूषित किया। आपने महावीर स्वामी को मूर्ति निर्माण करवा कर उन्हें विराजमान करने का यशस्त्री Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 457 कार्य किया। आप मुनिभक्त हैं। पारोली में विहार करने वाले सभी साधुओं की सेवा करते हैं। I आपका राजनीति में भी अच्छा अधिकार हैं। गांव के संवत् 1996 से 2000 तक तथा 2004 से 2006 तक सरपच पद पर रहे तथा 13 वर्ष तक न्याय पंचायत के चेयरमैन रहे । आपके ज्येष्ठ पुत्र भागचन्द का जन्म 21 सितम्बर सन् 1950 को हुआ तथा सन् 1970 में विमलादेवी के साथ विवाह हुआ। आपका पारोली में ही व्यवसाय है । आपके तीन भाई श्री केशरीमल जी, घीयालाल जी एवं नंदलाल जी हैं जो अपना व्यवसाय कर रहे हैं। पता : मु.पो. पारोली पिन 305413 - श्री घनश्याम लुहाड़िया चित्तौड़ जिले में सुप्रसिद्ध श्री घनश्याम लुहाड़िया का जन्म 13 अप्रैल सन् 1940) को हुआ। आपके पिता श्री सुगनचंद जी भी जिले के प्रमुख समाजसेवी थे। राजस्थान विश्ववि द्यालय से आपने सन् 1962 में एम.ए. किया और फिर आटोमोबाइल्स एवं ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में लग गये। सन् 1956 में आपका विवाह श्रीमती नन्दूबाई के साथ हो गया। जिनसे आपको एक पुत्र नवीन एवं सात पुत्रियां चन्दा बाई, इंदिरा बाई, गजुल बाई, किरन बाई, सुलोचना बाई, पदमाबाई एवं नमिता बाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. लुहाड़िया जी का जीवन सार्वजनिक सेवा भावी हैं। आप सन् 1980-85 तक राजस्थान विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। आप जिला कांग्रेस के कोषाध्यश्व रहे हैं। दिगम्बर जैन मंदिर शिक्षा समित के उपाध्यक्ष हैं। इसके अतिरिक्त महावीर जैन मंडल चित्तौड़ के अध्यक्ष, जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति, उदयपुर डिवीजन के उपाध्यक्ष, दि.जैन महासमिति उदयपुर संभाग के अध्यक्ष, पार्श्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी हैं। इंदिरा गांधी के आह्वान पर आप जेल यात्रा पर जा चुके हैं। श्री घनश्याम जी यशस्वी समाजसेवी हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं। आपके पिताजी श्री सुगनचंद जी भी 11 वर्ष तक एम.एल.ए. रहे तथा पंचायत समिति के प्रधान रहे। जिला कांग्रेस के अध्यक्ष एवं गाड़िया लुहार संघ के अध्यक्ष थे । भगवान महावीर 25000 वां परिनिर्वाण महोत्सव में आपने बहुत कार्य किया । पता : 500, शास्त्री नगर, चित्तौड़ । श्री श्रीसालाल सेठी सेठी गोत्रीय श्री घोसालाल जी दानिया की कोटडी समाज के वयोवृद्ध समाजसेवी हैं। श्री लक्ष्मीचंद जी आपके पिताजी थे तथा मूलचंद जी आपके दादाजी थे। श्रीमती गौर बाई आपकी माता का नाम था। तीनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। संवत् 19900 में आपका विवाह श्रीमती कस्तूर बाई से हुआ था। वर्तमान में आप दो पुत्र एवं दो पुत्रियों से अलंकृत हैं । Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 458/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सेठी जी समाज के क्रियाशील सदस्य हैं । पारोली,खजूरी,फुलेरा,धुबाला पंचकल्याणकों में आपने स्टोरकीपर का कार्य बड़ो कुशलता के साथ किया । आपने सिद्ध भगवान की धातु की प्रतिमा को केकड़ी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठित करवाकर मंदिर में विराजमान किया। आपका ज्येष्ठ पुत्र अभयकुमार बी काम. है । पत्नी का नाम निर्मला देवी है । दो पुत्र एवं दो पुत्रियां के पिता है । किराणा के व्यापारी हैं । दूसरा पुत्र श्री राजकुमार है । सी.ए. है । आपकी धर्मपत्नी अरुणा भी बी.ए. है । ___ पूरा परिवार ही मुनिभक्त है। आचार्य शांतिसागर जी से लेकर आज तक जितने भी साधु संत आये हैं उन सभी की आपने सेवा की है । सेठी जी सेवा की प्रतिमूर्ति हैं। पता : मूलचंद लक्ष्मीचंद सेठी पोस्ट दानिया कोटडी,(भीलवाड़ा) दाना श्री चांदमल गदिया ___ गदिया गोत्रीय श्री चांदमल जी गदिया निम्बाहेड़ा के यशस्वी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आपका जन्म 26 अप्रेल.1933 को हुआ। आपके पिताजी का स्वर्गवास संवत 2001 में 60 वर्ष की आयु में हो गया । माताजी का देहान्त संवत् 21124 में हुआ था। संवत् 2016 में आपका विवाह श्रीमती चंपकदेवो के साथ हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं चार पुत्रियों की प्राप्ति हुई ज्येष्ठ पुत्र श्री महेन्द्रकुमार ने बी.ए. किया है । दूसरा पुत्र श्री बाबूलाल एम.ए. है ।दोनों का विवाह हो चुका है । सुनीलकुमार पड़ रहा है । चारों पुत्रियों में ताराबाई एवं ललिताबाई का विवाह हो चुका है । पुष्मा एवं शान्ता अभी अविवाहित हैं। श्री चांदमल जी श्री आदिनाथ दि. जैन मंदिर निम्बाहेडा के उपाध्यक्ष हैं। दोनों के ही शुद्ध खान-पान का नियम है, निभक्त हैं । आहार देने में पूरी रुचि रखते हैं। पिताजी की स्मृति में आपने 5() चांदी के छत्र सभी मंदिरों को भेंट किये थे । पता : रूपचंद भुवानीराम एन्ड क..गेतीचाजार निम्बाहेड़ा। ज्ञानमल पाटोदी भीलवाड़ा के श्री ज्ञानमल का जन्न संवत् 1987 में हुआ। आपके पिताजी श्री छगनलाल का स्वर्गवास तो करीब 30 वर्ष पूर्व ही हो गया जबकि माताजी का निधन हुये 5-6, वर्ष हो गये । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका विवाह श्रीमती जयवन्ती देवी के साथ हो गया। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य मिला । श्रीमती जयवन्ती देवी शिखरचंद जी अजमेरा की सुपुत्री हैं । आपकी माता अंजनादेवी जी का संगीत शास्त्र में शीर्षस्थ स्थान है। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /459 पाटोदी जी धार्मिक प्रकृति के भद्र परिणामी हैं। प्रतिदिन पूजापाठ भी संगीत के साथ तथा सबको साथ लेकर करते हैं। संवत् 20023 में आपने जैन यात्रा संघ निकाला था। स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था आपने एवं अन्य चार व्यक्तियों ने की थी। आप सूर्य सागर दि. जैन औषधालय के 25 वर्ष तक व्यवस्थापक रहे। जिनेन्द्र कला भारती के कोषाध्यक्ष हैं। दि. जैन समाज ट्रस्ट भीलवाड़ा के अध्यक्ष रह चुके हैं। चितौड़ किले पर स्थित मंदिर कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं। आपके तीन पुत्रों में सुकुमाल एवं नरेश पावर लूम फैक्ट्री का संचालन करते हैं। तीसरे पुत्र मुकेश पढ़ रहे हैं। पाटोदी जी उत्साही समाजसेवी हैं। पत्ता : 4/71, माणिक्य नगर, भीलवाड़ा श्री ताराचंद पाटोदी निम्बाहेडा के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री ताराचंद जी पाटोदी का संवत् 1971 में जन्म हुआ | आपके पिताजी श्री केशरीमल जी का स्वर्गवास मात्र 34 वर्ष की आयु में हो गया तथा माताजी का निधन सन् 1976 में 17 वर्ष की आयु में हुआ । संवत् 1987 में आपका विवाह श्रीमती रतनबाई से हो गया। जिनसे आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके प्रथम एवं द्वितीय पुत्र श्री श्रीमती रतन बाई पाटोदी प्रकाशचंद एवं रमेशचंद बम्बई में फैक्ट्री संचालन करते हैं। तीसरे पुत्र सुरेशचंद फोटोग्राफी करते हैं तथा चतुर्थ एवं सबसे छोटे पुत्र कपड़े का व्यवसाय कर रहे हैं। आपकी तीनों पुत्रियां सज्जनबाई, सुशीलाबाई एवं शशिबाई का विवाह हो चुका है। पाटोदी जी अत्यधिक धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति हैं। आपने आदिनाथ स्वामी की दो प्रतिष्ठित प्रतिमायें केली से लाकर भीलवाड़ा में विराजमान की हैं। आप आदिनाथ दि. जैन मंदिर निम्बाहेड़ा के अध्यक्ष हैं। दोनों ही पति पत्नी मुनि भक्त हैं। प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं। भजन, गीत, पूजन आदि लिखते रहते हैं। अब तक करीब 200 पदों की हिन्दी पद्य में रचना कर ली है। लेकिन अभी अप्रकाशित है। श्री दुलीचंद पाटनी युवा समाजसेवी श्री दुलीचंद भाटनी मूलतः डेह के हैं तथा वर्तमान में निम्बाहेडा में व्यवसायरत हैं । 8 अगस्त, 1937 को जन्में श्री पाटनी जो ने मैट्रिक किया। माणकचंद जैन परीक्षालय से विशारद किया और फिर व्यवसाय में चले गये। आपके पिताजी श्री फतेहचंद जी पाटनी का स्वर्गवास 18 जून, 1986 को हुआ। लेकिन माताजी की आत्मा 68 वर्ष की आयु में चल बसी । आपका विवाह ज्येष्ठ सुदी 9 संवत् 2001 में श्रीपती गिनिया देवी के साथ संपन्न 1 हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । ज्येष्ठ पुत्र जीवंधर कुमार बी.कॉम. Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 460/ जैन समाज का वृहद इतिहास हैं। नरायणा में स्वयं का व्यवसाय है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। शेष दोनों पुत्र महेन्द्र एवं नरेन्द्र पढ़ रहे हैं । पुत्री । शशिकला का विवाह नागौर में संतोष चांदवाड के साथ हो चुका है . पाटनी जी धार्मिक एवं सामाजिक दोनों क्षेत्रों में प्रसिद्धि प्राप्त युवक हैं । प्रमोद आइल मिल्स निम्बाहेडा में आपने एक पार्श्वनाथ चैत्यालय स्थापित किया तथा नैनवा/बंदी में आपके माता-पिता ने एक प्रतिमा विराजमान की थी। आपके पिताजी फतेहचंद जी दो प्रतिमाधारी थे तथा माताजी के पांच प्रतिमायें थी । आपके बड़े भाई रामगोपाल जी पाटनी तिनसुकिया में रहते हैं तथा छोटे भाई पूनमचंद पाटनी रामगंजमंडी में रहते हैं। आप गीत लिखते हैं। संगीत में अभिरुचि है। भा.दि.जैन महासभा की राजस्थान शाखा चित्तौड़गढ़ शाखा के उपाध्यक्ष है.श्री दि.जैन आदिनाथ मंदिर निम्बाहेडा के महामंत्री, भगवान महावीर परिनिर्वाण महोत्सव 1975 में सिल्चर (आसाम) में स्वर्णपदक से सम्मानित, जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति चित्तौड कोसाध्यक्ष राशी काल एक, मागे,गित संगिननसार युवक हैं। पता : 1- सरावगी देडर्स, मंडी प्रांगण, निम्बाहेड़ा 2- प्रमोद आइल मिल,निम्बाहेड़ा। श्री धर्मचन्द कासलीवाल __ पारोली (भीलवाड़ा) के निवासी श्री धर्मचन्द कासलीवाल का जन्म चैत्र सुदी 8 संवत् 1977 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप कृषि एवं खनिज व्यवसाय में लग गये । संवत् 1995 में आपका विवाह श्रीमती कंचन के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं छः पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । श्री कासलीवाल जी सादा जीवन व्यतीत करते हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पारोली की व्यवस्था में भारी योगदान दिया था। आपकी धर्मपत्नी मुनियों को आहार देती रहती हैं । आपके पिताजी श्री मूलचंद कासलीवाल एवं माताजी श्रीमती राजबाई का स्वर्गवास हो चुका है। आपके ज्येष्ठ पुत्र कैलाशचन्द 38 वर्ष के हैं । पत्नी का नाम प्रेमदेवी है । आपकी राजनीति में भी अच्छी पकड़ है। आप सन 1958 से सन 1981 तक गांव के सरपंच रहे हैं। आप कांग्रेस (आई) के सदस्य हैं। पता : धर्मचंद कासलीवाल,पारोली (भीलवाड़ा) (राज) श्री नाथूलाल सेठी चित्तौड़ के सामाजिक जीवन में रुचि रखने वाले श्री नाथूलाल जी सेठी का जन्म 24 नवम्बर सन् 1947 को हुआ। आपके पिता श्री इन्द्रलाल जी सेठी एवं माताजी सोसरदेवी दोनों का ही अभी आशीर्वाद प्राप्त है । सन् 1965 में आपने बी.ए. किया सथा बिजली बोर्ड में वरिष्ठ लेखक का कार्य करने लगे। आपके छोटे भाई श्री पदमकुमार सेठी मी सामाजिक कार्यकर्ता हैं । जैन नवयुवक मंडल के मंत्री हैं । आपकी धर्मपल्ली का नाम अलका है। दोनों भाई ही समाजसेवा में रुचि रखते हैं। पता -65 कुम्मा नगर,चित्तौडगढ (राज) Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज / 461 श्री निहालचन्द अजमेरा भीलवाड़ा में श्री जिनेन्द्र कला भारती के संस्थापक संरक्षक श्री भागवन्द जी अजमेरा के सुपुत्र श्री निहालचन्द अजमेरा अखिल भारतीय "तर के संगीत के कलाकार हैं। आपका जन्म कार्तिक सुटी 2 संवत् 1991 को हुआ। सन् 1954 में एम.ए. म्यूजिक में किया। सन् 1950 में आपका विवाह श्रीमती कमलप्रभा के साथ हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभगाय मिल चुका हैं। आपके तीनों पुत्र ललित बी.ए., एल. एल. बी. हैं, पवन कुमार बी. एस. सी. एवं लोकेश बी.कॉम. है तथा सभी मेडीकल व्यवसाय करते हैं। सुश्री नम्रता म्यूजिक में एम. ए. है तथा आशा ने संगीत में बी.ए. किया है। आपके के खाओं से जुड़े हुए थे। आप स्वयं भी जिनेन्द्र कला भारती के संस्थापक मंत्री हैं। संगीत कला केन्द्र एवं संगीत महाविद्यालय के भी संस्थापक सेक्रेट्री हैं। राज्य की ओर से स्वतन्त्रता दिवस एवं गणतन्त्र दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं। अब तक आप देश के विभिन्न भागों में जाकर 1000 से भी अधिक कार्यक्रम दे चुके हैं। स्वभाव से विनम्र एवं मिलनसार हैं । - आपके बड़े भाई दिलसुखराज जी श्री. ए. एल. एल. बी. हैं। पत्नी का नाम हर्ष कुमारी है। तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों से अलंकृत हैं : आपके छोटे भाई श्री प्रद्युम्नकुमार बी.एस.सी. हैं। चार पुत्रियों एवं एक पुत्र के पिता । आपकी एक पुत्री ज्योति अजमेरा ने कितनी ही प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । पता :- निहाल मेडिकल स्टोर्स, गांधी बाजार, भीलवाड़ा । श्री बसन्तीलाल चौधरी श्री बसन्तीलाल जी चौधरी भीलवाड़ा में प्रतिष्ठित समाजसेवी के रूप में जाने जाते हैं। आपका जन्म शरद पूर्णिमा संवत् 1427) को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् ही अप वरू व्यवसाय में लग गये। आपके पिताजी श्री फतेहलाल जी का दि. 1-6-84 को एवं माताजी श्रीमती चंद्रबाई का 8-2-86 को स्वर्गवास हुआ। संवत् 1998 फाल्गुण शुक्ला 2 को आपका शुभ विवाह श्रीमती बादाम बाई से हो गया। आप एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। सभी का विवाह हो चुका है। श्रीपदी बदाम बाई चौधरी जी धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति हैं। भीलवाड़ा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप दोनों भगवान के माता-पिता बन चुके हैं। आपके पिताजी श्री फतेहलाल जी ने उदयपुर में खंडेलवाल दि. जैन मंदिर में मूर्ति विराजमान की थी। आप वर्तमान में भीलवाड़ा ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। इसी तरह भीलवाड़ा प्रान्तीय महासभा के आप अध्यक्ष हैं। दि. जैन अ. क्षेत्र बिजोलिया, चंबलेश्वर पार्श्वनाथ की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। दोनों पति-पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। एक बार आ. धर्मसागर जी को भीलवाड़ा से चित्तौडगढ़ ले गये । पक्के मुनि भक्त हैं। राष्ट्रीय स्तर के कार्यकर्ता माने जाते हैं । पता : आजाद चौक, भीलवाड़ा। Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 462/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री बंशीलाल गोधा आठ मई सन् 1949 को जन्में श्री बंशीलाल गोधा युवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं । आपके पिताजी श्री मिश्रीलाल जी का सन् 1966 में एवं माताजी का स्वर्गवास सन् 1968 में हो गया। हायर सैकण्डरी परीक्षा पास करके आप राज्य सेवा में चले गये। सन् 1956 में आपका विवाह श्रीमती सज्जन देवी के साथ हो गया जिनसे आपको दो पुत्रियों एवं एक पुत्र की प्राप्ति हुई है। आपके पुत्र श्री धर्मचन्द 26 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं । गांव में जब कभी कोई धार्मिक आयोजन होता है तो उसमें पूर्ण रुचि लेते हैं। मुनि भक्त हैं। उनकी आहार आदि से सेवा करते रहते हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी है। अब तक सभी तीर्थो की यात्रा कर चुके हैं। पता - धर्मचन्द पार्श्वकुमार, दानिया की कोटडी (भीलवाड़ा) राज. श्री मदनलाल गदिया एडवोकेट चित्तौडगढ़ के श्री मदनलाल गादिया का जन्म ] जनवरी सन् 1941 को हुआ। आपके पिता श्री शेरूलाल जी एवं माताजी श्रीमती सोहनबाई का आशीर्वाद प्राप्त है। आपने 1962 में पहिले इन्दौर से एम.ए. किया और बाद में 1964 में वहीं से एल.एल.बी. क्रिया । इसके पूर्व ही सन् 1958 में आपका विवाह श्रीमती रतनदेवी के साथ हो गया। जिनसे आपको एक पुत्र राजेश एवं दो पुत्रियों मीना एवं सरोज की प्राप्ति हुई । आप प्रान्तीय कांग्रेस के संयुक्त मंत्री हैं। इसके पूर्व इंदिरा गांधी के आह्वान पर आप जेल यात्रा कर चुके हैं। पार्श्वनाथ दिजैन मंदिर चित्तौड के सैक्रेटरी हैं। जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति एवं उदयपुर दि. जैन महासमिति के सदस्य हैं। गदिया जी की अच्छे कार्यकर्ताओं में गिनती की जाती है। पता : 76, शास्त्री नगर चित्तौडगढ़ (राज.) श्री महावीरप्रसाद गदिया चित्तौड़ नगर के सामाजिक कार्यकर्ता श्री महावीरप्रसाद गदिया का जन्म सन् 1948 में हुआ। आपके पिताजी का नाम रतनलाल जी गदिया एवं माता का नाम श्रीमती प्यार बाई है। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपना पैंत्रिक व्यवसाय करने लगे। सन् 1964 में आपका विवाह श्रीमती सुशीला देवी से हो गया। जिनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पिताजी को चौसठ ऋद्धि आयोजन में पूर्ण रुचि रहती हैं। आपके घर में ही चैत्यालय है जिसमें भगवान शांतिनाथ की मूर्ति है। समाजसेवा की ओर आपकी रुचि रहती हैं। दिगम्बर जैन नवयुवक मंडल के आप सहमंत्री है। पता : जैन ब्रदर्स, दूंचा बाजार, चित्तौडगढ़ (राज.) Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /463 श्री मांगीलाल जी लुहाड़िया विजोलिया के श्री मांगीलाल जी लुहाड़िया वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । आपका संवत् 1971 में जन्म हुआ तथा 17 वें वर्ष में श्रीपती देव बाई से विवाह हो गया । आपके पिताजी श्री राजमल 20 वर्ष पहले तथा माताजी श्रीमती नोजीबाई का अभी 8 वर्ष पूर्व ही निधन हुआ है । आपके किराणे का व्यवसाय है । आप तीन पुत्रों -भंवरलाल,लाभचंद एवं चांदमल के पिता हैं। लुहाड़िया धार्मिक प्रकृति के हैं । तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। मुनिभक्त हैं । आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। बिजोलिया तीर्थ कमेटी के सदस्य हैं। पता :- मांगीलाल भंवरलाल लुहाड़िया,बिजोलिया (भीलवाड़ा) राज, श्री माणकचंद गोधा शाहपुरा (भीलवाड़ा) के निवासी श्री माणकचंद जी गोधा का सामाजिक क्षेत्र में विशेष स्थान है | आपका जन्म 2 नवम्बर 1933 को हुआ । आपके पिताजी श्री रतनलाल जी एवं सागर जी महः माताजी श्रीमती बादाम बाई दोनों का ही आशीर्वाद मिल रहा है । इन्टरमीजियेट पास करने के न गर पश्चात् आपने मेडिकल लाइन में प्रवेश किया और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की। इनसे आपको तीन पुत्र दिनेशकुमार,भानुकुमार एवं दिलीपकुमार एवं एक पुत्री प्रेमबाई के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री दिनेशकुमार एम.कॉम. हैं । विवाहित हैं । धर्मपत्नी का नाम कल्पना है। आपने 30 वर्ष पूर्व शाहपुरा के नये मंदिर में वेदी निर्माण करवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवाई । मुनिभक्त हैं। मुनि संघों में जाकर उनकी सेवा सश्रषा करते रहते हैं। चंबलेश्वरपार्श्वनाथ की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। वहां आपने कमरा बनवाया। मांगीतुंगी क्षेत्र के विकास में पांच हजार का आर्थिक सहयोग दिया। विजयसागर जी महाराज के चातुर्मास के समय इन्द्रध्वज विधान करवाया। गांव में एक औषधालय एवं एक प्याऊ का स्वयं की ओर से निर्माण करवाया। आयुर्वेदिक औषधालय में एक कमरे का निर्माण करने का यशस्वी कार्य किया । पता : 1. दिनेश मेडिकल स्टोर्स, भोलबाड़ा रोड,शाहपुरा (भीलवाड़ा) 2. नवभारत मेडिकल स्टोर, सदर बाजार,शाहपुरा । श्री मूलचंद सोनी बिजोलिया निवासी श्री मूलचंद सोनी वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । दि.जैन अतिशय क्षेत्र : बिजोलिया के स्थानीय कार्याध्यक्ष हैं तथा भादि.जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई की महासमिति के : सदस्य हैं। आपका जन्म संवत् 1976 के आषाढ़ मास में हुआ। 13 वर्ष की आयु में आपका श्रीमती मानबाई के साथ विवाह हुआ। आपको चार पुत्र सर्व श्री कस्तूरचंद रतनलाल,लाभचंद, निर्मलकुमार एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप कट्टर मुनिभक्त हैं। Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 464/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आचार्य धर्मसागर जी,आ.श्रेयान्स सागर जी उपाध्याय योगीन्द्र सागर जी को आहार देकर पुण्योपार्जन किया है। आप शांत स्वभावी एवं सरल परिणाम वाले श्रेष्ठी हैं। पता : छोगालाल मूलचंद जैन सोनी,बिजोलिया (भीलवाड़ा) श्री रतनलाल काला बिजोलिया (भीलवाड़ा) के निवासी श्री रतनलाल काला का जन्म संवत् 1934 (सन् 1930 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अनाज एवं किराये के व्यापारी बन गये । संवत् 2010 में आपका विवाह श्रीमती भंवरदेवी से हो गया । जिनसे आपको एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । पुत्र दिनेश पढ़ रहा है तथा पुत्री लाडबाई का विवाह हो चुका है। बिजोलिया के छोटे मंदिर में आपके पिताजी स्व.श्री कन्हैयालाल जी ने आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान करने का गौरव प्राप्त किया था । स्वयं काला जी काँमेस (आई) के कर्मठ कार्यकर्ता हैं । बिजोलिया तीर्थक्षेत्र कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं तथा नगर के प्रमुख व्यवसायो । पता : नेमीचंद दिनेश कुमार जैन, बिजोलिया (भीलवाड़ा) श्री रोरूलाल गदिया श्री गदिया जी चित्तौड़ जिले के मंडलिया सांवला जी ग्राम के निवासी हैं। आपको आयु 70 वर्ष की होगी । आपके पिताजी श्री भुवानीराम का संवत् 2011 को स्वर्गवास हो गया । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका विवार श्रीमती सोहनबाई से संवत् 1991 में हो गया। वर्तमान में आप 6 पुत्रों एवं एक पुत्री मनोरमा के पिता हैं । उनमें से प्रथम पुत्र श्री मदनलाल जी वकालत करते हैं । दूसरे पुत्र पूरणमल जी व्यापार करते हैं । तीसरे पुत्र श्रवणकुमार बैंक सर्विस में हैं । शेष पुत्र श्री सुरेशकुमार, मनोहरलाल एवं अशोककुमार निम्बाहेड़ा में व्यवसाय कर रहे हैं। सांवलिया जी वैष्णव समाज का प्रसिद्ध तीर्थ है । यहां के जैन मंदिर के आप लगातार 23 वर्षों तक अध्यक्ष रहे । मुनियों के कट्टर भक्त हैं । अचार्य सुमति सागर जी का एक बार जब पूरा संघ मंडलिया आया तो आपने पूरे परिवार के साथ उनकी बहुत सेवा की थी। आप सादा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्ति हैं। आपके पुत्र मनोहरलाल जी वर्तमान में सांवलिया ट्रस्ट की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। . पता: रूपचंद भुवानीराम जैन,मंडलिया सांवलाजी चित्तौड़ (राज) श्री सुगनचंद जैन साह गोत्रीय श्री मुगनचंद जो जैन अपनी मामाजिक, राजनैतिक छवि के लिये पूरे जिले में प्रसिद्ध हैं । उनका जन्म जेठ सुदी 3 संवत् 1987 को हुआ। आपके पिताजी श्री फूलचंद । जी का स्वर्गवास 6 वर्ष पूर्व आसोज बुदी 5 को हो गया था । माताजी गट्ट बाई का आशीर्वाद प्राप्त है । संवत् 2006 में आपका विवाह बागूदार के श्री मदन गोपाल की सुपुत्री कंचनदेवी के साथ हुआ। .. . Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /465 श्री साह का समर्पित जीवन रहा है। उन्हें बेगू पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मांडलगढ़ तलहटी का मंदिर आपके पूर्वजों का बनवाया हुआ है । 1- सन् 1949 में गांधी स्मारक सेवा समिति के सेक्रेट्री रह कर गांधी स्मारक का निर्माण करवाया। 2- सन् 1952 में आप तहसील काँग्रेस के सन् 1955 से 58 तक सेक्रेट्री बनाये गये । 3- सन् 1954 में गाडिया लुहार सम्मेलन में भोजन व्यवस्था के संयोजक बने । 4- सन् 1957 में भारत सेवक समाज भीलवाड़ा अधिवेशन में भोजन एवं यातायात व्यवस्था के प्रबंधक रहे। 5- सन् 1959 में 1963 तक राजस्थान आदिम जाति सेवक संघ के प्रदेश संगठक रहे । 6- सन् 1964 में ग्राम पंचायत के सरपंच तथा पंचायत समिति के उपप्रधान बनाये गये । 7. सन् 1982 में 85 तक नगरपालिका के अध्यक्ष रहे । 8- सन् 1969 में ब्लाक कांग्रेस के अध्यक्ष एवं नगर काँग्रेस के अध्यक्ष रहे । 9- तीर्थक्षेत्र कमेटी चंबलेश्वर की कार्यकारिणी के सदस्य एवं बिजोलिया क्षेत्र के महामंत्री रहे। महासभा के भीलवाड़ा जिले के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा नारायणी देवी बाल विद्या मंदिर के संचालक हैं। 10- पक्के मुनिभक्त हैं। मांडलगढ आने वाले सभी मुनियों की सेवा एवं आहार आदि देते हैं। 11. भीलवाड़ा प्रदेश के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आप नेहरूजी, इंदिरागांधी राष्ट्रपति जैलसिंह, लाल बहादुर शास्त्री, नन्दा जी एवं राजीव गांधी के खूब संपर्क में रहे हैं। मांडलगढ़ प्राम के प्रमुख हैं। पता : मु.पो. मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) श्री सोहनलाल गोधा दानिया की कोटडी ग्राम के निवासी श्री सोहनलाल जी गोधा समाज के वरिष्ठ समाजसेवी हैं। आपका माह बुदी 3 संवत् 1979 को जन्म हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने ग्राम में ही वस्त्र व्यवसाय में लग गये। आपके पिता श्री राजमल जी एवं माताजी धापू बाई का भी आशीर्वाद प्राप्त है। संवत् 1995 में आपका विवाह श्रीमती उगम बाई से हो गया। जिनसे आपको 3 पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। श्री गोधा जी समाज के काफी सक्रिय कार्यकर्ता हैं। पारोली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में राज दरबार में राजा का पार्ट किया था। गांव में वर्मचक्र एवं ज्ञान ज्योति रथ आने पर उसका भारी स्वागत किया था। आप महासभा के गत 11 वर्ष से क्षेत्रीय मंत्री हैं। आपके बड़े पिताजी श्री मांगीलाल जी ब्रह्मचारी थे तथा ब्रह्मचर्याश्रम इन्दौर में जीवन पर्यन्त रहे । 1 आपके ज्येष्ठ पुत्र पदमकुमार युवा समाजसेवी हैं। यहां के नवयुवक मंडल के अध्यक्ष हैं। प्रतिदिन पूजा प्रक्षाल करते हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत हैं। 14 महिने तक प्रतिदिन अरिहंत बोल की प्रभातफेरी का आयोजन किया। आपके I Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 466 / जैन समाज का वृहद् इतिहास दूसरे पु अमोलकचंद 35 वर्षीय युवा हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। तीसरे पुत्र सुरेश कुमार बी.ए. हैं। वस्त्र व्यवसाय करते हैं। दो पुत्रों के पिता हैं। गोधा जी कट्टर मुनि भक्त हैं तथा गांव में आने वाले सभी मुनियों को आहार आदि से पूरी सेवा करते हैं। राजमल सोहनलाल गोधा वस्त्र विक्रेता, दानिया की कोटडी (भीलवाड़ा) राज. पता : श्री हीरालाल अजमेरा भीलवाड़ा के वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । श्री हीरालाल अजमेरा ने अपने जीवन के 83 बसना देख लिए है। संवत् 1980 में आपका विवाह श्रीमती छाउ बाई से हो गया। आपको एक पुत्र, तीन पुत्रियों एवं दो पौत्रों की प्राप्ति हो चुकी है। आपके एकमात्र पुत्र शुभचन्द अजमेरा के आकस्गिक निधन से आपके जीवन में एक रिक्तता आ गई लेकिन आप सतत समाज सेवा में लगे रहे और भीलवाड़ा एवं उसके समीपस्थ सभी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। भीलवाड़ा में तेरह पंथ मन्दिर का निर्माण, सवा छः फिट ऊंची बाहुबली स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाने के लिए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन करवाया। महावीर हायर सैकण्डरी स्कूल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं। इसी तरह महावीर दिगम्बर औषधालय के भी आप अध्यक्ष हैं। अजमेराजी की सामाजिक एवं धार्मिक सेवाएं अत्यधिक उल्लेखनीय हैं। हम आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। पता : दिगम्बर जैन तेरह पंथ मन्दिर भूपालगंज, भीलवाड़ा । Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /467 अजमेर क्षेत्र का जैन समाज अजमेर जिला राजस्थान का प्रमुख जिला है । यह पांच तहसीलों में बंटा हुआ है जिनमें अजमेर, ब्यावर, केकड़ी, किशनगढ़ एवं सरवाड़ की तहसीलें हैं। सन् 1981 की जनगणना में अजमेर जिले की जनसंख्या 14,40,366 थी जिसमें जैनों की संख्या 43 : अजमेर जिले के प्रमुख नगरों में अजमेर, पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, ब्यावर, विजयनगर, सरवाड़, केकड़ी के नाम उल्लेखनीय हैं। अजमेर :- अजमेर राजस्थान का प्रमुख नगर है एवं जिले का मुख्यालय हैं । अजमेर का पुराना नाम अजयमेरू था। जिसका उल्लेख 12 वीं शताब्दी की प्रशस्ति में मिलता है । यह नगर भट्टारकों का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां के अंतिम भट्टारक हर्षकीर्ति थे जिनके समाधि के पश्चात् यहां की गद्दी खाली पड़ी है। भट्टारकीय मंदिर में एक बहुत बड़ा शास्त्र भंडार भी है जिसमें हजारों ग्रंथों का संग्रह है। यहां के शास्त्र भंडार के ग्रंथों की सूची राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूची पंचम भाग में प्रकाशित हो चुकी है। अजमेर में सर्वप्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संवत 11 में संपन्न हुई थी। संवत 1112 में छोटे वीरमी काला ने विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जिसे बाद में मुस्लिम शासनकाल में अढाई दिन का झोपड़ा का नाम दिया गया। यहां अब तक अनेक प्रतिष्ठायें हो चुकी हैं । संवत् 1852 में धर्मदास गंगवाल ने एक वृहद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन किया जिसमें सैकड़ों मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई थी । इस प्रतिष्ठा में प्रतिष्टित कितनी ही प्रतिमाय जयपुर के मंदिरों में विराजमान हैं । संवत् 1912 में रायबहादुर मूलचन्द सोनी ने एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया । जिसके निर्माण की प्रेरणा पं. सदासुख जी कासलीवाल ने दी थी । यहां के छोटे धड़े की नशियां में भगवान आदिनाथ की श्याम पाषाण की पद्मासन प्रतिमा चतुर्थकालीन है । रायबहादुर सेठ नेमिचंद जी, टीकमचंद जी की नशियां बहुत ही विशाल एवं मनोहर है । उसमें सोने की अयोध्या नगरी का निर्माण सेट मूलचन्द जी सोनी ने कराया था जिसका वृहद मेला जयपुर में । मार्च सन् 186 से 11 मार्च सन् 1896 तक रामनिवास बाग में आयोजित हुआ था। उसमें सोने की अयोध्या नगरी की रचना बहुत ही कलापूर्ण है जिसको देखने के लिये प्रतिष्ठित सैकड़ो हजारो पर्यटक आते हैं। वर्तमान समाज :- अजमेर का वर्तमान इतिहाप्त भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है । यहां पर दिगम्बर जैन समाज के 1351 से भी अधिक परिचार हैं जिनमें 11) परिवार नुण्डेलवाल जैन समाज के 15 परिवार जैसवाल जैन समाज के अग्रवाल जैनो के 11 परिवार, पदमावती पुरवार के परिवार, लमेचू में 3 परिवार, परवार समाज के 7 परिवार, पल्लीवालों के 11) परिवार, नरसिंहपुरा एवं हूंबढ़ समाज के १० परिवार एवं ओसवाल समाज के भी 126) परिवार हैं। यहां ?। मंदिर एवं 5 नशियां हैं । तीन मंदिर नये बन रहे हैं । सन् 1911 में यहां 486 परिवार थे तथा जनसंख्या 164 थी। यहां का पूरा समाज धड़ों में विभक्त है जो सेठ जी का धड़ा बाबाजी का बड़ा धड़ा, छोटा धड़ा, नया धड़ा, चैत्यालय धड़ा, एवं गोधों का धड़ा है । जैसवाल समाज की अलग पंचायत है तथा 400 से अधिक Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 468/ जैन समाज का वृहद् इतिहास परिवार बिना धड़ों के हैं। शिक्षण संस्थाओं में रात्रि पाठशाला, दि. जैन औषधालय, कन्या पाठशाला (सेठ जी की) श्री महावीर जैन पुस्तकालय एवं श्री चन्द्रसागर पुस्तकालय है । __ अजमेर नगर में आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं सन्मति सागर जी महाराज की दीक्षा हुई थी। यहां के पंडितों में पं. हरकचन्द जी, पं. अभयकुमार जी, पं. हेमचन्द्र जी के नाम उल्लेखनीय हैं । यहां के प्रमुख परिवारों में सोनी परिवार सौगानी परिवार, पाटनी परिवार, लुहाडिया परिवार एवं फतहबन्द जी सेठी परिवार हैं। अजमेर में स्वतंत्रता सेनानी श्री अर्जुनलाल सेठी ने अपनी अंतिम सांस ली। सोनी परिवार में यहां सेठ मूलचन्द सोनी, नेमिचन्द्र जी सोनी, टीकमचंद जी सोनी एवं भागचन्द जी सोनी हुये जो सभी रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित हुये। भागचन्द जी सोनी को भी सर की उपाधि प्राप्त थो । सोनी परिवार ने पिछली एक शताब्दी से सामाजिक सेवा में अपने आपको समाप्त रखा हैं । सानी परिवार के सभी सदस्य राष्ट्रीय स्तर के नेता रहे हैं । महासभा से जुड़े हुये ही नहीं किन्तु उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं । सौगानी परिवार में श्री माणकचन्द जी सौगानी. राज विधानसभा के सदस्य रहे हैं। अजमेर नगरपालिका चेयरमैन, नगर विकास न्यास के अध्यक्ष रह चुके हैं । धार्मिक विचारों से ओतप्रोत हैं । फतहचन्द जी सेठी सामाजिक क्षेत्र में अगुआ रहे हैं। वर्तमान सामाजिक कार्यकर्ताओं में श्री स्वरूपचंद जी कासलीवाल, श्री कपूरचंद जी सेटी, श्री शांतिलाल जी बड़जात्या के नाम उल्लेखनीय हैं। नसीराबाद:- अजमेर से 20 कि.मी. नसीराबाद शहर है जो नसीराबाद छावनी के नाम से अधिक प्रासद्ध है। सन् 1903 में महासभा के उपदेशक हकीम कल्याणदास ने नसीराबाद में जैन समाज के 50 घर तीन मंदिर होना लिखा था। यहां भी खण्डेलवाल समाज का बाहुल्य है । अधिकांश जैन सर्राफी एवं लेनदेन का कार्य करते हैं । 22 नवम्बर 1972 को यहां विशाल जनसमुदाय के मध्य ज्ञानसागर जी महाराज स्वयं ने आचार्य पद त्यागकर विद्यासागर जी महाराज को आचार्य पद दिया था। इसके पूर्व संवत् 1989 में आचार्य शांतिसागर जी छाणी का चातुर्मास हुआ था । नसीराबाद में संवत् 1958 वैशाख शुक्ला 3 जैन पाठशाला की स्थापना पत्रालाल जी सेठी सभापति एवं मंत्री मांगीलाल ने की है। ___ ख्यावर :-अजमेर से 50 कि.मी. दूरी पर ब्यावर नगर है जो सूती मिलों के लिये प्रसिद्ध है । वैसे ब्यावर नगर चम्पालाल रामस्वरूप रानीवालों के नाम से जैन समाज में प्रसिद्ध रहा है । ब्यावर में मुनियों का चातुर्मास होता ही रहता है लेकिन संवत् 1990 में सर्वप्रथम आचार्य शांतिसागर जी दक्षिण एवं आचार्य शांतिसागर जी छाणी का एकसाथ चातुर्मास हुआ था । जो ऐतिहासिक चातुर्मास माना जाता है । यहां पर रानीवाले सेठों की धर्मशाला एवं उसमें बहुत बड़ा सरस्वती भंडार है जिसमें हजारों पाण्डुलिपियों का संग्रह है । इस सरस्वती भंडार में हीरालाल जी सिद्धान्त शास्त्री कार्य कर चुके हैं । शास्त्र भंडार में सचित्र पाण्डुलिपियों का भी अच्छा संग्रह है। वर्तमान में यहां पं. अरुणकुमार जी शास्त्री कार्य कर रहे हैं। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज (469 यहां पर खण्डेलवाल, अग्रवाल, पल्लीवाल समाज के करीब 60 घर हैं। दो शिखरबन्द मंदिर हैं तथा 1500 से अधिक घर स्थानकवासी समाज के हैं तथा तहसील में भी स्थानकवासी समाज की सघन बस्ती है । ब्यावर तहसील में विजयनगर में दिगम्बर जैन समाज के 41 परिवार, खण्डेलवाल के 40 परिवार, अग्रवाल जैनों का एक परिवार तथा स्थानकवासियों के 700 परिवार हैं। एक दिगम्बर जैन मंदिर है। इसी तरह गुलाबपुरा में भी खुलवालों के 4. नर है तथा एक नंदिर है केकड़ी :- धर्म प्राण केकड़ी नगर अजमेर जिले में अच्छी व्यापारिक मंडी हैं। पूरे शहर की जनसंख्या करीब 25 हजार हैं। केकड़ी को पंडितों की नगरी रहने का भी सौभाग्य मिल चुका है। यहां प्रतिष्ठाचार्य पं. धत्रालाल जी पाटनी, पं. संतोषकुमार जी शास्त्री, बा. लक्ष्मीचन्द जी सेठी, भंवरलाल जी कासलीवाल आनरेरी मजिस्ट्रेट, पं. मिलापचंद जी कटारिया, पं. दीपचन्द जी पांड्या, पं. अमोलकचन्द जी पांड्या जैसे विद्वान हो गये हैं। वर्तमान में पं. रतनलाल जी कटारिया भी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता हैं। केकड़ी में जैन विवाह विधि से संवत् 1899 में प्रतिष्ठाचार्य धन्नालाल जी का विवाह हुआ । यहां पर खण्डेलवाल जैन समाज के 81 परिवार, अग्रवाल जैनों के 45 परिवार एवं ओसवाल समाज के 85 परिवार हैं। पूरे समाज में समन्वय है। श्री भंवरलाल जी जैन वर्तमान में नगर परिषद् के अध्यक्ष हैं। यहां तीन मंदिर हैं शांतिनाथ दि. जैन मंदिर, मुनिसुव्रतनाथ मंदिर एवं दि. जैन चन्द्रप्रभु चैत्यालय है। यहां दि. जैन औषधालय, समन्तभद्र दि. जैन विद्यालय, एवं दि. जैन धर्मशाला है । खण्डेलवालों में कटारिया, सोनी, ठोलिया, बज, छाबड़ा, पांड्या, पाटनी, गदिया, बाकलीवाल, रांवका, गंगवाल, साह गोत्रों के परिवार हैं। केकड़ी का इतिहास 90 वर्ष पुराना माना जाता है। संस्कृत में केकड़ी का नाम कनकावती कहलाता है। डिव्यका नामक अंग्रेज ने करीब 125 वर्ष पहिले नई केकड़ी बसायी । केवड़ी का कटारिया परिवार प्रसिद्ध परिवार है। श्री मिश्रीलाल जी कटारिया एवं श्री माणकचंद जी सोनी प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से हैं। मेहरूकलां :- केकड़ी से 22 कि.मी. सावर लाइन पर महरूकला ग्राम है जो 800 घरों की बस्ती है। यहां अग्रवाल जैनों के 40 परिवार, खण्डेलवाल समाज के 2 परिवार रहते हैं। दो दिगम्बर जैन मंदिर हैं। यहां श्री रतनलाल जी भगत एवं बिरधीचन्द मंगल धार्मिक समाजसेवी हैं । मदनगंज किशनगढ़ :- किशनगढ स्टेट की राजधानी किशनगढ़ थी पीछे स्टेशन के पास महाराजा मदनसिंह जी ने सन् 1982-83 में मदनगंज नामक नई व्यापारिक मंडी का विकास किया। किशनगढ अब पुराना शहर है । मदनगंज व्यापारिक मंडी है। यहां आचार्य ज्ञानसागर जी, आचार्य धर्मसागर जी एवं आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्यकल्प श्रुतसागरजी महाराज एवं अन्य मुनि गणों का चातुर्मास हो चुका है। शहर में मुनि विहार होता ही रहता है । यद्यपि पूरा दि. जैन समाज बीस एवं तेरह पंथ में विभक्त है लेकिन दोनों में सामंजस्य | सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों के सम्पादन के लिये तेरहपंथ, बीस पंथ नाम पंचायते हैं। दोनों पंचायतों Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 470/ जैन समाज का वृहद् इतिहास मे 2013. TH) परिवार हैं तथा इतने ही श्रेताम्बर जैन परिवार भी रहते हैं। जिनमें स्थानकवासी अधिक है। मदनगंज में चार मंदिर एवं एक चैत्यालय तथा किशनगढ में भी चार मंदिर है। विगत पचास वर्षों में तीन पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें हो चुकी हैं। प्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ना 43 वर्ष पूर्व एवं शेष दोनों प्रतिष्ठाये सन् 1978 एवं 1979 में सम्पन्न हुई हैं। ओतम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्यकल्प श्रुतसागर जी पहाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुई । यहां के पंडित महेन्द्रकुमार जी पाटनी काव्यतीर्थ मुनि दीक्षा लेकर मुनि श्री समतासागर जी कहलाये। बघेरा : बघेरा ग्राम दि. जैन बघेरवाल समाज का उद्गम स्थान हैं। यहां के शांतिनाथ दि. जैन मंदिर में अत्यधिक प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं जो यहीं से खुदाई में उपलब्ध हुई थी । ग्राम में अग्रवाल जैनों के 22 घर एवं खण्डेलवाल जैनों के तीन परिवार हैं। यहां आदिनाथ दि. जैन अग्रवाल मंदिर और है। सावर :- अजमेर जिले में सावर प्राचीन कस्बा है । यहा खण्डेलवाल जैन समाज का जागा रहता था जो गावों में घूम-घूम कर परिवारों के इतिहास लिखने का कार्य करता था। यहां पर खण्डेलवाल जैन समाज के ।4 घर तथा अग्रवाल समाज के 55 परिवार है। जनसंख्या की दृष्टि से खण्डेलवालों के है। स्त्री पुरुष एव अग्रवाल जैनो के 525 स्त्री पुरुष है । यहां की पहाड़ी पर चरण चिन्ह हैं । जो हषांगरि अतिशय क्षेत्र कहलाता है। सरवाड़ :- अजमेर जिले का सरवाड प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। इस संबंध में उपलब्ध प्रमाणों तथा शिलालेखों के आधार पर माग लाता है कि इसका निर्माण संभवतया वी या ]|| वीं शताब्दी में हुआ था । सम्पूर्ण मदिर केवल पत्थरों के खंभों पर निर्मित होने से इसकी स्थापत्य कला के आधार पर भी इसका निर्माण दशवी शताब्दी के पूर्व का मानना अनुमानित है। ऐतिहासिक तथ्यों के संदर्भ में भी यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गौड राजाओं के समय हुआ होगा। आज भी भगवान का नाम गोडि. आदिनाश्य जी से अधिक प्रसिद्ध हैं । नवीं दसवी शताब्दी इस नगर के उत्कर्ष का समय ठहरता है । ऐसी भी मान्यता है कि किसी समय यहां 4012-31 दिगम्बर जैन परिवार निवास करते थे उस समय यह नगर वैभव के शिखर पर था - कई विशाल जिन मंदिर थे। इस मंदिर का जीर्णोद्धार संवत् 1984 में अजमेर के प्रसिद्ध सेट टीकमचन्द जी सोनी द्वारा कराया गया था । इस मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान श्री आदिनाथ जी को भव्य एवं गनोज्ञ श्रेत पदमासन प्रतिमा जी चतुर्थकालीन है। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार गुलाम वशीय शासक इल्तुतमिश ने भी मंदिर ध्वस्त करने की कलुषित भावना से आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली और भगवान के समक्ष नतमस्तक होना एड़ा। बादशाह को करबद्ध मूर्ति आज भी मंदिर में खड़ी है। Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /471 अद शताब्दी पूर्व यहां आचार्य श्री शांतिनाथ जी महाराज का केशलौंच हुआ था । इसके पश्चात् आचार्य श्री धर्मसागर जी, श्री विद्यासागर जी, आर्यिका इन्दुमति जी, आर्यिका सुपार्श्वमति माताजी ने भी इस क्षेत्र को आत्मिक शान्ति का अनुपम स्रोत स्वीकार किया है। अभी हाल मे आचार्य श्री निमस्रसागर जी, मुनि श्री शीतलसागर जी, मुनि गुणसागर जी महाराज का भा यहां विहार हुआ है। तहसील सरवाड़ में जैन परिवारों का विवरण निम्न प्रकार है : क्र.सं. नाम प्राम मंदिरों की संख्या कुल जैन परिवार जैन परिवारों का विवरण खण्डेलवाल परिवार अग्रवाल परिवार सरवाड़ खीरियां शेरगढ़ फतहगढ़ बन्थली मनोहरपुरा हिंगोनिया अजगरा सांपला 10- कनेई कलां 11- बडगांव 12- चकबा कुल संख्या एक सर्वे के अनुसार अजमेर जिले के जिन-जिन नगरों एवं ग्रामों में जैन परिवार मिलते हैं उनके नाम निम्न प्रकार हैं : Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 472/ जैन समाज का वृहद् इतिहास अजमेर उपखंड 1 2 3 4 5 6 7. 8 9. 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19. 20 21 22 23 24 25 रामनेर ढाणी सराणा ऊंटडा होकरा कडेल पुष्कर पीसांगन सराधरा राजगढ़ भाखुपुरा बीर जेठाणा मांगलियावास भवानी खेडा बाघसुरी देरादू ढाल तिहारी चांदसेन मोराझडी सणोद नसीराबाद भूटियांगी लोहरवाडा अजमेर नगर 26 27 28 29. 30 31- कुचील 32 33. 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 किशनगढ़ उपखंड कोटडी भदूण नरैना (छोटा) 46. रूपनगढ़ करकेड़ी मोहनपुरा बांदरसिंदरी रूप खड़ाच देवपुरी अराई कालानाडा भोगादीत सिरोज दादिया लांबा छोटा दसूक मंडावरिया झीरोत पाल्डी मदनगंज शहर 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 27 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77. केकड़ी उपखंड मंथली फतहगढ शेरगढ शोकलिया चांपानेरी देवलियाकलां नांदसी सरवाड़ चकवा सांपला बडाव प्रान्हेडा मेहरूकलॉ टाकावास घटियाली सावर धूंधरी लसाडिया मेवदाकला बघेरा जुनियां ककला खीरिया ढोस मनोहरपुरा कालेडा (कंवरजी) पारा पिपलाज गुढा छोटा देवगांव केकड़ी नगर 78 79. 80 81 82. 83. 84 85 86 87 8. 89. 90 91 92 93 94 95. 96 97 98 ब्यावर उपखंड आठोली वांजरा कुरथल गुलगांव सदारा सदारी कादेडा बिन्दनी कालेड़ा बांगला चौसला फोड़ा अजगरा ब्यावर नगर विजयनगर बिखरर्णीयां तिलोनिया कवास कुचील आलणीयावास उन्दरी बस्सी Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1473 अजमेर जिला यशस्वी समाजसेवी 1. स्व,श्री भागचन्द जी सोनी परिवार 2. श्री कपूरचन्द सेठी अजमेर 3. श्री कस्तूरमल दिलाला नसीराबाद 4. श्री कैलाशचन्द लुहाड़िया अजमेर 5. श्री गंभीरमल सेठी नसीराबाद 6. श्री गुलाबचन्द गोमा मदनगंज किशनगढ़ 7. श्री चम्पालाल पाटनी मदनगंज किशनगढ़ 8. श्रीच, . पास केकड़ी ५.श्री छीतरमल दोशी अजमेर 10. श्री जतनलाल गदिया नसीराबाद 11. श्री टीकमचन्द पाटनी अजमेर 12. श्री विलोकचन्द सौगानी अजमेर 13. श्री दीपचन्द चौधरी मदनगंज किशनगद 14. श्री दीपचन्द छाबड़ा नांदसी 15. श्री धर्मचन्द मोदी ब्यावर 16. श्री निहालचन्द अजमेरा सरवाड़ 17.श्री नेमिचन्द रांवका ब्यावर 18. श्री पदमचन्द गंगवाल अजमेर 19. श्री पन्नालाल पहाड़िया मदनगंज किशनगढ 20. श्री प्रकाशचन्द कटारिया केकड़ी 21. श्री प्यारेलाल अजमेरा अजमेर 22. श्री भंवरलाल सोनी नसीराबाद 23. श्री बाबूलाल जैन अजमेर 24, श्री बोदूलाल गंगवाल मदनगंज किशनगढ 25. श्री भंवरलाल सोगानी ब्यावर 26. श्री भागचन्द पाटनी नसीराबाद 27. श्री मदनलाल गंगवाल मदनगंज किशनगढ़ 28. श्री महेन्द्रकुमार कासलीवाल ब्यावर 21}. श्री माधोलाल गदिया नसीराबाद 31. श्री माणकचंद गंगवाल नसीराबाद 31. श्री माणकचन्द ठोलिया केकड़ी 32. श्री माणकचन्द सौगानी अजमेर 33 श्री माणकवन्ट सोनी केकड़ी २२. श्री मूलचन्द लुहाड़िया मदनगंज किशनगढ़ 35. श्री मूलचन्द सौगानी अजमेर 30. श्री मोहनलाल कटारिया केकड़ी 37. श्री पं.स्तनलाल कटारिया केकड़ी 38. श्री पं.रतनलाल कटारिया ब्यावर 39. श्री रतनलाल गंगवाल केकड़ी 40. श्री रतनलाल बाकलीवाल मदनगंज किशनगढ 41. श्री राजकुमार दोशी अजमेर 42. श्री दिनयचन्द सौगानी अजमेर 43. श्री शांतिलाल कासलीवाल सरड़ 44. श्री शांतिलाल बड़जात्या अजमेर 45. श्री शिखरचन्द सोनी अजमेर 49. श्रीपाल कटारिया केकड़ी 47. श्री सुजानमल जैन सरवाड़ 48. श्री स्वरूपचंद कासलीवाल अजमेर 49. श्री हजारीलाल सोनी अजमेर 50. श्री हरकचन्द सौगानी नसीराबाद 51. श्री हेमराज बड़जात्या अजमेर Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 474/ जैन समाज का वृहद इतिहास स्व, सेठ भागचंद जी सोनी, अजमेर ___ स्व. सेठ भागचन्द जी सोनी का एक युग रहा जिसमें उनको समाज में सर्वोच्च सम्माननीय स्थान मिला। उन्होंने भी समाज के प्रत्येक कार्य में अपना सहयोग देना अपना कर्तव्य समझा । उनका घराना विगत 4'पीढ़ियों से समाज में प्रमुख पराना माना जाता रहा। उनके पिता श्री रायबहादुर टीकमचंद सोनी एवं पितामह रायबहादर मूलचंदजी सोनी भी समाज में विशिष्ट स्थान रखते थे। उनके पूर्वजों द्वारा बनाई हुई नशियां एवं मंदिर दोनों ही दर्शनीय हैं । नशियां दो वर्तमान में भी अजमेर के दर्शनीय स्थानों में मानी जानी है। ..१.१८ स्व.सेठ साहब का जन्म ।। नवम्बर 1904 में हुआ। धार्मिक शिक्षा के साथ गवर्नमेन्ट हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय एवं समाजसेवा में लग गये। भारत की आजादी के पूर्व और आजादी के पश्चात देश के अनेकानेक शासनाध्यक्षों ने आपको उच्चतम उपाधियों से अलंकृत करके स्वयं को गौरवान्वित किया। भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा कैप्टिन की मानद उपाधि तथा स्वतंत्रता पूर्व औ बीई,सर नाइट हुड़ तथा आनरेरी लेफ्टिनेर आदि अनेक सम्मानजनक उपाधियाँ प्रदान की गईं । आप अजमर नगरपरिषद के चैयरमैन केन्द्रीय असेम्बली के एम.एल.ए.,भादि.जैन महासभा के अध्यक्ष एवं संरक्षक, पा.दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी दि.जैन महासमिति एवं अनेक प्रान्तीय तथा स्थानीय संस्थाओं के उच्च पदाधिकारी रहे । सामाजिक उपाधियां तो आपके आगे पीछे चलती रही। भाग्य मातेश्वरी कन्या पाठशाला, श्री भागचंद विद्या भवन, स्व. टीकमचंद जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय जैसी संस्थायें आपके उज्जवल शिक्षा प्रेम का प्रमाण है। आपका विशाल एवं आकर्षक व्यक्तित्व देखते ही बनता था। आपका स्वर्गवास दि. 3-8-1-983 को हुआ। स्व. सेठ के निधन से अजमेर नगर ही नहीं किन्तु पूरा जैन समाज अपने आपको असहाय समझने लगा । समाज का मार्गदर्शन उठ गया और एक गेसी हस्ती उठ गई जिसकी प्रत्येक शास में समाज सेवा का खत भरा हुआ था । सर सेठ साहब युग पुरुष थे । इतिहाम निर्माता थे । समाज उनके पद चिन्हों पर चलता था । सर सेठ के दो विवाह हुए। प्रथम पत्नी स्व.तारादेवी सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर की पुत्री थी । उसके एक पुत्र प्रभाचन्द सोनी एवं एक पुत्री चान्दराजा बाई हुई । प्रभाचन्द जी का युवावस्था में स्वर्गवास हो गया । दूसरी पत्नी का नाम श्रीमती रत्नप्रपा देवी है जो ब्रुहरानपुर के सेठ केशरीमल लुहाड़िया की पुत्री है । उससे उनको दो पुत्र निर्मलचन्द जी एवं सुशीलचन्द जी एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। श्री निर्मलचन्द जी बहुत ही सामाजिक एवं पार्मिक प्रकृति के हैं । श्री सुशीलचन्द जी कलकत्ता में व्यवसायस्त है । दोनों ही भाता अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने वाले हैं । समाज को आपसे बहुत आशाएं है । Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1475 श्री कपूरचंद जी सेठी अजमेर के कर्मठ युवा समाज सेवियों में श्री कपूरचंद सेठी का उल्लेखनीय स्थान है। वे नगर को अधिकांश संस्थाओं से जुड़े हुये हैं तथा अपने सेवा भावी एवं कर्मठ जीवन से सब को अपना बनाये हुये हैं। 4 मई 1942 को जन्मे श्री सेठी जी ने बो कॉम. एल.एल.बी किया और सन् 1964 से दोबानी एवं राजस्व साइड में वकालत प्रारंभ की। साथ ही में राजकीय महाविद्यालय में 1977 कमान बिगिकिन वक्ता रहे । इसके अतिरिक्त जीवन बीमा निगम एवं राजस्थान विद्युत मंडल के भी अधिवक्ता रह चुके हैं। सामाजिक संस्थाओं में श्री जैन औषधालय के अध्यक्ष, भारतवर्षीय दि. जैन् महासभा की राजस्थान शाखा के संयुक्त मंत्री एवं अजमेर जिला के मंत्री दिगम्बर जैन महासमिति अजमेर | के महामंत्री (1984 से 87) तक रह चुके हैं। इनके अतिरिक्त और बीसों संस्थाओं से किसी न किसी रूप में जुड़े हुये हैं। अजमेर नगर की ऐसी कोई संस्था नहीं है जिसमें आपका योगदान नहीं रहता है। सेठी जी लेखन कार्य भी करते रहते हैं । अभी तक(1) जैन धर्म एवं संस्कृति का इतिहास (2) अजमेर जिला दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र एवं तीर्थस्थल पुस्तक लिख चुके हैं तथा वर्तमान में राजस्थान में जैन धर्म एवं संस्कृति की गौरवशाली परम्परा आदि पर आपकी लेखनी चालू श्रीपती कमला जैन इसी प्रकार श्री कपूरचंद जी सेठी समाज के सजग प्रहरी के रूप में सर्वत्र समादृत हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम कमलादेवी है जो दो पुत्र सुरेन्द्र, रवीन्द्र एवं पुत्री रेणू की जननी है । पता : नया बाजार, अजमेर श्री कस्तूरमल बिलाला नसीराबाद जैन समाज के वर्षों तक अध्यक्ष रहने वाले श्री कस्तूरमल बिलाला निवाई से गोद आये थे। आपका संवत् 1955 जेठ सुदी अष्टमी को जन्म हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री कनीराम एवं माताजी का नाम श्रीमती रतनी बाई था। दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है । आपके चार पुत्र हैं श्री हुकमचंद जी बिलाला का जन्म संवत् 1984 में हुआ। मैट्रिक तक अध्ययन किया । संवत् 2003 में आपका विवाह तारादेवी से हुआ जिनके 2 पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं । आप दि. जैन पंचायत बड़ा षड़ा के कोषाध्यक्ष हैं। बिलाला जी के दूसरे पुत्र श्री कैलाशचन्द का जन्म संवत् 2000 में हुआ । मैट्रिक पास किया । सन् 1962 में श्रीमती कमला देवी से विवाह हुआ। आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री है । सभी पढ़ रहे हैं । स्वाध्याय शाला के नियमित सदस्य हैं । सभी यात्रायें सम्पन्न कर ली है। पता:- सुखदेव कनीराम, सुभाषगंज नसीराबाद । Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 476/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री कैलाशचन्द लुहाड़िया मुनि संघों की सेवा एवं व्यवस्था में तत्पर रहने वाले श्री कैलाशचन्द लुहाड़िया सर्राफी का व्यवसाय करते हैं तथा अपनी साधु भक्ति के लिये समाज में प्रसिद्ध है। आचार्य शिवसागर महाराज से लेकर अब तक जितने भी मुनि संघ अजमेर में आये लुहाड़िया जी को उगके लिये चौका, आहार आवास व्यवस्था करने में सबसे आगे पाया गया । आपके शुख खानपान का नियम है तथा प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं। आपके परिवार ने लूणचा अतिशय क्षेत्र पर तथा छोटे धड़े की नशियां अजमेर में एक-एक कमरे का निर्माण कराने का यशस्वी कार्य किया भादवा सुदी पंचमी संवत् 1984 को आपका जन्म हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त की और सर्राफी का व्यवसाय करने लगे। 20 वर्ष की अवस्था में आपका साराबाई से विवाह हुआ जिनसे दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोनों पुत्र सोहनलाल एवं सुभाषचन्द मर्राफी का कार्य करते हैं । समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति है । 40 वर्ष तक छोटे धड़े की नशियों के प्रबन्धक रहे हैं। पता: हरकचन्द कैलाशचन्द सर्राफ नया बाजार, अजमेर श्री गंभीरमल सेठी नसीराबाद के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री धीरमल जी सेठी अपनी उदारता, धार्मिक | पवृत्ति एवं सहृदयता के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध हैं । आपका जन्म फाल्गुण बुदी 14 संवत 19457 को हुआ । आपके पिताजी श्री राजमल मेठी भी लोकप्रिय समाजसेवी थे जिनका सन 1937 में हो स्वर्गवास हो गया तथा माता जोरावर धाई का सन 1973 में निधन हुआ । सन् 1924 में बूंदी के नगर सेठ स्व.मदनमोहन कासलीवाल की बहिन सूर्यप्रभा देवी से आपका विवाह हुआ जिनका 14 अप्रैल 85 को स्वर्गवास हो गया । आपको एक मात्र पुत्री खुशवन्ती बाई का विवाह श्री तोलाराम जी गंगवाल लाडनूं के सुपुत्र श्री किशोरचंद जी गंगवाल के साथ संपन्न हुआ। आप लेनदेन,बैकिंग एवं फर्नीचर का कार्य करते हैं। आपके पिताजी के बड़े भाई श्री लखमीचन्द जी सेटी ने केकड़ी के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में योगदान दिया। केकड़ी के मंदिर निर्माण में योग दिया। नसीराबाद जैन धर्मशाला में एक बड़े हाल का निर्माण करवाया । नशियां जी में पन्द्रह सोलह हजार का साहित्य पेंट किया। आपकी दानशील प्रवृत्ति है । तीर्थों में एवं जैन संस्थाओं में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। स्वाध्याय में रुचि है तथा आतिथ्य प्रेमी हैं 1 आपकी माताजी को अपनी मृत्यु का तीन दिन पहिले ही आभास हो गया था । नसीराबाद में उनकी मृत्यु चर्चा का विषय बन गई थी। आपका स्वर्गवास ता. 12-8-89 को हुआ। अब आपकी सुपुत्री श्रीमती खुशवन्ती देवी के सुपुत्र चि. अनिल कुमार जी ने समस्त कार्य भार सम्भाल लिया है। पता:- गंपीरमल सेठी द्वारा हीरालाल राजमल एण्ड संस, IND-82 सदर बाजार,नसीराबाद । Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /477 श्री गुलाबचंद गोधा धर्मनिष्ठ, मुनिभक्त, दृढ संकल्पी उदात्त व्यक्तित्व के धनी जैसे विशेषणों से अभिनन्दित श्री गुलाबचंद जी गोया मदनगंज किशनगढ की श्री मुनिसुव्रतनाथ दि. जैन पंचायत से वैशाख शुक्ला 10 संवत् 2041 को सम्मानित हो चुके हैं। आपका संवत् 1979 में जन्म हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय की ओर मुड़ गये। आपके पिताजी मनसुखलाल जी का स्वर्गवास हुये करीब 18 वर्ष हो गये । माताजी चांद देवी का स्वर्गवास भी 8 वर्ष पूर्व हो गया था। संवत् 1994 में आपका विवाह लदेश की अनूपदेवी के साथ संपन्न हुआ । विवाह के अवसर पर आप केवल 15 वर्ष के थे। आप दोनों पति पत्नी को तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता बनने का गौरव प्राप्त है। तीनों पुत्र प्रकाशचंद, सुमेरचंद एवं राजकुमार आप ही के साथ व्यवसाय करते हैं। तीनों पुत्रियों गुणमाला, प्रेमन्दाई एवं शकुन्तला का विवाह हो चुका है। आपके पिताजी सप्तम प्रतिमाधारी थे तथा आप स्वयं भी तीन प्रतिमाओं के धारक हैं। खानिया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आप ईशान इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। मुनिसुव्रतनाथ पंचकल्याणक में आपने मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई थी । आचार्य धर्मसागर जी महाराज को देहली से किशनगढ़ तक लाने में आपका सर्वाधिक योगदान रहा। शांतिकुमार गोधा आपके छोटे भाई हैं। पंचायत समिति किशनगढ के दो बार प्रधान रह चुके हैं। राजनीति में कांग्रेस (आई) के सक्रिय एवं कर्मठ सदस्य हैं । महावौर इन्टरनेशनल के अध्यक्ष रह चुके हैं। किशनगढ़ उपखंड विकास समिति के सेक्रेट्री हैं। मुनिसुक्त पंचायत की स्थापना से अब तक मंत्री का कार्य कर रहे हैं। राज. दि. जैन महासभा के संयुक्त मंत्री युवा कार्यकर्ता हैं। जब आप जयपुर में कार्यरत थे तो यहां भी आपने अच्छी लोकप्रियता प्राप्त को थी । पता: गोधा भवन, मदनगंज किशनगढ़ श्री चम्पालाल पाटनी उदार स्वभाव के चम्पालाल पाटनी का जन्म आसोज बुदी 7 संवत् 1989 को हुआ था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने पिताजी श्री सुगनचन्द जी के साथ वस्त्र व्यवसाय में लग गये। श्री सुगनचन्द जी का देहान्त अभी 7 वर्ष पहिले ही हुआ है। आपके दो विवाह हुये । प्रथम पत्नी का देहान्त संवत् 20013 में हो गया। इसके पश्चात् संवत् 20023 में शांति देवी से दूसरा विवाह हुआ। आपका एक मात्र पुत्र नवीनचन्द अध्ययन कर रहा है । पाटनी जी के काकीजी संभवमती जी आचार्य वर्धमानसागर जी के संघ में आर्यिका हैं। आपने गुनिसुव्रतनाथ मंदिर मदनगंज में मूर्ति विराजमान करने एवं अपने गांव बस्सी (नागौर) में आयुर्वेदिक एवं एलोपैथो डिस्पेन्सरी बनवाकर राजस्थान सरकार को भेंट करने का यशस्वी कार्य किया है। Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 478/ जैन समाज का बृहद् इतिहास मुनिसुव्रतनाथ पंचकल्याणक महोत्सव में रसद विभाग में मंत्री रहे । धर्मसागर विद्यालय के अध्यक्ष है । के डी.जैन विद्यालय के स्थायी सदस्य, वस्त्र व्यापार संघ के अध्यक्ष एवं दि. जैन बीस पंथ पंचायत के उपाध्यक्ष हैं । कट्टर मुनिभक्त हैं। शुद्ध खानपान का नियम है। मुनिराजों की सेवा करने में सबसे आगे रहने वाले सज्जन हैं। सामाजिक सेवा में रुचि लेते हैं। पता • केशरीमल चम्पालाल पाटनी ,वस्त्र विक्रेता पदनगंज किशनगढ़ (अजमेर) श्री चांदमल बज देशी औषधियों के विक्रेता श्री चांदमल जी बज समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । आपका म जन्म पौष सुदी 6 संवत् 1970 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप आयुर्वेदिक - व्यवसाय में चले गये । संवत 1995 में आपका विवाह मोहन देवी के साथ संपन्न हुआ जिनका अभी 10 वर्ष पूर्व देहान्त हो चुका है । आपके पिताजी श्री राजमल जी बज एवं माताजी एजनबाई का काफी समय पूर्व स्वर्गवास हो गया था। बज साहब शान्त प्रकृति के सज्जन हैं । आप दूनी में महावीर निकेतन का निर्माण करा - चुके हैं तथा केकड़ी अस्पताल में एक कमरे के निर्माण का यशस्वी कार्य किया है। पता- राजमल चांदमल बज देशी दवाईयों के विक्रेता लक्ष्मीगंज, केकड़ो श्री छीतरमल दोशी सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहने वाले श्री छीतरमल जी दोशी का जन्म जेठ बुदी 4 संवत् 1969 को हुआ था । सामान्य शिक्षा मारवाड़ी महाजनी पढ़ कर आप कार्य क्षेत्र में उत्तर गये तथा आदत का कार्य करने लगे । आपके पिता श्री फतेहलाल दोशी एवं माता श्रीमती सुन्दर बाई का आपको मार्गदर्शन मिला । आपके दो भाई मदनलाल एवं ताराचंद हैं । आपकी धर्मपत्नी अनोपदेवी धर्मपरायण महिला हैं। आप दो पुत्रों नोरतनमल एवं माणकचंद दोशी के यशस्वी पिता हैं। आपकी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृति रही है तथा मंदिर सरावगी मोहल्ला में सर्वधातु की सफेद सिलवर की शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की है। नया धड़ा पंचायत की नशियां जी में जैन भवन का निर्माण कार्य अपने स्वयं की देखरेख में करवाया है। अजमेर समाज के वयोवृद्ध सज्जन हैं । समाज सेवा की प्रेरणा देते रहते हैं। पता- दोशी धवन, सरावगी मोहल्ला, अजमेर । Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /479 श्री जतनलाल गदिया गदिया गोत्रीय श्री जतनलाल जी का जन्म संवत् 1981 के आसोज महिने में हुआ। आपके माता-पिता का बहुत पहिले. स्वर्गवास हो गया था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्यापार की ओर कदम रखा और आढ़त का कार्य करने लगे। संवत् 1998 में आषाढ सुदी) को आपका भंवरीदेवी से विवाह हुआ। गदिया जी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं । सन् 1963 में ब,जिनेन्द्र वर्णी जी के सानिध्य में नसौराबाद में तीन लोक मंडल विधान कराया था। नगर की सभी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग से उपकृत करते रहते हैं। स्वाध्याय में रुचि रखते हैं। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। पता : घीसालाल जतनलाल गदिया नसीराबाद (अजमेर) श्री टीकमचंद पाटनी सादा जीवन, शुद्ध आचार विचार रखने वाले श्री टीकमचंद पाटनी अजमेर के सामाजिक क्षेत्र में अपना विशेष स्थान रखते हैं। आपका 27 नवम्बर, 1944 में जन्म हुआ। बी.एस.सी.(प्रथम वर्ष) एवं मेडिकल में तीन वर्ष तक अध्ययन करने के पश्चात् आप बिजली के सामान का व्यवसाय एवं कॉन्ट्रेक्टरशिप करने लगे और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की । आपके पिताजी श्री मांगीलाल जी पाटनी का स्वर्गवास 1950 में हो गया । माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है । 23 मई 165 को आप मुत्रादेवी के साथ विवाह सूत्र में बंधे । वर्तमान में आप चार पुत्रियों एवं एक पुत्र दीपक के यशस्वी पिता हैं। आपने 20 वर्ष की आयु से ही शुद्ध खानपान का नियम ले रखा है । प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं तथा मुनिराजों की सेत्रा में तत्पर रहते हैं । आप दि.जैन आलनियावास नागौर दि.बैन चैत्यालय धड़ा पंचायत अजमेर के मंत्री हैं । दि. जैन महासमित्ति अजमेर के सदस्य हैं । दि. जैन महावीर छात्रावास समिति के मंत्री हैं । सन् 1981 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर कलश लिया तथा जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति में आर्थिक सहयोग दिया। आपके दो बड़े भाई भी शांतिलाल जी 51 वर्ष एवं कुंतीलाल जी 48 वर्ष ईचलकरणजी (महाराष्ट्र) में वस्त्र उद्योग एवं बिल्डिंग ठेकेदारी का कार्य करते हैं। ईचलकरणजी में जो मंदिर बन रहा है उसमें अजमेर के हाथीभाटा के मंदिर से प्रतिमा भेजी गई है। पाटनी जी आतिथ्य प्रेमी हैं। व्यवहारकुशल एवं सबको यथेष्ट सहयोग देते रहते हैं। पता: श्री महावीर इलेक्ट्रिक एंड जनरल स्टोर,21 खाई लैण्ड, अजमेर श्री त्रिलोकचन्द सौगानी अजमेर के श्री त्रिलोकचंद सौगानी का जन्म कार्तिक बुदी ) संवत् 1989 के शुभ दिन हुआ । आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी का करीब 23-24 वर्ष पहिले ही स्वर्गवास हो चुका है । माताजी की छत्रछाया प्राप्त है । आपका विवाह नरकल देवी के साथ दि. 22 जून 1953 को तदनुसार ज्येष्ठ शुक्ला ।) को संपन्न हुआ। आप दोनों पति पत्नी पांच पुत्रियां निर्मला, मुशीला, उर्मिला,मंजृ एवं रिंकू तथा दो पुत्र राजेन्द्रकुमार एवं पदमकुमार से गौरवान्वित हैं। श्री सौगानी जी तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। साधुओं एवं मुनिराजों के कट्टर भक्त हैं। उनकी संवा सुश्रुपा में आनन्द मानते हैं। विधान एवं रथयात्रा में बोलियाँ लेते रहते हैं । पता :: रंग महल,नशियों के सामने,अजमेर Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 480/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री दीपचंद चौथरी स्व.श्री रिखवचन्द चौधरी के सुपुत्र श्री दीपचंद जी चौधरी मदनगंज किशनगढ समाज के प्रतिष्ठित सज्जन हैं । आपके पूर्वज सांपर से सिवनी गये और फिर वहां से किशनगढ़ आये । आपका जन्म मंगसिर सुदी 10 संवत् 1985 को हुआ । सेन्ट जोन्स कॉलेज आगरा से इन्टरमीजियेट पास करने के पश्चात् आप व्यवसाय की ओर मुड़ गये एवं सावन निर्माण का कार्य करने लगे । सन् 1948 को 1 जून को आपका सोनी देवी से विवाह हुआ और उनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र सी.ए. हैं। चौधरी जी युवा समाजसेवी हैं। आदिनाथ दि. जैन तेरह पंथ पंचायत मंदिर के निर्माण में पूरा सहयोग दिया है। इस मंदिर के आप प्रारंभ से ही सक्रिय सदस्य रहे हैं 1 चौधरी जी सन् 1966 से 68 तक नगर पार्षद भी रह चुके हैं । पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनकर प्रतिष्ठा में सहयोग दिया तथा महोत्सव के मंत्री के पद पर कार्य किया । दि. जैन संगीत मंडल के पहिले मंत्री रहे वर्तमान में इसके अध्यक्ष हैं। धार्मिक जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करने का नियम है । मुनि भक्त हैं । आचार्य विद्यासागर जी की प्रतिवर्ष वंदना करने जाते हैं। शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों को आहार देने में रुचि लेते हैं। पता: हीरा सोप वर्क्स ,मदनगंज किशनगढ़ पं. दीपचन्द छाबड़ा विधि विधानों को संपन्न कराने में दक्ष पं.दीपचन्द छावड़ा का जीवन भी विविधताओं से ओतप्रोत है । आपका जन्म 5 जुलाई सन 1951 को हुआ। आपके पिताजी श्री लादूलाल । जी छाबड़ा का स्वर्गवास आपके विवाह के तीन महिने तीन दिन बाद ही हो गया । आपकी माताजी की अभी छत्रछाया प्राप्त है। सन् 1982 में 27 जून 82 को आपका विवाह श्रीमती मंजू के साथ संपन्न हुआ । वर्तमान में आपको तीन पुत्रों के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है। छाबड़ा जी अच्छे पंडित हैं । प्रवचन करते हैं। शिक्षण शिविरों के आयोजनों में रुचि लेते हैं । इम्फाल,तिनसुकिया एवं कलकत्ता की सामाजिक पाठशालाओं में पढ़ा चुके हैं । लेख . . वगैरह भी लिखते रहते हैं। पता- श्री दीपचन्द छाबड़ा पोस्ट नांदसी वाया धिनाय जिला-अजमेर T . .. Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री धर्मचंद मोदी ब्यावर नगर के सामाजिक एवं राजनैतिक दोनों ही क्षेत्रों में श्री धर्मचंद जो मोदी का विशिष्ट स्थान है। मोदी जी ब्यावर नगर परिषद् के सन् 1953 से 58 तक मेम्बर रहे तथा ब्यावर काँप्रेस कमेटी के 15 वर्ष से भी अधिक समय तक अध्यक्ष रहे। अजमेर जिला काँग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष तथा अजमेर देहात जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष रहे हैं। राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /481 मोदी जी भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव ब्यावर समिति के अध्यक्ष, ब्यावर में महावीर कीर्ति स्तम्भ निर्माण समिति के सेक्रेट्री, जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति राज के संयोजक, महासभा की राजस्थान शाखा के महामंत्री तथा प्रबन्धकारिणी कमेटी के 360 वर्ष से लगातार सदस्य, नगर कौमी एकता समिति के सदस्य रह चुके हैं । के संचालक मोदी जी सहकारी होलसेल उपभोक्ता भंडार के क्ष एवं संत भूधाई दिन हैं । भारत जैन महामंडल के उपाध्यक्ष है। मोदी जी का जन्म 12 सितम्बर 24 को हुआ। आपके माता-पिता श्री मोतीलाल एवं श्रीमती चांदकेशरवाई का बहुत पहले देहान्त हो गया। आपने सन् 1941 में इन्टर किया। सन् 1941 में आपका विवाह सुश्री आनी देवी से हुआ 1 उनसे आपको दो पुत्र सुरेन्द्रकुमार एवं देवेन्द्रकुमार तथा तीन पुत्रियों स्नेलता, शशि एवं प्रभा के पिता बनने का सौभाग्य मिला । श्री सुरेन्द्र कुमार बी. कॉम. है तथा बैंक सर्विस में है। आपके तीन पुत्र हैं। देवेन्द्रकुमार स्वयं का ही व्यवसाय करते हैं। आपकी पत्नी त्रिशला एम.ए. है। I आप पंचकल्याणक महोत्सव नीमाज के सेक्रेट्री रहे । आपने नशियां में कमरा, फर्श एवं चित्रकारी करवाई तथा पिताजी ने चांदी की गंध कुटी बनवाकर भेंट की। मोदी जी लेखक भी हैं और जैन पत्र पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित होते रहते हैं । मोदी जी कट्टर मुनिभक्त हैं। पत्नी के शुद्धखानपान का नियम है। मुनियों को आहार देने में रूचि लेती है। मोदी जी खण्डेलवाल जैन हैं तथा सौगानी उनका गोत्र है । पता- सरावगी मोहल्ला, ब्यावर श्री निहालचन्द्र अजमेरा सरवाड़ निवासी श्री निहालचन्द अजमेरा का जन्म 23 जुलाई सन् 1953 को हुआ । मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् सर्राफी के व्यवसाय में पिताजी श्री नेमीचन्द जी अजमेरा को सहयोग देने लगे । श्री अजमेरा जी की समाज सेवा में विशेष रुचि है। पीड़ितों एवं शोषितों को सहायता करना अपना कर्तव्य समझते हैं। आपके पिताश्री ने अनेक धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहयोग प्रदान किया है । स्थानीय आदिनाथ के मंदिर में कमरों का निर्माण करवाया है। सरवाड़ के तीनों मंदिरों में सिद्ध भगवान की मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाकर विराजमान किया । पता:- अजमेरा आभूषण भंडार, सदर बाजार, सरबाड, अजमेर । Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 482/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री नेमीचंद रांवका ब्यावर के श्री नेमीचंद जी रावका समाज सेवा में आगे रहने वाले व्यक्ति है । आपका जन्म श्रावण सुदी 5 संवत् 197] को हुआ था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप कपड़े का व्यवसाय करने लगे। संवत् 1905 में आपका विवाह सुश्री सुगनदेवी से हुआ। आपको एक पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आपके पिताजी ने छावनी के मंदिर में गुम्बज का निर्माण कराया था। आप दि.जैन पंचायत के 3 वर्ष तक अध्यक्ष रहे । ऐलक पन्नालाल दि.जैन विद्यालय के गत 35 वर्षों से कोषाध्यक्ष हैं । ब्यावर में कपड़े के प्रमुख व्यवसायी हैं। ___ श्री राबका जी के एक मात्र पुत्र शम्भुकुमार बी कॉम. एल.एल.बो. हैं। उनका जन्म 18-11-57 का हुआ। विवाह 12-12-77 को श्रीमती स्नेहलता के साथ संपन्न हुआ। आपने भी विवाह के पश्चात बी.ए. किया है । आपकी चारों पुत्रियों का विवाह हो चुका है | आपकी दूसरी पुत्री श्रीमती कोकिला सेठी एम.ए., पी.एच ड़ी. हैं तथा वीर बालिका विद्यालय में प्राध्यापिका हैं। पता:-डिग्गी मोहल्ला,रांवका भवन, ब्यावर श्री पदमचन्द गंगवाल श्री भूरामल गंगवाल के सुपुत्र श्री पदमचन्द गंगवाल सामाजिक व्यक्ति हैं तथा 30 वर्ष पूर्व चौरु (फागी) से आकर अजमरे रहने लगे हैं। समाजिक कार्य करने में आगे रहते हैं तथा मुनिराजों की सेवा करने में खूब रुचि लेते हैं । दि.जैन औषधालय चौरु की कार्यकारणी सदस्य हैं । दि.जैन धर्मसागर पाठशाला के कोषाध्यक्ष हैं । दि.जैन महासमिति से जुड़े हुये हैं। आपका विवाह सन् 1956 में सुश्री राजकंवर के साथ हुआ ! जिनसे आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी बच्चे अध्ययन कर रहे हैं । गोटा का व्यवसाय करते हैं। अच्छे उत्साही युवक हैं । पता: श्री पार्श्वनाथ गोटा भंडार, गोल प्याऊ,नया बाजार, अजमेर श्री पन्नालाल पहाड़िया पहाड़िया गोत्रीय श्री पन्नालाल जी मदनगंज किशनगढ में मिष्ठान्न निर्माता हैं । उनका जन्म भादवा सुदी १ संवत् 1977 को हुआ जब आप तीन वर्ष के शिशु थे तभी आपके पिताजी श्री लादूलाल जी चल बसे । आपके लालनपालर का पूरा भार माताजी श्रीमती झमकूबाई पर आ गया । माता जी का अभी वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है । एक मई 1945 को आपका विवाह ज्ञानवती से हुआ जिससे आपको पांच पुत्र एवं पांच पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । आपके पांच पुत्रों में तीसरे पुत्र सुशील कुमारगोद चले गये शेष चार पुत्र निहालचंद, 'यजेशचन्द, राकेश एव चन्द्रमोहन आपके साथ ही कार्य करते हैं। सभी पुत्रियों का विवाह हो चुका है। Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज/483 पहाड़िया जी उदार स्वभाव के श्रेष्ठी हैं । तिलक नगर जयपुर के मंदिर निर्माण, में पांचवा के दि. जैन औषधालय में आर्थिक सहयोग दिया है । नसीराबाद वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव में आपके पुत्र द्वारा पूर्ति विराजमान की गई । आपके पुत्र निहालचन्द की बीमारों की सेवा करने में गहन रुचि रहती है। पता: भंवरलाल पन्नालाल पहाड़िया मदनगंज किशनगढ़ अजमरे श्री प्रकाशचन्द कटारिया स्व.श्री सुवालाल जी कटारिया के सुपुत्र श्री प्रकाशचन्द जी कटारिया युवा समाजसेवी :हैं । आपका जन्म 19 मई 1933 को हुआ। सन् 1949 में इन्टरमीजियेट करने के पश्चात् आप । व्यावसायिक क्षेत्र में चले गये । जेष्ठ बुदी ५ संवत् 2009 को आपका विवाह सुश्री रतनदेवी .. के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको एक पुत्र सुनीलकुमार । एवं तीन पुत्रियों, उर्मिला, संगीता एवं सीमा के पिता बनने .. का सौभाग्य प्रापा : ६.1 मार्ग को अके मता का एवं 20 नवम्बर 1977 को आपकी माताजी का देहान्त हो गया। आपके अतिरिक्त आपसे छोटे तीन भाई शिखरचंद,सुभाषचंद एवं निर्मलकुमार और हैं जो आपके साथ ही व्यवसाय कर रहे हैं। प्रकाशचन्द जी उदार स्वभाव के हैं। बघेरा में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में धर्मपत्नी के साथ आप भी इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित श्रीमती प्रकाश चन्द्जी कटारिया पता- नेमीचन्द सुवालाल कटारिया केकडी 1 श्री प्यारेलाल अजमेरा श्री अजमेरा जी मूलत: राजमहल (टौंक) के रहने वाले हैं। वहां से अजमेर आकर व्यवसाय करने लगे। फाल्गुण बुदी 14 संवत् 1967 को आपका जन्म हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वस्त्र व्यवसाय में लग गये । संवत् 19132 में आपका पानबाई के साथ विवाह हुआ जिनका सन् 1982 में स्वर्गवास हो गया। ___आपके चार पुत्र हैं । तेजमल जी एवं गुलाबचंद जी कपड़े का व्यवसाय करते हैं। शांतिलाल जी सलमा सतारा का व्यवसाय करते हैं तथा प्रेमचन्द बैंक सर्विस में हैं ! श्री प्यारेलाल जी धार्मिक प्रवृत्ति के बयोवृद्ध सज्जन हैं । आपके पुत्र तेजमल जी ने राजमहल में वेदी का निर्माण करवाकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान की है। छोटे धड़े की नशियां में भी आपने एक कमरे का निर्माण करवाया है। पता : मकान नं.425, आगरा रोड,अजमेर । हो चुके है। Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 484/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री भंवरलाल सोनी शान्तिप्रिय जीवन बिताने वाले श्री भंवरलाल सोनी नसीराबाद जैन समाज के अच्छे समाजसेवी हैं कांग्रेस के कर्मठ सदस्य हैं तथा कन्टोनमेन्ट बोर्ड के सन् 1966 से 69 तक सदस्य रह चुके हैं । सामाजिक कार्यों के लिये स्वयं भी रुचि लेते हैं तथा दूसरे कार्यकर्ताओं को भी । सहयोग देते हैं। आपका सन् 1925 में जन्म हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने आढत का कार्य प्रारंभ कर दिया। आपके पिताजी श्री पांचूलाल जी का सन् 1969 में एवं माताजी फलादेवी का इसके एक वर्ष पूर्व सन 1968 में स्वर्गवास हो गया । संवत् 2000 में आपका विवाह कंचनबाई के साथ हुआ। लेकिन पत्नी भी चार पुत्र एवं पांच पुत्रियों को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई । वर्तमान में सोनी साहब स्वाध्याय में अधिक रुचि लेते हैं। पता : पांचूलाल भंवालान स्टेशन रोड नगीगाद मानने श्री बाबूलाल छाबड़ा सभी तरह के बीमाओं के अधिकृत एजेन्ट श्री बाबूलाल छाबड़ा का जन्म 15 नवम्बर 1949 को हुआ। आपने बी.कॉम.किया और सेलटेक्स इनकमटैक्स का कार्य करने लगे। आप के पिताजी, का नाम श्री भंवरलाल जी है तथा माता का नाम श्रीमती सोहनी बाई है। दोनों ही का स्वर्गवास हो गया है। श्री छाबड़ा जी युवा समाजसेवो हैं । शान्त स्वभाव के व्यक्ति हैं । एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता है। पता : कार्यालय - बाबूलाल जैन एडवोकेट,नया बाजार, अजमेर निवास - L-8, सागर विहार कॉलोनी वैशाली नगर, अजमेर श्री बोदूलाल गंगवाल सिद्धान्त पंथों के अध्येता एवं प्रवचन कर्ता श्री वोदूलाल जी गंगवाल कितने ही वर्षों से जैन ग्रंथों का गंभौर अध्ययन कर रहे हैं । मंगसिर सुदी 1। संवत् 1983 को आपका जन्म हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और फिर पावरलूम उद्योग में लग गये। सन् 1944 की 11 मार्च को आपका विवाह हुआ। आपकी धर्मपत्नी बच्छौदेवी पुत्र एवं तीन पुत्रियों की जननी है। आपके पत्रों में प्रकाशचन्द एवं निर्मल कुमार बैंक अधिकारी हैं तथा शेष चारों पत्र प्रेमचन्द. हुकमचन्दरमेशचन्द एवं सुमेरचन्द पावर लूम का कार्य करते हैं। तीनों पुत्रियों कपा, गोरा एवं रेखा का विवाह हो चुका है। Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /485 गंगवाल साहब किशनगढ़ पंचकल्याणक महोत्सव 1979 में ऐशान इन्द्र का पद प्राप्त कर चुके हैं । दि.जैन तेरहपंथ पंचायत के मंत्री एवं कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हैं । दि.जैन आदिनाथ मंदिर में प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन करते हैं । स्वयं की अच्छी लायबेरी है जिसमें 300 से अधिक पुस्तकें हैं । मुनिभक्त हैं । आचार्य ज्ञानसागर एवं धर्मसागर जी के प्रति आपकी गली आस्था रही है। पता - बोदूलाल प्रेमचन्द जैन, सुमेर टैक्सटाइल, __ सिटी रोड,मदनगंज किशनगढ़ (अजमेर) श्री भंवरलाल जी सौगानी श्री भंवरलाल जो सौगानी एवं उनका परिवार त्र्यावर का विशिष्ट शिक्षित परिवार है । आपका जन्म संवत् 1960 के चैत्र मास में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप हिसाब का कार्य करने लगे। सन् 192A) में आपका विवाह धापू बाई के साथ संपन्न हुआ । आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन आपकी पत्नी का करीब 27 वर्ष पूर्व ही देहान्त हो गया। इससे आपका जीवन स्वाध्यायशील बन गया। श्री कैलाशचन्द जी सौगानी आपके सबसे बड़े पुत्र हैं। आपका जन्म 13 मार्च 20 को हुआ। बीकॉम, (1947) एल.एल.बी (1953) एवं सन् 1967 में एफ.सी.ए.की । इसके पूर्व सन् 1943 में आपका विवाह सुश्री रत्नारानी से हो गया । ब्यावर की कृष्णा मल में लेबर आफीसर के पद पर कार्य किया तथा मिल के कार्य से यूरोप अमेरिका आदि देशों में जा चुके हैं। विगत 8 वर्षों से आप कृष्णा मिल के सेक्रेट्री हैं। आप दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं । भरतकुमार बीई है एवं स्वर्ण पदक विजेता हैं । जापान में 6 महिने रहकर आये हैं। दूसरे पुत्र शैलेश जी बी.ए.एल.एल.बो. हैं । दोनों पुत्रियां शैलबाला एवं शशि बी.ए. है । दूसरे पुत्र प्रेमचंद जी नेशनल इन्शोरेन्स कम्पनी चण्डीगढ़ में डिवीजनल मैनेजर हैं । तीसरे पुत्र अनूपचंद जी असिस्टेन्ट डाइरेक्टर सांख्यिकी विभाग देहली में कार्यरत हैं। इस प्रकार सौगानी जी का पूरा परिवार सुशिक्षित एवं धार्मिक विचारों से सुसम्पत्र हैं । पता : 35, चम्मा नगर, ब्यावर । श्री भागचन्द पाटनी जैन गुड्स ट्रांसपोर्ट कम्पनो नसीराबाद के प्रोप्राइटर श्री भागचन्द जी पाटनी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं । आपका जन्म सन् 1930 में हुआ था । इन्टर साइन्स से करने के पश्चात् आप ट्रांसपोर्ट कम्पनी का व्यवसाय करने लगे। Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 486/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 6 फरवरी सन् 1951 में आपका विवाह श्रीमती रतनमाला देवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। सर्व श्री अशोक कुमार,कमल कुमार, अरुण कुमार एवं धर्मेन्द्र कुमार सभी ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में लगे हुये हैं। इनके पास व्यक्तिगत गाडियां (सभी प्रकार की) हैं व जैन गुड्स ट्रांसपोर्ट कं./राजस्थान रोड लाइंस/हेमा ट्रेडिंग कम्पनी व विभिन्न अन्य फर्मों के तहत कार्य करते हैं। पाटनी जी ने अपना सन् 1951 से 1956 तक का जीवन एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया। इसके पश्चात् ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में चले गये । आप प्रातः एवं सायं शालों का स्वाध्याय सामूहिक रूप से करते हैं । जिसने स्वाध्याय शाला का रूप ले रखा है । इसके अतिरिक्त आप 24 घंटों के दौरान 5-6 घंटे नियमित रूप से सामायिक करते हैं। आप सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि रखते हैं व इसे अपना प्रथम कर्तव्य समझते हैं । इसके अतिरिक्त आप नसीराबाद नगर विकास समिति,नसीराबाद के अध्यक्ष पद पर रहते हुये राज. सरकार व नसीराबाद नागरिकों के सहयोग से अस्पताल का निर्माण करा चुके हैं । आप नसीराबाद जैन समाज के अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। आप मुनि भक्त है,आहार आदि से मुनि भक्ति करते रहते हैं, यात्रा प्रेमी हैं । आप सार्बजनिक संस्थाओं को भी आर्थिक सहयोग से उपकृत करते रहते हैं। पता : जैन गुडस् ट्रांसपोर्ट कम्पनी, फ्रामजी चौक,नसीराबादा श्री मदनलाल गंगवाल मदनगंज किशनगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री मदनलाल जी गंगवाल का सर्राफा व्यवसाय में उल्लेखनीय स्थान है । धार्मिक एवं सामाजिक सभी गतिविधियों में आप खूब रुचि लेते हैं । मदनगंज में आयोजित मुनिसुव्रत नाथ पंचकल्याणक महोत्सव में आप पति-पत्नी इन्द्र एवं इन्द्राणी पद से सुशोभित हुये थे । राजास (शाहपुरा) में वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव पर मंदिर के द्वार खोलने की बोली ली थी। मुनिसुव्रतनाथ दि. जैन मंदिर एवं धर्मसागर विद्यालय को कार्यकारिणी के सदस्य । आपका जन्म फाल्गुण सुदो संवत 1984 रविवार को हुआ । आपके पिताजी श्री सूरजमल जी गंगवाल दूसरे प्रतिमाधारी थे । संवत् 2024 में इनका स्वर्गवास हो गया । आपकी माताजी श्री स्वर्गवासी हो गई हैं। आपका विवाह संवत 2006) में प्यारीदेवी के साथ संपन्न हुआ। आप धार्मिक स्त्र भाइ की महिला है। व्रत उपवास करने में आगे रहती हैं। आप दोनों को पत्र सभापचंद (चीकॉम 1-774) अशोक, कमल एवं विजय (एम.कांग) नशा ( भुत्रियों सुमति, "या, मंतोष उपा, चमन एवं अलका के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्रीमती घेवरी देवी Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /487 गंगवाल साहब मदनगंज सर्राफा संघ के मंत्री एवं अध्यक्ष रह चुके हैं। तीर्थयात्रा प्रेमी है। धार्मिक आयोजनों में आर्थिक सहयोग करते रहते हैं। शुद्ध खानपान का नियम है। मुनि भक्त हैं। मुनिराजों को आहार आदि से सेवा करते रहते हैं। आतिथ्य प्रेमी हैं। लूणवा अतिशय क्षेत्र में भोजन व्यवस्था के स्थायी सदस्य हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर मुनि संघ की सेवा करने का पूरा भार आप पर ही था। आपके पूर्वजों की पीढी निम्न प्रकार है सूरतराम घासीराम चौथमल सूरजमल (1948) स्वरूपचंद, मदनलाल, नरेश चन्द्र (1990) जेठ बुदी 2 बृहस्पतिवार) फाल्गुण सुदी 6 संवत 1984 रविवार जेष्ठ सुदी 6 संवत् 1976 पता :- मदनलाल सुभाषचंद गंगवाल सर्राफ, मदनगंज किशनगढ़ (अजमेर) श्री महेन्द्रकुमार कासलीवाल समाजसेवी श्री महेन्द्रकुमार कासलीवाल का जन्म सन् 1934 में हुआ था। आपके पिता श्री मोहनलाल जी कासलीवाल का 16 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है । माताजी श्रीमती बसंती बाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त हैं। मैट्रिक पास करने के पञ्चात् आपने आढत का थोक का कार्य प्रारंभ कर दिया और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की । संवत् 20011 में आपका विवाह बुद्धिमति के साथ संपन्न हुआ । आप दोनों को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता पिता बनने का सौभाग्य मिला। मनोजकुमार ने एम.ए. पास किया। विवाहित है। पत्नी का नाम उषा है जो एक बेबी की मम्मी हैं। छोटे पुत्र शैलेश ने बी. कॉम. कर लिया है। श्री महेन्द्रकुमार जी श्री छोगालाल मोतीलाल के परिवार में से हैं जो अपने समय के काटन किंग थे। जिनका पंचायती मंदिर के पंचकल्याणक महोत्सव पर आते समय धडा में ट्रेन से एक्सीडेन्ट होने से निधन हो गया। सारे देश में आपकी ख्याति थो । श्री कासलीवाल जी दि. जैन पंचायत के पंच रहे थे। मारवाड़ी दि. जैन पंचायत के आप अध्यक्ष हैं इसके पूर्व आपके पिताजी साहब अध्यक्ष थे। पूरा परिवार मुनिभक्त है। माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है। आपके छोटे भाई नरेन्द्र कुमार 50 वर्ष के हैं । विवाहित हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। बड़े लड़के शरद कासलीवाल एण्ड कम्पनी में कार्य करते हैं। पता : महेन्द्र एण्ड कम्पनी, अपसेन बाजार, ब्यावर Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 488/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री माथोलाल गदिया नसीराबाद के प्रमुख समाज सेवियों में श्री पाघोलाल गदिया का प्रमुख स्थान है । दिगम्बर जैन बड़ा धड़ा पंचायत के कोषाध्यक्ष हैं । श्रावण सुदी 10 संवत् 1969 को आएका जन्म हुआ। आपकी माताजी मांगीबाई एवं पिताजी चांदमल जी दोनों का ही स्वर्गवास हो गया। अष्टम कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात सर्राफी की लाइन में चले गये और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की । संवत् 1987 में आपका विवाह हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मनोरमा देवी पांच पुत्रों की जननी हैं । पांचों ही पुत्र अपना-अपना स्वतंत्र व्यवसाय कर रहे हैं । बड़े पुत्र भागचन्द एल.आई.सी.में दूसरा पुत्र प्रकाशचन्द व्यापारिक स्कूल नसीराबाद में,तृतीय पुत्र कुन्तीलाल दुकान पर बैठते हैं,चतुर्थ पुत्र कन्या हितकारिणी विद्यालय नसीराबाद एवं पंचम पुत्र रूपचन्द बिजली का कार्य करते हैं। श्री कुन्तीलाल का विवाह सन् 1959 में सोहन देवी के साथ हुआ था । आप सर्राफा संघ जयपुर के सदस्य हैं । पता :- चांदमल माथोलाल जैन सर्राफ,नसीराबाद । श्री माणकचन्द्र गंगवाल युवा समाजसेवी श्री माणकचन्द जी गंगवाल मदनगंज किशनगढ जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। उनकी आवाज समाज में सुनी जाती है तथा सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं । सन् 1946 में श्री गंगवाल का जन्म हुआ। हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की और पैट्रोलियम प्रोडक्ट्स का व्यवसाय करने लगे। सन् 1966 में 20 वर्ष की आयु में आपका विवाह मीठडो (नागौर) की लाडकंवर से हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र अनिल कुमार एवं सुनील कुमार तथा चार पुत्रियां मंजू, संजू,सुमन एवं अन्जू की प्राप्ति हुई : आपके पिताजी श्री भागीरथ जी गंगवाल को बोलियां लेने का बहुत चाव था। 21 दिसम्बर 1985 को 72 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया । आपकी माताजी श्रीमती धापूदेवी आपके साथ रहती हैं। आप धार्मिक प्रकृति के सज्जन हैं। अपने गांव करेल करा में मंदिर का जीणोद्धार करवाकर मेला भरवाया था। सामाजिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं। बीस पंथ पंचायत की कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य, धर्मसागर विद्यालय के उपाध्यक्ष जैन वीर संगीत मंडल के उपाध्यक्ष एवं मार्बल एसोसियेशन मदनगंज के अध्यक्ष रह चुके हैं। पता : अनिल कुमार सुनील कुमार जैन रूप नगर रोड,मदनगंज किशनगड श्री माणकचंद ठोलिया निमाज (पाली) के मूल निवासी श्री कन्हैयालाल ठोलिया के पुत्र श्री माणकचंद ठोलिया केकडी के प्रतिष्ठित समाजसेवी माने जाते हैं। आपका जन्म आसीज बटी14.संवत 1990 को हुआ था । आपके जन्म के । वर्ष पश्चात आपके पिताजी चल बसे लेकिन माताजी कस्तूरबाई का देहान्त अभी संवत् 1931 में हुआ है | Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /489 आपने हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की और सर्राफी के व्यवसाय में चले गये। संवत् 2007 में आपका शांतिदेवी के साथ विवाह हुआ। आपको दो पुत्र श्री प्रकाशचंद एवं कमलकुमार तथा चार पुत्रियां पुष्पा, मंजू, ललिता एवं कुसुमलता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। चारों पुत्रियां एवं एक पुत्र का विवाह हो चुका है। ठोलिया जो धार्मिक विचारों से ओतप्रोत हैं। स्वभाव से उदार एवं मधुर भाषी हैं। बघेरा में आयोजित पंचकल्याणक में आप दोनों इन्द्र इन्द्राणी पद से सुशोभित हुये थे। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं तथा सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। मुनिभक्त हैं तथा मुनिराजों को आहार देकर पुण्य लाभ लेते रहते हैं। पता :- माणकचंद प्रकाशचंद जैन सर्राफ, केकड़ी (अजमेर) श्री माणकचंद सौगानी श्री सौगानी अजमेर के वयोवृद्ध राष्ट्रीय नेता हैं। विगत 40 वर्षों से वे सक्रिय राजनीति में हैं तथा ऊंचे पद पर कार्य कर चुके हैं। 29 दिसम्बर सन् 1909 को आपका जन्म हुआ। बी. कॉम., एल. एल. बी. किया। पहिले बीमा विभाग में रेल्वे एवं शिक्षा लाइन में रहने के पश्चात् सन् 1946 से वकालत के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने लगे। सन् 1927 में आपका मोतीबाई से विवाह हुआ और आपको पांच पुत्र श्री विनयचन्द, प्रफुल्लचंद, सुरेशचंद, जिनेश एवं सुधीर एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आपके सभी पुत्र एडवोकेट हैं और आप ही के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। आपके एक पुत्र जिनेश का भारत पूर्व गृहमंत्री की पुत्री से विवाह हुआ है। सौगानी जी के जीवन की उपलब्धियां एक नहीं अनेक है। अजमेर नगर पालिका के तीन बार सदस्य रहे तथा उसके दो बार अध्यक्ष रहे । सन् 1972 77 वस्थान विधान के सन् 1 से 84 तक यू.आई.टी. के अध्यक्ष रह चुके हैं। अजमेर नगर कांग्रेस (आई) के अध्यक्ष रहे। महात्मा गांधी एवं जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में रहे। एक बार अजमेर में जब गांधी जी आये तो वे आपके ही घर ठहरे थे । सौगानी जी सामाजिक क्षेत्र में भी छाये रहे। जैन औषधालय के पहिले अध्यक्ष एवं वर्तमान में संरक्षक हैं। बड़ा धड़ा मंदिर के 10 वर्ष तक अध्यक्ष रहे। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण शताब्दी समारोह के सक्रिय कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी रहे। सन् 1981 में भगवान बाहुबलि महामस्तकाभिषेक समारोह में अजमेर से श्रवणबेलगोला तक स्पेशल ट्रेन के संरक्षक रहे । राजस्थान विधानसभा में पशुबलि निरोधक बिल पास कराने में सक्रिय योगदान दिया। टैक्स बार ऐसोसियेशन के सक्रिय सदस्य रहे । पता : सौगानी भवन, अजमेर । श्री माणकचंद सोनी केकड़ी के प्रसिद्ध समाजसेवी श्री माणकचंद जी सोनी विशाल व्यक्तित्व के धनी है। आपका जन्म पौष बुदी 2 संवत् 1980 को हुआ। आपके पिताजी श्री समीरमल जी का (संवत् 1990 में ही) स्वर्गवास हो गया तथा माताजी श्रीमती दाखादेवी भी संवत् 2025 में स्वर्ग सिधार गई। आपने प्रारंभिक शिक्षा केकड़ी में दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय में फिर पं. मूलचंद जी Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 490/ जैन समाज का वृहद इतिहास शास्त्री के पास शास्त्री प्रथम खंड तक अध्ययन किया फिर हुकमचंद जैन संस्कृत महाविद्यालय इन्दौर में वाराणसी की शासी परीक्षा पास किया। यहां पर पं.बंशीधर जी शास्त्री गुरुजी थे। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् 5 वर्ष तक दि.जैन विद्यालय केकड़ी में प्रधानाध्यापक रहे और उसके पश्चात् सर्राफी के व्यवसाय में चले गये । आपका विवाह संवत 17 में शांतिदेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको सात पुत्र एवं दो पुत्रियां के पिता बनने का गौरव प्राप्त हुआ। सोनी जी पुण्यशाली व्यक्ति हैं । दि.जैन संस्था केकड़ी के सन् 1975 से ही महामंत्री हैं । श्री मुनिसुब्रतनाथ दि.जैन मंदिर के अध्यक्ष,श्री शांतिनाथ दि.जैन अ.क्षेत्र बघेरा के सन् 1982 से महामंत्री हैं। सभी तीर्थों की दो बार यात्रा कर चुके हैं। केकड़ी के सभी सामाजिक कार्यों में रुचि पूर्वक भाग लेते हैं। आपने अपने परिश्रम एवं लगन से अपनी पोजीशन बनाई है | आपके पूर्वजों ने 150 वर्ष पूर्व केकड़ो में मुनिसुव्रतनाथ स्वामी के मंदिर का निर्माण कराया था। आपके पूर्वज पहिले सरवाड़ में थे फिर 200 वर्ष से केकड़ी में रह रहे हैं। 1. श्री कैलाशचन्द्र आपके ज्येष्ठ पुत्र हैं । 26 अप्रैल 44 को जन्में आपने 1953 में संस्कृत में प्रथमा परीक्षा पास की। सन् 1960 में तारादेवी के साथ विवाह हुआ। आप पांच पुत्रों से अलंकृत हैं । युवा समाजसेवी, मधुरभाषी व्यवहार कुशल, समाज की उत्सव कमेटी के अध्यच,बघेरा अ.क्षेत्र के सहायक मंत्री,सर्राफा संघ के मंत्री, राजस्थान सर्राफा संघ की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। 2. श्री पदपकुमार - शिक्षा हायर सैकण्डरी,व्यवसाय कृषि एवं सर्राफा विवाह - 1965 । पत्नी सुलोचना, दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता । 3. श्री महेन्द्र कुमार - शिक्षा-हायर सैकण्डरी, कृषि एवं सर्राफा का कार्य, 1968 में विवाहित, पत्नी चन्द्रकान्ता, दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता । 4-श्री सुरेन्द्रकुमार -एम.ए.बी.एस.सी,कृषि एवं व्यवसाय । सन् 1971 में सुलोचना से विवाह, दो पुत्र एवं दो पुत्रियों से गौरवान्वित । 5. श्री नरेन्द्रकुमार - बी.एस.सी.(कृषि) बैंक सर्विस,सन् 1974 में श्रीमती शकुन्तला देवी से विवाह । तीन पुत्रों के पिता । 6- श्री राजेन्द्र कुमार - बी.कॉम, व्यापार करते हैं,सन् 1978 में आभा देवी के साथ विवाह हुआ। दो पुत्रों के पिता है। 7. श्री धीरेन्द्र कुमार - बी.कॉम, बैंक सर्विस, सन 1986 में श्रीमती रेखादेवी से विवाह हुआ। एक पुत्री एवं एक पुत्र से गौरवान्वित । सभी पुत्र एवं पौत्र आपके आज्ञाकारी एवं विनय संपन्न हैं । पता - माणकचंद कैलाशचंद सोनी,घंटाघर के पास.केकड़ी Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 491 श्री मूलचन्द लुहाड़िया कर्म ही जीवन है, जिसका मुख्य उद्देश्य है । प्रखर प्रवक्ता धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था, लेखनी के धनी श्री मूलचन्द लुहाड़िया का जन्म 2 दिसम्बर 1929 को हुआ ! आपको जन्म स्थली व्यावसायिक स्थल से कुछ दूर नरायना जिला जयपुर) है । आपके पिताजी श्री सुवालाल जी एवं माताजी श्रीमदी केवलदेवी के नाम से विख्यात हैं । आपके पिताजी का सन् 1965 में 7 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। माताजी (93 वर्ष) की छत्रछाया अभी प्राप्त है सन् 1948 में आपने इन्टरमीडीयेट किया । सन् 1949 में आपने श्रीमती जीवन देवी के साथ विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया । श्रीमतो जीवन देवी भी आपके ही अनुरूप सरल स्वभाव एवं धर्म के प्रति आस्था वाली हैं । श्रीमती जीवन देवी से आपको तीन पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता होने का गौरव प्राप्त है । आपके तीनों पुत्रों अशोक कुमार, अनिल कुमार एवं अतुल कुमार ने सी.ए. किया है और आपके साथ कार्यरत हैं। सभी पुत्र पुत्रियों के विवाह हो चुके हैं। शुरू से ही कर्म को महत्व देने वाले श्री मूलचंद जी ने अपना व्यापार स्थल मदनगंज-किशनगढ बनाया। टैक्सटाइल व्यापार एवं गवर्नमेन्ट कान्ट्रेक्टर बनकर पूर्ण सफलता प्राप्त की है। व्यापार में भी आप एक सफल व्यापारी हैं । श्री लुहाड़िया जी का जैन समाज में विशेष स्थान है। इस समय आप श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन तेरापंथ पंचायत किशनगढ़ के अध्यक्ष भी हैं । लेख लिखने,कविता लिखने एवं ग्रन्थों का शोध करने में आपकी विशेष रुचि है । मदनगंज में श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन पंच कल्याणक महोत्सव हुआ उस समय आप महामंत्री के पद पर रहे । पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को महोत्सव श्रीमती बीवनदेवो में लाने एवं महोत्सव के सभी कार्यक्रमों में भाग लेकर महोत्सव की सफलता एवं उसी महोत्सव में भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् की सभा आयोजित कराने का श्रेय आपको ही है । आचार्य श्री ज्ञानसागर जी एवं आचार्य श्री विद्यासागर जो दोनों में ही आपकी भक्ति है, स्वाध्याय के प्रति आपकी गहरी रुचि है । प्रायः घंटों एकान्त में बैठकर स्वाध्याय किया करते हैं। श्री लुहाड़िया जी उदार स्वभाव के व्यक्ति हैं । शिथिलाचर के विरोधी हैं । अभी आपने मदनगंज-किशनगढ में आयोजित पंच कल्याणक के अवसर पर पूज्य आचार्य विद्यासागर जी द्वारा दिये गये प्रवचनों का एक संकलन प्रकाशित कराया है जो "प्रवचन पंचामृत के नाम से है। पता : लुहाड़िया सदन,जयपुर रोड,मदनगंज-किशनगढ (अजमेर) श्री मूलचंद सौगानी अजमेर के जैन समाज में लोकप्रिय एवं कर्मठ समाजसेवी श्री मूलचंद सौगाती का जन्म कार्तिक शक्ता पंचमी संवत 1981 को हआ। इंटरमीजियेट परीक्षा पास करने के पश्चात् । रेल्वे में सर्विस करने लगे। वहां से रिटायर होने के पश्चात् आटोमोबाइल्स का व्यवसाय प्रारंभ । कर दिया । आपके पिताजी श्री बालचन्द जी एवं माताजी श्रीमती गुमानबाई दोनों का स्वर्गवास , Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 492/ जैन समाज का वृहद् इतिहास हो चुका है। आपकी पत्नी का नाम चमेली बाई है। आपके तीन पुत्र- कमलकुमार एम.ए,विमलकुमार एम.ए.एवं सुनीलकुमार वाणिज्य स्नातक दो पुत्रियां ताराबाई एवं मोनिका बाई हैं । सौगानीजी अच्छे कार्यकर्ता है । ये स्थानीय श्री जैन औषधालय,जैन रात्रि पाठशाला एवं दि.जैन उदासीनाश्रम के मंत्री रह चुके हैं। भावान महावीर के परिनिर्वाण के 2500 वें समारोह में संयुक्त मंत्री का कार्य सफलता पूर्वक संपादन किया । इस कारण साहू श्री शांति प्रसाद जी द्वारा जयपुर में आपको स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। सन् 1959 में 800 यात्रियों को स्पेशल ट्रेन द्वारा शिखर जी एवं उत्तर भारत के तीर्थ स्थल की यात्रा करवाई। 1962 में 150 यात्रियों को भी गिरनार जी एवं अन्य तीर्थों करवाई एवं सन 1967 में दक्षिण भारत के बाहबली के कलशाभिषेक महोत्सव पर 200 यात्रियों को लेकर रेल द्वारा संघ निकाला। 1981 में भगवान बाहुबली के सहस्त्राब्दि समारोह में 800 यात्रियों को लेकर अजमेर से स्पेशल ट्रेन द्वारा संघ चलाया । ये सभी संघ यात्रायें बिना किसी लाभ के केवलहेका पद से आयोजित की गई। मनमें जैन धुलोक भावास समस्या हेतु एक गृह निर्माण सहकारी समिति का गठन कर श्री ऋषभ कालोनी बनवाने का प्रयास मंडी की हैसियत से कर रहे हैं : योजना शीघ्र ही पूरी होगी। इसके अतिरिक्त गत 40 वर्षों में भारत के सभी क्षेत्रों को वंदना बींसों बार कर चुके हैं। पता:- जैन मंदिर के पास, डिग्गी बाजार,अजमेर श्री मोहनलाल कटारिया केकड़ी का कटारिया परिवार प्रसिद्ध परिवार है जो केकड़ी के अतिरिक्त जयपुर,देहली, कानपुर, निवाई आदि स्थानों में फैला हुआ है। उसी परिवार में संवत् 1984 में जन्मे श्री मोहनलाल जी कटारिया समाज के प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आपके पिता श्री कस्तूरमल जी 1943-2017 संवत् एवं माताजी भूराबाई का देहान्त हो गया है। आपने संस्कृत कालेज वाराणसी की प्रथमा,महासभा परीक्षालय की विशारद पास की और फिर अपने व्यवसाय में लग गये । आपका विवाह चेत्र बुदी । संवत् 20-40 में शांति बाई के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवं दस पुत्रियों के पिता बनने का सौभाय प्राप्त हुआ । आपकी सभी पुत्रियाँ सुशिक्षित हैं तथा बी.ए. पास हैं। कटारिया जी समाजिक कार्यों में पूरा भाग लेते हैं । दि.जैन समाज केकड़ी के अध्यक्ष हैं । दि. जैन अ. क्षेत्र बघेरा के भी अध्यक्ष हैं। उसके पंचकल्याणक के अवसर पर महोत्सव कमेटी के उपाध्यक्ष थे तथा व्यवस्था में पूर्ण सहयोग दिया था। नगरपालिका केकड़ी के पांच वर्ष तक सदस्य रह चुके हैं। आध्यात्मिक चर्चाओं एवं प्रवचन में गहरी रुचि लेते हैं। पता : मोहनलाल कटारिया एंड कम्पनी ,केकड़ी श्री पं. रतनलाल कटारिया जैन साहित्य के समालोचक, लेखक, सम्पादक एवं अन्वेषक पं.रतनलाल जी कटारिया केकड़ी के प्रसिद्ध विद्वान हैं। आपके पिताजी श्री मिलापचंद जी कटारिया की अपने युग के वेदी प्रतिष्ठा एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराने वाले पंडितों में गिनती थी । उन्होंने करीब 20 वेदी प्रतिष्ठा एवं 3-4 पंचकल्याणक प्रतिष्ठार्ये कराई होंगी । उनकी जैन विवाह विधि से विवाह Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /493 कराने में बहुत रुचि थी। करीब 100 से अधिक विवाह कराये होंगे। 50 से भी अधिक वर्षों तक शास्त्र प्रवचन किया । 40 वर्ष तक दि.जैन संस्थाओं के महामंत्री रहे तथा दि.जैन सरस्वती पवन केकड़ी के आजीवन अध्यक्ष रहे। पं. मिलापचंद जी के पूर्वज 150 वर्ष पूर्व हाडोती से केकड़ी आये थे। ऐसे पंडित जी के सुपुत्र पं. रतनलाल जी कटारिया का जन्म भादवा सुदी 5 सं. 1986 में हुआ। आपने वाराणसी से मध्यमा परीक्षा पास की और फिर पंडिताई के स्थान पर सर्राफी एवं व्यापार करने लगे । संवत् 2005 में आपका विवाह सुठिया देवी के साथ संपन्न हुआ। आपको दो पुत्र विनयकुमार एवं सुदर्शनकुमार एवं दो पुत्रियां कुसुम एवं रेणु के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। दोनों पुत्रों का विवाह हो चुका है । विनयबाबू के दो पुत्र एवं सुदर्शन के एक पुत्री है। श्री रतनलाल जी कटारिया अच्छे लेखक है। अब तक जैन निबंध रलावली, पद्मावती पूजा मिथ्यात्व है,जैन धर्म में रात्रि भोजन निषेध शासन देव पूजा रहस्य,सम्यक पूजा विधि,स्वी प्रक्षाल निषेध जैसी सामाजिक पुस्तकों के लेखक एवं प्रकाशक हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक आपके 125 निबन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। 20 वर्ष की अवस्था से ही आप लेखन का कार्य कर रहे हैं। कटारिया सामाजिक व्यक्ति हैं । केकड़ी एवं बघेरा पंचकल्याणकों में इन्द इन्द्राणी के पद को सुशोभित कर चुके हैं। पता- मैसर्स मिलापचंद रतनलाल कटारिया,केकड़ी अजमेर श्री रतनलाल कटारिया टोडारायसिंह के कटारिया परिवार में आसोज सुदी 10 संवत् 1972 में जन्में श्री रतनलाल जी कटारिया की धार्मिक एवं सामाजिक सेवाएं उल्लेखनीय हैं । उन्होंने समय-समय । पर अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं में कई पदों पर कार्य किया है। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप थोक वस व्यवसाय का कार्य करने लगे। आपका दूसरा विवाह श्रीमती कमला देवी से हुआ । आपको तीन पुत्रों एवं तोन पुत्रियों के पिता एवं छ: पौत्र एवं एक पौत्री के दादा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । 44 वर्षीय श्री स्वरूपचन्द ज्येष्ठ पुत्र हैं, धर्म पली श्रीमती कान्ता देवी तीन पुत्रों की माता हैं । दूसरे पुत्र श्री सुभाषचन्द 34 वर्षीय एम.काम.हैं धर्म पत्नी उषा बी.ए. है तथा दो पुत्रों से अलंकृत हैं 1 तीसरे पुत्र शान्तिलाल एम काम, एल.एल.बी. हैं,श्रीमती किरण धर्मपत्नी है एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत हैं। कटारियाजी दिगम्बर जैन पंचायत के अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष पद पर अनेक वर्षों तक रहे हैं । धार्मिक विचारों के तथा नित्य नियम करने वाले हैं,दोनों समय सुबह शाम भगवान के दर्शन करते हैं । मुनिभक्त एवं आर्षमार्गी हैं। आचार्य ज्ञानसागर ग्रन्थमाला के कोषाध्यक्ष हैं,जयोदय महाकाव्य, वीरोदय काव्य सुदर्शनोदय आदि मन्थों के प्रकाशक पता : दुकानः गणेशीलाल रतनलाल कटारिया, 36, महावीर बाजार व्यावर. 305901 फोन निवास : 20377 दुकान : 22377 निवास :. कटारिया भवन, डिागी मौहल्ला, ब्यावर - 305001 Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 494/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रतनलाल गंगवाल ___ केकड़ी नगर परिषद् के तीन वर्ष तक सदस्य रहने वाले श्री रतनलाल गंगवाल समाज । के वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । संवत् 1980 में जन्मे श्री गंगवाल ने सामान्य शिक्षा प्राप्त की और फिर व्यवसाय की ओर मुड़ गये। वर्तमान में आप रोड कन्ट्रक्टर का कार्य करते हैं । आपका सन् 1942 में कमला देवी जी के साथ विवाह हुआ जिनसे आपको पांच पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ज्येष्ठ पुत्र सुरेशचन्द जी आपके साथ ही ठेकेदारी का कार्य करते हैं। द्वितीय पुत्र रमेशचन्द जी सिंचाई विभाग में अभियंता है। सबसे छोटे पुत्र जितेन्द्र सी.ए. आपके पिताजी श्री चांदमल जी ने केकड़ी में सिद्धचक्र मंडल विधान कराया था तथा एक सिद्ध भगवान की प्रतिमा शांतिनाथ स्वामी के मंदिर में विराजमान की थी । यात्राओं के प्रेमी हैं । पता : रतनलाल रमेशचन्द जैन,ठेकेदार, केकड़ी (अजमेर) श्री रतनलाल बाकलीवाल लदेरा वाले मदनगंज किशनगढ़ की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये श्री रतनलाल जो बाकलीवाल का समाज में महत्वपूर्ण स्थान है आपके पूर्वच संदेश धाम से मनजिकिदानमद सागर जी महाराज में व्यवसाय के लिये आकर रहने लगे और वहीं के निवासी बन गये । आपका शुद्ध धार्मिक जीवन है । विगत 35 वर्षों से शुद्ध खानपान का नियम है । कट्टर मुनि भक्त हैं । मुनिराजों को आहार देकर पुण्य लाभ लेते हैं। प्रतिवर्ष साधुओं के संधों में 1-2 महिने के लिये जाते हैं। प्रतिदिन पूजा अभिषेक करने का नियम है । बाकलीवाल जी का सामाजिक जीवन भी उल्लेखनीय है । पंच कल्याणक महोत्सव के आप स्वागताध्यक्ष थे । के डी. जैन हायर सैकण्डरी विद्यालय के गत 35 वर्षों से कोषाध्यक्ष हैं तथा मुनिसुव्रत दि.जैन चैत्यालय पंचायत के भी कोषाध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में इसी समाज के अध्यक्ष हैं । सन् 1984 में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्रों की बोलियां लेकर अपनी धार्मिक भावना प्रकट की। आपके पूर्वजों ने लदेरा प्राम में दि.जैन मंदिर का निर्माण कराया था। मदनगंज में स्थित मुनिसुव्रतनाथ चैत्यालय में आदिनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। वहां के जैन भवन में एक कमरे का निर्माण करवाया । आपका जन्म आषाढ़ सुदी 10 संवत् 1985 को हुआ। आपके पिताजी श्री वीझालाल जी का स्वर्गवास 12 दिसम्बर 1988 को एवं माताजी नारंगीदेवी का सन् 1979 में स्वर्गवास हो चुका है। संवत् 2007 में आपका विवाह हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती जानकीदेवी के 4 पुत्र कैलाशचन्द्र,रमेशचंद,प्रदीप एवं दिनेश तश्या चार पुत्रियां संतोष निर्मला, पुष्पा, राजू की जननी है। सभी पुत्र व्यवसाय में लगे हुये हैं । सभी पुत्रियों का विवाह हो दुका है । Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /495 पारसमल बाकलीवाल आपके छोटे भाई है। सन् 1961 में पढ़ाई छोड़कर व्यापार करने लगे। सन् 1962 में शकुन्तला देवी के साथ विवाह हुआ। आप भी अशोक,सुनील,संजय नाम के तीन पुत्र एवं चन्द्रकान्ता नामक एक पुत्रो से अलंकृत हैं। मदनगंज व्यापार मंडल के मंत्री हैं। नगर परिषद के सन् 1970 से 73 तक सदस्य रहे । किशनगढ़ बी.जे.पी के अध्यक्ष रह चुके है। वर्तमान में जिला कार्यकारिणी के सदस्य हैं । प्रगतिशील युवक संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं । धार्मिक परोपकारिणी संघ के 5 वर्ष तक महामंत्री रहे हैं। अभी इसी संस्था के उपाध्यक्ष हैं। रेल्वे सलाहकार समिति के जयपुर डिवीजन के सदस्य रहे हैं। वर्तमान में किशनगढ़ नगर परिषद के चेयरमैन हैं। किशनगढ कषि उपज मंडी समिति के सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी हैं। इसी प्रकार नगर एवं समाज की कई संस्थाओं में पदाधिकारी के रूप में सेवा कार्य कर रहे हैं। श्री राजकुमार दोशी युवा पत्रकार श्री राजकुमार दोशी का जन्म 24 नवम्बर 1948 को हुआ। बी.काम.पास करने के पश्चात् आप पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने लगे। राजस्थान सरकार द्वारा विगत 10-11 वर्षों से आप स्वीकृत पत्रकार हैं । आपके पिताजी स्व.हुकमचन्द जी दोशी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । माता का नाम चम्पाबाई है । श्री दोशी का विवाह शकुन्तला देवी के साथ संपन्न हुआ। आप दानों दो पुत्र राकेश दोशी एवं दिलोप एवं एक पुत्र प्रालि दोशी से गौरवान्वित हैं। श्री राजकुमार जी से समाज को एवं पत्रकार जगत को बहुत आशायें हैं । पता - राजकुमार दोशी,नया बाजार,अजमेर श्री विनयचन्द्र सौगानी अजमेर के प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेताश्री माणकचन्द सौगानी के सुपुत्र श्री विनयचन्द्र सौगानी नगर के प्रमुख एडवोकेट माने जाते हैं । वे नगर की अनेक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। श्री दिगम्बर जैन समाज बड़ा धड़ा बाबाजी का मन्दिर, के वे अध्यक्ष हैं। नगरपालिका के सदस्य तथा पालिका की वित्त समिति के अध्यक्ष रहे । लायन्सक्लब,अजमेर से जिला-323 ई.के प्रान्तपाल रहे। तीन बार विदेश भ्रमण कर चुके हैं। सन 1970 में यूरोप,सन् 1972 में नेपाल एवं सन् 198) में अमेरिका,कनाडा,फ्रान्स आदि जा चुके हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के युवा समाजसेवी हैं। प्रतिदिन दर्शन करने का नियम है । महावीर इन्टरनेशनल अजमेर शाखा के अध्यक्ष हैं। आप अब तक 40 बार रक्तदान कर चुके हैं। आपका जन्म 26 सितम्बर,1937 को हुआ । बीकाम, एलएल.बी. करने के पश्चात् आप वकालत के क्षेत्र में उतरे और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की । आपका विवाह दिनांक 7 फरवरी 1958 को स्व. नानूलाल जो लुहाड़िया की पुत्री शकुन्तला के साथ हुआ। आपको एक पुत्री कविता एवं दो पुत्र दीपक सौगानी एवं संजीव सौगाती के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दीपक सौगाती एम.बी.बी.एस., एम.डी. डाक्टर हैं तथा संजीव सौगानी बी.ए.एल.एल.बी. एवं सी.ए. हैं । पता- विनय शकुन,गोखले मार्ग,अजमेर Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 496/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री शांतिलाल कासलीवाल सामाजिक कार्यकर्ता श्री शांतिलाल जी कासलीवाल को सरवाड अजमेर की समाज में उल्लेखनीय स्थान प्राप्त है । आपका जन्म 10 दिसम्बर सन् 1925 को हुआ। अष्टम कक्षा पास करने के पश्चात् राज्य सेवा में चले गये तथा वहां से सेवा निवृत्त होने के पश्चात् अपने आपको धर्मायतनों की व्यवस्था में लगा दिया तथा समाज सेवा में समर्पित कर दिया। आपने स्थानीय धार्मिक एवं सामाजिक सम्पत्ति के एकीकरण में विशेष योगदान दिया। साथ ही में यहां के चन्द्रप्रभु मंदिर की वेदी प्रतिष्ठा में प्रशंसनीय योगदान देकर उसे सफल बनाया। पता : श्री शांतिलाल कासलीवाल, नगरपालिका के सामने,सदर बाजार, सरवाड़ (अजमेर) श्री शांतिलाल बड़जात्या श्री शांतिलाल जी बड़जात्या भारतवर्षीय दि. जैन महासभा की राजस्थान शाखा के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। इसलिए वे अजमेर एवं राजस्थान को समाज नीति से ऊपर उठकर भारतीय स्तर के नेता बन गये हैं । आपका जन्म कार्तिक बुदी 7 संवत् 19x) को हुआ। आपके पिताजी श्री रिखबदास जी का संवत् 2026 कार्तिक बुदी2 को स्वर्गवास हुआ । माताजी श्रीमती गटूदेवी की छत्रछाया अभी मिल रही है । संवत् 2008 में आपका विवाह गुमानमल जी काला की सुपुत्री बसन्ती देवी के साथ हुआ। आपको तीन पुत्र पवन, अनिल एवं अजित तथा तीन पुत्रियों पुष्पलता, अनिता एवं प्रियदर्शनी के पिता होने का सौभाग्य मिल चुका है। तीनों ही पुत्रियों का विवाह हो चुका है। बड़जात्या जी साड़ी निर्माता एवं विक्रेता हैं । अजमेर में ऋषभ साड़ी सेन्टर के नाम से व्यवसाय करते हैं। अजमेर के अतिरिक्त कलकत्ता में भी रिखबदास कैलाशचंद फर्म है। आपके छोटे भाई श्री कैलाश बड़जात्या एम.कॉम. एल.एलबी हैं तथा सीकर के दीवान श्रीचंद जी की सपत्री कनकमा श्री बड़जात्या जी का बहु आयामी व्यक्तित्व है । धार्मिक दृष्टि से वे कट्टर मुनि भक्त हैं । आहार आदि देकर अपने को कृतार्थ मानते हैं। देव शास्त्र गुरु की भक्ति में समर्पित रहते हैं। कोठिया भीलवाड़ा में संवत् 1920 में वेदी की प्रतिष्ठा करा चुके . आपको जब से महासभा का प्रचार मंत्री बनाया गया है उन्होंने अपना अधिकांश समय महासभा को समर्पित कर रखा है तथा समाज में महासभा को अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाने के लिये प्रयलशील रहते हैं। आप अच्छे वक्ता हैं तथा आलंकारिक भाषा में अपना भाषण देते हैं । श्रोताओं को प्रसन्न रखते हैं। पता : सरावगी मोहल्ला,अजमेर। Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजस्थान प्रदेश का जैन समाज/497 श्री शिखरचन्द सोनी अजमेर की सभी संस्थाओं से जुड़े हुये एवं मुमुक्षु मंडन के सक्रिय कार्यकर्ता श्री शिखरचन्द सोनो का जन्म भादवा बुदी पंचमी संवत् 1970 को हुआ । सन् 1954 में मैट्रिक किया और राजकीय सेवा में चले गये । 28 वर्ष तक सर्विस करने के पश्चात वहां से सेवानिवृत्त हो गये। सन 1936 में आपका कमलाबाई से विवाह हुआ लेकिन पत्नी का सख भी आपको नहीं मिल सका और 24 वर्ष पहिले उसका भी स्वर्गवास हो गया । आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है । पुत्र त्रिलोकचन्द सोनी एल.आई.सी. में कार्यरत हैं। सोनी जी तेरहपंथी धड़े के सदस्य हैं । आपने सेठ साहब के मंदिरामहा पूज्य जिनालय) में सुपार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी । आपको भगवान महावीर के 25000 वें निर्वाण महोत्सव पर अजमेर संभाग की ओर से प्रमाण-पत्र मिला था । सिद्धचक्र मंडल बिधान तीन लोक मंडल विधान एवं दो बार वृहद रथयात्रा का आयोजन किया गया। तीन बार सम्पूर्ण देश की यात्रा कर चुके हैं। शिखर जी को सात बार यात्रा की है । 24 वर्ष तक रत्नत्रय व्रत किया जिसके समापन पर अजमेर जैन समाज की ओर से आपका अभिनंदन किया गया । पता : रंग महल,नशियों के सामने अजमेर । श्री श्रीपाल कटारिया कटारिया परिवार में स्व. मिश्रीलाल जी कटारिया के सुपुत्र श्री श्रीपाल जी कटारिया समाज के प्रमुख समाजसेवियों में गिने जाते हैं । कटारिया जी का जन्म ज्येष्ठ बुद्दो १ संवत् 200] को हुआ । मंगसिर बुदी 9 सं. 2032 दि. 19 नवम्बर 65 को आपका विवाह विजयरानी इन्दौर के नन्दलाल जी सोनी की सुपुत्री के साथ संपन्न हुआ | आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य मिला । विवाह के पांच वर्ष पश्चात् पिताजी का स्वर्गवास हो गया। कटारिया जी धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति हैं : बघेरा के पंचकल्याणक में आप अपनी धर्मपत्नी के साथ सौधर्म इन्द्र एवं इन्द्राणी के पद को सुशाभित कर चुके हैं। आपके पिताजी श्री मिश्रीलाल जी बघेरा अतिशय क्षेत्र के 11 वर्ष तक अध्यक्ष रहे तथा आपकी अध्यक्षता में मंदिर, धर्मशाला माणक शिक्षा के निर्माण का कार्य संपत्र हुआ। वे केकड़ी जैन समाज के भी 20 वर्षे तक अध्यक्ष रहे। श्री श्रीपाल जो कटारिया वर्तमान में शांतिनाथ जी जैन मंदिर केकड़ी के अध्यक्ष हैं । इसके पूर्व आपके पिताजी जोवन पर्यन्त अध्यक्ष रहे। पता : कस्तूरमल जी मिश्रीलाल जी कटारिया केकड़ी Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 498/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री सुजानमल जैन (गोधा) धर्मपरायण पंडित श्री सुगनचंद जी गोधा के सुपौत्र एवं श्री मालाल जी चाक सुविधिसागर जी म्हार सुपुत्र श्री सुजानमल गोधा दबंग व्यक्तित्व के साथ-साथ स्पष्टवादिता के लिये जैन समाज में विशेष स्थान रखते हैं। आपक जन्म 14 अप्रैल, 19३) को सरवाड़ में हुआ । किशोरावस्था में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे । सन 1944 में श्री गोकुलभाई भट्ट से किशनगढ़ में छात्र कांग्रेस की स्थापना कराई । राष्ट्रीय एवं प्रगतिशील विचारों के कारण अनेक सार्वजनिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं में अप्रणी रहे । । नवम्बर, 1919 से 31 अक्टूबर, 1983 तक राज्य सेवा में रहे । तत्पश्चात् वकालत करने लगे। सन् 1957 में आपका विवाह सुश्री कमला देवी के साथ संपन्न हुआ । श्रीमती कमला जैन भी प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। आपके एक मात्र दुध श्री अश्विनी कुमार बी काय करके राज्य सेवा में चले गये । पुत्री रेणु का विवाह जयपुर सुसंपन्न घराने में हुआ है | दादाजी के धार्मिक विचारों से सुसंस्कृत श्री गोधा जी ने दिगम्बर जैन मंदिरों की संपत्ति का एकीकरण कर पंजीकृत प्रन्यास के अधीन मुव्यवस्थित किया। प्रख्यात श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सरवाड़ के अध्यक्ष के रूप में आपने नोन शिखरयुक्तः ५:-य एवं विशान मंदिर निर्माण की महती विशाल योजना का बीड़ा उठाय हैं और निर्माण कार्य प्रारंभ करा दिया है। गत वर्ष आपने अथक परिश्रम करके श्री गदिनाथ बाजार का निर्माण कराया था। अन्य मंदिरों के जीर्णोद्धार हेतु प्रयासरत हैं। भारतवर्णय दिगम्बर जैन ती क्षेत्र कमेटी बंबई तथा खण्डेलवाल दि. जैन मामूहिक विवाह समिति के सदस्य हैं साथ ही अनेक सामाजिक एवं सार्वजनिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं : राजकीय सेवा में रहते हुये आपने पीड़ित एवं शोषित मानव समाज की मार्पित गय में सेवा की है : पगा :- मु.पो. सरबइ जिला अजमेर श्री स्वरूपचंद कासलीवाल अपर को विभिन्न गग्धः ओं से जुड़े हुये श्री स्वरूपचंद जी कासलीवाल सामाजिक गतिविधियों के केन्द्र पनजान है. दिसायत चैत्यालय धडा.महावीर जैन पुस्तकालय एवं अजगर नगर जिला कांग्रेस आई वार्ड .1.के अघ अध्यक्ष हैं । भादि जैन महासभा एवं दि.जैन सभा अजये के कोपाध्यक्ष हैं। दि जैन समिति दि.जैन सहायक फंड,दि.जैन मुनि संघ सेवा समिति के संयोजक हैं तथा अन्जमेर नगर जिला कांग्रेस कमेटो प्रबन्धकारिणी के सदस्य व कोपाध्यक्ष हैं। आपका दि.9 जुलाई 1.9.१५ को अजमेर में जन्म हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और फिर रेशन सूर,नाईलान बदला गोटा का व्यवसाय करने लग गये । मंगसिर सुदी अष्टमी संवत् 2005 में आपका विवाह प. पन्नालाल जी सोनी ब्यावर को पुत्री विद्यावती के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का गौरत प्राप्त हुआ । यो पुत्र अशोककुमए एवं सबसे छोटे पुत्र राजकुमार बादला गोटा फैक्ट्री संभालते हैं । राजेन्द्रकुमार ठेकेदारी करते हैं तथा प्रदीपकुमार बैंक मनिस में हैं : बड़ी पुत्र चन्द्रलेखा एम.ए, एल एल बी है तथा दूसरी पुत्री चित्रलेखा भी एम.ए. है । Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज 1499 दोनों का विवाह हो चुका है। आपकी एक पुत्रवधू श्रीमती फूलकंवर सावित्री गर्ल्स कॉलेज में इतिहास की प्राध्यापिका है तथा दूसरी पुत्रवधू कामिनी देवी एम.ए. अंग्रेजो हैं । तीसरी सपना देवी संस्कृत में एम.ए. हैं । कासलीवाल जी के बड़े भाई तो चंद जो लीव एवं मोगली गाव एवं शरमाई दो बहिने हैं। आप कट्टर मुनिभक्त हैं । आर्षमार्गी है तथा अजमेर के समाज में प्रमुख स्थान रखते हैं। __पत्ता : माणकचंद स्वरूपचंद गोटे नाले,नया बाजार,अजमेर फोन नं 20994 - 21217 - 30994 अध्यक्ष श्री दि. जैन विद्यालय समिति उपाध्यक्ष - श्री दि. जैन मंदिर खंडेला विकास समिति -खंडेला निरीक्षक - श्री धर्मार्थ कमेटी कुत्ताशाला, अजमेर । प्रबंधक सदस्य : श्री पुष्कर आदि गोशाला अजमेर आचार्य विद्यासागर जो को मुनिदीक्षा व उपाध्याय भरत सागर जी को क्षुल्लक दीक्षा व आचार्य धर्मसागर जी महाराज, पू . ज्ञानसागर जी महाराज के चातुर्मासों आदि में मंत्री, संयोजक के रूप में योगदान रहा है । बाहर से कोई भी संस्था के प्रतिनिधि, विद्वान आदि चन्दे आदि के लिये आते हैं उनको समाज से चन्दा इकट्ठा करा देते श्री हजारीलाल सोनी श्री हजारीलाल जी सोनी कभी भी निष्क्रिय होकर नहीं बैठने वाले व्यक्ति हैं । कभी व्यवसाय, कभी देशान्तर भ्रमण, कभी यात्रा और कभी पदमपुरा क्षेत्र के दर्शन करने में गहरी रुचि है । जब मी अजमेर से जयपुर आना हो तो पदमपुरा जाकर पदमप्रभु के दर्शन करने अवश्य जाते हैं फिर चाहे कितना ही काम बिगहे अथवा तबियत खराब हो। ऐसे गतिशील रहने वाले श्री हजारीलाल जी सोनी का जन्म भादबा सुदी 5 संवत् 1972 को हुआ। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल जी सप्तम प्रतिमाघारी थे । वे सरसेठ भागचंदजी के मुनीम थे । उनका 31-12-80 को स्वर्गवास हो गया। आपकी माताजी का तो बहुत पहिले ही वियोग हो गया . था। सामान्य अध्ययन करने के पश्चात् आप मकानों की दलाली करने लगे जिसमें आपको बहुत सफलता मिली । आपका विवाह चांददेवी जी के साथ संवत् 1997 में हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री राजकुमार एम.कॉम है तथा बैंक सर्विस में हैं । छोटे पुत्र विजयकुमार सी.ए. हैं वी के.सोनी एण्ड के.के नाम का स्वयं का प्रतिष्ठान है । आपको सबसे बड़ी पुत्री श्रीमती मुन्नीदेवो जयपुर में महिला बागृति संघ की मंत्री हैं । शेष दोनों पुत्रियां मोना एवं कमलेश भी एम.ए. हैं । Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 500/ जैन समाज का वृद्ध इतिहास सोनी जी पक्के मुनिभक्त हैं। मुनियों को आहार देते रहते हैं। पदमपुरा में दो बार सिद्धचक्र विधान करा चुके हैं। एक बार सेठ जी की नशियां अजमेर में तेरह द्वीप मंडल विधान कराया था। अपने आमगांव से दो मूर्तियां लाकर अजमेर चैत्यालय में विराजमान की थी। पता : भोजनशाला बिल्डिंग, सेठ जी की नशियों के सामने, अजमेर। श्री हरकचन्द सौगानी खीरिया नसीराबाद के निवासी श्री हरकचन्द जी सौगानी समाज के उत्साही कार्यकर्ता हैं। आपका जन्म सन् 1921 में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त की तथा किंगणा एवं लेनदेन का कार्य प्रारंभ कर दिया। सन् 1938 में आपका मनोहरदेवी के साथ विवाह हुआ । जिनसे आपको पांच पुत्र भंवरलाल, महावीर प्रसाद, नेमीचन्द, ज्ञानचन्द्र, सुभाषचन्द तथा पांच पुत्रियां कमला. विमला, शान्ता, मैना एवं इंदिरा के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी पुत्र एवं पुत्रियों का विवाह हो चुका है। आपके तीन पुत्र भंवरलाल, महावीर प्रसाद तथा सुभाष चन्द इचलकरण जी में पावरलूम एवं प्रिंटिंग का कार्य करते हैं। सौगानी जी रात्रि में जल भी नहीं लेते है संगीतज्ञ है। दूसरे कवियों के भजनों के अतरिक्त अब तक स्वयं न भी 500 से अधिक भजन एवं गीत बना लिये है। आपके पुत्र भंवरलाल जो भी आपकी तरह धार्मिक विचारों के व्यांत हैं। नोट खोरिया गाव में 8 जैन परिवार हैं जिनमें 7 सौगानी परिवार हैं । - पता : मु.पो. खोरिया वाया नसीराबाद (अजमेर) श्री हेमराज बड़जात्या, अजमेर जन्म : नसीराबाद के निकट ढाल ग्राम में चैत्र कृष्णा भं. 1977 को जन्म हुआ । शिक्षा : सामान्य हिन्दी, अंग्रेजी माताजी श्रीमती नोरती बाई पिताजी : श्री चांदमल जी बड़जात्या (दोनों ही का स्वर्गवास हो चुका है 15 साल की उम्र में ही अजमेर गोद आ चुके थे तब से अजमेर हीं में हैं । हाल ग्राम में एक दिगम्बर जैन मन्दिर भी है। समाज के चार घर भी हैं। व्यवसाय : अजमेर लोढा स्टेट में कैशीयर व बिल्डिंग सुपरवाईजर की पोस्ट पर 50 साल से कार्यरत हैं । विवाह : संवत् 1997 में श्रीमती सुन्दर बाई से अजमेर में ही हुआ। सन्तान एक दत्तक पुत्र गोद के रूप में लिया है जिसका नाम विशालबन्द है । 1 Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात्विकता: आप मुनि चार्या में सदा लीन रहने से शुद्ध भोजन ही करते हैं। धार्मिक प्रवृत्ति: आपने 1008 श्री ऋषभदेव की प्रतिमा जी की प्रतिष्ठा कराकर वेदी का निर्माण तथा चैत्यालय मन्दिर जी अजमेर में विराजमान की। श्री छोटे घड़े की नशियां जो में श्री धर्मसागर वृति आश्रम में एक कमरे का निर्माण कराया। अपनी जन्म स्थली ढाल ग्राम के जिन मन्दिर जी का भी जीर्णोद्धार कराया । राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /501 मुनिचर्या: आचार्य पू. शिवसागर जी, आचार्य महावीरकीर्ति जी, आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य ज्ञानसागर जी, आचार्य देशभूषण जी आर्यिका ज्ञानमती माताजी, आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी आदि संघों की वय्यावृत्ति व आहार व्यवस्था में सदैव अग्रणी रहे हैं। यात्रा : भारत के प्रायः सभी नीर्थ क्षेत्र अतिशय क्षेत्रों की बन्दना कर चुके हैं। तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की 18-20 दफा यात्रा कर चुके हैं। विशेष रुचि : धर्मपत्नी सहित 50-55 वर्षों से निरन्तर रोजाना पूजा अभिषेक करते रहे हैं। मुनि चार्या, यात्रा, कबूतरों को दाना, औषधि वितरण की विशेष रुचि रहती है । आज भी कोई त्यागी आ जाता है तो उसके लिये भोजन आहार व्यवस्था करने में विलम्ब नहीं करते हैं। पता बड़जात्या भवन, सब्जीमंडी, आगरा गेट के सामने, अजमेर। 000 Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 502/ जैन समाज का वृहद् इतिहास बिहार प्रदेश का जैन समाज I बिहार प्रदेश को भगवान महावीर की जन्मस्थली, साधना भूमि एवं निर्वाण भूमि रहने का सौभाग्य प्राप्त है । बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि सम्मेदाचल भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावा, अहिंसा और अनेकान्त की उद्घोषणा स्थली राजगृही की पहाड़ियां इसी प्रदेश में विद्यमान हैं जिनकी बन्दना के लिये सारा जैन समाज यहां आने में अपने को सौभाग्यशाली मानता है। यही नहीं भगवान पार्श्वनाथ ने अपने निर्वाण के पूर्व मथुरा से अहिच्छेत्र होते हुये सम्मेदशिखर के उत्तुंग शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था तथा जो कालान्तर में उन्हीं के नाम पर पार्श्वनाथ हिल के नाम से इतिहास प्रसिद्ध हुआ। अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी एवं सम्राट चन्द्रगुप्त ने मिलकर सारे देश में भगवान महावीर के सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया था तथा लाखों व्यक्तियों को जैनधर्म में दीक्षित करके उनके जीवन को सफल बनाया था। बिहार को अतीत एवं वर्तमान राजधानी पाटलीपुत्र ने कितने ही साम्राज्यों का उत्थान एवं पतन देखा होगा | भगवान महावीर एवं श्रमणों के विहार होते रहने के कारण बिहार नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में जैनधर्म ने अपनी चरम सीमा देखी तो कभी अपने पतन की पराकाष्ठा भी देखी होगी। जन-जन के जीवन में व्याप्त जैनधर्म श्रीरे-धीरे अपने केन्द्र से हटकर आगे बढ़ने लगा और चिन, उत्तर एवं दक्षिण भारत तक पहुंच गया। बिहार में जैनधर्म का प्रभाव कम होने लगा और श्रावक जाति सराक जाति (माँझी) में परिणित होकर आदिवासी जाति के नाम से जाने जानी लगी । जैन सिद्धान्तों के प्रति आज भी उनकी वही श्रद्धा एवं भक्ति है जो किसी जैन धर्मानुयायी में होनी चाहिये । इस प्रकार बिहार में यद्यपि जैन धर्मानुयायियों की संख्या अत्यधिक क्षीण हो गई लेकिन इस प्रदेश का महत्व कभी कम नहीं हुआ। यहां तीर्थ यात्रियों के रूप में प्रतिवर्ष हजारों लाखों की संख्या में यात्रार्थ आना जाना होता रहा और एक कवि की “एक बार वन्दै जो कोई ताहि नरक पशु गति नहि होई" की पंक्ति ने तो सारे जैन समाज में यहां की भूमि के प्रति श्रद्धा जाग्रत कर दी । बिहार प्रदेश सिद्ध क्षेत्रों की भूमि है। यहां सम्मेदशिखर जी सिद्धक्षेत्र के अतिरिक्त श्री राजगिरि जी सिद्धक्षेत्र, श्री पावापुरी जी सिद्धक्षेत्र, श्री गुणावा जी सिद्धक्षेत्र, श्री मन्दारगिरि जो सिद्धक्षेत्र, श्री कमलदह जी सिद्धक्षेत्र श्री कुण्डलपुर जी सिद्धक्षेत्र, श्री चम्पापुर सिद्धक्षेत्र के नाम उल्लेखनीय हैं। ये सिद्धक्षेत्र जैन संस्कृति के जीते-जागते उदाहरण हैं । इन सिद्धक्षेत्रों की वंदना करने के लिये प्रतिवर्ष हजारों यात्रीगण देश के सुदूर प्रान्तों से आते रहते हैं । इन क्षेत्रों के कारण भी बिहार का नाम सर्वोपरि लिया जाता है। बिहार देश का बहुत बड़ा प्रदेश है। जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के पश्चात् इसी का नाम आता है । सन् 1981 की जनगणना में बिहार प्रदेश की जनसंख्या 6.999,14,734 थी उनमें जैनों की जनसंख्या 27613 मात्र थी अर्थात् 26000 में एक जैन था। तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि में जैन धर्म मानने वालों की इतनी नगण्य संख्या Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज/503 आश्चर्यजनक है । वर्तमान में बिहार में निमनगई एवं गांवों में जैन परिवार रहते हैं। 1- धनबाद,झरिया,चाईबासा, जमशेदपुर 2. कतरासगढ, चारू बुकारो एवं जैनामोड 3- राजगृही,सम्मेदशिखर जी.समस्तीपुर, कटिहार, ठाकुरगंज,बारसोई हाट, बारसोई घाट,कानकी एवं पाकोड 4. पटना 5- गिरिडीह,पेटरवार,प्रधुवन, साढम, गोमिया,सरिया 6- चतरा, रामगढ़,झूमरीतिलैया,रांची रोड़,चोपारन,कानाचष्टी, इटखोरी,इचाक,सिंगरवा 7. बैजनाथ धाम (देवघाट),सुल्तानगंज, भागलपुर, मुंगेर,खगडिया, बारसलीगंज,नकारा 8. गया, आरा, 9. औरंगाबाद,हमपुरा,रफीगंज, अतरौली 10. डेहरी 11- रांची,खूटी,बुन्दु,तमाड,चाईबासा अभी इतिहास लेखन के सन्दर्भ में गया के श्री रामचन्द्र जी रारा के साथ बिहार प्रदेश का सर्वे किया तो डाल्टनगंज, गया, पटना, झूमरीतिलैया, हजारीबाग, रामगढ, रांची, सरिया, गिरडीह, औरंगाबाद, रफीगंज जैसे 11 नगरों में वहां के जैन समाज से सम्पर्क किया । वहां की जैन समाज के बारे में जानकारी प्राप्त की तथा इतिहास लेखन में सहयोग प्राप्त किया। बिहार में सभी नगरों में प्रमुख रूप से खण्डेलवाल जैन समाज ही जैनों का प्रतिनिधित्व करता है यद्यपि पटना, भागलपुर आरा में अग्रवाल जैन समाज भी अच्छी संख्या में निवास करता है तथा वहां के सामाजिक दायित्वों में अपना हाथ बंटाता है। जैन समाज की शेष जातियों की संख्या तो नाममात्र की है और वे भी क्षेत्रों के सेवा में कार्य करने वाले अधिक हैं । सराक जाति जो पहिले शुद्ध जैन जाति थी और कालान्तर में परस्पर में सम्पर्क नहीं होने के कारण एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर रहने के कारण, वह जैन धर्म से दूर चली गई । यद्यपि सराक जाति वाले जैनधर्म के अनुसार ही अपना आचरण रखते हैं लेकिन वह एकदम उपेक्षित समाज बन गया इसलिये उनकी जनगणना धर्म के कालम में जैनों में नहीं आ सकी । क्योंकि स्वयं सराक जाति के भाई-बहिनों को जैनधर्म से जुड़े होने का भाव नहीं रहा। बिहार के कुछ प्रमुख नगरों का जिनमें स्वयं लेखक घूम सका है, परिचय निम्न प्रकार है : Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 504/ जैन समाज का वृहद् इतिहास डाल्टनगंज कोइल नदी के तट पर बसा हुआ डाल्टनगंज 125 वर्ष पुराना नगर है । डाल्टन नामक अंग्रेज अधिकारी द्वारा विस्थापित नगर होने के कारण इस नगर का नाम डाल्टनगंज रखा गया। नगर की वर्तमान में 2 लाख से अधिक जनसंख्या है। यहां दि. जैन समाज के 48 घर हैं जिनमें 45 घर खण्डेलवाल जैन समाज के हैं। एक-एक घर अग्रवाल, हूंबड़ एवं गुजराती समाज का है। खण्डेलवालों में रारा. बाकलीवाल, छाबड़ा, बड़जात्या, काला विनायक्या गंगवाल,पांड्या,कासलीवाल, पाटनी, बज, सेठी, पहाड़िया गोत्र वाले परिवार है। यहां एक मंदिर है जो स्व. गणेश लाल जी रारा द्वारा बनवाया गया था । डाल्टनगंज में सभी व्यापारी समाज हैं । स्व. गणेशीलाल 'जी रारा पहिले जागीरदार थे। उनके बड़े सुपुत्र इतिहासज्ञ श्री रामचन्द्रजी रारा यहीं रहते हैं : डाल्टनगंज उत्तरी रेल्वे की बड़ी लाइन का स्टेशन हैं। औरंगाबाद जिला मुख्यालय औरंगाबाद पचास हजार की जनसंख्या वाला नगर है जो गया एवं मुगलसराय के मध्य ईस्टर्न रेल्वे का बड़ा स्टेशन हैं । अनुग्रह नारायन रोड स्टेशन से 9 कि.मी. दूर औरंगाबाद स्थित हैं । यहीं पर अभी विशाल दिगम्बर जैन मंदिर का निर्माण सम्पन्न हुआ है जिसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दिनांक 27-1-से 2-2-88 तक संपन्न हुई थी 1 नीचे की मंजिल में सरस्वती भवन एवं ऊपर मंदिर है। उसी से सटा हुआ मारवाड़ी भवन है जो धर्मशाला का काम देगा। भवन अति सुन्दर एवं दो मंजिला है। पूरा मंदिर संगमरमर का बना हुआ है । औरंगाबाद में जैन समाज की घनी आबादी नहीं है केवल सात परिवार खण्डेलवाल जैन समाज के एवं तीन परिवार अग्रवाल जैनों के हैं। सात परिवार में सेटी, बाकलीवाल, गंगवाल एवं पाटनी गोत्र वाले हैं.। श्री कन्हैयालाल जी सेठा यहां के समाज प्रमुख हैं। औरंगाबाद के पास हसनपुरा में एक काला गोत्रीय परिवार एवं कुदरा जिला रोहतास में खण्डेलवाल जैनों के दो परिवार रहते हैं जो काला एवं कासलीवाल गोत्रीय हैं। रफीगंज डेहरीआनसोन एवं गया के बीच में रफीगंज स्टेशन है । रफीगंज 25 हजार की जनसंख्या वाला नगर है। यहां 45 परिवार सरावगी समाज के हैं । एक मंदिर है। पुराने मंदिर के स्थान पर नये मंदिर का करीब 35 वर्ष पूर्व निर्माण हुआ था। उसी समय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का भी आयोजन हुआ था। समाज में काला, छाबड़ा, गंगवाल, कासलीवाल, झांझरी, पाटनी, लुहाड़िया, पहाड़िया एवं बड़जात्या गोत्रों के परिवार हैं। इनमें 8 घर कासलीवालों के एवं आठ घर गंगवालों के हैं। यहां पर श्री शांतिलाल जी बड़जात्या, दीनदयाल जी काला. भंवरलाल जी कासलीवाल की समाज सेवियों में अच्छी प्रतिष्ठा है। रफीगंज में तीन मील दूर पहाड़ी पर एक छोटी गुफा है जिसमें सप्तफणी पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है तथा गुफा की चट्टान पर एक शिलालेख अंकित है । लेख पढ़ने में नहीं आता । Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /505 गया: गया को गयाजी कहते हैं क्योंकि यह नगर जैनों, हिन्दुओं एवं बौद्धों तीनों का ही पवित्र नगर है । गया नगर का इतिहास बहुत पुराना है । भगवान महावीर एवं भगवान बुद्ध का यहां पर बिहार होता ही रहा था । गया शहर के दक्षिण दिशा में एक पहाड़ी है। यहां तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की प्राचीन प्रतिमा है जिसकी जानकारी सर्वप्रथम जनरल कनिंघम ने दी थी। यहां से 70 किमी दूरी पर स्थित कोलूआ पहाड़ तो सम्मेदशिखर का प्रतिरूप है । जिसका प्राचीन पुरातत्व अनेक नये तथ्यों का उद्घाटन करने वाला है । गया में दि, जैन समाज का अस्तित्व हजारों वर्ष पुराना है । जब सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति आमेर के महाराजा मानसिंह बंगाल पर चढाई करने गये थे तो उनके प्रधान अमात्य नानू गोधा थे जो दिगम्बर जैन श्रावक थे तथा मोजमाबाद (जयपुर) के रहने वाले थे। उन्होंने अपने साथ बहुत से श्रावकों को साथ लिया था । जब वे बंगाल विजय करके महिजाम जिले से वापिस लौटे थे तथा गया भी पधारे थे जो श्रावक राजा मानसिंह के साथ थे वे गया में ही बस गये थे । जयपुर के दीवान रायचन्द छाबड़ा ने संवत् 1863 में अपने शिखर जी यात्रा में गया जी में पड़ाव किया था। यहां के मंदिर में पूजा उत्सव भी किया था और यहां के निवासी कृष्णचन्द्र पाटनी का आतिथ्य का किया था। इस प्रसारमा जैन समाजमाजमार जैन समाज से बहुत पुराना संबंध है । वर्तमान में उसी परम्पस का निर्वाह हो रहा है। उठो प्रमाती वाले सब नरा.पुनपुन नदी ग्राम देहुरा । दाते कोच गांव परि आय,बहुरी गया जी पहुते जाय । कृष्णचन्द्र श्रावक पाटनी,ताके भक्ति जीनेश्वर तनी । मंदिर जाय सब दर्शन करयो, सकल संघ र आनन्द भयौ । संघ माही दो मंडल मण्डेय ताके पूजन ते सुख बदये । वैश्णव लोग पाये हैं पीण्ड, तीन सौ ब्राहम्ण मांगे दण्ड । ऐसे करिये सुकाम तीन चलिये जबै । आये गंजहुलास किया डेरा तबही । पौष कृष्ण द्वादशी रैनी भावड़ी कहीं ताते तेरस दिन सुकाप करियो सबही । इससे स्पष्ट है कि 17 वीं 18 वीं सदी में जैनियों की वहां अच्छी बस्ती थी। Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 506 / जैन समाज का वृहद् इतिहास | गया में दो विशाल मंदिर हैं। एक पुरानी गया में और दूसरा नवीन गया में नवीन गया का जैन मंदिर ऊपर के तल्ले में है । जिसमें पांच वेदियां हैं। एक वेदी में भगवान बाहुबली विराजमान हैं। उत्तर की ओर की वेद में दो प्राचीनतम प्रतिमाएं हैं। मध्य में काले पाषाण की पद्मासन प्रतिमा आदिनाथ स्वामी की है। प्रतिमा अत्यधिक कलापूर्ण है । शिखर पर तीन छत्र हैं। ऊपर नीचे सर्प का चिन्ह बना हुआ है। छत्र के नीचे दोनों ओर युगल किन्नरियां देवगण पुष्प वृष्टि कर रहे हैं। भगवान आदिनाथ पद्मासन मुद्रा में हैं। उनके केश कंधे तक गिरे हुये हैं। मूर्ति के दोनों ओर दो इन्द्र चंवर कर रहे हैं। एक इन्द्र का नंबर कंधे पर है तथा दूसरे इन्द्र का चंवर हाथ है। मूर्ति के नीचे शिला पर सोलह स्वप्न के चिन्ह लगते है। इसके नीचे दोनों ओर ऊपर मुंह किये हुये दो बैल दिखाये गये हैं। बीच में धर्मचक्र है। पीछे भामण्डल है। मूर्ति के शिखर पर पूरे बाल हैं तथा चोटी के समान हैं। यह प्रतिमा मुंगेर जिले से लाई गई थी। ऐसी प्रचीन एवं कलापूर्ण मूर्ति अन्यत्र नहीं मिलती है। इस प्रतिमा के दूसरी ओर एक और प्राचीन प्रतिमा है। वह भी काले पाषाण की है। पद्मासन है। तीन छत्रयुक्त है। वृक्ष का आकार अशोक वृक्ष है। दोनों ओर एक-एक इन्द्र नृत्य मुद्रा में हैं। केश विन्यास की छटा अपूर्व है। बाल काले हैं। फिर मोटी चोटी है। जिसमें तीन मोड हैं। फिर मध्य में दोनों ओर एक-एक इन्द्र नृत्य की मुद्रा में हैं। चंवर ढोलते हैं। कमलासन है । आसन के नीचे बीच में धर्मचक्र है तथा दोनों ओर एक-एक बैल है। आसन में और भी देव हैं। यह प्रतिमा भी उक्त प्रतिमा के साथ मुंगेर जिले से संवत् 1983 में लाई गई थी । यहां का वर्तमान समाज 185 परिवारों का समाज है जिसमें 1800 खण्डेलवाल जैनसमाज के एवं 4 परिवार अग्रवाल जैन समाज के हैं। अधिकांश व्यापारी परिवार हैं तथा धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं। भगवान महावीर के 2500 वां परिनिर्वाण वर्ष में यहां के समाज द्वारा एक विशाल सेमिनार का आयोजन किया गया था जिसमें 40 से भी अधिक शीर्षस्थ विद्वानों ने धर्म, संस्कृति, कला एवं साहित्य पर अपने निबन्धों का वाचन एवं फिर परिचर्चा हुई थीं। इसी तरह सन् 1991 के नवम्बर मास में दिनांक 10 नवम्बर से 14 नवम्बर तक यहां उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के तत्वावधान में विद्वत संगोष्ठी, वाचना, आचार्य शांतिसागर जी छाणी स्मारिका विमोचन, शास्त्री परिषद् का अधिवेशन, बिहार प्रान्तीय दि. जैन महासभा का अधिवेशन एवं युवक सम्मेलन का विशाल आयोजन यहां के समाज द्वारा हो चुका है। उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के चातुर्मास से यहां की समाज में धार्मिक भावना, जागरूकता एवं सामाजिक कार्यों में रुचि की भावना पैदा हुई है। खण्डेलवाल जैन समाज के यहां सेठी, छाबड़ा, बड़जात्या, रारा, गंगवाल, अजमेरा, पांड्या, पाटनी, कासलीवाल, बज, विनायक्या, पापड़ीवाल, काला, सोनी, रांवका गोत्र वाले परिवार रहते हैं। वर्तमान में दि. जैन समाज के अध्यक्ष पद पर श्री पदमचन्द्र जी अजमेरा, मंत्री श्री विद्या कुमार जी काला हैं। समाज सेवियों में श्री बालचन्द्र जी छाबड़ा, हुकमचन्द जी सेठी, सुरेश कुमार जी पांड्या, श्री वीरेन्द्र कुमार जी काला के नाम उल्लेखनीय हैं । Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटना बिहार प्रदेश का जैन समाज /507 पटना बिहार प्रान्त की राजधानी है। यहां की जनसंख्या 20 लाख से ऊपर होगी। पटना सुदर्शन स्वामी का निर्वाण स्थल है तथा गुलजार बाग में सुदर्शन स्वामी के चरण स्थापित हैं। यहां की जैन समाज में खण्डेलवाल, जैसवाल, अग्रवाल, परवार, पद्मावती पुरवाल, लमेचू पटवारी, राजपूत, खरोआ, बुढेलवाल जातियों के परिवार हैं। खण्डेलवाल जैनों के 125 परिवार हैं जिनमें पहाड़िया, गंगवाल, छाबड़ा, पाटनी, सेठी, पांड्या, झांझरी, टोंग्या, साखण्या, गोधा, बगडा (कासलीवाल) रारा, बड़जात्या, बैनाड़ा, बाकलीवाल, काला, ठोल्या, गदिया, लुहाड़िया, सौगानी एवं रावका गोत्र वाले परिवार हैं। श्री मोतीलाल जी बैनाड़ा, गोपीचन्द जी सेठी, कन्हैयालाल जी बड़जात्या आदि के प्रतिष्ठित परिवार हैं। श्री बदरीप्रसाद जी सरावगी पटना सिटी में रहते हैं जो भारतीय स्तर के समाजसेवी हैं। भट्टारक रत्नचन्द ने संवत् 1683 में यहां सुभौमचक्रीचरित की रचना की थी। रतनचन्द्र भट्टारक सकलचन्द्र के शिष्य थे। और हेमराज सेठ के साथ सम्मेदशिखर जी की यात्रा की थी। यात्रा से लौटकर पूरा संघ सुदर्शन सेठ के मंदिर में ठहरा था और वहां हेमराज की प्रार्थना पर पं. तेजपाल के सहयोग से उक्त चरित काव्य की रचना की थी। चंपारन जी.टी. रोड़ पर स्थित नारी ) हजार की बस्ती है। यहां आठ जैन परिवार हैं तथा एक मंदिर है। जैन परिवारों में 7 खण्डेलवाल एवं एक पल्लीवाल परिवार हैं। 1 इटखोरी :- यहां चार खण्डेलवाल जैन परिवार हैं तथा एक चैत्यालय है । चतरा :- यहां आठ परिवार रारा गोत्रीय हैं। रामचन्द्रजी रारा गया के परिवार के हैं। एक मंदिर एवं एक धर्मशाला है । सिंगराव में 2 खण्डेलवाल जैनों के परिवार हैं। कोडरमा- झुमरीतिलैया 50 हजार की बस्ती वाला नगर हैं। हजारी बाग जिले का कोडरमा उप जिला है तो झुमरीतिलैया से सात कि.मी. । यहां दि. जैन समाज के 131 परिवार हैं जिनमें 125 खण्डेलवाल, 4 अग्रवाल, एक पोरवाल एवं एक पल्लीवाल परिवार हैं। दो मंदिर हैं जिनमें एक पंचायती मंदिर एवं एक छोटा मंदिर है। जैन संस्थाओं में जगन्नाथ जैन कॉलेज, जगन्नाथ जैन औषधालय एवं भंवरलाल जैन औषधालय हैं। यहां जगन्नाथ जी पांड्या प्रतिष्ठित श्रेष्ठी हो गये हैं। वर्तमान में श्री मानमल जी झांझरी बिहार के ही नहीं भारतीय स्तर के समाजसेवी हैं। उनके पुत्र श्री महावीरप्रसाद जी झांझरी भी उत्साही समाज सेवी हैं जिन्होंने हमें झुमरीतिलैया में बहुत सहयोग दिया था । यहां पर अधिकांश जैन परिवार अभ्रक के व्यवसायी हैं। खण्डेलवाल जैन परिवारों के सेठी, झांझरी, पांड्या, Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 508/ जैन समाज का वृहद् इतिहास काला, छाबड़ा, गंगवाल, पाटोदी, पाटनी, बाकलीवाल, कासलीवाल, गोधा, ठोल्या, पापड़ीवाल, बड़जात्या, चौधरी, रांवका गोत्र वाले हैं। गिरडीह गिरडीह बिहार का एक जिला है । मिरडीह एक लाख की जनसंख्या वाला नगर है। यहां भी अभ्रक का प्रमुख व्यवसाय है। यहां दि. जैन समाज के करीब 104 परिवार हैं जिनमें खण्डेलवाल जैनों के 75, अग्रवाल जैनों के 15 एवं शेष पल्लीवाल एवं पद्मावती पुरवालों के हैं। यहां दो जैन मंदिर है एवं एक जैन भवन है। एक जैन विद्यालय है । दि. जैन समाज के श्री सुरेन्द्र कुमार जी पांड्या अध्यक्ष हैं। अन्य समाजसेवियों में श्री राजमल जी सेठी, उम्मेदमल जी साह, फूलचन्द जी चौधरी के नाम उल्लेखनीय हैं । यहां पांड्या, रारा, बड़जात्या, झांझरी, गोधा, साह, पाटनी, बाकलीवाल, पाटोदी (चौधरी) विनायक्या, छाबड़ा-गोत्रीय परिवार हैं। यहां के मन्दिर में एक वेदी चण्डीप्रसाद जी फतेहपुर निवासी कलकत्ता वालों की माताजी ने संवत् 1988 में बनवायी थी । पार्श्वनाथ समवशरण श्री बिहारीलाल जी एवं श्रीमती अण्ची देवी की पुण्य स्मृति में श्री झाबरमल मोदी ने संवत् 1998 में बनवाया था। इसी तरह बाहुबली जिनालय का निर्माण चूरू वासी श्री दुर्गाप्रसाद जी मोदी (सरावगी) ने अपनी धर्मपली स्वर्गीय अणची देवी के स्मरणार्थ संवत् 2019 में बनवाया था। संवत् 1933 सन् 1926) में आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ने यहां चातुर्मास किया था। सरिया गिरडीह जिले में सरिया एक छोटा नगर है जिसकी बीस हजार की जनसंख्या है। यहां दिगम्बर जैन समाज के 15 परिवार हैं । बिहार के सामाजिक नेता श्री महावीर प्रसाद जी सेठी का यहीं निवास स्थान है । श्री हीरालाल जी अजमेरा यहां के प्रसिद्ध समाजसेवी हैं। एक बार क्षुल्लक सिद्ध सागर जी महाराज के संघ के साथ प्रस्तुत पुस्तक के लेखक एवं उनके साथी सम्मेदशिखर जी की यात्रा में सरिया गये थे तब श्री महावीर प्रसाद जी ने पूरे संघ का आतिथ्य किया था। हजारीबाग हजारीबाग बिहार का औद्योगिक खनिज एवं कोयला की खानों का जिला है। यहां दिगम्बर जैन समाज के 165 घर हैं जिनमें 160 खण्डेलवाल जैनों के, तीन पद्मावती पुरवालों के एवं शेष अग्रवाल जैनों के परिवार हैं । पूरे दिगम्बर जैनों की जनसंख्या 1500 है । यहां 2 मन्दिर हैं और वे दोनों ही खण्डेलवाल जैन समाज द्वारा निर्मित हैं। दो धर्मशालायें हैं, एक जैन विद्यालय है तथा एक होम्योपैथिक दातव्य औषधालय है । यहां के बड़े बाबा का मन्दिर का संवत् 1959 में निर्माण हुआ था। यह मन्दिर जयपुर शैली पर निर्मित है। मन्दिर की सुन्दरता एवं मूर्तियों की मनोज्ञता दर्शनीय है । तीन वेदियां हैं । इस जिले का यह एक अच्छा मन्दिर है । Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /509 __ खण्डेलवाल जैनों के गोत्रों में विनायक्या, सेठी, पाटनी, छाबड़ा, रांवका, रारा, लुडाड़िया, गंगवाल, कासलीवाल, पांड्या, बड़जात्या, ठोल्या, अजमेरा, काला, पाटोदी, सौगानी, बोहरा, चूडीवाल (गदिया), टोंग्या, पहाड़िया आदि गोत्रों के परिवार हैं। यहां श्री किशनलाल जी विनायक्या, चन्दनमल जी पांड्या, छीतरमल जी पाटनी प्रमुख समाजसेवी है। रांची ___बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी रांची अपनी अनेक विशेषताओं को लिये हुये है। यहा तीन विश्वविद्यालय हैं, कमिश्नरी है, पटना हाईकोर्ट की बैंच है, जिला मुख्यालय, छोटा नागपुर की कमिश्नरी सहित है। यहां की जा अाठ लाल है तथा उदो गवं व्यापार में सबसे आगे है। यहां दिगम्बर जैन समाज के 225 घर है तथा 100 घर श्वेताम्बर जैनों के हैं। दिगम्बर जैनों में 140 घर खण्डेलवाल जैनों के, 30 घर अग्रवालों के तथा शेष घर परवार एवं पद्मावती पुरवारों के हैं । एक मंदिर है । दि जैनों की जनसंख्या करीब 2000 है। रांची का मंदिर विशाल है । दो तल्ले का है। नीचे वाले तल्ले में एक वेदी है। दोनों ओर शास्त्र प्रवचन का स्थान है तथा नीचे के भाग में तीन वेदियां हैं। मध्य में मुख्य वेदी है। दोनों ओर चतुर्थकालीन प्रतिमायें हैं जिनकी स्थापना संवत् 1980 में जोखीराम मूंगराज सरावगी द्वारा की गई थी । ऊपर के तल्ले के मध्य में एक वेदी तथा दोनों ओर भगवान आदिनाथ एवं बाहुबली की खड्गासन श्वेत पाषाण की प्रतिमायें है जो श्री भागचन्द जी की स्मृति में रतनलाल चांदमल एवं रतनलाल सूरजमल द्वारा स्थापित की हुई है । यह मंदिर संवत् 1959 में निर्मित है । इस में रतनलाल चांदमल द्वारा आडीटोरियम बना हुआ है । मंदिर के सामने वाचनालय, तेजपाल धर्मार्थ होम्योपैथी औषधालय एवं मंदिर में जैन विद्यालय संचालित है। यहां रायबहादुर समाज भूषण हरकचन्द जी पांड्या निवास करते हैं। वे राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। उनके द्वारा समाज को बराबर मार्गदर्शन मिलता रहा है। रांची को रायबहादुर के नगर के नाम से जाना जाता है। रांची से अहिंसा संदेश पाक्षिक पत्र का प्रकाशन होता है जिसके सम्पादक श्री रत्लेशकुमार कासलीवाल हैं। विद्वानों में पं. मनोहरलाल जी साह विराजते हैं जो अच्छे विद्वान हैं । समाज के प्रतिष्ठित समाजसेवियों में श्री रतनलाल जी पाटनी, श्री रामचन्द्रजी बड़जात्या, रतनलाल जी काला, रिखबचन्द जी बाकलीवाल, झूमरमल जी सेठी, माणकचन्द जी गंगवाल के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री भागचन्द जी पाटनी एम.आर. वाले समाज के मंत्री हैं। खण्डेलवालों में सेठी, पांड्या, पाटनी, बाकलीवाल, काला, छाबड़ा, लुहाड़िया, सौगानी, कासलीवाल, रारा, विनायक्या, पहाड़िया, झांझरी, गंगवाल, अजमेरा, दगड़ा, गोधा, ठोल्या, पापड़ीवाल, बैनाड़ा, चांदवाड़, बड़जात्या एवं साह गोत्रीय परिवार हैं। Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 510/ जैन समाज का वृहद इतिहास रामगढ़ : जिला हजारीबाग में रामगढ़ 40 हजार की बस्ती वाला नगर है। यह हजारीबाग से 50 किमी. है। औद्योगिक नगर है । कोयला खनिज यहां का प्रमुख व्यवसाय है । यहां पर दि. जैन समाज के 52 परिवार हैं जिनमें 39 परिवार खण्डेलवाल समाज के, 11 परिवार अग्रवाल जैन समाज के हैं जिनमें सेठी गोत्र के 15 परिवार, पाटनी गोत्र के (8 परिवार) छाबड़ा (2 परिवार) अजमेरा (9 परिवार) काला (1 परिवार) गंगवाल (2 परिवार) चूडीवाल गदिया (9 परिवार) गोधा (1 परिवार) बाकलीवाल (1 परिवार) रांवका (1 परिवार) हैं। यहां एक मंदिर है जिसके निर्माण में श्री पन्नालाल जी अजमेरा का सर्वाधिक योगदान रहा तथा उन्होंने रामगढ़ में दि. जैन परिवारों को बसाने में प्रशंसनीय कार्य किया और अपनी ओर से आर्थिक व सामाजिक योगदान दिया। उक्त नगरों के अतिरिक्त बिहार में आरा, भागलपुर जैसे नगरों में दिगम्बर जैन समाज की घनी आबादी है लेकिन उनका सर्वे नहीं किये जाने के कारण यहां परिचय नहीं दिया जा सका है। बिहार प्रदेश के यशस्वी समाज सेवी 1. 19. 20. 5. 21. 7. 8. श्री अशोक कुमार जी पांड्या, डाल्टनगंज श्री अशोक कुमार जी विनायक्या हजारीबाग श्री अशोक कुमार सेठी,रांची श्री आनन्दीलाल चूड़ीवाल,रामगढ श्री आनन्दीलाल नरेन्द्र कुमार सेठी,गया श्री इन्दरचन्द अजमेरा.हजारीबाग श्री कन्हैयालाल बड़जात्या,पटना श्री कन्हैयालाल सेठी, औरंगाबाद श्री कन्हैयालाल सेठी,रांची। श्री कमलकुमार रारा डाल्टनगंज श्री कस्तूरचंद अजमेरा,गया श्री किशनलाल जी विनायक्या,हजारीबाग श्री किशनलाल साह, गिरडीह श्री कुन्दनलाल जी साह,गिरडीह श्री केशरीपल काला,गया 22. 23. 24. 25. 25. 27. |28. 29. 3t), श्री गणपतलाल बडजात्या रांची श्री गंगाबक्स गंगवाल रांची श्री गुलाबचन्द अजमेरा,गया श्री गोपीचन्द जी सेठी,पटना श्री गौरीलाल जी सेठी,झुमरीतिलैया श्रीचन्दनमल पांड्या हजारीबाग श्री चुनीलाल छाबड़ा.झुमरीतिलैया श्री छीतरमल पाटनी हजारीबाग श्री जयकुमार जैन गंगवाल,गया श्री जयदेव छाबड़ा झुमरीतिलैया श्री जोतमल छाबड़ा,झुमरीतिलैया श्री ज्ञानचन्द अजित कुमार,डाल्टनगंज श्री ज्ञानचन्द हरकचन्द अजमेरा, हजारीबाग श्री ज्ञानचन्द सेठी, गया श्री कोठारी झूमरमल कासलीवाल,डाल्टनगंज 13. 15. Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /511 31, 34. 35. 36. 69. 38. .39. 40. 41. 74, 76. 77. श्री झूमरमल जी सेठी, रांची श्री ताराचन्द गोधा गिरडीह श्री दीनदयाल काला रफीगंज श्री धरमचन्द छाबड़ा, झुमरीतिलैया श्री नन्दलाल जी सेठी, हजारीबाग श्री नरेशकुमार जैन पहाड़िया,पटना श्री नेमीचन्द जी बड़जात्या, गया श्री पदमचन्द अजमेरा,गया श्री प्रभुदयाल जी छाबड़ा,झुमरीतिलैया श्री प्रकाशचन्द जैन सेठी,गिरडीह श्री पूनमचन्द जी गंगवाल, झरिया श्री फूलचन्द जी अजमेरा, गया श्री फूलचन्द जी काला डाल्टनगंज श्री फूलचन्द जी चौधों,गिरह श्री बनारसीलाल सेठी,गिरडीह श्री बंशीधर जी साह,गिरडीह श्री बालचन्द जी छाबड़ा,गया श्री बाबूलाल जी पाटनी, रामगढ़ श्री भंवरलाल कासलीवाल,रफीगंज श्री भागचन्द, हजारीबाग श्री मदनलाल पहाड़िया,पटना श्री मनोहरलाल,रांची श्री महावीर प्रसाद पाटनी, झुमरीतिलैया श्री महेन्द्र कुमार गंगवाल,गया श्री महेन्द्रकुमार पाटनी,रामगढ़ श्री महेन्द्रकुमार बाकलीवाल,औरंगाबाद श्री महावीर प्रसाद बाकलीवाल,डाल्टनगंज श्री महावीर प्रसाद रारा, डाल्टनगंज श्री महावीर प्रसाद सेठी, सरिया श्री महावीर प्रसाद सेठी, औरंगाबाद श्री महावीर प्रसाद सौगानी,रांची श्री महासुख जी गड़जात्या, गया श्री मानिकचन्द गंगवाल,रांची 79. 80. श्री माणिकचन्द अजमेरा, हजारीबाग श्री मानमल झांझरी,झुमरीतिलैया श्रीमलचन्द छाबडा झमरीतिलैया श्री मूलचन्द काला,रांची श्री मोतीलाल बैनाडा, पटना श्री मूलचन्द गोधा,रांची श्री रतनलाल अजमेरा, हजारीबाग श्री रतनलाल काला,रांची श्री रतनलाल छाबड़ा, झुमरीतिलैया श्री रतनलाल पाटनी,रांची श्री राजमल सेठी,गिरडीह श्री रामचन्द्र बड़जात्या, रांची श्री रामचन्द्र रारा,गया श्री राधा किशन प्रकाशचंद गरा,गया श्री रिखबचन्द बाकलीवाल,रांची श्री रूपचन्द सेठी, हजारीबाग श्री लालचन्द सेठी,रांची श्री लक्ष्मी नारायण गरा,गिरडीह श्री विद्या प्रकाश जैन,रामगढ़ श्री विमल कुमार सेठी,गया श्री विमल कुमार सेठी,गिरडीह श्री वीरेन्द्र कुमार काला, गया श्री शांतिलाल बड़जात्या,रफीगंज श्री शांतिलाल बाकलीवाल,डाल्टनगंज श्री सुरेन्द्र कुमार पांड्या,गिरडीह श्री सुरेश कुमार पाड्या,डाल्टनगंज श्री सुरेश कुमार पांड्या, गया श्री सुरेश कुमार जैन पांड्या,झूमरीतिलैया श्री हरकचन्द छाबड़ा, हजारीमाग श्री हरकचन्द पोड्या,सरावगी,रांची श्री हीरालाल अजमेरा, सरिया श्री हुकमचन्द सेठी,गया 48. 50. 51. 86. 87. 52. 53. 54. 55. 56. 57. 58. 59. 60. 61. 62. . 190. 91. 92. 93. 94. 95. Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 512/ जैन समाज का वृहद् तिहास श्री अशोककुमार पांड्या डाल्टनगंजके श्री अशोककुमार पांड्या मूलतःमंदा भीमसिंह के हैं । सन् 1954 में श्री अशोक कुमार जी स्वयं डाल्टनगंज आये और यहाँ वस्त्र व्यवसाय में जुट गये। साह श्री मांगीलाल जी पांड्या के आप गोद गये । मांगीलाल जी का सन् 1953 में 60 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। लेकिन आपकी माता मेखादेवी 8 वर्ष की हैं और अभी तक उनका आशीर्वाद प्राप्त आपका जन्म 25 जून सन् 1947 को हुआ । पी.यू.(कामर्स) परीक्षा पास की तथा वस्त्र व्यवसाय की ओर मुड़ गये । 28 जून सन् 1966 को आपका विवाह श्रीमती ज्ञानमती जैन के साथ हुआ । ज्ञानमती जी नवादा, गया के कल्याणमल जी सेठी को पुत्री हैं । आपके तीनों पुत्र संजीवकुमार (32 वर्ष) राजीव कुमार (18 वर्ष) एवं अमित कुमार (15 वर्ष) पढ़ रहे हैं । पुत्री ममता भी वनस्थली विद्यापीठ में अध्ययन कर रही है। पांड्या जी ने डाल्टनगंज मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा विराजमान की थी । आप गणेशलाल सरावगी बाल विद्या मंदिर के सेक्रेट्री हैं । जैन युवा संगठन के संयुक्त मंत्री हैं । मुनि भक्त हैं । आहार देने में रुचि रखते हैं। आप अच्छे समाजसेवी हैं। पता: काश्मीर पेन्ट हाउस,मेन बाजार,डाल्टनगंज (बिहार) श्री अशोककुमार विनायक्या विनायक्या परिवार में जन्मे श्री अशोककुमार विनायक्या श्री आनन्दीलाल जी के सुपुत्र हैं जिनका स्वर्गवास 12 फरवरी 1982 को हो गया। इसके पश्चात् सन् 1983 में आपकी माताजी चम्पादेवी का स्वर्गवास हो गया । अशोककुमार जी का जन्म 19 नवम्बर सन् 52 में हुआ। हजारीबाग में इन्टर परीक्षा पास को और फिर पढना छोड़कर व्यापार में लग गये । फरवरी सन् 1972 में आपका विवाह श्रीमती कमलादेवी के साथ हो गया जिनसे आपको दो पुत्र अमित एवं अनिता तथा तीन पुत्रियों रिंकू ,प्रीति एवं शिखा की प्राप्ति हुई। आपके पिताजी एवं माताजी ने सभी यात्रायें संपन्न की थी । आप दोनों ही मुनिपत हैं आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परमभक्त है। आपने दि.जैन स्कूल में एक कमरे का निर्माण करवाया है। स्वभाव से धार्मिक एवं विनयशील है। आपके बड़े भाई का नाम शांतिकुमार जी है । जो 47 वर्ष के हैं । पत्नी का नाम सरोज है। दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं। सरोज देवी ने दशलक्षण व्रत के उपवास किये हैं। पुत्री सरिता का विवाह हो चुका है। छोटे भाई निरंजनकुमार 33 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम मौनादेवी है। दो पुत्रियाँ हैं । रमेशकुमार 19 वर्षीय युवक है । अभी अविवाहित है। आपकी दोनों बहिनें सरोज एवं पुष्पा का विवाह हो चुका है। पताः सुवालाल आनन्दीलाल जैन,सुभाष मार्ग, हजारीबाग Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /513 श्री अशोककुमार सेठी लाडनूं के श्री अशोककुमार सेठी युवा समाजसेवी हैं। 70 वर्षीय आपके पिताजी श्री पत्रालाल जी सेठी पंडित हैं तथा लाडनूं में शास्त्र प्रवचन करते हैं। आपकी माताजी श्रीमती सुगनीदेवी लाडनूं ही रहती हैं। सेठी जी का जन्म 21 जनवरी,1957 को हुआ । राजस्थान वि.विद्यालय से सन् 1979 में बी.कॉम.किया और फिर रांची में वनस्पति घी, तपाई खाधान काचसाप करने संग। सन् 1979 में आपका विवाह श्रीमती बीना से हुआ। श्रीमती बीना श्री बाबूलाल जी बगडा सुजानगढ की पुत्री हैं। आपको अब तक तीन पुत्रों अमित,रोहित एवं अंकित के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपके तीन बड़े भाई सर्व श्री सुधीरकुमार (44 वर्ष) बी.कॉम., एल.एल.बी. हैं तथा प्रबोध कुमार (40 वर्ष) बी कॉम. हैं। दोनों भाई जयपुर में व्यवसायरत हैं । सुधीर बाबू की पत्नी का नाम शांतिदेवी एवं सुबोधकुमार की पत्नी का नाम सुशीला देवी है। तीसरे बड़े भाई श्री स्वरूपचंद जी एम.कॉम. हैं । पप्पा उनकी पत्नी है। रांची में ही व्यवसायरत हैं। आपके छोटे भाई श्री राजेन्द्र सेठी रांची में व्यवसायरत हैं । उनकी पत्नी का नाम किरण है । आपके दो बहिनें है सरला एवं सरिता दोनों ही विवाहित श्री अशोक सेठी युवा व्यवसायी हैं । मिलनसार तथा विनीत स्वभाव के हैं। पता: दुकान संख्या 241, पंडारा कृषि बाजार प्रांगण, रांची (बिहार) श्री आनन्दीलाल चूड़ीवाल गदिया गोत्रीय श्री आनन्दीलाल जी चूड़ीवाल के नाम से प्रसिद्ध हैं । उनके पिताजी श्री झूमरमल जी गदिया सन् 1947 में बंगला देश गये। वहां से वे आसाम गये और सन् 1959 में रामगढ आकर रेडीमेड वस्त्रों का व्यवसाय करने लगे। इस समय आपकी आयु कोई 85 वर्ष की होगी । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दर देवी कोई 75 वर्ष की होगी। आपके पुत्र श्री आनन्दीलाल जी का जन्म संवत् 1987 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त कर सके । 15 वर्ष की आयु में लाडनूं के तनसुखराय जी पाटनी की सुपुत्री इन्द्रमणि जी से आपका विवाह हो गया। जिनसे आपको 4 पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ___ लाडनूं के व.चांदमल जी चूडीवाल आपके दादाजी थे। नागौर के साढे सोलह पंथ के मंदिर में आपके पिताजो ने दो मूर्तियाँ विराजमान की। आपने रामगढ मंदिर निर्माण में : योगदान दिया। आप वर्तमान में रामगढ जैन समाज के मंत्री हैं। आपकी माताजी एवं पिताजी - पूरी तरह मुनिभक्त हैं । साधुओं की सेवा करने की इच्छा बनी रहती है। आपकी धर्मपत्नी एक बार अष्टान्हिका व्रत के उपवास कर चुकी है। PR Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 514/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके चारों ही पुत्र बी कॉम है । प्रदीपकुमार (अव) की धर्मपली निर्मला देवी है । दो पुत्रियों एवं एक पुत्र से अलंकृत हैं । दिलीप कुमार (33 वर्ष) की पत्नी का नाम सुनीता है । एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं । तीसरे पुत्र ललित कुमार (30 वर्ष) को श्रीमती अनिता पली हैं एक पुत्र की माँ हैं। चतुर्थ पुत्र अनिल कुमार जयपुर में व्यवसायरत हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम संगीता है। आपके तीन छोटे भाई सम्पतलाल जी (55 वर्ष) श्रीचंदजी (50 वर्ष) एवं मांगीलाल जो 45 वर्षीय हैं। आर्यिका सुपार्श्वमती माताजो आपके परिवार में से हैं। चूडीवाल जी आतिथ्य प्रेमी हैं । लेखक को एवं श्री रामचन्द जो रारा को रामगढ़ में आपका आतिथ्य प्राप्त हुआ था। पताः नेशनल स्टोर्स, मेन रोड,रामगढ (हजारी बाग) बिहार श्री आनन्दीलाल नरेन्द्रकुमार सेठी श्री आनन्दीलाल जी सेठी का गया जैन समाज में प्रतिष्ठित स्थान है । उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कपूरीदेवी जी मंत्राणी के नाम से प्रसिद्ध थी जिनका अभी 1 जुलाई 91 को स्वर्गवास हो गया। आप दो प्रतिमाधारी थी । समाजसेवा की वे प्रतिमूर्ति थी। श्री सेठी जी का जन्म सन् 1918 में हुआ । सामान्य शिक्षा के पश्चात् आप रेडियो एवं टी सी. व्यवसाय करने लगे । सन् 1932 में आपका विवाह कपूरीदेवी के साथ हुआ जिनसे आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों को प्राप्ति हुई। आपके सबसे बड़े पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार है । गुणमाला आपकी धर्मपत्नी है । एक पुत्र एवं दो पुत्रियों से अलंकृत हैं । आप गया जैन समाज के 4 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। स्वभाव से समाजसेवी हैं। दूसरे पुत्र श्री सुरेन्द्रकुमार बी.ए. हैं । पत्नी का नाम चन्द्रकान्ता है। 4 पुत्रियों एवं एक पुत्र की जननी है। तीसरे पुत्र देवेन्द्रकुमार बी.एस.सी. है इलैक्ट्रोनिक इंजीनियर है। आपकी पत्नी मालती के दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं । सबसे छोटे पुत्र जितेन्द्रकुमार इंजीनियर हैं । 42 वर्षीय युवा हैं। आपकी पली कुसुम बी.ए. है। दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। इन्दौर में रहते हैं। जहाजरानी में मेट इस्टर्न शिपिंग कम्पनी में जब आप चीफ इंजीनियर थे तब विश्व भ्रमण कर चुके हैं। ___सेठीजी के तीन पुत्रियाँ शांतिदेवी हीरादेवी एवं जयश्री है सभी विवाहित हैं । जनवरी 1981 में इन्दौर कंचन बाग में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप दोनों भगवान के माता-पिता बने थे। आपके द्वारा जम्बूद्वीप हस्तिनापुर एवं ईसरी पार्श्वनाथ के मंदिरों में मूर्तियाँ विराजमान की गयी हैं। स्व.श्रीमतो कपूरीदेवी जी एवं आप स्वयं मुनिभक्त हैं। आचार्य विद्यासागर जी के संघ में रहकर वर्षों तक उनकी आहार आदि से सेवा कर चुके हैं तथा उनके उपदेशों को श्रवण कर चुके हैं । श्रीमती कपूरीदेवी एक अच्छी लायबेरी अड़ गई हैं जिसको आपके पुत्रों ने पूर्ण व्यवस्थित कर रखा है। पता:1 अनिल सन्स,जी.बी.रोड,गया 2 जैन रेडियो स्टोर्स, भगवान महावीर पथ, गया - 3 अनिल सन्स,28 इन्द्र मार्केट,इन्दौर Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज/515 श्री इन्द्रचन्द अजमेरा राजस्थान से बिहार में आने वाला अजमेरा जी का प्रमुख परिवार है । करीब 150 वर्ष पूर्व श्री शिवनारायण जी हजारीबाग आकर यहाँ के हो गये। श्री इन्द्रचंद जी अजमेरा इसी परिवार के हैं । आपने भी अपने जीवन के 73 बसन्त देख लिये हैं। आप प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात व्यवसाय में लग गये। आपके पिताजी श्री चम्पालाल जी का सन् 1936 में ही देहान्त हो गया था। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कमलादेवी है जिनसे आपको तीन पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री संतोषकुमार 48 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं । दूसरे पुत्र संजय 27 वर्ष तथा तृतीय पुत्र राजेशकुमार 24 वर्षीय युवा हैं । सभी चारों पुत्रियों विद्यादेवी, हेमलता,प्रेमदेवी एवं बीना का विवाह हो चुका है। __ अजमेरा जी ने शिखर जी की बीस पंथी कोठी में बगीचा वाले मंदिर में मूर्ति विराजमान की है। आपके पूर्वज बिहार के बड़े जमीदार थे जिनके पास 45 गाँवों का लगान वसूल करने का अधिकार प्राप्त था। आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है। आपके सबसे बड़े भाई ताराचंद जी का 18 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। शेष चार छोटे भाईयों में से जगनमल जी (68 वर्ष) धरमचंद जी(55 वर्ष) अपना व्यवसाय कर रहे हैं तथा महावीर प्रसाद जी एवं गजानन्द जी का स्वर्गवास हो चुका है । पता : इन्द्रचन्द संतोष कुमार, सारा गजर फर्नीचर आर्ट भावान महावीर मार्ग,हजारीबाग। श्री कन्हैयालाल बड़जात्या सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों में पूर्ण रुचि रखने वाले पटना के श्री कन्हैयालाल बड़जात्या का जन्म आसोज बुदी 13 संवत् 1970 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप बर्तन विक्रेता के व्यवसाय में चले गये । संवत् 1991 में आपका विवाह श्रीमती विद्यादेवी के साथ हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपके पुत्र श्री सूरजमल 50 पार कर चुके हैं तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चन्द्रमणि देवी का 6-7 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। आपके तीन पुत्र सुनील, अनिल एवं अजय हैं । सुनील का विवाह हो चुका है । उसकी पत्नी का नाम मंजू । देबी है । श्री.कन्हैयालाल जी के तीन पुत्रियाँ-गुणमाला,वीरबाला एवं मीना है । तीनों का ही विवाह हो चुका है । आप पटना में आयोजित सिद्धचक्र विधान में प्रमुख आयोजक थे । मीठापुर (पटना) के दि.जैन मंदिर निर्माण में प्रमुख सहयोगी रहे । उस मंदिर के अन्य प्रबन्धक भी रहे । राजगृही में धर्मशाला के कमरे का जीर्णोद्धार कराया । आपके शुद्ध खानपान का नियम था । आपकी धर्मपत्नी, पुत्र वधू एवं पौत्र वधू तीनों ने दशलक्षण व्रत के उपवास किये हैं । जनमंगल कलश के संचालक बने तथा जम्बूदीप ज्ञान ज्योति रथ के सारथी बनने का यशस्वी कार्य किया । आपका दिनांक 9.5.58 को स्वर्गवास हो गया । आप प्रतिदिन पूजापाठ करते थे तथा शांतिपूर्वक जीवन यापन करते थे । पता : जैन स्टोर्स, न्यू मार्केट, पटना Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 516 / जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री कन्हैयालाल सेठी औरंगाबाद जैन समाज के सर्वाधिक लोकप्रिय समाजसेवी श्री कन्हैयालाल जी सेठी का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। आपके माता- पिता श्री छोगालाल जी एवं केशर देवी जी दोनों ही फतेहपुर में रहते हैं । श्री सेठी जी का जन्म भादवा सुदी 8 संवत् 1906 में हुआ। अष्टम कक्षा तक ही आप अध्ययन कर सके और फिर व्यवसाय में लग गये। वर्तमान में आप के दालमिल, फूड प्रेन, चीनी, डालडा, पैट्रोल पम्प आदि का कार्य है। सन् 1955 में आपका विवाह सुगनीदेवी के साथ हो गया जो राज के श्री सोहनलाल जी रारा की सुपुत्री हैं। आपको चार पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। पुत्रों में श्री सुरेन्द्रकुमार (24 वर्ष) बी.ए. कर चुके हैं शेष तीनों पुत्र सत्येन्द्र, रजनीश एवं विशाल रांची पढ़ रहे हैं। चार पुत्रियों में सरला, सरिता एवं ममता का विवाह हो चुका | माया पढ़ रही है। ! औरंगाबाद पंचकल्याणक में आपके माता- पिता भगवान के माता पिता बने थे औरंगाबाद में मंदिर निर्माण से लेकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा तक सभी कार्य आपने सम्पादन किया था। प्रतिष्ठा समारोह के आप महामंत्री बनाये गये थे। यहां की बाजार समिति के अध्यक्ष हैं। आपने आचार्य संभवसागर जी महाराज का चातुर्मास संपत्र कराया । पक्के मुनि भक्त हैं। मुनियों की खूब सेवा सुश्रुषा करते हैं। आपकी धर्मपत्नी धार्मिक कार्यों में आगे रहती है। मंदिर निर्माण में आपकी पत्नी का विशेष योग रहा। आपके दो छोटे भाई और हैं। श्री चिरंजीलाल जो 40 वर्षीय युवा हैं। धर्मपत्नी का नाम कंचनदेवी है। तीन पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं । दो प्रतिमाधारी हैं। दूसरा भाई श्री नरेन्द्रकुमार बी. ए. है। पत्नी का नाम मंजूदेवी है। एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। तीनों भाई साथ ही रहते हैं। बम्बई, मालेगांव, फतेहपुर, गया, अतरौली, शिलाँग, भदैय्या में प्रतिष्ठान हैं। पता : छोगालाल जी कन्हैयालाल जी सेठी, सेठी भवन, न्यू एरिया, औरंगाबाद श्री कन्हैयालाल सेठी 64 वर्षीय श्री सेठी जी ने सामान्य शिक्षा प्राप्त की है । आपके पिताजी स्व. श्री बिरधीचन्द जी का निधन 12 वर्ष पूर्व 95 वर्ष की आयु में तथा माताजी श्रीमती धन्रीदेवी का स्वर्गवास अभी 17 वर्ष पूर्व हुआ था। आप मूल निवासी वाय ग्राम के थे। आपने पहिले कलकत्ता और फिर वहां से 35 वर्ष पूर्व जसपुर नगर में आकर अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। सन् 1942 में आपका विवाह श्रीमती केशरीदेवी सुपुत्री श्री ओमप्रकाश जी बाकलीवाल घोरवाले, डाल्टनगंज के साथ संपन हुआ। आपके चार पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हैं। Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /517 1.ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रकाशचन्द जी हैं जिनकी आयु 43 वर्ष की है । पत्नी का नाम श्रीमती चन्दा देवी है । जो स्व.मांगीलाल जी पाटनी रांची की सुपुत्री है । आपके 2 पुत्र एवं तीन पुत्रियां .: हैं। बड़े पुत्र संजय ने बी.कॉम. कर लिया है। मनोज पढ़ रहा है । तीन पुत्रियाँ सुमन, संगीता एवं नीता पढ़ रही हैं। 2. द्वितीय पुत्र श्री रामचन्द्र है । आपकी धर्मपत्नी ऊषा देवी हैं । आपके भी दो पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं । दोनों पुत्र विकास एवं लोकेश, पुत्रियाँ किरन मोनिका एवं रंजिता पढ़ रही श्रीमती केशरी देवी सेठी 3. तृतीय पुत्र श्री सुरेश कुमार हैं । बी .काम. हैं। 34 वर्षीय है । पत्नी का नाम लता जैन है। एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । पुत्र शैलेश कुमार एवं पुत्री चिक्फी, मिक्की है। 4. चतुर्थ पुत्र श्री अनिलकुमार अभी अविवाहित हैं । बीकॉम. कर चुका है। 5. चार पुत्रियाँ सुलोचना, बीना ,नीलम एवं मीना सभी का विवाह हो चुका है। विशेष : आपने जसपुर में संपन्न वेदी प्रतिष्ठा में विशेष योगदान दिया था । वर्तमान में जसपुर जैन समाज के कोषाध्यक्ष हैं । आपके पिताजी श्री बिरधीचन्द जी जसपुर दि. जैन समाज के अध्यक्ष रहे थे । आपने सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। पता : सेठी निवास,रांची हैण्डलूम एम्पोरियम रांची (बिहार) श्री कमलकुमार रारा स्व. रामावतार लाल शराजी के सुपुत्र श्री कमलकुमार जी स्थानीय डाल्टनगंज जैन समाज के 15 वर्ष तक मंत्री रहे । एलामू चैम्बर आफ कामर्स के सदस्य एवं लायन्स क्लब के सक्रिय सदस्य हैं। आपकी माताजी सरबतीदेवी जी कुचामन के श्री गंभीरमल जी पांड्या की सुपुत्री हैं । आपका जन्म 2 मई सन् 1942 को हुआ। इन्टर साइन्स से करने के पश्चात स्टील फर्नीचर के व्यवसाय से जड गये। सन् 1963 में आपका विवाह पुष्पादेवी से हुआ जो रायबहादुर राजकुमार सिंह जी की पोत्री हैं । उनसे आपको : पुत्र पंकज एवं नीरज तथा एक पुत्री प्रिय' की प्राप्ति हुई । प्रिया का विवाह इन्दौर के शांतिलाल जी टोगरा के सुपुत्र राजेश कुमार से * हो चुका है। श्री राजकुमार जैन Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 518/ जैन समाज का वृहद इतिहास आपके छोटे भाई राजकुमार जी 43 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम रमा जैन है। दो पुत्र रिंषि एवं ऋषभ तथा एक पुत्री राखी के पिता हैं। दूसरे भाई विजयकुमार जी 3 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम किरण हैं । एक पुत्र वैभव एवं एक पुत्री हंसा से अलंकृत हैं । पता: नेशनल स्टोर, सरावगी मोटर सर्विस, मेन बाजार, डाल्टनगंज श्री विजय कुमार जैन श्री कस्तूरचंद रा आपके दादाजी श्रीलाल जी अजमेरा 100 वर्ष पूर्व दांतारामगढ से गया आये ! | आपके पुत्र श्री मांगीलाल जी थे जो श्री कस्तूरचंद जी अजमेरा के पिता थे जिनका स्वर्गवास 200 वर्ष पूर्व 78 वर्ष की आयु में तथा माताजी भंवरीबाई का 32 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। श्री कस्तूरचंद जी अजमेरा का जन्म श्रावण सुदी 12 संवत् 1976 को हुआ। जैन विशारद तक अध्ययन करने के पश्चात् वस्त्र एवं मोटर पार्टस् का व्यवसाय करने लगे। संवत् 1991 में आपका विवाह श्रीमती नाथीदेवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको 2 पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री विजय कुमार 42 वर्षीय युवा है। बी.कॉम हैं। पत्नी का नाम सुशीला देवी है जो एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की माँ है। छोटे पुत्र देवेन्द्रकुमार 40 वर्ष के हैं। बी. कॉम. हैं। पत्नी का नाम उषा है। जो तीन पुत्रों की जननी हैं । आपका धार्मिक जीवन रहता है। गया पंचकल्याणक में आपने राजा श्रेयान्स बनकर भगवान को आहार दिया था। अपने छोटे भाई की पत्नी के नाम से कृष्णा बाई आश्रम श्री महावीर जी में एक कमरे का निर्माण करवाया। आप दि. जैन समाज गया तथा दि. जैन भवन के सेक्रेट्री रहे तथा महिला शिक्षालय के ट्रस्टी रहे। आपकी धर्मपत्नी एवं परिवार की दूसरी महिलायें भी शुद्ध खानपान का नियम पालती हैं तथा गया में आने वाले सभी मुनियों को आहार देती हैं। आपके तीन भाई सर्व श्री फूलचंद जी, किशनलाल जी एवं मदनलाल जी हैं। फूलचंद जी 63 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम पानादेवी है। श्री किशनलाल जी की पत्नी का नाम उमरात्रदेवी है। श्री मदनलाल जी की पत्नी अंजना के पांच पुत्र है। आपने इसी वर्ष दशलक्षण व्रत के उपवास किये हैं। पता: फ्रैन्ड्स आफ इंडिया एण्ड कंपनी, जी. बी. रोड, गया जैन डीजल्स, स्वराजपुरी रोड़, गया । Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज/519 श्री किशनलाल विनायक्या श्री विनायक्या जी के पिताजी स्व.श्री सुवालाल जी विनायक्या सीकर से बुगडा बंगलादेश और वहां से करीब 85 वर्ष पूर्व हजारीबाग आकर बस गये। उनका स्वर्गवास हुये 50 वर्ष हो गये । आपके शुद्ध खान-पान का नियम था 1 श्री किशनलाल जी ने स्वयं 73 बसन्त देख लिये हैं । सन् 1937 में आपने हजारीबाग से मैट्रिक किया और फिर हार्डवेयर, बिल्डिंग मेटीरियल्स, फायर ब्रिक्स का व्यवसाय एवं फैक्टरी चालू कर ली। 16 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती बुद्धी देवी से हो गया। आपको 7 पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। आप दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी आप हजारीबाग जैन समाज के तीन वर्ष तक अध्यक्ष रहे। गौशाला हजारीबाग के मंत्री एवं अध्यक्ष रह चुके हैं । बिहार प्रादेशिक दि.जैन धार्मिक न्यास सुरक्षा समिति के वर्तमान में मंत्री हैं । बंगाल, बिहार, उडीसा तीर्थक्षेत्र कमेटी की कार्यकारिणी सदस्य, बिहार राज्य दि.जैन न्यास बोर्ड के सदस्य,दि. जैन हाईस्कूल की कार्यकारिणी सदस्य,मुनिभक्त एवं शुद्धखानपान का नियम पालन करने वाले हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र नेमिचन्द्र 45 वर्षीय बी.एस.सी. है। धर्मपत्नी का नाम सुशीला देवी है। तीन पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है । दसजा द्रत एक अन्य कई गाम कर चुकी है। द्वितीय पुत्र धरपचन्द 45 वर्ष ,धर्मपत्नी उषादेवी है । 3 पुत्र एवं 2 पुत्री है । निर्मल कुमार 43 वर्ष तृतीय पुत्र हैं जापान हांगहांग की यात्रा कर चुके हैं। चतुर्थ पुत्र सुरेशचन्द 40 वर्षीय युवा है। आशा देवी धर्मपली है । दो पुत्र एवं एक पुत्री की माँ है। पांचवे पुत्र प्रदीपकुमार 38 वर्षीय युवा हैं। धर्मपत्नी सुलोचना देवी है । एक पुत्र एवं एक पुत्री की माँ है। छठे पुत्र श्री विनोदकुमार 28 वर्षीय हैं बी.कॉम हैं। पत्नी का नाम कुसुम है । जो एक पुत्री की माँ है । सबसे छोटे पुत्र राजेन्द्रकुमार सी.ए. कर रहे हैं। अभी अविवाहित है। आपकी चारों पुत्रियां शकुन्तला, गुणमाला, नीलम एवं अनिता समी का विवाह हो चुका है। पता: नेमिचन्द जैन एण्ड ब्रदर्स, भगवान महावीर मार्ग,हजारीबाग श्री किशनलाल साह श्री किशनलाल जी साह स्व.श्री दयालचंद जी साह के द्वितीय पुत्र हैं । आपका जन्म आषाढ बुदी 4 संवत् 1988 में हुआ । मिडिल तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् गैस एवं माइन्स का कार्य करने लगे। जनवरी 1955 में आपका विवाह श्रीमती विमलादेवी के साथ हो गया । जिनसे आपको चार पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री रमेशचंद 4 वर्षीय युवा हैं । उनकी पत्नी का नाम सरिता है । वह दो पुत्रों की मां है । दूसरे पुत्र श्री महेशचंद जैन हैं । बी.ए. हैं । पत्नी का नाम मजू है । दो पुत्रों की मां बन चुकी है। तीसरे पुत्र श्री अनिलकुमार बी.ए. हैं । पत्नी का नाम अलका है ! चतुर्थ पुत्र सुनील बी.ए.बी.एम. साह साहब गिरडीह में तीनलोक विधान एवं सम्मेदशिखर जी में इन्द्र ध्वज विधान करा चुके हैं । सन् 1971 एवं 1981 में तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। शुद्ध खानपान का नियम लिया हुआ है । सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने में रुचि रखते हैं। पता. जैन गैस कम्पनी,गिरडीह (बिहार) Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 520/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री कुन्दनलाल साह गिरिडीह के श्री कुन्दनलाल जी साह वयोवृद्ध समाजसेवी हैं। आप 80 को पार करने वाले हैं। आपके पिताजी श्री दयालचंद जी साह एवं माताजी श्रीमती गुलाब बाई जी सार का निधन कुछ वर्षों पूर्व हो चुका है। 12 वर्ष की छोटी आयु में ही आपका विवाह श्रीमती फूलदेवी के साथ हो गया। जिनसे आपको दो पुत्र सर्व श्री उम्मेदमल एवं सुमेरचंद एवं दो पुत्रियों लाडबाई एवं कंचनबाई की प्राप्ति हुई। आप दोनों पति पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। मुनि भक्त हैं। आहार आदि से साधुओं की सेवा करते हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री उम्मेदमल 52 वर्ष के हैं। गुणमाला पत्नी का नाम है। तीन पुत्र, एक पुत्री से अलंकृत हैं। श्री उम्मेदमल जी धर्मचक्र समिति के महामंत्री, जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ के महामंत्री एवं महासभा की पूर्वांचल वैय्यावृतसमिति के महामंत्री हैं। सम्मेदशिखर जी में लाखों की लागत से बन है मध्य लोक शोध संस्थान के संयुक्त मंत्री हैं। समाजसेवा में आपको अधिक रुचि है। आपके छोटे भाई सुमेरचंद 40 वर्षीय हैं। पत्नी का नाम चंदा देवी है जो एक पुत्री एवं तीन पुत्रों की मां है। आपका परिवार राजस्थान में भोंडा ग्राम का है। पता :- शांति भवन रोड, गिरडीह, बिहार श्री केशरीमल काला दाल (राजस्थान) से 65 वर्ष पूर्व आकर गया में बसे श्री केशरीमल जी काला का जन्म श्रावण सुदी 7 संवत् 1963 में हुआ। आपके पिताजी श्री चम्पालाल जी का 95 वर्ष की आयु में भादवा सुदी 14 को निधन हुआ था। तथा माताजी श्रीमती सद्दी देवी जी का 80 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त की और वस्त्र व्यवसाय में लग गये जिसमें आपने अच्छी सफलता प्राप्त की। संवत् 1984 में आपका विवाह श्रीमती सेठ देवी सुपुत्री श्री लखमीचंद जी ठोलिया गुढा साल्ट से हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ज्येष्ठ पुत्र श्री महावीर प्रसाद जी 48 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम कंचनदेवी है एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की मां है। छोटा पुत्र प्रदीपकुमार है अभी अविवाहित है। आपकी तीन पुत्रियाँ शांति बाई, विमलाबाई एवं पुष्पाबाई का विवाह हो चुका है। गया में आयोजित इन्द्रध्वज विधान में आप दोनों इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हुये थे । दि. जैन समाज गया के 25 वर्ष तक सेक्रेट्री रह चुके हैं। वर्तमान में भी आप समाज के विशिष्ट व्यक्ति हैं । मुनियों के भक्त हैं। आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। पूर्णतः सजग रहते हैं। नियमत आहार विहार करते हैं। पत्ता : श्री केशरीमल काला, के.पी. रमन होटल की गली, चौक, गया (बिहार) Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /521 श्री गणपतलाल बड़जात्या श्री गणपतलाल जी बड़जात्या वयोवृद्ध समाजसेवी हैं । दि. जैन समाज इटखोरी के अध्यक्ष रह चुके है तथा वहां की ग्राम पंचायत के सरपंच एवं मुखिया रह चुके हैं। आप सरल स्वभावी एवं मिलनसार हैं। वर्तमान में आपकी आयु 77 वर्ष की है। आप गल्ला खाद्यान्न,घी, चीनी के कमीशन एजेन्द है । 25 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती सुगनौदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पत्र जिनेन्द्रकमार एवं राजेशकमार तथा तीन पत्रियों हीरामणि संतोष एवं किरण जैन की प्राप्ति हई । दोनों ही पुत्रों ने बी.कॉम.किया है । जिनेन्द्रकुमार की पत्नी का नाम रंजना है तथा साधनादेवी राजेश कुमार की पत्नी है। आपने इटखोरी में अपने गृह चैत्यालय में धातु की प्रतिमा विराजमान की है । मुनि भक्त हैं । सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। धार्मिक स्वभाव के हैं। आपके दोनों बड़े भाइयों पूरामल जी एवं शिवचरणलाल जी का स्वर्गवास हो चुका है । शिवचरणलाल जी के पांच पुत्र एवं छह पुत्रियां हैं। आपके एक भाई बिरघीचंद जी है जो जसपुर में रहते हैं। दो बहिनें- मलूक बाई एवं मनभरदेवी हैं । पता: गणपत बड़जात्या,राधेश्याम गैरेज लेन, ओल्ड कमिश्नर कम्पाउंड,राची (बिहार) श्री गंगाबक्स गंगवाल दो दशक पूर्व राजस्थान से आने वाले श्री गंगाबक्स जी गंगवाल ने रांची जैन समाज में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है । वर्तमान में आप 70 को पार कर गये हैं। संवत् 1990 में आपका विवाह श्रीमती घेवरी देवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके लौह धातु का व्यवसाय है । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री कन्हैयालाल जी 50 वर्षीय है बी.कॉम. हैं । पली का नाम तारामणि है जो तीन पुत्रियों एवं एक पुत्र की माँ है । दूसरे पुत्र श्री प्रकाशचंद जी बी कॉप. है । 47 वर्षीय होने पर भी एकदम चुस्त रहते हैं। पत्नी का नाम केशरदेवी है जो दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों की जननी है। सबसे छोटे लड़के श्री हरकचंद हैं। पत्नी का नाम विमला देवी है । तीन पुत्र एवं एक पुत्री की माँ है । श्री हरकचंद जी दि.जैन पंचायत रांची के कोषाध्यक्ष हैं । जैन ज्योति राशि के धौ कोषाध्यक्ष हैं। सीकर में इन्द्रध्वज विधान में इन्द्र पद से सुशोभित हुये थे । रूपनगढ़ में आपके पूर्वजों द्वारा मंदिर निर्माण करवाया गया था । आपकी माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । मुनिभक्त हैं । आहार आदि देने में रुचि रखते हैं। आपकी माताजी ने दशलक्षण व्रत उपवास किये थे। 58 वर्षीय आपके छोटे भाई सोहनलाल जी रूपनगढ़ में ही रहते हैं। उनके दो पुत्र शांतिस्वरूप एवं धर्मचन्द हैं । कलकत्ता एवं पटना में व्यवसाय हैं। पता : स्टील ट्रेडिंग कम्पनी, सेवा सदन रोड,अपर बाजार, रांची (बिहार) Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 522/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री गुलाबचंद जैन अजमेरा श्री अजमेरा जी का भादवा सुदी 13 संवत् 1987 को जन्म हुआ । आपके पिताजी श्री हीरालाल जी एवं माताजी श्रीमती बदामी बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपने मगध विश्वविद्यालय से बी.कॉम किया और वस्त्र व्यवसाय की ओर चले गये । संवत् 1998 में आपका विवाह श्रीमती शांतिदेवी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री कमल कुमार जी 40 वर्षीय युवा हैं बी.एस.सी. हैं। पत्नी का नाम बीना देवी है। इन्स्योरेन्स में विकास अधिकारी हैं। एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं। दूसरे पुत्र सुमन कुमार एम.ए. हैं। पत्नी का नाम इन्द्र देवी है जो 2 पुत्रियों की मां है। तीसरे पुत्र अरविन्द कुमार बी.कॉम. हैं। पत्नी का नाम अनिता देवी है। बैंक एजेन्ट हैं । श्री सुगनचंद जी दि. जैन समाज गया के अध्यक्ष रह चुके हैं। कोल्हुआ पहाड़ तीर्थक्षेत्र कमेटी के ट्रस्टी हैं। बिहार तीर्थ क्षेत्र कमेटी की कार्यकारिणी सदस्य, धार्मिक न्यास बोर्ड के आठ वर्ष तक सदस्य रहे । इनके अतिरिक्त और भी कितनी ही संस्थाओं से आप जुड़े हुये हैं । आप सभी को अपना सहयोग देते हैं तथा सभी संस्था वाले आपको आमंत्रित करते रहते हैं। आपके पूर्वज दांतारामगढ़ के थे । 125 वर्ष पूर्व वे गया आकर बसे थे । पता : रश्मि जी.बी. रोड, गया । श्री गोपीचंद सेठी पटना के श्री गोपीचंद जी सेठी समाज के विशिष्ट व्यक्ति हैं। आप श्री हीराचंद जी सेठी के पुत्र हैं जिनका सन् 1974 में स्वर्गवास हुआ था। उस समय उनकी आयु 85 वर्ष की थी। आप की माताजी श्रीमती कुनणी देवी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । सन् 1932 में जन्में सेठीजी ने सामान्य शिक्षा प्राप्त की और फिर रेडीमेट वस्त्र व्यवसाय में लग गये। सन् 1950 में आपका विवाह श्रीमती शांतीदेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र धीरजकुमार एवं नीरज तथा दो पुत्रियों शारदा एवं सुनीता की प्राप्ति हुई। दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। सेठी जी का सामाजिक जीवन उल्लेखनीय है । आप पहिले पटना दि. जैन पंचायत के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में महामुनि सुदर्शन निर्वाण समिति सुदर्शन नगर, पटना के कोषाध्यक्ष है। आपके दो छोटे भाई शांतिलाल जी एवं मदनलाल जी और हैं। शांतिलाल जी की पत्नी का नाम तारामणि है जो चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों की जननी है। श्री मदनलाल जी की पत्नी गुड्डू के एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। तीसरे भाई महावीर प्रसाद जी अभी लापता हैं । आप मूलतः काशी का बास (सीकर) के निवासी थे तथा 40 वर्ष पूर्व पटना आकर रहे थे। पता : पटना क्लोथिंग कम्पनी, फ्लेट नं. 6, हथुआ मार्केट, पटना Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /523 राज श्री गौरीलाल सेठी झूमरीतिलैया के गौरीलालजी सेठी कट्टरमुनिभक्त है । आपकी पत्नी ने शुद्ध खानपान का नियम लिया हुआ है। इसलिये आहार देने में पूर्ण रुचि रहती है। आप दि. जैन समाज झूमरीतिलैया के बीस वर्ष तक मंत्री रह चुके हैं । ईसरी आश्रम की कार्यकारिणी के मष्ट्य एवं टूटी हैं। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं । संघ के व्यवस्थापक बनकर चार बार तीर्थ वंदना कर चुके हैं। । आपका जन्म संवत् 1971 में हुआ ।शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप माइका व्यवसाय में चले गये जिसमें उन्होंने अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की। 16 वर्ष की आय में आपका विवाह मनभरदेवी से हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपके तीनों पुत्र सर्व श्री निर्मलकुमार, सुरेश कुमार एवं अशोककुमार बीकॉम हैं । विवाहित है और अप्रक का ही व्यवसाय करते हैं। तीनों पुत्रियों, सावित्री,इन्द्रमणि एवं कुसुम सभी का विवाह हो चुका है । लेकिन वर्ष पूर्व आपकी धर्मपत्नी मनभरदेवी का स्वर्गवास हो गया। पता :जैन मोहल्ला,झूमरीतिलैया (सजारी बाग) श्री चंदनमल पांड्या सब कुछ पाकिस्तान में छोड़कर हजारी बाग में शरणार्थी बनकर बसने वाले श्री चंदनमल जी पांड्या को जीवन में कितनी ही बार कड़ा संघर्ष करना पड़ा । आपका जन्म 14 जून संवत् 1985 (सन 1938) को हुआ। आपको एक वर्ष का छोड़कर आपके पिताजी श्री मोहनलाल जी पांड्या चल बसे । सामान्य शिक्षा प्राप्त की और माइन्स का व्यवसाय करने लगे। जब 17 वर्ष के थे तभी आपका विवाह राखी बाई के साथ हो गया । राखीबाई राणोली के श्री जीवनलाल जी छाबड़ा की सुपुत्री हैं। आपको एक पुत्र विजयकुमार एवं एक पुत्री मैना का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विजय कुमार का विवाह हो गया। धर्मपली का नाम सुषमा है। ५. आप सामाजिक जीवन बिताने वाले हैं। आप हजारी बाग जैन समाज के अध्यक्ष रहे । वर्तमान में आप ठपाध्यक्ष है। हजारी बाग में आयोजित वेदी प्रतिष्ठा में आपका पूर्ण योग रहा । आएकी पत्नी के शुर खानपान का नियम लिया हुआ है। पांड्या जी का संघर्षशील जीवन रहा । वे शांत स्वभावी एवं पूरे धार्मिक संस्कारों से युक्त थे । आपका स्वर्गवास दिनांक 22.11.88 को हो गया। पता : चन्दनमल विजयकुमार जैन, बड़ा बाजार,हजारी बाग Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 524/ जैन समाज का व्हट् इतिहास श्री चुन्नीलाल छाबड़ा झुमरीतिलैया के श्री चुत्रीलाल छाबड़ा अच्छे समाजसेवी हैं। आप सन 1956 में झुमरीतिलैया में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के व्यवस्थापक रहे थे । दि.जैन मंदिर झूमरी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । पालवास का मंदिर आपके पूर्वजों द्वारा बनवाया हुआ है। आपका जन्म संवत् 1982 (सन् 1925) में मंगसिर मास में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त की और गल्ला एवं टक ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करने लगे। सन् 1944 में आपका विवाह हो गया तथा सन् 1949 में आपके पिताजी श्री रामकुमार का निधन हो गया। आपकी माताजी तो इसके पूर्व ही चल बसी थी। आपकी पत्नी श्रीमती चन्दा देवी जी चार पुत्र सर्व श्री सुरेश कुमार (40 वर्ष) नरेश कुमार (36 वर्ष) प्रदीप कुमार (A) वर्ष) एवं सुबोध कुमार (29 वर्ष),दो पुत्रियों मीना एवं बीना की जननी हैं । सभी पुत्रों एवं पुत्रियों का विवाह हो चुका है। आपके पूर्वज पालवास (सीकर,राज) के मूल निवासी थे। वहां से वे कलकत्ता गये और फिर कलकत्ता से पटना आकर बस गये। पता : जैन मोहल्ला,झुमरीतिलैया (बिहार) श्री छीतरपल पाटनी देवली (नागौर) के मूल निवासी श्री छीतरमल पाटनी नागौर में करीब 40 वर्ष पूर्व अपने पिता स्व.मानमल जी पाटनी के साथ हजारीबाग आये । आपके पिताजी का स्वर्गवास सन् 1981 में और माताजी पतासीदेवी का बहुत पहिले सन् 1955 में हुआ। पाटनी जी का जन्म 6 जुलाई सन् 1943 को हुआ । इन्टर तक की परीक्षा हजारीबाग से ही की और फिर सीमेन्ट उत्पादन एवं परिवहन का कार्य करने लगे । सन् 1962 में आपका विवाह हो गया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुमति जैन रांची के श्री कन्हैयालाल जी गंगवाल की सुपुत्री है। आपकी सामाजिक सेवायें उल्लेखनीय हैं । हजारीबाग में संपन्न वेदी प्रतिष्ठा में आप इन्द्र बने और पूरा सहयोग दिया । हजारीबाग जैन समाज के वर्तमान में आप मंत्री हैं । जैन हाईस्कूल के संयुक्त मंत्री हैं। भारतीय जनता पार्टी के नगर कोषाध्यक्ष हैं । रोटरी क्लब के बोर्ड आफ डाइरेक्टर्स के सदस्य हैं । बैंडमिन्टन के कुशल खिलाड़ी एवं होमियोपैथी द्वारा मरीजों को निःशुल्क सेवा करते हैं। आपकी धर्मपली ने सन् 1954 में अष्टान्हिका के आठ उपवास किये थे। वह मुनिभक्त ... हैं तथा आहार आदि देने में पूरी रुचि रखती हैं। आपके चार बड़े भाई उम्मेदमल जी, कुन्दनमल जी,चन्दनमल जी एवं कपूरचंद जी तथा छोटे भाई मदनलाल जी सभी अपने अपने व्यवसाय में कुशल हैं। पता : छीतरमल पाटनी,काली बाडी रोड,हजारी बाग . RA Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /525 श्री जयकुमार जैन गंगवाल सामाजिक कार्यकर्ता एवं उत्साही युबा श्री जयकुमार जैन गंगवालका गया समाज में प्रतिष्ठित स्थान है । आपके पिताजी श्री लक्ष्मीनारायण जां गंगवाल का सन् 1951 में ही निधन हो गया। उस समय उनकी आयु मात्र 52 वर्ष की थी । आपकी माताजी श्रीमती रतनी देवी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। आपका विवाह सन् 1954 में श्रीमती पद्मावती देवी से संपन्न हुआ जो पद्यश्री धर्मचन्द जी की बहिन है । आप दो पुत्रों श्री विजयकुमार एवं राजेशकुमार से अलंकृत हैं । विजयकुमार बी.कॉम. है उनकी पत्नी का नाम ललितादेवी है । राजेश कुमार ने बी.ए.किया है । सीमा पत्नी का नाम है। गया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपके चाचाजी श्री सुगनवंद जी सौधर्म इन्द्र के पद पर आसीन हुये थे। आपने औरंगाबाद मंदिर निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया था। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं । सन् 1986 में जापान की यात्रा की थी। आपकी माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों को आहार आदि देती रहती हैं । बिहारहोजरी एसोसियेशन की उपसभाध्यक्ष हैं। पता: लक्ष्मीनारायण, विजय कुमार कृष्ण प्रकाश पथ, कोतवाली के पास.गया (बिहार) श्री जयदेव छाबड़ा अभ्रक व्यवसायी श्री जयदेव छाबड़ा धार्मिक प्रकृति के एवं भट्ट परिणामी है । प्रतिदिन पूजा अभिषेक करते हैं । मुनिपक्त हैं । आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं । दि.जैन समाज झूमरीतिलैया के 10 वर्ष से भी अधिक समय तक कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह कोडरमा गौशाला के श्री मंत्री रह चुके हैं। आपका जन्म संवत् 1979 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त की और फिर व्यवसाय की ओर मुड़ गये । संवत् 1998 में श्रीमती देवी से विवाह हुआ जिनसे आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का गौरव प्राप्त है । तीन पुत्रों में श्रीपालकुमार,विनोदकुमार एवं संजयकुमार में प्रथम दोनों का विवाह हो चुका है। झुमरीतिलैया में इन्द्रध्वज मंडल विधान हुआ था तब आपने इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त किया । आपकी धर्मपली तीन बार तीर्थ वंदना कर चुकी हैं। छाबड़ा जी शांत स्वभावी हैं तथा अपने व्यवहार से सबको प्रसत्र रखते हैं। पता :- जैन मोहल्ला,झुमरीतिलैया (बिहार) श्री जीतमल छाबड़ा छाबड़ा जी के पूर्वज शेखावाटी के कासली पाम से करीब 150 वर्ष पूर्व भिवानी आये और फिर 75 वर्ष पूर्व कलकत्ता से यहां आकर अभ्रक का व्यवसाय करने लगे । आपका जन्म 77 वर्ष पूर्व आसोज माह में हुआ । आपके पिताजी श्री नानगराम जी छाबड़ा का काफी समय पूर्व स्वर्गवास हो गया और माताजी तो आपको पांच वर्ष का छोड़कर स्वर्ग चली गई। Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 526/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका विवाह श्रीमती पतासी देवी के साथ हुआजिनसे आपको तीन पुत्र सर्वश्री शांतिकुमार,विजय एवं अनिल कुमार तथा पांच पुत्रियों सुशोला,प्रेम,तारा,हेमा एवं रेणु के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी पुत्र एवं पुत्रियों का विवाह हो चुका है । श्रीमती पतासी देवी खंडेला नगर की थी। छाबडा जी शांत प्रकृति के हैं तथा जगन्नाथ जैन कालेज की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। पता : जीतमल जैन, स्टेशन रोड़,झुमरीतिलैया,हजारीबाग | श्री ज्ञानचंद अजितकुमार विनायक्या श्री ज्ञानचंद विनायक्या श्री स्व.लक्ष्मीनारायणजी के सुपुत्र हैं, जो डाल्टनगंज में म्यूनिसिपल कमिश्नर रहे थे तथा डाल्टनगंज जिला कोर्ट में जूरी के पद से अलंकृत हुये । उनका स्वर्गवास सन् 1983 में 80 वर्ष की आयु में हुआ था लेकिन श्री ज्ञानचंद अजितकुमार को माता का आशीर्वाद प्राप्त है । आपका जन्म दिसम्बर सन् 1937 में हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और फिर वस व्यवसाय में चले गये । सन् 1953 में आपका विवाह श्रीमती विमला जी से हुआ। आप रांची के मूलचंद जी गोधा की सुपुत्री हैं। आप दोनों चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं । ज्येष्ठ पुत्र प्रकाशचंद बी.ए. है । धर्मपत्नी का नाम इन्द्रा है जो वी.ए. हैं । दूसरा पुव प्रदीपकुमार,तीसरा पुत्र प्रभात कुमार दोनों बी.ए. हैं । चतुर्थ पुत्र राजेश अभी पढ़ रहा है । तीनों पुत्रियों में स्नेहलता का विवाह हो चुका है। नीता एवं रश्मि पढ़ रही है। आपकी माताजी शुद्ध खानपान का नियम पालन करती थी । आपका छोटा भाई अजितकुमार एम.ए. है। 40 वर्षीय युवा है । पत्नी का नाम सुलोचना है । 4 पुत्रियाँ लीनेट,शुचि,लौनाशी एवं लमीना सभी पढ़ रही हैं। आपकी बहिन श्रीमती विमला एम.ए.बी.एड.हैं तथा वर्तमान में डाल्टनगंज में अडल्ट एजूकेशन विभाग में सुपरवाइजर के पद पर कार्य कर रही हैं। वह आपके पास ही रहती है। पता : लक्ष्मीनारायण ज्ञानचंद जैन,इंजीनियरिंग रोड,डाल्टनगंज श्री ज्ञानचंद हरकचंद अजमेरा श्री मिश्रीलाल जी अजमेरा हजारीबाग जैन समाज के वर्षों तक अध्यक्ष रहे। उनके पूर्वज डॉसरोली (राज) से जावद (मालवा) गये । जावद से चौपारन और चौपारन से हजारीबाग आ गये । अजमेरा जी के 7 पुत्र हुये । सबसे बड़े पुत्र ज्ञानचंद जी अजमेरा है। आपका जन्म सन् 1938 में हुआ। रामगढ़ विद्यालय में मैटिक तक शिक्षा प्राप्त की। मई 1955 में आपका विवाह सागरमल जी पांड्या गिरडीह की सुपुत्री तारादेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके बड़े पुत्र श्री प्रदीपकुमार 31 वर्ष के युवा डाक्टर हैं । आपने एम.एस.न्यूयार्क से किया | आपको पली श्रीमती शिल्पी है जो एक पुत्र की मां है। आप विदेशों में जाते ही रहते हैं। दूसरे पुत्र सुनील 30 वर्ष के युवा व्यापारी है । संगीता धर्मपत्नी है जो एक पुत्री की जननी है । तीसरे पुत्र सुशीलकुमार एम.ए. कर चुके हैं। दोनों पुत्रियों सरिता एवं संगीता का विवाह हो चुका Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ज्ञानचंद जी ने पावापुरी धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण करवाया है। पूरा परिवार पुनिभक्त है। आपके छोटे भाई श्री हरकचंद जी का 11 अगस्त 1944 को जन्म हुआ। रांची विविद्यालय से बी.ई. किया 1 आपकी धर्मपली का नाम नगीना है जो दो पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। दूसरे भाई श्री पदमचंद जी 45 वर्ष के हैं। बी.ए. पास हैं। पत्नी का नाम श्रीमती मीना है जो दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी है। तीसरे भाई श्री धरमचंद जी ने बी.कॉम. किया है। पत्नी का नाम संतोष देवी है। दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । बिहार प्रदेश का जैन समाज /527 है। पांच चोथे भाई श्री दिलीप बाबू हैं। 41 वर्षीय युवा हैं। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती पुष्पा है। दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी श्री देवेन्द्र (35 वीं है पीकर एवं एक पुत्री की मां है। राजेश अजमेरा सबसे छोटे भाई हैं 133 वर्षीय युवा है। बी. ए. हैं। धर्मपत्नी का नाम अनिता है जो एक पुत्री की मां है । दो आपके पांच बहिनें हैं । तारादेवी, चन्द्रकला, शकुन्तला, कुसुम एवं राजश्री है। इनमें श्रीमती शकुन्तला एवं कुसुम का निधन हो चुका है। पता जैन पैट्रोल सप्लाई कम्पनी, क्लब रोड, हजारीबाग । - श्री ज्ञानचंद सेठी खाचरियावास (राज.) से गया (बिहार) आकर बसने वाले स्व. श्री लादूलाल जी सेठी के सुपुत्र श्री ज्ञानचंद सेठी का जन्म कार्तिक सुदी अष्टमी संवत् 1992 को हुआ। आपके पिताजी श्री लादूलाल जी का सन् 1979 में तथा माताजी इचरज देवी का सन् 1984 में स्वर्गवास हो गया था। गया से ही आपने सन् 1953 में मैट्रिक किया और वस्त्र व्यवसाय में चले गये। इसी वर्ष आपका विवाह ठाकुरगंज के श्री कन्हैयालाल जी कासलीवाल की सुपुत्री शांतिदेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र सर्व श्री प्रदीपकुमार, विजयकुमार, संजयकुमार एवं अजयकुमार तथा एक पुत्री मंजू की प्राप्ति हुई। आपकी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति रही है। गया में आयोजित इन्द्रध्वज विधान में आपने इन्द्र के पद को प्राप्त किया । यात्रा प्रेमी हैं तथा प्रतिवर्ष यात्रा पर जाते हैं। आपने वस्त्र व्यवसाय में काफी अच्छी सफलता अपनी सूझबूझ एवं व्यावसायिक दक्षता के आधार पर की है। गया दि. जैन पंचायत एवं जैन भवन के सदस्य हैं। आपके दो छोटे भाई प्रकाशचंद जी सेठी (आयु 48 वर्ष) एवं पवन कुमार जी सेठी (44 वर्ष) हैं। दोनों ही अच्छे व्यवसायी हैं। तथा तीन-तीन पुत्र एवं एक-एक पुत्री के पिता हैं । पता : लादूलाल जी ज्ञानचंद जी सेठी चौक, रमना रोड, गया (बिहार) कोठारी झूमरमल कासलीवाल कोठारी झूमरभल जी श्री शिवदान जी कोठारी के सुपुत्र हैं जिनका 40 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हो गया था। इसके पश्चात् आपकी माता सुन्दरदेवी चल बसी । Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 528 / जैन समाज का वृहद् इतिहास झूमरमलजी का जन्म कार्तिक बुदी संवत् 1984 को हुआ। अपने जन्म ग्राम कालू (राज.) में आपने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। संवत् 1998 में आपका विवाह हो गया। पत्नी का नाम अचरज देवी है। आपको 5 पुत्रों एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। आपके सभी पुत्र अशोक कुमार, महेन्द्र कुमार, प्रकाशचन्द्र, विमलकुमार, सुरेशकुमार का विवाह हो चुका है तथा सभी आपके साथ व्यवसाय कर रहे हैं। आपकी एक मात्र पुत्री हीराकुमारी का तमाङ के संजीवकुमार के साथ विवाह हो चुका है। आपने कालू माम में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में उल्लेखनीय कार्य किया। डाल्टनगंज मंदिर के मंत्री, कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में सदस्य हैं। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव समिति के संयोजक रहे थे। आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। मुनियों की खूब सेवा करती है। आपके छोटे भाई नोरतनमल 56 वर्ष के हैं। उर्मिला देवी पत्नी का नाम है। जो नरायणा (राज) लुहाड़िया परिवार से है। एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं। | पता : झुमरमल नोरतनमल जैन आहत रोड़, नवाहता, डाल्टनगंज (बिहार) श्री झूमरमल सेठी सामाजिक एवं धार्मिक जीवन जीने वाले श्री झुमरमल जी सेठी रांची जैन समाज के विशिष्ट श्रेष्ठी हैं जिन्होंने समाज के विकास में अपना योगदान दिया है। आपके पिताजी श्री चांदमल जी सेठी ने खूड (सीकर)प्राज से यहां करीब 45 वर्ष पूर्व आकर ट्रांसपोर्ट व्यवसाय प्रारंभ किया था जिसमें आपने आशातीत सफलता प्राप्त की है आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भंवर देवी का 25 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। श्री झूमरमल जी सेठी का सन् 1940 में खूड में ही जन्म हुआ किन्तु रांची विश्वविद्यालय से सन् 1960 में आपने बी.कॉम. किया। इसके पूर्व 22.4.1956 को ही आपका विवाह हीरामणि देवी से हो गया था जिनसे आपको पांच पुत्र एवं चार पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपने सन् 1989 में बीस पंथी कोठी शिखर जी में आयोजित इन्द्रध्वज विधान में इन्द्र के पद को प्राप्त किया तथा सन 1985 में भी जब देवघर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संपत्र हुई तो उसमें भी आपने इन्द्र का पद ही लिया । आप प्रतिदिन पूजा-प्रक्षाल करते हैं। रांची दि. जैन पंचायत की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। दि. जैन समाज समिति के सहायक मंत्री हैं । अपने ग्राम खूड में भंवरीदेवी कन्या पाठशाला भवन बनवा कर राज्य सरकार को दिया है। आपकी धर्म पत्नी शुद्ध खान-पान का नियम है। पूरा परिवार मुनि भक्त हैं । आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री रमेशकुमार बी क्रॉम, एल. एल. बी हैं। 25 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम अनिता है जो बाबूलाल जी पहाड़े हैदराबाद की पुत्री है। शेष चारों पुत्र प्रदीपकुमार, चेतनप्रकाश, श्रवण कुमार एवं कमलकुमार पद रहे हैं। चार पुत्रियों में राजदुलारी, मीनाकुमारी, स्वर्णलता का विवाह हो चुका है। प्रेमलता अभी अविवाहित है । आपके छोटे भाई श्री राजकुमार जी हैं। पत्नी का नाम सुशीला देवी है। तीन पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। आपकी तीन बहिनें हैं- श्रीमती शकुन्तलादेवी, शोभादेवी एवं रेखादेवी। सभी का विवाह हो चुका है । पता - सेठी ट्रांसपोर्ट, कचहरी रोड, रांची (बिहार) Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /529 श्री ताराचंद गोथा गिरडीह के ताराचंद जी गोधा समाज के प्रतिष्ठित सदस्य हैं। आप भी भंवरलाल जी गोधा के सुपुत्र हैं जिनका स्वर्गवास 1967 में 53 वर्ष की आयु में हो गया। आपकी माता जी राजाबाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। I गोधा जी का जन्म 1 मई सन् 1939 को हुआ। जयपुर महाराजा कॉलेज से आपने सन् 1959 में बी.एस.सी. किया और फिर अभ्रक व्यवसाय में लग गये। सन् 1963 में आपका विवाह श्रीमती कुमुददेवी से संपन हो गया। जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रवीणकुमार 24 वर्षीय युवा है तथा 21 वय नवीनकुमार विद्यार्थी हैं दोनों पुत्रियाँ कविता और विनीता भी पढ़ रही है। $! आपकी माताजी एवं धर्मपत्नी दोनों के शुद्ध खान-पान का नियम है। दोनों ही मुनियों को आहार देती रहती हैं। आप दि. जैन समाज एवं दि. जैन विद्यालय गिरडीह के सेक्रेट्री रह चुके हैं। गुढा साल्ट में अपने पिताजी की स्मृति में गोधा सुवालाल भंवरलाल मेमोरियल हास्पिटल की बिल्डिंग बनवाकर सन् 1970 में राज्य सरकार को संचालन के लिये दिया है। गांधी नेत्र चिकित्सालय अलीगढ़ में एक पूरा ब्लाक बनवा कर सरकार को दिया है। श्री महावीर जी क्षेत्र पर आदर्श महिला विद्यालय में एक हाल आपके छोटे भाई धर्मचंद जी गोधा द्वारा बनवाया गया है । पता:- बी.बी.सी. रोड गिरडीह (हजारीबाग) 1 आपके दो छोटे भाई धर्मचंद जी गोधा एवं विमलकुमार जी गोधा है। धर्मचंद जी एम.बी.ए. हैं तथा अमेरिका में आयात-निर्यात का कारोबार करते हैं। उनकी पत्नी का नाम बेला है जो दो पुत्रों की मां है। श्री विमलकुमार धनबाद में रहते हैं पत्नी का नाम निम्मी है जो एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। आपकी चार बहिनें हैं रतनीदेवी, मैनादेवी, मणि कोठारी एवं संतोषदेवी सभी विवाहित है। श्री दीनदयाल काला आपके दादाजी श्री चतुर्भुज जी काला यहाँ करीब 100 वर्ष पूर्व राधाकिशनपुरा (जयपुर) से आये थे। उनके पुत्र सूरजमल जी का भी 33 वर्ष पूर्व 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। आपका जन्म संवत् 1991 में हुआ। रफीगंज से ही मैट्रिक किया और फिर वस्त्र व्यवसाय की ओर चले गये। सन् 1956 में आपका विवाह श्रीमती कमलादेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको छह पुत्रों की प्राप्ति हुई । 1 सबसे बड़े पुत्र अभयकुमार 33 वर्षीय युवा हैं बी कॉम हैं पत्नी का नाम बीना है। जो दो पुत्रों की जननी है। दूसरे पुत्र दिलीपकुमार 30 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम सरिता है। एक पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। शेष चार पुत्र राजेशकुमार बी काम. विमलकुमार, अजयकुमार, संजयकुमार पढ़ रहे हैं। विमल कुमार एवं अजयकुमार जोड़ले भाई हैं। Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 530/ जैन समाज का जहर इतिहास श्री काला जी औरंगाबाद पंचकल्याणक में ईशान इन्द्र के पद से अलंकृत हो चुके हैं। आप विगत 13 वर्षों से रफीगंज जैन समाज के मंत्री है। आचार्य संभवसागर जी महाराज चातुर्मास समिति के मंत्री रह चुके हैं । गया जी में सन् 1981 में जनमंगल रथ में सारथी बने थे । आल इंडिया दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बम्बई के सम्माननीय सदस्य हैं। आपकी पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। मुनियों को आहार देती रहती हैं। पता: दीनदयाल काला, रफीगंज (औरंगाबाद) बिहार श्री धरमचंद छाबड़ा आपके पूर्वज राजस्थान निवासी हैं। पालावास के श्री रामकुमार सुपुत्र लादूलाल जी पहले कलकत्ता गये और फिर झुमरीतिलैया आये और यहीं पर व्यवसाय में काफी सफलता प्राप्त की । श्री धरमचंद का जन्म संवत् 2005 में फाल्गुण सुदी में हुआ। आपने मैट्रिक किया और आपके पिताजी श्री लादूलाल जी का स्वर्गवास 5-12-1965 को हुआ । मैट्रिक तक अभ्रक के व्यवसाय में लग गये। सन् 1960 में आपका विवाह श्रीमती सरोजदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको पांच पुत्रों - मनोज कुमार, संजय,ललित, राजेश एवं विनय की प्राप्ति हुई। आपके पिताजी श्री लादूलाल जी पंचकल्याणकों में इन्द्र की बोली लेते रहते थे। भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक के अवसर पर स्वर्णकलश की बोली ली थी । आपकी माताजी भी शुद्ध खान-पान वाली महिला थी उन्होंने दो बार दशलक्षण वत के उपवास किये थे। __ आपके चार छोटे भाई निर्मलकुमार जी,त्रिलोककुमार जी,वीरेन्द्रकुमार जी सभी उत्साही युवक हैं। श्री निर्मलकुमार जी तो वर्तमान में दि. जैन समाज की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। पता: छाबड़ा ब्रदर्स,स्टेशन रोड ,झूमरीतिलैया श्री नन्दलाल सेठी हजारीबाग जैन समाज के अध्यक्ष एवं मंत्री पद पर रहे हुये श्री नन्दलाल जी सेठी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं । आपका जन्म जेठ बुदी 4संवत् 1970 में हजारीबाग में हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप ट्रांसपोर्ट एवं एजेन्सी व्यवसाय में चले गये 112 वर्ष की बाल अवस्था में ही श्रीमती पतासी देवी के साथ आपका विवाह हो गया । जिनसे आपको दो पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री भागचंद 55 सन्त देख चुके हैं। उनकी पत्नी का नाम कंचन बाई है। जो तीन पुत्र सुशील, सुबोध एवं सुनील एवं एक पुत्री सीमा की जननी है। सभी का विवाह हो चुका है। दूसरे पुत्र श्री विनोदकुमार 36 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम सुशीला है जो दो पुत्र विनीत एवं नलिन की मां है। ___ आपने हजारीबाग में दि. जैन माध्यमिक विद्यालय को समाज के सहयोग से स्थापित करने का यशस्वी कार्य किया। समाज के होमियोपैथिक अस्पताल के आप संचालक है । बंगाल विहार तीर्थ क्षेत्र कमेटी एवं बिहार प्रान्तीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सदस्य हैं। महासभा के सदस्य हैं। मुनिभक्त हैं। Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /531 पुनियों के पिता है। दूसरे भाई मनसुखलाल आपके दो छोटे भाई श्री स्वरूपचंद 5 वर्ष के हैं । पुत्र जी 73 वर्ष के है। उनकी पत्नी का नाम कंचनदेवी हैं। आप दो पुत्र एवं पांच पुत्रियों के पिता हैं । आपके पिताजी श्री कस्तूरचंद जी करीब 1100 वर्ष पहिले दांतारामगढ़ से यहाँ पधारे थे । पता : आनन्द मोटर सर्विस, बाडम बाजार, हजारीबाग (बिहार) श्री नरेशकुमार जैन पहाड़िया पटना का पहाड़िया परिवार राजस्थान के खूड बानूडा पाम से करीब 100 वर्ष पूर्व यहां आकर रहने लगे। सर्वप्रथम श्री सूरजमल जी बाकलीवाल आये जिन्होंने अंतिम में मुनि धर्म स्वीकार किया तथा समाधिमरण किया। उनके पुत्र स्व. बसन्तीलाल जी हुये और वसन्तीलाल जी के 29 सितम्बर 1942 को श्री नरेशकुमार जी पहाड़िया हुये । बसन्तीलाल जी का सन् 1977 में 76 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। लेकिन उनकी पत्नी श्रीमती पश्ना कुंवर का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। श्री नरेशकुमार जी ने सन् 1965 में बी.कॉम. एवं सन् 1968 में एल. एल. बी. किया। लेकिन वस्त्र, बर्तन एवं होटल व्यवसाय करने लगे । दि. 7 मार्च 62 को आपका विवाह अडंगाबाद की श्रीमती मीरादेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको एक पुत्र संजयकुमार एवं चार पुत्रियां सुनीता, पूनम, कुमोद एवं भारती की प्राप्ति हुई। सुनीता का विवाह हो चुका है। फतेहपुर शेखावाटी में आपने मंदिर में पंचकल्याणक कराया तथा गुलजार क्षेत्र का जीर्णोद्धार करवाया एवं वहां वेदी प्रतिष्ठा करवाई। आप तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं तथा तीर्थ संघों का संचालन करते रहते हैं। श्री सूरजमल जी ने ईसरी में पार्श्वनाथ उदासीनाश्रम की स्थापना की और अपना समाधिमरण प्राप्त किया। आपने कोडरमा में पार्श्वनाथ हायर सैकण्डरी विद्यालय की स्थापना की। आपने बांकापुर में अपने ही मकान में चैत्यालय स्थापित किया। श्री नरेशकुमार जी भी बहुत ही गतिशील समाजसेवी हैं। आप जैन संस्था पटना के पहिले संयोजक और वर्तमान में प्रचार मंत्री हैं । इसी तरह दि. जैन पंचायत के संयुक्त मंत्री एवं कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। आप बिहार राज्य धार्मिक न्यास के सदस्य हैं । दि. जैन महासमिति के भी पदाधिकारी रह चुके हैं। आपने विश्व जैन कांफ्रेस में बिहार का प्रतिनिधित्व किया है। आपके चार भाई और हैं अशोककुमार, विमलकुमार, निर्मलकुमार एवं संतोषकुमार । पता :- सूरजमल बाकलीवाल, लक्ष्मी भवन, बांकीपुर, पटना श्री नेमीचंद बड़जात्या मारोठ (राजस्थान) से आये श्री नेमीचंद का जन्म भादवा सुदी 11 संवत् 1987 को मारोठ में हुआ। आपके पिताजी श्री कुंदनमल जी का स्वर्गवास सन् 1963 में तथा माताजी श्रीमती भंवरीदेवी का स्वर्गवास संवत् 1961 में हुआ था। श्री नेमीचंद जी ने सामान्य शिक्षा प्राप्त की। आपका विवाह संवत् 2006 में वैशाख सुदी 7 सुलोचनादेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र नीरज एवं विक्रम तथा तीन पुत्रियां संगीता बबीता एवं सरोज की प्राप्ति हुई। सरोज का विवाह हो गया शेष सब पढ़ रहे हैं। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 532) जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके द्वारा मारोठ के साहों के मंदिर में वेदी का जीर्णोद्धार करवाया तथा पदमपुरा में बाहुबली स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाकर कुचामन के मंदिर में विराजमान की। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है । पूरा परिवार मुनिपत है। आपके चार छोटे भाई हैं : श्री महावीर प्रसाद 52 वर्ष के हैं । पत्नी का नाम पतासीदेवी है। जो अष्टान्हिका का उपवास कर चुकी हैं । तीन पुत्रियों एवं दो पुत्रों से अलंकृत है। दूसरे भाई सोहनलाल 45 वर्ष के हैं । बी.ए.पास हैं । गुणमाला देवी पत्नी है जो एक पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। तीसरे भाई मोहनलाल 44 वर्ष के हैं । एम.काम हैं । रांची में सैलटैक्स आफीसर हैं। उनकी पत्नी प्रेमलता एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की माता है। सबसे छोटे भाई ज्ञानचंद जी बी.ए. हैं। 40 वर्षीय युवा हैं । मेडीकल स्टोर चलाते हैं। पत्नी का नाप शांति है जो एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। पता : धर्मचन्द महावीरप्रसाद, पुरानी गोदाम, गया (बिहार) श्री पदमचंद अजमेरा गया दि.जैन समाज के वर्तमान अध्यक्ष श्री पदमचंद अजमेरा का जन्म 14 अगस्त सन् 1933 को हुआ। आपके पिताजी श्री सुगनचंद जी का 9.1.1976 को 62 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। आपकी माता जी श्रीमती मत्रीदेवी जी कुचामन के श्री प्रभुलाल जी पांड्या की सुपुत्री हैं जिनका आशीर्वाद प्राप्त है। आपने मैट्रिक परीक्षा पास की तथा यस व्यवसाय (होलसेल एवं रिटेल) में लग गये । सन् 1948 में आपका विवाह श्रीमती विद्या कुमारी के साथ संपन्न हुआ। आपके पूरे . , परिवार की मुनि सेवा में पूर्ण रुचि रहती है । माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है । अजमेरा ... जी चार महिने तक सन् 1940 में अमेरिका एवं यूरोप में भ्रमण कर चुके हैं । आप दि.जैन विद्यालय गया के 6 वर्ष तक मंत्री रहे। महिला शिक्षालय के सक्रिय सदस्य हैं । चैम्बर आफ कामर्स मलावी ब्लड बैंक के सदस्य हैं। आपके तीन छोटे भाई हैं। श्री विजयकुमार 48 वर्षीय हैं। शकुन्तला धर्मपत्नी हैं। उनके दो पुत्र अजयकुमार एवं अमितकुमार हैं। दूसरे भाई देवेन्द्रकुमार 45 वर्षीय युवा हैं । एम.एस.सी. है। पत्नी का नाम आया है जो दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। आप साकेत दुकान देखते हैं । तीसरे भाई वीरेन्द्र कुमार जियोफिजिस्ट में फर्स्टक्लास फर्स्ट रहे हैं। सन् 1969 के . .. श्रीमती विद्याकुमारी श्री बी.के.जैन श्री देवेन्द्र कुमार Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /533 गोल्ड मेडलिस्ट हैं । यू.एस.ए.की केलीफोर्निया विश्वविद्यालय से उच्च अध्ययन कर विगत 20 वर्ष से अमेरिका के टैक्सास करोलटन नगर में रहते हैं। आपकी पत्नी का नाम लता सनी है । एम.ए है। अमरोहा के कस्तूरचंद जी बाकलीवाल की पुत्री हैं। तीन पुत्रियों - सारिका, स्मिता एवं मोनिका की मम्मी है । पहिले लता जी भी वर्ल्ड बैंक में कार्य करती थी। अजमेरा जी के दो बहिनें हैं-शकुन्तला एवं कमलादेवी । दोनों का विवाह हो चुका है। पता : -श्री वीर वस्त्रालय,गोतम बुद्ध रोड, गया 2- साकेत, के.पी रोड़,गया 3. गया मारवाड़ी स्टोर्स, भगवान महावीर पथ, गया श्री बीरेन्द्र कुमार श्री प्रभुदयाल छाबड़ा सीकर (राब) से आये हुये श्री प्रभुदयाल जी छाबड़ा का जन्म सन् 1932 में हुआ था। आपके पिता श्री मोतीलाल जी का स्वर्गवास हुये करीब.45 वर्ष हो गये। माताजी श्रीमती पतासी देवी का निधन अभी 7-8 वर्ष पूर्व ही हुआ है। आपने सीकर से ही इन्टर (आर्टस) की परीक्षा पास की और फिर इधर अभ्रक व्यवसाय में लग गये। सन् 1952 में बसन्त पंचमी को आपका विवाह श्रीमती पन्नादेवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको एक पुत्र सुरेश एवं चार पुत्रियों कुसुम,रेखा,उषा एवं पुष्पा की प्राप्ति हुई । सभी का विवाह हो चुका है । सुरेश कुमार देहली में व्यवसायरत हैं। आपकी धर्मपत्नी दशलक्षण व्रतों में दस उपवास कर चुकी हैं । घर का पूरा वातावरण शांत एवं मधुर रहता है। आएका आतिथ्य प्रेम प्रशंसनीय है। पता : जैन मोहल्ला,झुमरीतिलैया (हजारीबाग) बिहार श्री प्रताप छाबड़ा 140 वर्ष पूर्व राणोली राज से आने वाले श्री प्रताप छाबड़ा के दादाजी श्री महासुख जी छाबड़ा यहां आकर बस गये । आपके (श्री प्रतापजी) के पिताजी श्री कन्हैयालाल जी सन् 1975 में 66 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी-बन गये । किन्तु आपकी माताजी श्रीमती हरजी बाई की अभी छत्रछाया प्राप्त है। आपका जन्म 23 अगस्त सन् 1952 को हुआ । सन् 1972 में हजारीबाग कालेज में बी.ए(आनर्स) किया । सन् 1974 में आपका विवाह श्रीमती मधु जैन से हो गया जो हाटपीपल्या के श्री मनोहरलाल जी टोंग्या की सुपुत्री हैं । आपके एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं । पुत्र नवल एवं पुत्रियां,प्रगति,पल्लवी एवं पूजा हैं। सभी पढ़ रहे हैं। श्री छाबड़ा जी ने हजारीबाग के बड़े मंदिर में वेदी बनवाकर उसमें भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान की थी। आपने अधिकांश तीर्थों की वंदना कर ली है। आपका परिवार आचार्यशानसागरजी महाराज के परिवार से है। आपकी माताजी Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 534/ जैन समाज का वृहद इतिहास शुद्ध खान-पान का नियम पालन करती हैं । आपके पिताजी बिहार दि जैन धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष थे । वर्तमान में श्री प्रताप छाबड़ा उसके सदस्य हैं । इसी तरह आपके पिताजी दि.जैन समाज के अध्यक्ष रहे,वर्तमान में आप उसके ट्रस्टी हैं । आपके पिताजी म्यूनिसिपल बोर्ड के उपाध्यक्ष थे । हजारीबाग की सभी सामाजिक संस्थाओं से वे जुड़े हुये थे । उन्होंने पावापुरी,वैशाली, कोल्हवा पहाड़,तेरापंथी कोठी शिखर जी में कमरों का निर्माण करवाया । वे कांग्रेस के भी अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष रहे थे। आपके पिताजी के श्री मांगीलाल जी बड़े भाई थे जिनका सन् 1958 में ही स्वर्गवास हो गया। छोटे भाई महावीरप्रसाद पता - जैन पैट्रोल सप्लाई कम्पनी,क्लब रोड,हजारीबाग। श्री प्रकाशचंद जैन सेठी गिरडीह नगरपालिका के पांच वर्ष तक आयुक्त रहने वाले श्री प्रकाशचंद जैन सेठी गिरडीह के प्रमुख समाजसेवी हैं । आपके पूर्वज श्री हजारीमल किशोरीलाल भी सामाजिक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्ति थे। आपका जन्म 12 जनवरी सन् 1944 को हुआ । सन् 1965 में एम.ए. एवं 66 में एल.एल.बी.किया। इसके पश्चात् आप सामान्य विक्रेता बन गये। सन् 1967 में आपका विवाह - श्रीमती इन्द्रादेवी के साथ हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुत्र का नाम आलोक सेठी एवं पुत्रियां रश्मि, ज्योति एवं सीमा है । सभी पढ़ रहे हैं। आपकी पाताजी के दो प्रतिमायें है तथा पिछले 25 वर्षों से वह महिला समाज की मंत्री हैं तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक आयोजनों में प्रमुख पार्ट अदा करती हैं । आपके छोटे भाई का नाप विजय कुमार है । 40 वर्षीय युवक है । पत्नी का नाम हेमलता है । दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। पता : श्री महावीर खाद्य भंडार स्टेशन रोड,गिरडीह (बिहार) श्री पूनमचंद गंगवाल पचार (राजस्थान) में जन्में श्री पूनमचंद जी गंगवाल की वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक नेताओं में गणना की जाती है। गंगवाल साहब अ.भा.दि.जैन महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष है तथा इतनी अधिक संस्थाओं से जुड़े हुये है कि उनकी गणना करना कठिन लगता है । श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के संरक्षक है। आप जैन समाज के भामाशाह हैं जिन्होंने अब तक समाज की विभिन्न संस्थाओं,धार्मिक संस्थाओं,आचार्यों एवं मुनिराजों की सेवा सुश्रुषा एवं अन्य सेवाभावी कार्यों में लाखों रुपयों का दान देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप कुचामन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में, सीकर में आयोजित इन्द्र ध्वज मंडल विधान में सौधर्म इन्द्र के यशस्वी पद से अलंकृत हुये तथा लूणवा (राज) में वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न कराया। सन् 1981 में आयोजित भगवान बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अवसर पर 1000 यात्रियों का संघ लेकर सबको भगवान गोम्मटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा का अभिषेक करने का अवसर प्रदान किया और यशस्वी कार्य संपादन के लिये तीर्थ भक्त, दानवीर जैसी उपाधियों से विभूषित किये गये। भागलपुर, श्री महावीर जी, सीकर, श्रवणबेलगोला, त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर में विभिन्न सम्मान पत्रों, उपाधियों से अलंकृत हो चुके हैं । बिहार प्रदेश का जैन समाज /535 आपके द्वारा देवीपुरा सौकर मंदिर में चन्द्रप्रभु स्वामी को प्रतिमा तथा गोमियाना में शांतिनाथ की विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया गया। आपका जन्म फाल्गुण शुक्ला पूर्णिमा संवत् 1985 को हुआ। आपके पिताजी श्री नेमीचंद जी गंगवाल थे जिन्होंने क्षुल्लक दीक्षा धारण करके नेमीसागर तथा अन्त में मुनि दीक्षा धारण कर कुचामन में पुरानी नशियां में समाधि मरण प्राप्त किया। जिनकी वहां समाधि बनी हुई है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कमला देवी है तथा आप पांच पुत्रों हंसराज, गजराज, दिलीपकुमार, प्रदीपकुमार, ललितकुमार तथा दो पुत्रिय श्रीमती अंजना देवी एवं श्रीमती मंजूदेवी से अलंकृत हैं । आपकी ओर से वर्तमान में तिजारा एवं श्री महावीर जी में निशुल्क भोजनालय चल रहे हैं। वह भी आपकी उदारता का परिचायक है। गंगवाल साहब उन्नतशील व्यक्तित्व के धनी हैं। समाज को आपसे बहुत अपेक्षायें हैं। पता: 1. धर्मशाला रोड, झरिया 2. जैन कुंज, कालोनी, जयपुर श्री फूलचंद अजमेरा श्री अजमेरा जी का जन्म 17 अगस्त सन् 1919 को हुआ। आपके पिताजी श्री सोनूलाल जी का 14 वर्ष पूर्व 76 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ तथा माताजी श्रीमती मोहिनी बाई जी का इसके पहिले ही निधन हो गया था। सोनूलाल जी सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख कार्यकर्ता रहे थे। श्री फूलचंद जी ने सन् 1940 में आगरा विश्वविद्यालय से बी.कॉम. किया। इसके पूर्व ही सन् 1935 में आपका विवाह सितारा देवी से हो गया जिनसे आपको पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्रीमती सितारादेवी के शुद्ध खानपान का नियम था। आप प्रायः उपवास करती रहती थीं। आपका करीब 14 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। अजमेरा जी रेल्वे एवं पी.डब्ल्यू.डी. के ठेकेदार हैं। आपके पांच पुत्र सर्व श्री अजितकुमार, अरुणकुमार, अनूपकुमार, मनोजकुमार एवं दीपककुमार हैं सभी ग्रेज्यूएट हैं। प्रथम तीन पुत्रों का विवाह हो चुका है तथा अंतिम दो पुत्र अभी अविवाहित हैं तथा जो पिताजी के साथ कार्य करते हैं। पुत्रियों में कुसुमलता, कंचन, बीना, रेणु एवं शोभा सभी का विवाह हो चुका है। Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 536/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके तीन छोटे भाई हैं जिनमें श्री कपूरचंद जी जो रायबहादुर हरकचंद जी पांड्या के दामाद थे स्वर्गवास हो चुका है। शेष दो भाई ताराचंद जी एवं धर्मचन्द जी अपना स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं। आपके दो बहिनें चन्द्रकला एवं बिमला है। दोनों विवाहित हैं। श्री अजमेरा जी धार्मिक प्रकृति के हैं। सभी को सहयोग देने की भावना रहती है तथा गया समाज के प्रतिष्ठित समाजसेवी 1 पता: 1. सोनूलाल फूलचंद अजमेरा रिवर साइड, गया (बिहार) 2- अरुण स्टोर वर्क्स 85, रिवर साइड रोड़, गया श्री फूलचंद काला 80 वर्षीय श्री फूलचंद जी काला झिल्या (नागौर) के निवासी हैं। डाल्टनगंज में 25 वर्ष पूर्व आकर रहने लगे। आपके पिताजी का नाम श्री पश्नालाल जी एवं माता का नाम मलकू बाई था। आपकी पत्नी का नाम दाखा बाई है। आपके 3 पुत्र एवं 2 पुत्रियां हैं। आपने लाडनूं के दि जैन चन्द्र सागर स्मारक में चन्द्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा विराजमान की है। आपके बड़े पुत्र कैलाशचन्द जी 55 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी रतनदेवी है। दो पुत्र एवं पांच पुत्रियाँ हैं। दूसरे पुत्र भागचन्द जी 45 वर्षीय हैं। धर्मपत्नी का नाम फूलमती देवी है। पलास जिला व्यवसायी संघ के मंत्री, कोषाध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष रह चुके हैं। गौशाला डाल्टनगंज के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। आपके 6 पुत्र एवं एक पुत्री है। तृतीय पुत्र श्री प्रकाशचन्द जी बी कॉम है। झिल्या (कुचामन) में रहते हैं। धर्मपत्नी का नाम मंजूदेवी है जो तीन पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है तथा मुनि सेवा को प्राथमिकता देते हैं। पता : 1 श्री महाबीर प्रसाद एण्ड कम्पनी, आढतर रोड, डाल्टनगंज 2. फूलचन्द कैलाशचंद, झिल्या (कुचामन) राज़. श्री फूलचंद चौधरी पाटोदी मींडा (राज) से आकर गिरहीह में व्यवसायरत श्री फूलचंद जी चौधरी गिरडीह समाज प्रमुख समाजसेवी हैं । आपका जन्म माह बुदी सप्तमी संवत् 1978 में हुआ। आपके पिताजी श्री राजमल जी चौधरी का स्वर्गवास सन् 1942 में तथा माताजी का निधन सन् 1981 में 72 वर्ष की आयु में हुआ। आपने रेनवाल (राज) में धार्मिक शिक्षा न्याय मध्यमा की और गिरडीह में माइका एजेन्सी एवं मनीलैडिंग का कार्य करने लगे। सन् 1939 में आपका विवाह श्रीमती मोहिनीदेवी से हुआ जिनसे आपको चार पुत्रों एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके सबसे बड़े पुत्र श्री विजयकुमार 40 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम शशि जैन है। तीन पुत्रियों एवं एक पुत्री की जननी है। दूसरे पुत्र श्री प्रदीपकुमार बी.कॉम. हैं। पत्नी का नाम सरोज है। एक पुत्र की मां है। तीसरे पुत्र श्री संजयकुमार की आयु 27 वर्ष की है। नीता धर्मपत्नी का नाम है। सबसे छोटा पुत्र अजयकुमार अभी पढ़ रहा है । Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /537 चौधरी जी की सामाजिक एवं धार्मिक सेवायें उल्लेखनीय हैं । आप सम्मेद शिखर में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में इन्द्र के पद से सुशोभित होते रहते हैं । आपने मध्य लोक शोध संस्थान में आर्थिक सहयोग दिया है। आपकी पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनिभक्त है । आहार आदि से मुनिभक्ति करते रहते हैं । पहिले आप बिहार प्रान्तीय खण्डेलवाल जैन महासभा के शाखा मंत्री रहे थे। . आप जयपुर के पंडित चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के शिष्य श्रीमती मोहिनी देवी श्री विजयकुमार श्री बनारसीलाल सेठी, गिरडीह __स्व. दलसुखराय सेठी परिवार में जन्मे श्री बनारसीलाल सेठी अत्यधिक उत्साही समाजसेवी हैं। आपके माता-पिता दोनों का ही बहुत पहिले स्वर्गवास हो चुका है । आपने my मैट्रिक परीक्षा पास की और जरदा पत्ती का व्यवसाय करने लगे । दिसम्बर सन् 1939 में आपका विवाह श्रीमती कपूरीदेवी के साथ हो गया जिनसे आपको दो पुत्र श्री सुरेन्द्रकुमार एवं अंशोककुमार की प्राप्ति हुई। दोनों पुत्रों का विवाह हो चुका है । श्री सुरेन्दकुमार सिविल इन्जीनीयर हैं । अमेरिका में रहते हैं। आपके पूर्वजों ने बीस पंथी कोठी सम्मेदशिखर जी में कोठी के बाहर बाहुबली स्वामी " की प्रतिमा विराजमान की थी। गिरडीह चैम्बर ऑफ कॉमर्स के वर्तमान में अध्यक्ष हैं । जैन श्रीमती कपूरी देवी विद्यालय के पूर्व में सैक्रेटी एवं वर्तमान में कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं। गोइन्का सेवा सदन के 1982-86 तक सेक्रेट्री रह चुके हैं । SEAR श्री बंशीधर साह स्व.श्री दयालचंद जी के तीसरे पुत्र श्री बंशीधर जी साह भी गिरडीह के प्रमुख सामाजिक व्यक्ति हैं । आप 60 वर्ष पार कर चुके हैं। अभ्रक का व्यवसाय करते हैं । सन् 1951 में आपका विवाह पचार (राजई के बंशीधर जी सेठी की पुत्री सुलोचना देवी के साथ हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । सन् 1983 में सम्मेदशिखर जी में आयोजित इन्द्र ध्वज विधान में सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हुये । आपके द्वारा शिखर जी की बीस पंथी कोठी के आगे Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 538/ जैन समाज का वृहद इतिहास समवशरण के मंदिर में मानस्तंभ का निर्माण करवाया। अपनी ओर से लूणवा अ.क्षेत्र पर गेट लगाने का कार्य संपन्न कर चुके साह साहब दि. जैन समाज गिरडीह के वर्तमान में उपाध्यक्ष है। जैन विद्यालय के भी उपाध्यक्ष हैं । अ. पा. दि.जैन महासभा के सदस्य हैं । गिरडीह में जर तीन लोक मंडल विधान हुआ था उसमें आप सारथी बने थे । आपके ज्येष्ठ पुत्र सुरेशचंद बी.ए. हैं । किरण पली का नाम है जो एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। दूसरे पुत्र श्री राजेशकुमार बी.एस.सी.,बी.कॉम. है। उनकी पत्नी का नाम शशि जैन है। तीसरे पुत्र कमलेशकुमार बी.ए. हैं । निशा उनकी पत्नी है । आप देहली में सप्लाई का कार्य करते हैं। सबसे छोटे पुत्र विजयकुमार बी.ए. हैं 1 अविवाहित है। पता: मकतपुर चौक,गिरडीह श्री बालचंद छाबड़ा गया जैन समाज के प्रतिष्ठित सदस्य,बिहार प्रान्तीय दि.जैन महासभा के वरिष्ठ सदस्य, धार्मिक प्रवृत्तियों में व्यस्त रहने वाले श्री बालचंद छाबड़ा उम्रतशील व्यक्तित्व के धनी हैं । आपका जन्म चैत्र बुदी अमावस संवत् 1985 को हुआ। आपके पिता श्री पन्नालाल जी छाबड़ा का 39 वर्ष पूर्व 63 वर्ष की आयु में निधन हो गया । आपकी माताजी श्रीमती कपूरीदेवी जी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। आपने सीकर से सन् 1944 में मैट्रिक किया । सवत् 2002 फाल्गुण बुदी 6 को आपका विवाह इन्द्रमणि जी के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको दो पुत्र कमलकुमार,मनोजकुमार तथा तीन पुत्रियाँ नीलम, सरोज,रेणु की प्राप्ति हुई। श्री कमलकुमार 31 वर्षीय हैं । मनोज पढ़ रहा है । तीनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। छाबड़ा जी के पैट्रोल पम्प,तेल,चावल, दाल मिल,किरोसिन डालडा आदि का व्यवसाय है | चम्पापुर (नाथनगर) के पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये । औरंगाबाद पंचकल्याणक में आपके पुत्र कमलकुमार इन्द्र बने हैं। यहां के मंदिर का सन् 1984 में शिलान्यास भी आपने ही किया था। पदम प्रभु क्षेत्र पर आदिनाथ स्वामी की श्याम पाषाण की प्रतिमा तथा नाथ नगर में मूर्ति विराजमान करने का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। अभी आपने उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में चौसठ ऋद्धि विधान सम्पन्न कराया है। मुनियों के भक्त हैं। राजगृही में विमलसागर जी महाराज के लिये तीन महिने तक आहार दिया था। सामाजिक एवं सार्वजनिक कार्यों में खूब भाग लेते हैं। शुद्ध खानपान का नियम है । समाज के विकास में खूब योग देते रहते हैं। पता : 1- स्वास्तिक, ए एन रोड,गया 2- भारत आटोमोबाइल्स स्टेशन रोड Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बाबूलाल पाटन श्री पाटनों जी रामगढ जैन समाज के विशिष्ट समाजसेवी हैं। आपके पिताजी श्री फतहचन्द जी पाटनी सन् 1950 में लाडनूं से पहिले कलकत्ता गये और फिर से रामगढ में आकर बस गये । सन् 1959 में उनका स्वर्गवास हो गया उस समय उनकी आयु केवल 58 वर्ष की थी । आपकी माताजी श्रीमती सुगनी बाई का अभी 11 वर्ष पूर्व ही निधन हुआ है। बिहार प्रदेश का जैन समाज /539 श्री बाबूलाल जी पाटनी का जन्म संवत् 1988 में हुआ। आपकी शिक्षा बनारस में हुई । संवत् 2005 में आपका विवाह कोडरमा के श्री मोतीलाल जी छाबड़ा की सुपुत्री मनोरमा के साथ हुआ। जिनसे आपको 2 पुत्र अरविन्द (26 वर्ष) एवं अजयकुमार (21 वर्ष) तथा चार "मार्गदर्शक : पुतियाँ है । एवं संतोष की पाप्ति हुई। सभी पुत्रियों का विवाह हो गया आपके बाबाजी श्री मूलचन्द जी पाटनी ने फुलेरा में मंदिर का निर्माण करवाया तथा फिर संवत् 2004 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का आयोजन करवाया। आप उस प्रतिष्ठा समारोह में इन्द्र बने थे । लाडनूं में घर की नींव खोदते समय दो मूर्तियाँ निकली थी जिनको वहाँ के मंदिर में विराजमान कर दिया 1 आप रामगढ जैन समाज के मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में कार्यकारिणी सदस्य एवं ट्रस्टी हैं। आपके 4 भाई श्रीपाल जी (53 वर्ष) जीवणमल जी (37 वर्ष) मक्खनलाल जी (35 वर्ष) जम्बूकुमार जी (31 वर्ष) तथा तीन बहिनें किरणदेवी, इलायचीदेवी एवं उमरावदेवी हैं। एक भाई सागरमल जी का 9 मई सन् 1959 में देहान्त हो गया था । पता- मक्खनलाल एण्ड ब्रदर्स, मैनरोड, रामगढ केन्द्र (बिहार) श्री भंवरलाल कासलीवाल श्री कासलीवाल जी रफीगंज के विशिष्ट समाजसेवी हैं। धार्मिक प्रकृति के हैं। प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं। आपके द्वारा लादूलाल जैन विद्यालय भवन में एक कमरे का निर्माण कराया। औरंगाबाद मंदिर निर्माण में आर्थिक योगदान दिया गया । तेरापंथी कोठी, शिखर जी के पूजन फंड के सदस्य हैं। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपके पिताजी श्री हरलाल जी 50 वर्ष की आयु में सन् 1969 में एवं माँ भरजी बाई दोनों का 30 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। आपका जन्म संवत् 1979 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् संवत् 2001 में आपका विवाह इन्द्रमणिदेवी के साथ हो गया लेकिन सन् 1964 में उनका आकस्मिक निधन हो गया। आपके पुत्र श्री विजयकुमार 40 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम हीरादेवी है। जो संतोष, कमला एवं कुसुम तीन पुत्रियों की मां है। विनोदकुमार छोटे पुत्र हैं। एम.ए. हैं। पत्नी का नाम मंजूदेवी है। एक पुत्री की माँ है। पता:- पंवरलाल विजयकुमार, रफीगंज (औरंगाबाद) (बिहार) Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 540/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री भागचन्द विनायक्या 45 वर्षीय युवा समाजसेवी श्री भागचन्द विनायक्या का हजारीबाग जैन समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान है । अभी चार वर्ष पूर्व ही आपके पिताजी श्री गोपीलाल जी विनायक्या का स्वर्गवास हुआ है। माताजी सुरजीबाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। श्री भागचन्द जी का जन्म।" मार्च सन् 1946 को हुआ । हजारीबाग कालेज से आपने बी.ए. किया। सन् 1962 में आपका विनगर श्रीमती प्रभावती जैन से हुआ। आपकी एकमात्र पुत्री स्वाति पढ़ रही है। आपने हजारीबाग में हुई वेदो प्रतिष्ठा में इन्द्र के पद को सुशोभित किया। रोटरी क्लब के सदस्य, स्टेशन क्लब के सदस्य एवं जैन विद्यालय को कार्यकारिणी के सदस्य हैं। सेठी कालेज में एम र कक्षायें खुलवाने में आपका विशेष योग रहा । आपकी माता जी के शुद्ध खानपान का नियम है । मुनि भक्त हैं तथा आहार देती रहती है । आपके पांच छोटे भाई श्री कमलकुमार, दिलीपकुमार एम.ए. डॉ. ललित जैन (एम.एस.आई)विनोदकुमार एवं विनायक जैन हैं । बड़े भाई गंचों में डा. ललित जैन आई कैम्प | आयोजित करते रहते हैं। शेष तीनों भाई साथ ही रहते हैं । आपके तीन बहिनें हैं तारादेवी, कंधनदेवो एवं संध्यादेवी । तीनों का ही विवाह हो चुका है । श्रीमती सुरजी देवी धर्मपत्नी स्व.श्री.गोपीलाल जैन पता: सुवालाल गोपीलाल, सुभाष मार्ग, हजारीबाग । श्री मदनलाल पहाड़िया पटना के श्री मदनलाल पहाड़िया का जैन समाज में प्रमुख स्थान है । कोडरमा में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आप इन्द्र पद से सुशोभित हुये थे। इसी तरह मीठापुर (पटना) के दि. जैन मंदिर में आपने शांतिनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान की थी । इस मंदिर के आप कोषाध्यक्ष भी हैं । पटना दि.जैन पंचायत की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । आप सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। पहाड़िया जी का जन्म माह सुदी 15 संवत् 1980 को हुआ । आपके पिताजी श्री रामचन्द्र जी पहाड़िया एवं माता श्रीमती जानकीबाई जी का स्वर्गवास हो चुका है। संवत् 10905 में आपका विवाह श्रीमती बसन्तीदेवी जी के साथ हुआ । संतान न होने से आपने विनोदकुमार को दत्तक पुत्र बनाया। श्री विनोदकुमार 30 वर्ष के युवा हैं। बी .काम. हैं । पत्नी का नाम मुनीता है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता है । पहाड़िया जी सीमेन्ट के विक्रेता हैं। पत्ता : मदनलाल जैन,सोमेन्ट के व्यापारी, केकड़ बाग रोड.चन्द्रगुप्त पथ.पटना Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पं. मनोहरलाल साह शास्त्री पं. मनोहरलाल जो शास्त्री रांची जैन समाज में प्रसिद्ध विद्वान हैं। राज. के होकर भी अब वे पूरे बिहारी बन गये हैं। आप इस समय 700 बसन्त पार करने वाले हैं लेकिन सामाजिक गतिविधियों में खूब भाग लेते रहते हैं। आपके पिताजी श्री छीतरमल जी साह एवं माताजी श्रीमती मोती बाई दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। बिहार प्रदेश का जैन समाज /541 20 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती कंचनदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपके ज्येष्ठ पुत्र अशोककुमार 41 वर्षीय युवा हैं। बी.ए., एल.एल.बी. हैं। पत्नी का नाम सरोजदेवी हैं जो एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की मां बन चुकी है | बिहार अलाप सीलम लि. में फाइनेन्स मैनेजर हैं। दूसरे पुत्र विजयकुमार 35 वर्षीय युवा है। वह भी बी.ए., बीनादेवी पत्नी है जो एक पुत्री की माँ है। अशोक टायर सेन्टर के मालिक हैं । श्रीमती कंचनमाला पंडित जी अहिंसा दर्शन भाग 1,2,3, व 4 आर्यिका धर्मवती चरित्र, अभिषेक पर शास्त्रीय प्रमाण, जिनवाणी संग्रह आदि पुस्तकों के लेखक एवं सम्पादक हैं। भगवान महावीर का 2500 वां परिनिर्वाण महोत्सव पर्व में आपको विज्ञान भवन में सिद्धान्ताचार्य की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। गोहाटी समाज ने पंचकल्याण महोत्सव के अवसर पर वाणीभूषण से अलंकृत किया था। आप कुचामन एवं सुजानगढ में धर्माध्यापक रहने के पश्चात् विगत 25 वर्षों से रांची समाज को शास्त्रों का ज्ञान दे रहे हैं । शास्त्रों के पक्के ज्ञाता हैं। पर्यूषण पर्व में विभिन्न नगरों में जाते रहते हैं। वेदी प्रतिष्ठा एवं विधान आदि कराते रहते हैं। गोहाटी में इन्द्रध्वज विधान कराने में आपने पूरा योग दिया था । मुनिभक्त हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। रांची के रायबहादुर हरकचंद जी पांड्या से बहुत संपर्क है। पता: अशोक टायर्स, जैन मंदिर रोड, ज.जे. रोड, अपर बाजार, रांची एल.एल.बी. है। श्री अशोककुमार Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5421 जैन समाज का वृहद इतिहास श्री महावीरप्रसाद पाटनी राणोली (सीकर, राजस्थान) में 12 सितम्बर सन् 1933 को जन्मे श्री महावीरप्रसाद पाटनी मैट्रिक पास करके कपड़ा व्यवसाय में लग गये । आप 6 भाई एवं 3 बहिन वाले हैं। आपके पिता स्व. भगतूलाल जी पाटनी एवं माता श्रीमती जडावबाई का आपके जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा है । श्रीमती शांतिदेवी के साथ आपका विवाह संपन्न हुआ। आप दोनों को चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त है। मिक्षेत्र हाल ही में कोडरमा रेलवे स्टेशन को रेलवे सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया गया है। अभक की राजधानी झुमरीतिलैया में व्यवसायरत तथा क्लाथ डीलर्स एसोसियेशन के अध्यक्ष,कोडरमा व्यवसायी संघ के उपाध्यक्ष और छोटानागपुर सांस्कृतिक सेवा केन्द्र के महामंत्री । बिहार राज्य दिगम्बर जैन धार्मिक न्यास परिषद् के निर्वाचित सदस्य । ऋषभचन्द केसरीपल ट्रस्ट,नवादा,दिगम्बर जैन महासमिति बिहार राज्य दिगम्बर जैन धार्मिक न्यास सुरक्षा समिति, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और बिहार प्रान्तीय मारवाडी सम्मेलन के महत्वपूर्ण पदाधिकारी,दिगम्बर जैन समाज,झुमरीतिलैया के भूतपूर्व प्र.मंत्री , कल्याण निकेतन (श्री दिगम्बर जैन समाज,झुमरीतिलैया के भूतपूर्व प्र.मंत्री,(कल्याण निकेतन) श्री दिगम्बर जैन भगवान पार्श्वनाथ ट्रस्ट के अन्तर्गत मधुबन से सक्रिय रूप से संबंधित हैं। ___ आपके महत्वपूर्ण योगदान से ही बिहार में जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का प्रवर्तन सांगोपांग रूप से सफल रहा। बिहार में जनमंगल महाकलश,एवं धर्मचक्र प्रवर्तन की सफलता में भी उल्लेखनीय सेवायें रही हैं । श्री पाटनी झुमरीतिलैया की अनेक शिक्षा संस्थाओं से संबंध रखते हैं । मधुरभाषी मिलनसार,उत्साही,धर्मात्मा एवं तेजस्वी । कार्यशैली आश्चर्यजनक है झुमरीतिलैया समाज के तत्वावधान में आयोजित इन्द्रध्वज विधान आपके कुशल नेतृत्व में चिरस्मरणीय रूप से सफल रहा। आप युवकों के प्रेरणा स्तंभ हैं कार्य करने के लिये आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। श्री विनोद,बिहार अभ्रक डीलर्स एसो. के उपाध्यक्ष एवं रोटरी क्लब ऑफ कोडरमा के सचिव (सन् 1985-86) भी रहे हैं। महावीर जी का पूरा परिवार जनसेवा में रुचि रखता है | पता- राजगढियारोड,पो. झुमरीतिलैया (बिहार) 825409 श्री महेन्द्रकुमार गंगवाल आपके दादाजी श्री गोधूलाल जी श्यामजी खाटू (राज) से 100 वर्ष पूर्व गया आये और यहीं बस गये । आपके पिताजी श्री सुगनचंद जी गंगवाल का 55 वर्ष की आयु में सन् 1968 में तथा माताजी श्रीमती सुगनीदेवी का स्वर्गवास सन् 1979 में हो गया। 20 सितम्बर,1942 को आपका जन्म हुआ। आपने भिण्ड में इन्टर साइन्स तक शिक्षा प्राप्त की और फिर वस्त्र व्यवसाय एवं होजरी होलसेल का कार्य करने लगे । सन् 1964 में आपका विवाह श्रीमती चमेलीदेवी से हुआ । जो सुगनचंद जी गोधा मारोठ वालों की पुत्री हैं । आप वर्तमान में चार पुत्रों अनिलकुमार, सुनील, सुजीत एवं संदीप से सुशोभित हैं। श्री गंगवाल गया पंचकल्याणक में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे । आपके माता-पिता ने सभी तीर्थों की वंदना की थी। आपने गया में सुगनचंद महेन्द्रकुमार चेरिटेबल ट्रस्ट स्थापित किया जिसके माध्यम से 10 शिविर लगाये जा चुके हैं तथा करीब 1400 मरीज आरोग्य लाभ ले चुके हैं । गया की सभी सामाजिक संस्थाओं में आपका योगदान रहता है। पता: गोधूलाल लक्ष्मीनारायण जैन,के.पी.रोड,गया (बिहार) Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज/543 श्री महेन्द्रकुमार पाटनी ___पाटनी जी के पूर्वज लाडनूं में रोजगार के लिये करीब 115 वर्ष पूर्व सुजानगढ से राजाशाही (वंगलादेश) गये फिर वहां से रायगंज (वेस्ट बंगाल) गये तथा सन् 1972 में आकर हार्डवेयर व्यवसाय करने लगे। ___ पाटनी जी का जन्म 56 वर्ष पूर्व हुआ । राजाशाही से आपने मैट्रिक किया। 18 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती उमरावदेवी के साथ हो गया। आप तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं। ज्येष्ठ पुत्र श्री मानिकचंद 28 वर्षीय हैं उनकी पत्नी का नाम मीना है। दूसरे पुत्र उत्तमचंद (25 वर्ष) एवं प्रदीप कुमार (23 वर्ष) दोनों ही बी काम, हैं। तीन पुत्रियों में अनिता का विवाह हो चुका है । सरिता एवं सुनीता पढ़ रही हैं। आपके दादाजी चम्पालाल जी ने मृत्यु के समय मुनि दीक्षा धारणा की थी। आप कार्तिक महोत्सव कलकत्ता में सारथी का पद तथा भागलपुर इन्द्रध्वज विधान में इन्द्र के पद से अलंकृत हुये थे। आपका सारा परिवार मुनिभक्त है । मुनियों को आहार देते हैं। आपकी पुत्रवधू मीनादेवी सन् 1983 में दशलक्षण घत के उपदार: बार कुकी ।। आपके एक छोटे भाई राजकुमार (54 वर्ष) हजारी बाग में व्यवसाय करते हैं । उनकी पत्नी गिनियादेवी के चार पुत्र एवं एक पुत्री है। पता:- सैन्र्ल हार्डवेयर मार्ट,रामगढ केन्ट (बिहार) श्री महेन्द्रकुमार बाकलीवाल औरंगाबाद (बिहार) के निवासी श्री महेन्द्रकुमार मूलत: धौट गांव (राज) के निवासी हैं। 32-33 वर्ष पूर्व वे यहां आकर व्यवसाय करने लगे। आपके पिताजी श्री जमनालाल जी का सन् 1970 में स्वर्गवास हुआ उस समय वे 67 वर्ष के थे। महेन्द्रकुमार जी का जन्म सन् 1949 में हुआ । सन् 1938 में हायर सैकेन्ड्री सीकर से पास की । सन् 1971 में श्रीमती प्रेमलता के साथ विवाह हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई है । आपके दोनों पुत्र मनीष एवं राकेश तथा पुत्रियाँ पिंकी एवं कविता सभी पढ़ रहे हैं। औरंगाबाद पंचकल्याणक में आपने कोषाध्यक्ष का कार्य सम्पत्र किया। यहाँ के मंदिर निर्माण में आपका बहुत योगदान रहा है । औरंगाबाद समाज के बहुत ही कर्मठ सदस्य हैं । सेवा भावी हैं। आपके छोटे भाई महेशकुमार जी 35 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम गुणमाला देवी है । दो पुत्रियां कु. रचना एवं कु. अर्चना तथा पुत्र पंकज तीनों ही पढ़ रहे हैं। पता- फैन्सी स्टोर, वस्त्र एम्पोरियम,जैन किराना मंडार, नवाडी रोड, औरंगाबाद (बिहार) Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 544/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री महावीरप्रसाद बाकलीवाल धोद (राज) के मूल निवासी श्री महावीरप्रसाद बाकलीवाल जैन समाज डाल्टनगंज के गर जी पहा विगत 5 वर्षों से मंत्री हैं । पलामू चैम्बर आफ कामस के सदस्य तथा लायन्स क्लब के पहिल । कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। श्री आमचन्द जी बाकलीवाल आपके पिताजी एवं माता पतासी देवी का स्वर्गवास हो चुका है। आपका जन्म संवत् 1998 में हुआ। अजमेर बोर्ड से मैट्रिक किया । सन् 1962 में आपका विवाह श्रीमती सुशीलादेवी के साथ हो गया। जिनसे आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। पुत्र विनयकुमार बी काम में पढ़ रहा है । पुत्रियाँ ममता का विवाह जसपुर नगर में प्रवीन कुमार के साथ हो गया । संगीता पढ़ रही है । आपने थोद के मंदिर में बेटी का निर्माण करवाकर उसमें शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की थी । आप आचार्य विद्यासागर जी महाराज से विशिष्ट प्रभावित हैं। पता: वर्धमान इन्टरप्राइज,वर्धमान भवन, नवाहाता,डाल्टनगंज (बिहार) CN श्री महावीरप्रसाद रारा डाल्टनगंज के श्री महावीरप्रसाद रारा स्व. श्री हीरालाल जी रास के सुपुत्र हैं। श्री । हीरालाल जी का स्वर्गवास जुलाई 1970 में हो गया था। आपकी माता श्रीमती बिदामी देवी । का आशीर्वाद प्राप्त है। आपका स्वयं का जन्म संवत 1988 में हआ । सन 1942 में मैटिक किया। सन 1950 में आपका विवाह श्रीमती शकुन्तला देवी से हआ। आपको तीन पत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । ज्येष्ठ पुत्र श्री सुभाष जैन 31 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम इन्द्रा है । दूसरे पुत्र सुशील कुमार एवं तीसरे पुत्र श्री राजीवकुमार हैं। तीनों भाई बी.कॉम. हैं । आपकी तीन पुत्रियों में दूसरी सुनिता का निधन हो चुका है। सुधा का विवाह जयपुर में हुआ। रेखा अभी अविवाहित है। जसपुर में भगवान बाहुबली की प्रतिमा अपने द्वारा बनवाई हुई है । वेदी में भी विराजमान करा चुके हैं । सभी तीर्थों की वंदना करली है । माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । आपके सभी बच्चे व्यवहारकुशल हैं। पता : सुप्रिया बिन्नी टैक्सटाइल्स, इंजीनियरिंग रोड, डाल्टनगंज ,बिहार) Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरप्रसाद सेठी सरिया के श्री महावीरप्रसाद जी सेठी का पूरे बिहार की जैन समाज में प्रतिष्ठित स्थान है। समाज सेवा, तीर्थों की रक्षा एवं साधुओं की भक्ति में वे खूब रुचि लेते हैं। उनके पिताजी श्री भंवरलाल जी सेठी का करीब 28 वर्ष पूर्व 65 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। उनकी पत्नी का नाम गुलावदेवी है जो सीकर के खूबचन्द पहाड़िया की सुपुत्री हैं। उनके एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। उनका पुत्र राजेशकुमार 201 वर्ष का है तथा अभी पढ़ रहा है। दो पुत्रियों में सरोज एवं सुलोचना का विवाह हो चुका है श्री चिरंजीलाल जी उनके बड़े भाई थे जिनका सन् 1970 में मात्र 45 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। उनके दो पुत्र एवं सात पुत्रियां हैं। श्री अनिलकुमार 45 वर्ष के युवा हैं। उनकी पत्नी का नाम मुन्नीदेवी है। चार पुत्रियों के पिता है। दूसरे पुत्र संतोषकुमार 25 वर्षीय युवक हैं। अभी अविवाहित हैं। सातों पुत्रियों - कंचनदेवी, विमलादेवी, पुष्पा, कुसुम, चन्द्रकला, शकुन्तला एवं प्रेमलता सभी का विवाह हो चुका है। सेठी जी मूल निवासी सोकर के हैं। श्री प्रेमसुख जो सेठी करीब 75 वर्ष पूर्व यहां आकर व्यवसाय करने लगे। सेठी जी उदार स्वभाव के समाजसेवी हैं। बिहार की बीसों संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। पता चिरंजीलाल महावीरप्रसाद जैन सेठी, मु.पो. सरिया (गिरिडीह) बिहार बिहार प्रदेश का जैन समाज /545 श्री महावीरप्रसाद सेठी श्री सेठी जी औरंगाबाद जैन समाज के अत्यधिक प्रतिष्ठित समाजसेवी हैं। अभी औरंगाबाद में आयोजित पंचकल्याणक को पूर्ण सफल बनाने में आपको प्रमुख रूप से श्रेय है। आपके पिताजी श्री कन्हैयालाल जी गया में रहते हैं तथा माताजी श्रीमती मगनीबाई जी का चार वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ था । आपका जन्म 28 जनवरी सन् 1940 को हुआ। सन् 1956 में आपने गया से मैट्रिक पास की। सन् 1956 में आपका विवाह श्रीमती विमलादेवी जैन से हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपके ज्येष्ठ पुत्र अशोककुमार 27 वर्षीय युवा हैं। दूसरे पुत्र श्री विनोदकुमार एवं सुशील कुमार हैं। तीनों पुत्रियों में माया, उषा एवं ममता तीनों ही पढ़ रही हैं। आप समाजसेवा में अग्रसर रहते हैं। सीकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपने केशलोंच की बोली ली थी। आपके छोटे भाई गोपालप्रसाद जी 45 वर्षीय युवा है। दूसरे भाई धनकुम्मसर अभी अविवाहित हैं। पता : संगीता, जी.टी. रोड, औरंगाबाद (बिहार) श्री महावीरप्रसाद सौगानी दि. जैन समाज रांची के वर्तमान अध्यक्ष श्री महावीरप्रसाद जी सौगानी अपनी सामाजिक सेवा के लिये प्रसिद्ध हैं। इसके पूर्व आठ वर्ष तक आप मंत्री रह चुके हैं। आपके पिताजी श्री गेंदीलाल जी सौगानी एवं माताजी श्रीमती जीवणी देवी दोनों का Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 546 / जैन समाज का बृहद् इतिहास स्वर्गवास हो चुका है। सौगानी जी का जन्म 3 अप्रैल सन् 44 को मंळा भीमसिंह (राज) में हुआ। सन् 1963 में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.ए. किया लेकिन इसके पूर्व सन् 1960 में ही श्रीमती तारामणि से दाम्पत्य सूत्र में बंध गये। जिनसे आप दो पुत्र एवं दो पुत्रियों से अलंकृत हो चुके हैं। दोनों पुत्र संजयकुमार (21 वर्ष) एवं अजयकुमार (19 वर्ष) पढ़ रहे हैं। लेकिन दोनों पुत्रियों बीना एवं सरिता का विवाह हो चुका है। आपने अपने ग्राम मंडा भीमसिंह में मंदिर में वेदी का निर्माण करवाया तथा वेदी प्रतिष्ठा के अवसर पर आपके बड़े भ्राता इन्द्र के पद से सुशोभित हुये । कृषि उत्पाद बाजार समिति के व्यापारिक सदस्य हैं। राज्य थोक व्यापारिक संघ के सक्रिय सहयोगी रहे हैं। छोटा नागपुर चैम्बर आफ कामर्स के सदस्य हैं। गुड़ विक्रेता संघ रांची के सेक्रेटरी हैं। आपके हापुड, पनडरा (रांची) में व्यावसायिक केन्द्र हैं। आपके चार बड़े भाई, एक छोटा भाई एवं दो बहिनें हैं। जिनमें छगनलाल जी 75 वर्ष, गुलाबचन्द 71 वर्ष एवं कुन्दनमल ज 58 वर्ष के हैं। एक भाई सूरजमल जी पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। छोटे भाई रतनलाल जी 45 वर्ष के हैं। दोनों बहिनों मूली बाई एवं बादाम बाई का विवाह हो चुका है। सौगानी साहब का संपन्न एवं बड़ा परिवार है। सब भाईयों में मिलनसारिता एवं एकता तथा स्नेह हैं। समाज को आपसे बड़ी आशायें हैं। पता :- रतनलाल मदनलाल जैन, वेस्ट मार्केट रोड, अपर बाजार, रांची (बिहार) श्री महासुख बड़जात्या मारोठ (राजस्थान) के निवासी श्री महासुख बड़जात्या के पिता श्री मूलचंद जी बड़जात्या 65 वर्ष पूर्व गया आकर रहने लगे । आपका सन् 1967 में 82 वर्ष की आयु में तथा आपकी धर्मपत्नी श्रीमती केशरबाई का सन् 1969 में स्वर्गवास हो गया । श्री महासुख जी बड़जात्या का जन्म जेष्ठ सुदी 5 संवत् 1967 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप वस्त्र व्यवसाय के थोक विक्रेता बन गये। संवत् 1989 में आपका विवाह श्रीमती आचुकी देवी से संपन्न हुआ। जिनसे आपको एक पुत्र प्रदीपकुमार एवं पुत्री भंवरबाई की प्राप्ति हुई। श्री प्रदीपकुमार 32 वर्षीय युवा हैं। उषा देवी आपकी धर्मपत्नी हैं जो एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों की जननी हैं। भंवरबाई का विवाह हो चुका है। श्री बड़जात्या जी, संवत् 2018 में आयोजित गया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सनत्कुमार ने इन्द्र के पद को सुशोभित किया। मारोठ में साहों के मंदिर की वेदी का जीर्णोद्धार कराया। आपने सभी तीर्थों की वंदना कर ली है। शुद्ध खानपान का नियम है तथा मुनियों को आहार देने में आगे रहते हैं। गया जैन विद्यालय में संयुक्त मंत्री रह चुके हैं। आपकी धर्मपत्नी ने एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे। मारोठ में बेदी प्रतिष्ठा के समय सिद्धचक्र विधान का आयोजन किया था। पता : मूलचंद महासुख, ला रोड, गया (बिहार) श्री मानिकचंद गंगवाल बिहार जैन समाज में श्री मानिकचंद गंगवाल का प्रतिष्ठित स्थान हैं। आप उदारमना हैं तथा सामाजिक कार्यों में रुचि पूर्वक भाग लेते हैं। बिहार प्रान्तीय दि. जैन महासभा के संयुक्त महामंत्री हैं। कोल्हुआ पहाड़ विकास समिति के सदस्य है । Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज 1547 मुनियक्त हैं । आहार देने में रुचि रखते हैं। सन् 1986 में सम्मेदशिखर तेरहपंथी कोठी में इन्द्रध्वज मंडल विधान का आयोजन कर चुके हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। अब तक सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। श्री दि.जैन पंचायत रांची के पिछले तीन वर्षों से अध्यक्ष का पद संभाले हुये हैं। गंगवाल जी का जन्म 11 फरवरी सन् 1935 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप कपड़ा व्यवसाय में चले गये । आपके पिताजी श्री लालचंद जी गंगवाल एवं माताजी श्रीमती मनादेवी गंगवाल दोनों का ही स्वर्गवास हो गया है । सन् 1951 में आपका विवाह श्रीमती रतनकंवर से हुआ जिनसे आपको दो पुत्र अशोककुमार एवं अरुणकुमार एवं दो पुत्रियां आशा एवं अनिता की प्राप्ति हुई । अशोककुमार जी 33 वर्षीय युवा हैं। उनकी पत्नी का नाम बीना है । एक पुत्री की माँ हैं । द्वितीय पुत्र अरूणकुमार ने भी बी.कॉम किया है । पत्नी का नाम सीमा है। आप बड़े मुनि भक्त है। आपकी पत्नी साधुओं को आहार देती रहती है तथा वह दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुके हैं। गंगवाल जी छगनलाल जैन स्मृति भवन के ट्रस्टी, नागरमल मोदी सेवा समिति की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । आपके तीन बड़े भाई हैं। सबसे बड़े भाई पंवरलाल जी का स्वर्गवास हो चुका है । मदनलाल जी जयपुर में एवं सुगनचंद जी रांची में व्यवसाय करते हैं। आपके चार बहिनें, सुगनीदेवी, अनोखीदेवी, मनफूल देवी एवं सुलोचनादेवी हैं। श्री पूनमचंद जी गंगवाल आपके चचेरे भाई हैं। पता : मानिकचंद अशोककुमार, अपर बाजार, रांची (बिहार) श्री माणिकचंद अजमेरा श्री अजमेरा जी वर्तमान में दि. जैन समाज हजारीबाग के अध्यक्ष हैं। साथ ही कपड़ा मर्चेन्टस् एसोसियेशन के भी अध्यक्ष हैं । अजमेरा जी मुनिभक्त हैं । तीर्थ वंदना प्रेमी हैं। प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं तथा धार्मिक गतिविधियों में खूब रुचि लेते हैं । देवघर पंचकल्याणक में भी आपने इन्द्र के पद को अलंकृत किया था । आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी का 82 वर्ष की आयु में तथा माताजी छायादेवी का करीब 30 वर्ष पूर्व निधन हो गया। श्री अजमेरा जी ने 66 बसन्त देख लिये हैं। मैट्रिक तक अध्ययन करने के पश्चात् आपका सन् 1945 में श्रीमती रतनी देवी से विवाह हो गया । जिनसे आपको तीन पुत्रों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन ज्येष्ठ पुत्र श्री सुमेरचंद का 30 वर्ष की आयु में ही सन् 1977 में स्वर्गवास हो गया । दूसरे पुत्र श्री ललितकुमार 25 वर्षीय युवा हैं । उनकी पत्नी का नाम ममता हैं। तीसरे पुत्र दिलीपकुमार पढ़ रहे हैं । आपके पांच पुत्रियां हैं जिनके नाम कुसुम, निर्मला, मंजू, शकुन्तला एवं संगीता है । सभी का विवाह हो चुका है। पता - सुमेर स्टोर्स, झण्डा चौक, हजारीबाग म श्री मानमल झांझरी 80 वर्षीय श्री मानमल झांझरी का समूचे बिहार प्रदेश में विशिष्ट स्थान है। आपकी जन्म तिथि ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा सं.1967 है। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अप्रक व्यवसाय में उतरे। तथा आपका विवाह श्रीमती ज्याना बाई से संपन्न हुआ। आपके पिताजी श्री बिरधीचन्द जी झांझरी भी अपने जमाने के प्रसिद्ध व्यक्ति थे । आपके एक मात्र पुत्र श्री महावीरप्रसाद झांझरी हैं। Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 548/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री मानमल जी अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की बिहार शाखा के संरक्षक,बिहार दिगम्बर जैन धार्मिक न्यास सुरक्षा समिति के अध्यक्ष,दि.जैन समाज झूमरीतिलैया के पूर्व अध्यक्ष हैं । आपका अनेक समाज संस्थाओं से संबंध रहता है । तथा समाज सेवा में पूर्ण रुचि लेते हैं। अपनी व्यस्तता के बावजूद भी श्री मानमल झांझरी विधान रचना में सक्रिय हिस्सा लेते हैं इनके द्वारा की गई विधान रचना सहज ही में हर किसी का ध्यानाकर्षित करती हैं। उनके द्वारा रचित मंडल विधानों का रंग सामंजस्य जी देखने योग्य होता है। श्री झांझरी का कई शैक्षणिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सार्वजनिक संगठनों से संबंध है। श्री मानमल जी ने झुमरीतिलैया से बुन्देलखंड एवं आपसी की तीर्थयात्रा प्रायोजित की थी। इसके पूर्व सन् 1963 में दांता में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई । समोवशरण वेदी में महावीर भगवान की प्रतिमा विराजमान की । प्रतिष्ठाओं में सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य भी पाया है। इस वृद्धावस्था में भी युषकोचित उत्साह,कर्मठ,धर्म और समाजसेवी, विवेकी,सरलस्वभावी एवं उदार हैं। आपके भाई एवं भाभी श्री राजमल जी एवं केसरबाई ने प्रतिष्ठाचार्य भगवान के माता-पिता होने का अहोभाग्य पाया था । घर-घर में जिनवाणी के प्रचार-प्रसार हेतु समर्पित रहते हैं। परम मुनिभक्त हैं। श्री झाझरी परिवार द्वारा रोटरी क्लब ऑफ कोडरमा द्वारा प्रति वर्ष आयोजित होने वाले नेत्रदान शिविरों में भरपूर सहायता एवं सहयोग दिया जाता है । इसके अलावा झुमरीतिलैया के समीपवर्ती मामों के ग्रामीणों के स्वास्थ्य रक्षा को जरूरत पूरो करने हेतु मडुआ रोड,करमा (हरिजन टोला) एवं वार्ड नं. 11 में एलोपैथिक एवं होम्योपोधिक डिस्पेन्सरी इनके द्वारा चलाई जा रही है । झुमरीतिलैया समाज के तत्वाधान में 1981 में आयोजित इन्द्रध्वज विधान इनके देखरेख एवं सहयोग से चिरस्मरणीय रूप में संपन्न हुआ। श्री महावीरप्रसाद झांझरी आपके एक मात्र सुपुत्र है। जिनका जन्म मार्च सन् 1936 को झुमरीतिलैया में हुआ । मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने अभ्रकखनन एवं ग्लास उद्योग में प्रवेश किया। आपका विवाह श्रीमती नेमीदेवी के साथ संपन्न हुआ। आपके तीन पुत्र सुरेश, नरेन्द्र एवं मुत्रा है तथा चार पुत्रियां हैं। विशेष- श्री महावीरप्रसाद जी अनेक शैक्षणिक एवं सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी हैं। अभ्रक व्यवसायियों पर आपका पूरा प्रभाव है । जब लेखक श्री रामचन्द्र जी रारा के साथ झुमरीतिलैया गया तब वहां आपसे बहुत सहयोग मिला। काम करने की लगन एवं उत्साह सराहनीय है। आपको अपने पिताश्री से पूरे संस्कार पिले हैं। श्रीमती जाना देवी धर्मपत्नी श्री मानगल झांझरी श्री महावीर प्रसाद शारी श्रीपतो नमी देनी धर्मपत्नी श्री महावीर प्रमाद Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज,549 KHARAT श्री नरेन्द्र कुमार श्रीमती बीनादेवी धर्मपत्नी श्री नरेन्द्र कुमार श्री सुरेश कुमार श्रीमती प्रेमदेवी धर्मपत्नी सुरेश कुमार पता : गौशाला रोड,झुमरीतिलैया (हजारीबाग) श्री मूलचंद छाबड़ा श्री छाबड़ा जी का परिवार झुमरीतिलैया का प्रतिष्ठित परिवार है । सन् 1942 में राजस्थान के लुणियावास से यहां आकर व्यवसाय करने लगे थे। छाबड़ा जी का जन्म संवत् 1979 में हुआ । रेनवाल (जयपुर) के विद्यालय में विशारद की परीक्षा पास की और फिर अप्रक के व्यवसाय में चले गये । सन् 1947 में आपका विवाह श्रीमती सरस्वती देवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको पांच पुत्र एवं सात पुत्रियों की प्राप्ति हुई है । आप लूणियावास में आयोजित सिद्धचक्र विधान में इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे । मुनिभक्त हैं। आहार देने में पूर्ण रुचि है । दिगम्बर जैन समाज झुमरीतिलैया के तीन वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। आपके पांच पुत्रों में श्री सुशीलकुमार (38 वर्ष), राजकुमार(30 वर्ष) एवं सुनीलकुमार विवाहित हैं । संजय एवं विजय पढ़ रहे हैं । इसी तरह सभी सात पुत्रियों सुशीला,शकुन्तला,मधु, बीना, रेणु, ममता एवं नीलम का विवाह हो चुका है। Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 550/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री मूलचन्द्र छाबड़ा धर्मपली मूलचन्द्र जी छाबड़ा श्री सुशील कुमार छाबड़ा छाबड़ा जी स्वाध्याय प्रेमी हैं तथा पूधाम में रुचि रहते हैं। पता: छाबड़ा एण्ड कम्पनी, झुमरीतिलैया (हजारीबाग) श्री मूलचंद काला खूटी (रांची) के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री मूलचंद जी काला 80 वर्ष पार कर चुके हैं । पहिले कपड़ा व्यवसाय या लेकिन अब रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आप अविवाहित है । इसलिये आपके भतीजे महावीरप्रसाद जी (43 वर्ष)शिखरचंद जी (40 वर्ष) एवं प्रेमचंद जी (25 वर्ष) ही आपकी सेवा करते हैं। महावीरप्रसाद जी की पत्नी का नाम कुसुमबाई है जो दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की मां है । शिखरचंद जी की पत्नी मालतीदेवी दो पुत्रियों एवं एक पुत्र की जननी है। आपका सामाजिक जीवन एवं धार्मिक जीवन दोनों ही उल्लेखनीय है 1 रांची में देदी प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर इन्द्र बन चुके हैं । खूटी में आपको नगर पिता माना जाता है । यहां की जैन पंचायत के अध्यक्ष माने जाते हैं। खूटी में जैन धर्मशाला एवं कुओं के लिये जमीन दी हुई है । मुनिभक्त हैं । आहार आदि देते रहते हैं ! आपके चाचाजी इन्दरचंदजी काला स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। पता - मोतीलाल महावीरप्रसाद जैन मु.पो.खूटी (रांची) बिहार -- श्री मोतीलाल बैनाड़ा ___आपके दादाजी श्री माणकचंद जी बैनाड़ा के पिताजी बिहारीलाल जी एक शताब्दि पूर्व फिरोजाबाद से पटना आये थे । श्री मोतीलाल जी बैनाड़ा के पिताजी श्री ऋषभचंद जी बैनाड़ा थेजिनका सन् 1971 में 63 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। लेकिन आपकी माताजी श्रीमती पापाबाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /551 श्री मोतीलाल जी का जन्म 8 दिसम्बर सन् 1935 को हुआ । आरा जैन कालेज से इन्टर साइन्स किया तथा बीमा व्यवसाय करने लगे। 16 फरवरी 1956 को आपका विवाह श्रीमती सूर्यकान्ता के साथ संपन्न हुआ। आपके एक मात्र पुत्र श्री अजितकुमार जी 30 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम अंजना देवी है जो दो पुत्रों की जननी है। आपने मीठापुर दि. जैन मंदिर की दूसरी मंजिल पर भवन एवं वेदी का निर्माण करवाकर वेदी प्रतिष्ठा कराई तथा शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की । गुलजारबाग पटना मंदिर के जीर्णोद्धार में आर्थिक सहयोग दिया। ईसरी पार्श्वनाथ हिल की तेरापंथी कोठी में एक कमरे का निर्माण करवाया। आप पटना दि.जैन पंचायत के मंत्री एवं अध्यक्ष रह चुके है। जैन संघ पटना के अध्यक्ष तथा बिहार राज्य दि.जैन धार्मिक न्यास बोर्ड की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आप कट्टर मुनिभक्त हैं । आपकी माताजी के शुद्ध खानपान का नियम है । आपकी पत्नी के चाचाजी चिरंजीलाल जी मुनि दीक्षा देकर निर्वाणसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए । आपके दो छोटे भाई हैं। एक भाई डा. विमलकुमार होमियोपैथ डाक्टर है। आपकी आयु 54 वर्ष की है । श्रीमती प्रेमलता धर्मपत्नी है जो दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की मां है। दूसरे माई श्री भाग्यचंद जैन 52 वर्षीय है । पत्नी का नाम श्रीमती मंजू जैन है । दो पुत्रियों की जननी है। श्री बैनाड़ा जी बीमा व्यवसाय में सारे बिहार में प्रसिद्ध है । धार्मिक स्वभाव के हैं। सामाजिक क्षेत्र में आगे रहते हैं। पता : श्री मोतीलाल जैन रैनाड़ा,जैन निकेतन,प्रथम मंजिल,लालजी टोला,पटना । श्री मूलचन्द गोधा ___ कठोर परिश्रम,निष्ठा एवं ईमानदारी से टायर ट्यूब के व्यवसाय में सफलता पाने वाले श्री मूलचंद गोधा की रांची जैन समाज में अच्छी प्रतिष्ठा है । आप उदारमना एवं धार्मिक प्रवृत्ति के श्रावक है। पांचवा के पंचकल्याणक में आप इन्द्र के पद से अलंकृत हुये तथा कुचामन की पुरानी नशिया में दो मूर्तियां विराजमान की । ब्र. कमलाबाई जी द्वारा आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव श्री महावीर जी में भी आपने इन्द्र पद को सुशोभित किया था। आप दि.जैन पंचायत रांची के मंत्री रह चुके हैं। रांची टायर विक्रेता संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करने का नियम है । आपकी धर्मपत्नी दो बार दशलक्षण वत के उपवास एवं चार बार अष्टान्हिका के उपवास कर चुकी ____ आपके पिताजी श्री मगनलाल जी एवं माताजी तीजादेवी जो दोनों का बहुत पहिले स्वर्गवास हो चुका है 1 22 वर्ष को आयु में आपका विवाह श्रीमती छिगनीदेवी के साथ हुआ जो रांची के ही श्री प्रेमसुख जी सेठी की सुपुत्री हैं । आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । बड़े पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार हैं,शोभा उनकी पत्नी है तथा 4 पुत्रियों एवं एक पुत्र के पिता हैं । छोटे पुत्र रवीन्द्र कुमार 34 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं । पत्नी का नाम सरला है जो दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी पता : मूलचन्द जैन एण्ड संस,जैन मंदिर रोड,अपर बाजार,रांची (बिहार) Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 552 / जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रतनलाल अजमेरा जैन समाज हजारीबाग के 10 वर्ष से भी अधिक समय तक अध्यक्ष रहने वाले श्री रतनलाल जी अजमेरा का समाज मे प्रतिष्ठित स्थान है। आपने अब तक 68 बसन्त देख लिये हैं। आप विशेष शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। आपका सन् 1938 में श्रीमती चौसरदेवी से विवाह हुआ। आपको दो पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिला। आपका बड़ा पुत्र श्री राजकुमार बी. ए. है | विवाह हो चुका है। मंजूदेवी पत्नी का नाम है। दूसरा पुत्र संजय कुमार 21 वर्षीय युवा है। अभी पढ़ रहा है। तीनों पुत्रियों मंजू, नीलम एवं अनिता का विवाह हो चुका है। आपकी धार्मिक प्रवृत्ति रही है। युवावस्था से ही आप प्रतिदिन पूजा एवं अभिषेक करते हैं। मुनिभक्त हैं। राजकुमार जी दि. जैन विद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आप स्वयं पैट्रोल डीलर्स एसोसियेशन के सदस्य हैं। दक्षिण भारत एवं बुदेलखंड की यात्रायें कर चुके हैं। आप मूलतः राजस्थान के हैं। सन् 1922-23 में यहां रहने लगे। पता अक्षय सर्विस स्टेशन, भगवान महावीर मार्ग, हजारीबाग | श्री रतनलाल काला श्री काला जी विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं। अपने स्वयं के परिश्रम, लगन एवं सच्चाई से अपने जीवन का निर्माण किया है। आपके पिताजी श्री हनुमान बक्स जी जिला (कुचामन राज) के निवासी थे। वहां से वे सन् 1948 में पहिले गोहाटी गये और फिर 1962 में रांची आकर व्यवसाय करने लगे । आपका स्वर्गवास दिनांक 5 अगस्त सन् 1974 को हो गया उस समय आपकी आयु 74 वर्ष की थी। आपकी धर्मपत्नी (माताजी श्री रतनलाल काला) का स्वर्गवास 1 दिसम्बर, 1986 को हो गया। श्री काला जी का जन्म 28 मई सन् 1933 को हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने रांची में सन् 1963 में आटा मिल लगाई। सन् 1950 में आपका विवाह श्रीमती चन्द्रकला देवी सुपुत्री जगनाथ छाबडा सीकर से हो गया। जिनसे आपको एक पुत्र एवं 6 पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका एक मात्र पुत्र श्री सुनीलकुमार (जन्म 13-6-70) अभी पढ़ रहा है। सभी छहों पुत्रियों में से सरोज एवं सरिता एवं सुनिता का विवाह हो चुका है। शेष तीन इन्द्रा, राशि एवं संध्या अभी अविवाहित हैं। आपके पिताजी ने जिल्या के मंदिर में मूर्ति विराजमान की है तथा आपने अपने गांव में हनुमान बक्स जैन राजकीय अस्पताल बनवाकर राज सरकार को संचालन के लिये दे दिया इसी तरह पशु चिकित्सालय एवं हाई स्कूल का भवन बनवाकर भी राज्य सरकार को भेंट कर दिया 1 काला जी बिहार प्रान्तीय एवं जैन महासभा के संयुक्त महामंत्री एवं कोषाध्यक्ष हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। मुनिभक्त हैं । आपकी धर्मपत्नी आहार देने में पूर्ण रूचि लेती है। आप बिहार रोलर फ्लोर मिल्स एसोसियेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। बिहार इन्डस्ट्रीज एसोसियेशन की कार्यकारिणी के सदस्य है। आपका कलकत्ता में भी व्यावसायिक संस्थान है । Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विक, जैन मनम् 1553 आपके दो बड़े पाई एवं दो छोटे भाई हैं | श्री मोहनलाल जी 65 वर्षीय समाजसेवी हैं । दि.जैन पंचायत रांची के मंत्री रहे हुये हैं। आपकी धर्मपत्नी इन्दुदेवी के पांच पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। ट्रांसपोर्ट एवं गल्ले का थोक व्यवसाय करते हैं। दूसरे बड़े भाई पूरणमल जी फाइनैन्स एवं इन्स्योरेन्स का कार्य करते हैं। आपकी पत्नी अनोपदेवी दो पुत्र एवं पांच पुत्रियों की जननी है। छोटे भाई मदनलाल जी भी बीमा व्यवसाय में हैं। आपकी पत्नी का नाम शरबती देवी है जो तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों को मां है। दूसरे छोटे भाई उम्मेदमल जी खाद्यान्न के थोक त्रिकेता हैं । आप दो पुत्र एवे एक पुत्री के पिता है । धर्मपत्नी का नाम कान्ता देवी है । आपकी तीनों बहिनों पतासीदेवी, सुन्दरदेवी एवं शांतिदेवी का विवाह हो चुका है। पता :- रांची फ्लोर मिल्स, नामकुल,रांची (बिहार) श्री रतनलाल छाबड़ा लूणीयावास (राज) के श्री रतनलाल छाबड़ा झुमरीतिलैया जैन समाज में प्रतिष्ठित स्थान रखते हैं। दि.जैन समाज झुमरीतिलैया के आप वर्षों से कोषाध्यक्ष है । अत्रक उद्योग एसोसियेशन की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। जनमंगल कलश की आपने बोली ली थी तथा जम्बूद्वीप हस्तिनापुर रचना में आपका पूरा सहयोग रहा था। वर्तमान में आप 63 वर्ष पार कर चुके हैं । सन् 1954 में आपका विवाह भैरूलाल के रिखबचंद जी गंगवाल को पुत्री जेठीदेवी के साथ हुआ । जिनसे आपको एक पुत्र एवं सात पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । पुत्र राकेशकुमार पढ़ रहा है । सभी सातों पुत्रियों पुष्पादेवी, कुसुम,उपा, उर्मिला, मंजू,प्रपिला एवं मनसा का विवाह हो चुका है। श्री छाबड़ा जी शांतिप्रिय एवं धार्मिक स्वभाव वाले श्रेष्ठी हैं। पता :- पटना रांची रोड,मु.पो.झुमरीतिलैया, बिहार) श्री रतनलाल पाटनी आष्टी (राजस्थान) से अर्थार्जन के लिये आपके दादाजी श्री बालायक्स जी रंगून एवं अराकान क्षेत्र में गये । वहां से आपके पिताजी श्री मांगीलाल जी सन् 1941 में रांची आये और कपड़ा व्यवसाय में लग गये । श्री मांगीलाल जी का निधन अभी दि.27-2-1986 को हो गया और आपकी माताजी श्रीमती बादाम बाई इसके पूर्व सन् 1984 में चैत्र सुदी 8 को चल बसी। श्री रतनलाल पाटनी का जन्म पादवा सुदी 10 संवत् 2002 (सन् 1945) में हुआ। सन् 1962 में आपने बी.ए.पास करने के पश्चात् कालेज छोड़ दिया और अपने पिताजी के साथ व्यवसाय में लग गये । इसी वर्ष आपका विवाह श्रीमती विमलादेवी के साथ हो गया जो खंटी (रांची) के स्व.सूडालाल जी सेठी की सुपुत्री है । जिससे आपको दो पुत्र सुनील पाटनी एवं अनिल पाटनी तथा तीन पुत्रियों रेखा, नीलम एवं अलका के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | श्री सुनील बी काम.है । विवाह हो चुका है उनकी पत्नी का नाम सुमन है। तीन पुत्रियों में से रेखा का विवाह उज्जैन के श्री जयकुमार पांड्या के साथ हो चुका है। श्री पाटनी जी के पिताजी रांची में आयोजित इन्द्र ध्वज प्रतिष्ठा समारोह में सौधर्म इन्द के पद से सुशोभित हुये थे। आपने अपने प्राम आष्टी में विद्यालय औषद्यालय एवं धर्मशाला का निर्माण करवाया था। गांव में ही गांवों को पानी पिलाने की Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 554/ जैन समाज का वृहद् इतिहास व्यवस्था पिछले 30 वर्षों से की थी 1 अपने कठोर परिश्रम, सूझबूझ से व्यवसाय में खूब सफलता प्राप्त की । वर्तमान में एP आरप्रतिष्ठान बिहार का ग्व्याति प्राप्न वस्त्र प्रतिष्ठान माना जाता है। श्री रतनलाल जी दि.जैन पंचायत रांची की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । रांची थोक वरू विक्रेता संघ के अध्यक्ष है । जैन गजट के परम सहायक हैं। आपके सूरत, बम्बई, भीलवाड़ा एवं तमिलनाडू में भी व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं । सन् 1984 में आप मनीला, हांगकांग,बैंकाक,आदि की विदेश यात्रा कर चुके हैं। माता पिता दोनों के शुद्ध खान-पान का नियम है । परम मुनिभक्त हैं तथा धर्मिक स्वभाव के हैं। एक बार दोनों ने ही दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे। श्री पाटनी जी के तीन छोटे भाई एवं पांच बहिनें है । श्री भागचन्द जी 43 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं । दि.जैन पंचायत रांची के मंत्री हैं। पत्नी का नाम विद्यादेवी है । एक पुत्री एवं दो पुत्रों से अलंकृत है । दूसरे माई श्री संतोषकुमार 41 वर्षीय हैं। धर्मपत्नी का नाम किरनदेवी है। 2 पुत्रियों एवं एक पुत्र की जननी है । तीसरे भाई श्री निर्मलकुमार 31 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम चन्द्रकला है जो श्रीचन्द जी छाबड़ा राणोली वालों की सुपुत्री है । बहिनों के नाम श्रीमती चन्द्रादेवी, मंजू, अजमेरा, सुमित्रा, पुष्पादेवी बड़जात्या एवं किरणदेवी हैं। स्व. श्री मांगीलाल जी श्रीमती विमला देवी धप श्री रतनलाल पाटनी स्य, बादामीदेवी थप श्री मांगीलाल जी श्री संतोषकुमार श्रीभागचन्द श्रीमती किरनदेवी पप संतोषकुमार Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /555 EE. :- आचार्य श्री सुविधि महाराज श्रीमती विद्यादेवी ध.ए श्री निर्मल कुमार श्री भागचन्द पता : एम.आर.कम्पनी,रांची श्री रत्नेशकुमार कासलीवाल वरिष्ठ एवं ख्याति प्राप्त पत्रकार श्री रलेशकुमार कासलीवाल का जन्म पादवा नुदी 8 संवत् 1989 को हुआ। आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयोग की विशारद पास की । सन् 1952 में आपका विवाह श्रीमती केशरदेवी के साथ हुआ,जो स्व. छाजूमल जी रारा कामदार कुचामन को सुपुत्री हैं। इनसे आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपके पुत्र श्री सुरेशकुमार 26 वर्षीय युवा हैं । बी काम हैं । पुत्रियों में सुनिता का विवाह हो चुका है । संगीता पढ़ रही है। श्री रलेश जी गत 40 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। अहिंसा संदेश के सम्पादक एवं प्रोप्राइटर हैं । हिन्दुस्तान नई दिल्ली, विश्वामित्र कलकता,रांची एक्सप्रेस रांची के यशस्वी संवाददाता हैं । आपने विश्व की दृष्टि में जैनधर्म,भगवान महावीर एवं समाज की विभूतियां पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन किया है। आपका सामाजिक जीवन भी उल्लेखनीय है । दि. जैन पंचायत रांची की कार्यकारिणी के सदस्य,जैन भवन के मंत्री, मारवाड़ी सहायता समिति रांची के उपाध्यक्ष, छोटा नागपुर चैम्बर आफ कामर्स की जनसंपर्क समिति के अध्यक्ष,दि.जैन सराफ समिति के मंत्री,महासभा कार्यकारिणी समिति के सदस्य तथा दक्षिण पूर्व रेल्वे परामर्शदात्री समिति के सदस्य हैं । आप गतिशील सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यकर्ता हैं। पता : पो.बा85, अपर बाजार,रांची। श्री राजमल सेठी गिरडीह के जैन समाज के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं धार्मिक प्रवृत्तियों में समर्पित रहने वाले श्री राजमल सेठी सारे बिहार में प्रसिद्ध है । आप सम्मेद शिखर जी तेरहपंथी कोठी के सात वर्ष तक क्षेत्रीय मंत्री रहे । गिरडीह जैन समाज के मंत्री एवं अध्यक्ष रहे। गोइन्का हास्पिटल के सेक्रेट्री रहे तथा सर्वषष्ठिव्रत समिति के विगत कितने ही वर्षों से सेक्रेट्री हैं। महासभा एवं खण्डेलवाल जैन महासभा के पुराने कार्यकर्ता हैं । Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 556/ जैन समाज का वृहद इतिहास आपका सन् 1984 में जन्म हुआ। सामान्य शिक्षा के पश्चात् आप माइका व्यवसाय की ओर चले गये । सन 1940 में आपका विवाह श्रीमती रतनीदेवी के साथ हुआ। आपको चार पुत्र एवं एक पुत्रा के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र महेन्द्रकुमार 38 वर्ष के युवा हैं। बी.ए. हैं । पत्नी का नाम जयश्री है । 2 पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । सुभाषकुमार 35 वर्षीय युवा हैं। नीता जैन पत्नी है । एक पुत्री की मां है । बिनोदकुमार बी कॉप.हैं। पत्नी का नाम नेहा जैन है। एक पुत्र की जननी है । सबसे छोटे पुत्र अशोककुमार बी.ए. हैं । रीता जैन पली है जो एक पुत्री की जननी है। श्री सेठीजी प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं। आपकी पत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनिभक्त हैं। पता :- भारत माइन्स इन्डस्ट्रीज,मक्तपुर रोड,गिरडीह श्री रामचन्द्र बड़जात्या श्री बड़जात्या जी का विशाल व्यक्तित्व एवं सामाजिक सेवायें उल्लेखनीय है । आप मूलत: चारणवास करणपुर रेनवाल के निवासी हैं लेकिन करीब 50 वर्ष पूर्व आपके पिताजी यहां व्यापार के लिये आए और फिर यहीं के हो गये । आपके पिताजी श्री गंगाबक्स बड़जात्या का निधन मात्र 38 वर्ष की आयु में हो गया तथा माताजी श्रीमती नन्दूदेवी करीब 18 वर्ष पहिले चल बसी । आपका जन्म भादवा सुदी 10 संवत् 1981 में हुआ। कोडरमा में विशारद तक शिक्षा प्राप्त की तथा खाद्यान्न चीनी, तेल एवं वेजिटेबल का व्यवसाय करने लगे जिसमें आपको आशातीत सफलता मिली । सन् 1943 में आपका विवाह श्रीमती उमरावदेवी से हो गया जो कोछोर (राज) के श्री रामचन्द्र छाबड़ा की पुत्री हैं । उनसे आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई। बड़जात्या जी दि.जैन पंचायत के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। आप तीर्थों के जीणोद्धार में रुचि लेते हैं । सोनागिर सिद्ध क्षेत्र पर कमरों का निर्माण कराया तथा नागरमल मोदी सदन रांची में एक कमरे का निर्माण कराने का यशस्वी कार्य किया। आपकी धर्मपली के शुद्ध खान-पान का नियम है तथा वह मुनियों को आहार देती रहती हैं। आपका पूरा परिवार हो मुनिभक्त हैं। बुंदेलखंड के अतिरिक्त सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार 36 वर्षीय युवा हैं । दि.जैन पंचायत रांची के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में कार्यकारिणी के सदस्य है । पत्नी का नाम कुसुमदेवी है जो चार पुत्रियों एवं एक पुत्र की मां है । दूसरे पुत्र सुरेन्द्रकुमार बीकॉप. है। उनकी धर्मपत्नी किरनदेवी एक पुत्र की जननी है। तीसरे पुत्र राजेन्द्रकुमार 28 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम सरोजदेवी है । आप दो पुत्रों के पिता हैं। चतुर्थ पुत्र संजयकुमार बी.कॉम. कर चुका है। तीनों पुत्रियों अर्चना, आभा एवं अंजना का विवाह हो चुका है। आपके दो बड़े भाई कन्हैयालाल जी 80 वर्ष के है जयपुर में रहते हैं । दूसो भाई भंवरलाल जी 73 वर्षीय है तथा जसपुर रहते हैं। पता : बड़जात्या बदर्स,अपर बाजार,रांची (बिहार) Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमती उमराव देवो धर्मपी श्री रामचन्द्र बड़जात्या श्री नरेन्द्रकुमार बिहार प्रदेश का जैन समाज /557 श्री सुरेन्द्र कुमार श्री रामचन्द्र रारा श्री रामचन्द्र जी रारा के पूर्वज खरेस ग्राम (नागौर, राज) के निवासी थे। वहां से संवत् 1917 में चतरा (हजारीबाग) आये और फिर से वहां से आपके पिताजी रायसाहब सेठ गणेशीलाल जी सरावगी सन् 1905 में डाल्टनगंज आये और फिर वहीं के होकर रह गये। स्व. श्री गणेशीलाल जी जमींदार, बैंकर्स, सोना नरेश, महाराज सरगुजा द्वारा प्रदत्त ताजीमी सरदार थे। आपको स्त्रयं महाराज ने अपनी ओर से दुशाला, साफा, तलवार एवं सोने के कड़े प्रदान किये थे । वे स्टेट के एजेन्ट थे। राजा के ही समान थे। रीवां रांची तक उनकी धाक थी। आपका स्वर्गवास दिसम्बर 1960 में 75 वर्ष की आयु में हो गया। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भंवरदेवी का अभी सन् 1990 में स्वर्गवास हुआ है। श्री रामचन्द्र जी रारा का जन्म जनवरी सन् 1921 में हुआ | पटना यूनिवर्सिटी से सन् 1939 में मैट्रिक किया तथा पहिले कल्या व्यवसाय किया तथा फिर पैट्रोल डीजल एवं होटल व्यवसाय की ओर मुड़ गये। सन् 1940 में आपका विवाह श्रीमती तिज्जीदेवी से हुआ। जो छिन्दवाडा के आनरेरी मजिस्ट्रेट श्री हजारीलाल जी पाटनी को सुपुत्री है। श्री रारा जी को तीन पुत्र सर्व श्री विकास जैन, प्रकाश जैन एवं सुभाष जैन एवं 7 पुत्रियां, गुणमाला, राजुल, त्रिशल्ला, मधु, रेणु, रौता, एवं लता के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्री विकास जैन इन्टर हैं। उनकी पत्नी का नाम बीना है। एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता है। प्रकाश जैन की पत्नी का नाम पूनम है दो पुत्रियों के पिता हैं । दोनों भाई गया में रहते हैं। श्री सुभाष डाल्टनगंज रहते हैं उनकी पत्नी का नाम सरिता है। एक पुत्र की मां है। रारा परिवार डाल्टनगंज का प्रमुख परिवार है। स्व. राय साहब श्री गणेशीलाल जी ने डाल्टनगंज में मंदिर का निर्माण करवाया तथा आपकी धर्मपत्नी (माताजी श्री रामचन्द्र जी) ने उनके नाम पर गणेशीलाल सरावगी उच्च माध्यमिक विद्यालय बनवा कर दिया। स्व. श्री गणेशीलाल जी एवं उनके सुपुत्र श्री रामचन्द्र जी रारा एवं स्व. श्री हरकचंद जो रारा डाल्टनगंज के म्यूनिसिपल चैयरमैन रह चुके हैं। राय साहब ने गया जी के पंचायती मंदिर की मूल वेदी पर कलश चढाया तथा सम्मेदशिखर बीस पंथी कोठी में शास्त्र भवन का निर्माण करवाया । Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 558/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रामचन्द्र जी तीन भाई है । सबसे बड़े आप हैं । आपसे छोटे भाई स्व. हरकचंद जी बहुत दानी थे । बिहार में जन्न अकाल पड़ा तब उस समय वे फेमिन रिलीफ सेक्रेट्रो थे सन् 1978 में आपका स्वर्गवास हो गया। दूसरे छोटे भाई धर्मचंद जी रारा डाल्टनगंज रहते हैं। श्री रामचन्द्र जी रारा को इतिहास में प्रमुख रुचि रही है । खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद इतिहास लेखन में आपका पूरा सहयोग मिला था। आपके पास पत्र-पत्रिकाओं की महत्वपूर्ण कटिंग्स है जो इतिहास लेखन में काम आती है। आपने कोल्हआ पहाड़ पर एक छोटी सी पस्तक लिखी है। कोल्ह आ पहाड को प्रकाश में लाने में आपने म निभाई है । आप कोल्हुआ पहाड़ समिति के अध्यक्ष एवं मंत्री दोनों रह चुके हैं । पहिले आप डाल्टनगंज रहते थे लेकिन परिवार विभाजन के पश्चात् सन् 1957 में गया जो आ गये और यहीं रहने लगे। पता : 1-होटल सरावगी,चर्च रोड,गया 2. सुनीत आटो सेन्टर, इंजीनियरिंग रोड,डाल्टनगंज (बिहार) श्री राधाकिशन प्रकाशचन्द रारा मूलतः खरेश प्राम निवासी स्व. श्री बेनीलाल जी रारा वहां से पटना आये और पटना से गया में सन् 1917 में आका बस गये। आप की र.वि 19 (2072) में जन्म हुआ। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और फिर टायर व्यवसाय करने लगे । सन् 1963 में आपके पिताजी श्री बेनीलाल जी एवं सन् 1967 में माताजी श्रीमती लल्लीबाई का स्वर्गवास हो गया। संवत् 2001 में आपका विवाह श्रीमती कपूरीदेवी के साथ हुआ जिनसे आपको दो पुत्र प्रकाशचंद एवं ललितकुमार तथा छ: पुत्रियां, प्रेमलता,हेमलता,निर्मला,मंजू,मीना एवं बीना के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोनों पुत्रों एवं सभी पुत्रियों का विवाह हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र प्रकाशचंद बी.ए. है । पत्नी का नाप कमलादेवी है । ललित कुमार जी 35 वर्षीय युवा हैं । बी.कॉम. हैं तथा पत्नी का नाम सुमन देवी है। आपके पूर्वजों ने इचाक ग्राम (हजारीबाग में चैत्यालय का निर्माण करवाया । तीर्थयात्रा प्रेमी हैं इसलिये सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है तथा आहार आदि से सेवा करते रहते हैं। पन्ना - जैन मंदिर मार्ग, गया (बिहार) श्री रिखबचन्द बाकलीवाल श्री बाकलीवाल जी की रांची जैन समाज के प्रमुख समाजसेत्रियों में गणना की जाती है । आपके थोक कपड़े का व्यवसाय है और अपनी व्यावहारिक कुशलता तथा व्यापारिक दक्षता के लिये प्रसिद्ध है। आपके पिताजी श्री ओमचन्द जो बाकलीवाल का निधन 21 दिसम्बर 1982 को हुआ। माताजी पतासोबाई का बहुत पहिले स्वर्गवास हो गया था। श्री ओमचंद जी उदार हदय, मिलनसार,समाजसेवी एवं शांत स्वभावी थे तथा प्रत्येक कार्य में आगे रहते थे। आपने रांची के दि.जैन मंदिर निर्माण में विशेष योगदान दिया तथा धोद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में प्रमुख रहे। आपने राजगृही में नंदीधर द्वीप रचना में, पावापुरी में मंदिर के शिखर निर्माण एवं जीर्णोद्धार में विशेष सहयोग दिया । आपने अपने गांव धोद में वेदी का निर्माण करवाया था। श्री रिखबचंद जी का जन्म आसोज बुदी 14 संवत् 1995 को हुआ । सन् 1955 में आपने अजमेर बोर्ड से मैट्रिक किया। सन् 1956 में आपका विवाह डूंगरमल जी रारा बेरीवालों की सुपुत्री श्रीदेवी से हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ज्येष्ठ पुत्र श्री अजयकुमार बी कॉम हैं । शेष तीनों पुत्र, संजय.अरविंद एवं रोहित Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /559 पढ़ रहे हैं। पुत्रियों में किरण बी कॉम. है तथा उसः। कि श्री रामानमार जी सेती में शाम हो गया है शेष दोनों पुत्रियां मोनिका एवं रानी पढ़ रही हैं। बाकलीवाल जी सामाजिक व्यक्ति हैं । रांची में मंदिर पर ध्वजारोहण कर चुके हैं। पहले डाल्टनगंज दि.जैन पंचायत के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं । दि.जैन विद्यालय के मंत्री भी रहे हैं। रांची थोक वस्त्र विक्रेता संघ की कार्यकारिणी के सदस्य, छोटा नागपुर चैम्बर आफ कामर्स के लाइफ मैम्बर,दि.जैन भवन निर्माण समिति के संयोजक है। रांची में आपका लेखक को बहुत सहयोग प्राप्त हुआ। आपके बड़े भाई चीमालाल जी डाल्टनगंज रहते हैं । पत्नी का नाम शांतिदेवी है। दो पुत्र एवं सात पुत्रियों के पिता हैं। छोटे भाई महावीरप्रसाद जी एवं शांतिलाल जी भी वहीं रहते हैं। आपके सात बहिनें हैं -भवरीदेवी, चम्पादेवी, केशरदेवी, परमेश्वरीदेवी,सुशीलादेवी एवं शकुन्तलादेवी सभी का संपन्न घरानों में विवाह हो चुका है। पता - श्री जैन टैक्सटाइल्स, अपर बाजार रांची (बिहार) श्री रूपचन्द सेठी श्री रूपचन्द सेठी हजारीबाग जैन समाज के विशिष्ट व्यक्ति हैं। आपके पिताजी स्व.श्री सुगनचंद जी सेठी समाज के मंत्री एवं अध्यक्ष रहे तथा अंतिम समय तक अपने आपको समाजसेवा में समर्पित रखा । समाजसेवा के ऐसे ही गुण श्री रूपचन्द जी सेठी में देखे जा सकते हैं। आपका जन्म संवत् 1995 में हुआ। रांची विश्वविद्यालय से आपने बी.ए किया । इसके पश्चात इलैक्टिकल हार्डवेयर तथा ऐजेन्सी का व्यवसाय करने लगे। सन 1951 में आपका विवाह हो गया । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती गुणमाला देवी जसपुर निवासी श्री थूलमल जी काला की पुत्री हैं। आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । आपका एकमात्र पुत्र संजयकुमार 25 वर्गीय युवा है। तीन पुत्रियों में से नीलम एवं अनिता का विवाह हो चुका है । अर्चना अभी पढ़ रही है । सन् 1981 में आप सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। आपकी माताजी श्रीमती बदामीबाई जी के शुद्ध खान-पान का नियम है । वे मुनियों को आहार देती रहती हैं। आपके पिताजी ने ईसरी में महिलाश्रम के नाम से एक फ्लेट तथा पावापुरी धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण करवाया । आपके दादाजी स्व. भगतूलाल जी सेठी जो दांतारामगढ से हजारीबाग आकर रहने लगे थे,दि. जैन खण्डेलवाल महासभा के प्रभावशाली नेता थे। आपकी पत्नी ने सन् 1987 में दशलक्षण व्रत के उपवास किये थे। आपके दो छोटे भाई धीरेन्द्रकुमार (43 वर्ष) एवं सुमेरचन्द (35 वर्ष) आपके हो साथ कार्य करते हैं। आपकी पांच बहिनें-पानादेवी,सुमनजैन, शकुन्तलादेवी,मीनादेवी एवं आभा बैन हैं। सभी का विवाह हो चुका है। .iN Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 560/ जैन समाज का वृहद इतिहास स्व.श्री सुगनचन्द सेठी श्रीमती गुणमाला देवी . श्री रूपचन्द जी टी पता : सुगनचन्द्र सेठी जैन, भगवान महावीर मार्ग, हजारीबाग (बिहार) श्री लालचन्द्र सेठी परिवार अन रांची जैन समाज के सबसे वयोवृद्ध श्री लालचंद जी सेठी अब दर्शनीय व्यक्ति बन गये हैं। आपने 88 वर्ष पार कर लिये हैं । आपकी पत्नी श्रीमती म्होरीदेवी का अभी 5-6 वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री महावीरप्रसाद जी का भी 8 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया। दूसरे पुत्र शांतिलाल जी 55 वर्ष के हैं। उनकी पत्नी का नाम चन्द्रकला है । जो पांच पुत्रों की म्हाता है। आपकी तीनों पुत्रियों महावीरी राजुल एवं श्रीमती का विवाह हो चुका है। I आपने मूगडवास (राज.) में मंदिर का निर्माण कराया था तथा वहां स्कूल भवन बनवाकर राज्य सरकार को दिया । दि. जैन पंचायत रांची के अध्यक्ष एवं मंत्री रह चुके हैं। आपने सराक जाति के ऐरिया में तीन नये मंदिर बनवाये एवं दो मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। सराक क्षेत्र में 6 स्थानों में विद्यालयों का संचालन किया। यही नहीं सराक क्षेत्र में वेदी प्रतिष्ठा एवं रथ यात्रायें संपन्न करायी । आप बंगाल बिहार तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सदस्य रहे । बिहार राज्य में दि जैन मंदिर न्याय सुरक्षा समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं। आपका और भी कितनी ही संस्थाओं से संबंध रहा है। वर्तमान में आप रांची जैन समाज के प्रेरणा स्त्रोत हैं। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक को उनसे भेंट करने का सौभाग्य मिल चुका है। पता :- लालचंद जैन सेठी, अपर बाजार, रांची (बिहार) श्री लक्ष्मीनारायण रारा श्रीमती बदामी देवी भ.प. स्व. सुगरचन्द्र सेठी राराजी मूलतः राजस्थान निवासी हैं। आपका जन्म दुजोद (सीकर) ग्राम में हुआ। वहां से अपने पिता श्री छगनलाल जी के साथ गिरडीह आये | श्री छगनलाल जी का स्वर्गवास 15 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके प" आपकी पत्नी छगनीदेवी का निधन हो गया । Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /561 श्री रारा जो वर्तमान में 71 वर्ष के हैं। 16 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती भंवरीदेवी के साथ हो गया | भंवरीदेवी सोकर के श्री तनसुखराय जी कालिका की पुत्री हैं। आपका एकमात्र पुत्र श्री सुरेन्द्रकुमार है। 43 वर्षीय युवा है । पत्नी का नाम कान्दादेवी है जो एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों की मां है। रारा जी गिरडीह में तीन लोक पंडल विधान में इन्द्र का पद प्राप्त कर चुके हैं। आपके द्वारा दुजोद के मंदिर में महावीर स्वामी की,मधवन शिखरजी में नंदीश्वर द्वीप की तथा श्री महावीर जी स्थित कमलाबाई के नये कांच के मंदिर में पाश्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की जा चुकी है । आप वर्तमान में गिरडोह जैन समाज के मंत्री हैं इसके पूर्व अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। शिखरजी में निर्मित हो रहे मध्य लोक शोध संस्थान के कोषाध्यक्ष हैं। भारतवर्षीय दि.जैन महासभा के सदस्य हैं । आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों को आहार देती रहती हैं। राराजी गिरडीह जैन समाज के वयोवृद्ध उत्साही समाजसेवी हैं। पता : लक्ष्मीनारायण सुरेशकुमार जैन, स्टेशन रोड, गिरडीह (बिहार) श्री विद्याप्रकाश जैन श्री जैन रामगढ जैन समाज के विशिष्ट समाजसेवी है। आप सीकर (राज) से सन् 19415 में यहां आकर व्यवसाय करने लगे। वर्तमान में आप भवन निर्माण एवं बांध निर्माण की ठेकेदारी करते हैं। आपका जन्म 14 फरवरी सन् 1943 में हुआ । रांची से सन् 1:465 में सिविल इंजीनियर की परीक्षा पास की । उसी वर्ष आपका विवाह श्रीमती प्रभा जैन से हो गया जो रामगढ़ के ही स्व.पत्रालाल जो अजमेरा की पुत्री हैं। आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है.। दोनों युवा अजय (25 वर्ष) एवं अजीत (10 वर्ष) पुत्री सरिता एवं संगीता अभी पढ़ रही हैं। आपने सीकर एवं रामगढ दोनों ही नगरों में सिद्धचक्र विधान कराया । सीकर के नये मंदिर के निर्माण में आपके परिवार ने पुर्ण सहयोग दिया। रामगढ़ समाज के निर्माण मंत्री हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। आपके पिताजी श्री मदनलाल जी छाबड़ा का 57 वर्ष की आयु में सन् 69 में स्वर्गवास हो गया । आपकी माद्री प्यारी बाई जो मानमल जी झांझरी झुमरीतिलैया की पुत्री हैं । मुनियों को आहार देती रहती हैं। आपके बड़े भाई श्री मोतीलाल जी छाबड़ा 60 वर्षीय वृद्ध हैं । भिवंडी में वस्त्र व्यवसाय करते हैं। उनकी पत्नी का नाम जीवनदेवी है जो सीकर के भंवरलाल जी विनायका की पुत्री है । एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है । छोटे भाई पदमचंद जैन है । 43 वर्षीय युवा है । पत्नी का नाम सुशीला है । दो पुत्रों की मां है। आपके तीन बहिनें विमला, हीरा एवं मैनादेवी हैं। पता : जैसवाल कालोनो रामगढ़ केन्ट (हजारीबाग) Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 562) जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री विमलकुमार सेठी __ युवा समाजसेवी श्री विमलकुमार सेठी के दादाजी श्री चम्पालाल जी करीब 125 वर्ष पूर्व दांतारामगढ(राज) से यहां आकर बस गये । वर्षों तक आप 12 गांव के जपीदार रहे। गया के प्रमुख नेता एवं बिहार केशरी की उपाधि से सम्मानित हुये । दि.जैन खण्डेलवाल महासभा के नागपुर अधिवेशन में अध्यक्ष रहे तथा ईसरी उदासोनाश्रम के ट्रस्टी रहे तथा एक बार भगवान . के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया । टिकारी (गया) में दि.जैन मंदिर की स्थापना की। चम्पालाल जी के पुत्र श्री कन्हैयालाल जी का स्वर्गवास 87 वर्ष की आयु में सन् 1981 में हुआ तथा आपकी तीसरी पत्नी श्रीमती प्रभावती देवी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । श्री विमलकुपार सेठी का जन्म सन् 1947 में हुआ । मगध विश्वविद्यालय से सन 1967 में बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा होजरी रेडीमेट का व्यवसाय करने लगे। सन् 1970 में आपका श्रीमती चन्द्रकान्ता के साथ विवाह हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है । मुनियों को आहार देती रहती हैं | गया दि. जैन पंचायत के वर्तमान में सेक्रेट्री हैं। महिला शिक्षालय के स्थायी ट्रस्टी जैन विद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य,कोल्हुआ पहाड़ विकास समिति के सदस्य,महावीर नवयुवक संघ के संस्थापक हैं । भागवान महावीर परिनिर्वाण समिति के संस्थापक सदस्य रहे । आपके होन बड़े भाई महावीरप्रसाद जी सेली. शिवगुमार जी सेशी एवं सलेन्द्रकुमार जी सेठी हैं। तीनों ही अपना अलग-अलग व्यवसाय करते हैं । आपके छोटे भाई श्री अशोककुमार जी 38 वर्षीय युवा हैं। पता : ]. विमल स्टोर्स, 25 के.पी.रोड़,गया 2- चम्पालाल कन्हैयालाल के.पी.रोड़,गया। CATE .. . र भचरीलाल जो मेठी प्रीमती कुसुगदेवी धप. विपलकुमार सेट श्रीमती भापादेवी प.प भवरीलाल जी सेटो Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /563 श्री विमलकुमार सेठी आपले पूर्वज करीब 1500 वर्ष पूर्व लक्षमणगढ़ (राज.) से रानीगंज गये और वहां से हजारीमल किशोरलाल अपने परिवार के साथ गिरडीह आकर व्यवसाय करने लगे। आपका जन्म 28 मार्च सन् 1943 को हुआ। वाराणसी विविद्यालय से बी.काम. किया और पहिले कोयला एवं पैट्रोल पम्प का कार्य करने लगे। सन् 1963 से माइका एक्सपोर्ट का कार्य कर रहे हैं। 4 जून, 1964 को आपका विवाह कुसुनदेवी से हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री को प्राप्ति हुई। आपके दोनों पुत्र अजयकुमार (21 वर्ष) एवं नवीनकुमार (18 वर्ष) तथा पुत्री अनुपमा रानौ तीनों ही पढ़ रहे हैं। सेठी जी ने सम्मेदशिखर जी के बीसपंथी कोठी में चौवीसी, टूकड़े में बाहुबली स्वामी की प्रतिमा विराजमान की । राजगृही धर्मशाला में स्थित पूरा जैन मंदिर का निर्माण श्री हजारीलाल जी ने करवाया। बीस पंथी कोठी के पिछले बगीचा वाला हाता में वेदी का निर्माण करवा कर मारबल लगाया। गिरडीह मंदिर एवं धर्मशाला के लिये जमीन प्रदान की। सम्मेदशिखर जी का पहिले जो पूरा केस लड़ा गया था वह भी श्री रामचन्द्र जी सेठी की देखरेख में लड़ा गया था। रहे हैं I आपके माता-पिता ने जापान एवं हांगकांग की यात्रायें की। आपके बड़े भाई मनुलाल जी हांगकांग में ही रह आपके पिताजी 14 वर्ष तक जैन समाज के अध्यक्ष रहे। सेठी जी स्वयं ही उत्साही समाजसेवी हैं । पता : हजारीमल किशोरीलाल सेठी, स्टेशन रोड, गिरडीह । श्री वीरेन्द्रकुमार काला काला जी के दादाजी श्री मानमल जी (सुपुत्र श्री बख्तावरमल जी) अपने ग्राम जिल्या ठाकुर से वाद विवाद होने पर स्वयं ने मानपुरा गांव बसाया तथा वहां नेमिनाथ स्वामी का मंदिर धर्मशाला एवं कुंआ आदि का निर्माण करवाया। उसके पश्चात् करीब 55 वर्ष पूर्व उनके पुत्र एवं श्री वीरेन्द्रकुमार जी के पिता श्री फूलचंद जी काला गया आकर रहने लगे। सन् 1984 में आपका 71) वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। आपको माताजी श्रीमती कमलादेवी जी का आशीर्वाद प्राप्त है। श्री काला जी का जन्म 4 फरवरी सन् 1949 को हुआ। मगध विश्वविद्यालय से सन् 1966 में बी. एस. सी. करने के पश्चात् किरोसिन एवं नमक का थोक व्यवसाय करने लगे। सन् 1970 में आपका विवाह श्रीमती कान्तादेवी से हुआ जो रतनलाल जी पाटनी, पटना की पुत्री हैं। आप दोनों को 4 पुत्र हर्ष, विक्रम, विशिष्ट एवं अपूर्व तथा एक पुत्री हर्षा के माता पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। श्री जैन सामाजिक क्षेत्र में अग्रसर रहते हैं। गया जैन समाज के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं तथा चैम्बर आफ कामर्स के सक्रिय सदस्य हैं। जैन विद्यालय गया के सेक्रेट्री, दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सम्माननीय आजीवन सदस्य हैं । आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है तथा वह मुनियों को आहार देती रहती है। मुनि श्री आर्य नंदि महाराज का संघ लेकर भागलपुर एवं शिखर जी तक जा चुके हैं। Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 564/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपके बड़े भाई श्री महावीरप्रसाद जोशी नवम्ब में स्वाना से आवेदन बोटे भाई और हैं। श्री सुरेन्द्रकुमार गुजरात में कार्य करते हैं उनकी पत्नी का नाम सरिता है : दुसरे भाई नरेन्द्रकुमार जी 32 वर्षीय युवा हैं । ममता उनकी पली है। गया जी में नमक का व्यवसाय है। तीसरे भाई रवीन्द्र जैन एम.ए. हैं। श्री काला जी के सात बहिनें हैं . विमला ललितासरोज,किरण यीना मोना एवं संतोह हैं सभी का विवाह हो चुका है । कालाजी साहित्य प्रेमी हैं । प्रकाशन संस्थाओं से साहित्य मंगाकर उसे आधी कीमत में उपलब्ध कराते हैं। स्व. फूतचन्द जी श्रीमती का-तादेवी भाप श्री वीरेन्द्रकुमार जी, श्रीमती कमलादेवी प. स्व. फूलचन्द जी पता :- 1. गया किरासिन भंडार, पुरानी गोदाम, गया 2- सुरेन्द्र साल्ट सप्लायर्स गांघी धाम,कच्छ गुजरात । श्री शांतिलाल बड़जात्या रफीगंज के श्री शांतिलाल जी बड़जात्या समाज के विशिष्ट समाजसेवी माने जाते हैं । आप फतेहपुर के मूल निवासी थे। वहां से रफीगंज आये और अतरौली में कार्य करने लगे। आपके पिताजी श्री हरकचंद जी का सन् 1983 में तथा माताजो श्रीमती इन्द्रमणि का सन् 1982 में स्वर्गवास हो गया। आपका जन्म संवत् 1986 में हुआ । केवल प्राइमरी शिक्षा ही आप प्राप्त कर सके और आपको व्यवसाय की ओर मुड़ना पड़ा । संवत् 2003 में आपका मात्र 14 वर्ष की आयु में विवाह श्रीमती घेवरीदेवी से हो गया। जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके बड़े पुत्र पवनकुमार 33 वर्ष के हैं । बी कॉम. हैं । पत्नी को ललिता है। एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता हैं । दूसरे पुत्र अनिलकुमार 31 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम सीमा है । एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है। औरंगाबाद पंचकल्याणक में आप महेन्द्र इन्द्र के पद से सुशोभित हुये थे। आपकी धर्मपत्नी के शुर खान-पान का नियम है । मुनिभक्त हैं । आहार आदि देकर सेवा करती हैं । भगवान महावीर के 2500 वें परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष में धर्मचक्र में सारथी का पद प्राप्त किया था। Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /565 आपके छोटे भाई नेमीचन्द 57 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम भंवरीबाई है। तीन पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं। दोनों पुत्र सुनील एवं सतीश का विवाह हो चुका है । पटना में रेडीमेट वस्त्र का व्यवसाय करते हैं । दूसरे भाई श्री महेन्द्रकुमार जी 53 वर्ष के हैं। धर्मपत्नी का नाम पानादेवी है। निर्मला, उमा, सीमा, बेला, ममता एवं गुडिया के पिता हैं । इनमें प्रथम चार का विवाह हो चुका है । दो अभी अविवाहित हैं। पता : हरकचंद जी शांतिलाल जी,मु.पो.रफीगंज (औरंगाबाद) श्री शांतिलाल बाकलीवाल डाल्टनगंज जैन समाज में शांतिलाल बाकलीवाल का विशिष्ट स्थान है। आपके पिताजी श्री ओमचंद जी बाकलीवाल थे जिनका दिनांक 21 दिसम्बर 1982 को निधन हो गया । माताजी पतासीबाई का निधन तो 50 वर्ष पूर्व ही हो गया था। आपका जन्म 19 अगस्त सन् 1944 को हुआ था । बी.कॉम. तक शिक्षा प्राप्त की। 17 फरवरी 1965 को आपका विवाह श्रीमती राजुलदेवी से हुआ था जो श्री रामचन्द्र जी रारा की सुपुत्री हैं। जिनसे आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विजय बी कॉम में पढ़ रहा है। कमल (20 वर्ष) एवं विशाल (16 वर्ष) दोनों पढ़ रहे हैं। आप मूल निवासी धोद के हैं। धोद से सीकर, सीकर से औरंगाबाद, औरंगाबाद से डाल्टनगंज आकर रहे । श्री बाकलीवाल जी संगीत प्रेमी,शांतिप्रिय एवं मिलनसार हैं । आपके तीन भाई और हैं। घीसालाल जी डाल्टनगंज,रिखबचंद जी रांची एवं महावीरप्रसाद जी डाल्टनगंज रहते हैं। पता : उपहार,जैन बंधु,इंजीनियरिंग रोड, डाल्टनगंज (बिहार) श्री सुरेन्द्रकुमार पांड्या गिरडीह के स्व. सागरमल जी पांड्या अपने समय के ख्याति प्राप्त उदार श्रेष्ठी थे। तीर्थ क्षेत्रों एवं मंदिरों के प्रति वे सदैव सजग रहते थे । वे प्रतिवर्ष मेले के अवसर पर श्री महावीर जी आते और वहीं उनसे प्रस्तुत इतिहास लेखक की भेंट होती थी । उनका 10 अप्रैल,1979 को आकस्मिक निधन हो गया। पांड्या जी कट्टर मुनिभक्त थे । उनके आहार विहार का पूरा ध्यान रखते थे। उनके श्री सुरेन्द्रकुमार जी तीसरे नम्बर के सुपुत्र हैं । आपका जन्म 26 मई सन् 1949 को हुआ । सन् 1961 में आपने सैंट जेवियर कॉलेज कलकत्ता से बी.कॉम.किया। उसके दो वर्ष पश्चात् 16 मई 1971 को आपका विवाह श्रीमती इंदिरादेवी से हो गया जो अजमेर के श्री नेमीचंद जी अजमेरा की सुपुत्री हैं। आपको एक पुत्र अंकित एवं एक पुत्री आशंका के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपकी माताजी श्रीमती प्यारीदेवी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 566 / जैन समाज का वृहद इतिहास श्रीमती इन्दिरा देवी आपने बीसपंथी कोठी स्थित समवसरण में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति एवं श्री महावीर जी स्थित कमलाबाई के कांच के मंदिर में श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया। कलकत्ता के चीनी पट्टी स्थित बड़ा दि. जैन मंदिर में वेदी का निर्माण करवाया | वर्तमान में आप दि. जैन समाज गिरडीह के अध्यक्ष हैं। दि. जैन विद्यालय के अध्यक्ष हैं। गरीबों की सेवा सुश्रुषा करने में खूब रुचि लेते हैं। मारोठ के कबूतरखाना के लिये आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आप 12-13 बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। लेकिन विदेशों में जाने के पश्चात् आप पूर्णतः धर्मानुसार आहार व्यवहार करते हैं। आपके दो भाई बड़े एवं दो भाई छोटे हैं। श्री विजयकुमार जी 48 वर्षीय समाजसेवी हैं। आपकी पत्नी श्रीमती सुशीलादेवी लखनऊ के सुमेरचंद जी पाटनी की सुपुत्री हैं। विनयकुमार जी दो पुत्र संजय एवं अजय तथा एक पुत्री के पिता है। दूसरे भाई बिमलकुमार जी 45 वर्षीय युवा है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती जैन है जो दो पुत्र राजकुमार व ज्योतिकुमार एवं एक पुत्री राणी की जननी है। छोटा भाई श्री अशोककुमार (37 वर्ष) की पत्नी का नाम सुषमादेवी है। जो स्व. ताराचंद जी ठोलिया जयपुर की सुपुत्री हैं। सबसे छोटे भाई सुभाष जी हैं जो अभी अविवाहित हैं। आपकी दो बहिनें श्रीमती तारादेवी एवं हीरादेवी विवाहित हैं। श्री पांडा जी के सभी पत्र समाजसेवी हैं। बिहार में उनका विशिष्ट परिवार माना जाता है। समाज के प्रत्येक कार्य में उनसे सहयोग मिलता रहता है। पता - सागर निवास- सागरमल जैन मार्ग, गिरडीह (हजारीबाग) श्री सुरेशकुमार पांड्या डाल्टनगंज जैन समाज में श्री सुरेशकुमार जी पांड्या परिवार का विशिष्ट स्थान है। आपके पिताजी श्री प्रकाशचंद जी रायबहादुर हरकचंद जी पांड्या के सुपुत्र थे जिनका आकस्मिक निधन सन् 1974 में मात्र 45 वर्ष की आयु में हो गया। आपकी माताजी श्रीमती रतनीदेवी का आशीर्वाद प्राप्त है। आपका दि. 25-12-49 को जन्म हुआ। रांची विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. किया। सन् 1972 में आपका विवाह प्रतिभादेवी के साथ हो गया। श्रीमती प्रतिभादेवी श्री भागचंद जी ठोलिया कापर गांव की पुत्री हैं। आपका जीवन पूर्णत: सामाजिक है। रांची के दि. जैन मंदिर में आप स्वयं ने वेदी का निर्माण करवाकर आदिनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान की थी। आपने प्रकाशचंद जैन सेवा सदन मातृ सेवा सदन का निर्माण करवाकर डाल्टनगंज समाज को संचालन के लिये दे दिया। आपकी माताजी डाल्टनगंज में महिला समाज की अध्यक्षा हैं। उनके शुद्ध खान-पान का नियम है। विगत चार पीढ़ी से आपका परिवार समाजसेवा में संलग्न है । Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /567 आपके तीन छोटे भाई और हैं जो आपके साथ ही व्यबसायरत हैं। श्री हेमन्तकुमार 30 वर्षीय युवा हैं । बी.एस.सी. हैं । पत्नी का नाम राजकुमारी है । वह स्वयं भी बी.ए. है। रांची विश्वविद्यालय में सन् 197) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। हेमन्त जी दो पुत्रियों एवं एक पुत्र के पिता हैं। श्री विकासकुमार दूसरे छोटे भाई हैं । बी.कॉम. हैं । 35 वर्ष के हैं। बड़े व्यत्पन्न हैं । इन्टर में रांची वि.विद्यालय में प्रथम पोजीशन प्राप्त की तथा बी काम में रांची विश्वविधालय की परीक्षा में प्रथम रहे । आपको धर्मपत्ना श्रीमती सराज है जो गया के बालचन्द जो छाबड़ा की सुपुत्री हैं । आपके एक पुत्र एवं एक पुत्री है। पता : रतनलाल, प्रकाशचंद,कचहरी रोड़,डाल्टनगंज (बिहार) श्री सुरेशकुमार पांड्या कटराथल (सीकर राज) से 85 वर्ष पूर्व आपके दादाजी सोनपाल जी यहां गया आकर | रहने लगे 1 यहां आने के पश्चात् आपके पिताजी श्री रामेश्वरलाल जी का जन्म हुआ जिनका सन् 1956 में मात्र 38 वर्ष की आयु में निधन हो गया । आपकी माताजी श्रीमती चांदकुमारी जी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । आपका जन्म 10 अगस्त 1947 को हुआ। हायर सैकण्डी पास की और वस्त्र व्यवसाय की ओर मुड गये। सन् 1966 में लालगोला निवासी श्री गुलाबचंद जी छाबड़ा की पुत्री श्रीमती अनूपदेवी से आपका विवाह हुआ । संतान न होने से आपने अतुलकुमार को दत्तक पुत्र बनाया। श्री पांड्या जी विधि विधानों में भाग लेते रहते हैं । गयाजी में आयोजित इन्द्रध्वज मंडल विधान में आपने इन्द्र के पद को सुशोभित किया था। आपकी माताजी के शुद्ध खान-पान का नियम है । बह मुनियों को आहार देती रहती हैं। तीन बार दशलक्षण व्रत एवं तीन बार अष्टान्हिका व्रत के उपवास कर चुकी हैं । आपकी ओर से ईसरी पार्श्वनाथ स्टेशन पर धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण करवाया था। आप कोल्हुआ पहाड़ विकास समिति के विगत 7 वर्षों से सेक्रेट्री हैं और उसका संतोषजनक कार्य कर रहे हैं। आप बिहार चैम्बर ऑफ कामर्स की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। __ आपके तीन छोटे भाई और हैं। श्री संतोषकुमार जी पांड्या 42 वर्षीय युवा कार्यकर्ता है तथा युवा सम्मेलन के प्रमुख कार्यकर्ता माने जाते हैं । आपकी पत्नी का नाम शकुन्तला है दूसरे भाई नरेन्द्रकुमार 39 वर्षीय हैं इन्दौर में लोहे के उद्योग का संचालन करते हैं। आपकी पत्नी का नाम सुशीलादेवी जैन है । तीसरे भाई बिमलकुमार जी 35 वर्षीय युवा हैं उनकी पत्नी का नाम पुष्पा है । आपकी एकमात्र बहिन मंजू है जिनका इन्दौर के श्री गिरीश सेठी से विवाह हो चुका है। श्री सुरेश जी अति उत्साही समाजसेवी हैं । कोल्लुआ पहाड़ के विकास के लिये समर्पित हैं । आपसे एवं श्री संतोषकुमार जी से समाज को बहुत आशायें हैं। पता: वैरायटी,शहीद रोड़,गया (बिहार) Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 568/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री सुरेशकुमार जैन पांड्या ___ झुमरीतिलैया के श्री सुरेशकुमार पांड्या समाजसेवा की प्रतिमूर्ति हैं । वे नगर की सभी संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। कितनी ही संस्थाओं को स्वयं ने स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया है। आपका जन्म 7 अगस्त 1950 को हुआ । पटना विश्वविद्यालय से सन् 1960 में बी कॉम किया । सेठ जगन्नाथ जी पांड्या के आप दत्तक पुत्र बने । पांड्या जी अपने समय के ख्याति प्राप्त श्रेष्ठी थे । उदार हृदय थे तथा कितनी ही संस्थाओं के पदाधिकारी थे। श्री सुरेशकुशर जी का सन् 1968 में श्रीमती प्रेमलता जैन के साथ विवाह संपन्न हुआ। प्रेमलता जी श्री जीतमल जी छाबड़ा झुमरीतिलैया की सुपुत्री हैं। आपको चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । पुत्रियों के नाम संजना,रीना,श्वेता एवं मीनू है। ___ सुरेश बाबू अच्छे वक्ता एवं लेखक है। आपके लेख झुमरीतिलैया जेसीज-पत्रिका, सन्मति संदेश, रोटरी पत्रिका में प्रकाशित होते रहते हैं । आप जगन्नाथ जैन कॉलेज के निर्माता,रांची विश्वविद्यालय के सीनेट के मैम्बर जैन समाज कोडरमा के उपाध्यक्ष हैं। आप बिहार स्टेट जेसीज के एवं रोटरी क्लब कोडरमा के अध्यक्ष रह चुके हैं। इनके अतिरिक्त कोडरमा की सभी सामाजिक एवं सार्वजनिक संस्थाओं को योगदान देते रहते हैं। आपके पिताजी सेठ जगत्राथ जी पांड्या ने बड़े पंचायती मंदिर की दूसरी मंजिल में पूरा मंदिर बनवाया उसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई और स्वयं सौधर्म इन्द्र बने । अपने पिता के समान ही श्री सुरेश जी भी सामाजिक क्षेत्र में सदैव तत्पर रहते हैं और अपनी सेवाओं से सबके प्रिय बने हुये हैं। पता :- जैन वेक्स रिफाइनरी प्रा. लि. झुमरीतिलैया (हजारीबाग) श्री हरकचंद छाबड़ा ___ छाबड़ा गोत्रीय श्री हरकचंद जी का जन्म 10 मई सन् 1936 को हुआ। आपके पिताजी श्री भूरामल जी का स्वाावास जनवरी 1980 में 74 वर्ष की अवस्था में हो गया । आपकी माताजी श्रीमती नन्हीदेवी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। आपका विवाह सन 1952 में श्रीमती विमलादेवी के साथ हुआ । श्रीमती विमलादेवी नवादा के श्री सुगनचंद जी बड़जात्या की पुत्री हैं। श्री बड़जात्या जी खण्डेलवाल जैन महासभा के महामंत्री रहे थे। ___ छावड़ा जी एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता हैं । आपके एक मात्र पुत्र श्री.अजीतकुमार अ) वर्षीय युवा है जो सिंगापुर हांगकांग, जापान की यात्रा कर चुके हैं। बी.ए. हैं । पत्नी का नाम सीमादेवी है जो एक पुत्री की मां बन चुकी है। आपकी तीन पुत्रियों में अनीता एवं संगीता का विवाह हो चुका है । ममता अभी अविवाहित है। आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है तथा मुनियों का आहार आदि से सेवा करता रहता है। आपके दो छोटे भाई एवं 6 बहिनें हैं। श्री नवलकिशोर 50 वर्षीय श्रेष्ठी हैं । धर्मपत्नी का नाम मैनादेवी है । आप चार पुत्र,संजय सजीव,मनीष,विकास एवं तीन पुत्रियों शशि, मीना एवं निशा को माता हैं। __दूसरे भाई श्री निर्मलकुमार 48 वर्षीय युवा हैं । बी कॉम है। पत्नी का नाम कुसुम है । एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता है। आपकी 6 बहिनों कलावती,उमराव, राजकुमारी, निर्मला, सरोज,उर्मिला है सभी विवाहित हैं। पता : मांगीलाल भूरमल,बाङम बाजार हजारीबाग। Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /569 सिराज श्री हरकचन्द पांड्या सरावगी विशाल व्यक्तित्व के धनी एवं बिहार जैन समाज के एक छत्र नेता श्री हरकचंद जी पांड्या राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं । विगत 40 वर्षों से आप और समाज दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची बने हुये हैं। आप रायबहादुर की उपाधि से अलंकृत हैं तथा पूरा समाज आपको इसी उपाधि से जानता है लेकिन आप उसका उपयोग नहीं करते । आपके दादाजी रतनलाल सागण जो कुचामन से करीब एक शताब्दी पूर्व रांची आये और बिहार राज्य की सेवा करने लगे। आपको भारत सरकार द्वारा रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया। आपका जन्म 3 सितम्बर सन् 1913 को हुआ। 19 वर्ष की आयु में ही आपको पिताजी . श्री सूरजमलजी छोड़कर चले गये और इसके तीन वर्ष पश्चात् आपके दादाजी रायबहादुर रतनलाल जी भी 61 वर्ष की आयु में चल बसे । 12 वर्ष की आयु में ही आपका विवाह श्रीमती घेवरीदेवी से हो गया। आप श्री गौरीलाल जी छाबड़ा जीयागंज वालों की सुपुत्री हैं । आपके दादाजी रतनलाल जी के दो पुत्र थे जिनमें एक आपके पिताजी सूरजमल जी एवं दूसरे चांदमल जी थे। सूरजमल जी के चार पुत्र हरकचंद जी,ताराचंद जी,ज्ञानचंद जी एवं प्रकाशचंद जी हैं। इनमें प्रकाशचंद जी 45 वर्ष की आयु में ही स्वर्गवासी हो गये । रायबहादुर हरकचंद जी को 6पुत्र एवं पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके सबसे बड़े पुत्र श्री राजकुमार जी (जन्म 8-9-31) बी.ए. हैं । स्नेहलता धर्मपली है तीन पुत्रों की जननी है । जो सभी उच्च शिक्षित हैं । दसरे पत्र रमेश कुमार (जन्म 24-1-461 सिविल इंजीनियर है। दोपत्र एवं एक पत्री के पिता हैं। तीसरे पत्र पदमकमार (जन्म 30-5-47) दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं धर्मपत्नी का नाम रेखा है। चतुर्थ ललित कुमार (जन्म 9-12-57) बी.ए. है । मृदुला उनकी धर्मपत्नी है । एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है। पांचवें पुत्र अशोककुमार (जन्म 1.4-53) बी.कॉम. हैं । उनकी पत्नी संतोष एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां है। सबसे छोटे पुत्र अनिलकुमार (जन्म 4-2.57) मैक्निकल इंजीनियर हैं। धर्मपत्नी का नाम निरोज है जो एक पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है। आपके चार पुत्रियां श्रीमती प्रथा,राजमती,शोभा एवं रेखा है। सभी का विवाह हो चुका है। सामाजिक जीवन:- सरावगी जी अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं जिनकी पूरी जानकारी उनको स्वयं को पी नहीं है । क्योंकि बिहार में सभी संस्थाओं में आपका सहयोग एवं वरदहस्त है । भगवान महावीर 2500 वो परिनिर्वाण समारोह वर्ष में बिहार के आप अध्यक्ष रहे । बिहार प्रान्तीय खण्डेलवाल महासभा के वर्षों तक अध्यक्ष रहे । वर्तमान में भारतवर्षीय दि, जैन महासभा एवं दि.जैन महासमिति के उपाध्यक्ष हैं तथा बिहार प्रान्त की समितियों के अध्यक्ष हैं । रोची जैन समाज के 20 वर्ष से भी अधिक समय तक अध्यक्ष रह चुके हैं। बिहार प्रान्तीय दि.जैन धार्मिक न्यास पार्षद के संस्थापक अध्यक्ष हैं । भा.दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के एवं बंगाल बिहार तीर्थ क्षेत्रकमेटो के उपाध्यक्ष है। सरजमल बाल मंदिररांची के संस्थापक अध्यक्ष प्रकाशचन्द जैन सेवा सदन डाल्टनगंज के संस्थापक अध्यक्ष ईसरी आश्रम के अध्यक्ष,बिहार चैम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इन्ड.के अध्यक्ष,छोटा नागपुर चैम्बर आफ कामर्स के संस्थापक अध्यक्ष, अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष,बिहार प्रान्तीय मारवाड़ी सम्मेलन के उपाध्यक्ष एवं रांची विकास न्यास के सदस्य रह चुके है । इसके अतिरिक्त दि.जैन सर्राफ समिति के वर्तमान में अध्यक्ष हैं । आपकी ओर से रायबहादुर रतनलाल सूरजमल जैन विद्यालय एवं होमियोपेथी डिस्पेन्सरी चल रही है । सम्पूर्ण बिहार जैन समाज आपके नेतृत्व में रहना अपना गौरव समझता है। समाज को आपसे और भी अधिक आशायें हैं । हम आपके उन्नत भविष्य के लिये एवं दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। पता : रतनलाल सूरजमल,मैन रोड,रांची,(बिहार) Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 570/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री हीरालाल अजमेरा । सरिया के श्री हजारीलाल अजमेरा विशिष्ट समाजसेवी हैं। आप मूलतः खण्डेला ग्राम के है। वहां से 145 वर्ष पूर्व आपके पूर्वज लच्छोराम जी शिवनारायण जी यहां आकर रहने लगे । आपका जन्म 2-100-1925 को हुआ । हजारीबाग से मैट्रिक किया। सन् 1942 में आपका विवाह चांददेवी के साथ संपन हुआ । श्रीमती चांददेवी जी जियागंज के श्री गुलाबचंद जी काला की पुत्री हैं। आपको तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिला। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री देवकुमार जी 43 वर्षीय युवा हैं। बी. कॉम. हैं। पत्नी का नाम अनिता है। तीन पुत्रियों के पिता हैं। दूसरे पुत्र अनिलकुमार 41 वर्ष के हैं जो बी.कॉम हैं। तृतीय पुत्र श्री विनोदकुमार भी बी कॉम हैं। पत्नी का नाम संगीता है। एक पुत्र एवं एक पुत्री की मां हैं। दोनों पुत्रियां कुसुम एवं प्रेम का विवाह हो 'चुका है. I हजारीबाग का दि. जैन मंदिर एवं खण्डेला का जैन मंदिर आपके पूर्वजों ने बनवाया। वर्तमान में खण्डेला में जो धर्मशाला बन रही हैं वह भी आपका ही मकान है। आप प्रतिदिन पूजापाठ करते हैं। दि. जैन समाज सरिया के 20-25 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। ईसरी धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण करवाया है। आपके दादाजी बिहार के 762 गांवों के जमींदार थे । आपने व्यापार व्यवसाय में जो कुछ उत्कर्ष किया है वह सब आपका स्वयं का परिश्रम एवं समर्पण है । आपकी धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है। आप दशलक्षण एवं अष्टान्हिका व्रत के दस एवं आठ उपवास कर चुकी हैं। इसके अतिरिक्त आपके पुत्र देवकुमार जी एवं अनिलकुमार जी एवं उनकी धर्मपत्नी ने भी दशलक्षण व्रत उपवास किये हैं। पता हीरालाल जैन, स्टेशन रोड, सरिया (बिहार) - श्री हुकमचंद सेठी आपके पूर्वज धोद (सीकर, राजस्थान) के निवासी थे। वहां से करीब 124 वर्ष पहिले गया आकर बस गये। आपके पिताजी श्री गुलाबचंद जी की 32 वर्ष की उम्र में ही मृत्यु हो गई थी। माताजी श्रीमती कूकीबाई का 20 वर्ष पहिले निधन हो गया। सेठी जी का जन्म कार्तिक सुदी 14 संवत् 1984 को हुआ। आपने मैट्रिक किया और मेडिकल एवं होटल व्यवसाय करने लगे। सन् 1944 में आपका विवाह श्रीमती शांतिबाई के साथ संपन्न हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र जितेन्द्र, विजयकुमार एवं अजितकुमार तथा चार पुत्रियां सरोज, विमला, मंजू एवं पुष्पा की प्राप्ति हुई । विजयकुमार आपके बड़े भाई के गोद चले गये । जीतेन्द्र एवं सभी पुत्रियों का विवाह हो गया। श्रीमती मंजू लेखक के छोटे भाई वैद्य प्रभुदयाल जी की है। I आपके बड़े भाई स्वरूपचंद जी ने गया पंचकल्याणक में इन्द्र की बोली ली थी। उनका सन् 1969 में 45 वर्ष की आयु में ही स्वर्गवास हो गया। उनके पांच पुत्रियां हैं सभी का विवाह हो चुका है। विजयकुमार इन्हीं का दत्तक पुत्र है । श्री सेठी जी मुनिभक्त हैं। आहार देने में रुचि लेते हैं तथा शांति के साथ जीवनयापन करते हैं। पता : जैन मेडीकल स्टोर, जी.बी. रोड, गया । Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज/571 मालखा का जैन समाज एवं यशस्वी समाजसेवी उज्जैन ____ मालवा प्रदेश प्रारंभ से जैन धर्म एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है । उज्जैन मालवा प्रदेश की राजधानी रहा था। भगवान महावीर ने उज्जैन के अतिमुक्तक श्मशान में ध्यान लगाया था तथा 150 वर्ष ईसा पूर्व भद्रबाहु स्वामी दुर्भिक्ष काल में उत्तर भारत से उज्जैन होकर ही दक्षिण भारत गये थे। उज्जैन में पिछली एक शताब्दी में जैन समाज की संख्या घटती-बढ़ती रही है। श्री दिगम्बर जैन समाज के उपदेशक की रिपोर्ट के अनुसार सन् 1905 में यहाँ दिगम्बर जैन समाज के 60 घर थे तथा जनसंख्या 400 थी। फिर सन् 1908 में यहाँ 41 परिवार ही रह गये जिनकी जनसंख्या 151 थी तथा तीन दिगम्बर जैन मंदिर थे । जैन यात्रा दर्पण के अनुसार सन् 1911 में उज्जैन की 20 हजार जनसंख्या में जैन समाज की विभिन्न जातियो के मात्र 45 घर थे जिनकी जनसंख्या 156 ही रह गई थी लेकिन वर्तमान में उज्जैन जैन समाज की जनसंख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है। विभिन्न जातियों के सदस्यों की संख्या निम्न प्रकार रही : खण्डेलवाल जैन समाज 450 घर, अग्रवाल जैन परिवार 30 घर.परवार जैन समाज 150 घर, जैसवाल जैन 100 और हूंबड-70 घर खण्डेलवाल जैन जाति के गोत्रों में सेठी, कासलीवाल, बाकलीवाल,काला, पाटनी, बिलाला, पहाड़िया, बैनाड़ा, दोशी, चांदवाड़, अजमेरा, गदिया, रारा, साठ, वेद, पाटोदी, बड़जात्या, लुहाड़िया. छाबड़ा, पांड्या, टोग्या, रांवका, बोहरा, सोनी, झांझरी, सौगानी, विनायक्या, चौधरी, कटारिया, गोधा, बज, गंगवाल जैसे 32 गोत्रों के परिवार हैं। उज्जैन में गत पचास वर्षों से नमक मंडी में नये मंदिर का निर्माण हुआ है । दिगम्बर जैन पुरातत्व संग्रहालय की सन् 1948 में स्थापना हुई है तथा जिसमें 551 प्राचीन मूर्तियों का अभूतपूर्व संग्रह है। यहाँ कितनी ही जैन संस्थाएं हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन है जिसमें हस्तलिखित एवं प्रकाशित ग्रंथों का अच्छा संग्रह है। यहां के जैन विद्वानों में डा, कैलाशचन्द जैन एवं पं. सत्यन्धर कुमार जी सेठी के नाम उल्लेखनीय है । डॉ. हरीन्द्र भूषण जैन यहाँ के वरिष्ठ विद्वान थे जिनका कुछ वर्षों पूर्व स्वर्गवास हो गया। यहाँ विनोदीराम लालचंद जी अच्छी फर्म थी । समाज भूषण रायबहादुर लालचन्द सेटी, पं. अनन्तराम जी आयुर्वेदाचार्य, हकीम फूलचन्द जी जैन, अच्छे समाजसेवी हो गये हैं। वर्तमान में श्रेष्ठी भूपेन्द्रकुमार जी सेठी, ललित कुमार जी जैन एवं फूलचन्द जी झांझरी का नाम समाज सेवियों में लिया जाता है। इन्दौर - इन्दौर नगर मालवा प्रदेश का वर्तमान में सबसे अधिक जनसंख्या वाला व्यापारिक केन्द्र है जो बम्बई का छोटा टुकड़ा कहलाता है । समस्त जैन समाज को गौरवान्वित करने वाले अनेक पद विभूषित श्रीमंत सर सेठ हुकमचंद जी इसी नगर के नागरिक थे । यहाँ की राजनैतिक चेतना को जाग्रत रखने वालों में स्व. श्री मिश्रीलाल । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 572/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जी गंगवाल के अतिरिक्त वर्तमान में श्री प्रकाशचन्द जी सेठी एवं श्री बाबूलाल जी पाटोदी के नाम उल्लेखनीय हैं । जैन समाज के नेताओं में सर सेठ हुकमचन्द जी के पश्चात् उनके पुत्र रायबहादुर स्व.श्री राजकुमार सिंह जी कासलीवाल ने समाज की बागडोर संभाली । वर्तमान में श्री देवकुमार सिंह जी कासलीवाल, श्री कैलाश चंद चौधरी के नाम विशेषत: उल्लेखनीय हैं। यहां के प्रमुख विद्वानों में पं. नाथूलाल जी शास्त्री, डा. नेमीचन्द जैन, पं. धर्मचन्द जी आयुर्वेदाचार्य के नाम लिये जा सकते हैं । सन् 1986 की जैन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 24 जिनालय एवं चैत्यालय हैं। मंदिरों के अतिरिक्त 20 धर्मशालायें, 12 चिकित्सालय, 32 सेवाभावी संगठन, 22 शैक्षणिक संस्थाएं एवं 26 अन्य संस्थाएं हैं जिनका सामाजिक विकास में योगदान है। वैसे यहाँ 26 विद्वान एवं पंडित हैं जो समाज को धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं । 115 चिकित्सक हैं जो समाजसेवा में लगे हुए हैं। 72 इंजीनियर हैं जो विभिन्न संगठनों में लगे हुए हैं। 55 अभिभाषक हैं, 19 कर सलाहकार है । 34 प्रोफेसर एवं प्राध्यापक हैं जो विश्वविद्यालय एवं कालेजों में पढ़ा रहे हैं। 41 शासकीय अधिकारी हैं जो शासन में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। 49 औद्योगिक संस्थान हैं । यहाँ की जैन जातियों की संख्या 20 है जो एक रिकार्ड है । इन जातियों की सन् 1986 की जनसंख्या निम्न प्रकार है : खण्डेलवाल 10402, परवार 3260, हूंबड 2372, पोरवाड़ 822, गोलालारे 1245, नरसिंहपुरा 1115, अग्रवाल 841, सेतवाल 523, जैसवाल 680, बघेरवाल 361, लमेचू 77, गोलापूर्व 442, खरोआ 61, श्रीमाल 65, पल्लीवाल 139, पद्यावती पोरवाल 443, जांगड़ा पोरवाल 144, तारण पंथी 22, चतुर्थ 7 एवं अन्य 88 इस प्रकार इन्दौर की जैन जनसंख्या 23119 है । यद्यपि नगर की जनसंख्या के अनुसार यह संख्या अधिक नहीं है फिर भी यहाँ पूरे जैन जातियों की 40 प्रतिशत जातियाँ रहती हैं यह विशेषता की बात है। नगर में कांच का मंदिर एवं नव निर्मित गोम्मगिरी, दर्शनीय मंदिरों में से हैं। यहां से तीर्थंकर मासिक पत्र का प्रकाशन होता है । जिसके सम्पादक डा. नेमीचंद जैन हैं । यहाँ एक दि. जैन उदासीनाश्रम है जिसमें कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ स्थापित है और जिसकी ओर से अर्हत वचन त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशन होने लगी है। इन्दौर नगर विगत एक शताब्दी में होने वाले आचार्यों एवं साधुओं के चरणों से पवित्र होता रहा है। आचार्य शांतिसागर जी छाणी से लेकर वर्तमान आचार्यों ने नगर में चातुमार्स करके अथवा अल्पकालीन विहार करके नगर को धार्मिक प्रवचनों से लाभान्वित किया है। आचार्य विद्यानन्द जी महाराज के चातुर्मास में यहाँ अनेक साहित्यिक कार्य संपन्न हुये। भगवान महावीर 2500 वाँ परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष (सन् 1974-75) एवं भगवान बाहुबली सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह वर्ष (1981) में यहाँ की समाज ने प्रशंसनीय कार्य किया तथा समाज को नेतृत्व प्रदान किया था। Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /573 लश्कर ग्वालियर : मालवा प्रदेश का लश्कर ग्वालियर तीसरा नगर है जिसे जैन धर्म का एवं समाज का केन्द्र कहा जा सकता है । लश्कर को सन् 1812 में बसाया गया और इसे ही ग्वालियर की राजधानी बनाया गया। वर्तमान में वृहत्तर ग्वालियर में लश्कर, ग्वालियर और मुरार का भाग आता है। नगर के विभिन्न मोहल्लों में लश्कर में 23 दिगम्बर जैन मंदिर, ग्वालियर में 8 मंदिर चैत्यालय एवं मुरार में 4 मंदिर चैत्यालय हैं। यहाँ 6 श्वेताम्बर जैन मंदिर हैं । लश्कर ग्वालियर नगर में 13 दिगम्बर जैन धर्मशालायें हैं । यहाँ पाठशालाएं एवं विद्यालय हैं तथा अन्य शिक्षण संस्थाएं हैं । इन्दौर की तरह यहाँ भी विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं। सन् 1961 की एक स्मारिका के अनुसार जातियों में जैन जनसंख्या निम्न प्रकार थी : जैसवाल - 1986, बरैया-1348, खण्डेलवाल - 1115, अग्रवाल- 901, परवार-380, गोलालारे 158, पल्लीवाल - 167, , खरौआ - 157, लमेचू - 114, गोल सिंघारे 102, पद्मावती पुरवाल- 80, बुढेलवाल - 14, हूंबड बघेरवाल, गोलापूरव, श्रीमाल एवं गंगेरवाल जातियों की संख्या है। यहाँ खरौआ जैन समाज के परिवार हैं जो अन्यत्र बहुत कम मिलते हैं । यहाँ की पूरी जैन जनसंख्या 7576 थी इन 30 वर्षों में जिस प्रकार जनसंख्या में वृद्धि हुई है उसको देखते हुये यहाँ की जैन जनसंख्या 15 हजार से कम नहीं होगी चाहिए। ग्वालियर का जैन कवियों ने बहुत सुन्दर वर्णन किया है। 15वीं शताब्दी में होने वाले अपभ्रंश के महाकवि रइधू ने ग्वालियर की सुन्दरता का एवं व्यापार व्यवसाय का बहुत सशक्त वर्णन किया है। भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति ने भी रविव्रत कथा में ग्वालियर का उल्लेख किया है। ग्वालियर जैन समाज के लिए तीर्थ भूमि है। जैन प्रतिमाओं का यहाँ विपुल भंडार है । यहाँ वर्तमान में उपलब्ध जैन मूर्तियों की संख्या 1500 के लगभग है जो 6 इंच से लेकर 57 फुट तक की है। यहाँ के किले में सबसे विशाल मूर्ति भगवान आदिनाथ की है जो बावनगजा के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर पंडितों में पं. छोटेलाल जी बरैया अच्छे पंडित थे जिनका अभी कुछ समय पूर्व ही देहान्त हो गया है। समाजसेवियों में श्री मिश्रीलाल जी पाटनी ने भी यहां के समाज की उल्लेखनीय सेवायें की थी। वर्तमान में श्री रामजीत जैन एडवोकेट अच्छे लेखक हैं । बड़वानी : बड़वानी बावनगजा के नाम से प्रसद्ध है। बडवानी पहिले मध्यप्रदेश की एक छोटी रियासत थी । बावनगजा सिद्धक्षेत्र है जहाँ भगवान आदिनाथ की 84 फुट ऊंची विशाल खडगासन प्रतिमा है जिसका जीर्णोद्धार एवं पुनः प्रतिष्ठा जनवरी सन् 1991 में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव संपत्र हुई थी। जैन यात्रा दर्पण में दि. जैन समाज के 27 परिवार होने का उल्लेख किया है। वर्तमान में यहाँ 60-70 दि. जैन परिवार हैं जिनमें अधिकांश परिवार खण्डेलवान समाज के हैं । 1- गोपाचल सिद्धक्षेत्र - लेखक रामजीत जैन, पृष्ठ-9 Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 574/ जैन समाज का वृहद इतिहास खुरई : मालवा क्षेत्र में खुरई दिगम्बर जैन समाज का अच्छा केन्द्र है। यहाँ 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में जैन समाज के 196 परिवार थे जिनकी जनसंख्या 661 थी लेकिन वर्तमान में दि.जैन परिवारों की संख्या 400 है। यहाँ सभी घर परिवार समाज के हैं केवल एक घर खण्डेलवाल जैन का है । दिगम्बर जैन मंदिरों की संख्या 2 एवं चैत्यालयों की संख्या तीन है । एक पार्श्वनाथ जैन गुरूकुल है जो हायर सैकण्डरी विद्यालय है । छात्रावास भी है जिसमें 200 छात्र रहते हैं । यहाँ गुरहा परिवार अत्यधिक प्रतिष्ठित परिवार है जो कृषि पंडित उपाधि से विभूषित है । विद्वानों में पं. नेमीचन्द जी जैन हैं जो विद्यालय के प्राचार्य हैं। भिलाई : भिलाई औद्योगिक नगर है जो जिला दुर्ग में स्थित है । वर्तमान में यहां जैन परिवारों की अच्छी संख्या है । खण्डेलवाल जैन समाज के करीब 60 परिवार हैं जिनमें आधे से अधिक परिवार व्यापार करते हैं तथा शेष सर्विस में हैं। हरियाणा प्रदेश का जैन समाज हरियाणा प्रदेश पहिले पंजाब प्रदेश का ही एक भाग था लेकिन अब स्वतंत्र प्रदेश है। पूरे प्रदेश में अग्रवाल जैन समाज ही बहुसंख्यक समाज है तथा धार्मिक कार्यों में निष्ठापूर्वक लगे रहते हैं । दिगम्बर जैन महासमिति की ओर से प्रकाशित हरियाणा प्रदेश स्मारिका के अनुसार जिन नगरों एवं कस्बों में जैन परिवार अच्छी संख्या में हैं उनमें फरीदाबाद, बल्लभगढ़, पलवल, होडल, वनचारी, हथीन, उटावड, गुडगांव, झाडसा, हेली मंडी, फरुखनगर, बादशाहपुर, सोहना, नह, भादस, नगीना, मांडीखेग, बीवां, अगौन, महूति गांव, पिनगावां, शाहचौखा, विद्वार, फिरोजपुर झिरका, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी, दारुहेडा, रोहतक,बहादुरगढ़, झज्जर हिसार, हांसी, सिरसा, भिवानी, करनाल, पानीपत, कुरूक्षेत्र, कैथल, जीन्द, सफीदों मंडी, अम्बाला शहर एवं छावनी, जगाधरी, बुडिया, साढोरा, यमुनानगर, सोनीपत शहर एवं मंडी, भटगांव, गोहाना, गन्नौर, चंडीगढ़, कालका आदि के नाम लिये जा सकते हैं । उक्त सभी नगरों में दि. जैन मंदिर हैं । सबसे अधिक मंदिर पानीपत,(6) सोनीपत (7) रेवाडी (5) में हैं। यहां की समाज ने धार्मिक शिक्षा की अच्छी व्यवस्था कर रखी है। हरियाणा के प्रमुख समाजसेवियों में श्री ताराचंद प्रेमी फिरोजपुर झिरका एवं श्री धन्नामल जी रेवाडी के नाम लिये जा सकते हैं। Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /575 इन्दौर, उज्जैन एवं ग्वालियर के यशस्वी समाज सेवी 1. श्री अशोककुमार बड़जात्या 2. श्री इन्दरचन्द पाटनी 3. श्री उजासचन्द काला ऊषा जैन 4. 5. श्रीमती कमलादेवी पांड्या 6. डॉ. कैलाशचन्द जैन 7. श्री घमण्डी लाल बोहरा 8. श्री देवकुमार सिंह कासलीवाल 9. श्री धनराज कासलीवाल 10. श्री नरेन्द्रकुमार गोधा 11. पं. नाथूलाल शास्त्री 12. श्री नेमीचन्द पांड्या 13. श्री प्रकाशचन्द टोंग्या 14. श्री प्रेमसागर जैन रिन्धिया 15. श्री फूलचन्द जैन खुरई 16. श्री फूलचन्द झांझरी 17. श्री बाबूलाल पाटोदी 18. श्री मदनलाल सोनी 19. श्री महावीर प्रकाश निगोतिया 20. श्री मदनलाल गंगवाल 21. श्री माणकचन्द्र गंगवाल एडवोकेट, लश्कर 22. श्री मानिकचन्द पाटनी, इन्दौर 23. श्री मूलचन्द पांड्या 24. श्री राजाबहादुर सिंह कासलीवाल 25. श्री ललितकुमार जैन पांड्या 26. श्री विमलचन्द बाकलीवाल 27. पं. श्रीराम जैन बाकलीवाल 28. श्री सत्यंधर कुमार सेठी 29. श्री सूरजमल गोधा 30. श्री सुरेश कुमार गंगवाल समाज के दिवंगत नेता सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर 20 वीं शताब्दी में जिन श्रेष्ठि जनों ने जैन समाज को सबसे अधिक प्रभावित किया, अपनी सेवा एवं आर्थिक सहयोग के बल पर उसकी विकास यात्रा को अबाधगति से गतिमान रखा तथा शासन के सर्वोच्च पदाधिकारी को अपना बनाकर रखा उनमें सर सेठ हुकमचन्द जी कासलीवाल, इन्दौर का नाम सबसे प्रथम लिया जा सकता है। उनकी लोकप्रियता का तो इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि शासन एवं समाज ने उनको इतनी उपाधियों से विभूषित किया कि सब उपाधियों को याद रखना भी कठिन हो गया। व्यापार में वे राजा थे और व्यापारिक क्षेत्र में उनके नाम का सिक्का चलता था। वे कॉटन किंग के नाम से प्रख्यात थे। सरसे का जन्म 14 जुलाई 1874 में हुआ। उन्होंने सामान्य शिक्षा प्राप्त की लेकिन व्यावसायिक दक्षता उनमें जन्मजात थी । वे भाग्यशाली थे । इसलिये जो भी कार्य किया उसी में सफलता मिलती गई। अपने समय में वे सारे मध्य भारत में अकेले करोड़पति थे इसलिये उन्हें धन कुबेर की उपाधि प्राप्त थी । Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 576/ जैन समाज का वृहद् इतिहास वैसे तो सर सेठ सभी को संकट के समय में सहयोग देते थे लेकिन जैन धर्म एवं समाज पर जब कभी संकट आया तो उसके निराकरणार्थ वेतन मन से उसमें जट गये। आचार्य शांतिसागर महाराज के वे पक्के भक्त थे। सन 1999 में आचार्य श्री संघ के साथ दिल्ली पधारे। तब सरकार की ओर से कुछ पाबन्दियां लगा दी गई थी। आपके सभापतित्व में देहली में विराट सम्मेलन हुआ और सरकार की कार्यवाही का विरोध किया गया। बम्बई सरकार ने हरिजन मंदिर प्रवेश को जब जैन मंदिरों पर भी जबरन लागू किया तब सन् 1948 में आचार्य शांति सागरजी महाराज ने अनजल का त्यागकर जो आत्मसाधना को उसका सेठ जी के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा । उन्होंने भी अन्नाहार का त्याग करके अपनी धार्मिक निष्ठा एवं गुरुभक्ति का परिचय दिया। श्री सम्मेदशिखर जी पर संवत् 1956 में अंग्रेजों की बस्ती बसाने का सर सेठ ने समस्त जैन समाज के साथ उसका डट कर मुकाबला किया और अन्त में आपके भर्यकर विरोध के कारण अंग्रेजों को अपनी योजना वापिस लेनी पड़ी। सरसेठ साहब ने श्री मक्सी क्षेत्र,तारंगा क्षेत्र, ऋषभदेव जी क्षेत्र के दिगम्बर श्वेताम्बर के विवादों को अपना विशेष प्रयास करके निबटाया । श्री बाहूबली स्वामी के महामस्तकाभिषेक पर संवत् 1982 में एवं संवत् 1996 में सपरिवार सम्मिलित हुये और क्षेत्र को आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ करके अपनी दानशीलता का परिचय दिया। अखिल भारतीय दि.जैन महासभा का आपका 50 वर्षों से भी अधिक समय तक सम्पर्क रहा। सर्वप्रथम सन् 1919 में महासभा का सामेटागिता में आयोजित अधिवेशन का आपने सभापतित्व किया और वहां आप प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये जिस पर वे दो वर्ष तक बने रहे । फिर मथुरा में सन् 1924 में 19वें वार्षिक सभापति चुने गये । सात वर्ष तक स्थाई सभापति रहे । बनेडिया एवं देवगढ़ में वे फिर सभापति चुने गये। इस प्रकार महासभा का और सरसेठ साहब का संबंध अंतिम समय तक घनिष्ठ बना रहा। सरसेठ हुकमचंद जी का समस्त जीवन ही समाज एवं देश सेवा में समर्पित रहा। समाज ने भी उनको सम्राट की तरह सम्मान दिया। उनका एक युग था जिसे हम सरसेठ हुकमचन्द युग के नाम से पुकार सकते हैं। आपके प्रथम सुपुत्र रामबहादुर राजकुमारसिंहजी का भी स्वर्गवास हो चुका है । वे भी समाज में विशेष समादृत थे ।वे समाज के सभी भारतवर्षीय स्तर की संस्थाओं के शीर्षस्थ नेता माने जाते थे। मागदशक श्री मिश्रीलाल जी पाटनी श्री पाटनी जी मध्यप्रदेश के सामाजिक क्षेत्र में अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति माने जाते रहे। उनका जन्म अलवर (राज) में पोप बदी पंचमी शनिवार सन 1914 को हआ। लेकिन कर ही वर्षों के पचात् वे लश्कर वालियर आ गये और चौथमल मानमल पाटनी के यहाँ दत्तक पुत्र के रूप में सम्मानित हुये तथा दो गांवों के जागीरदार एवं नायब तहसीलदार के अधिकारों को प्राप्त किया। Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /577 पाटनी जी का पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत हुआ और अंतिम समय तक समाज सेवा,मुनिभक्ति एवं मानद सेवा के कार्य में जुटे रहे हैं। इनकी दत्तक माता का नाम नोलखी बाई था। पता नहीं किस जन्म के संस्कार से नोलखी बाई पाटनीजी के व्यवहार एवं सेवा से प्रसन्न हो गई और अपनी सारी संपत्ति एवं जागीरदारी पाटनी जी के नाम कर दी। तब से पाटनी जी भैया नगे तथा नायब तहसीलदार के अधिकार प्राप्त कर समाज में सम्मानित व्यक्ति बन गये। पाटनी जी ने अपने जीवन में 60-70 मुनियों को आहार देकर अतिशय पुण्य का उपार्जन किया। विश्व बैन मिशन के प्रति वे अधिक सक्रिय रहे । पाटनी जी ने सभी तीर्थों की एक बार ही नहीं कितनी ही बार बंदना की । आपने भी श्री सुमेरचन्द को अपना दत्तक पुत्र बनाया । आपका निधन अभी कुछ समय पहिले ही हुआ । यशस्वी समाज सेवी श्री अशोक कुमार बड़जात्या पिता- स्व.श्री श्रीपाल जी बड़जात्या,55 वर्ष की आयु में सन् 1981 में स्वर्गवास । माता - श्रीमती कमलप्रभा जी आयु 57 वर्ष,भीलवाड़ा निवासी पं.नेमीचन्द जी अजमेरा की पुत्री जन्म - दि.10 अप्रैल 1948 शिक्षा - बीई.(सन् 1969 इन्दौर में) एम.एस.(यूएसए) सन् 1975, डिप्लोमा इन बिजिनेस मैनेजमेंट इन्दौर । बूस्टर (मेशाचेस्ट) अमेरिका में रहकर इलेक्ट्रिकल ईजि.को उच्च श्रेणी में परीक्षा पास को। विवाह - 1973 धर्मपत्नी - आशा देनी सुपुत्री श्री हरकचन्द जी साह जयपुर,एम.ए.(राज.विश्वविद्यालय) गोल्डमेडलिस्ट, डा.वी.एम इन्दौर व्यवसाय - पशु आहार के निर्माता सन्तान - पुत्र अर्पित • 8 वर्ष पुत्री - जूही 12 वर्ष । दोनों पढ़ रहे हैं । परिवार - दो भाई !- विजय बाबू - 38 वर्ष, एम.काम., एल.एल.बी, पत्नी का नाम- इन्द्रा,दो पुत्र 1 पुत्री 2. डा.दिलीप - 35 वर्ष - एम.बी.बी.एस.- छाती रोग विशेषज्ञ, पली डा. मंजू, एम.एस.स्त्री रोग विशेषज्ञ । बड़जात्या नर्सिग होम की संचालक 2 पुत्रियां बहिन - तीन - शशि विवाहित/पति श्री महेशचन्द टोंग्या इन्दौर,बी.एस.सी. एम.ए., एल.एल.बी. 2. सरला एम.एस.सी, एल.एल.बी. गोल्डपेडलिस्ट पत्ति - डा.दिलीप चौधरी 3- सुशीला एम.ए. (इको) पति श्री सुरेश लुहाड़िया जोधपुर । Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 578 / जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष :- आपके पिताजी साहब ने इन्दौर में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में इन्द्र बनकर जीवन को सार्थक किया। आपने ही बावनगजा में पिछले महामस्तकाभिषेक पर प्रथम कलश की बोली लेने का सौभाग्य प्राप्त किया। बुन्देलखण्ड को छोड़कर आप सभी तीर्थों की वन्दना कर चुके हैं। महावीर जयन्ती समारोह पर कितनी ही बार रथ में बैठकर योगदान दिया । विद्यावनी में आपने मंदिर का निर्माण (चैत्यालय का परिवर्तित स्वरूप) करवाकर 5 जुलाई 89 को वेदी प्रतिष्ठा सम्पत्र करवाई । श्रीपाल बड़जात्या चेरिटेबल ट्रस्ट इन्दौर के अध्यक्ष, भैरूलाल कपूरचन्द परमार्थिक ट्रस्ट इन्दौर के ट्रस्टी । पूरा परिवार धार्मिक स्वभाव का है तथा इन्दौर समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त है। आपके पितामह स्व. कपूरचन्द जी बड़े धर्मात्मा एवं मुनि भक्त थे। एक बार यात्रा संघ लेकर सबको पूरे भारत की यादा करवाई थी । श्री अशोक कुमार बडजात्या श्रीमती आशा धर्मपत्नी श्री अशोक कुपार बड़जात्या a6 परिवार जन डॉ. दिलीप बड़जात्या पता : श्री कमल, चैनसिंह का बगीचा, न्यू पलासिया, इन्दौर डॉ. (श्रीमती) मंजु धर्मपत्नी डॉ. दिलीप बड़जात्या Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज/579 श्री इन्दरचन्द पाटनी 31 अक्टूबर 1926 को जन्मे श्री पाटनी जी एम.कॉम.,बी.ए.एलएलबी, हैं । आपके पिताश्री बींजराज जी पाटनी थे जिन्होंने सन् 1983 में दुर्ग में सिद्धचक्र विधान कराया था तथा दो तीन बार इन्द्र बनने का सौपाग्य भी प्राप्त किया था। बीजराजजी खण्डेलवाल दिगम्बर जैन समाज दुर्ग तथा दिगम्बर जैन समाज दुर्ग के अध्यक्ष रहे थे । दिगम्बर जैन समाज सहायता कोष दुर्ग, महावीर ट्रस्ट (रायपुर संभाग) के भी अध्यक्ष थे। नागपुर प्रान्तीय खण्डेलवाल महासभा के उपाध्यक्ष भी रहे थे। ___ आपकी मातुश्री श्रीमती मनोहरदेवी पाटनी जैन महिला समाज दुर्ग की अध्यक्ष रही थी। श्री इन्दरचन्द जी हार्डवेयर, सीमेन्ट एवं बिल्डिंग मेटिरियल का व्यवसाय करते हैं । सामाजिक सेवा में विशेष रुचि के अतिरिक्त पढ़ाई,व्यवसाय एवं खेलकूद की ओर विशेष ध्यान है । सन् 1983 में आपने भी सिद्धचक्र विधान मंडल दुर्ग में सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त किया था। आपके परिवार में आपके पिताजी के काकाजी के पुत्र ने मुनि दीक्षा ली थी । पाटनी जी दुर्ग के जैन समाज में अत्यधिक सम्मानित समाज सेवी हैं। पता - श्री बींजराज पाटनी,जनता हार्डवेयर स्टोर्स,शनीचरी बाजार,दुर्ग (मप्र) श्री उजासचन्द काला जन्मतिथि - 21 अगस्त, 1937 (सावन सुदी 15 संवत् 1994) शिक्षा • सन् 1961 में संची विश्वविद्यालय से बी.ए. पास किया । आपके पिताश्री सुन्दरलाल जी का सन् 1981 में स्वर्गवास हुआ उस समय उनकी आयु 81 वर्ष की थी। आपकी माताजी प्यारी देवी का 75 वर्ष की आयु में सन् 1985 में स्वर्गवास हुआ। कालाजी का विवाह सन् 1953 में श्रीमती ज्ञानवती देवी के साथ संपन्न हुआ । आपके 4 पुत्र एवं 2 पुत्रियाँ है । ज्येष्ठ पुत्र प्रदीपकुमार एम.एस.सी.जियोलाजी) है । खनिज व्यवसाय है । पत्नी का नाम रविकान्ता है । एक पुत्र एवं एक पुत्री है। द्वितीय पुत्र प्रमोदकुमार 30 वर्ष के हैं एम.एस.सी. (केमेस्ट्री) बी ई. हैं । ओ.एन.जी.सी.अंकलेश्वर में कार्यरत हैं 1 विवाहित हैं । तृतीय पुत्र प्रवीणकुमार बी कॉप. है । पिताजी के साथ कार्य करते हैं । विवाह हो चुका है पत्नी का नाम ममता है । चतुर्थ पुत्र प्रद्युम्न अभी पढ़ रहे हैं। दो पुत्रियों हैं कान्ता एवं शोभा। दोनों का विवाह हो चुका है। व्यवसाय - ट्रांसपोर्ट,साइकिल,सीमेन्ट, गुड,खनिज व्यवसाय है। विशेष - दि. जैन समाज कुनकरी में मंदिर का निर्माण करा चुके हैं तथा शीघ्र ही पूर्तियां विराजमान कराने वाले हैं। जसपुर में जो भी मुनिराज आते हैं उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं। महासमिति की तीर्थ रक्षा समिति के सदस्य हैं । पुष्पदन्त धारा के सह सम्पादक रह चुके हैं। लेखन में पूर्ण रुचि रखते हैं । जसपुर जैन समाज के वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके हैं। जैन विद्यालय जसपुर के अध्यक्ष पद पर रहे हैं। कोपरेटिन्न बैंक के मानद सचिव रहे हैं । आप बहुत ही उत्साही कार्यकर्ता हैं । महावीर ट्रस्ट इन्दौर के विलासपुर संभाग के उपाध्यक्ष हैं। परिवार : आप पांच भाई एवं दो बहिने हैं। सबसे बड़े भाई कैलाशचन्द जी नगर परिषद् के सदस्य एवं जैन समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं । शेष प्रकाशचन्द जी, सुभाषबन्द जी,प्रभातकुमार जी सभी व्यवसाय में लगे हुये हैं तथा सामाजिक कार्यकर्ता पता - जसपुर नगर (रायगढ़)496339 Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + K 580/ जैन समाज का वृहद् इतिहास ब्र. उषा जैन (पोरवाड) शोधकार्य में संलग्न य.उषा जैन का जन्म 1 जनवरी सन् 1950 को हुआ । आपके माता-पिता कमला बाई एवं दयाचंद जी जैन का स्वर्गवास हुये पर्याप्त समय हो गया । सन् 1978 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से एम.ए.किया और शिक्षिका बनकर मध्यप्रदेश शासन में कार्य करने लगी। आपके दो पाई एवं सात बहिनें हैं। आपने ब्रह्मचर्य व्रत ले रखा है। शुद्ध खानपान का नियम है । मुनिभक्त हैं चार महिने में एक बार किसी भी मुनि को आहार देने का नियम लिया हुआ है । सभी तीर्थों की वंदना कर चुकी हैं। __ वर्तमान में आप हिन्दी जैन साहित्य में पी-एचड़ी, कर रही है। उषा ओ अत्यधिक सरल,शांत एवं विनयी स्वभाव की विदुषी हैं। पता :- मु.कसरावद जिला प.निमाड खरगोन (मप्र) श्रीमती कमलादेवी यांड्या श्रीमती पांड्या श्री धन्नालाल जी नरपत्या आस्टावाले इन्दौर की सुपुत्री है। आपका जन्म जेठ सुदी 12 संवत् 1985 को हुआ! आपकी माताजी का नाम श्रीमती लक्ष्मीबाई था । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका विवाह सनावद निवासी श्री रिखबचन्द जी पांड्या के साथ हो गया। पांड्या जी का अभी 20 दिसम्बर सन् 1978 को स्वर्गवास हो चुका है । आपके 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां हैं । बडे पुत्र श्री सुरेश कुमार हैं तथ्ण लोटे पुत्र पदीपामार हैं । पत्रियाँ हीरामणि एवं शशिप्रभा है जिनका विवाह हो चुका है । सुरेश कुमार की पत्नी का नाम खुशकवर है जिनके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । प्रदीपकुमार की पत्नी का नाम श्रीमती बीना है जिनके चार पुत्र हैं। विशेष : श्रीमती कमला देवी जी पूर्ण धार्मिक जीवन व्यतीत कर रही हैं । आपके छोटे पुत्र प्रदीपकुमार जम्बूद्वीप पंचकल्याणक में ईशान इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं। आपके घर में चैस्यालय है। आपके शुद्ध खानपान का नियम है । मुनिभक्त हैं तथा आचार्य महावीर कीर्ति जी के शिष्य सन्मति सागर महाराज से आपने बड़वानी में दो प्रतमायें ली थीं । अपने क्षेत्र की यशस्वी महिला हैं । घर पर ट्रासपोर्ट जैन बस सर्विस का कार्य है। पता : प्रदीपकुमार रिखबचन्द पांड्या मोंटका रोड़,सनावद डॉ. कैलाशचन्द जैन 21 अप्रैल सन् 1930 को श्री कैलाशचन्द का जन्म मारोत (नागौर,राजा में हुआ था। आपके पिताश्री किशनलाल जो मारोठ के सम्मानित व्यक्ति थे। आपकी माताजी श्रीमती बंशी बाई थीं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती चन्द्रकला जैन सेवाभावी महिला हैं । आपके दो पुत्र सुदर्शन एवं राकेश तथा दो पुत्रियां डॉ. आधा एवं रेखा हैं । पूरा परिवार विनीत एवं उद्यमी है। ___ डा.कैलाशचन्द जी प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के वर्तमान में माने हुये विद्वान हैं तथा कितनी ही पुस्तकों के लेखक एवं सम्पादक हैं। Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी अब तक 1- जैव धनराज 2. एनशियंट सिटीज एंड टाऊन्स आफ राज 3- मालवा थ्रू दि एजेज 4- लार्ड महावीर एण्ड हिज टाइम्स मालवा प्रदेश का जैन समाज /581 5- प्रिहिस्ट्री एण्ड प्रोटो हिस्ट्री आफ इंडिय - प्राचीन भारत में सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाएं, एवं करीब 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। श्रीमती चन्द्रकला धर्मपत्नी डॉ. कैलाश आप सन् 1955 से 1964 तक राजस्थान के सरकारी महाविद्यालयों में इतिहास के प्राध्यापक रहे। इसके पश्चात् प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में 1964 से 1969 तक लेक्चरार, 1969 से 1978 तक रीडर, 1978 से प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हैं। श्री घमण्डीलाल बोहरा स्व. किशनलाल जी बोहरा के सुपुत्र श्री घमण्डीलाल बोहरा का जन्म वैशाख सुदी 1 संवत् 1973 को हुआ। हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के पश्चात् आप व्यवसाय की ओर मुड़े तथा बाग बगीचा व्यवसाय करने लगे। फाल्गुण सुदी 3 संवत् 1990 को आपका विवाह श्रीमती जतनबाई से हुआ जिनका करीब 20 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो चुका है। आपको चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। श्री देवकुमार सिंह कासलीवाल श्री बोहरा का धार्मिक जीवन रहा है। सन् 1991 में आयोजित बावनगजा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आपने कुबेर पद को प्राप्त किया। आप मुनि भक्त हैं तथा मुनियों को आहार देते रहते हैं। एक बार दशलक्षण बत के उपवास कर चुके हैं। पता : चेतनराम बाग (महेन्द्र टाकीज) बडवानी (खरगोन) एम.पी - - पिता रायबहादुर श्री कस्तूरचंद जी सन् 1930 में 44 वर्ष की आयु में आपके तीन विवाह हुये । व्यवसाय में उन्नति एवं किंग एडवर्ड हास्पिटल में एक बड़ा ब्लाक बनवाने के उपलक्ष में ब्रिटिश सरकार ने आपको रायबहादुर की उपाधि से अलंकृत किया । माता श्रीमती अनोपबाई - सन् 1911 में स्वर्गवास, पुत्री विनोदीराम बालचन्द झालरापाटन, रायबहादुर श्री कस्तूरचन्द जी की प्रथम पत्नी । जन्मतिथि - 14 जनवरी 1922), शिक्षा - एम. ए. वर्ष 1941 एल.एल.बी. 1943 इन्दौर में Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 582/ जैन समाज का वृहद् इतिहास व्यवसाय - सीमेन्ट सिनेमा आदि। विवाह - 1936 में पत्नी का नाम - श्रीमती कुसुम,श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल के परिवार में श्री फूलचन्द जी गंगपाल इन्दौर की सुपुत्री। विशेष : धार्मिक 1. सरसेठ हुकमचन्द जी, आपके पिता रायबहादुर कस्तूरचंद जी एवं रायबहादुर कल्याणमल जी ने मिलकर इन्दौर में कांच मंदिर का निर्माण करवाया। 2- तीर्थयात्रा प्रेमी हैं अब तक सभी तीथों की वंदना कर चुके हैं। 3-सिद्धवरकूट के पास मंदिर का निर्माण करवाया। 4. आपकी पत्नी श्रीमती कुसुम ने तथा पुत्रवधू श्रीमती विमला देवी दशलक्षण एवं अष्टान्हिका व्रत के दस और आठ उपवास कर चुकी हैं। 5- मुनि महाराजों को वैय्यावृत्ति एवं आहार देने में पूर्ण रुचि रहती है । पूजा पाठ,देव दर्शन आदि का नियम है । सामाजिक सेवा : समाजसेवा के क्षेत्र में आप आत्मप्रेरणा से आये है । जिस कार्य को हाथ में लेते हैं उसमें सब सहयोगियों के साथ तन मन धन से लग जाते हैं। इन्दौर जैन समाज के अत्यधिक लोकप्रिय नेता हैं तथा वर्तमान में भा.दि.जैन महासमिति के उपाध्यक्ष हैं तथा स्थानीय बीसों ट्रस्टों के अध्यक्ष हैं। 2- तीर्थबंदना रथ का निर्माण आपको ही देखरेख में हुआ था | इस रथ का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री जैलसिंह जी ने किया था। 3. मा.दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के उपाध्यक्ष,ऊन,पावागिर, सिद्धवरकूट,चूलगिरी बावनगजा,मक्सी पार्श्वनाथ तीर्थ क्षेत्रों के अध्यक्ष। 4. जनमंगल कलश को भी आपकी देखरेख में ही बनवाया। 5- गोमटेश्वर जन कल्याण ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी । इस ट्रस्ट के अन्तर्गत सरस मेडिकल वाहन द्वारा गांवों में निशुल्क दवा वितरित की जाती है। 6- वीर निर्वाण 2500 वाँ वर्ष में स्थापित महावीर ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष । धर्मचक्र का प्रवर्तन,मध्यप्रदेश का इन्दौर से प्रर्वतन कराने में प्रमुख हाथ । 7.ब.कोशलजी के प्रवचनों का संकलन प्रकाशित करवाया । पुष्पदन्त जी महाराज के प्रवचनों का संकलन | 8- कस्तूरचंद विद्यामंदिर (प्राइमरी स्कूल) आपके ट्रस्ट से संचालन करते हैं । Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /583 9- इन्दौर नगर के अस्पतालों में वार्डस् का निर्माण करवाया गया । 10- आप इन्दौर में गोद आये थे । आपका जन्म स्थान कुचामन है । वहां के धन्नालाल जी कासलीवाल के पुत्र हैं। पता :- अनूप भवन,तुकोगंज, इन्दौर श्री धनराज कासलीवाल पिता - स्व.श्री कन्हैयालाल जी कासलीवाल,सं. 2000 में स्वर्गवास माता- श्रीमती सूठी बाई,92 वर्ष की वृद्धा जन्म - कार्तिक शुक्ला 6 संवत् 1995 शिक्षा-सामान्य व्यवसाय- दाल मिल परिवार - पुत्र-1, आशीष कुमार-आयु-16 वर्ष कालेज में अध्ययन । विवाह- 1961 में, पत्नी का नाम- श्रीमती लीलाबाई सुपुत्री श्री घासीलाल जी सेठी,इन्दौर विशेष:1- पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में बोलियाँ लेते रहे हैं। सन् 1988 में कुशलगढ़ (राज) में आयोजित पंचकल्याणक में सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हुए । 1985 में इन्दौर में गोम्मटगिरी प्रतिष्ठा महोत्सव में कुबेर का पद प्राप्त किया। 1982 में इन्दौर में समवशरण प्रतिष्ठा महोत्सव में इन्द्र बनने का श्रेय प्राप्त किया। 2- फरवरी 1961 में बजरंग नगर इन्दौर में महावीर दि. जैन मंदिर का निर्माण करवाकर वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव संपत्र करवाया। सामाजिक सेवायें :- समवसरण मंदिर इन्दौर के ट्रस्टी,गोम्मटगिरी इन्दौर के ट्रस्टी,छावनी इन्दौर दि. जैन स्कूल के ट्रस्टी,महावीर दि. जैन मंदिर बजरंग नगर,इन्दौर के संरक्षक । बड़वानी क्षेत्र की कार्यकारिणी के सदस्य,दि.जैन महासमिति के सदस्य,महासभा की मुनि वय्यावृत्य समिति के ट्रस्टी। स्वभाव:- स्वाध्यायशील,दैनिक षट्कों की पालना, समाजसेवा, बजरंग नगर में मंदिर निर्माण के अवसर पर समाज ने आपको अभिनंदन - पत्र देकर सम्मानित किया। पता: 99, जाबरा कम्पाउण्ड.लीलायन इन्दौर Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 584/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री नरेन्द्रकुमार गोधा पिता :- श्री कल्याणमल जी गोधा, 70 वर्ष की आयु में सन् 1961 में स्वर्गवास । माता श्रीमती माणकबाई, सन् 1988 में स्वर्गवास - जन्मतिथि - कार्तिक सुदी 11 संवत् 1981 (सन् 1924) शिक्षा - हाईस्कूल तक व्यवसाय- लैण्डलाई परिवार पुत्र-7 राजेन्द्रकुमार, कमलकुमार, भूपेन्द्रकुमार, अभयकुमार, जम्बुकुमार, सुकुमाल चन्द सभी का विवाह हो चुका है। सातवें पुत्र संजयकुमार अविवाहित हैं। पुत्री 2 , 1- इंदिरा - विवाहित - ग्वालियर में श्री माणकचन्द जी एडवोकेट के पुत्र से । 2. मधुबाला - अविवाहित । विवाह वर्ष 1943 में पत्नी का नाम श्रीमती शांति बाई विशेष :- आपके पूर्वजों ने अपने ही घर में मंदिर निर्माण करवाने का श्रेय प्राप्त किया था। आपके पिताजी कल्याणमल जी उज्जैन की कितनी ही संस्थाओं के अधिकारी थे। आप (नरेन्द्रकुमार जी) स्वयं दि. जैन मंदिर नमक की मंडी के कोषाध्यक्ष हैं। स्वाध्याय प्रेमी हैं तथा धार्मिक स्वभाव के हैं। आपने मक्सो क्षेत्र की वर्षों तक सेवा की है। सरकार द्वारा आप क्षेत्र के प्रबन्धक चुने गये हैं। तीर्थयात्रा के प्रेमी हैं। पता : श्री कल्याणमल दि. जैन मंदिर फ्री गंज, उज्जैन । पं. नाथूलाल जैन शास्त्री पिता : श्री सुन्दरलाल जी बज माता : श्रीमती गेंदबाई जी, सुरेली पो. ईसरदा (सवाई माधोपुर, राज.) जन्मतिथि 25 जनवरी, 1913 शिक्षा जैन सिद्धान्त न्याय साहित्य शास्त्री, न्यायतीर्थ, शास्त्री : व्यवसाय :- अध्यापन, आचार्य सर हुकमचन्द संस्कृत महाविद्यालय जंवरी बाग, इन्दौर विवाह :- 1 दिसम्बर 1933 Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज/585 पत्नी का नाम - श्रीमती सुशीला बाई जैन विशारद अध्यापिका परिवार - पुत्र • I जिनेन्द्र कुमार जैन बी.कॉम.,स्टेट बैंक ऑफ इंडिया,इन्दौर में आफीसर। पल्ली. ताराबाई,बी.ए. पुत्रियाँ : 6,सभी विवाहित - 2 पौत्रियां जिनमें एक का विवाह हो चुका है,1 पौत्री अविवाहित धार्मिक - सन् 1930 में जैन प्रतिष्ठा विधि का प्रचार प्रसार निस्वार्थ भाव से, सन् 1961 में सम्मेदशिखर तेरापंथी कोठी में, मानस्तंम प्रतिष्ठा,1964 में सम्मेदशिखर नंदीश्वर बावन चैत्यालय बिम्ब प्रतिष्ठा 1958 में सुखदेव आश्रम लाडनूं में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा । इसके अतिरिक्त दाहोट,कुशलगढ़ ऊन, पावागिर,जावरा, भीलवाड़ा,पिड़ावा,सोनगढ़,पोरबंदर,जामनगर,सोहरदा आदि नगरों में लगभग 40 बिम्ब प्रतिष्ठायें एवं 25 वेदी मंदिर प्रतिष्ठायें आपके द्वारा सम्पन्न हुई। सामाजिक:1- अखिल भारतीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् के बीना बारहा में 13 वें अधिवेशन में अध्यक्ष निर्वाचित हुये । 2. 23 फरवरी सन् 1942 से अक्टूबर 1949 तक खण्डेलवाल जैन हितेच्छु पाक्षिक पत्र के प्रधानसंपादक जुलाई 1971 से 1984 तक सन्मति वाणी के प्रधान संपादक रहे। 3 - लगभग 35 वर्ष तक महासभा परीक्षा बोर्ड का संचालन किया। 4- नैतिक शिक्षा भाग 1 से 7 तक का स्कूलों में 6 से 8 तक की कक्षाओं में नैतिक शिक्षण के रूप में शिक्षण दिया जा रहा है। 5-जैन संस्कार विधि दो बार प्रकाशित हो चुकी है। प्रतिष्ठा प्रदीप वृहद ग्रंथ प्रेस में है । भारतीय दि. जैन तीर्थों की यात्रा पुस्तक का 40 वर्ष से प्रचार प्रसार है। सम्मान :- सन् 1974 में वीर निर्वाण भारती द्वारा देहली में सिद्धान्ताचार्य की उपाधि से उपराष्ट्रपति बी डी जत्ती द्वारा सम्मानित,दि.जैन समाज इन्दौर द्वारा 5 जून 1978 को 50 विद्वानों की उपस्थिति में सम्मानित, तीर्थकर इन्दौर का जून 1978 में नाथूलाल शास्त्री विशेषांक प्रकाशित ।। उपाधियों :- प्रतिष्ठा दिवाकर,संहितासूरि, जैन सिद्धान्त महोदधि सिद्धान्त महोदधि, सिद्धान्ताचार्य । पता : 40, हुकमचन्द मार्ग,इन्दौर-2 Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 586/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री नेमीचन्द पांड्या संवत् 1982 में जन्में श्री नेमीचन्द पांड्या ने सामान्य शिक्षा प्राप्त कर किराना एवं वस्त्र व्यवसाय में प्रवेश किया। सन् 1942 में आपका प्रथम विवाह हुआ तथा सन् 1951 में दूसरा विवाह श्रीमती कमला देवी से हुआ जो वाशिम (महाराष्ट्र) की है। दूसरे विवाह के समय आपकी आयु केवल 25 वर्ष की थी । आपके पिताजी श्री चन्दनमल जी ने मुनि दीक्षा ज कहलाये। आपका सन 1980 में सीकर में समाधिमरण हआ। आपकी माताजो श्रीमतों फूलीदेवी ने आर्यिका दीक्षा प्राप्त की और आर्यिका विमलमतीजी के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। आप आचार्य धर्मसागर जी महाराज के संघ में रही। संतार - श्री पांड्या जी के पांच पुत्र एवं एक पुत्री हैं। सभी पुत्र उच्च शिक्षित हैं। श्री पदमकुमार, अनिलकुमार सुशीलकुमार एवं सुबोधकुमार हैं । सभी विवाहित हैं तथा जसपुर में स्वतंत्र अथवा पिताजी के साथ व्यवसाय करते हैं। विशेष - श्री नेमीचन्द कुचामन (राज) में अजमेरो मंदिर में चन्द्रप्रभु की तथा जसपुर के दि.जैन मंदिर में महावीर स्वामी की मूर्ति विराजमान करा चुके हैं । यात्रा प्रेमी हैं तथा बुन्देलखण्ड को छोड़कर सभी तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं । जसपुर दि. जैन मंदिर में मंत्री रह चुके हैं। मुनिभक्त हैं । जसपुर पधारने वाले सभी साधु-संतों को आहार आदि देकर पुण्य के भागी बनते हैं। पता - जसपुर नगर (रायगढ़) मध्यप्रदेश। श्री प्रकाशचन्द टोंग्या पिता - स्व. श्री गुलाबचन्दजी टोंग्या,(स्वर्गवास दि.16.11.86) जन्म तिथि - 18 नवम्बर 1931 शिक्षा - बी.कॉम(1956), एम.ए. (1956), एल.एल.बी. (1957) परीक्षा में योग्यता सूची में पांचवा स्थान प्राप्त किया । व्यवसाय - आयकर विक्रयकर सलाहकार एवं मनी लैण्डिग.बैंकर्स विवाह - आपका विवाह 5 मई 1950 को जयपुर निवासी श्री सुन्दरलालजी ठोलिया जौहरी की सुपुत्री पद्माकुमारी के साथ हुआ जो बी.ए. एवं विद्याविनोदिनी हैं। __परिवार - श्री प्रदीपकुमार जो टोंग्या आपके सुपुत्र हैं। इन्होंने एप कॉम, एल.एल.बी. तक शिक्षा ग्रहण की | इनका विवाह कोटा निवासी श्री अनूपचन्द जैन एडवोकेट की सुपुत्री के साथ हुआ,जो एम.ए.(म्यूजिक) है। आपकी सुपुत्री श्रीमती प्रतिभा पाटनी (पत्नी श्री नरेशकुमार जी) बी.एस.सी. हैं । श्रीमती पदमा कुपारो भर्पफ्ली श्री प्रकाशचन्द्र टोप्या Rels Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /587 विशेष:___ धार्मिक - आपके परिवार द्वारा ग्राम हाटपीपल्या में दिग. जैन तेरहपंथी मंदिर का निर्माण करवाया,इसकी प्रतिष्ठा आपके पितामह,सेठ श्री गंभीरमलजी ने करवाई थी। सामाजिक - टोग्याजी एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचाने जाते हैं। ये अपना पर्याप्त समय सामाजिक संस्थाओं की गतिविधियों में देते हैं । अखिल जैन मिशन में आप 1950 से ही जुड़े हुये हैं। श्री गंभीरमल इन्डस्ट्रीयल इन्स्टीट्यूट,इन्दौर के मंत्री हैं। यह आपकी पारिवारिक संस्था है, जिसकी स्थापना सन् 1932 में हुई थी। इस संस्था में व्यवसायोन्मुख अध्ययन कराया जाता है । आप क्लाथ मार्केट एसोसियेशन इन्दौर के 1984 एवं 85 में मंत्री रहे । तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन के मध्यप्रदेश शाखा के सहायक है । अहिल्या माता गौशाला जीव दया पंडल के आप प्रधानमंत्री हैं। यह संस्था 125 वर्ष पुरानी है। आपके पिताजी इसके वर्षों तक अध्यक्ष रहे थे। इन्दौर की विभिन्न संस्थाओं से आप सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं,तथा वहाँ के सामाजिक जीवन में आपका विशिष्ट योगदान रहता है। M राजनैतिक - सन् 1946-52 तक कांग्रेस के जागरूक सदस्य रहे । आप इन्दौर तहसील कांग्रेस के मंत्री भी रहे एवं इन्दौर पश्चिम मंडल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे । पता - 16, डा.रोशनसिंह भंडारी मार्ग,इन्दौर - 452003 श्री प्रेमसागर जैन रिन्धिया पिता - श्री सालिगराम जैन,85 वर्ष की आयु में दि. 4-11-88 को स्वर्गवास माता - श्रीमती सुशीलादेवी दि.24-11-70 को 61 वर्ष की आयु में स्वर्गवास जन्मतिथि - 12 जून, 1930 शिक्षा - बी कॉम, 1950 देहली विश्वविद्यालय व्यवसाय - इनकमटैक्स प्रैक्टिशनर विवाह - 28 जून, 1950 पली - श्रीमती पदमा जैन सुपुत्री श्री अमृतलाल जी वकील,जयपुर परिवार - पुत्र- 1 प्रदीपकुमार,बी क़ॉम., एल.एल.बी, जन्म 6 नवम्बर,1954 पली - शैला जैन एम.ए. सुपुत्री सूरजमलजी साह जयपुर दो पुत्रियाँ - निधि एवं विधि Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 588 / जैन समाज का वृहद् इतिहास पुत्री- 1 प्रतिभा पाटनी विवाहित आप 6 भाई हैं सबसे बड़े भाई आप हैं। चार भाई देहली में तथा एक जापान में व्यवसाय करते हैं। आपका परिवार मूलतः मांदीखेडा (हरियाणा) का निवासी था वहाँ से देहली और फिर देहली से इन्दौर सन् 1951 में आकर रहने लगा। रिन्धिया गोत्र उन गोत्रों में नहीं हैं जिनका नाम 84 गोत्रों में गिनाया गया है। लेकिन यह गोत्र उन 14 गोत्रों में है जिन गोत्रों के नाम मूलतः दिये गये हैं। रिन्धिया गोत्र का एक ही परिवार पिताता है जो देहली पणा में रहता है । इस गोत्र के वर्तमान सदस्यों की संख्या 60 है। विशेष : धार्मिक व्रत उपवास खूब करत रहते हैं। तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। सामाजिक-1 मारवाड़ी गोठ शक्कर बाजार के कार्यकारिणी सदस्य हैं। 2- टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसियेशन इन्दौर के पांच वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। 3- ऑल इंडिया इन्स्टीट्यूट आफ टैक्स प्रेक्टिशनर्स न्यू देहली नार्थ जोन के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। 4 एम.पी. बार एसोसियेशन ग्वालियर के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं। 5- हाँगकांग एवं जापान की सन् 1983 में यात्रा कर चुके हैं। पता : 14, साठथ राज मोहल्ला, इन्दौर श्री फूलचंद जैन, खुरई सेवानिवृत्त प्राचार्य श्री फूलचंद जी सेठी खुरई जैन समाज के सम्मानित व्यक्ति हैं । आपके पिताश्री मगनमल जी सेठी थे। आपका जन्म 12 दिसम्बर, सन् 1911 को हुआ । आपने एम.एस.सी. (फिजिक्स) किया और कालेज में शिक्षक के रूप में कार्य करने लगे। अपने सेवाकाल में नागपुर, सागर, उज्जैन, भोपाल विश्वविद्यालयों की विभिन्न समितियों के सदस्य रहे । नागपुर साइंस कॉलेज में 18 वर्ष तक रहने के पश्चात् 4 वर्ष तक रायपुर कॉलेज में फिजिक्स के विभागाध्यक्ष रहे। रींवा रहे और अन्त में छिन्दवाडा कॉलेज में 6 वर्ष तक प्राचार्य रहने के पश्चात् सेवानिवृत्त हुये लेकिन उसके बाद भी विदिशा जैन कॉलेज में प्राचार्य रहे। सेठी जी धार्मिक प्रवृत्ति वाले रहे हैं। शासकीय सेवाकाल में 18 वर्ष तक अपने साथ चैत्यालय रखा और अब उन मूर्तियों को मंदिर में विराजमान कर दिया है। आपका विवाह सन् 1928 में श्रीमती चंदाबाई के साथ संपन्न हुआ। आपका पुत्र श्री नरेन्द्र बीई है तथा वर्तमान में डिप्टी डिवीजनल मैनेजर टेल्को पूना में कार्यरत है। सेठी जी सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। अपने बड़े भाई धन्नालाल जी सेठी के साथ विधान आदि कराने में भी सहयोग देते रहते हैं। मिलनसार हैं। खुरई में एकमात्र आपका ही खण्डेलवाल जैन परिवार है । पता: रिटायर्ड प्रिंसिपल, खुरई (सागर) म. प्रदेश । Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " श्री फूलचन्द झांझरी किया। पिता का नाम श्री गोपाल जी झांझरी माता जब आप 3 वर्ष के थे तभी छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। जन्म तिथि 1 अगस्त, 1911, भादवा सुदी 2 सं. 1965 शिक्षा सामान्य, व्यवसाय काटन, दालमिल, खली, कपास आदि । विवाह दो विवाह हुये। प्रथम पत्नी श्रीमती सुन्दरबाई की मृत्यु के पश्चात् द्वितीय पत्नी श्रीमती माणिक बाई से विवाह परिवार पुत्र 5 1- विमलचन्द एम. कॉम., एल.एल.बी. (50 वर्ष) पत्नी इंदिरा देवी पुत्र-1 अर्हन्त प्रकाश एम. कॉम. मेरिट लिस्ट में कॉलेज के प्रोफेसर पुत्री 3 ज्ञानघारा, शांतिधारा, समता बालब्रह्मचारी । - 2. प्रकाशचन्द - 42 वर्ष, एम. काम. एल.एल.बी, पत्नी रानीदेवी पुत्रियाँ - 2 चेतना, आनन्द धारा मालवा प्रदेश का जैन समाज /589 3- ज्ञानभानु- 39 वर्ष बी.कॉम., एल.एल.बी, आशादेवी पुत्र सिद्धप्रकाश पुत्री पूजा 4- प्रदीपकुमार - 32 वर्ष एम.कॉम. उपाध्याय, पत्नी अर्चना देवी बी.ए. पुत्र- 2 चिद्रूप ज्ञाता 5- सुकुमार- बी.कॉम. बालब्रह्मचारी पुत्रियाँ - 2 बिमलाबाई 55 वर्ष, बडनगर में विवाहित पुष्पलता, बी.ए. आजन्म ब्रह्मचारी विशेष धार्मिक- आपके द्वारा चिमनगंज मंडी उज्जैन में मंदिर निर्माणाधीन सभी तीर्थों की कितनी ही बार वंदना कर . चुके हैं। वैसे वर्ष में दो बार तीर्थ वंदना करते हैं। विगत 30 वर्षों से स्वाध्याय में विशेष रुचि रखते हैं। अष्टमी चतुर्दशी को एकाशना, शुद्ध आहार लेते हैं। : सामाजिक तीर्थ क्षेत्र कमेटी बंबई के विगत 25 वर्षों से सदस्य हैं। दि. जैन अ. क्षेत्र बनेडिया के ट्रस्टी, दिगम्बर जैन · मंदिर नमक मंडी उज्जैन के ट्रस्टी एवं अध्यक्ष, माधव गोशाला उज्जैन के अध्यक्ष, काटन मर्चेन्ट एसोसियेशन न्यास उज्जैन के उपाध्यक्ष, सैन्ट्रल इंडिया काटन एसोसियेशन के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। कालीदास मान्टेसरी स्कूल के सदस्य, अतिशय क्षेत्र पावागिरी के सदस्य, . अतिशय क्षेत्र मक्शी पार्श्वनाथ के विगत 25 वर्षों से मंत्री हैं। मालवा प्रान्तिक सभा की कार्यकारिणी सदस्य | पता : फूलचन्द विमलचन्द झांझरी, समता मंदिर, चिमनगंज, उज्जैन Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 590/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री बाबूलाल पाटोदी, पिता - स्व. श्री छोगालाल जी पाटोदी माता- श्रीमती नाथी बाई अनिधि - 20 जून, 1920 शिमा - मैट्रिक.1936 में अजमेर बोर्ड से व्यवसाय : व्यापार विवाह - पत्नी का नाम-श्रीमती केशरबाई पाटोदी जिनका स्वर्गवास हो चुका है । परिवार - पुत्र - 1 श्री नरेन्द्र पाटोदी पली सुशीला देवी पाटोदी 2- श्री राजकुमार पाटोदी.एमडी. पत्नी मृदुला एम.ए. 3. श्री डॉ. सनत पाटोदी,एम.एस. पत्नी डॉ.ममता एम.बी.बी.एस. विशेष : धार्मिक विधान एवं वेदी प्रतिष्ठा कराई। सामाजिक : इन्दौर एवं देश के पचासों संगठनों के संस्थापक, अध्यक्ष एवं पदाधिकारी हैं । वे एक व्यक्ति नहीं संस्था हैं । स्वरूपचंद,हुकमचन्द पारमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी गुमास्ता नगर एवं नेमीनगर के संस्थापक, गोम्मटगिरि क्षेत्र स्थापना एवं सन 1981 में भगवान बाहुबली की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में सहयोग,बावनगजा चूलगिरि सिद्धक्षेत्र के जीर्णोद्धार योजना में योगदान । दि.जैन महासमिति के महामंत्री पिछले 2 वर्ष से। राजनैतिक - इन्दौर नगरपालिका के 1948-56 तक अध्यक्ष, मध्यप्रदेश कांग्रेस समिति के महामंत्री सन् 1957 में कांग्रेस के अधिवेशन के स्वागत समिति के मंत्री,मध्यप्रदेश विधान सभा के दो बार सदस्य 57-67 तक । उक्त बिन्दुओं के अतिरिक्त पाटोदी जी इन्दौर नगर के लोकप्रिय नेता हैं । समाज एवं सार्वजनिक कोई भी कार्य आपके सहयोग के बिना सफल नहीं होते । उनका कितनी ही बार नागरिक सम्मान हो चुका है | बाबूलाल पाटोदो अभिनंदन स्मारिका प्रकाशित हो चुकी है। पता :- 64/3 मल्हारगंज, इन्दौर (म.प्र) श्री मदनलाल सोनी . इन्दौर निवासी श्री मदनलाल सोनी के पिता का नाम श्री कालूराम जी सोनी है तथा माता का नाम श्रीमती सुगनबाई है। आपका जन्म 1928 फरवरी में हुआ। हायर सैकेण्डरी पास की और फिर देशी दवाओं के निर्माता का कार्य करने लगे। आपका विवाह श्रीपती मनोरमा देवी के साथ संपन्न हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्रियाँ शारदा, मंजू एवं सुनीता तथा दो पुत्र कमलकुमार द्वितीय दिलीपकुमार की प्राप्ति हुई। Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /591 श्री मदनलाल जी धार्मिक प्रकृति के श्रावक हैं। मंदिर निर्माण एवं जीर्णोद्धार का कार्य करा दुके हैं। एक बार तीर्थयात्रा संघ निकाल चके हैं। मनिभक्त हैं। आहार देते रहते हैं। शद्ध खान-पान का नियम लिया हुआ है। आपको धर्मपत्नी एक बार दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी है। आप नगर परिषद के पार्षद रह चुके हैं। बावनगजा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर इन्द्र पद से अलंकृत हो चुके हैं। पता : राजस्थानी चूर्ण भंडार 1121 तेली जाखल, इन्दौर (म.प्र.) श्री महावीर प्रकाश निगोतिया जन्मतिथि - 15 नवम्बर 1943 शिक्षा - मैट्रिक निगोतिया जी के पिताजी श्री चांदमल एवं माताजी श्रीमती उगमादेवी हैं । दोनों ही धार्मिक स्वभाव के हैं तथा सामाजिक कार्यों में सदैव समर्पित रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमलता जी जैन हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता एवं कुशल गृहणी हैं : आपके दो पुत्र राजकुमार एवं अशोककुमार हैं दोनों ही अध्ययन कर रहे हैं। पुत्री सुनीता है जिसका विदाह हो चुका है। आपके दो भाई श्री धरमचन्द एवं विनोदकुमार हैं। दोनों का विवाह हो चुका है । प्रथम की पत्नी का नाम श्रीमती मंजुलता निगोतिया जी विगत वर्षों से जैन मिलन भिलाई नगर के कोषाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं । इसके अतिरिक्त पुष्पदंत धारा मासिक पत्रिका के भी कोषाध्यक्ष हैं । व्यवसाय - एजेन्सीज एवं इंडस्ट्रीज (चाक, स्लेट,पैंसिल,इस्टर) पता - जैन एजेन्सोज बो मार्केट सैक्टर-6 भिलाई (मप्र) श्री माणकचन्द गंगवाल पिता - श्री भैरूदान जी गंगवाल - स्वर्गवास- सन् 1946, 55 वर्ष की आयु में । पाता - श्रीपती केशरबाई - स्वर्गवास-सन् 1979 जन्मतिथि - संवत् 1976, शिक्षा-सामान्य ध्यवसाय · चाय के थोक व्यापारी परिवार - पुत्र- कमलकुमार आयु 30 वर्ष परली-पद्मादेवी,पुत्र-4 पुत्री-4 कंवरी बाई,उर्मिला बाई,संतोष बाई, लीला बाई सभी विवाहित विवाह तिथि - संवत् 1992 पत्नी का नाम श्रीमती मैना देवी सुपुत्री श्री छिगनमल जी पड़िया सरावगी,सुजानगढ़ । Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 592/ जैन समाज का बृहद् इतिहास विशेष : आपके पिताजी ने शिखर जी में सहस्वकृट चैत्यालय का निर्माण करवाया था। उनका कलकता में बहुत बड़ा व्यवसाय था। स्वभाव से परम धार्मिक थे। आपने उज्जैन में मांगलिक भवन में एक हाल का निर्माण, महावीर कीर्ति स्तंभ के निर्माण में योगदान,लक्ष्मीनगर कालोनी में दि. जैन मंदिर के निर्माण में योगदान,मंगलकलश की बोली ली थी। गोम्मटगिरी इन्दौर के पंचकल्याणक में आर्थिक सहयोग आदि विभिन्न यशस्वी कार्य किये । आपकी धर्मपत्नी भी धार्मिक स्वभाव की महिला हैं। वह दशलक्षण व्रत के दस उपवास कर चुकी हैं। स्वयं गंगवाल साहव उदार, सरल स्वभादी, धार्मिक जीवन जीने वाले सम्माननीय समाजसेवी हैं। मुनिभक्त हैं आहार देने में पूरी रुचि लेते हैं। तीर्थ वंदना पर जाते रहते हैं। पता : सरावगी ट्रेडिंग कम्पनी नजरअली मार्ग,उज्जैन । श्री माणकचन्द गंगवाल एडवोकेट जन्मतिथि - 29 अगस्त, 1916 शिक्षा - एम.ए.(सन् 1941 में) एल.एल.बी. 1940 में आगरा विश्वविद्यालय से। आपके पिताश्री धर्मवीर सेठ कन्हैयालाल जी गंगवाल का स्वर्गवास सन् 1953 में एवं माताजी श्रीमती बसन्ती बाई का निधन सन् 1967 में हुआ । आपका विवाह सन् 1932 में श्रीमती . जीबाई के साथ आगरा में सम्पन्न हुआ । आप दोनों को 4 पुत्र एवं 5 पुत्रियों के माता-पिता बनने ! का सौभाग्य प्राप्त है । सभी पुत्रियों का विवाह हो चुका है। चार पुत्रों में उत्तमचंद व्यवसाय करते है । हैं । कैलाशचन्द, अशोककुमार वकील हैं । वीरेन्द्रकुमार आपके साथ कार्य करते हैं। विशेष - लश्कर में किशनलाल गंगवाल दि.जैन मंदिर एव धर्मशाला का निर्माण आपके पूर्वजों ने कराया था। सोनागिर में कैलाशगिरी की रचना आपके द्वारा कराई गई। सन् 1971-72 में लाइन्स क्लब के अध्यक्ष रहे । सन 1976 से ही मध्यप्रदेश टैक्स बार के अध्यक्ष हैं । ग्वालियर नगर निगम के सन् 1944 से 1946 तक सदस्य रहे । मध्यप्रदेशीय शासकीय अधिवक्ता (विक्रय कर) सन् 1961 से सन् 1974 तक रहे । मध्यप्रदेश चैम्बर ऑफ कामर्स के कार्यकारी सदस्य रहे। धार्मिक एवं सामाजिक : महासभा,महासमिति एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी सभी के आप क्रियाशील सदस्य हैं। 2500 सौ वा निर्वाण महोत्सव समिति के सक्रिय सदस्य थे। सोनागिर के सन 1959-60 के वार्षिक मेले पर तीर्थ भक्त की उपाधि से सम्मानित हो चुके हैं। आपको तरह आपके पिताश्री कन्हैयालाल जी गंगवाल भी अच्छे पंडित थे । भादवा के महिने में शास्त्र प्रवचन किया करते थे। प्रतिवर्ष सोनागिर जाकर सिद्धचक्र मंडल विधान की पूजा करते थे । तीन लोक का मंडल मांडने में निपुण थे । संगीत में रुचि रखते थे। पता - गंगवाल निवास, सर्राफा बाजार लश्कर (ग्वालियर) Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज/593 श्री मानिकचन्द पाटनी पिता - स्व. मूलचन्द जी पाटनी• ४ वर्ष की आयु में सन् 1966 में स्वर्गवास । माता - श्रीमती मांगी बाई - K) वर्ष की आयु में सन् 1960 में स्वर्गवास । जन्मतिथि जुलाई 1924 शिक्षा - मैट्रिक - अजमेर बोर्ड से व्यवसाय - वस्त्र व्यवसाय विवाह - सन् 1946 में पत्नी का नाम श्रीमती मालती देवी-अकोला निवासी श्री कस्तूरचंद जी सेठी की पुत्री। परिवार : पुत्र -3 1-सुमति प्रकाश-बी ई.एम.वी.ए-38 वर्ष । पत्नी अरुणा । एक पुत्र एवं एक पुत्री । 2- सुशीलकुमार- बी.कॉम.,एल.एल.बी.37 वर्ष । पत्नी कमला देवी,बी.कॉम.दो पुत्र । 3- सुनीलकुमार-एम.एस.सी.,एम.बी.ए. पली-सीमा । एक पुत्र एक पुत्री। पुत्री • 2 उषा एवं पुष्पा दोनों विवाहित विशेष :धार्मिक क्षेत्र में : 1- पहिले आपके घर में ही चैत्यालय था लेकिन अब उसे अपने घर के समीप ही मैन रोड़ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें बेदी प्रतिष्ठा करवा कर विराजमान किया । 2. सभी तीर्थों की तीन बार वंदना कर चुके हैं। 3- मुनिभक्त हैं तथा उनकी सेवा के प्रेमी हैं। साशजिक क्षेत्र में 1- मारवाड़ी मंदिर शक्कर नगर, छावनी के अनन्तनाथ जिनालय,दि.जैन बजाज खाना, सुकृत फण्ड कपड़ा मार्केट के ट्रस्टी,महाराज राव क्लाथ मार्केट मर्चेन्ट्स की कार्यकारिणी के सदस्य, इन्दौर क्लाथ मार्केट कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड के 12 वर्ष से डाइरेक्टर हैं । क्लाथ मार्केट एसोसियेशन के अन्तर्गत संचालित कन्या विद्यालय,कन्या वाणिज्य महाविद्यालय, अस्पताल आदि संस्थाओं के प्रमुख कार्यकर्ता है। 2- आपके बड़े पिताजी की सुपुत्री वर्तमान आर्यिका स्याद्वादमती जी हैं जो आचार्य विमलसागर जी महाराज के संघ में 3- चार पीढ़ी पूर्व आपके पूर्वज नावा (राज) से यहाँ आकर रहने लगे थे। पता :- सम्मति भवन,254 जवाहर मार्ग,राज मोहल्ला,इन्दौर। Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 594/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री मूलचन्द पांड्या पिता - श्री माणकचन्द जी पांड्या 75 वर्ष गुना रहते हैं, गुना जैन समाज के अध्यक्ष हैं। माता - स्व. श्रीमती भंवरबाई जन्मतिथि : भादवा सुदी 4 सन् 19493 (सन् 1936) शिक्षा - बी.कॉम (1957) एल.एल.बो. (1959) व्यवसाय • अनाज,कपड़ा एवं उद्योग विवाह - सन् 1957, पत्नी का नाम - श्रीमती निर्मला देवी सुपुत्री श्री घोसूलाल जो पाटनी,छिन्दवाड़ा परिवार - पुत्र-1 श्री राजकुमार - 29 वर्ष,बी.ए..एल.एल.बी. पत्नी - श्रीमती सुलोचना देनी सुपुत्री श्री महावीर प्रसाद जी सरिया (बिहार) पुत्री - 1 रीता विवाहित श्री निरंजन लाल जी गोधा के सुपुत्र अमरज्योति से। 2-विनोता पद रही हैं। विशेष · गुग को आहार देने एवं उनकी सेवा सुश्रुषा करने में पूर्ण रुचि । सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं सामाजिक - संयोगितागंज दि. जैन समाज के अध्यश्च । दिगम्बर जैन मंदिर छावनी इन्दौर के अध्यक्ष । सामाजिक कार्यों में पूर्ण रुचि लेते हैं। सन् 1983 में आप अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं। पता - 1- हीरालाल पन्नालाल जैन, क्लाथ मर्चेन्ट, महात्मा गांधी रोड़,गुना (म.प्र.) 2- राज इन्टरप्राइजेज फास्टनर्स,प्रा.लि.कंचनबाग, इन्दौर फोन - 35704 (आफिस) 39231 (कार्यालय) श्री राजाबहादुर सिंह कासलीवाल पिता - भैया साहब - श्री राजकुमार सिंह जी कासलीवाल,30-4-87 को 74 वर्ष की आयु में स्वर्गवास । माता - श्रीमती प्रेम कुमारी देवी • सन् 1958 में स्वर्गवास । जन्मतिथि : 27 मार्च 1931 शिक्षा - एम.ए. (अर्थशास्त्र) एल.एल.बी. विवाह : 20.2.1949 Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज/595 पत्नी श्रीमती इन्द्राणी देवी सुपुत्री कपूरचन्द जो बाकलीवाल देहली परिवार • पुत्र - 2 प्रवीन कुमार, बीई (मैकनिकल) पत्नी श्रीमती ज्योति सुपुत्री श्री प्रकाशचन्द जी सेठी धीरेन्द्र कुमार,बी ई.(केमिकल) बी.कॉम.पत्नी श्रीमती दीप्ति सुपुत्री विजयकुमार ठोलिया,जयपुर । आपके छोटे भाई महाराजा बहादुरसिंह कासलीवाल हैं। जन्मतिथि - 17 जनवरी 1933 शिक्षा - बी.एस.सी.आगरा विश्वविद्यालय । विवाह - वर्ष 1952 में । श्रीमती स्नेहलता के साथ विवाहित । परिवार पुत्र .1 विकास - एम.कॉम. में पढ़ रहे हैं। पुत्री - 3 नयना, सुनयना एवं सुप्रिया - सभी विवाहित । विशेष : जैन समाज के अनभिषिक्त सपाट सर सेठ हुकमचन्दजी साहब कासलीवाल के पुत्र श्री राजकुमारसिंह जी कासलीवाल अपने पिता के समान समाज के लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने सरसेठ के समान ही अपने आप को सामाजिक कार्यों में लगाये रखा । उनको पांच पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इनमें सबसे बड़े राजाबहादुरसिंह,उनसे छोटे महाराजा बहादर सिंह तीसरे पुत्र श्री जम्बकुमार सिंह चतर्थ चन्द्रकुमार सिंह एवं पांचवें यशकुमार सिंह हैं । प्रथम दो भाइयों का हम ऊपर परिचय दे चुके हैं। तीसरे पुत्र जम्बू कुमार सिंह बम्बई में अपना व्यवसाय करते हैं । वर्तमान में इन्दौर जैन समाज में राजाबहादुर सिंह एवं महाराजा बहादुर सिंह दोनों ही भाई अत्यधिक लोकप्रिय हैं तथा ममाज में आपके स्वभाव,व्यबहार एवं गतिविधियों के प्रति अच्छी धारणा है । समाज में इस परिवार के प्रति सम्माननीय स्थान बना हुआ है तथा इन्दौर के किसी भी सामाजिक संगठन अथवा समारोह में आप दोनों में से किसी को भी उचित सम्मान जनक पद दिया जाता है । अभी कुछ समय पूर्व ही गठित दिगम्बर जैन समाज समिति इन्दौर के राजा बहादुर सिंहजी उपाध्यक्ष हैं तथा महाराजा बहादुर सिंह उसके सम्माननीय सदस्य हैं । दोनों ही भाई विदेश यात्रा पर जा चुके हैं तथा मुनियों की भक्ति सेवा सुश्रुषा में पूर्ण संच लेते हैं । तोर्थ वन्दना प्रेमी हैं तथा सामाजिक कार्यों में अपनी उपस्थिति से गौरव प्रदान करते हैं । पहागजा बहादुर सिंह दिगम्बर जैन महासपिति मध्यप्रदेश अंचल के सेक्रेटरी हैं । महासभा से भी आप दोनों का घनिष्ट संपर्क है। परिवारजन श्री राजबहादुर सिंह कासलीवाले प्रोमतो इन्द्राणीदेवी कासलीवाल धर्मपत्नी श्री राजा बहादुर सिंह Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 596/ जैन समाज का वृहद इतिहास मार्गदर्शन यासागर जी महार श्री प्रवीणकुमार श्री धीरेन्द्रकुमार पता :- इन्द्रभवन,तुकोगंज, इन्दौर श्री ललित कुमार पांड्या जैन पिता - श्री मदनमोहन जी जैन.65 वर्ष की आयु में सन् 1941 में स्वर्गवास हो गया। उस समय ललित कुमार जी केवल 2 महिने के शिशु थे । माता श्रीमती नत्थी बाई - 70 वर्ष धार्मिक स्वभाव । जन्मतिथि - 1 दिसम्बर, 1941, शिक्षा • बी.कॉम. विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से 1960 में । व्यवसाय: सिनेमा व्यवसाय विवाह - सन् 1960 में पत्नी - श्रीमती शकुन्तला देवी सुपुत्री श्री फूलचन्दजी बड़जात्या इन्दौर। मुनि भक्त, आहार देने में रुचि। परिवार - पुत्र • 2, 1- अजयकुमार 28 वर्ष एम.ए.एल.एल.बी.पत्नी-अनिता सुपुत्री श्री कन्हैयालाल जी पहाड़िया की सुपुत्री श्रीमती शकुन्तला देवी धर्मपत्नी श्री ललित कुमार जैन 2- संजय कुमार - 25 वर्ष । पत्नी रेखा एम.ए.- एक पुत्र 2 पुत्री पुत्री - 1 वर्षा, बी.ए., अविवाहित विशेष :- धार्मिक - सभी तीधों की (गिरनार को छोड़कर) वंदना कर चुके हैं। घर में चैत्यालय है जो आपके पिताजी द्वारा बनवाया गया था। . Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाब/597 सामाजिक - सूर्यसागर दि जैन इन्टर कॉलेज के विगत 15 वर्षों से मंत्री हैं । जैन सोशियल ग्रुप के उपाध्यक्ष,सामाजिक एकता एवं समन्वय विचारधारा के प्रबल समर्थक, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के सिनेटर रह चुके हैं। मैंन्ट्रल इंडिया चैम्बर आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री के वर्तमान में सेक्रेटरी है । समाजसेवा में रुचि पूर्वक भाग लेते हैं। राजनैतिक : नगर निगम उज्जैन के दो बार सदस्य रह चुके हैं। नगर कांग्रेस (आई) के उपाध्यक्ष हैं। पता :- जीवनकुटी.वम्बाखाना, उज्जैन | श्री विपलचन्द बाकलीवाल सन् 1928 में जन्में श्री बाकलीवाल ने मैट्रिक पास करके ही लोहा, सौमेन्ट लेवी के व्यवसाय में प्रवेश किया । आपके पिताश्री गप्पूलाल जी बाकलीवाल की सन् 1968 में तथा माताजी श्रीमती केशरबाई का स्वर्गवास दिसम्बर 1984 में हो गया । आपके 4 पुत्र अप्रयकुमार,निर्भयकुमार,सत्येन्द्रकुमार एवं राजकुमार हैं तथा एक पुत्री पुष्पाबाई है । अभयकुमार का विवाह हो चुका है। आपके पिताजी श्री गप्पूलाल जी सोनागिर सिद्धक्षेत्र कमेटी के मंत्री रहे तथा आपके मंत्रित्वकाल में ही चन्द्रप्रभु भगवान के सामने का भाग का निर्माण हा । आपने ग्वालियर किले में एक पत्थर की बावड़ी का जीर्णोद्धार कराया । श्री महावीर जी में कमलाबाई जी के आश्रम में आपको माताजी केशरबाई ने एक कमरे का निर्माण कराया। विशेष - श्री बाकलीवाल जी सोनागिर सिद्धक्षेत्र कमेटी में सदस्य रह चुके हैं। आप तीर्थयात्रा के प्रेमी हैं। पता - बाकलीवाल बिल्डिंग,डीडवाना ओली,लश्कर (ग्वालियर) पं. श्रीराम जैन बाकलीवाल पिता - स्व. गुलाबचन्द जी बाकलीवाल माता - श्रीमती सुन्दरबाई जी बाकलीवाल जन्मतिथि - 5 मार्च, 1925, शिक्षा शास्त्री काव्यतीर्थ, व्याकरण मध्यमा, हिन्दी.. विशारद। व्यवसाय - सेवानिवृत्त अध्यापक, वर्तमान साहुकारा एवं बाकलीवाल वाच कम्पनी, खण्डबा पत्नी का नाम - सौ.फूलाबाई सेवानिवृत्त टीचर। Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 598/ जैन समाज का वृहद् इतिहास परिवार - पुत्र 1. अशोककुमार,बी.एस.सी. कृषि अधिकारी बैंक ऑफ इंडिया, खंडवा। पत्नी-सुनीता बाकलीवाल,बी.ए. पुत्र-एक 2- राजकुमार जैन,बोई. मेकनिकल सर्वेयर आर.के.जैन एण्ड कम्पनी, खंडवा । पुत्री एक 3. पुत्री- साधना कुमारी - विवाहित,श्री गिरीशकुमार जैन,बोई.(सिविल) सहायक इंजिनियर गृह निर्माण मंडल, उज्जैन । समाजसेवा,पंडिताई । पयूषण पर्व पर इन्दौर समाज द्वारा सम्मानित | पता : 4, शिक्षक नगर,मोघ मार्ग,बाकलीवाल भवन,खण्डवा (मध्यप्रदेश) पं, श्री सत्यंधर कुमार से पिता • श्री फतहलाल जी सेठो माता-श्रीमती जोधा बाई जी जन्मतिथि : आश्विन शुक्ला 9 संवत् 1967 शिक्षा - शास्त्री कक्षा तक,(कुचामन राज.में) ध्यवसाय - कपड़े के थोक व्यापारी परिवार - तीन पुत्र - (1) सुशील कुमार सेठी पत्नी श्रीमती रविकांता (2) रजनीश सेठी,एम.कॉम., पत्नी श्रीमती मंजु सेठी (3) संजय सेठी,एम.कॉम., पत्नी - मीना सेठी पांच पुत्रियाँ - कनक प्रभा, विधुत्प्रभा,शैलबाला (धर्मपत्नी श्री भरतकुमार जी काला,बम्बई) ज्ञानेश्वरी और शारदा सभी विवाहित । दो पौत्र एवं एक पौत्री विवाह - तीन विवाह हुए। तीसरी पत्नी का नाम श्रीमती सूरज कुमारी सेठी। धार्मिक सेवायें - सुसनेर पंचकल्याणक में मुकुटबद्ध राजा बनने का श्रेय प्राप्त किया । तीर्थ यात्रा प्रेमी है तथा सभी तीर्थो की वंदना कर चुके हैं। Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /599 सामाजिक सेवा सेठी जी समाज सेवा के पर्याय हैं । प्रारम्भ से ही उनका जीवन संघर्षों में जूझता रहा । आप पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के प्रमुख शिष्य है और समाजसेवा की लगन एवं रुचि भी उन्हीं की प्रेरणा का सुफल है। विद्यार्थी जीवन से ही वे रूढ़ियों एवं कुरीतियों के घोर विरोधी रहे । उन्होंने अपना जीवन कलकत्ता में सेठों के यहाँ सर्विस करते हुए प्रारम्भ किया। यहां उन्होंने बंगीय अहिंसा परिषद् की स्थापना करके सार्वजनिक सेवा में प्रवेश किया तथा सुप्रसिद्ध कालिका मंदिर पर होने वाले हजारों बकरों की बलि के विरोध में सत्याग्रह किया और पिटाई खाने पर भी मैदान नहीं छोड़ा। कलकत्ता से जयपुर आने के पश्चात् आपने खण्डेलवाल जैन समाज में लोहड साजन बडसाजन आन्दोलन में खुलकर भाग लिया और आचार्य कल्प चन्द्रसागरजी महाराज के कोप का भाजन बनना पड़ा । जुझारू स्वभाव के कारण आपका खण्डेलवाल जैन महासभा द्वारा जातीय बहिष्कार किया गया लेकिन सरसेठ हुकमचन्द जी साहब के प्रत्यक्ष समर्थन से महासभा के प्रस्ताव को 167 पंचायतियों द्वारा ठुकरा दिया गया। जयपुर से उज्जैन आने के पश्चात् सर्वप्रथम खादी भण्डार चलाया और फिर कपड़े का थोक व्यापार करना प्रारम्भ किया जिसमें आपको अपूर्व सफलता प्राप्त हुई । समाज से प्रत्यक्ष सम्पर्क रखने के लिये आपने शास्त्र स्वाध्याय प्रारम्भ किया । सूर्यसागर ANNA प. सत्यन्धर कुगार सेठी उज्जैन श्रीमती सूरजकुमारी धर्मपत्नी पं. सत्यन्धर श्री सुशील कुमार सेठी कुमार सेटी Lal रविकांता सर्मपत्नी सुशील कुमार सेठी श्री रजनीश कोठी श्री सजय सेठी Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 600/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सागर जी महाराज विद्यालय,प्रार्थना सभा,ज्ञानसागर कन्या विद्यालय आदि के स्थापना में अपना मलियाहयोग दिया और मालवा के अंचल में बिखरी जैन पुरातन संपदा के संरक्षण के लिए उत्साह से कार्य करने लगे। विश्व जैन मिशन,दि.जैन परिषद् मालवा प्रान्तीय सभा,मक्सी क्षेत्र आदि संस्थाओं के सक्रिय सदस्य बन गये । विजातीय विवाह का खुलकर समर्थन किया । दिगम्बर श्वेताम्बर समाज को एक मंच पर लाने में आपने भरसक प्रयल किया। महावीर जयन्ती को प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाने में आप सबसे आगे रहे। LINE उज्जैन जैन समाज के साथ समस्त नगरवासियों ने भी आपको पूर्ण समर्थन दिया तथा वहां अखिल भारतीय स्तर पर देश के उच्च कोटि के वेष्ठियों एवं मनीषियों तथा स्थानीय नागरिकों ने अभिनंदन ग्रंथ भेंट करके आपका सार्वजनिक अभिनंदन किया । पोना संजय सेठी आप पक्के मुनिभक्त हैं । प्रतिवर्ष आचार्यों एवं मुनियों के दर्शनार्थ जाते रहते हैं । जैनचर्या के आप कट्टर पक्षपाती हैं इसलिये आपने एनं आपके पूरे परिवार ने श्रावकोचित क्रियाओं को जीवन का अंग बना रखा है। : आप अच्छे लेखक एवं ओजस्वी वक्ता हैं। किसी भी बात को खुलकर कहते हैं । जैन पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। इसलिये आपको वाणीभूषण, व्याख्यान वाचस्पति, धर्म दिवाकर, जैन धर्मभूषण जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है । राष्ट्रीय कांग्रेस के कट्टर समर्थक हैं । वर्तमान में सेठी जी विश्व हिन्दू परिषद जिला शाखा के अध्यक्ष, वस व्यवसायी पारमार्थिक चिकित्सालय के अध्यक्ष, सूर्यसागर दि. जैन विद्यालय एवं कन्या विद्यालय के उपाध्यक्ष,मालवा प्रान्तीय दि. जैन अनाथालय के मंत्री, पुरातत्व संग्रहालय के मंत्री, क्लाथ मर्चेन्ट्स एसोसियेशन के संस्थापक भी हैं। भगवान महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव,बाहुबली सहस्त्राब्दी समारोह में सक्रिय भाग लिया और अपनी सेवाओं से समाज पर अमिट छाप छोड़ी हुई है। दि.जैन महासमिति एवं अखिल भारतीय दि.जैन परिषद् से सक्रिय रूप से जुड़े हुये हैं। अभी जनवरी 92 में आप अखिल विश्व जैन मिशन के संचालक चने गये है। आपकी धर्मपत्नी शान्त स्वभाव की महिला है तथा सेठी जी का प्रत्येक कार्य में हाथ बंटाती रहती हैं। आपके तीनों पुत्र अत्यधिक विनयी एवं आपकी आज्ञा में चलते हैं। तीनों हो पुत्र व्यापार में सेठी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आपका जन्म स्थान पादवा (राज) है । जहाँ आपने अपने निजी भवन को अपनी माता एवं बड़े भाई सूंडालाल जी की स्मृति में प्रसूतिग्रह एवं राजकीय चिकित्सालय के लिये भेंट कर दिया है। पता :- 1- सुशील सदन 19 क्षीर सागर कालोनी, उज्जैन (मध्यप्रदेश) 2. सत्यन्धर कुमार सुशील कुमार सेठी 111 विक्रमादित्य मार्केट काजलपुरा,उज्जैन । Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा प्रदेश का जैन समाज /601 श्री सूरजमल गोथा पिता - श्री जीवनलाल जी 80 वर्ष माता - श्रीमती मूली बाई - 70 वर्ष की आयु में 8 वर्ष पूर्व स्वर्गवास । जन्मतिथि - सावन शुक्ला 3 संवत् 1986 शिक्षा - मैटिक सन् 1942 में उज्जैन में व्यवसाय - वस्त्र व्यवसाय। विवाह- माह सुदी 4 संवत् 2005 पत्नी का नाम - श्रीमती कमला बाई - स्वाध्यायशीला, सामाजिक सेवा में रुचि,आदिनाथ महिला मंडल उज्जैन की अध्यक्ष,ज्ञानसागर कन्या विद्यालय की कार्यकारिणी सदस्य परिवार - पुत्र -1 दिनेश कुमार 32 वर्ष - पत्नी बीना,2 पुत्र एवं ! पुत्री पुत्री-2 मधुबाला बी.ए. रजनी बी.ए. दोनों पुत्रियों का विवाह हो चुका है। धार्मिक कार्य :- मंगलकलश के शुभागमन पर इन्द्र की प्रथम बोली ली थी। सन् 1965 में सिद्धचक्र मंडल विधान सम्पन्न करवाया । नागदा के मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । पूरे भारत के तीर्थों की तीन बार वंदना कर चुके हैं। सामाजिक सेवा : नमक मंडी मंदिर के ट्रस्टी, दि. जैन अ.क्षेत्र मक्सी पार्श्वनाथ की कार्यकारिणी सदस्य, मुनिभक्त, मुनिराजों को आहार देने में रुची, आपके एक भाई डा.महावीर कुमार जी गोधा एम.ए.पी.एच.डी हैं तथा राजकीय महाविद्यालय में प्राध्यापक है । दूसरे भाई फूलचन्द जी गोधा उज्जैन में ही व्यवसायरत हैं । पता : 1- लखरेवाड़ी उज्जैन 2. सूरजमल दिनेशकुमार गोधा, नयी पैठ, उज्जैन । Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 602/ जैन समाज का वृहद् इतिहास उत्तर प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाजसेवी उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है । इसकी सीमाएं देश के आधे से अधिक प्रान्तों के साथ मिली हुई है । सन् 1981 की जनगणना के अनुसार उसकी जनसंख्या 110862013 थी । इस विशाल जनसंख्या में जैन समाज की कुल संख्या 1971 में 124728 थी । सन् 1961 की जनगणना में जब उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 73746401 थी तो जैनों की संख्या 1,22,108 थी और सन् 1981 में यह 1,41,549 हुई अर्थात् 20 वर्ष में जब प्रदेश की जनसंख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई तो जैन समाज की संख्या 16 प्रतिशत की ही वृद्धि हो सकी । सन् 1991 की जनगणना में जैन समाज की जनसंख्या एक लाख सत्तर हजार तक पहुंच सकती है। जैन परिवार एवं जातियाँ : लेकिन ये तो सरकारी आंकड़े हैं। वास्तविक जनसंख्या तो इससे बहुत अधिक है । जैन समाज की घनी बस्ती वाले जिलों में मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, झांसी, सहारनपुर, एटा, अलीगढ़, इटावा, कानपुर, देहरादून एवं लखनऊ जिलों के नाम उल्लेखनीय हैं । उत्तर प्रदेश की जैन समाज में अग्रवाल दिगम्बर जैन समाज की संख्या सबसे अधिक है इसके पश्चात् खण्डेलवाल जैन समाज का नम्बर आता है । पल्लीवाल, पद्मावती पुरवार, बुढेलवाल, परवार, पोरवाड़, जैसवाल, जैसी जैन जातियों के परिवारों की संख्या आगरा, झांसी, एटा, इटावा जैसे जिलों में काफी अच्छी है । सामाजिक रीति-रिवाजों में भी कुछ भिन्नता है जो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्नता लिये हुये है लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों एवं पूजापाठ विधि विधानों में कहीं कोई भिन्नता नहीं है। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के करीब 450 ऐसे नगर एवं गांव हैं जहाँ जैन मंदिर हैं एवं जैन परिवार रहते हैं ' इनके अतिरिक्त कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहां जैन परिवार तो हैं लेकिन जैन मंदिर नहीं है जैन तीर्थ : उत्तर प्रदेश में अयोध्या, शोरीपुर बटेश्वर, चन्द्रपुरी, चन्द्रवाड, श्रावस्ती, कौशाम्बी, वाराणसी, काकंदी, सिंहपुरी, काम्पिल्य, रत्नपुरी, हस्तिनापुर तीर्थंकरों को जन्म भूमियाँ हैं । इनके अतिरिक्त प्रयाग, पभोसा, संकिसा एवं पावा नगर भी तीर्थंकरों के अन्य कल्याणक क्षेत्रों की भूमियाँ रही हैं । उत्तर प्रदेश में मथुरा की भूमि जैन संस्कृति की मुख्य भूमि रही है। बीजोलिया (राजस्थान) के एक शिलालेख में उत्कीर्ण उन्नत शिखर पुराण के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ ने मथुरा से ही अहिच्छत्र विहार किया और वहां से सम्मेद शिखर पर जाकर निर्वाण प्राप्त किया। मथुरा नगर में 7(K0-8000 वर्षों तक जैन धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर रहा । मथुरा और उसके आसपास से प्राप्त अनगिनत तत्कालीन जैन कलाकृतियाँ एवं सैकड़ों शिलालेख इसका स्पष्ट प्रमाण है। 1. विस्तृत जानकारी के लिये देखिये-दिगम्बरत्व का वैभव-प्रकाशक दिगम्बर जैन महासपिति । Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज 603 आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में महावीर का जिन प्रदेशों से विहार होना लिखा है उनमें काशी, कौशल (अवध प्रान्त) वत्स (इलाहाबाद कमिश्नरी) (शोरसेन और कुशात, पांचाल) रुहेलखंड एवं गंगापार के फर्रुखाबाद आदि जिले । कुरु जांगल (मेरठ कमिश्नरी) वर्तमान उत्तर प्रदेश के ही भूभाग हैं । मथुरा के अतिरिक्त देवगढ़ भी जैनों का प्रसिद्ध सांस्कृतिक केन्द्र रहा है । जहाँ जंगल में यत्र-तत्र बिखरी हुई अनगिनत प्राचीन खंडित मूर्तियाँ एवं भवनों के प्रस्तर खंड, इस प्रदेश के अतीत की गौरव गाथा सुनाते हैं । 10वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी तक कितने ही शिलालेख एवं प्रतिमा लेख प्राप्त हुये हैं। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि देवगढ़ मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है। नवीन वेदियों में मूर्तियों को फिर से प्रतिष्ठित करके विराजमान करने के लिए मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के सानिध्य में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्म संपन्न हो चुकी उत्तर प्रदेश बहुत घना बसा हुआ प्रदेश है। यहां जैन समाज भी 500-600 गांवों एवं नगरों में बसा हुआ है इसलिये उनमें बसे हुये सभी को इतिहास में कवर करना संभव नहीं है। प्रदेश के जिन नगरों एवं ग्रामों में मेरा जाना संभव हो सका उनका सामान्य परिचय निम्न प्रकार है: आगरा: राजस्थान की सीमा से लगा हुआ आगरा जैन धर्म, साहित्य एवं संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है । मथुरा के पास होने के कारण इस पर जैन धर्म का पूरा प्रभाव पड़ा और जब से इस नगर की बसावट हुई है जैन समाज का यहां व्यापक प्रभाव रहा। आगरा नगर को सबसे अधिक प्रतिष्ठा मुगल शासन में मिली जब अकबर बादशाह ने इसे अपनी राजधानी बनाया। यहां अनेक जैन कवि, विद्वान एवं लेखक हुये जिन्होंने हिन्दी में विशाल साहित्य की रचना संपन्न की। यहां की प्रवचन सभा वर्षों तक चलती रही जिसने पं. भूधरदास, पं. दौलतराम कासलीवाल को साहित्य निर्माण की ओर प्रेरित किया। यहां बनारसीदास, द्यानतराय, भगवतीदास, हेमराज पांडे, हीरानन्द, जगजीवन, जगतराय, बुलाकीदास, पांडे रूपचंद जैसे अनेक कवि हुए जिन्होंने अपनी रचनाओं से शास्त्र भंडारों को भर दिया । अर्गलपुर जिन वंदना में 17 वीं शताब्दी के 48 मंदिरों का नामोल्लेख आता है। सन् 1913 में प्रकाशित जैन यात्रा दर्पण में 28 दिगम्बर जैन मंदिर होना बतलाया गया है। अभी प्रकाशित दिगम्बरत्व का वैभव पुस्तक में यहां पर मंदिर एवं चैत्यालयों की संख्या 36 लिखी है। कुछ नये उपनगरों में और भी मंदिर बन रहे हैं जिससे यह संख्या और भी अधिक हो सकती है। आगरा में दिगम्बर जैन समाज की अच्छी संख्या है । सन् 1911 में यहा 1275 परिवार एवं जनसंख्या 4765 थी लेकिन वर्तमान में यहां 1500 परिवार है जिनमें खण्डेलवाल, अग्रवाल, जैसवाल, पल्लीवाल, पद्मावती पुरवार जैसी जातियाँ प्रमुख रूप से निवास करती हैं। Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 604/ जैन समाज का वृहद् इतिहास वर्तमान में आगरा समाज द्वारा संचालित एक इन्टर कॉलेज है । वहीं जैन साहित्य शोध संस्थान है जिसकी स्थापना श्री महेन्द्र जैन द्वारा की गई थी। मोती कटला के जैन मंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का अच्छा संग्रह है। यहां मटरुमल बैनाडा, सुनहरीलाल जैन, पं. प्रतापचंद जैन एवं कपूरचन्द जैन अच्छे समाजसेवी हो गये हैं। मथुरा: जैन संस्कृति का गौरवपूर्ण केन्द्र मथुरा को अंतिम केवली भगवान जम्बूस्वामी की निर्वाण स्थली रहने का सौभाग्य प्राप्त है । चौरासी मथुरा में जम्बूस्वामी का जो विशाल मंदिर बना हुआ है उसका निर्माण प्राचीन मंदिर के भग्नावशेषों पर 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में किया गया था । इस शताब्दी में मथुरा के प्रसिद्ध जैन सेठ रघुनाथदास जी एवं उनके पुत्र सेठ लक्ष्मणदास जी भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के संस्थापकों में से थे। सेट लक्ष्मणदास सी.आई. थे । सरकार में एवं समाज में उनका सर्वोच्च स्थान था । महासभा के प्रारंभिक अधिवेशन उन्हीं की अध्यक्षता में संपन्न हये । उनका 47 वर्ष की छोटी आय में ही 15 नवम्बर 1940 को स्वर्गवास हो गया। महासभा ने मथुरा में ही भारतवर्षीय जैन इतिहास सोसायटी की स्थापना की थी। इसी शताब्दी में चौरासी क्षेत्र पर ऋषभब्रह्मचर्याश्रम स्थापित हुआ। संघ का भवन बना और प्रधान कार्यालय स्थापित हुआ । संघ का मुख पत्र जैन संदेश और शोधांक भी चौरासी मथुरा से ही निकलते हैं । चौरासी क्षेत्र पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में मेला भी भरता है। मथुरा में वर्तमान में 6 मंदिर चैत्यालय हैं तथा जैन समाज के करीब 80 परिवार हैं जिनमें खण्डेलवाल समाज के 24 परिवार, जैसवाल समाज के 25 परिवार, पल्लीवाल समाज के 25 परिवार, अग्रवाल जैन समाज के 6 परिवार हैं । एक मंदिर वृन्दावन में है तथा एक गोवर्धन में है । खण्डेलवाल जैन समाज में यहां हल्देनिया गोत्र का परिवार भी है जो अन्यत्र बहुत कम मिलता है । सन् 1913 में प्रकाशित जैन यात्रा दर्पण में यहां 50 दि. जैन परिवारों का होना बतलाया गया है। मथुरा में सेठ द्वारकादास भी बहुत बड़े रईस हो गये हैं। कानपुर: कानपुर उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा औद्योगिक नगर है । सन् 1857 में यहां भयानक गदर हुआ था । दि. जैन महासभा के जनरल सेक्रेटरी मुंशी चम्पतराय जी यहां के मजिस्ट्रेट थे । सन् 1911 में यहां 275 दि. जैन परिवार तथा जनसंख्या 1256 थी, यहाँ दि. जैन अग्रवाल समाज के परिवारों की संख्या अधिक है। खण्डेलवाल समाज के यहां 76 परिवार हैं जिनकी जनसंख्या 580 है। भगवान महावीर के 2500 वॉ परिनिर्वाण वर्ष में यहां कितने ही अच्छे कार्य हुए । इसी नगर में अ. भा. दि. जैन परिषद का स्वर्ण जयन्ती अधिवेशन भी आयोजित हो चुका रामपुर: रामपुर उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद मंडल का प्रमुख प्रदेश है । स्वतंत्रता से पूर्व रामपुर एक मुस्लिम स्टेट थी जिसके शासक नवाब कहलाते थे। इस स्टेट का उद्भव 7 अक्टूबर, 1774 को अंग्रेजों एवं शुजाउद्दोला के कानपुर निर्देशिका- 1986, प्रकाशक श्री. दि. जैन खण्डेवाल सभा, कारपुर Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /605 मध्य एक समझौते के पश्चात हुआ । तथा जुलाई, सन् 1949 को यह राज्य केन्द्रीय राज्य में सम्मिलित हो गया। वर्तमान में रामपुर एक जिला है जो जिले का मुख्य कार्यालय है। रामपुर में दिगम्बर जैन समाज के 65 परिवार हैं जो यहां के मूल निवासी हैं इनके अतिरिक्त 15-20 परिवार और भी बाहर से आकर रहने लगे है लेकिन अभी इनसे समाज घलमिल नहीं सका है। 65 परिवारों में 60 परिवार खण्डेलवाल जैन समाज के हैं । इनमें भी बम्ब गोत्र के ही 25 परिवार हैं । बम्ब गोत्र के इतने अधिक परिवार अन्यत्र कहीं नहीं मिलते। रामपुर जैन समाज यद्यपि कोई बड़ा समाज नहीं है लेकिन यहां जैन इन्टर कॉलेज, महावीर जैन औषधालय, जैन बाग, जैन पुस्तकालय, जैन बेसिक स्कूल आदि संस्थायें दि. जैन समाज द्वारा संचालित हैं जिससे यहां के समाज की उदारता एवं सामाजिक सेवा के प्रति रुचि का पता चलता है । प्रसिद्ध जैन कवि कल्याण कुमार शशि जी यहीं के थे जिनका दो वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है। यहां एक मंदिर है । जिसमें भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की धातु की एक ऐसी प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा जैसलमेर (मारवाड-राजस्थान) में संवत् 1531 कार्तिक सुदी 11 को काष्ठासंघी श्रावक जिणदास अग्रवाल द्वारा कराई गई थी । जैसलमेर में प्रतिष्ठित होने वाली यह प्रथम प्रतिभा है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उस समय जैसलमेर में दिगम्बर जैन समाज के परिवार रहते थे । वहाँ दिगम्बर जैन मंदिर भी होगा जो वर्तमान में नहीं मिलता । कविवर बुलाखीचंद ने जैसलमेर में भगवान महावीर के समवसरण के आने एवं जैसवाल जाति के उद्भव की जो कहानी दी है उसमें जैसलमेर में अतीत में दिगम्बर जैनों की अच्छी संख्या होने का संकेत मिलता लखनऊ: उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजधानी लखनऊ पहिले नवाबों की राजधानी रहा । गौमती नदी के किनारे बसा हुआ यह नगर राजनैतिक एवं सामाजिक गतिविधियों का प्रारंभ से ही केन्द्र रहा है । जैन यात्रा दर्पण में यहां पर चार दि. जैन मंदिर, 3 धर्मशाला, एक जैन औषधालय एवं एक जैन पाठशाला तथा 80 परिवार दि. जैन अग्रवालों के एवं 20 परिवार खण्डेलवाल समाज के होना लिखा है । वर्तमान मे यहां अग्रवाल जैन समाज के 30) घर एवं खण्डेलवाल समाज के 45 घर तथा अन्य समाजों के 25 घर हैं तथा 7 शिखरबंद मंदिर एवं चैत्यालय हैं। यहां जैन बाग एवं पार्श्वनाथ जिनालय प्रमुख है । लखनऊ में बा, अजितकुमार जैन एडवोकेट, एवं डा. ज्योतिप्रसाद जी जैन जैसे महान विद्वान हो गये हैं । महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेटी यहीं रहते हैं तथा महासभा का केन्द्रीय कार्यालय ऐशबाग में है। महासभा का प्रमख पत्र जैन गजट एवं जैन महिलादर्श भी यहीं से प्रकाशित होते हैं । बा. अजित प्रसाद जी जैन एवं डा. शशीकान्त शोधादर्श पत्र का प्रकाशन करते हैं। यहां श्री सौभाग्यमल जी काला ने अभी ऋषभायण महाकाव्य का निर्माण करवाकर उसे प्रकाशित कराया है। उक्त नगरों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पचासों ऐसे नगर/ग्राम हैं जिनमें दिगम्बर जैन समाज अच्छी संख्या में मिलता है । बड़े-बड़े मंदिर है । धर्मशालाएं हैं एवं जैन संस्थाएं हैं । उनका सामाजिक इतिहास तब तक लिखना Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 606/ जैन समाज का वृहद इतिहास कठिन है जब तक इतिहास लिखने के उद्देश्य से ही उनमें न जाया जावे क्योंकि अन्यत्र किसो पुस्तक में समाज की वास्तविक स्थिति के बारे में कोई उपलब्ध नहीं होती । इसलिये इन नगरों का इतिहास हम दूसरे खंड में देना चाहेंगे । फिर भी कुछ नगरों का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है :सहारनपुर : सहारनपुर उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर है। इस नगर के आस-पास हिन्दुओं का प्रख्यात तीर्थ हरिद्वार, शाकुम्भरी देवी है। मुसलमानों का प्रसिद्ध जियारतगाह पुराना किला तथा दारुल अतूम नाम की लोकविख्यात यूनिवर्सिटी देवबन्द में है जिसमें अरब, ईरान और अफगानिस्तान आदि के भी अनेक विद्यार्थी अध्ययन करते हैं । जैन धर्म का तो यह गढ़ ही है । औद्योगिक दृष्टि से गचा मिल, सिगरेट फैक्टरी, कपड़ा मिल, मैदा मिल, गत्तामिल, टायर फैक्टरी, चावल मिल, पेपर मिल, कोल्ड स्टोर आदि अनेक बड़े-बड़े कारखाने हैं। जहाँ लाखों व्यक्ति काम करते हैं। सन् 1857 की लिखी हुई प्रद्युम्नचरित की लिपि प्रशस्ति में सहारनपुर दुर्ग का उल्लेख है । कहा जाता है कि इसे शाह रनवीर सिंह जैन ने बसाया था जो दि. जैन धर्म का संचालक और मुगल बादशाह अकबर का जागीरदार था । अबुलफजल ने आईने अकबरी में भी इसे स्वीकार किया है कि शाह रनवीर अकबर की टकसाल के अधिकारी थे । उन्होंने ही सहारनपुर में टकसाल की स्थापना की थी । उसके बाद सहारनपुर बराबर अपनी प्रगति करता रहा । आज वह एक सम्पत्र शहर के रूप में देखने में आता है । यहाँ कालिज, हाई स्कूल, अस्पताल आदि जनोपयोगी संस्थाओं का निर्माण हुआ है । जैनियों द्वारा समय-समय पर अपने धार्मिक कार्य सम्पत्र होते रहे हैं । सन् 1931 में सहारनपुर में दि. जैन परिषद का अधिवेशन हुआ था । सन् 1956 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हई। सन 1971 में दि. जैन परिषद का अधिवेशन सेठ भागचन्द जी सोनी अजमेर की अध्यक्षता में हुआ। पूज्य गणेशप्रसाद जी वणी. आचार्य धर्मसागर और मुनि विद्यानन्द, ब. कौशल जी आदि साधु-संतों का सहारनपुर में विहार हो चुका है 1 धर्मोपदेश आदि का जनता को लाभ मिला । दयाचंद जी भगत जी का समाज पर पूरा प्रभाव देखा जाता है। सन् 1911 में जैन यात्रा दर्पण में सहारनपुर जैन समाज के बारे में निम्न जानकारी दी है -"रेलवे स्टेशन से शहर की आबादी ? फलांग के अनुमान है और मील के फासले पर मुहल्ला शोरमियान, यादगार, संघयान, चौधरयान ऐसे चार मुहल्ले हैं जिनमें जैन मन्दिर जी शिखरबन्द 10 तथा एक चैत्यालय है और इन मंदिरों में 200 के अनुमान जैन शास्त्र जी हैं । इन चारों मुहल्लों में 475 घर अग्रवाल जैनी भाईयों के हैं जिनमें मनुष्य संख्या 3500 है । इन साढ़े तीन हजार भाइयों में से बहुत से धनाढ्य तथा विद्वान हैं। यहां लाला नेमिदास वकील और बाबू बनारसीदास वकील हाइकोर्ट परोपकारी हैं। ___ जैन गजट अंग्रेजी के सम्पादक बा. जुगमन्दर लाल जी एम.ए, यहां बहुत बड़े विद्वान थे । उनका निधन नवम्बर सन् 1904 में हुआ था। दिनांक 27-2-29 दिसम्बर 1905 को सहारनपुर में अ. भा दि. जैन महासभा का वार्षिक अधिवेशन संपन्न हुआ । अधिवेशन में भाग लेने वालों को उत्तरी पश्चिमी रेलवे ने आधा किराया तथा शेष Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /607 रल्वेज ने दोनों ओर का इयोढा किराया लेने का आदेश जारी किया था । इस अधिवेशन में 20000 से अधिक सज्जन एकत्रित हुये। अध्यक्षता श्री माणकचंद जी जौहरी सूरत निवासी ने की थी। वर्तमान में दिगम्बर जैन समाज के 1300 परिवार है । सभी दि. जैन अग्रवाल हैं । 18 शिखरबंद मंदिर हैं एवं सरस्वती भवन है । जैन समाज के पोस्ट ग्रेज्यूट कालेज, इन्टर कालेज, दि. जैन कन्या इन्टर कालेज, तीन होमियोपैथी चिकित्सालय, धर्मार्थ चिकित्सालय, लार्ड महावीर एकेडमी जैसी संस्थायें हैं। सरधना : मेरट जिले में स्थित सरधना को धार्मिक नगरी कहा जाता है। यहां दिगम्बर जैन समाज के करीब 700) परिवार हैं जो सभी अग्रवाल जैन समाज के हैं । मुनियों का यहां आवागमन होता ही रहता है । आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य विद्यानन्द जी, उपाध्याय ज्ञानसागर जी, आर्यिका ज्ञानमती जी माताजी के यहां चातुर्मास हो चुके हैं। समाज के प्रमुख व्यक्तियों में श्री आदीश्वर प्रसाद जी जैन, श्री नरेन्द्रकुमार जी जैन, लाला सुदर्शनलाल जी जैन, श्री दिनेश कुमार जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं । उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में यहां एक बहुत बड़ी विद्वत संगोष्ठी का आयोजन हुआ था । रायपुर मणिहारान सहारनुधर से देहती जाने वाली रोड पर रामपुर मनिहारान 25 हजार आबादी वाला अच्छा कस्बा है। यहाँ दि. जैन समाज के 10 घर है । तीन शिखरबंद मंदिर हैं । श्री लालचन्द जी जैन यहां के वयोवृद्ध सज्जन हैं। यहाँ के त्रिलोकचन्द जी बजाज की पुत्री स्नेह जैन ने आर्यिका दीक्षा धारण की थी । यहाँ का बड़ा जैनमंदिर विशाल है जिसका शिखर दर्शनीय है । सुपार्श्वनाथ स्वामी की मूलनायक प्रतिमा है । जैन बाग में इन्टर कालेज है तथा एक जैन कन्या हाईस्कूल है। यहां के जैन बंधुओं में धार्मिक जीवन जीने को लगन है । यहाँ के लाला चमनलाल जी आनरेरी मजिस्ट्रेट हो चुके हैं। वर्तमान में कौशल प्रसाद जी जैन अध्यक्ष एवं पुरुषोत्तम दास जी जैन मंत्री हैं । शामली : मुजफ्फरनगर जिले में शामली अच्छा जैन सेन्टर है। शामली एक लाख की बस्ती वाला शहर है यहाँ दिगम्बर जैनों के घरों की संख्या 400 है । तीन मंदिर हैं। यहां के प्रमुख समाजसेवियों में श्री विलासवंद जी जैन, जिनेन्द्र कुमार जी जैन. दिनेश चंद जी जैन, सत्येन्द्र कुमार जी जैन, लाला कामताप्रसाद जी जैन, लाला पल्टूमल जी जैन एवं जयचन्द जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। कैराना : ___ कैराना मगर भी मुजफ्फरनगर जिले में स्थित है। नगर की बस्ती 60 हजार करीब है जब कि जैन समाज के 75-80 परिवार हैं। तीन मंदिर हैं जिनमें दो मंदिर शहर में और एक मंदिर जैन बाग में है । यहाँ जैन गर्ल्स इन्टर .कालेज समाज द्वारा संचालित है । यहाँ के श्री ब. महावीर प्रसाद जी ब्रह्मचारी बनकर हस्तिनापुर रहे थे । यहाँ के Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 608/ जैन समाज का वृहद् इतिहास प्रतिष्ठित व्यक्तियों में महावीर प्रसाद जी जैन, सुरेन्द्रकुमार जी जैन, डा. निर्मलकुमार जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। खतौली मुजफ्फरनगर जिले में खतौली व्यापारिक मंडी है। यहाँ दिगम्बर जैन समाज के 800 परिवार हैं । सात दिगम्बर जैन मंदिर है। समाज की ओर से एक डिग्री कालेज का संचालन होता है । डा कपूरचंद जी उसी में विभागाध्यक्ष हैं । श्री योगीश कुमार जी जैन महाविद्यालय के मंत्री हैं । श्री धनप्रकाश जी जैन, मुकेश जैन एडवोकेट, श्री महेशचंद जी सर्राफ, नरेन्द्रकुमार जी जैन, विमल प्रकाश जी जैन के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। कोटाला यह भी मुजफ्फरनगर जिले में है। यहाँ दो दि. जैन मंदिर तथा दि. जैन समाज के 70-80 घर हैं। यहाँ के कुछ प्रमुख समाज सेवियों में श्री जयप्रकाश जी जैन, श्री लक्ष्मीचंद जी जैन, श्री सुखमाल चंद जी जैन सर्राफ, श्री बिजेन्द्रकुमार जी जैन, श्री मंगतराम जी जैन एवं श्री ज्योतिप्रसाद जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। बुढ़ाना: मुजफ्फरनगर जिले में बुढ़ाना एक व्यापारिक मंडी है। नगर की जनसंख्या करीब 50-60 हजार की है। जैन समाज के 25-30 परिवार है। श्री पदमसेन जी जैन एवं श्री रतनलाल जी जैन हुसैनपुरा वाले यहाँ के प्रतिष्ठित सज्जन हैं । उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज यहां विहार कर चुके हैं। बिलारी : बिलारी मुरादाबाद जनपद में तहसील स्तर का नगर है जो मुरादाबाद चन्दौली रेल मार्ग पर बसा हुआ है। स्टेशन का नाम है राजा का सहसपुर । बिलारी नगर की करीब 50 हजार की जनसंख्या है। दिगम्बर जैन समाज के यहाँ 5-6 परिवार रहते हैं । पहिले यहाँ दिगम्बर जैन मंदिर नहीं था लेकिन अभी एक नये मंदिर का निर्माण हो रहा है । बिलारी नगर गन्ना उत्पादकों का केन्द्र है यहां की अयोध्या शूगर मिल इस क्षेत्र की प्रसिद्ध चीनी मिल है जिसमें प्रतिदिन तीन पारियों में करीब दो हजार लेबर काम करती है। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि इसी मिल का स्वामित्व अभी दिसम्बर 86 के महिने में ही दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेठी ने प्राप्त किया है । जब से निर्मल जी सेठी जी ने अयोध्या शुगर मिल का स्वामित्व ग्रहण किया है बिलारी सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया है। उक्त नगरों के अतिरिक्त इस प्रदेश में मेरठ, बड़ौत, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, मैनपुरी, एटा, अलीगढ, खेकडा, मंडावत, महरौली, ललितपुर, मरुरानीपुर, बिजनौर, बाराबंकी, इलाहाबाद आदि नगरों में दिगम्बर जैन समाज की घनी बस्ती है । इसलिये इन सभी नगरों का सामाजिक इतिहास आगे द्वितीय खंड में दिया जावेगा। Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /609 उत्तर प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाज सेवी 23. 24. 25. 26. 27. 30. 31. 9. 10. 12. 13. 14. 15. 16. श्री अशोक कुमार छाबड़ा,मथुरा श्री स्व. आनन्द कुमार जैन एडवोकेट,रामपुर श्री उत्तमचन्द छाबड़ा, लखनऊ श्री उम्मेदमल पांड्या, देहली श्री कपूरचन्द कासलीवाल,रामपुर श्री कल्याण कुमार, रामपुर श्री कैलाशचन्द बड़जात्या,मुजफ्फरनगर श्री कैलाशचन्द बूंच, मथुरा श्री चन्दालाल जैन बाकलीवाल, आगरा श्री चिरंजीलाल छाबड़ा,मथुरा श्री जिनेश्वरदास बडजात्या, मथुरा श्री टीकमचन्द गंगवाल,लखनऊ श्री धन्नामल जी जैन, रेवाड़ी श्री निर्मल कुमार सेठी, लखनऊ श्री निरंजनदास बैनाडा, आगरा श्री पदमचन्द जैन, मेरठ श्री पदमचन्द बाकलीवाल, मेरठ श्री प्रकाशचन्द जैन,सासनी श्री प्रकाशचन्द छाबड़ा,मथुरा श्री पारसदास, रामपुर श्री पुखराज पांड्या,गोरखपुर श्री प्रवीणचन्द छाबड़ा, मथुरा 32. 33. 34. 35. ॐ. श्री प्रेमचन्द छाबड़ा, मथुरा श्री बाबूराम जैन, मैनपुरी श्री भागचन्द पाटनी,मुजफ्फरनगर श्री जयनारायण जैन,मेरठ श्री कस्तुर चन्द चान्दवाड़ श्री रतनलाल जैन पहाड़िया श्री रतनलाल राव श्री रामचन्द रारा श्री रमेश कुमार जैन एडवोकेट, रामपुर श्री राजीव कुमार पाटनी, मथुरा श्री रामस्वरूप जैन,खैरगढ श्री रिखबचन्द गोथा,कानपुर श्री निर्मल कुमार पाटनी. मथुरा श्री विमलचन्द जैन,रामपुर श्री विमलचन्द बैनाड़ा,आगरा श्री शिवचरनलाल जैन, मेनपुरी श्री शिखरचन्द जैन,देहली श्री सुमेरचन्द जैन पाटनी,लखनऊ श्री सुमेरचन्द बम्ब,रामपुर श्री सुमेरचन्द पांड्या, आगरा श्री सौभाग्यमल काला,लखनऊ श्री हुकमचन्द मोठ्या, आगरा 18. 19. 20. 21. 22. 43. 44. Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 610/ जैन समाज का वृहद इतिहास श्री अशोक कुमार छाबड़ा मथुरा के श्री अशोक कुमार छाबड़ा 32 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं । 23 जून,1959 ... को आपका जन्म हुआ। सन् 1981 में आपने देहली वि. विद्यालय से बी.ए. किया और फिर मनी लैडिंग का कार्य करने लगे । सन् 1983 में आपका विवाह श्रीमती कुसुमलता जैन से हुआ जो स्वयं भी एम.ए. है। आपकी दोनों पुत्रियाँ मेघा एवं नेहा पढ़ रही हैं। आपके पिताजी श्री सुमेरचंद जी छाबड़ा का65 वर्ष की आयु में सन् 1972 में स्वर्गवास हो गया । आपकी माता-श्रीमती कपरी देवी 70 वर्षीय है। श्रीमान समेरचंद जी दि.जैन सिद्ध । क्षेत्र चौरासी मथुरा के मंत्री,ऋषभब्रह्मचर्याश्रम के कोषाध्यक्ष,बीस पंथी दि.जैन मंदिर के अध्यक्ष रहे थे । छाबड़ा जी पूरे सामाजिक व्यक्ति थे । मथुरा के अपने युग के लोकप्रिय समाजसेवी थे। दशलक्षण पर्व में पूरे समाज का आतिथ्य करते थे। आपके गुण ही श्री अशोककुमार जी में देखे जा सकते हैं। पताः पचोरी गली, घीया मंडी,मथुरा स्व. बाबू आनन्द कुमार जैन, एडवोकेट आनन्द कुमार जैन, बम्ब गोत्रीय, खण्डेलवाल,दिगम्बर जैन हैं माता- श्रीमती छबीली देवी, पिता- श्री अशरफीलाल जैन वकील जन्म-4 सितम्बर 1909 ई.निधन-17 नवम्बर 1968 ई. विवाह- जनवरी 1931 ई. व्यवसाय- वकालत परिवार के अन्य सदस्य- श्रीमती प्रभावती (पत्नी), रमेशकुमार जैन एडवोकेट (पुत्र) श्रीमती माया देवी (पुत्री) प्रमोदकुमार जैन एडवोकेट (पुत्र) बाबू आनन्दकुमार जैन का जन्म रामपुर के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। 12 वर्ष की आयु में ही पिता की छत्रछाया से पंचित हो गये। स्टेट हाई स्कूल,रामपुर,एस.एम.कालेज-चन्दोसी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सन् 1930 में हाई कोर्ट,रामपुर की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त कर वकालत प्राराम्भ कर दी और रामपुर के वकीलों में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त कर लिया। फिरदोसमकी नवाब सर सयैद रजा अली खां यालिए रामपुर ने सन् 1929 में प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। सन् 1948 में त्यागपत्र देकर वकालत फिर शुरू कर दी। सन् 1948 में एम.एल.ए. (M.LA.) बन रामपुर स्टेट में रेवेन्यू मिनिस्टर बने । सन 1950 में फिर वकालत शुरू कर दी। अनेक बार बार-एसोसियेशन रामपुर के अध्यक्ष रहे। सन् 1961 में अन्तरिम जिला परिषद के अध्यक्ष हुए । ज्योतिष एवं संगीत में विशेष रुचि। जैन इन्टर कालेज,कन्या विद्यालय हाई स्कूल के अध्यक्ष । हिन्दी, उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान | हिन्दू मुस्लिम एकता के Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /611 अल्मवरदार/साहित्यिक गोष्ठियों में विशेष लगाब । अचानक 20 नवम्बर 1964 ई. को उर्दू के शायर बने, “सरूर इरफानी" उपनाम रखा। "बादये इरफाँ" के नाम से संग्रह का प्रकाशन । 17 नवम्बर 1968 ई. को अचानक कैंसर के मर्ज से स्वर्गवास । दिगम्बर जैन मन्दिर रामपुर में अष्ट धातु की भगवान महावीर की मूर्ति विराजमान की । बागों में विशेष रुचि, आनन्द बाटिका” आपके द्वारा निर्मित रामपुर की अध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक,संस्कृति का केन्द्र है। ऊंच-नीच,जाति-पाँति मत-मतान्तर और रुढ़िवादिता को संकीर्ण भावना को दूर कर परस्पर प्रेम का व्यवहार ही आनन्द वाटिका के निर्माता के हृदय की पुकार रही हैं। पता : जैन मन्दिर स्ट्रीट,रामपुर (उप्र) 244901 श्री उत्तमचन्द छाबड़ा जयपुर से सैन् 1960 में लखनऊ जाकर व्यवसाय करने वाले श्री उत्तमचन्द छाबड़ा के पिता स्व.श्री भंवरलाल जी छाबड़ा थे जिनका सन् 1959 में जयपुर में ही स्वर्गवास हुआ। आपकी माता (धर्मपत्नी श्री भंवरलाल जो) का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। छाबड़ा जी का जन्म 13 मई सन् 1945 को जयपुर में हुआ। सन् 1962 में हाईस्कूल किया तथा टीवी इलैक्ट्रिकल गुड्स की सआदतगंज में दुकान करने लगे । सन् 1968 में आपका विवाह श्रीमती लक्ष्मीदेवी से हुआ जिनसे आपको दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। दोनों पुत्र राजीव एवं अमित पढ़ रहे हैं। सामाजिक जीवन में रुचि रखते हैं । सरधना अस्पताल में आर्थिक सहयोग दिया है। पता: सआदतगंज,लखनऊ श्री उम्मेदपल पांड्या राष्ट्रीय स्तर के व्यक्तित्व के धनी श्री उम्मेदमल जी पांड्या का जन्म 3 नवम्बर सन् 1933 को कुचामन में हुआ। आपके पिताजी श्री छगनलाल जी पांडया का स्वर्गवास अभी वर्ष पूर्व हुआ जब वे 75 वर्ष के थे तथा माताजी श्रीमती भंवरीदेवी का स्वर्गवास 5-6 वर्ष पूर्व ही हुआ है। कुचामन में मिडिल कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप शांति रोडवेज में पार्टनर के रूप में ट्रांसपोर्ट का कार्य देखने लगे। 17 वर्ष की आयु में सन् 1950 में आपका विवाह कालूराम जी पहाडिया की सुपुत्री शर्बतीदेवी से संपन्न हुआ। आपकी एकमात्र पुत्री हेमलता अभी पढ़ रही है | श्रीमती शर्थती देवी धर्पपली उम्मेद मल जी पांड्या Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6121 जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष-श्री पांड्या जी का जीवन पूर्णतः सामाजिक एवं धार्मिक रहा है । जयपुर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आप सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हुये | कुचामन, पांचवा,किशनगढ़ एवं श्रीमहावीर जी में आयोजित पंचकल्याणक प्रविष्ठाओं के आप संयोजक रहे । आपके द्वारा अजमेरी मंदिर कुचामन में बाहबली की प्रतिमा विराजमान की गई तथा अन्य कितने ही मंदिरों में मूर्तियाँ विराजमान करने का यशस्वी कार्य आप करते रहते हैं। सामाजिक पांड्या जी समाज की अनेक संस्थाओं के पदाधिकारी हैं। 1. पहिले आप दि. जैन महासभा के मंत्री थे तथा वर्तमान में कार्याध्यक्ष हैं। 2- दि.जैन अ. क्षेत्र बीजोलिया के अध्यक्ष,दि.जैन अ.क्षेत्र लणवा के कार्यकारी अध्यक्ष तथा आदर्श महिला विद्यालय श्री महावीर जी के मंत्री हैं। 3. सन 1981 में भगवान बाहुबलि सहस्त्राब्दी महामस्तकाभिषेक के अवसर पर एक विशाल यात्रासंघ का संचालन किया | उसके पश्चात् इतना बड़ा यात्रा संघ नहीं निकल सका। 4- आपके एवं आपकी पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । यह नियम आचार्य धर्मसागर जी महाराज से लूणशं में लिये थे। 5- कट्टर मुनिभक्त, आर्ष मार्गी एवं समाज के लिये समर्पित व्यक्ति हैं। पता : प्लाट न.6, 1 सी कोर्ट रोड़ ,देहली 1.10054 श्री कपूरचन्द कासलीवाल रामपुर के श्री कपूरचन्द कासलीवाल को गणना नगर के विशिष्ट व्यक्तियों में है। आपका सार्वजनिक,सामाजिक एवं धार्मिक जीवन उल्लेखनीय है । आप रामपुर दि.जैन समाज के 14 वर्ष तक अध्यक्ष रहे । दि.जैन इन्टर कालेज के भी वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके हैं तथा इन्टर कालेज के भी विगत 24 वर्षों से अध्यक्ष हैं । अहिच्छेत्र पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थ क्षेत्र दि.जैन मंदिर रामनगर किला के विगत 30 वर्षों से कार्य समिति के सदस्य हैं। ES Com कपूरचन्द बैन श्रीमती शान्तीदेवी धर्मपत्नी कपूरचन्द डॉ. ज्ञानेन्द्र कुमार Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /613 कोयाधिशेष रचिले हैं। एक बार पूरे संघ को लेकर संघपति बनकर यात्रा कर चुके हैं। वैसे स्वयं ने चार बार पूरे तीर्थों की यात्रा की है । मुनिभक्त हैं । मुनियों के चातुर्मास कराने में रुचि लेते हैं । रामपुर में जब तीर्थ बंदना रथ आया था आपने उस समय अच्छा आर्थिक सहयोग दिया था । नियमित पूजा पाठ करते हैं तथा रात्रि को शास्त्र प्रवचन में भाग लेते हैं। वैद्य बांकेलाल स्मृति ट्रस्ट,श्रीमती माताजी ट्रस्ट,लक्ष्मीप्रसाद जैन एडवोकेट ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं । आपने अब तक 65 वसन्त देखे हैं। आपके पिताजी श्री सिपाही लाल जी का निधन : सन् 1973 में हुआ तथा माताजी सन् 1978 में चली गई । आपका प्रथम विवाह सन् 1940 में तथा दूसरा विवाह सन् 1979 में हुआ। आपकी धर्मपत्नी शांतिदेवी एम.ए. है। आपके तीन डॉ. (त्रीमती) उषा जैन धर्मपली ज्ञानेन्द्र पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हैं। सभी उच्च शिक्षित हैं। ज्येष्ठ पुत्र डा.ज्ञानेन्द्र कुमार 48 वर्षीय युवा डाक्टर हैं । आर्थोपेडिक्स के विशेषज्ञ हैं तथा उनकी पत्नी डा.ऊषा जैन एम.बी.बी.एस. डी.सी.एच. है। स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में रामपुर जिला हास्पिटल में कार्यरत है । दूसरा पुत्र श्री श्रेयान्सकुमार बी.ए. एल.एल.बी. एडवोकेट है । उनकी पत्नी उषा जैन एम.ए., बी.एड. हैं । तीसरा पुत्र अजित कुमार भी बी.ए., एलएलबी.वकोल हैं। पत्नी का नाम सरिता है जो एम.ए.,बी.एड. है। पुत्री कनकलता एम.ए.बी.एड. है । उनके पति महेन्द्रकुमार जी जैन एमए, एल.एलबी हैं । इफको में मैनेजर हैं। दूसरी पुत्री सुमनलता एम.ए.बी.एड. हैं। उनके पति श्री नरेन्द्रकुमार जैन इन्दौर में पी.पी.ओ. हैं । पता- मोहल्ला जैन मंदिर स्ट्रीट,रामपुर (उ प्रदेश) श्री कैलाशचन्द बङजात्या मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के निवासी श्री कैलाशचन्द बडजात्या का जन्म 2 जनवरी सन् 1932 को हुआ। आपके पिताश्री बैजनाथ की मृत्यु दिसम्बर 1973 में तथा माताजी श्रीमती बादामी देवी सितम्बर, 1983 में स्वर्गवासी हुई । आपने सन् 1952 में मुजफ्फरनगर कालेज से बी.ए. किया। इसके पूर्व 16 वर्ष की आयु में ही आपका विवाह लाडनूं के श्री नथमल जी गंगवाल को सुपुत्री लीलादेवी के साथ हुआ था। आपके एक पुत्र श्री सुनीलकुमार है जिनका विवाह जयपुर के श्री प्रकाशचन्द पाटनी की सुपुत्री कल्पना के साथ संपत्र हुआ है। आपके दो पुत्रियाँ हैं । रेणु का विवाह श्री शिवकुमार सुपुत्र श्री मिश्रीलाल जी काला कलकत्ता तथा दूसरी पुत्री रीता का विवाह जोधपुर के श्री नेमीचन्द जी पांड्या के सुपुत्र दिलीपकुमार के साथ सम्पत्र हुआ विशेष- आपकी फर्म माघोलाल चिरंजीलाल 105 वर्ष पुरानी फर्म है । आपके पूर्वज रूपगढ़ से भिवाड़ी और भिवाड़ी से मुजफ्फरनगर आकर व्यवसाय करने लगे थे। मुजफ्फरनगर की मंडी के मंदिर का निर्माण श्री माधोलाल जी द्वारा कराया गया और फिर पंचायत के सुपुर्द कर दिया फिर मंदिर में दोनों वेदियाँ बनवाई फिर अम्बाला में भी दो दिगम्बर जैन मंदिरों का निर्माण आपके पूर्वजों ने कराया था। स्व. फूलचन्द जी के सुपुत्र ताराचन्द जी का जन्म 2 जनवरी 1934 को हुआ। सन् 1954 में आपने बी.ए. किया । सन् 1957 में आपका विवाह बरहामपुर (पश्चिम बंगाल) के मोहनलाल जो काला की सुपुत्री गुणमाला के साथ हुआ।आपके सात Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 614 / जैन समाज का वृहद् इतिहास पुत्रियाँ एक पुत्र है। जिनमें पांच पुत्रियों, आशा, निशा, अर्चना, जौलू मीनू का विवाह हो चुका है। सीमा एवं नुपर अविवाहित है। पुत्र आलोक अभी अविवाहित है । पता- माधोलाल चिरंजीलाल 24 ए नई मंडी, मुजफ्फरनगर श्री कैलाशचन्द जैन भूच श्री कैलाशचन्द जी धार्मिक प्रकृति के युवक है। प्रतिदिन पूजा प्रचाल करते हैं। आपके पिताजी श्री नेमीचन्द जी एवं माताजी पांची बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। श्री कैलाशचन्द जी का सन् 1935 में जन्म हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपका सन् 1955 में श्रीमती सुशीला से विवाह हो गया। आपके 2 पुत्र एवं पांच पुत्रियाँ हैं। बड़े पुत्र श्री प्रवीणकुमार का सीमा से विवाह हो चुका है। आप एम.ए. हैं। छोटा पुत्र अरविन्द बी. ए. है। पांच पुत्रियों में से नीमा व सुदेश का विवाह हो चुका है । पत्ता: 1068 जैन गली, घीयामंडी, मथुरा श्री चन्दाबाबू जैन बाकलीवाल आगरा का दरीवालों के नाम से प्रसिद्ध बाकलीवाल परिवार एक प्राचीन सम्पन्न, सुसंस्कृत व धार्मिक परिवार के रूप में प्रसिद्ध है। इस परिवार का दरी व्यवसाय अति प्राचीन है तथा आगरा में फर्म मै. रामबक्स संतलाल के नाम से प्रसिद्ध प्रतिष्ठान की स्थापना श्री सन्तलाल जी जैन बाकलीवाल ने सन् 1859 में की थी, जो आज तक इसी नाम से जौहरी बाजार, आगरा में स्थापित है। बाकलीवाल परिवार के स्व. श्री सन्तलाल जी के सुपुत्र स्व. श्री श्यामलाल जी, स्व. श्री सुन्दरलाल जी, स्व. श्री कन्हैयालाल जी ने अपनी माता श्रीमती सदोबाई की आज्ञा से हरी पर्वत, आगरा में श्री शांतिनाथ दि. जैन मंदिर का निर्माण कर मूर्ति प्रतिष्ठा स्थानीय पंचकल्याणक सहित संवत् 1989 में तथा वेदी प्रतिष्ठा वि.स. 1991 (वीर सं. 2460) में संपन्न की। पहिले मंदिर जी के प्रांगण में जैन बोर्डिंग हाउस था किन्तु बाद में एम.डी. जैन हाई स्कूल जो अब इन्टर कालेज है यहाँ आने पर समाज हित को ध्यान में रखते हुये इस परिवार ने मंदिर जी का प्रबन्ध दिगम्बर जैन शिक्षा समिति, आगरा को दे दिया। मंदिर जी में भगवान शांतिनाथ जी की मूर्ति 3 फुट ऊंची बहुत भव्य, आकर्षक व चमत्कार युक्त है । धर्मपत्नी श्री चन्दा बाबू जैन इसी बाकलीवाल परिवार के स्व. श्री सुन्दरलाल जो जैन ने न्यू राजामंडी स्टेशन के निकट देहली गेट पर सन् 1962 में एक अति सुन्दर व सुविधाजनक भव्य धर्मशाला का निर्माण कराया है, जो श्री सुन्दरलाल जैन धर्मशाला के नाम से विख्यात है I Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /615 समस्त बाकलीवाल परिवार का तार की गली,मोती-कटरा में श्री पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर के कार्यों एवं प्रबन्ध में अत्यन्त योगदान रहा है व इस परिवार के स्व.श्री श्यामलाल जी ने सं. 2031 में वहाँ एक स्वाध्याय भवन का निर्माण कराया । परिवार के श्री चंदाबाबू जैन यहाँ विगत कई वर्षों से निरन्तर मंत्री चुने जाकर प्रबन्ध व्यवस्था में पूर्ण योगदान करते हैं। ___ इसी परिवार के स्व.श्री हीरालाल जैन सन 1965-67 के लगभग ओनरेरी मजिस्ट्रेट एवम् 1965-70 के लगभग नगर महापालिका के सदस्य रहे । परिवार के श्री राजाबाबू जैन श्री सुन्दरलाल जैन धर्मशाला के ट्रस्टी हैं व आशुकवि हैं इनकी कवितायें समय-समय पर जैन पत्रों में प्रकाशित होती है। इसी बाकलीवाल परिवार के श्री चन्दाबाबू जैन बी काम. विशारद,सुपुत्र श्री स्व. कन्हैयालाल जी, वेस्टर्न रेलने के बड़े ठेकेदार हैं। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला देवी जैन पुत्र स्व. श्री कमलचन्द्रजी गोधा बैलर्स, नई सड़क देहली, बहुत धार्मिक व सुशील स्वभाव की है । श्री चन्दाबाबू जैन के दो पुत्री व एक पुत्र है । बड़ी पुत्री सौ.मीना जैन का विवाह लखनऊ में ऋषभायण महाकाव्य के प्रकाशक श्री सौभाग्य मल जैन काला के सुपुत्र श्री जागेशकुमार काला से हुआ है . द्वितीय पुत्री सौ. मृदुला जैन का विवाह सीमेन्ट के होलसेल विक्रेता श्री प्रकाशचन्द जी पाटनी (पै. सुआलाल प्रकाशचन्द,शिन्दे को छावनी, ग्वालियर) के सुपुत्र श्री अनिल जैन से हुआ है। श्री चन्दाबान्बू धर्मपरायण,सरल व सेवाभाव से ओतप्रोत हैं ,इसी कारण समाज ने इन पर समाज सेवा का पर्याप्त दायित्व सौंपा है। आप (1) श्री एम डी.जैन इन्टर कालेज,आगरा (2) श्री सुन्दरलाल जैन धर्मशाला ट्रस्ट, आगरा तथा (3) श्री महावीर दि. जैन ट्रस्ट, कमलानगर, आगरा (जिसके अन्तर्गत कमलानगर में एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसमें श्री चन्दाबाबू जैन का विशेष योगदान है ) के अर्जियन ट्रस्टी हैं । श्री शातिर जमदिर,हरोपति का रा व श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पंचायती खंडेलवाल मंदिर तार की गली के गत कई वर्षों से मंत्री चुने जाकर दोनों मंदिरों का कार्य करते हैं । वर्तमान में आगरा खण्डेलवाल दि.जैन समिति, आगरा के उपाध्यक्ष हैं,श्री भारतवर्षीय दि. जैन महासभा उत्तरांचल आगरा संभाग के अर्थ मंत्री हैं तथा आगरा दि. जैन परिषद की कार्यकारिणी के स्थायी सदस्य हैं। श्री एम. डी.जैन इन्टर कालेज, आगरा की कार्यकारिणी समिति के विगत अनेक वर्षों से सदस्य हैं तथा श्री शौरीपुर बटेश्वर दि.जैन सिद्ध क्षेत्र कमेटी,बटेश्वर जिला आगरा) श्री जैन साहित्य शोध संस्थान, हरी पर्वत, आगरा की प्रबंध समिति, भारतवर्षीय दि. जैन महासभा की केन्द्रीय प्रबन्धकारिणी समिति, महावीर दि. जैन बालिका विद्यालय नसियाजी, आगरा की प्रबन्ध समिति आदि के वर्तमान में सदस्य हैं । जैन मिलन, आगरा की कार्यकारिणी समिति तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन समिति, आगरा आदि के भी सदस्य रहे हैं। श्री चन्दाबाबू जैन श्री बैन कुमार सभा, वाचनालय व पुस्तकालय मोतीकटरा के कितने ही वर्षों तक अर्थ मंत्री के रूप में सेवा करते रहे । श्री जैन कुमार सभा,आगरा, अनेको विशिष्ट,जैन समाज के नेताओं जैसे स्व.श्री महेन्द्र जी,स्व.श्री कपूरचंद जी,(महावीर प्रेस) आदि की जननी संस्था रही है। पता:- मधुवन ए-228, कमला नगर,आगरा श्री चिरंजीलाल छाबड़ा मथुरा जैन समाज के सर्वाधिक वयोवृद्ध समाजसेवी श्री चिरंजीलाल जी छाबड़ा विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं। आप मथुरा काँग्रेस कमेटी के तीन वर्ष तक अध्यक्ष रहे । जम्बू Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 616/ जैन समाज का वृहद् इतिहास स्वामी सिद्ध क्षेत्र कमेटी के कार्यकारिणी सदस्य हैं तथा भा. दि.जैन संघ के कोषाध्यक्ष है । मथुरा में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महासमिति के संयोजन रहे थे। आपका जन्म 6 अप्रैल,1906 को हुआ। यू.पो.बोर्ड से इन्टर पास किया। सन् 1980 में आपका विवाह गुलाबबाई से हुआ,जिनसे आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपके पुत्र प्रकाशचन्द.प्रेमचन्द एवं प्रवीणचंद तीनों का ही हमने इसमें परिचय दिया है। पुत्रियों में इंदिरा का विवाह जयपुर के विजयकुमार जी ठोलिया, शेष दोनों भाईयों का इन्दौर के टोंग्या परिवार में तथा किरण का मुरादाबाद के प्रतिष्ठित परिवार में विवाह हुआ है । हम छाबड़ा जी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन को कामना करते हैं। पता- 1169, माणिक चौक, मथुरा श्री जिनेश्वरदास बडजात्या मथुरा के श्री जिनेश्वरदास बडजात्या की सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवायें रही हैं। मथुरा में जब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन हुआ तो आपको समिति का महामंत्री बनाया गया । आप कट्टर मुनिभक्त हैं तथा आहार आदि से उनकी सेवा करते रहते हैं। आपका जन्म 4 जुलाई सन् 1915 को हुआ । सन् 1935 में आगरा से बी.ए.एलएल.बी.किया और फिर वकालात करने लगे। मध्य रेलवे एवं पश्चिम रेल्वे के आप एडवोकेट रहे । सन् 1933 में आपका विवाह श्रीमती चमेली बाई से हुआ। आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री हुई । पुत्री आशा का 22 वर्ष में ही निधन हो गया। आपके बड़े पुत्र रूपचन्द कनाडा में इंजीनियर हैं। आपको धर्मपत्नी का नाम ससेज है । दूसरा पुत्र श्री सुशील कुमार एमडी. है । पत्नी का नाम नीरू है जो स्वयं एम.ए. है। आपके पिताजी श्री प्यारेलाल जी बडजात्या का सन् 1954 में स्वर्गवास हुआ । तथा माताजी रतनदेवी 78 वर्ष की आयु में स्वर्गवासी बनी। श्री जिनेश्वरदास जी बड़जात्या श्री रूपचन्द बड़जात्या डॉ. सुशीलकुमार बड़जात्या पता-धीया मंडी,जैन गली,मथुरा। Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री टीकमचन्द जैन गंगवाल लखनऊ जैन समाज के प्रतिष्ठित घरानों में श्री टीकमचन्द जैन गंगवाल का घराना है। आपके पिता स्व. जौहरीलाल जी गंगवाल एवं दादाजी स्व. सुगनचन्द जी अत्यधिक धार्मिक जीवन जीने वाले थे। प्रतिदिन 5 घन्टे तक खड़े रहकर पूजा करना, सामायिक करना एवं फिर शाम को शास्त्र प्रवचन करना उनका स्वभाव बन गया था। आपके दादाजी ने ब्रह्मचारी जीवन बिताया। स्व. श्री. जौहरी बाजी जैन उत्तर प्रदेश का जैन समाज /617 आपके पिताजी स्व. जौहरीलाल जी बाहुबली स्वामी एवं सिद्ध भगवान की तथा आप स्वयं ने हस्तिनापुर जम्बूद्वीप में प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया था। आप कितन ही वर्षों तक दि. जैन समाज सहादतगंज के अध्यक्ष एवं मन्दिर के व्यवस्थापक रहे। वे लखनऊ के गण्यमान्य व्यक्ति ने । श्री धन्नामल जी जैन आप समाज सेवा में आगे रहने वाले श्रेष्ठी हैं। दि. जैन महासभा के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मंदिर समाज सआदतगंज लखनऊ के अध्यक्ष I आपका जन्म आसोज बुदी 14 संवत् 1975 के शुभ मुहूर्त में हुआ तथा विवाह संवत् 1994 में श्रीमती चम्पादेवी के साथ नीमाज में हुआ। प्रारंभ से ही आपने किराना का व्यापार किया है। आप चार पुत्रों- सुमेरचन्द, बाबूलाल, श्रीकृष्ण एवं वीरेन्द्रकुमार से सुशोभित हैं। पता- 1. चूडीवाली गली, गंगवाल भवन, सआदतगंज, लखनऊ 2260003 2- बाबूलाल श्रीकृष्ण, सुभाष मार्ग, लखनऊ- 3 रेवाडी (हरियाणा) के श्री धन्नापल जी जैन हरियाणा प्रदेश की जैन समाज के प्रमुख समाजसेवी हैं। प्रदेश स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर की सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। जब रेवाड़ी में सन् 1972 में पंचकल्याणक हुआ तो प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के आप ही अध्यश्व मनोनीत किये गये थे। दि. जैन महासमिति एवं अ. भारतीय दि. जैन परिषद की केन्द्रीय समिति के सदस्य हैं तथा दि. जैन महासमिति हरियाणा प्रदेश के कार्याध्यक्ष है। व्यापार मंडल रेवाड़ी एवं जैन एजूकेशन बोर्ड रेवाड़ी के अध्यक्ष रह चुके हैं। स्वभाव से उदार एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। आपका जन्म दिनांक 20-11-1922 को रेवाड़ी में हुआ। आपके पिताजी श्री चुन्नीलाल जी एवं माताजी सरस्वती देवी जी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। आपने इन्टर (कामर्स) पास किया और व्यवसाय की ओर मुड़ गये। वर्तमान में आप डाइरेक्टर एवं मैनेजर अग्रवाल मैटल वर्क्स लि. रेवाड़ी हैं। जनवरी सन् 1941 में आपका विवाह श्रीमती शीलादेवी जैन से हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री देवेन्द्रकुमार जैन (दिJ4-11-48) श्री अभयकुमार जैन Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 618/ जैन समाज का वृहद् इतिरास (30-8-1953) एवं श्री सुभाषचन्द (18-9-56) तीनों ही पुत्र आपके साथ कार्य कर रहे हैं। उच्च शिक्षित हैं तथा सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। पता- अग्रवाल मैटल वर्क्स लि. रेवाड़ी,(हरियाणा) श्री निर्मलकुमार सेठी भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के ख्याति प्राप्त अध्यक्ष श्री निर्मलकुमार जी सेठी जैन समाज के सर्वोपरि नेता हैं। जब से आपने महासभा की बागडोर अपने हाथ में संभाली है पूरे भारत का सघन दौरा करके समाज में जो अलख जगाया है वही आपकी लोकप्रियता की एक बड़ी भारी उपलब्धि है। दिगम्बर जैन आचार्यों एवं साधु संतों के आप कहर भक्त हैं और उनके प्रति किंचित भी अवमानना सहन नहीं करना आपका विशेष गुण है । जातीय सीमाओं के उल्लंघन के आप घोर विरोधी हैं और अपनी इस विचारधारा का स्थान-स्थान पर प्रबल समर्थन करते रहते हैं। पूरे समाज में सामंजस्य बना रहे तथा वे धार्मिक कार्यों एवं अनुष्ठानों में एक होकर उनका क्रियान्वयन करते रहें यही आपकी सदैव अभिलापा रहती हैं । देश के कोने-कोने में होने वाले पंचकल्याणकों, इन्द्रध्वज विधानों एवं अन्य समारोहों में समाज आपकी उपस्थिति अनिवार्य मानता है और आप भी ऐसे समर्पित श्रेष्ठी हैं कि अधिकांश आयोजनों में पहुंच कर आयोजकों का उत्साह बढाते रहते हैं। सेटी जी बहुत ही कुशल वक्ता हैं। अपनी बात को समझाने में और श्रोताओं के गले उतारने में आप सिद्धहस्त हैं । बोसो बार आपको सुनने के बाद भी सभी श्रोतागण आपको सुने बिना सभा में से उठना नहीं चाहते । आप धारा प्रवाह बोलते हैं और घंटों बोलने में आप खूब माहिर हैं। आचार्यों एवं साधओं का आपको परा आशीर्वाद मिलता रहता है और यह आशीर्वाद ही आपको कठिनाइयों के मध्य आगे बढ़ने में सम्बल प्रदान करता है । आप शुद्ध • खानपान का नियम पूरी तरह पालन करते हैं तथा कहीं मुनि अथवा आचार्य मिल जावे तो फिर | बिना आहार दिये आप वहां से जाना नहीं चाहते। आपका जन्म राजस्थान के नागौर जिले में स्थित डेह ग्राम में हुआ । आपके पिताजी श्रीमती सन्तरा टेवी धर्मपत्नी स्व. श्री हरकचंद जी सेठी अपने जमाने के अच्छे समाजसेवी थे । तिनमुकिया (आसाम) में श्री निर्मल कुपार सेता आपका मुख्य कारोबार था । सेठी जी ने कलकत्ता रहकर मेज्यूएशन किया तथा फिर तिनसुकिया में ही अपने पिताजी के साथ व्यबसाय आरम्भ किया। वहीं आपका विवाह श्रीमती संतरादेवी से हो गया । इनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। पुत्री का विवाह ड्रीमापुर के श्री चैनरूप जी बाकलीवाल के सुपुत्र से हो गया है। पुत्र का विवाह आगरा के श्री निरंजनलाल जी बैनाडा के भाई की पुत्री से हुआ है। आपकी धर्मपत्नी बहुत ही सुशील एवं अतिथि सेवा में निपुण हैं | श्री सेठी जी ने सैकड़ों पंचकल्याणकों में भाग लिया होगा । उन्होंने स्वयं ने बीसों इन्द्रध्वज विधान,शांति विधान,चौसठ ऋद्धि विधान, कल्पद्रुम विधान कराये हैं और सौधर्म इन्द्र बनकर अपने जीवन को सार्थक किया है। सम्मेदशिखर जी, बिलारी Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /619 एवं भिण्डर में तो उनके विधानों में स्त्रयं लेखक सम्मिलित हो चुका है। मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराते रहते हैं और जिस किसी समारोह में जाते हैं बिना आर्थिक सहयोग दिये आते नहीं हैं । साहित्य प्रकाशन भी आप कराते रहते हैं तथा साहित्य प्रकाशन संस्थाओं को साहित्य प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग भी देते रहते हैं। श्री महावीर मंथ अकादमी जयपुर के संरक्षक है। विद्वानों के प्रति आपका सहज वात्सल्य रहता है। विदेशों में कितनी हो बार जा चुके हैं। लंदन में आयोजित पंचकल्याणक में अपने साथियों के साथ जा चुके हैं तथा यूरोप के अन्य देशों में जाकर वहां पर जैनधर्म दर्शन पर कार्य करने वाले विद्वानों से मिल चुके हैं। सेठी जी जैन समाज के लिये कल्पतरु हैं। उनका समस्त जीवन समाज पर समर्पित रहता है तथा समाज में धर्म की जागृति कैसे होती रहे इसी का चिन्तन चलता रहता है। समाज को उनसे बहुत अपेक्षायें हैं । सेठी जी का बहुत बड़ा परिवार हैं उनके तीन छोटे भाई हैं श्री हुलाशचंद जी तिनसुकिया एवं महावीरकुमार जी सिल्चर में कार्य देखते हैं। उनकी माताजी कट्टर मुनिभक्त हैं तथा उन्हीं के संस्कार आपको प्राप्त हुए हैं। पता- नन्दीश्वर फ्लोर मिल, ऐश बाग, लखनऊ श्री निरंजनलाल बैनाडा आगरा के वर्तमान जैन समाज में श्री निरंजनलाल जी बैनाडा का विशिष्ट स्थान है। उनके उदार स्वभाव एवं धार्मिक कट्टरता के कारण वे सामाजिक सेवा के पर्याय बन गये हैं। विगत 10-15 वर्षों से उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार, साहित्य प्रकाशन, मुनि भक्ति एवं संस्थाओं के संचालन में जिस तरह उदार भाव से सहयोग दिया है उसमें वे सर्वत्र लोकप्रिय बन गये हैं। अब तक मोजाबाद, पापोदा, के जीर्णोद्धार, कुण्डलपुर में सड़क निर्माण, नैनागिर में पुल निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया है । बद्रीनाथ के मंदिर में चरण स्थापना में विशेष योगदान दिया है। स्वाध्याय प्रेमी हैं। श्रीमती शान्ति देवी धर्मपी निरंजन लाल बैनाड़ा आपका जन्म भादवा सुदी 13 संवत् 1995 को हुआ । आप केवल सामान्य शिक्षा ही प्राप्त कर सके। सन् 1956 में आपका विवाह ग्वालियर की श्रीमती शांतिदेवो के साथ हो गया। जिनसे आप एक पुत्र एवं चार पुत्रियों से अलंकृत हुये । आपका पुत्र नीरजकुमार बीकॉम करने के पश्चात सी.ए. कर रहा है। चार पुत्रियों में बीना रानी, मीना एवं रोमी का विवाह हो चुका है। नीता अभी पढ़ रही है । आपने कुरबई (बुन्देलखंड) के मंदिर में चन्द्रभु स्वामी की पद्मासन मूर्ति विराजमान की । कमला नगर के मंदिर के लिये आपने वेदी का निर्माण कराकर उसमें मूर्ति विराजमान करने की स्वीकृति दे दी है। सन् 1980 में आप अमेरिका, बैंकाक आदि का भ्रमण कर चुके हैं। श्री रतनलाल जी आपके छोटे भाई हैं। 49 वर्षीय युवा समाजसेवी हैं। इन्टर तक शिक्षा प्राप्त की है। सन् 1958 में आपका विवाह विमला देवी Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 620/ जैन समाज का वृहद् इतिहास हुआ। आपकी भी वे ही प्रवृत्तियों हैं जो आपके बड़े भाई निरंजनलाल जी की हैं। स्वाध्याय प्रेमी हैं गोम्मटसार का विशेष अध्ययन किया है। आपके तीन पुत्र हैं मदनलाल, पत्रालाल, हीरालाल । पनालाल एवं हीरालाल दोनों बी ई. हैं । पता- 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, हरी पर्वत, आगरा श्री पदमचन्द जैन आगरा के एक मध्यम परिवार में जन्मे श्री पदमचन्द जैन स्व. फूलचन्द जी गोधा के चार पुत्रों में से कनिष्ट पुत्र हैं जो अब बैंक में सर्विस के कारण मेरठ में रह रहे हैं। आप भारतीय स्टेट बैक में शाखा प्रबंधक, आदि पदों पर रहे तथा आजकल प्रशासनिक कार्यालय में कार्यरत हैं। जून 1945 में जन्मे श्री पदम जी स्नातक हैं तथा साहित्य (काव्य) में काफी रुचि लेते हैं। आपको इस क्षेत्र में तथा समाजसेवा के क्षेत्र में कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। नये-नये कार्यक्रमों को समाज में देना उनकी विशेष उपलब्धि है। आप गाने के साथ-साथ कार्यक्रम संचालन के विशेषज्ञ माने जाते हैं। आप कई सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से काफी नजदीक से जुड़े हुये हैं। अधिकारी वर्ग में भी आपकी अच्छी पहुंच रहती है। आपके परिवार में आपकी पत्नी श्रीमती सितारा के दो पुत्र श्री पुनीत जैन 19 वर्ष, इंजीनियरिंग द्वितीय वर्ष एवं श्री सुनीत जैन 15 वर्ष अध्ययनरत हैं। आपका पश्चिमी उप्र में समाज में अच्छा प्रभाव है। श्री पदमचन्द बाकलीवाल सीतापुर के श्री पदमचंद बाकलीवाल समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। श्री दि. जैन मन्दिर बिस्वा के आप वर्षों तक मंत्री रह चुके हैं। आपका जन्म पौष बुदी 4 संवत् 1989 में हुआ। सामान्य शिक्षा से ही संतोष करके आप व्यापार की ओर मुड़ गये और सीमेन्ट की ठेकेदारी का कार्य करने लगे। सन् 1952 में आपका विवाह श्रीमती भोगीबाई से हो गया जो श्री सुमेरचंद जी पाटनी लखनऊ वालों की बहिन है। आपके पिताजी श्री लक्ष्मीनारायण जी का सन् 1980 में स्वर्गवास हो गया। उस समय वे 89 वर्ष के थे। माताजी का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। आपके पिताजी सन् 1938-39 में लखनऊ में इन्द्र के पद से अलंकृत हुये थे तथा दि. जैन मंदिर बिस्वां में आप शांतिनाथ, महाबीर एवं सिद्ध भगवान को प्रतिमायें स्थापित कर चुके हैं। बाकलीवाल जी आतिथ्य प्रेमी हैं। पता:- पदमचंद जैन एंड कम्पनी, विजयलक्ष्मी नगर, सीतापुर (उ. प्रदेश) श्री प्रकाशचन्द जैन सासनी के मैसर्स खण्डेलवाल ग्लास वर्क्स के पार्टनर श्री प्रकाशचन्द जी जैन बहुत प्रसिद्ध समाजसेवी है। आपका महासभा एवं महासमिति दोनों से निकट का संपर्क है। आपके चारों पुत्र श्री योगिन्द्रकुमार जैन, श्री विजयकुमार जैन एवं श्री अजयकुमार, श्री ज्ञानचन्द जैन चारों ही ग्लास वर्क्स के पार्टनर हैं। अपने जिले के ही नहीं उत्तर प्रदेश स्तर के समाज सेवी हैं। पता:- मैं खण्डेलवाल ग्लास वर्क्स सासनी (अलीगढ़) Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्रकाशचन्द छाबड़ा मथुरा निवासी वयोवृद्ध श्री चिरंजीलाल जी छाबड़ा के आप सुपुत्र हैं। आपकी माताजी गुलाब बाई जी 73 वर्ष को महिला हैं जिनके उदर से आपका 12 सितम्बर, 1932 को जन्म हुआ । पढ़ने लिखने में आप सदैव आगे रहे। आपने बी.कॉम., एल.एल.बी., एफ सी. ए. जैसी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की । आपका विवाह 16 फरवरी 1949 को श्रीमती शकुन्तला के साथ संपन्न हुआ। आप दोनों को तीन पुत्र एवं एक पुत्री के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सबसे बड़े कुमार हो चुका है: नीली का नाम है जो 2 पुत्र एवं एक पुत्री की माता है । पुत्री अर्चना का विवाह हो चुका है। दूसरे एवं तीसरे पुत्र मनोज एवं सन्दीप आई. सी. डब्ल्यू एवं सी.ए. कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश का जैन समाज /621 आपने अपना जीवन रोहतास इन्ड डालमिया नगर में चीफ एकाउन्टेंट रह कर बिताया । वर्तमान में आप चार्टर्ड एकाउटेन्ट के पद पर अपना स्वतंत्र कार्य कर रहे हैं। पता - 1 प्रेमचन्द एण्ड ब्रदर्स, वृन्दावन दरवाजा, मथुरा 2. 1169 माणिक चौक, मथुरा : श्री पारसदास जैन क्षेत्रपाल क्षेत्रपाल गोत्रीय श्री पारसदास जैन रामपुर नगर के विशिष्ट समाजसेवी हैं। सन् 1920 में आपका जन्म हुआ। रामपुर से ही आपने सन् 1944 में हाईस्कूल किया और फिर स्टेशनरी के व्यवसाय की ओर मुड़ गये। आपके पिताजी तो आपको तीन वर्ष का ही छोड़कर स्वर्गवासी में आपका बन गये थे लेकिन माताजी का स्वर्गवास अभी सन् 1988 में हुआ। सन् 1946 विवाह श्रीमती शांतिदेवी के साथ हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। ज्येष्ठ पुत्र दिनेश बी. ए. है । पत्नी का नाम अनिता जैन है। दूसरा पुत्र अखिलेश जैन बी. कॉम. है। उनकी पत्नी सुषमा जैन भी बी. ए. है। तीसरा पुत्र योगेश जैन एवं उनकी धर्मपत्नी मीना जैन दोनों ही बी.ए. हैं। इसी तरह चतुर्थ पुत्र सर्वेश जैन एवं उनकी पत्नी सीमा जैन भी बी.ए. हैं। सभी पुत्र व्यापार में आपके साथ कार्यरत हैं। बड़ी पुत्री बी.ए. हैं तथा निभा एम.एस.सी. है । दोनों का विवाह हो चुका है। श्री पारसदास जी दि. जैन इन्टरकालेज के 15 वर्ष तक मंत्री एवं तीन वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। मुनिभक्त हैं। आचार्य विमलसागर जी के भक्त हैं। मुनियों के कट्टर भक्त हैं। कन्या इन्टर कॉलेज के 12 वर्ष तक मैनेजर रह चुके हैं। पूरा परिवार धार्मिक है । पता :- खण्डेलवाल बुक डिपो, मिस्टन गंज, रामपुर (यू.पी.) ! श्री पुखराज पांड्या डेर (राजस्थान) में जन्में श्री पुखराज पांड्या ने अजमेर बोर्ड से मैट्रिक पास किया। आपके पिता श्री सुगनचंद जी एवं माताजी श्रीमती मनोहर देवी का आपको खूब प्यार एवं आशीर्वाद मिला। संवत् 2013 में आपका विवाह अनोपदेवी से सम्पन्न Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6221 जैन समाज का वृहद् इतिहास हुआ। श्रीमती अनोपदेवी श्री निर्मलकुमार जी सेठी अध्यक्ष दि. जैन महासभा की बहिन है। आपके एक पुत्र मनोज साइन्स प्रेज्यूएट हैं तथा पुत्री बबिताने मी बार किया है। विशेष : -आपके द्वारा हस्तिनापुर में चार प्रतिमायें विराजमान की गई है। आप दि.जैन पावा नगर निर्वाण क्षेत्र समिति गोरखपुर के कोषाध्यक्ष हैं । गोरखपुर मिल मंदिर में आपके द्वारा मूर्ति विराजमान की गई है जहाँ आए प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं । आप सेठी फ्लोर मिल चिरगांवा गोरखपुर के डाइरेक्टर हैं। पता : - सेठी फ्लोर मिल,चिरगांवा,बसरतपुर गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) श्री प्रवीणचन्द छाबड़ा मथुरा के छाबड़ा परिवार में आपका जन्म सन् 1946 को हुआ | आपने फिजिक्स में एम.एस.सी.परीक्षा पास की । सन् 1966 में आपका विवाह श्रीमती लक्ष्मीदेवी से हुआ जिससे एक पुत्री एवं दो पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुत्री प्रेरणा का विवाह हो चुका है। दोनों मान्टू एवं मीनू पढ़ रहे हैं। आप उत्साही समाजसेवी हैं। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल जी छाबड़ा मथुरा के सब से वयोवृर एवं उत्साही सामाजिक व्यक्ति है। पता :- 1167, माणिक चौक, घोया मंडी,मथुरा । श्री प्रेमचन्द छाबड़ा श्री छाबड़ा जी मथुरा जैन समाज के वयोवृद्ध समाजसेवी श्री चिरंजीलाल जी छाबड़ा के सुपुत्र हैं। आपका जन्म 17.4-1935 को हुआ। यूपी.बोर्ड से हाई स्कूल किया और डोरी निवार के थोक व्यवसाय से जुड़ गये । सन् 1953 में आपका बिवाह श्रीमती शकुन्तला के साथ हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । ज्येष्ठ पुत्र उपेन्द्रकुमार है जिसका विवाह श्रीमती नीरू के साथ हुआ है । वह एम.ए. है । द्वितीय पुत्र प्रदीपकुमार एम.कॉम. है । पत्नी का नाम सुलेखा है जो वी.ए. है। तृतीय पुत्र प्रदीपकुमार अध्ययन कर रहा है । आपको एक मात्र पुत्री दीपिका पढ़ रही है। पता :- प्रेमचन्द एण्ड ब्रदर्स, वृन्दावन दरवाजा.मथुरा 2-1169, माणिक चौक, मथुरा। श्री बाबूराम जैन मैनपुरी स्वतन्त्रता सेनानी श्री बाबूराम जैन ने स्वदेशी आन्दोलन एवं भारत छोड़ो आन्दोलन में दो बार जेल यात्रा की । आपका जन्म सन् 1910 में हुआ। सामान्य शिक्षा के पश्चात् पुस्तक विक्रेता का कार्य करने लगे और मैनपुरी जिले के प्रथम स्तर के पुस्तक व्यवसायी हो गये । सन 1941 में आपका विवाह श्रीमती शशि प्रभा से हो गया। आपको तीन पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रभात कुमार राजकीय चिकित्सक हैं । आपको स्व.श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त हुआ। आप प्रादेशिक कांग्रेस सेवादल के कर्मठ सदस्य रहे। Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /623 आपने सिद्धचक्र का विधान कराया। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में खूब उत्साह से भाग लेते थे 163 वर्ष की आयु में सन् 1983 में आपका होगा। श्री भागचन्द जैन पाटनी श्री पाटनी जी उत्तर प्रदेश के व्यापारिक एवं सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण व्यक्ति माने जाते हैं । आपका जन्म 11 अक्टूबर सन् 1926 को मेरठ में हुआ। आपके पिताजी श्री लक्ष्मीनारायण जी एवं माताजी केशरीबाई जी का स्वर्गवास 50-52 वर्ष पूर्व ही हो गया था जब आप मात्र 13-14 वर्ष के बालक थे । सन् 1946 में आपने मेरठ विश्वविद्यालय से बी.ए. किया। इससे पूर्व सन् 1944 में ही फाल्गुण सुदी पूर्णिमा को श्रीमती बसन्तीदेवी जी के साथ विवाह संपन्न हो गया था। बसंतीदेवी जी श्री लालचन्द जी ठोलिया हिंगण्यावासी की सुपुत्री है । । श्रीमती बसन्तीदेवी धर्मपत्नी भागचन्द्रजी पाटनी आपके दो पुत्र हैं। श्री विनोदकुमार ज्येष्ठ एवं श्री मनोजकुमार कनिष्ठ पुत्र हैं। श्री विनोदकुमार की पत्नी सरोजबाई है जो रांची के ताराचन्द जी पांड्या की पुत्री हैं। आप के एक पुत्र एवं एक पुत्री हैं । श्री मनोजकुमार का विवाह शिलांग के श्री सरोजकुमार जी पांड्या की पुत्री आशादेवी के साथ संपन्न हुआ | आपके एक पुत्र है। तीनों पुत्रियाँ शकुन्तला, अलका एवं अचला सभी उच्च शिश्चित हैं तथा विवाहित हैं । आपकी पत्नी का पूर्ण धार्मिक जीवन है । अभक्ष पदार्थों का त्याग एवं रात्रि को पानी तक नहीं पीने का नियम है। > विशेष आपने तिजारा अतिशय क्षेत्र के मंदिर के गेट का निर्माण करवाया । आप दि. जैन महासभा, महासमिति, तीर्थरक्षा समिति के सदस्य हैं। वैदिक पुत्री गर्ल्स इन्टर कॉलेज न्यू मंडी मुजफ्फरनगर, वेस्टर्न यू.पी. चैम्बर आफ कामर्स, आल इन्डिया जैन मिलन हास्पिटल सरधना के कार्यकारिणी सदस्य हैं। जैन कला इन्टर कालेज नई मंडी मुजफ्फरनगर के विगत 30 वर्षों से मंत्री हैं। भारतवर्षीय दि. जैन युवा परिषद् के संरक्षक हैं। राजनैतिक काँग्रेस के सक्रिय सदस्य हैं। सन् 1973 में काँप्रेस पी.सी.सी. के सदस्य चुने गये। सन् 1974 में मुजफ्फरनगर काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गये तथा श्री विजयपाल सिंह एम.पी. के चुनाव में महत्वपूर्ण पार्ट अदा किया। इसी तरह सन् 1984 में श्रीमती आसशीला के विधानसभा के चुनाव में सक्रिय योगदान दिया और उसे विजय दिलाई। व्यापारिक गुड़, खांड एवं अनाज के व्यापारियों में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। उप्र गुड खंडसारी मर्चेन्ट्स एसो., उ.प्र. उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल जिला मुजफ्फरनगर, इंडोसोवियत सांस्कृतिक सोसायटी जि. मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष हैं। Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 624/ जैन समाज का वृहद इतिहास विदेश यात्रा - सन् 1980-91 में आपने पूर्वी यूरोप, अमेरिका आदि की 6 महिने तक विदेश यात्रा की। आप स्वभाव से शान्त किन्तु सदैव क्रियाशील रहते हैं तथा सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि रखते हैं। पता :- 1801 पटेल नगर, नई मंडी, मुजफ्फरनगर। श्री जयनारायण जैन अखिल भारतीय दिगम्बर जैन खंडेलवाल महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्री छाजूराम जी बड़जात्या एक सर्वसंपत्र, धर्मपरायण एवं सामाजिक सेवा की प्रतिमूर्ति थे, उनके एक पुत्र सेठ सुआलाल जैन दिगम्बर जैन समाज की उत्तर भारत की विशिष्ट विभूतियों में से एक थे, इनका परिवार भारत के खंडेलवाल समाज के प्रमुख परिवारों में शोभाराम गोपालराय के नाम से गिना जाता रहा है। ये चैम्बर के, जैन विद्यालय के समाज के व मंडी के आजन्म अध्यक्ष रहे, साथ ही गुड़ वायदे के चैम्बर के व मेरठ की गउशाला के जीवन के अंतिम पहर तक अध्यक्ष रहे। इसी परिवार से सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में अमिट प्रभाव रखने वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी अपने नाटे कद के कारण काका के नाम से लोकप्रिय श्री जयनारायण जैन ने अपनी युवावस्था में ही राजनैतिक एवं सामाजिक गतिविधियों में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया : आपका जन्म 19 जनवरी, 1929 को मेरठ में श्री सुआलाल जी के घर हुआ। आपके पिता धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। आपके बाबा श्री छाजूराम जैन भी अत्यन्त धर्मपरायण व्यक्ति थे। वे खंडेलवाल दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष भी रहे। आपने 1951 में मेरठ कॉलेज मेरठ से हिन्दी विषय में एम.ए. किया । आप 1960 से लगातार 8 वर्ष से मेरठ गुड मंडी के अध्यक्ष, 1960-72 तक केसरगंज व्यापार कम्पनी के चेयरमैन तथा बाद में मेरठ एप्रो कामेडिटिज एक्सचेंज के कई वर्षों तक चेयरमैन रहे। आप 1959 में अपने पिता की मृत्यु के बाद सदर जैन मंदिर के प्रबन्धक 1970 तक दिगम्बर जैन गर्ल्स इंटर कालेज के अध्यक्ष, सरस्वती शिशु मंदिर के संस्थापक मंत्री रहे व स्थायी समिति के सदस्य, सनातन धर्म इन्टर कालेज के मंत्री रहे व स्थायी समिति के सदस्य हैं। 1972 में मेरठ में मुनि विद्यानन्द चातुर्मास कमेटी के संयोजक आचार्य धर्मसागर जो के मेरठ प्रवास के व्यवस्थापक रहे। भगवान महावीर के 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव के समय 1974 में आप जिला मेरठ के संयोजक रहे। जैन मिलन मेरठ के चार वर्ष तक मंत्री, 1982 में अध्यक्ष तथा 1976 से जैन मिलन कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपके नेतृत्व में 1976 में उप्र के राज्यपाल डा. एम. चन्ना रेड्डी के मंदिरों, धर्मशालाओं को सरकारी ट्रस्ट द्वारा नियंत्रित करने के आदेश का प्रबल विरोध किया जिसमें इन्हें पूर्ण सफलता मिली। आप महासमिति केन्द्रीय कार्यकारिणी के अब संयुक्त महामंत्री हैं। आप दिगम्बर जैन परिषद के 1976 से 1986 तक कार्यकारिणी सदस्य रहे । आपने 1980 में जन मंगल महाकलश प्रवर्तन के दौरान उ.प्र. में उसके भ्रमण की पूरी व्यवस्था कराई । 1981 में श्रवणबेलगोला में उप्र से जाने वाले सभी यात्रियों की सेवा एवं मार्गदर्शन किया तथा वहां स्थापित 6 नम्बर के नगर के संयोजक रहे । आपने 1988-89 में आचार्य श्री कल्याण सागर जी एवं पूज्य मां श्री कौशल जी के चातुर्मास की व्यवस्था में Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /625 सक्रिय योगदान दिया। आप उप्र तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन के संयोजक बने जिसमें घोर विरोध के बावजूद अभूतपूर्व सफलता मिली और उसमे उप्र से साढ़े बाईस लाख रु. एकत्र हुए। आपके परिवार में 3 पुत्रियां, 2 पुत्र हैं। जो सभी सम्पत्र जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आपकी पत्नी श्रीमती कमल कुमारी जैन अत्यंत धर्मपरायण महिला हैं। जिन्होंने आपके हर कार्यों में पूर्ण समर्पण की भावना से सहयोग दिया है। श्री कस्तूरचन्द जी चांदूवाड़ यह परिवार राजस्थान के रहने वाले थे और बहुत समय से मेरठ में रह रहे हैं। आप सी. डी. ए. में लेखाधिकारी के पद से अभी कुछ वर्ष पूर्व ही रिटायर हुए हैं। आपका धार्मिक अध्ययन काफी परिपक्व है और गला भी मधुर है। जिससे अच्छे भजनिक भी है। आप सी.डी.ए. के सेवाकाल में जहां भी रहे वहां धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों को बढ़ाने में काफी योगदान दिया है। आप भारतीय जैन मिलन संस्थापकों में से एक हैं और अभी भी मेरठ छावनी में साधू समागम, विद्वानों को बुलाना व धार्मिक कार्यक्रम को आयोजित करने में प्रभावी रुचि लेते हैं और उनका संयोजन करते हैं। आपके प्रयास से समाज में धार्मिक कार्यक्रम अक्सर होते रहते हैं। मेरठ छावनी में ही पिछले 30 साल से अनवरत शास्त्र सभा चलने में आपका बड़ा योगदान है। आपकी पत्नी श्रीमती कमला श्री है। आपके तीन पुत्री श्रीमती शशि, श्रीमती रवि, श्रीमती निशि विवाहित है और पुत्र श्री राजीव जैन है जिनकी पत्नी का नाम प्रभा जैन है। आप बैंक सेवा में हैं और इनके एक पुत्र प्रतीक 6 वर्ष तथा एक पुत्री अंकिता 3 वर्ष है। स्व. रतनलाल जैन पहाड़िया श्री पहाड़िया जी रेस वालों के नाम से मशहूर थे और उनका परिवार आज भी इसी उपनाम से जाना जाता है। कई सदी पूर्व आपके पिता व अन्य परिवार जन राजस्थान के एक छोटे से ग्रांम से मेरठ में आकर बस गये थे। उनके पाँच पुत्र थे चार अब भी अपने पैतृक व्यवसाय में कार्यरत हैं जबकि श्री राधेलाल जी का स्वर्गवास हो चुका है। चार पुत्रों में श्री प्यारेलाल जी श्री बनवारीलाल जी, श्री कुंजबिहारी लाल जी एवं श्री मोहनलाल जी के बच्चों ने अलग-अलग व्यवसाय भी कर रखे हैं। मुख्य व्यवसाय आज भी रेस का ही है । श्रीमती कुंज बिहारी लाल जो श्री कुंजबिहारी लाल जी सादा जीवन उच्च विचार की कहावत को चरितार्थ करते हैं। सदैव सरलता, सौम्यता, सरसता बिखेरते रहते हैं। बातचीत करते वक्त तो आपकी भाव भंगिमा बस देखते ही बनती है । आप अपने परिवार द्वारा चलाये जा रहे 2/3 ट्रस्टों के प्रमुख हैं आपने मसूरी में जैन धर्मशाला का शुभारंभ सात सूट बनवाकर किया, भारतीय जैन मिलन हास्पिटल सरधना में सवा लाख रु. की लागत से आपरेशन थियेटर का निर्माण कराया तथा अभी हाल ही में आपने दि. जैन महासमिति को अथवा तीर्थ क्षेत्र कमेटी को रु. दस हजार का दान दिया है। इसके अलावा भी आप समय-समय पर दानशीलता का परिचय देते रहते हैं। सामाजिक धार्मिक कार्यकलापों में भी आप रुचि लेते हैं तथा तन-मन-धन से सहयोग करते हैं। आपके परिवार में आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला जैन पुत्र नीरज पुत्रवधू सौ. कां. संगीता, पुत्री कु. प्रिंसी एवं पौत्र पर्व व उत्सव हैं। Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 626/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रतनलाल जी राव श्री रतनलाल जी राव का परिवार राजस्थान से व्यापार मेलआर और इन्होंने आदत का कार्य छगनलाल रतनलाल के नाम से किया । किन्तु दुर्देव से गुड़ के सट्टे व अन्य कारणों से दुकान बन्द करनी पड़ी और अब यह परिवार मण्डी में स्वतन्त्र रूप से दलाली का कार्य करते हैं। श्री रतनलाल जी काफी धार्मिक व्यक्ति हैं और नियमित रूप से पूजा-पाठ व शाल सभा में जाते हैं। इनके एक मात्र पुत्र श्री महावीर प्रसाद भी इन्हीं के साथ स्वतन्त्र रूप से दलाली का कार्य करते हैं और यह भी धार्मिक रुचि के व्यक्ति हैं और सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेते हैं। इनकी पत्नी का नाम मधु है और इनके दो और पुत्र दो पुत्रियां हैं । पुत्री श्रीमती ममता विवाहित है दूसरी पुत्री कु. बबीता एवं दोनों पुत्र सुभाष एवं विकास अध्ययनरत हैं। श्री रामचन्द्र रारा 20 वीं शताब्दी के आरम्भ में लगभग दस वर्ष की आयु में श्री रामचन्द्र रारा नवलगढ़ राजस्थान से हापुड में फर्म शोभाराम गोपालराय के यहां नौकरी करने के लिए आये और यहीं स्थायी रूप से बस गये । बाद में इन्होंने अपना व्यापार किया और बहुत उन्नति की । हापुड़ में इन्हीं की सहायता से दिगम्बर जैन मंदिर का निर्माण भी हुआ । रामचन्द्र जी के तीन पुत्र हुए। सबसे बड़े पुत्र श्री भगवती प्रसाद जैन हापुड़ जो अब जिला गाजियाबाद में ही रहते हैं और हापुड़ के प्रमुख नागरिक और हापुड़ की सभी प्रमुख शिक्षण और सार्वजनिक संस्थाओं से किसी न किसी प्रकार सम्बद्ध हैं। उनके दो पुत्र सुरेश कुमार जैन "बेल' गाजियाबाद में इंजीनियर हैं और सुमत प्रसाद व्यापार करते हैं । रामचन्द्र के दूसरे पुत्र गुलाबचन्द्र जैन स्वर्गवासी हो गये उनके एक पुत्र प्रकाशचन्द्र जैन लखीमपुर खीरी में लखीमपुर डीजल्स के नाम से मोटर पार्टस् का काम करते हैं और छोटे पुत्र पवन जैन "ओम कैरियर रिंग" के नाम से पूरे भारत में ट्रान्सपोर्ट का काम करते हैं और ओवर नाइट कोरियर सर्विस चलाते हैं और साउथ एक्सटेंशन देहली में रहते हैं। रामचन्द्र जी के तीसरे पुत्र ज्ञानेन्द्रकुमार जैन मेरठ में एडवोकेट हैं और दीवानी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुखतम वकीलों में उनकी ख्याति है । उनके पुत्र विनोदकुमार मेरठ के जिला न्यायालय में दीवानी अदालत के सीनियर वकील हैं और दूसरे पुत्र प्रमोदकुमार जैन इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करते हैं और इलाहाबाद में ही स्थाई रूप से रहते हैं और सीनियर वकीलों में गिने जाते हैं । ज्ञानेन्द्रकुमार जैन की दो पुत्रियां हैं । जिनमें से एक माया जैन का मेरठ के सम्प्रान्त बैन परिवार में श्री यतेन्द्रकुमार जैन से विवाह हुआ है और दूसरी पुत्री उषा जैन रामगढ़ कैन्ट (बिहार) के संभ्रान्त अजमेरा परिवार में श्री भागचन्द्र जैन से हुआ है। श्री रमेशकुमार जैन, एडवोकेट माता - श्रीमती प्रभावती, पिता - स्व. श्री आनन्दकुमार जैन, एडवोकेट जन्म - 18 अगस्त, 1944 ई. परिवार - श्रीमती सुमन प्रभा जैन (पत्नी) रजत राज जैन (पुत्र) Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /627 कु.रीना जैन (पुत्री) व्यवसाय - कृषि एवं बागवानी श्रावक रल श्री रमेशकुमार जैन की प्रमुख रुचि समन्वय के सूत्र खोजने, प्रमुख राजनीतिज्ञ-सामाजिक, आध्यात्मिक विभूतियों की जीवन गाथाएं पढ़ने में रही है । पुस्तकें खरीद कर पढ़ने का शौक,साधु सन्त श्रेष्ठ जनों का सम्मान सत्कार करना। पेधावी छात्रों को पुरस्कृत करना,अच्छे साहित्य को प्रकाशित कर मुफ्त बाटना । गुरूजनों के प्रति विशेष श्रृद्धा । भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में रुचि । दहेज,तलाक,नारी का अश्लील विज्ञापन जैसी कुरीतियों के प्रति विद्रोह । उद्यान पंडित,कृषि एवं बागवानी में रुचि। चरित्र की निर्मल आभा, सत्य के प्रति समर्पण, आमह मुक्त चिन्तन,मानव जाति के कल्याण की सडप । जाति, वर्ण, रंग,लिंग, भाषा, प्रान्त आदि भेदभावों से ऊपर उठकर मनुष्य मात्र को आत्म संयम की ओर प्रेरित करना। मौलिकता, स्वतंत्र विचार और विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण अलग पहचान संस्कारी और पारिवारिक व्यक्तित्व, लेखक एवं सम्पादक । नित्य देव-दर्शन । आनन्द संस्थान रजत मानवीय केन्द्र,जैन साधर्मी वात्सल्य केन्द्र के संस्थापक | सभी धर्मों के उत्सवों एवं आयोजनों में विशेष रुचि। श्री राजीवकुमार पाटनी मथुरा के स्व.श्री गुलाबचंद जी पाटनी सामाजिक व्यक्ति थे। उनके पुत्र श्री राजीवकुमार भी धार्मिक प्रवृत्ति बिनयी एवं प्रसन्न चित्त रहने वाले युवा हैं । आपका जन्म सन् 1958 में हुआ। आपने एवं आपके छोटे भाई संजीव ने इन्टर किया और फिर व्यवसाय में लग गये । आपका विवाह 7-12-86 को मंजू के साथ हुआ जो एम.ए. है । पाटनी जी व्यवहार कुशल हैं । समाज सेवा के प्रति रुचि रखते हैं। पता: जैन गली,घीया मंडी, मथुरा । श्री रामस्वरूप जैन खेरगढ (मैनपरी ग्राम में पदमावती परवाल जाति में उत्पन्न स्वतन्त्रता सेनानी एवं स्व. इन्दिरा गांधी द्वारा सन् 1972 में सम्मानित श्री रामस्वरूप जैन उत्तर प्रदेश के स्वतन्त्रता सेनानियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं । आपके पिताजी का नाम श्री छोटेलाल जी एवं माता का नाम श्रीमती जयमाला देवी जैन है । आपका जन्म 11 अक्टूबर 1917 को हुआ। उर्दू, हिन्दी मिडिल एवं साहित्य विशारद पास किया । खेती एवं कपड़े का व्यवसाय करते हैं । सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में 18 माह की जेल यात्रा को । सन् 1932 से 35 तक नशा निवारिका समिति के सेक्रटरी रहे । संवत् 1994 में आपका विवाह श्रीमती किरण देवी से हो गया । जिनका बहुत पहिले निधन हो गया। Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 628/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री रामस्वरूप जैन धार्मिक जीवन जीते हैं। सन् 1963 में आपने विशाल सिद्धचक्र विधान का आयोजन करवाया। पाम पंचायत के सरपंच रहे तथा दूसरे कितने ही सामाजिक कार्य किये। आप वयोवृद्ध होने पर भी उत्साही कार्यकर्ता हैं तथा समाज के आयोजनों में जाते रहते हैं । पता : मु.पो.खैरगढ (पैनपुरी) उत्तरप्रदेश । श्री रिखबचन्द जैन गोथा कानपुर के प्रसिद्ध व व्यवसायी श्री रिखबचन्द जैन गोला काय व्यवसाय एक समाज सेवा दोनों में ही ख्याति प्राप्त नाम है । परिवार में अपने पिताश्री गुलाबचन्द जी गोधा के पांच पुत्रों में आप दूसरे नम्बर के पुत्र हैं । आपकी माताजी का नाम श्रीमती अचरज बाई है । आपकी पुत्री श्रीमती सीमा का विवाह कोटा के श्री त्रिलोकचन्द कोठारी के सबसे छोटे पुत्र श्री सुनील कोठारी के साथ हुआ है। प्रारंभ में हाईस्कूल पास करने के पश्चात् ही आपका शांति बाई देहली से विवाह हो गया और फिर आप अपने क्स व्यवसाय में लग गये तथा उसमें अच्छी ख्याति प्राप्त की। समाज सेवा की लगन आपको प्रारंभ से ही रही है । कानपुर समाजसेवी के रूप में आपने साहू शांतिप्रसाद जी जैन स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वर्ष 1981 में श्री दिगम्बर जैन नवयुवक संघ कानपुर द्वारा शील्ड प्राप्त की तथा समाजसेवी की उपाधि से सम्मान प्राप्त किया। श्री दिगम्बर जैन खण्डेलवाल सभा कानपुर के सन् 1980 में उपाध्यक्ष रहे। वैसे तो श्री गोधा जी का पिछले 10 वर्षों से लगभग एक दर्जन लोकोपकारी सामाजिक संस्थाओं से संबंध रहा है। कानपुर त्यागोव्रती कमेटी के आप प्रमुख कार्यकर्ता माने जाते हैं। व्यावसायिक क्षेत्र में कानपुर कपड़ा कमेटी के सन् 1977-89 तक तथा 1981 से 83 तक 6 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। गोधा जी मिलनसार, आतिथ्य प्रेमी एवं सरल स्वभावी हैं। आप अपने पूरे परिवार में अत्यधिक प्रिय हैं । आपके बड़े भाई श्री मिलापचंद है जिनकी धर्मपत्नी का नाम प्रेमबाई है। आपके छोटे भाई विमलचन्द,कमलचन्द एवं प्रकाशचन्द हैं। फर्म - प्रकाशचन्द पवनकुमार धूमनी बाजार, कानपुर आरसी बादर्स,रामगंज फाटक, नौ धडा, कानपुर पता- 57/59 शांति भवन, सिरकी मुहाल, कानपुर श्री विमलकुमार पाटनी मथुरा के श्री विमलकुमार पाटनी उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता हैं । आपका जन्म 24 दिसम्बर,1935 को हुआ । सन् 1960 में आपने आगरा से बी.कॉम.किया। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल जी पाटनी का 72 वर्ष की आयु में सन् 1983 में स्वर्गवास हो गया। आपकी माताजी श्री किरणकुवंर बाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । सन् 1961 में आपका दूसरा विवाह हुआ। आपकी पत्नी का नाम बीना पाटनी है । एक मात्र पुत्री रितु अभी पढ़ रही है। पाटनी जी यात्रा प्रेमी हैं । धार्मिक लगन वाले व्यक्ति हैं। आप बैंक सर्विस में अधिकारी है। पता : श्री विमलकुमार पाटनी,1130, भार्गव गली,घीया मंडी,मथुरा । Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज /629 श्री विमलचन्द जैन बम्ब रामपुर (उत्तरप्रदेश) के निवासी श्री विमलचन्द जी बैन बम्ब अपनी सामाजिक सेवाओं के लिये प्रसिद्ध हैं। आपके पिताजी 89 को पार कर चुके हैं आपने आगम ग्रंथों का अच्छा अध्ययन किया है। किन्तु आपकी माताजी श्रीमती जैनेबाई का सन् 1935 में ही स्वर्गवास हो गया था। विधिसागली महाराज आपका सन् 1930 में 29 अप्रैल को जन्म हुआ। सन् 1951 में एम.ए:(अर्थशास्त्र) एवं एल.एल.बी.दोनों एक साथ की और फिर 1968 से सरकारी वकील चले आ रहे हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कांति जैन है वह भी धर्म में विशेष रुचि रखती हैं। आपकी एक ज्येष्ठ पुत्री छाया एम.ए. है । कानपुर कॉलेज में अंग्रेजी प्रवक्ता है। आपके पति डाक्टर हैं जो कानपुर में सरकारी अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी है। आपका दूसरा पुत्र अजय एमाए.बी.एड. है । आपका ज्येष्ठ पुत्र मनोज मैरिन इंजीनियर है तथा विदेशी जहाज कम्पनी में सैकिण्ड इंजीनियर है। 28 वर्षीय मनोज की पत्नी का नाम नीलिमा है जो स्वयं एम.कॉम. है। दूसरा पुत्र अमरेश 23 वर्ष का है जो मद्रास में इन्डस्ट्रियल इंजीनियरिंग का छात्र है। बम्ब साहब नगरपालिका के सन् 1953-56 तक सदस्य एवं कमेटी चेयरमैन रह चुके हैं । जैन इन्टर कॉलेज रामपुर की स्थापना में प्रमुख योगदान रहा तथा कॉलेज के मंत्री एवं अध्यक्ष रह चुके हैं। कन्या इन्टर कॉलेज रामपुर के संस्थापक सदस्य, मैंनेजर एवं कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। पार्श्वनाथ अहिच्छेत्र तीर्थक्षेत्र कमेटी के उपाध्यक्ष एव वर्तमान में सदस्य हैं। आप और भी कितनी ही संस्थाओं से जुड़े हुये हैं । पता : मोती सदन,जैन स्ट्रीट, रामपुर (उप्रदेश) श्री विमलचन्द बैनाड़ा आगरा के बैनाड़ा परिवार में श्री विमलचन्द जी बैनाड़ा का प्रमुख स्थान है । वे अपनी सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृत्तियों के लिये सर्वत्र समादत होते हैं । आपका जन्म 3 अगस्त सन् 1962 को हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने पैतृक सर्राफा व्यवसाय से जुड़ गये । सन् 1938 में आपके पिताजी चल बसे और माताजी तो आपको 7 वर्ष का छोड़कर ही चली गई । सन् 1942 में आपका विवाह बुद्धिबाई से हुआ जिनसे आपको दो पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका बड़ा लड़का कमलकुमार 45 वर्षीय युवा है । दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। दूसरा पुत्र अजीतकुमार भी इन्टर पास है । एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। ___ आपका सामाजिक जीवन बहुत ही उज्जवल रहा है । आगरा दि. जैन खण्डेलवाल समिति के आप दो बार अध्यक्ष चुने जा चुके हैं । आगरा प्रान्तीय दि.जैन महासभा के अध्यक्ष एवं दि. जैन परिषद् के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। आगरा जिला शिक्षा समिति के सचिव हैं । आगरा सर्राफा कमेटी के 38 वर्ष तक सेक्रेटरी रहे तथा उत्तर प्रदेश सर्राफा एसोसियेशन के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 630/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका धार्मिक जीवन है । विगत 10 वर्षों से आप पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत पालन कर रहे हैं। कमला नगर आगरा में होने वाले मंदिर निर्माण में आपने पूर्ण सहयोग दिया है । चन्द्रप्रभु दि.जैन मंदिर नाई की मंडी के अध्यक्ष है साथ में यहाँ की वेदी निर्माण में पूर्ण सहयोगी रहे हैं। पता : 5/16 नाईकी मंडी,महरा गली,आगरा श्री शिवचरणा लाल जैन बुढेलवाल जाति के हथपौ आ गोत्र में उत्पत्र श्री शिवचरण लाल जी मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के प्रसिद्ध सेठ पंडित हैं। अब तक आप वाणीभूषण एवं व्याख्यान वाचस्पति उपाधियों से अलंकृत किये जा चुके हैं। आपका जन्म 11 अगस्त 1939 को हुआ। आपके पिताजी श्री बटेश्वरीलाल जी एवं माता श्रीमती गुलाब देवी का स्वर्गवास हो चुका है। प्रथम श्रेणी में मैट्रिक परीक्षा पास करने के पश्चात् आप कपड़े का थोक व्यवसाय करने लगे और उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की । 4 जुलाई 1957 को आपका विवाह श्रीमती निर्मला देवी के साथ सम्पन्न हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्रियाँ एवं एक पुत्र की प्राप्ति हुई। सबसे बड़ी पुत्री संध्या जैन नागपुर में प्रवक्ता है। दूसरी पुत्री एम.फिल.डी.फिल.है तथा मैनपुरी में ही रसायन शास्त्र की प्रवक्ता है। तीसरी पुत्री कविता संगीत शास्त्र में एम.ए. हैं तथा अभी अविवाहित है. पुत्र प्रशान्त अभी अध्ययन कर रहा है । व्यवसाय के अतिरिक्त आप लेखन (गद्य पद्य दोनों में) एवं प्रवचन करते है तथा धार्मिक समारोहों में जाते रहते हैं । आप शास्त्री परिषद् के उपाध्यक्ष,महासभा के उपदेशक विभाग के सह संयोजक एवं युवा परिषद् बुलेटिन के संपादक हैं । मैनपुरी में आयोजित सिद्धचक्र विधान में इन्द्र पद से सुशोभित हो चुके हैं। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं तथा कितनी ही बार तीर्थयात्रा कर ली है। अपने यहाँ श्रमण भारती दशाब्दी समारोह मना चुके हैं । पंडित शिवचरण लाल जी बहुत ही उत्साही विद्वान हैं । आर्षमार्ग के प्रचार-प्रसार में लगे रहते हैं ।आप शोध प्रबन्ध लिख चुके हैं । आपसे बहुत अपेक्षाएं हैं। पता : सीताराम मार्केट,मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) श्री शिखरचंद जैन देवली के लाला शिखरचंद जी जैन वर्तमान में विरक्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आप मुनिराजों एवं साधुओं के परम भक्त हैं । जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में खूब रुचि लेते हैं। अभी आपने दि.जैन साहित्य संरक्षण समिति को आचार्य विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से स्थापित किया है। आपका जन्म दिनांक 20-9-1928 को हुआ। देहली विश्वविद्यालय से सन् 1948 में बी.कॉम. किया। इसके पूर्व सन् 1945 में आपका विवाह श्रीमती कमला जैन से हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । नरेश एवं अनिल जैन के ट्रेक्टर पार्टस् का प्रतिष्ठान है। मनीष जैन सी.ए. है। Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज/631 श्री जैन परम धार्मिक एवं सेवाभावी जीवन व्यतीत कर रहे हैं । दोनों पति पत्नी तीर्थ यात्राएं एवं साधुओं के संबों में जाते रहते हैं। आप आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति अधिक आकर्षित हैं । देहली विवेक विहार में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आपने सनत्कुमार इन्द्र के पद को अलंकृत किया । आपके दादाजी गणपतरायजी ने सोनीपत में मंडी के मंदिर निर्माण में विशेष योग दिया था। आप मूल निवासी सोनीपत के हैं। वहां से रोहतक आए और फिर देहली आकर बस गए। पता : -512, पिकविहार, देहली 100 श्रीमती कमला देवी धर्मपत्नी श्री शिखर चन्द बैन श्री सुमेरचन्द पाटनी श्री पाटनी जी की लखनऊ जैन समाज के अतिरिक्त भारतीय स्तर के समाजसेवियों में गणना की जाती है । आपके पिताजी स्व.लादूलाल जी भी नगर के प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिनके नरम से डालीगंज में लादूलाल जैन मार्ग स्थापित है । आपकी माताजी का नाम श्रीमती नारायणी देवी जी था। पाटनी जी का जन्म 25 दिसम्बर 1920 को लखनऊ | में हुआ । आपने हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की और उसके पश्चात् पिताजी के साथ व्यवसाय में लग गये। सांभर निवासी श्री गौरीलाल जी पाटोदी की सुपुत्री ज्ञानीदेवी से आपका विवाह हुआ। आपके दो पुत्र एवं सात पुत्रियाँ हैं। पुत्रों में श्री - महावीर प्रसाद जी का विवाह हो चुका है। दसरा पत्र संजयकमार है। विशेष : आपके पिताजी ने डालीगंज में मंदिर का निर्माण करवाया था तथा वहीं धर्मपत्नी श्री सुमेरचन्द पाटभी पर सन् 1975 में सेठ लादूलाल जैन अतिथिगृह का निर्माण करवाया। सन् 1972 में लखनऊ में सिद्धचक्र विधान तथा सन् 1984 में हस्तिनापुर में इन्द्रध्वज विधान का आयोजन करवाया। यात्रासंध ले जाने में आपको बहुत रुचि रहती है। सन् 1952 में खण्डगिरी उदयगिरी,सन् 19667 में एवं सन् 1981 में बाहुबली यात्रा संघ के संधपति बने । संघ में पहिली बार 125 एवं दूसरी बार 155 यात्रियों को साथ ले गये थे। सामाजिक - दि. जैन महासभा के विगत 45 वर्षों में सक्रिय सदस्य हैं। वर्तमान में केन्द्रीय उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय महासभा के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश तीर्थ क्षेत्र कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं । भारतीय जैन मिलन के अध्यात हैं। पाटनी जी मिलनसार हैं, मुनिभक्त हैं, मुनियों के चातुर्मास कराते रहते हैं । समाज के लिये पूर्णतः समर्पित रहते हैं । पता - सेठ लादूराम जैन मार्ग,डालीगंज,लखनऊ .! Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 632/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री सुमेरचन्द जैन बम्ब रामपुर के श्री सुमेरचन्द जैन वर्तमान में दि. जैन समाज रामपुर के अध्यक्ष हैं तथा पिछले 27 वर्षों से अहिच्छेत्र पार्श्वनाथ अतीर्थ क्षेत्र रामनगर किला के मुख्यमंत्री हैं। जो अपने आप में एक रिकार्ड है। वर्तमान में अहिच्छेत्र पार्श्वनाथ का जो व्य जीर्णोद्धार हुआ है उसमें आपका प्रमुख योगदान रहा है। यात्रा प्रेमी हैं और पूरे भारत की दो बार यात्रा कर चुके हैं। आपका जन्म 19 जनवरी सन् 1930 को हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सन् 1950 में एम.ए. एवं सन् 1951 में एल.एल.बी. किया और फिर वकालात करने लगे। सन् 1952 में आपका विवाह श्रीमती उर्मिला जैन से हुआ। आपका एक मात्र पुत्र पंकज जैन 37 वर्षीय है तथा बी.ए.एल.एल.बी. है। वकालात करते हैं। समाज में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा है। सबसे मधुर व्यवहार करते हैं। पता :- जैन मंदिर स्ट्रीट, रामपुर (उ प्रदेश ) श्री सुमेरमल पांड्या सामाजिक सेवा के क्षेत्र में ख्याति भाश्रीजी पवा के सुखश्री सुमेरमल पांड्या की सामाजिक सेवाऐं उल्लेखनीय हैं । आपके पिताजी खण्डेलवाल जैन समाज के प्रमुख माने जाते थे तथा सप्तम प्रतिमाधारी थे। आपका स्वर्गवास 12 अगस्त सन् 1959 को हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती भंवरीदेवी का तो बहुत पहिले ही निधन हो गया था। श्री सुमेरमल जी का जन्म 14.10.1929 को हुआ। अजमेर बोर्ड से मैट्रिक किया। आगरा में आपका कार्पेट निर्माण एवं मनोलेंडिंग का काम है। सन 1946 में आपका विवाह श्रीमती गुलाबदेवी से हुआ जिनसे आपको तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। आपके बड़े पुत्र सुरेशकुमार 40) वर्षीय युवा हैं। बी.एस.सी. हैं। पत्नी का नाम रंजना है। दूसरे पुत्र नरेश कुमार बी.ए. हैं। पत्नी का अमिता है जो स्व. ताराचन्द जी ठोलिया जयपुर की पुत्री हैं। तीसरा पुत्र दिनेश कुमार एम.ए.हैं । पत्नी का नाम यशोधरा है जो स्व. सर सेठ भागचन्द जो अजमेर की पुत्री हैं । आप फुलेरा, कुचामन, लूणा के पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में विभिन्न पदों से सुशोभित हो चुके हैं। तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। कट्टर मुनिभक्त हैं । कुचामन विकास समिति के सदस्य हैं। लूणवा स्मारिका प्रकाशन में पूरा योग दिया था। पता रोज कार्पेट्स, जोन्स मिल, आगरा श्री सौभाग्यमल काला राजस्थान के जयपुर जिले में दूदू ग्राम में माघ शुक्ला 5 वि. सं. 1975 को जन्मे श्री काला जी वर्तमान में लखनऊ के गणमान्य महानुभावों में गिने जाते हैं। आप विशेष शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। जब 31 वर्ष के थे तभी आपके पिताश्री राजमल जी का स्वर्गवास हो गया। इसके पूर्व आपका विवाह अमरोहा में श्रीमती शांतिदेवी के साथ संपन्न हो गया था । आपको प्रारंभिक जीवन में बड़ा संघर्ष करना पड़ा लेकिन अपनी कठोर मेहनत एवं लग्नशीलता के कारण आपको किराने के व्यवसाय में सफलता पर सफलता मिलने और अपनी Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश का जैन समाज/633 फर्म लखनऊ किराना कंपनी को शीर्ष स्थान पर लाने में सफल हुए। आपकी फर्म किराना, यूनानी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की फर्म है । सन् 1975 में आपने व्यापार से अवकाश ले लिया और अपना समस्त जीवन धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में बिताने लगे। आपके चार पुत्र एवं एक पुत्री हैं । सभी पुत्र राकेश जोगेश,विजय सभी उच्च शिक्षित हैं। प्रमेश पढ़ रहा है । पुत्री मंजू भी उच्च शिक्षित है। विशेष - श्री काला जी श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष हैं । लखनऊ जैन समाज . . .के पहिले अध्यक्ष एवं वर्तमान में संरक्षक हैं। दि.जैन महासभा की उत्तर प्रदेश शाखा के श्रीपती शातिदेवी आपली भी कार्यकारिणी सदस्य,जैन गजट,भा.दि.जैन युवा परिषद के संरक्षक हैं । मुनियों को आप दोनों सौपायमल जी ही आहार देते रहते हैं। एक बार श्रावस्ती एवं हस्तिनापुर तक यात्रा संघ ले गये थे। अभी आपने ऋषभायण जैसे विशाल हिन्दी महाकाव्य का लेखन एवं प्रकाशन करवाया है । फर्म - लखनऊ किराना कम्पनी,पवन ट्रेडर्स,भारत किराना स्टोर, विशाल ट्रेडर्स, पचशील ट्रेडर्स, जैन आयुर्वेदिक्स । श्री वैद्य हुकमचन्द मोठ्या आगरा की नाई की मंडी में वैद्य का सन्द की गोदकामगज में एवं नगर में उनकी सामाजिक सेवा एवं रोग की पकड़ के लिये प्रसिद्ध हैं । सादा जीवन उच्च विचार को जीवन में उतारने वाले एवं मुनिभक्त वैद्य जी समाज में सपादत व्यक्ति हैं। आपका जन्म भादवा बुदी 12 संवत् 1975 में हुआ। आयुर्वेद उपाध्याय एवं जैन दर्शन शास्त्री की परीक्षाएं पास करने के पश्चात आप व्यावहारिक जीवन को मुड़े और वैद्यक एवं अध्यापन कार्य करने लगे। संवत् 1.195 में आपका विवाह श्रीमती श्यामबाई से हुआ जिनका स्वर्गवास सन 1943 में हुआ। वे स्वभाव से विनम्र एवं सरल परिणामी थी। आपके एक मात्र पुत्री हेमवती हुई जिनका विवाह हो चुका है तथा वह चार पुत्र एवं एक पुत्री की माता है। वैद्यजी महान चारित्रवान है ! मात्र 25 वर्ष की आयु में विधुर होने के पश्चात् आपने आजन्म अविवाहित रहकर सेवा एवं आयुर्वेद जगत में रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया। अब तक आप सैंकड़ों विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनाकर जीवन निर्माण कर चुके हैं। आप एक बार मंदिर से मूर्तियाँ चोरी होने पर मूर्तियां मिलने तक अनशन पर बैठ गये और जब मूर्तियां मिल गई तब ही अनशन तोड़ा । इससे आपकी सेवाभावना की सभी ओर प्रशंसा होने लगी है। पता : 5/4 कटरा इतवारी नाई की मंडी आगरा Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 634/ जैन समाज का वृहद् इतिहास महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत का जैन समाज जैन धर्म और सम्गज सारे देश में फैला हुआ है । जितना जैन समाज उत्तर भारत में है उससे कहीं अधिक दक्षिण भारत में है। लेकिन भाषा खानपान, रहन-सहन में भिन्नता होने के कारण दक्षिण भारत का जैन समाज उत्तर भारत से कट गया है और हमें उनके संबंध में वास्तविकता का पता नहीं लगता इसलिये दक्षिण भारत में जैन समाज का वास्तविक इतिहास वही लिख सकता है तो कनड़, तमिल, तेलगू भाषायें जानता हो तथा वहाँ के जन सामान्य से परिचित हो । प्रस्तुत इतिहास में हमने उन्हीं समाजों का परिचय दिया है जो उत्तर भारत से दक्षिण भारत में व्यापार व्यवसाय के लिये गयी हुयी हैं और वर्षों से वहीं रह रहे हैं। लेकिन वहाँ गये हुये जैन बन्धु दक्षिण भारत को जानने लगे हैं तथा दूसरी भाषा कनड़ वगैरह बोलने लग गये हैं । मैं सौभाग्य से 8 दिसम्बर, 1990 से 10 दिसम्बर तक आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन में भाग लेने बंगलौर गया था और वहाँ से यदि। भारतले नसला , चार, पाडीले नगरों में पहुंच कर उत्तर भारत के निवासियों से वहां की सामाजिक स्थिति के बारे में जो जानकारी प्राप्त कर एकत्रित की गयी उसी को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है : बम्बई : - बंगलौर जाने के पूर्व तीन चार दिन के लिये बम्बई रुके और हम समुद्र तट पर स्थित श्री त्रिलोकचन्द जी कोटा वालों के अतिथि निवास में ठहरे । बम्बई तो विशाल महानगरी है । देश में कलकत्ता के पश्चात् जनसंख्या, में बम्बई का ही नम्बर है किन्तु व्यापार एवं सुन्दरता में बम्बई का प्रथम नम्बर है। नगर में जैन समाज कितनी संख्या में है इसके संबंध में अधिकृत सूचना किसी के पास भी उपलब्ध नहीं है । बम्बई में सबसे अधिक ओसवाल समाज है जिसमें स्थानकवासी, मूर्तिपूजक एवं तेरहपंथी शामिल है। दिगम्बर समाज भी संख्या में कम नहीं है लेकिन वह भी खण्डेलवाल, अग्रवाल, हूंबड, नरसिंहपुरा, नागदा, बोरीवली जैसी जातियों में बंटा हुआ है और एक जाति वाला दूसरी जाति की संख्या के बारे में बहुत कम जानता है । कानजी स्वामी के अनुयायियों के मंदिर बनने के पश्चात्, यह समस्या और भी जटिल हो गई है । वैसे बम्बई में दिगम्बर श्वेताम्बर समाज को मिलाकर जैनों की संख्या एक लाख से अधिक होनी चाहिये । बम्बई में अ.भा.दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का कार्यालय है। दो धर्मशालायें हैं । अब तो बोरीवली में त्रिमूर्ति मंदिर दिगम्बर जैन समाज का सांस्कृतिक केन्द्र बन गया है । आचार्यों एवं मुनियों का संघ भी वहीं ठहरता है । बम्बई में भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से एक बहुत बड़ी त्रि-दिवसीय उ हुई थी उस समय आचार्य विमल सागर जी महाराज का संघ भी वहीं रुका था। इस बार जब मैं वहाँ ध्याय योगीन्द्र सागर जी महाराज के दर्शन किये थे । बम्बई में राजश्री पिक्चर्स के मालिक श्री ताराचन्द जो बडजात्या एवं उनका परिवार रहता है । बम्बई के प्रतिष्ठित समाज सेवियों में शीर्षस्थ नेता साह श्रेयान्स प्रसाद जी जैन भी बम्बई में रहते थे। उनके अतिरिक्त श्री प्रेमचन्द उत्तमचन्द जैन ठोले रहते हैं। श्री जैन दि. जैन महासभा महाराष्ट्र शाखा के अध्यक्ष थे । बहुत सामाजिक व्यक्ति तथा समाज सेवा में समर्पित रहते थे। जब दि. जैन सिद्ध क्षेत्र मांगीतुंगी मे महासभा का अधिवेशन हुआ तो उसके वे ही स्वागताध्यक्ष थे । बम्बई में ही श्री डी.एम. गंगवाल से मिलना हुआ । गंगवाल जी की साहित्य के प्रचार प्रसार में बहुत अभिरुचि है तथा आधी कीमत में पाठकों को किताबें उपलब्ध कराते रहते है । बम्बई के प्रमुख समाज सेवी ताराचन्द जी जैन, प्रकाशचन्द जी छाबड़ा से भी भेट हुई जो वहाँ के प्रतिष्ठित समाजसेवी हैं । वम्बई में दोशी परिवार प्रतिष्ठित परिवार है । सेठ लालचन्द जी Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज /635 दोशी तो भा. तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी पुत्रवधू डा. श्रीमती सरयू दोशी चित्रकला क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विदुषी हैं । वे कला के क्षेत्र में साहित्य की खूब सेवा कर रही हैं। इसी तरह बहिन सरयू दफ्तरी का सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान है । स्व. पं. तेजपाल जी काला के सुपुत्र पं. भरतकुमार जी काला भी बम्बई के एक उप नगर में रहते हैं लेकिन सामाजिक गतिविधियों में वे सबसे आगे रहते हैं। बंगलौर : दक्षिण भारत का सबसे सुन्दर नगर एवं चालीस लाख से ऊपर आबादी वाला बंगलौर एक विशाल एवं सुन्दरतम नगर है । जैन समाज उसमे भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है । मारवाड़ी जैन समाज के 50 परिवार रहते हैं लेकिन मूल कन्नड़ जैन समाज के 2000 परिवार हैं । दो दि. जैन मंदिर हैं जिनमें एक सोनगढ़ वालों का है। नया मंदिर बहुत विशाल बना हुआ है । पुराना दिगम्बर मंदिर भी अच्छा है प्राचीन प्रतिमाओं से युक्त हैं । श्रवणबेलगोला यहां में ज्यादा दूर नहीं है । वहाँ के भट्टारक चारूकीर्ति जी महाराज का यहाँ गेस्ट हाऊस भी बना हुआ है । भट्टारक जी महाराज इसी में ठहरते हैं । श्वेताम्बर समाज के 150(A) परिवार हैं जो अपने आप में एक रिकार्ड है। बंगलौर से ही श्रवणबेलगोला, मूडविद्रों, वेणूर, कारकाल एवं धर्मस्थल की यात्रा की जा सकती हैं । इन तीर्थों में मूडविट्री एवं कारकल में जैन समाज के परिवार अच्छी संख्या में रहते हैं। सेलम : सेलम बंगलौर से सीधा जाया जा सकता है । सेलम व्यापारिक मंडी है । यहाँ ओसवाल समाज के 500 घर, पोरवाल समाज के 30 घर और इतने ही गुजराती समाज के हैं। दिगम्बर जैनों के केवल 15 घर हैं। एक दिगम्बर मंदिर है. एक स्थानक है तथा तीन श्वेताम्बर मंदिर हैं। लेकिन सभी जैनों में पर्ण सामंजस्य है। सभी उत्सव सब मिल करके मनाते है । श्री रतनचन्द्र जी सहसमल जी पोरवाल समाज के अध्यक्ष हैं । श्री ताराचद जी बगड़ा, सोहनलाल जी कोटारी एवं निर्मलकुमार जो बाकलीवाल दिगम्बर समाज के प्रतिनिधि हैं। मद्रास : देश के चार बड़े नगरों में मद्रास का नाम आता है । मद्रास में खण्डेलवाल जैन समाज परिवार तो अधिक नहीं है लेकिन उन्होंने अपना अच्छा संगठन बना रखा है। अभी कुण्डीटोप बस्ती में खण्डेलवाल जैन दिगम्बर धर्मशाला भी बनवाली है जिससे ठहरने की बहुत सुविधा हो गयी है । यहाँ के प्रसिद्ध परिवारों में श्रीनिवास जी, राजकुमार जी बड़जात्या, पदमचन्दजी महेन्द्रकुमार जी धाकड़ा, ताराचंद जी पहाड़िया, जयचन्दजी बाकलीवाल का परिवार है। मद्रास से 1(A) किमी. दूरी पर 24 परिवार तमिल भाषा-भाषी रहते हैं। ओसवाल समाज के यहाँ भी अच्छी संख्या मे परिवार रहते हैं । मद्रास में ही पं. सिंहचन्द जी शास्त्री एवं पं. मल्लिनाथ जी शास्त्री विराजते हैं । स्थानीय जैन समाज भी है लेकिन वास्तविक संख्या का पता नहीं चल सका। Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 636/ जैन समाज का वृहद् इतिहास पांडीचेरी: योगीराज अरविन्द की साधना स्थली पांडीचेरी वर्तमान में एक स्टेट (प्रान्त) है। पांडीचेरी करीब सात लाख जनसंख्या वाला नगर है । यहाँ दिगम्बर जैन समाज के करीब 100 परिवार हैं जनसंख्या 660-70K) होगी। सभी खण्डेलवाल दिगम्बर जैन हैं। गोधा कासलीवाल पाटनी पांडया सेठी बज एवं बाकली अधिकांश परिवार काल, नीमाज, गगराणा, मेड़ता सिटी. मेडता रोड, अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, नागौर, रीठ आदि गांवों से आये हुये हैं। दो मंदिर एवं एक चैत्यालय है । यहाँ सबसे पहले चम्पालाल जी गोधा सिरायत आये थे। उन्होंने दूसरे परिवारों को यहाँ आने में सहयोग दिया । वर्तमान में समाज के अध्यक्ष श्री हीरालाल जी पाटनी एवं सेक्रेटरी श्री धर्मचन्द जी बज हैं। हैदराबाद : आन्ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद दक्षिण भारत का प्रसिद्ध नगर है । पहले यह स्टेट की राजधानी थी। यहाँ खण्डेलवाल जैन समाज के 105 परिवार, अग्रवाल जैन समाज के 13 परिवार, पोरवाल समाज के 23 परिवार, पद्मावती पोरवाल 4, प्रतापगढिया हूंबड़ों के 12 परिवार तथा 65 परिवार पल्लीवाल, लमेच, गोलालारे जैन समाज के है जो कत्थावाले कहलाते हैं । यहाँ सेतवाल दि. जैन समाज के 220 घर हैं। महाराष्ट्र एवं दक्षिण में सेतवाल समाज की जनसंख्या सबसे अधिक है। यहाँ चार मंदिर व चैत्यालय एवं एक धर्मशाला है। खण्डेलवाल जैनों के गोत्रों में पहाड़े, लुहाडे, बज, सेठी, पांड्या, बाकलीवाल,रांबका, पाटनी, कासलीवाल, गोधा, छाबड़ा, झांझरी, चांदवाड़, गंगवाल, अजमेर। 15 गोत्रों का समाज हैं । समाज में श्री मांगीलाल बाबूलाल पहाड़े, श्री जयचन्द लुहाड़े प्रमुख समाज सेवियों में गिने जाते हैं। यहाँ ओसवाल समाज की 25 हजार जनसंख्या है। यहाँ की प्रादेशिक भाषा तेलगू है लेकिन हिन्दी में भी साडेते है। महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के यशस्वी समाज सेवी 1. श्री अमृतराय अजय जैन,सेलम 2. श्री चम्पालाल कासलीवाल,पांडीचेरी 3. श्री चम्पालाल सिरायत,पाण्डीचेरी 4. श्री चिरंजीलाल जी बडजाते. वर्धा 5. श्री जयचन्द लुहाडे, हैदराबाद 6. स्व.पं.तनसुखलाल काला, हैदरावाद 7. स्व.पं. तेजपाल काला, अमरावती 8. श्री ताराचन्द जी बागड़ा,सेलम 9.श्री ताराचन्द जी बडजात्या,बम्बई 10. श्री निर्मल कुमार बाकलीवाल,सेलम 1]. श्री नेमीचन्दजी रीढदाले,पांडीचेरी 12. श्री परमेष्ठीराय जी जैन, हैदराबाद 13. श्री पुष्पेन्द्रकुमार कौन्तेय, हैदराबाद 14. श्री बच्छराज सेठी, चालीस गाँव 115. श्री बोदूलाल सेठी, हैदराबाद 16. श्री भरतकुमार काला,बम्बई |17. श्री मंगलचन्द पांड्या, हैदराबाद 18 श्री महावीरप्रसाद पाटनी,सेलम. 19. श्री मांगीलाल बाबूलाल पहाडे, हैदराबाद 20, श्री माणिक्यचंद बज,वाशिम Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21. श्री मूलचन्द पाटनी, बम्बई 22. श्री मूलचन्द बडजाते, वर्धा 23. श्री राजकुमार बडजात्या, मद्रास 24. श्री विनोद बालचन्द दोशी, बम्बई 25. श्री श्रीनिवास जैन बडजात्या, मद्रास श्री अमृतराय अजय जैन आप मूलत: देहली निवासी हैं, देहली से करीब 30-32 वर्ष पूर्व सेलम आये और यहां व्यवसाय करने लगे । है । 26. श्री श्रीपाल काला, हैदराबाद 27. डॉ. श्रीमती सरयू वी. दोशी, बम्बई 28. श्री स्वरूपचन्द बज, हैदराबाद 29. श्री सोहनलाल कोठारी, सेलम | 30. श्री सोहनलाल गंगवाल, बंगलौर पिताजी श्री अमृतराय जी, स्वर्गवास 7-4-1988, आयु-57 वर्ष - माताजी श्रीमती संतोष जैन - महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज (637 जन्म - 8.10.1964 व्यवसाय सर्राफ, धागा शिक्षा - एम.कॉम. मद्रास विश्वविद्यालय से वर्ष 1986 में विवाह सन् 1989 में मेरठ की सपना जैन के साथ जो बी.ए. हैं। आपके पिताजी ने पंचकल्याणक महोत्सव पुत्रुर मलैई (कुन्दकुन्द्रा) में सौधर्म इन्द्र के पद को सुशोभित किया तथा विजयमती माताजी एवं सुपार्श्वमती माताजी के चातुर्मास में आपने पूर्ण सहयोग दिया। आपके छोटे भाई अनुज कुमार (15 वर्ष) पढ़ रहे हैं तथा दो बहिने सारिका जैन व सपना जैन दोनों का विवाह हो चुका आपके पिताजी श्री अमृतराय जी के गुरू आचार्य विमलसागर जी महाराज थे। उन्हीं की प्रेरणा से आप सतत धार्मिक कार्यों में रुचि लेते रहते हैं । मुनिभक्त हैं एवं मुनियों को आहार एवं भक्ति में पूर्ण श्रद्धा है। धर्मसागर जी महाराज में भी आपकी बड़ी भक्ति है। अमृतरायजी के पिताजी जयचन्द राय जी थे I पता :- 31. शंकर नगर, आशीर्वाद, सेलम -636007 Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 638/ जैन समाज का वृहद् इतिहास राज श्री चप्पालाल कासलीवाल पांडीचेरी जैन समाज में प्रतिदिनत समाज सेवी श्री चम्पालाल जी कामलीवाल का जन्म 10 फरवरी 1932 को हुआ। अपने ग्राम रीढ़ में आपने मैट्रिक किया । 40 वर्ष पूर्व आपका विवाह हीरालाल जी पाटनी की पुत्री विमलादेवी के साथ हुआ जिनसे आपको एक पुत्र निरंजन कुमार एवं छह पुत्रियों की प्राप्ति हुई। निरंजन कुमार ने पांडीचेरी से बी काम कर लिया है । उसकी पत्नी का नाम श्रीमती मंजू है जो अजमेर के घेवरचन्द जी बाकलीवाल की पुत्री है । पुत्रियों में प्रेमलता, मुत्रीदेवी, शशि, तारा, संतोष, लीना सभी का विवाह हो चुका है। संतोष बी.कॉम.एवं लीना बी.एस.सी. है। कासलीवाल जी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं । पांडीचेरी में आयोजित पंचकल्याणक __ में आपने ध्वजारोहण किया था । हस्तिनापुर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में इन्द्र बनकर पुष्प वर्षा की थी। इन्दौर में आपको जैन वीर की उपाधि से सम्मानित किया गया । अपने प्रामरीढ़ में आँखों का म्प लगाया जिसमें 100 आपरेशन किये गये थे तथा कन्या पाठशाला के लिये कमरा एवं बरामदा निर्माण में आर्थिक सहयोग दिया। आपको धर्मपत्नी के शुद्ध खान-पान का नियम है । अष्टान्हिका के व्रत उपवास कर धुकी हैं । स्वभाव से शान्त,मधुर एवं आतिथ्य प्रिय हैं । श्रीमती विमलादेवी धर्मपत्नी पता : 153, भारती स्ट्रीट, पांडीचेरी। श्री चम्पालाल कासलीवाल ..RRI. श्री चम्पालाल सिरायत ठोलिया गोत्रीय श्री चम्पालाल जी सिरायत के नाम से प्रसिद्ध हैं। पाण्डिचेरी में तथा दक्षिण भारत के जैन समाज में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा है । सन 1955 में पाण्डिचेरी आने वालों में आप प्रथम व्यक्ति हैं । आपने ही प्रयास करके यहां अन्य जैन परिवारों को आने में पूर्ण सहयोग दिया । पाण्डीचेरी जैन समाज के आप वर्षों तक अध्यक्ष रहे हैं। वैसे आप मूल निवासी नीमाज के हैं । पाण्डोचेरी महासभा के तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट फण्ड के सदस्य हैं। आपने 72 बसन्त देख लिये हैं। आपके पिताजी आपको 13 वर्ष का छोड़कर स्वर्गवासी बन गये थे। माताजी श्रीमती सुगनीदेवी का सन - 1982 में निधन हुआ है। 15 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती भंवरदेवी के साथ हुआ । जिनसे आपको 8 पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । वर्तमान में आप निवृत्ति परक जीवन यापन कर रहे हैं। आपके आठवें पुत्र श्री गौतम को छोड़कर सभी का विवाह हो चुका है। सबसे बड़े रूपचन्दजी हैं जो 50 वर्षीय हैं । पत्नी का नाम सावित्री है । तीन पुत्रियों के पिता है । दूसरे पुत्र भागचन्दजी 44 वर्ष के हैं। उनकी पत्नी विमला देवी दो पुत्रियों एवं एक पुत्र की मां हैं। तीसरा पुत्र मीठालाल 39 वर्षीय युवा है । पत्नी का नाम सरोज देवी है जो दो पुत्र एवं एक पुत्री की जननी है। चतुर्थ पुत्र श्री राजेन्द्रकुमार दो पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। उनकी पत्नी का नाम गुणमाता है । वे तमिलनाडू में रहते हैं। पांचवें Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज/639 PROD पुत्र सुकुमाल सेलम में व्यवसाय करते हैं। उनकी पत्नी नीता एक पुत्र की माँ है । छठा पुत्र प्रदीप बी.कॉम. है । पत्नी का नाम अरुणा है | सप्तम पुत्र अशोक कुमार बी.ए.एल.एल.बी. है । पली का नाम वंदना है। आपका पूरा परिवार मुनिभक्त है। माताजी राजमती जी एवं विजयमति के चातुर्मास में आपने पूरा सहयोग दिया था। आचार्य निर्मल सागर जी महाराज के विहार में भी आपका पूरा सहयोग रहा था । पांडीचेरी में आयोजित पंचकल्याणक में आप दोनों भगवान के माता-पिता बने थे तथा आपके द्वितीय पुत्र धागचन्द सौधर्म इन्द्र के पद से अलंकृत हुए थे। पता : 4, भारतीय स्ट्रीट,पाण्डीचेरी। श्री चिरंजीलाल बडजाते वर्धा के स्व.श्री चिरंजीलाल जी बडजाते राष्ट्रीय स्तर के नेता थे । वे कांग्रेस के प्रमुख नेता श्री जमनालालं जी बजाज के विश्वस्त सहयोगी थे। वे दोनों बीस वर्ष तक साथ रहे। आपका जन्म राजस्थान के जयपुर जिले के उपास में खण्डेलवाल जाति को पहनात्यागोन में आसोज सुदी 8 सं. 1952 (12 दिसम्बर सन. 1895) को हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा मोजमाबाद में हुई। 18 वर्ष की आयु में इन्होंने सर्विस करना प्रारम्भ कर दिया। फिर वे वर्धा में पन्नालाल जी के गोद चले गये। आपका विवाह भी मोजमाबाद में हुआ। जब व्यापार में उन्हें सफलता नहीं मिली तो सन् 1977 में सेठ जमनालाल जी बजाज की सेवा में चले गये और जीवन के अन्त तक उनसे जुड़े रहे । भारत जैन महामंडल से आप सन 1936 से ही जडे । उसके महामंत्री भी रहे । सन् 1966 में उसका शानदार अधिवेशन वर्धा में कराया। इसी के साथ नागपुर प्रान्तीय दि.जैन खण्डेलवाल सभा का अधिवेशन भी कराया 1 बड़जाते जी ने कितने ही ट्रस्टों का निर्माण किया। उनके माध्यम से खूब जन सेवा एवं समाज सेवा की। उन्होंने अपने जीवन में कुल मिलाकर 69 हजार रुपया दान में दिया । बड़जाने जी शुद्ध राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे । जमनालाल जी बजाज के साथ उन्होंने खूब काम किया तथा राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के साथ खूब रहे । वे 12 वर्ष तक वर्धा म्यूनिसिपल मेम्बररहे । आपका वर्धा समाज की ओर से कितनी ही बार सम्मान समारोह आयोजित किये गये थे। आपके 74वीं जन्म दिवस के उपलक्षय में आपका परिचय प्रकाशित हुआ था। श्री जयचन्द लुहाड़े विशाल व्यक्तित्व के धनी एवं कर्मठ समाजसेवी,श्री जयचंद लुहाड़े दक्षिण भारत की एक प्रमुख हस्ती हैं। अ. भारतवर्षीय दि.जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के महामंत्री के रूप में उन्होंने । पर्याप्त यश उपार्जन किया है तथा अपनी सूझबूझ एवं लगन से तीर्थों का विकास किया है ! । आप मूलत:नांदगांव के निवासी हैं । सन् 1950 में नांद गांव से यहां आकर बस गये। लेकिन उन्होंने बदलाया कि.25(1-300 वर्ष पहिले वे राजस्थान के किसी गांव के निवासी थे। आपके बड़े भाई श्री पूनमचंद जी लुहाड़े तो आज भी बहीं रहते हैं। Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 640/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका जन्म 13 नवम्बर सन् 1923 में हुआ। आपके पिताजी स्व. दगरूराम जी आपको 9 महिने का ही छोड़कर स्वर्गवासी बन गये । आपकी माना ने ही आपको पाला पोसा । माताजी का स्वर्गवास सन् 1918 में 75 वर्ष की अवस्था में हो गया । आपने पूना के फर्गुसन कॉलेज से एम.ए.,एल.एल.बी.किया । प्रारंभ में सर्विस की लेकिन उसमें मन नहीं लगा। फिर मोटर एवं मोटर पार्टस का व्यवसाय करने लगे। मार्च सन् 1946 में आपका विवाह कोपर गांव में श्री पूनमचंद जी काला को पुत्री सुन्दर बाई से हुआ : जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री प्रदीपकुमार 43 वर्षीय युवा हैं। पत्नी का नाम रंजना है जो रांची के प्रकाशचंद जी पांड्या की सुपुत्री हैं। दो पुत्र एवं एक पुत्री की मां है । दूसरा पुत्र सुरेश कुमार बी.कॉम. हैं । पत्नी का नाम नयना है वह भी बी.कॉम. है । तथा महाराजा बहादुरांसह की सुपुत्री एवं राजकुमार सिंह जी कासलीवाल इन्दौर की सुपौत्री है। तीसरा पुत्र सुभाष लुहाड़िया की पत्नी का नाम छाया है । टोन पुत्रियों को मां है । आपको पुत्री पुष्पा इन्दौर के श्री देवकुमार सिंह जी कासलीवाल के सुपुत्र प्रदीप बाबू की पत्नी है। लुहाड़े जो स्थानीय एवं देश की अनेक संस्थाओं से जुड़े हुये हैं । दि.जैन महासमिति के उपाध्यक्ष हैं । इसके पूर्व दि. जैन महासभा के तपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। भगवान महावीर का 25110 वा परिनिर्वाण महोत्सव, भगवान बाहुबली का सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह को सफल बनाने में पूरा योगदान दिया। स्थानीय व्यापारिक संगठनों के अध्यक्ष रह चुके हैं । शासकीय सलाहकार समितियों से भी जुड़े हुये हैं। आप स्व. आचार्य समन्तभद्र जी महाराज के प्रमुख शिष्य रहे । उनकी आज़ा को शिरोधार्य करके तीर्थ क्षेत्रों के कार्य में . रुचि लेने लगे। आपने प्रारंभ मे कारंजा, कुभोज बाहुबली एवं स्तनिधि गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त की । पं देवकीनंदन जी शास्त्री के शिप्य रहे तथा उन्हीं की आज्ञा से एलोरा में गुरूकुल स्थापित किया । हैदराबाद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में आपके पुत्र सुरेश बाबू इन्द्र के पद से अलंकृत हुये । पैठन में पानस्तंभ का निर्माण एवं हैदराबाद में केशरबाई के मंदिर के शिखर का निर्माण कराया । सिद्धचक्र मंडल विधान कराते ही रहते हैं। आप अपने व्यवसाय के लिए विदेश यात्रा करते ही रहते हैं। मुनिभक्त हैं। आ.विद्यासागर जी आ.समन्त भद्र जी एवं आ.विद्यानन्द जी महाराज को आहार दे चुके हैं। श्री सुरेश बाबू ने उनकी धर्मपत्नी ने एवं आपकी पुत्री सभी ने दशलक्षण व्रत के उपवास कर लिये हैं। लुहाड़े टी भारतीय स्तर के नेता हैं । आपसे समाज को बहुत आशायें हैं। पता : 3-5-539 हैदरगुढ़ा हैदराबाद - 29 पं. तनसुखलाल जी काला स्व तनमुपदलाल जी काला 21 वीं शताब्दी के महान समाजसेवी थे । वे मुनिराजों के सम्पर्क में रहा करते थे तथा सप्तम प्रतिमा के धारी थे । आपका संबंध अपने समय के सभी वरिष्ठ विद्वानों से था । आप ऐलक पत्रालाल दि. जैन सरस्वती भवन के सहायक मंत्री तथा गोपाल दि. जैन सिद्धान्त महाविद्यालय मोरेना के 40 वर्ष तक मंत्री एवं ट्रस्टी रहे। नागपुर प्रान्तीय खण्डेलवाल दि.जैन महासभा छिंदवाडा वार्षिक अधिवेशन के सभापति बनाये गये। Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हराए दक्षिण का जैन समाज 641 स्व. काला जी ने ५ बार शिखर जी की वंदना की तथा अन्य अतिशय क्षेत्रों की भी बराबर वंदना करते रहे। आचार्य शांति सागर जी महाराज, वीरसागरजी महाराज एवं आचार्य धर्मसागर जी महाराज का आपको सदैव आशीर्वाद मिलता रहा। आयु के 900 वें वर्ष में दिनांक 28 अक्टूबर 84 को आपको शान्त परिणामों के साथ मरण संपत्र हुआ 1 स्व, तेजपालजी काला स्व. श्री तेजपाल जी काला कर अत्यन्त साधारण स्थिति के परिवार में जन्म हुआ था। कुशाग्र बुद्धि एवं कर्तव्य तत्परता के कारण वे सभी के प्रिय थे। मैट्रिक परीक्षा तक उनकी पढ़ाई हुई थी। समाजसेवा एवं धर्म सेवा को रुचि होने से वे बाल्यकाल से ही सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में सदैव आगे थे। प. पू. रस्त्र. चा. च. आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के धर्म प्रभावना से प्रभावित हो वे सदैव धर्म सेवा में अपना लक्ष्य देने लगे। नांदगांव (नासिक) की सुप्रसिद्ध धर्मपरायण खंडेलवाल दिगम्बर जैन पंचायत के वे कई वर्षों तक महामंत्री पद पर रहे। इनके कार्यकाल में नांदगांव में भारतीय स्तर पर अनेकों धार्मिक समारोह सम्पन्न हुये। इंद्रध्वज विधान का बहुत बड़ा भारी आयोजन इनके काल में ही आया 1 इस संभाग के निकटतम सभी नगरों मैं इनके कर्तव्य का गुणगान होने लगा। आगमनिष्ठ धर्म प्रसार में आगे रहे। पैठन अतिशय क्षेत्र पर इन्होंने आगत सभी भारतीय स्तर के विद्वानों की उपस्थिति में श्री भारतवर्षीय शांतिवीर दिगम्बर जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा का निर्माण किया । इसका एक साप्ताहिक मुख पत्र भी निकाला जिसके वे प्रारंभिक काल से अंत तक संपादक बने रहे। नांदगांव में स्व.प.पू.गल्लिसागर महाराज के नाम से स्थापित अंथमाला के भी वे अंत तक महामंत्री बने रहे और सुचारू रूप से उसका संपादन करते रहे हैं। आपका स्वर्गवास 711 वर्ष की आयु में सन् 1982 में हुआ । श्री ताराचन्द बगड़ा ( कासलीवाल) श्रीपती गणी देवी धर्मपली श्री ताराचन्द जी बगड़ा का दक्षिण भारत जैन समाज में विशिष्ट स्थान है। वे अपने उदार स्वभाव, धार्मिक मनोवृत्ति, साधुओं के प्रति भक्ति एवं सबके काम में आने की अपनी भावना के कारण समाज का मार्गदर्शन करते रहते हैं । आर्यिका विजयमती माताजी को तमिलनाडु, पांडीचेरी, मद्रास, सेलम, कडलूर, पुनर मलैमई में चातुर्मास कराने में विशिष्ट योगदान किया। वर्तमान में आप सेलम समाज के अध्यक्ष हैं । ऋषिमंडल विधान, शांतिमंडल वि mah जैसे से Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 642/ जैन समाज का वृहद् इतिहास की मूर्तियाँ विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया है। } श्री श्री बगड़ा जी ने 64 बरुच देख लिये हैं चंद की अगड़ा का सन् 1050 में ही स्वर्गवास हो गया था तथा माताजी सुन्दर बाई का सन् 1965 में वियोग हो गया था। माताजी के स्वर्गवास के पूर्व ही आप सुजानगढ़ से सेलम आ चुके थे तथा यहां अपना साबुदाना का व्यवसाय प्रारंभ कर दिया था। इस व्यवसाय में आपको आशातीत सफलता मिली। आपका विवाह संवत् 2003 में लाडनूं के श्री गणेशमल पहाड़िया की पुत्री मणिदेवी से हुआ जिनसे आपको 3 पुत्र एवं 66 पुत्रियों की प्राप्ति हुई । ज्येष्ठ पुत्र सरोजकुमार बी कॉप है। 36 वर्ष के हैं। पत्नी का नाम सरिता है जो एक पुत्र की मां बन चुकी है । आपके दूसरे पुत्र अजयकुमार भी श्री क्रॉन हैं। 28 वर्ष के युवा हैं। पत्नी का नाम पुष्पादेवी हैं जिनके एक पुत्री हैं। सबसे छोटे पुत्र श्री विजयकुमार हैं जिसका 10-12 900 को श्रीमती माधुरी के साथ विवाह हुआ है। जन्म लेखक बगड़ा जी के घर पहुंचा तब विवाह में आये मेहमानों से घर में चहल-पहल थी । आपकी सभी छह पुत्रियों मंजुला, अंजना, शकुन्तला, संतोष, ललिता एवं मीना का विवाह हो चुका है। श्रीमती बगड़ा जी ने दशलक्षण के उपवास कर लिये हैं। - पता : ताराचंद सरोजकुमार, 26 अप्पा स्वामी रोड़ पोस्ट शिवापेट, सेलम-2 (तमिलनाडु) श्री ताराचंद बड़जात्या फिल्म उद्योग में शीर्षस्थ स्थान, यश एवं ख्याति प्राप्त करने वाले श्री ताराचंद जी बड़जात्या का जन्म सन् 1914 में हुआ। सन् 1933 में बिना वेतन के फिल्म इन्डस्ट्री में कार्य सीखने के लिये प्रवेश किया और सर्व प्रथम उन्हें 85/- रुपये मासिक पर नियुक्त किया गया । दिनांक 15-8-1947 को बम्बई में आपने राजश्री पिक्चर्स प्राइवेट लि. संस्था को जन्म दिया जो वर्तमान में देश की सर्वोच्च फिल्म उद्योगों में से हैं तथा जिसके कार्यालय देश के 20 नगरों में खुले हुये हैं। श्री बड़जात्या जी ने दक्षिण भारत की फिल्म उद्योग जैमिनी, ए.वी.एम., अंजली, जुपीटर, पक्षीराज को बहुत सहयोग दिया तथा चन्द्रलेखा, संसार, बहार, आजाद, शारदा जैसी फिल्मों का प्रदर्शन किया । राजश्री पिक्चर्स द्वारा शोले, धर्मवीर, परवरिश, जुगनु, अमीर-गरीब, चाचा-भतीजा, रोटी जैसी लोकप्रिय फिल्मों का निर्माण किया गया ! श्री बडजात्या जी ने एक के बाद दूसरी शानदार फिल्मों के निर्माण में सफलता प्राप्त की और आज के फिल्म उद्योग में अपना शीर्षस्थ स्थान बना लिया है। आपने सैंकडो कलाकारों के जीवन निर्माण में सहयोग दिया और नये-नये कलाकारों को अपनी फिल्मों में स्थान देकर उनका जीवन निर्माण किया । बड़जात्या जी के तीन पुत्र हैं और तीनों ही फिल्म उद्योग में विशिष्ट स्थान रखते हैं। सबसे बड़े पुत्र श्री कमलकुमार जी बडजात्या राजश्री फिल्म उद्योग के मुख्य व्यवस्थापक हैं। दूसरे पुत्र राजकुमार जी राजश्री पिक्चर्स के नाम से फिल्म निर्माण का कार्य कराते हैं । सबसे छोटे पुत्र अजित कुमार जी फिल्म वितरण का कार्य देखते हैं। राजकुमार जी के पुत्र श्री सूरज फिल्मों का Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज /643 लेखन, निर्देशन करते हैं। अभी आपके द्वारा निर्मित "मैंने प्यार किसा" फिल्म ने बहुत नाम कमाया है । कमल बाबू के पुत्र रवि फिल्म लंद्योग में नई तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। बडजात्याजी महर्षि अरविन्द के एवं मांश्री के बहुत बड़े भक्त हैं तथा उनके दर्शनों को जाते रहते हैं। आपका सामाजिक दिशा में योगदान जब कभी होता ही रहता है। आपके तीनों पुत्र इस दिशा में विशेष प्रयत्नशील रहते हैं। कर श्री कगन कुमार बड़ागा श्री राजकुमार बड़जाल्या श्रो अजित कुमार बड़जात्या पता : राजश्री पिश्चर्स, बम्बई श्री निर्मल कुमार बाकलीवाल 16 वर्ष की अल्प आयु में किशनगढ़ (राज) से सेलम जाकर व्यवसाय में पैर रखने वाले श्री निर्मल कुमार बाकलीवाल सूझबूझ,साहस एवं प्रतिभा के धनी हैं । वर्तमान में सेलम जैन समाज में आपका अत्यधिक लोकप्रिय स्थान है । सामाजिक कार्यों में आप को खूब रुवि रहती हैं। साधुओं के परम भक्त हैं । आपका जन्म 14 सितम्बर, 1943 को हुआ । सन् 1958 में अजमेर बोई से मैट्रिक किया और सन् 1959 में राजस्थान से तमिलनाडु में आ गये। यहाँ आने के पश्चात् आपका विवाह किशनगढ़ के कंवरलाल जी अजमेरा की सुपुत्री श्रीमती सरोज देवी से हुआ जो अत्यधिक व्यवहारकुशल एवं स्वभाव से विनम्र एवं आतिथ्य प्रिय हैं । आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी बाकलीवाल का सन् 1983 में स्वर्गवास हो गया उस समय वे 73 वर्ष के थे। आप अपनी आय का 10 वां भाग दान पुण्य में लगाया करते थे। धार्मिक जीवन यापन करते थे। अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करते थे । श्रीमती सरोजदेवी धर्मपली बाकलीवाल जी को तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है । ज्येष्ठ श्री निर्गल कुमार जी पुत्र श्री नरेन्द्र कुमार ने भी काम किया है ! अभी सन् 1981 में विवाह हुआ है । पत्नी का नाम Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6441 जैन समाज का वृहद् इतिहास श्रीमती संतोष देवी है। दूसरे पुत्र निखिल ने बी.ए. सीकर से किया है । नितेश कुमार 16 वर्ष पढ़ रहा है । दो पुत्रियाँ हैं - निशा एवं नीता । दोनों ही पढ़ रही हैं । बाकलीवाल,जी का जीवन सेवाभावी है तथा सभी सामाजिक कार्यों में सहयोग देने की भावना रखते हैं । महासभा के तीर्थ रक्षा सुरक्षा फण्ड के सदस्य हैं । आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी के दक्षिण विहार में आपने पूर्ण सहयोग दिया था । आपकी धर्मपत्नी भी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला है। पता :- बाकलीवाल ट्रेडिंग कम्पनी, न. 7 पोलिस पैट्रोल रोड़,शिवापेट, सेलम-2 श्री नेमीचन्द कासलीवाल रीढ वाले ___ पाण्डीचेरी निवासी श्री मन्द जी कासलीवा जो सः शुद्ध कि पान्यताओं के अनुसार यापन करते हैं । दोनों पति पत्नी के शुद्ध खानपान का नियम है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उगमादेवी तो रात्रि को जल भी विगत 25 वर्षों से नहीं ले रही हैं। आप दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं तथा व्रत उपवास करती ही रहती हैं। श्री कासलीवाल जो पाण्डीचेरौ पंच कल्याणक प्रतिष्ठा पहोत्सव में ईशान इन्द्र के पद से अलंकृत हुये थे तथा : सन् 1983 में पुन्नममलाई में इन्द्रध्वज विधान में सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हुये हैं। आपका जन्म संवत् 1984 में मंगसिर महिने में हुआ। अपने ग्राम रीढ (नागौर) में आठवीं कक्षा तक अध्ययन किया । संवत् 1999 में आपका विवाह उगम देवी से हुआ। आप पांडीचेरी के ही चम्पालाल जी सिरायत की बहिन हैं । आपके पिताजी श्री कन्हैयालाल जी का 27 मई सन् 1964 में पंडित नेहरू जी की मृत्यु के एक घण्टे बाद ही स्वर्गवास हो गया । माताजी विरजीदेवी 92 वर्ष की हैं। उनका आशीर्वाद प्राप्त है। आपके चार पत्र एवं तीन पत्रियाँ है। प्रथम पुत्र श्री महावीर कुमार 42 वर्ष इच्छलकरन में व्यवसाय करते हैं। दूसरे पुत्र श्री धरमचन्द 37 वर्षीय युवा हैं। उनकी पत्नी रेणु बी.कॉम है तथा सेलम में व्यवसायरत है। तीसरे पुत्र प्रसन्नकुमार 32 वर्ष के हैं । सी.ए.प्रथम पार्ट पास हैं । पत्नी मधु वी.कॉम. है। दो पुत्रियों की माँ है । चतुर्थ पुत्र सुभाष 25 वर्ष के है बी.कॉम. हैं । तीन पुत्रियों में शान्ता,रोशन एवं कल्पना सभी का विवाह हो चुका है। श्री कासलीवाल जी पांडीचेरी जैन समाज के वर्तमान में अध्यक्ष हैं लेकिन इसके पूर्व भी आप दो बार अध्यक्ष रह चुके अपने ग्राम रौढ (नागौर) में । पता : • न6, वियंका नगर,पांडीचेरी श्री परमेष्ठिदास जैन ____ आप मूल निवासी देहली के हैं । वहाँ से सन् 1936 में बम्बई गये और फिर वहाँ से भी सन् 1961 में आकर व्यवसाय करने लगे। आपका जन्म 30 अक्टूबर सन् 1920 को हुआ | आपके पिताजी श्री मोल्हडमल आपको एक वर्ष का ही छोड़कर स्वर्गवासी बन गये। माताजी श्रीमती केशरबाई ने आपको पाला । अन्त में वह भी ब्रह्मचारिणी अवस्था में स्वर्गस्थ हो गई । सन् 1931 में आपका विवाह सरस्वती देवी के साथ हुआ । Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज (645 आपकी माताजी ने आचार्य शांतिसागर जी महाराज को आहार दिया था। आपने सन् 1972 में हैदराबाद के चादर हाट मंदिर में सिद्ध चक्र विधान कराया था तथा जम्बई के पोदनपुर के मंदिर में मूर्ति विराजमान की थी तीर्थ यात्रा प्रेमी हैं। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। प्रतिदिन दर्शन एवं स्वाध्याय का नियम पालन करते हैं। पता :- 3-2-13/एच. निपोली अड्डा, हैदराबाद श्री पुष्पेन्द्र कुमार कौन्देय पिछली तीन पीढ़ियों से समाजसेवा में समर्पित रहने वाले परिवार में श्री पुष्पेन्द्र कुमार कौन्देय का जन्म 9 मई सन् 1941 को हुआ। आपके पिताजी श्री केशवदेव जी का 78 वर्ष की आयु में करीब 7 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ। आपकी माताजी का नाम स्व. सुखदेवी जी है। सन् 1963 में आपका विवाह श्रीमती कुसुमलता जी के साथ हुआ। जिनसे आपको तीन पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई । श्रीमती कुसुम लता धर्मपत्नी पुणेन्द्र कुमारजी मच्छराज सेठी आपकी सामाजिक सेवायें उल्लेखनीय हैं। हैदराबाद जैन समाज के सन् 1988 से मंत्री पद पर कार्य कर रहे - हैं। इसके पूर्व समाज के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। हैदराबाद सम्पूर्ण जैन समाज के भी आप मंत्री हैं। श्री दि. जैन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी हैं। हैदराबाद में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आपने उल्लेखनीय सहयोग दिया। महासभा के सदस्य है, कर्म रुमाज से है। आपके तीन पुत्रों में प्रवीन कुमार (21 वर्ष) अनिल कुमार (19 वर्ष) एवं अनूप कुमार (18 वर्ष) हैं सभी पढ़ रहे हैं। आपकी एक मात्र पुत्री अनिता जैन का आगरा में विवाह हो चुका I पता :- अमिता सेल्स कारपोरेशन, 15-8559 फीलखाना, हैदराबाद जन्मतिथि 22 सितम्बर सन् 1922 शिक्षा सामान्य आपके पिताजी छिगनलाल जी का 81 वें वर्ष में 10 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हुआ तथा उसके एक वर्ष पश्चात् ही मातुश्री फुलाबाई जी का स्वर्गवास हो गया । सेठजी का विवाह 24 वर्ष की आयु में श्रीमती चंद्रा बाई के साथ सम्पन्न हुआ। आपको एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। पुत्र भरतकुमार अभी 21 वर्ष के हैं तथा इंजीनियरिंग में पढ़ रहे हैं। तीन पुत्रियाँ साधना, संध्या एवं सुषमा है तीनों का ही विवाह हो चुका है। Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 646! जैन समाज का वृहद इतिहास विशेष : धार्मिक स्वभाव के हैं। सभी तीथों की वंदना कर चुके हैं । पंचकल्याणकों में इन्द्र पद से सुशोभित होते रहते हैं । सम्मेद शिखर के समवशरण मंदिर में मूर्ति विराजमान कर चुके हैं। मुनि श्री भावसागर यम सल्लेखना 5 वर्ष पूर्व चालीस गांव में हुई थी। वहीं पर आप मन्दिर निर्माण करवा रहे हैं । आपके छोटे भाई के सुपुत्र श्री नन्दलाल सेठी वर्तमान में म्युनिसिपल के सदस्य हैं। आप इसके पूर्व जैन समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं। चालीस गाँव में 400) करीब जैन समाज है उनमें 15 धर खाण्डेलवालों के तथा पोरवालों के 10 घर हैं 1 आपके तोन भाईयों में कुंजीलाल जी एवं हंसराज जी औरंगाबाद में व्यवसायरत हैं तथा प्रेमचन्द जी का स्वर्गवास हो चुका है। पता :- बच्छराज छिगनलाल सेठी भगवान महावीर मार्ग,चालीस गाँव (जलगांव ) महाराष्ट्र श्री बोदूलाल सेठी आप मूलतः बाय ग्राम (राज) के निवासी थे। वहाँ से करीब 50 वर्ष पूर्व हैदराबाद आये और टायर व्यवसाय में लग गये । वर्तमान में आप 80 वर्ष के हैं। आपकी पत्नी का नाम श्रीमती ताराबाई है । आपको पांच पुत्रों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त है। सेठी जी जैन समाज हैदराबाद प्रबन्ध कारिणी कमेटी के सदस्य हैं । मुनिभक्त हैं । आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। सभी तीर्थों को वंदना कर चुके हैं। आप हैदराबाद पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में इन्द्र इन्द्राणी के पद से सुशोभित हो चुके हैं । मन्दिरों के जीर्णोद्धार में योग देते हैं। ___ आपके पांच पुत्रों में 50 वर्षीय ज्येष्ठ पुत्र श्री माणकचन्द हैं । दूसरे पुत्र श्री त्रिलोकचन्द 49 वर्षीय युवा हैं । पत्नी का नाम कंचन बाई है 12 पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं । तीसरा पुत्र राजेन्द्रकुमार (43 वर्ष) को पली श्रीमती निर्मलादेवी के एक पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं । चतुर्थ पुत्र श्री प्रकाशचन्द (40 वर्ष) की पत्नी का नाम कंचनबाई है। तीन पुत्रियों एवं एक पुत्र की मां है । सबसे छोटे पुत्र सुरेशकुमार 37 वर्षीय युवा हैं 1 पत्नी का नाम मंजू है जो दशलक्षण व्रत के उपवास कर चुकी हैं। पता : 15/1-503/ए/172 अशोक मार्केट, हैदराबाद | श्री भरतकुमार काला जन्मतिथि - 4 जुलाई सन 1947 शिक्षा - एम.एस.सी.(स्टेटिक्स) आपके पिता श्री तेजपाल जी काला सुप्रसिद्ध आगमनिष्ठ,मुनिभक्त एवं जैन दर्शन पत्र के संपादक थे । आपकी माताजी श्रीमती जानकी देवी काला धर्मपरायण महिला हैं। आपका विवाह उज्जैन निवासी प्रसिद्ध समाजसेवी पं. सत्यन्धर कुमार जी सेठी की सुपुत्री श्रीमती शैलबाला के साथ संपन्न हुआ है । श्रीमती शैलबाला बी.ए. है अच्छी लेखिका हैं तथा धार्मिक सामाजिक कार्यों में रुचि रखती हैं। श्री काला जी महासभा के कट्टर समर्थक हैं । मुनिभक्त हैं तथा निर्भय होकर अपना कार्य करते हैं । जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का सारे महाराष्ट्र में आपने ही सफलता पूर्वक संयोजन किया था । Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज /647 आपके एक पुत्री निलांजना काला एवं दो पुत्र निखिलेश एवं सिद्धार्थ कुमार है। आपके बड़े भाई श्री वर्धमान कुमार जी भी समाज सेवा में रुचि रखते हैं। पता - 74/432 टैगोर नगर विक्रोली,बम्बई - 400083 श्री मंगलचन्द पांड्या राजस्थान के भेरुदा ग्राम के पूर्व निवासी श्री मंगलचन्द पांड्या पहिले चालीस गाँव (महाराष्ट्र) के हतनूर गये और फिर वहां से 60 वर्ष पूर्व हैदराबाद आकर रहने लगे। आपका जीवन पूर्णतः धार्मिक है । साधु एवं मुनियों की सेवा करने में प्रसन्नता होती है। हैदराबाद एवं हस्तिनापुर पंचकल्याणकों में आप इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं। हैदराबाद के चादरहाट मंदिर में भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान कर चुके हैं । अपने 80 वर्षीय जीवन में हैदराबाद जैन समाज के कितनी ही बार मंत्री रह चुके हैं। कट्टर मुनिभक्त हैं । आचार्य शांतिसागर जी से लेकर सभी मुनिराजों एवं आचार्यों को आहार देने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। सन् 1963 में आपने आर्यिका ज्ञानमती माताजी के संघ को हैदराबाद से श्रवणबेलगोला तक पहुंचाण था | 31 वर्ष की आयु में आपका विवाह श्रीमती ढूंढादेवी के साथ हुआ । आपके पिताजी श्री हेमराज जी का 32 वर्ष पहिले एवं माता चैनाबाई का 22 वर्ष पहिले स्वर्गवास हो चुका है | आपको 6 पुत्र एवं 2 पुत्रियों के पिता बनने का गौरव प्राप्त है। आपके सभी पुत्र सर्व श्री नरेन्द्रकुमार (44 वर्ष) महेन्द्रकुमार (42 वर्ष) राजकुमार (40 वर्ष) पवनकुमार (32 वर्ष) एवं दिलीप कुमार (25 वर्ष) अपने पिताजी के साथ ही आटोमोबाइल्स का व्यवसाय करते हैं। दोनों पुत्रियाँ निर्मला एवं सरोज का विवाह हो चुका है । तीर्थयात्रा प्रेमी हैं। सभी तीर्थों की वंदना कर चुके हैं। शिखर जी की 6 बार वंदना कर चुके हैं। पता: हेमराज मंगलराज पांड्या मकान नं.16.5-176 डबलीपुरा, हैदराबाद-3 श्री मांगीलाल पहाड़े श्री मांगीलाल जी पहाडे विशाल व्यक्तित्व के धनी हैं । सामाजिक कार्यों में एवं धार्मिक गतिविधियों में आपका परिवार सदैव आगे रहा है। आप हैदराबाद जैन समाज के 13 वर्ष तक अध्यक्ष रह चुके हैं। दि. जैन महासभा की आंध्रप्रदेश शाखा के अध्यक्ष हैं। महासभा की तीथं सुरक्षा • फण्ड के सदस्य हैं तथा जैन समाज में समन्वय रहे इसकी ओर प्रयत्नशील रहते हैं। श्री पहाड़े जी हैदराबाद में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इन्द्र के पद को सुशोभित कर चुके हैं। हस्तिनापुर में इन्द्रध्वज विधान श्रीमती बसन्ती बाई धर्मपत्नी ___ एवं कल्पद्रुम मंडल विधान एवं हैदराबाद में तीन लोक मंडल विधान का आयोजन करा चुके हैं श्री मांगीलाल पहाडे Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 648/ जैन समाज का वृहद् इतिहास तथा चन्द्रप्रभु दि. जैन मंदिर में एक बड़े हॉल एवं मानस्तंभ का निर्माण करवाकर उसको प्रतिष्ठा का भी यशस्वी कार्य कर चुके हैं। हैदराबाद में ही पार्श्वनाथ दि.जैन मंदिर निर्माण का भी उत्तम कार्य सम्पन्न कर चुके हैं। श्री पहाड़े जी का जन्म स्थान घण्टुर है जो कर्नाटक प्रदेश के बोदर जिले में स्थित है । ज्येष्ठ शुक्ला 14 सं.1989 (सन् 1933) को आपका जन्म हुआ । आपके पिताजी श्री सन्तूलाल जी का सन् 1960 में ही स्वर्गवास हो गया लेकिन आपकी माताजी श्रीमती फूलीबाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । वे 85 को पार कर चुकी हैं । सन् 1950 में 20 अप्रैल को आपका विवाह श्रीमती बसन्ती बाई के साथ हुआ। जो बरूंदा (अजमेर) के सुवालाल पांड्या की सुपुत्री है । पांड्या जी आर्यिका अधयमती माताजी की आर्थिका दीक्षा के अवसर पर माता-पिता बने थे। आपकी धर्मपत्नी दशलक्षण व्रत के उपधास कर चुकी है। आपको छह पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य मिल चुका है। श्री रमेश कुमार (35 वर्ष) एवं राजेश कुमार (33 वर्ष) इन्टरमीजियेट हैं । शेष चारों किशोरकुमार (30 वर्ष), अनिलकुमार (28 वर्ष), दिलीपकुमार (27 वर्ष) एवं प्रदीप कुमार ने बी.कॉम किया है । सभी का विवाह हो चुका है। श्री प्रदीपकुमार का विवाह श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी की पुत्री इन्दिरा से हुआ है । पहाड़े जो सामाजिक क्रांति में विश्वास रखते हैं तथा मांग ठहराव के विरोधी हैं । श्री बाबूलाल जी पहाडे आपके छोटे भाई श्री बाबलाल जी 54 वर्षीय समाजसेवी हैं। उनकी पत्नी का नाम सुशीला देवी है जो गोंदिया के हीरालाल जी पांड्या जी की पुत्री है । आपकं तीन पुत्र अशोक, सुनील एवं संजय है । प्रथम विवाहित है । दो पुत्रियाँ हैं सुनिता एवं अनिता । दोनों का विवाह हो चुका है। श्री बाबूलाल जी पहाड़े का हैदराबाद में विशिष्ट स्थान है । भवन निर्माण में दक्ष हैं । स्वप्नलोक जैसी कितनी ही विशाल बिल्डिग्स के निर्माता हैं । राजधानी होटल के मालिक हैं । दोनों पति-पत्नी ने दशलक्षण वृत के उपवास किये हैं। आचार्य विद्यासागर जी महाराज के कट्टर भक्त हैं। मुनियों को आहार देने में पूर्ण रुचि रखते हैं। धार्मिक साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान देते रहते हैं। महासमिति के उपाध्यक्ष हैं। तीसरे भाई श्री विजय कुमारजी 44 वर्षीय युवा है । पत्नी का नाम ललिता देवी है। तीन पुत्र कमल,विमल एवं रितेश तथा एक पुत्र प्रीति के पिता हैं । फ्लोर मिल वं पैट्रोल पम्प का व्यवसाय है। पता :- 15-2,750 उस्यान गंज, हैदराबाद श्री माणिकचन्द बज वाशिम नगर (महाराष्ट्र) के श्री माणिकचन्द जी बज जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । समाजसेवकों में आपका विशिष्ट स्थान है । आपका जन्म 27 मार्च 1932 को हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री प्रतापचन्द जो है तथा माताजी श्रीमती राजमतीजी है। आपने एम.कॉम., एल.एल.बी.किया तथा शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् व्यवसाय की ओर मुड गये । आपके तीन पुत्र श्री सुरेन्द्रकुमार,सुनीलकुमार एवं सुधीरकुमार हैं तथा तीन पुत्रियाँ सरजूबाई,शीला बाई एवं सुलोचना बाई हैं। तीनों का विवाह हो चुका है। पता : माणिकचन्द प्रतापचन्द जैन बज मु.पो.वाशिम (अकोला) महाराष्ट्र Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीर प्रसाद पाटनी सेलम (मद्रास) के निवासी श्री महावीर प्रसाद पाटनी अच्छे समाजसेवी हैं। 49 वर्षीय श्री पाटनी जी साबूदाना का व्यवसाय करते हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला दो पुत्र गौतम, संजय एवं तीन पुत्रियों को जननी है । महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज /649 आपके पिताजी श्री हीरालाल जी पाटनी से लभ में सबसे पहले आये थे तथा और बन्धुओं को सेसन अग्ने को पोत्साहित किया। आपने सबसे पहिले चैत्यालय का निर्माण करवाया। आपकी धर्मपत्नी शुद्ध खान-पान का नियम रखती है। पता - अजित राय एंड कम्पनी, सूरमंगलम मेन रोड़, ली बाजार, सेलम-49 श्री मूलचन्द पाटनी जन्मतिथि ज्येष्ठ कृष्णा 3 संवत् 1975 दि. 28-5-1918 शिक्षा - श्री महावीर दि. जैन विद्यालय रेनवाल (राज) से शास्त्री प्रथम खण्ड पास की। आप पं. चैनसुखदास जी के प्रिय शिष्य रहे हैं। आपके पिता श्री रामचन्द्रजी जी पाटनी एवं मातुश्री चंदरीदेवी दोनों का स्वर्गवास हो चुका है। आपका विवाह श्रीमती सुगनीदेवी के साथ चैत्र कृष्णा 7 वि. सं. 1933 में सम्पन्न हुआ। श्रीमती सुगनीदेवी धर्मपत्नी श्री मूलचन्द्रजी पाटनी सन्तान आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। ज्येष्ठ पुत्र, श्री सुशील पाटनी बीई.(मेकनिकल) डी.पी. ओ. एण्ड एम हैं। विवाहित हैं पत्नी श्रीमती बीना जैन है। डाइकास्टिंग एवं फेब्रीकेशन उद्योग का संचालन करते हैं। छोटे पुत्र श्री निर्मल जैन बी.कॉम. हैं। श्रीमती सुनीता आपकी पत्नी है। आपके कम्प्यूटर की चीजों का व्यवसाय है। आपके पौत्र-पौत्रियों के नाम कुमारी शिल्पा, प्रीति, राजश्री, भावेशकुमार एवं निराली है । आपकी एक मात्र पुत्री शकुन्तला का दुर्ग में विवाह हो चुका है। विशेष :- सामाजिक क्षेत्र में आपको पर्याप्त यश प्राप्त है। श्री चन्द्रप्रभु दि. जैन पुस्तकालय 161 भूलेश्वर बम्बई के पिछले 10 वर्षों से मानद मंत्री हैं। अपने ग्राम करनसर के प्रति गहरी लगन है । अपने ग्राम में मातुश्री स्व. चन्द्रीदेवी की स्मृति में बालिकाओं को शिक्षण के लिये एक भव्य भवन का अपने परिवार के सहयोग से निर्माण करवाकर श्रीमती चंदरी देवी पाटनी राजकीय उच्च प्राथमिक बालिका विद्यालय नाम सरकार को संचालन हेतु प्रदान किया। इसी तरह करनसर राजकीय हाईस्कूल के भवन में एक बड़े हाल के कमरे के आगे बरामदे का निर्माण करवाया। यात्रा प्रेमी है और अब तक बिहार एवं दक्षिण के तीर्थों की यात्रा कर चुके हैं। दोनों पति-पत्नी मुनिभक्त हैं। आहार देते रहते हैं । आ. सूर्यसागर जी ज्ञानसागरजी, विवेक सागर जी, विजय सागर जी को आहार दे चुके हैं। राज्य अच्छे लेखक हैं और बीर वाणी (जयपुर) एवं महावीर जयंती स्मारिका में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। पाटनी जी कुशल कार्यकर्ता एवं अनुभवी समाजसेवी हैं। जो कार्य हाथ में लेते हैं उसे पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ निभाते हैं। पता :- 6, हाइवे हाऊस, नेहरू रोड, सांताक्रुज (पूर्व) बंबई - 400055 Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज /653 पुस्तकें प्रकाशित हुई । इसके अतिरिक्त आप को जैसलमेर की जैन विधा को देन, जैनों के धार्मिक स्थल जैसी पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होने वाली हैं। डा. दोशी अच्छी विदुषी,लेखिका के साथ-साथ भाषण देने में भी शीर्ष स्थान रखती हैं । सन् 1986 में रोटरी क्लब बम्बई से आपको भाषण कला अवार्ड मिल चुका है। इसी तरह पाल(1982माती (141), शवणबेलगोला (1981) में भी आपको सम्मानित किया जा चुका है। श्रीमती दोशी देश की शीर्षस्थ कला संस्थाओं एवं राजकीय संगठनों की सदस्य है । आप अत्यधिक विनीत, विदुषी हैं। सामाजिक समारोहों में जाती रहती हैं । आप श्रीमन्त सेठ लालबन्द दोशी की पुत्रवधू एवं श्री बिनोद दोशी की धर्मपत्नी हैं । दोनों पति-पत्नी अपने-अपने क्षेत्र में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त किये हुए हैं । आप दोनों से ही समाज को बहुत अपेक्षाएं हैं। जैन समाज को गर्व है कि डा. दोषी जैसी विदुधी महिला ने जैन कला को अन्तर्राष्ट्रीय जगत में प्रचारित करने में बहुत अच्छा कार्य किया है। पता : नीला हाउस, एम एलदहानुकर मार्ग, बम्बई 400025 श्री स्वरूपचंद बज श्री बज राजस्थान के नागौर जिले में स्थित मण्डावरा याम के पूर्व निवासी थे । सन् 1955 में यहाँ आकर खाद्यान्न का व्यवसाय करने लगे। आपके पिताजी श्री गुलाबचन्द जी बज आपके साथ रहते हैं किन्तु माताजी श्रीमती पतासी देवी का स्वर्गवास हो गया है। आपका जन्म वैशाख सुदी 14 संवत् 1993 में मण्डावरा में हुआ । बीकानेर (राज) से मैट्रिक पास किया । सन् 1955 में आपका विवाह हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शकुन्तला देवी हैदराबाद के श्री अजयचन्द जी पहाड़िया की सुपुत्री हैं। आपको तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपने अपने व्यवसाय में जो उन्नति की है वह सब स्वयं की सूझबूझ एवं व्यापारिक दक्षता का ही परिणाम है । कट्टर मुनिभक्त है । आर्षमार्गी हैं तथा साधुओं की सेवा में योग देते रहते हैं। समाज के महाराजगंज जैन भवन के व्यवस्थापक हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री अशोककुमार (32 वर्ष)की पत्नी संतोष देवी ताराचन्द जी बगड़ा सेलम की पुत्री है । दूसरा पुत्र अजीतकुमार 25 वर्षीय है। उनकी धर्मपत्नी सीमा ताराचन्द जी गंगवाल किशनगढ़ की पुत्री है । तोसरा पुत्र अभयकुमार अध्ययन कर रहा है। दोनों पुत्रियों शोभा एवं लता का विवाह हो चुका है। आपके बड़े भाई मांगीलाल जी बज तथा छोटे भाई धर्मचन्द जी,महावीर प्रसाद जी बज हैं। मांगीलाल जी ने हैदराबाद पंच कल्याणक में इन्द्र के पद को सुशोभित किया था। धर्मचन्द जी बज एवं उनकी पत्नी ने तथा महावीर प्रसाद जी की धर्मपली ने दशलक्षण व्रत के उपवास किये हैं। पूरा परिवार धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत है। पता : किशोर एण्ड कम्पनी,15-9-1 मुखत्यार गंज, हैदराबाद Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र एवं दक्षिण का जैन समाज/651 श्री विनोद लालचन्द दोशी बम्बई के प्रसिद्ध उद्योगपति दोशी परिवार में 20 मार्च सन् 1932 को जन्मे श्री विनोद दोशी इंजीनियरिंग क्षेत्र में अपनी प्रतिभा, सूझबूझ एवं व्यापारिक दक्षता के लिये प्रसिद्ध हैं। सन् 1949 में आपने गणित एवं भौतिक शास्त्र में एलबीयन कॉलेज अमेरिका से बी.ए.किया। सन् 1951 में उसो विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में एम.ए किया। सन्1983 में अल्बियन कॉलेज द्वारा "Distinguishedi.ari.s" पदक से आपका सामान किया गया । यह अवार्ड 1630 विद्यार्थियों में से 16 चुने हुए विद्यार्थियों को दिया गया था। देश लौटने के पश्चात् आपने बालचन्द हीराचन्द इन्डस्ट्री लि.के विभित्र शीर्षस्थ पदों पर बड़ी योग्यता एवं सूझबूझ से कार्य किया और अपने व्यवसाय में सफलता पर सफलता प्राप्त की। अपने उद्योग में चीनी, सीमेन्ट,बड़े-बड़े बोइलर्स,अणुशक्ति युक्त मशीनरी आदि के निर्माण को सम्मिलित करके तथा जापान, अमेरिका की व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता में आगे निकलकर ऐशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका जैसे देशों में अपनी उत्पादन सामामी भेजकर यश और नाम कमाया तथा अपने उद्योग के आठ हजार लेबर एम्पलायोज के संगठन के संचालन में सिद्धहस्त कहलाए। श्री विनोद दोशो देश के यशस्वी उद्योगपति हैं । विश्व के सभी देशों की कितनी ही बार यात्रा कर चुके हैं और प्रीमियर आटोमोबाइल्स,बालचन्द नगर इन्डस्ट्रीज, इंडियन ह्यम पाइप लि. आदि बड़ी-बड़ी कम्पनियों के चेयरमैन, डाइरेक्टर हैं। सामाजिक सेवाओं में भी आपकी रुचि रहती है । आपके पिताजी श्री सेठ लालचन्द दोशी की छाप आपके जीवन में देखी आ सकती है। दक्षिण भारत में आपके परिवार को श्रद्धा,सम्मान एवं प्यार से देखा जाता है । आपके परिवार की ओर से अनेक शैक्षणिक एवं औद्योगिक संस्थाएं संचालित हैं जिनसे समाज पर्याप्त लाभान्वित होता रहता है। आपके पिताजी सेठ लालचन्द जी अ. मा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र के वर्षों तक अध्यक्ष रह चुके हैं। पता : कन्स्ट्रक्शन हाउस,बालचन्द हीराचन्द मार्ग,देलाई एस्टेट, बम्बई-400038 श्री श्रीनिवास जैन बड़जात्या __ श्री बडजात्या जी ने 75 बसन्त पार कर लिये हैं । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् । उन्होंने पिताजी के साथ व्यवसाय में प्रवेश किया और मद्रास में ही वस्त्र व्यवसाय से जुड़ गये। 21 वें वर्ष में उनका विवाह श्रीमती इन्द्रमणि देवी के साथ संपत्र हुआ। उनको 6 पुत्र एवं एक पुत्री का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके सबसे बड़े पुत्र कंवरीलाल जी 50 वर्ष के हो चुके हैं। उनकी पत्नी का नाम मनफूलदेवी है । दूसरे पुत्र राजकुमार 46 वर्षीय युवा हैं। उनकी पत्नी श्रीमती कमलादेवी के 4 पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं। तृतीय पुत्र श्री पदमचन्द 44 वर्ष के हो चुके हैं। उनकी धर्मपत्नी का नाम संतोषदेवी है । चतुर्थ पुत्र प्रकाशचन्द जी 42 वर्षीय र युवा हैं । उनकी पत्नी संतोषदेवी के दो पुत्र एवं एक पुत्री है । पंचम पुत्र विमल कुमार की पत्नी गुणमाला देवी के चार पुत्र हैं। सबसे छोटा पुत्र अशोक गंगवाल की पत्नी संगीता है । सभी पुत्र पिताजी के साथ व्यवसाय करते है। आपकी एक मात्र पुत्री का विवाह गोहाटी में हो चुका है। Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 652/ जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष - श्री बडजात्या जी हस्तिनापुर जम्बूद्वीप पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में सौधर्म इन्द्र के पद से सुशोभित हो चुके हैं । नागौर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह में माता-पिता बन चुके हैं । श्रेयान्स के रूप में भगवान को आहार भी दे चुके हैं। नागौर के बडे मंदिर में चंवरी का निर्माण करवाया तथा नागौर,पिडावा,मद्रास एवं हस्तिनापुर में भी प्रतिमाएं विराजमान कर चुके नियम से शुर खानपान वाले हैं । शुद्ध खान पान की प्रतिज्ञा आपने मुनि चन्टसागर जी महाराज से ली थी। महासभा के प्रमुख कार्यकर्ता, निर्वाण शताब्दि समारोह पर नागौर की नशियाँ में महावीर स्मारक मनवाया । मद्रास मंदिर के संरक्षक तथा आपके द्वितीय पुत्र राजकुमार मंत्री हैं। सभी तीर्थों की तीन बार वंदना कर चुके हैं। पता • सरावगी ट्रेडर्स,85 गोडाउन स्ट्रीट,पलक मार्केट,मद्रास-1 श्री श्रीपाल काला श्री काला जी के पूर्वज राजस्थान के नागौर जिले का पिताक्ट माम के निवासी थलेकिन 150 वर्ष पूर्व वहां से हैदराबाद आकर रहने लगे । आपका जन्म 9 अप्रैल 1942 को हुआ । उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद से बी कॉम किया और स्पेयर पार्टस आटो मोबाइल्स का व्यवसाय करने लगे। सन् 1959 में आपका विवाह श्रीमती गुणमालाजी के साथ हुआ जो अखेचन्द जी पहाड़िया की पुत्री है। सन् 1970 में आपके पिताजी श्री लूणकरण जी का स्वर्गवास हो गया । आपकी माताजी कीली बाई का अभी आशीर्वाद प्राप्त है। हैदराबाद के केशर बाग के मंदिर में आपने जैन मूर्ति विराजमान की थी । समाज के आप सक्रिय कार्यकर्ता हैं । लाइन्स क्लब के वर्तमान अध्यक्ष हैं | आपके 5 छोटे भाई और है जो सभी हैदराबाद में ही व्यवसाय कर रहे हैं। पता : 3-6-729/4 हिमायत नगर, हैदराबाद डा.(श्रीमती) सरयू वी.दोशी भारतीय स्तर एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न उपाधियों से सम्मानित डा.(श्रीमती) सरयू वी दोशी का साहित्य, कला एवं चित्रित पाण्डुलिपियों के क्षेत्र में भारतीय स्तर एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विद्वज्जनों एवं कला प्रेमियों में विशेष स्थान है । सर्वप्रथम आपने मिशीगन विश्वविद्यालय अमेरिका से सन् 1971 में इतिहास में बी.ए. किया। सन् 1971 में बम्बई विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं कला के अन्तर्गत जैन चित्रित पाण्डुलिपियों पर पीएचड़ी.उपाधि प्राप्त की । सन् 1973 में शिकागो विश्वविद्यालय से मुगल पेन्टिग्स में उच्चतर उध्ययन एवं अनुसंधान कार्य किया । आपके गहन अध्ययन के कारण देश एवं विदेशों के विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त की गई और सन् 1981 से 86 तक "मार्ग" पत्रिका की सम्पादिका रही । सन् 1985 में आपकी पुस्तक मास्टर पीसेज आफ जैन आर्ट मार्ग प्रकाशन बम्बई से प्रकाशित हुई। इसके पश्चात् भारतीय फोटोग्राफी, भारतीय नारी जैसी कलात्मक Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 650/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री मूलचन्द बडजाते की कही मूलरमजी नडताते । . विस्मिान है। उनकी सामाजिक सेवाऐं उल्लेखनीय है । नागपुर प्रान्तीय खण्डेलवाल जैन महासभा के वे सक्रिय एवं कर्मठ कार्यकर्ता माने जाते हैं। वर्तमान में वे दिगम्बर जैन बोर्डिंग हाउस वर्धा के मंत्री हैं साथ ही शांति । कुटीर प्राकृतिक चिकित्सालय गोपुरी वर्धा के भी मंत्री हैं। महाराष्ट्र की और भी कितनी ही संस्थाओं से आप जुड़े हुए हैं। बडजात्या जी का जन्म 5 जून सन् 1924 को हुआ । आपके पिताजी श्री गुलाबचन्दजी भी अच्छे समाजसेवी हैं । आपकी माता सुवाबाई का देहान्त हो चुका है। आपका विवाह श्रीमती मुक्ताबाई के साथ 5 जून सन् 1947 हो हुआ। जिनका भी 10 अक्टूबर 75 को स्वर्गवास हो गया | आपके बड़े भाई श्री ताराचंद बड़जाते रायपुर में ही रहते हैं । जिन्होंने सन्मति नगर की स्थापना एवं एक मन्दिर का निर्माण कराया। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्री चिरंजीलाल जो बडजाते वर्धा आपके चाचाजी थे । वे राष्ट्रीय नेता श्री जमनालाल जी बजाज के विश्वसनीय व्यक्ति थे। श्री चिरंजीलाल जी के पूर्वज राजस्थान के ही थे । पत्ता : बड़जाते ट्रस्ट तिलक चौक, वर्धा (महाराष्ट्र) श्री राजकुमार बड़जात्या मद्रास जैन समाज में सक्रिय काम करने वाले श्री राजकुमारजी बड़जात्या युवा समाजसेवी हैं। आप श्रीनिवास जी बड़जात्या एवं इन्द्रमणि देवी जी के सुपुत्र हैं। श्री श्रीनिवास जी बड़जात्या दक्षिण भारत में प्रसिद्ध समाजसेवी माने जाते हैं। राजकुमारजी का जन्म आसोज सुदी 11 सं. 2000 में हुआ । कलकता यूनिवर्सिटी से आपने बी.कॉम, आनर्स किया। सन् 1964 में आपका विवाह श्रीमती कमलादेवी के साथ हुआ जो भंवरलाल जी पहाड़िया नागौर की पुत्री हैं। आप खण्डेलवालजैन समाज के सेक्रेटरी हैं । आर्यिका विजयमती माताजी के चातुर्मास में सहायक रहे थे । आप माताजी के तमिलनाडू में 6 चातुर्मास तथा पांडीचेरी में भी चातुर्मास करा चुके हैं। आपके चार पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं। जिनमें ललितकुमार एवं सुनीलकुमार बी.कॉम. हैं । विवाहित हैं । ललित कुमार की पत्नी का नाम नीलम है । सुशील कुमार की पत्नी का नाम प्रिया है । सुनील एवं अनिल दोनों पढ़ रहे हैं । पुत्रियों में सुशीलाबाई का विवाह हो चुका है । संगीता एवं सुनिता अभी पढ़ रही हैं। . राजकुमार जी प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं । स्वाध्याय प्रेमी है। पता : 420, मिन्ट स्ट्रीट मद्रास - 79 Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 654/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री सोहनलाल कोठारी (कासलीवाल) कालू (राज) से सन् 1968 में पांडीचेरी और सन् 1975 मैं वहाँ से सेलम आकर साबूदाना का थोक व्यवसाय करने वाले श्री सोहनलाल जी कोठारी अच्छे समाज सेवी हैं । आपका जन्म आषाढ़ बुदी अष्टमी संवत् 2012 में कालू में हुआ। आपके पिताजी श्री मिश्रीलालजी 78 वर्ष की आयु में सन् 1975 में तथा माताजी फूलीबाई का स्वर्गवास सन् 1978 में हो गया । आपने ब्यावर में रहकर मैट्रिक किया । संवत् 1122 आषाढ़ बुदी 8 को आपका विवाह लाडनूं के त्रिलोकचन्द जी सेठों की पुत्री कुसुम देवी के साथ हुआ ! जिनसे आपको पांच पुत्र मनोजकुमार, अनिलकुमार सुनीलकुमार, कमलकुमार एवं नरेश कुमार की प्राप्ति हुई । इनमें मनोजकुमार 25 वर्ष के युवा हैं । विवाह हो चुका है । पत्नी का नाम सुनीता है । पुत्री का नाम मोना है। कोठारी जी सेलम समाज के सरपंच हैं। आर्यिका सुप्रकाशमतीजी माताजी एवं आर्यिका सुभूषण माताजी के सेलम चातुर्मास में बहुत योग दिया। आप बड़े सेवाभावी एवं मिलनसार स्वभाव के हैं। साधुओं के प्रति पूर्ण श्रद्धा भावना है । सेलम रहने पर प्रतिदिन अभिषेक पूजा करते हैं । सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। ___ आप पुनरमलाई (कुन्दकुन्द्री) के इन्द्रध्वज विधान वर्ष 1983 में सौधर्म इन्द्र से गौरवान्वित हुये। सेलम में मंदिर निर्माण में योगदान दिया तथा महाबीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान की । सन् 1982 से शुद्ध खानपान का नियम है । मुनियों की खूब सेवा करते हैं । विजयमती माताजी के सभी 6 चातुर्मास में पूरा योगदान दिया । आचार्य निर्मलसागर जी का चातुर्मास करा चुके पता : मनोज एण्ड कम्पनी,ए-7 पोलिस पैट्रोल रोड़, शिवापेट, सेलम-2 (मद्रास) श्री सोहनलाल गंगवाल बंगलौर के सोहनलाल जी गंगवाल मूलतः नीमाज (राज) के निवासी हैं । सन् 1956 में बंगलौर आकर पहिले 12 वर्ष तक सर्विस में रहे और फिर सन् 1968 में स्वतंत्र कपड़े के थोक व्यवसाय की ओर मुड़ गये। जिसमें अपनी सूझबूझ, व्यापारिक कुशलता एवं परिश्रम से पर्याप्त सफलता मिली। ____ अपने ग्राम नीमाज में आपने 6-10-86 से 16-11-86 तक तीन लोक मंडल विधान का महोत्सव करा चुके हैं तथा वहीं पर भंवरलाल अशरफी देवी अतिथि भवन का निर्माण कार्य आपकी ओर से चल रहा है। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी गंगवाल का स्वर्गवास सन् 1954 में ही हो गया था तथा आपकी माताजी अशरफी बाई 20 वर्ष पूर्व आर्यिका दीक्षा धारण की उनका नाम आर्यिका गुणमती माताजी है। श्री सोहनलाल जी का जन्म 6-10-1941 को हुआ। अष्टम कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिताजी के साथ कार्य करना पड़ा। 25 अप्रेल सन् 1963 को आपका विवाह हुआ। पत्नी का नाम सुशीला देवी है । श्री गंगवाल कट्टरमुनिभक्त हैं । आहार देने की रुचि रखते हैं । वैराग्य सागर जी महाराज को आहार दे चुके हैं । बंगलौर जैन समाज में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा है। पता : ए-8, सकलाजी मार्केट, एवेन्यू रोख, बंगलौर Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /655 यशस्वी समाजसेवी प्रस्तुत खण्ड में ऐसे यशस्वी समाज सेवियों का परिचय दिया जा रहा है जिनका परिचय इसके पूर्व नहीं आ सका था अथवा जिनका परिचय हमें बाद में मिला । सभी समाजसेवी समाज सेवा में समर्पित रहने वाले हैं तथा समाज सेवा ही जिनकी पहचान बन गयी है तथा जो सामाजिक इतिहास में अपना अपूर्व योगदान दे रहे हैं। -सम्पादक 1. श्री अमरचन्द जी पहाड़िया, कलकत्ता 21. श्री बंशीलाल लुहाड़िया, जयपुर 2. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर 22. श्री बलभद्रकुमार जैन, जयपुर 3. श्री कैलाशचन्द बाकीवाला, जयपुर 23. श्री बिलाला परिवार, जयपुर 4. श्री घीसीलाल चौधरी, जयपुर 24. श्री भंवरलाल न्यायतीर्थ, जयपुर 5. श्री गणेशीलाल रानीवाला, कोटा 25, श्री राजमल बेगस्या, जयपुर 6. श्री चिरंजीलाल लुहाडिया जैनदर्शनाचार्य, जयपुर |26. श्री रामचन्द्र कासलीवाल एडवोकेट, जयपुर 7. श्री जयकुमार जैन सिंघवी, जयपुर 27. श्री राजेश जैन कासलीवाल, बिलारी 8. श्री जयचन्द जैन पाटनी, कलकत्ता 28, श्री बिरधीलाल जी सेठी, जयपुर 9. श्री ज्ञानचन्द खिन्दूका, जयपुर |29, श्री रूपचन्द जैन अग्रवाल, कोटा 10. श्री डूंगरमल सबलावत, डेह | 30. श्री विनोदकुमार साह, जयपुर 11.श्री ताराचन्द पोल्याका, जयपुर 31, श्री ब्रजमोहन जैन, जयपुर 12. श्री नवीन कुमार बज, जयपुर 32. श्री शांतिलाल चूड़ीवाल, कलकत्ता 13. श्री नानगराम जैन, जयपुर 33. श्री सरदारमल खंडाका, जयपुर 14. श्री नेमचन्द बाकलीवाल, सुजानगढ़ 34. श्री सीताराम पाटनी, कलकत्ता 15. ब. नेमीचन्द बडजात्या, कलकत्ता 35. श्रीमती सुदर्शन देवी छाबड़ा, जयपुर 16. श्री प्रसन्न कुमार सेठी, जयपुर 26 श्री हीरालाल जी रानीवाला, जयपर 17. श्री प्रो. प्रवीणचन्द जैन, जयपुर 37. डॉ. हुकमचन्द सेठी, जयपुर 18. सुश्री पुष्पा जैन, जयपुर 38, श्री हरकचन्द जी पांड्या सरावगी, जयपुर 19. श्री प्रेमचन्द हैदरी, जयपुर 39. श्री रूपचन्द कटारिया, देहली 20. श्री सेठ बंजीलाल टोलिया परिवार, जयपुर 40. श्रीमती सरोज छाबड़ा 41. श्री जगजीत सिंह जैन, खेकड़ा Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 656/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री अमरचन्द पहाड़या जन्म तिश्वि: संवत् 1973 कार्तिक सुदी चतुर्थी पिता:- श्री गंगाबक्स जी,स्वर्गवास- 1943 में माता- श्रीमती बख्तावरी देवी - स्वर्गवास- 1947 व्यवसाय- जूट के प्रमुख व्यवसायो, बिल्डिंग निर्माण विवाह - संवत् 1997 पत्नी का नाम- श्रीपती गुलाबदेची - सुपुत्री श्री शिवचन्द जी रारा, तलवंडी परिवार |- पुत्र-4 - श्री भागचन्द, चन्द्रप्रकाश, राजकुमार, संजयकुमार । श्री भागचन्द विवाहित हैं तथा कलकत्ता का कारोबार संभालते हैं। श्री चन्द्रप्रकाश जी जयपुर का कार्य देखते हैं। पुत्रियाँ-7 श्रीमती गुणमाला गल्लमाला,हीराबाई सोनाबाई,संतोषन्बाई,नीलमबाई एवं संगीता- सातवीं पुत्री को छोड़कर सभी पुत्रियां विवाहित हैं। विशेष : श्री पहाड़िया जी जैन समाज के सर्वमान्य नेता हैं । समाज के बड़े समारोहों में आपकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। उनका धार्मिक एवं सामाजिक दोनों ही जीवन उत्तम एवं गरिमामय है। धार्षिक : देश में होने वाले विभिन्न पंचकल्याणक महोत्सवों में आप सौधर्म इन्द्र का पद प्रहण करके अथवा झण्डारोहण करके उन्हें सफल बनाते हैं । हस्तिनापुर श्रीमहावीर जी के दि.जैन आदर्श महिला विद्यालय एनं शांति वीर नगर,कलकता महानगरी में संपन्न मानस्तम्भ प्रतिष्ठा महोत्सव तथा दक्षिण कलकत्ता में बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव आदि प्रतिष्ठाओं में आपका योगदान उल्लेखनीय है। 1- सं.1940, 1953, 1967 एवं 1981 में होने वाले बाहुबस्ती महामस्तकाभिषेक में भाग लेकर उसके प्रमुख अतिथि 2- आपकी ओर से शिखरजी में गंधर्व नाले पर सभी यात्रियों को 5 वर्ष तक निःशुल्क कलेवा दिया गया तथा वहाँ एक बंगला बनवा कर यात्रियों के लिए तेरहपंथी कोठी को भेंट कर दिया। 3. लूणवा (राज) में नल फिटिंग करवाकर यात्रियों के लिये जल व्यवस्था की । 4- हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप निर्माण में आपने पूर्ण आर्थिक सहयोग दिया । 5. आदर्श महिला विद्यालय श्री महावीर जी में अमरकक्ष के नाम से एक पूरी विंग बनवाने का यशस्वी कार्य किया। 6- तिजारा क्षेत्र पर मानस्तम्भ की नींव लगाकर आपको ओर से उसके निर्माण के लिये 21 हजार रुपये प्रदान किये गये। 7- सीकर में भरतिया का बास के मंदिर में मानस्तंभ का निर्माण करवाया । सामाजिक :1- सम्मेदशिखर तेरहपंथी कोठी के आप अध्यक्ष हैं तथा आल इंडिया तीर्थ क्षेत्र कमेटी बंबई की कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य हैं। Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी/657 2- महासभा के आप प्रमुख नेताओं में से एक हैं तथा उसकी वैय्यावृत्ति विभाग के संयोजक रह चुके हैं। 3. आदर्श महिला विद्यालय श्री महावीरजी के आप वर्षों से अध्यक्ष हैं । 4. श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के आप परम संरक्षक हैं। 5- आप कट्टर मुनि भक्त है 1 मुनियों को आहार देना, उनकी वैय्यावृत्ति करना.संध को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना आदि में आपकी पूर्ण रुचि है। आचार्य शांतिसागर जी महाराज के गजपंथा, बरामती, कुंथलगिरी में आपने लगातार 13. वर्षों तक दर्शन किये और आचार्य श्री को आहार देने के लिये ही आपने शुद्ध खान - पान का व्रत लिया। आचार्य वीरसागर जी, शिवसागर जी, देशभूषण जी, महावीरकीर्ति जी, विमलसागरजी जैसे आचार्यों की आपने खूब सेवा की। आचार्य विमलसागरजी महाराज पर जब पूर्णिया (बंगाल) में उपसर्ग हुआ तब आपने साहू शांतिप्रसाद जी को रात्रि को दो बजे जगाकर उपसर्ग दूर करने में सहयोग लिया। उदार स्वभाव आप स्वभाव से उदार हैं । जब कभी कोई आपके पास आर्थिक सहयोग के लिये आता है तो आपको उसे सहयोग देने में प्रसन्नता होती है । रोगियों को रोग से मुक्त कराने में आप पूरा सहयोग देते हैं। साहित्य प्रकाशन- आपने अपनी ओर से सुमेरचन्द जी दिवाकर द्वारा आचार्य शांतिसागर एवं आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित इन्द्रध्वज विधान का प्रकाशन कराया है। परिवार:- आपका भरा पूरा परिवार है और पूरा परिवार अत्यधिक विनयां एव आपकी आज्ञा में चलता है । आपके ज्येष्ठ पुत्र भागचन्द जी पहाड़िया आपकी अनुकृति हैं । धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में आपके पदचिन्हों पर चलने में उन्हें प्रसनता होती है। न श्री अपर चन्द डी पहाड़िया श्री भाग चन्दजी पहाड़िया पता:1- जैन दिला, गोपालबाड़ी,जयपुर 2-14, कलाकार स्ट्रीट,कलकत्ता Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 658: जैन समाज का वृहद इतिहास डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल डा.कस्तृरचन्द कासलीवाल साहित्य मनीषी हैं । विगत 45 वर्षों से अनवरत रूप से आपने अपने जीवन को जिनवाणी के चरणों में समर्पित कर रखा है। प्राचीन पाण्डुलिपियों को खोज शोध से उन्होंने अपना साहित्यिक जीवन प्रारम्भ किया और लगातार 15 वर्ष तक बिना थके राजस्थान के अधिकांश जैन शास्त्र भण्डारों में संग्रहित एक लाख से अधिक पाण्डुलिपियों को देखने का ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न कर लिया। आपको इस कार्य में पं.अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ जैसे साहित्य मनीषी का सहयोग मिला । ग्रंथ सूचियों के अब तक पांच भाग प्रकाशित हो चुके हैं । पाण्डुलिपि विज्ञान के क्षेत्र में आपके इस अनूठे प्रयास की हिन्दी के प्रभावक मनीषी महापंडित राहुल सांकृत्यायन, डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी, डा. वासुदेव शरण अग्रवाल, डा. माता प्रसाद गुप्ता.डा. सत्येन्द्र डा. समसिह तोमर डा.ए.एन, उपाध्ये.डा. हीरालाल जैन डा.नेमीचन्द शास्त्री जैसे पचासों शीर्षस्थ विद्वानों ने आपके साहित्यिक अवदान की प्रशंसा ही नहीं की किन्त अपनी कृतियों में उसका उल्लेख भी किया। डा.कासलीवाल की उम्र तक 50 से अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं । सन् 1977 में आपके द्वारा श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी की स्थापना की गयी जिसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दी जैन कवियों एवं उनकी कृतियों को प्रकाश में लाना है। अब तक अकादमी द्वारा जैन हिन्दी कवियों पर 10 भाग प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी जैन कवियों पर इतनी अधिक अचर्चित सामग्री को प्रकाश में लाने वाले आप प्रथम विद्वान हैं। इसी तरह सन् 1985 में आपने जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान की स्थापना की जिसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक इतिहास को प्रकाश में लाने का रखा गया । संस्थान की ओर से प्रकाशित "खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद इतिहास" आपकी महान कृति है । “जैन समाज का वृहद इतिहास” पाठकों के सामने है। ___ विगत 34) वर्षों में आप जयपुर, आरा, गयाजी, वाराणसी, नागपुर, अहमदाबाद, उदयपुर, सागर, इन्दौर, उज्जैन, देहली. कोल्हापुर कोटा, बम्बई, जबलपुर, बीकानेर, पाली, शोलापुर,खेकडा, मुजफ्फरनगर, सरधना, बंगलोर कलकत्ता, लाडनू, ब्यावर, आदि नगरों में आयोजित पचास से भी अधिक संगोष्ठियों में भाग ले चुके हैं । जयपुर अजमेरकोटा बिजोलिया में आयोजित मंगोष्ठियों के आप संयोजक रहे थे डा. कासलीवाल बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। अब तक आकाशवाणी जयपुर से आप बीसों बार विभिन्न विषयों पर बोल चुके हैं । उनके अतिरिक्त अब तक आपके 200 से भी अधिक शोध पूर्ण लेख जैन पत्र पत्रिकाओं के अतिरिक्त राजस्थान पत्रिका राष्ट्र टून नवभारत टाइम्स कादम्बिनी,परिषद पत्रिका, सम्मेलन पत्रिका सप्त सिन्धु, इलेस्ट्रेड वीकली आदि में प्रकाशित हो चुके हैं। सम्मानित एवं पुरस्कृत डा. कासलीवाल को सभी स्थानों पर सम्मान होता रहता है किन्तु सन् 1974 में वीर निर्वाण भारती मेरठ द्वारा आचार्य विद्यानन्दजी महाराज के सानिध्य में उप राष्ट्रपति बी डी. जत्ती द्वारा सम्मानित एवं इतिहासरल उपाधि से अलंकृत, निवाई जैन समाज द्वारा एवं ।। वें वर्ष में पदार्पण के अवसर पर महिला जागृति संघ जयपुर द्वारा सम्मानित होना उल्लेखनीय है । भादि जैन विद्वत् परिषद द्वारा -" राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व" तथा शास्त्री परिषद द्वारा "दौलतराम कासलीवाल,व्यक्तित्व एवं कृतिल" पुस्तक पुरस्कृत हो चुकी है। जन्म एवं परिवार डा.कासलीवाल का जन्म 8 आगस्त, 19210 को सैंथल ग्राम (राज) में हुआ । आपके पिताजी स्व.श्री गैंदीलाल जी प्राम के प्रमुख व्यवसायी थे। पांच वर्ष की आयु में ही आपकी माता का देहान्त हो गया । इसलिए मातृ स्नेह से आप वंचित रहे । Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी 659 गांव में प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् आपके पिताजी ने आपको एवं आपके छोटे भाई तेहा प्रभुदयाल जी को पण्डित चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के चरणों में छोड़ दिया। पंडित जी साहब के पास आप 12 वर्ष तक रहे। उनका पितृत्व स्नेह, शुभाशीर्वाद एवं मार्गदर्शन मिला। सन् 1945 में एम. ए. पास करने के पश्चात् तीन वर्ष तक स्थानीय जैन महावीर हायर सैकण्डरी विद्यालय में शिक्षक जीवन व्यतीत किया। इसके पश्चात् आप केन्द्रीय सेवा में चले गये। वहां से सन् 1978 में सेवा निवृत्त हुए । श्री महावीर क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग के 30 वर्ष से भी अधिक समय तक निदेशक पद पर रहते हुए खोज और शोध कार्यों में जुटे रहे। आपका भरा पूरा परिवार है। आपकी पत्नी श्रीमती तारादेवी सामाजिक कार्यों में भाग लेती हैं। आपके बड़े भाई चिरंजीलाल जी दौसा जिले के सम्माननीय व्यक्ति थे जिनका अभी 15 जनवरी 92 को हो स्वर्गवास हुआ है। आपके छोटे भाई प्रभुदयाल जी भी अच्छे लेखक एवं वक्ता हैं। आपकी एक मात्र बहिन राणोली रहती हैं आपके दो पुत्र निर्मल नरेन्द्र, दो पुत्र वधुएं तीन पौत्र एवं दो पौत्रियां हैं। आपके तीन पुत्रियां निर्मला राशि व सरोज हैं तीनों का विवाह हो चुका हैं। वे भी सामाजिक कार्यों में भाग लेती हैं। शशि एवं सरोज एम.ए. हैं। . आपके बड़े पुत्र श्री निर्मलकुमार विद्युत बोर्ड में वरिष्ठ लेखाकार हैं। पत्नी का नाम श्रीमती सन्तोषदेवी है जो दो पुत्रों अविनाश एवं आलोक की जननी है। छोटे पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार कासलीवाल (38 वर्ष) एम.ए. भी राज्य सेवा में हैं। पत्नी का नाम श्रीमती मैना देती है । दो पुत्रियों निधि एवं नेहा तथा एक पुत्र नमन की माँ हैं। डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल श्रीमती सन्तोष देवी श्रीमती तारा देवी श्री नरेन्द्र कुमार C श्री निर्मल कुमार श्रीमती मैना देवी Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 660/ जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री कैलाशचन्द बाकीवाला राजस्थान में बैंकिंग के जाने-माने विशेषज्ञ और प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता श्री कैलाशचन्द बाकीवाला का जन्म 16 जनवरी 1920 को जयपुर में हुआ। अपी जयपुर में कई और के सपने सी.ए. आई आई बी. का पाठ्यक्रम किया। छात्र जीवन में ही क्रांतिकारी विचारों के श्री बाकीवाला स्वतंत्रता संघर्ष के कूद गये थे। आपने कितने ही आन्दोलनों में खूब कार्य किया तथा उनका नेतृत्व किया। बैंक सेवा से आपने मुख्य कार्यालय बम्बई से सहायक महाप्रबंधक के रूप में अवकाश ग्रहण किया। श्री बाकीवाला का जयपुर के सार्वजनिक जीवन में विशिष्ट स्थान हैं। श्री धीसीलाल चौधरी मोजमाबाद(जयपुर) के चौधरी परिवार में जन्मे वयोवृद्ध श्री घीसीलाल चौधरी 50 वर्षों से भी अधिक समय तक सामाजिक क्षेत्र में छाये रहे और वर्तमान में उनके प्रति समाज की पूर्ण श्रद्धा भाव बने हुये हैं। उनका जन्म कार्तिक कृष्णा सप्तमी संवत् 1961 तदनुसार 31 अक्टूबर सन् 1904 को श्री अगरचन्द जी चौधरी के यहां हुआ। श्री धीसीलाल जैन हिन्दी, उर्दू, फारसी की सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् राजकीय सेवा में चले गये और अन्त में 33-10-69 को तहसीलदार के पद से सेवानिवृत्त हुये। बीसों संख्याओं की सेवा करने के पश्चात् वर्तमान में आप निवृत्तिपरक जीवन जी रहे हैं। श्री गणेशीलाल रानीवाला 1. जन्म: 2. वर्गीकरण : 3. विवाह : 4. पारिवारिक पृष्ठभूमि : 5. कोटा निवास : 6. व्यक्ति के रूप में 7. समाजसेवा : : 2 मार्च 1916 ब्यावर (राज.) उद्योगपति श्रीमती राधा रानीवाला से 1928 में । राजस्थान के प्रसिद्ध रायबहादुर सेठ चम्पालाल रामस्वरूप जिन्हें कॉटन किंग के नाम से जाना जाता था के परिवार के सेठ चम्पालाल जी के पुत्र । सन् 1954 में कोटा में पधारे। सदैव प्रसन्न मुद्रा में मिलने वालों पर आप एक विशेष प्रभाव छोड़ते हैं, विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित करने की विशेष क्षमता है। विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक एवं धार्मिक सेमिनारों का सफल आयोजन किया है। आपके मार्गदर्शन में एक साप्ताहिक पत्र का भी प्रकाशन हुआ। 1. 2500 वां महावीर निर्माण महोत्सव समिति कोटा संभाग के अध्यक्ष रहे जो Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /661 8. अंतराष्ट्रीय स्तर पर : राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया था। अग्रवाल संघ कोटा के अध्यक्ष रहे | नागरिक संपर्क समिति के संयोजक कोटा को जनता के हित में अधिकारियों को कई बहुमूल्य सुझाव दिए जिनके परिणाम उत्तम रहे । 1975 में बाधित बाल विकास केन्द्र को स्थापना की जिसके द्वारा विकलांगों के विद्यालय का संचालन किया जाता है उसके आप अध्यक्ष हैं। कई सामाजिक कार्यक्रमों की अध्यक्षता की। कई पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में सक्रिय योगदान दिया । कई धार्मिक शिविरों का सफलतापूर्वक संयोजन किया । रोटरी क्लब कोटा के संस्थापक सदस्य कई बार अध्यक्ष पद को सुशोभित किया । यह क्लब अंतर्राष्ट्रीय रोटरी क्लब से संबंधित है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिसकी शाखा है ऐसे ही फ्री मेसन लोज की कई शाखाओं के सदस्य। श्री शांतिवीर दिगम्बर जैन संस्थान श्री शांतिवीर नगर,महावीर जी । वर्धमान ट्रस्ट महावीर ट्रस्ट जैन निकेतन ट्रस्ट रोटरी सामुदायिक सेवा ट्रस्ट के कई बार ट्रस्टी रहे । त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर। श्री भारतवर्षीय शांतिवीर दिगम्बर जैन सिद्धांत संरक्षिणी सभा । 10, कार्याध्यक्ष : II. मुख्य सचित्र : आपको तीन पुत्र श्री महेन्द्रकुमार (58), सुशीलकुमार (54),रमेशकुमार (46) एवं एक पुत्री इन्दुबाला के पिता बनने वा सौभाग्य प्राप्त है। Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6621 जैन मम्गज का बृहद इतिहाम श्री चिरंजीलाल लुहाड़िया जैनदर्शनाचार्य श्री लहाइया जी जयपुर के प्रथम जेंटदर्शनाचार्य हैं । लेकिन लक्ष्मी पुत्र होने के कारण आपने पंडिताई न करके व्यवसाय में ही हिना पसन्द किया . आपका जन्म 3 अगम्म न 1127 को हुआ । पं.चैनमुखदय जी न्यायतीर्थ के पास सन 1954 में जैनदर्शनाचार्य किया । आप अत्यधिक मरल,शान्त स्वभावों एवं धार्मिक प्रकृति के विद्वान है, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित होने रहते हैं। 24 जनवरः सन् 1943 को आपका विवाह भंवरबाई के माथ हुआ जिनसे आपको तीम पुत्र महेशचंद सुरेश एवं जिनेश तथा चार पुत्रियाँ पुन्नादेवी, जयन्ती इन्द्रा एवं आशा बाई । सभी पुत्र एवं पुत्रियाँ बिगहित हैं । आपके तीनों पुत्र जवागरात का कार्य करते हैं। पर महाड़िया गान मान, हार-मार्ग सपो': स्यपुर) श्री जयकुमार जैन सिंघवी मुलतान् दिगमा जैन समाज के प्रमुख मदम्य श्री जयकुमए जैन समाज सेवा के प्रतीक हैं : समाज सेवा में आप अहर्निश समर्पित रहते हैं। सन् 1947 में मुलतान जैन समाज के समस्त परिवारों को सकुशल जयपुर लाने में आपने अपनी सूझबूझ एवं दक्षता का जो परिव्य दिया वह वर्षों तक चर्चा का विषय रहा । मुलतान जैन समाज के आप वर्षों नक मंत्री रहे तथा डा.कारलीवाल दास "मुलतान जैन समाज- इतिहास के आलोक में" पुस्तक का प्रकाशन भी आपके जाल में स्पन्न हुआ। आदर्श नगर में मुलतान समाज द्वारा विशाल एवं भव्य दिगम्यर जैन मन्दिर का निर्माण हुआ है उसमें आपका प्रमुख सहयोग रहा हैं। पता- चौथूराम जयकुमार जैन जौहरी बाजार रार श्री जयचन्द जैन याटनी श्री पाटनी जलभक्त शिरोमणि स्व. श्री न्यालचन्द जी पाटनी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म 20 अगस्त सन् 1938 को हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती फूला देवी पाटनी है। आपने बी.कॉप साहित्यरत्न एवं प्रभाकर किया है । श्री ऋषभकुमार एवं अजितकुमार आपके भाई हैं। श्री अजितकुमार जी बी कॉम आनर्स) एवं मी.ए. हैं । व्यवसाय- चाय के निर्माता एवं व्यवसायी विशेष- आप अहिंसा प्रचार समिति कलकत्ता, दि. जैन विद्यालयांद. जैन बालिका विद्यालय के सदस्य हैं श्री महादीर 'शशु विहार के मंत्री.दि जैन सम्मेलन के उपप्रचार मंत्री टी एरगेखिये के निवर्तमान उपाध्यक्ष हैं। ___सामाजिक एवं धार्पिक । - आपके पिताजो न खण्डगरों उदयगिरी में पंचकल्याणक प्रतिष्टा कराई थी : वर्तमान में आपके काकानी नेमीचंद जी लाइन के पंचकल्याण पल्ष्ठिा में भगवान के माता-पिता, सौधर्म इन्द्र बने थे । Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /663 2- बडवानी में 43 फुट लम्बा मारस्तंभ स्व.श्री 108 श्री चन्द्रसागर जी मुनि महाराज के सानिध्य में बनाकर प्रतिष्ठित कराया था 3- सुजानगढ़ में 1 || आचार्यकल्प श्री चन्द्रसागरजी के चातुमांय की स्मृति में चन्द्रसागर स्मृति भवन के नाम से विशाल भजन बन या जो स्थानीय समाज को बहुत सेवायें देता है। 4. सुजानगढ़ में गृह चैत्यालय बनाया है। 5- सुजानगढ़ नमिया में एक विशाल नेमीनाथ भगवान की मूर्ति बनाई है तथा चांदी की तीन मूर्तिया मंदिर जी में प्रदान की है। 6. मुजानगढ़ में गौशाला में गौ गृह बनाया है। 7. पैन्डारड़ में कोटेश बनाई है, जिससे टीबी के मरीज लाभ उठाते हैं । पहा - चांदपल बनानात्न पं. 13, कलाकार स्ट्रीट कलकता ? श्री ज्ञानचंद खिन्दूका सन् 1973 में जन्मे श्री ज्ञानचन्द खिन्दूका वर्तमान में जयपुर में ख्याति प्राप्त समाजसेवी हैं । आपके पिताजी श्री रामचन्द जी बिन्दूका जाने माने समाजसेवा थे। आपने बी.ए. किया तथा वाहरात व्यवसाय में लग गये । श्री महावीर क्षेत्र कमेटी के आप सभी पदों पर कार्य कर चुके हैं तथा वर्तमान में जैन विद्या संस्थान के संयोजक हैं । जयपुर नगर परिषद के भी आप सदस्य रह चुके हैं । दि, जैन रंदिर महासंघ के उपसभापति हैं । कर्मठ कार्यकर्ता तथा प्रभावक वक्ता है। पता- महावीर पार्क के सामने मणिहारों का रास्ता, जयपुर श्री डूंगरमल सबलावत डेह निवासरी श्री डूंगरमल जी स्त्रलाग्द समाज के प्रतिष्टिन एवं सेवाभावी सनन हैं । मुनियों की सेवा करने में आगे रहते हैं . आप आर्यिका इन्दुमती माताज के सम्पादन एवं प्रकाशन का बहुत ही यशस्वी कार्य कर चुके हैं । डा. लालबहादुर शास्त्री जी के शब्दों में आप कठोर परिश्रम तथा लगन के एक्के हैं। अनेक विघ्न बाधाओं में भी आप अपने उत्तरदायित्व को पूरा करते रहते हैं । डेह के मंदिरों के संबंध में आप विशेष रुचि लेते हैं । दि. जैन महासभा के आप कट्टर समर्थक हैं । आप जैसे समाज सेवियों पर समाज को पूर्ण गर्व है। . श्री ताराचन्द पोल्याका क पांड्या गोत्रीय श्री ताराचंद जी का पोल्याका बैंक है। आपके पिताजी श्री नाथूलाल जी पोल्याना भी अच्छे स्वाध्यायी व्यक्ति हैं । पोल्याका जी का जन्म 10 नवम्बर सन् 1931 को हुआ तथा न्यायतीर्थ एवं बी.कॉप.पास करके केन्द्रीय सेवा में चले गये जहाँ वे सन् 1988 में डिवीजनल अकाउन्दैन्ट पद से सेवानिवृत्त हुये। Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 664/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आपका विवाह सन् 1953 में गुणमाला देवी के साथ हुआ । जिनसे आपको दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई । आपके दोनों पुत्र सुमन्त कुमार एवं सुनीलकुमार जवाहरात के अच्छे व्यवसायी हैं। श्री सुनीलकुमार जैन तो जैमको के पार्टनर हैं जिनको केन्द्र सरकार की ओर से सन् 1990 में सर्वोच्च एक्सपोर्ट व्यवसाय का अवार्ड मिल चुका है। दोनों ही भाई बी.एस.सी. हैं। दोनों पुत्रियाँ सीमा एवं सुनीला का विवाह हो चुका है । श्री पोल्याका जी अत्यधिक विनम्र एवं सेवाभावी हैं। S श्री ताराचन्द पोस्याका श्री सुमन्त कुमार प्रो सुनील कुमार पता- एस 64-65 सिवाड एरिया,कृष्णा मार्ग, बापू नगर, जयपुर श्री नवीनकुमार बज राजस्थान विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर श्री नवीनकुमार बज अपनी वक्तृत्व शैली एवं सामाजिक सूझबूझ के लिये प्रसिद्ध है । आप जयपुर की विभित्र संस्थाओं से जुड़े हुये हैं जिनमें राजस्थान बैन साहित्य परिषद,श्री महावीर क्षेत्र की प्रबन्धकारिणी समिति,जवाहरनगर जैन समाज का नाम उल्लेखनीय है । आपका जन्म 21 मई 1942 को हुआ। एम.ए.करने के पश्चात् आप राजस्थान विश्वविद्यालय में चले गये। आपकी पत्नी श्रीमती अन्ना जैन भी डाक्टर हैं। पता: 15-7जवाहर नगर,जयपुर श्री नानगराम जैन _ विगत दो दशकों से जयपुर जैन समाज की सेवा में समर्पित श्री नानगराम जी जैन विशाल एवं बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी हैं । समाजसेवी हैं । शांत रहकर चुपचाप कार्य करने में विश्वास रखने वाले श्री जैन का जन्म 8 जनवरी सन् 1923 को हुआ । आपके पिताजी श्री भोलानाथ जी एवं माताजी श्रीमती तीजा बाई दोनों का ही स्वर्गवास हो चुका है। आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात जवाहरात उद्योग में प्रवेश किया और उसमें आशातीत सफलता प्राप्त की। आपका सन 1940 में Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /665 श्रीमती किरण देवी जी के साथ विवाह हुआ जिनसे आपको चार पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके चारों पुत्र सर्व श्री सौभाग्यमल, सुरेशचंद, सुभाइम द्र एवं संतोमकुमार सभा दि. 7. अपने पैमा मापसाय जवाहरात में कार्यरत हैं। आपकी एकमात्र पुत्री विद्या जैन का भी विवाह हो चुका है। श्री जैन जब से आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज के सम्पर्क में आये उनके पूर्ण भक्त बन गये । आफ्ने एक बार आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज को देहली से जयपुर लाने का यशस्वी कार्य किया और फिर सन् 1979-80 में चातुर्मास कराया। सन् 1981 में आयोजित खानिया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया तथा प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के अध्यक्ष रहकर प्रतिष्ठा कार्य को संपन्न कराया। आप जयपुर की कितनी ही संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। श्री महावीर क्षेत्र कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य हैं। श्री महावीर पंथ अकादमी के उपाध्यक्ष हैं । स्वभाव से धार्मिक प्रकृति के हैं । आपका पूरा परिवार ही मुनि भक्त है तथा आहार आदि से सेवा करते रहते हैं। प्रतिदिन पूजा अभिषेक का नियम है । आतिथ्य प्रेमी हैं । समाज को आपसे बहुत आशायें हैं। पता:- महावीर भवन, 1 हास्पिटल मार्ग,सी-स्कीम, जयपुर श्री नेमचन्द जी बाकलीवाल लालगढ़ निवासी स्व.श्री खूबचंद जी बाकलीवाल के सुपुत्र श्री नेमचंद जी बाकलीदाल सुजानगढ़ के सबसे वयोवृद्ध समाजसेवी है। आपके जीवन का एक लम्बा इतिहास है। जिसको सीपित शब्दों में कहना बड़ा कठिन है। आपका जन्म माघ बदी 11 संवत् 1959 को हुआ। आपने सामान्य शिक्षा प्राप्त की । 13 वर्ष की छोटी अवस्था में आपका विवाह श्रीमती भंवरीदेवी से हुआ। जिनसे आपको चार पुत्र सर्व श्री माणकचंद, पदमचंद, मोतीलाल एवं भागचंद एवं छह पुत्रियां कमलाबाई विमलाबाई,शांतिबाई,जयदेवी गुणमाला एवं लीला के - पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इनमें से आपकी पुत्री शांतिबाई ने 30 वर्ष पूर्व आ शिवसागर जी से 24 वर्ष की आयु में आर्यिका दीक्षा ली। आपका नाम आर्यिका विद्यामती है तथा आर्यिका सुपार्श्वमती जी के संघ में है। आपने आसाम में मैं, सालिगराम राय चुन्नीलाल बहादुर फर्म में सुपरवाईजर कोटि से कर्मक्षेत्र में प्रवेश किया था। जोरहाट में आप म्युनिसपल कमिश्नरमारवाड़ी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष,मारवाड़ी समाज के अध्यक्ष तथा इम्पीरियल बैंक की डिबरूगढ़ शाखा के ट्रेजरार थे। आप बड़े अनुशासन प्रिय कर्मठ,कर्तव्यनिष्ठ,कुशल आरबीदेटर विवेकशील, धर्मपरायण व दानशील सज्जन हैं। 75 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर आपकी हीरक जयन्ती धूमधाम से मनाई गई थी। आप 82 वर्ष के तन से वयोवृद्ध होने पर भी मन से युवक,मुजानगढ़ समाज के अध्यक्ष रहे । भगवान महावीर की 25 सौ वीं निर्वाण शताब्दी के सीकर संभाग के अध्यक्ष थे जिसके कारण आपको स्व. साहूजी ने निर्वाण शताब्दी कमेटी की तरफ से स्वर्ण पदक से विभूषित किया था। अ.भा.दिगम्बर जैन महासभा के सुजानगढ़ अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष भी रहे । Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 666/ जैन समाज का वृहद् इतिहास अभी पिछले वर्ष अखिल भारतवर्षीय महासभा ने आपको समाज भूषण की उपाधि से विभूषित किया है। आप सालिगराम चुनीलाल बहादुर एण्ड कं.डिबरूगढ़ के मुख्य संचालकों में थे। आपके बड़े प्राता भंवरीलाल जी बाकलीवाल महासभा के अध्यक्ष थे। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री माणकचंद जी 67 वर्ष के हैं। श्रीमती शांतिदेवी धर्मपत्नी हैं। दो पुत्रियों के पिता हैं । दूसरे पुत्र पदमचंद जी 63 वर्ष के हैं। अविवाहित हैं। तीसरे पुत्र मोतीलालजी 60 वर्षीय हैं। बी.कॉम. हैं। चतुर्थ पुत्र भागचंद जी बी.कॉम.एल.एल.बी.एडवोकेट है । एल.एल.बी.में गोहाटी विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। सन् 1954 में शांतिदेवी से आपका विवाह हुआ। भागचंद जी के चार पुत्र बसन्त,पुखराज,अशोक, सुशील एवम् एक पुत्री कल्पना है । आपका परिवार आसाम में कार्य करता है । वहां आपके घर में चैत्यालय है । सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। हम श्री नेमचंद जी के दीर्घ जीवन की कामना करते हैं। पता :- (1) बाकलीवाल भवन, सुजानगढ़ (2) नेमचंद माणकचंद एण्ड कं, शिवसागर । ब्र. नेमीचन्द बड़जात्या धार्मिक एवं सामाजिक जीवन जीने वाले छ.नेमीचन्द जी बड़जात्या यशस्वी व्यक्ति हैं। आपके पिताश्री दीपचन्द जी बड़जात्या भी ब्रह्मचारी थे जिनका स्वर्गवास लाडनूं में संवत् 2016 में आचार्य शिवसागर जी के सानिध्य में समाधिमरण पूर्वक हुआ था । आपकी माता श्रीमती सोनीबाई का स्वर्गवास संवत् 2002 में श्री महावीर जी में हुआ था । बड़जात्या जी का जन्म संवत् 1966 में बैशाख बुदी 4 के शुभ दिन हुआ । सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् संवत् 1983 में श्रीमती मोहनी देवी के साथ आपका विवाह संपन्न हुआ। आपके दो पुत्रों में बड़े पुत्र श्री हुकमचन्द बी.कॉम. हैं। 43 वर्ष के हैं। आपके भी तीन पुत्र एवं एक पुत्री है। दूसरे पुत्र श्री प्रकाशचन्द 40 वर्ष के युवा हैं। बनेपीचन्द जी के 6 पुत्रियाँ हैं जिनके नाम मैनाबाई, सुलोचनाबाई,शरबतीबाई, पदभाबाई,चम्पाबाई एवं सबसे छोटी सुशोलाबाई है । सभी बिवाहित हैं । विशेष- पार्मिक- हस्तिनापुर जम्बूद्वीप पंचकल्याणक में आप सनत्कुमार इन्द्र के पद से सुशोभित हुये तथा गजरथ में इन्द्र का आसन ग्रहण किया । नागौर में संवत् 2006 में श्री आदिनाथ दि. जैन मंदिर में संगमरमर का शिखर एवं वेदी बनवाकर उस पर कलशारोहण का यशस्वी कार्य कर चुके हैं। संवत् 2022 में आचार्य शिवसागर जी महाराज के पास-वती जीवन अपनाने का नियम लिया तथा नागौर में मुनि श्री श्रेयान्ससागर जी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकर किये । फुलेरा के मंदिर में वेदी बनवाकर शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान की । इसी तरह कलकत्ता के बेलगछिया के मानस्तंभ में एक वेदी का निर्माण करवाया। Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /667 यह्मचारी जी मुनिराजों, आर्यिका माताजी को आहार आदि देकर पुण्यार्जन करते रहते हैं । चातुर्मास में साधुओं के दर्शन करना आपका नियमित कार्य रहता है। पता- हुकमचन्द प्रकाशचन्द नं.4, राज उडमेन्ट स्ट्रीट,कलकत्ता-1 श्री प्रसन्नकुमार सेठी जन्मतिथि 14 जुलाई सन् 1935 है। श्री सेठी अपनी सादगी, समाज सेवा एवं काव्य रचना के लिये प्रसिद्ध है। आप एम.कॉम.विशारद हैं तथा राजस्थान बैंक सेवा में कार्यरत हैं । आप घर-घर जाकर लोगों को पढ़ने के लिये धार्मिक, साहित्यिक एवं बालोपयोगी पुस्तकें वितरण करने में विशेष रुचि रखते हैं । आपकी कविताओं के कई संग्रह निकल चुके हैं। पता: चुरूकों का रास्ता,जयपुर प्रोफेसर श्री प्रवीणचन्द्र जैन राजस्थान के जाने माने संस्कृत विद्वान श्री प्रवीणचन्द्र जैन का जन्म 14 अप्रैल,1909 को जयपुर में हुआ ! आपने संस्कृत और हिन्दी में एम.ए.,शास्त्री तथा साहित्यरल की उपाधियाँ प्राप्त की । आप सन् 1942-43 में जी.बी. पोद्दार कॉलेज नवलगढ़ में व्याख्याता,1943 से 47 तक संस्कृत के प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष, 1947 से 50 तक वनस्थली विद्यापीठ एवं 1953 से 56 तक महारानी श्री जया कालेज भरतपुर के प्राचार्य,1957-58 में राजकीय महाविद्यालय कोटा के उपाचार्य,1958 से 65 तक डूंगर कॉलेज बीकानेर के प्राचार्य तथा सेवानिवृति के पश्चात् वनस्थली विद्यापीठ के पुनःप्राचार्य रहे 1 आप भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के आजीवन सदस्य हैं। प्रोफेसर जैन श्री दि.जैन अक्षेत्र श्री महावीर जी द्वारा संचालित जैन विद्या संस्थान के डाइरेक्टर रह चुके हैं। शोध कार्यों में आपकी विशेष रुचि रहती है। सुश्री पुष्पा जैन राजस्थान की पर्यटन, कला एवं संस्कृति, पुरातत्व,महिला एवं बाल विकास तथा बाढ़ एवं अकाल सहायता आदि विभागों की मंत्री सुश्री पुष्पा जैन का जन्म भारत विभाजन के बाद जयपुर आकर बसे एक प्रतिष्ठित मुल्तानी जैन परिवार में सन् 1950 में हुआ। आपने भातखण्डे स्कूल लखनऊ से संगीत में स्नातक और राजस्थान विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. तथा श्रम कानूनों का डिप्लोमा पाठ्यक्रम उत्तीर्ण किया । व्यवसाय के रूप में यद्यपि आपने काला कोट पहिला लेकिन वह धनोपार्जन से कहीं अधिक अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ाई में गरीबों और दलितों को कानूनी सहायता पहुंचाने के इरादे से । यही कारण था कि सत्तर के दशक में राज्य कर्मचारी आंदोलन में बंदी बनाये गये बेगुनाहों और आपातकाल में भारत रक्षा और आन्तरिक सुरक्षा कानूनों के अन्तर्गत गिरफ्तार लोगों के परिवारों को बिना किसी शुल्क के कानूनी मदद देने में आपने दिनरात एक किया। दूसरों के कष्टों को अपना कष्ट समझने के संस्कारों ने ही आपकों राजनीति में धकेला । यही कारण है कि सभी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में आप सदैव अग्रणी रही हैं। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने आपकी प्रतिभा को पहचाना और जून 1977 में हुये विधान सभा चुनाव में अजमेर क्षेत्र से आपको मैदान में उतारा । एक सर्वथा नये और अपरिचित क्षेत्र में मैदान जीतने के साथ ही आपने ऐसी मजबूत नींव जमाई कि बाद में 1980 में भी आपने Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 668/ जैन समाज का वृहद् इतिहास आसानी से चुनाव वैतरणी पार कर ली। 1984 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के भाजपा नेतृत्व ने आपको पालो जोरथ भगालोगारमात्र में गीता के दिग्गज नेता स्व.मूलचन्द डागा के सामने चुनाव लड़ने के लिये धकेल दिया जिसे आपने चुनौती के रूप में लिया। परिणाम यह हुआ कि आप चुनाव में विजयी तो नहीं हो सकी लेकिन समूचे प्रदेश में सबसे कम मतों के अन्तर से पराजित होने वाली आप ही थी। इसके बाद 1985 और 1990 के दोनों विधान सभा चुनावों में आप पाली क्षेत्र से विजयी हुई। 14 मार्च 1940 को आप शेखावत मंत्रीमंडल में उपरोक्त विभागों की मंत्री नियुक्त की गई। संगीत एवं कला में आपकी सक्रिय रुचि जन्मजात है । सुश्री पुष्पा प्रारम्भ से ही जैन संस्कारों में पली हैं । सामाजिक आयोजनों में आप खूब रुचि लेती हैं समाज को आप से बहुत आशाएं हैं । श्री प्रेमचन्द हैदरी सामाजिक सेवा में रुचि लेने वाले श्री प्रेमचन्द हैदरी जयपुर के यशस्वी समाजसेवी है। राजस्थान जैन साहित्य परिषद एवं वीर सेवक मंडल के साथ प्रारम्भ से ही जुड़े हुये हैं तथा जब कभी स्वयं सेवक के रूप में बाहर जाते रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कमलेश देवो महिला जागृत्ति संघ की सक्रिय सदस्य हैं। हैदरी के पिताजी अजीतमल जी भी समाज के गणमान्य सदस्य हैं तथा स्वाध्याय प्रेमी हैं । हैदरी आपका बैंक है । आप खण्डेलवाल दिगम्बर जैन हैं तथा बाकलीवाल गोत्र है। पता - हैदरी भवन,मनिहारों का रास्ता, जयपुर Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . यशस्वी समाजसेवी/669 जयपुर का सेठ बंजीलाल ठोलिया परिवार " ..... जयपुर नगर का सेठ बंजीलाल ठोलिया परिवार सारे देश में प्रसिद्ध परिवार माना जाता है । विगत 100-125 वर्षों से इस परिवार के सदस्यों ने जवाहरात के व्यवसाय में विश्व में अपना विशिष्ट स्थान बनाया तथा देश एवं समाज में अपनी सेवाओं के कारण विशेष ख्याति प्राप्त की। इस परिवार के सेठ बंजीलाल ठोलिया,सेठ गोपीचन्द ठोलिया एवं सेठ सुन्दरलाल ठोलिया समाज में राष्ट्रीय स्तर के नेता थे और जयपुर के ठोलिया परिवार का सर्वत्र नाम था। सेठ बंजीलाल ठोलिया के पूर्वज कुली ग्राम के रहने वाले थे जहाँ ठोलियों का पंचायती कलात्मक मंदिर आज भी प्रसिद्धि प्राप्त मंदिर है। कली प्रामसे ठोलिया परिवार सांगानेर आकर बस गये और वहाँ भी ठोलियों का मंदिर है जिसमें मकराने की कलात्मक वेदी में प्राचीन एनं मनोरम मूर्तियाँ विराजमान हैं । जब ठोलिया परिवार जयपुर आ गया तो यहाँ भी ठोलियों का मंदिर के नाम से जैतराम जी ठोलिया ने विशाल मंदिर का निर्माण करवाया और जिसमें विराजमान बिल्लोरी पाषाण की पूर्तियाँ सारे देश में प्रसिद्ध हैं जिनके दर्शनार्थ प्रतिवर्ष हजारों यात्री आते रहते हैं। सेठ बंजीलाल जी का जन्म आषाढ़ सुदी पंचमी संवत् 1914 को हुआ। आपके पिताजी श्री कालूराम जी गोटे एवं बटुये बनाने का छोटा सा धन्धा किया करते थे । आप अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर जवाहरात के व्यवसाय की ओर मुड़े । सर्वप्रथम इस व्यवसाय में निपुणता प्राप्त को और अपनी लग्न एवं सूझबूझ से अल्प अवधि में ही आप अच्छे व्यापारियों में गिने जाने लगे । सेठ साहब ने उस समय जयपुर से जवाहरात व्यवसाय का विदेशों से सम्पर्क बनाया और आयात निर्यात का व्यवसाय कर दिया । आप देश के अपणी व्यापारियों में गिने जाने लगे । विदेशी व्यवसायी मी आपसे जवाहरात का कार्य सीखने आते थे इसमें पेरिस के विरोजन पाल का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । एक बार तो जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह जी जब लंदन जाने लगे तो आपने महाराजा को लंदन की फर्म पिटार्स पर हुण्डी लिखकर दी थी। संतान :- सेठ साहब के पांच पुत्र गोपीचंदजी,हरकचंदजी, सुन्दरलाल जी,पूनमचंद जी एवं ताराचन्द जी एवं दो पुत्रियाँ बन्दोबाई एवं सूरजबाई हुई । इनमें चन्दोबाई धर्मपत्नी श्री प्रकाशचन्द जी कासलीवाल का आशीर्वाद प्राप्त है । सेठ साहब के प्रमुख पुत्र, पौत्र एवं प्रपोवों का परिचय निम्न प्रकार है:श्री गोपीचन्द जी ठोलिया ___ श्री गोपीचंद जी सेठ बंजीलाल जी ठोलिया के ज्येष्ठ पुत्र थे । आपका जन्म श्रावण कृष्णा अष्टमी संवत् 1942 को शुआ। आपने मास्टर अर्जुनलाल जी सेठी के विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। 13 वर्ष की आयु में ही आपने पिताजी के साथ कारोबार में हाथ बंटाना शुरू किया । आप बहुत ही सादगी पसन्द व्यक्ति थे । आपने सामाजिक, पारिवारिक व धार्मिक कार्य में भी अपना काफी समय दिया । राजदरबार में आपको कुर्सी प्राप्त थी । कई वर्षों तक आप आनरेरी मजिस्ट्रेट रहे । नगरपालिका, टेलीफोन विभाग, यादगार मेमोरियल,लार्ड मेयो हास्पिटल,जल विभाग, बिजली आदि कई राजकीय संस्थाओं की समितियों में सदस्य रहे । ज्वैलर्स ऐसोसियेशन के आप संस्थापक अध्यक्ष थे । जयपुर राज्य दरबार से आपको कई सम्मानजनक पद प्राप्त थे । अनेक राज्य दरबार से आपको सोना बख्शीस था। समाज के सभी कार्यों में आपको पदाधिकारी चुना गया था। भारतवर्षीय वाल महासभा और तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रहे । अतिशय क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रहे। अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के उपाध्यक्ष व कोषाध्यक्ष रहे । अतिशय क्षेत्र पदमपुरा कमेटी के संस्थापक उपाध्यक्ष जीवन पर्यन्त रहे । पदमपुरा Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 670/ जैन समाज का वुहट स नाण कार्य में आपने पूरा सहयोग दिया। पंचायती मंदिर जी ठोलियान जयपुर में आपने करीब 300 वर्ष तक जीर्णोद्धार कोर्य करवाया। महाबीर हा.स्कूल के कोषाध्यक्ष भी रहे। आपने बन्जीलाल जी ठोलिया धर्मशाला जयपुर के अधूरे कार्यों को पूरा करवाया और उसमें एक आयुर्वेदिक औषधालय शुरू करवाया। बंजीलाल ठोलिया धर्मशाला श्री महावीर जी का निर्माण कार्य करवाया । आचार्य 108 श्री शांतीसागर जी महाराज को संघ सहित जयपुर लाने वाले आप प्रमुख व्यक्ति थे । उनका चातुर्मास पंचायती मंदिर जी ठोलियान में करवाया एवं एक बहुत बड़ा विधान करवाकर उत्सव करवाया। आपके एक पुत्र ऋषभदास जी ठोलिया हुये। आप का देवलोक 26 जुलाई सन् 1957 की अर्धरात्रि को 'हुआ। श्री सुन्दरलाल जी ठोलिया आप सेठजी बंजीलाल जी ठोलिया के तृतीय पुत्र थे। आपका जन्म 27 दिसम्बर 1893 में हुआ। आप साधारण शिक्षा प्राप्त कर अपने पिताजी के व्यापार में लग गये। आपने अपने पिताजी का व्यापार के क्षेत्र में बहुत नाम किया। भारत में ही नहीं विदेशों में भी लगार के क्षेत्र में आपको काफी थी आप "गुरल्ड किंग" के नाम से जाने जाते थे। राजस्थान में पन्ने के खरड़ को खदानों से निकालने का कार्य आपने ही शुरू किया। बंबई, दिल्ली आदि स्थानों पर दुकानें खोली। दिल्ली में मै. शांतीविजय एण्ड कम्पनी आपके द्वारा खोली गई। आप ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे । धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी कमेटी के सदस्य, महावीर जैन हाई स्कूल के संस्थापक अध्यक्ष, अतिशय क्षेत्र श्री पदमपुरा कमेटी के अध्यक्ष और बंजोलाल ठोलिया बेरिटी ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे हैं। व्यापार कार्य हेतु आपने विदेशों में भी भ्रमण किया । जयपुर, जोधपुर, हैदराबाद, उदयपुर, झालावाड़, जामनगर, बीकानेर आदि कई स्टेटों में आपको ताजीम प्राप्त हुई। इनमें से आप अनेक स्टेटों के ज्वैलर्स थे। आपके चार पुत्र नेमकुमार, शांतीकुमार, विजयकुमार, देवेन्द्रकुमार हैं। 72 वर्ष की आयु में आपका देवलोकवास 26 फरवरी, 1965 के दिन हुआ। 1 श्री ऋषभदास जी ठोलिया आप सेठ गोचीचंद जी ठोलिया के पुत्र थे। आप का जन्म 22 नव. 19002 को हुआ। आपने बहुत कम शिक्षा प्राप्त कर मात्र 13 वर्ष की आयु में पारिवारिक व्यापार देखना शुरू कर दिया। आप बहुत सरल प्रवृत्ति के मिलनसार व्यक्ति थे । आप अपने जीवन काल में कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से जुड़े रहे। पंचायती मंदिर जी ठोलियान के कई वर्षों तक अध्यक्ष रहे । आपके द्वारा मंदिर जी ठोलियान के जीर्णोद्धार में पूरा सहयोग भी दिया गया । सेठ बजीलाल जी ठोलिया चेरिटेबल ट्रस्ट के आप मंत्री रहे तथा आपने इस ट्रस्ट को सुचारू रूप से चलाया और आगे बढ़ाया। ट्रस्ट द्वारा संचालित जयपुर व श्री महावीर जी धर्मशाला में आप मुख्य रूप से रुचि रखते थे। इन धर्मशालाओं में आपके समय में कई सुख सुविधायें यात्रियों को प्रदान कराई गई थी। आपके दो पुत्र राजेन्द्रकुमार ठोलिया, प्रदीप कुमार ठोलिया और दो पुत्रियां कंचनवाई धर्मपत्नी जिनेन्द्र कुमार जी सेठी और कमलाबाई धर्मपत्नी प्रकाशचन्द्र जी सेठी भू.पू. गृह मंत्री भारत सरकार हैं। आपका देवलोक 7 मई, 1978 को 76 वर्ष की आयु में हुआ। Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /671 श्री राजेन्द्र कुमार जैन ठोलिया श्री राजेन्द्र कुमार ठोलिया का जन्म 8 सितम्बर 1928 को जयपुर में हुआ। आप श्री ऋषभदास ठोलिया के पुत्र तथा प्रसिद्ध सेठ श्री बनजीलाल जैन ठालिया जाहर के प्रपौत्र है। आपने लौकिक शिक्षा जयपुर में ही प्राप्त कर अपने पैतृक हीरे जवाहरात के व्यवसाय में प्रवेश किया। आपको धार्मिक संस्कार बचपन से ही अपने परिवार के सदस्यों एवं घर के वातावरण से मिले । आपकी इस समय जयपुर में सेठ बंजीलाल ठोलिया ज्वैलर्स एवं ऋषभ ज्वैलर्स के नाम से दो फर्मे अपना विशिष्ट उच्च स्थान रखती है । आपने व्यापार के सिलसिले में अमेरिका, बिटेनफ्रांस, इटली हांगकांग,थाईलैण्ड वर्मा,पाकिस्तान आदि देशों को कई बार यात्रायें को। आप अपने पूर्वजों की शांति तन-मन-धन से समाज की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं । इस समय आप अपने पारिवारिक चैरिटी ट्रस्ट सेठ बनजीलाल ठोलिया ट्रस्ट के मंत्री एवं श्रीमती हर्षदेवी ऋषभदास ठोलिया चैरिटी ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। जयपुर की अनेक धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े श्री राजेन्द्र कुमार जी ठोलिया ने दि.जैन मंदिर ठोलियान.दि.जैन मंदिर चाकस एवं महावीर हाई स्कल आदि की प्रगति के लिये समर्पित होकर कार्य किया। आपने राज.में तीर्थ वंदना रथ प्रवर्तन समिति के उपाध्यक्ष पद पर रहकर रथ के प्रवर्तन में विशेष भूमिका निभाई। आप आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्त्राब्दि समारोह समिति के कोषाध्यक्ष एवं दिगम्बरजैन महासमिति राजस्थान प्रदेश के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष रहे । राजस्थान में दिगम्बर जैन महासमिति के प्रचार प्रसार एवं संगठन कार्यों में आपने विशेष योगदान दिया । इस समय आप दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बाड़ा पदमपुरा के उपाध्यक्ष,जैन महावीर हाई स्कूल की कार्यकारिणी के सदस्य एवं वित्तीय समिति के अध्यक्ष, दिगम्बर जैन मंदिर डोलियान व चाकसू के प्रबन्ध समिति एवं अखिल भारतीय जैन मिशन के अध्यक्ष हैं तथा वर्तमान में दिगम्बर जैन महासमिति राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष हैं। आपका विवाह सन् 1947 में श्रीमती कमलप्रभा के साथ के साथ संपत्र हुअ । आप एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों से सुशोपित श्री प्रदीप ठोलिया आपका जन्म सन् 1948 में हुआ। बी.ए.तक शिक्षा प्राप्त की तथा अपने जवाहरात के पैतृक व्यवसाय में लग गये | आपकी पत्नी का नाम लता ठोलिया है जो दो पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। MSR स्व. मेठ बनी टोलिया स्व सेठ गोपी चन्दजी ठोलिया स्व सेठ सुन्दरलालजी टोलिया Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 672/ जैन समाज का वृहद् इतिहास शंक श्री स श्री राजेन्द्र कुमार जी ठोतिषा श्री बंशीलाल लुहाड़िया श्री प्रदीप ठोलिया शान्त प्रकृति के हैं तथा चुपचाप कार्य करने में विश्वास रखते हैं। जन्म 5 फरवरी 1912 स्वतंत्रता सेनानी श्री बंशीलाल जी लुहाड़िया का राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन दोनों ही उल्लेखनीय रहे। सन् 1930-31 में आपने नमक सत्याग्रह में भाग लिया। जयपुर से लोकसभा के निर्वाचित सदस्य रहे तथा जयपुर जिला बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वर्तमान में आप वरिष्ठ नागरिक परिषद् के अध्यक्ष है तथा मानव मात्र की सेवा में संलग्न हैं। आपकी गणना राजस्थान के अच्छे वकीलों में की जाती है। पता : लुहाड़िया भवन, अशोक मार्ग, सी-स्कीम जयपुर श्री बलभद्र कुमार जैन पाकिस्तान से आकर जयपुर में बसने वाले श्री दासूराम जी के सुपुत्र श्री बलभद्रकुमार जो जैन समाज सेवा में इतने घुलमिल गये कि उनको नगर की सभी प्रमुख संस्थाओं में किसी न किसी पद पर देखा जा सकता है। राजस्थान जैन सभा, दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, दि.जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर जी जैसी संस्थाओं से वे निकट से जुड़े हुए हैं। आदर्शनगर के दि. जैन मन्दिर निर्माण में आपका पूरा सहयोग रहा। मुलतान जैन समाज के आप प्रमुख समाज सेवी हैं। आपका कलर का व्यवसाय है तथा अपने व्यवसाय में ख्याति प्राप्त की है। पता- फतेहचन्द दासूराम, नवाब साहब की हवेली, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर । Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी/673 जयपर नगर का बिलाला परिवार जयपुर जैन समाज में बिलाला परिवार का विशिष्ट स्थान है। नगर के त्रिपोलिया बाजार में जाने पर बड़ी चौपड़ के पास बिलालों के चार प्रतिष्ठान देखे जा सकते हैं । बिलालों की धार्मिक निष्ठा,सामाजिक योगदान एवं पूरे परिवार में भावात्मक एकता अनुकरणीय है । इस परिवार का अपना इतिहास है जिसके अनुसार विक्रम संवत् 1890 में सांभर नगर से सर्वप्रथम समरूलाल जी जयपुर में आये और हनुमान जी के रास्ते में रहने लगे तथा पुरोहित जी के कटले की एक दुकान में किराणे का व्यवसाय प्रारंभ किया। उनके दो पुत्र नाथूलाल जी एवं उदयलाल जी हुये तथा दोनों भाइयों ने अपनी व्यापारिक दक्षता के आधार पर अपने पिता की आर्थिक स्थिति को ठीक किया। नाथूलाल जी दो पुत्र मोहरी लाल जी एवं मगनीराम जी एवं एक पुत्री तथा उदयलाल जी एक पुत्र हाथीराम जी से अलंकृत हुये । थोड़े ही समय पश्चात् मालीलाल जी एवं उदयलाल जी का देहान्त हो गया।नाथूलाल जी की पत्नी का स्वर्गवास होने पर उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया जिससे एक और पुत्र के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। संवत् 1993 में आपका पी स्वर्गवास हो गया। श्री म्होरीलाल जी के यद्यपि पांच पुत्र एवं चार पुत्रियाँ हुई लेकिन दो पुत्र एवं एक पुत्री तो बाल्यावस्था में चल बसी शेष' बचे कपूरचंद जी गोपीचंद जी एवं छुटनलाल जी । श्री कपूरचंद जी भी पांच पुत्र एवं एक पुत्री के पिता बने लेकिन चार पुत्रों का बाल्यावस्था में ही स्वर्गवास होने के कारण एक पुत्र एवं एक पुत्री बची । आपने प्रथम पत्नी के स्वर्गवास होने पर दूसरा विवाह किया लेकिन उससे कोई संतान नहीं हुई। श्री कपूरचंद जी के एकमात्र पुत्र श्री फूलचंद जी हुये जिनके पुत्र नरेन्द्रकुमार एक पुत्र एवं एक पुत्री के पिता हैं। श्री म्होरीलाल जी के पुत्र गोपीचंद जी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं सेवा भावी हैं तथा धार्मिक संस्कारों से संपन्न है। आपके दो विवाह हुये पहली पत्नी से दो पुत्र एवं एक पुत्री हुई लेकिन एक पुत्र एवं एक पुत्री का असमय में ही वियोग हो गया । एक मात्र अशोक कुमार व्यवसायरत हैं तथा तीन पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं। दूसरी पत्नी से पांच पुत्र सुरेन्द्रकुमार, पदमकुमार,नरेन्द्र कुमार,विनोद कुमार एवं देवेन्द्र कुमार एवं दो पुत्रियाँ हुई। सभी का विवाह हो चका है। वर्तमान में सरेन्द्रकमार दो पुत्र एवं एक पुत्री से.पदमकुमार जी दो पुत्रियों से विनोदकुमार जी एक पुत्र एवं एक पुत्री से एवं देवेन्द्रकुमार जो एक पुत्र से अलंकृत हैं। श्री गोपीचंद जी के छोटे भाई छुट्टनलाल जी थे । सामाजिक क्षेत्र में उनका विशेष नाम था । वे सात पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बने लेकिन 2 पुत्रों का बाल्यावस्था में निधन होने से वर्तमान में पांच पुत्र ताराचंद जी,प्रेमचंद जी, राजकुमार जी,नवीन कुमार जी,सुधीरकुमार जी एवं दो पुत्रियों हैं । आप सबका विवाह हो चुका है तथा ताराचंद जी चार पुत्रों से, राजकुमार जी एक पुत्र एवं दो पुत्रियों से,नवीन कुमार जी दो पुत्रों से तथा सुधीरकुमार जी एक पुत्री से सुशोभित हैं । श्री छुहनलाल जी का 15 फरवरी सन् 1988 को स्वर्गवास हो चुका है। श्री उदयलाल जी के पुत्र हाथीराम जी ने तीन विवाह किये । तीसरी पत्नी से एक पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हुई। पुत्र का बाल्यावस्था में ही वियोग होने से छुट्टनलाल जी के पुत्र प्रेमचंद जी को गोद लिया । हाथीराम जी का भी सन् 1985 में स्वर्गवास हो चुका है। श्री छुट्टनलाल जी के पौत्र एवं प्रेमचंद जी चार पुत्रों में अनिल कुमार, सुनील कुमार,राजोन कुमार का विवाह हो चुका है । अनिल कुमार के एक पुत्र एवं एक पुत्री एवं सुनील कुमार एक पुत्री से सुशोभित है। Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 674/ जैन समाज का वृहद् इतिहास विशेष विवरण: विलाला परिवार के सभी सदस्य धार्मिक संस्कारों से ओतप्रोत हैं। सभी छोटे-बड़े, दादा-दादी,ताऊजी एवं चाचाजी, पौत्र एवं पौत्रियों में स्नेह एवं मधुर संबंध है तथा 50 व्यक्तियों का विशाल परिवार होने पर भी सभी एकता के सूत्र में बंधे हुये हैं । इस परिवार के नाथूलाल जी बिलाला बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे । सभी में धार्मिक संस्कार उन्हीं की देन है। पूजा का कार्य म्होरीलालजी ने प्रारंभ किया जिसे बाद में कपूरचन्द जी,हाथीरामजी,गोपीचंद जी,फुहनलाल जी ने आगे बढ़ाया । आप लोगों के साथ और भी प्रतिष्ठित व्यक्ति सम्मिलित हो गये तथा दीवान जी की नशियों में 14 वर्ष तक साथ-साथ पूजा का कार्यक्रम करते रहे। इसके पश्चात आमेर रोड पर ही स्थित बिजैलालजी पांडया की नशियाँ में पजा की जाने लगी। आप लोगों का औरों ने भी साथ दिया। छुट्टनलाल जी के स्वर्गवास के पश्चात् श्री गोपीचंदजी एवं उनकी पत्नी जाने लगे। वर्तमान में आपके साथ 15-20 व्यक्ति पूजा अभिषेक करते हैं । बिलाला परिवार के सदस्यों के जाने के बाद यहाँ तीन वेदियाँ और बनवाई गई और सन् 1991 में वेदी प्रतिष्ठा का कार्य बहुत शानदार ढंग से संपन्न कराया गया । नशियों के जीर्णोद्धार का कार्य अभी चल रहा है। प्रतिष्ठान : बिलाला परिवार के त्रिपोलिया बाजार में चार प्रतिष्ठान,बापू बाजार में एक बिलालाज,जवाहरात के व्यवसाय की धी वालों का रास्ता में बिलाल ज्वैलर्स व हनुमान का रास्ता में अभिषेक है । वर्तमान में इस परिवार के अधिकांश सदस्य जवाज में कार का पीपा दे. असालों को लगाने का श्रेय ताराचंद जी एवं सुरेन्द्र कुमार जी को जाता है। बिलाला परिवार में स्वछुट्टनलाल जी बहुत ही सेवाभावी व्यक्ति थे । सामाजिक कार्यों में आगे रहते थे । परिवार को ऊंचा उठाने में आपका प्रमुख योगदान रहा । परिवार में श्री कपूरचन्द जी बिलाला सबसे वयोवृद्ध हैं । 96 बसन्त देख चुके हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। पैरों में दर्द रहने के अतिरिक्त काफी स्वस्थ हैं । श्री गोपीचंद जी बिलाला 76 पार कर चुके हैं। लेकिन पूर्ण स्वस्थ एवं परिवार एवं समाज के सभी उत्तरदायित्वों को निभाते हैं। बिलाला परिवार को श्री दि.जैन अ. क्षेत्र पदमपुरा में निज मंदिर में फर्श बनवाने,श्री महावीर क्षेत्र में कमरे का निर्माण करवाने एवं बीजा पांड्या वाली नशियों का जीर्णोद्धार करवाने का सौभाग्य प्राप्त है । पता: बिलाला गार्डन 5, पुरानी आमेर रोड़,सुभाष चौक जयपुर। पं. भंवरलाल न्यायतीर्थ समाजरत्न पं.भंवरलाल जी न्यायतीर्थ जयपुर के जाने माने विद्वान है । वे इतिहास,जैन साहित्य एवं पुरातत्व के वरिष्ठ मनीषी हैं । विगत 50 वर्षों से उन्होंने समाज को जो सेवायें की हैं वे स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने योग्य है । श्री दि.जैन अ.क्षेत्र पदमपुरा के 40 वर्षों से भी अधिक समय तक वे मंत्री रहे तथा उसको वर्तमान स्वरूप देने में आपने सर्वाधिक योगदान दिया । दि जैन संस्कृत महाविद्यालय के भी वे वर्षों तक मंत्री रहे और वर्तमान में उसके अध्यक्ष हैं। ___ महाविद्यालय के चहुंमुखी विकास में उन्होंने सदैव समर्पित भावना से कार्य किया। महावीर बालिका विद्यालय के आप पहले मंत्री एवं वर्तमान में उसके अध्यक्ष हैं । पत्रकारिता क्षेत्र में आपकी विशेष ख्याति है । वीरवाणी पाक्षिक पत्रिका के तो आप प्रारंभ से ही सम्पादक है । इसके अतिरिक्त आप जयपुर की बीसों संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं। आप आरम्भ से ही वीर प्रेस के संचालक है । पं.भंवरलाल जी अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I यशस्वी समाजसेवी / 675 जैन विद्वत् परिषद् के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में उसके संरक्षक हैं। वे लेखनी के धनी है तथा सतत कुछ न कुछ लिखा ही करते हैं। जयपुर के जैन दीवानों पर आपने विशेष कार्य किया है। पंडित चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के आप प्रमुख एवं प्रिय शिष्य रहे हैं। न्यायतीर्थ जी का जन्म 2 दिसम्बर 1915 को हुआ। उनके 76 वें वर्ष में पदार्पण पर जयपुर जैन विद्वत परिषद् की ओर से सार्वजनिक सम्मान समारोह का आयोजन रखा गया था। आपकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है। आपके एक पुत्र श्री निर्मल जैन एवं एक पुत्री है। तीन पौत्रियां है। श्री राजमल जैन बेगस्या जयपुर जैन समाज के लोकप्रिय कवि श्री राजमल जैन बेगस्या युवा समाजसेवी हैं। आपने राजस्थानी भाषा में और विशेषतः जयपुरी भाषा में अपने आध्यात्मिक, उपदेशी एवं कथापरक गीत एवं कविता सुनाकर सबको आनन्द विभोर कर देते हैं। पक्ष के दिनों में, साबु के कत्रि में आप विशेष रूप से आमंत्रित किये जाते हैं । श्री राजमलजी का जन्म 17 मार्च सन् 1937 को हुआ । एम.ए. (इतिहास एवं समाजशास्त्र) किया । सन् 1958 में आपका विवाह श्रीमती विजयादेवी के साथ संपन्न हुआ। आप वर्तमान में राजस्थान राज्य सेवा में कार्यरत हैं। आपकी कविताओं / गीतों का संग्रह "राज रचना" के नाम से प्रकाशित हो चुका है। पता : कल्याण जी का रास्ता, चांदपोल बाजार, जयपुर श्री रामचन्द्र कासलीवाल एडवोकेट दि. जैन मंदिर महासंघ जयपुर के संस्थापक अध्यक्ष श्री रामचन्द्र कासलीवाल नगर के प्रसिद्ध एडवोकेट हैं। जयपुर नगरपालिका के कई वर्षों तक निर्वाचित सदस्य रह चुके हैं। दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीर जी के वर्षों से सक्रिय कार्यकारिणी सदस्य हैं। आप अपनी सूझबूझ, मिलनसारिता एवं कुशल व्यवहार के लिये प्रसिद्ध है। जयपुर नगर को 250 वीं वर्ष स्थापना समारोह के अवसर पर आपने कितने ही यशस्वी कार्य किये। पता : एस.बी.14, भवानीसिंह मार्ग, बापू नगर, जयपुर 1 श्री राजेश जैन कासलीवाल बिलारी (मुरादाबाद ) श्री राजेशकुमार जैन कासलीवाल युवा समाजसेवी हैं । धार्मिक कार्यों में रुचि रखते हैं। आप लॉ मेज्युएट हैं। बिलारी में नव मन्दिर निर्माण में आपका विशेष सहयोग रहा है। आपसे समाज को बहुत आशायें हैं I पता : मु.पो. बिलारी (मुरादाबाद) उत्तरप्रदेश Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 676/ जैन समाज का बृहद् इतिहास श्री बिरधीलाल सेठी जन्म : अप्रैल, 1974 में जन्मे वयोवृद्ध समाजसेवी श्री बिरधीलाल जी सेठी ने अपना अधिकांश जीवन समाजसेवा में व्यतीत किया । अ.भा दि.जैन परिषद् के वर्षों तक अध्यक्ष रहे तथा भगवान महावीर 2500 वाँ परिनिर्वाण महोत्सव सोसायटी राज के मंत्री पद पर रहे । राजस्थान बैंक के जनरल मैनेजर पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् अपने आपको समाजसेवा में समर्पित रखा । युवकों में जागृति लाने एवं उनमें समाज सेवा के भाव भरने में आपने खूब काम किया । आपकी जैन धर्म और मूर्ति पूजा बहुचर्चित पुस्तक रही है। पता :- अरविन्द कॉलोनी, टौंक'फाटक,जयपुर । श्री रूपचन्द जैन अग्रवाल श्री जैन कोटा के जाने माने समाजसेवी हैं । आपका जन्म 19 दिसम्बर सन् 1922 पोष शुक्ला एकम संवत् 1979 को कोटा में हुआ । आपके पिताजी श्री कन्हैयालाल जी जैन एवं माताजी श्रीमती केशरबाई ने चांदखेडी में सन् 1954 के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त किया और आजन्म ब्रह्मचर्य ब्रत धारण कर लिया । स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेते रहने के कारण आप उच्च अध्ययन नहीं कर सके और बी.ए. पास करने के पूर्व ही कालेज छोड़ दिया । आप तत्कालीन कोटा राज्य द्वारा निर्मित विधान समिति के सदस्य तथा पार्लियामेन्ट प्रतिनिधि के चुनाव के लिये सलाहकार परिषद के सदस्य ! पनोनीत किये गये। सन 1950 में आपका विवाह श्रीमती कुसुम कुमारी से हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्र,श्री सुगनचंद,सुरेन्द्र कुमार एवं महेन्द्रकुमार तथा दो पुत्रियाँ पदमा एवं शकुन्तला की प्राप्ति हुई । आपने सन् 1950 तक सक्रिय रूप से राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया । इसके पश्चात् सात-आठ वर्ष तक फिल्म व्यवसाय में कार्य किया और फिर कोटा में ही स्लेट निर्माण उद्योग की स्थापना की जिसमें आपको भारी सफलता मिली और आप स्लेटवाला के नाप से जाने जाने लगे । वर्तमान में आपका पूरा परिवार इसी में लगा हुआ है । सामाजिक गतिविधियों में आप पूर्ण रुचि लेते हैं । वर्तमान में आप दि.जैन अ. क्षेत्र चांदखेडी के मंत्री एवं अग्रवाल दि.जैन मंदिर छावनी के अध्यक्ष हैं । आपकी " चांदखेड़ी क्षेत्र पूजा ” को पुस्तक लोकप्रियता प्राप्त कर रही है । पता: विवेकानन्द स्कूल के पास छावनी कोटा (राज) श्री विनोदकुमार साह युवा इंजीनियर श्री विनोदकुमार साह श्री इन्दरलाल जी साह के सुपुत्र है। आपका जन्म 1 मई सन् 1950 में हुआ। डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग करने के पश्चात् राज. विश्वविद्यालय की सेवा में चले गये। 13 मार्च सन् 1974 में आपका विवाह श्रीमती स्नेहलता से हुआ जिनसे आपको एक पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। श्रीमती स्नेहलता एम.ए. हैं तथा श्री बाबूलाल जो सेठी जयपुर की पुत्री है। श्री साह समाज सेवा में रुचि रखते हैं । पद्मपुरा अतिशय क्षेत्र कमेटी की कार्यकारिणी सदस्य हैं। उत्साही कार्यकर्ता है । श्रीमती स्नेहलता जी भी राब.जैन सभा की कार्यकारिणी सदस्या है । आपके पिताजी ने जयपुर के घाट के Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी/577 + - मंदिर में मूर्ति विराजमान की थी। आपने अधिकांश तीर्थों की यात्रा संपन्न कर ली है । आपके बड़े भाई अशोककुमार जी बैंक में हैं। पता - बापू नगरजयपुर श्री ब्रजमोहन जैन युवा समाजसेवी श्री बजमोहन जी जैन मूलतः तिजारा (अलवर के रहने वाले हैं। आपका जन्म भी वहीं दिनांक-23-8-36 को हुआ 1 प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर जयपुर से सन् 1963 में बी.ए.किया । आपके पिताजी साहब श्री पूरणमल जी जैन (85 वर्ष) का अभी आशीर्वाद प्राप्त है । माताजी श्रीमती रिखबदेवी का 8 वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया। सन् 1959 में आपका विवाह श्रीमती प्रकाशदेवी से हो गया। आपका एकमात्र पुत्र विनोद जैन बी ई. (इलैक्ट्रोनिक्स) है । दो पुत्रियां हैं जिनका विवाह हो चुका है। मंजू एमाए., एम.फिल. है तथा मधु एम.ए. है। विगत चार वर्षों से श्री दि.जैन मंदिर बड़ा तेरहपंथीयान के मंत्री हैं । मुनिभक्त है। आहार देते रहते हैं । कामां एवं तिजारा में अष्टान्हिका पर्व का उत्सव करा चुके हैं। आप समाज के कर्मठ कार्यकर्ता हैं। पता : श्री दि. जैन मंदिर बड़ा तेरहपंथीयान,घी वालों का रास्ता, जयपुर । श्री शांतिलाल चूड़ीवाल __ चूड़ीवाल उपनाम से प्रसिद्ध श्री शांतिलाल चूड़ीवाल गदिया गोत्र के श्रेष्ठी हैं । आपका जन्म 11 दिसम्बर सन् 1932 के शुभ दिन हुआ। सन् 1946 में पंजाब से मैट्रिक किया और श्रीमती चांद देवी चूड़ीवाल से आपका विवाह हुआ। आपके पिता श्री चेतनदास जी 85 वर्षीय तथा माताजी 80 को पार कर चुकी हैं। आपके एक पुत्र श्री जीवंधर जैन तथा पुत्री मंजू है । पुत्री का विवाह श्री नरेन्द्रकुमार सरावगी के साथ हो चुका है। चूड़ीदाल जी समाज सेवा में खूब रुचि लेते हैं तथा कितनी ही संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं । मिलनसार एवं आतिथ्य प्रेमी हैं। पता - पौ17, कलाकार स्ट्रीट,कलकत्ता-7 श्री सरदारमल खण्डाका जयपुर का खण्डाका परिवार धार्मिक एवं मुनिभक्त परिवार है । इस परिवार के मुखिया श्री सरदारमल जी खण्डाका एवं उनके पुत्र श्री नेमप्रकाश पदमप्रकाश देवप्रकाश विजयप्रकाश श्री कुमार एवं सनतकुमार खण्डाका सभी मुनियों की सेवा करने, धार्मिक समारोह आयोजित करने में आगे रहते हैं । आचार्य देशभूषण जी आ.सुबाहुसागर जी, गणधराचार्य श्री कुंथुसागर जी महाराज को संघ सहित जयपुर लाने एवं उनकी सेवा करने में आप अप्रणी रहे हैं। श्री सरदारमल जी खण्डाका को संघपति की उपाधि से विभूषित किया जा चुका है। Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 678/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री सीताराम पाटनी आपकी जन्मभूमि सांगा का वास रेनवाल राज) होने के कारण आप सोगा पाटनी के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। पाटनी जी कलकत्ता के थोक व्यवसायी है। अपने व्यापार व्यवसाय में जो कुछ सफलता प्राप्त की है उस सबमें आपकी सूझबूझ एवं व्यापारिक कुशलता ही एकमात्र कारण है। आपका जन्म सन् 1976 में हुआ। शिक्षा के नाम पर आपने बहुत कम शिक्षा प्राप्त की। आपको माता आपको ढाई वर्ष का छोड़कर चल बसी और आपके पिताजी श्री छोगामल जी 17 वर्ष की अवस्था में स्वर्ग सिधार गये । आपके बड़े भाई श्री कन्हैयालाल जी भी संवत् 2010 में स्वर्गवासी हो गये । संवत् 1994 में आपका विवाह हुआ। आपकी पत्नी का नाम बनारसी देवी है। इस परिवार के स्व.जमनालाल जी सांगा व स्व.कन्हैयालाल जी सांगा ने किशनगढ़ में कई सार्वजनिक सेवा के निर्माण कार्य कराये हैं: 1- श्री जमनालाल जी सांगा की धर्मपली श्रीमती सुंदरदेवी व श्री कन्हैयालाल जी सांगा की धर्मपत्नी श्रीमती बसंतीदेवी ने स्थानीय श्री दि. जैन मंदिर के ऊपर एक बर्धमान चैत्यालय का निर्माण कराके उसमें समवसरण स्थापित करके उसकी वेदी प्रतिष्ठा विक्रम सं. 2012 में संपन्न कराई। 2- श्री जमनालाल जी सांगा ने किशनगढ़ में एक सांगाका जैन भवन का निर्माण कराया व दि.जैन दातव्य औषधालय के मना कानिर्माण करामा: 3- श्री जमनालाल जी सांगा ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुंदरदेवी के नाम से श्रीमती सुंदरदेवी उच्च प्राथमिक कला विद्यालय के विशाल भवन का निर्माण कराया। 4-श्री स्व.कन्हैयालाल जी सांगा ने अपना एक मकान व दस हजार नकद एक अस्पताल के लिये सरकार को दिये। यह अस्पताल अब वर्तमान में बहुत विशाल रूप में श्री कन्हैयालाल जी मेमोरियल राजकीय अस्पताल के नाम से संचालित है व आपका परिवार अस्पताल के लिये अब भी 40 साल से बराबर हर प्रकार का सहयोग दे रहा है । 5- श्री स्व कन्हैयालाल जी सांगाका के छोटे भाई श्री सीताराम जी सांगाका भी बहुत सेवाभावी धर्मात्मा सज्जन हैं । गत 75 वर्ष से आपका कारोबार कलकत्ता में श्री कन्हैयालाल सीताराम की फर्म के नाम से चलता है । 6- श्री सीताराम जी पाटनी गत 25 वर्ष से स्थानीय श्री दि जैन दातव्य औषधालय के सभापति श्री कन्हैयालाल राज, अस्पताल की विकास समिति के संरक्षक हैं । आपने किशनगढ़ में आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर जी महाराज के विशाल संघ का चातुर्मास भी कराया है जिसमें लगातार 6 महिने तक काफी धर्म प्रभावना रहीं । आप हमेशा धार्मिक व सामाजिक कार्यों को संपन्न कराने में अग्रणी रहे हैं। कलकते की दि.जैन समाज में भी आपका प्रमुख स्थान है व वहां की प्रत्येक सामाजिक गतिविधियों में आप सक्रिय भाग लेते हैं। पता - 33, आरमेनियन स्ट्रीट,कलकत्ता । Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /679 श्रीमती सुदर्शनदेवी छाबड़ा श्रीमती छाबड़ा स्वाध्यायशील महिला हैं । आपकी गणना जयपुर की प्रगतिशील एवं समाजसेवी महिलाओं में की जाती है। आपने धर्मालंकार परीक्षा पास की है। महिला जागृति संघ की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं । आपके पति श्री कुन्दनलाल जी छाबड़ा मोटर पार्टस के व्यवसायी हैं तथा ज्येष्ठ पुत्र श्री राजकुमार जी छाबड़ा भी उत्साही कार्यकर्ता हैं। श्री हीरालाल रानीवाला, जन्म : माह बुद्दी 2, संवत् 1965 लश्कर नगर के प्रसिद्ध श्रेष्ठी चम्पालाल रानीवाला के सुपुत्र श्री हीरालाल रानीवाला प्रसिद्ध समाजसेवी रहे हैं । आपका जीवन शुद्ध एवं धार्मिक रहा है। आपने श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी में दो छतरियां मंदिर के द्वार पर एवं राजगिरी क्षेत्र पर एक हाल का निर्माण करवाया । मुनियों के परम भक्त हैं । आप अग्रवाल जाति में उत्पन्न गर्ग गोत्रीय श्रावक हैं । रानीवाला परिवार वर्तमान में देश के विभिन्न प्रदेशों में फैला हुआ है और सभी स्थानों पर वह अपनी धार्मिकता एवं दानशीलता के लिये प्रसिद्ध है। डा. हुकमचन्द सेठी हृदयरोग के विशेषन्न डा. हुकमचन्द सेठी की चिकित्सा क्षेत्र में अच्छी प्रतिष्ठा है। गरीबों एवं अभावग्रस्त मरीजों की सेवा करने में विशेष रुचि लेते हैं। आप राजस्थान जैन सभा से वर्षों तक जड़े रहे । पता : सेठी धवन, चौरकों का रास्ता, जयपुर । श्री हरकचन्द सरावगी (पांड्या) जैनरल की उपाधि से अलंकृत श्री हरकचन्द सरावगी जैन समाज के प्रसिद्ध सामाजिक नेता हैं । आपका जन्म संवत् 1:१) के माघ मास में सुजानगढ़ से 40 मील दूर जसरासर ग्राम में हआ। उस समय सन 1915 चल रहा था। आपके पिताश्री ज्ञानीराम जी सरावगी जट के प्रमुख व्यवसायी थे। आपका 85 वर्ष की आयु में सन 1975 में स्वर्गास हुआ । उसके वर्ष पश्चात् सन् 1983 में आपकी माताजी श्रीमती मगतुलीदेवी का स्वर्गवास हो गया । श्री हरकचन्द जो जब 16 वर्ष के थे तभी आपका विवाह सन् 1930 में जिलिया प्राम की श्रीमती डिलिया देवी के साथ संपन्न हो गया । उसी के पक्ष र सन् 1937 में कलकत्ता तथा ईस्ट बंगाल में पाट का कार्य देखने लगे। Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 580/ जैन समाज का वृहद् इतिहास परिवार - श्री सरावगी को चार पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके सभी चारों पुत्र सर्व श्री हजारीमल जी,ललित कुमार,कमलकुमार एवं विमल कुमार आपके साथ ही व्यवसाय में लगे हुये हैं। चारों ही पुत्रों का विवाह हो चुका है। इसी तरह आपकी दोनों पुत्रियां शांतिबाई एवं सुशीला बाई का भी विवाह हो चुका है। विशेष - आप दोनों के ही विगत 50 वर्षों से शुद्ध खानपान का नियम है । जाति प्रथा के कट्टर समर्थक हैं । कट्टर मुविभक्त हैं। सुजानगढ़ में आचार्य शिवसागर जी, आचार्य सन्मतिसागर जी एवं आचार्य धर्मसागर जी महाराज तथा श्री महावीरजी में आचार्य शिवसागर जी महाराज का चातुर्मास करवाकर अतिशय पुण्य के भागी बन चुके हैं। अधिकांश आचार्यों एवं मुनिराजों को आहार देते रहे हैं। हस्तिनापुर पंचकल्याणक में सौधर्म इन्द्र, सोनागिर पंचकल्याणक में कुबेर पद से सुशोभित हो चुके हैं । आहार जी,भिण्डर एवं सुजानगढ़ पंचकल्याणकों के अवसर पर ध्वजारोहण एवं अन्य प्रकार से अपना सहयोग दे चुके हैं। आपके भाई स्व.पनमनन्द जी मरावगी की धर्मपत्नी श्रीमती कमलाबाई जी पिछले 10 वर्षों से सप्तम प्रतिमाधारी का जीवन व्यतीत की सामाजिक क्षेत्र श्री सरावगी जी का पूरा जीवन ही सामाजिक कार्यों के लिये समर्पित है। विगत 10 वर्ष से जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा के अध्यक्ष हैं ! अ.भा. दि.जैन महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं । सन् 1981 में आपने भगवान बाहुबलि सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक का स्वर्ण कलश लिया तथा वहां धर्मशाला के सामने पार्क का निर्माण करवाया। शांतिवीर नगर श्री महावीर जी में मंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिमा विराजमान करने का यशस्वी कार्य किया । हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप में गजदन्त एवं कमरे का निर्माण करवाया। शांतिवीर संस्थान एवं मोरेना विद्यालय के वर्षों से अध्यक्ष हैं । अहिंसा प्रचार समिति कलकत्ता के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में कार्यकारिणी सदस्य हैं। भगवान महावीर परिनिर्वाण महोत्सव को बंगाल समिति के अध्यक्ष थे तथा ज्ञान ज्योति स्थ प्रवर्तन समिति के भो अध्यक्ष रहे थे। सार्वजनिक - सुजानपद में ज्ञानोराम हरकचन्द सरावगी आर्टस एवं कामर्स कॉलेज की बिल्डिंग बनवाकर गय सरकार को कॉलेख संचालन के लिये सौंप दी । सुजानगढ़ में ही पिछले वर्षों से जानीराम सरावगी होमियो हाल का संचालन कर रहे हैं। सभी रोगियों को निःशुल्क दवा दी जानी है । इस संस्थान से प्रतिदिन 400 रोगी लाभ लेते हैं । सुजानगढ़ में ही एक बहुत सुन्दर एन विशाल गेस्ट हाऊस का निर्माण करवा चुके हैं। अन्य विशेषतायें : । श्रीमती नमती देवी म.प. वीरक बन्द सराव श्री सरावगी जी का शान्त सरल एवं नियमित जीवन है। समाज के सभी धार्मिक रूमारोहों में सक्रिय भाग लेते रहते हैं। जिनवाणी के प्रचार को ध्यान में रखकर कितनों ही पुस्तकों का प्रकाशन करवाकर निःशुल्क वितरण करते रहते हैं। आपके जीवन पर मुनि श्री चन्द्रसागर जो महाराज के उपदेशों का पूरा प्रभाव पड़ा है। आपके पिताजी स्व.श्री ज्ञानीराम जी भी दूसरी प्रतिमाधारो थे। पता - बी., कलाकार स्ट्रोट,कलकत्ता -7 Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रूपचन्द कटारिया केकड़ी के कटारिया परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्री रूपचन्द कटारिया का जन्म 18 दिसम्बर सन् 1929 को हुआ । मैट्रिक तक केकड़ी में ही शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में प्रवेश किया और उसमें सुफलता पर सफलता प्राप्त करते रहे आपका विवाह निवाई के स्व. जीवनलाल जी टोंग्या को सुपुत्री शांतिबाई के साथ संपन्न हुआ । जिनसे आपको तीन पुत्र एवं दो पुत्रियों को प्राप्ति हुई । यशस्वी समाजसेवी / 681 कटारिया जी स्वाध्यायशील व्यक्ति हैं । समयसार के अध्येता है । समयसार का अब तक उन्होंने 200 से भी अधिक बार पारायण कर लिया है और वर्तमान में भी वे इसी ओर लगे हुये है । आपका सभी सामाजिक संस्थाओं से निकट का संबंध है। श्री महाबीर ग्रंथ अकादमी के संरक्षक सदस्य हैं । श्रीमती सरोज छाबड़ा पहिला संगीतद्ध श्रीमती सरोज छाबड़ा महिला जागृति संघ की कर्मठ सदस्या है । संगीत में आपको विशेष रुचि है। आप एम. ए., बी. एड. हैं तथा केन्द्रीय स्कूल जयपुर में अध्यापन का कार्य कर रही हैं । प्रस्तुत इतिहास लेखक डा. कासलीवाल की सबसे छोटी पुत्री श्रीकुछड़ा भाग में कार्यरत हैं । आप 1 है या एक पुत्र एवं एक पुत्री से सुशोभित हैं । पता :- बरकत नगर, किसान मार्ग, जयपुर । श्री जगजीतसिंह जैन खेकडा निवासी श्री जगजीतसिंह नगर के प्रमुख समाजसेवी हैं। आपका जन्म 6 जून, सन् 1932 को हुआ । मैट्रिक एवं प्रभाकर करने के पश्चात् आपने कार्यक्षेत्र में प्रवेश किया । सन् 1952 में आपका श्रीमती रत्नमाला के साथ विवाह हुआ । जिनसे आपको तोन पुत्र आदर्शकुमार, सुनील कुमार एवं संजयकुमार की प्राप्ति हुई । आदर्श कुमार की पत्नी का नाम राजरेखा हैं तथा दो पुत्र एवं एक पुत्री से अलंकृत है। सुनीलकुमार की पत्नी अनिता दो पुत्रों की जननी है । श्री जगजीतसिंह धार्मिक जीवन व्यतीत करते हैं। दोनों पति पत्नी ने दो-दो प्रतिमायें ले रखी हैं। आपको अभी माता-पिता की छत्रछाया प्राप्त है । पिताजी श्रीरामजी 85 वर्ष के हैं तथा माताजी भगवती देवी 80 वर्ष की है । जैन साहब कट्टर मुनि भक्त हैं । मुनियों को आहार आदि से सेवा करने में अपना सौभाग्य समझते हैं । खेकडा चातुर्मास समिति के मंत्री हैं । यहां पर आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह के महामंत्री थे । आपने खेकड़ा में मंडी का निर्माण करावाया 150 बीघा जमीन मंडी के लिये प्रदान की । आप मंडी के सेक्रेटरी भी हैं। आप दोनों ने ब्रह्मचर्य व्रत ले रखा है। आतिथ्य प्रेमी हैं । समाज पर आपका अच्छा प्रभाव है । पता : वर्धमान डिपार्टमेन्टल स्टोर, पुलिस चौकी, मेनबाजार, खेकडा (मेरठ) Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 682/ जैन समाज का वहद इतिहास श्री नाथूलाल जैन चौधरी मोजमावाद (जयपुर) के काली हवेली वाले स्व. श्री माणकचन्द जी चौधरी के सुपुत्र श्रा नाथूलाल जी गत 30 वर्षों से राजस्थान शिक्षा सेवा में कार्यरत हैं तथा विगत 11 वर्षों से राजकीय प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं ! नागरिक सुरक्षा सेवा में 25 वर्षों से सैक्टर वार्डन तथा 10 वर्षों से पोस्ट वार्डन हैं। ___आपका जन्म । जुलाई सन् 1939 को हुआ। बी.एम.टी.सी.करने के पश्चात् शिक्षा क्षेत्र में चले गए 1 आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शान्तिदेवी गृह कार्य में एवं आतिथ्य में प्रवीण है तथा दो पुत्र पवन कुमार,जीवन कुमार तथा चार पुत्रियाँ श्रीमती किरण,श्रीमती वनिता, सुश्री मुनिता एवं सुश्री ज्योति को जननी हैं । प्रथम दोनों पुत्रियाँ ग्रेज्यूएट हैं। पवन कुमार का विवाह हो चुका है। ___श्री चौधरी सामाजिक सेवा में रुचि लेते हैं तथा कितनी ही सामाजिक संस्थाओं के क्रियाशील सदस्य हैं । स्वभाव से सरल एवं मधुर भाषी हैं। पता - मकान नं.2188, पंडित शिवदीन जी का रास्ता,किशनपोल बाजार, जयपुर स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देश को साम्राज्यवादी दासता से मुक्त कराने दाले स्वतंत्रता आंदोलन में जैन समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा । अन्य स्वाधीनता सेनानियों के समान जैन समाज के सपूतों ने भी अपनी जीविका एवं व्यवसाय के लात मार कर पुलिस की लाठियों तथा गोलियों का प्रहार झेलने एवं शासकों की जेलों को आबाद करने के लिये घर से निकल पड़े और अपने त्याग एवं बलिदान से शोषण एवं हिंसा का मुकाबला करके इतिहास के शानदार पृष्ठ जोड़े। राजस्थान मालवा उत्तरप्रदेश महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में जहां जैन समाज अच्छी संख्या में निवास करता है वहां के सैंकड़ों हजारों जैद युवक एवं वृद्ध सत्याग्रह करते हुये जेल गये, अनेक प्रकार की यातनाओं को सहन किया और जब तक देश आजाद नहीं हुआ तब तक विभिन्न आंदोलनों में भाग लेते रहे । इन स्वतंत्रता सेनानियों की इतनी अधिक संख्या हैं कि उनका सूचीकरण | भी कठिन होगा फिर जिन्होंने अपने नाम के आगे जैन शब्द नहीं लगाया उनको पहिचान कर पाना भी कठिन है । इसलिये जो सामग्री हमें उपलब्ध हो सकी हैं उसी के आधार पर हम स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का उल्लेख करेंगे। राजस्थान में श्री अर्जुनलाल सेठो स्वतंत्रता आंदोलन के जनक थे । आपका परिचय पहले दिया जा चुका है। जयपुर में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान देने वालों तथा जेल यात्रा करने वालों में सर्व स्व.श्री गुलाबचन्द कासलीवाल,श्री बंशीलाल लुहाड़िया,श्री रूपचंद सौगानी,श्री सिद्धराज हवा के नाम उल्लेखनीय हैं । Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशस्वी समाजसेवी /683 स्वतंत्रता प्रेमियों को चुपचाप सहायना करने तथा अपने ही घरों में शरण देने वालों में श्री दीपचन्द बख्शी,श्री कपूरचंद छाबड़ा, गेंदोलाल छाबड़ा श्री कपूरचन्द पाटनी के नाम लिये जा सकते हैं । उदयपुर एवं जोधपुर रियासतों में श्री बलवन्तसिह मेहता, भूरेलाल बया,पं.उदय जैन फूलचंद पोरवाल सनलाल कर्णावट फूलचंद बापना आदि प्रमुख लोग थे । प्रजामंडल का कार्य करने वालों में स्व. कपूरचंद पाटनी मिलापचंद, विजयचंद जैन ज्ञानप्रकाश काला नथमल लोढा तमरावाल आजाट के नाम लिये जा सकते हैं । नावां के श्री किशनलाल सात्त ने स्वतंत्रत' आदोलन में बहुत मक्रिय भाग लिया था। अलवर राज्य के स्वतंत्रता सेनानियों में श्री मित्रसेन तिजारानी तुलीराम जैन श्री प्रकाशचंद, श्रीमती कमला देवी जैन, श्री हरलाल रामगढ़ श्री नानकचंद रामगढ़ श्री महावीर प्रसाद जैन श्री पत्रालाल जैन एवं स्व.श्री भागचंद प्रमुख थे और उन्होंने राज्य में स्वतंत्रता आंदोलनों को आगे बढ़ाया था । मालवा प्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन में जैनों का मर्चाधिक योगदान रहा । वहां श्री तरन्जयल जैन.श्री मिश्रीलाल गंगवाल, मोतीलाल बोरा प्रकाशचंद सेठी बाबूलाल पाटोदी के नाम लिये जा मरते हैं। श्री मिश्रीलाल गंगवाल का जन्म जन सन् 192 एवं निधन- सितम्बर सन् 1901 को हो गया । गंगवाल स्वयं सेवक रन की उपाधि से विभूषित थे । उन्हे मालवा का गांधी कहा जाता था। वे मध्य भारत के मुख्य मंत्री एवं मध्य प्रदेश के सन् 1951 से 14 तक वित्त मंत्री रह । उत्तर प्रदेश के स्वतन्त्रता सेनानियों की संख्या तो सैकड़ों की संख्या में हैं जिनका विस्तृत परिचय देना संभव नहीं होगा! हम यहां उनके जिले के अनुसार केवल नाम मात्र का उल्लेख कर रहे हैं । इन सभी ने स्वतन्त्रतः आन्दोलन में खुब कार्य किया। उत्तर प्रदेश के जैन स्वतंत्रता सेनानी मेरठ जिला- बा. कीर्तिप्रसाद वकील, मेरठ, ला. अतरसैन देशभक्त, बा. सुन्दरलाल जैन, मास्टर पृथ्वीसिंह जैन, ज्योतिप्रसाद जैन, बा. सुखवीरसिंह, धर्मपत्नी बाबू उमरावसिंह मुख्तार,वा.कामताप्रसाद मुख्तार बड़ौत,पं.शीलचंद न्यायतीर्थ, मवाना, ला.चतरसेन खट्टर वाले सरधना,सेठ भगवतीप्रसाद जैन, हापुड, महात्मा भगवानदीन जी। सहारनपुर जिला:- श्री ज्योतिप्रसाद जैन "प्रेमी" देवबन्द, बाबू झूमनलाल जैन,श्री हंसकुमार जैन, बाबू अजितप्रसाद जैन, वकील,सहारनपुर,श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन धर्मपत्नी श्री अजितप्रसाद जैन, श्री विशालचन्द्र जैन, श्री हुताशचन्द्र जैन, श्री मामचन्द जैन देवबन्द,श्री त्रिलोकचन्द जैन, सहारनपुर,श्री प्रकाशचंद जैन,श्री शिखरचन्द मुनीम, श्री प्रकाशचन्द मुनीम,बाबूराम जैन,श्री कैलाशचन्द जैन। बिजनौर जिला:- स्व. बा. रतनलाल जैन वकील, एम.एल.सी.,बा. नेमोशरण जैन एडवोकेट, श्रीमती शीलवती देवी,बा. मूलेशचन्द, नजीबाबाद। ___ कानपुर जिला:- वैद्यराज कन्हैयालाल, धर्मपत्नी वैद्यराज कन्हैयालाल, आयुर्वेदाचार्य महेशचन्द जैन, बा. सुन्दरलाल जैन। Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 684) जैन समाज का वृहद् इतिहास मुजफ्फरनगर जिला:- बा. सुमतिप्रसाद बी.ए. वकील, लाला उग्रसेन, ला. बनवारीलाल चरथावल, ला. चुन्नीलाल चरथावल,ला. उलफत राय,बा.दीपचन्द वकील,बा. भारतचन्द,बा. अकलंक प्रसाद,बा. मामचन्द,लाला सुखरीरसिंह घी बाले, बा.आनन्दप्रकाश,ला. गेन्दनलाल, प्रेमचन्द / देहरादून जिला- श्री नरेन्द्रकुमार जैन,बी.ए. रामपुर जिला:-श्री कल्याणकुमार "शशि" कवि एवं वैद्य मुरादाबाद जिला:- मुंशी पेन्दनलाल, सम्भल श्रीमती गंगादेवी,हकीम टेकचन्द ड्योढ़ी,श्री सिपाहीलाल,राजथल,लाला केशोशरण ग्राम हरियाना। आगरा जिला:- सेठ अन्नलसिंह, बाबू चांदमल बैन वकील,सेठ रतनलाल जैन,श्री महेन्द्रजो,श्रीमती अंगूरी देवी, लाला नेमीचन्द जैन मीतल,श्री गोविन्ददास जैन श्री बंगालीमल जैन,बाबू मानिकचन्द जैन,बाबू कपूरचंद जैन,बाबू निर्मलकुमार जैन, बाबू गोर्धनदास जैन, बाबू किशनलाल, बाबू चिम्मनलाल,श्री श्यामलाल सत्यार्थी, श्रीपती सरबत्ती देवी, बाबू प्रतापचन्द, बाबू फूलचन्द बरवासिया,लालः करोड़ीमल.ला.मोतीलाल,श्री शीतला प्रसाद,बाबू सन्तलाल फिरोजाबाद,श्री रामबाबू फिरोजाबाद, श्री बसन्तलाल, श्री नत्धीलाल जेन बाबू हुकुपचन्द जैन,बाबू दरबारीलाल जैन वकील, बाबू रतनलाल बंसल,बाबू मानिकचन्द जैन फिरोजागद, श्री राजकुमार फिरोजाबाद,श्री धनपतसिंह जैन फिरोजाबाद,श्री गुलजारीलाल बाबू ने पीचंद जैन, बा. उत्तमचन्द वकील,बरार श्री पीतमचंद जैन, रायसा, श्री श्यामलाल जैन, रायभा. श्री बाबूलाल जैन,बाबू रामस्वरूप भारतीय जारखी आगरा, श्री पन्नालाल जैन “सरल" जारखी श्री कल्याणदास जैन,आगरा / एटा जिला:- ला. सन्तकुमार जैन, अवागढ़ मैनपुरी जिला:- बाबू रामस्वरूप जैन खैरगढ़ श्री गुणधरलाल कुरावली,श्री देश दीपक जैन, कुरावली, सेव दरबारीलाल, कुरावली, ललितपुर जिल्ला-मथुरा प्रस्पद वैद्य, वृन्दावन इमालिया, हुकुमचन्द्र दुखारिया, उत्तमचंद कठरया, गोविंददास जैन, गोविंददास सिंघई, हुकुमचंद बड़परिया, रामचन्द्र जैन,पं, परमेष्ठीदास जैन, श्रीमती कमला देवी, ललितपुर, सुखलाल इमलिया, श्री धनालाल गुढ़ा,श्री शिखरचंद सिंघई,श्री बाबूलाल जी घी वाले,श्रीमती केशरबाई,श्री खूबचंद पुंज्य,श्री गोपालदास जैन. साढूमल,श्री कपूरचंद जैन, सैदपुर,श्री घनश्यामदास, लुहरी, पं. फूलचंद, सिलावन,श्री अभिनन्दन कुमार टडैया, श्री ताराचंद कजिया बाले,प्रो.खुशालचन्द,गोरा,श्री कुन्दनलाल मलैया,सादूमल,श्री शिवप्रसाद जैन् जाखलौन,श्री दुलीचन्द जैन,तालबेहटा, श्री मोतीलाल टडैया,श्री डालचन्द जैन, मंडावरा, श्री भैयालाल परवार, सैदपुर,श्री गोकुलचन्द जैन,लड़बारी बार,श्री परमानंद बार,श्री शीतलप्रसाद,करोंदा,श्री हरिश्चन्द्र जैन,अध्यापक श्री ताराचन्द्र जैन,ललितपुर / जिला- झांसी- बा. शिवप्रसाद.जाखलौन, भाई राजधर जैन, विशम्भरदास गार्गीय पं.फूलचन्द सिद्धान्त शास्त्री /