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________________ 12 / जैन समाज का वृहद् इतिहास समाज की दूसरी संस्था अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् है जिसका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है : अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् : इस अखिल भारतीय स्तर की संस्था का जन्म 26 जनवरी, 1923 को दिल्ली में हुआ था। इसकी स्थापना में स्व. ब्र. शीतल प्रसादजी, बैरिस्टर चम्पतराय जी, स्व. साहू जुगमन्दरदास जी, बैरिस्टर जमनाप्रसाद जी एवं श्री अक्षयकुमार जी जैन के नाम उल्लेखनीय हैं। परिषद् ने सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़ियों को समूल नष्ट / दूर करने का बीड़ा उठाया तथा मरणभीज, दस्सा पूजा निषेध जैसी घातक प्रथाओं को बंद कराने में सफलता प्राप्त की। जैन ग्रंथों को प्रेस द्वारा छपवाने के कार्य में परिषद को समाज का पूर्ण समर्थन मिला । अन्तर्जातीय विवाह को परिषद् ने अपने आन्दोलन का अंग बनाया और वर्तमान में भी वह इसका पुरजोर समर्थन करती है। समाज में सुधार चाहने वाले व्यक्तियों को एक मंच पर लाने में परिषद् को पूर्ण सफलता मिली है। परिषद् ने अपना संदेश प्रसारित करने के लिये "वीर" पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। परिषद् को बा. सूरजभान जी वकील, नाथूराम जी प्रेमी, बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार, डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैन, बाबू रतनलाल जी बिजनौर, रायबहादुर सुल्तानसिंहजी जैन देहली, स्व. साहू शान्तिप्रसाद जी जैन, पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थं जयपुर जैसे समाज के नेताओं का पूर्ण समर्थन मिला। महावीर जयन्ती की सार्वजनिक छुट्टी करवाने, जनगणना में अपने आपको जैन लिखवाने जैसे कार्यों में परिषद् का अपना पूर्ण योगदान रहा है। परिषद् अक्टूबर, 1982 में 60 वर्ष की समाप्ति पर कानपुर में हीरक जयन्ती समारोह आयोजित कर चुकी है। परिषद् द्वारा संचालित परीक्षा बोर्ड से प्रतिवर्ष हजारो विद्यार्थी जैन धर्म की विभिन्न परीक्षाओं में बैठते हैं यह परिषद् की बहुत बड़ी उपलब्धि है । परिषद् का वार्षिक अधिवेशन इसी वर्ष बम्बई में आयोजित हो चुका है। वर्तमान में श्री डालचन्द जी जैन सागर इसके अध्यक्ष है तथा श्री सुकुमालचन्द जी जैन मेरठ इसके महामंत्री है। श्री दिगम्बर जैन महासमिति सन् 1975 में दिगम्बर जैन महासमिति की स्थापना की परिकल्पना एक प्रकार की "जैन संसद" के रूप में की गई थी। इसकी स्थापना का प्रमुख श्रेय स्व. साहू शान्तिप्रसाद जी को जाता है। वे ही इसके प्रथम अध्यक्ष बने। इसका प्रमुख उद्देश्य दिगम्बर जैन समाज में एकता, समन्वय व पारस्परिक प्रेम की भावना उत्पन्न करना है। महासमिति किसी भी प्रकार के विवादास्पद पक्षपात की भावनाओं को प्रोत्साहन नहीं देगी व इसमें प्रत्येक विचारधारा का समावेश रहेगा और इसका प्रयास समन्वयात्मक रहेगा। महासमिति संगठन व संवर्द्धन के कार्य को सदा बल देती रहेगी और समाज के सामान्य जीवन
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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