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________________ समाज का इतिहास/13 स्तर के उन्नयन व संवर्द्धन के प्रयास के साथ दिगम्बरत्व की रक्षा व पारस्परिक एकता को सुदृढ़ करेंगी ऐसा उसका विधान है। भगवान महावीर के 2500 वे निर्वाणोत्सव के बाद भगवान बाहुबली की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की सहस्त्राब्दि समारोह तथा इस अवसर पर होने वाला महामस्तकाभिषेक एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया गया। इस पुनीत कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न करने में महासमिति को सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा एवं स्वस्ति श्री कर्मयोगी भटारक श्रवणबेलगोला श्री चास्कीर्ति जी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। महासमिति दिगम्बर जैन समाज का सबसे बड़ा और उसका सबसे अधिक सशक्त प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन है। यह सारे दिगम्बर जैन समाज की एकता का प्रतीक है। आज महासमिति और दिगम्बर जैन समाज एक दूसरे के समानार्थी बन गये है। महासमिति की सभी प्रान्तों में शाखायें है तथा समाज के सैकड़ों हजारों कार्यकता इससे जुड़े हुये है। वर्तमान में श्री रतनलाल जी गंगवाल इसके अध्यक्ष एवं श्री बाबूलाल जी पाटोदी इसके प्रधानमन्त्री है। इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में हैं। श्री भा.दि. जैन शान्तिवीर सिद्धान्त संरक्षिणी सभा : यह भी एक अखिल भारतवर्षीय संस्था है जिसकी स्थापना 40 वर्ष पूर्व जैनागम एवं सिद्धान्तों की रक्षा के लिये की गई थी। यह सभा आचार्यों एवं सन्तों के सानिध्य में धार्मिक शिविरों का आयोजन करती रही है। जिसमें धार्मिक क्रिया-कलापों एवं गतिविधियों को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलता रहता है। शान्ति वीर सिद्धान्त संरक्षिणी सभा द्वारा 10 जनवरी 1981 को सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर में एक लाख रुपये का अनुदान देकर अपभ्रंश भाषा में अनुसंधान योजना का श्री गणेश किया। सभा द्वारा जैन दर्शन पत्र प्रकाशित किया जाता है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद : जैन विद्वानों की यह प्राचीनतम अखिल भारतीय संस्था है जिसका प्रमुख उद्देश्य जैन विद्वानों को एक मंच पर लाना तथा उनमें धर्म, संस्कृति एवं साहित्य की सेवा करने की भावना भरना है। शास्त्री परिषद् विगत 70-80 वर्ष से समाज की विभिन्न प्रकार से सेवा कर रही है। इसके विद्वान दशलक्षण पर्व में शास्त्र प्रवचन के लिये समाज की मांग के अनुसार जाते रहते हैं। वर्तमान में पं. सागरमल विदिशा अध्यक्ष एवं डॉ. श्रेयान्स कुमार जैन शास्त्री महामंत्री है। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् : भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत् परिषद् की स्थापना कलकत्ता में आयोजित वीर शासन जयन्ती के अवसर पर दिनांक 02-11-38 को हुई थी। विद्वत् परिषद् का उद्देश्य भी विद्वानों को एक सूत्र में बांधना, उनमें साहित्यिक अभिरुचि पैदा करना तथा समाज में जागृति पैदा करना है।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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