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समाज का इतिहास / 11
अखिल भारतीय स्तर की संस्थाओं की स्थापना :
वर्तमान शताब्दी में सर्वप्रथम श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की स्थापना की गई। संवत् 1949 में जम्बूस्वामी चौरासी मथुरा के वार्षिक मेले पर अखिल भारतीय दिगम्बर जैन संस्था का उद्घाटन किया गया जिसका नाम भारतीय दिगम्बर जैन महासभा रखा गया। उसके प्रथम अध्यक्ष राजा लक्ष्मणदास जी. सी. आई. ई. मथुरा निर्वाचित हुये । उपसभापति लाला उग्रसेन जी रईस, सहारनपुर और महामंत्री पं. छेदीलाल जी अलीगढ़ निर्वाचित हुये। महासभा की स्थापना का उद्देश्य मूर्च्छित जैन समाज में नवचेतना का संचार करना था। महासभा की स्थापना ने जैन समाज के संगठन के लिये प्रकाश स्तम्भ का कार्य किया । संवत् 1952 में महासभा की ओर से भी "जैन गजट" नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किया गया और उसके प्रथम सम्पादक सूरजभान जी वकील सहारनपुर नियत किये गये। I
वि.सं. 1953 में महासभा के अधिवेशन में भारतीय दिगम्बर जैन महाविद्यालय का उद्घाटन हुआ । महाविद्यालय के मंत्री न्याय दिवाकर पं. पन्नालाल जो तथा उप मंत्री न्याय वाचस्पति स्याद्वादवारिधि पं. गोपालदास जी बरैय्या नियुक्त हुये। इसी के साथ ही दिगम्बर जैन महासभा परीक्षालय स्थापित हुआ । श्री 105 क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी, पं. माणिकचन्द जी न्यायाचार्य पं. लालाराम जी शास्त्री, पं. मनोहरलाल जी शास्त्री, पं. रामप्रसाद जी शास्त्री आदि विद्वान महासभा विद्यालय के ही स्नातक बने ।
करीब 10 वर्ष तक महासभा का समाज पर एकाधिकार रहा और वही समाज का प्रतिनिधित्व करती रही। लेकिन 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में जब जैन ग्रंथों के प्रकाशन का प्रश्न सामने उपस्थित हुआ तो महासभा ने ग्रंथों के प्रकाशन का घोर विरोध किया। महासभा की इस नीति से समाज के कुछ प्रमुख व्यक्ति महासभा से अलग हो गये लेकिन महासभा सामाजिक क्षेत्र में बराबर डटी रही। अक्टूबर सन् 1902 में महासभा ने दिगम्बर जैन तीर्थों की रक्षा के लिये दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र की स्थापना की तथा 35 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया। महासभा बराबर तीर्थं क्षेत्रों का रक्षा का कार्य करती रही। सम्मेद शिखर जी पर अंग्रेजों द्वारा बंगला निर्माण की योजना का महासभा के विरोध के कारण ही क्रियान्वयन नहीं हो सका। आचार्य शान्तिसागर जी महाराज अथवा अन्य मुनियों के स्वतन्त्र विहार में जहाँ भी विरोध हुआ महासभा ने उसका डटकर विरोध किया |
महासभा को समाज की सेवा करते हुये शीघ्र ही एक शताब्दी पूरी होने वाली है। अपने 100 वर्षों के जीवन में वह बराबर सामाजिक क्षेत्र में डटी हुई है तथा बाधाओं की बिना परवाह किये निर्ग्रन्थ परम्परा की रक्षा में तथा आगम परम्परा का निर्वाह करने में लगी हुई है। उसकी अध्यक्षता समाज के वरिष्ठतम समाज सेवियों ने की है। वर्तमान में उसके अध्यक्ष युवा समाजसेवी श्री निर्मलकुमार सेठी एवं प्रधानमन्त्री श्री त्रिलोकचन्द कोठारी है। उसका माँगी तुंगी में 95वा अधिवेशन सम्पन्न हो चुका है।
1. हुकुमचन्द अभिनन्दन ग्रंथ पृष्ठ संख्या-418-419