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________________ 86/ जैन समाज का वृहद इतिहास देते या फिर कमरे के निर्माण में रुचि लेते। शिखर जी की तेरहपंथी कोठी म,राजगृही में,नाथ नगर (चम्पापुर में एक-एक कमरे का निर्माण करवाया । जैन धर्मशाला तिनसुकिया में दो कमरे बनवाये तथा एक कमरा बनवाकर तिनसुकिया कॉलेज को प्रदान किया। इसी तरह वहां के दि.जैन मन्दिर में एक बड़े हाल का निर्माण करवाया । अपने ग्राम डेह की गौशाला में गायों को बांधने के लिये एक कमरा तथा वहीं के सरकारी प्राथपिक विद्यालय में एक कमरे का निर्माण करवाकर विद्या के प्रचार-प्रसार में योग दिया। वे स्वभाव से उदार थे । संस्थाओं के जो भी कार्यकर्ता अथवा प्रतिनिधि आते उन्हें वे मुक्तहस्त से आर्थिक सहयोग देते। देने वाले नामों में अपना सर्वप्रथम लिखते तथा ओरों को लिखने की प्रेरणा देते । आतिथ्य में वे सबसे आगे रहते । दूसरों को खिलाकर खाने में उन्हें अतीव आनन्द आता । उनका सभी के साथ अच्छा व्यवहार रहता था। इसलिए उनके पास आने एवं मिलने में किसी को भी हिचक नहीं होती थी। 27 जनवरी, 80 को एक लम्बी बीमारी के पश्चात् आपका देहली में ही स्वर्गवास हो गया । आप अपने पीछे चार पुत्र सर्वश्री निर्मलकुमार जी, श्री हुलाशचन्द जी,महावीर प्रसार जी एवं दिनेश कुमार जी जैन,पांच पुत्रियां,पौत्र एवं पौत्रियां का एक भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। आपके सभी पुत्र धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा समाजिक एवं धार्मिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री निर्मल कुमार जी सेठी वर्तमान में भा दि.जैन महासभा के अध्यक्ष हैं।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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