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________________ पूर्वांचल प्रदेश का जैन समाज /85 बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती राखीदेवी ने अपने जीवन में पांच बार दशलक्षण व्रत तथा दस बार आष्टादिनका वत करके एक कीर्तिमान स्थापित किया । आपके सभी पुत्र आपकी तरह धार्मिक, उदार एवं समाज के विकास में पूर्ण रुचि लेते हैं। ज्येष्ठ पुत्र पत्रालाल सेठी राष्ट्रीय स्तर के जैन समाज में ख्याति प्राप्त युवक हैं । सन् 1973 में सम्पूर्ण भारतवर्ष के तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करते हुये भागलपुर श्री दिग. जैन मंदिर में परमपूज्य श्री 108 आर्यनन्दी जी महाराज के सानिध्य में शांतिपूर्वक देह त्याग किया। स्व. श्री हरकचंद जी सेठी स्त्र. सेठी जी का जन्म संवत् 1970 आसोज बुदी 13 को राजस्थान के डेह नगर में हुआ । नागौर के समीप होने के कारण डेह दिगम्बर जैन समाज का अच्छा केन्द्र है । सेठी जी का साधारण परिवार था । उनके पिताजी भंवरलाल जी आसाम में नौकरी करते थे । आसाम का जलवायु उनहें माफिक नहीं आया इसलिये छोटी उम्र में ही उनका देहान्त हो गया। उससमय हरकचन्द जो केवल साढ़े आठ वर्ष के बालक थे। उनसे छोटे दो भाई बहिन और थे। लालन-पालन एवं भरण-पोषण का पूरा उत्तरदायित्व माताजी पर आ गया। घर में घोर आर्थिक संकट उपस्थित हो गया । इसलिये जो कुछ मां के पास था उसे के सहारे घर का काम चलने लगा। लेकिन बिना कमाये कब तक काम चलता इसलिये 13 वर्ष की अवस्था में उनहें खाने के लिये आसाम जाना पड़ा। वे तिनसुकिया गये । उनकी प्रारंभिक शिक्षा डेह में ही हुई थी। अपनी सोखी हुई महाजनी में दक्षता होने के कारण वे जल्दी ही काम सीख गये और मालिक के विश्वासपात्र बन गये । अपनी सीखी हुई महाजनी के बल पर ही ये कार्यक्षेत्र में उतर पडे । आसाम आने के 4 वर्ष पश्चात ही उन्हें अपनी बहिन का विवाह कराना पडा । जो कुछ कमाया था बह सब विवाह में लगा दिया । जब वे १९वर्ष के थे तभी उनका भी विवाह हेह में ही श्रीमती मोहनी देवी से हो गया। विवाह होने के उपरान्त उन्हें फिर आसाम जाना पड़ा। संवत् 1994 में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपना स्वतंत्र व्यापार करना आरम्भ कर दिया। इसी वाई आपको पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम निर्मल रखा गया। भाग्य ने साथ दिया । व्यापार में सफलता पर सफलता मिलने लगी । गल्ला,चावल आदि का थोक व्यापार करने लगे। इससे आपकी आर्थिक स्थिति एकदम बदल गई और सेठी जी की गिनती बड़े व्यापारियों में होने लगी। अपनी मिलनसारिता एवं व्यापारिक कुशलता के कारण वे तिनसुकिया, गौहाटी एवं डिब्रुगढ़ में लोकप्रिय बन गये । ___व्यापार के पश्चात् उनका ध्यान नये-नये उद्योगों की ओर गया । एक के बाद दूसरे उद्योगों की स्थापना की जाने लगी। सिल्चर में यूनियन फ्लोर मिल,सीतापुर में हरकचन्द फ्लोर मिल,गोरखपुर में सेठी फ्लोर मिल जैसे उद्योगों की स्थापना करके व्यापारिक क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। धार्मिक जीवन स्त्र. सेठी जी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के श्रावक थे । मुनियों का सानिध्य उन्हें छोटी अवस्था में ही प्राप्त होने लगा था । विवाह के 4 वर्ष पश्चात् ही अपनी पत्नी को शुद्ध आहार ग्रहण करने के नियम पालन की स्वीकृति प्रदान कर दी । वे जीवन पर्यन्त देव दर्शन, अभिषेक,पूजा,स्वाध्याय आदि का पालन करते रहे । उन्होंने आलू ,प्याज,गोभी जैसी सब्जियों का कभी सेवन नहीं किया। चलती ट्रेन में उन्होंने कभी खान-पान नहीं किया । तीर्थों की यात्रा करने में उन्हें विशेष रुचि थी। राजगृहो तो वे प्रतिवर्ष जाते थे। इसी तरह तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की भी वे यात्रा करते रहे। तीर्थों पर जाकर या तो जीर्णोद्धार में सहयोग
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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