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________________ समाज का इतिहास/37 आचार्य वर्धमान सागर जी आचार्य शान्तिसागर जी (दक्षिण) के पद पर प्रतिष्ठित पेचम पट्टाधीश आवार्य है। युवाचार्य है। साधना एवं तप में लीन रहते हुये समाज को आवश्यक दिशा प्रदान करते रहते है। समाज को आपसे बहुत आशाये है। आचार्य सन्मति सागर जी के दीक्षागुरु आचार्य विमल सागर जी है। सन् 1960 में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की तथा सन् 1976 में आचार्य महावीर कीर्ति जी ने आपको आचार्य पद प्रदान किया। आप अच्छे वक्ता एवं कठोर तपस्वी साधु है। उपवास बहुत करते है। 125 दिनों में 24 दिन आहार लेना ही कठोर साधना है। आहार में अनाज, घी, तेल, नमक, दही, जीरा, धनिया, मेथी, तिल्ली का आजीवन त्याग है। आपका जीवन अतिशयो सहित है। उपाध्याय श्री योगीन्द्रसागर जी महाराज आपके शिष्य है जो अच्छे वक्ता एवं प्रभावक साधु हैं। गणधराचार्य श्री कुंथुसागर जी महाराज विशाल संघ के अधिपति है। मंत्र साधना की और आपका विशेष ध्यान है। लघुविद्यानुवाद का आप सम्पादन कर चुके हैं। साहित्य प्रकाशन की ओर आपकी विशेष रचि रहती है। शान्त स्वभावी किन्तु कठोर साधना युक्त आपका जीवन सहज ही आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। आचार्य महावीर कीर्ति से आपने सन् 1967 में मुनि दीक्षा प्राप्त की तथा सन् 1980 में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। आचार्य सुमति सागर जी कठोर जीवन साधक एवं उपसगों में बार-बार विजय पाने वाले आचार्य सुमति सागर जी 108 विमल सागर जी महाराज (भिण्डवाले) से दीक्षित साधु है। आप सन्मार्ग दिवाकर, चारित्र चक्रवती, धर्म रत्नाकर, मासोपवासी जैसे उपाधियों से अलंकृत हैं। अब तक आप विभिन्न नगरों में 23 चतुर्मास सम्पन्न कर चुके है। आचार्य कल्प श्री सन्मति सागर जी, उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज जैसे साधु आपके शिष्य हैं। आचार्य पुष्पदन्त जी महाराज युवाचार्य है। लेखन कला एवं वक्तृत्व कला के धनी आचार्य हैं। आप आचार्य विमल सागर जी द्वारा दीक्षित और उन्हीं के द्वारा मार्च 1986 में गोम्मट गिरि इन्दौर में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित आचार्य है। हजारों लाखों की भीड़ को मंत्रवत वश में करना आपका सहज कार्य है। आपकी लिखी हुई कितनी ही पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। ___ आचार्य कल्याणसागर जी यद्यपि नव दीक्षित मुनि एवं आचार्य है। सात-आठ वर्ष का साधु जीवन कोई अधिक नहीं होता लेकिन आपने अल्पकाल में ही मोकार महामंत्र के नाम स्मरण का जो चमत्कार जैन एवं जैनेतर समाज के हृदय में बैठाया है वह अतीव कल्पनातीत है। आचार्य श्रेयान्स सागर जी महाराज वयोवृद्ध आवार्य हैं। आप भी. दिनांक 10/06/1990 को आचार्य शांतिसागर जी (दक्षिण) महाराज के पद पर पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित आचार्य है। एक ही पट पर दो आचार्यों की प्रतिष्ठापना वर्तमान युग की विशेषता बनने लगी है।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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