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234 / जैन समाज का वृहद् इतिहास
श्री चांदमल काला
ज्योतिष शास्त्र विशेषतः अंक शास्त्र के प्रमुख पंडित श्री चांदमल काला की अब तक कितनी ही भविष्यवाणियां सही निकली हैं तथा पिछले 25-30 वर्षों से वे इसी कार्य में लगे हुये हैं। उनका जन्म 4 दिसम्बर सन् 1908 को पचार ग्राम में हुआ। बंबई जैन परीक्षालय से प्रथमा, मध्यमा पास की और प्रारंभ में खादी के विक्रेता के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया । उनका श्रीमती केशरदेवी से विवाह हुआ लेकिन एक पुत्र एवं दो पुत्रियों को जन्म देने के पश्चात् उनका वानं सुखवीर्थ के शिष्य हैं तथा अपनी युवावस्था में खण्डेलवाल जैन महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं। उनका जीवन संघर्ष पूर्ण रहा है।
काला जी 82 वर्ष की आयु पार करने के पश्चात् भी पूर्ण सक्रिय हैं तथा आज भी उनकी ज्योतिष विद्या से काफी व्यक्ति प्रभावित हैं।
पता:- पं. शिवदीन जी का रास्ता, जैन मन्दिर के पास, जयपुर ।
श्री चंदालाल टोंग्या
टोंग्या परिवार में 2 अक्टूबर 1915 को जन्में श्री चंदालालजी टोंग्या नगर के सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में विशिष्ट पहिचान रखते हैं। आपके पिताजी श्री चिरंजीलाल टोंग्या तो आपको बाल्य अवस्था में ही छोड़कर स्वर्गवासी बन गये थे। आपकी माता हीरादेवी भी करीब 50 वर्ष पहिले स्वर्गवासी बन गई थी।
आपका विवाह श्री ज्ञानचंद सोनी की सुपुत्री कमला देवी के साथ संपन्न हुआ । आप
दोनों पति पत्नी को चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों के माता-पिता
बनने का सौभाग्य मिल चुका है। चार पुत्रों में श्री विजयकुमार पिछले 10 वर्षों से न्यूयार्क में क्विन्स आइलैण्ड में रहते हैं। श्री जैन के अनुसार न्यूयार्क स्टेट में करीब अढाई हजार परिवार के 5 हजार जैन रहते हैं। वहां महावीर जयन्ती आदि सभी पर्व मनाये जाते हैं। जयपुर के ही करीब 400 व्यक्ति वहां रहते हैं।
दूसरे पुत्र श्री राजकुमार (38 वर्ष) अनिलकुमार (34 वर्ष) सुनील कुमार (31 वर्ष) सभी जवाहरात व्यवसाय में लगे हुये हैं। आपकी तीनों पुत्रियां रतनदेवी, कुमुद एवं राजकुमारी सभी का विवाह जयपुर के संपन्न परिवारों में हो चुका है।
श्री विजय कुमार ग्या
जयपुर में चौबीस महाराज का मंदिर आपके पूर्वज लाला अमीचंद टोंग्या द्वारा बनवाया गया था। श्री चन्दालाल जी टोंग्या सरल एवं शांत स्वभावी हैं। पूजापाठ में रुचि लेते हैं। संगीत में रस लेते हैं। संगीत पार्टियों में जाते हैं। आपने बिना किसी की मदद के स्वयं ने ही जवाहरात जैसे विषय में अद्भुत परीश्वण ज्ञान प्राप्त किया तथा पारस पत्थर को छोड़कर अब तक विभिन्न प्रकार के नब्बे पत्थरों का निरीक्षण कर चुके हैं। जयपुर के जौहरियों को जिस किसी पत्थर