SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयपुर नगर का जैन समाज / 297 जैन समाज के प्रबुद्ध समाजसेवी व विद्वान पं. चैनसुखदास जी के मुख्य अनुयायियों में से भी आप एक हैं । श्री मिलापचन्द जैन बागायत वाला " बागायत वालों के बैंक से प्रसिद्ध श्री मिलापचन्द जी गोधा समाज की एक विभूति हैं। जिनवाणी के प्रकाशन, संरक्षण एवं व्यवस्थितकरण में आप विगत 50 वर्षों से लगे हुये हैं। आपने अब तक धर्मरत्नाकर, जीवराज की चिट्ठी ध्यानोपदेश कोश, रामचन्द्र चालीसा, आदिनाथ पार्श्वनाथ पूजा, पार्श्वनाथ स्तोत्र, ऋषि मंडल स्तोत्र, समवसरण स्तोत्र णमोकारपे तोसी विमान, धवल जगध्वल पूजा, जैनविद्री मूडविद्री की चिट्ठी, हितकर कहानियां, लक्ष्मी और सरस्वती, दिगम्बराचार्य पट्टावलि, रविवत पूजा व तीन लोक बड़ी पूजा पार्श्वनाथ पद्मावती नालीसा जैसी र पुस्तकें प्रक के हैं। A आप सन् 1933 से ही जिनवाणी की सेवा में लगे हुये हैं। पांडे लूणकरण जी के मंदिर के शास्त्र भंडार को व्यवस्थित करने तथा उसका सूचीकरण करने में डा. कासलीवाल को बहुत सहयोग दिया था। आप शास्त्र भंडार के मंत्री हैं और रात दिन उसकी व्यवस्था में लगे रहते हैं। आजकल आप वेदी प्रतिष्ठा, पूजा विश्वान आदि कराते हैं। अब तक 181 विधान करा चुके हैं। पार्श्वनाथ भवन में स्थित आर्यिका धर्ममती क्षु राजमती पुस्तकालय में प्रतिदिन बैठते हैं। पाण्डे लुणकरण जी एवं पार्श्वनाथ भवन की दोनों पुस्तकालयों में 4 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त साधुओं की सेवा में भी आप बराबर लगे रहते हैं। साधुगण आपको जिनवाणी भक्त एवं सरस्वती पुत्र कहकर संबोधित करते रहते हैं। आपका जन्म 12 दिसम्बर सन् 1912 को हुआ । मेट्रिकुलेट किया और राजकीय सेवा में चले गये। 16 फरवरी 1934 को आपका विवाह हुआ। आपकी पत्नी श्रीमती पद्मावती देवी हिन्दी प्रवेशिका हैं। आपके पिता श्री हजारीलाल जी सन् 1930 में ही स्वर्गवासी हो गये थे तथा माताजी का स्वर्गवास अभी सन् 1977 में हुआ। मिलापचन्द जी धार्मिक स्वभाव के हैं तथा शोधार्थियों को बराबर सहयोग देते रहते हैं। लेखक को तो आपसे विभिन्न ग्रंथों की पाण्डुलिपियां प्राप्त करने में बहुत सहयोग मिलता रहा है । पता :- मकान नं. 1981 बागायत भवन, बंजी ठोलिया की धर्मशाला के पास, जयपुर ३ पं. मिलापचन्द शास्त्री जयपुर की पुरानी पीढ़ी के विद्वानों में पं. मिलापचन्द जी का सर्वोच्च स्थान है। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ के प्रिय शिष्य होने के साथ उनके पश्चात् समाज आपके प्रवचनों के प्रति विशेष आकर्षित रहा है। इसलिये भाद्रपद मास के अतिरिक्त अन्य सभी समारोहों में आप विशेष वक्ता के रूप में याद किये जाते हैं। पावन प्रवाह एवं जैन दर्शन सार का आपने हिन्दी अनुवाद किया है। भावना विवेक को अपने पिताजी मगनलाल जी की समृति में प्रकाशित करवाकर उसे आप निशुल्क वितरित कर चुके हैं। आपके स्वदेशी वस्त्र भण्डार के नाम से स्वतंत्र
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy