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64 / जैन समाज का वृहद् इतिहास
गौहाटी अथवा गुवाहाटी :
गौहाटी नाम से प्रसिद्ध नगर आराम प्रदेश की राजी है।
नदी के किस पर बसा हुआ होने के कारण इस नगर का प्रारम्भ से ही व्यापारिक महत्व रहा है। सन् 1891 की जनगणना के समय गौहाटी की जनसंख्या 10817 थी और उसमें 23 जैन थे। सन् 1991 की जनगणना में गौहाटी की जनसंख्या दो लाख से ऊपर पहुंच जायेगी । प्राचीन काल में गौहाटी का नाम प्रागज्योतिषपुर था ।
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वर्तमान में दिगम्बर जैन धर्म एवं समाज की दृष्टि से गौहाटी पूर्वाञ्चल प्रदेश का सबसे घनी बस्ती वाला नगर है। वहां जैन समाज के करीब 456 परिवार रहते हैं जिनमें अधिकांश उद्योगपति, व्यवसायी एवं व्यापारी हैं। नगर में एक दिगम्बर जैन मन्दिर एवं 6 चैत्यालय हैं। पंचायती मन्दिर फैन्सी बाजार में स्थित है तथा चैत्यालय पान बाजार, केदार रोड़, आठ गांव, मालीयान पांडू एवं महावीर भवन में हैं। समाज में सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था बनाये रखने के लिये दिगम्बर जैन पंचायत नाम की संस्था विगत 30-35 वर्षों से कार्यरत है। पंचायत के अध्यक्ष के रूप में रा. सा. चांदमल जी पांण्ड्या, हरकचन्द जी पाण्ड्या, लखमीचन्द जी छाबड़ा, मनालाल जी छाबड़ा जैसे महानुभाव कार्य कर चुके हैं। पंचायत में पदाधिकारियों सहित 30 सदस्य हैं। पंचायत के अतिरिक्त यहां श्री महावीर महिला परिषद्, श्री महावीर छात्र परिषद्, श्री दिगम्बर जैन विद्यालय, श्री महावीर सिलाई शिक्षा केन्द्र, श्री महावीर संगीत विद्यालय एवं श्री महावीर भवन जैसी संस्थाएं कार्यरत हैं। महावीर भवन साधु-साध्वियों एवं यात्रियों के लिये ठहरने का सुन्दर स्थान है।
यहां का अधिकांश समाज खण्डेलवाल दि. जैन समाज है। मुनिभक्त है। जब से आर्यिका इन्दुमती जी एवं आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी ने गौहाटी में चातुर्मास किये हैं, समाज को धार्मिक कार्यों की ओर मोड़ने में पर्याप्त सफलता मिली है। माताजी के चातुर्मास से नवयुवकों में धार्मिक संस्कार जगे हैं।
गौहाटी के वर्तमान प्रमुख समाज सेवियों में सर्व श्री लक्षमी चन्द जी छाबड़ा, मदन लाल जी बाकलीवाल, सोहनलाल जी पाटनी, गणपतराय जी सरावगी, जयचन्द लाल जी पाटनी, दानमल जी सौगानी, मदनलाल जी पाटनी, हुकमचन्द जी सरावगी, मानिकचन्द जी गंगवाल, पूनमचन्द जी सेठी, कपूरचन्द जी पाटनी आदि के नाम विशेषत: उल्लेखनीय है। नगर में खण्डेलवाल जैन समाज के अतिरिक्त अग्रवाल जैन, परवार एवं पद्मावती पुरवार के भी 2-2 घर हैं ।
विजय नगर :
विजय नगर का निर्माण पलासबाड़ी के विनाश से प्रारंभ होता है। जब सन् 1955-56 में ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव की चपेट में पूरा पलासबाडी नगर आ गया तो वहां के आधे निवासी गौहाटी आकर बस गये और आधे विजयनगर चले गये । उन्होंने विजयनगर नामक नया शहर बसाया। पहले यहां का जैन मन्दिर वैष्णव मन्दिर के साथ मिला हुआ था लेकिन इससे कुछ लोगों को सन्तोष नहीं हुआ। उन्होंने नये मन्दिर के लिये अपना प्रयत्न