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________________ इतिहास की पृष्ठभूमिः देश के पूर्वाञ्चल प्रदेश में आसाम, नागालैण्ड, मणिमुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम जैसे छोटे-बड़े प्रदेश आते हैं । पहले इन में से अधिकांश प्रदेश आसाम प्रान्त के ही भाग थे, मणिपुर स्टेट थी लेकिन भाषा और संस्कृति के नाम पर ये सब स्वतन्त्र प्रदेश बना दिये गये । वर्तमान में सभी में विधानसभायें, सचिवालय एवं राज्यपाल आदि हैं । कूचबिहार बंगाल-बिहार का अंतिम रेल्वे स्टेशन है और गौरीपुर आसाम का प्रवेश द्वार है। पूर्वाञ्चल प्रान्त में राजस्थान से मुख्यत: मारवाड़ एवं शेखावाटी से व्यापार एवं रोजगार के लिये कोई 150 वर्ष पूर्व में जाना प्रारंभ हुआ। सन् 1891 की जनगणना के अनुसार पूरे आसाम प्रदेश की जनसंख्या 5476833 थी इनमें जैनों की जनसंख्या 1368 थी । इससे पता चलता है कि 100 वर्ष पूर्व वहां एक हजार से अधिक व्यापारी एवं उनके कार्यकर्ता पहुंच चुके थे। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि पूर्वाचल में 150 वर्ष पूर्व ही जैन धर्म का प्रवेश हुआ था । गौहाटी से 125 कि.मी. दूर सूर्य पहाड़ में जैन पुरातत्व के अवशेष मिले हैं । गुफा में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमायें उकेरी हुई मिली हैं। इससे पूर्वाञ्चल प्रदेश में जैन धर्म के प्राचीन अस्तित्व का नया स्रोत मिला है । पूर्वाञ्चल में भगवान महावीर के पूर्व एवं उनके निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म की क्या स्थिति रही इसकी खोज की महती आवश्यकता है। ___ पिछले 100 वर्षों में समूचे पूर्वाञ्चल प्रदेश में जैन धर्म की स्थिति सुदृढ़ हुई है। केवल जनसंख्या में ही वृद्धि नहीं हुई है किन्तु नये-नये मन्दिरों का निर्माण हुआ है । स्वाध्यायशालायें, प्रवचन हॉल, मानस्तंभ, समवसरण की रचना हुई है । साध्वियों का विहार होने लगा है । वर्ष 1974 से 75 में समूचे पूर्वाञ्चल प्रदेश में भगवान महावीर का 2500वां परिनिर्वाण वर्ष बड़े जोश के साथ मनाया गया। धर्मचक्र का प्रवर्तन हुआ, ज्ञान ज्योति रथ का प्रवर्तन हुआ । गौहाटी, विजय नगर, डीमापुर, नलबाड़ी जैसे नगरों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित हो चुके हैं । इस प्रकार पूर्वाञ्चल प्रदेश जैन धर्म एवं जैन संस्कृति की दृष्टि से अनेक प्रदेशों के बराबर आने लग गया है। अब जब पूर्वाञ्चल प्रदेश के प्रमुख नगरों एवं उनमें वर्तमान में जैन समाज की स्थिति, धर्म एवं संस्कृति के प्रति जागरूकता, दिवंगत महान् आत्मायें एवं समाज के प्रमुख कार्यकर्तागण आदि का परिचय प्राप्त करने के लिये पूरे प्रदेश में मुझे करीब 50 दिन तक घूमना पड़ा तथा कुछ सामग्री श्री राजकुमार जी सेठी प्रकाशन मंत्री दि. जैन महासभा द्वारा प्राप्त हुई । उसी के आधार पर पूर्वाञ्चल प्रदेश के नगरों का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है ।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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