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________________ 62/ जैन समाज का वृहद् इतिहास जैन पत्र-पत्रिकाएं जैन पत्र-पत्रिकाओं का समाज के इतिहास निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनमत बनाने में उनका विशेष हाथ रहता है। वस्तुतः इन पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक इतिहास के पृष्ठ बिखरे पड़े हैं। क्योंकि अब तक जितने भी सामाजिक आंदोलन हुये, इन पत्रों ने उनमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इन आंदोलनों में चाहे वह दस्सा पूजाधिकार हो अथवा अन्तर्जातीय विवाह का प्रश्न, सिद्धान्त ग्रंथों को छुपाने का हो अथवा श्रावकों द्वारा पढ़ने का, लोहडसाजन बडसाजन आंदोलन हो, अथवा आर्षमार्ग का समर्थन, सोनगढ़ का विरोध हो अथवा समर्थन हो अथवा इनके अतिरिक्त और कोई भी आंदोलन हो, सभी में इन पत्र-पत्रिकाओं की अहं भूमिका रही है। 20वीं शताब्दी में अनेक पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और कुछ वर्षों के प्रकाशन के पश्चात् वे बंद ही गये। तीर्थंकर इन्दौर के (सन् 1977 के जैन पत्र-पत्रिकाएं ) विशेषांक में 386 पत्रों की संख्या दी गई है। जिनमें आधे से अधिक पत्र तो बंद हो चुके हैं। लेकिन प्रतिवर्ष नये-नये पत्रों का प्रकाशन भी हो रहा है। यद्यपि जैन समाज तो एक छोटा समाज है लेकिन उसमें बौद्धिक वर्ग अधिक होने के कारण जैन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या काफी अधिक है। वर्तमान में 150 से भी अधिक पत्र प्रकाशित होते हैं। कुछ पत्र तो संस्थाओं के पत्र हैं और कुछ निजी पत्र भी हैं। इसलिये संस्थाओं की ओर से प्रकाशित होने वाले पत्रों की रीति-नीति तो संस्थाओं के अनुसार होती है और जो निजी पत्र है उनकी नीति सम्पादक के ऊपर निर्भर करती है। जैन गजट अ. भा. दि. जैन महासभा का पत्र है तथा महासभा की रीति-नीति का दिग्दर्शक है। विगत एक शताब्दी से कुछ कम समय में समाज के प्रमुख विद्वानों ने इसका सम्पादन किया है। इसके अब तक कई विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। जैन मित्र की विकास यात्रा सन् 1950 से प्रारंभ हो गई थी। इसे हम मध्यममार्गी पत्र कह सकते हैं। अ.भा. दि. जैन परिषद् का मुख्य पत्र वीर है जो सुधारवादी विचाराधारा का है। इसी तरह जैन संदेश प्रारंभ में निजी पत्र रहा और फिर अ. दि. जैन संघ से जुड़ गया। पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री वाराणसी ने इसका वर्षों तक सम्पादन किया। इसी तरह जयपुर से प्रकाशित होने वाली वीरवाणी का सम्पादन पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ जैसे विद्वान ने किया और सामाजिक आंदोलनों में खूब भाग लिया । उक्त पत्रों के अतिरिक्त अहिंसावाणी (1950) तीर्थंकर मासिक इन्दौर (1955) सम्यग्ज्ञान हस्तिनापुर, जैन बोधक (मराठी) दिगम्बर जैन, अहिंसा जयपुर, जैन जगत (बम्बई) आदि पचासी पत्र हैं जो सामाजिक समाचारों को प्रकाशित करके समाज को नवीनतम सूचनायें कराते रहते हैं। इसी तरह अनेकान्त, जैन सिद्धान्त भास्कर, प्राकृत विधा जैसे साहित्यिक पत्र हैं जिनमें प्रमुखतः साहित्यिक अथवा शोध पूर्ण लेख प्रकाशित होते हैं। अब जयपुर से जैन समाज नाम से एक दैनिक पत्र अभी गत कुछ वर्षों से प्रकाशित होने लगा है। |‒‒‒‒‒‒‒
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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