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________________ 188/ जैन समाज का वृहद् इतिहास 5. नरसिंहपुरा समाज :- नरसिंहपुरा जैन समाज भी दस्सा बीसा समाज में बंटा हुआ है । इस समाज का प्रमुख केन्द्र उदयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, सागवाड़ा अर्थात् बागड़ प्रदेश एवं मेवाड़ प्रदेश है। श्री रिषभदेव की भट्टारक गादी नरसिंहपुरा समाज की गादी कहलाती है। नरसिंहपुरा जाति में 27 गोत्र होते हैं। किसी किसी में इस जाति के 40 गोत्र भी मिलते हैं। नरसिंहपुरा वर न्यात, थापिया नरसंघपुर नयर । दया दान दातार हवा. बाहर व्रत धारी। श्री रामसेन भट्टारक प्रतिबोध्या श्रावक सहसरस भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति कहे सुगमत मांही अति ही सुजम्स । राजस्थान के अतिरिक्त नरसिंहपुरा समाज महाराष्ट्र एवं गुजरात में भी अच्छी संख्या में बसा हुआ है। 6. नागदा : गगटा जैन का भी मुख्य केन्द्र राजस्थान में ब्रागड एवं मेवाड़ प्रदेश है । यह समाज भी-दस्सा बीसा में बंटा हुआ है । उदयपुर में नागदा समाज के 200 परिवार एवं सलुम्बर में 150 से भी अधिक घर हैं । नागदा, नरसिंहपुरा, हूंबड, चित्तौड़ा ये तीन जातियां ही वागड़ एवं मेवाड़ की प्रमुख जातियां हैं। तीनों ही जातियां धार्मिक परम्पराओं से बंधी हुई है । मुनि भक्ति में विशेष रुचि रखती हैं । 7. पल्लीवाल :- राजस्थान में पल्लीवाल जैन समाज की अच्छी आबादी है । पल्लीवाल जाति प्रारंभ से ही दिगम्बर धर्मानुयायी रही है। करौली, हिण्डौन, गंगापुर एवं अलवर जिले में पल्लीवाल समाज के घर मिलते हैं, जो प्रमुखत: दिगम्बर धर्म के अनुयायी हैं। 8. ओसवाल :- ओसवाल जाति के नाम से श्वेताम्बर ओसवाल जाति को समझ लिया जाता है लेकिन ओसवाल जाति में दिगम्बर धर्मानुयायी भी है। पाकिस्तानी प्रदेश पंजाब से आये हुये दिगम्बर जैनों की भी ओसवाल जाति है । मुलतानी ओसवाल वर्तमान में जयपुर एवं देहली में बसे हुये हैं । दिगम्बर जैन ओसवाल जाति में वर्धमान नवलखा, अमोलका बाई, लुहिन्दामल, दौलताराम ओसवाल जैसे अनेक श्रेष्ठीगण हुये । मुलतान में दि, जैन समाज बहुत संगठित समाज था। दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ संघ का वही उत्पत्ति स्थान था। जयपुर में मुलतानी ओसवाल समाज के अधिक घर हैं । 9. जैसवाल जैन.समाज:- राजस्थान में जैसवाल जैन समाज के मुख्य केन्द्र अजमेर जिला एवं धौलपुर जिला है । एक ही स्थान पर सबसे घनी बस्ती अजमेर है जहाँ समाज के 250-300 घर हैं। जैसवाल जाति की उत्पत्ति जैसलमेर नगर से मानी जाती है । उक्त प्रमुख जातियों के अतिरिक्त और भी जातियों के घर मिलते हैं लेकिन उनकी संख्या अत्यधिक सीमित है । वे या तो व्यापार अथवा नौकरी के कारण राजस्थान में आकर बस गये हैं और सामाजिक कार्यों में सम्मिलित होते रहते हैं । ऐसी जातियों में श्रीमाल, परवार, पद्मावती पुरवार, लमेचू आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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