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उत्तर प्रदेश का जैन समाज 603
आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में महावीर का जिन प्रदेशों से विहार होना लिखा है उनमें काशी, कौशल (अवध प्रान्त) वत्स (इलाहाबाद कमिश्नरी) (शोरसेन और कुशात, पांचाल) रुहेलखंड एवं गंगापार के फर्रुखाबाद आदि जिले । कुरु जांगल (मेरठ कमिश्नरी) वर्तमान उत्तर प्रदेश के ही भूभाग हैं ।
मथुरा के अतिरिक्त देवगढ़ भी जैनों का प्रसिद्ध सांस्कृतिक केन्द्र रहा है । जहाँ जंगल में यत्र-तत्र बिखरी हुई अनगिनत प्राचीन खंडित मूर्तियाँ एवं भवनों के प्रस्तर खंड, इस प्रदेश के अतीत की गौरव गाथा सुनाते हैं । 10वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी तक कितने ही शिलालेख एवं प्रतिमा लेख प्राप्त हुये हैं। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि देवगढ़ मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है। नवीन वेदियों में मूर्तियों को फिर से प्रतिष्ठित करके विराजमान करने के लिए मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के सानिध्य में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्म संपन्न हो चुकी
उत्तर प्रदेश बहुत घना बसा हुआ प्रदेश है। यहां जैन समाज भी 500-600 गांवों एवं नगरों में बसा हुआ है इसलिये उनमें बसे हुये सभी को इतिहास में कवर करना संभव नहीं है। प्रदेश के जिन नगरों एवं ग्रामों में मेरा जाना संभव हो सका उनका सामान्य परिचय निम्न प्रकार है:
आगरा:
राजस्थान की सीमा से लगा हुआ आगरा जैन धर्म, साहित्य एवं संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है । मथुरा के पास होने के कारण इस पर जैन धर्म का पूरा प्रभाव पड़ा और जब से इस नगर की बसावट हुई है जैन समाज का यहां व्यापक प्रभाव रहा। आगरा नगर को सबसे अधिक प्रतिष्ठा मुगल शासन में मिली जब अकबर बादशाह ने इसे अपनी राजधानी बनाया। यहां अनेक जैन कवि, विद्वान एवं लेखक हुये जिन्होंने हिन्दी में विशाल साहित्य की रचना संपन्न की। यहां की प्रवचन सभा वर्षों तक चलती रही जिसने पं. भूधरदास, पं. दौलतराम कासलीवाल को साहित्य निर्माण की ओर प्रेरित किया। यहां बनारसीदास, द्यानतराय, भगवतीदास, हेमराज पांडे, हीरानन्द, जगजीवन, जगतराय, बुलाकीदास, पांडे रूपचंद जैसे अनेक कवि हुए जिन्होंने अपनी रचनाओं से शास्त्र भंडारों को भर दिया । अर्गलपुर जिन वंदना में 17 वीं शताब्दी के 48 मंदिरों का नामोल्लेख आता है। सन् 1913 में प्रकाशित जैन यात्रा दर्पण में 28 दिगम्बर जैन मंदिर होना बतलाया गया है। अभी प्रकाशित दिगम्बरत्व का वैभव पुस्तक में यहां पर मंदिर एवं चैत्यालयों की संख्या 36 लिखी है। कुछ नये उपनगरों में और भी मंदिर बन रहे हैं जिससे यह संख्या और भी अधिक हो सकती है।
आगरा में दिगम्बर जैन समाज की अच्छी संख्या है । सन् 1911 में यहा 1275 परिवार एवं जनसंख्या 4765 थी लेकिन वर्तमान में यहां 1500 परिवार है जिनमें खण्डेलवाल, अग्रवाल, जैसवाल, पल्लीवाल, पद्मावती पुरवार जैसी जातियाँ प्रमुख रूप से निवास करती हैं।