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________________ 602/ जैन समाज का वृहद् इतिहास उत्तर प्रदेश का जैन समाज एवं यशस्वी समाजसेवी उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है । इसकी सीमाएं देश के आधे से अधिक प्रान्तों के साथ मिली हुई है । सन् 1981 की जनगणना के अनुसार उसकी जनसंख्या 110862013 थी । इस विशाल जनसंख्या में जैन समाज की कुल संख्या 1971 में 124728 थी । सन् 1961 की जनगणना में जब उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 73746401 थी तो जैनों की संख्या 1,22,108 थी और सन् 1981 में यह 1,41,549 हुई अर्थात् 20 वर्ष में जब प्रदेश की जनसंख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई तो जैन समाज की संख्या 16 प्रतिशत की ही वृद्धि हो सकी । सन् 1991 की जनगणना में जैन समाज की जनसंख्या एक लाख सत्तर हजार तक पहुंच सकती है। जैन परिवार एवं जातियाँ : लेकिन ये तो सरकारी आंकड़े हैं। वास्तविक जनसंख्या तो इससे बहुत अधिक है । जैन समाज की घनी बस्ती वाले जिलों में मेरठ, मुजफ्फरनगर, आगरा, झांसी, सहारनपुर, एटा, अलीगढ़, इटावा, कानपुर, देहरादून एवं लखनऊ जिलों के नाम उल्लेखनीय हैं । उत्तर प्रदेश की जैन समाज में अग्रवाल दिगम्बर जैन समाज की संख्या सबसे अधिक है इसके पश्चात् खण्डेलवाल जैन समाज का नम्बर आता है । पल्लीवाल, पद्मावती पुरवार, बुढेलवाल, परवार, पोरवाड़, जैसवाल, जैसी जैन जातियों के परिवारों की संख्या आगरा, झांसी, एटा, इटावा जैसे जिलों में काफी अच्छी है । सामाजिक रीति-रिवाजों में भी कुछ भिन्नता है जो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्नता लिये हुये है लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों एवं पूजापाठ विधि विधानों में कहीं कोई भिन्नता नहीं है। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के करीब 450 ऐसे नगर एवं गांव हैं जहाँ जैन मंदिर हैं एवं जैन परिवार रहते हैं ' इनके अतिरिक्त कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहां जैन परिवार तो हैं लेकिन जैन मंदिर नहीं है जैन तीर्थ : उत्तर प्रदेश में अयोध्या, शोरीपुर बटेश्वर, चन्द्रपुरी, चन्द्रवाड, श्रावस्ती, कौशाम्बी, वाराणसी, काकंदी, सिंहपुरी, काम्पिल्य, रत्नपुरी, हस्तिनापुर तीर्थंकरों को जन्म भूमियाँ हैं । इनके अतिरिक्त प्रयाग, पभोसा, संकिसा एवं पावा नगर भी तीर्थंकरों के अन्य कल्याणक क्षेत्रों की भूमियाँ रही हैं । उत्तर प्रदेश में मथुरा की भूमि जैन संस्कृति की मुख्य भूमि रही है। बीजोलिया (राजस्थान) के एक शिलालेख में उत्कीर्ण उन्नत शिखर पुराण के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ ने मथुरा से ही अहिच्छत्र विहार किया और वहां से सम्मेद शिखर पर जाकर निर्वाण प्राप्त किया। मथुरा नगर में 7(K0-8000 वर्षों तक जैन धर्म अपने चरमोत्कर्ष पर रहा । मथुरा और उसके आसपास से प्राप्त अनगिनत तत्कालीन जैन कलाकृतियाँ एवं सैकड़ों शिलालेख इसका स्पष्ट प्रमाण है। 1. विस्तृत जानकारी के लिये देखिये-दिगम्बरत्व का वैभव-प्रकाशक दिगम्बर जैन महासपिति ।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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