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________________ 294/ जैन समाज का वृहद् इतिहास सेठी जी के घर में ही चैत्यालय है जिसमें भगवान महावीर की प्रतिमा विराजमान है। सेठी जी अत्यधिक सरल स्वभावी तथा आतिथ्य प्रेमी हैं। स्वाध्याय प्रेमी हैं। अभी टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव समिति के आप अध्यक्ष थे । आपकी ओर से एक सेठी ग्रन्थ माला स्थापित की हुई है। प्रन्थ-माला की ओर से अब तक 15 से भी अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। ये सभी पुस्तकें जैनाचार्यों द्वारा रचित हैं तथा स्वाध्याय के लिए बहुत उपयोगी हैं। पता : सेठी भवन, हास्पिटल रोड, अशोक नगर, जयपुर । श्री माणकचंद पाटनी केकड़ी निवासी प्रतिष्ठाचार्य पं. धन्नालाल जी पाटनी के सुपौत्र एवं सेठ लखमीचंद पाटनी के दत्तक पुत्र श्री माणकचंद जी पाटनी का प्रारंभिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। सन् 1935-36 में आपने केकड़ी में ही बस मोनोपाली तोड़ने के आंदोलन में भाग लेकर अपने जुझारू स्वभाव का परिचय दिया। आपने इंदोर से विशारद परीक्षा पास की और जयपुर में शुद्ध घी का व्यवसाय करने लगे । आपका विवाह श्रीमती ललिता देवी के साथ संपन हुआ जो अत्यधिक सरल स्वभावी, धार्मिक मनोवृत्ति एवं परिवार को साथ लेकर चलने वाली महिला हैं। आपको तीन पुत्र एवं पांच पुत्रियों की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त हैं। सबसे बड़ा पुत्र राजेन्द्रकुमार लॉ कालेज में व्याख्याता है तथा छोटे पुत्र महेन्द्र लोहे का व्यवसाय करते हैं। तीसरे पुत्र जिनेन्द्र ने बी.ए. कर लिया है। पांचों पुत्रियों में श्रीमती विद्या एम. ए., बी. एड. हैं तथा सिरोही में एक महिला विद्यालय में प्रधानाध्यापिका हैं। आपका विवाह डा. बाबूलाल जी सेठी के साथ हो चुका है। आपकी दूसरी पुत्री ज्ञानवती एम. ए., एम. फिल. है । पाटनी जी प्रारंभ से ही धार्मिक जीवन यापन करते हैं। जहां तक हो सकता है धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में आर्थिक सहयोग देते रहते हैं। आपने तीन बार सभी तीर्थों की यात्रा संपन करली है। पता :- 566 मनिहारों का रास्ता, जयपुर। श्री माणकचन्द मुशरफ जी अपनी शालीनता एवं मधुर व्यवहार से सबको प्रभावित करने वाले श्री माणकचन्द मुशरफ वर्तमान में सेठी नगर जैन समाज के अध्यक्ष हैं। विगत 10-15 वर्षों से उनका व्यक्तित्व समाज में उभर कर आया है तथा उनके कृतित्व प्रशंसा होने लगी है। आए दि. जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय की महासमिति के सदस्य हैं। सेठी कालोनी की पहिले वेदी प्रतिष्ठा में और फिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आपका सराहनीय योगदान रहा। इसके पूर्व वे वहां के सेक्रेटरी भी रह चुके हैं। एक बार राज जैन साहित्य परिषद् द्वारा श्रुतपंचमी के अवसर पर आयोजित रथयात्रा में सारथी का पद प्राप्त कर चुके हैं। आपका जन्म 11 मार्च 1933 को हुआ। आपके पिताश्री गपूचंद जी मुशरफ का निधन हो चुका है तथा माताजी की छाया अभी प्राप्त हैं। आपका विवाह 1951 में श्री नन्दलाल जी
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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