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________________ समाज का इतिहास/33 बाबू होटेलाल जी कलकत्ता अपने जमाने के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता ये। वे स्वयं भी अच्छे विद्वान थे। बिब्लियोग्राफी तैयार करने में उन्होंने विशेष कार्य किया। उनकी स्मृति में बाबू छोटेलाल स्मृति ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। जो उनके यशस्वी जीवन पर अच्छा प्रकाश डालता है। आठवाँ दशक भगवान महावीर 2500वाँ परिनिर्वाण महोत्सव आयोजित होने के कारण जैन इतिहास में विशेष महत्व रखता है। भगवान महावीर के सिद्धान्तों का जितना प्रचार-प्रसार हस दशक में हुआ उतना इसके एवं कभी नहीं हआ। समस्त जैन समाज में भी पूर्ण एकता देखी गई। साहित्य प्रकाशन में भी अभतपर्वकार्य हआ। लेकिन समाज की महान इस्तियों का निधन भी इसी दशक में हआ। ऐसी हस्तियों में डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. नेमिचन्द जैन आरा, श्रीमती रमा जैन, डॉ. ए.एन. उपाध्ये, साहू शान्तिप्रसाद जी जैन के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। सन् 1973 से 77 तक चार वर्ष की अवधि में ही जैन समाज ऐसे रत्नों को खोकर खाली हो गया। डॉ. नेमिचन्द, डॉ, हीरालाल जैन एवं डॉ. उपाध्ये साहित्य जगत की रीढ़ थे। जो कुछ आज हमें साहित्य प्रकाशन का महल दिखता है उसके निर्माण में इन सबका महान् योगदान है। षखडागम की टीकाओ के सम्पादन एवं प्रकाशन में डॉ, हीरालाल जैन एवं डॉ. उपाध्ये का सबसे अधिक योगदान है। ये दोनों ही विद्वान प्राकृत, संस्कृत एवं अंग्रेजी के महान् विद्वान थे। भारतीय ज्ञानपीठ के माध्यम से इन्होंने बीसौं ग्रंथों का सम्पादन किया। इसी तरह डॉ. नेमिचन्द जैन आरा का भी 10 जनवरी 1974 को केवल 52 वर्ष की आयु में ही निधन हो गया। उनके द्वारा लिखित भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा कालजयी पुस्तक है। प्राकृत, हिन्दी एवं संस्कृत में उनकी समान गति थी। उन्होंने बिहार प्रदेश में पचासों छात्रों को जैन साहित्य की ओर मोड़ा। इस दशक की सबसे बड़ी घटना श्रीमती रमा जैन एवं साहू शान्ति प्रसाद जी के निधन को माना जा सकता है। साहू जी सर सेठ हुकुमचन्द जी के पश्चात् समाज के एक मात्र नेता थे। उन्होंने समाज का नेतृत्व इतने अच्छे ढंग से किया कि जैन समाज के वे प्रतीक बन गये। पुरातत्त्व, संस्कृत, साहित्य प्रकाशन, विद्वत् अभिनन्दन पर्व समाज सुरक्षा एवं समाज उन्नति उनके विशिष्ट गुण थे। वे और रमा जी दोनों ने ही अपने आपको ऐसे कार्यों के लिये समर्पित कर दिया था। वे साहित्य सेवियों को प्रोत्साहन देते रहते थे। देश के उच्च कोटि के उद्योगपति होने पर भी समाज में वे इतने घुले-मिले रहते कि छोटे-बड़े का कभी प्रश्न ही विचार में नहीं आता। पहले 22 जुलाई 1975 को श्रीमती रमा जी और फिर दि. 27 अक्टूबर 1977 को साहू जी चल बसे। इस दशक के अन्त में श्री कानजी स्वामी का निधन साहू जी के बाद सबसे बड़ी घटना थी। कानजी स्वामी 40 वर्ष तक समाज पर छाये रहे और आध्यात्मिक क्षेत्र की अभूतपूर्व सेवा करते रहे। समाज में उनका व्यक्तित्व सदैव चर्चा का विषय बना रहा। वे विरोध एवं समर्थन के बीच अपनी बात कहते रहते। हजारों को दिगम्बर जैन अनुयायी बनाकर बीसों मन्दिरों का निर्माण करवाकर सोनगढ़ को आध्यात्मिक केन्द्र बनाया लेकिन जहाँ एक और ऐसा अभूतपूर्व कार्य किया वहीं दूसरी और उनकी निश्चय धर्म-मूलक
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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