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________________ 32/जैन समाज का वृहद् इतिहास Voice of Ahimsa जैसे पत्रों का संपादन किया। डॉ. साहब का निधन 17 मई 1964 को मात्र 63 वर्ष की आयु में हो गया। क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वी बड़े प्रभावशाली संत थे। उन्हें बुंदेलखंड के संत के नाम से पुकारा जा सकता है। बुंदेलखंड में वर्णी जी ने नगर एवं गाँवों में संस्कृत विद्यालय खुलवाये और जैन धर्म एवं सिद्धान्त पढ़ाकर पचासों विद्यार्थियों को पंडित बनाया। उनके नाम से कितने ही विद्यालय चल रहे है। वणी जी का निधन दिनांक 5 दिसम्बर 1961 को हआ था। आपके निधन से बंदेलखंड अपने आपको असहाय अनुभव करता है। __इसी काल में ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी हुये जिनके जीवन का मिशन ही समाज सेवा बन गया था। अपने युग के वे महान संत, क्रांतिकारी सुधारक एवं महान साहित्य सेवी थे। जैन समाज ऐसे सन्त के विचारों को नहीं पचा सका। उन्होंने अपने जीवन में 77 पुस्तके लिखी या उनका संपादन किया। महाविद्यालय वाराणसी, अषभब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर, जैन श्राविकाश्रम बबई एवं जैन बाला आश्रम, आरा जैसी संस्थाओं को जन्म दिया। जैन मित्र का वर्षों तक संपादन किया। दि. 10 फरवरी, 42 को उनका शांतिपूर्वक स्वर्गवास हो गया। साहू शांतिप्रसाद जी ने उन्हें इस युग का समन्तभद बतलाया था। दि. जैन महासभा के अध्यक्ष भोट भंवरील जी बाकलीवाल का सन् 1967 में निधन हो गया । बाकलीवाल जो समाज के प्रमुख थे। उनके सम्मान में भंवरीलाल जी बाकलीवाल स्मृति ग्रंथ प्रकाशन हुआ। वे कट्टर आर्ष परम्परा के श्रावक थे। आसाम क्षेत्र में उनका पूर्ण प्रभाव था। पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ : बीसवीं शताब्दी के क्रांतिकारी विद्वान थे। सामाजिक आदोलनों के जनक रहे। वे अपने विचारों पर दृढ़ रहते थे। जयपुर में आचार्य शांतिसागर जी महाराज के शुद्धजल त्याग, यज्ञोपवीत जैसे विचारों का उन्होंने उन्हीं के सामने विरोध किया। जयपुर जैन समाज के वे एक छात्र नेता थे तथा जैन समाज को जाग्रत रखने में उन्होंने अहं भूमिका निभायी। संस्कृत के वे महान प्रकाण्ड विद्वान थे। शास्त्रार्थ में वे कभी नहीं घबराते थे। ऐसे महान विद्वान का दिनांक 26 जनवरी 1969 को स्वर्गवास हो गया। बम्बई के श्री नाथूराम जी प्रेमी : हिन्दी ग्रंथ स्लाकर के संस्थापक श्री नाथूराम जी प्रेमी उच्च साहित्य सेदी थे। उन्होंने प्राचीन एवं अप्रकाशित जैन ग्रंथों के प्रकाशन का अभूतपूर्व कार्य किया। उन्होंने जैन हितैषी पत्र का सम्पादन किया। 30 जनवरी सन् 1960 को उनका देहान्त हो गया। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ, अभिनन्दन ग्रंथों की परम्परा में प्रथम ग्रंथ माना जाता है। बाबू जुगलकिशोर जी मुख्तार : अपने युग के अच्छे शोधक पंडित थे तथा साहित्य सेवी थे। वीर सेवा मन्दिर देहली के संस्थापकों में से थे तथा अनेकान्त के सम्पादक थे। आचार्य समन्तभद्र पर उनका विशेष कार्य था। उनका निधन 22 दिसम्बर, सन् 1968 को हो गया।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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